08-04-2021, 10:29 PM
५)
“देखो बॉस, मैं तो हमेशा अपने पेशेंट को यही सुझाव देता हूँ की किसी भी बात को सीमा से अधिक तुल न दे... और अपने अंदर दबा के तो बिल्कुल न रखे. जल्द से जल्द उस बात का एक समाधान करे; और किसी भी कारणवश वो ऐसा नहीं कर सकता तो फ़िर या तो किसी के सामने पूरी गाथा सुना दें या फिर उस बात को पूरी तरह से अपने दिमाग से निकाल दे.... भूल जाए. तुम्हारे केस में भी मैं यही कहूँगा.”
चाय की कप प्लेट पर रखते हुए निमेश ने कहा.
“ह्म्म्म..” चाय की एक सिप लेते हुए देव ने कहा.
“क्या ह्म्म्म..”
“मतलब?” देव ने पूछा.
“अरे भाई, मैं तुमसे भी यही कह रहा हूँ.. जो भी मन में है; उसे बक दो. यार, कुछ तो होगा... सोल्यूशन निकलेगा या नहीं निकलेगा.. सोल्यूशन निकला तो अच्छा नहीं तो कम से कम बोझ तो तनिक हल्का होगा की नहीं.”
अपने हरेक शब्द पर ज़ोर देते हुए निमेश बड़े संजीदगी से बोला.
देव कुछ नहीं बोला, बस चाय की सिप पर सिप लेता रहा.
निमेश २ मिनट तक देव के चेहरे को बहुत अच्छे से देखा, आते जाते भावों को पढ़ा, समझा, दोबारा पढ़ा... फ़िर स्वयं ही अधिक न समझने का सोच कर देव के उत्तर की प्रतीक्षा करने लगा.
चाय ख़त्म कर के देव ने एक विदेशी ब्रांड का सिगरेट सुलगाया और दो बार धुआँ उड़ाने के बाद बड़े थके से स्वर में बोला,
“डॉक्टर, क्या बताऊँ.. कहाँ से बताना शुरू करूँ मुझे तो यही समझ में नहीं आ रहा है. जब सोचता हूँ कि पूरा मैटर यहाँ से शुरू हुआ था; तो अगले ही क्षण कुछ ऐसा याद आ जाता है की मुझे लगता है की नहीं... मैटर यहाँ से नहीं वरन वहाँ से शुरू हुआ था. किस छोर को पकडूँ; यही नहीं पता.”
निमेश चुप रहा... गौर किया, देव वाकई अपने विचारों में खोया हुआ सा है... और तो और अपनी ओर से कोई विशेष जतन भी करता लग नहीं रहा है.
निमेश अपने ड्रावर में हाथ रखा ही कि देव ने अपना सिग्रेट का पैक उसे ऑफर करता हुआ बोला,
“आज ये वाली लो.”
“एक शर्त पर.”
“क्या?!”
“मैं अगर ये वाली लूँ तो तुम मुझे अपने साथ हो रहे घटनाओं के बारे में बताओगे?”
“अरे, मैं बोला न की कहाँ से शुरू....”
“कोई बात नहीं.. कहीं से भी शुरू कर दो... ज़रूरत हुई तो बाकी का मैं सम्भाल लूँगा.” देव को बीच में ही टोकते हुए निमेश बोला.
देव कुछ क्षण सोचा... फिर,
“ओके..!”
इस क्षणिक और आंशिक सफ़लता पर निमेश मुस्कराया और एक सिगरेट ले कर सुलगा लिया.
धुआँ छोड़ते हुए देव की ओर देख कर बोला,
“चलो भई, शुरू हो जाओ.”
देव निमेश की ओर एक नज़र डाला और फिर गहरी साँस लेते हुए खिड़की से बाहर देखते हुए बोला,
“कुछ दिन से एक के बाद एक अजीबोगरीब घटनाएँ घट रही हैं. कब कौन सी घटना घट जाए कहना मुश्किल होता है.. ये तो जानता ही होगे तुम, निमेश. पर इस केस में मेरे साथ ऐसा नहीं है. जब कुछ होने वाला होता है तो पता नहीं कैसे मुझे पहले ही उसका भान हो जाता है. और सबसे अजीब बात तो ये है की अगर सोचने बैठो तो कभी; सभी बातें, घटनाएँ परस्पर आपस में जुड़े हुए प्रतीत होते हैं तो कभी किसी भी घटना का एक दूसरे से कोई वास्ता नहीं होता लगता है. और....”
कहते हुए देव किसी सोच में पड़ गया.. निमेश पर उसकी उत्सुकता हावी हुई और तपाक से बोल उठा,
“और.... और क्या? चुप क्यों हो रहे हो भई, आगे भी तो बताओ?”
“शायद विश्वास नहीं करोगे.. हर घटना मुझसे... मुझसे जुड़ी होती हैं. मेरे आस पास ही घटित होती हैं.....”
“हम्म.. तुम्हारे आस पास ही घटित होती हैं; ये माना जा सकता है... पर.... तुमसे जुड़ी होती हैं.....?”
“वही तो.....मैं तो...”
“एक मिनट देव, पहले एक सवाल.”
“ओके.. पूछो.”
“तुम्हें कैसे पता... आई मीन, तुम इतने विश्वास से कैसे कह सकते हो कि सब कुछ... सभी घटनाएँ तुमसे ही जुड़ी होती हैं?”
“क्योंकि हरेक का सम्बन्ध मुझसे ही होता है.”
“मतलब?... ज़रा ठीक से बताओ.”
“मतलब... दो बातें हैं... एक, या तो घटना का केंद्रबिंदू मैं ही होता हूँ.. या, दूसरा, जो भी घटना घटित होती है वो इनडायरेक्टली मुझसे जुड़ी होती है.”
“हम्म... ओके... दो उदहारण दे सकते हो? एक, जिसमें तुम सीधे तौर पर जुड़े होते हो और दूसरा, जिसमें तुम अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए होते हो?”
रिवोल्विंग चेयर की आर्म रेस्ट पर रखे अपने बाएँ हाथ की हथेली को मुट्ठी में कर अपने होंठ और नाक पर रख कर देव थोड़ा सोचा... फिर सोचते हुए ही बोला,
“अं... हाँ, बता सकता हूँ... दो घटनाएँ.”
“बताओ.”
“एक घटना तो ये की एकदिन शाम को अपने अपार्टमेंट में ही गाड़ी पार्किंग को ले कर झगड़ा हो गया था... साले को कितना समझाया, वो सुनने को तैयार ही नहीं.. मानना तो दूर की बात.. बहुत उल्टा सीधा कहा उसने मुझे.. मुझे भी गुस्सा आया.. मैंने भी कुछ से कुछ कह दिया. हाथापाई की नौबत आई लेकिन और लोग भी तब तक जमा हो गए थे वहाँ... सबने बीच बचाव किया. कुछ देर बाद हम सभी अपने अपने फ्लैट्स की ओर चले गए. बात आई, गई, हो गई... मुझे याद नहीं रहा.. दो दिन बाद ही मुझे अचानक से तेज़ बुखार आया था.. फ़िर तुम्हें बुलाया गया.. तुमने तो खुद देखा था आ कर कि मुझे कितना बुखार था.. खैर, तुम जब चले गए तब थोड़ी देर बाद वाचमैन आ कर बोला की जिस आदमी से मेरी दो रात पहले झगड़ा हुआ था; उसे कल रात किसी ने बहुत बुरी तरह से मारा पीटा है... लगभग मरने वाली हालत हो गई थी उसकी....”
“हम्म.. आगे?”
“आगे क्या.. सिक्युरिटी स्टेशन से कॉल आया था.. मुझे आने को कहा गया था.. कुछ मामूली पूछताछ करनी थी उनको. दरअसल, २-३ लोगों ने सिक्युरिटी को मेरा नाम बताते हुए ये संदेह जताया था कि शायद मैंने उस आदमी को नुकसान पहुँचाया हूँ या हो सकता हूँ....”
“हाँ.. मुझे भी बुलाया गया था थाने में. मुझे जो कुछ भी कहना था वहाँ कह दिया. और तुम तो थे भी निर्दोष.” निमेश बीच में बोल पड़ा.
“हाँ..”
“और..??”
“बस यही की अगले कुछ दिनों तक सिक्युरिटी यही संदेह करती रही की उस आदमी की वैसी बुरी हालत करने के पीछे ज़रूर मेरा ही हाथ रहा है. लेकिन कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलने के कारण उन्हें जल्द ही मुझ पर से अपना ध्यान हटाना पड़ा.”
“ओके.. तो ये घटना तुम्हारे साथ कैसे.. किस तरह से जुड़ी है मिस्टर देव? आई मीन, तुम जिस परेशानी से दो चार हो रहे हो अभी; उससे कैसे जुड़ा हुआ है ये?”
“बिल्कुल जुड़ा हुआ है. उस आदमी से जब बाद में सिक्युरिटी की ओर से पूछताछ हुई थी तब उसने हमारे झगड़े की बात को कन्फेस किया था और ये भी कहा था कि हमले की रात उसे बराबर ऐसा लग रहा था कि मानो कोई उसे फोलो कर रहा है.. हर पल देख रहा है. और जब वो अपनी गाड़ी पार्क करने के बाद गाड़ी से उतर कर दरवाज़ा लगा रहा था तब किसी ने बहुत ज़ोर से पीछे से उसके पीठ पर किसी भारी चीज़ से वार किया था. पीठ पर अचानक से हुए ज़ोर के हमले से वो पंगु सा हो गया था इसलिए अपने बचाव के लिए कुछ नहीं कर पाया था.”
“हमलावर को देख पाया था?”
“नहीं. उसने कोशिश की थी पर असफ़ल रहा. पर एक बात पर ख़ास ज़ोर रहा उसका.”
“वो क्या?”
“उसका कहना था की जिस किसी ने भी उस पर हमला किया था; वो शारीरिक रूप से अधिक ताकतवर नहीं था क्योंकि अपने हर वार में उस हमलावर को अधिक ज़ोर लगाना पड़ रहा था.”
“इसका मतलब क्या हुआ?”
“अ...मम.. इसका.. यही मतलब हो सकता है कि हमलावर शारीरिक रूप से अधिक ताकतवर नहीं था....”
“ये तो तुमने कह दिया पहले ही.. और?”
“और.... अम्म्म... शायद वो कम उम्र का कोई हो?”
“कोई लड़का?”
“अ.. हाँ... सम्भव है..”
“हाँ.. सम्भव है की वो कोई लड़का ही रहा हो या.....”
“या??”
“या शायद कोई लड़की?”
निमेश के इस कथन पर देव उछल सा पड़ा...
“क्या.. लड़की?!!”
“क्यों.. तुम्हें नहीं लगता की ये सम्भव है?”
“नहीं.... ऐसा नहीं...” कहते हुए देव एकाएक ही रुक गया. रुक जाना ही था उसको क्योंकि निमेश के बताए जिस सम्भावना को वो तुरंत ही इंकार करने जा रहा था वो सहसा उसे कहीं न कहीं थोड़ा सा तर्कसंगत लगने लगा.
देव से तुरंत कुछ नहीं बोला गया. निमेश ने भी तुरंत कुछ नहीं पूछा...
थोड़ी देर के चुप्पी के बाद निमेश ने ही कहा,
“देव?”
“हूँ” किसी सोच में डूबा देव ने इतना ही उत्तर दिया.
“क्या लगता है?”
“किस बारे में?”
“कौन हो सकती है?”
इस प्रश्न ने देव को उसके सोच से बाहर ला दिया.. थोड़ा असहज होता हुआ पूछा,
“क्या? कौन ‘कौन हो सकती है’ ?”
“क्या कोई ऐसी है जिसे तुम... आई मीन तुम्हें ऐसी किसी को जानते हो जो इस तरह के काम कर सके? बहुत गुस्सा या ज़रूरत होने पर?”
“नहीं... बिल्कुल नहीं.” देव ने एक झटके से कहा.
स्पष्ट है की ऐसी बातें उसे हजम नहीं हो रही है. विश्वास कर पाना कठिन है.... स्वयं निमेश भी अपने इस विचार पर सहमत नहीं था... इसलिए अधिक ज़ोर दे कर देव से कुछ पूछ भी नहीं सका.
एक राउंड चाय और चला. सिगरेट के धुएँ फ़िर उड़े.. बिज़नेस और दूसरे कामों के बारे में थोड़ी देर गप्पशप्प चलीं.
“अच्छा... अब चलता हूँ.. बहुत देर तुम्हारा टाइम ले लिया.”
“अरे नों प्रॉब्लम.. आज तो वैसे भी बैठना ही था यहाँ. आज पेशेंट नहीं होते मेरे. इसलिए तुम्हें खास बुलाया था.” निमेश हँसते हुए बोला.
देव भी हँसा.. और “ओके” बोल कर चेयर से उठ गया. जाने के लिए मुड़ा ही कि निमेश बोल पड़ा,
“लेकिन एक बात मेरी समझ में नहीं आई.. उस दिन कॉलेज में मिले उस गुलदस्ते को देख कर तुम इतने टेंशन में क्यूँ आ गए थे? तुम्हारे तो कई सारे स्टूडेंट्स हैं.. कई के फेवरेट रह चुके हो तुम. तो वो गुलदस्ता किसी का भी हो सकता है. कोई भी दे कर जा सकता है.. या सकती है. है ना?”
निमेश का प्रश्न सुनते ही देव का मुस्कराता चेहरा तुरंत ही गंभीर हो उठा.. पर पल भर बाद ही स्वयं को सम्भालता हुआ बोला,
“बात गुलदस्ते की नहीं है डॉक्टर महोदय..बात है उस गुलदस्ते में मिले कागज़ की जिसपे लिखे शब्द मैं तुम्हें पहले ही बता चुका हूँ.”
“हाँ हाँ.. बिल्कुल. पर ऐसा भी तो हो सकता है न की किसी ने तुम्हें टीज़ करने के लिए ये कारनामा किया हो?”
देव जरा सा हँसा,
बोला,
“मुझे देख कर ऐसा लगता है कि कोई मेरे साथ भूल से सपने में भी इस तरह का प्रैंक करने का सोचेगा?”
निमेश दो पल देव को अच्छे से देखा... देख कर बोला,
“नहीं.. नहीं.. बिल्कुल नहीं लगता!”
“हम्म.. राईट! मैं स्टूडेंट शुभचिन्तक हूँ.. लेकिन स्टूडेंट फ्रेंडली नहीं... इसलिए कोई मेरे साथ मजाक करने के बारे में गलती से भी सोचने के बारे में गलती नहीं करेगा.”
“ओके.. फिर तुम इतना टेंशन में क्यों थे? कोई स्टूडेंट तुम्हें डियरली अपना मानता है.. तू....”
“मानती है...” निमेश की बात को बीच में काटते हुए देव बोला.
“हाँ??”
“मानती है, बोलो.”
“ओह यस... सॉरी... कोई स्टूडेंट तुम्हें डियरली अपना मानती है.. तुम्हें सिर्फ़ अपना टीचर, अपना सर कहना या होना पसंद करती है.. और खुद को भी तुम्हारा एकमात्र डियर स्टूडेंट कहलाना, समझाना पसंद करती है तो फ़िर इसमें गलत क्या है?’
देव मुस्कराया, आगे बढ़ा, टेबल पर अपने दोनों हाथ रखा और उन पर तनिक बल देते हुए आगे की ओर; निमेश की ओर झुक कर उसके आँखों में आँखें डाल कर धीरे, सधे और बड़े गम्भीर स्वर में एक एक शब्द पर ज़ोर देते हुए बोला,
“बात अगर यहीं तक होती तो ठीक होता निमेश... मान लेता... लेकिन इतना भी कोई किसी का कितना डियर हो सकता है कि उसे कोई मेसेज लिख कर भी दे तो वो भी खून से लिख कर दे?.. और क्या पता, शायद अपने ही खून से??!”
निमेश को लगा की जैसे किसी ने किसी भारी चीज़ से उसके सर पर; खास कर उसके लॉजिक पर बड़े करारे तरीके से प्रहार किया हो... कुछ क्षणों के लिए तो उसकी बोलती ही बंद हो गई.. बोलती क्या.. मानो दिमाग ने सोचना ही बंद कर दिया हो... फ़िर भी थूक गटक कर अपने लॉजिक, ज्ञान और डॉक्टरी की लाज रखने हेतु कुछ बोलना चाहा,
“अ.. मम.. प... पर... ज़रूरी नहीं की....”
“क्या ज़रूरी नहीं डॉक्टर महोदय? यही न की वो खून किसी इंसान का नहीं हो??” देव निमेश की हालत देख अब हँसे बिना नहीं रह पाया.
“हाँ.. यही... मैं...”
“निमेश... मेरे कॉलेज में लैब है और मैंने थोड़े से नमूने का टेस्ट भी करवाया है... इट्स ह्यूमन ब्लड!!”
निमेश अब बिल्कुल भी कुछ नहीं बोला. चुप रहा. कुछ बोलने के लिए उसे अभी अभी देव द्वारा कही गई बातों को हजम करना पड़ेगा जोकि उससे फ़िलहाल इस समय तो बिल्कुल ही नहीं हो रहा है.
एक दीर्घ साँस छोड़ते हुए विवशता में अपने सिर को सिर्फ़ हिलाया..
देव उसके संकेत को समझ गया.. इस अनाधिकारिक तर्कशास्त्र में स्वयं के विजयी होने का आनंद लेते हुए वहाँ से चला गया.
पीछे निमेश अब भी विवश सा बैठा, हाथ में काँच वाला पेपरवेट से खेलते हुए उसके और देव के बीच हुए वार्तालाप के बारे में गहराई से सोचने लगा.
इधर निमेश के क्लिनिक - कम - घर से निकल कर देव अपनी गाड़ी स्टार्ट कर अपने गन्तव्य की ओर बढ़ा और वहाँ से उसके जाते ही उस स्थान से थोड़ी दूरी पर स्थित एक चाय दुकान से एक आदमी चाय पीता हुआ थोड़ा साइड में खड़ा हो कर अपने दूसरे हाथ में पकड़े मोबाइल में बात करने लगा,
“हैलो..? हाँ.. मैं बोल रहा हूँ.. हाँ.. अभी.. तुरंत निकला है यहाँ से.. अब?”
मोबाइल में दूसरी ओर से मिले निर्देश पर अपना सिर हिलाते हुए धीरे से ‘ओके’ बोल कर वह आदमी चाय पीता हुआ फिर से चाय दुकान में चला गया.
“देखो बॉस, मैं तो हमेशा अपने पेशेंट को यही सुझाव देता हूँ की किसी भी बात को सीमा से अधिक तुल न दे... और अपने अंदर दबा के तो बिल्कुल न रखे. जल्द से जल्द उस बात का एक समाधान करे; और किसी भी कारणवश वो ऐसा नहीं कर सकता तो फ़िर या तो किसी के सामने पूरी गाथा सुना दें या फिर उस बात को पूरी तरह से अपने दिमाग से निकाल दे.... भूल जाए. तुम्हारे केस में भी मैं यही कहूँगा.”
चाय की कप प्लेट पर रखते हुए निमेश ने कहा.
“ह्म्म्म..” चाय की एक सिप लेते हुए देव ने कहा.
“क्या ह्म्म्म..”
“मतलब?” देव ने पूछा.
“अरे भाई, मैं तुमसे भी यही कह रहा हूँ.. जो भी मन में है; उसे बक दो. यार, कुछ तो होगा... सोल्यूशन निकलेगा या नहीं निकलेगा.. सोल्यूशन निकला तो अच्छा नहीं तो कम से कम बोझ तो तनिक हल्का होगा की नहीं.”
अपने हरेक शब्द पर ज़ोर देते हुए निमेश बड़े संजीदगी से बोला.
देव कुछ नहीं बोला, बस चाय की सिप पर सिप लेता रहा.
निमेश २ मिनट तक देव के चेहरे को बहुत अच्छे से देखा, आते जाते भावों को पढ़ा, समझा, दोबारा पढ़ा... फ़िर स्वयं ही अधिक न समझने का सोच कर देव के उत्तर की प्रतीक्षा करने लगा.
चाय ख़त्म कर के देव ने एक विदेशी ब्रांड का सिगरेट सुलगाया और दो बार धुआँ उड़ाने के बाद बड़े थके से स्वर में बोला,
“डॉक्टर, क्या बताऊँ.. कहाँ से बताना शुरू करूँ मुझे तो यही समझ में नहीं आ रहा है. जब सोचता हूँ कि पूरा मैटर यहाँ से शुरू हुआ था; तो अगले ही क्षण कुछ ऐसा याद आ जाता है की मुझे लगता है की नहीं... मैटर यहाँ से नहीं वरन वहाँ से शुरू हुआ था. किस छोर को पकडूँ; यही नहीं पता.”
निमेश चुप रहा... गौर किया, देव वाकई अपने विचारों में खोया हुआ सा है... और तो और अपनी ओर से कोई विशेष जतन भी करता लग नहीं रहा है.
निमेश अपने ड्रावर में हाथ रखा ही कि देव ने अपना सिग्रेट का पैक उसे ऑफर करता हुआ बोला,
“आज ये वाली लो.”
“एक शर्त पर.”
“क्या?!”
“मैं अगर ये वाली लूँ तो तुम मुझे अपने साथ हो रहे घटनाओं के बारे में बताओगे?”
“अरे, मैं बोला न की कहाँ से शुरू....”
“कोई बात नहीं.. कहीं से भी शुरू कर दो... ज़रूरत हुई तो बाकी का मैं सम्भाल लूँगा.” देव को बीच में ही टोकते हुए निमेश बोला.
देव कुछ क्षण सोचा... फिर,
“ओके..!”
इस क्षणिक और आंशिक सफ़लता पर निमेश मुस्कराया और एक सिगरेट ले कर सुलगा लिया.
धुआँ छोड़ते हुए देव की ओर देख कर बोला,
“चलो भई, शुरू हो जाओ.”
देव निमेश की ओर एक नज़र डाला और फिर गहरी साँस लेते हुए खिड़की से बाहर देखते हुए बोला,
“कुछ दिन से एक के बाद एक अजीबोगरीब घटनाएँ घट रही हैं. कब कौन सी घटना घट जाए कहना मुश्किल होता है.. ये तो जानता ही होगे तुम, निमेश. पर इस केस में मेरे साथ ऐसा नहीं है. जब कुछ होने वाला होता है तो पता नहीं कैसे मुझे पहले ही उसका भान हो जाता है. और सबसे अजीब बात तो ये है की अगर सोचने बैठो तो कभी; सभी बातें, घटनाएँ परस्पर आपस में जुड़े हुए प्रतीत होते हैं तो कभी किसी भी घटना का एक दूसरे से कोई वास्ता नहीं होता लगता है. और....”
कहते हुए देव किसी सोच में पड़ गया.. निमेश पर उसकी उत्सुकता हावी हुई और तपाक से बोल उठा,
“और.... और क्या? चुप क्यों हो रहे हो भई, आगे भी तो बताओ?”
“शायद विश्वास नहीं करोगे.. हर घटना मुझसे... मुझसे जुड़ी होती हैं. मेरे आस पास ही घटित होती हैं.....”
“हम्म.. तुम्हारे आस पास ही घटित होती हैं; ये माना जा सकता है... पर.... तुमसे जुड़ी होती हैं.....?”
“वही तो.....मैं तो...”
“एक मिनट देव, पहले एक सवाल.”
“ओके.. पूछो.”
“तुम्हें कैसे पता... आई मीन, तुम इतने विश्वास से कैसे कह सकते हो कि सब कुछ... सभी घटनाएँ तुमसे ही जुड़ी होती हैं?”
“क्योंकि हरेक का सम्बन्ध मुझसे ही होता है.”
“मतलब?... ज़रा ठीक से बताओ.”
“मतलब... दो बातें हैं... एक, या तो घटना का केंद्रबिंदू मैं ही होता हूँ.. या, दूसरा, जो भी घटना घटित होती है वो इनडायरेक्टली मुझसे जुड़ी होती है.”
“हम्म... ओके... दो उदहारण दे सकते हो? एक, जिसमें तुम सीधे तौर पर जुड़े होते हो और दूसरा, जिसमें तुम अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए होते हो?”
रिवोल्विंग चेयर की आर्म रेस्ट पर रखे अपने बाएँ हाथ की हथेली को मुट्ठी में कर अपने होंठ और नाक पर रख कर देव थोड़ा सोचा... फिर सोचते हुए ही बोला,
“अं... हाँ, बता सकता हूँ... दो घटनाएँ.”
“बताओ.”
“एक घटना तो ये की एकदिन शाम को अपने अपार्टमेंट में ही गाड़ी पार्किंग को ले कर झगड़ा हो गया था... साले को कितना समझाया, वो सुनने को तैयार ही नहीं.. मानना तो दूर की बात.. बहुत उल्टा सीधा कहा उसने मुझे.. मुझे भी गुस्सा आया.. मैंने भी कुछ से कुछ कह दिया. हाथापाई की नौबत आई लेकिन और लोग भी तब तक जमा हो गए थे वहाँ... सबने बीच बचाव किया. कुछ देर बाद हम सभी अपने अपने फ्लैट्स की ओर चले गए. बात आई, गई, हो गई... मुझे याद नहीं रहा.. दो दिन बाद ही मुझे अचानक से तेज़ बुखार आया था.. फ़िर तुम्हें बुलाया गया.. तुमने तो खुद देखा था आ कर कि मुझे कितना बुखार था.. खैर, तुम जब चले गए तब थोड़ी देर बाद वाचमैन आ कर बोला की जिस आदमी से मेरी दो रात पहले झगड़ा हुआ था; उसे कल रात किसी ने बहुत बुरी तरह से मारा पीटा है... लगभग मरने वाली हालत हो गई थी उसकी....”
“हम्म.. आगे?”
“आगे क्या.. सिक्युरिटी स्टेशन से कॉल आया था.. मुझे आने को कहा गया था.. कुछ मामूली पूछताछ करनी थी उनको. दरअसल, २-३ लोगों ने सिक्युरिटी को मेरा नाम बताते हुए ये संदेह जताया था कि शायद मैंने उस आदमी को नुकसान पहुँचाया हूँ या हो सकता हूँ....”
“हाँ.. मुझे भी बुलाया गया था थाने में. मुझे जो कुछ भी कहना था वहाँ कह दिया. और तुम तो थे भी निर्दोष.” निमेश बीच में बोल पड़ा.
“हाँ..”
“और..??”
“बस यही की अगले कुछ दिनों तक सिक्युरिटी यही संदेह करती रही की उस आदमी की वैसी बुरी हालत करने के पीछे ज़रूर मेरा ही हाथ रहा है. लेकिन कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलने के कारण उन्हें जल्द ही मुझ पर से अपना ध्यान हटाना पड़ा.”
“ओके.. तो ये घटना तुम्हारे साथ कैसे.. किस तरह से जुड़ी है मिस्टर देव? आई मीन, तुम जिस परेशानी से दो चार हो रहे हो अभी; उससे कैसे जुड़ा हुआ है ये?”
“बिल्कुल जुड़ा हुआ है. उस आदमी से जब बाद में सिक्युरिटी की ओर से पूछताछ हुई थी तब उसने हमारे झगड़े की बात को कन्फेस किया था और ये भी कहा था कि हमले की रात उसे बराबर ऐसा लग रहा था कि मानो कोई उसे फोलो कर रहा है.. हर पल देख रहा है. और जब वो अपनी गाड़ी पार्क करने के बाद गाड़ी से उतर कर दरवाज़ा लगा रहा था तब किसी ने बहुत ज़ोर से पीछे से उसके पीठ पर किसी भारी चीज़ से वार किया था. पीठ पर अचानक से हुए ज़ोर के हमले से वो पंगु सा हो गया था इसलिए अपने बचाव के लिए कुछ नहीं कर पाया था.”
“हमलावर को देख पाया था?”
“नहीं. उसने कोशिश की थी पर असफ़ल रहा. पर एक बात पर ख़ास ज़ोर रहा उसका.”
“वो क्या?”
“उसका कहना था की जिस किसी ने भी उस पर हमला किया था; वो शारीरिक रूप से अधिक ताकतवर नहीं था क्योंकि अपने हर वार में उस हमलावर को अधिक ज़ोर लगाना पड़ रहा था.”
“इसका मतलब क्या हुआ?”
“अ...मम.. इसका.. यही मतलब हो सकता है कि हमलावर शारीरिक रूप से अधिक ताकतवर नहीं था....”
“ये तो तुमने कह दिया पहले ही.. और?”
“और.... अम्म्म... शायद वो कम उम्र का कोई हो?”
“कोई लड़का?”
“अ.. हाँ... सम्भव है..”
“हाँ.. सम्भव है की वो कोई लड़का ही रहा हो या.....”
“या??”
“या शायद कोई लड़की?”
निमेश के इस कथन पर देव उछल सा पड़ा...
“क्या.. लड़की?!!”
“क्यों.. तुम्हें नहीं लगता की ये सम्भव है?”
“नहीं.... ऐसा नहीं...” कहते हुए देव एकाएक ही रुक गया. रुक जाना ही था उसको क्योंकि निमेश के बताए जिस सम्भावना को वो तुरंत ही इंकार करने जा रहा था वो सहसा उसे कहीं न कहीं थोड़ा सा तर्कसंगत लगने लगा.
देव से तुरंत कुछ नहीं बोला गया. निमेश ने भी तुरंत कुछ नहीं पूछा...
थोड़ी देर के चुप्पी के बाद निमेश ने ही कहा,
“देव?”
“हूँ” किसी सोच में डूबा देव ने इतना ही उत्तर दिया.
“क्या लगता है?”
“किस बारे में?”
“कौन हो सकती है?”
इस प्रश्न ने देव को उसके सोच से बाहर ला दिया.. थोड़ा असहज होता हुआ पूछा,
“क्या? कौन ‘कौन हो सकती है’ ?”
“क्या कोई ऐसी है जिसे तुम... आई मीन तुम्हें ऐसी किसी को जानते हो जो इस तरह के काम कर सके? बहुत गुस्सा या ज़रूरत होने पर?”
“नहीं... बिल्कुल नहीं.” देव ने एक झटके से कहा.
स्पष्ट है की ऐसी बातें उसे हजम नहीं हो रही है. विश्वास कर पाना कठिन है.... स्वयं निमेश भी अपने इस विचार पर सहमत नहीं था... इसलिए अधिक ज़ोर दे कर देव से कुछ पूछ भी नहीं सका.
एक राउंड चाय और चला. सिगरेट के धुएँ फ़िर उड़े.. बिज़नेस और दूसरे कामों के बारे में थोड़ी देर गप्पशप्प चलीं.
“अच्छा... अब चलता हूँ.. बहुत देर तुम्हारा टाइम ले लिया.”
“अरे नों प्रॉब्लम.. आज तो वैसे भी बैठना ही था यहाँ. आज पेशेंट नहीं होते मेरे. इसलिए तुम्हें खास बुलाया था.” निमेश हँसते हुए बोला.
देव भी हँसा.. और “ओके” बोल कर चेयर से उठ गया. जाने के लिए मुड़ा ही कि निमेश बोल पड़ा,
“लेकिन एक बात मेरी समझ में नहीं आई.. उस दिन कॉलेज में मिले उस गुलदस्ते को देख कर तुम इतने टेंशन में क्यूँ आ गए थे? तुम्हारे तो कई सारे स्टूडेंट्स हैं.. कई के फेवरेट रह चुके हो तुम. तो वो गुलदस्ता किसी का भी हो सकता है. कोई भी दे कर जा सकता है.. या सकती है. है ना?”
निमेश का प्रश्न सुनते ही देव का मुस्कराता चेहरा तुरंत ही गंभीर हो उठा.. पर पल भर बाद ही स्वयं को सम्भालता हुआ बोला,
“बात गुलदस्ते की नहीं है डॉक्टर महोदय..बात है उस गुलदस्ते में मिले कागज़ की जिसपे लिखे शब्द मैं तुम्हें पहले ही बता चुका हूँ.”
“हाँ हाँ.. बिल्कुल. पर ऐसा भी तो हो सकता है न की किसी ने तुम्हें टीज़ करने के लिए ये कारनामा किया हो?”
देव जरा सा हँसा,
बोला,
“मुझे देख कर ऐसा लगता है कि कोई मेरे साथ भूल से सपने में भी इस तरह का प्रैंक करने का सोचेगा?”
निमेश दो पल देव को अच्छे से देखा... देख कर बोला,
“नहीं.. नहीं.. बिल्कुल नहीं लगता!”
“हम्म.. राईट! मैं स्टूडेंट शुभचिन्तक हूँ.. लेकिन स्टूडेंट फ्रेंडली नहीं... इसलिए कोई मेरे साथ मजाक करने के बारे में गलती से भी सोचने के बारे में गलती नहीं करेगा.”
“ओके.. फिर तुम इतना टेंशन में क्यों थे? कोई स्टूडेंट तुम्हें डियरली अपना मानता है.. तू....”
“मानती है...” निमेश की बात को बीच में काटते हुए देव बोला.
“हाँ??”
“मानती है, बोलो.”
“ओह यस... सॉरी... कोई स्टूडेंट तुम्हें डियरली अपना मानती है.. तुम्हें सिर्फ़ अपना टीचर, अपना सर कहना या होना पसंद करती है.. और खुद को भी तुम्हारा एकमात्र डियर स्टूडेंट कहलाना, समझाना पसंद करती है तो फ़िर इसमें गलत क्या है?’
देव मुस्कराया, आगे बढ़ा, टेबल पर अपने दोनों हाथ रखा और उन पर तनिक बल देते हुए आगे की ओर; निमेश की ओर झुक कर उसके आँखों में आँखें डाल कर धीरे, सधे और बड़े गम्भीर स्वर में एक एक शब्द पर ज़ोर देते हुए बोला,
“बात अगर यहीं तक होती तो ठीक होता निमेश... मान लेता... लेकिन इतना भी कोई किसी का कितना डियर हो सकता है कि उसे कोई मेसेज लिख कर भी दे तो वो भी खून से लिख कर दे?.. और क्या पता, शायद अपने ही खून से??!”
निमेश को लगा की जैसे किसी ने किसी भारी चीज़ से उसके सर पर; खास कर उसके लॉजिक पर बड़े करारे तरीके से प्रहार किया हो... कुछ क्षणों के लिए तो उसकी बोलती ही बंद हो गई.. बोलती क्या.. मानो दिमाग ने सोचना ही बंद कर दिया हो... फ़िर भी थूक गटक कर अपने लॉजिक, ज्ञान और डॉक्टरी की लाज रखने हेतु कुछ बोलना चाहा,
“अ.. मम.. प... पर... ज़रूरी नहीं की....”
“क्या ज़रूरी नहीं डॉक्टर महोदय? यही न की वो खून किसी इंसान का नहीं हो??” देव निमेश की हालत देख अब हँसे बिना नहीं रह पाया.
“हाँ.. यही... मैं...”
“निमेश... मेरे कॉलेज में लैब है और मैंने थोड़े से नमूने का टेस्ट भी करवाया है... इट्स ह्यूमन ब्लड!!”
निमेश अब बिल्कुल भी कुछ नहीं बोला. चुप रहा. कुछ बोलने के लिए उसे अभी अभी देव द्वारा कही गई बातों को हजम करना पड़ेगा जोकि उससे फ़िलहाल इस समय तो बिल्कुल ही नहीं हो रहा है.
एक दीर्घ साँस छोड़ते हुए विवशता में अपने सिर को सिर्फ़ हिलाया..
देव उसके संकेत को समझ गया.. इस अनाधिकारिक तर्कशास्त्र में स्वयं के विजयी होने का आनंद लेते हुए वहाँ से चला गया.
पीछे निमेश अब भी विवश सा बैठा, हाथ में काँच वाला पेपरवेट से खेलते हुए उसके और देव के बीच हुए वार्तालाप के बारे में गहराई से सोचने लगा.
इधर निमेश के क्लिनिक - कम - घर से निकल कर देव अपनी गाड़ी स्टार्ट कर अपने गन्तव्य की ओर बढ़ा और वहाँ से उसके जाते ही उस स्थान से थोड़ी दूरी पर स्थित एक चाय दुकान से एक आदमी चाय पीता हुआ थोड़ा साइड में खड़ा हो कर अपने दूसरे हाथ में पकड़े मोबाइल में बात करने लगा,
“हैलो..? हाँ.. मैं बोल रहा हूँ.. हाँ.. अभी.. तुरंत निकला है यहाँ से.. अब?”
मोबाइल में दूसरी ओर से मिले निर्देश पर अपना सिर हिलाते हुए धीरे से ‘ओके’ बोल कर वह आदमी चाय पीता हुआ फिर से चाय दुकान में चला गया.