“मैं जब बस में चढ़ा उस वक़्त कंडक्टर उस आंटी को, (यानि आयुष की मम्मी को) एक स्लीपर की ओर ले जा रहा था.. लेकिन आंटी को स्लीपर में चढ़ने में दिक्कत हो रही थी; तब मैंने आगे बढ़ कर उसकी हेल्प कर दी. जब वो स्लीपर में चली गई तब अचानक से मुझे एक आईडिया आया --- कंडक्टर वहीँ मेरे बगल में खड़ा था तो मैंने उससे थोड़ी ऊँची आवाज़ में पूछा की क्या मुझे भी कोई स्लीपर मिल सकती है? तो उसने नहीं में जवाब दिया --- बोला की ‘बस यही एक स्लीपर खाली है जिसमें दो जन जा सकते हैं.’ इस पर मैं उससे बोला,
“आंटी तो एक अकेली हैं; मैं चला जाऊँ इस स्लीपर में?”
कंडक्टर मुझे सिर से पैर तक देख कर बोला,
“पर तुम तो इनके परिचित नहीं हो इसलिए मैं तुम्हें इस पर जाने को नहीं बोल सकता.”
उसका जवाब सुन कर मैं मायूस हो गया.. ये देख कर कंडक्टर आगे बोला,
“बेहतर होगा अगर तुम एक बार इस आंटी से पूछ कर देख लो. यदि इन्हें आपत्ति नहीं होगी तो मुझे भी कोई दिक्कत नहीं है तुम्हें ऊपर जाने देने में.”
वो आंटी हम दोनों की बातें सुन रही थी --- कंडक्टर की बात खत्म होते ही मैं आंटी की ओर बड़ी आशा से देखा और मुझे स्लीपर में आ जाने देने की विनती की,
“आंटी, प्लीज़ मुझे स्लीपर में जगह दीजिए.. कल मेरा इंटरव्यू है और आज सुबह से बैठे - बैठे बहुत यात्रा कर चुका हूँ.. कमर अकड़ चुकी है --- अब और बैठा नहीं जाता.. थोड़ी देर लेटना चाहता हूँ. अगर ठीक से सो नहीं पाया तो शायद कल इंटरव्यू अच्छा नहीं जाए... प्लीज़ आंटी. प्लीज़ मान जाइए.”
मैं कुछ इस कदर रुआंसा हो कर गिड़गिड़ाने लगा की अंत में आंटी पिघल गई और मुझे अंदर, स्लीपर में आने दिया. पर मैं तुरंत नहीं लेटा --- बैठ कर उनसे बातें करने लगा. अब चूँकि मैं नहीं लेटा तो आंटी से भी पूरी तरह से लेटा नहीं गया और मजबूरन उन्हें भी मुझसे बात करनी पड़ी. जब बस की सबसे पहली बत्ती को छोड़ कर बाकी सभी बत्तियाँ ऑफ़ हो गयीं तब हम दोनों भी लेट गए.
मैं आंटी की पाँवों की तरफ़ लेट गया और वो मेरे पाँव की ओर. शायद एक अंजान लड़के की ओर पैर कर के लेटने में उन्हें संकोच हो रहा था इसलिए पैरों को थोड़ा ऊपर - नीचे कर के लेटी रही --- इससे उनकी साड़ी एक पैर के घुटने तक चढ़ आई. उनकी बाल रहित माँसल पैर देख कर मेरे मन में पाप घर कर गया और फिर कुछ ही सेकंड बाद लंड महाराज भी खड़े होने लगे; क्योंकि एक औरत के साथ अकेले सोने में और खास कर ऐसी अवस्था में तब यही होता ही है.
कुछ देर के बाद मैं उठ कर बैठ गया. ये देख कर आंटी पूछी,
“क्या हुआ बेटा?”
“अभी नींद नहीं आ रही है आंटी. आपको आ रही है?”
“नहीं. नींद तो मुझे भी नहीं आ रही है.”
“आंटी, एक काम करते हैं. क्यों न हम दोनों आपस में बातें करें --- बातें करने से हो सकता है की हमें जल्द नींद आ जाए...??”
आंटी २ सेकंड कुछ सोची --- अपनी तरफ़ का डोर सरका कर बाहर पता नहीं क्या देखी --- फिर डोर बंद कर के बोली,
“तुम सही कह रहे हो... ऐसा अक्सर होता है. बात करते - करते नींद आ जाती है.”
ये कह कर आंटी उठ बैठी. इसके बाद हम दोनों के बीच ढेर सारी बातें हुईं. हम दोनों एक दूसरे के घर, घर के सदस्य, काम, वगैरह की काफी बातें की. कुछ देर बैठ कर बातें करने के बाद आंटी लेट गई और मुझे भी अपने बगल में आ कर लेट कर बात करने को बोली. मुझे तो अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ... ये आंटी मुझ अजनबी लड़के को अपने पास लेटने को कह रही है!!
मैं बिना एक क्षण गँवाए उनके बगल में लेट गया.
अब हम दोनों के मुँह एक-दूसरे के सामने थे. हम दोनों बातें करने लगे... बात करते-करते मैं उनकी तारीफ़ में कुछ शब्द कह देता --- जैसे की, आप बहुत अच्छी हो, ख्याल रखती हो, आपका हृदय की गहराईयों से बहुत बहुत धन्यवाद जो मुझे स्लीपर में आने दी, इत्यादि. आंटी सुनती रही और शर्माती रही. इस तरह हमें बातें करते हुए काफी समय बीत गया --- पूरे बस में ड्राईवर, कंडक्टर और हेल्पर को छोड़ बाकी सब सो गए थे... स्लीपर लंबाई में बड़ी ज़रूर थी पर चौड़ाई बहुत ज़्यादा नहीं थी. इसी कारण बीच-बीच में मेरी बायीं कोहनी उनकी दायीं चूची पर कभी दब जाती तो कभी छू जाती. इन नरम अंगों के छूअन को आख़िर मेरे जैसा कुँवारा लौंडा कब तक बर्दाश्त कर सकता है? लंड महाराज भी फूल चुके थे --- ऐसे में मैंने थोड़ी हिम्मत की और उनके पास आते हुए अचानक से पलट कर उनके ऊपर लेट गया! इस अप्रत्याशित हरकत पर आंटी बुरी तरह से डर और चौंक उठी... पर जैसे ही सजग हुई, अपना पूरा ज़ोर लगा कर मुझे हटाने लगी और धमकी वाली स्वर में बोलने लगी,
“ये क्या कर रहे हो --- बदमाश, जल्दी हटो नहीं तो मैं शोर मचाऊँगी..!”
आंटी का इतना कहना था की मैंने भी मौके की नज़ाकत को भाँपते हुए अनुरोधों की झड़ी लगा दी --- कहा की ‘प्लीज़ आंटी शोर मत मचाईएगा... प्लीज़... बस एकबार किस करने दो फिर मैं कुछ नहीं करूँगा --- कुछ नहीं बोलूँगा --- अगर आप ऐसा नहीं करने दोगी तो न जाने मेरे साथ क्या से क्या हो जाए --- सच कह रहा हूँ आंटी जी, आपको देख के मैं बेकाबू हो गया हूँ.’
सुन कर आंटी की मुझ पर से पकड़ थोड़ी ढीली ज़रूर हुई लेकिन विरोध कम नहीं हुआ --- वो बोली,
‘बेटा, मैं कोई ऐसी-वैसी औरत नहीं हूँ.. ये तो सोचो की तुम पे दया कर के मैंने ही तुम्हें स्लीपर में आने दी, तुमसे बातें की, अपने पैरों के पास बुला कर यहाँ अपने बगल में सोने को बोली... इतना सब कुछ होने के बाद तुम ऐसा करोगे? कुछ तो शर्म करो बेटा --- तुम्हारी माँ की उम्र की हूँ. चुपचाप ऊपर से हट जाओ और सो जाओ.. मैं भी भूल जाऊँगी की तुमसे कोई गलती हुई थी.’
इतना कह कर वो अपने ऊपर से मुझे हटाने लगी. पर मैं उनके ऊपर से नहीं हटा और लगातार प्लीज़-प्लीज़ कहता रहा --- साथ ही उन्हें मजबूती से अपने बाँहों में पकड़े रहा. कुछ देर बाद आंटी थक गई और उदास मन से बोली,
‘अच्छा सिर्फ़ एक किस --- उसके अलावा कुछ नहीं --- तुम चुपचाप मेरे ऊपर से हट जाओगे और मेरे पैरों के पास सो जाओगे --- तुम्हें अब मेरे बगल में सोने की कोई ज़रूरत नहीं.’
मैं तो ख़ुशी से फूला नहीं समाया --- झट से हाँ बोल दिया; क्योंकि चुदाई कैसे शुरू करते हैं; ये मैं बहुत अच्छे से जानता हूँ. मैं बड़े प्यार से उनके गालों को सहलाते हुए उनको चूमने लगा --- उनके गालों पर, होंठों पर, गले पर... बात एक किस की हुई थी लेकिन मैंने शायद 3 सेकंड में आंटी को 10 बार चूम लिया था --- इतना चूमने के बाद मैं उनके कान के पास अपना होंठ ले गया और प्यार से फुसफुसा कर उनको उनके होंठ खोलने को बोला --- इस पर आंटी कसमसा कर मेरे दुस्साहस को आश्चर्य से देखी. मेरा ये दुस्साहस उनको बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा था शायद --- पर जैसे ही कुछ बोलने के लिए मुँह खोली; मैं झट से उनके होंठों को अपने होंठों में ले लिया और फिर तकरीबन 5 मिनट तक बिना रुके चूसता रहा.
उनके होंठों को अच्छे से, जी भर कर चूसने के बाद उनके पूरे चेहरे को चूमने लगा. इधर अब आंटी का धैर्य भी जवाब देने लगा था. वो लगातार एक ही रट लगाए जा रही थी, ‘ये क्या कर रहे हो.. छोड़ो मुझे.. हटो मेरे ऊपर से --- सिर्फ़ एक किस करने की बात हुई थी.’ आंटी मुझे हटने को तो बोल रही थी पर पहले वाला विरोध नहीं रहा था उनमें अब. साथ ही उनके चेहरे के भावों को देख कर भी अंदाज़ा हो गया था मुझे की शायद अब इनको भी इस बात का अहसास हो रहा था कि मैं इतनी आसानी से, इतने कम में नहीं छोड़ने वाला.
वो मन में कोई कठोर सिद्धांत न कर ले इसके लिए उनका ध्यान भटकाने के लिए उनके कन्धों को चूमने के दौरान फुसफुसाया,
‘आंटी जी, अब मत रोको... प्लीज़... हो जाने दो जो हो रहा है.’
‘प.. पर मैं....’
‘आपको कुछ नहीं करना.. बस, ऐसे ही लेटी रहो.’
बहुत देर से आंटी की चूचियाँ दबाने का बड़ा मन कर रहा था --- फूले अंगों को छूते ही कहीं वो तेज़ आवाज़ में कुछ बोल न दे इसलिए पहले उनके होंठों को दोबारा अपने होंठों के गिरफ़्त में लिया और फ़िर आँचल को सरका कर उसे पतला रस्सी के माफिक कर के दोनों ब्लाउज कप्स के बीचोंबीच रखा और बड़े प्रेम व आराम से चूचियाँ मींजने लगा. शायद शुरू में कुछ ज़्यादा ही ज़ोर लगा दिया था क्योंकि दबाने के कुछ सेकंड्स के भीतर ही बेचारी दर्द से बिलबिला उठी. ‘उंह ऊंह’ करके मेरे हाथ और कंधों पर मारने लगी. मैं उनके होंठ को अब नहीं छोड़ा --- अपने बाएँ हाथ से उनके गाल को सहला कर शांत करने की कोशिश करने लगा. कोशिश रंग लाई और वो जल्द ही शांत हो गई.
ज़्यादा समय नहीं लिया मैंने --- पर सच कहूँ तो मुझे ये याद ही नहीं की कब मैंने अपना पैंट और अंडरवेयर खोला, कब सख्त लंड को निकाला और न जाने कब और कैसे आंटी की साड़ी ऊपर करके चोदने लगा. बस, ये याद है की लंड पर आंटी की चूत की गरम छूअन से मैं एकदम पगला गया था. जी तो किया की आवाज़ निकाल कर ज़ोर-ज़ोर से थपेड़े मार - मार कर इनको चोदूँ; लेकिन कमबख्त जगह कम होने के कारण पूरे दिल से चोद नहीं पाया. इस एक बात का मलाल रह गया. पर कुछ भी कहो यार, आंटी की चूत थी बड़ी जबरदस्त! आह... मज़ा आ गया. ऐसी गर्मी भरी थी की सिर्फ़ 5 मिनट में मैं झड़ गया --- और --- वो आंटी भी.
चुदने के कुछ पल बीतने के बाद आंटी सिसकते हुए बोली,
‘ये तुमने क्या किया, मैं कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं रही.’ ये कह कर आँचल का कुछ हिस्सा अपने मुँह पर रख कर और ज़्यादा सिसकियाँ लेने लगी. आँचल पूरी तरह से हट चुका था उनके सीने पर से... उनकी चूचियों के साथ गुत्थमगुत्थी करते समय ब्लाउज के दो हुक खुल गए थे --- इस कारण उनकी गोरी क्लीवेज का कुछ हिस्सा दिखने लगा था --- मैं आगे बढ़ कर अपने नाक को उनकी क्लीवेज के पास ले गया --- बाई गॉड, क्या मस्त खुशबू थी यार! मैं एकबार फिर से मस्ती में आने लगा --- और आंटी के साथ एकदम मस्त वाली मस्ती करने के लिए ज़रूरी था की उनको भी मस्त किया जाए... पर वो तो लगातार सिसकियाँ ले – ले कर रोए जा रही थी.
उनको चुप कराने के उद्देश्य से बोला,
‘ओहो आंटी जी, हम दोनों के अलावा किसी को भी नहीं पता है इस बारे में; जो हम दोनों के बीच अभी अभी हुआ है... और ना तो मैं किसी को कुछ बताऊंगा और ना ही आप किसी को बताएँगी --- तो किसी को कैसे पता चलेगा..?’
अभी उनको मनाने – चुप कराने का प्रोग्राम चल ही रहा था की मेरा घोड़ा फिर से खड़ा हो गया --- मैं आहिस्ते से उनकी ओर बढ़ा और होंठों को चूमने लगा. इस हरकत पर आंटी आश्चर्य से मेरी ओर देखी और आँखों में एक धिक्कारने वाली भाव लिए उखड़े स्वर में बोली,
‘क्या है... कर तो चुके जो करना था तुमको --- अब कितना करोगे? हटो, भागो यहाँ से.’
‘क्या करूँ आंटी; सो सॉरी... आप हैं ही इतनी अच्छी की मन मानता ही नहीं. आप सुपर हो --- सुपर!’’
इस बार सिर्फ़ होंठों को चूमने तक ही दिमाग नहीं लगाया --- हाथों को भी काम पे लगाया और धीरे से ब्लाउज के सभी हुक एक-एक कर के खोल कर ब्रा कप्स को ऊपर कर के चूचियों को बिना देखे ही उन्हें मसलने लगा. मन तो किया बहुत उन नर्म, मुलायम माँसल पिंडों को देखने का पर क्या करता... एक तो घुप्प अँधेरा था और दूसरी दिक्कत ये की जैसे ही उनके होंठों को छोड़ कर कुछ और करने जाता; वो किसी पंख कटे पक्षी की तरह छटपटाने लगती. इसलिए मन मार कर बिना देखे चूचियों को केवल दबाने – मसलने में लगा रहा. उफ्फ! सच कहता हूँ यार... क्या मस्त चूचियाँ हैं साली की --- ये बड़े बड़े!! पहले जी भर कर दबाया --- फिर जी भर कर खूब चूसा --- और बाद में लंड के टोपे पर थूक लगा कर उनकी चूत में सेट किया व जम कर चोदा --- अब तक २ राउंड हो गए हैं --- दूसरे राउंड में तो साली छिनाल खुद ही मस्ती में भर कर कमर उचका - उचका कर लंड ली थी. मुझे तो मन ही नहीं करता था उनकी चूचियों या क्लीवेज से मुँह हटाने का --- पता नहीं कौन से फ्लेवर कर परफ्यूम लगाईं है --- मदहोशी छा जाती है यार! ऊपर से निप्पल इतने सॉफ्ट हैं की चूसने के साथ – साथ काटने का भी अलग मज़ा आ रहा था --- साली क्या सॉलिड मस्ती में चिहुँक उठती थी जब भी निप्पल को दाँतों से हल्के से पकड़ता था. मैं भी कहाँ कम हूँ --- फूल मज़ा लेने के लिए उनकी ब्लाउज – ब्रा, दोनों उतार दिया... कुछ नहीं बोली साली. हा हा.
अभी 2 राउंड हो गए हैं और इच्छा है की अभी फिर जा कर कम से कम दो राउंड और करने का.
कसम से, एक अलग ही लेवल का मज़ा आया उनके साथ --- और तो और, आज फर्स्ट टाइम है जो मैं बिना कंडोम के किसी को चोदा हूँ..!!”
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वो शायद अभी और भी बहुत कुछ कहने वाला था; कि तभी बस का हॉर्न सुनाई दिया --- हम दोनों बस में जा कर आगे की दो सीट पर बैठ कर बातें करने लगे. यही कोई आधे घंटे तक हम दोनों विभिन्न विषयों पर अनवरत बातें करते रहे. बातें करते करते ही उसने अपने मोबाइल में टाइम देखा --- देखते ही एकदम अचानक से उठ खड़ा हुआ --- बोला,
“ओके दोस्त... अब चलता हूँ.. नींद आ रही है.” कहते हुए आँख मारा... मैं इशारा समझ गया; फिर भी पूछा,
“कहाँ? वापस आंटी के पास?!”
“हाँ यार, 1-2 राउंड और लूँगा उसकी क्योंकि ऐसे मौके कभी - कभी ही मिलते हैं और वो आंटी है भी तो कितनी मस्त, सुंदर.. एकदम माल है माल.” कहते – कहते अपने होंठों पर जीभ फिराया उसने. वाकई में बहुत बेचैन हो रहा है वो.
“सुन यार, तू तो अच्छे मजे ले रहा है --- थोड़े मजे मेरा भी करवा देना.”
“मतलब??”
“ज़्यादा कुछ नहीं माँग रहा मैं... बस, जब आंटी के साथ अपना कार्यकर्म कर रहे होगे तब एक ओर का स्लीपर डोर सरका कर रखना.. प्लीज़!”
लड़का समझ गया की वो चाह कर भी मेरी इस बात को टाल नहीं सकता है. अगर टाल भी दिया तो हो सकता है की मैं बुरा मान जाऊँ और शायद उसकी करतूतों की ख़बर आसपास के सह यात्रियों को दे दूँ.
मुस्करा कर बोला,
“क्या यार.. बस इतनी सी बात?! बिल्कुल सरका कर रखूँगा --- यू फिकर नॉट!”
फिर मेरे कंधे को दो बार थपथपा कर स्लीपर में चला गया.
.......
(क्रमशः)