10-08-2024, 06:17 PM
भाग - 11
सभी के पूछने पर भी साक्षी ने उस शख्स के बारे मे कुछ नहीं बताया। बार बार पुछा गया प्रत्येक बार सिर्फ नहीं का प्रतिउत्तर आया। अंतः सभी ने इस मुद्दे को टालकर बातों की दिशा बदल दिया। बातों बातों में यह दिन बीत गया और सभी अपने अपने घरों को ओर प्रस्थान कर गए।
अगले दिन सभी समय से दफ्तर आ गए मगर राघव कुछ देर से आया। जब वो आया उस वक्त उसका चेहरा उतरा हुआ था। ऐसा लग रहा था जैसे किसी बात से उसको गहरा धक्का लगा हों।
किसी तरह चेहरे के भाव को छुपाए, और बिना किसी से बात किए दफ्तर के निजी कमरे में चला गया। राघव के इस रवैया से जो जो उसे अपने दफ्तर के निजी कमरे तक आने के रास्ते में मिले सभी के सभी हैरत में पड़ गए क्योंकि राघव दफ्तर आते ही दफ्तर के निजी कमरे में जाते वक्त रास्ते में जो जो मिलता था सभी का हांल चाल पूछते हुए जाता था। मगर आज ऐसा नहीं किया जिस कारण सभी हैरत में रह गए।
दफ्तर के निजी कमरे में राघव गुमसुम सा बैठा कुछ सोच रहा था और पेपर वेट को गुमा रहा था। उसी वक्त एक शख्स कमरे में प्रवेश किया ओर बोला... राघव बेटा।
शख्स की आवाज सुनते ही राघव की निगाह उस शख्स की ओर गया। "पापा" बस ये लव्ज निकला फिर आंखो से सैलाव की तरह झर झर आसूं बह निकला। राघव को यूं आसूं बहाता देख वो शख्स तुंरत राघव के पास पहुंचे और गले से लगा लिया फ़िर बोला... राघव तू चंद्रेश तिवारी का बेटा है तिवारी कंस्ट्रक्शन ग्रुप का मालिक हैं फ़िर भी चंद बातों से इतना आहत हों गया कि आंसुओ का सैलाब ला दिया। देख अपने बाप को जिसे बडी बडी आंधी भी डिगा नहीं पाया तू उस अडिग चंद्रेश तिवारी का बेटा होकर रो रहा हैं।
"पापा मैं आपकी तरह मजबूत नहीं हूं और ना ही मैं कोई पत्थर हूं। एक साधारण सा मानव हूं जिसे कांटा चुभने पर दर्द होता हैं। जब वो कांटा अपनो के दिए तंज का हों तब और ज्यादा चुभता हैं।" सुबकते हुए राघव ने अपनी व्यथा सुना दिया।
"नहीं रोते तू तो बचपन में चोट लगने पर भी नहीं रोता था फिर अब क्यों?"
" क्यों? सौतेले का तंज खुले चोट से ज्यादा दर्द देता हैं जो मूझसे सहन नहीं होता हैं। मैं तो उन्हें सौतेला नहीं मानता फिर क्यों मां और अरमान मुझे सौतेला बेटा, सौतेला भाई कहकर ताने देते रहते हैं। आज भी मां ने सिर्फ इसलिए ताने दिया क्योंकि मैने अरमान को जयपुर भेज दिया। आप ही बताइए मैं अकेला क्या क्या करूं उसकी भी तो कुछ ज़िम्मेदारी बनती हैं।"
तिवारी... सब मेरी ही करनी का फल हैं जो तुझे भोगना पड़ रहा हैं। मैं उस वक्त तेरे भले का न सोचा होता तो आज तुझे यूं तंज न सुनना पड़ता मगर तू फिक्र न कर जल्दी ही मैं इसका कुछ समाधान निकल लूंगा।
राघव... पापा आप मां का कहना मान लिजिए जायदाद का 60 प्रतिशत हिस्सा उनके और अरमान के नाम कर दीजिए बाकी का बचा हुआ मेरे और आपके नाम कर लिजिए शायद इसी बहाने मुझे मां की ममता ओर प्यार का छाव मिल जाएं जिसके लिए अपने उनसे शादी किया था।
तिवारी... क्या किया जा सकता है मैं इस पर विचार करके देखता हूं। अब तू चल कैंटीन से कुछ खा ले।
राघव जानें को तैयार नहीं हो रहा था तब तिवारी जी राघव को सुरसुरी करते हुए बोला... जब तक तू नाश्ता करने जाने को तैयार नहीं होता तब तक मैं तुझे सुरसुरी करता रहूंगा। अब तू सोच कब तक यूं सुरसुरी करना सह सकता हैं।
"पापा छोड़िए न ये घर नही दफ्तर हैं।" खिलखिलाते हुए राघव बोला।
तिवारी... दफ्तर है तो क्या हुआ जब तक तू नाश्ता करने को तैयार नहीं होता तब तक मैं नहीं रूकने वाला।
ज्यादा देर राघव सुरसुरी सह नहीं पाया अंतः हार मानकर नाश्ता करने चल दिया।
जारी रहेगा भाग
सभी के पूछने पर भी साक्षी ने उस शख्स के बारे मे कुछ नहीं बताया। बार बार पुछा गया प्रत्येक बार सिर्फ नहीं का प्रतिउत्तर आया। अंतः सभी ने इस मुद्दे को टालकर बातों की दिशा बदल दिया। बातों बातों में यह दिन बीत गया और सभी अपने अपने घरों को ओर प्रस्थान कर गए।
अगले दिन सभी समय से दफ्तर आ गए मगर राघव कुछ देर से आया। जब वो आया उस वक्त उसका चेहरा उतरा हुआ था। ऐसा लग रहा था जैसे किसी बात से उसको गहरा धक्का लगा हों।
किसी तरह चेहरे के भाव को छुपाए, और बिना किसी से बात किए दफ्तर के निजी कमरे में चला गया। राघव के इस रवैया से जो जो उसे अपने दफ्तर के निजी कमरे तक आने के रास्ते में मिले सभी के सभी हैरत में पड़ गए क्योंकि राघव दफ्तर आते ही दफ्तर के निजी कमरे में जाते वक्त रास्ते में जो जो मिलता था सभी का हांल चाल पूछते हुए जाता था। मगर आज ऐसा नहीं किया जिस कारण सभी हैरत में रह गए।
दफ्तर के निजी कमरे में राघव गुमसुम सा बैठा कुछ सोच रहा था और पेपर वेट को गुमा रहा था। उसी वक्त एक शख्स कमरे में प्रवेश किया ओर बोला... राघव बेटा।
शख्स की आवाज सुनते ही राघव की निगाह उस शख्स की ओर गया। "पापा" बस ये लव्ज निकला फिर आंखो से सैलाव की तरह झर झर आसूं बह निकला। राघव को यूं आसूं बहाता देख वो शख्स तुंरत राघव के पास पहुंचे और गले से लगा लिया फ़िर बोला... राघव तू चंद्रेश तिवारी का बेटा है तिवारी कंस्ट्रक्शन ग्रुप का मालिक हैं फ़िर भी चंद बातों से इतना आहत हों गया कि आंसुओ का सैलाब ला दिया। देख अपने बाप को जिसे बडी बडी आंधी भी डिगा नहीं पाया तू उस अडिग चंद्रेश तिवारी का बेटा होकर रो रहा हैं।
"पापा मैं आपकी तरह मजबूत नहीं हूं और ना ही मैं कोई पत्थर हूं। एक साधारण सा मानव हूं जिसे कांटा चुभने पर दर्द होता हैं। जब वो कांटा अपनो के दिए तंज का हों तब और ज्यादा चुभता हैं।" सुबकते हुए राघव ने अपनी व्यथा सुना दिया।
"नहीं रोते तू तो बचपन में चोट लगने पर भी नहीं रोता था फिर अब क्यों?"
" क्यों? सौतेले का तंज खुले चोट से ज्यादा दर्द देता हैं जो मूझसे सहन नहीं होता हैं। मैं तो उन्हें सौतेला नहीं मानता फिर क्यों मां और अरमान मुझे सौतेला बेटा, सौतेला भाई कहकर ताने देते रहते हैं। आज भी मां ने सिर्फ इसलिए ताने दिया क्योंकि मैने अरमान को जयपुर भेज दिया। आप ही बताइए मैं अकेला क्या क्या करूं उसकी भी तो कुछ ज़िम्मेदारी बनती हैं।"
तिवारी... सब मेरी ही करनी का फल हैं जो तुझे भोगना पड़ रहा हैं। मैं उस वक्त तेरे भले का न सोचा होता तो आज तुझे यूं तंज न सुनना पड़ता मगर तू फिक्र न कर जल्दी ही मैं इसका कुछ समाधान निकल लूंगा।
राघव... पापा आप मां का कहना मान लिजिए जायदाद का 60 प्रतिशत हिस्सा उनके और अरमान के नाम कर दीजिए बाकी का बचा हुआ मेरे और आपके नाम कर लिजिए शायद इसी बहाने मुझे मां की ममता ओर प्यार का छाव मिल जाएं जिसके लिए अपने उनसे शादी किया था।
तिवारी... क्या किया जा सकता है मैं इस पर विचार करके देखता हूं। अब तू चल कैंटीन से कुछ खा ले।
राघव जानें को तैयार नहीं हो रहा था तब तिवारी जी राघव को सुरसुरी करते हुए बोला... जब तक तू नाश्ता करने जाने को तैयार नहीं होता तब तक मैं तुझे सुरसुरी करता रहूंगा। अब तू सोच कब तक यूं सुरसुरी करना सह सकता हैं।
"पापा छोड़िए न ये घर नही दफ्तर हैं।" खिलखिलाते हुए राघव बोला।
तिवारी... दफ्तर है तो क्या हुआ जब तक तू नाश्ता करने को तैयार नहीं होता तब तक मैं नहीं रूकने वाला।
ज्यादा देर राघव सुरसुरी सह नहीं पाया अंतः हार मानकर नाश्ता करने चल दिया।
जारी रहेगा भाग