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Romance श्रृष्टि की गजब रित
#40
अब आगे

अब कुछ बाते जान लेते हैं जिससे पाठक बंधु भ्रमित न हों। चंद्रेश तिवारी अपना सफर एक छोटा सा भवन निर्माता से शुरू किया था जो समय के साथ एक नामी कंस्ट्रक्शन ग्रुप में बदल गया। चंद्रेश तिवारी का छोटा सा हसता खेलता सुखी परिवार हुआ करता था। सहसा एक दुर्घटना में उनकी पत्नी चल बसी राघव उस वक्त सिर्फ पांच साल का था।

तिवारी के सामने अब दुविधा ये थीं कि काम देखे की अपने पांच साल के बेटे को, काम से मुंह मोड़ नहीं सकता था और बेटे से भी मुंह नहीं मोड़ सकता था। दोस्तों और रिश्तेदारों ने दुसरी शादी करने की सलाह दिया पहले तो नकार दिया फ़िर बहुत समजाने के बाद मान लिया ये सोचकर राघव को एक मां का प्यार और देखभाल करने वाला मिल जायेगा।

तब एक रिश्तेदार के जरिए बरखा से मिला जो तलाक सुदा थी साथ ही एक बेटा भी था। तिवारी ठहरे भले मानुष उन्हें उन पर दया आ गई तब उन्होंने सोचा राघव को मां और अरमान को बाप का छाव मिल जायेगा। यहीं तिवारी से गलती हों गया। शादी के बाद अरमान को बाप का प्यार मिलता रहा लेकिन राघव मां की ममता के लिए तरसता रहा।

तिवारी के सामने बरखा मेरा बेटा मेरा बेटा करती रहती। तिवारी के बहार जाते ही राघव के साथ बुरा सलूक करना शुरू कर देती साथ ही डराकर रखती थीं कि अगर पापा को बताया तो उसे इस घर से बहार कर देगी विचारा घर से दूर जानें की बात से ही सहम जाता था और तिवारी से कुछ नहीं कहता था।

धीरे धीरे समय बीता गया और राघव साल दर साल बड़ा होता गया मगर उसकी यातनाओं में रत्ती भर भी कमी नहीं आया इससे परेशान होकर उच्च शिक्षा के लिए बहार चला गया और जब तब भवन इंजीनियर नहीं बन गया तब तक घर नहीं लौटा।

राघव छुट्टियों में भी घर नहीं आता था। सहसा तिवारी के मन में शंका घर कर गया कि जो घर से दूर जाना नहीं चाहता था वो घर से जाते ही घर आने को राजी क्यों नहीं हो रहा हैं। बरखा से कारण जानना चाहा मगर उसने भी गोल मोल जवाब दे दिया।

बरखा की जवाब से तिवारी को संतुष्टि नहीं मिला तो राघव के पास पहुंच गया। बहुत कहने के बाद आखिरकर राघव ने सच्चाई बता ही दिया। सच्चाई जानकार तिवारी को बहुत गुस्सा आया उसका मन किया बरखा को तलाक दे दे पर मां की गलती की सजा बेटे को नहीं देना चहता था। इसलिए तलाक देने का विचार त्याग दिया।

इन्हीं दिनों तिवारी का लगाव बरखा से खत्म हों गया था लेकिन अरमान से पूर्ववत बना रहा। वहां राघव पढाई पर ध्यान दे रहा था और यहां अरमान बाप के पैसे को मौज मस्ती में लूटा रहा था। कई बार तिवारी ने टोका मगर इसका नतीजा बरखा के साथ तू तू मैं मैं हों जाता था।

राघव अपनी पढ़ाई खत्म करके घर लौट आया और बाप को रिटायरमेंट देकर सभी ज़िम्मेदारी अपने कंधे ले लिया फिर अपने कार्य कुशलता से बाप का काम और नाम को ऊंचाई पर ले जानें लग गया।

अरमान कभी मन होता तो राघव का हाथ बटा देता वरना मौज मस्ती में लगा रहता। अरमान की कारस्तानी से परेशान होकर कभी कभी राघव टोक देता और तिवारी तो पल पल टोकते ही रहते थे इसका नतीजा ये आया की गृह कलेश बढ गया।

रोज रोज के कलेश से परेशान होकर तिवारी ने दोनों मां बेटे को सबक सिखाने के लिए चल अचल संपूर्ण संपत्ति का 30 30 प्रतिशत हिस्सा राघव और खुद के नाम कर लिया और बाकी बचे हिस्से का 20 20 प्रतिशत हिस्सा बरखा और अरमान के नाम कर दिया।

ये बात अरमान और बरखा को पसंद नहीं आया इसलिए दोनों मां बेटे खुलकर सामने आ गए और राघव को तिवारी के सामने ताने देने लग गए तिवारी कुछ कहता तो उससे भी लड़ पड़ते थे। इन्हीं वजह से परेशान होकर बरखा को तलाक देकर और कुछ हर्जाना भरकर इस मामले को रफा दफा कर देने की बात सोचा मगर ये भी नहीं कर पाया ये सोचकर कि कहीं समाज के ठेकेदार ये न कहें कि जब जरूरत थी तब बरखा से शादी कर लिया अब जरूरत खत्म हो गया तो बरखा और उसके बेटे को बेसहारा छोड़ दिया। अंतः मजबूर होकर तिवारी ख़ुद के किए एक फैसले पर पछताते हुए इस रिश्ते के बोझ को सहे जा रहा हैं और राघव खाने से ज्यादा ताने सुनकर दिन काट रहा हैं।

नाश्ता करते वक्त तिवारी ने बेटे को एक बार फिर से समझाया फ़िर थोडा हसाया जिससे राघव का मुड़ सही हों गया। नाश्ते के बाद बेटे को दफ्तर के निजी कमरे में छोड़कर चला गया। बाप के जाते ही राघव ने एक फोन करके किसी को बुलाया।



क्या यही जिंदगी है कोई क्षण ख़ुशी तो कभी गम !!!!!????


इस कहानी में मुझे लगता है हर पात्र दो तरफा जिंदगी जी रहा है आशा और निराशा, गम और ख़ुशी, शायद हम भी अपनी जिंदगी में ऐसे ही है क्या पता ???? आप खुद ही सोच लीजिये अपनी जिंदगी के बारे में .........

फिर भी सभी आशावादी है, हर सुबह एक नयी अच्छी आशा के साथ अपनी जिंदगी को आगे बढाने के लिए ...........

जारी रहेगा
….अगले एपिसोड में मिलते है ............
 
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RE: श्रृष्टि की गजब रित - by maitripatel - 10-08-2024, 06:19 PM



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