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Adultery नदी का रहस्य
१३)

बिस्वास जी अपने कदम जल्दी चला रहे थे.

उनको जल्दी अपने घर पहुँचना था क्योंकि दोपहर को अगर एकाध घंटे की नींद न ले तो उनको बदहजमी होने लगती है... तबियत खराब होने लगता है.

अभी कुछ दूर, यही कोई आधा किलोमीटर चले होंगे कि उन्हें अचानक से एक अंजाना भय सताने लगा. लोग बाग़ तो फ़िलहाल अभी भी सड़कों पर हैं पर संख्या बहुत कम है.

और जितने भी हैं; सब के सब कहीं न कहीं जल्द से जल्द जाने की होड़ में हैं. बात भी सही है.

भला कौन इस सूरज चढ़े दोपहरी में बाहर सड़कों पर खुला घूमे.

मन ही मन खुद को इतना विलम्ब होने का कारण मानते व कोसते हुए बिस्वास जी तेज़ कदमों में और तेज़ी लाते हुए आगे बढ़ते रहे.

चलते चलते वो एक ऐसे स्थान पर पहुँचे जो सुनसान या वीरान तो नहीं है पर दिन और देर शाम को अक्सर वो स्थान मनुष्य अथवा जीव जंतुओं से रहित हो जाया करता है.

बिस्वास जी डरते हुए आगे बढ़ने लगे.

डरने का कोई विशेष कारण नहीं था और न ही इससे पहले कभी उनको डर लगा था पर न जाने क्यों आज डर के मारे उनका पूरा शरीर ऐसे काँप रहा था जैसे घनघोर आँधी में कोई सूखा पत्ता.

उनके तेज़ कदम अब धीरे हो गए.

धीरे क्या हुए... अचानक से उठाना ही बंद हो गए. बहुत कठिनाई से उनको एक एक पग आगे रखना पड़ रहा था.

चार पग ही आगे बढ़ पाए थे बिस्वास जी कि तभी उन्हें आस पास के झाड़ियों में और पेड़ों के नीचे गिरे सूखे पत्तों की चरमराहट सुनाई दी. पलट कर आवाज़ वाली दिशा की ओर देखा.

जहाँ तक दृष्टि जा सकती थी... वहाँ तक देखा... पर संदेहास्पद कुछ भी दिखाई नहीं दिया.

निश्चित हुए ज़रूर पर धड़कनें तेज़ हो गयीं. कुछ अनिष्ट होने का भय एक बार फिर से उनके मन मस्तिष्क में छाने लगा.

फिर आगे बढ़ना शुरू किया उन्होंने...

एक एक पग सावधानी और आहिस्ते से रखते हुए. बिल्कुल ऐसे जैसे की वो धरती माता को कोई कष्ट नहीं देना चाहते हैं.

ऐसे ही चलते हुए उन्होंने यही कोई १० – १२ कदम चल लिया. धड़कनें अब भी तेज़ थी. सिर के दोनों ओर से पसीना बहते हुए दोनों कान के साइड से नीचे चला गया.

पहले भी कई बार उन्होंने इस तरह का वातावरण झेला है... पर इस तरह से छक्के छुड़ा देने वाली स्थिति पहले कभी नहीं आई थी उनके सामने. दो पग और आगे बढ़ते ही उन्हें फिर वैसी ही एक सरसराने की आवाज़ सुनाई दी.

बिस्वास जी तुरंत सिर उठा कर ऊपर पेड़ों की ओर देखा.

पेड़ थे तो सही... पर बहुत अधिक संख्या में नहीं... लेकिन जितने भी थे; ऐसे वातावरण में भय में कई गुणा वृद्धि कर देने वाले थे.

कुछेक पेड़ तो ऐसे भी थे जिनकी टहनियाँ पत्तों सहित इस तरह से फैले हुए थे मानो वो सूरज की रौशनी को नीचे धरती पर आने ही नहीं देना चाहती हो. अन्य समय में ये पथिकों के लिए; यहाँ तक की कई बार बिस्वास जी के लिए भी गर्मी के दिनों में घनघोर छाया प्रदान कर वरदान साबित हुई है लेकिन आज यही ऐसे पेड़ बिस्वास जी को भयावह और प्राणघातक लग रहे हैं.

पेड़ों के झुरमुठों का निरीक्षण करते हुए आगे बढ़ते बिस्वास जी को किसी के पदचाप सुनाई दिए.

और केवल पदचाप ही नहीं; कुछ और भी सुनाई दिया उनको पर वो पूरी तरह से निश्चित नहीं थे.

अपने आसपास और ऊपर की ओर ध्यान रखते हुए बिस्वास जी आगे बढ़ने के लिए जैसे ही फिर एक पग आगे रखा तभी उन्हें फिर वही आवाज़ सुनाई दी.

अब बिस्वास जी निश्चित थे... पदचाप तो है ही... साथ ही घुँघरूओं की भी आवाज़ है!


कोई और समय होता तो शायद यही ध्वनि उन्हें अत्यंत कर्णप्रिय लगी होती... या आयु के जिस पड़ाव पर वो हैं कदाचित ऐसे ध्वनियों पर ध्यान ही नहीं देते... परन्तु आज का ये वातावरण, निर्जन पथ, अकेले वो और उस पर भी आस पास से ऐसे आवाजों का आना; निश्चित ही किसी के भी मन को भयाक्रांत करने के लिए पर्याप्त हैं.

ऐसा तीन से चार बार हुआ.

बिस्वास जी चार पग आगे बढ़ते... वही पदचाप सुनाई देती... वही घुँघरूओं की आवाज़ सुनाई देती... और साथ ही पत्तियों की चरमराहट और हवाओं में सरसराहट.

डरते हुए ही सही पर अंततः बिस्वास जी ने धीमे स्वर में बोलना प्रारंभ किया,

“मैं नहीं डरता... मेरा भगवान मेरे साथ है..... मैं नहीं डरता... मेरे गुरु मेरे साथ है.... मैं नहीं डरता... मुझे नहीं डरना....”

दो ही बार उन्होंने ऐसा कहा था कि अचानक से एक तेज़ हवा चली और साथ में धूल का एक आँधी से चला. दो मिनट में ही आँधी शांत भी हो गई.

अपनी आँखों को मलते हुए बिस्वास जी आगे अपना रास्ता देखने की कोशिश कर ही रहे कि तभी उनके कानों से एक आवाज़ आ टकराई,

“बिsssस्वाsssसssssss..!!”

बेहद ठंड अंदाज़ में ये स्वर बिस्वास के कानों से टकराई.

बिस्वास जी हड़बड़ा गए.

अपना नाम ऐसे अंदाज़ में सुनना उनको वाकई हजम नहीं हुआ और अब उनका डर अपने सभी सीमा को पार कर चुका था.

अपने गुरु अर्थात् बाबा जी का नाम लिया उन्होंने और बहुत मुश्किल से अपना एक पैर आगे बढ़ाया.

ऐसा करते ही एक बार फिर वही धूल भरी आँधी उड़ी और बिस्वास जी को कुछ भी देखना असंभव हो गया.

आँधी जब थमी तब बिस्वास जी ने बहुत धीरे से आँखें खोला.

सामने दूर दूर तक धूल ही धूल उड़ रही थी. जब धूल थोड़ी कम हुई तब बिस्वास जी ने सामने जो देखा उसे देख कर उन्हें बिल्कुल भी विश्वास नहीं हुआ. उन्होंने तुरंत अपना चश्मा उतार कर उसे अच्छे से पोंछा और फिर आँखों पर चढ़ा कर सामने की ओर बहुत ध्यान से देखा.

उनसे थोड़ी दूर पर, एक बड़े से छायादार पेड़ के नीचे एक अतिसुन्दर रमणी खड़ी थी.


अपने समय के बड़े रसिक श्रेणी के व्यक्ति रह चुके बिस्वास जी ने इतनी दूरी से भी उस नवयौवना के शारीरिक ढांचे को बखूबी देख लिया. गौर व बादामी वर्ण मिश्रित शरीर, हिरणी जैसी बड़ी बड़ी आँखें... पके पपीते समान तने हुए और पुष्ट स्तन द्वय, लम्बे अधखुले बाल जो कदाचित कमर तक आ रही थी, कोमल कंधे, हाथ और पैर.

सच में बहुत सांचे में ढला बदन था उसका...

उन्नत वक्षस्थल, पतली कमर और इन दोनों से अपेक्षाकृत थोड़ा अधिक फैला हुआ नितम्ब.... रह रह कर बिस्वास जी के मन मस्तिष्क में यौन प्रेम जगाने लगी.

बिस्वास जी का गला सूखने लगा. आयु के बहत्तरवें पड़ाव पर ऐसे एक दिन में, ऐसे समय में ऐसा कुछ देखने को मिलेगा; यह तो उन्होंने भूल से भी कभी नहीं सोचा था.


हाँ, अपने जवानी के दिनों में कई गुलछर्रे उड़ाए थे उन्होंने, बहुत मस्ती की थी. हर तरह की मस्ती. लेकिन जैसे जैसे आयु बढ़ती गई, वैसे वैसे वो स्वतः इन चीज़ों से दूर होते गए. मन में बीच बीच में कभी कोई आशा उठी भी होगी तो अपनी समझदारी, समाज और घर परिवार का दायित्व निर्वहन के चक्कर में अपनी ऐसी उत्तेजक इच्छाओं का गला घोंट देना पड़ा था उनको जिसे उन्होंने सहर्ष किया भी क्योंकि जितनी इच्छा उनको अपनी इन यौन इच्छाओं को पूरी करने की होती उससे कहीं अधिक अपने घर परिवार और समाज में अपनी बढ़ती सम्मान, प्रतिष्ठा और दायित्वों के प्रति जागरूकता का बोध रहता.

और साठ के बसंत पर पहुँचने के साथ ही ऐसी इच्छाओं के पूर्ण होने की आशा को भी त्यागना पड़ा.

लेकिन... लेकिन...

जिन इच्छाओं और अल्हड़पन को बहुत पहले ही वो छोड़ और भूल चुके थे... वो इस तरह आज उनके सामने किसी भोज पात्र के भांति सामने खड़ा है. दृष्टि हट नहीं रही, मन कहीं और जाने का नाम नहीं ले रहा, सोया, मुरझाया जननांग जो अब केवल मूत्र त्यागने का एक साधन मात्र रह गया था उसमें भी न जाने कहाँ से प्राण का संचार होने लगा.

अनुमति लिए बिना ही दिमाग किसी रणनीतिज्ञ की भांति सोचने लगा.

‘उस ओर जाना चाहिए? ... नहीं.. नहीं... नहीं जाना ही श्रेयकर होगा... परन्तु... क्या अतिशय सुन्दरता की ऐसी अनुपम मूर्ति को अनदेखा करना उचित होगा? जल से लबालब भरा और सुगन्धित फूलों से युक्त एक ऐसा नयनाभिराम सरोवर जो स्वयं आज मेरे सामने आ खड़ा हुआ है... इसमें डूबकी न सही... क्या हाथ की एक अंजुलि मात्र जल से अपने कंठ को तर कर लेने में भी पाप लगेगा? दोष है इसमें?’

स्वयं से ही ऐसे तार्किक प्रश्न करते हुए किसी अनिष्ठ की आशंका को ह्रदय के एक कोने में दबा कर मन में रह रह कर हिलोरें मारता, जन्म लेता वर्षों की लालसा को सम्भालने का अथक प्रयास करते हुए बिस्वास जी छोटे पर एक एक पग बड़ी सावधानी से रखते हुए आगे बढ़ते रहे.

अपनी ओर बढ़े आ रहे इस पुरुष को अपने मन में उठ रहे संशयों, संदेहों व नाना प्रकार के प्रश्नों से जूझता समझ कर वो सुन्दरी लाज से भरे अपने मुख पर एक मीठी सी मुस्कान बिखेर दी. पूरी तरह आश्वस्त. इस बात से कि चाहे लाख रोकना चाहे खुद को कोई पर उसके इस लावण्यमयी मृदु मुस्कान के आघात से बचना किसी के लिए भी असंभव है.

बिस्वास जी उस युवती के सौन्दर्यमन्त्र में वशीभूत हो कर उसकी ओर बढ़ते ही रहे और तभी रुके जब उस युवती के पास, बहुत पास आ गए थे.

अपलक उसके संगमरमर से पूरे बदन को देखते हुए बस किसी तरह इतना ही पूछ पाए,

“कौन हो तुम?”

“लड़की.” कहते हुए हल्के से हँस दी वो. उसकी वो क्षण भर की हँसी मानो कई सौ मन (वजन) शहद घोल दिया बिस्वास जी के कानों में.

“वो...त... तो देख ही रहा... हूँ...न.. ना..नाम क्या है?”

“लाडली.”

इस बार फिर शरमाई वो. गालों पर पलक झपकते ही लाज की लालिमा छा गई.

तभी बिस्वास जी को ऐसा कुछ दिखा जिसे स्पष्ट देख कर भी बिस्वास जी के लिए विश्वास कर पाना बहुत बहुत ही कठिन था. युवती से दो बातें करने के बाद पहली बार बिस्वास जी की आँखें युवती के शरीर के उस स्थान पर गई जो हरेक पुरुष और यहाँ तक की अन्य स्त्रियों के आकर्षण का प्राकृतिक केंद्रबिंदु होता है... वक्ष !

उसके वक्षस्थलों की ओर दृष्टि जाते ही बिस्वास जी को दुनिया का सबसे बड़े आश्चर्य का एक जबरदस्त झटका लगा. वो युवती अपने शरीर के ऊपरी भाग को केवल एक पतली साड़ी से ही ढक कर रखी थी. उसके पुष्ट, बड़े और भरे हुए स्तन पतली साड़ी के अंदर से सामने की ओर किसी भाले की तरह तने हुए थे और निप्पल तो जैसे उस भाले की नोक हों.


[Image: IMG-20200718-200750.jpg]


“आहा... सुंदर नाम है... लाडली...”

कहते हुए बिस्वास जी उस युवती के और निकट आ गए. उसके जिस्म से आती सुंदर सुगंध मानो तन मन को भिगो दे रही थी और बिस्वास जी जितना सम्भव हो सके उस सुगंध में खुद को सराबोर कर लेना चाह रहे थे.

युवती अब आँखें थोड़ा तिरछी रखते हुए बिस्वास जी की ओर देखी. बिस्वास जी की दृष्टि उस समय उसके बड़े वक्षों की ओर ही थी.... और रह रह कर उसके पतले कमर पर फिसल जाती. इसके साथ उनके मन में यौन क्रियाओं की भावना जाग जाती,

‘आहा! नाभि भी दिख रही है... कितना सुंदर और गोल है! जी चाह रहा है कि अभी इसे दबोच कर इसके कमर को सहलाऊं और फिर जी भर कर इसके इस सुंदर नाभि को चूमूँ और जीभ घुसा घुसा कर खूब अच्छे से चाटूं!’

पता नहीं अचानक से ऐसा क्या हुआ जो बिस्वास जी स्वयं को रोक नहीं सके और एकदम से हाथ बढ़ा कर उसके कमर को हल्के से सहलाते हुए अपनी मध्यमा ऊँगली उसकी नाभि में डाल दिया.

युवती एकदम से एक हल्की पर तेज़ सीत्कार ले उठी...

चेहरे के भावों से साफ़ कर दिया की उसे बिस्वास जी की इस हरकत का मज़ा ही मिला है.

मतलब, बिस्वास जी इतना में ही नहीं रुक कर अगर इससे भी आगे बढ़ना चाहें तो उसे कोई शिकायत नहीं होगी.


प्रफुल्लित मन से युवती की नाभि में ऊँगली को गोल गोल घूमा कर हल्का दबाव दे कर उसकी काम प्रतिक्रिया देखने में बिस्वास जी को बहुत आनंद आने लगा था. रह रह कर उसके पूरे कमर को सहलाते और फिर नाभि के पास आ कर उसके चारों ओर अँगुली के पोर से सहलाते हुए नाभि में अँगुली डालते और फिर वहाँ भी गोल गोल घूमाने लगते.

लाडली, अर्थात वो युवती काँपने – थरथराने लगी. खुद को खड़े रखने के लिए उसने नीचे झुकी हुई पेड़ की एक डाली को थाम लिया. धड़कने तेज़ हो गई उसकी और इसी के साथ उसके स्तन द्वय का ऊपर नीचे होने की गति भी बढ़ गई जोकि निःसंदेह सभी पुरुषों की भांति बिस्वास जी के भी दृष्टि आकर्षण का केंद्र बन गई फिर से.

लाडली के देह से निकलने वाली सुगंध ने धीरे धीरे अपने और बिस्वास जी के चारों ओर एक अदृश्य घेरा सा बना लिया था अब तक और बिस्वास जी उसी में सुध बुध खो कर इस अनुपम सुन्दरी नवयौवना के सुंदर शरीर रूपी सरोवर में अब डूबकी लगाने के लिए छटपटाने लगे थे. हिम्मत कर के अपने बूढ़े, शुष्क होंठों को लाडली के होंठों से सटा बैठे....लाडली रोकी नहीं.. पीछे नहीं हटी... वरन, अपना बायाँ हाथ बढ़ा कर बिस्वास जी के दाएँ हाथ को थाम ली और दूसरे हाथ को उनके पेट पर बहुत हल्के से रखी.

उसके होंठों के नर्म छुअन ने बिस्वास जी के अंदर के कामाग्नि के लिए घी का काम किया.

बिस्वास अब इतने निकट आ गए कि अब लाडली के स्तनों के निप्पल उनके सीने पे गड़ते हुए से प्रतीत होने लगे.

‘आह! अब और नहीं.’

ऐसा सोच कर बिस्वास जी लाडली को पकड़ कर बगल में ही एक झाड़ी के पीछे ले गए और कस कर उसका आलिंगन करके उसे बेतरतीब चूमने लगे. क्या गला, गाल, होंठ, नाक... कुछ भी बाकी नहीं छोड़ना चाहते थे बिस्वास जी. लाडली अभी भी पहले की ही तरह बिस्वास जी का दायाँ हाथ पकड़े थी और दूसरा हाथ जो कि अभी तक उनके पेट पर था; अब धीरे धीरे ऊपर उठ कर सीने पर आ गया था.

कुछ ही क्षणों बाद बिस्वास जी को अचानक से एक हुक सी लगी अपने सीने के अंदर.

ऐसा लगा मानो किसी ने एक छोटी पिन चुभो दिया हो उनके दिल में.

थोड़ा तड़पे ज़रूर, पर इस अवसर को हाथ से नहीं जाने देना चाहते थे इसलिए इसे अनदेखा करते हुए पुनः काम क्रीड़ा में रत होने का प्रयास करने लगे.

झाड़ी के पास ही एक ठूंठ से सटा कर लाडली को खड़ी कर के उसके आंचल को गिरा कर ऊपर के पूरे बदन को बेतहाशा चूमने लगे बिस्वास जी. मन ही मन एक दृढ़ संकल्प ले लिया था उन्होंने कि आज या तो वो इस कमलनयना के साथ सम्भोग करेंगे ही करेंगे या फिर घर बार छोड़ हमेशा के लिए सन्यास ले लेंगे.

यूँ तो लाडली के गदराए देह का हरेक इंच प्रेम पाने के योग्य था परन्तु दृष्टि व लालसा का केंद्र अब भी उसके उन्नत स्तन ही बने हुए थे.

उसके स्तनों के साथ जिस प्रकार से भी सम्भव हो; बिस्वास जी पूरा मन लगा कर खेलने लगे. चूमना, चाटना, दबाना, चूसना, दोनों स्तनों के मध्य अपना मुँह घुसा कर रगड़ते हुए स्तनों की रेशमी छूअन को अपने चेहरे के दोनों साइड से महसूस करना... निप्पलों को दो ऊँगलियों से निर्ममतापूर्वक दबाना, नाखूनों को हल्के से गड़ाना इत्यादि...

कुछ भी बाकी न छोड़ा उन्होंने.

कमर के नीचे धोती में तम्बू तो बहुत पहले ही बन चुका था.... पर इतने देर तक कपड़ों के अंदर रह कर खड़े रहने से उनका जननांग अब दर्द करने लगा था.

वो भी चाहने लगे कि कई साल बाद आज पहली बार इस तरह मूसल की भांति अकड़ कर खड़े अपने इस अंग को शीघ्र से शीघ्र आराम पहुँचाया जाए और आराम पहुँचाने का फिलहाल जो एकमात्र उपाय किया जा सकता है वो उनके सामने स्वयं को बिना किसी मान मनुहार के समर्पित कर चुकी इस लाडली नाम की लड़की के पास है.

अपने छाती पर रखे लाडली के हाथ को उन्होंने पकड़ कर अपने जननांग पर ले जाना चाहा पर लाडली नहीं मानी. वो अपने इस हाथ को उनके ह्रदय के पास से हटाना नहीं चाही.

बिस्वास जी को थोड़ा आश्चर्य हुआ कि इतनी देर से न जाने उन्होंने इस युवती के जिस्म के साथ क्या कुछ नहीं किया... केवल सम्भोग छोड़ कर के; पर ये पहली बार किसी चीज़ को मना की.

‘लगता है इसे शर्म आ रही है.. पगली... ही ही ही.. एकबार तेरे अंदर प्रवेश कर जाऊं... फिर देखता हूँ कैसे और क्या क्या रोकेगी.... ही ही ही... फिर तो खुद ही उछल उछल कर लेगी तू. हाहाहा....’

ऐसा सोच कर प्रसन्न होते हुए बिस्वास जी ने लाडली के बाएँ स्तन का निप्पल सहित करीब दो चौथाई हिस्सा अपने मुँह में भर लिया और फिर ‘चुक चुक’ की आवाज़ कर के चूसते हुए उसकी साड़ी को पैरों पर से उठाते हुए घुटनों के ऊपर तक ले आए. इस दौरान पूरी तल्लीनता के साथ एक ओर स्तन को चूसते रहे तो दूसरी ओर साड़ी को उठाते हुए पैरों और घुटनों के ठीक ऊपर के थोड़े से हिस्से को बड़े प्यार से सहलाते रहे.

इधर उस लाडली की आँखें बंद हो आई थीं.

अपने बाएँ हाथ को बिस्वास जी गर्दन के पीछे से ले जा कर उनको कस कर पकड़ी और दाएँ हाथ की हथेली को उनके सीने पर अच्छे से जमा दी. उत्तेजना के मारे बिस्वास जी का हालत खराब होने लगा. सांसें फूलने लगीं उनकी. सीने पर दिल वाले जगह पर फिर से हल्का हल्का दर्द होने लगा.

बिस्वास जी ने देर न करते हुए उसके स्तनों पर मुँह लगा दिया.

और सिसकारी लेते हुए चूसने लगे.

पर उनको इस बात का तनिक भी भान नहीं हुआ कि जिस युवती के साथ वो काम क्रीड़ा में लिप्त हो रहे हैं; उसी में धीरे धीरे एक परिवर्तन आने लगा है. जिस हाथ को वो बिस्वास जी के सीने पर रखी थी उसके नाखून अचानक से बढ़ने लगे.

बढ़ते बढ़ते एक बड़े आकार के सुई की लम्बाई जितनी लंबी हो गए नाखून अब बहुत आहिस्ते से बिस्वास जी के सीने में गड़ने लगे.

पीड़ा कुछ अधिक होती पा कर बिस्वास जी मुलायम स्तन पर से मुँह हटा कर के सीने की ओर देखना चाहा पर लाडली ने तुरंत ही उनका सिर पकड़ कर दोबारा अपने स्तन पर रख दी.

बिस्वास जी इसे लाडली का उनके लिए प्यार और तड़प समझ कर मन ही मन गदगद होते हुए पूरे मनोयोग से उसके तड़प को शांत करना अपना कर्तव्य समझ कर बड़े प्यार से स्तनपान करने लगे.

लेकिन कुछ ही देर बाद उनके हृदय में एक ऐसा भयानक दर्द शुरू हुआ कि उन्हें अपने सीने पर दोनों हाथों से दबाव बनाते हुए वहीँ गिर जाना पड़ा. इस भयानक पीड़ा से तड़पते हुए ही उनका ध्यान गया लाडली की बढ़े हुए नाखूनों पर जिनके सिरों पर खून लगे हुए थे.

होंठों पर एक ऐसी मुस्कान लिए जिससे ये लगे कि उसे अपनी सफ़लता पर गर्व और बिस्वास जी के बेवकूफी पर बड़ा तरस और हँसी आ रही है; वह अपनी जीभ निकाल कर नाखूनों पर लगे खून को चाटने लगी.

बिस्वास जी ने गौर किया कि वो पसीने से ऊपर से नीचे तक भीग चुके थे.... पीड़ा बढ़ते ही जा रही थी.

और तभी बिस्वास जी की दृष्टि एकबार फिर लाडली की ओर गई जो खून चाटने में व्यस्त थी... और जो देखा उससे उनके आँखों के आगे अत्यधिक डर के मारे अँधेरा छाने लगा.

लाडली बड़े आराम से सभी नाखूनों को अच्छे से चाटने के बाद धीरे धीरे बड़े प्यार से मटकते हुए बेहोश प्राय हो चुके बिस्वास जी की ओर बढ़ने लगी.

परन्तु ज्यादा आगे न बढ़ पाई.

एक छोटी सी गेंद जैसी कोई चीज़ कहीं से उछल कर आई और सीधे उसके और बिस्वास जी के बीच आ कर रुक गई. अपने स्थान पर खड़ी लाडली हतप्रभ हो उस चीज़ को देख कर समझने का प्रयत्न करने लगी कि ये आखिर है क्या?

लाडली आगे की ओर झुक कर जैसे ही उस चीज़ को हाथ में लेना चाही तभी वह गोल सी चीज़ ‘भप्प’ की एक धीमी ध्वनि से फट पड़ी.

इसी के साथ उसमें से एक हरा रंग का धुआँ निकल कर चारों ओर बड़ी तेज़ी से फैलने लगा और लाडली के कुछ समझ पाने के पहले ही बेहोश बिस्वास जी को ऐसे घेर लिया मानो उनकी रक्षा कर रही हो!

उस धुएँ को देख कर कुछ पल के लिए लाडली डर गई. पर जल्द ही खुद को सम्भालते हुए उठ खड़ी हुई और अपने चारों ओर देखने लगी. दो पल बाद ही उसे सामने से एक तेजस्वी युवक आता दिखाई दिया.

लाडली गुस्से से पूछी,

“कौन हो तुम?”

“एक महान गुरु का शिष्य और इस समय इनका (बिस्वास जी की ओर ऊँगली से संकेत करते हुए) रक्षक... नाम, गोपू.”

“क्यों आए हो यहाँ?”

“अभी अभी तो कहा, इनकी रक्षा करने हेतु.”

“भाग जा.... नहीं तो बेमौत मारा जाएगा.”

लाडली की आँखें गुस्से से लाल हो चुकी थीं. लग रहा था मानो अभी ही गोपू को चीर फाड़ देगी.

गोपू हँस पड़ा,

बोला,

“नहीं... भागने के लिए नहीं आया हूँ. पर तुझ महा पापिन को एक अवसर अवश्य दूँगा... भाग जाने के लिए.”

यह सुनकर तो लाडली के क्रोध का कोई पार ही नहीं रहा.

पूर्णतः लाल हो आई आँखों से गोपू को कुछ क्षण देखती रही.

गोपू राह का रोड़ा था, ये तो स्पष्ट था!

और उसके दिलेरी से लाडली को ये स्पष्ट हो गया था कि उसके रहते बिस्वास जी को मारना तो क्या; एक मामूली खरोंच तक दे पाना सम्भव नहीं है.

इतनी ही देर में गोपू ने भी लाडली के भाव भंगिमाओं का अवलोकन – विश्लेषण कर लिया था. कम से कम इतना तो समझ ही गया था कि यह कोई साधारण युवती नहीं है.

"चला जा! जा यहाँ से" लाडली ने फिर हुंकार भरी.

“नहीं.” गोपू ने कहा.

"नहीं समझा मेरी बात?"


"समझ गया, तभी तो बोला, नहीं जाऊँगा."


" बहुत सुन ली मैंने, व्यर्थ के तर्क न कर और इस आदमी को मेरे लिए छोड़ कर चला जा." वो बोली

"और मैंने भी तेरा बहुत सम्मान करते हुए चेतावनी दे चुका.” गोपू ने पलट कर जवाब दिया.

"प्राण से जाएगा" वो बोली.

"देखा जाएगा."

"देख युवक, मान जा मेरी बात, ये आदमी तुझसे सम्बंधित नहीं है."

"इसका कोई अहित न हो; मेरे गुरु का ऐसा आदेश है और उनका आदेश ही मेरे लिए सर्वोपरि है."

“यानि गुरु के लिए मरना स्वीकार है तुझे?”

“हाँ.”

गोपू को टस से मस न होते देख लाडली ने उसपर एक के बाद एक कई ख़तरनाक तंत्र वाले हमला किया. गोपू ने जल्दी से पहले अपने गुरुमंत्र से स्वयं को और बिस्वास जी को पोषित किया और प्राण रक्षा मन्त्र से दोनों की ही प्राणों की रक्षा करते हुए लाडली के सभी हमलों का मुँह तोड़ जवाब दिया. कोई और समय होता या गोपू यदि अकेला होता तो लाडली से और भी अच्छे से लड़ता पर इस समय उसके लिए सबसे महत्वपूर्ण था बिस्वास जी की रक्षा करना.

अतः गोपू ने और विलम्ब न करते हुए व्योम-विनाशिनी का आह्वान किया.

आह्वान मंत्र सुनते ही लाडली का चेहरा तो जैसे एकदम सफ़ेद हो गया और क्षण भर में ही वहाँ से लोप हो गई!

गोपू ने जल्दी से बिस्वास जी को सहारा दे कर उठाया और वैसे ही कुछ दूर तक ले गया. फिर एक रिक्शा पकड़ कर बिस्वास जी को उनके घर तक छोड़ आया.


कुटिया में पहुँच कर थोड़ी देर के विश्राम के पश्चात बाबा जी के सामने उपस्थित हो कर सब बातें कह सुनाया.

सब कुछ धैर्यपूर्वक सुनने के बाद बाबा गंभीर रूप से ही मुस्कराते हुए कहा,

“जो और जितना सोचा था पूरा मामला उससे भी कहीं अधिक खतरनाक है. अच्छा हुआ जो तुमने काफ़ी बुद्धिमानी से उसके हरेक प्रहार का उत्तर दिया और सबसे बढ़िया ये हुआ कि वह तुम्हारे व्योम – विनाशिनी के आह्वान मात्र से ही भाग गई.”

“यही तो आश्चर्य की बात है गुरूदेव... अगर वो कोई साधिका या तांत्रिका थी तो और मुकाबला क्यों नहीं की?”

बाबा जी प्रश्न सुनकर हँस पड़े.

बोले,

“वो कोई साधिका – तांत्रिका नहीं थी और सबसे बड़ी बात तो यह कि वो तो मनुष्य तक नहीं थी!”

“क्या?!!”

दोनों ही शिष्य बहुत बुरी तरह चौंक उठे. अपने कानों पर उन्हें ज़रा भी विश्वास नहीं हुआ.

बाबा बोले,

“कल किसी को भेज कर बिस्वास को बुलवा भेजना. कल उसी के सामने कई और रहस्योद्घाटन करूँगा.... और अब की बार सब कुछ ठीक कर दूँगा.”

“जी गुरु जी.”

दोनों शिष्य हामी भर कर बेसब्री से आने वाले कल की प्रतीक्षा करने लगे.

प्रतीक्षा तो अब बाबा जी तो भी थी.
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Messages In This Thread
नदी का रहस्य - by Dark Soul - 07-06-2020, 10:09 PM
RE: नदी का रहस्य - by sarit11 - 08-06-2020, 12:02 PM
RE: नदी का रहस्य - by Nitin_ - 09-06-2020, 10:51 PM
RE: नदी का रहस्य - by Abstar - 10-06-2020, 12:10 AM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 16-06-2020, 03:34 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 17-06-2020, 10:53 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 21-06-2020, 12:57 AM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 25-06-2020, 03:20 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 26-06-2020, 03:18 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 26-06-2020, 10:42 PM
RE: नदी का रहस्य - by Nitin_ - 27-06-2020, 03:58 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 27-06-2020, 11:51 PM
RE: नदी का रहस्य - by Nitin_ - 04-07-2020, 10:16 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 04-07-2020, 10:33 PM
RE: नदी का रहस्य - by kill_l - 06-07-2020, 01:50 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 11-07-2020, 08:57 AM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 11-07-2020, 08:57 AM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 14-07-2020, 01:01 AM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 14-07-2020, 11:34 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 15-07-2020, 11:41 AM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 15-07-2020, 11:41 AM
RE: नदी का रहस्य - by Bregs - 18-07-2020, 07:03 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 21-07-2020, 08:57 AM
RE: नदी का रहस्य - by Bregs - 21-07-2020, 08:41 PM
RE: नदी का रहस्य - by Bicky96 - 25-07-2020, 10:55 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 26-07-2020, 10:04 AM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 26-07-2020, 11:13 PM
RE: नदी का रहस्य - by kill_l - 31-07-2020, 01:32 PM
RE: नदी का रहस्य - by Bicky96 - 31-07-2020, 07:08 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 31-07-2020, 08:25 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 31-07-2020, 08:26 PM
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RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 01-08-2020, 09:15 AM
RE: नदी का रहस्य - by Bicky96 - 07-08-2020, 02:22 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 07-08-2020, 08:15 PM
RE: नदी का रहस्य - by kill_l - 10-08-2020, 01:58 PM
RE: नदी का रहस्य - by Bicky96 - 10-08-2020, 06:48 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 22-08-2020, 11:43 PM
RE: नदी का रहस्य - by Dark Soul - 19-09-2020, 10:19 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 21-09-2020, 01:14 AM
RE: नदी का रहस्य - by kill_l - 24-09-2020, 01:43 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 01-10-2020, 08:49 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 03-10-2020, 07:22 AM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 14-10-2020, 10:51 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 16-10-2020, 08:44 AM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 17-10-2020, 11:54 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 19-10-2020, 01:47 AM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 20-10-2020, 11:41 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 28-10-2020, 01:29 AM
RE: नदी का रहस्य - by kill_l - 27-10-2020, 01:44 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 31-10-2020, 09:00 AM
RE: नदी का रहस्य - by sri7869 - 09-05-2024, 05:24 AM



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