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Adultery बस यात्रा
#2
हैलो, मेरा नाम आयुष जोशी है.. मैं ***** का रहने वाला हूँ. ये घटना जो मैं आज यहाँ बताने जा रहा हूँ, मेरी मम्मी के साथ पिछले ही महीने हुआ है. मेरी मम्मी का नाम बबली जोशी है और वो आयु 45 साल की है. गोरी और आम महिलाओं जैसी. पर थोड़ी चर्बी होने के बावजूद भी उनकी फिगर काफ़ी अच्छी है. वो हमेशा साड़ी पहनना पसंद करती हैं और एक भारतीय नारी की तरह ही हाथों में बहुत सारी चूड़ियाँ, पाँव में पायल पहनती हैं. साथ ही माथे पर बिंदी और माँग में सिंदूर भी भर के लगाती है.


चलिए अब सीधे कहानी पर लिए चलता हूँ.. ये घटना तब की है जब पिछले महीने हम राँची से दुमका जा रहे थे. सिर्फ़ मैं और मेरी मम्मी. हम चाह तो रहे थे २x२ पुशबैक वाले बस में स्लीपर बुक करवाना लेकिन ऐसा ठीक समय पर करवा नहीं पाए क्योंकि घर से निकले ही थे इमरजेंसी के मूड में. दोपहर में अचानक से दुमका जाने का प्रोग्राम बना और इसलिए जल्दी - जल्दी कपड़े वगैरह पैक कर घर से समय रहते निकलने के चक्कर में न तो पहले से स्लीपर बुक करवा पाए और न ही बस स्टैंड में पहुँचने तक इसका ध्यान रहा.. गनीमत ये रही की हमें हम दोनों के लिए दो सीटें मिल गयीं. कंडक्टर ने आश्वासन दिया की आगे जब बस खाली होगी  और तब अगर कोई स्लीपर खाली होती है तो हमें बता दिया जाएगा. बस के खुलने का समय तो शाम के 5 बजे का था पर बस 15 मिनट बाद ही खुली.


यहाँ मैं बता दूँ की आज सफ़र के लिए तैयार हुई मम्मी को देख कर ऐसा लग रहा था मानो खुद की ही शादी में जा रही हो. मरून रंग की झीनी, हल्की पारदर्शी साड़ी, छोटी बाँह वाली मरून रंग की ब्लाउज, गदराई माँसल पीठ पर बीच – बीच में दिखाई देती हल्की गुलाबी रंग की ब्रा उनके पूरे फिगर में चार चाँद लगा रहे हैं. जो भी एक बार देखता वो पलट - पलट कर बार – बार देखने लगता. यहाँ तक की उम्रदराज बूढ़े भी नजरें बचा कर मम्मी की गदराई पीठ और उभरे गांड को देख रहे थे!

करीब २ घंटे बाद बस एक जगह रुकी... वहाँ कुछ सवारी उतर गई जिस कारण ५-६ सीटों के साथ - साथ एक स्लीपर भी खाली हो गया. कंडक्टर महाशय हमारे पास आए और मुझे स्लीपर फ्री होने के बारे में बताया और कहा की अगर हमारी इच्छा हो तो वहाँ जा सकते हैं. मैंने स्लीपर के लिए हाँ कर दिया. पर जब स्लीपर को देखा तो देखते ही मन तनिक छोटा हो गया... और ये इसलिए हुआ क्योंकि एक तो दो जन के लिए होने के बावजूद स्लीपर नॉर्मल लंबाई से थोड़ा छोटा था और दूसरा, मेरा स्वास्थ्य कुछ ज़्यादा ही अच्छा होने के कारण मैं और मम्मी दोनों एक साथ उसमें फिट नहीं आ सकते. थोड़ा सोचने के बाद मैंने मम्मी को स्लीपर में सोने को कहा पर न जाने क्यों मम्मी ने साफ़ मना कर दिया और बोली,

“तू जा कर सो जा... बाद में अगर कोई दूसरी स्लीपर खाली होगी तो मैं उसमें चली जाऊँगी.”

एक छोटी सी बहस भी हुई हम दोनों में जिसके अंत में मेरी करारी शिकस्त हुई और मैं चुपचाप स्लीपर में सोने चला गया.

 
थकान के कारण थोड़ी ही देर में सो गया. देर रात में कंडक्टर की आवाज़ से मेरी नींद खुल गयी --- समय देखा, १२:१५ बज रहे हैं --- कंडक्टर ज़ोर - ज़ोर से सबको कह रहा है कि,

जिस - जिस को भी भूख लगी हो वो नीचे आ कर खा – पी ले.

समझ गया, बस किसी ढाबे पर रुकी है. मैं अपने स्लीपर से बाहर आया और मम्मी की सीट पर गया... पर मम्मी वहाँ नहीं मिली --- तो मैंने सोचा की मम्मी शायद बाथरूम के लिए नीचे उतर गयी होगी.. मैं नीचे गया और मम्मी को ढूँढने लगा --- ढूँढ़ते हुए देखा की हमारी बस जहाँ खड़ी है उससे कुछ कदमों की दूरी पर सामने एक बड़ा सा रेस्टोरेंट है --- ‘लालसा होटल’!  व्यवस्था ढाबा जैसा ही कर रखा है यहाँ --- लोग-बाग बाहर बिछे खाट – चौकियों पर बैठ कर खाने का ऑर्डर दे रहे हैं एवं जिन लोगों का खाना आ गया है वो बड़े प्रेम से खाने का स्वाद लेने में लगे हैं. मैं रेस्टोरेंट के अंदर चला गया... सोचा शायद मम्मी वहाँ लेडीज़ बाथरूम में गई होगी. पर मम्मी वहाँ कहीं नहीं मिली. मैं परेशान हो कर सीधे कंडक्टर के पास गया और उससे मम्मी के बारे में पूछा तो उसने कहा की बाद में एक स्लीपर खाली हो गया था तो उसके कहने पर मेरी मम्मी उसी में चली गयी थी.

यह सुन कर मैंने राहत की साँस ली. कंडक्टर से स्लीपर नंबर जानने के बाद मैं सीधे मम्मी वाले स्लीपर के पास पहुँचा और स्लीपर डोर पर नॉक किया. गौर किया, ये वाला स्लीपर मेरे स्लीपर से बड़ा है. मतलब की इसमें मैं और मम्मी आराम से आ जाएँगे.. १० - १२ बार नॉक करने और कुछ मिनट इंतज़ार के बाद मम्मी स्लीपर डोर सरकाई. मम्मी की आँखों ने इस बात का स्पष्ट इशारा किया की वो अभी तक बहुत गहरी नींद में थी.. मैंने गौर किया कि उनके बाल भी थोड़े बिखरे हुए हैं.. उनको ऐसे जगा देने पर मुझे बहुत बुरा लगा.
 
बिना एक क्षण भी व्यर्थ गँवाए मैं मम्मी से बोला,

“मम्मी, ‘लालसा होटल’ आ गया है... आपको कुछ खाना है?”

मम्मी अपने पर एक चादर ओढ़ कर अधखुली आँखों से ही मुझसे बातें करने लगी...

“नहीं बेटा, अभी इतनी नींद आ रही है की ज़रा भी मन नहीं है खाने का..”

“चिप्स – बिस्कुट वगैरह?”

“नहीं...”

“पानी??”

“है मेरे पास.”

इसी समय मम्मी ने जो चादर ओढ़ रखी थी उसका आगे का हिस्सा थोड़ा ढीला हो कर सामने से खुल गया... और ऐसा होते ही चूचियों के मिलन से बनने वाली लंबी खाई दिखने लगी --- बस में चार बल्ब जल रहे थे और और उनमें से एक मम्मी वाले स्लीपर के ठीक बगल में था.. जिस कारण जैसे ही चादर सामने से ढीली हो कर नीची हुई; उस बल्ब की रोशनी में मम्मी का वो बेहद खूबसूरत दूधिया खाई एकदम से मेरी आँखों के समक्ष दृश्यमान हो उठा!


सीने पर पल्लू है नहीं और साथ ही ब्लाउज के दो हुक भी खुले हुए हैं... नींद में पल्लू का सरक जाना समझ में आता है लेकिन यूँ ब्लाउज के हुक खुल जाना; ये समझ से परे है. एक और बात जो समझ में नहीं आई, वो ये की मम्मी क्या पुशअप ब्रा पहनी है या फिर ब्लाउज ही तंग है क्योंकि उनकी चूचियों का बहुत सा हिस्सा उनके ब्लाउज कप से ऊपर उभर कर उठे हुए हैं --- क्या ऐसा स्लीपर जैसी जगह में सोने के कारण हो गया? --- ऐसा होता है क्या??

क्षण भर के आधे अंश में ही मेरा लंड टनक गया. एक भरी पूरी महिला, (भले ही मेरी मम्मी है) के रसदार क्लीवेज देख कर भला किसके लंड में ऐंठन नहीं होगी --- यही हाल मेरा भी हुआ --- पर दिमाग तो ख़राब हुआ उस दूधिया दरार में बहुत छोटे गोल लाल मोतियों वाली चेन को अंदर घुसा हुआ देख कर... समस्त संसार में भले कितने ही क्लीवेज न देख लूँ; मुझे मस्त वही लगता है जिसमें ऐसी ही एक सुंदर, पतली चेन क्लीवेज में घुसी हुई हो या उसके ऊपर हो!

हलक सूखने लगा मेरा --- हाथ काँपने लगे --- दर्द होने लगा लंड में; ऐसे में किसी तरह थूक गटक कर एक कॉमन सवाल किया,

“बाथरूम जाओगी?”

“नहीं बेटा.. अभी कुछ भी नहीं चाहिए.. बहुत नींद आ रही है.. तुम अब जाओ. मुझे सोना है.”

मम्मी को कुछ भी नहीं चाहिए, यहाँ तक की बाथरूम भी नहीं जाना... ये बहुत अजीब लगा मुझे. भई, ऐसी भी क्या नींद आ गई?

मैं मुस्करा कर बोला,

“ओके मम्मी.. गुड नाईट.”

“गुड नाईट बेटा!”

इसके बाद जो हुआ वो तो और भी अजीब लगा.. हुआ ये कि वहाँ से जाने के लिए अभी मैं ठीक से पलटा भी नहीं और उधर मम्मी भड़ाक से स्लीपर डोर लगा दी!  मम्मी की ये हरकत बड़ा हैरान करने वाली लगी मुझे, पर किसी बात का शक नहीं हुआ.


बस के चलने में टाइम था तो मैं बाहर आ कर घूमने लगा... बड़ी तसल्ली से अंडा भुर्जी बनवा कर पेट पूजन किया और फिर आराम से एक चौकी के कोने में बैठ कर चाय – सिगरेट लिया. करीब आधे घंटे बाद बस चल पड़ी. मम्मी को बेवजह डिस्टर्ब किए बिना मैं चुपचाप अपने स्लीपर में चला गया. बस चली और २०-२५ मिनट बाद वो दूसरे शहर में घुस कर वहाँ के बस स्टैंड के अपने काउंटर से थोड़ी दूरी पर जा कर रुक गई. कई सवारी उतर गए व कुछ सवार हुए और जिसे जहाँ जगह मिली वहाँ बैठ गए. अब चूँकि बस में काफ़ी सीट खाली थी तो किसी को कोई ख़ास दिक्कत नहीं हुई.

थोड़ी देर रुकने के बाद बस दोबारा अपने गंतव्य की ओर चल पड़ी. इस बार बस ने स्पीड पकड़ी और चूँकि अब तक आधी रात से भी अधिक का समय हो चुका था तो सबके सोने में आसानी होने के लिए बस वाले ने सारी लाइटें ऑफ़ कर के २ मद्धिम हरे रंग के नाईट बल्ब जला दिया. मैं भी सो चुका था पर शायद एकाध घंटा ही गुज़रा होगा की अचानक से बस के एक तेज़ झटके के कारण मेरी आँखें खुल गयीं. ये झटका कुछ ऐसा तेज़ था जिस कारण मेरी धड़कनें काफी तेज़ हो गयी थीं. बहुत कोशिश करने के बाद भी मुझे नींद नहीं आई...

परेशान हो कर मोबाइल में टाइम देखा --- २ बज रहे थे!


चूँकि अभी करने को कुछ भी नहीं था तो मैं मोबाइल पर गाने सुनने लगा --- चूँकि स्लीपर में रहते हुए अब थोड़ा बोरिंग लगने लगा था इसलिए वहाँ से बाहर निकल आया और मम्मी के स्लीपर की ओर चला गया... मम्मी का स्लीपर मेरे स्लीपर से पीछे था और उस के दूसरी साइड, पीछे बहुत सीट खाली थीं. मैं उन्हीं में से एक में बैठ गया और विंडो ग्लास को एक ओर कर के खिड़की पूरा खोल, आँखें बंद कर गाने सुनने लगा. संयोगवश थोड़े समय बाद अनायास ही मेरी आँखें खुलीं और तिरछी दिशा के बावजूद सीधे मम्मी वाले स्लीपर की ओर देखा.. ठीक तभी कुछ गाड़ियाँ बगल से निकलीं और उनके तेज़ हेडलाइट के कारण हमारे बस में भी तेज़ रोशनी हो गई --- इसी से मम्मी के स्लीपर में भी रोशनी हो गई. उन तेज़ रोशनी में उनके स्लीपर को जब अच्छे से देखा तो पाया की स्लीपर का एक ओर का दरवाज़ा बहुत हद तक दूसरे छोर की ओर सरका हुआ है --- डोर के साथ एक बेहद पतला सा आसमानी रंग का पर्दा भी लगा हुआ है जो रह रह कर हवा में उड़ रही है --- उसके होने या न होने में कोई फर्क नहीं है.... और उस रोशनी में अंदर का जो नज़ारा मुझे दिखा उससे तो मेरे होश ही उड़ गए --- मैंने देखा की...

मम्मी स्लीपर में अकेली नहीं है! उनके साथ कोई और भी है!!


वो मम्मी के ऊपर लेटा हुआ है और उनकी फ़ैली हुई टाँगों के बीचोंबीच खुद को फिट कर बार - बार ऊपर नीचे हो रहा है..!!



(क्रमशः)
My Stories:
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The Naughty "Office" Thing!




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Messages In This Thread
बस यात्रा - by The_Writer - 20-03-2022, 11:37 PM
RE: बस यात्रा - by The_Writer - 20-03-2022, 11:41 PM
RE: बस यात्रा - by The_Writer - 21-03-2022, 10:22 PM
RE: बस यात्रा - by tanushree - 22-03-2022, 03:13 PM
RE: बस यात्रा - by Nadeem.Kn - 22-03-2022, 03:22 PM
RE: बस यात्रा - by Coolamy_111 - 22-03-2022, 03:24 PM
RE: बस यात्रा - by tanushree - 23-03-2022, 05:02 PM
RE: बस यात्रा - by Itsdaysain - 23-03-2022, 09:33 PM
RE: बस यात्रा - by The_Writer - 25-03-2022, 03:09 PM
RE: बस यात्रा - by Samfucker - 24-03-2022, 02:58 PM
RE: बस यात्रा - by The_Writer - 25-03-2022, 03:10 PM
RE: बस यात्रा - by The_Writer - 25-03-2022, 03:14 PM
RE: बस यात्रा - by The_Writer - 25-03-2022, 03:19 PM
RE: बस यात्रा - by Nadeem.Kn - 27-03-2022, 04:47 AM
RE: बस यात्रा - by Samfucker - 27-03-2022, 03:52 PM
RE: बस यात्रा - by saya - 27-03-2022, 09:44 PM
RE: बस यात्रा - by pawanqwert - 28-03-2022, 07:22 AM
RE: बस यात्रा - by The_Writer - 05-04-2022, 08:27 PM
RE: बस यात्रा - by Super bike - 05-04-2022, 04:43 PM
RE: बस यात्रा - by The_Writer - 05-04-2022, 08:22 PM
RE: बस यात्रा - by ghost19 - 07-04-2022, 08:23 AM
RE: बस यात्रा - by The_Writer - 06-01-2023, 09:10 PM
RE: बस यात्रा - by koolme98 - 06-01-2023, 05:00 PM
RE: बस यात्रा - by The_Writer - 06-01-2023, 09:12 PM
RE: बस यात्रा - by sahebraopawar - 07-01-2023, 10:15 AM
RE: बस यात्रा - by The_Writer - 08-01-2023, 01:21 PM
RE: बस यात्रा - by viksbabs - 07-01-2023, 09:41 PM
RE: बस यात्रा - by The_Writer - 08-01-2023, 01:23 PM
RE: बस यात्रा - by creamydelight - 10-03-2023, 02:37 AM
RE: बस यात्रा - by creamydelight - 10-03-2023, 03:52 AM
RE: बस यात्रा - by The_Writer - 10-03-2023, 11:31 PM



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