21-08-2024, 01:00 PM
राघव... क्या खाक आगे बढूं जब वो खुद से आगे ही नहीं बढ़ रहीं हैं। कितनी बार उसे इतवार को लंच या फिर शाम को चाय पर मिलने को बोला मगर हर बार कोई न कोई बहाना बनाकर टाल देती है। अब तुम ही बताओं मैं करूं तो करूं क्या?
"उहुम्म ( कुछ सोचते हुए साक्षी आगे बोलीं) अभी से इतने नखरे पता नहीं बाद में श्रृष्टि आपका क्या हाल करेंगी ही ही ही।
राघव...एक बार हां तो कर दे फ़िर चाहें जितने नखरे करना हों कर ले मैं बिना उफ्फ किए सह लूंगा। अब तुम मेरी खिल्ली उडाने के जगह कोई रस्ता हों तो बताओं।
साक्षी...उफ्फ ये प्रेम रोग मुझे कब लगेगा। खैर छोड़िए आप एक काम करिए पूरे टीम को एक साथ लंच पर ले चलिए सभी साथ होंगे। तब मना भी नहीं कर पाएगी फ़िर वहां पर उसे आपके साथ अलग टेबल पर बिठा देंगे फिर कह देना जो आपको कहना हों।
राघव... आइडिया तो सही हैं मगर मुझे एक शंका है। इतवार को लंच पर चलने की बात कहा तो कहीं फिर से टाल न दे।
साक्षी... अरे तो इतवार को लेकर जानें को कह ही कौन रहा हैं।
राघव...इसका मतलब मुझे थोड़ा नुकसान सहना पड़ेगा चलो कोई बात नही इसकी भरपाई बाद में तुम सभी से काम करवा कर लूंगा ही ही ही।
साक्षी... हां हां करवा लेना अब आप ये कहिए कि आप किस बात से परेशान थे। क्या है न मेरे जाते ही आपकी श्रृष्टि फिर से मेरे पीछे पड़ जायेगी।
राघव... घर में कुछ कहा सुनी हों गया था जिससे बाते बहुत बढ़ गई थीं। इसलिए मैं थोड़ा परेशान था।
साक्षी... किस बात पे कहा सुनी हुआ था। ये मुझे नहीं जानना मैं तो बस आपके श्रृष्टि के लिए पूछ रहीं हूं। क्योंकि जब तक वो पुरी बात नहीं जान लेगी तब तक उस बेचैन आत्मा को चैन नहीं मिलेगा।
राघव...कहासूनी की वजह मेरी अपनी है। मैं उसका बखान किसी के सामने करना नहीं चाहूंगा तुम अपनी तरफ से जोड़कर कुछ भी बोल देना जिससे उसे लगे की सच में यहीं मेरे परेशानी की वजह हैं।
"ठीक है सर" बोलकर साक्षी चली गई
दृश्य में बदलाव
साक्षी जैसे ही भीतर आई उसे देखकर श्रृष्टि अपने जगह से उठने लगीं तो साक्षी बोलीं…अरे इतनी जल्दी में क्यों है? मैं आ तो रहीं हूं।
इतना सुनते ही श्रृष्टि हल्का सा मुस्कुरा दिया फिर अपने जगह बैठ गई। साक्षी पास आकर बोलीं... श्रृष्टि बता तू इतना बेचैन क्यों हैं।
श्रृष्टि... मैम...।
"ये मेम की औपचारिकता तू कब भूलेगी मैंने कहा था न हम दोनों दोस्त है और दोस्तों में कोई औपचारिकता नहीं होती।" टोकते हुए साक्षी बोलीं
श्रृष्टि... आदत से मजबुर हूं मैम, नहीं नहीं साक्षी। अब ठीक है न।
साक्षी... अब बता तू इतना बेचैन क्यों हैं और तुझे कैसे पता चला सर परेशान हैं?
"क्यो और कैसे पता नहीं।" इतना बोलकर श्रृष्टि नज़रे झुका लिया। शायद इसलिए कि कहीं उसकी नज़रे चुगली करके उसके दिल का हाल बयां न कर दे। मगर इस पगली को कौन समझाए चुगल खोरी तो हो चूका है जिसे भाप कर साक्षी बोलीं...कुछ लोग होते है जो बिना बताए ही जान लेते हैं कि सामने वाले का हाल क्या हैं। पता हैं श्रृष्टि मैंने एक क्वेट्स में पढ़ा था ऐसे लोग दिल के बहुत करीब होते हैं और मुझे लगता हैं सर तेरे दिल के बहुत करीब हैं। इसलिए तो तू बिना बताए ही जान गई कि सर को कोई परेशानी हैं। जबकि मैं भी उन्हें देखकर पता नहीं कर पाईं कि उन्हें कोई परेशानी हैं भी।
साक्षी के कथन का श्रृष्टि के पास कोई जवाब नहीं था फ़िर भी कुछ न कुछ बोलकर इस कथन को नकारना था इसलिए श्रृष्टि बोलीं…मेरा स्वभाव शुरू से ही ऐसा हैं इसलिए मैं सर को देखते ही भाप गई कि उन्हें कोई परेशानी हैं। अब तुम ये बताओं सर किस बात से परेशान थे
साक्षी...सर कह रहें थे। उनके घर पर कुछ कहा सुनी हुआ था इसलिए परेशान थे।
श्रृष्टि…कहासुनी.. हल्की फुल्की कहासुनी से कोई इतना परेशान नहीं होता। तुमने पुछा था किस बात पे इतना कहासुनी हुआ था। बताओ न।
"कहासुनी इस बात पे हुई (इतना बोलकर रूकी फिर कुछ सोचकर बोलीं) सर कह रहे थे उनके घर वाले उनकी शादी के लिए कोई लड़की देखा हैं लेकिन सर अभी शादी नहीं करना चाहते हैं इसी बात पर बहस हों गई और बाद में बहस बहुत गरमा गया बस इसी बात से सर परेशान थे।
जारी रहेगा….
क्या साक्षी अपना कम कर रही है ????
श्रुष्टि के मन और दिल में जो है साक्षी तो भाप गई पर हीरो और हिरोइन को पता चलेगा ??? एक दुसरे की भावनाओं का .......
या फिर ये साक्षी !!!!!!!!!!!! मुझे तो इस साक्षी नाम का केरेक्टर से डर लगता है सच में !!!! एक सीधी सादी जिंदगी को कोई कभी भी अपने बेरंग स्वभाव या हरकतों से किसी का भी जीवन बेरंग कर सकते है ..........रंग भरनेवाले बहोत कम है इस श्रुष्टि में.........और जो रंग भरनेवाले है उसे पहचान ने वाले भी बहोत कम है......... क्या पता .........
आप को क्या लगता है ????? आप सहमत है मुज से ??? या कहा तक सहमत है ????? है भी या नहीं ?????? अपनी सोच दे कोमेंट बॉक्स में ..........
अगले भाग में और कुछ जानकारी लेंगे .............
"उहुम्म ( कुछ सोचते हुए साक्षी आगे बोलीं) अभी से इतने नखरे पता नहीं बाद में श्रृष्टि आपका क्या हाल करेंगी ही ही ही।
राघव...एक बार हां तो कर दे फ़िर चाहें जितने नखरे करना हों कर ले मैं बिना उफ्फ किए सह लूंगा। अब तुम मेरी खिल्ली उडाने के जगह कोई रस्ता हों तो बताओं।
साक्षी...उफ्फ ये प्रेम रोग मुझे कब लगेगा। खैर छोड़िए आप एक काम करिए पूरे टीम को एक साथ लंच पर ले चलिए सभी साथ होंगे। तब मना भी नहीं कर पाएगी फ़िर वहां पर उसे आपके साथ अलग टेबल पर बिठा देंगे फिर कह देना जो आपको कहना हों।
राघव... आइडिया तो सही हैं मगर मुझे एक शंका है। इतवार को लंच पर चलने की बात कहा तो कहीं फिर से टाल न दे।
साक्षी... अरे तो इतवार को लेकर जानें को कह ही कौन रहा हैं।
राघव...इसका मतलब मुझे थोड़ा नुकसान सहना पड़ेगा चलो कोई बात नही इसकी भरपाई बाद में तुम सभी से काम करवा कर लूंगा ही ही ही।
साक्षी... हां हां करवा लेना अब आप ये कहिए कि आप किस बात से परेशान थे। क्या है न मेरे जाते ही आपकी श्रृष्टि फिर से मेरे पीछे पड़ जायेगी।
राघव... घर में कुछ कहा सुनी हों गया था जिससे बाते बहुत बढ़ गई थीं। इसलिए मैं थोड़ा परेशान था।
साक्षी... किस बात पे कहा सुनी हुआ था। ये मुझे नहीं जानना मैं तो बस आपके श्रृष्टि के लिए पूछ रहीं हूं। क्योंकि जब तक वो पुरी बात नहीं जान लेगी तब तक उस बेचैन आत्मा को चैन नहीं मिलेगा।
राघव...कहासूनी की वजह मेरी अपनी है। मैं उसका बखान किसी के सामने करना नहीं चाहूंगा तुम अपनी तरफ से जोड़कर कुछ भी बोल देना जिससे उसे लगे की सच में यहीं मेरे परेशानी की वजह हैं।
"ठीक है सर" बोलकर साक्षी चली गई
दृश्य में बदलाव
साक्षी जैसे ही भीतर आई उसे देखकर श्रृष्टि अपने जगह से उठने लगीं तो साक्षी बोलीं…अरे इतनी जल्दी में क्यों है? मैं आ तो रहीं हूं।
इतना सुनते ही श्रृष्टि हल्का सा मुस्कुरा दिया फिर अपने जगह बैठ गई। साक्षी पास आकर बोलीं... श्रृष्टि बता तू इतना बेचैन क्यों हैं।
श्रृष्टि... मैम...।
"ये मेम की औपचारिकता तू कब भूलेगी मैंने कहा था न हम दोनों दोस्त है और दोस्तों में कोई औपचारिकता नहीं होती।" टोकते हुए साक्षी बोलीं
श्रृष्टि... आदत से मजबुर हूं मैम, नहीं नहीं साक्षी। अब ठीक है न।
साक्षी... अब बता तू इतना बेचैन क्यों हैं और तुझे कैसे पता चला सर परेशान हैं?
"क्यो और कैसे पता नहीं।" इतना बोलकर श्रृष्टि नज़रे झुका लिया। शायद इसलिए कि कहीं उसकी नज़रे चुगली करके उसके दिल का हाल बयां न कर दे। मगर इस पगली को कौन समझाए चुगल खोरी तो हो चूका है जिसे भाप कर साक्षी बोलीं...कुछ लोग होते है जो बिना बताए ही जान लेते हैं कि सामने वाले का हाल क्या हैं। पता हैं श्रृष्टि मैंने एक क्वेट्स में पढ़ा था ऐसे लोग दिल के बहुत करीब होते हैं और मुझे लगता हैं सर तेरे दिल के बहुत करीब हैं। इसलिए तो तू बिना बताए ही जान गई कि सर को कोई परेशानी हैं। जबकि मैं भी उन्हें देखकर पता नहीं कर पाईं कि उन्हें कोई परेशानी हैं भी।
साक्षी के कथन का श्रृष्टि के पास कोई जवाब नहीं था फ़िर भी कुछ न कुछ बोलकर इस कथन को नकारना था इसलिए श्रृष्टि बोलीं…मेरा स्वभाव शुरू से ही ऐसा हैं इसलिए मैं सर को देखते ही भाप गई कि उन्हें कोई परेशानी हैं। अब तुम ये बताओं सर किस बात से परेशान थे
साक्षी...सर कह रहें थे। उनके घर पर कुछ कहा सुनी हुआ था इसलिए परेशान थे।
श्रृष्टि…कहासुनी.. हल्की फुल्की कहासुनी से कोई इतना परेशान नहीं होता। तुमने पुछा था किस बात पे इतना कहासुनी हुआ था। बताओ न।
"कहासुनी इस बात पे हुई (इतना बोलकर रूकी फिर कुछ सोचकर बोलीं) सर कह रहे थे उनके घर वाले उनकी शादी के लिए कोई लड़की देखा हैं लेकिन सर अभी शादी नहीं करना चाहते हैं इसी बात पर बहस हों गई और बाद में बहस बहुत गरमा गया बस इसी बात से सर परेशान थे।
जारी रहेगा….
क्या साक्षी अपना कम कर रही है ????
श्रुष्टि के मन और दिल में जो है साक्षी तो भाप गई पर हीरो और हिरोइन को पता चलेगा ??? एक दुसरे की भावनाओं का .......
या फिर ये साक्षी !!!!!!!!!!!! मुझे तो इस साक्षी नाम का केरेक्टर से डर लगता है सच में !!!! एक सीधी सादी जिंदगी को कोई कभी भी अपने बेरंग स्वभाव या हरकतों से किसी का भी जीवन बेरंग कर सकते है ..........रंग भरनेवाले बहोत कम है इस श्रुष्टि में.........और जो रंग भरनेवाले है उसे पहचान ने वाले भी बहोत कम है......... क्या पता .........
आप को क्या लगता है ????? आप सहमत है मुज से ??? या कहा तक सहमत है ????? है भी या नहीं ?????? अपनी सोच दे कोमेंट बॉक्स में ..........
अगले भाग में और कुछ जानकारी लेंगे .............