03-02-2022, 10:34 AM
(This post was last modified: 03-02-2022, 10:48 AM by naag.champa. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
अध्याय १
“मैली, अरी ओ मैली” घर में कदम रखते हैं रखते हैं मेरी सासू माँ आलता देवी ने मुझे आवाज लगाई|
वैसे तो मेरा नाम चमेली है लेकिन बचपन में मैं अपना नाम ठीक से नहीं बोल पाती थी, इसलिए मेरे मुंह से सिर्फ मेली ही निकलता था| उसी वजह से तब से लोग मुझे शायद प्यार से “मैली” कह कर ही घर में लगे|
“यह तो रही मैं, सासु मैया, लो मैं आ गई”
“अरी ओ मैली, आज तूने फिर से इतनी देर काहे लगा दी? देखकर का कितना काम पड़ा हुआ है, सुबह से लेकर अब तक मैं सिर्फ भात (चावल) ही बना पाई हूं... बाकी की रसोई कौन देखेगा?”
“अब मैं क्या बताऊं सासू मैया| आज भी लाल बाबा के घर मांस पकाना पड़ा... उसके बाद उनका घर द्वार ठीक करके उसके बेटे को नहला दो लाकर उसके बालों में कंघी- चोटी करके बिस्तर लगा कर आते आते देर हो गई अब मैं क्या करूं?”
“ठीक है, ठीक है वह सब मैं समझ सकती हूं| लेकिन थोड़ी बहुत कोशिश करके अगर तू थोड़ा जल्दी घर आ जाती तो अच्छा होता”
मैं मन ही मन सोचने लगी, मैं जल्दबाजी करूं तो कैसे करूं? लाल बाबा और उसका बेटा- लाडला दोनों ही मर्द है और मैं ठहरी एक अकेली जवान औरत... घर के सारे काम चूल्हा चौका वगैरा-वगैरा करने के बाद पारी पारी से मुझे उनके बिस्तरों में बदन पसारना पड़ता है तो क्या देर नहीं होगी?
सच कहूं तो मैं कभी कबार सोचने लगती हूं, मेरी जिंदगी का यह पढ़ाओ न जाने कहां से शुरू हुई और न जाने कहां जाकर खत्म होगी| मुझे याद है कि मेरे माँ बाप ने बहुत ही कम उम्र में मेरी शादी करवा दी थी| इसकी सबसे बड़ी वजह थी हमारे अड़ौसी पड़ोसी; जितने मुंह उतनी बातें लेकिन सब का यही कहना था कि उम्र के हिसाब से मेरे शरीर का विकास और सुंदरता में निखार कुछ ज्यादा ही तेजी से हो रहा था... मेरे लंबे लंबे बाल घुंघराले काले बाल, बड़े-बड़े सुडौल स्तन और मांसल कूल्हों पर मर्द तो दूर औरतों की भी नजर पड़ती थी और उन सब के हिसाब सेवक्त से पहले ही मैं जवान लगने लगी थी|
शायद इसीलिए मेरे माँ बाप ने जल्द ही मेरी शादी करवा दी है| बहुत कम उम्र में मेरी शादी तो हो गई, लेकिन उस हिसाब से ज्यादा दिनों तक मुझे अपने पति का साथ नहीं मिला|
मेरे पति शहर में एक जूट मिल में काम किया करते थे| वहां न जाने किस बात को लेकर झंझट शुरू हुआ, बात तोड़फोड़ और मारपीट तक आ पहुंची... उसके बाद थाना सिक्युरिटी - कोर्ट कचहरी का झमेला कुछ महीनों तक चलता रहा... और बदकिस्मती से मेरे पति को दस साल से ज्यादा की सजा हो गई|
शादी के बाद लड़की का घर आंगन उसका ससुराल ही होता है इसलिए मुझे मजबूरी में ही सही अपनी विधवा सासु माँ के गांव के घर में ही पनाह लेनी पड़ी|
इस गांव का नाम था “खाली गांव”|
पर इस गांव में खासियत थी, यहां कई सारे पुराने मंदिर, मस्जिद और मकबरे थे जिसकी वजह से यहां सैलानियों और भक्तों का आना जाना लगा रहता था|
और अगर देखा जाए तो मेरे पति है तो जेल में थे इसलिए उनके लिए तो खाने-पीने और रहने की कोई परेशानी नहीं थी लेकिन गांव के इस घर में मेरी और मेरी सासू माँ के लिए आमदनी का जरिया सिर्फ उनकी फूलों फूलों की दुकान थी|
लेकिन दुकान से जो आमदनी होती थी घटती बढ़ती रहती थी और धंधे में तो कभी कबार नफा नुकसान होता ही रहता है... इसलिए घर में ज्यादातर तंगी ही बनी रहती थी|
गांव के बाजार में जहां हमारी दुकान थी उससे कुछ ही दूर है एक कब्रिस्तान था| उसके उसके पास में ही लाल बाबा का घर था|
लाल बाबा जादू टोना, जंतर मंतर, टोना टोटका ताबीज करके लोगों की बरकत किया करते थे और उनका आना-जाना हमारी दुकान में लगा ही रहता था|
सासू माँ के साथ-साथ में भी उनकी दुकान में बैठा करती थी, इसलिए लाल बाबा ने मुझे तो देख ही लिया था| मेरी आने के कुछ दिनों बाद ही उन्होंने मेरी सासू माँ से कहा कि उनका घर संभालने, चूल्हा चौका, झाड़ू पोछा वगैरा-वगैरा करने और उनकी बेटी की देखभाल करने के लिए उन्हें एक औरत की जरूरत है जिसके बदले वह महीने के महीने अच्छी तनख्वाह देने के लिए भी राजी थे|
यह हमारे लिए बहुत अच्छा था मौका था इसलिए हम लोग एकदम राजी हो गए|
लाल बाबा के घर सिर्फ वह और उनका इक्कीस - बाईस साल का बेटा रहता था... उनके बेटे का नाम था लाडला|
इसका कारण भी मुझे बहुत जल्दी ही समझ में आ गया| वैसे तो वह लड़का- लाडला; इक्कीस - बाईस साल का था लेकिन उम्र के हिसाब से उसकी बढ़ोतरी नहीं हुई थी और वह दिखने में एकदम दुबला पतला और छोटे कद का था|
बचपन में ही उसकी माँ- यानी कि लाल बाबा की बीवी- गुजर गई थी और तब से उसकी आदत ही कुछ अजीब सी हो गई थी| उसने बचपन से अपने बाल नहीं कटवाए थे, फिलहाल उसके बाद उसके कमर तक लंबे हो गए थे और उसके अंदर एक अजीब सा बचपना और उसकी आदतें और बर्ताव बिल्कुल लड़कियों जैसी थी|
“अच्छा अब वह खड़ी खड़ी सोच के आ रही है, मैली?” सासू मा आलता देवी की आवाज सुनकर मेरे ख्यालों में खोई हुई थी उससे बाहर आई और फिर मैंने उनको सब कुछ खुलकर कर बता दिया, “ अब मैं क्या बोलूं सासु मैया; उनके घर में उनकी करीबी एक मैं ही तो हूं अकेली औरत और उसके ऊपर वह लोग जात और धर्म में परे मलेछ (दूसरे धर्म के) हैं... और उसके बाद लाल बाबा के कहने पर जब आपने भी इजाजत दे दी तब से तो मैं नंगी होकर के उनके बिस्तर पर अपना पतन पसार के टांगे फैलाने लगी... वह तो अपनी है मनमर्जी के हिसाब से मेरी जवानी से अपने हवस की प्यास को बुझाते रहते हैं और आपको तो पता है कि उनकी देखा देखी उनका बेटा लाडला भी यह सब सी क्या है और आजकल वह भी मुझे अपने बिस्तर पर लेटा करके मेरे बदन पर चढ़ जाता है... अब आप ही बताइए मेरे पास तो एक ही फुद्दी (योनि) है... और वहां उनके दो- दो खंभे (लिंग) इसलिए देर हो गई... और आपको तो पता ही होगा- वह लोग दोनों के दोनों मलेछ (गैर मजहबी) है, इसलिए वह दोनों के दोनों काफी देर तक ठुकाई (मैथुन) करने के काबिल है”
मेरी यह बातें सुनकर सासू माँ आलता देवी भी यादों में खो गई, उन्होंने मुझसे अपनी निगाहें हटाकर बाहर के खालीपन को देखते हुए भूलने लगी, “मुझे आज भी वह दिन अच्छी तरह याद है, पौ फटते ही तू नहा धोकर पेड़ के नीचे बैठकर लाल जवा फूलों की मला गूंथ रही थी... तेरा बदन अध गीला था तेरे लंबे लंबे काले घुंघराले बाल तभी भी गीले थे और तूने सिर्फ एक साड़ी पहन रखी थी वह भी भीगी हुई थी... साड़ी पहनने के बावजूद तेरा बदन ढके रहने के मुकाबले ज्यादा खुला खुला सा लग रहा था और क्योंकि साड़ी तेरे को तन से बिल्कुल चिपकी हुई थी तेरे बदन हर घुमाओ और उभार साफ झलक रहा था… ऐसी अध नंगी हालत में तू बहुत खूबसूरत लग रही थी और यह संयोग की बात है के लाल बाबा उसी वक्त हमारे घर आ गए| उन्हें उस दिन ताजे फूल और फलों की जरूरत नहीं|
हालांकि वो मुझसे सौदा कर रहे थे लेकिन मैं तभी यह भांप गई थी कि उनकी नजरें तुझ पर ही गढ़ी हुई हैं| क्योंकि वह तुझे बार-बार देखकर अपने दो टांगों के बीच के हिस्से को सहला रहे थे... और फिर उन्होंने कहा कि घर के कामकाज करने के लिए उन्हें एक औरत की जरूरत है जो कि उनकी बेटी की भी देखभाल कर सके| मैं एक बार में ही राजी हो गई|
जिस दिन से तुझे उनके घर काम शुरू करना था, उससे पहले दो तीन बार लाल बाबा हमारे घर आए थे| मैं जानती थी कि वह सौदा करने नहीं सिर्फ तुझे देखने के लिए आते थे और मैं जानती थी कि उनकी नजर तुझ पर पड़ चुकी है और यह गौर करने वाली बात है कि बचपन से ही उन लोगों के अंगों के सिरों की चमड़ी का टांका छिला हुआ रहता है... इसलिए उनके बदन में शायद हवस की गर्मी कुछ ज्यादा ही पैदा होती है...
इसलिए वह जब भी हमारे घर आते मैंने तुझे हिदायत दे रखी थी कि जब भी तो उनके सामने जाएगी इस बात का ध्यान रखना कि तेरे बाल बिल्कुल खुली होनी चाहिए हाथ में चूड़ियां नहीं होनी चाहिए और मांग में सिंदूर भी नहीं यहां तक की मैंने तुझे ब्लाउज पहनने के लिए भी मना कर रखा था... क्योंकि मैं जानती थी कि ऐसी वेशभूषा में तू बिल्कुल एक कुंवारी कच्छी कली जैसी लगेगी और इसके साथ ही है उनको और ज्यादा लुभाएगी...
और वैसे भी सोचने वाली बात यह है कि तू अगर किसी पराए मर्द के घर जाकर उसके बिस्तर पर अपना बदन पसारे की तो परिवार में दो-चार पैसों की आमदनी ज्यादा होगी और वैसे भी है तो अभी जवान है सुंदर है अकेले-अकेले इस तरह से पड़े रहना तेरे लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं है... तू जैसे जवान और कब से लड़की अगर थोड़ा बहुत लेचारी कर भी लोगी तो क्या फर्क पड़ता है?”
लेचारी- हमारे गांव में ज्यादा से ज्यादा परिवार में शादीशुदा मर्द काम के सिलसिले में बाहर ही रहते हैं, इसकी बदौलत अच्छे-अच्छे घरों की लड़कियां, बहुएं या फिर औरतें अक्सर दूसरे मर्दो के साथ संबंध बना लेती हैं... भले ही यह व्यभिचार हो लेकिन इस प्रथा को चुपके चुपके हमारे समाज में स्वीकृति भी दी गई है...
और मेरे पति तो वैसे भी जेल में है|
फिर सासू माँ आलता देवी ने मुझसे पूछा, “अच्छा एक बात बता मैली, लाल बाबा का बेटा लाडला कब से तेरे बदन पर चढ़ने लगा? मुझे शक तो बहुत पहले से ही हो गया था मैं काफी दिनों से सोच रही थी कि मैं तुझ से पूछूंगी उसके बारे में लेकिन मुझे मौका ही नहीं मिला आज जरा खुल कर बताइए कि मुझे?”
क्रमशः
New Hindi Story : मैली
“मैली, अरी ओ मैली” घर में कदम रखते हैं रखते हैं मेरी सासू माँ आलता देवी ने मुझे आवाज लगाई|
वैसे तो मेरा नाम चमेली है लेकिन बचपन में मैं अपना नाम ठीक से नहीं बोल पाती थी, इसलिए मेरे मुंह से सिर्फ मेली ही निकलता था| उसी वजह से तब से लोग मुझे शायद प्यार से “मैली” कह कर ही घर में लगे|
“यह तो रही मैं, सासु मैया, लो मैं आ गई”
“अरी ओ मैली, आज तूने फिर से इतनी देर काहे लगा दी? देखकर का कितना काम पड़ा हुआ है, सुबह से लेकर अब तक मैं सिर्फ भात (चावल) ही बना पाई हूं... बाकी की रसोई कौन देखेगा?”
“अब मैं क्या बताऊं सासू मैया| आज भी लाल बाबा के घर मांस पकाना पड़ा... उसके बाद उनका घर द्वार ठीक करके उसके बेटे को नहला दो लाकर उसके बालों में कंघी- चोटी करके बिस्तर लगा कर आते आते देर हो गई अब मैं क्या करूं?”
“ठीक है, ठीक है वह सब मैं समझ सकती हूं| लेकिन थोड़ी बहुत कोशिश करके अगर तू थोड़ा जल्दी घर आ जाती तो अच्छा होता”
(आलता देवी)
मैं मन ही मन सोचने लगी, मैं जल्दबाजी करूं तो कैसे करूं? लाल बाबा और उसका बेटा- लाडला दोनों ही मर्द है और मैं ठहरी एक अकेली जवान औरत... घर के सारे काम चूल्हा चौका वगैरा-वगैरा करने के बाद पारी पारी से मुझे उनके बिस्तरों में बदन पसारना पड़ता है तो क्या देर नहीं होगी?
सच कहूं तो मैं कभी कबार सोचने लगती हूं, मेरी जिंदगी का यह पढ़ाओ न जाने कहां से शुरू हुई और न जाने कहां जाकर खत्म होगी| मुझे याद है कि मेरे माँ बाप ने बहुत ही कम उम्र में मेरी शादी करवा दी थी| इसकी सबसे बड़ी वजह थी हमारे अड़ौसी पड़ोसी; जितने मुंह उतनी बातें लेकिन सब का यही कहना था कि उम्र के हिसाब से मेरे शरीर का विकास और सुंदरता में निखार कुछ ज्यादा ही तेजी से हो रहा था... मेरे लंबे लंबे बाल घुंघराले काले बाल, बड़े-बड़े सुडौल स्तन और मांसल कूल्हों पर मर्द तो दूर औरतों की भी नजर पड़ती थी और उन सब के हिसाब सेवक्त से पहले ही मैं जवान लगने लगी थी|
शायद इसीलिए मेरे माँ बाप ने जल्द ही मेरी शादी करवा दी है| बहुत कम उम्र में मेरी शादी तो हो गई, लेकिन उस हिसाब से ज्यादा दिनों तक मुझे अपने पति का साथ नहीं मिला|
मेरे पति शहर में एक जूट मिल में काम किया करते थे| वहां न जाने किस बात को लेकर झंझट शुरू हुआ, बात तोड़फोड़ और मारपीट तक आ पहुंची... उसके बाद थाना सिक्युरिटी - कोर्ट कचहरी का झमेला कुछ महीनों तक चलता रहा... और बदकिस्मती से मेरे पति को दस साल से ज्यादा की सजा हो गई|
शादी के बाद लड़की का घर आंगन उसका ससुराल ही होता है इसलिए मुझे मजबूरी में ही सही अपनी विधवा सासु माँ के गांव के घर में ही पनाह लेनी पड़ी|
इस गांव का नाम था “खाली गांव”|
पर इस गांव में खासियत थी, यहां कई सारे पुराने मंदिर, मस्जिद और मकबरे थे जिसकी वजह से यहां सैलानियों और भक्तों का आना जाना लगा रहता था|
और अगर देखा जाए तो मेरे पति है तो जेल में थे इसलिए उनके लिए तो खाने-पीने और रहने की कोई परेशानी नहीं थी लेकिन गांव के इस घर में मेरी और मेरी सासू माँ के लिए आमदनी का जरिया सिर्फ उनकी फूलों फूलों की दुकान थी|
लेकिन दुकान से जो आमदनी होती थी घटती बढ़ती रहती थी और धंधे में तो कभी कबार नफा नुकसान होता ही रहता है... इसलिए घर में ज्यादातर तंगी ही बनी रहती थी|
गांव के बाजार में जहां हमारी दुकान थी उससे कुछ ही दूर है एक कब्रिस्तान था| उसके उसके पास में ही लाल बाबा का घर था|
लाल बाबा जादू टोना, जंतर मंतर, टोना टोटका ताबीज करके लोगों की बरकत किया करते थे और उनका आना-जाना हमारी दुकान में लगा ही रहता था|
(लाल बाबा)
सासू माँ के साथ-साथ में भी उनकी दुकान में बैठा करती थी, इसलिए लाल बाबा ने मुझे तो देख ही लिया था| मेरी आने के कुछ दिनों बाद ही उन्होंने मेरी सासू माँ से कहा कि उनका घर संभालने, चूल्हा चौका, झाड़ू पोछा वगैरा-वगैरा करने और उनकी बेटी की देखभाल करने के लिए उन्हें एक औरत की जरूरत है जिसके बदले वह महीने के महीने अच्छी तनख्वाह देने के लिए भी राजी थे|
यह हमारे लिए बहुत अच्छा था मौका था इसलिए हम लोग एकदम राजी हो गए|
लाल बाबा के घर सिर्फ वह और उनका इक्कीस - बाईस साल का बेटा रहता था... उनके बेटे का नाम था लाडला|
इसका कारण भी मुझे बहुत जल्दी ही समझ में आ गया| वैसे तो वह लड़का- लाडला; इक्कीस - बाईस साल का था लेकिन उम्र के हिसाब से उसकी बढ़ोतरी नहीं हुई थी और वह दिखने में एकदम दुबला पतला और छोटे कद का था|
बचपन में ही उसकी माँ- यानी कि लाल बाबा की बीवी- गुजर गई थी और तब से उसकी आदत ही कुछ अजीब सी हो गई थी| उसने बचपन से अपने बाल नहीं कटवाए थे, फिलहाल उसके बाद उसके कमर तक लंबे हो गए थे और उसके अंदर एक अजीब सा बचपना और उसकी आदतें और बर्ताव बिल्कुल लड़कियों जैसी थी|
(लाडला)
“अच्छा अब वह खड़ी खड़ी सोच के आ रही है, मैली?” सासू मा आलता देवी की आवाज सुनकर मेरे ख्यालों में खोई हुई थी उससे बाहर आई और फिर मैंने उनको सब कुछ खुलकर कर बता दिया, “ अब मैं क्या बोलूं सासु मैया; उनके घर में उनकी करीबी एक मैं ही तो हूं अकेली औरत और उसके ऊपर वह लोग जात और धर्म में परे मलेछ (दूसरे धर्म के) हैं... और उसके बाद लाल बाबा के कहने पर जब आपने भी इजाजत दे दी तब से तो मैं नंगी होकर के उनके बिस्तर पर अपना पतन पसार के टांगे फैलाने लगी... वह तो अपनी है मनमर्जी के हिसाब से मेरी जवानी से अपने हवस की प्यास को बुझाते रहते हैं और आपको तो पता है कि उनकी देखा देखी उनका बेटा लाडला भी यह सब सी क्या है और आजकल वह भी मुझे अपने बिस्तर पर लेटा करके मेरे बदन पर चढ़ जाता है... अब आप ही बताइए मेरे पास तो एक ही फुद्दी (योनि) है... और वहां उनके दो- दो खंभे (लिंग) इसलिए देर हो गई... और आपको तो पता ही होगा- वह लोग दोनों के दोनों मलेछ (गैर मजहबी) है, इसलिए वह दोनों के दोनों काफी देर तक ठुकाई (मैथुन) करने के काबिल है”
मेरी यह बातें सुनकर सासू माँ आलता देवी भी यादों में खो गई, उन्होंने मुझसे अपनी निगाहें हटाकर बाहर के खालीपन को देखते हुए भूलने लगी, “मुझे आज भी वह दिन अच्छी तरह याद है, पौ फटते ही तू नहा धोकर पेड़ के नीचे बैठकर लाल जवा फूलों की मला गूंथ रही थी... तेरा बदन अध गीला था तेरे लंबे लंबे काले घुंघराले बाल तभी भी गीले थे और तूने सिर्फ एक साड़ी पहन रखी थी वह भी भीगी हुई थी... साड़ी पहनने के बावजूद तेरा बदन ढके रहने के मुकाबले ज्यादा खुला खुला सा लग रहा था और क्योंकि साड़ी तेरे को तन से बिल्कुल चिपकी हुई थी तेरे बदन हर घुमाओ और उभार साफ झलक रहा था… ऐसी अध नंगी हालत में तू बहुत खूबसूरत लग रही थी और यह संयोग की बात है के लाल बाबा उसी वक्त हमारे घर आ गए| उन्हें उस दिन ताजे फूल और फलों की जरूरत नहीं|
हालांकि वो मुझसे सौदा कर रहे थे लेकिन मैं तभी यह भांप गई थी कि उनकी नजरें तुझ पर ही गढ़ी हुई हैं| क्योंकि वह तुझे बार-बार देखकर अपने दो टांगों के बीच के हिस्से को सहला रहे थे... और फिर उन्होंने कहा कि घर के कामकाज करने के लिए उन्हें एक औरत की जरूरत है जो कि उनकी बेटी की भी देखभाल कर सके| मैं एक बार में ही राजी हो गई|
जिस दिन से तुझे उनके घर काम शुरू करना था, उससे पहले दो तीन बार लाल बाबा हमारे घर आए थे| मैं जानती थी कि वह सौदा करने नहीं सिर्फ तुझे देखने के लिए आते थे और मैं जानती थी कि उनकी नजर तुझ पर पड़ चुकी है और यह गौर करने वाली बात है कि बचपन से ही उन लोगों के अंगों के सिरों की चमड़ी का टांका छिला हुआ रहता है... इसलिए उनके बदन में शायद हवस की गर्मी कुछ ज्यादा ही पैदा होती है...
इसलिए वह जब भी हमारे घर आते मैंने तुझे हिदायत दे रखी थी कि जब भी तो उनके सामने जाएगी इस बात का ध्यान रखना कि तेरे बाल बिल्कुल खुली होनी चाहिए हाथ में चूड़ियां नहीं होनी चाहिए और मांग में सिंदूर भी नहीं यहां तक की मैंने तुझे ब्लाउज पहनने के लिए भी मना कर रखा था... क्योंकि मैं जानती थी कि ऐसी वेशभूषा में तू बिल्कुल एक कुंवारी कच्छी कली जैसी लगेगी और इसके साथ ही है उनको और ज्यादा लुभाएगी...
और वैसे भी सोचने वाली बात यह है कि तू अगर किसी पराए मर्द के घर जाकर उसके बिस्तर पर अपना बदन पसारे की तो परिवार में दो-चार पैसों की आमदनी ज्यादा होगी और वैसे भी है तो अभी जवान है सुंदर है अकेले-अकेले इस तरह से पड़े रहना तेरे लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं है... तू जैसे जवान और कब से लड़की अगर थोड़ा बहुत लेचारी कर भी लोगी तो क्या फर्क पड़ता है?”
लेचारी- हमारे गांव में ज्यादा से ज्यादा परिवार में शादीशुदा मर्द काम के सिलसिले में बाहर ही रहते हैं, इसकी बदौलत अच्छे-अच्छे घरों की लड़कियां, बहुएं या फिर औरतें अक्सर दूसरे मर्दो के साथ संबंध बना लेती हैं... भले ही यह व्यभिचार हो लेकिन इस प्रथा को चुपके चुपके हमारे समाज में स्वीकृति भी दी गई है...
और मेरे पति तो वैसे भी जेल में है|
फिर सासू माँ आलता देवी ने मुझसे पूछा, “अच्छा एक बात बता मैली, लाल बाबा का बेटा लाडला कब से तेरे बदन पर चढ़ने लगा? मुझे शक तो बहुत पहले से ही हो गया था मैं काफी दिनों से सोच रही थी कि मैं तुझ से पूछूंगी उसके बारे में लेकिन मुझे मौका ही नहीं मिला आज जरा खुल कर बताइए कि मुझे?”
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