16-08-2024, 03:15 PM
शाम को जब श्रृष्टि घर लौटाकर आई। बेटी का हंसता मुस्कुराता खिला हुआ चेहरा देखकर माताश्री बोलीं... क्या बात आज मेरी बेटी के चेहरे पर थकान का नामोनिशान नहीं हैं। लगता है आज उतना काम नहीं करना पड़ा।
"थकी हुइ तो हूं पर आज जो खुशी मुझे मिली है उसके आगे थकान कहीं टिकता ही नहीं, पाता है मां आज हमे नया प्रोजेक्ट मिला हैं और उसका हेड मुझे बनाया गया हैं।" खुशी को जताते हुए बोलीं और मां के गले लग गईं।
"बधाई हों बेटी ऐसे ही अपनी काबिलियत का परचम लहराते रहना" पीठ थपथपाते हुए माताश्री बोलीं।
श्रृष्टि सिर्फ हां में जवाब दिया और मां से लिपटी रही कुछ देर बाद अलग होकर माताश्री बोली... आज इस खुशी के मौके पर मैं वो सभी खाना बनाउंगी जिसे मेरी बेटी खाना पसंद करती हैं।
श्रृष्टि... मां सिर्फ़ मेरी नहीं समीक्षा के पसंद का खाना भी बना लेना मैं आज उसे भी खाने पर बुलाने वाली हूं।
"हां हां बुला ले उसके बिना तो तेरी खुशी अधूरी हैं।"
इतना बोलकर माताश्री रसोई घर को चली गई और श्रृष्टि ने कॉल करके समीक्षा को खाने की आमंत्रण दे दिया फिर मां के साथ हाथ बटाने लग गईं।
रात्रि करीब साढ़े आठ के करीब द्वार पर किसी के आने का संकेत मिला तो श्रृष्टि ने जाकर द्वार खोला "ये नादान लडकी घर आएं मेहमान से कोई इतनी देर प्रतीक्षा करवाता हैं भाला" इतना बोलकर समीक्षा ने श्रृष्टि से किनारा करते हुए अंदर आ गईं।
"आहा आंटी आज किस खुशी में इतनी स्वादिष्ट और सुगंध युक्त भोजन के महक से घर को महकाया जा रहा हैं।"गहरी स्वास भीतर खींचने के बाद समीक्षा बोलीं
"ये तू अपने दोस्त से पूछ वहीं बता देगी।" श्रृष्टि की और इशारा करते हुए माताश्री बोलीं
माताश्री का जवाब सुनाकर समीक्षा पलटी तो श्रृष्टि उसे, उसके पीछे खड़ी मिली। श्रृष्टि के दोनों कंधो पर हाथ टिका कर बोलीं... उमहू तो बहेनजी जरा अपना मुंह खोलिए और इस दावत का राज क्या है बोलिए।
या फिर मै खुद ही सोच लू ??? कह के एक आँख मार दी श्रुष्टि की ऑर....और कुछ ऐसी जगह उसने चीटी भी भर दी |
"आज हमे नया प्रोजेक्ट दिया गया हैं जिसका हेड मैं हूं इसी...।"
"सत्यानाश… लगता है कम्पनी मालिक को अपने कंपनी से मोह भंग हों गया इसलिए इस डॉफर को प्रोजेक्ट हेड बना दिया ही ही ही..।" श्रृष्टि की बातों को बीच में कांटकर समीक्षा बोलीं फ़िर श्रृष्टि के माथे पर उंगली रखकर हल्का सा धक्का दिया और दौड़ लगा दी।
"मैं डॉफर हूं, साली डॉफर रूक तुझे अभी बताती हूं।" इतना बोलकर श्रृष्टि भी उसके पीछे भागी । समीक्षा डायनिंग मेज का चक्कर लगाकर माताश्री के पीछे छिप गई और बोलीं...आंटी बचाओ देखो डॉफर को डॉफर बोला तो कितना चीड़ गई ही ही ही...।
श्रृष्टि समझ गई समीक्षा मस्ती कर रही थी फ़िर भी दिखावा करते हुए मेज पर इधर उधर देखने लग गई। ये देखकर समीक्षा बोलीं... ये डॉफर मेज पर क्या ढूंढ रहीं हैं?
"चक्कू ढूंढ रहीं हूं चक्कू, लो मिल गया चक्कू हा हा हा" इतना बोलकर चक्कु हाथ में लेकर पलटी तो समीक्षा बोलीं... आंटी देखो इस डॉफर को ऐसे खुशी के मौके पर केक काटा जाता हैं मगर इस डॉफर की सोच भी डॉफर जैसी हैं दोस्त की गर्दन काटकर खुशी मनाएगी ही ही ही।
"किसने कहा मैं तेरी गर्दन काटूंगी मैं तो तेरी जीभ काटूंगी जिससे की तू मुझे डॉफर न बोल पाए हा हा हा।" चक्कू घूमते हुए श्रृष्टि बोला ये देखकर माताश्री किनारे होकर रसोई को चल दिया।
"आंटी अब आप कहा चली आप ही तो मेरी ढाल थी।"
"तुम दोनों दोस्तों के बीच मेरा क्या काम आपस में निपटा लो ही ही ही।" और एक नजर श्रुष्टि की वो जगह पर डाली जहा समीक्षा ने चिटी भरी थी और थोडा सा मुस्कुराके अपने गंतव्य की और चल दी\
मौका पाते ही श्रृष्टि ने समीक्षा को पकड़ लिया और धकेलते हुए सोफे तक ले गईं फिर समीक्षा को बिठाकर उसके गोद में चढ़ बैठी और चक्कू घूमते हुए बोलीं... अब बोल क्या बोल रहीं थी।
"तू चक्कू दिखाकर डराएगी तो क्या मैं डर जाऊंगी। तू तो डॉफर हैं और डॉफर ही रहेगी, डॉफर कहीं की ( फिर श्रृष्टि की माथे पर उंगली लगाकर धक्का देते हुए बोलीं) हटना न मेरी जांघें टूट गई कितना भरी हो गई है थोडा बर्जीश वर्जीश किया कर ।" और एक नजर उसके स्तनों पर डालते हुए बोली ये भी भारी हो रहे है शायद उसी का वजन ज्यादा है
"तुम दोनों अपनी ये नौटंकी बंद करो ओर इधर आओ।" सहसा माताश्री एक केक मेज पर रखते हुए बोलीं।
"वाह आंटी सही टाइम पर एंट्री मारी हैं नहीं तो ये डॉफर आज मेरी जीभ ही काट देती (फ़िर श्रृष्टि से बोलीं) ये डॉफर ये जीभ बीभ काटने का प्रोग्राम कैंसल कर और केक काटने का प्रोग्राम फिक्स कर।"
"समीक्षा" चिखते हुए श्रृष्टि बोलीं, तो समीक्षा उसके गालों पर हाथ फेरकर हाथ को चूमते हुए बोलीं...मुआआ क्यों छिड़ती है मेरी जान।
इतना सुनते ही श्रृष्टि मुस्कुराते हुए समीक्षा की गोद से उतर गई और समीक्षा उठकर माताश्री की और जाते हुए बोलीं…आंटी देखो इसे बस प्यार से जान बोल दो सारा गुस्सा गायब। आंटी मेरे को न एक शंका हो रहीं हैं कहीं इसने अपने बॉस को जान बोलकर प्रोजेक्ट हेड का तोहफा छीन तो नहीं लिया।
माताश्री बस मुस्कुरा दी और बोली “अब तुम दोनों एक दुसरे की टांग खीचने से बहार आओ तो कुछ काम आगे बढे “
मा ने भी श्रुष्टि के स्तनों की और देखा और बोली
“दोनों सिर्फ और सिर्फ शरीर से दिख रही है बाकी उम्र का व्यवहार आना बाकी है “ बस भगवान ही आगे जाने
"समीक्षा तू कुछ ज्यादा नहीं बोल रहीं हैं अब तो पक्का तेरी जीभ काट दूंगी।" इतना बोलकर श्रृष्टि तेजी से दो चार कदम बढ़ी ही थी की सहसा उसके कदम रूक गए और कुछ सोचकर मुस्करा दिया फ़िर सिर झटक दिया और समीक्षा के पास जाकर बोलीं…अब बोल क्या बोल रहीं थीं?
समीक्षा... मैं तो बस इतना बोल रहीं थी जल्दी से केक काट बहुत जोरों की भूख लगी हैं।
समीक्षा रूक रूक कर बोलीं जिससे श्रृष्टि मुस्कुरा दिया और समीक्षा से गले मिली और धीरे से बोली डफेर मा के सामने इधर उधर छुआ मत कर|
फिर केक कांटकर खुद को मिली उपलब्धि की खुशी मनाई और खान पीना करके समीक्षा अपने घर और श्रृष्टि अपने घर सपनों की हंसी वादियों में खो गईं।
जारी रहेगा...
"थकी हुइ तो हूं पर आज जो खुशी मुझे मिली है उसके आगे थकान कहीं टिकता ही नहीं, पाता है मां आज हमे नया प्रोजेक्ट मिला हैं और उसका हेड मुझे बनाया गया हैं।" खुशी को जताते हुए बोलीं और मां के गले लग गईं।
"बधाई हों बेटी ऐसे ही अपनी काबिलियत का परचम लहराते रहना" पीठ थपथपाते हुए माताश्री बोलीं।
श्रृष्टि सिर्फ हां में जवाब दिया और मां से लिपटी रही कुछ देर बाद अलग होकर माताश्री बोली... आज इस खुशी के मौके पर मैं वो सभी खाना बनाउंगी जिसे मेरी बेटी खाना पसंद करती हैं।
श्रृष्टि... मां सिर्फ़ मेरी नहीं समीक्षा के पसंद का खाना भी बना लेना मैं आज उसे भी खाने पर बुलाने वाली हूं।
"हां हां बुला ले उसके बिना तो तेरी खुशी अधूरी हैं।"
इतना बोलकर माताश्री रसोई घर को चली गई और श्रृष्टि ने कॉल करके समीक्षा को खाने की आमंत्रण दे दिया फिर मां के साथ हाथ बटाने लग गईं।
रात्रि करीब साढ़े आठ के करीब द्वार पर किसी के आने का संकेत मिला तो श्रृष्टि ने जाकर द्वार खोला "ये नादान लडकी घर आएं मेहमान से कोई इतनी देर प्रतीक्षा करवाता हैं भाला" इतना बोलकर समीक्षा ने श्रृष्टि से किनारा करते हुए अंदर आ गईं।
"आहा आंटी आज किस खुशी में इतनी स्वादिष्ट और सुगंध युक्त भोजन के महक से घर को महकाया जा रहा हैं।"गहरी स्वास भीतर खींचने के बाद समीक्षा बोलीं
"ये तू अपने दोस्त से पूछ वहीं बता देगी।" श्रृष्टि की और इशारा करते हुए माताश्री बोलीं
माताश्री का जवाब सुनाकर समीक्षा पलटी तो श्रृष्टि उसे, उसके पीछे खड़ी मिली। श्रृष्टि के दोनों कंधो पर हाथ टिका कर बोलीं... उमहू तो बहेनजी जरा अपना मुंह खोलिए और इस दावत का राज क्या है बोलिए।
या फिर मै खुद ही सोच लू ??? कह के एक आँख मार दी श्रुष्टि की ऑर....और कुछ ऐसी जगह उसने चीटी भी भर दी |
"आज हमे नया प्रोजेक्ट दिया गया हैं जिसका हेड मैं हूं इसी...।"
"सत्यानाश… लगता है कम्पनी मालिक को अपने कंपनी से मोह भंग हों गया इसलिए इस डॉफर को प्रोजेक्ट हेड बना दिया ही ही ही..।" श्रृष्टि की बातों को बीच में कांटकर समीक्षा बोलीं फ़िर श्रृष्टि के माथे पर उंगली रखकर हल्का सा धक्का दिया और दौड़ लगा दी।
"मैं डॉफर हूं, साली डॉफर रूक तुझे अभी बताती हूं।" इतना बोलकर श्रृष्टि भी उसके पीछे भागी । समीक्षा डायनिंग मेज का चक्कर लगाकर माताश्री के पीछे छिप गई और बोलीं...आंटी बचाओ देखो डॉफर को डॉफर बोला तो कितना चीड़ गई ही ही ही...।
श्रृष्टि समझ गई समीक्षा मस्ती कर रही थी फ़िर भी दिखावा करते हुए मेज पर इधर उधर देखने लग गई। ये देखकर समीक्षा बोलीं... ये डॉफर मेज पर क्या ढूंढ रहीं हैं?
"चक्कू ढूंढ रहीं हूं चक्कू, लो मिल गया चक्कू हा हा हा" इतना बोलकर चक्कु हाथ में लेकर पलटी तो समीक्षा बोलीं... आंटी देखो इस डॉफर को ऐसे खुशी के मौके पर केक काटा जाता हैं मगर इस डॉफर की सोच भी डॉफर जैसी हैं दोस्त की गर्दन काटकर खुशी मनाएगी ही ही ही।
"किसने कहा मैं तेरी गर्दन काटूंगी मैं तो तेरी जीभ काटूंगी जिससे की तू मुझे डॉफर न बोल पाए हा हा हा।" चक्कू घूमते हुए श्रृष्टि बोला ये देखकर माताश्री किनारे होकर रसोई को चल दिया।
"आंटी अब आप कहा चली आप ही तो मेरी ढाल थी।"
"तुम दोनों दोस्तों के बीच मेरा क्या काम आपस में निपटा लो ही ही ही।" और एक नजर श्रुष्टि की वो जगह पर डाली जहा समीक्षा ने चिटी भरी थी और थोडा सा मुस्कुराके अपने गंतव्य की और चल दी\
मौका पाते ही श्रृष्टि ने समीक्षा को पकड़ लिया और धकेलते हुए सोफे तक ले गईं फिर समीक्षा को बिठाकर उसके गोद में चढ़ बैठी और चक्कू घूमते हुए बोलीं... अब बोल क्या बोल रहीं थी।
"तू चक्कू दिखाकर डराएगी तो क्या मैं डर जाऊंगी। तू तो डॉफर हैं और डॉफर ही रहेगी, डॉफर कहीं की ( फिर श्रृष्टि की माथे पर उंगली लगाकर धक्का देते हुए बोलीं) हटना न मेरी जांघें टूट गई कितना भरी हो गई है थोडा बर्जीश वर्जीश किया कर ।" और एक नजर उसके स्तनों पर डालते हुए बोली ये भी भारी हो रहे है शायद उसी का वजन ज्यादा है
"तुम दोनों अपनी ये नौटंकी बंद करो ओर इधर आओ।" सहसा माताश्री एक केक मेज पर रखते हुए बोलीं।
"वाह आंटी सही टाइम पर एंट्री मारी हैं नहीं तो ये डॉफर आज मेरी जीभ ही काट देती (फ़िर श्रृष्टि से बोलीं) ये डॉफर ये जीभ बीभ काटने का प्रोग्राम कैंसल कर और केक काटने का प्रोग्राम फिक्स कर।"
"समीक्षा" चिखते हुए श्रृष्टि बोलीं, तो समीक्षा उसके गालों पर हाथ फेरकर हाथ को चूमते हुए बोलीं...मुआआ क्यों छिड़ती है मेरी जान।
इतना सुनते ही श्रृष्टि मुस्कुराते हुए समीक्षा की गोद से उतर गई और समीक्षा उठकर माताश्री की और जाते हुए बोलीं…आंटी देखो इसे बस प्यार से जान बोल दो सारा गुस्सा गायब। आंटी मेरे को न एक शंका हो रहीं हैं कहीं इसने अपने बॉस को जान बोलकर प्रोजेक्ट हेड का तोहफा छीन तो नहीं लिया।
माताश्री बस मुस्कुरा दी और बोली “अब तुम दोनों एक दुसरे की टांग खीचने से बहार आओ तो कुछ काम आगे बढे “
मा ने भी श्रुष्टि के स्तनों की और देखा और बोली
“दोनों सिर्फ और सिर्फ शरीर से दिख रही है बाकी उम्र का व्यवहार आना बाकी है “ बस भगवान ही आगे जाने
"समीक्षा तू कुछ ज्यादा नहीं बोल रहीं हैं अब तो पक्का तेरी जीभ काट दूंगी।" इतना बोलकर श्रृष्टि तेजी से दो चार कदम बढ़ी ही थी की सहसा उसके कदम रूक गए और कुछ सोचकर मुस्करा दिया फ़िर सिर झटक दिया और समीक्षा के पास जाकर बोलीं…अब बोल क्या बोल रहीं थीं?
समीक्षा... मैं तो बस इतना बोल रहीं थी जल्दी से केक काट बहुत जोरों की भूख लगी हैं।
समीक्षा रूक रूक कर बोलीं जिससे श्रृष्टि मुस्कुरा दिया और समीक्षा से गले मिली और धीरे से बोली डफेर मा के सामने इधर उधर छुआ मत कर|
फिर केक कांटकर खुद को मिली उपलब्धि की खुशी मनाई और खान पीना करके समीक्षा अपने घर और श्रृष्टि अपने घर सपनों की हंसी वादियों में खो गईं।
जारी रहेगा...