07-08-2024, 02:50 PM
श्रृष्टि को नौकरी मिल चुका हैं। ये बात घर आकर मां को बताया तो मां भी बेटी के खुशी में सारिका हों गई। मगर मां की ख़ुशी में सेंधमारी करतें हुए ख़ुद के साथ घटी एक एक घटना मां को कह सुनाया उसके बाद बोलीं...मां आपके बला उतराई और दही शक्कर खिलाने के बाद भी मुझे कितनी परेशानी का सामना करना पड़ा तब कही जाकर नौकरी मिला।
"श्रृष्टि बेटा तुम इस घटना हो नकारत्मक नजरिए से क्यों देख रहीं है? तुम इस घटना को सकारात्मक नजरिया से भी देख सकती हों। जरा सोचकर देखो अगर मैं तुम्हारी बला न उतारती, तुम्हें दही शक्कर न खिलाती तो हों सकता हैं तुम्हारी मुस्किले ओर बढ़ जाती फिर जो नौकरी तुम्हें मिला हैं वो भी नहीं मिलती।"
मां के कहने पर श्रृष्टि अपने साथ घटी एक एक घटना को फिर से रिवाइन करने लग गई तब उसे समझ आया की मां का कहना सही हैं तब श्रृष्टि बोलीं... मां आप कह तो सही रहीं हों अब देखो न कोई ऑटो वाला उस रूट पर जानें को तैयार नहीं हों रहा था। ऐसे में एक ऑटो वाला परमिट न होते हुए भी मुझे उस रूट पर लेकर गया। अनजान होते हुए भी मेरा प्रमाण पत्र पुस्तिका वापस लौटाने आया। मेरा प्रमाण पत्र पुस्तिका वहां के सीईओ के हाथ लगना उनके जरिए मुझ तक पहुंचना, साक्षत्कार स्थगित होने के बाद भी मेरा साक्षत्कार सीईओ द्वारा लेना जबकि वो किसी का साक्षत्कार नहीं लेते हैं।
"इसलिए तो कहते है जो भी होता है अच्छे के लिए होता है। अब बस मन लगाकर ईमानदारी से नौकरी करना ओर एक बात इन अमीर लोगों से उतना ही वास्ता रखना जीतना काम के लिए जरूरी हों क्योंकि इनकी फितरत आला दर्जे की होती हैं। ये लोग सही गलत नहीं देखते, बस अपना फायदा देखते हैं।"
श्रृष्टि... मैं जानती हूं आप ये बात क्यों कह रहीं हों। आपकी बताई सभी बातों का ध्यान रखूंगी।
मां ने ऐसी बातें क्यों कहा? ये तो सिर्फ़ वो जानें या फिर श्रृष्टि जानें बरहाल समय का पहिया घुमा और देखते ही देखते तीन दिन बीत गया। आज श्रृष्टि को एक मेल आया जिसमे दो दिन बाद नौकरी ज्वाइन करने की बात कहा गया था। खुशी खुशी ये बात श्रृष्टि ने मां को बता दिया।
अगले दिन सुबह के लगभग ग्यारह बजे करीब माताश्री कोई जरूरी काम बताकर कहीं चली गईं। जाना तो श्रृष्टि भी चाहती थीं मगर माताश्री उसे लेकर नहीं गईं। जिस भी काम को निपटाने गई थी उसे निपटाकर माताश्री दोपहर को लौट आईं।
शाम के वक्त दोनो मां बेटी चाय का लुप्त ले रहीं थीं उसी वक्त किसी ने अपने आगमन का संदेश द्वार पर लगी घंटी बजाकर दिया। तब माताश्री बोलीं... श्रृष्टि बेटा जाकर देख तो कौन आया हैं?
माताश्री के कहते ही श्रृष्टि बहार गई। वहां एक लड़का चमचमाती न्यू स्कूटी के साथ खडा था। उसके पास जाकर श्रृष्टि बोलीं...जी बोलिए क्या काम था?
"जी आपका ही नाम श्रृष्टि हैं।"
श्रृष्टि...जी मेरा ही नाम श्रृष्टि हैं। लेकिन आपको मूझसे क्या काम?
"जी आप ही से काम हैं ये स्कूटी जो आपको सौंपना हैं।"
श्रृष्टि... मुझे पर क्यों? मैंने तो किसी तरह का कोई ऑर्डर नहीं दिया।
"श्रृष्टि बेटा ले लो ये तुम्हारे लिए ही हैं।" माताश्री ने पीछे से बोला तो श्रृष्टि मां की और पलटकर देखा तब माताश्री ने हा में सिर हिला दिया तब कहीं जाकर श्रृष्टि ने स्कूटी की चाबी लिया और वापस पलट कर मां के पास जाकर मां से गले मिलते हुए बोलीं... मां इसकी क्या जरूरत थीं?
"जरूरत थी बेटा, मैं बहुत दिनों से सोच रहीं थीं तुम्हें एक स्कूटी दिलवाऊँ लेकिन कोई खास मौका नहीं मिल रहा था। अब जब मौका मिला तो मैंने भी मौका ताड़ लिया अब मेरी बेटी को नौकरी पर जानें के लिऐ ऑटो की प्रतीक्षा नहीं करना पड़ेगा।"
श्रृष्टि…. मां पर….।
"पर वर छोड़ और अपनी मां को अपनी नई स्कूटी की सवारी करवा।"
कुछ ही क्षण में दोनों मां बेटी दुपहिया पर सवार होकर घूमने चल दिया। श्रृष्टि के लिए मानो खुशियों का अंबर लग गया पहले कितनी सारी मुस्किलों का सामना करने के बाद नौकरी मिला और अब दुबारा उन्ही मुस्किलों का सामना न करना पड़े सिर्फ इसलिए माताश्री ने उसे न्यू स्कूटी दिलवा दिया।
जारी रहेगा... बने रहिये .....
आज के इस एपिसोड में कुछ खास ऐसी कुरियोसिटी जैसा तो नहीं पर क्या जाने आगे क्या होनेवाला है .......
"श्रृष्टि बेटा तुम इस घटना हो नकारत्मक नजरिए से क्यों देख रहीं है? तुम इस घटना को सकारात्मक नजरिया से भी देख सकती हों। जरा सोचकर देखो अगर मैं तुम्हारी बला न उतारती, तुम्हें दही शक्कर न खिलाती तो हों सकता हैं तुम्हारी मुस्किले ओर बढ़ जाती फिर जो नौकरी तुम्हें मिला हैं वो भी नहीं मिलती।"
मां के कहने पर श्रृष्टि अपने साथ घटी एक एक घटना को फिर से रिवाइन करने लग गई तब उसे समझ आया की मां का कहना सही हैं तब श्रृष्टि बोलीं... मां आप कह तो सही रहीं हों अब देखो न कोई ऑटो वाला उस रूट पर जानें को तैयार नहीं हों रहा था। ऐसे में एक ऑटो वाला परमिट न होते हुए भी मुझे उस रूट पर लेकर गया। अनजान होते हुए भी मेरा प्रमाण पत्र पुस्तिका वापस लौटाने आया। मेरा प्रमाण पत्र पुस्तिका वहां के सीईओ के हाथ लगना उनके जरिए मुझ तक पहुंचना, साक्षत्कार स्थगित होने के बाद भी मेरा साक्षत्कार सीईओ द्वारा लेना जबकि वो किसी का साक्षत्कार नहीं लेते हैं।
"इसलिए तो कहते है जो भी होता है अच्छे के लिए होता है। अब बस मन लगाकर ईमानदारी से नौकरी करना ओर एक बात इन अमीर लोगों से उतना ही वास्ता रखना जीतना काम के लिए जरूरी हों क्योंकि इनकी फितरत आला दर्जे की होती हैं। ये लोग सही गलत नहीं देखते, बस अपना फायदा देखते हैं।"
श्रृष्टि... मैं जानती हूं आप ये बात क्यों कह रहीं हों। आपकी बताई सभी बातों का ध्यान रखूंगी।
मां ने ऐसी बातें क्यों कहा? ये तो सिर्फ़ वो जानें या फिर श्रृष्टि जानें बरहाल समय का पहिया घुमा और देखते ही देखते तीन दिन बीत गया। आज श्रृष्टि को एक मेल आया जिसमे दो दिन बाद नौकरी ज्वाइन करने की बात कहा गया था। खुशी खुशी ये बात श्रृष्टि ने मां को बता दिया।
अगले दिन सुबह के लगभग ग्यारह बजे करीब माताश्री कोई जरूरी काम बताकर कहीं चली गईं। जाना तो श्रृष्टि भी चाहती थीं मगर माताश्री उसे लेकर नहीं गईं। जिस भी काम को निपटाने गई थी उसे निपटाकर माताश्री दोपहर को लौट आईं।
शाम के वक्त दोनो मां बेटी चाय का लुप्त ले रहीं थीं उसी वक्त किसी ने अपने आगमन का संदेश द्वार पर लगी घंटी बजाकर दिया। तब माताश्री बोलीं... श्रृष्टि बेटा जाकर देख तो कौन आया हैं?
माताश्री के कहते ही श्रृष्टि बहार गई। वहां एक लड़का चमचमाती न्यू स्कूटी के साथ खडा था। उसके पास जाकर श्रृष्टि बोलीं...जी बोलिए क्या काम था?
"जी आपका ही नाम श्रृष्टि हैं।"
श्रृष्टि...जी मेरा ही नाम श्रृष्टि हैं। लेकिन आपको मूझसे क्या काम?
"जी आप ही से काम हैं ये स्कूटी जो आपको सौंपना हैं।"
श्रृष्टि... मुझे पर क्यों? मैंने तो किसी तरह का कोई ऑर्डर नहीं दिया।
"श्रृष्टि बेटा ले लो ये तुम्हारे लिए ही हैं।" माताश्री ने पीछे से बोला तो श्रृष्टि मां की और पलटकर देखा तब माताश्री ने हा में सिर हिला दिया तब कहीं जाकर श्रृष्टि ने स्कूटी की चाबी लिया और वापस पलट कर मां के पास जाकर मां से गले मिलते हुए बोलीं... मां इसकी क्या जरूरत थीं?
"जरूरत थी बेटा, मैं बहुत दिनों से सोच रहीं थीं तुम्हें एक स्कूटी दिलवाऊँ लेकिन कोई खास मौका नहीं मिल रहा था। अब जब मौका मिला तो मैंने भी मौका ताड़ लिया अब मेरी बेटी को नौकरी पर जानें के लिऐ ऑटो की प्रतीक्षा नहीं करना पड़ेगा।"
श्रृष्टि…. मां पर….।
"पर वर छोड़ और अपनी मां को अपनी नई स्कूटी की सवारी करवा।"
कुछ ही क्षण में दोनों मां बेटी दुपहिया पर सवार होकर घूमने चल दिया। श्रृष्टि के लिए मानो खुशियों का अंबर लग गया पहले कितनी सारी मुस्किलों का सामना करने के बाद नौकरी मिला और अब दुबारा उन्ही मुस्किलों का सामना न करना पड़े सिर्फ इसलिए माताश्री ने उसे न्यू स्कूटी दिलवा दिया।
जारी रहेगा... बने रहिये .....
आज के इस एपिसोड में कुछ खास ऐसी कुरियोसिटी जैसा तो नहीं पर क्या जाने आगे क्या होनेवाला है .......