07-08-2024, 02:40 PM
भाग - 3
श्रृष्टि हताश निराश खड़ी बार बार घड़ी देख रहीं थी और आंखों में आशा का भाव लिए रास्ते पर देख रहीं थीं। कोई तो सवारी वाहन आए जिस पर सवार होंकर समय से अपने गंतव्य को पहुंच जाए। मगर उसका कोई आसार नजर नहीं आ रहा था क्योंकि जो भी ऑटो वाला आ रहा था वो श्रृष्टि के बताएं रूट पर जानें को तैयार ही नहीं हो रहें थे। कोई परमिट न होने की बात कह रहा था तो कोई वापसी में सवारी न मिलने की बात कह रहा था।
जैसे जैसे वक्त बीतता जा रहा था वैसे वैसे श्रृष्टि की उम्मीद टूटती जा रही थी। थोड़ी बहुत हिम्मत ओर जज्बा जो बचा था वो भी बीतते वक्त के साथ कमज़ोर पड़ता गया। एक वक्त ऐसा भी आया जब श्रृष्टि की नौकरी पाने की उम्मीद पूर्ण रूप से धराशाई हो गई और श्रृष्टि वापस घर लौटने की बात सोचा ही था कि एक ऑटो वाला उसके पास आकर रूका,
एक बार फिर से उम्मीद की टिमटिमाती लौं जो लगभग बुझ चुका था। पूर्ण वेग से प्रजावलित हों उठा और श्रृष्टि उत्साहित भाव से बोलीं...
अंकल जी मुझे तिवारी कंसट्रक्शन ग्रुप जाना था।
"माफ करना बेटी मैं उस रूट पर नहीं जा सकता क्योंकि उस रूठ की परमिट मेरे पास नहीं हैं।"
एक ओर मनाही का नतीजा ये हुआ कुछ पल के लिए जागी उम्मीद एक बार फ़िर से टूट गया। इसलिए उदासीन भाव चहरे पर लिए एक ओर कोशिश करते हुए श्रृष्टि बोलीं...
प्लीज़ अंकल जी चल दीजिए न, आज मेरा साक्षात्कार है। मैं बहुत देर से प्रतिक्षा कर रहीं हूं मगर कोई जानें को राज़ी नहीं हों रहा हैं। प्लीज़ अंकल चल दीजिए न!
"पर ( एक अल्प विराम लिया फिर कुछ सोचकर आगे बोला) ठीक है बैठ जाओ।
आभार व्यक्त करते हुए श्रृष्टि बैठ गई और ऑटो चल दिया। कुछ ही दूरी तय हुआ था कि घड़ी देखने के बाद श्रृष्टि बोलीं... अंकल जी, आप थोड़ा रफ़्तार बढ़ाएंगे, क्योंकि बहुत दिनों बाद आज साक्षात्कार देने का मौका हाथ लगा है और मेरे हाथ में समय कम बचा हैं।
"कितने बजे साक्षात्कार हैं।" जानकारी लेते हुए ऑटो चालक ने पूछा तो श्रृष्टि ने मानक समय बता दिया। जिसे सुनकर ऑटो चालक बोला... सही में तुम्हारे हाथ में बहुत ही कम समय बचा है। परन्तु तुम फिक्र न करो मैंने बहुत लोगों के उम्मीदों को टूटकर बिखरते हुए देखा हैं लेकीन तुम्हारी उम्मीद नहीं टूटने दूंगा।
इतना बोलकर ऑटो चालक ने ऑटो के कान उमेठ (एक्सीलेटर) दिया और ऑटो हवा से बातें करते हुए गंतव्य की ओर बढ़ चला मगर लगता है आज माताश्री की बला उतराई और दही खिलाना कुछ काम न आया क्योंकि कुछ ही दूरी तय करते ही सामने लम्बा चौड़ा ट्रैफिक जाम दिखा। जिसे देखकर हताश होते हुए श्रृष्टि बोलीं... इस ट्रैफिक को आज ही लगना था। जिस दिन जरूरी काम होता है सभी मुश्किलो को उसी दिन आना होता हैं।
"तुम ये क्यों भुल रहीं हों। मुश्किलो से पर जाकर ही मंजिल तक पंहुचा जाता हैं। अब तुम फिक्र करना छोड़ो मैं तुम्हें तुम्हारे गंतव्य तक पंहुचाकर ही रहूंगा।"
इतना बोलकर ऑटो चालक मंद मंद मुस्कान बिखेर दिया फिर रास्ता बदलकर चल दिया। गली कूचे और ऊबड़ खाबड़ रास्ते से हिचकोले खाते हुए आखिरकार श्रृष्टि को उसके मंजिल तक पंहुचा ही दिया।
आभार व्यक्त करते हुए ऑटो चालक को उसका किराया देकर विदा किया और जल्दी से लिफ्ट की और चल पड़ी। आपा धापी में किया गया कार्य अक्षर गलती करवा देता है। ऐसे ही एक गलती श्रृष्टि कर चुकी थीं। उसकी यहां गलती उस पर कितना भारी पड़ने वाली है। ये तो वक्त के साथ पाता चल जायेगा।
लिफ्ट की सहयता से इमारत के दसवीं मंजिल पर पहुंच गई। जो कि श्रृष्टि का गंतव्य था। ऑफिस के भीतर जाकर रिसेप्शन पर बैठी बाला से साक्षात्कार से संबंधित जानकारी लिया। सभी संबंधित जानकारी देने के बाद रिसेप्शनिष्ट बोलीं... मैडम आपको साक्षात्कार निमंत्रण पत्र भेजा गया होगा। आप पत्र दिखा दीजिए तभी आप यहां से आगे जा सकती हैं।
पत्र की बात आते ही श्रृष्टि को ध्यान आया उसका प्रमाण पत्र पुस्तिका उसके पास नहीं हैं। इधर उधर नजरे फेरा मगर श्रृष्टि की प्रमाण पत्र पुस्तिका कहीं नहीं दिखा तो श्रृष्टि परेशान सी हों गई और दिमाग पर जोर देने लग गई तब उसे याद आया शायद वो अपना प्रमाणपत्र पुस्तिका ऑटो में भुल आई हों। ध्यान आते ही श्रृष्टि तुरन्त बाहर को चली गई। बहार आने का कोई फायदा नहीं हुआ। क्योंकि ऑटो वाला जा चुका था। परेशान सी यहां वहां टहलती रहीं।
मस्तिस्क का पिंजरा तरह तरह के विचारो से भर चुका था। क्या करे क्या न करे, एक सही और सार्थक वजह श्रृष्टि को सूझ नहीं रहीं थीं। कुछ वक्त तक दिमागी घोड़ा दौड़ने के बाद उसे कुछ सूझा इसलिए लिफ्ट की सहायता से दफ्तर के रिसेप्शन पर पहुचकर बोलीं... मैम मैं अपना प्रमाण पत्र पुस्तिका जिस ऑटो मे आया था उसी में भुल गई। तो क्या कोई ऐसा तारिका है जिससे की मैं बिना निमंत्रण पत्र के साक्षात्कार दे पाऊं।
"मैम आपका दिमाग तो ठिकाने पर हैं। जरा सोच कर देखिए आपको बिना निमंत्रण पत्र के जाने भी दिया तब भी आप अपना प्रमाण पत्र दिखाए बिना साक्षात्कार नहीं दे पाएंगे इसलिए मैं आपको मुफ्त में एक सलाह दूंगी, आप मेरा और अपना कीमती समय जाया न करे तो ही आपके और मेरे लिए बेहतर होगा।"
इतनी बाते सपाट लहज़े में कहकर रिसेप्शनिष्ट, श्रृष्टि को नजरंदाज करके दूसरे कामों में लग गई और श्रृष्टि हताश निराश सा वहां मौजुद कुर्सी पर बैठ गई। इतनी भागा दौड़ी, मिन्नते न जानें क्या कुछ किया मगर हाथ क्या लगा एक ओर नाकामी, इन्हीं बातों पर विचार करते हुए श्रृष्टि का मासूम, भोला खूबसूरत चेहरे पर उदासी के बदल छा गया।
जाइगा नहीं भाग 3 अभी चालू है .... (क्रमश )
श्रृष्टि हताश निराश खड़ी बार बार घड़ी देख रहीं थी और आंखों में आशा का भाव लिए रास्ते पर देख रहीं थीं। कोई तो सवारी वाहन आए जिस पर सवार होंकर समय से अपने गंतव्य को पहुंच जाए। मगर उसका कोई आसार नजर नहीं आ रहा था क्योंकि जो भी ऑटो वाला आ रहा था वो श्रृष्टि के बताएं रूट पर जानें को तैयार ही नहीं हो रहें थे। कोई परमिट न होने की बात कह रहा था तो कोई वापसी में सवारी न मिलने की बात कह रहा था।
जैसे जैसे वक्त बीतता जा रहा था वैसे वैसे श्रृष्टि की उम्मीद टूटती जा रही थी। थोड़ी बहुत हिम्मत ओर जज्बा जो बचा था वो भी बीतते वक्त के साथ कमज़ोर पड़ता गया। एक वक्त ऐसा भी आया जब श्रृष्टि की नौकरी पाने की उम्मीद पूर्ण रूप से धराशाई हो गई और श्रृष्टि वापस घर लौटने की बात सोचा ही था कि एक ऑटो वाला उसके पास आकर रूका,
एक बार फिर से उम्मीद की टिमटिमाती लौं जो लगभग बुझ चुका था। पूर्ण वेग से प्रजावलित हों उठा और श्रृष्टि उत्साहित भाव से बोलीं...
अंकल जी मुझे तिवारी कंसट्रक्शन ग्रुप जाना था।
"माफ करना बेटी मैं उस रूट पर नहीं जा सकता क्योंकि उस रूठ की परमिट मेरे पास नहीं हैं।"
एक ओर मनाही का नतीजा ये हुआ कुछ पल के लिए जागी उम्मीद एक बार फ़िर से टूट गया। इसलिए उदासीन भाव चहरे पर लिए एक ओर कोशिश करते हुए श्रृष्टि बोलीं...
प्लीज़ अंकल जी चल दीजिए न, आज मेरा साक्षात्कार है। मैं बहुत देर से प्रतिक्षा कर रहीं हूं मगर कोई जानें को राज़ी नहीं हों रहा हैं। प्लीज़ अंकल चल दीजिए न!
"पर ( एक अल्प विराम लिया फिर कुछ सोचकर आगे बोला) ठीक है बैठ जाओ।
आभार व्यक्त करते हुए श्रृष्टि बैठ गई और ऑटो चल दिया। कुछ ही दूरी तय हुआ था कि घड़ी देखने के बाद श्रृष्टि बोलीं... अंकल जी, आप थोड़ा रफ़्तार बढ़ाएंगे, क्योंकि बहुत दिनों बाद आज साक्षात्कार देने का मौका हाथ लगा है और मेरे हाथ में समय कम बचा हैं।
"कितने बजे साक्षात्कार हैं।" जानकारी लेते हुए ऑटो चालक ने पूछा तो श्रृष्टि ने मानक समय बता दिया। जिसे सुनकर ऑटो चालक बोला... सही में तुम्हारे हाथ में बहुत ही कम समय बचा है। परन्तु तुम फिक्र न करो मैंने बहुत लोगों के उम्मीदों को टूटकर बिखरते हुए देखा हैं लेकीन तुम्हारी उम्मीद नहीं टूटने दूंगा।
इतना बोलकर ऑटो चालक ने ऑटो के कान उमेठ (एक्सीलेटर) दिया और ऑटो हवा से बातें करते हुए गंतव्य की ओर बढ़ चला मगर लगता है आज माताश्री की बला उतराई और दही खिलाना कुछ काम न आया क्योंकि कुछ ही दूरी तय करते ही सामने लम्बा चौड़ा ट्रैफिक जाम दिखा। जिसे देखकर हताश होते हुए श्रृष्टि बोलीं... इस ट्रैफिक को आज ही लगना था। जिस दिन जरूरी काम होता है सभी मुश्किलो को उसी दिन आना होता हैं।
"तुम ये क्यों भुल रहीं हों। मुश्किलो से पर जाकर ही मंजिल तक पंहुचा जाता हैं। अब तुम फिक्र करना छोड़ो मैं तुम्हें तुम्हारे गंतव्य तक पंहुचाकर ही रहूंगा।"
इतना बोलकर ऑटो चालक मंद मंद मुस्कान बिखेर दिया फिर रास्ता बदलकर चल दिया। गली कूचे और ऊबड़ खाबड़ रास्ते से हिचकोले खाते हुए आखिरकार श्रृष्टि को उसके मंजिल तक पंहुचा ही दिया।
आभार व्यक्त करते हुए ऑटो चालक को उसका किराया देकर विदा किया और जल्दी से लिफ्ट की और चल पड़ी। आपा धापी में किया गया कार्य अक्षर गलती करवा देता है। ऐसे ही एक गलती श्रृष्टि कर चुकी थीं। उसकी यहां गलती उस पर कितना भारी पड़ने वाली है। ये तो वक्त के साथ पाता चल जायेगा।
लिफ्ट की सहयता से इमारत के दसवीं मंजिल पर पहुंच गई। जो कि श्रृष्टि का गंतव्य था। ऑफिस के भीतर जाकर रिसेप्शन पर बैठी बाला से साक्षात्कार से संबंधित जानकारी लिया। सभी संबंधित जानकारी देने के बाद रिसेप्शनिष्ट बोलीं... मैडम आपको साक्षात्कार निमंत्रण पत्र भेजा गया होगा। आप पत्र दिखा दीजिए तभी आप यहां से आगे जा सकती हैं।
पत्र की बात आते ही श्रृष्टि को ध्यान आया उसका प्रमाण पत्र पुस्तिका उसके पास नहीं हैं। इधर उधर नजरे फेरा मगर श्रृष्टि की प्रमाण पत्र पुस्तिका कहीं नहीं दिखा तो श्रृष्टि परेशान सी हों गई और दिमाग पर जोर देने लग गई तब उसे याद आया शायद वो अपना प्रमाणपत्र पुस्तिका ऑटो में भुल आई हों। ध्यान आते ही श्रृष्टि तुरन्त बाहर को चली गई। बहार आने का कोई फायदा नहीं हुआ। क्योंकि ऑटो वाला जा चुका था। परेशान सी यहां वहां टहलती रहीं।
मस्तिस्क का पिंजरा तरह तरह के विचारो से भर चुका था। क्या करे क्या न करे, एक सही और सार्थक वजह श्रृष्टि को सूझ नहीं रहीं थीं। कुछ वक्त तक दिमागी घोड़ा दौड़ने के बाद उसे कुछ सूझा इसलिए लिफ्ट की सहायता से दफ्तर के रिसेप्शन पर पहुचकर बोलीं... मैम मैं अपना प्रमाण पत्र पुस्तिका जिस ऑटो मे आया था उसी में भुल गई। तो क्या कोई ऐसा तारिका है जिससे की मैं बिना निमंत्रण पत्र के साक्षात्कार दे पाऊं।
"मैम आपका दिमाग तो ठिकाने पर हैं। जरा सोच कर देखिए आपको बिना निमंत्रण पत्र के जाने भी दिया तब भी आप अपना प्रमाण पत्र दिखाए बिना साक्षात्कार नहीं दे पाएंगे इसलिए मैं आपको मुफ्त में एक सलाह दूंगी, आप मेरा और अपना कीमती समय जाया न करे तो ही आपके और मेरे लिए बेहतर होगा।"
इतनी बाते सपाट लहज़े में कहकर रिसेप्शनिष्ट, श्रृष्टि को नजरंदाज करके दूसरे कामों में लग गई और श्रृष्टि हताश निराश सा वहां मौजुद कुर्सी पर बैठ गई। इतनी भागा दौड़ी, मिन्नते न जानें क्या कुछ किया मगर हाथ क्या लगा एक ओर नाकामी, इन्हीं बातों पर विचार करते हुए श्रृष्टि का मासूम, भोला खूबसूरत चेहरे पर उदासी के बदल छा गया।
जाइगा नहीं भाग 3 अभी चालू है .... (क्रमश )