20-08-2024, 02:40 PM
भाग - 19
इतने में किसी ने भीतर आने की अनुमति मांगा। झट से राघव ने आंखो को पोछा चहरे के भव को बदला फ़िर आए हुए शख्स को भीतर आने की अनुमति दी। भीतर आए शख्स ने राघव को कॉफी दिया फ़िर चला गया।
शाम को श्रृष्टि दिन भर की कामों से निजात पाकर घर पहुंची। माताश्री से कुछ औपचारिक बाते किया फ़िर अपने कपड़े बदलकर आई और मां के सामने जमीन पर बैठ गई। इतने में ही माताश्री समझ गई बेटी को आज फिर मालिश की जरूरत हैं।
तुंरत रसोई से तेल लेकर आई और मालिश शुरू कर दिया। मालिश का मजा लेते हुए श्रृष्टि बोलीं... पता हैं मां आज साक्षी मैम दफ्तर आई थीं। वो न बहुत दिनों से छुट्टी पर थीं।
"छट्टी पर थीं इसमें क्या बडी बात हैं कोई जरूरी काम होगा तभी छुट्टी पर गई होगी।"
श्रृष्टि...कोई जरुरी काम नहीं था। मुझे प्रोजेक्ट हेड बनाए जानें से वो नाराज हों गईं थीं इसलिए छुट्टी पर चली गई और पाता है मां आज वो दफ्तर सिर्फ इस्तीफा देने आई थी मगर मैंने कुछ ऐसा किया जिससे वो कभी इस्तीफा देने की बात नहीं कहेंगे।
"अब कौन सा कांड कर आई।"
श्रृष्टि... मैंने कोई कांड बांड नहीं किया बल्कि मैंने सर को उन्हें प्रोजेक्ट हेड बनाने को कहा पर साक्षी मैम चाहती थी मैं ही प्रोजेक्ट हेड बनी रहूं। ये बात जानकार मैंने भी सर से मांग रख दी कि मेरे साथ साथ साक्षी मैम भी प्रोजेक्ट हेड रहे और सर मन गए। अच्छा मां आपने मुझे क्या खाकर पैदा किया था ऐसा मैं नही साक्षी मैम पूछ रहीं थीं।
"उम्हू लगता हैं तेरी सोच से तेरी साक्षी मैम बहुत प्रभावित हुईं हैं। उनसे कहना सभी मांये जो खाना खाती हैं मैंने भी वहीं खाना खाया बस दुनिया की वाहियात सोच से तुझे बचाकर रखा और तुझे उस सोच से रूबरू करवाया जो तुझे दुनिया से अलग बनाती हैं।"
"तभी तो मैं कहती हूं मेरी मां दुनिया की सबसे अच्छी मां है।" बोलते हुए श्रृष्टि पलटी और माताश्री के गले से लिपट गई।
"अच्छा अच्छा ठीक हैं अब तू चुपचाप बैठके मालिश करवा।" खुद से अलग करते हुए माताश्री बोलीं।
श्रृष्टि... मां आपको एक बात बताना तो भूल ही गई (इतना बोलकर माताश्री की तरफ घूम कर बैठ गईं फ़िर बोलीं) मां मैं जहां काम करती हूं न ये वहीं राघव की कम्पनी हैं जो मुझे DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप छोड़ने के बाद ढूंढ रहें थे।
"क्या????, फ़िर तो ये भी शायद उन्हीं के जैसे सोच रखते होंगे लड़कियों को अपने बाप की जागीर और खेलने वाला खिलौना समझते होंगे आखिर दोनों पार्टनर जो थे।" चौकते हुए माताश्री बोलीं
श्रृष्टि... नहीं नहीं मां वो ऐसे नहीं है बल्कि उनसे बहुत अलग हैं। जब उन्हें पाता चला कि मेरे साथ वहा गलत सलूक हुआ और इस बात की आंच उन पर और उनके कम्पनी पर न पड़े इसलिए DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप से पार्टनरसिप तोड़ दिया था। पता हैं मां इसके लिए उन्हें हर्जाना भी भरना पड़ा।
"जैसा तू कह रही है इससे तो लगता है तेरे सर की सोच बहुत अच्छी हैं फ़िर भी मैं तुझे इतना ही कहूंगी ऐसे लोगों का कोई भरोसा नहीं हैं। ऐसे लोग छद्दम आवरण ओढ़े रहते हैं और जरूरत के मुताबिक बदलाव करते रहते हैं।"
श्रृष्टि... मां मैं जानती हूं ऐसे ही छद्दम आवरण ओढ़े एक शख्स के छलावे के चलते आज हम मां बेटी एक दूसरे का सहारा बने हुए हैं। वैसे मां लोग मुखौटा क्यों ओढ़े रहते हैं अपना वास्तविक चेहरा सभी के सामने क्यों नहीं रख देते।
"वो इसलिए क्योंकि इससे उनके रसूक पर आंच आ जायेंगे। कभी कभी तेरी बाते मेरी समझ से परे होती हैं तू काम काज के मामले में इतनी तेज़ तर्रार हैं मगर जिंदगी की कुछ अहम बाते समझने में डाफेर के डाफेर ही रहीं।" एक टपली श्रृष्टि के सिर पर मार दी।
श्रृष्टि... मां मैं डफेर नहीं हूं फ़िर भी आपको लगता हैं तो मैं डफेर ही सही जब आप मेरे साथ हों फिर मुझे फिक्र करने की जरुरत ही नहीं।
"कैसे जरूरत नहीं मैं हमेशा तेरे साथ नहीं रहने वाली हूं।"
श्रृष्टि... क्यों आप कहीं जा रही हों। जहां भी जाना है मुझे साथ में लेकर जाना।
"चुप बबली आज नहीं तो कल तेरी शादी होगी तब मैं तेरे साथ नहीं रहूंगी। तब क्या करेगी?।" एक ओर टपली मरते हुए बोली
"जिस भी लड़के से ( कुछ देर रूकी और मंद मंद मुस्कुराते हुए आगे बोलीं) मेरी शादी होगी उससे साफ साफ कह दूंगी। दहेज में मेरी मां को साथ ले रहे हों तो बात करो वरना रास्ता नापो।"
"तू सच में डफेर हैं जिससे भी तेरी शादी होगा उसका भी अपना परिवार होगा। तो फिर वो मुझे क्यों साथ रखने लगा? वैसे भी शादी के बाद बेटी पर मां का कोई हक नहीं होता। पति और उसका परिवार ही सब कुछ होता हैं। इसलिए तुझे वहां नए सिरे से जिंदगी शुरू करना होगा उसके परिवार को संवारना होगा। समझी की नहीं।" ऐसे नहीं चलेगा जब चाहा सो गई जब चाहा उठ गई, ना खाने का ढंग ना किसी चीज़ का अब क्या बताऊ तुजे....बच्चे होंगे मा बनेगी कई जवाबदारिया आएगी तभी तो कहती हु अपनी जिंदगी में बदलाव ला थोडा | ये सहेलियों से मिलना झुलना ......बस उतना कह के चुप हो गई ....
श्रृष्टि... उम्हू नहीं समझी मेरा पहला परिवार मेरी मां हैं जहां मेरी मां नहीं वहां मेरा कोई ओचित्य नहीं अब आप इस बात को भूल जाओ जब मेरी शादी होगी तब सोचेंगे क्या करना हैं? अभी आप मुझे ये बातों उस अंकल से कैसे मिला जाए।
इतने में किसी ने भीतर आने की अनुमति मांगा। झट से राघव ने आंखो को पोछा चहरे के भव को बदला फ़िर आए हुए शख्स को भीतर आने की अनुमति दी। भीतर आए शख्स ने राघव को कॉफी दिया फ़िर चला गया।
शाम को श्रृष्टि दिन भर की कामों से निजात पाकर घर पहुंची। माताश्री से कुछ औपचारिक बाते किया फ़िर अपने कपड़े बदलकर आई और मां के सामने जमीन पर बैठ गई। इतने में ही माताश्री समझ गई बेटी को आज फिर मालिश की जरूरत हैं।
तुंरत रसोई से तेल लेकर आई और मालिश शुरू कर दिया। मालिश का मजा लेते हुए श्रृष्टि बोलीं... पता हैं मां आज साक्षी मैम दफ्तर आई थीं। वो न बहुत दिनों से छुट्टी पर थीं।
"छट्टी पर थीं इसमें क्या बडी बात हैं कोई जरूरी काम होगा तभी छुट्टी पर गई होगी।"
श्रृष्टि...कोई जरुरी काम नहीं था। मुझे प्रोजेक्ट हेड बनाए जानें से वो नाराज हों गईं थीं इसलिए छुट्टी पर चली गई और पाता है मां आज वो दफ्तर सिर्फ इस्तीफा देने आई थी मगर मैंने कुछ ऐसा किया जिससे वो कभी इस्तीफा देने की बात नहीं कहेंगे।
"अब कौन सा कांड कर आई।"
श्रृष्टि... मैंने कोई कांड बांड नहीं किया बल्कि मैंने सर को उन्हें प्रोजेक्ट हेड बनाने को कहा पर साक्षी मैम चाहती थी मैं ही प्रोजेक्ट हेड बनी रहूं। ये बात जानकार मैंने भी सर से मांग रख दी कि मेरे साथ साथ साक्षी मैम भी प्रोजेक्ट हेड रहे और सर मन गए। अच्छा मां आपने मुझे क्या खाकर पैदा किया था ऐसा मैं नही साक्षी मैम पूछ रहीं थीं।
"उम्हू लगता हैं तेरी सोच से तेरी साक्षी मैम बहुत प्रभावित हुईं हैं। उनसे कहना सभी मांये जो खाना खाती हैं मैंने भी वहीं खाना खाया बस दुनिया की वाहियात सोच से तुझे बचाकर रखा और तुझे उस सोच से रूबरू करवाया जो तुझे दुनिया से अलग बनाती हैं।"
"तभी तो मैं कहती हूं मेरी मां दुनिया की सबसे अच्छी मां है।" बोलते हुए श्रृष्टि पलटी और माताश्री के गले से लिपट गई।
"अच्छा अच्छा ठीक हैं अब तू चुपचाप बैठके मालिश करवा।" खुद से अलग करते हुए माताश्री बोलीं।
श्रृष्टि... मां आपको एक बात बताना तो भूल ही गई (इतना बोलकर माताश्री की तरफ घूम कर बैठ गईं फ़िर बोलीं) मां मैं जहां काम करती हूं न ये वहीं राघव की कम्पनी हैं जो मुझे DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप छोड़ने के बाद ढूंढ रहें थे।
"क्या????, फ़िर तो ये भी शायद उन्हीं के जैसे सोच रखते होंगे लड़कियों को अपने बाप की जागीर और खेलने वाला खिलौना समझते होंगे आखिर दोनों पार्टनर जो थे।" चौकते हुए माताश्री बोलीं
श्रृष्टि... नहीं नहीं मां वो ऐसे नहीं है बल्कि उनसे बहुत अलग हैं। जब उन्हें पाता चला कि मेरे साथ वहा गलत सलूक हुआ और इस बात की आंच उन पर और उनके कम्पनी पर न पड़े इसलिए DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप से पार्टनरसिप तोड़ दिया था। पता हैं मां इसके लिए उन्हें हर्जाना भी भरना पड़ा।
"जैसा तू कह रही है इससे तो लगता है तेरे सर की सोच बहुत अच्छी हैं फ़िर भी मैं तुझे इतना ही कहूंगी ऐसे लोगों का कोई भरोसा नहीं हैं। ऐसे लोग छद्दम आवरण ओढ़े रहते हैं और जरूरत के मुताबिक बदलाव करते रहते हैं।"
श्रृष्टि... मां मैं जानती हूं ऐसे ही छद्दम आवरण ओढ़े एक शख्स के छलावे के चलते आज हम मां बेटी एक दूसरे का सहारा बने हुए हैं। वैसे मां लोग मुखौटा क्यों ओढ़े रहते हैं अपना वास्तविक चेहरा सभी के सामने क्यों नहीं रख देते।
"वो इसलिए क्योंकि इससे उनके रसूक पर आंच आ जायेंगे। कभी कभी तेरी बाते मेरी समझ से परे होती हैं तू काम काज के मामले में इतनी तेज़ तर्रार हैं मगर जिंदगी की कुछ अहम बाते समझने में डाफेर के डाफेर ही रहीं।" एक टपली श्रृष्टि के सिर पर मार दी।
श्रृष्टि... मां मैं डफेर नहीं हूं फ़िर भी आपको लगता हैं तो मैं डफेर ही सही जब आप मेरे साथ हों फिर मुझे फिक्र करने की जरुरत ही नहीं।
"कैसे जरूरत नहीं मैं हमेशा तेरे साथ नहीं रहने वाली हूं।"
श्रृष्टि... क्यों आप कहीं जा रही हों। जहां भी जाना है मुझे साथ में लेकर जाना।
"चुप बबली आज नहीं तो कल तेरी शादी होगी तब मैं तेरे साथ नहीं रहूंगी। तब क्या करेगी?।" एक ओर टपली मरते हुए बोली
"जिस भी लड़के से ( कुछ देर रूकी और मंद मंद मुस्कुराते हुए आगे बोलीं) मेरी शादी होगी उससे साफ साफ कह दूंगी। दहेज में मेरी मां को साथ ले रहे हों तो बात करो वरना रास्ता नापो।"
"तू सच में डफेर हैं जिससे भी तेरी शादी होगा उसका भी अपना परिवार होगा। तो फिर वो मुझे क्यों साथ रखने लगा? वैसे भी शादी के बाद बेटी पर मां का कोई हक नहीं होता। पति और उसका परिवार ही सब कुछ होता हैं। इसलिए तुझे वहां नए सिरे से जिंदगी शुरू करना होगा उसके परिवार को संवारना होगा। समझी की नहीं।" ऐसे नहीं चलेगा जब चाहा सो गई जब चाहा उठ गई, ना खाने का ढंग ना किसी चीज़ का अब क्या बताऊ तुजे....बच्चे होंगे मा बनेगी कई जवाबदारिया आएगी तभी तो कहती हु अपनी जिंदगी में बदलाव ला थोडा | ये सहेलियों से मिलना झुलना ......बस उतना कह के चुप हो गई ....
श्रृष्टि... उम्हू नहीं समझी मेरा पहला परिवार मेरी मां हैं जहां मेरी मां नहीं वहां मेरा कोई ओचित्य नहीं अब आप इस बात को भूल जाओ जब मेरी शादी होगी तब सोचेंगे क्या करना हैं? अभी आप मुझे ये बातों उस अंकल से कैसे मिला जाए।