20-08-2024, 02:52 PM
यूं ही दिन पर दिन बीत रहा था और राघव लगभग प्रत्येक दिन श्रृष्टि के पास लंच करने पहुंच जाता था। इस बात का फायदा साक्षी बखूबी उठा रहीं थी। मौका देख दोनों को छेड़ देती और कुछ ऐसा कह देती जिसके जड में दोनों आ जाते। राघव तो खुद को संभाल लेता लेकिन श्रृष्टि खुद को संभाल नहीं पाती और उसे धाचका लग जाता।
श्रृष्टि राघव की हरकतों को बखूबी समझ रहीं थी और उसके दिल में भी राघव के लिए जगह बन चूकी थी फ़िर भी न जानें क्यों चुप सी रहती। राघव जब भी छुट्टी वाले दिन यानी इतवार वाले दिन लंच या फिर शाम की चाय पे मिलने की बात कहता तो काम न होते हुए भी बहना बनाकर टाल देती।
श्रृष्टि का ऐसा करना राघव के समझ से परे था। कभी कभी राघव को लगता श्रृष्टि के दिल में उसके लिए जगह बन चूका हैं और शायद वो भी उससे प्यार करने लगीं हैं फिर राघव के साथ अकेले मिलने से मना कर देने पर राघव को लगता शायद जैसा वो सोच रहा है वैसा कुछ नहीं हैं। मगर फिर श्रृष्टि के हाव भाव उसके सोच को बदल देता।
श्रृष्टि के इसी व्यवहार के चलते राघव परेशान सा रहने लगा। परेशानी का हाल कैसे ढूंढा जाएं इसका रास्ता उसे सूज नहीं रहा था।
राघव की परेशानी में उसकी सौतेली मां ओर इजाफा कर देती। जब भी कोई रास्ता सुजता और उस पर अमल करने की सोचता ठीक उसी दिन उसकी सौतेली मां वबाल करके उसके दिमाग को दिशा से भटका देता।
ऐसे ही एक दिन राघव सुबह सुबह वबाल करके बिना कुछ खाए पिए घर से निकल ही रहा था कि उसके पिता ने उसे रोका और घर से बहार लाकर बोला... राघव बेटा मुझे माफ़ करना मेरे एक भूल की सजा तुझे भुगतना पड रहा हैं।
राघव... आह पापा आप से कितनी बार कहा है आप माफी न मांगा करे आपने तो मेरे भले के लिए सोचा था मगर शायद मैं ही इतना मनहूस हूं जिसके किस्मत में मां की ममता लिखा ही नहीं है।
तिवारी... ये बात तू गलत कह रहा हैं तू मनहूस नहीं है अगर तू मनहूस होता तो मेरी ज़िम्मेदारी अपने कंधे पर लेते ही मेरा धंधा दिन दुगुनी और रात चौगुनी तरक्की नहीं कर रहा होता।
राघव…वो तो सिर्फ़ मेरी मेहनत की वजह से हों रहा हैं। पापा मैं सोच रहा था। अभी अभी जो प्लॉट लिया है मैं उसी में जाकर रहने लग जाऊं। इसे न मैं इनके सामने रहूंगा ओर न ही रोज रोज कहासुनी होगा।
तिवारी…ऐसा सोचने से पहले एक बार अपने इस बूढ़े बाप के बारे मे भी सोच लेता जो तेरे सहारे जीने की आस जगाए जी रहा हैं।
राघव...आप की बाते सोचकर ही तो अब तक चुप रहा लेकिन अब ओर सहन नहीं होता। आप भी चल देना दोनों बाप बेटे साथ में रहेंगे।
तिवारी... अच्छा ओर इस घर का क्या होगा? जिसे तेरी मां ने खुद अपने पसंद से बनवाया था एक एक कोना खुद अपने हाथों से सजाया था। आज भी उसकी यादें इस घर में बसी है मैं उसे छोड़कर कहीं ओर जा ही नहीं सकता हूं। तू क्या समजता है बेटा मै यहाँ इस औरत के लिए हु ??? नहीं मै यहाँ तेरी मा के लिए हु वो अभी भी मेरे साथ है तुम नहीं समज सकोगे बेटे
राघव... आप जा नहीं सकते मुझे जाने नहीं दे रहे। गजब की किस्मत लिखवा कर लाया हूं अब तो लगता है जिंदगी भर ऐसे ही ताने सुन सुनकर जीना होगा।
तिवारी... सब्र रख ऊपर वाले पर भरोसा रख वो जरूर हम बाप बेटे के लिए कुछ न कुछ करेगा।
राघव... पापा वो कुछ नहीं करता बस रास्ता दिखा देता हैं। अच्छा आप भीतर जाइए नहीं तो वो बहार आ गई तो फ़िर से शुरू हो जायेगी।
तिवारी... ठीक हैं जाता हूं और तू दफ्तर पहुंचने से पहले कुछ खां लेना।
राघव... कैंटीन में खा लूंगा
बाप से कहकर राघव चल तो दिया पर उसकी मनोदशा ठीक नहीं थी। अभी अभी जो बाते बरखा ने कहा था उसका एक एक शब्द राघव के कानों में गूंज रहा था। "तू इतना मनहूस हैं की पैदा होने के कुछ साल बाद अपने मां को खा गया अब मेरे खुशियों को खा रहा हैं। तुझसे मेरी खुशी देखी नहीं जाती इसलिए मेरे बेटे को मूझसे दूर भेज दिया। उसके जगह तू ही चला जाता कम से कम मुझे तेरा मनहूस सूरत तो न देखना पड़ता।"
इन्हीं शब्दों ने राघव के मन मस्तिस्क पर कब्जा जमा रखा था। उससे कार चलाया नहीं जा रहा था इसलिए कार को रोड साइड रोक दिया और भीगी पलकों को पोछकर अपना मोबाईल निकलकर गैलरी में से एक फोटो ढूंढ निकाला और उसे देखते हुए बोला...मां तू मुझे छोड़कर क्यों चली गई। मैं मनहूस हूं इसलिए तूने भी मूझसे पीछा छुड़ाने ले लिए वक्त से पहले भगवान के घर चली गई है न बोल मां बोल न।
"मेरा राजा बेटा मनहूस नहीं हैं।" सहसा एक आवाज राघव के कानों में गूंजा।
जारी रहेगा….
काफी इमोशन से भरा दोनों घर में कोई अपनी मा के लिए रो रहा है तो कोई अपनी बेटी के लिए
दोनों घरो में कुछ ना कुछ अंदेशा है क्या करे .......
श्रृष्टि राघव की हरकतों को बखूबी समझ रहीं थी और उसके दिल में भी राघव के लिए जगह बन चूकी थी फ़िर भी न जानें क्यों चुप सी रहती। राघव जब भी छुट्टी वाले दिन यानी इतवार वाले दिन लंच या फिर शाम की चाय पे मिलने की बात कहता तो काम न होते हुए भी बहना बनाकर टाल देती।
श्रृष्टि का ऐसा करना राघव के समझ से परे था। कभी कभी राघव को लगता श्रृष्टि के दिल में उसके लिए जगह बन चूका हैं और शायद वो भी उससे प्यार करने लगीं हैं फिर राघव के साथ अकेले मिलने से मना कर देने पर राघव को लगता शायद जैसा वो सोच रहा है वैसा कुछ नहीं हैं। मगर फिर श्रृष्टि के हाव भाव उसके सोच को बदल देता।
श्रृष्टि के इसी व्यवहार के चलते राघव परेशान सा रहने लगा। परेशानी का हाल कैसे ढूंढा जाएं इसका रास्ता उसे सूज नहीं रहा था।
राघव की परेशानी में उसकी सौतेली मां ओर इजाफा कर देती। जब भी कोई रास्ता सुजता और उस पर अमल करने की सोचता ठीक उसी दिन उसकी सौतेली मां वबाल करके उसके दिमाग को दिशा से भटका देता।
ऐसे ही एक दिन राघव सुबह सुबह वबाल करके बिना कुछ खाए पिए घर से निकल ही रहा था कि उसके पिता ने उसे रोका और घर से बहार लाकर बोला... राघव बेटा मुझे माफ़ करना मेरे एक भूल की सजा तुझे भुगतना पड रहा हैं।
राघव... आह पापा आप से कितनी बार कहा है आप माफी न मांगा करे आपने तो मेरे भले के लिए सोचा था मगर शायद मैं ही इतना मनहूस हूं जिसके किस्मत में मां की ममता लिखा ही नहीं है।
तिवारी... ये बात तू गलत कह रहा हैं तू मनहूस नहीं है अगर तू मनहूस होता तो मेरी ज़िम्मेदारी अपने कंधे पर लेते ही मेरा धंधा दिन दुगुनी और रात चौगुनी तरक्की नहीं कर रहा होता।
राघव…वो तो सिर्फ़ मेरी मेहनत की वजह से हों रहा हैं। पापा मैं सोच रहा था। अभी अभी जो प्लॉट लिया है मैं उसी में जाकर रहने लग जाऊं। इसे न मैं इनके सामने रहूंगा ओर न ही रोज रोज कहासुनी होगा।
तिवारी…ऐसा सोचने से पहले एक बार अपने इस बूढ़े बाप के बारे मे भी सोच लेता जो तेरे सहारे जीने की आस जगाए जी रहा हैं।
राघव...आप की बाते सोचकर ही तो अब तक चुप रहा लेकिन अब ओर सहन नहीं होता। आप भी चल देना दोनों बाप बेटे साथ में रहेंगे।
तिवारी... अच्छा ओर इस घर का क्या होगा? जिसे तेरी मां ने खुद अपने पसंद से बनवाया था एक एक कोना खुद अपने हाथों से सजाया था। आज भी उसकी यादें इस घर में बसी है मैं उसे छोड़कर कहीं ओर जा ही नहीं सकता हूं। तू क्या समजता है बेटा मै यहाँ इस औरत के लिए हु ??? नहीं मै यहाँ तेरी मा के लिए हु वो अभी भी मेरे साथ है तुम नहीं समज सकोगे बेटे
राघव... आप जा नहीं सकते मुझे जाने नहीं दे रहे। गजब की किस्मत लिखवा कर लाया हूं अब तो लगता है जिंदगी भर ऐसे ही ताने सुन सुनकर जीना होगा।
तिवारी... सब्र रख ऊपर वाले पर भरोसा रख वो जरूर हम बाप बेटे के लिए कुछ न कुछ करेगा।
राघव... पापा वो कुछ नहीं करता बस रास्ता दिखा देता हैं। अच्छा आप भीतर जाइए नहीं तो वो बहार आ गई तो फ़िर से शुरू हो जायेगी।
तिवारी... ठीक हैं जाता हूं और तू दफ्तर पहुंचने से पहले कुछ खां लेना।
राघव... कैंटीन में खा लूंगा
बाप से कहकर राघव चल तो दिया पर उसकी मनोदशा ठीक नहीं थी। अभी अभी जो बाते बरखा ने कहा था उसका एक एक शब्द राघव के कानों में गूंज रहा था। "तू इतना मनहूस हैं की पैदा होने के कुछ साल बाद अपने मां को खा गया अब मेरे खुशियों को खा रहा हैं। तुझसे मेरी खुशी देखी नहीं जाती इसलिए मेरे बेटे को मूझसे दूर भेज दिया। उसके जगह तू ही चला जाता कम से कम मुझे तेरा मनहूस सूरत तो न देखना पड़ता।"
इन्हीं शब्दों ने राघव के मन मस्तिस्क पर कब्जा जमा रखा था। उससे कार चलाया नहीं जा रहा था इसलिए कार को रोड साइड रोक दिया और भीगी पलकों को पोछकर अपना मोबाईल निकलकर गैलरी में से एक फोटो ढूंढ निकाला और उसे देखते हुए बोला...मां तू मुझे छोड़कर क्यों चली गई। मैं मनहूस हूं इसलिए तूने भी मूझसे पीछा छुड़ाने ले लिए वक्त से पहले भगवान के घर चली गई है न बोल मां बोल न।
"मेरा राजा बेटा मनहूस नहीं हैं।" सहसा एक आवाज राघव के कानों में गूंजा।
जारी रहेगा….
काफी इमोशन से भरा दोनों घर में कोई अपनी मा के लिए रो रहा है तो कोई अपनी बेटी के लिए
दोनों घरो में कुछ ना कुछ अंदेशा है क्या करे .......