07-08-2024, 02:53 PM
भाग - 6
कहते हैं मुश्किलों के बाद मिली हुई खुशियां अनमोल होती हैं। ठीक वैसे ही श्रृष्टि को मिली हुई खुशियां अनमोल थी। एक दिन बाद श्रृष्टि को नौकरी ज्वाइन करना था। मगर उससे पहले श्रृष्टि अपने एक मात्र सहेली समीक्षा से मिली और उसे मुश्किलों के बाद मिली खुशियों का बखान सुना डाला। दोस्त यार सहेली सभी ऐसे ही मौके के तलाश में रहती है। तो समीक्षा भला ऐसा मौका हाथ से क्यों जाने देती। नई स्कूटी और नौकरी मिलने की सूचना पाते ही समीक्षा बोल पड़ी...नई स्कूटी नई नौकरी श्रृष्टि तेरे तो बारे नियारे हों गये। अब बता पार्टी कब दे रहीं हैं।
श्रृष्टि... अरे अरे ठहर जा लुटेरी, गांव बसा नहीं की लूटने पहुंच गई। पहले सैलरी तो मिल जानें दे फिर पार्टी ले लेना।
"श्रृष्टि ( दो तीन चपत लगाकर समीक्षा आगे बोलीं) मैं लुटेरी बता, बता मैं लुटेरी हूं।"
"अरे नहीं रे (समीक्षा को कोरिया कर श्रृष्टि आगे बोलीं) तू तो मेरी दोस्त है वो भी अच्छी वाली।
समीक्षा...अच्छा, अच्छा ठीक है। तुझे जब पार्टी देना हों दे देना। मेरे दोस्त को नई नौकरी मिलने की खुशी में आज पार्टी समीक्षा देगी। मगर जायेंगे तेरी नई फटफटिया पे।
इसके बाद दोनों सहेली श्रृष्टि की नई दुपहिया पर सवार हों चल पड़ी। करीब करीब दो से तीन घंटे में पार्टी मानकर दोनों सहेलियां लौट आईं।
अगले दिन श्रृष्टि तैयार होकर अपने लिए सभी जरूरी चीजों को लेकर जैसे ही कमरे से बहार निकली सामने माताश्री हाथ में दही का कटोरा और होंठो पर मुस्कान लिए खडी मिली।
माताश्री ने एक चम्मच दही श्रृष्टि के मुंह में डाला जिसे खाते हुए श्रृष्टि बोलीं... मां आज एक चम्मच से कुछ नहीं होगा आज तो पूरा कटोरी भर दही खाने के बाद ही जाऊंगी।
इतना बोलकर माताश्री के हाथ से कटोरी झपट लिया और एक एक चम्मच करके पूरा कटोरी खाली कर दिया फ़िर कटोरी मां को थमा दिया। माताश्री एक चपत लगाया फ़िर बोलीं... मां से मशकरी कर रही हैं।
"मेरी भोली मां" इतना बोलकर मां से लिपट गईं फिर "बाय मां शाम को मिलते है" बोलकर चली गई। नई स्कूटी और चालक भी उतना ही बेहतरीन, हवा से बातें करते हुए कुछ ही वक्त में श्रृष्टि दफ़्तर पहुंच गई।
पहला दिन कहा बैठना हैं, काम क्या करना हैं? ज्यादा कुछ जानकारी नहीं था तो रिसेप्शन पर जाकर तन्वी से पुछा, एक और इशारा करते हुए तन्वी बोली... मैम आप वहा जाकर बैठिए बाकी काम क्या करना हैं राघव सर ही बताएंगे।
बताई हुई जगह पर जाकर श्रृष्टि बैठ गई और दफ़्तर में मौजूद लोगों के हाव भाव का जायजा लेने लग गई। बरहाल कुछ ही देर में श्रृष्टि को बुलावा आ गया। बुलावा आते ही श्रृष्टि राघव के पास पहुंच गईं।
आज श्रृष्टि का मुखड़ा खिला हुआ था। लबो पर मन मोह लेने वाली मुस्कान तैर रहीं थीं। जिसे देखकर राघव की निगाहें एक बार फिर श्रृष्टि के मुखड़े पर अटक गई। दो चार पल अपनी निगाहें टीकाये रखा फ़िर सिर झटक कर मन में बोला... इस लड़की में क्या जादू हैं जो मेरी निगाह उस पर अटक जाती है। ओहो मेरे साथ ये क्या हों रहा हैं? पहले तो कभी नहीं हुआ।
"सर मैं बैठ सकती हूं।" ये आवाज श्रृष्टि की थी। जो कानों से टकराते ही राघव तंद्रा मुक्त हुआ और अचकचाते हुए बोला... जी जी बिल्कुल बैठ जाइए।
थोडी बहुत बाते हुआ फ़िर राघव ने किसी को फ़ोन किया। दो चार मिनट का वक्त बीता ही था कि किसी ने बंद द्वार खटखटाया और भीतर आने की अनुमति मांगा। द्वार पर साक्षी थी जिसे
अनुमति मिलते ही भीतर आई फ़िर बोली... सर कुछ कम था?
राघव... साक्षी इनसे मिलो ये है श्रृष्टि अभी नई नई ज्वाइन किया हैं।
दोनों में हैलो हाय हुआ फ़िर साक्षी बोलीं... सर ये तो वहीं है जिनका साक्षत्कार आपने लिया था।
राघव.. हां, साक्षी तुम्हें जो प्रोजेक्ट मिला हुआ है अगले एक हफ्ते तक इनके साथ मिलकर काम करो (फ़िर श्रृष्टि से मुखातिब होकर आगे बोला) श्रृष्टि जी आप अगले एक हफ्ते तक साक्षी के साथ काम कीजिए। इस एक हफ्ते में मैं देखना चाहता हूं। आप अपना काम कितना जिम्मेदारी से करती हों। मुझे ठीक लगा तो एक हफ्ते बाद एक नई प्रोजेक्ट पर आप मेरे साथ काम करेंगे।
नई नई ज्वाइन किया और सिर्फ़ एक हफ्ते बाद नया प्रोजेक्ट मिलना, सिर्फ मिलना ही नहीं बल्कि सीईओ के साथ काम करना मतलब श्रृष्टि के लिए बहुत बडी बात हैं। इसलिए श्रृष्टि खुशी खुशी हां कह दिया मगर राघव की बात साक्षी को पसन्द नहीं आई। मुंह भिचकाते हुए साक्षी मन में बोलीं... मेरे साथ तो कभी किसी प्रोजेक्ट पर काम करने को राज़ी नहीं हुए और नई आई लड़की के साथ सिर्फ़ एक हफ्ते बाद काम करने को राज़ी हों गए। पक्का कुछ न कुछ रिश्ता दोनों में हैं मगर कोई बात नहीं इस लड़की को पास या फेल करना मेरे हाथ में हैं। मैं नहीं तो किसी और को भी आपके साथ काम नहीं करने दूंगी।
कुछ ओर जरूरी बातें करने के बाद दोनों को जानें को कहा। दोनों के जाते ही राघव रिवोलविंग चेयर को थोडा पीछे खिसकाया फिर एक टांग पर दुसरी टांग चढ़ाकर, दोनों हाथों को सिर के पीछे बांधकर सिर सहित रिवोलविंग चेयर के पुस्त से टिका दिया और पैर को नचाते हुए मंद मंद मुस्कुराने लग गया। राघव का यूं मुस्कुराने का ढंग अलग ही कहानी बयां कर रहा था। ऐसा लग रहा था राघव के मस्तिस्क में कुछ तो चल रहा हैं।
क्रमश:
कहते हैं मुश्किलों के बाद मिली हुई खुशियां अनमोल होती हैं। ठीक वैसे ही श्रृष्टि को मिली हुई खुशियां अनमोल थी। एक दिन बाद श्रृष्टि को नौकरी ज्वाइन करना था। मगर उससे पहले श्रृष्टि अपने एक मात्र सहेली समीक्षा से मिली और उसे मुश्किलों के बाद मिली खुशियों का बखान सुना डाला। दोस्त यार सहेली सभी ऐसे ही मौके के तलाश में रहती है। तो समीक्षा भला ऐसा मौका हाथ से क्यों जाने देती। नई स्कूटी और नौकरी मिलने की सूचना पाते ही समीक्षा बोल पड़ी...नई स्कूटी नई नौकरी श्रृष्टि तेरे तो बारे नियारे हों गये। अब बता पार्टी कब दे रहीं हैं।
श्रृष्टि... अरे अरे ठहर जा लुटेरी, गांव बसा नहीं की लूटने पहुंच गई। पहले सैलरी तो मिल जानें दे फिर पार्टी ले लेना।
"श्रृष्टि ( दो तीन चपत लगाकर समीक्षा आगे बोलीं) मैं लुटेरी बता, बता मैं लुटेरी हूं।"
"अरे नहीं रे (समीक्षा को कोरिया कर श्रृष्टि आगे बोलीं) तू तो मेरी दोस्त है वो भी अच्छी वाली।
समीक्षा...अच्छा, अच्छा ठीक है। तुझे जब पार्टी देना हों दे देना। मेरे दोस्त को नई नौकरी मिलने की खुशी में आज पार्टी समीक्षा देगी। मगर जायेंगे तेरी नई फटफटिया पे।
इसके बाद दोनों सहेली श्रृष्टि की नई दुपहिया पर सवार हों चल पड़ी। करीब करीब दो से तीन घंटे में पार्टी मानकर दोनों सहेलियां लौट आईं।
अगले दिन श्रृष्टि तैयार होकर अपने लिए सभी जरूरी चीजों को लेकर जैसे ही कमरे से बहार निकली सामने माताश्री हाथ में दही का कटोरा और होंठो पर मुस्कान लिए खडी मिली।
माताश्री ने एक चम्मच दही श्रृष्टि के मुंह में डाला जिसे खाते हुए श्रृष्टि बोलीं... मां आज एक चम्मच से कुछ नहीं होगा आज तो पूरा कटोरी भर दही खाने के बाद ही जाऊंगी।
इतना बोलकर माताश्री के हाथ से कटोरी झपट लिया और एक एक चम्मच करके पूरा कटोरी खाली कर दिया फ़िर कटोरी मां को थमा दिया। माताश्री एक चपत लगाया फ़िर बोलीं... मां से मशकरी कर रही हैं।
"मेरी भोली मां" इतना बोलकर मां से लिपट गईं फिर "बाय मां शाम को मिलते है" बोलकर चली गई। नई स्कूटी और चालक भी उतना ही बेहतरीन, हवा से बातें करते हुए कुछ ही वक्त में श्रृष्टि दफ़्तर पहुंच गई।
पहला दिन कहा बैठना हैं, काम क्या करना हैं? ज्यादा कुछ जानकारी नहीं था तो रिसेप्शन पर जाकर तन्वी से पुछा, एक और इशारा करते हुए तन्वी बोली... मैम आप वहा जाकर बैठिए बाकी काम क्या करना हैं राघव सर ही बताएंगे।
बताई हुई जगह पर जाकर श्रृष्टि बैठ गई और दफ़्तर में मौजूद लोगों के हाव भाव का जायजा लेने लग गई। बरहाल कुछ ही देर में श्रृष्टि को बुलावा आ गया। बुलावा आते ही श्रृष्टि राघव के पास पहुंच गईं।
आज श्रृष्टि का मुखड़ा खिला हुआ था। लबो पर मन मोह लेने वाली मुस्कान तैर रहीं थीं। जिसे देखकर राघव की निगाहें एक बार फिर श्रृष्टि के मुखड़े पर अटक गई। दो चार पल अपनी निगाहें टीकाये रखा फ़िर सिर झटक कर मन में बोला... इस लड़की में क्या जादू हैं जो मेरी निगाह उस पर अटक जाती है। ओहो मेरे साथ ये क्या हों रहा हैं? पहले तो कभी नहीं हुआ।
"सर मैं बैठ सकती हूं।" ये आवाज श्रृष्टि की थी। जो कानों से टकराते ही राघव तंद्रा मुक्त हुआ और अचकचाते हुए बोला... जी जी बिल्कुल बैठ जाइए।
थोडी बहुत बाते हुआ फ़िर राघव ने किसी को फ़ोन किया। दो चार मिनट का वक्त बीता ही था कि किसी ने बंद द्वार खटखटाया और भीतर आने की अनुमति मांगा। द्वार पर साक्षी थी जिसे
अनुमति मिलते ही भीतर आई फ़िर बोली... सर कुछ कम था?
राघव... साक्षी इनसे मिलो ये है श्रृष्टि अभी नई नई ज्वाइन किया हैं।
दोनों में हैलो हाय हुआ फ़िर साक्षी बोलीं... सर ये तो वहीं है जिनका साक्षत्कार आपने लिया था।
राघव.. हां, साक्षी तुम्हें जो प्रोजेक्ट मिला हुआ है अगले एक हफ्ते तक इनके साथ मिलकर काम करो (फ़िर श्रृष्टि से मुखातिब होकर आगे बोला) श्रृष्टि जी आप अगले एक हफ्ते तक साक्षी के साथ काम कीजिए। इस एक हफ्ते में मैं देखना चाहता हूं। आप अपना काम कितना जिम्मेदारी से करती हों। मुझे ठीक लगा तो एक हफ्ते बाद एक नई प्रोजेक्ट पर आप मेरे साथ काम करेंगे।
नई नई ज्वाइन किया और सिर्फ़ एक हफ्ते बाद नया प्रोजेक्ट मिलना, सिर्फ मिलना ही नहीं बल्कि सीईओ के साथ काम करना मतलब श्रृष्टि के लिए बहुत बडी बात हैं। इसलिए श्रृष्टि खुशी खुशी हां कह दिया मगर राघव की बात साक्षी को पसन्द नहीं आई। मुंह भिचकाते हुए साक्षी मन में बोलीं... मेरे साथ तो कभी किसी प्रोजेक्ट पर काम करने को राज़ी नहीं हुए और नई आई लड़की के साथ सिर्फ़ एक हफ्ते बाद काम करने को राज़ी हों गए। पक्का कुछ न कुछ रिश्ता दोनों में हैं मगर कोई बात नहीं इस लड़की को पास या फेल करना मेरे हाथ में हैं। मैं नहीं तो किसी और को भी आपके साथ काम नहीं करने दूंगी।
कुछ ओर जरूरी बातें करने के बाद दोनों को जानें को कहा। दोनों के जाते ही राघव रिवोलविंग चेयर को थोडा पीछे खिसकाया फिर एक टांग पर दुसरी टांग चढ़ाकर, दोनों हाथों को सिर के पीछे बांधकर सिर सहित रिवोलविंग चेयर के पुस्त से टिका दिया और पैर को नचाते हुए मंद मंद मुस्कुराने लग गया। राघव का यूं मुस्कुराने का ढंग अलग ही कहानी बयां कर रहा था। ऐसा लग रहा था राघव के मस्तिस्क में कुछ तो चल रहा हैं।
क्रमश: