09-03-2022, 02:26 PM
तो सरिता बोली- उनकी चिंता तुम मत करो. मैं सब सभांल लूंगी.
उसने हंसते हुए बोला और अपनी पैंटी और मेरी ब्रीफ धोने बाथरूम में चली गयी.
पांच मिनट में ही सरिता वापस कमरे में आई … उसने धोयी हुई पैंटी और ब्रीफ लाकर मेरे कमरे में सुखाने को डाल दी.
फिर उसने अलमारी से दूसरी पैंटी निकालकर पहन ली और मेरी ओर देखती हुई बोली- तुम्हारे पास दूसरी ब्रीफ है क्या हर्षद?
मैंने कहा- नहीं है.
वो शैतानी से बोली- मेरी पहनोगे?
मैंने कहा- हां दे दो, कोशिश करता हूँ.
सरिता ने अलमारी से लाल रंग की अपनी पैंटी मुझे दे दी.
मैं उसके सामने ही लंड पर पैंटी डाल दी, लेकिन उसमें मेरा लंड आराम से नहीं बैठ पा रहा था.
सरिता हंसती हुई बोली- तुम्हारा ये लंड भी तुम्हारी तरह बदमाश है, चुपचाप नहीं बैठता.
मैंने भी हंस दिया.
सरिता बोली- अब लुँगी पहन लेना, रात को कौन देखेगा.
उसने घड़ी देखी, तो शाम के साढ़े छह बज चुके थे- बाप रे … बहुत देर हो गयी हर्षद. अब मैं जा रही हूँ.
सरिता चाय की ट्रे लेकर नीचे चली गयी.
मैंने अपनी लुँगी ठीक से गाँठ लगाकर पहन ली और टीवी चालू करके बेड पर लेट गया.
टीवी देखते ही कब मेरी आंख लग गयी, पता ही नहीं चला.
फिर जब विलास ने जगाया तो घड़ी में साढ़े सात बज चुके थे.
“अरे यार विलास अच्छा हो गया तुमने मुझे जगा दिया, नहीं तो ना जाने कितनी देर तक सोता रहता.”
इतना कहकर मैं बाथरूम में गया और फ्रेश होकर आ गया.
तब तक विलास ने पैंट निकालकर लुँगी पहन ली.
हम दोनों टीवी देखते हुए बातें करने लगे.
करीब साढ़े आठ बजे विलास के मोबाइल पर सरिता का फोन आया- खाना तैयार है, आ जाओ.
हम दोनों नीचे आ गए तो सरिता सबके लिए टेबल पर खाना परोस रही थी.
हम सब बैठ गए.
सरिता मेरे सामने अपनी सासू मां के साथ बैठी थी. हम सब बातें करते खाना खा रहे थे.
मैंने विलास के पिताजी से कहा- अंकल, मेरी छुट्टी कल तक की है, तो मैं कल पांच बजे चला जाऊंगा.
अंकल ने कहा- अरे हर्षद, और दो दिन रहो ना … हमें बहुत अच्छा लगेगा.
मैंने कहा- नहीं अंकल, मैं फिर कभी आऊंगा. हालांकि मेरा भी मन नहीं कर रहा है जाने को.
ये मैं सरिता की ओर देखकर बोला तो सरिता ने अपना पैर मेरे पैर पर रख दिया.
शायद वो रुकने को बोल रही थी लेकिन सबके सामने कह नहीं सकती थी.
अंकल बोले- ठीक है हर्षद जैसा तुम चाहो.
हम सब खाना खाकर थोड़ी देर गपशप करने बाहर बैठ गए.
अब साढ़े नौ बज गए थे तो विलास बोला- चलो हर्षद ऊपर चलते हैं. कल सुबह मुझे आठ बजे जाना है.
हम दोनों ऊपर आ गए.
विलास ने टीवी चालू कर दिया.
मैं कुर्सी में बैठ गया और विलास बेड पर बैठ गया.
हम दोनों पुरानी यादें ताजा करने लगे; बहुत सारी बातें एक दूसरे से साझा करते रहे थे.
थोड़ी देर में सरिता हाथ में ट्रे लेकर आयी.
वो हम तीनों के लिए दूध लायी थी. उसने विलास को और मुझे ग्लास दिया और एक खुद ने भी ले लिया. हम तीनों दूध पीने लगे.
सरिता ने मुझसे कहा- देवर जी, और दो दिन रहते तो हम लोगों को अच्छा लगता.
“नहीं भाभीजी, ज्यादा छुट्टी नहीं मिलती है ना.”
सरिता मुँह लटका कर विलास से बोली- सुनो जी, अब आप ही कुछ कहो ना.
विलास बोला- सरिता उसकी नयी नयी जॉब है. इसलिए ज्यादा छुट्टी नहीं मिलती. तुम्हारे आने से पहले ही मैं हर्षद को यही कह रहा था. वो फिर कभी आने की भी बोल रहा है. उसकी मज़बूरी है तो हम जबरदस्ती नहीं कर सकते ना सरिता.
बातें करते करते दस बज गए थे.
विलास बोला- हर्षद अब मैं सोता हूँ. सुबह आठ बजे मुझे जाना है. तुम भी सो जाओ.
ये कह कर विलास अपने बेड पर लेट गया.
सरिता ने उठकर बाहर का दरवाजा लॉक कर दिया.
मैं भी उठ गया और अपने रूम में जाकर दरवाजा हल्के से लगा दिया, लॉक नहीं किया.
मैं अन्दर जाकर अपने कपड़े निकालकर पूरा नंगा हो गया.
सरिता की पहनी हुई पैंटी भी निकालकर रख दी, कमरे की लाईट बंद कर दी और जीरो वाट की लाईट चालू कर दी.
मैं लुँगी अपने बदन पर ओढ़कर लेट गया.
मैंने बीच की खिड़की की तरफ देखा तो सरिता भी लाईट बंद करके सो गयी थी.
मैं आंखें बंद करके सरिता के आने का इंतजार करने लगा.
आधा घंटा हो गया था.
मुझे तो एक मिनट भी एक घंटा जैसे लग रहा था.
पूरी रात सरिता को चोदने की चाहत से मन में तो लड्डू फूट रहे थे.
इस सोच से ही मेरे लंड में भारी गुदगुदी हो रही थी.
थोड़ा और इंतजार करके मैं खिड़की के पास जाकर देखने लगा.
जीरो वाट की लाईट में सब दिखाई देता था. मैंने पर्दा थोड़ा सा हटाया और देखा तो विलास दीवार की तरफ मुँह करके सोया था और सरिता पीठ के बल टांगें फैलाकर लेटी थी.
सरिता का एक हाथ अपनी चूचियों पर रखा था और दूसरा हाथ चूत पर रखा था.
उसकी आंखें बंद थीं.
मैं थोड़ी देर ऐसे ही सरिता की तरफ नजरें गाड़कर देखता रहा.
अब सरिता अपने एक हाथ से अपनी चूत को गाउन के ऊपर से ही सहला रही थी और दूसरे हाथ से अपनी चूचियां सहला रही थी.
मुझे ये देखकर अपने पूरे बदन में एक अजीब सी लहर दौड़ने लगी.
मुझसे रहा नहीं गया, मैंने बेड पर रखी सरिता की पैंटी को लेकर उसे बॉल जैसी गोल बनाकर खिड़की से उसकी ओर फैंका, तो उसकी चूत पर जाकर लगी.
सरिता बौखला कर उठ गयी. उसने मेरी तरफ देख लिया और हंसते हुए हाथ से इशारा किया- रुको, मैं आ रही हूं.
उसने अपनी पैंटी उठायी और बेड के नीचे उतर कर खिड़की बंद कर दी.
मैं भी बेड पर बैठ गया.
ग्यारह बज रहे थे. सरिता ने हल्के से दरवाजा खोला और अन्दर आकर आहिस्ता से बंद कर दिया.
अब हम दोनों की इंतजार की घड़ियां खत्म हो गयी थीं.
मैं बेड पर बैठकर सरिता को देख रहा था.
उसके हाथ में वो पैंटी थी जो मैंने उसे मारी थी.
उसने वो पैंटी मेरे लंड पर फैंकी.
मेरा लंड खड़ा होने की वजह से वो लंड पर लटकने लगी.
सरिता हंसती हुई बेड के पास आयी.
उसने अपना गाउन निकालकर कुर्सी पर रख दिया और मेरे लंड पर लटकती पैंटी को भी निकाल कर रख दी.
सरिता पूरी तैयारी के साथ आयी थी; उसने पैंटी और ब्रा नहीं पहनी थी. मैं उसका कंटीला और सेक्सी बदन देखता ही रह गया
उसने हंसते हुए बोला और अपनी पैंटी और मेरी ब्रीफ धोने बाथरूम में चली गयी.
पांच मिनट में ही सरिता वापस कमरे में आई … उसने धोयी हुई पैंटी और ब्रीफ लाकर मेरे कमरे में सुखाने को डाल दी.
फिर उसने अलमारी से दूसरी पैंटी निकालकर पहन ली और मेरी ओर देखती हुई बोली- तुम्हारे पास दूसरी ब्रीफ है क्या हर्षद?
मैंने कहा- नहीं है.
वो शैतानी से बोली- मेरी पहनोगे?
मैंने कहा- हां दे दो, कोशिश करता हूँ.
सरिता ने अलमारी से लाल रंग की अपनी पैंटी मुझे दे दी.
मैं उसके सामने ही लंड पर पैंटी डाल दी, लेकिन उसमें मेरा लंड आराम से नहीं बैठ पा रहा था.
सरिता हंसती हुई बोली- तुम्हारा ये लंड भी तुम्हारी तरह बदमाश है, चुपचाप नहीं बैठता.
मैंने भी हंस दिया.
सरिता बोली- अब लुँगी पहन लेना, रात को कौन देखेगा.
उसने घड़ी देखी, तो शाम के साढ़े छह बज चुके थे- बाप रे … बहुत देर हो गयी हर्षद. अब मैं जा रही हूँ.
सरिता चाय की ट्रे लेकर नीचे चली गयी.
मैंने अपनी लुँगी ठीक से गाँठ लगाकर पहन ली और टीवी चालू करके बेड पर लेट गया.
टीवी देखते ही कब मेरी आंख लग गयी, पता ही नहीं चला.
फिर जब विलास ने जगाया तो घड़ी में साढ़े सात बज चुके थे.
“अरे यार विलास अच्छा हो गया तुमने मुझे जगा दिया, नहीं तो ना जाने कितनी देर तक सोता रहता.”
इतना कहकर मैं बाथरूम में गया और फ्रेश होकर आ गया.
तब तक विलास ने पैंट निकालकर लुँगी पहन ली.
हम दोनों टीवी देखते हुए बातें करने लगे.
करीब साढ़े आठ बजे विलास के मोबाइल पर सरिता का फोन आया- खाना तैयार है, आ जाओ.
हम दोनों नीचे आ गए तो सरिता सबके लिए टेबल पर खाना परोस रही थी.
हम सब बैठ गए.
सरिता मेरे सामने अपनी सासू मां के साथ बैठी थी. हम सब बातें करते खाना खा रहे थे.
मैंने विलास के पिताजी से कहा- अंकल, मेरी छुट्टी कल तक की है, तो मैं कल पांच बजे चला जाऊंगा.
अंकल ने कहा- अरे हर्षद, और दो दिन रहो ना … हमें बहुत अच्छा लगेगा.
मैंने कहा- नहीं अंकल, मैं फिर कभी आऊंगा. हालांकि मेरा भी मन नहीं कर रहा है जाने को.
ये मैं सरिता की ओर देखकर बोला तो सरिता ने अपना पैर मेरे पैर पर रख दिया.
शायद वो रुकने को बोल रही थी लेकिन सबके सामने कह नहीं सकती थी.
अंकल बोले- ठीक है हर्षद जैसा तुम चाहो.
हम सब खाना खाकर थोड़ी देर गपशप करने बाहर बैठ गए.
अब साढ़े नौ बज गए थे तो विलास बोला- चलो हर्षद ऊपर चलते हैं. कल सुबह मुझे आठ बजे जाना है.
हम दोनों ऊपर आ गए.
विलास ने टीवी चालू कर दिया.
मैं कुर्सी में बैठ गया और विलास बेड पर बैठ गया.
हम दोनों पुरानी यादें ताजा करने लगे; बहुत सारी बातें एक दूसरे से साझा करते रहे थे.
थोड़ी देर में सरिता हाथ में ट्रे लेकर आयी.
वो हम तीनों के लिए दूध लायी थी. उसने विलास को और मुझे ग्लास दिया और एक खुद ने भी ले लिया. हम तीनों दूध पीने लगे.
सरिता ने मुझसे कहा- देवर जी, और दो दिन रहते तो हम लोगों को अच्छा लगता.
“नहीं भाभीजी, ज्यादा छुट्टी नहीं मिलती है ना.”
सरिता मुँह लटका कर विलास से बोली- सुनो जी, अब आप ही कुछ कहो ना.
विलास बोला- सरिता उसकी नयी नयी जॉब है. इसलिए ज्यादा छुट्टी नहीं मिलती. तुम्हारे आने से पहले ही मैं हर्षद को यही कह रहा था. वो फिर कभी आने की भी बोल रहा है. उसकी मज़बूरी है तो हम जबरदस्ती नहीं कर सकते ना सरिता.
बातें करते करते दस बज गए थे.
विलास बोला- हर्षद अब मैं सोता हूँ. सुबह आठ बजे मुझे जाना है. तुम भी सो जाओ.
ये कह कर विलास अपने बेड पर लेट गया.
सरिता ने उठकर बाहर का दरवाजा लॉक कर दिया.
मैं भी उठ गया और अपने रूम में जाकर दरवाजा हल्के से लगा दिया, लॉक नहीं किया.
मैं अन्दर जाकर अपने कपड़े निकालकर पूरा नंगा हो गया.
सरिता की पहनी हुई पैंटी भी निकालकर रख दी, कमरे की लाईट बंद कर दी और जीरो वाट की लाईट चालू कर दी.
मैं लुँगी अपने बदन पर ओढ़कर लेट गया.
मैंने बीच की खिड़की की तरफ देखा तो सरिता भी लाईट बंद करके सो गयी थी.
मैं आंखें बंद करके सरिता के आने का इंतजार करने लगा.
आधा घंटा हो गया था.
मुझे तो एक मिनट भी एक घंटा जैसे लग रहा था.
पूरी रात सरिता को चोदने की चाहत से मन में तो लड्डू फूट रहे थे.
इस सोच से ही मेरे लंड में भारी गुदगुदी हो रही थी.
थोड़ा और इंतजार करके मैं खिड़की के पास जाकर देखने लगा.
जीरो वाट की लाईट में सब दिखाई देता था. मैंने पर्दा थोड़ा सा हटाया और देखा तो विलास दीवार की तरफ मुँह करके सोया था और सरिता पीठ के बल टांगें फैलाकर लेटी थी.
सरिता का एक हाथ अपनी चूचियों पर रखा था और दूसरा हाथ चूत पर रखा था.
उसकी आंखें बंद थीं.
मैं थोड़ी देर ऐसे ही सरिता की तरफ नजरें गाड़कर देखता रहा.
अब सरिता अपने एक हाथ से अपनी चूत को गाउन के ऊपर से ही सहला रही थी और दूसरे हाथ से अपनी चूचियां सहला रही थी.
मुझे ये देखकर अपने पूरे बदन में एक अजीब सी लहर दौड़ने लगी.
मुझसे रहा नहीं गया, मैंने बेड पर रखी सरिता की पैंटी को लेकर उसे बॉल जैसी गोल बनाकर खिड़की से उसकी ओर फैंका, तो उसकी चूत पर जाकर लगी.
सरिता बौखला कर उठ गयी. उसने मेरी तरफ देख लिया और हंसते हुए हाथ से इशारा किया- रुको, मैं आ रही हूं.
उसने अपनी पैंटी उठायी और बेड के नीचे उतर कर खिड़की बंद कर दी.
मैं भी बेड पर बैठ गया.
ग्यारह बज रहे थे. सरिता ने हल्के से दरवाजा खोला और अन्दर आकर आहिस्ता से बंद कर दिया.
अब हम दोनों की इंतजार की घड़ियां खत्म हो गयी थीं.
मैं बेड पर बैठकर सरिता को देख रहा था.
उसके हाथ में वो पैंटी थी जो मैंने उसे मारी थी.
उसने वो पैंटी मेरे लंड पर फैंकी.
मेरा लंड खड़ा होने की वजह से वो लंड पर लटकने लगी.
सरिता हंसती हुई बेड के पास आयी.
उसने अपना गाउन निकालकर कुर्सी पर रख दिया और मेरे लंड पर लटकती पैंटी को भी निकाल कर रख दी.
सरिता पूरी तैयारी के साथ आयी थी; उसने पैंटी और ब्रा नहीं पहनी थी. मैं उसका कंटीला और सेक्सी बदन देखता ही रह गया
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
