18-10-2020, 11:41 AM
१८)
इधर,
बाबा की कुटिया में,
“घेतांक?!! ये घेतांक कौन है गुरूदेव?”
बाबा का ध्यान समाप्त होते ही उनके मुँह से यह नाम निकला जिसे सुनकर उनके पास अब तक उनके साथ ही ध्यानमुद्रा में बैठे गोपू और चांदू चौंक गए और तुरंत ही प्रश्न कर बैठे.
बाबा के चिंतित मुँह से स्वतः ही उत्तर निकला,
“एक तांत्रिक.. यहीं.. इसी गाँव का रहने वाला... आज से कुछ वर्ष पहले तक रहता था... अब इस गाँव को छोड़ चुका है.. कुछ दिन पहले ही छोड़ कर गया है.. कई तरह की तांत्रिक क्रियाओं में सिद्धहस्त एवं बुरी शक्तियों का स्वामी.”
“ग...गुरूदेव.. तो फिर... ये तांत्रिक......”
गोपू का प्रश्न पूरा होने से पहले ही बाबा बोल पड़े,
“ये सब... सब कुछ... उसी का किया धरा है.”
“अर्थात्.. गुरूदेव?”
“अर्थात् इस गाँव में जो कुछ भी हो रहा है; इन सब के मूल में यही दुष्ट तांत्रिक है.”
“ये दुष्ट तांत्रिक ही वास्तविक मूल है इन सब दुर्घटनाओं एवं हत्याओं के पीछे?”
“हाँ वत्स.”
“परन्तु... गुरूदेव.. आपने तो कहा था कि कोई चंडूलिका है इन सबके पीछे?”
“चंडूलिका इन सबके पीछे अवश्य है वत्स.. उसका हाथ भी है इन सब घटनाओं में.. परन्तु वास्तविक मूल तो यही घेतांक नामक तांत्रिक है. वो चंडूलिका सिद्ध तांत्रिक है. उसी ने चंडूलिका को इन सब में लगाया है.”
हरेक शब्द के साथ बाबा की चिंता की गहराईयाँ बढ़ती जा रही थीं.
इस बात को दोनों शिष्य भली भांति समझ रहे थे पर बाबा से अधिक प्रश्नोत्तर करना भी नहीं चाह रहे थे.. क्योंकि दोनों ही इस बात को बहुत अच्छे से समझ रहे थे की बाबा दिन-ब-दिन गाँव और गाँव वासियों के सुरक्षा को लेकर बहुत अधिक चिंतित होते जा रहे हैं.
“आपको क्या लगता है गुरूदेव; तांत्रिक के जाने के बाद भी ये चंडूलिका क्या स्वेच्छा से लोगों का शिकार कर रही है या तांत्रिक ने ही इसे इसी काम में लगा कर गाँव छोड़ कर चला गया है?”
“उस तांत्रिक घेतांक ने ही इसे इस घृणित कार्य में लगा छोड़ा है वत्स.. और ये मेरा अनुमान नहीं है.. मैं जानता हूँ की ऐसा ही हुआ है.”
“और ये शौमक और अवनी; गुरूदेव?”
“जीवन के अंतिम क्षणों में वे दोनों अत्यंत भयभीत, दुखी एवं आकांक्षी थे... जीवन जीने की इच्छा बहुत बलवती थी उस समय; पर जी न सके. इसलिए मरणोपरांत इनकी आत्माएँ प्रतिशोध की भावना से भरी हुई है.. और यही कारण है की ये दूसरी आम आत्माओं से अधिक बलवान भी हैं.. लेकिन फिर भी चंडूलिका जैसी एक बड़ी शक्ति के सामने दोनों ही नतमस्तक हैं. चूँकि ये दोनों ही गाँव वालों से प्रतिशोध लेना चाहते थे इसलिए चंडूलिका ने इन्हें अपने अधीन रख लिया और इन्हीं के माध्यम से गाँव वालों को लुभा कर या किसी और तरह से फँसा कर मार रही है.”
“इस सबसे चंडूलिका को क्या लाभ है, गुरूदेव?”
“मानव रक्त पी कर एवं स्तरीय स्तरीय आत्माओं को अपने अधीन कर वो और अधिक बलवती होना चाहती है. स्मरण रहे वत्स, चंडूलिका एक रानी चुड़ैल है. एक ऐसी शक्ति जिसे या तो भगवान या फिर कोई अत्यंत उच्च कोटि का सिद्ध पुरुष ही समाप्त या रोक सकता है.”
“आप भी तो एक अत्यंत ही उच्च कोटि के सिद्ध महात्मा हैं गुरूदेव; आप भी तो समाप्त कर सकते हैं इसे.”
“अवश्य ही कर सकता हूँ वत्स... (थोड़ा रुक कर)... लेकिन......”
“लेकिन क्या गुरूदेव?”
“गाँव में कुछेक और अनिष्ट होने की सम्भावना दिख रही है मुझे. ये मेरी कोरा आशंका नहीं अपितु विश्वास है क्योंकि गाँव के सभी लोग मेरा कहा, मेरा निर्देश नहीं मानेंगे... दुर्भाग्य है ऐसी जनता का, ऐसे लोगों का जो अपने हित की बातों को समय पर ना तो सुनते हैं और ना ही मानते हैं. जब भी थोड़ी पाबंदी लगाईं जाती है तो ये सोचते हैं की मानो उनका जीवन ही उनसे छीन लिया जा रहा है. इसी कारण छोटी सी लगने वाली संकट एक बड़ी भारी विपदा बन जाती है. और यही वो कारण है वत्स, जिससे की मैं आश्वस्त हूँ कि सभी मेरा निर्देश नहीं मानेंगे... और इसलिए कुछ अनिष्ट अवश्य होगा.”
कहते हुए बाबा का चेहरा इतनी दृढ़ता से सख्त हो गया था की गोपू और चांदू को आगे कुछ और कहने-पूछने का साहस नहीं हुआ. इस बात को लेकर दोनों ही दृढ़ निश्चित थे कि अगर गुरूदेव ने कुछ अनिष्ट होने की बात कही है तो वो अवश्य ही होगा.
उसी दिन....
रात नौ बजे के आस पास जब सारा गाँव हमेशा की तरह शांत हो गया था...
अँधेरे में कालू मस्ती में डूबा अपने घर की ओर जा रहा था.
रोज़ की तरह आज भी अपना दुकान बढ़ा कर (बंद कर) के वो आजकल अपने नए ठिकाने; केष्टो दादा के दुकान में जाने लगा था.. सिर्फ़ चाय-ब्रेड-बिस्कुट ही नहीं अपितु, दारू और अंडा भी उपलब्ध रहता था वहाँ. अब हाई ब्रांड या विदेशी किस्म के दारू तो मिलने से रहे... इसलिए या तो सस्ते वाला लोकल दारू ही मिलता था वहाँ या फिर ताड़ी (एक पेय पदार्थ जिसे नशे के लिए पिया जाता है).
दुकान से निकल कर काफ़ी दूर तक निकल आने के बाद एक जगह अचानक से कालू के साइकिल का ब्रेक अपनेआप लग गया.
नशे में धुत कालू को कुछ समझ नहीं आया.
वो तो साइकिल पर ही थोड़ी देर खड़ा रह कर झूमता रहा.. जब थोड़ा होश हुआ तब पेडल मारा.. साइकिल आगे चल पड़ी.
मुश्किल से दस कदम चला होगा कि फिर ब्रेक लगा.. अपने आप.
कालू को अब भी कोई होश नहीं था. नशे में उसे तो यही लग रहा था की वो साइकिल तो चला रहा है पर शायद स्पीड थोड़ी कम है.
जब करीब पन्द्रह मिनट के बाद भी सामने दिख रहा आम का पेड़ पीछे नहीं हुआ तब कालू को थोड़ा होश हुआ... जितना भी होश हुआ उसमें उसे इतना महसूस हो गया कि उसके साइकिल में कुछ गड़बड़ है.
वो बैठे बैठे ही थोड़ा नीचे झुक कर ब्रेक और चेन को चेक किया.
दोनों को ठीक पाने पर वो फिर पेडल पर दबाव डाला...
साइकिल आगे बढ़ी.
फिर रुकी...
इस बार कालू बुरी तरह से झुंझला उठा.
कई गंदी गालियाँ देता हुआ वह साइकिल से नीचे उतरा और ब्रेक व चेन चेक करने लगा. सब ठीक था.
नशे में उसे होश तो नहीं था.. पर घर समय पर पहुँचने के लिए उसे होश में आना और रहना बहुत ज़रूरी था. और अब जिस तरह की दिक्कतें हो रही हैं इससे तो वह ऐसे घर पहुँचने से रहा.
अभी वो अपने इस ताज़े समस्या के बारे में सोच ही रहा था कि तभी उसका एक और साथी वहाँ साइकिल चलाता हुआ आ पहुँचा. ये सुधीर था. वैसे तो बड़ा व्यवहार-कुशल था; पर चरित्र से एक नंबर का ठरकी लड़का था. पहले शहर में टिकट ब्लैक किया करता था.. अब किसी कारणवश शहर छोड़ कर गाँव में ही रहते हुए कोई न कोई काम किया करता था.
कुछ देर पहले इसने भी कालू के साथ ही दारू पिया था. अंडे अलग से.
कालू को बीच रास्ते; जोकि वास्तव में एक पतली पगडंडी है; में खड़ा देख कर उसने भी साइकिल कालू के पास आ कर रोक दिया. कालू की आँखें ठीक से खुल नहीं रही थी. खड़े खड़े ही झूम रहा था. उसकी ये हालत देख कर सुधीर हँस दिया... कारण, सुधीर ने कालू से ज्यादा पिया था लेकिन होश अभी भी दुरुस्त था.
बड़े बदतमीजी से हँसते हुए पूछा,
“क्या हुआ हीरो? ऐसे अँधेरे में बीच रास्ते में क्या कर रहा है?”
“क..कुछ न..नहीं.. चेन उ..उतर गई है.”
“किसकी?”
“किसकी म... मतलब... साला, साइकिल की उतरी ह.. है.”
“अच्छा.. तो चढ़ा नहीं पा रहा है क्या?”
“ह्म्म्म.. अ... अगर.. चढ़ा ल.. लेता तो अ...अभी तक... ग.. घ... घर नहीं चला जाता.”
कालू को सुधीर के बेतुके प्रश्नों पर बड़ा गुस्सा आ रहा था; और कोई समय होता और वो अगर नशे में नहीं होता तो शायद अच्छे से निपट लेता सुधीर से. पर करे भी क्या, उसे तो पता ही था कि सुधीर कैसा लड़का है. भले ही मज़े ले रहा है अभी... पर अगर सहायता की बात आई तो यही लड़का सबसे पहले आगे बढ़ कर आएगा.
सुधीर अगले दो मिनट तक कालू को देखता रहा.
समझ गया की अगर इसकी सहायता नहीं की गई अभी तो शायद रात भर यहीं रह जाएगा.
इसलिए वो अपने साइकिल से उतरा और कालू को एक ओर होने को बोल कर खुद उसके साइकिल की चेन चेक करने लगा. चेन देखते ही बोला,
“अबे बोकाचोदा, चेन तो बिल्कुल ठीक है. तुझे कहाँ से ये उतरा हुआ लग रहा है बे?”
कहते हुए वो उठ गया और साइकिल के दूसरे हिस्सों को देखने लगा किसी सम्भावित गड़बड़ी को देखने के लिए. कालू तब तक अपने बायीं ओर थोड़ी दूर पर स्थित एक पेड़ के पीछे मूतने चला गया था.
और इधर सुधीर कालू की साइकिल की जाँच परख कर रहा था.
पर ऐसा कुछ मिला नहीं.
अभी वो आगे कुछ सोचे या बोले; तभी उसे पायल की आवाज़ सुनाई दी. वो जल्दी पलट कर अपने पीछे देखा; जहाँ से वो और कालू आये थे.
पीछे देखते ही उसकी आँखें आश्चर्य से फ़ैल गयीं.
कुछ क्षणों के लिए उसे विश्वास ही नहीं हुआ कि वो जो देख रहा है वो वास्तविक है या फिर उसे भी थोड़ी थोड़ी कर के चढ़नी शुरू हो गई है.
पीछे से एक बहुत ही सुन्दर महिला धीमे क़दमों से चलती हुई आ रही थी.
हालाँकि उसने घूंघट किया हुआ था परन्तु घूंघट पूरी तरह से चेहरे को ढक नहीं रही थी. बदन पर साड़ी बहुत ही अच्छे से फिट बैठ रही थी लेकिन सुधीर जैसे लड़के फिगर का अंदाज़ा किसी न किसी तरह से कर ही लेते हैं.
और सुधीर को वह वाकई भा गई.
बिना चेहरा देखे केवल शरीर पर कस कर फिट बैठते कपड़ों से फिगर का अनुमान लगा कर ही उसका दिमाग ख़राब होने लगा था और कमर के नीचे वाले हिस्से में हलचल होने लगी.
उस महिला ने एक बार बस एक क्षण के लिए नज़रें फेरा कर सुधीर की ओर देखी और फिर आगे चल पड़ी. जैसे ही वो सुधीर के बगल से गुजरी; सुधीर को एक बहुत ही मदमस्त कर देने वाला बहुत प्यारी सी सुगंध का आभास हुआ. आज से पहले कभी इतनी अच्छी सुगंध उसके नाक से कभी नहीं टकराई थी.
वो बरबस ही उसकी ओर आकर्षित होने लगा.
जब महिला थोड़ा ओर आगे बढ़ तब सुधीर को होश आया और तुरंत अपनी साइकिल लेकर उस महिला के पीछे चल दिया.
महिला के पास पहुँच कर अपनी साइकिल को धीरे करते हुए बोला,
“आप इसी गाँव की हैं?”
उसके इस प्रश्न पर महिला की ओर से कोई उत्तर न आया.
सुधीर ने फिर पूछा.
महिला फिर भी कुछ न बोली; केवल अपने सिर को थोड़ा नीचे कर ली.
तीसरी बार पूछे जाने पर धीमे और शरमाई स्वर में बोली,
“जी.”
उसकी आवाज़ शहद सी मीठी थी.
सुधीर को इतनी अच्छी लगी कि वो उससे और बातें करने की सोचने लगा.
इधर पेड़ के पीछे से कालू सुधीर की इन हरकतों को देख रहा था.. और नशे में ही मन ही मन हँसते हुए उसे गाली दे रहा था कि जहाँ नारी दिखी वहीँ जोगाड़ लगाना शुरू कर दिया कमीने ने.
कालू ने देखा की सुधीर और वो महिला कुछ कदम आपस में कुछ बातें करते हुए चले.. फिर रुक गए... कुछ और बातें हुईं... और अचानक से वो महिला सड़क की दूसरी ओर बेतरतीब उगी हुई झाड़ियों के पीछे चली गई.
सुधीर पीछे मुड़ कर देखा.. कालू अभी भी पेड़ के पीछे ही था. सुधीर को बस उसकी बीच पगडंडी पर खड़ी साइकिल दिखी. कुछ क्षण कालू की साइकिल को देख कर कुछ सोचता रहा.. फिर उन झाड़ियों की ओर देखा जिधर वो महिला अभी अभी गई.
कुछ पल और सोचने के बाद सुधीर भी अपनी साइकिल को उसी ओर ले कर बढ़ गया जिधर वो महिला गई थी.
करीब पाँच मिनट बीत गए.
सुधीर नहीं लौटा.
नशे में भी कालू को थोड़ी चिंता हुई.
जब पाँच मिनट और बीत गए और सुधीर फिर भी नहीं लौटा तब कालू ने जा कर देखने का सोचा की आखिर बात क्या है. अगर इन्हीं कुछ पलों में सुधीर ने उस महिला को पटा लिया है तो फिर ठीक है... नहीं तो मामला गड़बड़ है.
साइकिल बिना लिए ही कालू आगे बढ़ने लगा... धीमे चाल से.
झाड़ियों के पास जा कर उसने बहुत आहिस्ते से इधर उधर देखना शुरू किया. हालाँकि नशे में होने के कारण उसके द्वारा ये सब करना थोड़ा मुश्किल हो रहा था परन्तु इन सब में उसे एक अलग ही मज़ा आने लगा था अब तक.
जल्द ही उसे झाड़ियों की ही झुरमुठ में एक ओर कुछ हलचल होती दिखी. दूर के एक स्ट्रीट लाइट की धुंधली रौशनी में उस ओर देखने में थोड़ी आसानी हुई.
उन झाड़ियों से वो मुश्किल से ३ – ४ फीट की दूरी पर होगा की अचानक ही उसे एक मरदाना स्वर में ‘आर्र्ग्घघघघघर्घ’ सुनाई दिया.
ध्यान से ओर जब कालू ने देखा तो उसे वाकई बहुत ज़ोर की हैरानी हुई. इसलिए नहीं की उसने कुछ अलग देखा... बल्कि इसलिए की वो जो संदेह कर रहा था; वही सच हो गया.
उसने देखा कि सुधीर और वो महिला परस्पर आलिंगनबद्ध थे... दोनों कामातुर हो कर एक दूसरे का चुम्बन लिए जा रहे थे... इस बात से पूरी तरह बेखबर की अभी इस समय भी कोई आ कर शायद उन्हें देख सकता है.
सिर्फ़ यही नहीं... इतनी ही देर में सुधीर ने अपना जननांग उस महिला की योनि में प्रविष्ट करा चुका था तथा धीरे और लम्बे धक्के लगा रहा था. उस धुंधलके रौशनी में भी उस महिला के सुधीर के कमर के पास से ऊपर की ओर उठे उसके दोनों गोरे पैर बहुत अच्छे से दिख रहे थे.
महिला स्वयं भी पागलों की तरह सुधीर के चेहरे, गले और कंधे पे चुम्बन पर चुम्बन लिए जा रही थी और अपने हाथों को सुधीर के पूरे नंगे पीठ पर चला रही थी और रह रह के अपने लाल रंग के नेलपॉलिश से रंगे नाखूनों को उसके पीठ पर जहाँ तहां गड़ा देती.
सुधीर का भी इधर हालत ख़राब भी था और पागल भी. उस महिला का ब्लाउज तो उसने खोल दिया था पर शरीर से अलग नहीं किया. धक्के लगाते समय रह रह के वो भी कस कर उस महिला को अपने बाँहों में भर लेता था. उसने अपने हाथों को ब्लाउज के ऊपर से उसकी नंगी पीठ पर रगड़ना जारी रखा.
उसका मुँह उस महिला की क्लीवेज पर चला जाता और स्वतः ही उसके काँपते होंठ उसके क्लीवेज और स्तनों की मुलायम गोरी त्वचा से जा मिलते. उस मुलायम त्वचा से होंठों का स्पर्श होते ही दोनों ही लगभग एक साथ एक गहरी सिसकारी लेते और फिर सुधीर तुरंत ही उस पूरे अंश को चूमने – चाटने लग जाता.
काफ़ी देर तक ऐसा ही चलता रहा...
अचानक उस महिला ने एक ख़ास करवट ली और सुधीर के कानों में कुछ बोली.
जवाब में सुधीर मुस्कराते हुए धक्के लगाना छोड़ कर उठ बैठा और उसके ऐसा करते ही महिला उसके सामने उसके गोद में आ बैठी.
अब दोनों एक दूसरे की ओर सीधे देख सकते थे... महिला बिल्कुल सुधीर के कमर के ठीक नीचे बैठ गई थी... उसके जननांग के ठीक ऊपर.
कुछ क्षण एक दूसरे को काम दृष्टि से देखने के बाद झट से दोनों फिर से पागलों की तरह एक दूसरे को चूमने लगे. थोड़ी देर इसी तरह चूमते रहने के बाद वो महिला रुकी; पीछे की ओर झुक गई, लेकिन सुधीर ने उसे कमर से कस कर पकड़े रखा.
किसी हिंसक भूखे जानवर की मानिंद सुधीर आवाज़ निकालता हुआ फिर से झपट पड़ा सामने मुस्तैदी से खड़े – निमंत्रण देते दोनों गौर वर्ण चूचियों पर टूट पड़ा और एक एक को चूस चूस कर लाल करते हुए दूसरे चूची को बड़ी निर्दयता से मसलने लगता.
कालू ने जैसे ही उन गोरे स्तनद्वय पर गौर किया; उसका तो कंठ ही सूखने को आ गया. महिला की दोनों सफेद स्तनों को आज से पहले कभी उसने इतने उचित आकार के हल्के भूरे रंग के निपल्स के साथ नहीं देखा था.
इतने भरे, इतने पुष्ट इतने सुंदर आकार से बड़े बड़े.... उफ्फ्फ...!!
वो महिला बड़े आराम से, समय लेते हुए सुधीर के उस लौह अंग के ऊपर नीचे हो रही थी... और इधर सुधीर ने अपना मुंह उसके गोरे स्तनों पर रख करजीभ से ही उसे सहलाना शुरू कर दिया.
लेकिन जैसा की स्पष्ट था कि इतने सुंदर चूचियाँ मिलने पर कोई भी सिर्फ़ सहलाने तक ही सीमित नहीं रहने वाला... वही हुआ भी... सुधीर दोनों चूचियों के निप्पल को मुँह में भर कर ज़ोरों से आवाज़ करते हुए चूसने लगा और दोबारा उतनी ही निर्दयता से उन्हें मसलने लगा.
इसी तरह यह दृश्य अगले करीब आधे घंटे तक चलता रहा.
एक समय पर सुधीर अपने चरम पर पहुँच कर झड़ने ही वाला था कि उस औरत ने उसे रोक दिया..
सुधीर की गोद से उठ गई.
उसकी इस हरकत पर कालू और सुधीर दोनों ही बड़े आश्चर्यचकित हो गए.
क्या बात है? क्या करने वाली है ये?
अगले ही पल जो हुआ... उसके बारे में दोनों ने ही कोई कल्पना नहीं की थी.
औरत थोड़ा पीछे हट कर दोबारा बैठी... और बैठे बैठे ही पीछे होते हुए घोड़ी बन गई... और फिर कामातुर नेत्रों से सुधीर की ओर देखते हुए उसके जननांग को अपनी दायीं हाथ की हथेली में अच्छे से मुट्ठी बना कर पकड़ी और फिर एक भूखी शेरनी की तरह उस लौह अंग को लालसा भरी आँखों से देखने लगी. सुधीर की ओर क्षण भर देख कर; एक शैतानी मुस्कान होंठों पर लाते हुए वो उस अंग के मुंड पर हलके से अपनी जीभ फिराई.
उसकी वो लंबी जीभ देख कर कालू का दिमाग घूम गया.. कम से कम एक हथेली बराबर होगी वो जीभ!
वह जीभ बड़े प्यार से, धीरे धीरे सहलाते हुए बार बार उस जननांग के मुंड को छू रही थी और उसके प्रत्येक छूअन से सुधीर के पूरे शरीर में... अंग अंग में... एक कंपकंपी दौड़ जाती.
वो तो बेचारा समस्त तेज़... पूरा का पूरा वीर्य उस कोमल, गर्म योनि में उड़ेल देना चाहता था.. पर इस कमबख्त महिला ... ख़ूबसूरत महिला ने उसे ऐसा करने से मना करने के बाद अब उसके गुप्त अंग से इस प्रकार प्रेम जता रही थी मानो वर्षों से प्यासी रही हो.
उस औरत का प्रेम उस अंग पर धीरे धीरे बढ़ता ही जा रहा था. उसने सुधीर के जननांग की ऊपरी चमड़े से शुरू कर अंदरूनी त्वचा को चाटना शुरू कर दिया. उसके ऐसा करते ही सुधीर की एक तेज़ सिसकारी निकल गई. उसके इस कृत्य ने उसे असीम आनंद दिया.
सुधीर ज़मीन पर उगी बड़ी बड़ी घासों को कस कर पकड़ा और सिर ऊपर आसमान की ओर कर दिया.
जी भर के चाटने के बाद अब जी भर कर चूसने का दौर शुरू हुआ. पहले मुंड को १०-१२ मिनट तक कामाग्नि में जलती किसी नवयौवना की भांति चूसती रही.. और फिर उस पूरे के पूरे अंग को अपने मुँह में गायब करती चली गई.
जैसे जैसे जननांग उसके मुँह में घुसता जाता; सुधीर तो सुख के मारे तड़प उठता ही.. कालू को भी पता नहीं क्यों ऐसा सुख मिलता जैसे सुधीर को भी मिल रहा है.
हर बार महिला अपने जीभ के अग्र भाग से जननांग के नीचे से ऊपर तक अत्यधिक प्रेम में डूबे भावुक – कामुक कामसुख प्यासी प्रेयसी की भांति चाटती हुई आती और मुंड पर आते ही एक प्यारी सी चुम्बन दे कर पूरे अंग को मुँह में गायब कर लेती.
और फिर वो क्षण भी जल्दी ही आया जब सुधीर का मांसल अंग उस महिला की मुँह की गहराईयों में बहुत अंदर तक जाने लगा. उसके गले पर उभर आती नसें और आगे की ओर उबल पड़ती आँखें साफ बता देती कि ये महिला न सिर्फ़ सुधीर को डीप थ्रोट मुखमैथुन दे रही है; वरन इस क्रीड़ा में काफ़ी खेली – खिलाई खिलाड़ी है.
उस औरत की एक ओर कृत्य ने सुधीर के सुख की सीमाओं को सातवें आसमान पर पहुँचा दिया. वो औरत उसके अंग को पूरी तरह से अपने मुँह में तो भर ही रही थी... अब मुँह में घुसाने के साथ ही साथ जीभ से जननांग के निचले भाग को बड़े कामुक तरीके से सहला दे रही थी.
इस कृत्य ने चरम आनंद से सुधीर के शरीर के समस्त रोम रोम को खड़ा करने लगी. सुधीर के मुँह से आनंद की अधिकता के कारण ‘आह आह’ निकलने लगी.
इस रोमहर्षक आनंद ने सुधीर को अधिक देर तक मैदान ए जंग में टिकने न दिया...
वीर्यपात हुआ...
महिला के मुँह में ही...
दोनों ने ही सोचा की शायद वो गुस्सा करेगी, बिफर कर कुछ बोलेगी... पर नहीं...
ऐसा कुछ नहीं हुआ...
वरन, जो हुआ वो बिल्कुल उलट हुआ..
वो बड़े प्रेम से स्वाद ले ले कर समस्त वीर्य को पी गई... यहाँ तक की होंठों और जननांग से बह कर नीचे गिरते वीर्य को कुछ अंश और बूँदों तक को चाट गई.
उसके इस रूप को देख कर सुधीर और कालू; दोनों को ही आश्चर्य का ठिकाना न रहा. कोई औरत ऐसी भी हो सकती है... इस तरह से स्वाद ले कर कामसुख दे सकती है ये कभी नहीं सोचा था उन्होंने... सोचना क्या... इस तरह के विचार आधुनिक दुनियादारी से बेखबर दूर गाँव में बसने वाले इन युवकों के मन में कैसे व कहाँ से आयेंगे?
शरारती नज़रों से देखते हुए बड़े कामुक स्वर में सुधीर को बोली,
“कैसा लगा?”
सुधीर उसकी ओर मन्त्रमुग्ध सा देखता हुआ बोला,
“बहुत अच्छा...”
“बस, बहुत अच्छा?”
“सच कहूँ तो मुझे पता ही नहीं की इस अप्रतिम सुख का मैं किन सठीक शब्दों में विवरण दूँ.... तुम्हारी काम कुशलता का किन शब्दों में प्रशंसा करूँ?!”
सुधीर की इन बातों को सुन कर औरत खिलखिला कर हँस पड़ी. उसकी हँसी वातावरण में ऐसी गूंजी की मानो शरीर की कुल्फी ही जमा देगी.
हँसते हुए बोली,
“प्रशंसा के शब्दों के मोती आप अपने पास रखिए... मुझे तो बस वो दीजिए जिसका आपने कुछ देर पहले वादा किया था! याद है न आपको कि आपने क्या वादा किया था??”
“बिल्कुल.. मैंने जब आपसे ये सब के लिए कहा तब आप इस शर्त पर राज़ी हुई थी की ये सब करने के बाद आप मुझसे जो माँगेगी वो मुझे आपको देना होगा.”
ये सुनने के बाद वो औरत किसी भोली मासूम लड़की की तरह बोलने लगी,
“तो क्या आप तैयार हैं देने के लिए?”
“बिल्कुल!”
“पक्का?”
“हाँ.”
“सहमति दे रहे हैं न आप?”
“हाँ.. पर ये तो बताइए की आपको चाहिए क्या?”
“आपके प्राण!”
सुनते ही सुधीर सकबका गया.
“क.. क्या...??”
सुधीर को सकपका कर उसके चेहरे के रंग बदलते देख वो औरत एकबार फिर खिलखिला कर हँस पड़ी...
उसकी हँसी में एक खिंचाव तो था..पर खून जमा देने वाला भी था!
अचानक कालू ने जो देखा उससे तो उसका सारा नशा ही एक झटके में उड़ गया.
उसने देखा की उस धुंधले रौशनी में भी उस औरत की आँखें बहुत भयावह तरीके से चमकने लगी है. उसके आँखों की काली मोती धीरे धीरे सुर्ख लाल में बदलते हुए मानो जल रहे हैं... साथ ही आँखों का सफ़ेद अंश काला पड़ता जा रहा है.
सुधीर का तो डर के मारे गला ही सूख गया.. वो हड़बड़ा कर उठ कर भागने को मुश्किल से उठा ही था कि उस महिला ने सुधीर का एक पैर पकड़ कर एक ज़ोर का झटका देते हुए सुधीर को उसके उसी स्थान पर यथावत गिरा दिया.
उस महिला के हाथों के नाखून एकदम से बहुत बढ़ गए... और उतने ही तेज़ और नुकीले भी.
एक क्षण भी व्यर्थ न गंवाते हुए उसने दाएँ हाथ की तर्जनी ऊँगली की नाखून का एक ज़ोरदार वार करते हुए सुधीर के गले के बाएँ ओर से घुसा कर दाएँ ओर से निकाल दी.
सुधीर की आँखें गोल और बड़ी हो कर आगे की ओर उबल आने को हो पड़ी.
तर तर कर के रक्त बहने लगा.
पीड़ा से विह्वल सुधीर बेचारा कराह भी नहीं पा रहा था.
और वो औरत उसकी ये तड़प देख बहुत खुश हो गई.. होंठों पर एक बड़ी सी शैतानी मुस्कराहट आ गई. इस बड़ी मुस्कराहट के कारण उसके सामने के कुछ दांत दिखाई दिए जो बड़े भयावह रूप से बड़े और अद्भुत सफेदी लिए चमक रहे थे.
और तभी!!
एक तेज़ झटके से वो अपने नख सुधीर के गले से सामने की ओर निकाल ली और उसके इस कृत्य से सुधीर का गला सामने से बुरी तरह से फट गया. सुधीर अपने फटे गले को दोनों हाथों से पकड़ कर तड़पते हुए लेट गया और कुछ देर बिन पानी मछली की भांति तड़पते हुए ही मर गया.
वो औरत अब और भी भयानक रूप से हँसते हुए सुधीर के गले से बहते रक्त को अपने दोनों हथेलियों में भर कर रक्तपान करने लगी. बहुत देर तक रक्तपान करने के बाद वो बड़े आराम और कामुक ढंग से अंगड़ाई लेते हुए उठी और अपने कपड़ों को ठीक कर के झाड़ियों से निकल कर पगडंडी पर आगे की ओर बढ़ गई.
झाड़ियों से निकलते समय दूर स्ट्रीट लाइट और ऊपर चंद्रमा की धुंधली रौशनी उस औरत के चेहरे से टकरा कर जब उसके मुखरे को थोड़ा स्पष्ट किया तब उसे देख कर कालू को जो घोर आश्चर्य हुआ वो हज़ारों शब्दों में भी बता पाने योग्य नहीं था. चाहे जितने भी शब्द उठा कर कालू को दे दिए जाते; कालू फिर भी अपने जीवन के इस क्षण और इस आश्चर्य का वर्णन नहीं कर पाता.
बस एक ही शब्द ने ज़ोरों से धड़कते उसके ह्रदय के किसी कोने में किसी तरह से साँस लिया,
“रूना भाभी!!”
इधर,
बाबा की कुटिया में,
“घेतांक?!! ये घेतांक कौन है गुरूदेव?”
बाबा का ध्यान समाप्त होते ही उनके मुँह से यह नाम निकला जिसे सुनकर उनके पास अब तक उनके साथ ही ध्यानमुद्रा में बैठे गोपू और चांदू चौंक गए और तुरंत ही प्रश्न कर बैठे.
बाबा के चिंतित मुँह से स्वतः ही उत्तर निकला,
“एक तांत्रिक.. यहीं.. इसी गाँव का रहने वाला... आज से कुछ वर्ष पहले तक रहता था... अब इस गाँव को छोड़ चुका है.. कुछ दिन पहले ही छोड़ कर गया है.. कई तरह की तांत्रिक क्रियाओं में सिद्धहस्त एवं बुरी शक्तियों का स्वामी.”
“ग...गुरूदेव.. तो फिर... ये तांत्रिक......”
गोपू का प्रश्न पूरा होने से पहले ही बाबा बोल पड़े,
“ये सब... सब कुछ... उसी का किया धरा है.”
“अर्थात्.. गुरूदेव?”
“अर्थात् इस गाँव में जो कुछ भी हो रहा है; इन सब के मूल में यही दुष्ट तांत्रिक है.”
“ये दुष्ट तांत्रिक ही वास्तविक मूल है इन सब दुर्घटनाओं एवं हत्याओं के पीछे?”
“हाँ वत्स.”
“परन्तु... गुरूदेव.. आपने तो कहा था कि कोई चंडूलिका है इन सबके पीछे?”
“चंडूलिका इन सबके पीछे अवश्य है वत्स.. उसका हाथ भी है इन सब घटनाओं में.. परन्तु वास्तविक मूल तो यही घेतांक नामक तांत्रिक है. वो चंडूलिका सिद्ध तांत्रिक है. उसी ने चंडूलिका को इन सब में लगाया है.”
हरेक शब्द के साथ बाबा की चिंता की गहराईयाँ बढ़ती जा रही थीं.
इस बात को दोनों शिष्य भली भांति समझ रहे थे पर बाबा से अधिक प्रश्नोत्तर करना भी नहीं चाह रहे थे.. क्योंकि दोनों ही इस बात को बहुत अच्छे से समझ रहे थे की बाबा दिन-ब-दिन गाँव और गाँव वासियों के सुरक्षा को लेकर बहुत अधिक चिंतित होते जा रहे हैं.
“आपको क्या लगता है गुरूदेव; तांत्रिक के जाने के बाद भी ये चंडूलिका क्या स्वेच्छा से लोगों का शिकार कर रही है या तांत्रिक ने ही इसे इसी काम में लगा कर गाँव छोड़ कर चला गया है?”
“उस तांत्रिक घेतांक ने ही इसे इस घृणित कार्य में लगा छोड़ा है वत्स.. और ये मेरा अनुमान नहीं है.. मैं जानता हूँ की ऐसा ही हुआ है.”
“और ये शौमक और अवनी; गुरूदेव?”
“जीवन के अंतिम क्षणों में वे दोनों अत्यंत भयभीत, दुखी एवं आकांक्षी थे... जीवन जीने की इच्छा बहुत बलवती थी उस समय; पर जी न सके. इसलिए मरणोपरांत इनकी आत्माएँ प्रतिशोध की भावना से भरी हुई है.. और यही कारण है की ये दूसरी आम आत्माओं से अधिक बलवान भी हैं.. लेकिन फिर भी चंडूलिका जैसी एक बड़ी शक्ति के सामने दोनों ही नतमस्तक हैं. चूँकि ये दोनों ही गाँव वालों से प्रतिशोध लेना चाहते थे इसलिए चंडूलिका ने इन्हें अपने अधीन रख लिया और इन्हीं के माध्यम से गाँव वालों को लुभा कर या किसी और तरह से फँसा कर मार रही है.”
“इस सबसे चंडूलिका को क्या लाभ है, गुरूदेव?”
“मानव रक्त पी कर एवं स्तरीय स्तरीय आत्माओं को अपने अधीन कर वो और अधिक बलवती होना चाहती है. स्मरण रहे वत्स, चंडूलिका एक रानी चुड़ैल है. एक ऐसी शक्ति जिसे या तो भगवान या फिर कोई अत्यंत उच्च कोटि का सिद्ध पुरुष ही समाप्त या रोक सकता है.”
“आप भी तो एक अत्यंत ही उच्च कोटि के सिद्ध महात्मा हैं गुरूदेव; आप भी तो समाप्त कर सकते हैं इसे.”
“अवश्य ही कर सकता हूँ वत्स... (थोड़ा रुक कर)... लेकिन......”
“लेकिन क्या गुरूदेव?”
“गाँव में कुछेक और अनिष्ट होने की सम्भावना दिख रही है मुझे. ये मेरी कोरा आशंका नहीं अपितु विश्वास है क्योंकि गाँव के सभी लोग मेरा कहा, मेरा निर्देश नहीं मानेंगे... दुर्भाग्य है ऐसी जनता का, ऐसे लोगों का जो अपने हित की बातों को समय पर ना तो सुनते हैं और ना ही मानते हैं. जब भी थोड़ी पाबंदी लगाईं जाती है तो ये सोचते हैं की मानो उनका जीवन ही उनसे छीन लिया जा रहा है. इसी कारण छोटी सी लगने वाली संकट एक बड़ी भारी विपदा बन जाती है. और यही वो कारण है वत्स, जिससे की मैं आश्वस्त हूँ कि सभी मेरा निर्देश नहीं मानेंगे... और इसलिए कुछ अनिष्ट अवश्य होगा.”
कहते हुए बाबा का चेहरा इतनी दृढ़ता से सख्त हो गया था की गोपू और चांदू को आगे कुछ और कहने-पूछने का साहस नहीं हुआ. इस बात को लेकर दोनों ही दृढ़ निश्चित थे कि अगर गुरूदेव ने कुछ अनिष्ट होने की बात कही है तो वो अवश्य ही होगा.
उसी दिन....
रात नौ बजे के आस पास जब सारा गाँव हमेशा की तरह शांत हो गया था...
अँधेरे में कालू मस्ती में डूबा अपने घर की ओर जा रहा था.
रोज़ की तरह आज भी अपना दुकान बढ़ा कर (बंद कर) के वो आजकल अपने नए ठिकाने; केष्टो दादा के दुकान में जाने लगा था.. सिर्फ़ चाय-ब्रेड-बिस्कुट ही नहीं अपितु, दारू और अंडा भी उपलब्ध रहता था वहाँ. अब हाई ब्रांड या विदेशी किस्म के दारू तो मिलने से रहे... इसलिए या तो सस्ते वाला लोकल दारू ही मिलता था वहाँ या फिर ताड़ी (एक पेय पदार्थ जिसे नशे के लिए पिया जाता है).
दुकान से निकल कर काफ़ी दूर तक निकल आने के बाद एक जगह अचानक से कालू के साइकिल का ब्रेक अपनेआप लग गया.
नशे में धुत कालू को कुछ समझ नहीं आया.
वो तो साइकिल पर ही थोड़ी देर खड़ा रह कर झूमता रहा.. जब थोड़ा होश हुआ तब पेडल मारा.. साइकिल आगे चल पड़ी.
मुश्किल से दस कदम चला होगा कि फिर ब्रेक लगा.. अपने आप.
कालू को अब भी कोई होश नहीं था. नशे में उसे तो यही लग रहा था की वो साइकिल तो चला रहा है पर शायद स्पीड थोड़ी कम है.
जब करीब पन्द्रह मिनट के बाद भी सामने दिख रहा आम का पेड़ पीछे नहीं हुआ तब कालू को थोड़ा होश हुआ... जितना भी होश हुआ उसमें उसे इतना महसूस हो गया कि उसके साइकिल में कुछ गड़बड़ है.
वो बैठे बैठे ही थोड़ा नीचे झुक कर ब्रेक और चेन को चेक किया.
दोनों को ठीक पाने पर वो फिर पेडल पर दबाव डाला...
साइकिल आगे बढ़ी.
फिर रुकी...
इस बार कालू बुरी तरह से झुंझला उठा.
कई गंदी गालियाँ देता हुआ वह साइकिल से नीचे उतरा और ब्रेक व चेन चेक करने लगा. सब ठीक था.
नशे में उसे होश तो नहीं था.. पर घर समय पर पहुँचने के लिए उसे होश में आना और रहना बहुत ज़रूरी था. और अब जिस तरह की दिक्कतें हो रही हैं इससे तो वह ऐसे घर पहुँचने से रहा.
अभी वो अपने इस ताज़े समस्या के बारे में सोच ही रहा था कि तभी उसका एक और साथी वहाँ साइकिल चलाता हुआ आ पहुँचा. ये सुधीर था. वैसे तो बड़ा व्यवहार-कुशल था; पर चरित्र से एक नंबर का ठरकी लड़का था. पहले शहर में टिकट ब्लैक किया करता था.. अब किसी कारणवश शहर छोड़ कर गाँव में ही रहते हुए कोई न कोई काम किया करता था.
कुछ देर पहले इसने भी कालू के साथ ही दारू पिया था. अंडे अलग से.
कालू को बीच रास्ते; जोकि वास्तव में एक पतली पगडंडी है; में खड़ा देख कर उसने भी साइकिल कालू के पास आ कर रोक दिया. कालू की आँखें ठीक से खुल नहीं रही थी. खड़े खड़े ही झूम रहा था. उसकी ये हालत देख कर सुधीर हँस दिया... कारण, सुधीर ने कालू से ज्यादा पिया था लेकिन होश अभी भी दुरुस्त था.
बड़े बदतमीजी से हँसते हुए पूछा,
“क्या हुआ हीरो? ऐसे अँधेरे में बीच रास्ते में क्या कर रहा है?”
“क..कुछ न..नहीं.. चेन उ..उतर गई है.”
“किसकी?”
“किसकी म... मतलब... साला, साइकिल की उतरी ह.. है.”
“अच्छा.. तो चढ़ा नहीं पा रहा है क्या?”
“ह्म्म्म.. अ... अगर.. चढ़ा ल.. लेता तो अ...अभी तक... ग.. घ... घर नहीं चला जाता.”
कालू को सुधीर के बेतुके प्रश्नों पर बड़ा गुस्सा आ रहा था; और कोई समय होता और वो अगर नशे में नहीं होता तो शायद अच्छे से निपट लेता सुधीर से. पर करे भी क्या, उसे तो पता ही था कि सुधीर कैसा लड़का है. भले ही मज़े ले रहा है अभी... पर अगर सहायता की बात आई तो यही लड़का सबसे पहले आगे बढ़ कर आएगा.
सुधीर अगले दो मिनट तक कालू को देखता रहा.
समझ गया की अगर इसकी सहायता नहीं की गई अभी तो शायद रात भर यहीं रह जाएगा.
इसलिए वो अपने साइकिल से उतरा और कालू को एक ओर होने को बोल कर खुद उसके साइकिल की चेन चेक करने लगा. चेन देखते ही बोला,
“अबे बोकाचोदा, चेन तो बिल्कुल ठीक है. तुझे कहाँ से ये उतरा हुआ लग रहा है बे?”
कहते हुए वो उठ गया और साइकिल के दूसरे हिस्सों को देखने लगा किसी सम्भावित गड़बड़ी को देखने के लिए. कालू तब तक अपने बायीं ओर थोड़ी दूर पर स्थित एक पेड़ के पीछे मूतने चला गया था.
और इधर सुधीर कालू की साइकिल की जाँच परख कर रहा था.
पर ऐसा कुछ मिला नहीं.
अभी वो आगे कुछ सोचे या बोले; तभी उसे पायल की आवाज़ सुनाई दी. वो जल्दी पलट कर अपने पीछे देखा; जहाँ से वो और कालू आये थे.
पीछे देखते ही उसकी आँखें आश्चर्य से फ़ैल गयीं.
कुछ क्षणों के लिए उसे विश्वास ही नहीं हुआ कि वो जो देख रहा है वो वास्तविक है या फिर उसे भी थोड़ी थोड़ी कर के चढ़नी शुरू हो गई है.
पीछे से एक बहुत ही सुन्दर महिला धीमे क़दमों से चलती हुई आ रही थी.
हालाँकि उसने घूंघट किया हुआ था परन्तु घूंघट पूरी तरह से चेहरे को ढक नहीं रही थी. बदन पर साड़ी बहुत ही अच्छे से फिट बैठ रही थी लेकिन सुधीर जैसे लड़के फिगर का अंदाज़ा किसी न किसी तरह से कर ही लेते हैं.
और सुधीर को वह वाकई भा गई.
बिना चेहरा देखे केवल शरीर पर कस कर फिट बैठते कपड़ों से फिगर का अनुमान लगा कर ही उसका दिमाग ख़राब होने लगा था और कमर के नीचे वाले हिस्से में हलचल होने लगी.
उस महिला ने एक बार बस एक क्षण के लिए नज़रें फेरा कर सुधीर की ओर देखी और फिर आगे चल पड़ी. जैसे ही वो सुधीर के बगल से गुजरी; सुधीर को एक बहुत ही मदमस्त कर देने वाला बहुत प्यारी सी सुगंध का आभास हुआ. आज से पहले कभी इतनी अच्छी सुगंध उसके नाक से कभी नहीं टकराई थी.
वो बरबस ही उसकी ओर आकर्षित होने लगा.
जब महिला थोड़ा ओर आगे बढ़ तब सुधीर को होश आया और तुरंत अपनी साइकिल लेकर उस महिला के पीछे चल दिया.
महिला के पास पहुँच कर अपनी साइकिल को धीरे करते हुए बोला,
“आप इसी गाँव की हैं?”
उसके इस प्रश्न पर महिला की ओर से कोई उत्तर न आया.
सुधीर ने फिर पूछा.
महिला फिर भी कुछ न बोली; केवल अपने सिर को थोड़ा नीचे कर ली.
तीसरी बार पूछे जाने पर धीमे और शरमाई स्वर में बोली,
“जी.”
उसकी आवाज़ शहद सी मीठी थी.
सुधीर को इतनी अच्छी लगी कि वो उससे और बातें करने की सोचने लगा.
इधर पेड़ के पीछे से कालू सुधीर की इन हरकतों को देख रहा था.. और नशे में ही मन ही मन हँसते हुए उसे गाली दे रहा था कि जहाँ नारी दिखी वहीँ जोगाड़ लगाना शुरू कर दिया कमीने ने.
कालू ने देखा की सुधीर और वो महिला कुछ कदम आपस में कुछ बातें करते हुए चले.. फिर रुक गए... कुछ और बातें हुईं... और अचानक से वो महिला सड़क की दूसरी ओर बेतरतीब उगी हुई झाड़ियों के पीछे चली गई.
सुधीर पीछे मुड़ कर देखा.. कालू अभी भी पेड़ के पीछे ही था. सुधीर को बस उसकी बीच पगडंडी पर खड़ी साइकिल दिखी. कुछ क्षण कालू की साइकिल को देख कर कुछ सोचता रहा.. फिर उन झाड़ियों की ओर देखा जिधर वो महिला अभी अभी गई.
कुछ पल और सोचने के बाद सुधीर भी अपनी साइकिल को उसी ओर ले कर बढ़ गया जिधर वो महिला गई थी.
करीब पाँच मिनट बीत गए.
सुधीर नहीं लौटा.
नशे में भी कालू को थोड़ी चिंता हुई.
जब पाँच मिनट और बीत गए और सुधीर फिर भी नहीं लौटा तब कालू ने जा कर देखने का सोचा की आखिर बात क्या है. अगर इन्हीं कुछ पलों में सुधीर ने उस महिला को पटा लिया है तो फिर ठीक है... नहीं तो मामला गड़बड़ है.
साइकिल बिना लिए ही कालू आगे बढ़ने लगा... धीमे चाल से.
झाड़ियों के पास जा कर उसने बहुत आहिस्ते से इधर उधर देखना शुरू किया. हालाँकि नशे में होने के कारण उसके द्वारा ये सब करना थोड़ा मुश्किल हो रहा था परन्तु इन सब में उसे एक अलग ही मज़ा आने लगा था अब तक.
जल्द ही उसे झाड़ियों की ही झुरमुठ में एक ओर कुछ हलचल होती दिखी. दूर के एक स्ट्रीट लाइट की धुंधली रौशनी में उस ओर देखने में थोड़ी आसानी हुई.
उन झाड़ियों से वो मुश्किल से ३ – ४ फीट की दूरी पर होगा की अचानक ही उसे एक मरदाना स्वर में ‘आर्र्ग्घघघघघर्घ’ सुनाई दिया.
ध्यान से ओर जब कालू ने देखा तो उसे वाकई बहुत ज़ोर की हैरानी हुई. इसलिए नहीं की उसने कुछ अलग देखा... बल्कि इसलिए की वो जो संदेह कर रहा था; वही सच हो गया.
उसने देखा कि सुधीर और वो महिला परस्पर आलिंगनबद्ध थे... दोनों कामातुर हो कर एक दूसरे का चुम्बन लिए जा रहे थे... इस बात से पूरी तरह बेखबर की अभी इस समय भी कोई आ कर शायद उन्हें देख सकता है.
सिर्फ़ यही नहीं... इतनी ही देर में सुधीर ने अपना जननांग उस महिला की योनि में प्रविष्ट करा चुका था तथा धीरे और लम्बे धक्के लगा रहा था. उस धुंधलके रौशनी में भी उस महिला के सुधीर के कमर के पास से ऊपर की ओर उठे उसके दोनों गोरे पैर बहुत अच्छे से दिख रहे थे.
महिला स्वयं भी पागलों की तरह सुधीर के चेहरे, गले और कंधे पे चुम्बन पर चुम्बन लिए जा रही थी और अपने हाथों को सुधीर के पूरे नंगे पीठ पर चला रही थी और रह रह के अपने लाल रंग के नेलपॉलिश से रंगे नाखूनों को उसके पीठ पर जहाँ तहां गड़ा देती.
सुधीर का भी इधर हालत ख़राब भी था और पागल भी. उस महिला का ब्लाउज तो उसने खोल दिया था पर शरीर से अलग नहीं किया. धक्के लगाते समय रह रह के वो भी कस कर उस महिला को अपने बाँहों में भर लेता था. उसने अपने हाथों को ब्लाउज के ऊपर से उसकी नंगी पीठ पर रगड़ना जारी रखा.
उसका मुँह उस महिला की क्लीवेज पर चला जाता और स्वतः ही उसके काँपते होंठ उसके क्लीवेज और स्तनों की मुलायम गोरी त्वचा से जा मिलते. उस मुलायम त्वचा से होंठों का स्पर्श होते ही दोनों ही लगभग एक साथ एक गहरी सिसकारी लेते और फिर सुधीर तुरंत ही उस पूरे अंश को चूमने – चाटने लग जाता.
काफ़ी देर तक ऐसा ही चलता रहा...
अचानक उस महिला ने एक ख़ास करवट ली और सुधीर के कानों में कुछ बोली.
जवाब में सुधीर मुस्कराते हुए धक्के लगाना छोड़ कर उठ बैठा और उसके ऐसा करते ही महिला उसके सामने उसके गोद में आ बैठी.
अब दोनों एक दूसरे की ओर सीधे देख सकते थे... महिला बिल्कुल सुधीर के कमर के ठीक नीचे बैठ गई थी... उसके जननांग के ठीक ऊपर.
कुछ क्षण एक दूसरे को काम दृष्टि से देखने के बाद झट से दोनों फिर से पागलों की तरह एक दूसरे को चूमने लगे. थोड़ी देर इसी तरह चूमते रहने के बाद वो महिला रुकी; पीछे की ओर झुक गई, लेकिन सुधीर ने उसे कमर से कस कर पकड़े रखा.
किसी हिंसक भूखे जानवर की मानिंद सुधीर आवाज़ निकालता हुआ फिर से झपट पड़ा सामने मुस्तैदी से खड़े – निमंत्रण देते दोनों गौर वर्ण चूचियों पर टूट पड़ा और एक एक को चूस चूस कर लाल करते हुए दूसरे चूची को बड़ी निर्दयता से मसलने लगता.
कालू ने जैसे ही उन गोरे स्तनद्वय पर गौर किया; उसका तो कंठ ही सूखने को आ गया. महिला की दोनों सफेद स्तनों को आज से पहले कभी उसने इतने उचित आकार के हल्के भूरे रंग के निपल्स के साथ नहीं देखा था.
इतने भरे, इतने पुष्ट इतने सुंदर आकार से बड़े बड़े.... उफ्फ्फ...!!
वो महिला बड़े आराम से, समय लेते हुए सुधीर के उस लौह अंग के ऊपर नीचे हो रही थी... और इधर सुधीर ने अपना मुंह उसके गोरे स्तनों पर रख करजीभ से ही उसे सहलाना शुरू कर दिया.
लेकिन जैसा की स्पष्ट था कि इतने सुंदर चूचियाँ मिलने पर कोई भी सिर्फ़ सहलाने तक ही सीमित नहीं रहने वाला... वही हुआ भी... सुधीर दोनों चूचियों के निप्पल को मुँह में भर कर ज़ोरों से आवाज़ करते हुए चूसने लगा और दोबारा उतनी ही निर्दयता से उन्हें मसलने लगा.
इसी तरह यह दृश्य अगले करीब आधे घंटे तक चलता रहा.
एक समय पर सुधीर अपने चरम पर पहुँच कर झड़ने ही वाला था कि उस औरत ने उसे रोक दिया..
सुधीर की गोद से उठ गई.
उसकी इस हरकत पर कालू और सुधीर दोनों ही बड़े आश्चर्यचकित हो गए.
क्या बात है? क्या करने वाली है ये?
अगले ही पल जो हुआ... उसके बारे में दोनों ने ही कोई कल्पना नहीं की थी.
औरत थोड़ा पीछे हट कर दोबारा बैठी... और बैठे बैठे ही पीछे होते हुए घोड़ी बन गई... और फिर कामातुर नेत्रों से सुधीर की ओर देखते हुए उसके जननांग को अपनी दायीं हाथ की हथेली में अच्छे से मुट्ठी बना कर पकड़ी और फिर एक भूखी शेरनी की तरह उस लौह अंग को लालसा भरी आँखों से देखने लगी. सुधीर की ओर क्षण भर देख कर; एक शैतानी मुस्कान होंठों पर लाते हुए वो उस अंग के मुंड पर हलके से अपनी जीभ फिराई.
उसकी वो लंबी जीभ देख कर कालू का दिमाग घूम गया.. कम से कम एक हथेली बराबर होगी वो जीभ!
वह जीभ बड़े प्यार से, धीरे धीरे सहलाते हुए बार बार उस जननांग के मुंड को छू रही थी और उसके प्रत्येक छूअन से सुधीर के पूरे शरीर में... अंग अंग में... एक कंपकंपी दौड़ जाती.
वो तो बेचारा समस्त तेज़... पूरा का पूरा वीर्य उस कोमल, गर्म योनि में उड़ेल देना चाहता था.. पर इस कमबख्त महिला ... ख़ूबसूरत महिला ने उसे ऐसा करने से मना करने के बाद अब उसके गुप्त अंग से इस प्रकार प्रेम जता रही थी मानो वर्षों से प्यासी रही हो.
उस औरत का प्रेम उस अंग पर धीरे धीरे बढ़ता ही जा रहा था. उसने सुधीर के जननांग की ऊपरी चमड़े से शुरू कर अंदरूनी त्वचा को चाटना शुरू कर दिया. उसके ऐसा करते ही सुधीर की एक तेज़ सिसकारी निकल गई. उसके इस कृत्य ने उसे असीम आनंद दिया.
सुधीर ज़मीन पर उगी बड़ी बड़ी घासों को कस कर पकड़ा और सिर ऊपर आसमान की ओर कर दिया.
जी भर के चाटने के बाद अब जी भर कर चूसने का दौर शुरू हुआ. पहले मुंड को १०-१२ मिनट तक कामाग्नि में जलती किसी नवयौवना की भांति चूसती रही.. और फिर उस पूरे के पूरे अंग को अपने मुँह में गायब करती चली गई.
जैसे जैसे जननांग उसके मुँह में घुसता जाता; सुधीर तो सुख के मारे तड़प उठता ही.. कालू को भी पता नहीं क्यों ऐसा सुख मिलता जैसे सुधीर को भी मिल रहा है.
हर बार महिला अपने जीभ के अग्र भाग से जननांग के नीचे से ऊपर तक अत्यधिक प्रेम में डूबे भावुक – कामुक कामसुख प्यासी प्रेयसी की भांति चाटती हुई आती और मुंड पर आते ही एक प्यारी सी चुम्बन दे कर पूरे अंग को मुँह में गायब कर लेती.
और फिर वो क्षण भी जल्दी ही आया जब सुधीर का मांसल अंग उस महिला की मुँह की गहराईयों में बहुत अंदर तक जाने लगा. उसके गले पर उभर आती नसें और आगे की ओर उबल पड़ती आँखें साफ बता देती कि ये महिला न सिर्फ़ सुधीर को डीप थ्रोट मुखमैथुन दे रही है; वरन इस क्रीड़ा में काफ़ी खेली – खिलाई खिलाड़ी है.
उस औरत की एक ओर कृत्य ने सुधीर के सुख की सीमाओं को सातवें आसमान पर पहुँचा दिया. वो औरत उसके अंग को पूरी तरह से अपने मुँह में तो भर ही रही थी... अब मुँह में घुसाने के साथ ही साथ जीभ से जननांग के निचले भाग को बड़े कामुक तरीके से सहला दे रही थी.
इस कृत्य ने चरम आनंद से सुधीर के शरीर के समस्त रोम रोम को खड़ा करने लगी. सुधीर के मुँह से आनंद की अधिकता के कारण ‘आह आह’ निकलने लगी.
इस रोमहर्षक आनंद ने सुधीर को अधिक देर तक मैदान ए जंग में टिकने न दिया...
वीर्यपात हुआ...
महिला के मुँह में ही...
दोनों ने ही सोचा की शायद वो गुस्सा करेगी, बिफर कर कुछ बोलेगी... पर नहीं...
ऐसा कुछ नहीं हुआ...
वरन, जो हुआ वो बिल्कुल उलट हुआ..
वो बड़े प्रेम से स्वाद ले ले कर समस्त वीर्य को पी गई... यहाँ तक की होंठों और जननांग से बह कर नीचे गिरते वीर्य को कुछ अंश और बूँदों तक को चाट गई.
उसके इस रूप को देख कर सुधीर और कालू; दोनों को ही आश्चर्य का ठिकाना न रहा. कोई औरत ऐसी भी हो सकती है... इस तरह से स्वाद ले कर कामसुख दे सकती है ये कभी नहीं सोचा था उन्होंने... सोचना क्या... इस तरह के विचार आधुनिक दुनियादारी से बेखबर दूर गाँव में बसने वाले इन युवकों के मन में कैसे व कहाँ से आयेंगे?
शरारती नज़रों से देखते हुए बड़े कामुक स्वर में सुधीर को बोली,
“कैसा लगा?”
सुधीर उसकी ओर मन्त्रमुग्ध सा देखता हुआ बोला,
“बहुत अच्छा...”
“बस, बहुत अच्छा?”
“सच कहूँ तो मुझे पता ही नहीं की इस अप्रतिम सुख का मैं किन सठीक शब्दों में विवरण दूँ.... तुम्हारी काम कुशलता का किन शब्दों में प्रशंसा करूँ?!”
सुधीर की इन बातों को सुन कर औरत खिलखिला कर हँस पड़ी. उसकी हँसी वातावरण में ऐसी गूंजी की मानो शरीर की कुल्फी ही जमा देगी.
हँसते हुए बोली,
“प्रशंसा के शब्दों के मोती आप अपने पास रखिए... मुझे तो बस वो दीजिए जिसका आपने कुछ देर पहले वादा किया था! याद है न आपको कि आपने क्या वादा किया था??”
“बिल्कुल.. मैंने जब आपसे ये सब के लिए कहा तब आप इस शर्त पर राज़ी हुई थी की ये सब करने के बाद आप मुझसे जो माँगेगी वो मुझे आपको देना होगा.”
ये सुनने के बाद वो औरत किसी भोली मासूम लड़की की तरह बोलने लगी,
“तो क्या आप तैयार हैं देने के लिए?”
“बिल्कुल!”
“पक्का?”
“हाँ.”
“सहमति दे रहे हैं न आप?”
“हाँ.. पर ये तो बताइए की आपको चाहिए क्या?”
“आपके प्राण!”
सुनते ही सुधीर सकबका गया.
“क.. क्या...??”
सुधीर को सकपका कर उसके चेहरे के रंग बदलते देख वो औरत एकबार फिर खिलखिला कर हँस पड़ी...
उसकी हँसी में एक खिंचाव तो था..पर खून जमा देने वाला भी था!
अचानक कालू ने जो देखा उससे तो उसका सारा नशा ही एक झटके में उड़ गया.
उसने देखा की उस धुंधले रौशनी में भी उस औरत की आँखें बहुत भयावह तरीके से चमकने लगी है. उसके आँखों की काली मोती धीरे धीरे सुर्ख लाल में बदलते हुए मानो जल रहे हैं... साथ ही आँखों का सफ़ेद अंश काला पड़ता जा रहा है.
सुधीर का तो डर के मारे गला ही सूख गया.. वो हड़बड़ा कर उठ कर भागने को मुश्किल से उठा ही था कि उस महिला ने सुधीर का एक पैर पकड़ कर एक ज़ोर का झटका देते हुए सुधीर को उसके उसी स्थान पर यथावत गिरा दिया.
उस महिला के हाथों के नाखून एकदम से बहुत बढ़ गए... और उतने ही तेज़ और नुकीले भी.
एक क्षण भी व्यर्थ न गंवाते हुए उसने दाएँ हाथ की तर्जनी ऊँगली की नाखून का एक ज़ोरदार वार करते हुए सुधीर के गले के बाएँ ओर से घुसा कर दाएँ ओर से निकाल दी.
सुधीर की आँखें गोल और बड़ी हो कर आगे की ओर उबल आने को हो पड़ी.
तर तर कर के रक्त बहने लगा.
पीड़ा से विह्वल सुधीर बेचारा कराह भी नहीं पा रहा था.
और वो औरत उसकी ये तड़प देख बहुत खुश हो गई.. होंठों पर एक बड़ी सी शैतानी मुस्कराहट आ गई. इस बड़ी मुस्कराहट के कारण उसके सामने के कुछ दांत दिखाई दिए जो बड़े भयावह रूप से बड़े और अद्भुत सफेदी लिए चमक रहे थे.
और तभी!!
एक तेज़ झटके से वो अपने नख सुधीर के गले से सामने की ओर निकाल ली और उसके इस कृत्य से सुधीर का गला सामने से बुरी तरह से फट गया. सुधीर अपने फटे गले को दोनों हाथों से पकड़ कर तड़पते हुए लेट गया और कुछ देर बिन पानी मछली की भांति तड़पते हुए ही मर गया.
वो औरत अब और भी भयानक रूप से हँसते हुए सुधीर के गले से बहते रक्त को अपने दोनों हथेलियों में भर कर रक्तपान करने लगी. बहुत देर तक रक्तपान करने के बाद वो बड़े आराम और कामुक ढंग से अंगड़ाई लेते हुए उठी और अपने कपड़ों को ठीक कर के झाड़ियों से निकल कर पगडंडी पर आगे की ओर बढ़ गई.
झाड़ियों से निकलते समय दूर स्ट्रीट लाइट और ऊपर चंद्रमा की धुंधली रौशनी उस औरत के चेहरे से टकरा कर जब उसके मुखरे को थोड़ा स्पष्ट किया तब उसे देख कर कालू को जो घोर आश्चर्य हुआ वो हज़ारों शब्दों में भी बता पाने योग्य नहीं था. चाहे जितने भी शब्द उठा कर कालू को दे दिए जाते; कालू फिर भी अपने जीवन के इस क्षण और इस आश्चर्य का वर्णन नहीं कर पाता.
बस एक ही शब्द ने ज़ोरों से धड़कते उसके ह्रदय के किसी कोने में किसी तरह से साँस लिया,
“रूना भाभी!!”