17-08-2024, 06:02 PM
श्रृष्टि की बातो ने साक्षी को अचंभित सा कर दिया। उसके मन में पनपी सभी शंका को एक पल में ही धराशाई कर दिए। सहसा श्रृष्टि की निगाह राघव के सामने रखी लेटर पर पड़ा। जिसे उठकर कुछ ही हिस्सा पढ़ते ही बोलीं...उम्हा तो आप इस्तीफा देने आई थीं। मगर अब आपको इस्तीफा देने की जरूरत नहीं हैं क्योंकि आज से आप इस प्रोजेक्ट की हेड होंगी। क्यों सर मै सही बोल रहीं हूं न।
राघव…”खेर तुम अभी बोस नहीं बनी श्रुष्टि” तुमने तो झट से अपना फैंसला सुना दिया। कुछ फैंसला मुझे ही करने दो आखिर मैं इस कम्पनी का हेड हूं।
"ठीक है। उम्मीद करूंगी आपका फैंसला साक्षी मैम के हक में हों। (साक्षी से मुखातिब होकर बोलीं) साक्षी मैम बहुत छुट्टी मार ली अब चलकर कुछ काम धाम कर ले।
साक्षी... तुम चलो मैं सर से कुछ जरुरी बात करके आती हूं।
"जल्दी आना" बोलकर श्रृष्टि चली गई। उसके जाते ही कुछ देर रूकी फ़िर साक्षी बोलीं... सर ये कैसा पीस है और इसे कहा से ढूंढ लाए।
राघव…अनमोल पीस हैं। खुद से आई हैं जो सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरा हैं।
"सिर्फ़ मेरा है" सुनते ही साक्षी की आंखे बडी बडी और मुंह खुला का खुला रहा गया ये देख राघव बोला...जब से श्रृष्टि आई हैं तब से साक्षी तुम्हारी ग्रह दशा बिगड़ गई हैं। सिर्फ़ सदमे पे सदमा मिल रहीं हैं।
साक्षी... सर ये सदमा मुझे तब तक मिलता रहेगा जब तक आप ये नहीं बता देते कि आप श्रृष्टि से कब-कैसे मिले और "मेरी हैं" से आपका क्या मतलब हैं।
राघव... मतलब तुम्हें सदमा लगने से बचाना हैं तो श्रृष्टि से मिलने की बात बताना जरूरी हैं।
साक्षी... हां सर बता दिजिए नहीं तो पता चला किसी दिन आपके दिए सदमे से मैं चल बसी और आपका एक आर्किटेक हमेशा हमेशा के लिए काम हों जाएं।
राघव... हमेशा हमेशा से मतलब तुम...।
"हां सर श्रृष्टि की बातों ने मुझे ये सोचने पर मजबुर कर दिया कि मेरी सोच कितनी गलत हैं। इसलिए चंद पलों में ही मैने फैंसला ले लिया कि मैं अब यह कम्पनी तब तक छोड़कर नहीं जाऊंगी जब तक आप खुद से मुझे निकाल नहीं देते और इस प्रॉजेक्ट पर श्रृष्टि को हेड मानकर ही काम करूंगी।" राघव की बातों को कांटकार साक्षी बोलीं
राघव…”अच्छा किया जो तुमने अपना फैंसला बादल दिया। अब तुम खुद ही श्रृष्टि को बताओगी की वो ही इस प्रोजेक्ट की हेड रहेगी।“
मै जहा तक उसे जानता हु तो तुम्हारे पीछे पीछे उसका भी इस्तीफा मेरे टेबल पे आ जाएगा “ क्या पता वो अपने कोम्पुटर पर वोही टाइप कर रही हो......”
"हां हां बता दूंगी अब आप अपना कथा पुराण शुरू कीजिए।" साक्षी मुस्कुराते हुए बोलीं। “मुझे बस उसमे ही रस है की श्रुष्टि से क्या लेनादेना है
अगर आपको मेरी काबलियत का पूरा पूरा निचोड़ चाहिए तो शर्त ये है “
राघव “पता नहीं था की तुम्हे ब्लेकमेल भी करना आता है| बहोत शातिर किसम की लड़की हो तुम “
साक्षी “ आपको बहोत कुछ अभी मेरे बारे में जानना बाकी है शुरुआत से ही डर गए?? मुस्कुराते हुए अपनी एक हाथ से आगे बोलने का इशारा करते हुए राघव की और ? मार्क भरी आँखों से देखते हुए बोली
राघव... ये बात तब की है जब हमारी कम्पनी और DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप पार्टनरशिप में एक बड़े प्रोजेक्ट पर काम कर रहें थे।
"सर ये तो दो तीन साल पुरानी बात हैं। राघव की बातों को बीच में कांटकर बोलीं
राघव... हां, ये उस वक्त की बात हैं। हालाकि श्रृष्टि ओर मेरा ज्यादा आमना सामना नहीं हुआ। याद कदा ही उससे मिला हूं वो भी कंसट्रक्शन साईड पर मगर उसकी चर्चा बहुत सूना था जिससे मैं बहुत प्रभावित हुआ। दरअसल हुआ ये था हमारी क्लाइंट बड़ा अजीब था। बीच कंस्ट्रक्शन ही अलग अलग मांग रख देता था। तुम तो जानती हो बीच कंस्ट्रक्शन में मांग रख दी जाए तो उसे पूरा करने में आर्किटेक के पसीने छूट जाते हैं। उस वक्त भी उस प्रॉजेक्ट से जुड़े सभी आर्किटेक्ट के पसीने छूटे हुए थे। मगर एक श्रृष्टि ही थी जो अपने सूज बुझ और कार्य कुशलता के दम पर बिना नीव को कोई नुकसान पहुंचाए क्लाइंट के एक के बाद एक मांग को पूरा करती गइ। इससे प्रभावित होकर DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप के मालिक श्रीमान दिनेश नैनवाल जी से श्रृष्टि के साथ एक पर्सनल मीटिंग करवाने की मांग रखा। मगर दिनेश नैनवाल जी मान ही नहीं रहे थे। बहुत मन मनुवाल के बाद राज़ी हुए इस शर्त पर कि उस मीटिंग में वो भी मौजूद रहेंगे। मेरे मन में कोई गलत विचार नहीं था तो मैंने भी हां कर दिया। हमारी मीटिंग हो पाती उससे पहले ही सूचना मिला कि श्रृष्टि ने नौकरी छोड़ दिया।
"क्या..ये लडकी भी पागल हैं। इतना नाम हों रहा था फ़िर भी नौकरी छोड़ दिया।" चौकते हुए बीच में साक्षी बोल पड़ी।
राघव... पागल नहीं इतना तो मैं दावे से कह सकता हू।
साक्षी... वो कैसे?
राघव... वो ऐसे कि जब मुझे पता चला श्रृष्टि ने वहां से नौकरी छोड़ दिया तो मैंने सोचा क्यों न मैं अपनी कम्पनी की तरफ से उसे जॉब ऑफर करू मगर इसके लिए उससे संपर्क करना जरूरी था। जो कि मुझे DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप से ही मिल सकता था। श्रृष्टि का कोई संपर्क सूत्र तो मिला नहीं मगर मुझे ये पता चल गया की दिनेश नैनवाल जी के बेटे ने श्रृष्टि के साथ बहुत गलत सलूक किया था जिस कारण उसने नौकरी छोड़ दिया था। ये बात पता चलते ही मैंने भी उनसे पार्टनरशिप तोड़ लिया। अब ये मत सोचना एक लड़की के लिए मैंने बड़ी पार्टनरशिप छोड़ दी मै अपने आप को जानता हु और मेरे भी कुछ नियम है जो शायद मेरे पिताजी ने दिए है खास कर महिलाओ के बारे में
भला मैं कैसे उन लोगो के साथ पार्टनरशिप आगे बड़ा सकता था जिनके यहां काम गारो की बिल्कुल भी इज्जत न किया जाता हों और उसके साथ गलत सलूक करने वाला खुद मालिक हों। मुझे यह भी लगा, हों सकता हैं इस बात की आंच मुझ तक भी पहुंच जाए। और मेरी इज्जत जो पिताजी ने बनाए राखी है वो एक पल में दाव पर लग जाए | मैं कतई ये नहीं चहता था कि कोई भी ऐसी बात जिससे मेरे कम्पनी जिसे मेरे बाप ने बहुत मेहनत से खड़ा किया उसके और मेरे बाप के साख पर कोई दाग लगे। खैर ये बात आई गई हो गई और एक काबिल आर्किटेक मेरे हाथ से निकल जानें का अफ़सोस होने लगा। मगर किस्मत को शायद कुछ ओर ही मंजूर था सहसा एक दिन श्रृष्टि से मेरी भेट यहां हुआ और उसके बाद का तुम जानती ही हों।
जारी रहेगा…..
लो भाई अब ये भी जानना बाकी था
खेर अब तक मै भी सोच ही रही थी की एक तरफा जानकारी कैसे हो सकती है (श्रुष्टि कोई PM तो है नहीं की उसे सब जाने पर वो किसी को ना जाने ........... एक भेद तो खुला
राघव…”खेर तुम अभी बोस नहीं बनी श्रुष्टि” तुमने तो झट से अपना फैंसला सुना दिया। कुछ फैंसला मुझे ही करने दो आखिर मैं इस कम्पनी का हेड हूं।
"ठीक है। उम्मीद करूंगी आपका फैंसला साक्षी मैम के हक में हों। (साक्षी से मुखातिब होकर बोलीं) साक्षी मैम बहुत छुट्टी मार ली अब चलकर कुछ काम धाम कर ले।
साक्षी... तुम चलो मैं सर से कुछ जरुरी बात करके आती हूं।
"जल्दी आना" बोलकर श्रृष्टि चली गई। उसके जाते ही कुछ देर रूकी फ़िर साक्षी बोलीं... सर ये कैसा पीस है और इसे कहा से ढूंढ लाए।
राघव…अनमोल पीस हैं। खुद से आई हैं जो सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरा हैं।
"सिर्फ़ मेरा है" सुनते ही साक्षी की आंखे बडी बडी और मुंह खुला का खुला रहा गया ये देख राघव बोला...जब से श्रृष्टि आई हैं तब से साक्षी तुम्हारी ग्रह दशा बिगड़ गई हैं। सिर्फ़ सदमे पे सदमा मिल रहीं हैं।
साक्षी... सर ये सदमा मुझे तब तक मिलता रहेगा जब तक आप ये नहीं बता देते कि आप श्रृष्टि से कब-कैसे मिले और "मेरी हैं" से आपका क्या मतलब हैं।
राघव... मतलब तुम्हें सदमा लगने से बचाना हैं तो श्रृष्टि से मिलने की बात बताना जरूरी हैं।
साक्षी... हां सर बता दिजिए नहीं तो पता चला किसी दिन आपके दिए सदमे से मैं चल बसी और आपका एक आर्किटेक हमेशा हमेशा के लिए काम हों जाएं।
राघव... हमेशा हमेशा से मतलब तुम...।
"हां सर श्रृष्टि की बातों ने मुझे ये सोचने पर मजबुर कर दिया कि मेरी सोच कितनी गलत हैं। इसलिए चंद पलों में ही मैने फैंसला ले लिया कि मैं अब यह कम्पनी तब तक छोड़कर नहीं जाऊंगी जब तक आप खुद से मुझे निकाल नहीं देते और इस प्रॉजेक्ट पर श्रृष्टि को हेड मानकर ही काम करूंगी।" राघव की बातों को कांटकार साक्षी बोलीं
राघव…”अच्छा किया जो तुमने अपना फैंसला बादल दिया। अब तुम खुद ही श्रृष्टि को बताओगी की वो ही इस प्रोजेक्ट की हेड रहेगी।“
मै जहा तक उसे जानता हु तो तुम्हारे पीछे पीछे उसका भी इस्तीफा मेरे टेबल पे आ जाएगा “ क्या पता वो अपने कोम्पुटर पर वोही टाइप कर रही हो......”
"हां हां बता दूंगी अब आप अपना कथा पुराण शुरू कीजिए।" साक्षी मुस्कुराते हुए बोलीं। “मुझे बस उसमे ही रस है की श्रुष्टि से क्या लेनादेना है
अगर आपको मेरी काबलियत का पूरा पूरा निचोड़ चाहिए तो शर्त ये है “
राघव “पता नहीं था की तुम्हे ब्लेकमेल भी करना आता है| बहोत शातिर किसम की लड़की हो तुम “
साक्षी “ आपको बहोत कुछ अभी मेरे बारे में जानना बाकी है शुरुआत से ही डर गए?? मुस्कुराते हुए अपनी एक हाथ से आगे बोलने का इशारा करते हुए राघव की और ? मार्क भरी आँखों से देखते हुए बोली
राघव... ये बात तब की है जब हमारी कम्पनी और DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप पार्टनरशिप में एक बड़े प्रोजेक्ट पर काम कर रहें थे।
"सर ये तो दो तीन साल पुरानी बात हैं। राघव की बातों को बीच में कांटकर बोलीं
राघव... हां, ये उस वक्त की बात हैं। हालाकि श्रृष्टि ओर मेरा ज्यादा आमना सामना नहीं हुआ। याद कदा ही उससे मिला हूं वो भी कंसट्रक्शन साईड पर मगर उसकी चर्चा बहुत सूना था जिससे मैं बहुत प्रभावित हुआ। दरअसल हुआ ये था हमारी क्लाइंट बड़ा अजीब था। बीच कंस्ट्रक्शन ही अलग अलग मांग रख देता था। तुम तो जानती हो बीच कंस्ट्रक्शन में मांग रख दी जाए तो उसे पूरा करने में आर्किटेक के पसीने छूट जाते हैं। उस वक्त भी उस प्रॉजेक्ट से जुड़े सभी आर्किटेक्ट के पसीने छूटे हुए थे। मगर एक श्रृष्टि ही थी जो अपने सूज बुझ और कार्य कुशलता के दम पर बिना नीव को कोई नुकसान पहुंचाए क्लाइंट के एक के बाद एक मांग को पूरा करती गइ। इससे प्रभावित होकर DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप के मालिक श्रीमान दिनेश नैनवाल जी से श्रृष्टि के साथ एक पर्सनल मीटिंग करवाने की मांग रखा। मगर दिनेश नैनवाल जी मान ही नहीं रहे थे। बहुत मन मनुवाल के बाद राज़ी हुए इस शर्त पर कि उस मीटिंग में वो भी मौजूद रहेंगे। मेरे मन में कोई गलत विचार नहीं था तो मैंने भी हां कर दिया। हमारी मीटिंग हो पाती उससे पहले ही सूचना मिला कि श्रृष्टि ने नौकरी छोड़ दिया।
"क्या..ये लडकी भी पागल हैं। इतना नाम हों रहा था फ़िर भी नौकरी छोड़ दिया।" चौकते हुए बीच में साक्षी बोल पड़ी।
राघव... पागल नहीं इतना तो मैं दावे से कह सकता हू।
साक्षी... वो कैसे?
राघव... वो ऐसे कि जब मुझे पता चला श्रृष्टि ने वहां से नौकरी छोड़ दिया तो मैंने सोचा क्यों न मैं अपनी कम्पनी की तरफ से उसे जॉब ऑफर करू मगर इसके लिए उससे संपर्क करना जरूरी था। जो कि मुझे DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप से ही मिल सकता था। श्रृष्टि का कोई संपर्क सूत्र तो मिला नहीं मगर मुझे ये पता चल गया की दिनेश नैनवाल जी के बेटे ने श्रृष्टि के साथ बहुत गलत सलूक किया था जिस कारण उसने नौकरी छोड़ दिया था। ये बात पता चलते ही मैंने भी उनसे पार्टनरशिप तोड़ लिया। अब ये मत सोचना एक लड़की के लिए मैंने बड़ी पार्टनरशिप छोड़ दी मै अपने आप को जानता हु और मेरे भी कुछ नियम है जो शायद मेरे पिताजी ने दिए है खास कर महिलाओ के बारे में
भला मैं कैसे उन लोगो के साथ पार्टनरशिप आगे बड़ा सकता था जिनके यहां काम गारो की बिल्कुल भी इज्जत न किया जाता हों और उसके साथ गलत सलूक करने वाला खुद मालिक हों। मुझे यह भी लगा, हों सकता हैं इस बात की आंच मुझ तक भी पहुंच जाए। और मेरी इज्जत जो पिताजी ने बनाए राखी है वो एक पल में दाव पर लग जाए | मैं कतई ये नहीं चहता था कि कोई भी ऐसी बात जिससे मेरे कम्पनी जिसे मेरे बाप ने बहुत मेहनत से खड़ा किया उसके और मेरे बाप के साख पर कोई दाग लगे। खैर ये बात आई गई हो गई और एक काबिल आर्किटेक मेरे हाथ से निकल जानें का अफ़सोस होने लगा। मगर किस्मत को शायद कुछ ओर ही मंजूर था सहसा एक दिन श्रृष्टि से मेरी भेट यहां हुआ और उसके बाद का तुम जानती ही हों।
जारी रहेगा…..
लो भाई अब ये भी जानना बाकी था
खेर अब तक मै भी सोच ही रही थी की एक तरफा जानकारी कैसे हो सकती है (श्रुष्टि कोई PM तो है नहीं की उसे सब जाने पर वो किसी को ना जाने ........... एक भेद तो खुला