17-06-2022, 03:50 PM
‘हाय राम जी…!’ मैं कहती हुई मुड़ी और भागने के ज्यों ही कदम बढ़ाया मैं कमला से टकरा गई।
‘हाय राम… मां जी… आप…?’
‘जरा सम्हल कर आरती… गिर जायेगी…! सुन मैं ज़रा काम से बाज़ार जा रही हूँ… साहिल को चाय नाश्ता और खाना खिला देना… देखना कुछ कमी न हो… एक बजे तक आ जाऊँगी…’ मुस्कुराती हुई आगे बढ़ गई।
साहिल ने फिर एक तीर छोड़ा- भरी जवानी… जवान जिस्म… तड़पती अदायें… किसके लिये हैं…’
मैंने देखा कमला जा चुकी थी। अब हम दोनों घर में अकेले थे… और कमला ने जब साहिल को छूट दे दी थी तो मुझे भी उसका फ़ायदा उठा लेना था।
‘कहाँ से सीखा… ये सब…’
‘जब से आप जैसी सुन्दरी देखी… दिल की बात जबान पर आ गई…’ मैं अब चलती हुई अपने कमरे में आ गई… साहिल भी अन्दर आ गया… मैंने चुन्नी उठाई और सीने पर डालने ही वाली थी कि उसने चुन्नी खींच ली… इसे अभी दूर ही रहने दो… और दो कदम आगे बढ़ कर मेरा हाथ पकड़ लिया…
‘ये क्या कर रहे है आप… छोड़ दीजिये ना…’ मैं सिमटने लगी… हाथ छुड़ाने की असफ़ल कोशिश करने लगी।
‘आरती… प्लीज… आप बहुत अच्छी हैं… बस एक बार मुझे किस करने दो… फिर चला जाऊँगा…’ उसने अब मेरी कमर में हाथ डाल दिया। नीचे से उसका पजामा तम्बू बन चुका था… मेरी चूत भी गीली होने लगी थी। मैं बल खा गई और कसमसाने लगी… शर्म से मैं लाल हो उठी थी। मेरा बदन भी आग हो रहा था।
‘साहिल… देख… ना कर… मैं मर जाऊँगी…’ मैंने नखरे दिखाते हुए, बल खा कर उसके बदन से अपना बदन सहलाने लगी… और उसे धकेलने लगी
‘आरती… देख तेरे सूखे हुए होंठ… तड़पता हुआ बदन… आजा मेरे पास आजा… तेरे जिस्म में तरावट आ जायेगी…’
‘साहिल… मैं पराई हूँ… मैं शादीशुदा हूँ… ये पाप है…’ उसे नखरे दिखाते हुए मैं शरम से दोहरी होने लगी…
‘आरती तेरे सारे पाप मेरे ऊपर… तुझे पराई से अपना ही तो बना रहा हूँ…’ उसने अपना लण्ड मेरे चूतड़ो पर गड़ा दिया…
‘साहिल सम्हालो अपने आप को… दूर रखो अपने को…’ अब तो वस्तव में मुझे पसीना लगा था। मेरा बदन सिहर उठा था। कमला की रात वाली चुदाई मेरी आंखो के सामने घूमने लगती थी। मुझे लगा कि ये अपना लण्ड मेरी चूत में अब तो घुसेड़ ही देगा। मेरी चूतड़ो की दरार में उसका लण्ड फ़ंसता सा लगा। लण्ड का साईज़ तक मुझे महसूस होने लगी थी। मैंने घूम कर साहिल के चेहरे की तरफ़ देखा। उसके चेहरे पर मधुरता थी… मिठास थी… मुस्कुराहट थी… लगता था कि वो मुझ पर किस कदर मर चुका था।
मैं शरम के मारे मरी जा रही थी। मुझे उसने प्यार से चूम लिया। मैंने उसकी बाहों में अपने आप को ढीला छोड़ दिया… चूतड़ो को भी ढीला कर दिया। उसने मेरे पेटीकोट का नाड़ा खींच लिया… मेरे साथ उसका पजामा भी नीचे आ गिरा… उसने मेरा ब्लाऊज धीरे से खोल कर उतार दिया… मेरी छोटी छोटी पर कड़ी चूंचिया कठोर हो गई… उसने मेरे दोनों कबूतर पकड़ लिये… हम दोनों अब पूरे नंगे थे।
‘हाय राम… मां जी… आप…?’
‘जरा सम्हल कर आरती… गिर जायेगी…! सुन मैं ज़रा काम से बाज़ार जा रही हूँ… साहिल को चाय नाश्ता और खाना खिला देना… देखना कुछ कमी न हो… एक बजे तक आ जाऊँगी…’ मुस्कुराती हुई आगे बढ़ गई।
साहिल ने फिर एक तीर छोड़ा- भरी जवानी… जवान जिस्म… तड़पती अदायें… किसके लिये हैं…’
मैंने देखा कमला जा चुकी थी। अब हम दोनों घर में अकेले थे… और कमला ने जब साहिल को छूट दे दी थी तो मुझे भी उसका फ़ायदा उठा लेना था।
‘कहाँ से सीखा… ये सब…’
‘जब से आप जैसी सुन्दरी देखी… दिल की बात जबान पर आ गई…’ मैं अब चलती हुई अपने कमरे में आ गई… साहिल भी अन्दर आ गया… मैंने चुन्नी उठाई और सीने पर डालने ही वाली थी कि उसने चुन्नी खींच ली… इसे अभी दूर ही रहने दो… और दो कदम आगे बढ़ कर मेरा हाथ पकड़ लिया…
‘ये क्या कर रहे है आप… छोड़ दीजिये ना…’ मैं सिमटने लगी… हाथ छुड़ाने की असफ़ल कोशिश करने लगी।
‘आरती… प्लीज… आप बहुत अच्छी हैं… बस एक बार मुझे किस करने दो… फिर चला जाऊँगा…’ उसने अब मेरी कमर में हाथ डाल दिया। नीचे से उसका पजामा तम्बू बन चुका था… मेरी चूत भी गीली होने लगी थी। मैं बल खा गई और कसमसाने लगी… शर्म से मैं लाल हो उठी थी। मेरा बदन भी आग हो रहा था।
‘साहिल… देख… ना कर… मैं मर जाऊँगी…’ मैंने नखरे दिखाते हुए, बल खा कर उसके बदन से अपना बदन सहलाने लगी… और उसे धकेलने लगी
‘आरती… देख तेरे सूखे हुए होंठ… तड़पता हुआ बदन… आजा मेरे पास आजा… तेरे जिस्म में तरावट आ जायेगी…’
‘साहिल… मैं पराई हूँ… मैं शादीशुदा हूँ… ये पाप है…’ उसे नखरे दिखाते हुए मैं शरम से दोहरी होने लगी…
‘आरती तेरे सारे पाप मेरे ऊपर… तुझे पराई से अपना ही तो बना रहा हूँ…’ उसने अपना लण्ड मेरे चूतड़ो पर गड़ा दिया…
‘साहिल सम्हालो अपने आप को… दूर रखो अपने को…’ अब तो वस्तव में मुझे पसीना लगा था। मेरा बदन सिहर उठा था। कमला की रात वाली चुदाई मेरी आंखो के सामने घूमने लगती थी। मुझे लगा कि ये अपना लण्ड मेरी चूत में अब तो घुसेड़ ही देगा। मेरी चूतड़ो की दरार में उसका लण्ड फ़ंसता सा लगा। लण्ड का साईज़ तक मुझे महसूस होने लगी थी। मैंने घूम कर साहिल के चेहरे की तरफ़ देखा। उसके चेहरे पर मधुरता थी… मिठास थी… मुस्कुराहट थी… लगता था कि वो मुझ पर किस कदर मर चुका था।
मैं शरम के मारे मरी जा रही थी। मुझे उसने प्यार से चूम लिया। मैंने उसकी बाहों में अपने आप को ढीला छोड़ दिया… चूतड़ो को भी ढीला कर दिया। उसने मेरे पेटीकोट का नाड़ा खींच लिया… मेरे साथ उसका पजामा भी नीचे आ गिरा… उसने मेरा ब्लाऊज धीरे से खोल कर उतार दिया… मेरी छोटी छोटी पर कड़ी चूंचिया कठोर हो गई… उसने मेरे दोनों कबूतर पकड़ लिये… हम दोनों अब पूरे नंगे थे।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.