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Romance श्रृष्टि की गजब रित
#50
श्रृष्टि... खास बास मैं कुछ नहीं जानती। दूसरो की तरह मैं भी आपको आप से ही संबोधित करूंगी। आपको बूरा लगता हैं तो लगें। (फ़िर मन में बोलीं) सर जानती हूं मैं आप के लिए मै कितनी खास हूं या यूं काहू एक कामगार से बढ़कर कुछ ओर ही हूं। लेकिन मैं ऐसा हरगिज नहीं होने देना चहती हूं।

{आपको क्या पता जब मैंने ये जाना की मै कुछ ख़ास बन रही हु तो सब से पहले नहाते वक़्त मैंने खुद को शीशे के सामने देखा बस ये जान ने के लिए की क्या मै उतनी आकर्षक हु की किसी को आकर्षित कर सकू ?? और ये तीसरी बार था पहली बार स्कुल में किसी ने छेड़ दिया था तब दूसरी बार वो हरामी का पिल्ला जिस ने मोल में मेरे नितंब छुए थे तब उसकी वो हरकत ने मुझे मेरे ही नितम्बो को देखने मजबूर कर दिया और अब आपकी वजह से, कभी कभी साली वो समीक्षा कि छेडछाड भी खेर वो तो मै भी उसे वैसे ही करती रहती हु पर शायद ये कुछ मेरे खयालो से विपरीत ही मैंने अपने आप को पूरी तरीके से टोवेल उतार के देखा और ये पहली बार था और शायद मुझे लगा की मै आकर्षक तो हु }

राघव... तुम मानने से रहीं इसलिए तुम्हारा जैसे मन करे वैसे ही संबोधित करो मगर ध्यान रखना एक दिन मैं अपनी बात तुमसे मनवा कर रहूंगा।

श्रृष्टि... मैं भी देखती हूं आप कैसे मनवाते है। खैर छोड़िए इन बातों को जो मैं कहने आई थीं वो सुनिए...।

राघव... हां तो सुनाओ न मैं भी सुनने के लिए ही बैठा हूं। (बस कुछ मीठा मीठा ही बोल दो )

इस बात पर श्रृष्टि मुस्कुरा दिया फिर बोली... सर मैंने फैसला लिया हैं कि आप इस प्रोजेक्ट का हेड साक्षी मैम को बना दीजिए।

"अच्छा? क्या मैं जान सकता हूं तुमने ये फैसला क्यों लिया एक वाजिब वजह बता दो।"सहज भाव से मुस्कुराते हुए राघव बोला

श्रृष्टि... सर वजह ये हैं की जिस दिन से आपने मुझे प्रोजेक्ट हेड बनाया हैं उसके बाद से ही साक्षी मैम छुट्टी पर हैं। इसलिए मुझे लगता है, साक्षी मैम को मुझे प्रोजेक्ट हेड बनाना पसंद नहीं आया।

राघव... जरूरी तो नहीं कि यहीं वजह रहीं हों कुछ ओर भी कारण हों सकता हैं। बीमार हो

श्रृष्टि... सर आप ये भलीभांति जानते हों साक्षी मैम कभी भी इतना लम्बा छुट्टी नहीं लिया हैं फ़िर इतनी लंबी छुट्टी लेने का ओर क्या करण हों सकता हैं। मुझे तो बस यहीं एक कारण दिख रहा हैं जो प्रत्यक्ष सामने है।

राघव... ओ श्रृष्टि तुम काम के मामले में जितनी तेज तर्रार हों उतनी ही भोली, कुछ ओर मामले में हों। अब देखो न तुम ही कहती हो जो प्रत्यक्ष दिख रहा है सच उसके उलट होता हैं। इस मामले में भी जो दिख रहा है सच वो नहीं हैं। अब तुम सच जानने की बात मत कह देना क्योंकि ये सच मैं किसी को नहीं बताने वाला हूं। और हां देखो मुझे यहाँ अपने धंधे से काम है अगर मेरा काम ढंग से हो ही रहा है तो मुझे किसी की भी पर्व नहीं है

श्रृष्टि... ठीक हैं मैं सच नहीं जानना चाहूंगी मगर मुझे साक्षी मैम का यूं इग्नोर रहना बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा।

राघव... वो क्यों भाला?

श्रृष्टि... “सर साक्षी मैम यहां लंबे समय से काम कर रहीं हैं और जीतना भी वक्त मैं उनके साथ काम किया है उतने वक्त में, मैं इतना तो समझ ही गई हूं साक्षी मैम काबिलियत के बहुत धनी है। मुझे तो लगता हैं वो मूझसे भी ज्यादा काबिल है इसलिए इस प्रोजेक्ट में उनका साथ रहना इस प्रोजेक्ट के लिए बहुत फायदेमंद होगा। और ये मै मेरे लिए नहीं कह रही पर हमारी कंपनी के फायदे में ये जरुरी है शायद आप को ठीक लगे “

"ठीक हैं मैं कुछ करता हूं" मुस्कुराते हुए राघव बोला

श्रृष्टि... “जो करना हैं जल्दी से कीजिए अच्छा अब मैं चलती हूं।“

श्रृष्टि जाने की अनुमति मांगा तो राघव उसे रोकते हुए बोला... श्रृष्टि इस इतवार को तुम खाली हों।

"आप क्यों पूछ रहें हों" जानकारी लेने के भाव से बोलीं

राघव... अगर खाली हों तो इस इतवार को लंच या फ़िर शाम की चाय पर चल सकती हों।?

श्रृष्टि... उम्हू तो आप मुझे डेट पर ले जाना चाहते हैं। क्या मैं जान सकती हूं क्यों?

राघव…शायद डेट ही हों मगर क्यों ले जाना चाहता हूं ये जब चलोगी तब पाता चलेगा।

श्रृष्टि... सॉरी सर मै इस इतवार को बिल्कुल भी खाली नहीं हूं वो क्या है न मुझे मां के साथ कहीं जाना हैं ओर शायद लौटने में देर हों जाए इसलिए आपसे वादा नहीं कर सकतीं हूं।

राघव... कोई बात नही फ़िर कभी चल देगें।

इसके बाद श्रृष्टि विदा लेकर चल दिया जाते वक्त मन ही मन बोलीं... सर मै जानती हूं आप मुझे डेट पर क्यों ले जाना चाहते हों पर मैं आपके साथ एक कामगार के अलावा कोई ओर रिश्ता जोड़ना नहीं चाहता। सॉरी सर मैंने आपसे झूठ बोला मगर मैं भी क्या करूं मैं मजबूर जो हूं।

मन ही मन इतना बोलकर आंखो के कोर पर छलक आई आंसू के बूंदों को पोंछते हुए चली गई और यहां राघव श्रृष्टि के जाते ही खुद से बोला... ओ श्रृष्टि तुम साक्षी से कितनी अलग हों यही बात मैंने साक्षी या किसी ओर से बोला होता तो कितना भी जरुरी काम होता सब छोड़कर मेरे साथ चल देती मगर तुम...हो ...की ....डाफेर..... ओहो श्रृष्टि तुम कब मेरे दिल की भावना को समझोगी कितनी बार दर्शा चुका हूं कि मै तुम्हें पसंद करता हूं और शायद प्यार भी करने लगा हूं।

मन ही मन खुद से बातें करने के बाद मुस्कुरा दिया फिर कुछ याद आते ही किसी को फ़ोन किया, एक बार नहीं कहीं बार फ़ोन किया मगर कोई रेस्पॉन्स ही नहीं मिला तो थक हरकर मोबाइल रख दिया ओर अपने काम में लग गया।

लगभग दो दिन का वक्त ओर बिता था की साक्षी दफ्तर आ पहोची उसे देखकर श्रृष्टि सहित सभी साथी गण उसका हालचाल लेने लग गए और इतने दिन ना आने का कारण पूछने लग गए। तबीयत ख़राब होने की पुरानी बात बताकर टाल दिया। वे भी ज्यादा सवाल जवाब न करके जो साक्षी ने बताया मान लेना ही बेहतर समझा।

जैसे ही राघव के दफ़्तर पहुंचने का पता चला सभी को राघव से मिलने जानें की बात कहकर चल दिया और कुछ औपचारिक बाते करने के बाद एक लेटर राघव के मेज पर थापक से रख दिया।



जारी रहेगा...

आप के मन में जो भी सवाल आये है तो आप यहाँ बता दे

वर्ना अगला भाग तो है ही ....................
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RE: श्रृष्टि की गजब रित - by maitripatel - 17-08-2024, 03:35 PM



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