17-08-2024, 03:34 PM
भाग - 16
अगला दिन सब कुछ सामान्य रहा बस राघव का व्यवहार और साक्षी का न आना सामान्य नहीं रहा। राघव दोपहर के बाद का बहुत सारा वक्त श्रृष्टि सहित बाकि के साथियों के साथ बिताया।
जहां सभी काम में लगे रहे वहीं राघव काम में हाथ तो बांटा ही रहा था मगर कभी कभी रूक सा जाता और श्रृष्टि को मग्न होकर काम करते हुए देखता रहता यदाकदा दोनों की निगाहे आपस में टकरा जाते तो राघव निगाहे ऐसे फेर लेता जैसे वो कुछ देख ही नहीं रहा हों और श्रृष्टि बस मुस्कुरा देती।
ऐसा अगले कई दिनों तक चला। इन्हीं दिनों राघव लंच भी उन्हीं के साथ करने लगा। श्रृष्टि के मन में जो थोड़ी बहुत शंका बची था वो खत्म हों गया। शंका खत्म होने से श्रृष्टि का राघव को देखने का नजरिया भी बदल गया। अब वो भी खुलकर तो नहीं मगर सभी से नज़रे बचाकर राघव को बीच बीच में देख लेती और जब कभी नज़रे टकरा जाती तो खुलकर मुस्कुरा देती।
नैनों का टकराव और छुप छुपकर ताकाझाकी हों रहा था इसका मतलब ये नहीं की काम से परहेज किया जा रहा हों। काम उसी रफ़्तार से किया जा रहा था।
बीते कई दिनों से जो भी हों रहा था वो शुरू शुरू में असामान्य घटना थी मगर अब सामान्य हों चुका था किंतु बीते दिनों की एक घटना अभी तक असामान्य बना हुआ था। जिस दिन राघव ने साक्षी को उसके मनसा या कहू उसके कारस्तानी बताया था उस दिन से अब तक एक भी दिन साक्षी दफ्तर नहीं आई थीं।
ये बात श्रृष्टि सहित बाकि साथियों को खटक रहा था। और ख़ास कर एक कर्मचारी को | इसलिए आज लंच के दौरान उसी सहयोगी ने उस मुद्दे को छेड़ा... श्रृष्टि मैम पिछले कुछ दिनों से साक्षी मैम दफ्तर नहीं आ रही हैं। पूछने पर कहती हैं तबीयत खराब हैं और कहती है की वो तबियत की खराबी मुझे नहीं बता सकती शायद लेडीज़ प्रोब्लेम्र हो, लेकिन मुझे लगता हैं सच्चाई कुछ ओर ही हैं।
"हां श्रृष्टि मैम जिस दिन आपको प्रोजेक्ट हेड बनाया गया था उस दिन भी साक्षी मैम कुछ अजीब व्यवहार कर रहीं थीं मुझे लगता हैं साक्षी मैम को ये बात पसंद नहीं आई इसलिए दफ्तर नहीं आ रहीं हैं।" दूसरे साथी ने कहा।
श्रृष्टि… गौर तो मैंने भी किया था। मगर तुम जो कह रहें हों मुझे लगता हैं सच्चाई ये नहीं है। ऐसा भी तो हों सकता है सच में साक्षी मैम की तबीयत खराब हों इसलिए नहीं आ रहीं हों।
"मैम हम लोग साक्षी मैम के साथ लम्बे समय से काम कर रहे हैं। उन्होंने कभी इतना लंबा छुट्टी नहीं लिया अगर लिया भी तो दो या तीन दिन इससे ज्यादा कभी नहीं लिया फिर एकदम से क्या हो गया जो इतनी लम्बी छुट्टी पर चली गई है। मुझे आपके प्रोजेक्ट हेड बनने के अलावा कोई और कारण नज़र ही नहीं आ रहा है।" एक साथी ने बोला
साथी की बातों ने श्रृष्टि को सोचने पर मजबूर कर दिया। अलग अलग तथ्य पर विचार विमर्श करने के बाद मन ही मन एक फैंसला लिया और जल्दी से लंच खत्म करके राघव के पास पहुंच गईं। कुछ औपचारिता के बाद श्रृष्टि बोलीं... सर आज आप हमारे साथ लंच करने नहीं आए।
राघव... आज लंच नहीं लाया था इसलिए...।
"मतलब अपने आज लंच नहीं किया।" राघव की बातों को बीच में कांटकर श्रृष्टि बोलीं।
राघव... अरे नहीं नहीं लंच किया हैं बहार से मंगवाया था इसलिए तुम सभी के साथ लंच नहीं किया।
श्रृष्टि... बहार से मंगवाया था तो क्या हुआ आ जाते हम आपका लंच हड़प थोड़ी न लेते। खैर छोड़िए इन बातों को मैं आपसे कुछ जरूरी बातें करने आई थी।
राघव... तो करो न मैंने कब रोका हैं और तुम ये आप की औपचारिकता कब बंद कर रहें हों। मैंने तुम्हें कहा था न, तुम मेरे लिए आप संबोधन इस्तेमाल नहीं करोगे।
श्रृष्टि...जब सभी आपको आप कहकर संबोधित करते हैं तो मेरे कहने में बुराई क्या हैं।
राघव... बूराई है श्रृष्टि, क्योंकि तुम सबसे खास हों ( फिर मन में बोला ) तुम क्यों नहीं समझती यार तुम मेरे लिए कितनि खास हों इतने इशारे करने के बाद भी तुम रहे डॉफर के डॉफर ही।
क्रमश .....
अगला दिन सब कुछ सामान्य रहा बस राघव का व्यवहार और साक्षी का न आना सामान्य नहीं रहा। राघव दोपहर के बाद का बहुत सारा वक्त श्रृष्टि सहित बाकि के साथियों के साथ बिताया।
जहां सभी काम में लगे रहे वहीं राघव काम में हाथ तो बांटा ही रहा था मगर कभी कभी रूक सा जाता और श्रृष्टि को मग्न होकर काम करते हुए देखता रहता यदाकदा दोनों की निगाहे आपस में टकरा जाते तो राघव निगाहे ऐसे फेर लेता जैसे वो कुछ देख ही नहीं रहा हों और श्रृष्टि बस मुस्कुरा देती।
ऐसा अगले कई दिनों तक चला। इन्हीं दिनों राघव लंच भी उन्हीं के साथ करने लगा। श्रृष्टि के मन में जो थोड़ी बहुत शंका बची था वो खत्म हों गया। शंका खत्म होने से श्रृष्टि का राघव को देखने का नजरिया भी बदल गया। अब वो भी खुलकर तो नहीं मगर सभी से नज़रे बचाकर राघव को बीच बीच में देख लेती और जब कभी नज़रे टकरा जाती तो खुलकर मुस्कुरा देती।
नैनों का टकराव और छुप छुपकर ताकाझाकी हों रहा था इसका मतलब ये नहीं की काम से परहेज किया जा रहा हों। काम उसी रफ़्तार से किया जा रहा था।
बीते कई दिनों से जो भी हों रहा था वो शुरू शुरू में असामान्य घटना थी मगर अब सामान्य हों चुका था किंतु बीते दिनों की एक घटना अभी तक असामान्य बना हुआ था। जिस दिन राघव ने साक्षी को उसके मनसा या कहू उसके कारस्तानी बताया था उस दिन से अब तक एक भी दिन साक्षी दफ्तर नहीं आई थीं।
ये बात श्रृष्टि सहित बाकि साथियों को खटक रहा था। और ख़ास कर एक कर्मचारी को | इसलिए आज लंच के दौरान उसी सहयोगी ने उस मुद्दे को छेड़ा... श्रृष्टि मैम पिछले कुछ दिनों से साक्षी मैम दफ्तर नहीं आ रही हैं। पूछने पर कहती हैं तबीयत खराब हैं और कहती है की वो तबियत की खराबी मुझे नहीं बता सकती शायद लेडीज़ प्रोब्लेम्र हो, लेकिन मुझे लगता हैं सच्चाई कुछ ओर ही हैं।
"हां श्रृष्टि मैम जिस दिन आपको प्रोजेक्ट हेड बनाया गया था उस दिन भी साक्षी मैम कुछ अजीब व्यवहार कर रहीं थीं मुझे लगता हैं साक्षी मैम को ये बात पसंद नहीं आई इसलिए दफ्तर नहीं आ रहीं हैं।" दूसरे साथी ने कहा।
श्रृष्टि… गौर तो मैंने भी किया था। मगर तुम जो कह रहें हों मुझे लगता हैं सच्चाई ये नहीं है। ऐसा भी तो हों सकता है सच में साक्षी मैम की तबीयत खराब हों इसलिए नहीं आ रहीं हों।
"मैम हम लोग साक्षी मैम के साथ लम्बे समय से काम कर रहे हैं। उन्होंने कभी इतना लंबा छुट्टी नहीं लिया अगर लिया भी तो दो या तीन दिन इससे ज्यादा कभी नहीं लिया फिर एकदम से क्या हो गया जो इतनी लम्बी छुट्टी पर चली गई है। मुझे आपके प्रोजेक्ट हेड बनने के अलावा कोई और कारण नज़र ही नहीं आ रहा है।" एक साथी ने बोला
साथी की बातों ने श्रृष्टि को सोचने पर मजबूर कर दिया। अलग अलग तथ्य पर विचार विमर्श करने के बाद मन ही मन एक फैंसला लिया और जल्दी से लंच खत्म करके राघव के पास पहुंच गईं। कुछ औपचारिता के बाद श्रृष्टि बोलीं... सर आज आप हमारे साथ लंच करने नहीं आए।
राघव... आज लंच नहीं लाया था इसलिए...।
"मतलब अपने आज लंच नहीं किया।" राघव की बातों को बीच में कांटकर श्रृष्टि बोलीं।
राघव... अरे नहीं नहीं लंच किया हैं बहार से मंगवाया था इसलिए तुम सभी के साथ लंच नहीं किया।
श्रृष्टि... बहार से मंगवाया था तो क्या हुआ आ जाते हम आपका लंच हड़प थोड़ी न लेते। खैर छोड़िए इन बातों को मैं आपसे कुछ जरूरी बातें करने आई थी।
राघव... तो करो न मैंने कब रोका हैं और तुम ये आप की औपचारिकता कब बंद कर रहें हों। मैंने तुम्हें कहा था न, तुम मेरे लिए आप संबोधन इस्तेमाल नहीं करोगे।
श्रृष्टि...जब सभी आपको आप कहकर संबोधित करते हैं तो मेरे कहने में बुराई क्या हैं।
राघव... बूराई है श्रृष्टि, क्योंकि तुम सबसे खास हों ( फिर मन में बोला ) तुम क्यों नहीं समझती यार तुम मेरे लिए कितनि खास हों इतने इशारे करने के बाद भी तुम रहे डॉफर के डॉफर ही।
क्रमश .....