Thread Rating:
  • 6 Vote(s) - 2.33 Average
  • 1
  • 2
  • 3
  • 4
  • 5
Adultery नदी का रहस्य
१२)

दस दिन बीत गए.

इसी बीच एक और लड़के की मृत्यु हुई.

गाँव में कुछ लोगों को अब सीमा और रुना पर संदेह तो होने लगा था पर उस संदेह को बल देने योग्य पर्याप्त कारण नहीं था उनके पास.

पंद्रहवें दिन खबर लगी की बगल के गाँव में एक सिद्ध बाबा आए हुए हैं और इस गाँव के कुछ लोग उन्हें लाने गए हैं. सिद्ध बाबा के दर्शन के लिए गाँव के भोले और सीधे लोगों में एक उत्तेजना, एक उद्वेग, एक उल्लास घर कर गया और सब के सब जल्द से जल्द बाबा के अपने गाँव में पाने की इच्छा करने लगे.

यहाँ तक की रुना ने भी उस बाबा के खाने के लिए तीन – चार स्वादिष्ट पकवान बनाए और अपने पति, बेटे और अपना भविष्य जानने पूछने के लिए मन ही मन भिन्न भिन्न प्रश्न सजाने बुनने लगी.

ऐसा ही कुछ सीमा भी करने लगी थी.

उसने भी कुछेक पकवान बनाए और बाबा से पूछने के लिए कुछ प्रश्न तैयार कर ली थी.

गाँव में हर जगह, हर कोने में सिर्फ़ उस बाबा के ही चर्चे थे.

बाबा ये हैं, बाबा ऐसे हैं, बाबा वैसे हैं.... बाबा ऐसा कर सकते हैं, बाबा वैसा कर सकते हैं... इत्यादि इत्यादि.

आखिरकार वो दिन भी आ गया. सब नदी के तट पर जा कर खड़े हो गए. थोड़ी देर की प्रतीक्षा के बाद जैसे ही बाबा का नाव दूर से आता दिखा; सब अति प्रसन्नता से बाबा का जयकारा लगाने लगे.

बाबा ने जैसे ही नाव से उतर कर नदी तट पर अपने कदम रखे, गाँव वालों में धक्कामुक्की शुरू हो गई उनका चरण छूने के लिए. हर कोई बाबा के चरण छू कर अपना भाग्य बदलना चाहता था. गाँव वालों की ख़ुशी देखते ही बनती थी. उन्हें इस तरह इतना प्रसन्न और अपने प्रति इतना स्नेह, प्रेम और भक्ति देख कर बाबा गदगद हो गए. उनके तेजयुक्त मुखमंडल पर भी प्रसन्नता नाचने लगी. पर उनकी आँखों और भृकुटियों के उतार चढ़ाव कुछ और ही कहानी कह रही थी.

उनके साथ उनके दो चेले भी चल रहे थे. दोनों बाबा के अगल बगल थे.

बाबा अपनी चाल थोड़ा धीरे करते हुए अपने दाएँ चल रहे चेले के कान में कुछ कहा.

चेला बहुत गम्भीरतापूर्वक सारी बात सुना और सिर हिला कर आज्ञा माना.

सभी गाँव वाले पूरी श्रद्धा से उन्हें एक बहुत ही साफ़ सुथरे और सुगंधी लगे पालकी में बैठा कर गाँव से थोड़ा हट कर एक सुनसान जगह में उनके लिए बनी एक कुटिया में ले गए.

इधर वह चेला, जिसका नाम गोपू था, वो बिस्वास जी को एक किनारे ले गया और पूछने लगा,

“बिस्वास जी, आपने जिस कारण गुरूजी जो यहाँ बुलाया है क्या वो एकबार फ़िर से दोहराएँगे? .... विस्तार से.”

बिस्वास जी तनिक चकित को कर पूछे,

“क्यों श्रीमन, गुरूजी को कोई असुविधा हो गई है क्या? यदि किसी भी प्रकार की असुविधा हुई है तो मैं पूरे गाँव वालों की ओर से उनसे एवं आपसे क्षमा माँगता हूँ.”

कहते हुए बिस्वास जी रुआंसा होते हुए हाथ जोड़ लिए.

चेले को दया आई. उसने तुरंत बिस्वास जी के हाथों को पकड़ कर नीचे करता हुआ बोला,

“अरे बिस्वास जी... ये आप क्या कर रहे हैं? ऐसी कोई बात नहीं है. हमें किसी भी तरह की कोई असुविधा नहीं हुई है. बल्कि मैं, चांदू और गुरूजी .... सब के सब आप लोगों के स्नेह और विश्वास को देख कर आश्चर्य और प्रसन्नता से भरे जा रहे हैं. पर मैं जो पूछ रहा हूँ आपसे उसका सीधा कारण आप ही लोगों की परेशानी से जुड़ा हुआ है. अतः बिना विलम्ब किए कृप्या सब कुछ दोबारा मुझे कह सुनाइए.”

“सीधा....कारण....ह..हम..लोगों....से ज...जुड़ा.... क्यों.... आप को... ल... लग..लगता है एस... ऐसा...?”

“गुरूजी को लगता हैं.”

गोपू ने सीधा सपाट और संक्षिप्त उत्तर दिया.

स्पष्ट था कि वह शीघ्र से शीघ्र बिस्वास जी से अपना वाँछित उत्तर पाने की अपेक्षा कर रहा था.

बिस्वास जी ने थूक गटका... चेहरा पोछा, चश्मा ठीक किया और फ़िर बोले,

“दरअसल ये कहानी आज से कई वर्ष पहले की है.. इसी गाँव की........”

कहते हुए बिस्वास जी ने वही कहानी सुना दी जो कुछ महीने पहले मीना ने रुना को सुनाई थी.

गोपू सब कुछ पूरे धैर्य से सुनता रहा.

चेहरा पढ़ने वाला कोई पारखी आदमी आसानी से बता सकता था कि इस समय कहानी सुनते हुए गोपू बहुत कुछ सोच रहा था, विश्लेषण कर रहा था और शायद कोई तोड़ ढूँढने की कोशिश कर रहा था.

पूरी घटना सुनाने के बाद बिस्वास जी थोड़ा रुक कर पूछे,

“श्रीमन, कोई विशेष बात है क्या? आपने दोबारा पूरा विवरण क्यों जानना चाहा? गुरूजी ने आपको ऐसा करने को क्यों कहा?”

गोपू से तुरंत कुछ बोला नहीं गया.

परन्तु उसका चेहरा देख कर ये स्पष्ट समझा जा सकता था कि उसका मन शांत नहीं है. बिस्वास जी से सब कुछ सुन तो लिया पर शायद कहीं कुछ जमता हुआ सा नहीं लगा रहा था उसे....या फ़िर शायद कोई ऐसी बात थी जो उसे पल भर में ही विचलित कर दिया था.

उसने बिस्वास जी को इशारा कर के पास में ही एक पेड़ के नीचे चलने को कहा.

दोनों अभी जा कर वहाँ खड़े ही हुए थे कि बिस्वास जी को कुछ सूझा और गोपू को वहाँ बैठने को बोल कर बगल के एक दुकान में चले गए.

थोड़ी ही देर में चाय लेकर उपस्थित हुए.

एक गोपू को दिया; पूरे श्रद्धा भाव से और दूसरा स्वयं लिया.

चाय पीते हुए पूछ बैठे,

“श्रीमन, कृप्या बताइए की आप वास्तव में क्या जानना चाहते हैं? क्या उलझन है? क्या गुरूजी ने किसी संकट की ओर संकेत किया है? क्या समस्या बहुत भयावह है?”

गोपू शांत रहा.

चाय खत्म कर कुल्हड़ एक ओर रखते हुए कहा,

“समस्या है तो सही... क्या है ये तो आपको और पूरे गाँव वालों को पता है... पर...”

“पर क्या श्रीमन?”

अधीर होते हुए कहा बिस्वास जी ने.

“गुरूजी को लगता है की इस पूरे समस्या का मूल कहीं और छुपा हुआ है.”

“मूल?”

“हम्म.”

“गुरूजी ने ऐसा कहा?”

“हाँ... गुरूजी ने ऐसा ही कहा है और पूरे विश्वास के साथ उनका यही मानना भी है.”

“तो क्या समस्या वो नहीं है जो इतने दिनों से हम सोचते और समझते आ रहे थे?”

“नहीं... समस्या तो है वही जो आप समझ रहे हैं... यहाँ ध्यान दीजिए की मैंने आपको क्या कहा है?”

“क्या कहा है?”

“यही की समस्या का मूल कहीं और है.”

“ओह हाँ... तो क्या.... म.. मतलब... समस्या का... स.. स...समाधान होगा न?”

“हाँ होगा... अवश्य होगा..”

गोपू ने पूरे विश्वास के साथ कहते हुए अपने जांघ पर एक थपकी दी.

उसका ऐसा विश्वास देख कर बिस्वास जी के मन को भी बल मिला.

कुछ देर वहीँ बैठ यहाँ वहाँ की बातें करने के बाद दोनों उठ खड़े हुए और उस कुटिया की ओर चल पड़े जहाँ बाबा ठहरे हुए हैं और अभी भी गाँव वालों का तांता लगा हुआ है.

धीरे धीरे ही सही पर अंत में सभी गाँव वाले अपने अपने घरों को लौट गए.

बिस्वास जी के अलावा वहाँ अन्य किसी को बैठने नहीं दिया गया.

अब उस कुटिया में चार लोग थे.

स्वयं बाबा जी, उनके दो चेले / शिष्य; गोपू और चांदू, और बिस्वास जी.

दोपहर के दो बजे रहे थे.

गाँव वालों के ही लाए गए पकवानों में से कुछ बिस्वास जी को खाने को दे कर बाबा जी स्वयं थोड़ा भोग खाने लगे.

उनका खत्म होते ही उन्होंने शिष्यों को तुरंत खा लेने को कहा जिसका उन दोनों ने अक्षरशः पालन किया और खाने बैठ गए. अब तक बिस्वास जी ने भी खाना समाप्त कर लिया था.

हाथ मुँह धो कर वापस आ कर बाबा अपने आसन पर बैठ गए.

बिस्वास जी भी उनके आगे हाथ जोड़ कर बैठ गए.

“वत्स...”

मधुर वाणी में बिस्वास जी को सम्बोधित किया बाबा ने.

“ज...जी... गुरूजी.”

“गोपू ने तुमसे कुछ पूछा होगा?”

“जी गुरूजी. नदी के बारे.....”

बाबा ने हाथ उठा कर बिस्वास जी को रुकने का संकेत किया. बिस्वास जी तुरंत चुप हो गए.

“हम जानते हैं गोपू ने तुमसे क्या पूछा होगा. हमने ही उसे ऐसा करने को कहा था.”

“ओह... जी गुरूजी.. समझा.”

बाबा एकाएक शांत हो गए. जो प्रसन्नचित्त चेहरा अब तक दमक रहा था वो अचानक से बेहद गम्भीर हो गया. बड़े शुष्क स्वर में बोले,

“वत्स बिस्वास.. जिस समस्या के समाधान हेतु मैं यहाँ आया हूँ; वो तो मैं कर के ही जाऊँगा. परन्तु मेरे विचार से एक बात पहले से ही तुम लोगों को... विशेष कर तुम्हें बता देना मैं उचित समझता हूँ. देखो वत्स, ऐसे मामलों में... मेरा मतलब ऐसे नदी, तालाब या पोखर जैसे मामलों में; मामला उतना पेचीदा नहीं होता जितना की दिखता है अपितु इससे कहीं अधिक जटिल होता है.

क्योंकि जहाँ भी पानी की अधिकता या प्रचुरता होती है; जैसे की नदी, तालाब या पोखर जैसे जगह; वहाँ का वातावरण और उस वातावरण में पाए जाने वाले अन्य वस्तुओं में उपस्थित कुछ ऐसे तत्व होते हैं जिनसे नकारात्मक शक्तियों को बहुत बल मिलता है. ऐसे जगहों के तापमान में सदैव ही एक भारीपन रहता है जिसे साधारण जन झेल नहीं पाते क्योंकि इस तरह के भारीपन को वो झेलने योग्य नहीं बने होते.

अब जैसा की तुम्हें गोपू से पता चल ही गया होगा कि वास्तविक समस्या ये नहीं है वरन, समस्या का मूल तो कहीं और ही है. अब ये मूल क्या है और कहाँ का है, क्यों है इत्यादि बातों का तो मुझे स्वयम ही पता लगाना पड़ेगा.

मैं जानता हूँ कि तुम्हारे मन में बार बार यही एक प्रश्न उठ रहा है की आखिर मैं समस्या के किस मूल की बात कर रहा हूँ. यह तो अभी के लिए मेरे लिए भी एक पहेली है. लेकिन एक सच बताता हूँ. इसे अपने तक ही रखना; गाँव वालों को बताया तो वे लोग बहुत डर जाएँगे.... जब तुम लोग नाव से मुझे और मेरे शिष्यों को बैठा कर ला रहे थे तब तुम्हारे गाँव से कुछ दूर रहते समय ही मैंने जाग्रत सिद्धि मन्त्र पढ़ कर स्वयं की ही आँखों पर फूँक मारी और दक्षिण दिशा की ओर देखा.

उस ओर देखते ही मैंने देखा कि एक सिर पानी से थोड़ा ऊपर उठा हुआ है. मतलब केवल आँखों तक का हिस्सा ही पानी से ऊपर उठा हुआ है. उसकी आँखों में एक अजीब सी बात थी. कुछ कह रही थी उसकी आँखें.... शायद शिकायत कर रही हो... या शायद गुस्सा कर रही या फिर शायद गाँव जाने से मना कर रही हो. ऐसा लग रहा था मानो उसे मेरे यहाँ आने का उद्देश्य का पहले से ही ज्ञात हो गया हो.

इतना तो निश्चित है कि वो सिर किसी युवक का था और यदि अनुमान के बल पर कहा जाए तो कदाचित उसी युवक का होगा जो आज से कई, कई वर्ष पहले उसी नदी के दक्षिण दिशा में डूब कर अपना प्राण गँवा बैठा था.

कई प्रचलित मान्यताओं, कथाओं, लोक कथाओं, दंतकथाओं इत्यादि में दक्षिण दिशा को वर्षों से यमलोक का द्वार कहा व माना जाता है... और उस नवयुवक की मृत्यु भी वहीँ हुई है... अप्राकृतिक मृत्यु ! स्वाभाविक रूप से उस दिवंगत आत्मा में रोष व प्रतिशोध की भावना कहीं अधिक होगी और ये भी एक अच्छा कारण हो सकता है उस आत्मा का शक्तिवान होने का.

परन्तु.....”

बोलते हुए चुप हुए बाबा और उनके चुप होते ही उत्सुकता के मारे बिस्वास जी बोल पड़े,

“परन्तु क्या गुरूजी?”

“परन्तु उस युवक की आँखों को देख कर मैं उन्हें उस कम समय में जितना पढ़ पाया उसके अनुसार उस आत्मा में इतनी शक्ति होना कोई बच्चों का खेल नहीं. और तो और, इतनी शक्ति उसकी स्वयं की भी नहीं है. ये शक्ति उसे कहीं और से मिल रही है.”

बाबा के इस कथन से अब तक भोग समाप्त कर हाथ मुँह धो कर उनके पास बैठे गोपू और चांदू भी आश्चर्य के सागर में गोते लगाने से खुद को नहीं रोक सके.

बिस्वास जी का मुँह भी खुला का खुला रह गया.

उन तीनों ने लगभग एक साथ ही पूछा,

“अर्थात्??!!”

“अर्थात्... मम्म... कदाचित वो लड़की... जो... उस वन में मृत पाई गई थी.. वही इस लड़के को शक्ति दे रही है... और आवश्यकता होने पर लड़के की आत्मा भी उस लड़की की आत्मा को शक्ति प्रदान करती है. अगर ऐसा है तो भी......”

बाबा फ़िर चुप हो गए.

उनके मुखमंडल पर उभर आए चिंता की रेखाएँ ये चुगलियाँ करने लगी थीं कि बाबा ने अब तक जो कुछ भी कहा है उस लड़के और लड़की की आत्मा और उनकी शक्ति के बारे में; अगर वो सब सच भी हों तो भी कहीं कुछ ऐसा है जो इस पूरे परिदृश्य में फिट नहीं बैठ रहा. कुछ ऐसा है जो सामने हो कर भी नहीं दिख रहा... कहीं कुछ छूट रहा है.

काफ़ी देर तक कोई किसी से कुछ नहीं बोला.

अंत में बाबा ने ही वहाँ छाई शान्ति को भंग करते हुए बिस्वास जी से समय पूछा. बिस्वास जी ने समय बताया.

तीन बज चुके थे.

बाबा खिड़की से बाहर देखा और बिस्वास जी को घर जाने को कहा.

बिस्वास जी भी चुपचाप मान गए और बाबा को प्रणाम कर के वहाँ से चले गए.

दोनों शिष्यों ने देखा, बाबा को चैन नहीं है. बड़े गहन सोच में डूबे हुए हैं. अपने में ही कोई जोड़ - तोड़ कर रहे हैं.

अभी शायद आधा घंटा ही बीता था कि अचानक बाबा की भृकुटियाँ तन गयीं. दायाँ हाथ काँप उठा. ये दो लक्षण बाबा को ठीक नहीं लगे. उन्होंने चांदू को जल्दी से उनकी पोटली लाने को कहा.

पोटली हाथ में आते ही बाबा ने जल्दी से पोटली के अंदर से एक निम्बू निकाला और मन्त्र पढ़ते हुए उसे अपने सामने थोड़ी दूरी बना कर रख दिया. केवल क्षण भर उस स्थान पर रहने के फौरन बाद वो निम्बू वहाँ से लुढ़क कर उस स्थान पर चला गया जहाँ कुछ देर पहले बिस्वास जी बैठे हुए थे.

उस स्थान पर जा कर निम्बू रुक गया और बहुत तेज़ी से अपने स्थान पर घूम गया. और फ़िर, धीरे धीरे लाल होते हुए उसका रंग काला पड़ने लगा.

ये देखते ही बाबा की त्योरियां चढ़ गयी. गोपू की ओर देखा और कहा,

“गोपू... अतिशीघ्र बिस्वास के पास जाओ. जाओ.”

इतना कह कर बाबा ने एक संकेत करते हुए उसे एक और निम्बू दिया. गोपू बाबा का आशय समझ गया. तुरंत अपने स्थान से उठा, अपना एक पोटली उठाया और लपकते हुए कुटिया से बाहर निकल गया.

इधर बाबा ने चांदू को अपने पास बिठा कर उसे कुछ जाप करने को कहा और स्वयं भी जाप करने लगे.


[Image: sketch1596699852056.jpg]


इधर ज़मीन पर पड़ा वो पहला वाला निम्बू धीरे धीरे काला होता जा रहा था....

…..प्रतिपल.
[+] 4 users Like Dark Soul's post
Like Reply


Messages In This Thread
नदी का रहस्य - by Dark Soul - 07-06-2020, 10:09 PM
RE: नदी का रहस्य - by sarit11 - 08-06-2020, 12:02 PM
RE: नदी का रहस्य - by Nitin_ - 09-06-2020, 10:51 PM
RE: नदी का रहस्य - by Abstar - 10-06-2020, 12:10 AM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 16-06-2020, 03:34 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 17-06-2020, 10:53 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 21-06-2020, 12:57 AM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 25-06-2020, 03:20 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 26-06-2020, 03:18 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 26-06-2020, 10:42 PM
RE: नदी का रहस्य - by Nitin_ - 27-06-2020, 03:58 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 27-06-2020, 11:51 PM
RE: नदी का रहस्य - by Nitin_ - 04-07-2020, 10:16 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 04-07-2020, 10:33 PM
RE: नदी का रहस्य - by kill_l - 06-07-2020, 01:50 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 11-07-2020, 08:57 AM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 11-07-2020, 08:57 AM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 14-07-2020, 01:01 AM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 14-07-2020, 11:34 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 15-07-2020, 11:41 AM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 15-07-2020, 11:41 AM
RE: नदी का रहस्य - by Bregs - 18-07-2020, 07:03 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 21-07-2020, 08:57 AM
RE: नदी का रहस्य - by Bregs - 21-07-2020, 08:41 PM
RE: नदी का रहस्य - by Bicky96 - 25-07-2020, 10:55 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 26-07-2020, 10:04 AM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 26-07-2020, 11:13 PM
RE: नदी का रहस्य - by kill_l - 31-07-2020, 01:32 PM
RE: नदी का रहस्य - by Bicky96 - 31-07-2020, 07:08 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 31-07-2020, 08:25 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 31-07-2020, 08:26 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 31-07-2020, 08:26 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 01-08-2020, 09:15 AM
RE: नदी का रहस्य - by Bicky96 - 07-08-2020, 02:22 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 07-08-2020, 08:15 PM
RE: नदी का रहस्य - by Dark Soul - 10-08-2020, 11:52 AM
RE: नदी का रहस्य - by kill_l - 10-08-2020, 01:58 PM
RE: नदी का रहस्य - by Bicky96 - 10-08-2020, 06:48 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 22-08-2020, 11:43 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 21-09-2020, 01:14 AM
RE: नदी का रहस्य - by kill_l - 24-09-2020, 01:43 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 01-10-2020, 08:49 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 03-10-2020, 07:22 AM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 14-10-2020, 10:51 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 16-10-2020, 08:44 AM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 17-10-2020, 11:54 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 19-10-2020, 01:47 AM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 20-10-2020, 11:41 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 28-10-2020, 01:29 AM
RE: नदी का रहस्य - by kill_l - 27-10-2020, 01:44 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 31-10-2020, 09:00 AM
RE: नदी का रहस्य - by sri7869 - 09-05-2024, 05:24 AM



Users browsing this thread: 6 Guest(s)