01-10-2020, 10:18 PM
१५)
दो दिन बाद एक शुभ मुहूर्त देख कर बाबा ने एक विशेष अनुष्ठान का शुभारंभ किया.
करना तो वो एक विशेष प्रकार का यज्ञ चाहते थे लेकिन कुछ सोच कर उन्होंने अपने इस अनुष्ठान को एक भिन्न रूप से करने का निश्चय किया.
जप करने के लिए चांदू को साथ बिठाया और स्वयं भी कुछ जपते हुए ध्यान में लीन हो गए.
किसी भी प्रकार की विघ्न – बाधा; विशेषतः यदि वो आसुरिक, तांत्रिक, मांत्रिक या अज्ञात अदृश्य कोई आक्रमण हो तो उनसे लड़ने और उनके उद्देश्यों पर पानी फेरने के लिए बाबा ने गोपू को पहरे पर बिठा दिया.
बाबा और गोपू ने मिलकर कुटिया को चारों ओर से मंत्रों से पोषित कर दिया था और कुटिया के बाहर बिस्वास जी समेत दस और लोगों को पहरे पर लगा रखा था ताकि कोई आदमी, औरत या जानवर इत्यादि कुटिया के आस पास या बाबा से मिलने की बात कह कर अनुष्ठान में विघ्न न डाले.
और कहीं बिस्वास जी और अन्य साथियों पर कोई ऊपरी शक्ति हावी हो कर किसी प्रकार का हानि न पहुँचाए इसके लिए भी बाबा ने पर्याप्त व्यवस्था कर रखा था.
अनुष्ठान आरम्भ हुआ.
मंत्र जाप भी आरम्भ हुआ.
कुटिया के अंदर बाबा और चांदू से थोड़ी दूरी पर बैठा गोपू चौकन्ना हो गया.
कुटिया के बाहर उपस्थित बिस्वास जी और अन्य लोग भी सतर्क और सावधान हो गए.
किसी ऊपरी बला के आ कर उन लोगों को नुकसान पहुँचाए; इस बात का डर तो था उन लोगों में परन्तु बाबा की शक्तियों पर भी उन्हें अगाध विश्वास और श्रद्धा थी.
गोपू भी बहुत सतर्क था लेकिन बाहर उपस्थित लोगों के जैसे भयभीत नहीं था.
कई प्रकार की ऊपरी बाधा और शक्तियों से वो पहले भी निपट चुका था. स्वभाव से तो वीर था ही; बाबा के मार्गदर्शन में वह तंत्र - मंत्र विद्या में महारत प्राप्त कर चुका था.
बाबा के सामने पाँच फल रखे हुए थे.
पाँचों ही बिल्कुल ताज़े.
कुछ देर पहले ही पानी से अच्छे से धोया गया थे इन्हें.
जप करते करते बाबा ने ‘हुम’ कर के एक गम्भीर नाद किया.
चांदू के लिए ये एक संकेत था. उसने अपना मंत्रजाप वहीँ रोका और आँखें खोल कर पहले बाबा की ओर देखा जो अब भी आँखें बंद किए जाप किए जा रहे थे. उसने तुरंत सामने रखे फलों में से एक फल उठा लिया और तुरंत उसे चाक़ू से काटा.
फल अंदर से भी ताज़ा ही निकला.
चांदू तनिक निराश हुआ. गोपू की ओर देखा.
वो भी निराश हुआ सा लगा.
चांदू को सफ़लता मिलने का पूरा भरोसा था.. पर ऐसा हुआ नहीं.
लेकिन वो भी एकदम निराश नहीं हुआ था. बाबा पर पूरा भरोसा था उसे.
इसलिए तुरंत ही अपने आसन पर पूर्ववत् बैठ गया और मंत्रजाप शुरू कर दिया.
इधर गोपू ने भी अपने नेत्रों को मन्त्र से सिंचित कर खिड़की से बाहर की ओर देखा. कहीं कुछ पारलौकिक नज़र नहीं आया.
बिस्वास जी और अन्य लोग किसी भी प्रकार के दुर्घटना या चुनौती के लिए पूरी तरह तत्पर दिख रहे थे.
उस खिड़की से गोपू को जितने भी लोग नज़र आए; उन सबको बारी बारी से बहुत अच्छे से देखा.
किसी में भी कुछ भी संदिग्ध नज़र नहीं आया.
किसी बात का संदेह तो बारम्बार हो रहा था गोपू को किन्तु जब कहीं कोई ऐसी बात न दिखी जो उसके संदेह को बल देती तब वो स्वयं ही निश्चिन्त हो गया.
इधर बाबा का अनुष्ठान चलता रहा.
तीन से चार घंटे बीत गए.
बाबा और चांदू मंत्रों का जाप करते रहे.
बीच बीच में बाबा के ‘हुम’ करके संकेत करने पर चांदू एक एक कर के फल काटता रहा; लेकिन हरेक फल अंदर से ताज़ा ही निकला.
अंततः बाबा को भी एक निश्चित समय बाद अपना मन्त्र जाप बंद करना पड़ा.
मन्त्र जाप और अनुष्ठान तो पूरा हुआ पर जिस उद्देश्य के लिए किया गया था वो पूरा नहीं हुआ. सभी कटे फलों को बिस्वास जी और उनके अन्य साथियों के बीच बाँट दिया गया.
बिस्वास जी ने बहुत पूछा लेकिन उनको केवल इतना ही बताया गया कि अनुष्ठान पूरा हुआ और कम से कम दो - तीन दिनों के लिए कोई संकट नहीं है इस गाँव पर.
सभी को विदा करने से पहले बाबा ने कुछ आवश्यक दिशा निर्देश दिया और उन दिशा निर्देशों को पूरी सजगता के साथ पालन करने को कहा.
बाबा के दिशा निर्देशों को अपना आदेश मान कर सबने बाबा को प्रणाम किया और अपने अपने घरों की ओर प्रस्थान कर गए.
इधर बाबा अपने स्थान पर विश्राम हेतु बैठे लेकिन बहुत चिंतित दिखाई दे रहे थे.
गोपू ने आगे बढ़ कर हाथ जोड़ते हुए बाबा से कहा,
“गुरूदेव?”
“हम्म..”
“कुछ पूछने को जी चाह रहा है.. आपकी आज्ञा हो तो पूछूँ?”
“वैसे तो हमें अनुमान है कि तुम क्या पूछना चाह रहे हो वत्स.. फिर भी हम तुम्ही से सुनना चाहेंगे. पूछो.. क्या पूछना है?”
एक बार फिर बाबा को प्रणाम कर किया गोपू ने और फिर पूछा,
“गुरूदेव, क्या आज का अनुष्ठान सच में पूरा हुआ?”
“हाँ.. हुआ. और.. नहीं भी.”
“अर्थात् गुरूदेव?”
“आज के इस अनुष्ठान के दो उद्देश्य थे. एक, अपनी सिद्धियों को पोषित करना. दो, किसी को यहाँ बुलाना.”
“किसे बुलाना चाहते थे आप गुरूदेव?”
“शौमक और अवनी को.”
एक क्षण रुक कर कुछ सोचते हुए पूछा गोपू ने,
“तो.. वो.....”
उसका प्रश्न पूरा होने से पहले ही गुरूदेव ने उत्तर दे दिया,
“नहीं आए, वत्स.”
कहते हुए बाबा थोड़ा निराश दिखे. कदाचित उन्होंने इसमें सफ़लता मिलने की ही आशा की थी.
बाबा के चेहरे पर उभर आए निराशा को देख गोपू से रहा नहीं गया, पूछा,
“तो क्या इसका और कोई उपाय नहीं है गुरूदेव?”
“हम्म.. है... अवश्य है. परन्तु अभी हम वो उपाय करेंगे नहीं.”
“क्यों गुरूदेव?”
“क्योंकि इन दोनों या इनमें से किसी एक को भी बुलाना इतना सरल सहज नहीं होगा. आज के अनुष्ठान के दो उद्देश्यों में से एक उद्देश्य शौमक और अवनी या इन में से कोई एक को अपने पास बुला कर उनसे वार्तालाप करना, प्रश्नोत्तर करना था. पर ऐसा हुआ नहीं... और ऐसा न होने का केवल एक ही कारण है.”
“वो क्या गुरूदेव?”
तनिक रुक कर बाबा बोले,
“कारण ये कि कोई इनको यहाँ मेरे पास आने से रोक रहा है !”
“क्या?!”
“हाँ वत्स, कोई है ऐसा जिनके सामने इनकी एक नहीं चल रही है. वो जो कोई भी है इनसे कई गुणा अधिक शक्तिशाली है और बड़ी सरलता से मेरा इनके साथ किसी भी प्रकार का कोई भी सम्पर्क होने से रोक रहा है.”
“वो कौन है गुरूदेव?”
“अभी इसका पता नहीं चला है वत्स. पता कर सकता था यदि मैं इस बात के लिए भी तैयार रहता. परन्तु ऐसा कुछ होगा इसका तो मुझे रत्ती भर का आभास नहीं था.”
ये सुनकर गोपू को बहुत निराशा हुई. चांदू को भी.
बाबा ने और कुछ नहीं कहा क्योंकि उनके मन में भी कई विचार एक साथ उमड़ घुमड़ कर रहे थे.
कुछ समय और बीता.
अचानक चांदू को कुछ याद आया और तुरंत बाबा के पास आकर पूछा,
“गुरूदेव.. मुझे भी कुछ पूछना है.”
“पूछो वत्स.”
“गुरूदेव.. ये चंडूलिका कौन है?”
प्रश्न सुनते ही गोपू भी बाबा के सामने चांदू के पास आ कर बैठ गया.
दोनों का कौतुक देख बाबा मुस्कराए.
बोले,
“बहुत शक्तिशाली होती है ये चंडूलिका.. इनसे पार पाना हर किसी के बस की बात नहीं. इनसे या तो बहुत ही उच्च कोटि का सिद्ध पुरुष या सिद्ध साधक ही जीत सकता है या फिर ईश्वर का कोई विशेष कृपा प्राप्त व्यक्ति.”
“ओह.. ऐसा?! ये तो इसी से पता चलता है कि ये कितनी खतरनाक है.”
“ह्म्म्म.”
“पर गुरूदेव... ये आखिर है कौन?”
बाबा मुस्कराए.. पर स्वेच्छा से नहीं... ये इस बात का संकेत था कि अब बाबा जो बोलने जा रहे हैं वो अप्रत्याशित होगा. क्षणमात्र में उनका चेहरा पहले से भी अधिक गम्भीर हो गया.
गम्भीर आवाज़ में ही बोले,
“रानी चुड़ैल!”
सुनते ही दोनों शिष्य अपने स्थान पर बैठे बैठे ही उछल पड़े.
बाबा का ये उत्तर वाकई काफ़ी अप्रत्याशित था.
दोनों को ही अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ कि उन्होंने अभी अभी जो सुना.. वो क्या सच में सुना या फिर अत्यधिक उत्तेजना व उत्सुकता में उन्हें कोई भ्रम हुआ?
लगभग एक साथ ही दोनों का मुँह खुला,
“क्या?? कौन??!!”
इधर सिक्युरिटी स्टेशन में,
“जी सर.. श्योर सर. बिल्कुल होगा. सर, मैं उसी काम में लगा हुआ हूँ.”
इसी तरह कुछ और बातें करने के बाद इंस्पेक्टर रॉय ने फ़ोन क्रेडल पर रखा.
एक लंबी साँस छोड़ते हुए कुर्सी पर बैठ गया. पास रखी ग्लास से पानी पिया. दो कागजों पर साईन किया. थोड़ा ठहर कर बेल बजाया.
बेल के बजते ही हवलदार श्याम तुरंत कमरे में आया,
“यस सर.”
“काम कैसा चल रहा है श्याम?”
“अ.. सब ठीक है सर.”
“हम्म.. अच्छा, मैं पूछ रहा था कि गाँव के केस का क्या हुआ?”
“गाँव...?”
“अरे वही मिथुन, तुपी काका इत्यादि वाला मामला... क्या हुआ उसका?”
“अम..स..सर... जाँच तो अभी चल ही रही है.”
“क्या... अभी भी...? श्याम... करीब डेढ़ महीना खत्म होने को आया और तुम कह रहे हो जाँच अभी भी चल रही है?”
श्याम ने सिर झुका लिया. वाकई लज्जित था वो.
सीरियस होते हुए रॉय ने पूछा,
“बात क्या है श्याम... जाँच अगर अभी भी चल रही है तो फिर उसका कोई प्रोग्रेस रिपोर्ट ही दे दो.”
“ज..जी सर... प्रोग्रेस तो है. व..”
“हम्म.. क्या प्रोग्रेस है बोलो?”
“सर, अभी तक के जाँच में इतना स्पष्ट हो गया है कि मिथुन की हत्या में किसी मर्द का हाथ नहीं है; मतलब, हमने जिन लोगों पर संदेह किया था, उनमें जितने भी पुरुष थे सब के सब निर्दोष प्रतीत हो रहे हैं.”
“हम्म.. तो क्या ये फाइनल है?”
“सर, फाइनल के बारे में अभी कहना थोड़ा जल्दबाजी होगा. परन्तु प्रथम दृष्ट्या तो ऐसा ही लगता है.”
“ओके.. तो इसका मतलब हुआ की महिलाओं; रुना और सीमा, ये दोनों संदेह के घेरे में अब भी हैं?”
“यस सर.”
“ओके.. तो फिर देर किस बात की. दोनों को फिर बुलाओ थाने. कड़ाई से पूछताछ करो. खुद ही सब उगल देंगी.”
“सर..”
“क्या?”
“यहीं पर एक छोटा सा प्रॉब्लम आ गया है.”
“प्रॉब्लम?!! कैसी प्रॉब्लम?”
“सर.. हमारे खबरी के अनुसार, हरिपद की बीवी सुनीता के भी लाल बाल हैं.. थोड़ा शेड लिए हुए.”
“मेहँदी?”
“जी सर.”
“तो? बालों को तो रंगा ही जा सकता है. गैर कानूनी नहीं है.”
“जी सर. गैर कानूनी नहीं है.”
“तो फिर?”
“सर, खबरी के अनुसार, वारदातों वाले स्थानों के आस पास उसे भी देखा गया है.”
“व्हाट?!!”
“जी सर.”
“त... तो क्या वो भी.....”
“सर, यहीं एक और पेंच है. सुनीता को उन स्थानों पर देखा तो गया है पर उसकी उपस्थिति के समय से वारदात के समय से ठीक मेल नहीं खा रहे हैं.”
अब इस बात ने रॉय का दिमाग और भी घूमा दिया. श्याम की ओर एकटक देखते हुए पूछा,
“आर यू श्योर?”
श्याम ने भी उतनी ही तत्परता से उत्तर दिया,
“यस सर.”
“ओह.. खबरी ने ठीक से पता किया है सब?”
“जी सर. खबरी अभी भी इसी काम में लगा हुआ है.”
“ओके. ओके... और कोई नयी बात?”
“हाँ सर. गाँव में कोई बाबा आया है. गाँव वालों ने ही बुलाया है. उन लोगों का मानना है कि गाँव में ये सब जो कुछ हो रहा है; किसी ऊपरी बला का काम है और इन सब से कोई अत्यंत सिद्ध साधक ही उन लोगों का व इस गाँव का उद्धार कर सकता है.”
रॉय धीरे से हल्का हँसा.. बोला,
“गाँव वालों की तो बात ही अलग है. क्या लगता है तुम्हें, कैसा है ये बाबा? ढोंगी? या सच में कोई चमत्कार दिखा सकता है??”
“सर, मैंने पूछा था खबरी से इस बारे में, उसके अनुसार बाबा वाकई बड़ा सिद्धहस्त ज्ञात होता है. स्वभाव भी काफी अच्छा है. सबसे बड़ी आत्मीयता से बात करते हैं. गाँव आए उनको यही कुछ पंद्रह दिन के आस पास हो गए और इतने ही दिनों में कईयों के दुःख दर्द को दूर किया है उन्होंने.”
“हम्म.. तुम्हारी बातों से लगता है तुम भी उन पर विश्वास करते हो.”
रॉय ने हँसते हुए व्यंग्य किया.
उत्तर में श्याम चुप रहा.
मुस्करा कर सिर नीचे कर लिया.
रॉय को और भी कई काम करने थे इसलिए श्याम को जाने को कहा ये निर्देश देते हुए कि जाँच के काम में तेज़ी लाए और जल्द से जल्द प्रोग्रेस की हर खबर उन तक पहुँचाए.
श्याम के जाते ही रॉय दोबारा सामने पड़ी फाइल को उठा कर देखने लगा.
दूसरी ओर,
बाबा अपने दोनों शिष्यों को समझा रहे थे..
“हाँ वत्स.. ये जो शक्ति है ये बहुत ही शक्तिशाली होती है. साफ़ शब्दों में कहा जाए तो महाशक्तिशाली होती है ये. इनसे टक्कर ले पाना या लेना आत्मघात के समान होता है. दुष्ट व काली शक्तियों की प्रधान देवियों में से एक होती है ये चंडूलिका. हर कोई इनकी साधना नहीं करता है... क्योंकि हर कोई इनकी साधना कर ही नहीं सकता. इन्हें प्रसन्न करने का मार्ग व उपाय बड़ा विषम और दुष्कर है... और यदि इन्हें प्रसन्न कर लिया गया तो समझो आधी से अधिक काली शक्तियाँ तुम्हारे इशारों पर नाचने के लिए तत्पर रहेंगी सदा. उन शक्तियों से कोई भी साधक – साधिका दुनिया की कोई भी कार्य कर और करवा सकती है. चंडूलिका सिद्ध साधक – साधिका अजेय तो नहीं पर कम से कम इतना दम ज़रूर रखते हैं की कोई भी उन्हें सरलता से नहीं हरा पाए.”
बाबा के मुँह से ऐसी बातें सुन कर गोपू और चांदू का तो जैसे मन ही मर गया.
अभी कुछ देर पहले तक दोनों यही सोच रहे थे कि अपराधी को शीघ्र से शीघ्र पकड़ कर गाँव को आंतक व विपदा से मुक्त कर लेंगे परन्तु यहाँ तो मामला ही कुछ टेढ़ी खीर वाला निकला.
दोनों शिष्यों के मनोभावों को समझने में बाबा को देर न लगी.
मुस्करा कर बोले,
“चिंता न करो वत्स.. मन छोटा न करो....”
चांदू अधीरता के कारण बीच में ही बोल पड़ा,
“चिंता कैसे न करें गुरूदेव. आपने बात ही ऐसी कह दी. एक तो ऐसे साधक और शक्ति अजेय होती हैं और ऊपर से यदि इनसे टकराते समय आपको कुछ हो गया तो?”
“हा हा हा. तुम्हारी ये चिंता अच्छी लगी चांदू और ये उचित भी है. पर लगता है अत्यधिक चिंता में तुमने मेरे अंतिम वाक्य पे गौर नहीं किया.”
चांदू असमंजस वाली दृष्टि से बाबा को देखने लगा.
बाबा ने कहा,
“वत्स, मैंने कहा की ‘चंडूलिका सिद्ध साधक – साधिका अजेय तो नहीं पर कम से कम इतना दम ज़रूर रखते हैं की कोई भी उन्हें सरलता से नहीं हरा पाए’ इसका अर्थ ये हुआ कि इन्हें हराया जा सकता है. इन्हें हराने के लिए विशेष मंत्र तंत्र की आवश्यकता होती है जो हर कोई नहीं जानता है और न ही अधिकांश लोग जानने का ही प्रयास करते हैं.”
“अर्थात् आप इन्हें हरा सकते हैं?”
“बिल्कुल.”
“अर्थात् आप इन्हें हराने का उपाय जानते हैं?”
चांदू की इस बात पर बाबा ज़ोर से हँस पड़े,
“हा हा हा हा हा हा... वत्स.. अगर नहीं जानता तो ये कहता ही क्यों की मैं इन्हें हरा सकता हूँ. हा हा हा.”
चांदू अपने इस बेवकूफी वाले प्रश्न पर स्वयं बड़ा लज्जित हुआ.
गोपू भी चांदू के इस तरह के व्यवहार पर हँसने से स्वयं को रोक न सका.
कुटिया में वातावरण इसी बहाने थोड़ा हल्का हो गया.
बाबा भी हँस-मुस्करा रहे थे... पर अंदर ही अंदर इस बात से भी चिंतित थे कि चंडूलिका शांत नहीं बैठी होगी. शौमक और अवनी के आत्माओं के संग अपने अगले शिकार की तलाश में होगी!
चंडूलिका
दो दिन बाद एक शुभ मुहूर्त देख कर बाबा ने एक विशेष अनुष्ठान का शुभारंभ किया.
करना तो वो एक विशेष प्रकार का यज्ञ चाहते थे लेकिन कुछ सोच कर उन्होंने अपने इस अनुष्ठान को एक भिन्न रूप से करने का निश्चय किया.
जप करने के लिए चांदू को साथ बिठाया और स्वयं भी कुछ जपते हुए ध्यान में लीन हो गए.
किसी भी प्रकार की विघ्न – बाधा; विशेषतः यदि वो आसुरिक, तांत्रिक, मांत्रिक या अज्ञात अदृश्य कोई आक्रमण हो तो उनसे लड़ने और उनके उद्देश्यों पर पानी फेरने के लिए बाबा ने गोपू को पहरे पर बिठा दिया.
बाबा और गोपू ने मिलकर कुटिया को चारों ओर से मंत्रों से पोषित कर दिया था और कुटिया के बाहर बिस्वास जी समेत दस और लोगों को पहरे पर लगा रखा था ताकि कोई आदमी, औरत या जानवर इत्यादि कुटिया के आस पास या बाबा से मिलने की बात कह कर अनुष्ठान में विघ्न न डाले.
और कहीं बिस्वास जी और अन्य साथियों पर कोई ऊपरी शक्ति हावी हो कर किसी प्रकार का हानि न पहुँचाए इसके लिए भी बाबा ने पर्याप्त व्यवस्था कर रखा था.
अनुष्ठान आरम्भ हुआ.
मंत्र जाप भी आरम्भ हुआ.
कुटिया के अंदर बाबा और चांदू से थोड़ी दूरी पर बैठा गोपू चौकन्ना हो गया.
कुटिया के बाहर उपस्थित बिस्वास जी और अन्य लोग भी सतर्क और सावधान हो गए.
किसी ऊपरी बला के आ कर उन लोगों को नुकसान पहुँचाए; इस बात का डर तो था उन लोगों में परन्तु बाबा की शक्तियों पर भी उन्हें अगाध विश्वास और श्रद्धा थी.
गोपू भी बहुत सतर्क था लेकिन बाहर उपस्थित लोगों के जैसे भयभीत नहीं था.
कई प्रकार की ऊपरी बाधा और शक्तियों से वो पहले भी निपट चुका था. स्वभाव से तो वीर था ही; बाबा के मार्गदर्शन में वह तंत्र - मंत्र विद्या में महारत प्राप्त कर चुका था.
बाबा के सामने पाँच फल रखे हुए थे.
पाँचों ही बिल्कुल ताज़े.
कुछ देर पहले ही पानी से अच्छे से धोया गया थे इन्हें.
जप करते करते बाबा ने ‘हुम’ कर के एक गम्भीर नाद किया.
चांदू के लिए ये एक संकेत था. उसने अपना मंत्रजाप वहीँ रोका और आँखें खोल कर पहले बाबा की ओर देखा जो अब भी आँखें बंद किए जाप किए जा रहे थे. उसने तुरंत सामने रखे फलों में से एक फल उठा लिया और तुरंत उसे चाक़ू से काटा.
फल अंदर से भी ताज़ा ही निकला.
चांदू तनिक निराश हुआ. गोपू की ओर देखा.
वो भी निराश हुआ सा लगा.
चांदू को सफ़लता मिलने का पूरा भरोसा था.. पर ऐसा हुआ नहीं.
लेकिन वो भी एकदम निराश नहीं हुआ था. बाबा पर पूरा भरोसा था उसे.
इसलिए तुरंत ही अपने आसन पर पूर्ववत् बैठ गया और मंत्रजाप शुरू कर दिया.
इधर गोपू ने भी अपने नेत्रों को मन्त्र से सिंचित कर खिड़की से बाहर की ओर देखा. कहीं कुछ पारलौकिक नज़र नहीं आया.
बिस्वास जी और अन्य लोग किसी भी प्रकार के दुर्घटना या चुनौती के लिए पूरी तरह तत्पर दिख रहे थे.
उस खिड़की से गोपू को जितने भी लोग नज़र आए; उन सबको बारी बारी से बहुत अच्छे से देखा.
किसी में भी कुछ भी संदिग्ध नज़र नहीं आया.
किसी बात का संदेह तो बारम्बार हो रहा था गोपू को किन्तु जब कहीं कोई ऐसी बात न दिखी जो उसके संदेह को बल देती तब वो स्वयं ही निश्चिन्त हो गया.
इधर बाबा का अनुष्ठान चलता रहा.
तीन से चार घंटे बीत गए.
बाबा और चांदू मंत्रों का जाप करते रहे.
बीच बीच में बाबा के ‘हुम’ करके संकेत करने पर चांदू एक एक कर के फल काटता रहा; लेकिन हरेक फल अंदर से ताज़ा ही निकला.
अंततः बाबा को भी एक निश्चित समय बाद अपना मन्त्र जाप बंद करना पड़ा.
मन्त्र जाप और अनुष्ठान तो पूरा हुआ पर जिस उद्देश्य के लिए किया गया था वो पूरा नहीं हुआ. सभी कटे फलों को बिस्वास जी और उनके अन्य साथियों के बीच बाँट दिया गया.
बिस्वास जी ने बहुत पूछा लेकिन उनको केवल इतना ही बताया गया कि अनुष्ठान पूरा हुआ और कम से कम दो - तीन दिनों के लिए कोई संकट नहीं है इस गाँव पर.
सभी को विदा करने से पहले बाबा ने कुछ आवश्यक दिशा निर्देश दिया और उन दिशा निर्देशों को पूरी सजगता के साथ पालन करने को कहा.
बाबा के दिशा निर्देशों को अपना आदेश मान कर सबने बाबा को प्रणाम किया और अपने अपने घरों की ओर प्रस्थान कर गए.
इधर बाबा अपने स्थान पर विश्राम हेतु बैठे लेकिन बहुत चिंतित दिखाई दे रहे थे.
गोपू ने आगे बढ़ कर हाथ जोड़ते हुए बाबा से कहा,
“गुरूदेव?”
“हम्म..”
“कुछ पूछने को जी चाह रहा है.. आपकी आज्ञा हो तो पूछूँ?”
“वैसे तो हमें अनुमान है कि तुम क्या पूछना चाह रहे हो वत्स.. फिर भी हम तुम्ही से सुनना चाहेंगे. पूछो.. क्या पूछना है?”
एक बार फिर बाबा को प्रणाम कर किया गोपू ने और फिर पूछा,
“गुरूदेव, क्या आज का अनुष्ठान सच में पूरा हुआ?”
“हाँ.. हुआ. और.. नहीं भी.”
“अर्थात् गुरूदेव?”
“आज के इस अनुष्ठान के दो उद्देश्य थे. एक, अपनी सिद्धियों को पोषित करना. दो, किसी को यहाँ बुलाना.”
“किसे बुलाना चाहते थे आप गुरूदेव?”
“शौमक और अवनी को.”
एक क्षण रुक कर कुछ सोचते हुए पूछा गोपू ने,
“तो.. वो.....”
उसका प्रश्न पूरा होने से पहले ही गुरूदेव ने उत्तर दे दिया,
“नहीं आए, वत्स.”
कहते हुए बाबा थोड़ा निराश दिखे. कदाचित उन्होंने इसमें सफ़लता मिलने की ही आशा की थी.
बाबा के चेहरे पर उभर आए निराशा को देख गोपू से रहा नहीं गया, पूछा,
“तो क्या इसका और कोई उपाय नहीं है गुरूदेव?”
“हम्म.. है... अवश्य है. परन्तु अभी हम वो उपाय करेंगे नहीं.”
“क्यों गुरूदेव?”
“क्योंकि इन दोनों या इनमें से किसी एक को भी बुलाना इतना सरल सहज नहीं होगा. आज के अनुष्ठान के दो उद्देश्यों में से एक उद्देश्य शौमक और अवनी या इन में से कोई एक को अपने पास बुला कर उनसे वार्तालाप करना, प्रश्नोत्तर करना था. पर ऐसा हुआ नहीं... और ऐसा न होने का केवल एक ही कारण है.”
“वो क्या गुरूदेव?”
तनिक रुक कर बाबा बोले,
“कारण ये कि कोई इनको यहाँ मेरे पास आने से रोक रहा है !”
“क्या?!”
“हाँ वत्स, कोई है ऐसा जिनके सामने इनकी एक नहीं चल रही है. वो जो कोई भी है इनसे कई गुणा अधिक शक्तिशाली है और बड़ी सरलता से मेरा इनके साथ किसी भी प्रकार का कोई भी सम्पर्क होने से रोक रहा है.”
“वो कौन है गुरूदेव?”
“अभी इसका पता नहीं चला है वत्स. पता कर सकता था यदि मैं इस बात के लिए भी तैयार रहता. परन्तु ऐसा कुछ होगा इसका तो मुझे रत्ती भर का आभास नहीं था.”
ये सुनकर गोपू को बहुत निराशा हुई. चांदू को भी.
बाबा ने और कुछ नहीं कहा क्योंकि उनके मन में भी कई विचार एक साथ उमड़ घुमड़ कर रहे थे.
कुछ समय और बीता.
अचानक चांदू को कुछ याद आया और तुरंत बाबा के पास आकर पूछा,
“गुरूदेव.. मुझे भी कुछ पूछना है.”
“पूछो वत्स.”
“गुरूदेव.. ये चंडूलिका कौन है?”
प्रश्न सुनते ही गोपू भी बाबा के सामने चांदू के पास आ कर बैठ गया.
दोनों का कौतुक देख बाबा मुस्कराए.
बोले,
“बहुत शक्तिशाली होती है ये चंडूलिका.. इनसे पार पाना हर किसी के बस की बात नहीं. इनसे या तो बहुत ही उच्च कोटि का सिद्ध पुरुष या सिद्ध साधक ही जीत सकता है या फिर ईश्वर का कोई विशेष कृपा प्राप्त व्यक्ति.”
“ओह.. ऐसा?! ये तो इसी से पता चलता है कि ये कितनी खतरनाक है.”
“ह्म्म्म.”
“पर गुरूदेव... ये आखिर है कौन?”
बाबा मुस्कराए.. पर स्वेच्छा से नहीं... ये इस बात का संकेत था कि अब बाबा जो बोलने जा रहे हैं वो अप्रत्याशित होगा. क्षणमात्र में उनका चेहरा पहले से भी अधिक गम्भीर हो गया.
गम्भीर आवाज़ में ही बोले,
“रानी चुड़ैल!”
सुनते ही दोनों शिष्य अपने स्थान पर बैठे बैठे ही उछल पड़े.
बाबा का ये उत्तर वाकई काफ़ी अप्रत्याशित था.
दोनों को ही अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ कि उन्होंने अभी अभी जो सुना.. वो क्या सच में सुना या फिर अत्यधिक उत्तेजना व उत्सुकता में उन्हें कोई भ्रम हुआ?
लगभग एक साथ ही दोनों का मुँह खुला,
“क्या?? कौन??!!”
इधर सिक्युरिटी स्टेशन में,
“जी सर.. श्योर सर. बिल्कुल होगा. सर, मैं उसी काम में लगा हुआ हूँ.”
इसी तरह कुछ और बातें करने के बाद इंस्पेक्टर रॉय ने फ़ोन क्रेडल पर रखा.
एक लंबी साँस छोड़ते हुए कुर्सी पर बैठ गया. पास रखी ग्लास से पानी पिया. दो कागजों पर साईन किया. थोड़ा ठहर कर बेल बजाया.
बेल के बजते ही हवलदार श्याम तुरंत कमरे में आया,
“यस सर.”
“काम कैसा चल रहा है श्याम?”
“अ.. सब ठीक है सर.”
“हम्म.. अच्छा, मैं पूछ रहा था कि गाँव के केस का क्या हुआ?”
“गाँव...?”
“अरे वही मिथुन, तुपी काका इत्यादि वाला मामला... क्या हुआ उसका?”
“अम..स..सर... जाँच तो अभी चल ही रही है.”
“क्या... अभी भी...? श्याम... करीब डेढ़ महीना खत्म होने को आया और तुम कह रहे हो जाँच अभी भी चल रही है?”
श्याम ने सिर झुका लिया. वाकई लज्जित था वो.
सीरियस होते हुए रॉय ने पूछा,
“बात क्या है श्याम... जाँच अगर अभी भी चल रही है तो फिर उसका कोई प्रोग्रेस रिपोर्ट ही दे दो.”
“ज..जी सर... प्रोग्रेस तो है. व..”
“हम्म.. क्या प्रोग्रेस है बोलो?”
“सर, अभी तक के जाँच में इतना स्पष्ट हो गया है कि मिथुन की हत्या में किसी मर्द का हाथ नहीं है; मतलब, हमने जिन लोगों पर संदेह किया था, उनमें जितने भी पुरुष थे सब के सब निर्दोष प्रतीत हो रहे हैं.”
“हम्म.. तो क्या ये फाइनल है?”
“सर, फाइनल के बारे में अभी कहना थोड़ा जल्दबाजी होगा. परन्तु प्रथम दृष्ट्या तो ऐसा ही लगता है.”
“ओके.. तो इसका मतलब हुआ की महिलाओं; रुना और सीमा, ये दोनों संदेह के घेरे में अब भी हैं?”
“यस सर.”
“ओके.. तो फिर देर किस बात की. दोनों को फिर बुलाओ थाने. कड़ाई से पूछताछ करो. खुद ही सब उगल देंगी.”
“सर..”
“क्या?”
“यहीं पर एक छोटा सा प्रॉब्लम आ गया है.”
“प्रॉब्लम?!! कैसी प्रॉब्लम?”
“सर.. हमारे खबरी के अनुसार, हरिपद की बीवी सुनीता के भी लाल बाल हैं.. थोड़ा शेड लिए हुए.”
“मेहँदी?”
“जी सर.”
“तो? बालों को तो रंगा ही जा सकता है. गैर कानूनी नहीं है.”
“जी सर. गैर कानूनी नहीं है.”
“तो फिर?”
“सर, खबरी के अनुसार, वारदातों वाले स्थानों के आस पास उसे भी देखा गया है.”
“व्हाट?!!”
“जी सर.”
“त... तो क्या वो भी.....”
“सर, यहीं एक और पेंच है. सुनीता को उन स्थानों पर देखा तो गया है पर उसकी उपस्थिति के समय से वारदात के समय से ठीक मेल नहीं खा रहे हैं.”
अब इस बात ने रॉय का दिमाग और भी घूमा दिया. श्याम की ओर एकटक देखते हुए पूछा,
“आर यू श्योर?”
श्याम ने भी उतनी ही तत्परता से उत्तर दिया,
“यस सर.”
“ओह.. खबरी ने ठीक से पता किया है सब?”
“जी सर. खबरी अभी भी इसी काम में लगा हुआ है.”
“ओके. ओके... और कोई नयी बात?”
“हाँ सर. गाँव में कोई बाबा आया है. गाँव वालों ने ही बुलाया है. उन लोगों का मानना है कि गाँव में ये सब जो कुछ हो रहा है; किसी ऊपरी बला का काम है और इन सब से कोई अत्यंत सिद्ध साधक ही उन लोगों का व इस गाँव का उद्धार कर सकता है.”
रॉय धीरे से हल्का हँसा.. बोला,
“गाँव वालों की तो बात ही अलग है. क्या लगता है तुम्हें, कैसा है ये बाबा? ढोंगी? या सच में कोई चमत्कार दिखा सकता है??”
“सर, मैंने पूछा था खबरी से इस बारे में, उसके अनुसार बाबा वाकई बड़ा सिद्धहस्त ज्ञात होता है. स्वभाव भी काफी अच्छा है. सबसे बड़ी आत्मीयता से बात करते हैं. गाँव आए उनको यही कुछ पंद्रह दिन के आस पास हो गए और इतने ही दिनों में कईयों के दुःख दर्द को दूर किया है उन्होंने.”
“हम्म.. तुम्हारी बातों से लगता है तुम भी उन पर विश्वास करते हो.”
रॉय ने हँसते हुए व्यंग्य किया.
उत्तर में श्याम चुप रहा.
मुस्करा कर सिर नीचे कर लिया.
रॉय को और भी कई काम करने थे इसलिए श्याम को जाने को कहा ये निर्देश देते हुए कि जाँच के काम में तेज़ी लाए और जल्द से जल्द प्रोग्रेस की हर खबर उन तक पहुँचाए.
श्याम के जाते ही रॉय दोबारा सामने पड़ी फाइल को उठा कर देखने लगा.
दूसरी ओर,
बाबा अपने दोनों शिष्यों को समझा रहे थे..
“हाँ वत्स.. ये जो शक्ति है ये बहुत ही शक्तिशाली होती है. साफ़ शब्दों में कहा जाए तो महाशक्तिशाली होती है ये. इनसे टक्कर ले पाना या लेना आत्मघात के समान होता है. दुष्ट व काली शक्तियों की प्रधान देवियों में से एक होती है ये चंडूलिका. हर कोई इनकी साधना नहीं करता है... क्योंकि हर कोई इनकी साधना कर ही नहीं सकता. इन्हें प्रसन्न करने का मार्ग व उपाय बड़ा विषम और दुष्कर है... और यदि इन्हें प्रसन्न कर लिया गया तो समझो आधी से अधिक काली शक्तियाँ तुम्हारे इशारों पर नाचने के लिए तत्पर रहेंगी सदा. उन शक्तियों से कोई भी साधक – साधिका दुनिया की कोई भी कार्य कर और करवा सकती है. चंडूलिका सिद्ध साधक – साधिका अजेय तो नहीं पर कम से कम इतना दम ज़रूर रखते हैं की कोई भी उन्हें सरलता से नहीं हरा पाए.”
बाबा के मुँह से ऐसी बातें सुन कर गोपू और चांदू का तो जैसे मन ही मर गया.
अभी कुछ देर पहले तक दोनों यही सोच रहे थे कि अपराधी को शीघ्र से शीघ्र पकड़ कर गाँव को आंतक व विपदा से मुक्त कर लेंगे परन्तु यहाँ तो मामला ही कुछ टेढ़ी खीर वाला निकला.
दोनों शिष्यों के मनोभावों को समझने में बाबा को देर न लगी.
मुस्करा कर बोले,
“चिंता न करो वत्स.. मन छोटा न करो....”
चांदू अधीरता के कारण बीच में ही बोल पड़ा,
“चिंता कैसे न करें गुरूदेव. आपने बात ही ऐसी कह दी. एक तो ऐसे साधक और शक्ति अजेय होती हैं और ऊपर से यदि इनसे टकराते समय आपको कुछ हो गया तो?”
“हा हा हा. तुम्हारी ये चिंता अच्छी लगी चांदू और ये उचित भी है. पर लगता है अत्यधिक चिंता में तुमने मेरे अंतिम वाक्य पे गौर नहीं किया.”
चांदू असमंजस वाली दृष्टि से बाबा को देखने लगा.
बाबा ने कहा,
“वत्स, मैंने कहा की ‘चंडूलिका सिद्ध साधक – साधिका अजेय तो नहीं पर कम से कम इतना दम ज़रूर रखते हैं की कोई भी उन्हें सरलता से नहीं हरा पाए’ इसका अर्थ ये हुआ कि इन्हें हराया जा सकता है. इन्हें हराने के लिए विशेष मंत्र तंत्र की आवश्यकता होती है जो हर कोई नहीं जानता है और न ही अधिकांश लोग जानने का ही प्रयास करते हैं.”
“अर्थात् आप इन्हें हरा सकते हैं?”
“बिल्कुल.”
“अर्थात् आप इन्हें हराने का उपाय जानते हैं?”
चांदू की इस बात पर बाबा ज़ोर से हँस पड़े,
“हा हा हा हा हा हा... वत्स.. अगर नहीं जानता तो ये कहता ही क्यों की मैं इन्हें हरा सकता हूँ. हा हा हा.”
चांदू अपने इस बेवकूफी वाले प्रश्न पर स्वयं बड़ा लज्जित हुआ.
गोपू भी चांदू के इस तरह के व्यवहार पर हँसने से स्वयं को रोक न सका.
कुटिया में वातावरण इसी बहाने थोड़ा हल्का हो गया.
बाबा भी हँस-मुस्करा रहे थे... पर अंदर ही अंदर इस बात से भी चिंतित थे कि चंडूलिका शांत नहीं बैठी होगी. शौमक और अवनी के आत्माओं के संग अपने अगले शिकार की तलाश में होगी!