21-08-2024, 12:59 PM
भाग - 21
"मेरा राजा बेटा मनहूस नहीं हैं" ये आवाज कानों में गूंजते ही राघव दाएं, बाएं, पीछे देखने लग गया मगर उसे ऐसा कोई नहीं दिखा जिसने यह शब्द कहा हों। जब कोई नहीं दिखा तो राघव एक बार फिर मां की फ़ोटो देखते हुए बोला... मां इस जन्म में भले ही आप मूझसे पीछा छुड़ा लिया लेकिन अगले जन्म में फिर से आपका बेटा बनकर आऊंगा तब आपको बहुत परेशान करुंगा। आप मुझसे पीछा छुड़ाना चाहोगी तब भी नहीं छोडूंगा।
राघव मां की फ़ोटो देखकर बाते करने में लगा हुआ था। बातों के बीच उसका फ़ोन बजा कुछ देर बात करने के बाद राघव चल दिया।
दृश्य में बदलाव
श्रृष्टि सुबह जब दफ्तर आई तब सामान्य थीं। मगर आने के कुछ देर बाद असामान्य व्यवहार करने लग गई। काम करते करते उठकर द्वार के पास जाकर खड़ी हो जाया करती। कुछ पल खड़ी रहती फिर जाकर काम में लग जाती। कुछ देर काम करती फ़िर द्वार पर चली जाती कुछ देर खड़ी रहती फिर आकर काम में लग जाती। अबकी बार जैसे ही श्रृष्टि उठकर द्वार की और जानें लगी तब साक्षी रोकते हुए बोलीं... श्रृष्टि क्या हुआ ऐसा क्यों कर रहीं हैं। किस बात की बेचैनी हैं जो दो पल कही ठहर ही नहीं रहीं हैं।
"कुछ नहीं" बस इतना ही बोलीं और द्वार की ओर चल दिया। कुछ देर खड़ी रहीं फ़िर भागती हुई साक्षी के पास पहुचा और बोला... साक्षी मैम सर कुछ परेशान सा लग रहे हैं जाइए न पूछकर आइए क्या हुआ हैं?
"सर की इतनी फिक्र है तो तू ही जाकर पूछ ले।" मुस्कुराते हुए साक्षी बोलीं
"साक्षी मैम प्लीज़ जाइए न।" विनती करते हुए बोलीं
साक्षी... अच्छा बाबा जाती हूं।
इतना कहकर साक्षी चली गई और कुछ ही देर में वापिस आ गई। आते ही श्रृष्टि बोलीं…बात हों गई।!! क्या हुआ कुछ पाता चला।?
साक्षी... नहीं रे सर अभी बिजी हैं थोड़ी देर में खुद ही बुला लेंगे।
कुछ जानने का मन हो ओर उस बारे में पाता न चले तो मन अशांत सा रहता हैं और जानने की बेचैनी बीतते पल के साथ बढ़ता जाता है। वैसे ही कुछ श्रृष्टि के साथ हों रहा था। उसे राघव की परेशानी जानना था मगर अभी तक कुछ पता नहीं चल पाया। इसलिए श्रृष्टि काम तो कर रहीं थी लेकिन ध्यान उसका काम में न होकर कहीं ओर ही था।
यह बात साक्षी समझ रहीं थी और मन ही मन मुस्कुरा रहीं थीं। खैर कुछ वक्त बीता ओर फिर से श्रृष्टि साक्षी के पास जाकर बोलीं... मैम अभी जाकर देखिए न शायद सर फ्री हो गए होंगे।
साक्षी...बोला न सर खुद ही बुला लेंगे। अच्छा एक बात बता सर परेशान हैं। उससे तू क्यों इतना बैचेन हो रही हैं?
"पता नहीं" झेपते हुए श्रृष्टि ने जवाब दिया। इतने में साक्षी का फ़ोन बज उठा। फोन देखकर साक्षी बोलीं... ले सर का फ़ोन आ गया।
"जाइए न जल्दी से पूछ आइए" बेचैनी से श्रृष्टि बोलीं
"अरे बेबी जाती हूं। हेलो सर...।" फ़ोन रिसीव करके बात करते हुए साक्षी चली गई।
राघव के पास पहूंचकर भीतर जाने की अनुमति लेकर जैसे ही भीतर गइ। राघव ने सवाल दाग दिया।
"साक्षी कुछ काम था।?"
साक्षी…सर मुझे कोई काम नहीं था काम तो आपके दिलरुबा को था। उसी ने भेजा हैं।
राघव... दिलरुबा ... ओ श्रृष्टि को, उसे काम था तो खुद आ जाती।
साक्षी... वो आ जाती तो आप उसकी बेचैनी भाप नहीं लेते। अच्छा ये बताइए आप परेशान किस बात से हों।
राघव...बेचैनी उसे किस बात की बेचैनी हैं और रहीं बात परेशानी की तो तुम खुद ही देख लो, क्या मैं तुम्हें परेशान लग रहा हूं?
साक्षी...बेचैनी तो होगी ही आपने आदत जो लगा दिया। दफ्तर आते ही मिलने पहुंच जाओगे आज जब नहीं आए तब से एक पल एक जगह ठहर ही नहीं रहीं थीं। बार बार द्वार पर आकर खड़ी हों जाती तभी शायद आप उसे दिख गई होगी और भागते हुए मेरे पास आकर मुझे यहां भेज दिया कि आपको क्या परेशानी है जानकर आऊ।
राघव…वाहा जी वाहा कमाल की लङकी से पाला पड़ा हैं। दो पल निगाह क्या टकराया उसी में जान लिया मैं परेशान हूं जबकि कोई ओर जान ही नहीं पाया और इतने दिनों से मेरे दिल में क्या है उससे अनजान बनी हुई हैं।
साक्षी...अनजान बनी हुई है तो खुद से कह दो आगे बड़ो और प्रपोज कर दो फिर समझ जायेगी।
"मेरा राजा बेटा मनहूस नहीं हैं" ये आवाज कानों में गूंजते ही राघव दाएं, बाएं, पीछे देखने लग गया मगर उसे ऐसा कोई नहीं दिखा जिसने यह शब्द कहा हों। जब कोई नहीं दिखा तो राघव एक बार फिर मां की फ़ोटो देखते हुए बोला... मां इस जन्म में भले ही आप मूझसे पीछा छुड़ा लिया लेकिन अगले जन्म में फिर से आपका बेटा बनकर आऊंगा तब आपको बहुत परेशान करुंगा। आप मुझसे पीछा छुड़ाना चाहोगी तब भी नहीं छोडूंगा।
राघव मां की फ़ोटो देखकर बाते करने में लगा हुआ था। बातों के बीच उसका फ़ोन बजा कुछ देर बात करने के बाद राघव चल दिया।
दृश्य में बदलाव
श्रृष्टि सुबह जब दफ्तर आई तब सामान्य थीं। मगर आने के कुछ देर बाद असामान्य व्यवहार करने लग गई। काम करते करते उठकर द्वार के पास जाकर खड़ी हो जाया करती। कुछ पल खड़ी रहती फिर जाकर काम में लग जाती। कुछ देर काम करती फ़िर द्वार पर चली जाती कुछ देर खड़ी रहती फिर आकर काम में लग जाती। अबकी बार जैसे ही श्रृष्टि उठकर द्वार की और जानें लगी तब साक्षी रोकते हुए बोलीं... श्रृष्टि क्या हुआ ऐसा क्यों कर रहीं हैं। किस बात की बेचैनी हैं जो दो पल कही ठहर ही नहीं रहीं हैं।
"कुछ नहीं" बस इतना ही बोलीं और द्वार की ओर चल दिया। कुछ देर खड़ी रहीं फ़िर भागती हुई साक्षी के पास पहुचा और बोला... साक्षी मैम सर कुछ परेशान सा लग रहे हैं जाइए न पूछकर आइए क्या हुआ हैं?
"सर की इतनी फिक्र है तो तू ही जाकर पूछ ले।" मुस्कुराते हुए साक्षी बोलीं
"साक्षी मैम प्लीज़ जाइए न।" विनती करते हुए बोलीं
साक्षी... अच्छा बाबा जाती हूं।
इतना कहकर साक्षी चली गई और कुछ ही देर में वापिस आ गई। आते ही श्रृष्टि बोलीं…बात हों गई।!! क्या हुआ कुछ पाता चला।?
साक्षी... नहीं रे सर अभी बिजी हैं थोड़ी देर में खुद ही बुला लेंगे।
कुछ जानने का मन हो ओर उस बारे में पाता न चले तो मन अशांत सा रहता हैं और जानने की बेचैनी बीतते पल के साथ बढ़ता जाता है। वैसे ही कुछ श्रृष्टि के साथ हों रहा था। उसे राघव की परेशानी जानना था मगर अभी तक कुछ पता नहीं चल पाया। इसलिए श्रृष्टि काम तो कर रहीं थी लेकिन ध्यान उसका काम में न होकर कहीं ओर ही था।
यह बात साक्षी समझ रहीं थी और मन ही मन मुस्कुरा रहीं थीं। खैर कुछ वक्त बीता ओर फिर से श्रृष्टि साक्षी के पास जाकर बोलीं... मैम अभी जाकर देखिए न शायद सर फ्री हो गए होंगे।
साक्षी...बोला न सर खुद ही बुला लेंगे। अच्छा एक बात बता सर परेशान हैं। उससे तू क्यों इतना बैचेन हो रही हैं?
"पता नहीं" झेपते हुए श्रृष्टि ने जवाब दिया। इतने में साक्षी का फ़ोन बज उठा। फोन देखकर साक्षी बोलीं... ले सर का फ़ोन आ गया।
"जाइए न जल्दी से पूछ आइए" बेचैनी से श्रृष्टि बोलीं
"अरे बेबी जाती हूं। हेलो सर...।" फ़ोन रिसीव करके बात करते हुए साक्षी चली गई।
राघव के पास पहूंचकर भीतर जाने की अनुमति लेकर जैसे ही भीतर गइ। राघव ने सवाल दाग दिया।
"साक्षी कुछ काम था।?"
साक्षी…सर मुझे कोई काम नहीं था काम तो आपके दिलरुबा को था। उसी ने भेजा हैं।
राघव... दिलरुबा ... ओ श्रृष्टि को, उसे काम था तो खुद आ जाती।
साक्षी... वो आ जाती तो आप उसकी बेचैनी भाप नहीं लेते। अच्छा ये बताइए आप परेशान किस बात से हों।
राघव...बेचैनी उसे किस बात की बेचैनी हैं और रहीं बात परेशानी की तो तुम खुद ही देख लो, क्या मैं तुम्हें परेशान लग रहा हूं?
साक्षी...बेचैनी तो होगी ही आपने आदत जो लगा दिया। दफ्तर आते ही मिलने पहुंच जाओगे आज जब नहीं आए तब से एक पल एक जगह ठहर ही नहीं रहीं थीं। बार बार द्वार पर आकर खड़ी हों जाती तभी शायद आप उसे दिख गई होगी और भागते हुए मेरे पास आकर मुझे यहां भेज दिया कि आपको क्या परेशानी है जानकर आऊ।
राघव…वाहा जी वाहा कमाल की लङकी से पाला पड़ा हैं। दो पल निगाह क्या टकराया उसी में जान लिया मैं परेशान हूं जबकि कोई ओर जान ही नहीं पाया और इतने दिनों से मेरे दिल में क्या है उससे अनजान बनी हुई हैं।
साक्षी...अनजान बनी हुई है तो खुद से कह दो आगे बड़ो और प्रपोज कर दो फिर समझ जायेगी।