10-04-2021, 09:21 AM
१) नाश्ता
सुबह सूरज की पहली किरण चेहरे पर पड़ते ही राजू उठ बैठा. वैसे तो हर दिन इतनी जल्दी उठने की उसे कोई आदत नहीं रही है कभी; लेकिन आज का दिन ही कुछ ऐसा था.. आज राजू के मम्मी और पापा, दोनों उसके नानीजी को देखने गए हैं. एक दिन पहले ही मामा जी का फ़ोन आया था कि नानी की तबियत बहुत ख़राब है.. आ कर एक बार देख लें.
मम्मी अकेली जाएगी नहीं... इसलिए पापा को भी साथ जाना पड़ा... जाने का इरादा तो राजू का भी था लेकिन इंटरनल परीक्षा शुरू होने के कारण जा न सका.
घर में थे अब राजू के अलावा सिर्फ़ चाचा, चाची... और उनकी एक छोटी बेटी भी.
जम्हाई लेता हुआ राजू दरवाज़ा खोल कर जैसे ही कमरे से बाहर आया, सामने सीढ़ी पर चाची दिख गई..
उसे देखते ही बोली,
“उठ गया तू? राजू तो लगा आज भी देर से ही उठेगा...चल, जल्दी ब्रश कर के चाय पी ले.”
“अभी ब्रश करूँ?”
“हाँ.. और नहीं तो क्या?”
“पर इसका क्या होगा?” राजू ने अंदर कमरे में ऊँगली से इशारा करते हुए कहा.
“किसका क्या होगा?”
सशंकित लहजे में पूछती हुई चाची फटाक से ऊपर आई और कमरे में घुसी.
“कहाँ... किसके बारे में क्या होगा?”
राजू हँस पड़ा.. सुबह सुबह ऐसे ही चाची को छकाना राजू को हमेशा से बहुत अच्छा लगता आया है.
कमरे में किसी को न पा कर चाची मुड़ कर राजू की ओर देखी और देखते ही सारा माजरा समझ गई.
थोड़ा गुस्सा करते हुए बोली,
“तू फ़िर शुरू हो गया..?! आज तो तेरे मम्मी पापा भी नहीं है घर में.. पता नहीं दिन भर तू कितना तंग करेगा.. हे भगवान, पता नहीं इस लड़के का क्या होगा?”
चाची रेखा के ऐसा कहते ही राजू के चेहरे पर एक शैतानी वाली मुस्कराहट उभर आई.. क्योंकि ये साफ़ इशारा था चाची की ओर से कि फ़िलहाल कुछ देर के लिए मैदान साफ़ है; चौका लगाने में कोई हर्ज़ नहीं.
राजू धीरे से आगे बढ़ा;
और बड़े प्यार से साड़ी को सीने पर से हटाकर उनकी लो कट ब्लाउज से बाहर झाँकती ४ इंच लंबे क्लीवेज पर बहुत प्यार से एक किस करते हुए बोला,
“क्या होगा चाची... आप हो ना मेरा ध्यान रखने के लिए.”
क्लीवेज पर होंठ लगते ही रेखा सिहर उठी.. शर्मा कर जल्दी से अपने सीने को ढकते हुए बोली,
“धत्त.. हमेशा बदमाशी.. चल.. जल्दी कर.. जल्दी से ब्रश कर के नीचे आ जा..”
इतना बोलकर रेखा जाने लगी.
अभी तक हाफ पैंट के अंदर जाग चुके छोटे भाई को शांत करने के लिए राजू छटपटाने लगा... और उसकी ये छटपटाहट सिवाय रेखा चाची के कोई और दूर नहीं कर सकता. इसलिए जैसे ही रेखा पलट कर दो कदम चली ही थी कि राजू ने तुरंत उनका दायाँ हाथ पकड़ कर उनको रोक लिया ---
आवाज़ में प्यार और ढेर सारा अपनापन लिए पूछा,
“कहाँ जा रही हो चाची?”
“नाश्ता तैयार करने.. तेरे चाचा नहा रहे हैं और छुटकी सो रही है... पहले से नाश्ता तैयार रहेगा तो अच्छा होगा न?” दरवाज़े से बाहर देखते हुए रेखा बोली. एक बार के लिए भी राजू की ओर नहीं देखी.
“और मेरा नाश्ता?”
“अरे वही तो कह रही हूँ.. जल्दी ब्रश करके आ जा... गर्मागर्म नाश्ता मिलेगा... साथ में चाय भी.” इस बार शर्म में थोड़ा और गहरापन आ गया.
एक के बाद एक इतने संकेत मिलने से राजू बावला सा हो उठा. तड़प उठा,
“नहीं चाची... नाश्ता तो राजू अभी चाहिए!”
“अभी??!!”
“हाँ.. अभी!”
अब बड़ी मासूमियत से चाची पूछी,
“पर बेटा, नाश्ता तो....”
उनकी बात पूरी होने से पहले ही राजू उनकी होंठों पर ऊँगली रख कर उन्हें चुप रहने का इशारा किया.. होशियार चाची तुरंत मान भी गई... चुप हो कर राजू को जिज्ञासु नेत्रों से देखने लगी..
राजू ने आगे बगैर कुछ कहे ही जा कर दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया और चाची के पास आ कर एक क्षण उनकी आँखों में आँखें डाल कर देखा और फिर उनके सीने पर से साड़ी हटा कर उनके क्लीवेज के अंदर फँसे चेन पर किस करने लगा. किस करते करते ही जरा सा जीभ निकाल कर क्लीवेज के ऊपरी भाग को चाट लिया.
रेखा एक हल्की सिसकारी ले पड़ी. राजू को उसके दोनों कन्धों से पकड़ कर परे ढकेलने का प्रयास करते हुए बोली,
“अरे राजू.. क्या कर रहा है... अभी....”
चाची को एकबार फिर बीच में ही टोकते हुए राजू ने धीरे से “चुप रहो न” कहा और दोबारा उनके मीठे क्लीवेज और ब्लाउज कप्स से ऊपर झाँकती स्तनों की गोल गोलाईयों को चूमने लगा. चाची आगे कुछ नहीं बोली.. चुपचाप राजू के सिर के बालों पर अपनी अँगुलियाँ फेरने लगी.
समय तो अधिक था नहीं उन दोनों के पास, ये सोचकर ही राजू ने चाची के दोनों रसीले आमों को नीचे से ब्लाउज कप्स के साथ ऊपर की ओर कर दिया.. इससे उनके दोनों चूचियों के अधिकतर हिस्से उस लो कट ब्लाउज से ऊपर की ओर निकल आए और फिर राजू और भी अधिक अच्छे से, पूरे आनंद के साथ उन्हें चूमने और चाटने लगा.. इसी बीच उस बदमाश राजू ने एक बार अपना जीभ निकाल कर रेखा की मस्त उभर आई क्लीवेज के अंदर घुसा कर कुछ क्षणों के लिए अंदर - बाहर किया.. ऐसा जितनी बार हुआ, उतनी ही बार रेखा ने तेज़ सिसकारी ली...
रेखा की ओर मुँह उठा कर देखा...
उनकी आँखें बंद हो आईं थी.
होंठ काँप रहे थे...
राजू के सिर के बालों को थोड़ा सख्ती से पकड़ लिया उन्होंने और उसके चेहरे का दबाव अपने चूचियों पर बढ़ाने लगी --- वो भी कहाँ रुकने वाला था --- अपने दोनों हाथों से उनकी चूचियों पर दबाव और बढ़ाया और मुँह को एकदम से क्लीवेज में घुसा कर पागलों की भांति चूमने लगा.
चाची भी कामातुर होने लगी; साड़ी में ही अपनी जांघ को राजू के जांघ से रगड़ने लगी. उसके बालों को पकड़ कर कुछ इस तरह से अपनी चूचियों पर दबाने लगी मानो उसके मुँह को भी अपने ब्लाउज में भर लेना चाहती हो!
छोड़ने के मूड में तो दोनों ही कतई नहीं थे पर मजबूरन छोड़ना पड़ा क्योंकि अचानक नीचे से चाचा का आवाज़ आने लगा,
“रेखा.. ओ रेखा... कहाँ हो..?!”
राजू को एक हल्का धक्का देते हुए रेखा कुछ बोलने वाली थी कि तभी उसकी अधखुली आँखें दरवाज़े की ओर गई और इसी के साथ ‘अईईईई’ से धीमे पर एक तेज़ आवाज़ से चीख उठी!
सुबह सूरज की पहली किरण चेहरे पर पड़ते ही राजू उठ बैठा. वैसे तो हर दिन इतनी जल्दी उठने की उसे कोई आदत नहीं रही है कभी; लेकिन आज का दिन ही कुछ ऐसा था.. आज राजू के मम्मी और पापा, दोनों उसके नानीजी को देखने गए हैं. एक दिन पहले ही मामा जी का फ़ोन आया था कि नानी की तबियत बहुत ख़राब है.. आ कर एक बार देख लें.
मम्मी अकेली जाएगी नहीं... इसलिए पापा को भी साथ जाना पड़ा... जाने का इरादा तो राजू का भी था लेकिन इंटरनल परीक्षा शुरू होने के कारण जा न सका.
घर में थे अब राजू के अलावा सिर्फ़ चाचा, चाची... और उनकी एक छोटी बेटी भी.
जम्हाई लेता हुआ राजू दरवाज़ा खोल कर जैसे ही कमरे से बाहर आया, सामने सीढ़ी पर चाची दिख गई..
उसे देखते ही बोली,
“उठ गया तू? राजू तो लगा आज भी देर से ही उठेगा...चल, जल्दी ब्रश कर के चाय पी ले.”
“अभी ब्रश करूँ?”
“हाँ.. और नहीं तो क्या?”
“पर इसका क्या होगा?” राजू ने अंदर कमरे में ऊँगली से इशारा करते हुए कहा.
“किसका क्या होगा?”
सशंकित लहजे में पूछती हुई चाची फटाक से ऊपर आई और कमरे में घुसी.
“कहाँ... किसके बारे में क्या होगा?”
राजू हँस पड़ा.. सुबह सुबह ऐसे ही चाची को छकाना राजू को हमेशा से बहुत अच्छा लगता आया है.
कमरे में किसी को न पा कर चाची मुड़ कर राजू की ओर देखी और देखते ही सारा माजरा समझ गई.
थोड़ा गुस्सा करते हुए बोली,
“तू फ़िर शुरू हो गया..?! आज तो तेरे मम्मी पापा भी नहीं है घर में.. पता नहीं दिन भर तू कितना तंग करेगा.. हे भगवान, पता नहीं इस लड़के का क्या होगा?”
चाची रेखा के ऐसा कहते ही राजू के चेहरे पर एक शैतानी वाली मुस्कराहट उभर आई.. क्योंकि ये साफ़ इशारा था चाची की ओर से कि फ़िलहाल कुछ देर के लिए मैदान साफ़ है; चौका लगाने में कोई हर्ज़ नहीं.
राजू धीरे से आगे बढ़ा;
और बड़े प्यार से साड़ी को सीने पर से हटाकर उनकी लो कट ब्लाउज से बाहर झाँकती ४ इंच लंबे क्लीवेज पर बहुत प्यार से एक किस करते हुए बोला,
“क्या होगा चाची... आप हो ना मेरा ध्यान रखने के लिए.”
क्लीवेज पर होंठ लगते ही रेखा सिहर उठी.. शर्मा कर जल्दी से अपने सीने को ढकते हुए बोली,
“धत्त.. हमेशा बदमाशी.. चल.. जल्दी कर.. जल्दी से ब्रश कर के नीचे आ जा..”
इतना बोलकर रेखा जाने लगी.
अभी तक हाफ पैंट के अंदर जाग चुके छोटे भाई को शांत करने के लिए राजू छटपटाने लगा... और उसकी ये छटपटाहट सिवाय रेखा चाची के कोई और दूर नहीं कर सकता. इसलिए जैसे ही रेखा पलट कर दो कदम चली ही थी कि राजू ने तुरंत उनका दायाँ हाथ पकड़ कर उनको रोक लिया ---
आवाज़ में प्यार और ढेर सारा अपनापन लिए पूछा,
“कहाँ जा रही हो चाची?”
“नाश्ता तैयार करने.. तेरे चाचा नहा रहे हैं और छुटकी सो रही है... पहले से नाश्ता तैयार रहेगा तो अच्छा होगा न?” दरवाज़े से बाहर देखते हुए रेखा बोली. एक बार के लिए भी राजू की ओर नहीं देखी.
“और मेरा नाश्ता?”
“अरे वही तो कह रही हूँ.. जल्दी ब्रश करके आ जा... गर्मागर्म नाश्ता मिलेगा... साथ में चाय भी.” इस बार शर्म में थोड़ा और गहरापन आ गया.
एक के बाद एक इतने संकेत मिलने से राजू बावला सा हो उठा. तड़प उठा,
“नहीं चाची... नाश्ता तो राजू अभी चाहिए!”
“अभी??!!”
“हाँ.. अभी!”
अब बड़ी मासूमियत से चाची पूछी,
“पर बेटा, नाश्ता तो....”
उनकी बात पूरी होने से पहले ही राजू उनकी होंठों पर ऊँगली रख कर उन्हें चुप रहने का इशारा किया.. होशियार चाची तुरंत मान भी गई... चुप हो कर राजू को जिज्ञासु नेत्रों से देखने लगी..
राजू ने आगे बगैर कुछ कहे ही जा कर दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया और चाची के पास आ कर एक क्षण उनकी आँखों में आँखें डाल कर देखा और फिर उनके सीने पर से साड़ी हटा कर उनके क्लीवेज के अंदर फँसे चेन पर किस करने लगा. किस करते करते ही जरा सा जीभ निकाल कर क्लीवेज के ऊपरी भाग को चाट लिया.
रेखा एक हल्की सिसकारी ले पड़ी. राजू को उसके दोनों कन्धों से पकड़ कर परे ढकेलने का प्रयास करते हुए बोली,
“अरे राजू.. क्या कर रहा है... अभी....”
चाची को एकबार फिर बीच में ही टोकते हुए राजू ने धीरे से “चुप रहो न” कहा और दोबारा उनके मीठे क्लीवेज और ब्लाउज कप्स से ऊपर झाँकती स्तनों की गोल गोलाईयों को चूमने लगा. चाची आगे कुछ नहीं बोली.. चुपचाप राजू के सिर के बालों पर अपनी अँगुलियाँ फेरने लगी.
समय तो अधिक था नहीं उन दोनों के पास, ये सोचकर ही राजू ने चाची के दोनों रसीले आमों को नीचे से ब्लाउज कप्स के साथ ऊपर की ओर कर दिया.. इससे उनके दोनों चूचियों के अधिकतर हिस्से उस लो कट ब्लाउज से ऊपर की ओर निकल आए और फिर राजू और भी अधिक अच्छे से, पूरे आनंद के साथ उन्हें चूमने और चाटने लगा.. इसी बीच उस बदमाश राजू ने एक बार अपना जीभ निकाल कर रेखा की मस्त उभर आई क्लीवेज के अंदर घुसा कर कुछ क्षणों के लिए अंदर - बाहर किया.. ऐसा जितनी बार हुआ, उतनी ही बार रेखा ने तेज़ सिसकारी ली...
रेखा की ओर मुँह उठा कर देखा...
उनकी आँखें बंद हो आईं थी.
होंठ काँप रहे थे...
राजू के सिर के बालों को थोड़ा सख्ती से पकड़ लिया उन्होंने और उसके चेहरे का दबाव अपने चूचियों पर बढ़ाने लगी --- वो भी कहाँ रुकने वाला था --- अपने दोनों हाथों से उनकी चूचियों पर दबाव और बढ़ाया और मुँह को एकदम से क्लीवेज में घुसा कर पागलों की भांति चूमने लगा.
चाची भी कामातुर होने लगी; साड़ी में ही अपनी जांघ को राजू के जांघ से रगड़ने लगी. उसके बालों को पकड़ कर कुछ इस तरह से अपनी चूचियों पर दबाने लगी मानो उसके मुँह को भी अपने ब्लाउज में भर लेना चाहती हो!
छोड़ने के मूड में तो दोनों ही कतई नहीं थे पर मजबूरन छोड़ना पड़ा क्योंकि अचानक नीचे से चाचा का आवाज़ आने लगा,
“रेखा.. ओ रेखा... कहाँ हो..?!”
राजू को एक हल्का धक्का देते हुए रेखा कुछ बोलने वाली थी कि तभी उसकी अधखुली आँखें दरवाज़े की ओर गई और इसी के साथ ‘अईईईई’ से धीमे पर एक तेज़ आवाज़ से चीख उठी!