07-08-2024, 03:23 PM
भाग - 7
"बाते बहुत हुआ (श्रृष्टि को बीच में रोकर राघव आगे बोला) श्रृष्टि जी आपको एक मौका और दे रहा हूं अबकी मुझे निराश न करना। (फिर साक्षी से मुखातिब होकर बोला) साक्षी न्यू ज्वाइनी से परिचय हों गया हों तो काम पर लग जाओ।" इतना बोलकर राघव चला गया।
बिना कारण, बिना कोई गलती किए पहले ही दिन बॉस से सुनने को मिला जिस कारण श्रृष्टि उदास सी सिर झुकाए खडी थीं और साक्षी अपने साथियों को थम्स अप का इशारा करते हुए कह रहीं थीं उनका पैंतरा काम कर गया फ़िर श्रृष्टि के पास जाकर उसके कंधे पर हाथ रखकर बोलीं... श्रृष्टि (बस इतना बोलकर रूकी फिर चासनी की मिठास शब्दों में घोलकर आगे बोलीं) श्रृष्टि माना कि जो हुआ उसमे सारी गलती हमारी थीं फ़िर भी गलती का ठीकरा तुम पर ही फोड़ दिया इसके लिए माफ कर देना यार।
इतना बोलकर अपने साथियों की और देखकर इशारा किया तो वो लोग भी अपना अपना तर्क देकर माफ़ी मांगने लग गए। सभी को माफी मांगते देखकर श्रृष्टि हल्का सा मुस्कुरा दिया फिर मन ही मन बोलीं...तुम लोग जीतना मुझे बुद्धू समझ रहें हों मैं उतनी हूं नहीं, हां माना की मैं भोली दिखती हूं और कुछ हद तक भोली भी हूं भी पर इतना भी नहीं कि तुम लोगों की चापलूसी समझ न पाऊं, मैं तुम जैसे लोगों का सामना पहले भी कर चुकी हूं और अच्छा किया जो पहले ही दिन तुम लोगों ने अपनी असलियत दिखा दी।
श्रृष्टि ख़ुद से बाते करने में लगीं हुईं थीं और साक्षी एक बार फिर से बोलीं...अरे यार तुम न ज्यादा तनाव न लो हम ख़ुद सर से बात करेंगे और कहेंगे तुम्हारी कोई गलती नहीं थी हम ने ही तुम्हें काम करने से रोका था। (फ़िर अपने साथियों की ओर देखकर बोलीं) अरे तुम लोग भी कुछ बोलों।
सभी हामी भरते हुए अपनी अपनी बात कहने लग गए और श्रृष्टि मुस्कुराकर देखते हुए बोलीं... चलो अच्छा हुआ तुम लोगों को गलती का आभास तो हुआ। अब कुछ काम कर लेते हैं। आखिर हमे पगार गप्पे हाकने की नहीं बल्कि काम करने की मिलती हैं।
श्रृष्टि के कहने के बाद सभी काम में जुट गए। श्रृष्टि के पास पहले से ही काम का अनुभव था इसलिए उसे समझने में ज्यादा दिक्कत नहीं हुआ। बीच बीच में अल्प विराम लिया जिसे साक्षी और उसके साथियों ने लंबा खींचना चाहा मगर श्रृष्टि उनके मनसा पर पानी फेरते हुए अपने काम में लग गई। मजबूरन उन्हें भी श्रृष्टि के साथ काम में लगना पड़ा।
शाम के वक्त सभी बैठें चाय की चुस्कियां ले रहे थे साथ ही हसीं ठिठौली भी कर रहें थे। उसी वक्त राघव वहा आया, द्वार भिड़ा हुआ था लेकिन पूरी तरह बंद नहीं था। लगभग चार इंची जितना झिर्री खुला हुआ था। वहा से भीतर देखा तो उसे श्रृष्टि दिखा जो चाय की चुस्कियां लेते हुए हंस हंस कर बात कर रहीं थीं। यह देखकर राघव की निगाह श्रृष्टि पर ठहर गइ।
सहसा श्रृष्टि को लगा द्वार पर कोई हैं। इसलिए अपनी निगाह उस ओर कर लिया पर वहा उसे कोई नहीं दिखा तो भ्रम समझकर जानें दिया।
एक एक कर लगभग तीन दिन का समय बीत गया। इन तीन दिनों में साक्षी और उसके साथियों ने कई नए पैंतरे आजमाए ताकि वो श्रृष्टि को राघव की नजरो में गिरा सकें मगर ऐसा हों नहीं पाया बल्की इसका उल्टा ही असर हुए। काम के प्रति श्रृष्टि की लगन और जज्बा देखकर साक्षी के साथी श्रृष्टि की कायल हों गए। मगर साक्षी इससे ओर ज्यादा चीड़ गई इसलिए अपने तरकश में से एक और पैंतरा ढूंढ़ निकाला।
अगले दिन सभी काम में व्यस्त थे और साक्षी संडास जानें की बात कहकर निकल आई और जा पहुंची राघव के पास, साक्षी को आया देखकर राघव बोला...साक्षी कोई जरुरी काम था जो तुम इस वक्त मेंरे पास आई हों जबकि मैंने तुम्हें बुलाया भी नहीं!
साक्षी... हां सर बहुत जरुरी काम हैं।
राघव...अच्छा, चलो अपना जरुरी काम बाद में बताना पहले न्यू ज्वाइन श्रृष्टि के बारे मे बताओं वो काम कैसे कर रहीं हैं।
"ओ हो नई ज्वाइन श्रृष्टि की बडी फिक्र हैं।" मन ही मन इतना बोलकर अपने तरकश से तीर निकाला और राघव पर छोड़ दिया... सर मै श्रृष्टि के बारे में ही बात करने आई थीं। वो न अपने काम के प्रति बिलकुल भी ज़िम्मेदार नहीं हैं। अपने सही कहा था उसे नौकरी देकर अपने खुद ही अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार लिया हैं।
"ऐसा हैं।" खेद व्यक्त करते हुए ऐसे बोला जैसे उसे उसकी गलती का पछतावा हो रहा हो। तो साक्षी थोड़ ओर बढ़ा चढ़कर बोलीं... सर ये श्रृष्टि न, काम कम करती हैं और गप्पे ज्यादा हाकती हैं। कितना भी कह लो सुनती ही नहीं हैं। मैं तो उससे परेशान हों चुकी हूं। मैं और मेरे साथी काम करते हैं और वो हम में से किसी को काम करने से रोककर बतियाने लग जाती हैं।
"ये तो श्रृष्टि बहुत गलत कर रहीं हैं।" पूरी बात राघव गुस्सैल लहजे में कहा तो साक्षी आगे बोलीं... सर मेरा काम था आपको अगाह करना जो मैंने कर दिया अब आपको जो करना हैं वो करे बाद में मुझे न कहना कि मैंने आपको पहले से अगाह क्यों नहीं किया?
राघव... ठीक हैं तुम जाओ ओर अपना काम करो, श्रृष्टि का क्या करना हैं? मैं सोचता हूं।
श्रृष्टि वहां जी जान लगाकर काम कर रहीं है और यहां साक्षी संडास जानें का बहाना करके श्रृष्टि के खिलाफ राघव के कान भरके चली गईं। साक्षी के जाते ही रिवोल्विंग चेयर को थोडा पीछे खिसकाया फ़िर एक टांग पर टांग चढ़ाए दोनों हाथों को सिर के पीछे लगाकर रिवोल्विंग चेयर के पूस्त से टिकाए पैर को नाचते हुए रहस्यमई मुस्कान से मुस्कुराने लग गया।
[i]जायिगा नहीं अभी भाग चालू है [/i]
"बाते बहुत हुआ (श्रृष्टि को बीच में रोकर राघव आगे बोला) श्रृष्टि जी आपको एक मौका और दे रहा हूं अबकी मुझे निराश न करना। (फिर साक्षी से मुखातिब होकर बोला) साक्षी न्यू ज्वाइनी से परिचय हों गया हों तो काम पर लग जाओ।" इतना बोलकर राघव चला गया।
बिना कारण, बिना कोई गलती किए पहले ही दिन बॉस से सुनने को मिला जिस कारण श्रृष्टि उदास सी सिर झुकाए खडी थीं और साक्षी अपने साथियों को थम्स अप का इशारा करते हुए कह रहीं थीं उनका पैंतरा काम कर गया फ़िर श्रृष्टि के पास जाकर उसके कंधे पर हाथ रखकर बोलीं... श्रृष्टि (बस इतना बोलकर रूकी फिर चासनी की मिठास शब्दों में घोलकर आगे बोलीं) श्रृष्टि माना कि जो हुआ उसमे सारी गलती हमारी थीं फ़िर भी गलती का ठीकरा तुम पर ही फोड़ दिया इसके लिए माफ कर देना यार।
इतना बोलकर अपने साथियों की और देखकर इशारा किया तो वो लोग भी अपना अपना तर्क देकर माफ़ी मांगने लग गए। सभी को माफी मांगते देखकर श्रृष्टि हल्का सा मुस्कुरा दिया फिर मन ही मन बोलीं...तुम लोग जीतना मुझे बुद्धू समझ रहें हों मैं उतनी हूं नहीं, हां माना की मैं भोली दिखती हूं और कुछ हद तक भोली भी हूं भी पर इतना भी नहीं कि तुम लोगों की चापलूसी समझ न पाऊं, मैं तुम जैसे लोगों का सामना पहले भी कर चुकी हूं और अच्छा किया जो पहले ही दिन तुम लोगों ने अपनी असलियत दिखा दी।
श्रृष्टि ख़ुद से बाते करने में लगीं हुईं थीं और साक्षी एक बार फिर से बोलीं...अरे यार तुम न ज्यादा तनाव न लो हम ख़ुद सर से बात करेंगे और कहेंगे तुम्हारी कोई गलती नहीं थी हम ने ही तुम्हें काम करने से रोका था। (फ़िर अपने साथियों की ओर देखकर बोलीं) अरे तुम लोग भी कुछ बोलों।
सभी हामी भरते हुए अपनी अपनी बात कहने लग गए और श्रृष्टि मुस्कुराकर देखते हुए बोलीं... चलो अच्छा हुआ तुम लोगों को गलती का आभास तो हुआ। अब कुछ काम कर लेते हैं। आखिर हमे पगार गप्पे हाकने की नहीं बल्कि काम करने की मिलती हैं।
श्रृष्टि के कहने के बाद सभी काम में जुट गए। श्रृष्टि के पास पहले से ही काम का अनुभव था इसलिए उसे समझने में ज्यादा दिक्कत नहीं हुआ। बीच बीच में अल्प विराम लिया जिसे साक्षी और उसके साथियों ने लंबा खींचना चाहा मगर श्रृष्टि उनके मनसा पर पानी फेरते हुए अपने काम में लग गई। मजबूरन उन्हें भी श्रृष्टि के साथ काम में लगना पड़ा।
शाम के वक्त सभी बैठें चाय की चुस्कियां ले रहे थे साथ ही हसीं ठिठौली भी कर रहें थे। उसी वक्त राघव वहा आया, द्वार भिड़ा हुआ था लेकिन पूरी तरह बंद नहीं था। लगभग चार इंची जितना झिर्री खुला हुआ था। वहा से भीतर देखा तो उसे श्रृष्टि दिखा जो चाय की चुस्कियां लेते हुए हंस हंस कर बात कर रहीं थीं। यह देखकर राघव की निगाह श्रृष्टि पर ठहर गइ।
सहसा श्रृष्टि को लगा द्वार पर कोई हैं। इसलिए अपनी निगाह उस ओर कर लिया पर वहा उसे कोई नहीं दिखा तो भ्रम समझकर जानें दिया।
एक एक कर लगभग तीन दिन का समय बीत गया। इन तीन दिनों में साक्षी और उसके साथियों ने कई नए पैंतरे आजमाए ताकि वो श्रृष्टि को राघव की नजरो में गिरा सकें मगर ऐसा हों नहीं पाया बल्की इसका उल्टा ही असर हुए। काम के प्रति श्रृष्टि की लगन और जज्बा देखकर साक्षी के साथी श्रृष्टि की कायल हों गए। मगर साक्षी इससे ओर ज्यादा चीड़ गई इसलिए अपने तरकश में से एक और पैंतरा ढूंढ़ निकाला।
अगले दिन सभी काम में व्यस्त थे और साक्षी संडास जानें की बात कहकर निकल आई और जा पहुंची राघव के पास, साक्षी को आया देखकर राघव बोला...साक्षी कोई जरुरी काम था जो तुम इस वक्त मेंरे पास आई हों जबकि मैंने तुम्हें बुलाया भी नहीं!
साक्षी... हां सर बहुत जरुरी काम हैं।
राघव...अच्छा, चलो अपना जरुरी काम बाद में बताना पहले न्यू ज्वाइन श्रृष्टि के बारे मे बताओं वो काम कैसे कर रहीं हैं।
"ओ हो नई ज्वाइन श्रृष्टि की बडी फिक्र हैं।" मन ही मन इतना बोलकर अपने तरकश से तीर निकाला और राघव पर छोड़ दिया... सर मै श्रृष्टि के बारे में ही बात करने आई थीं। वो न अपने काम के प्रति बिलकुल भी ज़िम्मेदार नहीं हैं। अपने सही कहा था उसे नौकरी देकर अपने खुद ही अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार लिया हैं।
"ऐसा हैं।" खेद व्यक्त करते हुए ऐसे बोला जैसे उसे उसकी गलती का पछतावा हो रहा हो। तो साक्षी थोड़ ओर बढ़ा चढ़कर बोलीं... सर ये श्रृष्टि न, काम कम करती हैं और गप्पे ज्यादा हाकती हैं। कितना भी कह लो सुनती ही नहीं हैं। मैं तो उससे परेशान हों चुकी हूं। मैं और मेरे साथी काम करते हैं और वो हम में से किसी को काम करने से रोककर बतियाने लग जाती हैं।
"ये तो श्रृष्टि बहुत गलत कर रहीं हैं।" पूरी बात राघव गुस्सैल लहजे में कहा तो साक्षी आगे बोलीं... सर मेरा काम था आपको अगाह करना जो मैंने कर दिया अब आपको जो करना हैं वो करे बाद में मुझे न कहना कि मैंने आपको पहले से अगाह क्यों नहीं किया?
राघव... ठीक हैं तुम जाओ ओर अपना काम करो, श्रृष्टि का क्या करना हैं? मैं सोचता हूं।
श्रृष्टि वहां जी जान लगाकर काम कर रहीं है और यहां साक्षी संडास जानें का बहाना करके श्रृष्टि के खिलाफ राघव के कान भरके चली गईं। साक्षी के जाते ही रिवोल्विंग चेयर को थोडा पीछे खिसकाया फ़िर एक टांग पर टांग चढ़ाए दोनों हाथों को सिर के पीछे लगाकर रिवोल्विंग चेयर के पूस्त से टिकाए पैर को नाचते हुए रहस्यमई मुस्कान से मुस्कुराने लग गया।
[i]जायिगा नहीं अभी भाग चालू है [/i]