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Romance श्रृष्टि की गजब रित
#43
अब आगे

भाग - 13


राघव एक एक कदम द्वार की ओर बढ़ा रहा था। राघव के बढ़ते कदम के साथ साक्षी को एक अनजाना सा डर खाए जा रही थीं। सर क्या कहना चाहते है? क्यों सर ने मुझे रूकने को कहा? कहीं सर को मेरे करनी का पता तो नहीं चल गया? ऐसा हुआ तो पता नहीं आज मेरा क्या होगा? ऐसे विविध प्रकार के ख्याल साक्षी के मन में चल रहे थे।

कब राघव द्वार बन्द करके उसके पास आकर खड़ा हों गया सखी को भान भी नहीं हुआ। मंद मंद मुस्कान से मुस्कुराते हुए राघव ने साक्षी के कंधे पर हाथ रख दिया। सहसा स्पर्श का आभास होते ही "क क कौन हैं? कौन हैं? कहते हुए साक्षी ख्यालों से मुक्ति पाई।

"अरे क्या हुआ मैं हूं राघव, तुम ठीक तो हों न"

"सर मै ठीक हूं" बिचरगी सा राघव की ओर देखते हुए साक्षी बोलीं।

राघव अपने कुर्सी पर बैठकर मुद्दे पर आते हुए बोला…हां तो साक्षी तुम्हें ये खास तौफा कैसा लगा?

साक्षी... ये कैसा खास तौफ़ा हुआ। कल को आई एक लड़की को मेरा होद्दा दे दिया और आप पूछ रहें हों ये खाश तौफ़ा कैसा लगा? क्या ये मेरे लिए तौफा हो सकता है भला ?

राघव...कल आए या आज इससे फर्क नहीं पड़ता। फर्क पड़ता है तो बस इस बात से कि वो कितना काबिल हैं। काबिलियत के दाम पर ही किसी को उसका होद्दा मिलता है। समझ रहीं हों न मैं कहना क्या चहता हूं?

साक्षी... हां हां सर समझ रहीं हूं। आप सीधे सीधे मेरे काबिलियत पर उंगली उठा रहें हो और कह रहे हो। मुझमें काबिलियत नहीं हैं इसलिए मुझे इस प्रोजेक्ट का प्रॉजेक्ट हेड नहीं बनाया। जबकि एक वक्त था आप मेरे काबिलियत की तारीफ़ करते नहीं थकते थे फिर सहसा ऐसा किया हो गया जो मेरी काबिलियत आपके नजरों से ओजल हों गईं और कल आई श्रृष्टि की काबिलियत मूझसे ज्यादा हों गई।?

राघव…ओ हों साक्षी तुम्हारा ये दिमागी फितूर और अहम कि बारे में मूझसे ज्यादा काबिल कोई और नहीं हैं। और वोही तुम्हारे काबिलियत का भक्षण करता जा रहा हैं फिर भी तुम सहसा मेरे ऐसा करने के पीछे कारण क्या रहा जानना चाहती हों? तो सुनो वो कारण तुम खुद ही हो।

"तुम खुद ही हों" सुनते ही साक्षी हैरान सा राघव को देखती रहीं। एक भी शब्द उसके मुंह से नहीं निकला मानो उसके जुबान को लकवा मार गया हों। यू साक्षी के चुप्पी साध लेने से राघव मुस्कुरा दिया फिर बोला...क्या हुआ साक्षी तुम्हें सांप क्यों सुंग गया। चलो आगे का मै खुद ही बता देता हूं जिससे शायद तुम्हारी चुप्पी टूट जाए। बीते लंबे वक्त से तुम क्या कर रहीं हों इसका पता मुझे नहीं चलेगा अगर तुम ऐसा सोचती हो तो ये तुम गलत सोचती हैं। मैं अभी जब से श्रृष्टि आई है तब की नहीं उससे भी आगे की बात कर रहा हूं। श्रुष्टि तो अब आई है, मन तो किया तुम्हे धक्का मार कर निकाल दूं मगर ये सोचकर चुप रहा कि तुम अरमान की दोस्त हों और अरमान के साथ मेरे रिश्ते में तिराड हुईं पड़ी थी मैं उस फजियत को और बढ़ाना नही चाहता था सिर्फ इसलिए चुप रहा। मगर अब मेरा ओर अरमान का रिश्ता उस मुकाम पर पहुंच चुका हैं कि वो कभी सुधर नहीं सकता इसलिए सोचा तुम्हें तुम्हारी करनी का अहसास दिला दूं। लेकिन तुम ये मत समजो की तुम्हे निकाल रहा हु बस तुम्हारी कमिया तुजे दिखा रहा हु ताकि तुम और बेहतर कर सको|

इतना बोलकर राघव चुप्पी सध लिया बस मंद मंद रहस्यमई मुस्कान से मुस्कुराने लग गया और साक्षी मानो जम सी गई। उसके बदन में रक्त प्रवाह रूक सा गया हो। सांस रोके, बिना हिले डुले, बिना पलकों को मीचे बस एक टक राघव को देखती रहीं। ये देखकर राघव बोला... अरे तुम्हारी तो सांसे रूक गई, पलके झपकाना भूल गईं हो क्या। चलो चलो पलके झपका लो चंद सांसे ले लो नहीं तो तुम्हारा दम घुट जायेगा। दम घुटने से तुम्हें कुछ हों गया तो मेरी इज्जत दाव पे लग जायेगी सो अलग साथ ही मेरा एक काबिल आर्किटेक्चर कम हों जायेगा। और मैं ऐसा बिल्कुल भी नहीं चाहता हूं। तुम एक काबील आर्किटेक्ट हो ये मत भूलो बस कुछ काम करने के रवैये में सुधार की जरुरत है|

आज साक्षी को राघव संभलने का एक भी मौका दिए बिना सदमे पर सदमे दिए जा रहा था और साक्षी दम साधे सुनती जा रहीं थीं। साक्षी का ऐसा हाल देखकर राघव कुछ कदम आगे बढ़कर द्वार से बहार चला गया।

साक्षी बैठी बस देखती रहीं। कुछ ही वक्त में राघव एक गिलास पानी साथ लिए लौट आया और साक्षी को देते हुए बोला... शायद तुम्हारा गला सुख गया होगा लो पानी पीकर गला तार कर लो इससे तुम्हें आगे की सुनने का हौसला मिलेगा।

साक्षी पानी का गिलास ले तो लिया मगर आगे की ओर सुनने की बात से ठहर सी गई और राघव की ओर चातक नजरो से देखने लग गई। जैसे पूछ रहीं हों इतना तो सूना दिया अब ओर क्या बाकी रह गया है।

राघव आज आर या पार के मूड में था। जैसे कसाई दो घुट पानी पिलाने के बाद एक झटके में शीश को धड़ से अलग कर देता हैं। ऐसा ही कुछ करने का शायद राघव मन बना चुका था तभी तो हाथ में पकड़ी पानी का गिलास खुद से साक्षी के मुंह से लगा दिया ओर इशारे से पीने को कहा तो साक्षी बिल्कुल आज्ञाकारी शिष्या की तरह घुट घुट करके पानी पी लिया फ़िर राघव की ओर ऐसे देखा जैसे पूछ रहीं हो अब इस गिलास का किया करूं। "ये भी मुझे बताना होगा" इतना कहकर गिलास साक्षी के हाथ से लेकर मेज पर रख दिया और जाकर अपने कुर्सी पर बैठ गया।

साक्षी बस बेचारी सा मुंह बनाए देखती रहीं ये देख राघव बोला... ओ साक्षी ऐसे न देखो की मुझे तुमसे प्यार हों जाएं। उफ्फ तुम भी तो यहीं चाहती थी कि मैं तुमसे प्यार करने लग जाऊं जिसके लिए तुमने न जानें कौन कौन से पैंतरे अजमाया अपने जिस्म की नुमाइश करने से भी बाज नहीं आई। अब तुम सोच रहीं होगी मुझे कैसे पाता चला, अरे नादान लड़की मैं भी इसी दुनिया का हूं किसी दुसरी दुनिया से नहीं आया हूं। लोगों की फितरत समझता हूं। दस साल, पूरे दस साल घर से बहार रहा उस वक्त ऐसे अनगिनत लोगों से मिला जो तुम्हारी तरह बचकानी हरकते करके बैठें बिठाए सफलता की बुलंदी पर पहुंचना चाहते हैं मगर तुम शायद भूल गई थीं जैसे पानी का गिलास भले ही कोई मुंह से लगा दे लेकिन खुद से पीकर ही प्यास शांत किया जा सकता हैं। वैसे ही सफलता की बुलंदी पर पहुंचने में भले ही कोई मदद कर दे मगर पहुंचना खुद को ही पड़ता है। क्यों मैंने सही कहा न?

राघव एक के बाद एक साक्षी का भांडा फोड़ता जा रहा था और शब्द इतने तीखे की साक्षी सहन नहीं कर पा रही थी। मगर राघव रूकने का नाम नहीं ले रहा था। बस बोलता ही जा रहा था।

राघव...तुम्हें बूरा लग रहा होगा जबकि मैं तुम्हारा किया तुम्हें बता रहा हूं। जरा सोचो श्रृष्टि को कितना बुरा लगा होगा जब बिना गलती के सिर्फ़ तुम्हारी वजह से उसे सुनना पड़ा एक बार नहीं दो दो बार अब….।

"बस कीजिए सर मुझे ओर कितना जलील करेंगे। मुझे समझ आ गया मैंने जो भी किया सिर्फ़ खुद को फायदा पहुंचने के लिए किया था।" इतना बोलकर साक्षी रो पड़ीं।

साक्षी का अपराध बोध उस पर हावी हो चुका था। इसलिए सिर झुकाए दोनो हाथों से चेहरा छुपाए सुबक सुबक कर रोने लगीं ये देखकर राघव साक्षी के पास आया और उसके कंधे पर हाथ रखकर बोला...साक्षी मैं बस तुम्हें अपराध बोध करवाना चाहता था। जिसका बोध तुम्हें हों चुका है। अब जब तुम अपराध बोध से ग्रस्त हों ही चुकी हों तो मैं तुम्हें एक ओर मौका देता हूं। तुम श्रृष्टि से बिना बैर रखे उसके साथ मिलकर अपने हुनर का परचम लहराओ श्रृष्टि में कितनी हुनर है ये मैं बहुत पहले से जानता हूं न तुम हुनर में उससे कम हो न ही वो तुमसे कम हैं।

श्रृष्टि को पहले से जानने की इस धमाके ने सहसा साक्षी को ऐसा झटका लगा जिसका नतीजा ये हुआ साक्षी रोना भूलकर अचंभित सा राघव को ताकने लग गई। ये देखकर राघव बोला... इतना हैरान होने की जरुरत नहीं हैं। सच में मैं तुम्हें एक और मौका देना चाहता हूं।

अभी तक जो सिर्फ़ दम साधे सुन रहीं थी सहसा लगे एक झटके ने साक्षी के लकवा ग्रस्त जुबान में खून का दौरा बढा दिया और साक्षी बोलीं... सर आप श्रृष्टि को कब से जानते हों?।

राघव... वो तो तुम्हें इस बात का झटका लगा कि मैं श्रृष्टि को कब से जनता हूं जबकि मैं सोच रहा था कि इतना कुछ करने के बाद मैं तुम्हें दुसरा मौका क्यों दे रहा हूं। देखो साक्षी मैं श्रृष्टि को कैसे और क्यों जानता हूं ये जानना तुम्हारे लिए जरूरी नहीं हैं।

साक्षी... पर...।

राघव... पर बर कुछ नहीं अब तुम जाओ और चाहो तो आज की छुट्टी ले लो इससे तुम्हारा मानसिक संतुलन जो हिला हुआ है। वो ठीक हों जायेगा फ़िर कल से नए जोश और जुनून से नए प्रोजेक्ट के काम पर लग जाना।

मना करने के बावजूद भी साक्षी जानना चाहि मगर राघव ने कुछ नहीं बताया। अंतः तरह तरह के विचार मन में लिए साक्षी चली गई। उसके जाते ही राघव ने एक फोन किया और बोला... एक गरमा गरम कॉफी भेजो और थोडा जल्दी भेजना।

कॉफी का ऑर्डर देकर एक बार फिर से पूर्ववत बैठ गया बस अंतर ये था आज टांगे नहीं हिला रहा था न ही होठो पर रहस्यमई मुस्कान था। बल्कि शांत भाव से बैठा हुआ। सहज भाव से मंद मंद मुस्करा रहा था।





बाप रे राघव ने आज सर का पद पर बैठ के सर जैसा व्यवहार कर दिया

क्या ये जरुरी था ??

क्या इस से उसकी कंपनी को कोई फायदा होगा ??

या साक्षी जैसी होनहार आर्किटेक्ट को खोना पड़ेगा ?

क्या इस से साक्षी सुधर जायेगी ???

या फिर उसका गुस्सा जो अब तक सिर्फ श्रुष्टि तक था अब उसमे राघव ने भी अपनी जगह बना ली ??? अब दो दुश्मन हो गए उसके ???

बड़ा सवाल तो ये है की राघव श्रुष्टि को कैसे जानता है जब की श्रुष्टि उसे जानती तक नहीं ????

साक्षी के साथ साथ मै भी बहोत अचंबित हु सच में .............

अरे मन में सवाल तो बहोत से है और बस आगे जानना भी तो पड़ेगा !!!

जारी रहेगा...
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RE: श्रृष्टि की गजब रित - by maitripatel - 15-08-2024, 01:42 PM



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