14-10-2020, 07:54 AM
१६)
चार दिन बाद,
एक दिन श्याम सुबह सुबह... रॉय के थाने आते ही उसके सामने जा कर उपस्थित हो गया.
चेयर पर आराम से बैठते हुए रॉय ने बड़े इत्मीनान से पूछा,
“क्या बात है श्याम? कुछ विशेष है??”
“जी सर... ए..एक टिप मिली है.”
“टिप.. कैसी टिप?”
“मिथुन मर्डर केस में, सर.”
“खबरी से??”
“जी सर.”
“पक्की है न?”
रॉय ने सीरियस होते हुए पूछा.
श्याम ने भी उतनी ही तत्परता से उत्तर दिया,
“जी सर... और अगर खबर पूरी तरह से गलत न भी हुआ तो भी हमें इससे बहुत इम्पोर्टेन्ट लीड मिल सकती है.”
“हम्म.. दैट्स वैरी गुड.”
“थैंक्यू सर.”
“तो.. क्या कहते हो.. चलना है अभी?”
“सर, अगर आप अभी फ्री हों तो...”
“हम्म... मैं भी वही सोच रहा था. अच्छा, एक बात बताओ.. जा कर जाँच पड़ताल करनी है या उठा कर लाना है.”
“सर, मैं तो सोच रहा था की सीधे उठा कर ही ले आएँ. लेकिन ऐसा होना....”
“क्यों नहीं हो सकता... एक काम करो, तुम जाओ... साथ में ५-६ साथियों को ले जाओ. और जिसको लाना है, ले आओ... पूछताछ के नाम पर. वैसे कोई कुछ कहेगा नहीं पर अगर कोई पूछे तो कहना ऊपर से आर्डर आया है... समझे?”
“यस सर.”
“गुड.. अब जाओ. गुड लक.”
“थैंक्यू सर.”
सैल्यूट मार कर श्याम ख़ुशी ख़ुशी कमरे से निकल गया.
करीब दो घंटे बाद श्याम लौटा... अपने पाँच अन्य साथियों के साथ.
और साथ में थे तुपी काका, उनकी पत्नी सीमा और भांजा बिल्टू.
थाने में लौटने के साथ ही श्याम, रॉय के पास गया और खबर सुनाई.
रॉय खुश हुआ पर जैसे ही कमरे से निकला; उन तीनों को देख कर हटप्रभ हो गया.
उसकी तो बुद्धि ही चकरा गई.
प्रश्नसूचक दृष्टि लिए श्याम की ओर देखा.
श्याम ने पास आ कर कहा,
“सर, खबर मिली है की मिथुन मर्डर केस में सीमा किसी तरह संलिप्त है और इस केस में और अधिक प्रकाश डालने के लिए इसके पति और भांजे को भी साथ ले आएँ हैं.”
“वैरी गुड. गुड जॉब.”
श्याम की चतुराई देख कर रॉय खुश होता हुआ उसे शाबाशी दिया.
अपने सीनियर से शाबाशी मिलने से श्याम भी काफ़ी गदगद हो उठा.
परन्तु क्षण भर बाद ही चेहरे पर चिंता लिए बोला,
“लेकिन सर... एक छोटी सी दुविधा है..”
“वो क्या?”
“इन तीनों को ले तो आया.. पर अब इनसे असल बात कैसे उगलवाया जाए ये एक समस्या है.”
“समस्या की क्या बात है श्याम. एक काम करते हैं, पहले एक एक कर तीनों को अलग अलग बैठा कर सवाल जवाब करेंगे... अगर इस प्रक्रिया से हमारा काम हो जाता है तो ठीक है.. नहीं तो ज़रुरत पड़ने पर तीनों को साथ बैठा कर क्रॉस क्वेश्चन करेंगे.”
रॉय के इस आईडिया से श्याम बहुत खुश हो गया,
“ओके सर.”
कह कर आगे की कार्रवाई को ले कर व्यस्त हो गया.
इधर,
बाबा की कुटिया में,
गोपू और चांदू बाबा के विशेष दिशा निर्देश के अंतर्गत कुछ विशेष तैयारियों में लगे हुए थे. दोनों के ही हाथ काफ़ी तेज़ी से चल रहे थे और कई सामानों को इकठ्ठा करने में व्यस्त थे.
कई पवित्र और दैव सम्बन्धी वस्तुओं को अच्छी तरह से देखा परखा जा रहा था.
काफ़ी देर तक यही चलता रहा.
जब सभी तैयारी पूरी हुई तब तीनों ही आराम करने लगे. सुस्ताते हुए चांदू पूछा,
“गुरूदेव, इतने से हो जाएगा न?”
“हाँ वत्स.”
“और कार्य?”
“हाहाहा... क्यों.. गुरु पर विश्वास नहीं?”
“क्षमा करें गुरूदेव.. मेरा ये अभिप्राय नहीं था. दरअसल, जब से चंडूलिका के बारे में सुना है.. मन हमेशा ही भयग्रस्त व संदेहग्रस्त रहता है.”
“अपनी क्षमताओं को लेकर इतना संशययुक्त रहना क्या शोभा देता है वत्स?”
“नहीं गुरूदेव... म..”
उसे बीच में ही रोकते हुए बाबा बोले,
“वत्स.. सदैव स्मरण रखना.. चाहे कुछ भी हो.. अपने क्षमताओं पर कभी भी संदेह नहीं करना चाहिए. इस व्यक्ति विशेष की योग्यता का ही ह्रास होता है. स्वयं पर विश्वास नहीं रहता इससे कार्य विशेष को लेकर मन में भय रहता है और अरुचि भी जाग जाती है.”
चांदू सिर झुका लिया,
बोला,
“जी गुरूदेव.”
बाबा ने मुस्करा कर चांदू के सिर पर हाथ फेरा और दोनों को ही सम्बोधित करते हुए बोले,
“मेरी चिंता अपनी योग्यता, क्षमता या कार्य के पूरा होने या न होने को लेकर नहीं है.. मेरी चिंता है गाँव वासियों को लेकर.”
दोनों ने प्रश्नसूचक दृष्टि से बाबा की ओर देखा...
बाबा कहते गए,
“पता नहीं.. न जाने क्यों मेरा मन कह रहा है कि आने वाले सात दिनों के अंदर अंदर कुछेक गाँव वासियों पर इसी चंडूलिका का या फिर शौमक और अवनी का कोप होने वाला है.”
“तो क्या हुआ.. आप उन्हें बचा तो सकते ही हैं गुरूदेव.”
“नहीं वत्स, आखिर मैं भी एक मनुष्य हूँ.. मेरी अपनी भी कुछ सीमाएँ हैं. मैं बहुत कुछ तो कर सकता हूँ.. पर सब कुछ नहीं.”
“तो फिर उन लोगों को बचाने का और कोई मार्ग शेष नहीं है?”
“है वत्स.. है... मैंने इन लोगों को जो दिशा निर्देश दिया है अगर उसका पालन पूरी निष्ठा से किया जाए तो अवश्य ही सबके प्राण सुरक्षित रहेंगे.. अन्यथा दुर्घटना होने की पूरी सम्भावना है.”
“अर्थात् गुरूदेव.. आपको ये संदेह है कि कदाचित सभी आपके निर्देशों का पालन नहीं करेंगे?”
“संदेह नहीं वत्स... विश्वास!... विश्वास है इस बात का.”
“क..क्यों... गुरूदेव...?”
बाबा ने उत्तर में कुछ नहीं कहा.
वो चुप रहे और खिड़की से बाहर आसमान की ओर देखने लगे.
गोपू और चांदू इस संकेत को समझ गए. बाबा ने कुछ देर पहले खुद ही कहा था कि वे बहुत कुछ कर सकते हैं... लेकिन सब कुछ नहीं. सब कुछ उनके हाथ में नहीं है. पता नहीं आने वाले सात दिनों में गाँव में क्या क्या होगा...
दोनों अत्यंत चिंतित हो उठे.
उधर,
थाने में इंटेरोगेशन शुरू हो चुका था.
शुरुआत तुपी काका से ही हुआ...
पर तब इंस्पेक्टर रॉय और हवलदार श्याम का आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब इंटेरोगेशन को शुरू हुए दस मिनट ही मुश्किल से हुए थे कि तुपी काका बिलख बिलख कर रोने लगे और हाथ जोड़ कर सिक्युरिटी वालों से एक ही बात बार बार दोहराने लगे कि,
“दया कीजिए साब, मुझसे मेरी बीवी के बारे में मत पूछो; मैं नहीं बोल पाऊंगा... साब... मत पूछो साब... कृपा करो साब.”
“क्यों.. क्यों कुछ नहीं बोल पाओगे?”
रॉय ने थोड़ा सख्ती से पूछा.
तुपी काका रोते हुए ही बोले,
“साब, जीवन में आज तक अपने आचार, विचार, व्यवहार और व्यापर से बहुत नाम कमाया. बहुत सम्मान मिला पूरे गाँव में... पूरे समाज से. मेरी तो विवाह की भी इच्छा नहीं थी.. माँ के गुजर जाने के बाद बाबूजी की जिद्द कहिये या उनकी इच्छा; देर से ही सही... मैंने शादी कर ली. संतान नहीं हुआ.. इसे भी भाग्य समझ कर समझौता कर लिया. ल...ले.. लेकिन य.. ये थाना.. प... सिक्युरिटी... सवाल... ज...जवाब... मुझसे न.. नहीं होगा साब... नहीं होगा.”
बच्चों की तरह रोते बिलखते तुपी काका झुक कर लगभग रॉय के पांव ही पड़ गए...
रॉय तुरंत पीछे हट गया.
तुपी काका का रोना धोना देख कर श्याम तो बिल्कुल किंकर्तव्यविमूढ़ सा हो गया. उससे कुछ बोलते नहीं बना. वैसे भी, जब उसके सीनियर वहाँ पर उपस्थित हैं तो फिर वो क्यों बोले.
कुछ पलों के लिए रॉय का दिमाग भी एकदम से ब्लैंक हो गया था पर था वो एक बहुत ही स्मार्ट ऑफिसर. खुद को सम्भालने में कम समय लगा उसे. तुरंत ही समझ गया कि तुपी काका ऐसा कुछ अवश्य ही जानते हैं जो इस केस में बहुत सहायक हो सकता है पर साथ ही कदाचित तुपी काका और उनके परिवार के सम्मान को चोट पहुँचा सकता है.
इसलिए उस समय तो तुपी काका को वहाँ से उठ कर बाहर जा कर बैठने बोल दिया पर ये दृढ़ निश्चय भी कर लिया की थोड़ी देर बाद तुपी काका के अंतर्मन को फिर से खोदेगा.
रॉय ने बिल्टू को बुलवाया.
बिल्टू अंदर आया ...
घबराया..
बैठा.. उसे पहले पानी दिया गया...
रॉय ने उसे पाँच मिनट का टाइम दिया.
बिल्टू का घबराहट धीरे धीरे कुछ कम हुआ.
रॉय अब उसके ठीक सामने चेयर पर बैठा... उसकी ओर देखते हुए..
पूछा,
“बिल्टू... अब कैसा लग रहा है..?”
“ज..जी.. ठ.. ठीक हूँ ...स... साब..”
“और पानी चाहिए?”
“न..नहीं साब..”
“हम्म.. तो अब हम जो कुछ पूछेंगे उसका तुम सही सही जवाब देना... ठीक है?”
“ज..ज..जी...साहब... ब.. बिल्कुल..”
“ह्म्म्म.. तो बिल्टू.. ये बताओ... तुम्हारा अच्छा नाम क्या है...तुम यहाँ कब से रहते हो.. क्यों रहते हो... तुम्हारे माता पिता कहाँ हैं.. इत्यादि..”
“ज.. जी साब.. बचपन में माता पिता के देहांत के बाद से ही मामा के पास यहाँ रहने लगा था. मामा मामी से बहुत प्यार मिला है. बिल्कुल उनके अपने बेटे जैसा. उनकी अपनी कोई संतान नहीं है न... इसलिए देखा जाए तो एक तरह से... उन लोगों ने मुझे अपना लिया... था... म.. मेरा न.. नाम भी मामा जी ने ही र..रखा था ... गोबिन्दो दास... पर चूँकि सिर पर असल माँ बाप का ही छाँव नहीं था इसलिए अपना ही बेटा मानते हुए... म.. मामा न..ने मेरा नाम गोबिन्दो पाल रखना ही अ..अच्छा समझा.”
“ओके.. मामा और मामी के साथ तुम्हारे संबंध कैसे हैं?”
“बहुत अ.. अच्छे ह..हैं साब.”
“मामा और मामी के बीच के संबंध कैसे हैं?”
“ब.. बा.. बहुत बढ़िया है साब.”
“उनका अपना कोई सन्तान नहीं है.. इस बात को लेकर दोनों के बीच कभी कोई खटपट नहीं हुई?”
“स.. साब.. म.. मैं तो बचपन से ही इनके साथ रहता हूँ.. न..नहीं साब, कभी कोई खटपट नहीं हुई है.”
“सच कह रहे हो?”
“ज.. जी.. साब...”
“दोनों की आयु में बहुत अंतर है.. कम से कम पंद्रह साल का. विवाह करने में इतनी देर क्यों की तुपी काका ने?”
“नहीं पता साब... भ.. भला मुझे कैसे पता होगा?”
“इस आयु अंतर के कारण भी कभी कोई खिटपिट हुई है दोनों में?”
“अम... ज..जहाँ तक मुझे मालूम है साब... ऐसा तो कभी क..कुछ हुआ नहीं दोनों में.”
“पक्का?”
“जी साब.”
“हम्म.. और मिथुन...?’
“म.. मिथुन का क्या साब..?”
“ये मिथुन का क्या किस्सा है? उसके बारे में कुछ बताओ.”
“मिथुन भी बहुत कम आयु से ही हमारे यहाँ रहते आया है साब.. दरअसल, उसके माँ बाप बहुत गरीब थे.. बच्चे कुल सात थे.. समुचित पालन पोषण में बहुत ही असमर्थ थे दोनों इसलिए तुपी मामा के यहाँ मिथुन को छोड़ गए थे. काम भी करेगा.. रहना खाना होगा.. और बड़ा भी हो जाएगा..”
“क्यों.. तुम्हारे तुपी मामा के यहाँ ही क्यों छोड़ा मिथुन को?”
“जी.. व.. वो क्या है कि... मिथुन के पिताजी को भी उनके पिताजी ने तुपी मामा के पिताजी स्वर्गीय सुनील पाल जी के यहाँ छोड़ गए थे. वो भी हमारे यहाँ ही बड़े हुए थे.. परिवार के सदस्य की भांति रहते खाते पीते और .. बदले में घर से सम्बन्धित काम कर देते.... चाहे घर में हो या बाहर का काम हो.”
“बाहर का काम...?”
“जी.. जैसे पुआल ले आना, सब्जी ले आना.. कहीं कुछ पहुँचा कर आना.. इत्यादि.. सब.”
“ओह्ह.. ओके..ओके..”
“ज.जी साब.”
“बिल्टू... तुम्हें याद होगा शायद.. जिस दिन हम तुम्हारे घर गए थे.. मिथुन की बॉडी देखने... उस दिन तुमने हमें बताया था कि तुम्हारे मामा मामी; विशेषतः तुम्हारी मामी मिथुन को सगे बेटे से भी अधिक मानती थी... ऐसा क्यों? तुम तो थे ही बेटे के रूप में.. फिर कोई और क्यों?”
“न.. नहीं साब.. वो मुझे ही अधिक मानती हैं.”
“क्या मानती हैं?”
इस प्रश्न पर बिल्टू एकदम सुन्न सा हो गया. उसने कल्पना ही नहीं किया था कि इस तरह से भी प्रश्न कर सकते हैं सिक्युरिटी वाले.
थूक निगलते हुए तनिक मुश्किल से बोला,
“ब.. बेटा मानती है.. साब.”
“पक्का..??”
“जी साब.”
“तो फिर मिथुन को सगा बेटा जैसा मानने का कारण??”
“पता नहीं सर.”
कह कर बिल्टू ने नज़रें फेर लिया. घबराहट के लक्षण फिर से दिखाई देने लगे थे. रॉय ने कुछ सोचा और बिल्टू को जाने दिया.
अब बारी सीमा की थी.
चार दिन बाद,
एक दिन श्याम सुबह सुबह... रॉय के थाने आते ही उसके सामने जा कर उपस्थित हो गया.
चेयर पर आराम से बैठते हुए रॉय ने बड़े इत्मीनान से पूछा,
“क्या बात है श्याम? कुछ विशेष है??”
“जी सर... ए..एक टिप मिली है.”
“टिप.. कैसी टिप?”
“मिथुन मर्डर केस में, सर.”
“खबरी से??”
“जी सर.”
“पक्की है न?”
रॉय ने सीरियस होते हुए पूछा.
श्याम ने भी उतनी ही तत्परता से उत्तर दिया,
“जी सर... और अगर खबर पूरी तरह से गलत न भी हुआ तो भी हमें इससे बहुत इम्पोर्टेन्ट लीड मिल सकती है.”
“हम्म.. दैट्स वैरी गुड.”
“थैंक्यू सर.”
“तो.. क्या कहते हो.. चलना है अभी?”
“सर, अगर आप अभी फ्री हों तो...”
“हम्म... मैं भी वही सोच रहा था. अच्छा, एक बात बताओ.. जा कर जाँच पड़ताल करनी है या उठा कर लाना है.”
“सर, मैं तो सोच रहा था की सीधे उठा कर ही ले आएँ. लेकिन ऐसा होना....”
“क्यों नहीं हो सकता... एक काम करो, तुम जाओ... साथ में ५-६ साथियों को ले जाओ. और जिसको लाना है, ले आओ... पूछताछ के नाम पर. वैसे कोई कुछ कहेगा नहीं पर अगर कोई पूछे तो कहना ऊपर से आर्डर आया है... समझे?”
“यस सर.”
“गुड.. अब जाओ. गुड लक.”
“थैंक्यू सर.”
सैल्यूट मार कर श्याम ख़ुशी ख़ुशी कमरे से निकल गया.
करीब दो घंटे बाद श्याम लौटा... अपने पाँच अन्य साथियों के साथ.
और साथ में थे तुपी काका, उनकी पत्नी सीमा और भांजा बिल्टू.
थाने में लौटने के साथ ही श्याम, रॉय के पास गया और खबर सुनाई.
रॉय खुश हुआ पर जैसे ही कमरे से निकला; उन तीनों को देख कर हटप्रभ हो गया.
उसकी तो बुद्धि ही चकरा गई.
प्रश्नसूचक दृष्टि लिए श्याम की ओर देखा.
श्याम ने पास आ कर कहा,
“सर, खबर मिली है की मिथुन मर्डर केस में सीमा किसी तरह संलिप्त है और इस केस में और अधिक प्रकाश डालने के लिए इसके पति और भांजे को भी साथ ले आएँ हैं.”
“वैरी गुड. गुड जॉब.”
श्याम की चतुराई देख कर रॉय खुश होता हुआ उसे शाबाशी दिया.
अपने सीनियर से शाबाशी मिलने से श्याम भी काफ़ी गदगद हो उठा.
परन्तु क्षण भर बाद ही चेहरे पर चिंता लिए बोला,
“लेकिन सर... एक छोटी सी दुविधा है..”
“वो क्या?”
“इन तीनों को ले तो आया.. पर अब इनसे असल बात कैसे उगलवाया जाए ये एक समस्या है.”
“समस्या की क्या बात है श्याम. एक काम करते हैं, पहले एक एक कर तीनों को अलग अलग बैठा कर सवाल जवाब करेंगे... अगर इस प्रक्रिया से हमारा काम हो जाता है तो ठीक है.. नहीं तो ज़रुरत पड़ने पर तीनों को साथ बैठा कर क्रॉस क्वेश्चन करेंगे.”
रॉय के इस आईडिया से श्याम बहुत खुश हो गया,
“ओके सर.”
कह कर आगे की कार्रवाई को ले कर व्यस्त हो गया.
इधर,
बाबा की कुटिया में,
गोपू और चांदू बाबा के विशेष दिशा निर्देश के अंतर्गत कुछ विशेष तैयारियों में लगे हुए थे. दोनों के ही हाथ काफ़ी तेज़ी से चल रहे थे और कई सामानों को इकठ्ठा करने में व्यस्त थे.
कई पवित्र और दैव सम्बन्धी वस्तुओं को अच्छी तरह से देखा परखा जा रहा था.
काफ़ी देर तक यही चलता रहा.
जब सभी तैयारी पूरी हुई तब तीनों ही आराम करने लगे. सुस्ताते हुए चांदू पूछा,
“गुरूदेव, इतने से हो जाएगा न?”
“हाँ वत्स.”
“और कार्य?”
“हाहाहा... क्यों.. गुरु पर विश्वास नहीं?”
“क्षमा करें गुरूदेव.. मेरा ये अभिप्राय नहीं था. दरअसल, जब से चंडूलिका के बारे में सुना है.. मन हमेशा ही भयग्रस्त व संदेहग्रस्त रहता है.”
“अपनी क्षमताओं को लेकर इतना संशययुक्त रहना क्या शोभा देता है वत्स?”
“नहीं गुरूदेव... म..”
उसे बीच में ही रोकते हुए बाबा बोले,
“वत्स.. सदैव स्मरण रखना.. चाहे कुछ भी हो.. अपने क्षमताओं पर कभी भी संदेह नहीं करना चाहिए. इस व्यक्ति विशेष की योग्यता का ही ह्रास होता है. स्वयं पर विश्वास नहीं रहता इससे कार्य विशेष को लेकर मन में भय रहता है और अरुचि भी जाग जाती है.”
चांदू सिर झुका लिया,
बोला,
“जी गुरूदेव.”
बाबा ने मुस्करा कर चांदू के सिर पर हाथ फेरा और दोनों को ही सम्बोधित करते हुए बोले,
“मेरी चिंता अपनी योग्यता, क्षमता या कार्य के पूरा होने या न होने को लेकर नहीं है.. मेरी चिंता है गाँव वासियों को लेकर.”
दोनों ने प्रश्नसूचक दृष्टि से बाबा की ओर देखा...
बाबा कहते गए,
“पता नहीं.. न जाने क्यों मेरा मन कह रहा है कि आने वाले सात दिनों के अंदर अंदर कुछेक गाँव वासियों पर इसी चंडूलिका का या फिर शौमक और अवनी का कोप होने वाला है.”
“तो क्या हुआ.. आप उन्हें बचा तो सकते ही हैं गुरूदेव.”
“नहीं वत्स, आखिर मैं भी एक मनुष्य हूँ.. मेरी अपनी भी कुछ सीमाएँ हैं. मैं बहुत कुछ तो कर सकता हूँ.. पर सब कुछ नहीं.”
“तो फिर उन लोगों को बचाने का और कोई मार्ग शेष नहीं है?”
“है वत्स.. है... मैंने इन लोगों को जो दिशा निर्देश दिया है अगर उसका पालन पूरी निष्ठा से किया जाए तो अवश्य ही सबके प्राण सुरक्षित रहेंगे.. अन्यथा दुर्घटना होने की पूरी सम्भावना है.”
“अर्थात् गुरूदेव.. आपको ये संदेह है कि कदाचित सभी आपके निर्देशों का पालन नहीं करेंगे?”
“संदेह नहीं वत्स... विश्वास!... विश्वास है इस बात का.”
“क..क्यों... गुरूदेव...?”
बाबा ने उत्तर में कुछ नहीं कहा.
वो चुप रहे और खिड़की से बाहर आसमान की ओर देखने लगे.
गोपू और चांदू इस संकेत को समझ गए. बाबा ने कुछ देर पहले खुद ही कहा था कि वे बहुत कुछ कर सकते हैं... लेकिन सब कुछ नहीं. सब कुछ उनके हाथ में नहीं है. पता नहीं आने वाले सात दिनों में गाँव में क्या क्या होगा...
दोनों अत्यंत चिंतित हो उठे.
उधर,
थाने में इंटेरोगेशन शुरू हो चुका था.
शुरुआत तुपी काका से ही हुआ...
पर तब इंस्पेक्टर रॉय और हवलदार श्याम का आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब इंटेरोगेशन को शुरू हुए दस मिनट ही मुश्किल से हुए थे कि तुपी काका बिलख बिलख कर रोने लगे और हाथ जोड़ कर सिक्युरिटी वालों से एक ही बात बार बार दोहराने लगे कि,
“दया कीजिए साब, मुझसे मेरी बीवी के बारे में मत पूछो; मैं नहीं बोल पाऊंगा... साब... मत पूछो साब... कृपा करो साब.”
“क्यों.. क्यों कुछ नहीं बोल पाओगे?”
रॉय ने थोड़ा सख्ती से पूछा.
तुपी काका रोते हुए ही बोले,
“साब, जीवन में आज तक अपने आचार, विचार, व्यवहार और व्यापर से बहुत नाम कमाया. बहुत सम्मान मिला पूरे गाँव में... पूरे समाज से. मेरी तो विवाह की भी इच्छा नहीं थी.. माँ के गुजर जाने के बाद बाबूजी की जिद्द कहिये या उनकी इच्छा; देर से ही सही... मैंने शादी कर ली. संतान नहीं हुआ.. इसे भी भाग्य समझ कर समझौता कर लिया. ल...ले.. लेकिन य.. ये थाना.. प... सिक्युरिटी... सवाल... ज...जवाब... मुझसे न.. नहीं होगा साब... नहीं होगा.”
बच्चों की तरह रोते बिलखते तुपी काका झुक कर लगभग रॉय के पांव ही पड़ गए...
रॉय तुरंत पीछे हट गया.
तुपी काका का रोना धोना देख कर श्याम तो बिल्कुल किंकर्तव्यविमूढ़ सा हो गया. उससे कुछ बोलते नहीं बना. वैसे भी, जब उसके सीनियर वहाँ पर उपस्थित हैं तो फिर वो क्यों बोले.
कुछ पलों के लिए रॉय का दिमाग भी एकदम से ब्लैंक हो गया था पर था वो एक बहुत ही स्मार्ट ऑफिसर. खुद को सम्भालने में कम समय लगा उसे. तुरंत ही समझ गया कि तुपी काका ऐसा कुछ अवश्य ही जानते हैं जो इस केस में बहुत सहायक हो सकता है पर साथ ही कदाचित तुपी काका और उनके परिवार के सम्मान को चोट पहुँचा सकता है.
इसलिए उस समय तो तुपी काका को वहाँ से उठ कर बाहर जा कर बैठने बोल दिया पर ये दृढ़ निश्चय भी कर लिया की थोड़ी देर बाद तुपी काका के अंतर्मन को फिर से खोदेगा.
रॉय ने बिल्टू को बुलवाया.
बिल्टू अंदर आया ...
घबराया..
बैठा.. उसे पहले पानी दिया गया...
रॉय ने उसे पाँच मिनट का टाइम दिया.
बिल्टू का घबराहट धीरे धीरे कुछ कम हुआ.
रॉय अब उसके ठीक सामने चेयर पर बैठा... उसकी ओर देखते हुए..
पूछा,
“बिल्टू... अब कैसा लग रहा है..?”
“ज..जी.. ठ.. ठीक हूँ ...स... साब..”
“और पानी चाहिए?”
“न..नहीं साब..”
“हम्म.. तो अब हम जो कुछ पूछेंगे उसका तुम सही सही जवाब देना... ठीक है?”
“ज..ज..जी...साहब... ब.. बिल्कुल..”
“ह्म्म्म.. तो बिल्टू.. ये बताओ... तुम्हारा अच्छा नाम क्या है...तुम यहाँ कब से रहते हो.. क्यों रहते हो... तुम्हारे माता पिता कहाँ हैं.. इत्यादि..”
“ज.. जी साब.. बचपन में माता पिता के देहांत के बाद से ही मामा के पास यहाँ रहने लगा था. मामा मामी से बहुत प्यार मिला है. बिल्कुल उनके अपने बेटे जैसा. उनकी अपनी कोई संतान नहीं है न... इसलिए देखा जाए तो एक तरह से... उन लोगों ने मुझे अपना लिया... था... म.. मेरा न.. नाम भी मामा जी ने ही र..रखा था ... गोबिन्दो दास... पर चूँकि सिर पर असल माँ बाप का ही छाँव नहीं था इसलिए अपना ही बेटा मानते हुए... म.. मामा न..ने मेरा नाम गोबिन्दो पाल रखना ही अ..अच्छा समझा.”
“ओके.. मामा और मामी के साथ तुम्हारे संबंध कैसे हैं?”
“बहुत अ.. अच्छे ह..हैं साब.”
“मामा और मामी के बीच के संबंध कैसे हैं?”
“ब.. बा.. बहुत बढ़िया है साब.”
“उनका अपना कोई सन्तान नहीं है.. इस बात को लेकर दोनों के बीच कभी कोई खटपट नहीं हुई?”
“स.. साब.. म.. मैं तो बचपन से ही इनके साथ रहता हूँ.. न..नहीं साब, कभी कोई खटपट नहीं हुई है.”
“सच कह रहे हो?”
“ज.. जी.. साब...”
“दोनों की आयु में बहुत अंतर है.. कम से कम पंद्रह साल का. विवाह करने में इतनी देर क्यों की तुपी काका ने?”
“नहीं पता साब... भ.. भला मुझे कैसे पता होगा?”
“इस आयु अंतर के कारण भी कभी कोई खिटपिट हुई है दोनों में?”
“अम... ज..जहाँ तक मुझे मालूम है साब... ऐसा तो कभी क..कुछ हुआ नहीं दोनों में.”
“पक्का?”
“जी साब.”
“हम्म.. और मिथुन...?’
“म.. मिथुन का क्या साब..?”
“ये मिथुन का क्या किस्सा है? उसके बारे में कुछ बताओ.”
“मिथुन भी बहुत कम आयु से ही हमारे यहाँ रहते आया है साब.. दरअसल, उसके माँ बाप बहुत गरीब थे.. बच्चे कुल सात थे.. समुचित पालन पोषण में बहुत ही असमर्थ थे दोनों इसलिए तुपी मामा के यहाँ मिथुन को छोड़ गए थे. काम भी करेगा.. रहना खाना होगा.. और बड़ा भी हो जाएगा..”
“क्यों.. तुम्हारे तुपी मामा के यहाँ ही क्यों छोड़ा मिथुन को?”
“जी.. व.. वो क्या है कि... मिथुन के पिताजी को भी उनके पिताजी ने तुपी मामा के पिताजी स्वर्गीय सुनील पाल जी के यहाँ छोड़ गए थे. वो भी हमारे यहाँ ही बड़े हुए थे.. परिवार के सदस्य की भांति रहते खाते पीते और .. बदले में घर से सम्बन्धित काम कर देते.... चाहे घर में हो या बाहर का काम हो.”
“बाहर का काम...?”
“जी.. जैसे पुआल ले आना, सब्जी ले आना.. कहीं कुछ पहुँचा कर आना.. इत्यादि.. सब.”
“ओह्ह.. ओके..ओके..”
“ज.जी साब.”
“बिल्टू... तुम्हें याद होगा शायद.. जिस दिन हम तुम्हारे घर गए थे.. मिथुन की बॉडी देखने... उस दिन तुमने हमें बताया था कि तुम्हारे मामा मामी; विशेषतः तुम्हारी मामी मिथुन को सगे बेटे से भी अधिक मानती थी... ऐसा क्यों? तुम तो थे ही बेटे के रूप में.. फिर कोई और क्यों?”
“न.. नहीं साब.. वो मुझे ही अधिक मानती हैं.”
“क्या मानती हैं?”
इस प्रश्न पर बिल्टू एकदम सुन्न सा हो गया. उसने कल्पना ही नहीं किया था कि इस तरह से भी प्रश्न कर सकते हैं सिक्युरिटी वाले.
थूक निगलते हुए तनिक मुश्किल से बोला,
“ब.. बेटा मानती है.. साब.”
“पक्का..??”
“जी साब.”
“तो फिर मिथुन को सगा बेटा जैसा मानने का कारण??”
“पता नहीं सर.”
कह कर बिल्टू ने नज़रें फेर लिया. घबराहट के लक्षण फिर से दिखाई देने लगे थे. रॉय ने कुछ सोचा और बिल्टू को जाने दिया.
अब बारी सीमा की थी.