17-08-2024, 03:33 PM
भाग - 15
अगले दिन सभी दफ्तर में मौजूद थे अगर कोई नहीं था तो वो थी साक्षी, राघव दफ्तर आते ही शिग्रता से कुछ काम निपटाया फ़िर श्रृष्टि और उसके साथियों के पास पहुंच गया।
राघव…हां तो सभी जानें के लिए तैयार हों।
श्रृष्टि... सर तैयार तो है पर साक्षी मैम अभी तक नहीं आई।
राघव... उसका msg आया था उसकी तबीयत खराब हैं इसलिए आज नहीं आ पाएगी (फ़िर मन में बोला) लगता हैं कल की बातों का ज्यादा ही असर पड़ गया।
श्रृष्टि... ओह ऐसा क्या? हम तो कुछ ओर ही सोच बैठें थे।
राघव... जो भी सोचा हो उसे यहीं पर पूर्णविराम दो और चलने की तैयारी करो हमे देर हों रहा हैं। किसी के लिए कोई रुकता है भला ??
"जी हा" कहकर सभी अपने अपने जरूरी यन्त्र लेकर दफ्तर से बहार आए। दूसरे साथियों के पास अपने अपने कार थे तो वो उसी ओर चल दिए और श्रृष्टि अपने स्कूटी लेने जा रहीं थीं कि राघव रोकते हुए बोला...श्रृष्टि आप कहा चली आप मेरे साथ मेरे कार से चलिए।
श्रृष्टि... पर सर मेरे पास मेरी स्कूटी है।
राघव...हा जानता हूं आपके पास स्कूटी है। आप उसे यहीं छोड़ दीजिए ओर मेरे साथ चलिए क्योंकि हमे दो चार किलोमीटर नहीं शहर के दूसरे छोर लगभग तीस किलोमीटर दूर जाना हैं।
"ऐसा है तो मैं उनके साथ उनके कार में चलती हूं।" असहज होते हुए बोलीं
राघव... क्यों? मेरे साथ चलने में क्या बुराई हैं? मैं कोई भूखा भेड़िया नहीं हूं जो आपको खा जाऊंगा।
श्रृष्टि... मैंने ऐसा तो नहीं कहा।
राघव... भले ही नहीं कहा मगर आपके हावभाव कुछ ऐसा ही दर्शा रहीं हैं। यकीन मानिए मैं कोई अधोमुखी नहीं हूं आपकी तरह एक साधारण इंसान हूं। इसलिए ओर बाते न बढ़ाकर मेरे साथ चलिए।
राघव के इतना बोलते ही श्रृष्टि ना चाहते हुए भी राघव के पीछे पीछे चल दिया तो राघव बोला...आप यहीं रूकिए मैं कार लेकर आता हूं।
श्रृष्टि वहीं रूक गईं और तरह तरह की बाते उसके मन मस्तिष्क में चलने लगे । मैं सर के साथ उन्हीं के कार में जाकर क्या सही कर रहीं हूं? किसी ने ध्यान दिया तो तरह तरह की बाते बनाने लग जायेंगे। ऐसा हुआ तो मैं इन सब बातों का सामना कैसे करूंगी। उफ्फ मैने चलने को हां क्यों कहा? मुझे हां कहना ही नहीं चाहिए था अब क्या करूं?
श्रृष्टि खुद की विचारों में खोई थी कि सहसा हॉर्न की आवाज ने उसके विचारों से उसे मुक्त करवाया। सामने राघव कार लिए खड़ा था। उसके बैठने को कहने पर एक बार फिर श्रृष्टि सोच में पड गई कि बैठे तो बैठें कहा आगे बैठे कि पीछे सहसा न जानें उसके मस्तिष्क में किया खिला जो पीछे का दरवाजा खोलकर बैठने जा ही रहीं थी की राघव बोला...अरे डोफर पीछे क्यों बैठ रहीं हो आगे का सीट खाली है वहा बैठो न खामखा मुझे अपना ड्राइवर बनाने पे क्यों तुली हों।
डोफर सुनते ही श्रृष्टि राघव को खा जाने वाली नजरों से ऐसे देखने लगीं मानो अभी के अभी राघव को बिना पानी के सबूत निगल जायेगी। ये देख राघव बोला... सॉरी सॉरी श्रृष्टि गलती हों गइ। अब मुझे ऐसे न घूरो जल्दी से बैठो हमे देर हों रहा है ओर हा पीछे मत बैठना आगे की सीट पर बैठना (फिर मन में बोला) ओह लगता हैं कुछ ज्यादा ही नाराज हो गई है। होना भी चाहिए डोफर सुनते ही किसी भी खूबसूरत लडकी को गुस्सा आ ही जाएगा। मै भी शायद बुध्धू ही हु इतना आसान बात भी मेरे समज में नहीं आया”
श्रृष्टि बस घूरते हुए घूमकर सामने की सीट पर बैठ गई फिर "भाडाम" से कार का दरवाजा बन्द कर दिया। अपना गुस्सा दरवाजे पे ठोक दिया| ये देखकर राघव बोला... अरे अरे नाराज हों तो नाराजगी मुझ पर निकालो कार का द्वार तोड़ने पे क्यों तुली हो इसे कुछ हुआ तो मेरा बापू दुसरा नहीं दिलाएगा हा हा हा।
श्रृष्टि…”एकदम गोबर जोक था जब जोक सुनाना नहीं आता। तो सुनाते क्यों हों?”
इतना बोलकर श्रृष्टि मुंह फूला कर बैठ गई। इन लड़कियों के नखरे भी अजब गजब है कल दोस्त डोफर डोफर बोल रहीं थीं तो बहनजी मस्त, मस्ती कर रही थी और आज बॉस ने डोफर क्या बोल दिया बहनजी रूठ गई हैं।
खैर कार अपने गंतव्य को चल दिया और कार में सन्नाटा था। न राघव कुछ बोल रहा था ना ही श्रृष्टि कुछ बोल रहीं थी। लम्बा वक्त यूं सन्नाटे में बीत गया। सहसा राघव सन्नाटे को भंग करते हुए बोला... श्रृष्टि आप न भोली सूरत वाली एक खूबसूरत लडकी हों।
ये सुनते ही श्रृष्टि हल्का सा मुस्कुरा दिया और निगाहे फेरकर राघव की ओर देखा मगर राघव उसकी और न देखकर सामने की और देख रहा था। एक बार फिर कुछ पल का सन्नाटा छा गया इस बार की सन्नाटा को भंग करते हुए श्रृष्टि बोलीं...सर किसी रूठी लडकी को मनाने का ये पैंतरा पुराना हों चुका हैं कोई और तरीका हों तो अजमा सकते हैं। वैसे हर नारी को अपनी तारीफ़ अच्छी लगती है और श्रुष्टि उसमे से कैसे बकात रह सकती है | उसे अच्छा तो लगा पर गुस्सा जो दिखाना था
राघव... पुराना भले ही हो मगर कारगर हैं तुम सिर्फ़... तुम बोल सकता हूं न।
श्रृष्टि…सर ये आप और तुम की औपचारिकता छोड़िए जो मन करें बो बोलिए। (मन में लेकिन कुछ अच्छा बोलना ये फिर से डोफर ना कह देना )
"मेरा मन तो जानेमन बोलने को कर रहा है।" धीरे से बोला ताकि श्रृष्टि सुन न ले।
श्रृष्टि... सर क्या बोला जरा ऊंचा बोलेंगे मुझे कम सुनाई देता हैं।
राघव... तुम्हें और कम क्यों झूठ बोल रहीं हों। तुम तो हल्की सी आहट भी सुन लेती हों।
श्रृष्टि…अच्छा... ये आप कैसे कह सकते हों। (सहसा कुछ याद आया जिसे सोचकर श्रृष्टि मन ही मन बोलीं) ऊम्म तो आपका इशारा उस दिन की बात पर हैं चलो मेरा भ्रम तो दूर हुआ अब बस ये जानना हैं कि आपके मन में चल क्या रहा हैं।
इतने में राघव ने कार को रोक दिया फिर बोला... श्रृष्टि हम पहुंच चुके हैं।
श्रृष्टि ने आगे देखा तो सामने एक बड़ा सा खाली जमीन है जिसे देखकर श्रृष्टि बोलीं... सर हम बडी जल्दी पहुंच गए।
राघव... बातों बातों में पाता ही नहीं चला जरा अपने हाथ में बंधी घड़ी को देखो फ़िर पता चल जायेगा हम कितने समय तक सफर करते रहें।
घड़ी देखने के बाद श्रृष्टि को पता चला लगभग एक घंटे का सफर करने के बाद वो लोग यहां तक पहुंचे खैर और देर करना व्यर्थ समझकर श्रृष्टि लपककर गाड़ी से उतरी, जेठ महीने की झुलसा देने वाली सूरज की तपन देह को छूते ही श्रृष्टि बोलीं... धूप कितनी तेज हैं।
राघव... धूप तो तेज है लेकिन अब किया भी ही क्या जा सकता हैं तुम पहले कहती तो मैं एक छाता ले आता।
श्रृष्टि... अच्छा मेरे कहने भर से आप छाता ले आते।
राघव... तुम कह कर तो देखती नहीं लेकर आता फ़िर कहती।
श्रृष्टि मुस्कुराकर देखा और मन में बोलीं... आज मुझे हो क्या हो रहा हैं सर से ऐसे क्यों बात कर रही हूं। सर भी ओर दिनों से ज्यादा फ्रैंकली बात कर रहें हैं। उनके दिमाग में चल किया रहा हैं। मुझे उसे ऐसे कोई ढील देनी नहीं चाहिए ये पुरुष होते है ऐसे है कुछ जगह मिली नहीं की पूरी सिट खुद की मान लेते है |
यहां श्रृष्टि खुद से बातें करने में मस्त थीं वहां राघव भी कुछ ऐसा ही बात मन में बोला रहा था। "आज मुझे क्या हों गया जो में श्रृष्टि से ऐसे बात कर रहा हूं। पहले तो उसे डफेर बोल दिया फिर खुद को उसका ड्राइवर बोल दिया वो पीछे बैठ रहीं थी तो इसमें कौन सी बुराई थीं। मगर मैंने लागभग विनती करते हुए उसे आगे बैठने को कहा इतना तो ठीक हैं वो मेरे साथ आना ही नहीं चाहती थी फिर भी उसे लगभग जबरदस्ती मेरे साथ बैठने को मजबूर कर दिया। मैं ऐसा क्यों कर रहा हूं क्यों...।
"सर यहां कब तक खड़े रहना हैं धूप बहुत तेज़ है हमे जल्दी से काम निपटाकर चलना चाहिए।" सहसा एक आवाज राघव के कानों को छुआ तो उसकी तंद्रा भंग हुआ, सामने देखा तो उसके साथ आए साथियों में से एक खड़ा था जो उससे कुछ बोला था मगर राघव विचारो में खोए होने के कारण सुन नहीं पाया तब उसने क्या बोला ये पुछा तो जवाब में "सर आप को हो क्या गया है? अच्छे भले दिखते हो फ़िर भी कहीं खोए खोए से लगते हों। आप ऐसे तो न थे | मैं तो बस इतना ही कह रहा था धूप बहुत तेज़ है जल्दी से हमे काम निपटाकर चलना चाहिए।
राघव... ठीक कह रहे हों।
इतना बोलकर एक नज़र श्रृष्टि की ओर देखा तो उसे दिखा श्रृष्टि उसी की ओर देखकर मंद मंद मुस्करा रहीं थीं। ये देखकर राघव भी हल्का सा मुस्कुरा दिया।
राघव को मुस्कुराते देखकर श्रृष्टि ने निगाह ऐसे फेर लिया जैसे दर्शाना चाहती हों उसने कुछ नहीं देखा। बहरहाल जमीन की पैमाईश और बाकि जरुरी काम शुरू किया गया। तेज धूप और उमस अपना प्रभाव उन सभी पर छोड़ रहा था। इसलिए कुछ देर काम करते फिर कार में आकर एसी के ठंडक का मजा लेकर फिर से काम करने लग जाते। काम खत्म करते करते लगभग तीन साढ़े तीन बज गए। थक तो गए ही थे साथ ही सभी को भूख भी बड़ी जोरों का लगा था। तो लौटते वक्त सभी को एक रेस्टोरेंट में ले जाकर सभी को उनके पसंद का खान खिलाया फ़िर दुनिया भर की बाते करते हुए दफ्तर लौट आएं।
अब ये नया कुछ आया श्रुष्टि और राघव ना जाने क्या सोच रहे है ये ऑफिस का तो काम है ही पर एक दुसरे के बारे में सोचना तो ऑफिस वर्क में नहीं आता !!!!!!
जारी रहेगा…..
अगले दिन सभी दफ्तर में मौजूद थे अगर कोई नहीं था तो वो थी साक्षी, राघव दफ्तर आते ही शिग्रता से कुछ काम निपटाया फ़िर श्रृष्टि और उसके साथियों के पास पहुंच गया।
राघव…हां तो सभी जानें के लिए तैयार हों।
श्रृष्टि... सर तैयार तो है पर साक्षी मैम अभी तक नहीं आई।
राघव... उसका msg आया था उसकी तबीयत खराब हैं इसलिए आज नहीं आ पाएगी (फ़िर मन में बोला) लगता हैं कल की बातों का ज्यादा ही असर पड़ गया।
श्रृष्टि... ओह ऐसा क्या? हम तो कुछ ओर ही सोच बैठें थे।
राघव... जो भी सोचा हो उसे यहीं पर पूर्णविराम दो और चलने की तैयारी करो हमे देर हों रहा हैं। किसी के लिए कोई रुकता है भला ??
"जी हा" कहकर सभी अपने अपने जरूरी यन्त्र लेकर दफ्तर से बहार आए। दूसरे साथियों के पास अपने अपने कार थे तो वो उसी ओर चल दिए और श्रृष्टि अपने स्कूटी लेने जा रहीं थीं कि राघव रोकते हुए बोला...श्रृष्टि आप कहा चली आप मेरे साथ मेरे कार से चलिए।
श्रृष्टि... पर सर मेरे पास मेरी स्कूटी है।
राघव...हा जानता हूं आपके पास स्कूटी है। आप उसे यहीं छोड़ दीजिए ओर मेरे साथ चलिए क्योंकि हमे दो चार किलोमीटर नहीं शहर के दूसरे छोर लगभग तीस किलोमीटर दूर जाना हैं।
"ऐसा है तो मैं उनके साथ उनके कार में चलती हूं।" असहज होते हुए बोलीं
राघव... क्यों? मेरे साथ चलने में क्या बुराई हैं? मैं कोई भूखा भेड़िया नहीं हूं जो आपको खा जाऊंगा।
श्रृष्टि... मैंने ऐसा तो नहीं कहा।
राघव... भले ही नहीं कहा मगर आपके हावभाव कुछ ऐसा ही दर्शा रहीं हैं। यकीन मानिए मैं कोई अधोमुखी नहीं हूं आपकी तरह एक साधारण इंसान हूं। इसलिए ओर बाते न बढ़ाकर मेरे साथ चलिए।
राघव के इतना बोलते ही श्रृष्टि ना चाहते हुए भी राघव के पीछे पीछे चल दिया तो राघव बोला...आप यहीं रूकिए मैं कार लेकर आता हूं।
श्रृष्टि वहीं रूक गईं और तरह तरह की बाते उसके मन मस्तिष्क में चलने लगे । मैं सर के साथ उन्हीं के कार में जाकर क्या सही कर रहीं हूं? किसी ने ध्यान दिया तो तरह तरह की बाते बनाने लग जायेंगे। ऐसा हुआ तो मैं इन सब बातों का सामना कैसे करूंगी। उफ्फ मैने चलने को हां क्यों कहा? मुझे हां कहना ही नहीं चाहिए था अब क्या करूं?
श्रृष्टि खुद की विचारों में खोई थी कि सहसा हॉर्न की आवाज ने उसके विचारों से उसे मुक्त करवाया। सामने राघव कार लिए खड़ा था। उसके बैठने को कहने पर एक बार फिर श्रृष्टि सोच में पड गई कि बैठे तो बैठें कहा आगे बैठे कि पीछे सहसा न जानें उसके मस्तिष्क में किया खिला जो पीछे का दरवाजा खोलकर बैठने जा ही रहीं थी की राघव बोला...अरे डोफर पीछे क्यों बैठ रहीं हो आगे का सीट खाली है वहा बैठो न खामखा मुझे अपना ड्राइवर बनाने पे क्यों तुली हों।
डोफर सुनते ही श्रृष्टि राघव को खा जाने वाली नजरों से ऐसे देखने लगीं मानो अभी के अभी राघव को बिना पानी के सबूत निगल जायेगी। ये देख राघव बोला... सॉरी सॉरी श्रृष्टि गलती हों गइ। अब मुझे ऐसे न घूरो जल्दी से बैठो हमे देर हों रहा है ओर हा पीछे मत बैठना आगे की सीट पर बैठना (फिर मन में बोला) ओह लगता हैं कुछ ज्यादा ही नाराज हो गई है। होना भी चाहिए डोफर सुनते ही किसी भी खूबसूरत लडकी को गुस्सा आ ही जाएगा। मै भी शायद बुध्धू ही हु इतना आसान बात भी मेरे समज में नहीं आया”
श्रृष्टि बस घूरते हुए घूमकर सामने की सीट पर बैठ गई फिर "भाडाम" से कार का दरवाजा बन्द कर दिया। अपना गुस्सा दरवाजे पे ठोक दिया| ये देखकर राघव बोला... अरे अरे नाराज हों तो नाराजगी मुझ पर निकालो कार का द्वार तोड़ने पे क्यों तुली हो इसे कुछ हुआ तो मेरा बापू दुसरा नहीं दिलाएगा हा हा हा।
श्रृष्टि…”एकदम गोबर जोक था जब जोक सुनाना नहीं आता। तो सुनाते क्यों हों?”
इतना बोलकर श्रृष्टि मुंह फूला कर बैठ गई। इन लड़कियों के नखरे भी अजब गजब है कल दोस्त डोफर डोफर बोल रहीं थीं तो बहनजी मस्त, मस्ती कर रही थी और आज बॉस ने डोफर क्या बोल दिया बहनजी रूठ गई हैं।
खैर कार अपने गंतव्य को चल दिया और कार में सन्नाटा था। न राघव कुछ बोल रहा था ना ही श्रृष्टि कुछ बोल रहीं थी। लम्बा वक्त यूं सन्नाटे में बीत गया। सहसा राघव सन्नाटे को भंग करते हुए बोला... श्रृष्टि आप न भोली सूरत वाली एक खूबसूरत लडकी हों।
ये सुनते ही श्रृष्टि हल्का सा मुस्कुरा दिया और निगाहे फेरकर राघव की ओर देखा मगर राघव उसकी और न देखकर सामने की और देख रहा था। एक बार फिर कुछ पल का सन्नाटा छा गया इस बार की सन्नाटा को भंग करते हुए श्रृष्टि बोलीं...सर किसी रूठी लडकी को मनाने का ये पैंतरा पुराना हों चुका हैं कोई और तरीका हों तो अजमा सकते हैं। वैसे हर नारी को अपनी तारीफ़ अच्छी लगती है और श्रुष्टि उसमे से कैसे बकात रह सकती है | उसे अच्छा तो लगा पर गुस्सा जो दिखाना था
राघव... पुराना भले ही हो मगर कारगर हैं तुम सिर्फ़... तुम बोल सकता हूं न।
श्रृष्टि…सर ये आप और तुम की औपचारिकता छोड़िए जो मन करें बो बोलिए। (मन में लेकिन कुछ अच्छा बोलना ये फिर से डोफर ना कह देना )
"मेरा मन तो जानेमन बोलने को कर रहा है।" धीरे से बोला ताकि श्रृष्टि सुन न ले।
श्रृष्टि... सर क्या बोला जरा ऊंचा बोलेंगे मुझे कम सुनाई देता हैं।
राघव... तुम्हें और कम क्यों झूठ बोल रहीं हों। तुम तो हल्की सी आहट भी सुन लेती हों।
श्रृष्टि…अच्छा... ये आप कैसे कह सकते हों। (सहसा कुछ याद आया जिसे सोचकर श्रृष्टि मन ही मन बोलीं) ऊम्म तो आपका इशारा उस दिन की बात पर हैं चलो मेरा भ्रम तो दूर हुआ अब बस ये जानना हैं कि आपके मन में चल क्या रहा हैं।
इतने में राघव ने कार को रोक दिया फिर बोला... श्रृष्टि हम पहुंच चुके हैं।
श्रृष्टि ने आगे देखा तो सामने एक बड़ा सा खाली जमीन है जिसे देखकर श्रृष्टि बोलीं... सर हम बडी जल्दी पहुंच गए।
राघव... बातों बातों में पाता ही नहीं चला जरा अपने हाथ में बंधी घड़ी को देखो फ़िर पता चल जायेगा हम कितने समय तक सफर करते रहें।
घड़ी देखने के बाद श्रृष्टि को पता चला लगभग एक घंटे का सफर करने के बाद वो लोग यहां तक पहुंचे खैर और देर करना व्यर्थ समझकर श्रृष्टि लपककर गाड़ी से उतरी, जेठ महीने की झुलसा देने वाली सूरज की तपन देह को छूते ही श्रृष्टि बोलीं... धूप कितनी तेज हैं।
राघव... धूप तो तेज है लेकिन अब किया भी ही क्या जा सकता हैं तुम पहले कहती तो मैं एक छाता ले आता।
श्रृष्टि... अच्छा मेरे कहने भर से आप छाता ले आते।
राघव... तुम कह कर तो देखती नहीं लेकर आता फ़िर कहती।
श्रृष्टि मुस्कुराकर देखा और मन में बोलीं... आज मुझे हो क्या हो रहा हैं सर से ऐसे क्यों बात कर रही हूं। सर भी ओर दिनों से ज्यादा फ्रैंकली बात कर रहें हैं। उनके दिमाग में चल किया रहा हैं। मुझे उसे ऐसे कोई ढील देनी नहीं चाहिए ये पुरुष होते है ऐसे है कुछ जगह मिली नहीं की पूरी सिट खुद की मान लेते है |
यहां श्रृष्टि खुद से बातें करने में मस्त थीं वहां राघव भी कुछ ऐसा ही बात मन में बोला रहा था। "आज मुझे क्या हों गया जो में श्रृष्टि से ऐसे बात कर रहा हूं। पहले तो उसे डफेर बोल दिया फिर खुद को उसका ड्राइवर बोल दिया वो पीछे बैठ रहीं थी तो इसमें कौन सी बुराई थीं। मगर मैंने लागभग विनती करते हुए उसे आगे बैठने को कहा इतना तो ठीक हैं वो मेरे साथ आना ही नहीं चाहती थी फिर भी उसे लगभग जबरदस्ती मेरे साथ बैठने को मजबूर कर दिया। मैं ऐसा क्यों कर रहा हूं क्यों...।
"सर यहां कब तक खड़े रहना हैं धूप बहुत तेज़ है हमे जल्दी से काम निपटाकर चलना चाहिए।" सहसा एक आवाज राघव के कानों को छुआ तो उसकी तंद्रा भंग हुआ, सामने देखा तो उसके साथ आए साथियों में से एक खड़ा था जो उससे कुछ बोला था मगर राघव विचारो में खोए होने के कारण सुन नहीं पाया तब उसने क्या बोला ये पुछा तो जवाब में "सर आप को हो क्या गया है? अच्छे भले दिखते हो फ़िर भी कहीं खोए खोए से लगते हों। आप ऐसे तो न थे | मैं तो बस इतना ही कह रहा था धूप बहुत तेज़ है जल्दी से हमे काम निपटाकर चलना चाहिए।
राघव... ठीक कह रहे हों।
इतना बोलकर एक नज़र श्रृष्टि की ओर देखा तो उसे दिखा श्रृष्टि उसी की ओर देखकर मंद मंद मुस्करा रहीं थीं। ये देखकर राघव भी हल्का सा मुस्कुरा दिया।
राघव को मुस्कुराते देखकर श्रृष्टि ने निगाह ऐसे फेर लिया जैसे दर्शाना चाहती हों उसने कुछ नहीं देखा। बहरहाल जमीन की पैमाईश और बाकि जरुरी काम शुरू किया गया। तेज धूप और उमस अपना प्रभाव उन सभी पर छोड़ रहा था। इसलिए कुछ देर काम करते फिर कार में आकर एसी के ठंडक का मजा लेकर फिर से काम करने लग जाते। काम खत्म करते करते लगभग तीन साढ़े तीन बज गए। थक तो गए ही थे साथ ही सभी को भूख भी बड़ी जोरों का लगा था। तो लौटते वक्त सभी को एक रेस्टोरेंट में ले जाकर सभी को उनके पसंद का खान खिलाया फ़िर दुनिया भर की बाते करते हुए दफ्तर लौट आएं।
अब ये नया कुछ आया श्रुष्टि और राघव ना जाने क्या सोच रहे है ये ऑफिस का तो काम है ही पर एक दुसरे के बारे में सोचना तो ऑफिस वर्क में नहीं आता !!!!!!
जारी रहेगा…..