31-10-2020, 09:24 PM
गाँव में हर ओर शांति ही शांति छा गई.
दैनिक कार्य सुचारू रूप से चलने लगे.
अब संध्या समय दुकान जल्दी बंद करने की जल्दी किसी को नहीं रहती. किसी को किसी प्रकार का भय नहीं था. सभी के मन हल्के थे.
चाय दुकान हो या दारू दुकान; दोस्तों संग मिल कर अब हर कोई मस्त था.
केवल एक को छोड़ कर...
बिस्वास जी...
बाबा जी के जाने के बाद से ही बड़े व्याकुल, चिंतित रहते थे..
खाना पीना कम हो गया था.
हरदम, हर क्षण किसी चिंता में डूबे रहते थे.
सुख शांति तो जैसे अनायास ही किसी ने छीन लिया हो उनसे.
आस पड़ोस वालों से, मित्रों से... सब से बात करना कम कर दिया था बिस्वास जी ने. कुछेक लोगों से तो बात करना ही लगभग छोड़ चुके थे.
धीरे धीरे एक महिना बीत गया.
एक रात कमरे में अपने बिस्तर पर सोते हुए अचानक से उठ बैठे.
चेहरे पर भय और आँखों में जिज्ञासा स्पष्ट दिख रही थी.
कान लगा कर दूर कहीं से कुछ सुनने का प्रयास करने लगे.
‘हाँ.. एक आवाज़ तो आ रही है... जनाना आवाज़.. कौन हो सकती है?’
बिस्वास जी उठ कर बंद खिड़की के पास जा कर खड़े हो गए. पिछले कुछ दिनों से बिस्वास जी अपने कमरे के दो में एक खिड़की को बंद कर के ही सोते थे. उनके बिस्तर के ठीक बगल वाले खिड़की को बंद रखते थे; जबकि दूसरा खिड़की जोकि उनके बिस्तर से थोड़ा दूर था; उसे खुला रखते थे.
सोचने लगे,
‘पर ये रो क्यों रही है..?’
‘नहीं नहीं; ये हँस रही है.’
वाकई में एक बहुत ही वीभत्स हँसी की आवाज़ दूर कहीं से सुनाई दे रही थी. किसी को भी अंदर से कंपा देने वाली हँसी.. असीम आनंद और दुःख से भरी हुई, साथ ही अत्यंत हिंसक.. निष्ठुर.. क्रूर...
अचानक बिस्वास जी की नज़र कमरे में ही उनसे थोड़ी दूर स्थित आदमकद आईने पर गई.
पता नहीं क्यों, वे उस ओर आकर्षित हो गए... धीरे पगों से उसकी ओर बढ़े.. और जा कर आईने के बिल्कुल सामने खड़े हो गए. आँखें सिकुड़ कर उसमें कुछ देखने का प्रयास करने लगे.
कुछ क्षण तक तो देखने का ही प्रयास करते रहे..
और अचानक....
आँखें घोर आश्चर्य और असीम भय से पथरा गए.. हृदय ज़ोरों से धड़कने लगा. इतने ज़ोर से की वो स्वयं अपने कानों से ही अपने हृदय के स्पंदन को सुन पा रहे थे..
पास एक छोटे से टेबल पर रखे अपने चश्मे को आँखों से लगाया..
“उफ़!! नहीं! ये क्या........?”
इससे अधिक नहीं बोल पाए बिस्वास जी.
उनके पीछे से दो सड़े हुए हाथ, जिनसे कहीं कहीं से मांस लटक रहे थे, खून टपक रहे थे, अँगुलियों में करीब तीन – तीन इंच के लाल लंबे नाखून मानो अपने शिकार को शीघ्र पकड़ने के लिए तड़प रहे हों; धीरे धीरे बिस्वास जी के चेहरे के दोनों ओर से आगे की तरफ़ निकले....
और फिर....
..... रात के सन्नाटे में दूर दूर तक एक तेज़ चीख़ तैर गई!
*समाप्त*