10-08-2024, 03:27 PM
भाग - 10
सहसा श्रृष्टि के आवाज देने से राघव के मस्तिस्क का सर्किट उलझ गया। क्या करे क्या न करे असमंजस की स्थिति में फस गया। मन किया वापस लौट जाएं मगर वो भी नहीं कर सकता था। क्योंकि श्रृष्टि द्वार की ओर आ रहीं थीं। कुछ ही कदम आगे बढ़ पाता कि श्रृष्टि बहार निकलकर उसे देख लेती फ़िर न जानें श्रृष्टि क्या क्या सोच लेती। सहसा राघव ने द्वार को धक्का दिया फ़िर बोला…श्रृष्टि जी मैं राघव।
"अरे सर आप..।" बस इतना ही बोला था कि श्रृष्टि के मन में एक शंका उत्पन्न हुआ और मन ही मन बोलीं...
"कही सर छुपकर तो नहीं देख रहे थे"? पर उन्हे छुपकर देखने की जरूरत क्यों पड़ गईं? वो जब चाहें भीतर आ सकते हैं फिर छुप कर देखने की वजह क्या हों सकता हैं?
"कहीं सर मुझे..." नहीं नहीं मुझे क्यों देखने लगे,
"उस दिन भी तो कैसे टकटकी लगाएं देख रहे थे। जब हम सभी उनके कमरे में गए थे। तो आज छुप कर क्यों नहीं देख सकते हैं?"
नहीं नहीं सर ऐसा नहीं कर सकते।
"मैं भी कितनी पागल हूं क्या से क्या सोचने लग गई लगाता है ज्यादा काम की वजह से मेरा दिमाग फिर गया हैं।"
राघव जिस शंका के चलते वापस नहीं गया। आखिरकार श्रृष्टि के मस्तिष्क ने उस ओर इशारा कर ही दिया। मगर इस वाबली ने अलग ही तर्क देकर अपने मस्तिष्क को चुप करा दिया।
यहां श्रृष्टि ख़ुद से बाते करने में मग्न थी ठीक उसी वक्त राघव भी खुद से बाते करने में मग्न था
"कहीं श्रृष्टि जी को शक तो नहीं हों गया? कि मैं उन्हें छुपकर देख रहा था। नहीं नहीं उनके शक को पुख्ता होने नहीं दिया जा सकता। मुझे कुछ करना होगा जिससे उनका ध्यान उस और न जाएं।"
अजीब कशमकश में दोनो उलझे हुए हैं। एक को शक हों गया मगर अपने मस्तिष्क को तर्क देकर उस ओर सोचने से रोक दिया। दुसरा अगर शक हुआ भी है तो शक को पुख्ता करने के लिए शक पर ध्यान केंद्रित न कर पाएं। उससे रोकना चहता हैं। क्या लिखा है दोनों की किस्मत में ये तो वक्त ही बता सकता हैं हमे सिर्फ उस वक्त का इंतजार करना हैं।
खैर राघव अपने मन की बातों को विराम देते हुए बोला...श्रृष्टि जी काम कहा तक पूरा हुआ?
श्रृष्टि तो उस वक्त मन ही मन खुद से बातें करने में मग्न थी। राघव की बातों को कितना सूना कीतना नहीं ये तो सृष्टि ही जाने। जब मन की बाते खत्म हुआ तब श्रृष्टि बोली…सर आप मेरे लिए जी न लगाया करो।
श्रृष्टि की बाते सुनकर किसी को फर्क पड़ा हों चाहें न पड़ा हों मगर साक्षी को बहुत ज्यादा फर्क पड़ा तभी तो धीरे से बोली... ओ तो किस्सा यहां तक पहुंच गया। मोहतरमा को जी सुनना पसन्द नहीं हैं। तो क्या जी बोलना पसन्द हैं?
इतना बोलकर साक्षी अपने नजरों को इधर उधर घुमाया, कही किसी ने सुना तो नहीं, जब देखा उसके नजदीक कोई खड़ा नहीं हैं तब अपना ध्यान सामने की ओर कर लिया। जहां राघव मुस्कुराते हुए बोला...क्यों?
श्रृष्टि... सर मुझे अच्छा नहीं लगता हैं। आप सिर्फ मेरा नाम लिया कीजिए जैसे साक्षी मैम का और बाकियों का लेते हों।
राघव... अच्छा ठीक हैं श्रृष्टि जी ओ नही नही श्रृष्टि! अब आप ये बताइए काम कहा तक पंहुचा।
श्रृष्टि...सॉरी सर मैंने आपको जो समय बताया था उतने समय में काम पुरा नहीं कर पाई बल्की उससे तीन दिन ज्यादा हों गया फिर भी थोडा काम बाकी रह गया।
राघव... लगता है ज्यादा तारीफ़ करने से आप हवा में उड़ने लग गईं थीं जो चार दिन के जगह सात दिन में भी काम पूरा नहीं हों पाया। लगता है आप भी कुछ लोगों की तरह आलसी हों गई हों ( इतनी बाते साक्षी की ओर देखकर बोला फिर श्रृष्टि की ओर देखकर आगे बोला) श्रृष्टि जिम्मेदारी से काम नहीं कर सकतीं हों तो जिम्मेदारी लेना भी नहीं चाहिए और वादा तो बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए। जीतना काम रह गया उसे जल्दी से पूरा कर लिजिए।
इतना बोलकर राघव चला गया और श्रृष्टि एक बार फिर राघव की बातों से आहत हो गई। करें कोई भरे कोई वाला किस्सा एक बार फिर श्रृष्टि के साथ हों गया। काम समय से पूरा न हों पाए इसके लिए अडंगा साक्षी ने लगाया और सुनना श्रृष्टि को पड़ा। उसने साक्षी की ऑर देखा और मन ही मन में गन्दी गाली दे दी !!!
जहां श्रृष्टि आहत थी। वहीं साक्षी मन ही मन खुश हों रहीं थीं। उसकी मनसा जो पूरा हो गया था। वो यहीं तो चाहती थी कि देर होने के कारण राघव श्रृष्टि को कड़वी बातें सुनाए जो राघव सुनाकर चला गया।
अगले दिन ऑफिस आते ही श्रृष्टि की पहली प्राथमिकता अधूरा छूटा काम पूरा करने की थी। जिसे सहयोगियों के साथ पुरा करने में जुट गई। साक्षी का मंतव्य पूरा हो चुका था। इसलिए आज उसने काम में किसी भी तरह का कोई विघ्न उत्पन्न नहीं किया। लगभग दोपहर के खाने के वक्त तक काम पूरा हों गया। एक लंबी गहरी चैन की स्वास भरते हुए श्रृष्टि बोलीं... आखिरकार पूरा हों ही गया। साक्षी मैम आप जाकर सर जी को ये प्रोजैक्ट सौफ आइए।
"ओ तो ये बात हैं कल ही आशंका जताया था और आज वो सच हों गया। मोहतरमा तो सच में जी बोलने लग गईं। ये श्रृष्टि तो रॉकेट की रफ्तार से बढ़ रहीं हैं। जाओ जाओ जितनी रफ़्तार से जाना हैं जाओ। तेरी रफ्तार पर गतिरोध लगाने के लिए मैं हूं।" जी शब्द सुनते ही साक्षी मन ही मन बोलीं जबकि श्रृष्टि ने साधारण लहजे में बोला था। श्रृष्टि के बोलते ही सहयोगियों में से एक बोला... हां साक्षी मैम आप जल्दी से जाकर यह प्रॉजेक्ट राघव सर को सौप आइए वरना देर हुआ तो श्रृष्टि मैम को फिर से सुनना पड़ेगा।
साक्षी...बडी जोरों की भूख लगा है और लंच टाईम भी हों गया है। पहले लंच करूंगी फ़िर जाऊंगी। श्रृष्टि तुम्हें कोई आपत्ती तो नहीं हैं। अगर हो तो बोल दो मैं अभी दे आती हूं।
"नहीं मैम मुझे कोई आपत्ती नहीं हैं।" मुस्कुराते हुए श्रृष्टि बोला।
लंच के बाद साक्षी प्रॉजेक्ट लेकर राघव के पास पहुंच गई। प्रॉजेक्ट देखने के बाद राघव बोला...इतने विघ्न के बाद आखिरकार ये प्रोजैक्ट पूरा हों ही गया। साक्षी मुझे लगता हैं अगर श्रृष्टि तुम्हारे टीम में नहीं होती तो ये प्रोजैक्ट और लंबा खीच जाता। क्यों मैं सही कह रहा हूं न?
"सर आप मुझ पर उंगली उठा रहें हों। इशारों इशारों में मुझे आलसी कह रहें हों।" खीजते हुए साक्षी बोलीं
राघव...मैंने ऐसा तो नहीं कहा खैर छोड़ो अब तुम जाओ और आज रेस्ट कर लो कल से नया काम दूंगा और हा कल तुम सभी को उपहार भी तो देना हैं। यहां उपहार श्रृष्टि के लिए जीतना खास होगा उतना ही खास तुम्हारे लिऐ भी होगा। अब जब खाली समय हैं? तो बैठकर सोच लेना वो खास उपहार क्या हों सकता हैं?
ख़ास उपहार मिलने की बात से साक्षी मुस्कान बिखेरते हुए चली गई (उसके लिए खास का मतलब कुछ और ही था ) उसके जाते ही राघव पूर्वात बैठ कर रहस्यमई मुस्कान से मुस्कुराने लग गया।
यहां साक्षी साथियों के पास वापस आकर रेस्ट करने की बात कहीं तो सब के चेहरे पर मुस्कान आ गया।
रेस्ट करने का ऑर्डर मिल चुका था तो सभी लग गए बतियाने, विविध प्रकार की बाते होने लग गइ। बातों के दौरान एक दूसरे की टांगे खींचा जा रहा था।
नाराज होने के जगह सभी लुफ्त ले रहें थे। धीरे धीरे बातों का सिलसिला आगे बड़ा बढ़ते बढ़ते सहसा एक सहयोगी अपने प्रेम जीवन का बखान सुनाने लग गया। जिसे सुनकर साक्षी बोलीं...श्रृष्टि जरा अपने लव लाईफ के बारे मे भी कुछ बताओं, हम भी तो जानें इतनी खूबसूरत भोली सी सूरत वाली लड़की का कोई तो परवाना होगा जो अपने शब्दों में तुम्हारी तारीफ़ करता हों तुम्हारे नाज नखरे सहता हों।
"ऐसा कोई नहीं है अगर होता तो मैं बता देती।" शरमाई सी श्रृष्टि बोलीं।
"चल झूठी" एक धाप श्रृष्टि के पीठ पर जमाते हुए साक्षी बोलीं।
"मैं झूठ नहीं बोल रहीं हूं चलो माना कि मैं झूठ बोल रहीं हूं। सच आप ही बता दो। आपके लाईफ में कोई तो ऐसा होगा जिसे आप पसन्द करती हों जिसे देखकर आपके दिल का सितार राग छेड़ देता हों।" पलटवार करते हुए श्रृष्टि बोलीं।
"हां है एक, जिसे कई बार इशारा दे चुकी हूं पर निर्मोही ध्यान ही नहीं देता हर बार मेरे चाहत की नाव को बीच धार में डूबा देता हैं।" अफसोस जताते हुए साक्षी ने दिल की बात कह दिया।
"कौन है, कौन है वो निर्मोही" श्रृष्टि सहित सभी उतावला होकर एक स्वर में बोला।
सभी के पूछने पर भी साक्षी ने उस शख्स के बारे मे कुछ नहीं बताया। बार बार पुछा गया प्रत्येक बार सिर्फ नहीं का प्रतिउत्तर आया। अंतः सभी ने इस मुददे को टालकर बातों की दिशा बादल दिया। बातों बातों में यह दिन बीत गया और सभी अपने अपने घरों को ओर प्रस्थान कर गए।
जारी रहेगा….
क्या एक प्रेम कहानी जन्म ले रही है या फिर दो कलि और एक माली ?????
अब ये ख़ास उपहार क्या है ????? सब को असमंजस में डाला हुआ है ??
क्या राघव अपनी जेब से कोई नया पत्ता निकालेगा ????
चलिए जानते है अगले एपिसोड में ..............बने रहिये
सहसा श्रृष्टि के आवाज देने से राघव के मस्तिस्क का सर्किट उलझ गया। क्या करे क्या न करे असमंजस की स्थिति में फस गया। मन किया वापस लौट जाएं मगर वो भी नहीं कर सकता था। क्योंकि श्रृष्टि द्वार की ओर आ रहीं थीं। कुछ ही कदम आगे बढ़ पाता कि श्रृष्टि बहार निकलकर उसे देख लेती फ़िर न जानें श्रृष्टि क्या क्या सोच लेती। सहसा राघव ने द्वार को धक्का दिया फ़िर बोला…श्रृष्टि जी मैं राघव।
"अरे सर आप..।" बस इतना ही बोला था कि श्रृष्टि के मन में एक शंका उत्पन्न हुआ और मन ही मन बोलीं...
"कही सर छुपकर तो नहीं देख रहे थे"? पर उन्हे छुपकर देखने की जरूरत क्यों पड़ गईं? वो जब चाहें भीतर आ सकते हैं फिर छुप कर देखने की वजह क्या हों सकता हैं?
"कहीं सर मुझे..." नहीं नहीं मुझे क्यों देखने लगे,
"उस दिन भी तो कैसे टकटकी लगाएं देख रहे थे। जब हम सभी उनके कमरे में गए थे। तो आज छुप कर क्यों नहीं देख सकते हैं?"
नहीं नहीं सर ऐसा नहीं कर सकते।
"मैं भी कितनी पागल हूं क्या से क्या सोचने लग गई लगाता है ज्यादा काम की वजह से मेरा दिमाग फिर गया हैं।"
राघव जिस शंका के चलते वापस नहीं गया। आखिरकार श्रृष्टि के मस्तिष्क ने उस ओर इशारा कर ही दिया। मगर इस वाबली ने अलग ही तर्क देकर अपने मस्तिष्क को चुप करा दिया।
यहां श्रृष्टि ख़ुद से बाते करने में मग्न थी ठीक उसी वक्त राघव भी खुद से बाते करने में मग्न था
"कहीं श्रृष्टि जी को शक तो नहीं हों गया? कि मैं उन्हें छुपकर देख रहा था। नहीं नहीं उनके शक को पुख्ता होने नहीं दिया जा सकता। मुझे कुछ करना होगा जिससे उनका ध्यान उस और न जाएं।"
अजीब कशमकश में दोनो उलझे हुए हैं। एक को शक हों गया मगर अपने मस्तिष्क को तर्क देकर उस ओर सोचने से रोक दिया। दुसरा अगर शक हुआ भी है तो शक को पुख्ता करने के लिए शक पर ध्यान केंद्रित न कर पाएं। उससे रोकना चहता हैं। क्या लिखा है दोनों की किस्मत में ये तो वक्त ही बता सकता हैं हमे सिर्फ उस वक्त का इंतजार करना हैं।
खैर राघव अपने मन की बातों को विराम देते हुए बोला...श्रृष्टि जी काम कहा तक पूरा हुआ?
श्रृष्टि तो उस वक्त मन ही मन खुद से बातें करने में मग्न थी। राघव की बातों को कितना सूना कीतना नहीं ये तो सृष्टि ही जाने। जब मन की बाते खत्म हुआ तब श्रृष्टि बोली…सर आप मेरे लिए जी न लगाया करो।
श्रृष्टि की बाते सुनकर किसी को फर्क पड़ा हों चाहें न पड़ा हों मगर साक्षी को बहुत ज्यादा फर्क पड़ा तभी तो धीरे से बोली... ओ तो किस्सा यहां तक पहुंच गया। मोहतरमा को जी सुनना पसन्द नहीं हैं। तो क्या जी बोलना पसन्द हैं?
इतना बोलकर साक्षी अपने नजरों को इधर उधर घुमाया, कही किसी ने सुना तो नहीं, जब देखा उसके नजदीक कोई खड़ा नहीं हैं तब अपना ध्यान सामने की ओर कर लिया। जहां राघव मुस्कुराते हुए बोला...क्यों?
श्रृष्टि... सर मुझे अच्छा नहीं लगता हैं। आप सिर्फ मेरा नाम लिया कीजिए जैसे साक्षी मैम का और बाकियों का लेते हों।
राघव... अच्छा ठीक हैं श्रृष्टि जी ओ नही नही श्रृष्टि! अब आप ये बताइए काम कहा तक पंहुचा।
श्रृष्टि...सॉरी सर मैंने आपको जो समय बताया था उतने समय में काम पुरा नहीं कर पाई बल्की उससे तीन दिन ज्यादा हों गया फिर भी थोडा काम बाकी रह गया।
राघव... लगता है ज्यादा तारीफ़ करने से आप हवा में उड़ने लग गईं थीं जो चार दिन के जगह सात दिन में भी काम पूरा नहीं हों पाया। लगता है आप भी कुछ लोगों की तरह आलसी हों गई हों ( इतनी बाते साक्षी की ओर देखकर बोला फिर श्रृष्टि की ओर देखकर आगे बोला) श्रृष्टि जिम्मेदारी से काम नहीं कर सकतीं हों तो जिम्मेदारी लेना भी नहीं चाहिए और वादा तो बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए। जीतना काम रह गया उसे जल्दी से पूरा कर लिजिए।
इतना बोलकर राघव चला गया और श्रृष्टि एक बार फिर राघव की बातों से आहत हो गई। करें कोई भरे कोई वाला किस्सा एक बार फिर श्रृष्टि के साथ हों गया। काम समय से पूरा न हों पाए इसके लिए अडंगा साक्षी ने लगाया और सुनना श्रृष्टि को पड़ा। उसने साक्षी की ऑर देखा और मन ही मन में गन्दी गाली दे दी !!!
जहां श्रृष्टि आहत थी। वहीं साक्षी मन ही मन खुश हों रहीं थीं। उसकी मनसा जो पूरा हो गया था। वो यहीं तो चाहती थी कि देर होने के कारण राघव श्रृष्टि को कड़वी बातें सुनाए जो राघव सुनाकर चला गया।
अगले दिन ऑफिस आते ही श्रृष्टि की पहली प्राथमिकता अधूरा छूटा काम पूरा करने की थी। जिसे सहयोगियों के साथ पुरा करने में जुट गई। साक्षी का मंतव्य पूरा हो चुका था। इसलिए आज उसने काम में किसी भी तरह का कोई विघ्न उत्पन्न नहीं किया। लगभग दोपहर के खाने के वक्त तक काम पूरा हों गया। एक लंबी गहरी चैन की स्वास भरते हुए श्रृष्टि बोलीं... आखिरकार पूरा हों ही गया। साक्षी मैम आप जाकर सर जी को ये प्रोजैक्ट सौफ आइए।
"ओ तो ये बात हैं कल ही आशंका जताया था और आज वो सच हों गया। मोहतरमा तो सच में जी बोलने लग गईं। ये श्रृष्टि तो रॉकेट की रफ्तार से बढ़ रहीं हैं। जाओ जाओ जितनी रफ़्तार से जाना हैं जाओ। तेरी रफ्तार पर गतिरोध लगाने के लिए मैं हूं।" जी शब्द सुनते ही साक्षी मन ही मन बोलीं जबकि श्रृष्टि ने साधारण लहजे में बोला था। श्रृष्टि के बोलते ही सहयोगियों में से एक बोला... हां साक्षी मैम आप जल्दी से जाकर यह प्रॉजेक्ट राघव सर को सौप आइए वरना देर हुआ तो श्रृष्टि मैम को फिर से सुनना पड़ेगा।
साक्षी...बडी जोरों की भूख लगा है और लंच टाईम भी हों गया है। पहले लंच करूंगी फ़िर जाऊंगी। श्रृष्टि तुम्हें कोई आपत्ती तो नहीं हैं। अगर हो तो बोल दो मैं अभी दे आती हूं।
"नहीं मैम मुझे कोई आपत्ती नहीं हैं।" मुस्कुराते हुए श्रृष्टि बोला।
लंच के बाद साक्षी प्रॉजेक्ट लेकर राघव के पास पहुंच गई। प्रॉजेक्ट देखने के बाद राघव बोला...इतने विघ्न के बाद आखिरकार ये प्रोजैक्ट पूरा हों ही गया। साक्षी मुझे लगता हैं अगर श्रृष्टि तुम्हारे टीम में नहीं होती तो ये प्रोजैक्ट और लंबा खीच जाता। क्यों मैं सही कह रहा हूं न?
"सर आप मुझ पर उंगली उठा रहें हों। इशारों इशारों में मुझे आलसी कह रहें हों।" खीजते हुए साक्षी बोलीं
राघव...मैंने ऐसा तो नहीं कहा खैर छोड़ो अब तुम जाओ और आज रेस्ट कर लो कल से नया काम दूंगा और हा कल तुम सभी को उपहार भी तो देना हैं। यहां उपहार श्रृष्टि के लिए जीतना खास होगा उतना ही खास तुम्हारे लिऐ भी होगा। अब जब खाली समय हैं? तो बैठकर सोच लेना वो खास उपहार क्या हों सकता हैं?
ख़ास उपहार मिलने की बात से साक्षी मुस्कान बिखेरते हुए चली गई (उसके लिए खास का मतलब कुछ और ही था ) उसके जाते ही राघव पूर्वात बैठ कर रहस्यमई मुस्कान से मुस्कुराने लग गया।
यहां साक्षी साथियों के पास वापस आकर रेस्ट करने की बात कहीं तो सब के चेहरे पर मुस्कान आ गया।
रेस्ट करने का ऑर्डर मिल चुका था तो सभी लग गए बतियाने, विविध प्रकार की बाते होने लग गइ। बातों के दौरान एक दूसरे की टांगे खींचा जा रहा था।
नाराज होने के जगह सभी लुफ्त ले रहें थे। धीरे धीरे बातों का सिलसिला आगे बड़ा बढ़ते बढ़ते सहसा एक सहयोगी अपने प्रेम जीवन का बखान सुनाने लग गया। जिसे सुनकर साक्षी बोलीं...श्रृष्टि जरा अपने लव लाईफ के बारे मे भी कुछ बताओं, हम भी तो जानें इतनी खूबसूरत भोली सी सूरत वाली लड़की का कोई तो परवाना होगा जो अपने शब्दों में तुम्हारी तारीफ़ करता हों तुम्हारे नाज नखरे सहता हों।
"ऐसा कोई नहीं है अगर होता तो मैं बता देती।" शरमाई सी श्रृष्टि बोलीं।
"चल झूठी" एक धाप श्रृष्टि के पीठ पर जमाते हुए साक्षी बोलीं।
"मैं झूठ नहीं बोल रहीं हूं चलो माना कि मैं झूठ बोल रहीं हूं। सच आप ही बता दो। आपके लाईफ में कोई तो ऐसा होगा जिसे आप पसन्द करती हों जिसे देखकर आपके दिल का सितार राग छेड़ देता हों।" पलटवार करते हुए श्रृष्टि बोलीं।
"हां है एक, जिसे कई बार इशारा दे चुकी हूं पर निर्मोही ध्यान ही नहीं देता हर बार मेरे चाहत की नाव को बीच धार में डूबा देता हैं।" अफसोस जताते हुए साक्षी ने दिल की बात कह दिया।
"कौन है, कौन है वो निर्मोही" श्रृष्टि सहित सभी उतावला होकर एक स्वर में बोला।
सभी के पूछने पर भी साक्षी ने उस शख्स के बारे मे कुछ नहीं बताया। बार बार पुछा गया प्रत्येक बार सिर्फ नहीं का प्रतिउत्तर आया। अंतः सभी ने इस मुददे को टालकर बातों की दिशा बादल दिया। बातों बातों में यह दिन बीत गया और सभी अपने अपने घरों को ओर प्रस्थान कर गए।
जारी रहेगा….
क्या एक प्रेम कहानी जन्म ले रही है या फिर दो कलि और एक माली ?????
अब ये ख़ास उपहार क्या है ????? सब को असमंजस में डाला हुआ है ??
क्या राघव अपनी जेब से कोई नया पत्ता निकालेगा ????
चलिए जानते है अगले एपिसोड में ..............बने रहिये