22-08-2024, 02:31 PM
"कौन है" बोलकर माताश्री द्वार खोलने बढ़ गई। द्वार खोलते ही सामने खड़े शख्स ने बोला... आंटी जी श्रृष्टि यहीं पर रहती हैं।
"जी हा! आप कौन?"
"जी मैं उसी के साथ काम करती हूं मेरा नाम साक्षी हैं।"
"हों तुम ही हो साक्षी तुम्हारी बहुत चर्चा सूना था। आओ भीतर आओ।"
साक्षी को बैठाकर माताश्री श्रृष्टि को आवाज देते हुए बोलीं... श्रृष्टि बेटा देख तेरी साक्षी मैम आई हैं। जल्दी से बहार आ जा (फिर साक्षी से बोलीं) बेटा तुम बैठो मैं चाय लेकर आई।
इतना बोल कर माताश्री रसोई में चली गई
अब उधर वोही समय पे श्रुष्टि के कमरे में
रोज की तरह आज श्रुष्टि के चहरे पर वो खास तरीके की मुश्कान गायब थी| आज उसे वोही दर्पण उसे दुश्मन लगा जहा जाके अपने शरीर को देखती और फुला नहीं समाती थी आज उसे इस अकेलेपन से उब रही थी जहा वो मा से दूर होते ही उस अकेलेपन की मज़ा लेती थी अपने सपनो को बूनती रहती थी
ये वोही कमरा था जहा उसके सपनो की महक आती थी आज वो दुर्गन्ध में परिवर्तित हो चुकी थी
आज उसके शरीर में कोई ज़नज़नाहत महेसुस नहीं हो रही थी, उसके पैरो से वो मोर अपनी थान्गानाट गायब हो गई थी ये वोही कमरा था जहा वो हर लड़की की तरह अपनी श्रुष्टि सजाती थी अपने राजकुमार के साथ आज वोही कमरा था और वोही पलंग जहा सोती थी और वोभी वोही श्रुष्टि थी पर सपने टूटे हुए थे
श्रुष्टि अपनी ही बुनी हुई काल्पनिक श्रुष्टि को खो चुकी थी
तभी मा की आवाज़ आई और थोड़ी देर में श्रृष्टि हल्की बनावटी मुस्कान होठो पर लिए कमरे से बहार आई और साक्षी को देखकर बोलीं...अरे साक्षी तुम मेरे घर में।
साक्षी... क्यों नहीं आ सकती (फिर मन में बोलीं) थैंक गॉड श्रृष्टि सामान्य लग रही हैं।
श्रृष्टि... अरे मैं तो बस इसलिए कहा तुम्हे मेरे घर का पता नहीं मालूम था न।
साक्षी... पाता नहीं मालूम था अब तो चल गया वो भी सिर्फ तेरे वजह से तू दफ्तर से इतनी परेशान होकर निकली मुझे लगा तू कुछ कर न बैठें इसलिए मैं तेरा पीछा करते करते आ गई बस गली में घुसते ही तू ओझल हो गई वरना तेरे साथ ही तेरे घर पे आ जाती। और हां तू स्कूटी बहोत तेज़ चलाती है
श्रृष्टि...चलो अच्छा हुआ इसी बहाने मेरा गरीब खाना भी देख लिया और उस बात को भूल जाना क्योंकि वो मेरी एक बचकाना हरकत थी जो अब मैं समझ चुकी हूं अच्छा तू बैठ मैं देखती हूं चाय बना की नहीं फिर चाय पीते हुए बाते करेंगे।
श्रृष्टि की बातों ने साक्षी को अचंभित कर दिया साथ ही उसके व्यवहार भी जो लंच के बाद किसी से बात नहीं कर रहीं थी घर आते ही बदल गई सिर्फ़ इतना ही नहीं जो परेशानी और उदासी उसकी चेहरे पर देखा था वो भी गायब हों गया।
कुछ देर तक साक्षी इसी विचार में मगन रही मगर श्रृष्टि में आई बदलाब ने उसके विचार को ध्वस्त कर दिया। कुछ ही देर में चाय नाश्ता लेकर दोनों मां बेटी आ गई फ़िर तीनों में शुरू हुआ बातों का दौरा। जो की लंबा चला फ़िर साक्षी विदा लेकर कल दफ्तर में मिलते है बोलकर चली गई।
जारी रहेगा….
पता नहीं अब कहानी क्या मोड़ ले रही है जान ने की कोशिश करेंगे अगले एपिसोड में ......
"जी हा! आप कौन?"
"जी मैं उसी के साथ काम करती हूं मेरा नाम साक्षी हैं।"
"हों तुम ही हो साक्षी तुम्हारी बहुत चर्चा सूना था। आओ भीतर आओ।"
साक्षी को बैठाकर माताश्री श्रृष्टि को आवाज देते हुए बोलीं... श्रृष्टि बेटा देख तेरी साक्षी मैम आई हैं। जल्दी से बहार आ जा (फिर साक्षी से बोलीं) बेटा तुम बैठो मैं चाय लेकर आई।
इतना बोल कर माताश्री रसोई में चली गई
अब उधर वोही समय पे श्रुष्टि के कमरे में
रोज की तरह आज श्रुष्टि के चहरे पर वो खास तरीके की मुश्कान गायब थी| आज उसे वोही दर्पण उसे दुश्मन लगा जहा जाके अपने शरीर को देखती और फुला नहीं समाती थी आज उसे इस अकेलेपन से उब रही थी जहा वो मा से दूर होते ही उस अकेलेपन की मज़ा लेती थी अपने सपनो को बूनती रहती थी
ये वोही कमरा था जहा उसके सपनो की महक आती थी आज वो दुर्गन्ध में परिवर्तित हो चुकी थी
आज उसके शरीर में कोई ज़नज़नाहत महेसुस नहीं हो रही थी, उसके पैरो से वो मोर अपनी थान्गानाट गायब हो गई थी ये वोही कमरा था जहा वो हर लड़की की तरह अपनी श्रुष्टि सजाती थी अपने राजकुमार के साथ आज वोही कमरा था और वोही पलंग जहा सोती थी और वोभी वोही श्रुष्टि थी पर सपने टूटे हुए थे
श्रुष्टि अपनी ही बुनी हुई काल्पनिक श्रुष्टि को खो चुकी थी
तभी मा की आवाज़ आई और थोड़ी देर में श्रृष्टि हल्की बनावटी मुस्कान होठो पर लिए कमरे से बहार आई और साक्षी को देखकर बोलीं...अरे साक्षी तुम मेरे घर में।
साक्षी... क्यों नहीं आ सकती (फिर मन में बोलीं) थैंक गॉड श्रृष्टि सामान्य लग रही हैं।
श्रृष्टि... अरे मैं तो बस इसलिए कहा तुम्हे मेरे घर का पता नहीं मालूम था न।
साक्षी... पाता नहीं मालूम था अब तो चल गया वो भी सिर्फ तेरे वजह से तू दफ्तर से इतनी परेशान होकर निकली मुझे लगा तू कुछ कर न बैठें इसलिए मैं तेरा पीछा करते करते आ गई बस गली में घुसते ही तू ओझल हो गई वरना तेरे साथ ही तेरे घर पे आ जाती। और हां तू स्कूटी बहोत तेज़ चलाती है
श्रृष्टि...चलो अच्छा हुआ इसी बहाने मेरा गरीब खाना भी देख लिया और उस बात को भूल जाना क्योंकि वो मेरी एक बचकाना हरकत थी जो अब मैं समझ चुकी हूं अच्छा तू बैठ मैं देखती हूं चाय बना की नहीं फिर चाय पीते हुए बाते करेंगे।
श्रृष्टि की बातों ने साक्षी को अचंभित कर दिया साथ ही उसके व्यवहार भी जो लंच के बाद किसी से बात नहीं कर रहीं थी घर आते ही बदल गई सिर्फ़ इतना ही नहीं जो परेशानी और उदासी उसकी चेहरे पर देखा था वो भी गायब हों गया।
कुछ देर तक साक्षी इसी विचार में मगन रही मगर श्रृष्टि में आई बदलाब ने उसके विचार को ध्वस्त कर दिया। कुछ ही देर में चाय नाश्ता लेकर दोनों मां बेटी आ गई फ़िर तीनों में शुरू हुआ बातों का दौरा। जो की लंबा चला फ़िर साक्षी विदा लेकर कल दफ्तर में मिलते है बोलकर चली गई।
जारी रहेगा….
पता नहीं अब कहानी क्या मोड़ ले रही है जान ने की कोशिश करेंगे अगले एपिसोड में ......