25-03-2021, 08:23 PM
३)
“सर... आपकी कॉफ़ी.”
“हम्म.. रख दो.”
“जी सर.”
कप रख कर कन्नू वापस चला गया.
ये रोज़ का था. देव के कॉलेज के अपने ऑफिस कमरे में पहुँचने के १० मिनट बाद ही उसका पियून कन्नू उसे एक कप गर्मागर्म कॉफ़ी दे जाता है; जिसे देव बड़े आराम और इत्मीनान से ए.सी. की हवा लेते लेते पीता है.
आज भी हमेशा की ही तरह कन्नू देव को उसकी कॉफ़ी पहुँचा गया. देव की फेवरेट..
पर देव का ध्यान फ़िलहाल कॉफ़ी पर नहीं गया.
कॉफ़ी की तलब तक उसे नहीं लगी... सिवाय सिगरेट के. लेकिन वो भी अधजली ही ऐश ट्रे में रख छोड़ा है उसने. और इन सबका कारण है... सुबह घटी वो घटना...
........ जब वो कॉलेज के लिए निकला था..
हमेशा की तरह खुद ही कार ड्राइव करते हुए.
प्लाजा मोड़ के पास गाड़ी को ट्रैफिक के रेड सिग्नल के कारण रोकना पड़ा था उसे. एफ.एम में गाने सुनने लगा. गाना कौन सा बज रहा है इस बारे में देव कभी दिमाग नहीं लगाता था; बस गाने बजने चाहिए... और गाने अच्छे हों..
इसी बीच एफ.एम में ‘तुमको देखा तो ये ख्याल....’ बजने लगा... ग्रीन सिग्नल का इंतज़ार करते हुए बोर होते देव ने भी सुर से सुर मिलाना शुरू किया ही था कि तभी उसे थोड़ी दूरी पर; सड़क के दूसरी ओर एक कॉफ़ी कैफ़े के सामने टेबल कुर्सी पर बैठी काले कपड़ों में एक लड़की दिखाई दी.. पहले तो कुछ वैसा ध्यान नहीं दिया था देव ने... लेकिन जब गाने के दौरान ही दो बार उसकी नज़रें उस ओर गयी तो पाया की लड़की उसी की ओर देख रही है!
देव ने काला चश्मा पहन रखा था... पकड़े जाने का कोई चांस नहीं था.. इसलिए चेहरे को सीधा अपने सामने खड़ी गाड़ियों की ओर कर चश्मे के अंदर से आँखों को तिरछी कर के उस लड़की की ओर देखने लगा था...
लड़की का चेहरा भी इसी ओर था पर क्या वो भी देव को देख रही थी?
क्योंकि अजीब संयोग था कि लड़की ने भी काला चश्मा लगा रखा था. उसका कॉफ़ी वाला कप उसके सामने ही रखा था... जिसमें से हल्का भाप भी निकल रहा था.. दो तीन बार और देखने पर देव को वाकई लगा की लड़की उसकी ओर... उसे ही देख रही है.
देव ने जैसे ही ये निर्णय लिया की अब वो चश्मा निकाल कर उसकी ओर देखेगा; तभी ट्रैफिक की ग्रीन सिग्नल ऑन हो गई और ठीक उसी के साथ ही लड़की अपनी कुर्सी पर से उठी और टेबल पर पैसे रख कर, कंधे पर हैण्डबैग रख कैफ़े से निकली और एक ओर चली गई.. इतने समय में अधिकतर वो देव की ही ओर देख रही थी. देव को ये बात वाकई अजीब लगी क्योंकि ऐसा आम तौर पर होता नहीं है.
ग्रीन सिग्नल के ऑन होने के कारण अब देव कॉलेज के लिए बढ़ चुका था; पर ये बात अब खुद देव को भी नहीं पता की जाने अनजाने में वो लड़की उसके दिल और दिमाग में घर बना चुकी थी.
अपनी ऑफिस के कुर्सी पर बैठे बैठे उस लड़की के बारे में सोचते हुए काफ़ी देर बीत गया देव का. देव बेचारा ये भी नहीं समझ पा रहा कि वो उस अंजान लड़की के बारे में सोच ही क्यों रहा है? कोई सॉलिड कारण तो दिख नहीं रहा.
तभी उसके टेबल पर बाएँ साइड रखा लैंडलाइन बज उठा.
“यस?”
“गुड मोर्निंग सर.”
“हाँ गुड मोर्निंग प्रिया, बोलो..”
“सर.. ऑल आर वेटिंग फॉर यू इन द ऑडिटोरियम.”
“ओह यस यस.. ऍम कमिंग.”
बोल कर रिसीवर को क्रैडल पर रख खुद को ठीक करते हुए कुर्सी से उठा और कमरे से बाहर चला गया.
आज ‘टीचर्स डे’ है..
देव को स्टूडेंट्स द्वारा आयोजित एक छोटे कल्चरल फंक्शन को अटेंड जो करना है....
घंटे भर बाद ही देव वापस अपने ऑफिस वाले कमरे में आ गया.. फंक्शन अभी भी चालू था.. लेकिन देव अपने लिए ब्रेक ले लिया.. आने से पहले एक जोशीला स्पीच भी दिया स्टूडेंट्स को. एक महान भारतीय संत के कथानुसार छात्रों को ‘लक्ष्य की प्राप्ति न होने तक आगे बढ़ते रहने’ का एक प्रेरणादायक भाषण दिया. छात्र जीवन से ही एक बहुत अच्छा वक्ता रहा है देव. जब भी बोलता है सामने वाले को मुग्ध कर देता है.. एक नयी आशा, अपेक्षा, उत्साह इत्यादि सकारात्कमक भावनाओं का संचार कर देने में महारथ प्राप्त रहा है उसे.
“हम्म.. रख दो.”
“जी सर.”
कप रख कर कन्नू वापस चला गया.
ये रोज़ का था. देव के कॉलेज के अपने ऑफिस कमरे में पहुँचने के १० मिनट बाद ही उसका पियून कन्नू उसे एक कप गर्मागर्म कॉफ़ी दे जाता है; जिसे देव बड़े आराम और इत्मीनान से ए.सी. की हवा लेते लेते पीता है.
आज भी हमेशा की ही तरह कन्नू देव को उसकी कॉफ़ी पहुँचा गया. देव की फेवरेट..
पर देव का ध्यान फ़िलहाल कॉफ़ी पर नहीं गया.
कॉफ़ी की तलब तक उसे नहीं लगी... सिवाय सिगरेट के. लेकिन वो भी अधजली ही ऐश ट्रे में रख छोड़ा है उसने. और इन सबका कारण है... सुबह घटी वो घटना...
........ जब वो कॉलेज के लिए निकला था..
हमेशा की तरह खुद ही कार ड्राइव करते हुए.
प्लाजा मोड़ के पास गाड़ी को ट्रैफिक के रेड सिग्नल के कारण रोकना पड़ा था उसे. एफ.एम में गाने सुनने लगा. गाना कौन सा बज रहा है इस बारे में देव कभी दिमाग नहीं लगाता था; बस गाने बजने चाहिए... और गाने अच्छे हों..
इसी बीच एफ.एम में ‘तुमको देखा तो ये ख्याल....’ बजने लगा... ग्रीन सिग्नल का इंतज़ार करते हुए बोर होते देव ने भी सुर से सुर मिलाना शुरू किया ही था कि तभी उसे थोड़ी दूरी पर; सड़क के दूसरी ओर एक कॉफ़ी कैफ़े के सामने टेबल कुर्सी पर बैठी काले कपड़ों में एक लड़की दिखाई दी.. पहले तो कुछ वैसा ध्यान नहीं दिया था देव ने... लेकिन जब गाने के दौरान ही दो बार उसकी नज़रें उस ओर गयी तो पाया की लड़की उसी की ओर देख रही है!
देव ने काला चश्मा पहन रखा था... पकड़े जाने का कोई चांस नहीं था.. इसलिए चेहरे को सीधा अपने सामने खड़ी गाड़ियों की ओर कर चश्मे के अंदर से आँखों को तिरछी कर के उस लड़की की ओर देखने लगा था...
लड़की का चेहरा भी इसी ओर था पर क्या वो भी देव को देख रही थी?
क्योंकि अजीब संयोग था कि लड़की ने भी काला चश्मा लगा रखा था. उसका कॉफ़ी वाला कप उसके सामने ही रखा था... जिसमें से हल्का भाप भी निकल रहा था.. दो तीन बार और देखने पर देव को वाकई लगा की लड़की उसकी ओर... उसे ही देख रही है.
देव ने जैसे ही ये निर्णय लिया की अब वो चश्मा निकाल कर उसकी ओर देखेगा; तभी ट्रैफिक की ग्रीन सिग्नल ऑन हो गई और ठीक उसी के साथ ही लड़की अपनी कुर्सी पर से उठी और टेबल पर पैसे रख कर, कंधे पर हैण्डबैग रख कैफ़े से निकली और एक ओर चली गई.. इतने समय में अधिकतर वो देव की ही ओर देख रही थी. देव को ये बात वाकई अजीब लगी क्योंकि ऐसा आम तौर पर होता नहीं है.
ग्रीन सिग्नल के ऑन होने के कारण अब देव कॉलेज के लिए बढ़ चुका था; पर ये बात अब खुद देव को भी नहीं पता की जाने अनजाने में वो लड़की उसके दिल और दिमाग में घर बना चुकी थी.
अपनी ऑफिस के कुर्सी पर बैठे बैठे उस लड़की के बारे में सोचते हुए काफ़ी देर बीत गया देव का. देव बेचारा ये भी नहीं समझ पा रहा कि वो उस अंजान लड़की के बारे में सोच ही क्यों रहा है? कोई सॉलिड कारण तो दिख नहीं रहा.
तभी उसके टेबल पर बाएँ साइड रखा लैंडलाइन बज उठा.
“यस?”
“गुड मोर्निंग सर.”
“हाँ गुड मोर्निंग प्रिया, बोलो..”
“सर.. ऑल आर वेटिंग फॉर यू इन द ऑडिटोरियम.”
“ओह यस यस.. ऍम कमिंग.”
बोल कर रिसीवर को क्रैडल पर रख खुद को ठीक करते हुए कुर्सी से उठा और कमरे से बाहर चला गया.
आज ‘टीचर्स डे’ है..
देव को स्टूडेंट्स द्वारा आयोजित एक छोटे कल्चरल फंक्शन को अटेंड जो करना है....
घंटे भर बाद ही देव वापस अपने ऑफिस वाले कमरे में आ गया.. फंक्शन अभी भी चालू था.. लेकिन देव अपने लिए ब्रेक ले लिया.. आने से पहले एक जोशीला स्पीच भी दिया स्टूडेंट्स को. एक महान भारतीय संत के कथानुसार छात्रों को ‘लक्ष्य की प्राप्ति न होने तक आगे बढ़ते रहने’ का एक प्रेरणादायक भाषण दिया. छात्र जीवन से ही एक बहुत अच्छा वक्ता रहा है देव. जब भी बोलता है सामने वाले को मुग्ध कर देता है.. एक नयी आशा, अपेक्षा, उत्साह इत्यादि सकारात्कमक भावनाओं का संचार कर देने में महारथ प्राप्त रहा है उसे.
अपने कमरे में आते ही पहले तो साथ लगे वाशरूम में जा कर पानी से अपने चेहरे को अच्छे से धोया और फिर दो मिनट बाद कुर्सी पर बैठते बैठते एक सिगरेट सुलगा लिया.
रह रह कर उस लड़की का चेहरा देव के लाख न चाहने पर भी याद आ रहा था. उस लड़की से उसका कोई सम्बन्ध तो है नहीं; तो फ़िर यूँ याद आने का कारण??
तभी दरवाज़े पर नॉक हुआ..
“यस.. कम इन.”
दरवाज़ा ज़रा सा खुला..
पहले कन्नू का सिर दिखा जो झांक कर एकबार अंदर कमरे की वस्तुस्थिति का अंदाज़ा लगा लिया फ़िर तनिक झिझकते हुए प्रवेश किया..
देव ने नज़रें घूमा कर एकबार कन्नू को देखा और फिर सीलिंग की ओर देख कर धुआँ छोड़ते हुए पूछा,
“क्या हुआ, कन्नू?”
“सर, ये....”
देव ने उसकी ओर देखे बिना ही पूछा,
“क्या है?”
“सर... कोई ये दे कर...”
इसबार कन्नू का बात खत्म होने से पहले ही देव उसकी ओर पूरी तरह मुड़ कर देखा..
कन्नू का हाथों में एक बहुत ख़ूबसूरत गुलदस्ता दिखा.
“ये... कौन दे कर गया?”
“दे कर गया नहीं सर... दे कर गई!”
“गई??”
“जी सर..”
“कौन?”
“सर.. आप ही की एक स्टूडेंट दे गई है. कहा कि, ‘सर को ऐसे फूल और उन फूलों से बने गुलदस्ते बहुत पसंद है. उन्हें ये ज़रूर से दे देना.’.. इससे अधिक कुछ कहा नहीं उसने.”
“तुमने उससे उसका नाम पूछा?”
“पूछा था सर.. लेकिन नाम बोलने के जगह उसने कहा कि ‘सर से बोलना उनकी स्पेशल स्टूडेंट ने ये दिया है.’ वो खुद समझ जाएँगे... इतना बोलकर, मुस्कराते हुए चली गई.”
“अम्म.. ओके.. कम से कम उसे रूकने के लिए या मुझसे सीधे मिलने के लिए कहना चाहिए था न.”
देव ने निराश और शिकायती लहजे में कहा.
“कहा था सर.. और वो रुकी भी थी. आप उस समय बच्चों के फंक्शन को अटेंड कर रहे थे. इसलिए आपको डिस्टर्ब करना मैंने उचित नहीं समझा और अपने दूसरे कामों में ध्यान दिया. काफ़ी देर रुकने के बाद वो बोली की उसे और भी ज़रूरी काम है... अब और नहीं रुक सकती.. ये गुलदस्ता मुझे देते हुए बोली कि मैं ये आप तक ज़रूर से पहुँचा दूँ; फ़िर चली गई.”
“ओह..हम्म.. ठीक है.. इसे यहीं रख दो.. और जाओ.”
कन्नू ने वहीँ किया.. गुलदस्ता टेबल पर, देव के ठीक सामने रखा और चला गया.
देव कुछ देर तक गौर से उस गुलदस्ते को देखता रहा और धुआं उड़ाता रहा... फिर उस गुलदस्ते को उठा कर देखा... बहुत ख़ूबसूरत काले और लाल रंग के गुलाब थे.. और उससे भी सुंदर ढंग से सजा कर गुलदस्ते को बनाया गया था.
फूलों के बीच में ही... बड़े करीने से एक कागज़ को छोटे से टुकड़े को कुछ ऐसे रखा गया था जो न जल्दी दिखे और न ही अनदेखा किया जा सके..
देव मुस्कराया.. इतना जतन भला कौन सा स्पेशल स्टूडेंट करता है?
कागज़ को दो फोल्ड किया गया था...
फोल्ड्स खोला देव ने,
अंदर एक बड़ा सा दिल बना हुआ था जिसमें लिखा था,
‘फॉर द वन एंड ऑनली.... फ्रॉम द वन एंड ऑनली!'
रह रह कर उस लड़की का चेहरा देव के लाख न चाहने पर भी याद आ रहा था. उस लड़की से उसका कोई सम्बन्ध तो है नहीं; तो फ़िर यूँ याद आने का कारण??
तभी दरवाज़े पर नॉक हुआ..
“यस.. कम इन.”
दरवाज़ा ज़रा सा खुला..
पहले कन्नू का सिर दिखा जो झांक कर एकबार अंदर कमरे की वस्तुस्थिति का अंदाज़ा लगा लिया फ़िर तनिक झिझकते हुए प्रवेश किया..
देव ने नज़रें घूमा कर एकबार कन्नू को देखा और फिर सीलिंग की ओर देख कर धुआँ छोड़ते हुए पूछा,
“क्या हुआ, कन्नू?”
“सर, ये....”
देव ने उसकी ओर देखे बिना ही पूछा,
“क्या है?”
“सर... कोई ये दे कर...”
इसबार कन्नू का बात खत्म होने से पहले ही देव उसकी ओर पूरी तरह मुड़ कर देखा..
कन्नू का हाथों में एक बहुत ख़ूबसूरत गुलदस्ता दिखा.
“ये... कौन दे कर गया?”
“दे कर गया नहीं सर... दे कर गई!”
“गई??”
“जी सर..”
“कौन?”
“सर.. आप ही की एक स्टूडेंट दे गई है. कहा कि, ‘सर को ऐसे फूल और उन फूलों से बने गुलदस्ते बहुत पसंद है. उन्हें ये ज़रूर से दे देना.’.. इससे अधिक कुछ कहा नहीं उसने.”
“तुमने उससे उसका नाम पूछा?”
“पूछा था सर.. लेकिन नाम बोलने के जगह उसने कहा कि ‘सर से बोलना उनकी स्पेशल स्टूडेंट ने ये दिया है.’ वो खुद समझ जाएँगे... इतना बोलकर, मुस्कराते हुए चली गई.”
“अम्म.. ओके.. कम से कम उसे रूकने के लिए या मुझसे सीधे मिलने के लिए कहना चाहिए था न.”
देव ने निराश और शिकायती लहजे में कहा.
“कहा था सर.. और वो रुकी भी थी. आप उस समय बच्चों के फंक्शन को अटेंड कर रहे थे. इसलिए आपको डिस्टर्ब करना मैंने उचित नहीं समझा और अपने दूसरे कामों में ध्यान दिया. काफ़ी देर रुकने के बाद वो बोली की उसे और भी ज़रूरी काम है... अब और नहीं रुक सकती.. ये गुलदस्ता मुझे देते हुए बोली कि मैं ये आप तक ज़रूर से पहुँचा दूँ; फ़िर चली गई.”
“ओह..हम्म.. ठीक है.. इसे यहीं रख दो.. और जाओ.”
कन्नू ने वहीँ किया.. गुलदस्ता टेबल पर, देव के ठीक सामने रखा और चला गया.
देव कुछ देर तक गौर से उस गुलदस्ते को देखता रहा और धुआं उड़ाता रहा... फिर उस गुलदस्ते को उठा कर देखा... बहुत ख़ूबसूरत काले और लाल रंग के गुलाब थे.. और उससे भी सुंदर ढंग से सजा कर गुलदस्ते को बनाया गया था.
फूलों के बीच में ही... बड़े करीने से एक कागज़ को छोटे से टुकड़े को कुछ ऐसे रखा गया था जो न जल्दी दिखे और न ही अनदेखा किया जा सके..
देव मुस्कराया.. इतना जतन भला कौन सा स्पेशल स्टूडेंट करता है?
कागज़ को दो फोल्ड किया गया था...
फोल्ड्स खोला देव ने,
अंदर एक बड़ा सा दिल बना हुआ था जिसमें लिखा था,
‘फॉर द वन एंड ऑनली.... फ्रॉम द वन एंड ऑनली!'