20-08-2024, 02:49 PM
भाग - 20
इतवार की सुबह लगभग 10 बजे के करीब श्रृष्टि नजदीक के ऑटो स्टैंड चली गई। कई सारे ऑटो सवारी के इंतजार में खड़े थे। चकरी, चकरी, चकरी, बस एक सवारी चहिए चकरी की, मेढा, मेढा, मेढा, मेढा जानें वालो इधर आ जाओ, ये मामू हट न सामने से सवारी आने दे, अरे ओ... हां हां तुझे बोल रहा हूं अपना डिब्बा हटा मुझे जाना है।
तरह तरह की आवाजे वहां गूंज रहा था। कोई सवारी हातियाने के लिए सवारी का सामान खुद उठा ले रहे थे। तो कोई "अरे माताजी आप मेरे ऑटो में बैठिए बस चलने ही वाला हूं" बोल रहा था। इन्हीं आवाजों के बीच श्रृष्टि एक चेहरे को बड़े बारीकी से ढूंढ रहीं थी। कई ऑटो वाले उसे सवारी समझकर अपने ऑटो में बैठने को कह रहा था।
श्रृष्टि उन पर ध्यान न देकर आगे बढ़ जाती। तो ऑटो वाला "अरे मैम कहा जाना है जगह तो बताओं आपको वहा तक छोड़ आऊंगा" पीछे से बोल देता। श्रृष्टि इन पर ध्यान न देखकर सिद्दत से उस खास शख्स को ढूंढने में लगी हुई थीं।
श्रृष्टि को आए वक्त काफी हों चूका था। धूप की तपन बीतते वक्त के साथ बढ़ता जा रहा था। बिना इसकी प्रवाह किए माथे पर आई पसीना को पोछकर उस शख्स को ढूंढने में लगीं हुईं थीं। सहसा एक ऑटो आकर वहा रूका। चालक को ध्यान से देखने के बाद एक खिला सा मुस्कान श्रृष्टि के होठो पर तैर गया और श्रृष्टि उस ऑटो वाले की ओर बढ़ गइ।
सवारी समझकर ऑटो वाला बोला...बेटी आपको कहा जाना हैं।
"अंकल मैं आज आपकी ऑटो की सवारी करने नहीं आई हूं बल्कि आपसे मिलने आई हूं।" मुस्कुराते हुए श्रृष्टि बोलीं
"मूझसे पर क्यों? मैं तो तुम्हें जानता भी नही।"
श्रृष्टि... अंकल आप भूल गए होंगे मगर मैं नहीं भुली आज से लगभग एक महीना पहले आपने मेरी मदद कि थी। जिससे मुझे नौकरी मिली थी। धन्यवाद अंकल सिर्फ आपके कारण ही मुझे नौकरी मिला था। ये लिजिए...।
इतना कहकर श्रृष्टि अपने साथ लाई थैली को चालक की और बढ़ा दिया। चालक अनभिज्ञता का परिचय देते हुए श्रृष्टि का मुंह ताकने लग गया।
"क्या हुआ अंकल ऐसे क्यों देख रहें हों। लगता हैं आपको सच में मैं याद नही रहा चलिए कोई बात नहीं मैं आपको याद करवा देती हूं।"
इसके बाद श्रृष्टि ने उस दिन की घटना सूक्ष्म रूप में सूना दिए जिसे सुनकर चालक बोला…ओहो तो तुम हों चलो अच्छा हुआ बेटा जो उस दिन तुम्हें नौकरी मिल गई। मगर मैं ये नहीं ले सकता। बेटी मैंने तो उस दिन एक इंसान होने के नाते इंसानियत का फर्ज निभाया था।
श्रृष्टि...उस दिन अपने अपना फर्ज निभाया था आज मैं अपना फर्ज निभा रहीं हूं। वैसे भी अपने मुझे बेटी कहा हैं। बेटी कुछ दे तो मना नहीं करते।
"पर...।"
"पर वर कुछ नहीं बस आप रख लिजिए। प्लीज़ अंकल जी।" बचकाना भाव से श्रृष्टि बोलीं
"अच्छा अच्छा ठीक है लाओ दो। वैसे इसमें हैं क्या?।" हाथ में लेकर परखते हुए चालक बोला
श्रृष्टि... जो भी है आप बाद में देख लेना अभी आप अपना कॉन्टेक्ट नम्बर दे दिजिए मुझे जब भी कहीं आने जानें की जरूरत पड़ेगी मैं आपको बुला लिया करूंगी। आप आयेंगे न अंकल जी।
"हां हां आ जाऊंगा।" अपना संपर्क सूत्र देते हुए बोला
चालाक का संपर्क सूत्र लेकर श्रृष्टि चल दिया। वहां मौजुद एक लड़का यह सब देख और सुन रहा था। श्रृष्टि के जाते ही चालक के पास आया ओर बोला...अंकल ये लड़की थोड़ा अजीब हैं न, भाला कौन ऐसा करता हैं।
"अजीब तो हैं जहां लोग अपनो से मदद लेकर भूल जाते है वहां इस जैसी भी है जो एक अंजान के मदद करने पर भी उसे भूली नहीं बल्कि उसे ढूंढते हुए आ गई।"
"चलो अच्छा है अब देख भी लो क्या देकर गई हैं। बाद में पाता चला थैला सिर्फ दिखने में भारी है उसमे कुछ है ही नहीं।"
"क्या है क्या नहीं तुझे उससे क्या करना हैं। मैं इतना तो जान गया हूं इसमें कुछ न कुछ है अगर कुछ नहीं भी हुआ। तब भी मेरे लिए इतना ही काफी है वो मेरा किया मदद भुला नहीं और मुझे ढूंढते हुए यह तक आ गई। चल जा अपना काम कर और मुझे अपना काम करने दे।" टका सा जवाब दे दिया
इतना बोल ऑटो वाला ऑटो बढ़ा दिया और लड़का "मैं तो बस ऐसे ही बोल रहा था। इन्हे तो बूरा लग गया चलो यार जाने दो अपने को क्या करना मैं अपना काम करता हूं वैसे भी सुबह से एक भी सवारी नहीं मिला।" बोलते हुए अपने ऑटो की ओर चला गया।
ठीक उसी समय जब श्रुष्टि उस ओटो वाले को ढूंढने गई थी तब घर पर माताश्री........
इतवार की सुबह लगभग 10 बजे के करीब श्रृष्टि नजदीक के ऑटो स्टैंड चली गई। कई सारे ऑटो सवारी के इंतजार में खड़े थे। चकरी, चकरी, चकरी, बस एक सवारी चहिए चकरी की, मेढा, मेढा, मेढा, मेढा जानें वालो इधर आ जाओ, ये मामू हट न सामने से सवारी आने दे, अरे ओ... हां हां तुझे बोल रहा हूं अपना डिब्बा हटा मुझे जाना है।
तरह तरह की आवाजे वहां गूंज रहा था। कोई सवारी हातियाने के लिए सवारी का सामान खुद उठा ले रहे थे। तो कोई "अरे माताजी आप मेरे ऑटो में बैठिए बस चलने ही वाला हूं" बोल रहा था। इन्हीं आवाजों के बीच श्रृष्टि एक चेहरे को बड़े बारीकी से ढूंढ रहीं थी। कई ऑटो वाले उसे सवारी समझकर अपने ऑटो में बैठने को कह रहा था।
श्रृष्टि उन पर ध्यान न देकर आगे बढ़ जाती। तो ऑटो वाला "अरे मैम कहा जाना है जगह तो बताओं आपको वहा तक छोड़ आऊंगा" पीछे से बोल देता। श्रृष्टि इन पर ध्यान न देखकर सिद्दत से उस खास शख्स को ढूंढने में लगी हुई थीं।
श्रृष्टि को आए वक्त काफी हों चूका था। धूप की तपन बीतते वक्त के साथ बढ़ता जा रहा था। बिना इसकी प्रवाह किए माथे पर आई पसीना को पोछकर उस शख्स को ढूंढने में लगीं हुईं थीं। सहसा एक ऑटो आकर वहा रूका। चालक को ध्यान से देखने के बाद एक खिला सा मुस्कान श्रृष्टि के होठो पर तैर गया और श्रृष्टि उस ऑटो वाले की ओर बढ़ गइ।
सवारी समझकर ऑटो वाला बोला...बेटी आपको कहा जाना हैं।
"अंकल मैं आज आपकी ऑटो की सवारी करने नहीं आई हूं बल्कि आपसे मिलने आई हूं।" मुस्कुराते हुए श्रृष्टि बोलीं
"मूझसे पर क्यों? मैं तो तुम्हें जानता भी नही।"
श्रृष्टि... अंकल आप भूल गए होंगे मगर मैं नहीं भुली आज से लगभग एक महीना पहले आपने मेरी मदद कि थी। जिससे मुझे नौकरी मिली थी। धन्यवाद अंकल सिर्फ आपके कारण ही मुझे नौकरी मिला था। ये लिजिए...।
इतना कहकर श्रृष्टि अपने साथ लाई थैली को चालक की और बढ़ा दिया। चालक अनभिज्ञता का परिचय देते हुए श्रृष्टि का मुंह ताकने लग गया।
"क्या हुआ अंकल ऐसे क्यों देख रहें हों। लगता हैं आपको सच में मैं याद नही रहा चलिए कोई बात नहीं मैं आपको याद करवा देती हूं।"
इसके बाद श्रृष्टि ने उस दिन की घटना सूक्ष्म रूप में सूना दिए जिसे सुनकर चालक बोला…ओहो तो तुम हों चलो अच्छा हुआ बेटा जो उस दिन तुम्हें नौकरी मिल गई। मगर मैं ये नहीं ले सकता। बेटी मैंने तो उस दिन एक इंसान होने के नाते इंसानियत का फर्ज निभाया था।
श्रृष्टि...उस दिन अपने अपना फर्ज निभाया था आज मैं अपना फर्ज निभा रहीं हूं। वैसे भी अपने मुझे बेटी कहा हैं। बेटी कुछ दे तो मना नहीं करते।
"पर...।"
"पर वर कुछ नहीं बस आप रख लिजिए। प्लीज़ अंकल जी।" बचकाना भाव से श्रृष्टि बोलीं
"अच्छा अच्छा ठीक है लाओ दो। वैसे इसमें हैं क्या?।" हाथ में लेकर परखते हुए चालक बोला
श्रृष्टि... जो भी है आप बाद में देख लेना अभी आप अपना कॉन्टेक्ट नम्बर दे दिजिए मुझे जब भी कहीं आने जानें की जरूरत पड़ेगी मैं आपको बुला लिया करूंगी। आप आयेंगे न अंकल जी।
"हां हां आ जाऊंगा।" अपना संपर्क सूत्र देते हुए बोला
चालाक का संपर्क सूत्र लेकर श्रृष्टि चल दिया। वहां मौजुद एक लड़का यह सब देख और सुन रहा था। श्रृष्टि के जाते ही चालक के पास आया ओर बोला...अंकल ये लड़की थोड़ा अजीब हैं न, भाला कौन ऐसा करता हैं।
"अजीब तो हैं जहां लोग अपनो से मदद लेकर भूल जाते है वहां इस जैसी भी है जो एक अंजान के मदद करने पर भी उसे भूली नहीं बल्कि उसे ढूंढते हुए आ गई।"
"चलो अच्छा है अब देख भी लो क्या देकर गई हैं। बाद में पाता चला थैला सिर्फ दिखने में भारी है उसमे कुछ है ही नहीं।"
"क्या है क्या नहीं तुझे उससे क्या करना हैं। मैं इतना तो जान गया हूं इसमें कुछ न कुछ है अगर कुछ नहीं भी हुआ। तब भी मेरे लिए इतना ही काफी है वो मेरा किया मदद भुला नहीं और मुझे ढूंढते हुए यह तक आ गई। चल जा अपना काम कर और मुझे अपना काम करने दे।" टका सा जवाब दे दिया
इतना बोल ऑटो वाला ऑटो बढ़ा दिया और लड़का "मैं तो बस ऐसे ही बोल रहा था। इन्हे तो बूरा लग गया चलो यार जाने दो अपने को क्या करना मैं अपना काम करता हूं वैसे भी सुबह से एक भी सवारी नहीं मिला।" बोलते हुए अपने ऑटो की ओर चला गया।
ठीक उसी समय जब श्रुष्टि उस ओटो वाले को ढूंढने गई थी तब घर पर माताश्री........