14-10-2020, 10:07 PM
१७)
“ठास!!”
एक ज़ोर का आवाज़ गूँजा.. एक थप्पड़ की आवाज़.
और इसी के साथ एक और आवाज़ निकली,
“र..रुक जाइए.. म.. मैं.. ब.. ब...बताती...ह.. हूँ...”
और ये आवाज़ थी सीमा की.
सीमा, अर्थात् तुपी काका की बीवी.. सीमा पाल.
गाल पर रसीदे गए उस ज़ोरदार थप्पड़ ने अपनी छाप तो छोड़ी ही; साथ में सीमा की सारी हेकड़ी भी निकाल दी जो अब से कुछ मिनटों पहले रॉय, श्याम और तीसरे सिक्युरिटी वाले को दिखा रही थी.
हालाँकि जब सीमा को इंटेरोगेशन रूम में बुलाया गया तब वहाँ दो लेडी सिक्युरिटी वाली भी थी... पर सीमा ने मानो कुछ न बोलने की कसम खा रखी थी.. एक तो कुछ बोलना नहीं चाह रही थी; दूसरा, कुछ बोले भी तो इतना कम की समझ में ही न आए की बात का मतलब क्या हुआ..
थोड़ी देर बाद ही रॉय के दिमाग ने उसे एक उत्तम विचार दिया और उसने तुपी काका और बिल्टू; दोनों को अंदर बुलवा लिया. सीमा से फिर दो चार सवाल किए गए लेकिन जब उसने फिर कोई जवाब न दिया और अपने उसी रवैये पर अड़ी रही तब मजबूरन रॉय को अपने सिपाहियों को एक खास इशारा करना पड़ा उन लोगों ने भी तुरंत सांकेतिक आदेश का पालन करते हुए तुपी काका और बिल्टू को डंडों से अच्छे से कूटने लगे.
मुश्किल से दस से बारह डंडे ही पड़े होंगे कि सीमा प्रश्नों के उत्तर देने को तैयार हो गई.
शुरू के चार पाँच प्रश्नों के उत्तर उसने सही दिए भी पर फ़िर धीरे धीरे अपने उसी पुराने रवैये में लौटने लगी और अपने उत्तरों को सीमित करने लगी.
वार्निंग भी दी गई उसे...
कुल छह वार्निंग...
पर नहीं मानी..
तब फ़िर से मजबूरन रॉय को दोनों महिला सिक्युरिटी कर्मियों को वही विशेष संकेत देना पड़ा..
और इस बार निशाना सीमा थी.
शुरू के सात आठ थप्पड़ खाने के बाद भी उसने थोड़ी प्रतिरोध करने की और स्वयं को निर्दोष बताने की पूरी कोशिश की लेकिन उन दोनों हट्टे कट्टे महिला कर्मियों के ज़ोरदार बरसते थप्पड़ों के सामने शीघ्र ही हथियार डाल दी.
रॉय ने गौर से देखा सीमा को...
मार और भय से अब वो थरथर काँप रही थी.
अभी ही सही समय है; ऐसा जान कर रॉय ने दोबारा प्रश्नोत्तर का भार संभाला.
सीमा के बिल्कुल सामने बैठा.
बोतल दिया पानी पीने को.
सीमा ने कांपते हाथों से बोतल थामा और रॉय से किसी इशारे की प्रतीक्षा किए बगैर ही गटागट पानी पीने लगी.
पानी पी कर तीन मिनट सुस्ताने के बाद,
“तो सीमा जी.. अब आप सब कुछ सच सच कहने के लिए तैयार हैं?”
“ज..जी.. साब.”
“ठीक है.. तो शुरू करते हैं प्रश्नोत्तर काल. और ध्यान रहे, इस बार सब सीधे सीधे ही बताइयेगा.. होशियारी जहाँ की... ये दोनों छोड़ेंगी नहीं आपको.. और मैं भी इन्हें रुकने नहीं कहूँगा.”
सीमा की आँखों में देखते हुए रॉय ने बेहद गंभीर स्वर में कहा.
सीमा ने डरते हुए कनखियों से अपने अगल बगल खड़े दोनों महिला कर्मियों को देखी और फिर रॉय की ओर देखते हुए हाँ में सिर हिलाई. साथ ही धीरे से बोली,
“स..साब.. मैं इनके सामने नहीं ब...बो.. बोल पाऊँगी..”
कह कर उसने याचना भरी दृष्टि से रॉय को देखा.
रॉय खुश हुआ. उसने सिपाहियों को इशारा कर के तुपी काका और बिल्टू को वहाँ से ले जाने को कहा.
उनके वहाँ से जाते ही उसने बड़े प्यार से प्रश्न करना शुरू किया,
“सीमा जी, ये बताइए.. तुपी जी के साथ आपके संबंध कैसे थे?”
“अ..अच्छे ... थ.. थे...स..साब..”
“कितने अच्छे?”
“ब.. बहुत अच्छे..”
“बिल्टू के साथ आपके सम्बन्ध कैसे हैं?”
“अच्छे हैं.”
“क्या सम्बन्ध है?”
“हम हैं तो मामी और भांजा.. लेकिन माँ बेटे का भी सम्बन्ध मान कर चलते हैं.”
इस उत्तर पर रॉय थोड़ा ठिठक गया और दो सेकंड के लिए सीमा की ओर देखा.
फिर तुरंत ही यथावत प्रश्न करना शुरू किया,
“ओके सीमा जी; अगर आप दोनों के बीच माँ बेटे वाला सम्बन्ध है तो फिर कहने वाले ये क्यों कह रहे हैं कि आप दोनों के बीच कोई और सम्बन्ध भी है?”
“ज..जी?!!”
सीमा ऐसी प्रतिक्रिया दी मानो रॉय का प्रश्न सुन कर उसे आश्चर्य का कोई ठिकाना न रहा हो.
रॉय बिल्कुल शांत बैठा रहा... सीमा की ओर एकटक देखता हुआ.
बड़े आराम से बोला,
“जी, आपने सही सुना.. लोग ऐसा ही कहते हैं... और यदि ऐसा कहते हैं तो अवश्य ही कोई विशेष आधार होगा ऐसी बातों का...या... फ़िर कोई विशेष प्रयोजन!”
“अ.. आधार? ... प्रयोजन??”
“जी बिल्कुल.”
“नहीं.. ऐसा कुछ नह..”
सीमा की बात पूरी होने से पहले ही रॉय बोल पड़ा,
“हमारे सूत्रों से हमें ऐसी ही खबर मिली है.. और हमारे सूत्र ऐसी बातों में इस तरह की गलतियाँ नहीं करते. व्यर्थ लांछन लगने – लगाने वाले कार्य नहीं करते. चलिए.. अब सब सच सच बताइए... नहीं तो ....”
कहते हुए रॉय ने सीमा को दोनों महिला सिक्युरिटी कर्मियों की ओर संकेत कर के दिखाया.
सीमा अब और भी अधिक सहम गई.
पानी की तरह अब स्पष्ट था कि सीमा वाकई ऐसा कुछ जानती है जो वो चाह कर भी बता नहीं सकती; लेकिन रॉय के पास भी अब अधिक समय नहीं था. उसे शीघ्र से शीघ्र परिणाम तक पहुँचना था.
अतः वो चेयर से उठ खड़ा हुआ और पीछे हटते हुए बोला,
“ये अब भी नहीं बोलेंगी.. सुनो, कुछेक और लगाओ तो इसे.”
इतना सुनना था कि सीमा विद्युत् की तेज़ी को भी मात देती हुई हड़बड़ा कर बोल उठी,
“न.. नहीं.. नहीं... सुनिए..”
आगे बढ़ती दोनों महिला कर्मी रुक गयीं.
रॉय पलट कर सीमा की ओर देखा...
सीमा अत्यंत भयभीत होते हुए बोली,
“स..सुनिए... म.. मैं स..सब बताऊँगी...”
“यही तो आपने कुछ देर पहले भी कहा था... फ़िर भी कुछ नहीं बोल रही थीं... अब भी यही कह रही हैं.. क्या अब आप सच में सब सच सच बोलेंगी? यदि नहीं.. या कोई भी चालाकी हुई.. तो फिर इन दोनों को मैं नहीं रोकूंगा... ठीक??”
“ज.. जी.. ब... बिल्कुल ठीक..”
सीमा अपने चेहरे से पसीना पोंछते हुए बोली.
रॉय दोबारा सीमा के ठीक सामने रखे अपने चेयर पर जा कर बैठ गया.
“चलिए सीमा जी.. कहना शुरू कीजिए.”
सीमा ने बोतल उठा कर पानी पी, एक गहरी साँस ली और कहना शुरू की,
“आपके सूत्रों ने खबर तो सही दी पर थोड़ी गलत भी है. जिस तरह की सम्बन्ध की बात आप कर रहे हैं वो बिल्टू के साथ नहीं अपितु मिथुन के साथ था. मेरे स्वर्गीय ससुर ने जब मिथुन को अपने घर में स्थान दिया था तब वो बहुत छोटा था और मैं भी उस समय यहाँ नहीं थी... मतलब.. ब्याह नहीं हुआ था उस समय मेरा. मैं तो बहुत बाद में आई थी. तब तक मिथुन भी बड़ा हो गया था. काफ़ी घुल मिल कर रहने वालों में से एक था वो. हँसमुख था, युवा था, बहुत सम्मान करता था और हमेशा ही भाभी भाभी करता रहता था.
मेरे यहाँ आने के बाद शुरू के कुछ महीने ऐसे ही हँसी ख़ुशी बीते.
पर, धीरे धीरे मैंने गौर करना शुरू किया कि मिथुन सदैव ही एक अलग ही दृष्टि से मुझे देखता है. भाभी भाभी कर के तो वो तब भी बोलता रहता था और बड़े आदर से सन्मुख आता था. जितनी देर बात करनी होती; बड़े हँसमुख तरीके से करता था लेकिन जो मैंने गौर किया वो ये था कि अवसर मिलते ही वो मेरे शरीर के कटावों को बड़े लोलुप तरीके से देखने लगता था... और ऐसा कोई भी अवसर वो व्यर्थ नहीं जाने देता था जिसमें वो मेरे शरीर के अंगों को न देख पाए.
(तभी रॉय अपने चेयर से उठा और उन दोनों महिला कर्मियों को एक संकेत कर के अपने साथ श्याम और एक और सिपाही को ले कर उस सेल से बाहर चला गया. रॉय के बाहर जाते ही एक महिला कर्मी सीमा के सामने रॉय वाले कुर्सी पर बैठ गई और दूसरी ने भी पास ही रखे एक चेयर पर बैठ गई. सीमा ने अनवरत बोलना चालू रखा था.)
शुरू में तो मैंने यही सोचा की कदाचित मेरे स्त्री सुलभ प्रवृति के कारण ही ऐसा लग रहा है और मैं नाहक ही इस बेचारे पर संदेह कर रही हूँ; लेकिन शीघ्र ही मुझे आभास हुआ कि मेरी स्त्री प्रवृति ऐसी गलती नहीं कर सकती.
कोई तो कारण होगा जो मेरी इंद्रियाँ मुझे इस प्रकार के संकेत दे रही हैं.
पहले तो मैं ध्यान नहीं दी... सच कहूँ तो ध्यान नहीं देना चाही पर जल्द ही मैंने अपनी स्त्री प्रवृति और इन्द्रियों पर भरोसा कर के मिथुन के गतिविधियों पर नज़र रखने लगी.
और बहुत शीघ्र ही उसे भोला व मासूम समझने की मेरी भूल का मुझे पता चल गया.
वो वाकई अक्सर मुझसे नज़रें चुराकर मेरे जिस्म के कटावों को लालसा भरी नज़रों से देखता था. छोटा सा अवसर मिलते ही छूने की कोशिश करता था. कई बार किसी न किसी बहाने से मेरे कमर व स्तनों को छूने में वो सफल रहा.
कुछ दिन तो केवल मुझे देखने और मुझे कहीं कहीं से छूने तक सीमित रहा... और धीरे धीरे ही सही... उसका दुस्साहस बढ़ता गया...
कभी मेरे नहाने के समय आ आकर बाथरूम का दरवाज़ा खटखटाता और खोलने पर कुछ भी इधर उधर की छोटी मोटी बात पूछता.. और आँखें उसकी मेरे अर्धनग्न शरीर पर होती.
कभी मैं कपड़े बदल रही होती तो अचानक से कहीं से आ टपकता और वासना से मुझे घूरने लगता.
मैंने कई बार कोशिश की उससे दूर रहने की, अपने पति को उसके बारे में बताने की पर असफल रही. बिल्टू को कुछ इसलिए नहीं बोली कभी क्योंकि क्या भरोसा वो शायद कुछ कर बैठता और फिर गाँव भर में हमारे परिवार के चर्चे होते... जोकि अपने आप में ही बदनामी है.
एक ओर जहाँ मैं मिथुन के बढ़ते दुस्साहसों से परेशान और चिंतित होती जा रही थी वहीँ दूसरी ओर अपने पति की उपेक्षा से भी काफी निराश, हताश व उदास थी.
विवाह के छह साल होने को आ रहे थे... लेकिन न ही हमारी अपनी कोई संतान थी और न ही हम दोनों में पति-पत्नी वाला सम्बन्ध. कहते हैं कि विवाह के आठ दस सालों बाद वैसे भी अधिकतर पति पत्नी के बीच पति पत्नी वाला संबंध न हो कर भाई बहन वाला संबंध हो जाता है. और यहाँ हम दोनों में तो पहले से ही भाई बहन वाला रिश्ता होने को आ रहा था. केवल कहने के लिए ही हम दोनों पति-पत्नी थे.
हर रात को ये खाना खा कर सो जाते थे और मैं करवट बदलते रह जाती थी. कुछेक बार मैंने खुद से पहल भी किया, लेकिन इनकी आँखें ही नहीं खुलती.. इन्होंने भी कुछेक बार प्रयास किया लेकिन काम शुरू होते ही इनका काम ख़त्म हो जाता था.
कई दिन, महीने और साल मैंने ऐसे ही गुजार दिए... मान मर्यादाओं में रहते हुए.
लेकिन ये क्षुधा ऐसी है कि बस बढ़ती ही जाए... बढ़ती ही जाए.
और इधर मिथुन भी अपनी गतिविधियों में धीरे धीरे उन्मुक्त होता जा रहा था.
मिथुन रोज़ सुबह उठ कर घर के पीछे, जहाँ तबेला है और उसके बगल में ही वो कमरा जहाँ वो रहता है; वहीँ खुले में व्यायाम किया करता था. एक दिन अचानक ही मेरी नज़र उस पर गई. उसके युवा होते शरीर में गठित होते सुपुष्ट मांसपेशियों को देख कर मेरा मन मचलने – बहकने लगता. मैं चाहती तो नहीं थी.. बिल्कुल भी नहीं... पर न जाने क्यों रह रह कर उसकी ओर मेरा मन खींचता चला जाने लगा. चाहे मैं कोई काम कर रही हूँ या फिर आराम; रह रह कर उसका कसरती बदन मेरी आँखों के सामने छा जाता.
तब अचानक एक दिन मेरे मन में ये विचार आया कि मैं अपने अंदर ये बोझ क्यों ढोती फिरूँ.. मन तो पति से भरना चाहिए था.. लेकिन अगर पति से नहीं हो रहा.. तब क्यों न किसी और से करूँ.
और अगले ही दिन से मैंने भी मिथुन को इशारे देना शुरू कर दिया.
उसके युवा होते मन को मेरे इशारे समझते देर न लगी और....”
कहते हुए सीमा चुप हो गई.
दोनों महिला सिक्युरिटीकर्मियों ने अगले पाँच मिनट तक की प्रतीक्षा की कि सीमा अब कुछ बोलेगी.
लेकिन जब सीमा कुछ न बोली तब सामने बैठी महिला कर्मी ने अपनी नज़रें पैनी करते हुए उससे पूछी,
“और??”
एक पल रुक कर सीमा होंठ खोली,
“और फिर उसके बाद से हम दोनों के बीच एक संबंध बन गया.”
“कैसा संबंध... और ‘हम दोनों’ मतलब किन दोनों के बीच?”
“अ...अ..व.....”
“जल्दी बोलो!!”
महिला कर्मी ने ज़ोर से डांटा.
सीमा और अधिक डर से सहम गई.
फ़ौरन बोली,
“अ..अव..अ...अवैध संबंध..”
“किनके बीच??”
“म...म...मेरे..अ...और.. र....और... मिथुन के बीच..”
“ह्म्म्म... ठीक... अब ये बता कि उसे मारी क्यों...??”
“क..किसे?”
“मिथुन को!”
सुनते ही सीमा का चेहरा फक्क से सफ़ेद पड़ गया..
आँखों से अविश्वास व्यक्त करती हुई बोली,
“य..ये..अ..आप क्या कह रही हैं...? भला म.. मैं.. मिथुन की ह.. हत्या क्यों करुँगी??”
“तूने नहीं किया?”
“न.. नहीं.”
“नहीं किया?”
“नहीं.”
“सच में?”
“ज..जी.”
“सच कह रही है तू?”
“ज..जी.. सच कह रही हूँ.”
“सुन, तूने मिथुन को नहीं मारा.. ये बात बिल्कुल अच्छे से सोच समझ कर ही बोल रही है न?”
“जी, ब.. बिल्कुल..”
“पक्का??”
“जी.....”
सीमा आगे भी कुछ कहने जा रही थी कि तभी उसके कान के पास एक तेज़ धमाका सा हुआ और इसी के साथ अत्यधिक पीड़ा से सीमा दोहरी होती चली गई.
अपने बाएँ गाल पर हाथ रख कर वो सिर झुका ली.. आँखों के आगे अँधेरा छा गया.
अगले कुछ क्षणों तक कोई कुछ नहीं बोली.
कुछ और समय बीतने के बाद जब सीमा धीरे धीरे सामान्य हुई तब उसके सामने बैठी महिला सिक्युरिटी कर्मी ने चेहरे पर बिना कोई अतिरिक्त भाव लिए एक एक शब्द पर ज़ोर देते हुए बड़े शांत स्वर में पूछी,
“अब बोलो, तुमने मिथुन को क्यों मारा?”
पीड़ा की अधिकता के कारण सीमा की आँखों में आँसू आ गए थे..
तुरंत कुछ कहते नहीं बना उससे..
जब बगल में बैठी दूसरी महिला कर्मी ने सख्ती से दोबारा उससे प्रश्न किया तब फफक कर उत्तर दिया सीमा ने,
“ज..जी...म..म..मैं.. मैंने.... मारा है...था...उ..उसे..”
“हम्म.. हालाँकि मेरा प्रश्न ये नहीं था कि तुमने उसे मारा है या नहीं या फिर उसे किसने मारा है... लेकिन ठीक है.. तुमने इसका उत्तर स्वयं ही दे दिया.. तो अब ये बताओ मोहतरमा कि तुमने उसे मारा क्यों?? असल प्रश्न यही है और मैं अपने इसी प्रश्न को फिर से तुमसे पूछ रही हूँ.”
सीमा अब भी अपने गाल को सहला रही थी...
गाल उसका टमाटर से भी अधिक लाल हो गया था..
बोलने का प्रयास कर के भी उसके मुँह से बोल नहीं फूट रहे थे... आँसू झर झर गिर रहे थे..
उसकी स्थिति देख सामने बैठी महिला कर्मी ने पानी वाला बोतल उसकी ओर बढ़ाया,
“चल.. पी ले ये... उसके बाद फटाफट एकदम धरल्ले से कहना शुरू करना.”
सीमा बिना कोई ना नुकुर किए बोतल ले ली और पानी पीने लगी.
पानी पीने के बाद कुछ क्षण रुक कर बोलना शुरू की,
“पहले के कुछ महीने तो अच्छे से बीते लेकिन फिर मिथुन की सीमाएँ धीरे धीरे बढ़ने लगी थीं. वो खुद को मेरा मालिक समझने लगा था. अधिकार तो ऐसे जताने लगा था मानो अगर मुझे नहाने भी जाना पड़े तो उससे पूछ के जाऊं. जब भी मेरे साथ होता; मेरे पति और भांजे को गंदी गंदी गालियाँ देता. शुरू के कुछ महीने तो वो बिस्तर में भी मुझे किसी देवी की तरह पूजता था.. लेकिन उसके बाद धीरे धीरे ही सही.. उसके बातों और व्यवहार में बहुत परिवर्तन आने लगा. मुझसे; विशेष कर संसर्ग के समय किसी बाजारू औरत से भी कहीं अधिक तिरस्कृत करता हुआ पेश आता. पूछे जाने पर कहता कि ऐसा करके उसे एक विशेष.. एक अलग प्रकार का सुख व आनंद मिलता है. ऐसी बातें वो सिर्फ़ कहने के लिए कहता है.. उसे गलत न समझा जाए. उसका और कोई मतलब नहीं होता. बहुत समय तक ऐसा चलता रहा.. न चाहते हुए भी मैंने हालात के साथ समझौता कर लिया था. परन्तु जैसे सूरज अधिक समय तक बादलों के पीछे नहीं छुप सकता ठीक वैसे ही हमारे संबंध भी किसी से छुपे न रह सके. हम पकड़े ही गए. हम दोनों को आपत्तिजनक अवस्था में पहले मेरे पति और बाद में भांजे बिल्टू ने देख लिया था.
पति के साथ तो मेरी काफ़ी कहा – सुनी हुई ही थी.. बिल्टू ने भी कड़ी आपत्ति जताया था.
कुछ दिन शांत रहने के बाद हम दोनों में फिर से संबंध बनने लगा. पिछली बार तो मिथुन को कुछ नहीं कहा गया था सिवाय थोड़े से डांट के.. वो भी मेरे पति के द्वारा.. लेकिन इस बार हम फिर पकड़े गए और वो भी मेरे भांजे बिल्टू के हाथों.
उसने मुझे और मिथुन को काफ़ी कुछ सुनाया. मुझे सुनाया... मैं सुनती रही.. पर जब मिथुन को सुनाने लगा तब मिथुन को गुस्सा आ गया और वो भी बहुत उल्टा सीधा बोलने लगा.
और उस क्षण तो मैं डर ही गई जब मिथुन ने मेरे पति और बिल्टू को जान से मार देने की धमकी दी.
सिर्फ़ उसी एक दिन नहीं बल्कि अक्सर कई बार अकेले में या मेरे साथ होने पर भी वह मेरे पति और भांजे को मार देने की कसमें खाता था.
ब.. बस....इसी क.. कारण.......”
“इसी कारण क्या?”
“इसी कारण मैंने उसे... मार दिया.”
“कब?”
“रात में...”
“ठीक से बताओ.”
“उसे मारने के पहले पिछले दो महीने से मैं अक्सर उसे रात में कुछ अलग बना कर खिलाने लगी. कभी गाजर का हलवा, कभी खीर, कभी कुछ तो कभी कुछ. और इसी तरह एकदिन खीर के दूध में ही अच्छे से ज़हर मिला कर उसे दे दी. काफ़ी तेज़ और धीरे असर करने वाला ज़हर था. उसे खाने के कोई दो घंटे बाद ही मिथुन मर गया होगा.”
“उसके बाद वो घृणित काम क्यों किया?”
“क.. कौन सा घृणित क... काम?”
“तुझे अच्छे से पता है कि हम किस घृणित काम की बात कर रहे हैं... हमारे खोजी कुत्तों को मिथुन के कमरे से पंद्रह कदम दूर ज़मीन के चार हाथ नीचे वो मिली है... ऐसा तो वही कर सकता या सकती है जिसके दिल में हद से अधिक घृणा भरी हुई हो.”
सामने बैठी महिला कर्मी की बात सुन कर होंठों पर एक हल्की मुस्कान लाते हुए सीमा थोड़ा सा सिर झुका कर बोली,
“जैसा की अ.. अभी अभी आपने ब.. बताया... कि ‘ऐसा तो वही कर सकता या सकती है जिसके दिल में हद से अधिक घृणा भरी हुई हो’... मेरे दिल में भी उसके प्रति घृणा कूट कूट कर भरी हुई थी... अ.. और.. सच कहूँ ..त.. तो घृणा के साथ साथ उससे भी अधिक दिल में डर अपना डेरा डाले हुए था....”
सीमा की बात खत्म होने से पहले ही बगल में बैठी दूसरी महिला कर्मी अपना कौतुहल न छिपा पाने के कारण पूछ बैठी.
सीमा अबकी बिना झिझक बोली,
“घृणा इसलिए क्योंकि वो मुझे एक बाजारू औरत से भी कहीं अधिक अपमानित करता रहता था. सड़क की कुतिया से भी अधिक नीचे गिरा हुआ होने का अहसास दिलाते रहता था... दिनोंदिन इतने अपमान से मैं थक चुकी थी... (कहते हुए सीमा फिर रोने लगती है).... और डर इसलिए क्योंकि उसने मेरे पति और भांजे को मार डालने की धमकी दी थी.. एक बार नहीं.. कई कई बार.. जब भी वो मेरे साथ होता था... संबंध बनाते समय हमेशा ही कहता था कि वो मेरे पति और भांजे को इस दुनिया से अलविदा करवा कर पूरे घर के साथ साथ मुझ पर भी अधिकार कर लेगा और धन – ऐश्वर्य भोगते हुए मुझे अपनी रखैल बना कर मुझे भी जब चाहे तब भोगेगा... जिसके साथ बाँटना चाहे .. बाँटेगा...
जब मुझे लगा की अब बात हद से अधिक बढ़ने लगा है तो मुझे ही कोई उपाय करना सूझा. अपने पति और भांजे से तो सहायता माँग नहीं सकती थी.. जो कुछ करना था मुझे अकेले ही करना था. सो उसे ज़हर दे दी. दिल में कई सौ गुणा घृणा भरा हुआ था... इसलिए......”
सीमा ने अपनी बात खत्म की.
उसकी पूरी कहानी सुनने के बाद दोनों महिला कर्मी कुछ देर तक चुपचाप बैठे रहे.
दोनों की ही सूरत ये साफ़ साफ़ बता रही थी कि सीमा की आपबीती पर वो विश्वास करे या अंत में मिथुन के मरने के बाद जो दरिंदगी की उसने उस पर अविश्वास करे.
खैर, सीमा अब सब कुछ बोल चुकी थी इसलिए उससे कुछ और पूछने का कोई मतलब नहीं था; खास कर ऐसी कोई भी बात जो सिक्युरिटी वालों को पहले से ही पता हो.
और जो बातें पता नहीं थीं... वो भी अब पता चल चुकी थी.
सीमा को वहीँ छोड़ कर दोनों महिला कर्मी सेल से बाहर आईं और रॉय के कमरे में जा कर उसे रिपोर्ट किया. पूरी कहानी संक्षेप में सुनाई और एक पॉकेट साइज़ रिकॉर्डर उसे सौंप दिया. इसमें सीमा की पूर्ण स्वीकारोक्ति रिकॉर्ड हो गयी थी.
दोनों को आभार और शाबाशी दिया रॉय ने. वो भी दिल खोल कर. सीनियर से प्रशंसा पा कर वो दोनों भी बहुत खुश हुई.
थोड़ी देर बाद जब दोनों चली गई तब रॉय ने रिकॉर्डर ऑन कर के उसे पूरा सुना; पूरे ध्यान से. फिर श्याम को बुलाया;
दोनों ने साथ में रिकॉर्डिंग सुना.
सुनने के बाद,
“क्या लगता है श्याम?”
“सर?”
“सीमा की स्वीकारोक्ति के बारे में?”
“जैसी घटनाएँ उसने सुनाई उससे तो मुझे ये सही लगती है.”
“सही लगती है?!!”
“जी सर.”
“तुम्हारे कहने का मतलब ये हुआ कि उसने जो कुछ भी किया वो सब सही था? अंत में हुई दरिंदगी भी??”
“ओ.. न.. नहीं नहीं सर... मेरा मतलब था कि सीमा की स्वीकारोक्ति मुझे सही लगी.”
“पक्का...? यही मतलब था न तुम्हारा??”
“ज..जी सर.”
श्याम सकपका गया था बेचारा. बोलने में हुई एक छोटी सी गलती उसे ही गलत ठहराने लगी थी.
“तो अब आगे का क्या लगता है? क्या होना चाहिए?”
“स..सर.. मेरे हिसाब से तो... अब इसकी इस स्वीकारोक्ति को रजिस्टर में कलमबद्ध कर के इसे जेल में डाल देना चाहिए.”
सुन कर रॉय फुसफुसाते हुए बोला,
“जेल में तो समझो ये ऑलरेडी है.”
“स..सर.. आपने कुछ कहा?”
“अम.. नहीं.. कुछ नहीं..”
फिर थोड़ा रुक कर,
“जेल में डालने के बाद?”
“सर, जेल में डाल देने के बाद तो और कुछ रह नहीं जाता. केस तो क्लोज़ हो गया न?”
“हम्म.. राईट! तुम्हारे दृष्टिकोण से सीमा वाला मामला तो क्लोज़ हो गया.... पर गाँव वाले मामले का क्या?”
“स..सर... ग.. गाँव व..वाला मामला?”
“हाँ.. गाँव वाला मामला.”
“स.. सॉरी सर.. मैं स..समझा नहीं.”
“श्याम!!... ये भूलने की बीमारी तुम्हें कब से लगी? हाँ?!”
श्याम सहम कर सिर नीचे झुका लिया.
रॉय ने फिर समझाया,
“मिथुन को तो सीमा ने मारा है ये मामला सुलझ गया. पर गाँव में और भी जो हत्याएँ हो रही हैं? जो मर्डर्स हो रहे हैं? उनका क्या?”
“ओह. यस सर.. जी सर... वो सब तो अभी भी बाकी हैं.”
“इसलिए मैं कह रहा था कि सीमा वाले इस केस के बाद अपना सारा फोकस रुना, मीना और सुनीता की ओर कर दो. ध्यान रहे श्याम, गाँव में अब भी मौतें हो रही हैं और रुना अब भी संदिग्ध है. रुना के साथ साथ उसकी सहेली मीना पर भी नज़र रखना. दोनों काफ़ी अच्छी सहेली हैं. अगर गाँव में हो रही मौतों के साथ इनका किसी भी तरह का संबंध है तो एक पर नज़र रखने से दूसरे की भी कोई न कोई खबर निकल ही आएगी. और साथ में खबर रखना सुनीता का भी. वो भी मुख्य संदिग्ध है. कोई न कोई खबर ज़रूर मिलेगी उसके बारे में. मत भूलना कि उसे अक्सर ही वारदात वाले स्थानों के आस पास वारदात के पहले देखा गया है कई बार.”
“जी सर. समझ गया. आप निश्चिन्त रहें सर. मैं कड़ी से कड़ी निगरानी करवाऊंगा.”
“गुड. अब तुम जा सकते हो श्याम.”
श्याम कुर्सी से उठ कर रॉय को सलाम ठोका और कमरे से निकल गया.
उसके जाते ही रॉय ने एक सिगरेट सुलगाया और उस रिकॉर्डिंग को फिर से सुनने लगा.
“ठास!!”
एक ज़ोर का आवाज़ गूँजा.. एक थप्पड़ की आवाज़.
और इसी के साथ एक और आवाज़ निकली,
“र..रुक जाइए.. म.. मैं.. ब.. ब...बताती...ह.. हूँ...”
और ये आवाज़ थी सीमा की.
सीमा, अर्थात् तुपी काका की बीवी.. सीमा पाल.
गाल पर रसीदे गए उस ज़ोरदार थप्पड़ ने अपनी छाप तो छोड़ी ही; साथ में सीमा की सारी हेकड़ी भी निकाल दी जो अब से कुछ मिनटों पहले रॉय, श्याम और तीसरे सिक्युरिटी वाले को दिखा रही थी.
हालाँकि जब सीमा को इंटेरोगेशन रूम में बुलाया गया तब वहाँ दो लेडी सिक्युरिटी वाली भी थी... पर सीमा ने मानो कुछ न बोलने की कसम खा रखी थी.. एक तो कुछ बोलना नहीं चाह रही थी; दूसरा, कुछ बोले भी तो इतना कम की समझ में ही न आए की बात का मतलब क्या हुआ..
थोड़ी देर बाद ही रॉय के दिमाग ने उसे एक उत्तम विचार दिया और उसने तुपी काका और बिल्टू; दोनों को अंदर बुलवा लिया. सीमा से फिर दो चार सवाल किए गए लेकिन जब उसने फिर कोई जवाब न दिया और अपने उसी रवैये पर अड़ी रही तब मजबूरन रॉय को अपने सिपाहियों को एक खास इशारा करना पड़ा उन लोगों ने भी तुरंत सांकेतिक आदेश का पालन करते हुए तुपी काका और बिल्टू को डंडों से अच्छे से कूटने लगे.
मुश्किल से दस से बारह डंडे ही पड़े होंगे कि सीमा प्रश्नों के उत्तर देने को तैयार हो गई.
शुरू के चार पाँच प्रश्नों के उत्तर उसने सही दिए भी पर फ़िर धीरे धीरे अपने उसी पुराने रवैये में लौटने लगी और अपने उत्तरों को सीमित करने लगी.
वार्निंग भी दी गई उसे...
कुल छह वार्निंग...
पर नहीं मानी..
तब फ़िर से मजबूरन रॉय को दोनों महिला सिक्युरिटी कर्मियों को वही विशेष संकेत देना पड़ा..
और इस बार निशाना सीमा थी.
शुरू के सात आठ थप्पड़ खाने के बाद भी उसने थोड़ी प्रतिरोध करने की और स्वयं को निर्दोष बताने की पूरी कोशिश की लेकिन उन दोनों हट्टे कट्टे महिला कर्मियों के ज़ोरदार बरसते थप्पड़ों के सामने शीघ्र ही हथियार डाल दी.
रॉय ने गौर से देखा सीमा को...
मार और भय से अब वो थरथर काँप रही थी.
अभी ही सही समय है; ऐसा जान कर रॉय ने दोबारा प्रश्नोत्तर का भार संभाला.
सीमा के बिल्कुल सामने बैठा.
बोतल दिया पानी पीने को.
सीमा ने कांपते हाथों से बोतल थामा और रॉय से किसी इशारे की प्रतीक्षा किए बगैर ही गटागट पानी पीने लगी.
पानी पी कर तीन मिनट सुस्ताने के बाद,
“तो सीमा जी.. अब आप सब कुछ सच सच कहने के लिए तैयार हैं?”
“ज..जी.. साब.”
“ठीक है.. तो शुरू करते हैं प्रश्नोत्तर काल. और ध्यान रहे, इस बार सब सीधे सीधे ही बताइयेगा.. होशियारी जहाँ की... ये दोनों छोड़ेंगी नहीं आपको.. और मैं भी इन्हें रुकने नहीं कहूँगा.”
सीमा की आँखों में देखते हुए रॉय ने बेहद गंभीर स्वर में कहा.
सीमा ने डरते हुए कनखियों से अपने अगल बगल खड़े दोनों महिला कर्मियों को देखी और फिर रॉय की ओर देखते हुए हाँ में सिर हिलाई. साथ ही धीरे से बोली,
“स..साब.. मैं इनके सामने नहीं ब...बो.. बोल पाऊँगी..”
कह कर उसने याचना भरी दृष्टि से रॉय को देखा.
रॉय खुश हुआ. उसने सिपाहियों को इशारा कर के तुपी काका और बिल्टू को वहाँ से ले जाने को कहा.
उनके वहाँ से जाते ही उसने बड़े प्यार से प्रश्न करना शुरू किया,
“सीमा जी, ये बताइए.. तुपी जी के साथ आपके संबंध कैसे थे?”
“अ..अच्छे ... थ.. थे...स..साब..”
“कितने अच्छे?”
“ब.. बहुत अच्छे..”
“बिल्टू के साथ आपके सम्बन्ध कैसे हैं?”
“अच्छे हैं.”
“क्या सम्बन्ध है?”
“हम हैं तो मामी और भांजा.. लेकिन माँ बेटे का भी सम्बन्ध मान कर चलते हैं.”
इस उत्तर पर रॉय थोड़ा ठिठक गया और दो सेकंड के लिए सीमा की ओर देखा.
फिर तुरंत ही यथावत प्रश्न करना शुरू किया,
“ओके सीमा जी; अगर आप दोनों के बीच माँ बेटे वाला सम्बन्ध है तो फिर कहने वाले ये क्यों कह रहे हैं कि आप दोनों के बीच कोई और सम्बन्ध भी है?”
“ज..जी?!!”
सीमा ऐसी प्रतिक्रिया दी मानो रॉय का प्रश्न सुन कर उसे आश्चर्य का कोई ठिकाना न रहा हो.
रॉय बिल्कुल शांत बैठा रहा... सीमा की ओर एकटक देखता हुआ.
बड़े आराम से बोला,
“जी, आपने सही सुना.. लोग ऐसा ही कहते हैं... और यदि ऐसा कहते हैं तो अवश्य ही कोई विशेष आधार होगा ऐसी बातों का...या... फ़िर कोई विशेष प्रयोजन!”
“अ.. आधार? ... प्रयोजन??”
“जी बिल्कुल.”
“नहीं.. ऐसा कुछ नह..”
सीमा की बात पूरी होने से पहले ही रॉय बोल पड़ा,
“हमारे सूत्रों से हमें ऐसी ही खबर मिली है.. और हमारे सूत्र ऐसी बातों में इस तरह की गलतियाँ नहीं करते. व्यर्थ लांछन लगने – लगाने वाले कार्य नहीं करते. चलिए.. अब सब सच सच बताइए... नहीं तो ....”
कहते हुए रॉय ने सीमा को दोनों महिला सिक्युरिटी कर्मियों की ओर संकेत कर के दिखाया.
सीमा अब और भी अधिक सहम गई.
पानी की तरह अब स्पष्ट था कि सीमा वाकई ऐसा कुछ जानती है जो वो चाह कर भी बता नहीं सकती; लेकिन रॉय के पास भी अब अधिक समय नहीं था. उसे शीघ्र से शीघ्र परिणाम तक पहुँचना था.
अतः वो चेयर से उठ खड़ा हुआ और पीछे हटते हुए बोला,
“ये अब भी नहीं बोलेंगी.. सुनो, कुछेक और लगाओ तो इसे.”
इतना सुनना था कि सीमा विद्युत् की तेज़ी को भी मात देती हुई हड़बड़ा कर बोल उठी,
“न.. नहीं.. नहीं... सुनिए..”
आगे बढ़ती दोनों महिला कर्मी रुक गयीं.
रॉय पलट कर सीमा की ओर देखा...
सीमा अत्यंत भयभीत होते हुए बोली,
“स..सुनिए... म.. मैं स..सब बताऊँगी...”
“यही तो आपने कुछ देर पहले भी कहा था... फ़िर भी कुछ नहीं बोल रही थीं... अब भी यही कह रही हैं.. क्या अब आप सच में सब सच सच बोलेंगी? यदि नहीं.. या कोई भी चालाकी हुई.. तो फिर इन दोनों को मैं नहीं रोकूंगा... ठीक??”
“ज.. जी.. ब... बिल्कुल ठीक..”
सीमा अपने चेहरे से पसीना पोंछते हुए बोली.
रॉय दोबारा सीमा के ठीक सामने रखे अपने चेयर पर जा कर बैठ गया.
“चलिए सीमा जी.. कहना शुरू कीजिए.”
सीमा ने बोतल उठा कर पानी पी, एक गहरी साँस ली और कहना शुरू की,
“आपके सूत्रों ने खबर तो सही दी पर थोड़ी गलत भी है. जिस तरह की सम्बन्ध की बात आप कर रहे हैं वो बिल्टू के साथ नहीं अपितु मिथुन के साथ था. मेरे स्वर्गीय ससुर ने जब मिथुन को अपने घर में स्थान दिया था तब वो बहुत छोटा था और मैं भी उस समय यहाँ नहीं थी... मतलब.. ब्याह नहीं हुआ था उस समय मेरा. मैं तो बहुत बाद में आई थी. तब तक मिथुन भी बड़ा हो गया था. काफ़ी घुल मिल कर रहने वालों में से एक था वो. हँसमुख था, युवा था, बहुत सम्मान करता था और हमेशा ही भाभी भाभी करता रहता था.
मेरे यहाँ आने के बाद शुरू के कुछ महीने ऐसे ही हँसी ख़ुशी बीते.
पर, धीरे धीरे मैंने गौर करना शुरू किया कि मिथुन सदैव ही एक अलग ही दृष्टि से मुझे देखता है. भाभी भाभी कर के तो वो तब भी बोलता रहता था और बड़े आदर से सन्मुख आता था. जितनी देर बात करनी होती; बड़े हँसमुख तरीके से करता था लेकिन जो मैंने गौर किया वो ये था कि अवसर मिलते ही वो मेरे शरीर के कटावों को बड़े लोलुप तरीके से देखने लगता था... और ऐसा कोई भी अवसर वो व्यर्थ नहीं जाने देता था जिसमें वो मेरे शरीर के अंगों को न देख पाए.
(तभी रॉय अपने चेयर से उठा और उन दोनों महिला कर्मियों को एक संकेत कर के अपने साथ श्याम और एक और सिपाही को ले कर उस सेल से बाहर चला गया. रॉय के बाहर जाते ही एक महिला कर्मी सीमा के सामने रॉय वाले कुर्सी पर बैठ गई और दूसरी ने भी पास ही रखे एक चेयर पर बैठ गई. सीमा ने अनवरत बोलना चालू रखा था.)
शुरू में तो मैंने यही सोचा की कदाचित मेरे स्त्री सुलभ प्रवृति के कारण ही ऐसा लग रहा है और मैं नाहक ही इस बेचारे पर संदेह कर रही हूँ; लेकिन शीघ्र ही मुझे आभास हुआ कि मेरी स्त्री प्रवृति ऐसी गलती नहीं कर सकती.
कोई तो कारण होगा जो मेरी इंद्रियाँ मुझे इस प्रकार के संकेत दे रही हैं.
पहले तो मैं ध्यान नहीं दी... सच कहूँ तो ध्यान नहीं देना चाही पर जल्द ही मैंने अपनी स्त्री प्रवृति और इन्द्रियों पर भरोसा कर के मिथुन के गतिविधियों पर नज़र रखने लगी.
और बहुत शीघ्र ही उसे भोला व मासूम समझने की मेरी भूल का मुझे पता चल गया.
वो वाकई अक्सर मुझसे नज़रें चुराकर मेरे जिस्म के कटावों को लालसा भरी नज़रों से देखता था. छोटा सा अवसर मिलते ही छूने की कोशिश करता था. कई बार किसी न किसी बहाने से मेरे कमर व स्तनों को छूने में वो सफल रहा.
कुछ दिन तो केवल मुझे देखने और मुझे कहीं कहीं से छूने तक सीमित रहा... और धीरे धीरे ही सही... उसका दुस्साहस बढ़ता गया...
कभी मेरे नहाने के समय आ आकर बाथरूम का दरवाज़ा खटखटाता और खोलने पर कुछ भी इधर उधर की छोटी मोटी बात पूछता.. और आँखें उसकी मेरे अर्धनग्न शरीर पर होती.
कभी मैं कपड़े बदल रही होती तो अचानक से कहीं से आ टपकता और वासना से मुझे घूरने लगता.
मैंने कई बार कोशिश की उससे दूर रहने की, अपने पति को उसके बारे में बताने की पर असफल रही. बिल्टू को कुछ इसलिए नहीं बोली कभी क्योंकि क्या भरोसा वो शायद कुछ कर बैठता और फिर गाँव भर में हमारे परिवार के चर्चे होते... जोकि अपने आप में ही बदनामी है.
एक ओर जहाँ मैं मिथुन के बढ़ते दुस्साहसों से परेशान और चिंतित होती जा रही थी वहीँ दूसरी ओर अपने पति की उपेक्षा से भी काफी निराश, हताश व उदास थी.
विवाह के छह साल होने को आ रहे थे... लेकिन न ही हमारी अपनी कोई संतान थी और न ही हम दोनों में पति-पत्नी वाला सम्बन्ध. कहते हैं कि विवाह के आठ दस सालों बाद वैसे भी अधिकतर पति पत्नी के बीच पति पत्नी वाला संबंध न हो कर भाई बहन वाला संबंध हो जाता है. और यहाँ हम दोनों में तो पहले से ही भाई बहन वाला रिश्ता होने को आ रहा था. केवल कहने के लिए ही हम दोनों पति-पत्नी थे.
हर रात को ये खाना खा कर सो जाते थे और मैं करवट बदलते रह जाती थी. कुछेक बार मैंने खुद से पहल भी किया, लेकिन इनकी आँखें ही नहीं खुलती.. इन्होंने भी कुछेक बार प्रयास किया लेकिन काम शुरू होते ही इनका काम ख़त्म हो जाता था.
कई दिन, महीने और साल मैंने ऐसे ही गुजार दिए... मान मर्यादाओं में रहते हुए.
लेकिन ये क्षुधा ऐसी है कि बस बढ़ती ही जाए... बढ़ती ही जाए.
और इधर मिथुन भी अपनी गतिविधियों में धीरे धीरे उन्मुक्त होता जा रहा था.
मिथुन रोज़ सुबह उठ कर घर के पीछे, जहाँ तबेला है और उसके बगल में ही वो कमरा जहाँ वो रहता है; वहीँ खुले में व्यायाम किया करता था. एक दिन अचानक ही मेरी नज़र उस पर गई. उसके युवा होते शरीर में गठित होते सुपुष्ट मांसपेशियों को देख कर मेरा मन मचलने – बहकने लगता. मैं चाहती तो नहीं थी.. बिल्कुल भी नहीं... पर न जाने क्यों रह रह कर उसकी ओर मेरा मन खींचता चला जाने लगा. चाहे मैं कोई काम कर रही हूँ या फिर आराम; रह रह कर उसका कसरती बदन मेरी आँखों के सामने छा जाता.
तब अचानक एक दिन मेरे मन में ये विचार आया कि मैं अपने अंदर ये बोझ क्यों ढोती फिरूँ.. मन तो पति से भरना चाहिए था.. लेकिन अगर पति से नहीं हो रहा.. तब क्यों न किसी और से करूँ.
और अगले ही दिन से मैंने भी मिथुन को इशारे देना शुरू कर दिया.
उसके युवा होते मन को मेरे इशारे समझते देर न लगी और....”
कहते हुए सीमा चुप हो गई.
दोनों महिला सिक्युरिटीकर्मियों ने अगले पाँच मिनट तक की प्रतीक्षा की कि सीमा अब कुछ बोलेगी.
लेकिन जब सीमा कुछ न बोली तब सामने बैठी महिला कर्मी ने अपनी नज़रें पैनी करते हुए उससे पूछी,
“और??”
एक पल रुक कर सीमा होंठ खोली,
“और फिर उसके बाद से हम दोनों के बीच एक संबंध बन गया.”
“कैसा संबंध... और ‘हम दोनों’ मतलब किन दोनों के बीच?”
“अ...अ..व.....”
“जल्दी बोलो!!”
महिला कर्मी ने ज़ोर से डांटा.
सीमा और अधिक डर से सहम गई.
फ़ौरन बोली,
“अ..अव..अ...अवैध संबंध..”
“किनके बीच??”
“म...म...मेरे..अ...और.. र....और... मिथुन के बीच..”
“ह्म्म्म... ठीक... अब ये बता कि उसे मारी क्यों...??”
“क..किसे?”
“मिथुन को!”
सुनते ही सीमा का चेहरा फक्क से सफ़ेद पड़ गया..
आँखों से अविश्वास व्यक्त करती हुई बोली,
“य..ये..अ..आप क्या कह रही हैं...? भला म.. मैं.. मिथुन की ह.. हत्या क्यों करुँगी??”
“तूने नहीं किया?”
“न.. नहीं.”
“नहीं किया?”
“नहीं.”
“सच में?”
“ज..जी.”
“सच कह रही है तू?”
“ज..जी.. सच कह रही हूँ.”
“सुन, तूने मिथुन को नहीं मारा.. ये बात बिल्कुल अच्छे से सोच समझ कर ही बोल रही है न?”
“जी, ब.. बिल्कुल..”
“पक्का??”
“जी.....”
सीमा आगे भी कुछ कहने जा रही थी कि तभी उसके कान के पास एक तेज़ धमाका सा हुआ और इसी के साथ अत्यधिक पीड़ा से सीमा दोहरी होती चली गई.
अपने बाएँ गाल पर हाथ रख कर वो सिर झुका ली.. आँखों के आगे अँधेरा छा गया.
अगले कुछ क्षणों तक कोई कुछ नहीं बोली.
कुछ और समय बीतने के बाद जब सीमा धीरे धीरे सामान्य हुई तब उसके सामने बैठी महिला सिक्युरिटी कर्मी ने चेहरे पर बिना कोई अतिरिक्त भाव लिए एक एक शब्द पर ज़ोर देते हुए बड़े शांत स्वर में पूछी,
“अब बोलो, तुमने मिथुन को क्यों मारा?”
पीड़ा की अधिकता के कारण सीमा की आँखों में आँसू आ गए थे..
तुरंत कुछ कहते नहीं बना उससे..
जब बगल में बैठी दूसरी महिला कर्मी ने सख्ती से दोबारा उससे प्रश्न किया तब फफक कर उत्तर दिया सीमा ने,
“ज..जी...म..म..मैं.. मैंने.... मारा है...था...उ..उसे..”
“हम्म.. हालाँकि मेरा प्रश्न ये नहीं था कि तुमने उसे मारा है या नहीं या फिर उसे किसने मारा है... लेकिन ठीक है.. तुमने इसका उत्तर स्वयं ही दे दिया.. तो अब ये बताओ मोहतरमा कि तुमने उसे मारा क्यों?? असल प्रश्न यही है और मैं अपने इसी प्रश्न को फिर से तुमसे पूछ रही हूँ.”
सीमा अब भी अपने गाल को सहला रही थी...
गाल उसका टमाटर से भी अधिक लाल हो गया था..
बोलने का प्रयास कर के भी उसके मुँह से बोल नहीं फूट रहे थे... आँसू झर झर गिर रहे थे..
उसकी स्थिति देख सामने बैठी महिला कर्मी ने पानी वाला बोतल उसकी ओर बढ़ाया,
“चल.. पी ले ये... उसके बाद फटाफट एकदम धरल्ले से कहना शुरू करना.”
सीमा बिना कोई ना नुकुर किए बोतल ले ली और पानी पीने लगी.
पानी पीने के बाद कुछ क्षण रुक कर बोलना शुरू की,
“पहले के कुछ महीने तो अच्छे से बीते लेकिन फिर मिथुन की सीमाएँ धीरे धीरे बढ़ने लगी थीं. वो खुद को मेरा मालिक समझने लगा था. अधिकार तो ऐसे जताने लगा था मानो अगर मुझे नहाने भी जाना पड़े तो उससे पूछ के जाऊं. जब भी मेरे साथ होता; मेरे पति और भांजे को गंदी गंदी गालियाँ देता. शुरू के कुछ महीने तो वो बिस्तर में भी मुझे किसी देवी की तरह पूजता था.. लेकिन उसके बाद धीरे धीरे ही सही.. उसके बातों और व्यवहार में बहुत परिवर्तन आने लगा. मुझसे; विशेष कर संसर्ग के समय किसी बाजारू औरत से भी कहीं अधिक तिरस्कृत करता हुआ पेश आता. पूछे जाने पर कहता कि ऐसा करके उसे एक विशेष.. एक अलग प्रकार का सुख व आनंद मिलता है. ऐसी बातें वो सिर्फ़ कहने के लिए कहता है.. उसे गलत न समझा जाए. उसका और कोई मतलब नहीं होता. बहुत समय तक ऐसा चलता रहा.. न चाहते हुए भी मैंने हालात के साथ समझौता कर लिया था. परन्तु जैसे सूरज अधिक समय तक बादलों के पीछे नहीं छुप सकता ठीक वैसे ही हमारे संबंध भी किसी से छुपे न रह सके. हम पकड़े ही गए. हम दोनों को आपत्तिजनक अवस्था में पहले मेरे पति और बाद में भांजे बिल्टू ने देख लिया था.
पति के साथ तो मेरी काफ़ी कहा – सुनी हुई ही थी.. बिल्टू ने भी कड़ी आपत्ति जताया था.
कुछ दिन शांत रहने के बाद हम दोनों में फिर से संबंध बनने लगा. पिछली बार तो मिथुन को कुछ नहीं कहा गया था सिवाय थोड़े से डांट के.. वो भी मेरे पति के द्वारा.. लेकिन इस बार हम फिर पकड़े गए और वो भी मेरे भांजे बिल्टू के हाथों.
उसने मुझे और मिथुन को काफ़ी कुछ सुनाया. मुझे सुनाया... मैं सुनती रही.. पर जब मिथुन को सुनाने लगा तब मिथुन को गुस्सा आ गया और वो भी बहुत उल्टा सीधा बोलने लगा.
और उस क्षण तो मैं डर ही गई जब मिथुन ने मेरे पति और बिल्टू को जान से मार देने की धमकी दी.
सिर्फ़ उसी एक दिन नहीं बल्कि अक्सर कई बार अकेले में या मेरे साथ होने पर भी वह मेरे पति और भांजे को मार देने की कसमें खाता था.
ब.. बस....इसी क.. कारण.......”
“इसी कारण क्या?”
“इसी कारण मैंने उसे... मार दिया.”
“कब?”
“रात में...”
“ठीक से बताओ.”
“उसे मारने के पहले पिछले दो महीने से मैं अक्सर उसे रात में कुछ अलग बना कर खिलाने लगी. कभी गाजर का हलवा, कभी खीर, कभी कुछ तो कभी कुछ. और इसी तरह एकदिन खीर के दूध में ही अच्छे से ज़हर मिला कर उसे दे दी. काफ़ी तेज़ और धीरे असर करने वाला ज़हर था. उसे खाने के कोई दो घंटे बाद ही मिथुन मर गया होगा.”
“उसके बाद वो घृणित काम क्यों किया?”
“क.. कौन सा घृणित क... काम?”
“तुझे अच्छे से पता है कि हम किस घृणित काम की बात कर रहे हैं... हमारे खोजी कुत्तों को मिथुन के कमरे से पंद्रह कदम दूर ज़मीन के चार हाथ नीचे वो मिली है... ऐसा तो वही कर सकता या सकती है जिसके दिल में हद से अधिक घृणा भरी हुई हो.”
सामने बैठी महिला कर्मी की बात सुन कर होंठों पर एक हल्की मुस्कान लाते हुए सीमा थोड़ा सा सिर झुका कर बोली,
“जैसा की अ.. अभी अभी आपने ब.. बताया... कि ‘ऐसा तो वही कर सकता या सकती है जिसके दिल में हद से अधिक घृणा भरी हुई हो’... मेरे दिल में भी उसके प्रति घृणा कूट कूट कर भरी हुई थी... अ.. और.. सच कहूँ ..त.. तो घृणा के साथ साथ उससे भी अधिक दिल में डर अपना डेरा डाले हुए था....”
सीमा की बात खत्म होने से पहले ही बगल में बैठी दूसरी महिला कर्मी अपना कौतुहल न छिपा पाने के कारण पूछ बैठी.
सीमा अबकी बिना झिझक बोली,
“घृणा इसलिए क्योंकि वो मुझे एक बाजारू औरत से भी कहीं अधिक अपमानित करता रहता था. सड़क की कुतिया से भी अधिक नीचे गिरा हुआ होने का अहसास दिलाते रहता था... दिनोंदिन इतने अपमान से मैं थक चुकी थी... (कहते हुए सीमा फिर रोने लगती है).... और डर इसलिए क्योंकि उसने मेरे पति और भांजे को मार डालने की धमकी दी थी.. एक बार नहीं.. कई कई बार.. जब भी वो मेरे साथ होता था... संबंध बनाते समय हमेशा ही कहता था कि वो मेरे पति और भांजे को इस दुनिया से अलविदा करवा कर पूरे घर के साथ साथ मुझ पर भी अधिकार कर लेगा और धन – ऐश्वर्य भोगते हुए मुझे अपनी रखैल बना कर मुझे भी जब चाहे तब भोगेगा... जिसके साथ बाँटना चाहे .. बाँटेगा...
जब मुझे लगा की अब बात हद से अधिक बढ़ने लगा है तो मुझे ही कोई उपाय करना सूझा. अपने पति और भांजे से तो सहायता माँग नहीं सकती थी.. जो कुछ करना था मुझे अकेले ही करना था. सो उसे ज़हर दे दी. दिल में कई सौ गुणा घृणा भरा हुआ था... इसलिए......”
सीमा ने अपनी बात खत्म की.
उसकी पूरी कहानी सुनने के बाद दोनों महिला कर्मी कुछ देर तक चुपचाप बैठे रहे.
दोनों की ही सूरत ये साफ़ साफ़ बता रही थी कि सीमा की आपबीती पर वो विश्वास करे या अंत में मिथुन के मरने के बाद जो दरिंदगी की उसने उस पर अविश्वास करे.
खैर, सीमा अब सब कुछ बोल चुकी थी इसलिए उससे कुछ और पूछने का कोई मतलब नहीं था; खास कर ऐसी कोई भी बात जो सिक्युरिटी वालों को पहले से ही पता हो.
और जो बातें पता नहीं थीं... वो भी अब पता चल चुकी थी.
सीमा को वहीँ छोड़ कर दोनों महिला कर्मी सेल से बाहर आईं और रॉय के कमरे में जा कर उसे रिपोर्ट किया. पूरी कहानी संक्षेप में सुनाई और एक पॉकेट साइज़ रिकॉर्डर उसे सौंप दिया. इसमें सीमा की पूर्ण स्वीकारोक्ति रिकॉर्ड हो गयी थी.
दोनों को आभार और शाबाशी दिया रॉय ने. वो भी दिल खोल कर. सीनियर से प्रशंसा पा कर वो दोनों भी बहुत खुश हुई.
थोड़ी देर बाद जब दोनों चली गई तब रॉय ने रिकॉर्डर ऑन कर के उसे पूरा सुना; पूरे ध्यान से. फिर श्याम को बुलाया;
दोनों ने साथ में रिकॉर्डिंग सुना.
सुनने के बाद,
“क्या लगता है श्याम?”
“सर?”
“सीमा की स्वीकारोक्ति के बारे में?”
“जैसी घटनाएँ उसने सुनाई उससे तो मुझे ये सही लगती है.”
“सही लगती है?!!”
“जी सर.”
“तुम्हारे कहने का मतलब ये हुआ कि उसने जो कुछ भी किया वो सब सही था? अंत में हुई दरिंदगी भी??”
“ओ.. न.. नहीं नहीं सर... मेरा मतलब था कि सीमा की स्वीकारोक्ति मुझे सही लगी.”
“पक्का...? यही मतलब था न तुम्हारा??”
“ज..जी सर.”
श्याम सकपका गया था बेचारा. बोलने में हुई एक छोटी सी गलती उसे ही गलत ठहराने लगी थी.
“तो अब आगे का क्या लगता है? क्या होना चाहिए?”
“स..सर.. मेरे हिसाब से तो... अब इसकी इस स्वीकारोक्ति को रजिस्टर में कलमबद्ध कर के इसे जेल में डाल देना चाहिए.”
सुन कर रॉय फुसफुसाते हुए बोला,
“जेल में तो समझो ये ऑलरेडी है.”
“स..सर.. आपने कुछ कहा?”
“अम.. नहीं.. कुछ नहीं..”
फिर थोड़ा रुक कर,
“जेल में डालने के बाद?”
“सर, जेल में डाल देने के बाद तो और कुछ रह नहीं जाता. केस तो क्लोज़ हो गया न?”
“हम्म.. राईट! तुम्हारे दृष्टिकोण से सीमा वाला मामला तो क्लोज़ हो गया.... पर गाँव वाले मामले का क्या?”
“स..सर... ग.. गाँव व..वाला मामला?”
“हाँ.. गाँव वाला मामला.”
“स.. सॉरी सर.. मैं स..समझा नहीं.”
“श्याम!!... ये भूलने की बीमारी तुम्हें कब से लगी? हाँ?!”
श्याम सहम कर सिर नीचे झुका लिया.
रॉय ने फिर समझाया,
“मिथुन को तो सीमा ने मारा है ये मामला सुलझ गया. पर गाँव में और भी जो हत्याएँ हो रही हैं? जो मर्डर्स हो रहे हैं? उनका क्या?”
“ओह. यस सर.. जी सर... वो सब तो अभी भी बाकी हैं.”
“इसलिए मैं कह रहा था कि सीमा वाले इस केस के बाद अपना सारा फोकस रुना, मीना और सुनीता की ओर कर दो. ध्यान रहे श्याम, गाँव में अब भी मौतें हो रही हैं और रुना अब भी संदिग्ध है. रुना के साथ साथ उसकी सहेली मीना पर भी नज़र रखना. दोनों काफ़ी अच्छी सहेली हैं. अगर गाँव में हो रही मौतों के साथ इनका किसी भी तरह का संबंध है तो एक पर नज़र रखने से दूसरे की भी कोई न कोई खबर निकल ही आएगी. और साथ में खबर रखना सुनीता का भी. वो भी मुख्य संदिग्ध है. कोई न कोई खबर ज़रूर मिलेगी उसके बारे में. मत भूलना कि उसे अक्सर ही वारदात वाले स्थानों के आस पास वारदात के पहले देखा गया है कई बार.”
“जी सर. समझ गया. आप निश्चिन्त रहें सर. मैं कड़ी से कड़ी निगरानी करवाऊंगा.”
“गुड. अब तुम जा सकते हो श्याम.”
श्याम कुर्सी से उठ कर रॉय को सलाम ठोका और कमरे से निकल गया.
उसके जाते ही रॉय ने एक सिगरेट सुलगाया और उस रिकॉर्डिंग को फिर से सुनने लगा.