21-03-2022, 10:22 PM
दोस्तों, रोशनी भले ही कुछ सेकंड्स के लिए हुई थी पर उसने वो सब कुछ दिखा दिया जिसे देख कर किसी का भी दिमाग घूम जाए...
क्षण भर बाद उस आदमी का बायाँ हाथ जैसे ही थोड़ा नीचे गया; मम्मी का दायाँ चूची ऊपर की ओर तनिक फूल कर उठ गया --- इसी के साथ ये साबित हो गया की अभी कुछ सेकंड पहले मैं जो समझ रहा था... बिल्कुल सही था..!
मैंने तुरंत पुशबैक सीट को जितना ज़्यादा हो सके पीछे किया और उसपर अधलेटा हो अधखुली आँखों से मम्मी वाले स्लीपर की ओर देखने लगा; ये पता करने के लिए की आख़िर वो बंदा है कौन जो इतनी देर से मेरी मम्मी श्रीमती बबली जोशी के साथ मज़े कर रहा है. देखते ही देखते स्लीपर का डोर थोड़ा और खुला और उस में से करीब २३-२४ साल का एक लड़का बाहर निकल कर अपने कपड़े ठीक करता हुआ बस से उतर गया.
मैं कुछ और भी पूछने वाला था कि तभी मम्मी मुझे जाने को बोली और मुझसे कुछ सुने बगैर ही डोर बंद कर दी !
वो हँस पड़ा.. गर्व से चौड़ा हो कर २-३ तेज़ कश ले लिया. उसका खिला हुआ चेहरा बताने लगा की उसने जो लक्ष्य प्राप्त किया; वो सबके बस की बात नहीं है और चूँकि उसने ऐसा कर दिखाया इसलिए स्वयं पर विशेष गर्व होना उसका अधिकार है.
मैं लगभग विनती के स्वर में उससे याचना सा करता हुआ बोला की ‘प्लीज़ थोड़ा विस्तार से बताए की उसने ये सब किया तो कैसे किया’ --- कश लेते - लेते वो लड़का एक गहरी साँस लिया और अपनी कारगुज़ारी के बारे में कहना शुरू किया....
(क्रमशः)
इस सीन को देखते ही मेरे हाथ पाँव जम गए --- गला सूखने लगा. समझ में नहीं आया की ये हो क्या रहा है --- ये मैं क्या देख रहा हूँ. एकबार के लिए लगा की मैं शायद गलत स्लीपर को देख रहा हूँ... पर, मैं ये भी जान रहा हूँ की जिस स्लीपर को देख कर उसके किसी ओर के होने की कामना करने वाला था वो दरअसल उसी का है जिसका अभी होना चाहिए --- मेरी मम्मी बबली जोशी का...!!
मेरे लिए ये एक बहुत बड़ा झटका था. मैं बरबस उसी मुद्रा में उस सीट पर बैठा रह गया. गाड़ियाँ आती रहीं... उनकी रोशनी से स्लीपर में रोशनी होती रही... और मुझे अंदर का नज़ारा दिखता रहा. वो आदमी मम्मी को चोदे और चूमे जा रहा था... बिना रुके. कोई 3-4 मिनट की तेज़ रोशनी के बाद एक बार फिर से अँधेरा हो गया --- हमारी बस अपनी मस्त चाल में चलती रही --- बस के अंदर एकदम शांति छाई हुई है --- खुद बस में भी बहुत धीमी आवाज़ में ‘जिंदगी इक सफ़र है सुहाना’ बज रहा है --- मैं बुत सा अपनी सीट पर बैठा रहा ये सोचते हुए की अभी मुझे क्या करना चाहिए? कुछ करना चाहिए भी या नहीं?!
इसी उधेड़बुन में कुछ समय बीत गया...
और फ़िर जब अगली बार गाड़ियों के गुजरने से रोशनी हुई तो देखा की वो आदमी अब पहले से भी बहुत तेज़ धक्के मार रहा है... धक्के मारते मारते अचानक से मम्मी के ऊपर लेट कर रुक गया. गाड़ियों की ही आती - जाती रोशनी में देखा की वो आदमी मम्मी के ऊपर कुछ देर तक लेटा रहा... फिर एकदम से पहले की तरह ही अँधेरा छा गया. १० मिनट बाद स्लीपर में फ़िर रोशनी हुई --- लेकिन इस बार गाड़ियों की नहीं; मोबाइल की रोशनी थी. उस रोशनी में ज़्यादा क्लियर तो नहीं दिखा कुछ, पर इतना समझ में आने लगा की अब अंदर क्या हो रहा है --- वो आदमी अब उठ कर बैठ गया और हाथ के इशारे से मम्मी को कुछ कहने लगा --- कुछ सेकंड बाद मम्मी भी उठ कर बैठी और जल्दी से अपने ऊपर कुछ डाल ली. इसके तुरंत बाद उस आदमी ने मम्मी को अपनी ओर खींचते हुए चूमने की कोशिश की पर मम्मी उसे दूर हटा दी... लेकिन उस आदमी ने अपनी कोशिश जारी रखी और थोड़ी देर में मम्मी भी उसका सहयोग करने लगी --- इसी सहयोग के चलते कपड़ा सामने से सरक गया और क्लीवेज उन्मुक्त हो गया --- वैसे क्लीवेज देख कर तो यही समझ आया की इनकी चूचियाँ ज़रूर बिना किसी कपड़े के आवरण के इस आदमी के सामने नंगे लटक रहे होंगे!
क्षण भर बाद उस आदमी का बायाँ हाथ जैसे ही थोड़ा नीचे गया; मम्मी का दायाँ चूची ऊपर की ओर तनिक फूल कर उठ गया --- इसी के साथ ये साबित हो गया की अभी कुछ सेकंड पहले मैं जो समझ रहा था... बिल्कुल सही था..!
अभी दोनों की काम क्रियाएँ धीरे धीरे ज़ोर पकड़ ही रही थी कि अचानक से बस की तेज़ बत्तियाँ जल उठीं और बस की गति धीमी हो गई... बत्तियाँ जलने से पूरे बस में भरपूर रोशनी हो गई --- इससे सकपका कर दोनों ने किस करना बंद कर दिया --- वो आदमी अपना मोबाइल देखने लगा और मम्मी अपने चेहरे को अपने हाथों से छुपा ली. हालाँकि मैं अभी भी उस आदमी की शक्ल ठीक से देख नहीं पाया था. इसके दो कारण हैं, एक तो उड़ते परदे के कारण उस आदमी की शक्ल लगातार अवरुद्ध हो रही है; और दूसरा ये की वो आदमी बड़ी सावधानी से खुद को तिरछा कर के बैठा हुआ. २ मिनट बाद बस एक जगह रुकी और कंडक्टर ने एक बार फ़िर ज़ोरदार आवाज़ में कहा,
“बस यहाँ २० मिनट रुकेगी.. जिसे बाथरूम करना है वो कर ले क्योंकि इसके बाद बस कहीं नहीं रुकने वाली.”
मैंने तुरंत पुशबैक सीट को जितना ज़्यादा हो सके पीछे किया और उसपर अधलेटा हो अधखुली आँखों से मम्मी वाले स्लीपर की ओर देखने लगा; ये पता करने के लिए की आख़िर वो बंदा है कौन जो इतनी देर से मेरी मम्मी श्रीमती बबली जोशी के साथ मज़े कर रहा है. देखते ही देखते स्लीपर का डोर थोड़ा और खुला और उस में से करीब २३-२४ साल का एक लड़का बाहर निकल कर अपने कपड़े ठीक करता हुआ बस से उतर गया.
उस लड़के के बस से उतर जाने के अगले पाँच मिनट तक अपनी सीट पर रहने के बाद मम्मी के पास गया... लड़का जाते - जाते स्लीपर डोर को लगा दिया था --- मैंने डोर पर नॉक किया. 3 – 4 नॉक के बाद मम्मी ने डोर खोला; ज़रा सा ही खोली...
मैंने उसी में देखा की मम्मी एक चादर ओढ़ रखी है और बाल अब भी बिखरे हुए हैं. मैं पूछा,
“सो रही थी?”
“हम्म.”
“ओह्ह.. सॉरी..”
“क्या हुआ, बोलो.”
“पूछ रहा था कि बस अभी २० मिनट रुकेगी.. कुछ चाहिए? मैं कुछ लाऊँ??”
मम्मी कितनी अच्छी अभिनेत्री है ये आज समझ आया क्योंकि बड़ी ख़ूबसूरती से अपनी आँखों को हल्के से रगड़ कर बंद किए हुए बोली,
“नहीं बेटा... कुछ नहीं चाहिए.”
आश्चर्य! मुझे एकबार के लिए भी ऐसा नहीं लगा की वो मेरे बारे में कुछ पूछना या सोचना चाहती हो... ऐसा पहले कभी नहीं हुआ --- कभी भी, कैसी भी स्थिति क्यों न रही हो; हमेशा खुद से पहले मेरे बारे में सोचती – पूछती थी... लेकिन आज?!
इस उधेड़बुन वाले सवाल को सम्भालते हुए अंदर झाँक कर देखा की मम्मी के सिरहाने दो छोटे कपड़े रखे हुए हैं... समझते देर न लगी की ये मम्मी के ब्लाउज और ब्रा हैं --- यानि की मम्मी चादर के अंदर से अभी भी टॉपलेस है!!
मैं कुछ और भी पूछने वाला था कि तभी मम्मी मुझे जाने को बोली और मुझसे कुछ सुने बगैर ही डोर बंद कर दी !
मम्मी का इस तरह से डोर बंद कर देना मुझे अजीब लगा. पहले तो सोचा की चलो अभी के लिए अपने स्लीपर में चला जाता हूँ लेकिन तभी एक मस्त आईडिया आया दिमाग में.. मैं फौरन बस से नीचे उतरा और उस लौंडे को ढूँढने लगा. ज़्यादा टाइम नहीं लगा उसे ढूँढने में --- वो कुछ ही दूर पर चाय पी रहा था. मैं उसके पास जा कर खड़ा हो गया और दुकान से एक सिगरेट ले कर फूँकने लगा. सिगरेट के कश लेते हुए उसके करीब जा कर खड़ा हो गया और उससे बातें करने लगा. इधर - उधर की थोड़ी सी बातें करने के बाद धीरे से उसे कहा,
“भई, एक बात बोलूँ?” उसकी चाय ख़त्म होने पर मैंने अपना सिगरेट उसकी ओर बढ़ाया.
“हाँ.. हाँ.. बोलो.” सिगरेट लेकर उससे एक लम्बा कश ले, मुँह ऊपर कर बेख्याली में धुआँ उड़ाते हुए वो बोला.
“मुझे पता है...” मैं थोड़ा सस्पेंस बनाने की कोशिश करते हुए बोला.
“क्या पता है भाई?”
“स्लीपर में क्या हो रहा था!” कहते हुए दिल में दर्द तो हुआ पर उत्सुकता और उत्तेजना में वैसे भी जान जा रही थी.
सुनते ही वो लड़का खाँस पड़ा... मेरी ओर डर कर देखा --- उसके चेहरे की रंगत ही उड़ गई --- ऐसा सकपकाया की सिगरेट नीचे गिर गई. इधर मेरे चेहरे पर मुस्कान बनी रही. आँख मारते हुए बोला,
“मस्त माल है क्या?”
वो मेरी ओर घूर कर देखा... मेरा हँसी मज़ाक वाला बर्ताव देख वो भी हँस पड़ा और तुरंत नॉर्मल हो गया. चाय के पैसे देने के बाद उसने मुझे साइड में चलने को बोला --- चाय वाले से थोड़ा दूर होते ही उसने पूछा,
“भाई, तुझे कैसे पता चला?” इस पर मैंने उसे सड़क के दूसरी ओर से आती जाती गाड़ियों की रोशनी वाली बात बताई. सुनकर वो कुछ बोला नहीं, सिर्फ़ मुस्कराया.
मैं थोड़ा मासूम बनते हुए उससे पूछा,
“भाई, क्या वो तुम्हारी बीवी है या गर्लफ्रेंड?
वो हँस पड़ा... बोला,
“न बीवी... न गर्लफ्रेंड...”
“तो?”
“आंटी है.”
“रिश्तेदारी में??”
“नहीं...”
“पड़ोसन?!”
“नहीं यार... यहीं बस में मिली.”
“बस में मिली?!!” मैं चौंकने का एक्टिंग किया --- चेहरे के भावों में अविश्वासनीयता का झलक लाते हुए आगे बोला,
“ऐसे कैसे हो सकता है भाई.. आज ही बस में मिली और आज ही... मतलब की कुछ घंटों में ही.......” कहते कहते मैं अटक गया... इसके बाद वाला शब्द गले तक आया तो सही लेकिन बाहर निकल नहीं पाया...
दुकान से वो हम दोनों के लिए एक - एक सिगरेट ले लिया था --- अपनी सिगरेट सुलगा कर जलती तीली मेरे होंठों में दबे सिगरेट की ओर बढ़ाते हुए मेरे वाक्य को पूरा करते हुए बोला,
“......की कुछ घंटों में ही ‘चोद’ दिया?! यही न?”
“अहम्म... हाँ.. यही.”
वो हँस पड़ा.. गर्व से चौड़ा हो कर २-३ तेज़ कश ले लिया. उसका खिला हुआ चेहरा बताने लगा की उसने जो लक्ष्य प्राप्त किया; वो सबके बस की बात नहीं है और चूँकि उसने ऐसा कर दिखाया इसलिए स्वयं पर विशेष गर्व होना उसका अधिकार है.
मैं मारे उत्तेजना और कौतुहल के छटपटाने लगा.
मैं लगभग विनती के स्वर में उससे याचना सा करता हुआ बोला की ‘प्लीज़ थोड़ा विस्तार से बताए की उसने ये सब किया तो कैसे किया’ --- कश लेते - लेते वो लड़का एक गहरी साँस लिया और अपनी कारगुज़ारी के बारे में कहना शुरू किया....
(क्रमशः)