25-03-2022, 03:19 PM
थोड़ी देर में बस की लाइट्स बंद हो गई और बस में शांति हो गई. फिर थोड़ी देर में, मैं मम्म के स्लीपर के पास वाली सीट पर जाके बैठ गया... तो देखा की वहाँ लाइट थी, इसका मतलब चुदाई स्टार्ट हो गई. मोबाइल की हल्की लाइट में अंदर क्या चल रहा है दिख रहा था, मम्मी और वो बैठे हुए थे, वो के लिप्स को चूस रहा था और उसके हाथ मम्मी की पीठ पर चल रहे थे. फिर उसने मम्मी का ब्लाउज खोला और ब्रा उतार दी और फिर मम्मी को लेटाने लगा. मम्मी आराम से लेट गयी और फिर वो मम्मी के बूब्स चूसने लगा. मम्मी उसके बालों में हाथ फेर रही थी. वो मम्मी को चूमने लगा, फिर मोबाइल की लाइट बंद हो गई. जब मोबाइल की लाइट वापस ओं हुई तो दिखाई दिया की वो मम्मी की साड़ी उठा के साड़ी के अंडर घुस गया है और चूत चाट रहा है. फिर थोड़ी देर बाद उसने मम्मी के पाँवों को चौड़ा किया और मम्मी के बीच में आके उन्हें चोदने लगा. मम्मी ने अपनी टाँगें उसके कमर पर रख ली थी. फिर 5 मिनट बाद सब कुछ शांत हो गया.
तकरीबन 5 मिनट बाद मोबाइल की लाइट बंद हो गई --- फ़िर जब मोबाइल की लाइट वापस ऑन हुई तो उस रोशनी में मुझे दिखाई दिया की वो मम्मी की साड़ी उठा के साड़ी के अंदर घुसा हुआ है... समझ गया, महानुभाव चूत चाट रहे हैं. जी भर चाटने के बाद साड़ी के अंदर से सिर निकाल कर जल्दी - जल्दी उस लड़के ने गहरी साँस लिया.. फिर मम्मी के पाँवों को चौड़ा किया और जाँघों के बीच में खुद को फिट कर के उन्हें चोदने लगा. चोदते हुए दोबारा उसने कुछ फुसफुसाया --- जिसके बाद मम्मी एक शांत, आज्ञाकारी कर्मचारी की भांति बात मान कर अपनी टाँगें उसके कमर पर रख दी. चुदाई का ये खेल ऐसे ही शांत तरीके से चलता रहा. फिर तकरीबन 15-20 मिनट बाद सब कुछ शांत हो गया.
*समाप्त*
कुछ देर बाद बस की सभी मेन लाइट ऑफ हो गयीं --- उनके जगह पहले की तरह दो हरे नाईट बल्ब जलने लगे; बहुत कम पॉवर के हैं. पूरे बस में पहले से ही बहुत शांति छाई हुई थी. अब तो घुप्प सन्नाटा छा गया. बीच – बीच में इस सन्नाटे को चीरती किसी एक यात्री की खर्राटा सुनाई दे जाती.
इतनी देर में मैं वापस अपनी पहली वाली सीट पर आ कर बैठ गया था. मेरे आगे और पीछे के लगातार दो सीटें भी खाली थीं.
मम्मी की स्लीपर की ओर गौर किया, डोर सरक चुका है --- और अंदर मोबाइल के टॉर्च लाइट से अच्छी रोशनी हो रही है. कुछ मिनट बाद वो लाइट भी ऑफ़ हो गई --- उस टॉर्च की रोशनी में मैं जो देखा उससे यही लगा की वो लड़का शायद मम्मी के ऊपर से एक चादर हटा रहा है. जैसे - जैसे वो चादर हटा रहा है वैसे – वैसे मम्मी अपनी चूचियों सहित जिस्म के ऊपरी हिस्से को अपने हाथों से ढकने की असफ़ल कोशिश कर रही है...
कुछ मिनटों की शांति के बाद टॉर्च एक बार फिर जली --- देखा, मम्मी और वो लड़का बैठे हुए आपस में बातें कर रहे हैं. बात करते करते वो लड़का अचानक से मम्मी को पास खींच कर उनके होंठों को चूमने व चूसने लगा और उसका एक हाथ मम्मी की पीठ को बड़े उन्मुक्त, बिना किसी बाधा – भय के सहलाने लगा. होंठों को चूसते हुए ही अपना दूसरा हाथ मम्मी के सीने पर रख कर ब्लाउज के ऊपर से चूचियों को सहलाने – दबाने लगा. जल्द ही सारे हुक भी खोल डाला. फिर होंठों को थोड़ा अलग कर धीरे से कुछ बोला --- सुनते ही मम्मी ब्लाउज और ब्रा उतार कर अपने सिरहाने रख दी. रखने के बाद मम्मी जैसे ही उसकी ओर पलटी, लड़के ने झट से उनके होंठों पर अपने होंठ रख दिया और नग्न चूचियों को मसलने लगा.
तकरीबन 5 मिनट बाद मोबाइल की लाइट बंद हो गई --- फ़िर जब मोबाइल की लाइट वापस ऑन हुई तो उस रोशनी में मुझे दिखाई दिया की वो मम्मी की साड़ी उठा के साड़ी के अंदर घुसा हुआ है... समझ गया, महानुभाव चूत चाट रहे हैं. जी भर चाटने के बाद साड़ी के अंदर से सिर निकाल कर जल्दी - जल्दी उस लड़के ने गहरी साँस लिया.. फिर मम्मी के पाँवों को चौड़ा किया और जाँघों के बीच में खुद को फिट कर के उन्हें चोदने लगा. चोदते हुए दोबारा उसने कुछ फुसफुसाया --- जिसके बाद मम्मी एक शांत, आज्ञाकारी कर्मचारी की भांति बात मान कर अपनी टाँगें उसके कमर पर रख दी. चुदाई का ये खेल ऐसे ही शांत तरीके से चलता रहा. फिर तकरीबन 15-20 मिनट बाद सब कुछ शांत हो गया.
मम्मी और वो लड़का एक दूजे को बाँहों में लिए ऐसे ही सो गए. पर मेरी आँखों में नींद नहीं थी... आती भी कैसे --- जिसकी मम्मी उसके सामने किसी अपरिचित से लगातार चुदी हो, उस बंदे को नींद कहाँ से आए भला? पर ज़रूर मैं भी अंदर से प्रचंड टाइप का कमीना हूँ, क्योंकि ऐसे अवांछनीय दृश्य देखने के बाद भी मुझे अंततः नींद आ ही गई और कब आई इसका पता भी न चला.
सुबह 5:15 बजे के आसपास बस दुमका (हमारी मंजिल) पहुँचने वाली थी; मेरे मोबाइल में भोर 4:30 का अलार्म सेट किया हुआ था.. उसके बजने से नींद खुली. नींद खुलते ही पानी पिया और एक रजनीगंधा – तुलसी फाड़ कर मुँह में भर लिया. खिड़की से आती भोर की ठंडी हवा से मन – मस्तिष्क को ताज़ा करते हुए बीती रात की घटनाओं के साथ समंवय बैठाने लगा. वाकई में कुछ तो बहुत मस्त सीन थे; जिन्हें याद करते ही बदन में झुरझुरी दौड़ कर यौनेत्तेजना का बहाव कर देती. बस, एक ही टीस रह गई की ये सभी घटनाएँ मेरी खुद की मम्मी के साथ हुई थीं.
यादों में खोया हुआ था की तभी वो लड़का मेरी बगल वाली सीट पर आ कर बैठ गया... उसके मुँह में भी गुटखा था...
“और भई, देखा की नहीं?”
“हाँ यार.. देखा.” मैंने अपनी ख़ुशी दिखाई.
“कैसा था?”
“बहुत क्लियर तो नहीं था पर जो भी था --- जितना दिखा... मस्त था.. एक नंबर.”
“हम्म..”
“कितनी बार किया?”
“वही... जितना बोला था.” मुस्कराते हुए वो बोला.
“2 बार??”
“बिल्कुल... 2 बार!”
“वो कुछ बोली नहीं?”
“क्या बोलेगी?”
“मना नहीं की.”
“धुर्र... उल्टा ही की.”
“मतलब?!”
“मतलब की पूरा सहयोग की.”
“सच्ची?”
“लो यार! मैं झूठ क्यों बोलूँगा?! पर यार, कुछ भी कहो... साली की दुदू मस्त हैं --- मन करता है बस दाबता और चूसता रहूँ.. पता है यार, मैं जितनी बार भी उनकी दोनों चूचियों में से किसी एक को मुँह में भर कर चूसता था तो साली आँखें बंद कर के इतना मस्त कराहती थी की लगता था मेरा लंड तो इसकी ऐसी मादक आहें सुनकर ही पानी छोड़ देगा.”
“वाह यार...!” मुझे कुछ तो कहना ही था बदले में; इसलिए ‘वाह’ बोल दिया.
“मैं पूरे दावे के कह रहा हूँ दोस्त, अगर इस छिनाल को लंड चूसने के लिए देता न... तो ऐसी चूसती, ऐसी चूसती, ऐसी चूसती की सारा माल बाहर निकलवा कर लंड का संन्यास कर देती! क्या होंठ और क्या मस्त फेस-कट है इसकी.”
“हाहाहा.. ऐसा क्या?”
“हाँ यार, और पता है, मुझे तो अब घर ले जाने का मन कर रहा है.”
“किसको? आंटी को?”
“अरे नहीं यार. उनको ले जाऊँगा तो समझो घर में मेरा काम तमाम हो जाएगा.” ऐसा कहते हुए उसका चेहरा मुरझा गया.
“तो फ़िर?”
“आंटी की दोनों दुदूओं को ले जाने का मन कर रहा है.” उसने आँख मारते हुए कहा.... दुदू शब्द बोलते ही उसका चेहरा खिल उठा.
इस पर हम दोनों हँस पड़े.
थोड़ी देर चुप्पी के बाद वो लड़का बोला,
“अभी उसे चोद कर ही आया हूँ.”
“क्या?!” मुझे घोर आश्चर्य हुआ --- साला इस लड़के का लंड, लंड है या मशीन..?!!
“हाँ. यानि कुल 5 राउंड हो गए. साली थकती ही नहीं. हर बार एक नए जोश से लंड लपक लेती है.”
“क्या बात कर रहा है यार?” मैं हैरान हो गया उसकी बातों को सुन कर. मम्मी ऐसी है?! पता नहीं ये भोंसड़ी का सब सही बोल रहा है या नहीं??
“हाँ यार... क्यों.. विश्वास नहीं हो रहा?”
“नहीं, ऐसी बात नहीं है.....”
“रुक.. कुछ दिखाता हूँ तुझे.”
बोल कर वो अपने पैंट के बाएँ पॉकेट में हाथ घुसा कर कुछ टटोलते हुए निकाला. एक हल्की गुलाबी रंग का कपड़ा मेरी ओर बढ़ाया --- बोला, ‘थोड़ा छुपा कर देख.’ मैं खिड़की की ओर मुड़ कर उस फोल्ड किए हुए कपड़े को खोल कर देखा --- देखते ही मेरी आँखें मानो अपने कटोरों से बाहर लटक गई --- हलक सूख गया, हाथ काँप गए --- उसकी ओर पलट कर बड़ी बड़ी आँखे कर बोला,
“अबे! ये तो ब.....”
मेरी बात को बीच में काटते हुए मेरे हाथों से वो कपड़ा ले कर वापस अपने उसी पॉकेट में रखते हुए बड़ी सी मुस्कान लिए बोला,
“हाँ.. ये वही है जो तूने देखा व समझा, दोस्त.”
“ऐसे ही ले लिया?”
“नहीं.. उनको बोला उनकी कोई एक निशानी मुझे दे दे... जब उनको समझ नहीं आया की क्या दे तो मैं ही ये ले लिया... सिरहाने के पास ही रखा हुआ था.”
“तूने ले लिया तो वो कुछ बोली नहीं?”
“नहीं यार.. कुछ नहीं बोली... कुछ बोलने के लिए होंठ खोली ज़रूर थी; लेकिन फ़िर मुस्करा कर चुप रह गई.”
“ओह!”
“और भी कुछ है!”
“और क्या?”
“ये देख!”
उसने पैंट के दाएँ पॉकेट से मोबाइल निकाला... गैलरी में गया.. और एक – एक कर मुझे पिक्स दिखाने लगा. 7-8 पिक्स थे --- जिनमें वो और मम्मी थी. किसी में दोनों कपड़ों में थे, तो किसी में दोनों बिना कपड़ों के (मतलब, जिस्म के ऊपरी हिस्सों पर कोई कपड़ा नहीं था). मम्मी तीन पिक्चर में टॉपलेस थी. बाकी किसी में ब्रा तो किसी में ब्लाउज में थी.
“देखा?? कैसा है?!”
“ये सब पिक उसी आंटी की है?”
“हाँ यार... मस्त है न?”
“हाँ यार.. सुन न.. इनमें से कोई एक पिक मुझे भी दे न..”
“क्यों? क्या करेगा??”
“देख कर हिलाऊँगा.”
“हा हा हा...” वो हँसा और मुझे तीन पिक सेंड कर दिया.
हम दोनों में थोड़ी और बात हुई.. अचानक से लड़का उठ खड़ा हुआ... बोला,
“दोस्त, मेरा स्टैंड आने वाला है. मैं चलता हूँ... भविष्य में अगर हुआ तो फिर मिलेंगे.”
“ओके. दोस्त.. बाय.”
“बाय.”
वो अपना बैग साथ ले कर ही मेरे पास बैठा था अब तक.. अलविदा कह कर वो सामने ड्राईवर के केबिन में चला गया.. एक स्थान पर बस के धीमे होते ही वो उतर गया. मेरी खिड़की की तरफ़ देख कर हाथ हिलाया.. मैंने भी हाथ हिला कर एक फाइनल अलविदा कह दिया.
बस ने दोबारा गति पकड़ी.. अब आधे घंटे में ही हमारा स्टैंड आने वाला है इसलिए अभी से ही तैयार हो जाना बेहतर होगा; ये सोच कर मैं जल्दी से मम्मी के स्लीपर की ओर गया और कुछेक तेज़ नॉक किया. मम्मी के स्लीपर डोर खुलते ही मैंने उंनसे कहा की ‘दुमका बस स्टैंड आने वाला है, रेडी हो जाओ.’ ये बोलते हुए मैं मम्मी को गौर से देखते हुए उनके सिरहाने की तरफ़ झाँका... सिरहाने उनके बैग और हैण्ड बैग के अलावा कुछ नहीं था --- मम्मी ब्लाउज पहनी हुई थी और आँचल को भी किसी तरह अपने सीने पर ली हुई थी --- पर दोनों ही बहुत ख़राब हो गए थे.
खैर,
हम दोनों ही समय रहते अपने सामान ले कर तैयार हो गए थे और स्टैंड पर बस के रुकते ही उतर गए. मम्मी उतरते ही बोली की उनको प्यास लगी है और कुल्ला भी करना है. मैं पास के एक दुकान, जो इतनी सुबह शायद हम जैसे यात्रीगणों के लिए ही अभी अभी खुली थी, से दो बोतल बिस्लेरी ले लिया. जब मम्मी चेहरा वगैरह धोने के बाद पानी पी रही थी तब तक स्टैंड में ही मौजूद एक छोटे से मंदिर में जा कर प्रणाम कर आया...
वहीं एक चाय दुकान में हम दोनों के लिए दो चाय का ऑर्डर दिया --- चाय जल्दी मिला --- स्वाद अच्छा था --- पहली सिप से ही एक अलग ताज़गी छा गई पूरे बदन में. मम्मी की ओर देख कर पूछा,
“अच्छा है न?”
वो कुछ बोली नहीं.. सिर्फ़ हाँ में सिर हिला दी..
मम्मी थोड़ी बदली - बदली लग रही थी... अब ये बदलाव अच्छा है या बुरा, कुछ समझ में नहीं आया.
हम जिस जगह चाय पी रहे थे वहीं पर एक पेपर वाला आया --- साइकिल के आगे और पीछे के स्थान आज की ताज़ा अख़बारों से भरे हुए थे --- वो भी आ कर चाय का ऑर्डर दे कर बगल में खड़ा हो कर खैनी बनाने लगा. पता नहीं क्या मन किया जो मैंने उससे एक अख़बार खरीद लिया. अख़बार को बगल में रखे एक कुर्सी पर रख कर उसके पन्ने पलट - पलट कर देखने लगा... अंदर के चौथे पन्ने के कोने में एक बड़ा सा विज्ञापन जैसे चतुर्भुजाकार स्पेस में एक फ़ोटो दिया हुआ था --- उस फ़ोटो के ऊपर और नीचे, अंग्रेज़ी व हिंदी भाषा में बड़े व मोटे शब्दों में ‘वांटेड’ लिखा हुआ था..
फ़ोटो देखते ही मेरे हाथ से चाय छूटते - छूटते बची....
मुँह से बरबस इतना ही निकला,
“अरे, य... ये तो....”
*समाप्त*