22-08-2024, 02:24 PM
भाग - 23
शाम होते होते श्रृष्टि का हाल ऐसा हों गया। जैसे अनगिनत तूफान उसके अंदर उमड़ रहे हो और उसके जड़ में आने वालों के परखाचे उड़ा दे।
छुट्टी का वक्त होते ही श्रृष्टि दफ़्तर से ऐसे निकली मानों वो वहां किसी को जानती ही नहीं सभी उसके लिए अजनबी हों। ये देखकर साक्षी मन ही मन खुद को कोसने लगीं। सहसा उसके ख्यालों में कुछ उपजा "नहीं वो ऐसा नहीं कर सकतीं है।" बोलते हुए तुरंत दफ्तर से बहार भागी।
जब साक्षी लिफ्ट का सहारा लेकर नीचे पहुंची। ठीक उसी वक्त श्रृष्टि उसके सामने से निकल गई। श्रृष्टि किस ओर जा रहीं है ये देखकर साक्षी तुरंत अपनी कार लेकर उस ओर चल दि।
जितनी रफ़्तार से साक्षी कार को दौड़ा सकती थी दौड़ा रहीं थीं और श्रृष्टि की रफ्तार भी कुछ कम नहीं था। वो स्कूटी की कान अंतिम छोर तक उमेठकर दौड़ाए जा रहीं थीं।
दोनों के बीच पकड़म पकड़ाई जोरों पर थीं। रास्ते पर अजबाही करती दूसरी गाडियां भी थी और कुछ ज्यादा ही था। जिससे साक्षी को आगे निकलने में कुछ दिक्कत आ रही थी मगर श्रृष्टि हल्की सी गली मिलते ही स्कूटी ऐसे निकल रहीं थी मानों उसे किसी बात की परवाह ही न हों।
ट्रैफिक से निकलकर जब खाली रस्ता मिला तब जल्दी से श्रृष्टि तक पहुंचने के लिए साक्षी ने कार की रफ्तार बड़ा दिया। जब तक साक्षी पास पहुंचती तब तक श्रृष्टि एक गली में घुस गई।
साक्षी को गली में घुसने में थोड़ा देर हों गया। जब वो गली में घुसा श्रृष्टि जा चुकी थी। अब साक्षी के सामने दुस्वरी ये थी इस अंजान गली में श्रृष्टि को ढूंढे तो ढूंढे कहा तो कार को रोक कर बोलीं... ये पगली कुछ कर न बैठें अब मैं क्या करूं उसका घर कहा है कैसे ढूंढू कोई और दिख भी नहीं रहा। हे प्रभू उसके मन में कोई गलत ख्याल न आने देना मैं कान पकड़ती हूं कभी किसी से ऐसा मजाक नहीं करूंगी तब तो बिल्कुल भी नहीं जब मामला दो दिलों का हों।
वो अपने आप को कोसती रही .......जिस चीज़ पे मेरा हक़ नहीं वो चीज़ को मै हासिल करने की चाहत में मै दो दिलो को तोड़ रही हु !!!!!!
सोच अगर ये हादसा मेरे साथ हुआ होता तो मै क्या करती ?
मुझे श्रुष्टि के बारे में सोचना चाहिए
क्या मै अपनी चाहतो में ये भी भूल गई की मै भी एक नारी हु ? और नारी के मन और दिल से खेलने पर नारी पे क्या गुजरती है?
क्या ये मेरा मजाक था ? या फिर ......
हे भगवान् मुझे माफ़ कर मेरी गलती सुधारने का एक मौक़ा दे मेरी खातिर नहीं तो उस भोली नादान लड़की के लिए
शाम होते होते श्रृष्टि का हाल ऐसा हों गया। जैसे अनगिनत तूफान उसके अंदर उमड़ रहे हो और उसके जड़ में आने वालों के परखाचे उड़ा दे।
छुट्टी का वक्त होते ही श्रृष्टि दफ़्तर से ऐसे निकली मानों वो वहां किसी को जानती ही नहीं सभी उसके लिए अजनबी हों। ये देखकर साक्षी मन ही मन खुद को कोसने लगीं। सहसा उसके ख्यालों में कुछ उपजा "नहीं वो ऐसा नहीं कर सकतीं है।" बोलते हुए तुरंत दफ्तर से बहार भागी।
जब साक्षी लिफ्ट का सहारा लेकर नीचे पहुंची। ठीक उसी वक्त श्रृष्टि उसके सामने से निकल गई। श्रृष्टि किस ओर जा रहीं है ये देखकर साक्षी तुरंत अपनी कार लेकर उस ओर चल दि।
जितनी रफ़्तार से साक्षी कार को दौड़ा सकती थी दौड़ा रहीं थीं और श्रृष्टि की रफ्तार भी कुछ कम नहीं था। वो स्कूटी की कान अंतिम छोर तक उमेठकर दौड़ाए जा रहीं थीं।
दोनों के बीच पकड़म पकड़ाई जोरों पर थीं। रास्ते पर अजबाही करती दूसरी गाडियां भी थी और कुछ ज्यादा ही था। जिससे साक्षी को आगे निकलने में कुछ दिक्कत आ रही थी मगर श्रृष्टि हल्की सी गली मिलते ही स्कूटी ऐसे निकल रहीं थी मानों उसे किसी बात की परवाह ही न हों।
ट्रैफिक से निकलकर जब खाली रस्ता मिला तब जल्दी से श्रृष्टि तक पहुंचने के लिए साक्षी ने कार की रफ्तार बड़ा दिया। जब तक साक्षी पास पहुंचती तब तक श्रृष्टि एक गली में घुस गई।
साक्षी को गली में घुसने में थोड़ा देर हों गया। जब वो गली में घुसा श्रृष्टि जा चुकी थी। अब साक्षी के सामने दुस्वरी ये थी इस अंजान गली में श्रृष्टि को ढूंढे तो ढूंढे कहा तो कार को रोक कर बोलीं... ये पगली कुछ कर न बैठें अब मैं क्या करूं उसका घर कहा है कैसे ढूंढू कोई और दिख भी नहीं रहा। हे प्रभू उसके मन में कोई गलत ख्याल न आने देना मैं कान पकड़ती हूं कभी किसी से ऐसा मजाक नहीं करूंगी तब तो बिल्कुल भी नहीं जब मामला दो दिलों का हों।
वो अपने आप को कोसती रही .......जिस चीज़ पे मेरा हक़ नहीं वो चीज़ को मै हासिल करने की चाहत में मै दो दिलो को तोड़ रही हु !!!!!!
सोच अगर ये हादसा मेरे साथ हुआ होता तो मै क्या करती ?
मुझे श्रुष्टि के बारे में सोचना चाहिए
क्या मै अपनी चाहतो में ये भी भूल गई की मै भी एक नारी हु ? और नारी के मन और दिल से खेलने पर नारी पे क्या गुजरती है?
क्या ये मेरा मजाक था ? या फिर ......
हे भगवान् मुझे माफ़ कर मेरी गलती सुधारने का एक मौक़ा दे मेरी खातिर नहीं तो उस भोली नादान लड़की के लिए