21-08-2024, 05:15 PM
भाग - 22
शादी वो भी राघव की, सुनते ही श्रृष्टि के लिए पल जहां का तहां ठहर सा गया। किसी बात पर प्रतिक्रिया देना क्या होता हैं? श्रृष्टि भूल सी गईं। श्रृष्टि को यूं अटक हुआ देखकर साक्षी मुस्कुरा दिया और बोलीं... तुझे क्या हुआ तुझे किस बात का सदमा लग गया।
साक्षी की बाते कानों को छूते ही श्रृष्टि चेतना पाई फिर बोली... कुछ बोला क्या?
साक्षी...मैं तो बस इतना ही कह रहीं थीं। काम पर लगते हैं।
"हां चलो" इतना बोलकर दोनों काम में लग गई मगर साक्षी बीच बीच में श्रृष्टि की ओर देखकर मुस्करा देती क्योंकि श्रृष्टि ओर दिनों की तरह काम पर ध्यान ही नहीं दे पा रहीं थीं। जीतना खुद को सामान्य करके काम पर ध्यान देना चाहती। उतना ही उसका ध्यान किसी बात से भटक जाता और बेचैनी सा उस पे हावी हो जाता नतीजातन उसका ध्यान काम से विमुख हों जाता।
दिन का बचा हुआ वक्त श्रृष्टि का ध्यान भटकना फिर बेचैन हों जाना इसी में ही निकल गया। शाम को जैसे ही घर पहुंची माताश्री देखते ही पहचान गई कि उसकी बेटी पर थकान से ज्यादा कुछ ओर ही हावी हैं। तो तुरंत ही बेटी को अपने पास बैठाया फ़िर बोलीं...श्रृष्टि बेटा क्या बात है आज दफ्तर में कोई बात हों गई हैं जो तू इतना परेशान दिख रहीं हैं।?
"नहीं मां, छोटी मोटी बाते तो होती ही रहती है उससे क्या परेशन होना। आज ज्यादा काम की वजह से मुझे थकान ज्यादा हों गई हैं शायद मेरी थकान आपको परेशानी के रूप में दिख रही हों। वैसे भी ज्यादा थकान भी तो परेशानी का कारण होता हैं।" हाव भव में बदलाव करते हुए श्रृष्टि बोलीं।
"मेरी नज़रे कभी धोका नहीं खा सकती है। मैं मेरी बेटी का चेहरा देखकर ही जान जाती हूं वो कब थकान के वजह से परेशान है और कब किसी बात को लेकर परेशान हैं। समझी।"
श्रृष्टि... उफ्फ मां आप भी न दिन भर की कामों से थकी हरी बेटी घर लौटी हैं। उसे एक कड़क चाय या कॉफी पिलाने के जगह आप बातों में लगीं हुईं हों।
"अच्छा अच्छा अभी लाती हूं।" इतना बोलकर माताश्री रसोई की ओर चल दिया कुछ कदम पर रूककर बोलीं...श्रृष्टि बेटा तेरी मां होने के साथ साथ तेरी पहली दोस्त भी हूं। इसलिए कोई बात अगर तुझे परेशान कर रहीं है तो मुझे बता देना शायद इससे तेरे परेशानी का हल मिल जाएं।
और इतना कह के माताश्री का ह्रदय थोडा सा हिल गया कुछ अनचाही डर से
"ओ हो मां फिलहाल तो मुझे कोई परेशानी नहीं हैं अगर कोई परेशानी होगी तो आपको बता दूंगी और किस को बताउंगी भला ? अब आप जल्दी से एक कड़क चाय लेकर आईए"
माताश्री आगे कुछ न बोलकर रसोई में चली गई और श्रृष्टि अपने कमरे में चली गई। अपने कमरे में जाके कपडे उतारते वक़्त एक नजर शीशे में देखना चाहा पर ऐसा वो ना कर सकी और दो बूंद अपने आँखों ने छोड़ दिए. जिसे पोछ कर वो कपड़े बदलकर आई तब तक माताश्री चाय बना चुकी थी। श्रृष्टि के आते ही दोनों मां बेटी चाय की चुस्कियां गपशप करते हुए लेने लग गई।
लेकिन अक अनुभवी आँखों ने ये नॉट कर लिया की श्रुष्टि की आँखों से कुछ अश्रु निकल चुके है और उसे पोछ दिया गया है. माताश्री को बहोत हलचली महसूस हुई पर सोचा अभी वक़्त नहि आया की उस से बात करू, शायद कुछ हुआ भी न हो या फिर ऐसा कुछ हुआ हो (राघव) की कुछ बात उसे पसंद ना आई हो. कही ऐसा तो नहीं की राघव ने कुछ ............. नहीं नहीं पागल ऐसा कुछ होता तो वो सीधा मुझे बोल देती .....तू अपने में से बाहर आ .....खुद से बोली
शादी वो भी राघव की, सुनते ही श्रृष्टि के लिए पल जहां का तहां ठहर सा गया। किसी बात पर प्रतिक्रिया देना क्या होता हैं? श्रृष्टि भूल सी गईं। श्रृष्टि को यूं अटक हुआ देखकर साक्षी मुस्कुरा दिया और बोलीं... तुझे क्या हुआ तुझे किस बात का सदमा लग गया।
साक्षी की बाते कानों को छूते ही श्रृष्टि चेतना पाई फिर बोली... कुछ बोला क्या?
साक्षी...मैं तो बस इतना ही कह रहीं थीं। काम पर लगते हैं।
"हां चलो" इतना बोलकर दोनों काम में लग गई मगर साक्षी बीच बीच में श्रृष्टि की ओर देखकर मुस्करा देती क्योंकि श्रृष्टि ओर दिनों की तरह काम पर ध्यान ही नहीं दे पा रहीं थीं। जीतना खुद को सामान्य करके काम पर ध्यान देना चाहती। उतना ही उसका ध्यान किसी बात से भटक जाता और बेचैनी सा उस पे हावी हो जाता नतीजातन उसका ध्यान काम से विमुख हों जाता।
दिन का बचा हुआ वक्त श्रृष्टि का ध्यान भटकना फिर बेचैन हों जाना इसी में ही निकल गया। शाम को जैसे ही घर पहुंची माताश्री देखते ही पहचान गई कि उसकी बेटी पर थकान से ज्यादा कुछ ओर ही हावी हैं। तो तुरंत ही बेटी को अपने पास बैठाया फ़िर बोलीं...श्रृष्टि बेटा क्या बात है आज दफ्तर में कोई बात हों गई हैं जो तू इतना परेशान दिख रहीं हैं।?
"नहीं मां, छोटी मोटी बाते तो होती ही रहती है उससे क्या परेशन होना। आज ज्यादा काम की वजह से मुझे थकान ज्यादा हों गई हैं शायद मेरी थकान आपको परेशानी के रूप में दिख रही हों। वैसे भी ज्यादा थकान भी तो परेशानी का कारण होता हैं।" हाव भव में बदलाव करते हुए श्रृष्टि बोलीं।
"मेरी नज़रे कभी धोका नहीं खा सकती है। मैं मेरी बेटी का चेहरा देखकर ही जान जाती हूं वो कब थकान के वजह से परेशान है और कब किसी बात को लेकर परेशान हैं। समझी।"
श्रृष्टि... उफ्फ मां आप भी न दिन भर की कामों से थकी हरी बेटी घर लौटी हैं। उसे एक कड़क चाय या कॉफी पिलाने के जगह आप बातों में लगीं हुईं हों।
"अच्छा अच्छा अभी लाती हूं।" इतना बोलकर माताश्री रसोई की ओर चल दिया कुछ कदम पर रूककर बोलीं...श्रृष्टि बेटा तेरी मां होने के साथ साथ तेरी पहली दोस्त भी हूं। इसलिए कोई बात अगर तुझे परेशान कर रहीं है तो मुझे बता देना शायद इससे तेरे परेशानी का हल मिल जाएं।
और इतना कह के माताश्री का ह्रदय थोडा सा हिल गया कुछ अनचाही डर से
"ओ हो मां फिलहाल तो मुझे कोई परेशानी नहीं हैं अगर कोई परेशानी होगी तो आपको बता दूंगी और किस को बताउंगी भला ? अब आप जल्दी से एक कड़क चाय लेकर आईए"
माताश्री आगे कुछ न बोलकर रसोई में चली गई और श्रृष्टि अपने कमरे में चली गई। अपने कमरे में जाके कपडे उतारते वक़्त एक नजर शीशे में देखना चाहा पर ऐसा वो ना कर सकी और दो बूंद अपने आँखों ने छोड़ दिए. जिसे पोछ कर वो कपड़े बदलकर आई तब तक माताश्री चाय बना चुकी थी। श्रृष्टि के आते ही दोनों मां बेटी चाय की चुस्कियां गपशप करते हुए लेने लग गई।
लेकिन अक अनुभवी आँखों ने ये नॉट कर लिया की श्रुष्टि की आँखों से कुछ अश्रु निकल चुके है और उसे पोछ दिया गया है. माताश्री को बहोत हलचली महसूस हुई पर सोचा अभी वक़्त नहि आया की उस से बात करू, शायद कुछ हुआ भी न हो या फिर ऐसा कुछ हुआ हो (राघव) की कुछ बात उसे पसंद ना आई हो. कही ऐसा तो नहीं की राघव ने कुछ ............. नहीं नहीं पागल ऐसा कुछ होता तो वो सीधा मुझे बोल देती .....तू अपने में से बाहर आ .....खुद से बोली