31-07-2020, 01:19 PM
११)
अगले दिन सुबह ठीक दस बजे थाने के बाहर सिक्युरिटी की जीप आ कर रुकी.
इंस्पेक्टर रॉय उतरा और थाने की सीढ़ियाँ चढ़ा.
दरवाज़े के दोनों तरफ दो सिपाही अपनी अपनी राइफलें ले कर सतर्क बैठे थे... रॉय को देखते ही झट से खड़े हो कर सैल्यूट किया. रॉय ने हाथ उठा कर उनके सैल्यूट का उत्तर दिया.
अंदर अपने टेबल के सामने हवलदार कुछ लोगों के साथ बात कर रहा था. उसने भी रॉय को देख कर खड़े हो कर सैल्यूट किया. रॉय ने भी पहले जैसे ही उत्तर दिया. हवलदार के बैठने के स्थान के ठीक बगल में; दाएँ साइड रॉय का कमरा है.
कमरे में घुसने से पहले रॉय ठिठक गया. सिर घूमा कर देखा; आज और दिन के मुकाबले कुछ ज्यादा ही लोग आए हैं. उसने प्रश्नसूचक दृष्टि डाली श्याम पर. श्याम ने तुरंत आँखों के इशारे से ही कुछ कहा रॉय को जिसे रॉय एक क्षण में ही समझ गया.
बेंच और चेयरों पर बैठे लोगों की ओर एक नज़र देख कर श्याम को बोला,
“तुम पाँच मिनट बाद अंदर आना.”
“यस सर!”
अपने कमरे में जाने के बाद सबसे पहले रॉय ने टेबल पर पहले से रखे ग्लास से पानी पिया, फिर अपने पॉकेट से अपने भगवान की फ़ोटो निकाल कर उन्हें प्रणाम किया और फिर अपने गुरुदेव के फ़ोटो को.
फ़िर आराम से अपनी कुर्सी पर बैठा.
सामने कुछ फाइलें रखी थीं.
उनमें से दो – तीन फाइल के पन्ने पलट कर देखा, दूसरे पॉकेट से सिगरेट का पैकेट निकाला, सिगरेट सुलगाया और ऊपर चलते पंखे की ओर देखते हुए मन ही मन कुछ बातों को क्रमवार सजाने लगा.
ठीक पाँच मिनट बाद ही दरवाज़े पर श्याम आया और विनम्र स्वर में बोला,
“आपने बुलाया था सर?”
श्याम के आवाज़ से विचारों के उधेड़बुन से बाहर आया रॉय ने पहले श्याम की ओर देखा और फ़िर उसपर से नज़रें हटा कर सामने रखे आधे खाली ग्लास की ओर देखते हुए बोला,
“हाँ... सुनो.”
श्याम अंदर आया और सैल्यूट मार कर सावधान की पोजीशन में खड़ा हो गया.
“श्याम... सब आ गए हैं?”
“जी सर!”
“किसी ने भी नखरे दिखाए... ना नुकुर किया?”
“दो – तीन ने किया सर.”
“दो – तीन?! कौन कौन?”
“नबीन, उनकी पत्नी रुना और जिष्णु चायवाला.”
“बाकी सब तैयार हो गए थे?”
“सभी कुछ न कुछ कहना चाहते थे शायद... पर सिक्युरिटी के डर के कारण शायद कुछ बोला नहीं गया इनसे, सर.”
“हम्म... और कोई नयी बात?”
“नहीं सर, फिलहाल नहीं. पर इतना ही की नबीन और दूसरे जन बोल रहे हैं कि उन्हें जल्दी छोड़ दिया ताकि तुरंत अपने काम पर जा सके.”
“हाँ.. हाँ.. ऐसा ही होगा... अब तुम जाओ और अगले दस मिनट बाद एक एक कर के सब को भेजना. जब कोई एक आए तो तुम भी यहाँ रहोगे? ओके?... और बद्री को बोलो बाहर तुम्हारे काम को तब तक वो सम्भाले.”
“यस सर.”
“और ये लो... ये लिस्ट है.. जिसका जिस नम्बर पर नाम है उसे वैसे ही अंदर भेजना.”
“यस सर.”
कह कर श्याम सैल्यूट दे कर कमरे से निकल गया.
इधर, उसके बाहर निकलते ही रॉय जल्दी से आँखें बंद कर अपने उन्हीं विचारों पर फिर से ध्यान केन्द्रित कर दिया.
ठीक दस मिनट बाद हवलदार श्याम अंदर आया और रॉय से अनुमति लेने के बाद एक एक कर सबको बुलाने लगा.
सबसे पहले हरिपद को बुलाया गया.
रॉय ने उसे टेबल के विपरीत अपने सामने वाले चेयर पर बैठने को कहा.
उसके बैठते ही रॉय ने अपने दाएँ हाथ की ऊँगलियों से कुछ इशारा किया श्याम को जिसे सिर्फ़ श्याम ही समझ सकता था. हरिपद का ध्यान तो इस तरफ गया ही नहीं. उस बेचारे का तो डर से ही हालत ख़राब हुए जा रहा था कि न जाने क्या क्या पूछा जायेगा और अगर किन्ही प्रश्नों का उत्तर अगर वो न दे सका तो कहीं उस जेल में न डाल दे.
सिक्युरिटी और उनसे जुड़े कुछ अफवाहों को हरिपद ने इतना सुन रखा था बचपन से की आज जैसे उसकी आँखों के सामने वे सभी अफवाहें किसी चलचित्र की भांति एक एक कर के चलने लगी हो.
रॉय ने उसे पहले पानी पीने को कहा.
हरिपद ने उसके लिए सामने रखे ग्लास को उठाया और गटागट पूरा ग्लास खाली कर दिया.
उसकी हालत देख कर रॉय और श्याम दोनों एक दूसरे की ओर देख कर मुस्कराए.
“ठीक हो हरिपद?”
“जी, साहब.”
“कुछ सवाल करूँगा... सही जवाब दोगे?”
“पूरी कोशिश करूँगा माई बाप.”
हरिपद हाथ जोड़कर मिमियाते हुए बोला.
रॉय हल्का सा मुस्कराया. सीधा बैठा. श्याम को इशारा कर के हरिपद से एक हाथ दूर खड़े रहने को कहा.
और फ़िर शुरू हुआ प्रश्नकाल.
किसी प्रश्न का हरिपद बड़ी सहजता के साथ उत्तर दे गया तो किसी प्रश्न में बुरी तरह गड़बड़ा गया.
एक एक कर उससे कुल बारह प्रश्न किए गए. सभी प्रश्नों के उत्तर देते हरिपद के हरेक गतिविधि को बहुत सूक्ष्मता से देख रहा था रॉय.
इधर, बाहर बैठी रुना को धीरे धीरे बेचैनी होने लगी थी.
उसे ऐसा लगने लगा मानो उसके अंदर... उसके सीने में किसी ने दहकता आग का गोला रख दिया हो.
वो सामने श्याम के स्थान पर बैठे बद्री को पानी के लिए बोली. बद्री ने दूसरे सिपाही को पानी के लिए बोला. दूसरा सिपाही एक नया भर्ती हुआ बाईस वर्षीय लड़का था जो निर्देश मिलते ही जल्दी से एक ग्लास पानी ला कर रुना को दिया. रुना ने जरा सा नज़र उसकी ओर करके कृतज्ञता पूर्ण स्वर में धन्यवाद कहा और पानी पीने लगी.
वो लड़का वापस जाने से पहले दो मिनट वहीं खड़ा रहा.
दरअसल उसे रुना की सुन्दरता भा गई थी. अत्यधिक टेंशन के कारण पीठ पर से साड़ी को हटाने के फलस्वरूप रुना के डीप बैक स्क्वायर कट ब्लाउज से पर्याप्त अंश में बाहर दिखती उसकी स्वच्छ, निर्मल, बेदाग़ पीठ और उसपे भी टाइट ब्लाउज के कारण मांसल गदराई पीठ पर बनती हल्की सी क्लीवेज ने तो बस उसे पल भर में ही रुना का दीवाना बना लिया.
काजल लगी आँखें, होंठों पर लाल लिपस्टिक ऐसा मानो अभी अभी ताज़े रक्त में भीगी हुई हो, एक सुंदर पतली चेन जो आंचल के नीचे वक्षस्थल में कहीं समाई हो, दोनों में लाल चूड़ियों के साथ एक एक सफ़ेद शाखा चूड़ी. आंचल सीने पर अच्छे से लिए होने के बावजूद भी उस लड़के को रुना के वक्षों के आकार का अनुमान करने में कोई असुविधा नहीं हुई.
इतना कुछ देखने के बाद वो लड़का अपने धड़कनों पर नियंत्रण नहीं रख पाया.
उसका दिल धाड़ धाड़ से ज़ोरों से धड़कने लगा. सूख गए होंठों पर बार बार जीभ फिरा कर उन्हें भिगाने की कोशिश करने लगा. इतना तो फिर भी ठीक था.. असल मुश्किल तो तब हुई जब उसे अपने चड्डी के अंदर बेलगाम हलचल होने का आभास हुआ.
बिन हड्डी वाला मांसल अंग अपने दूसरे रूप में आ चुका था जिस कारण पैंट के अंदर से बनी तम्बू के कारण उस लड़के को अपने आप से लज्जा होने लगी. वह तुरंत वहाँ से चला गया.
पानी पीने के बाद बेचैनी तो पूरी तरह से गई नहीं रुना की पर थोड़ा आराम ज़रूर मिला उसे. कुर्सी के बैकरेस्ट से पीठ टिका कर आराम से बैठ गई और अंदर ही अंदर खुद को सिक्युरिटी इंटेरोगेशन के लिए दोबारा तैयार करने लगी.
इधर तुपी काका की पत्नी सीमा रुना को खा जाने वाली निगाहों से देख रही थी.
दरअसल जब से वो थाने में आई है और रुना को अपने सामने देखी है तब से ही उसे उसी खा जाने वाली नज़रों से देखे जा रही थी. आँखों में गज़ब का गुस्सा झलक रहा था. तुपी काका, नबीन बाबू, कालू और यहाँ तक की रुना ने भी सीमा के इस बर्ताव को देखा. पर सिवाए तुपी काका और नबीन बाबू के रुना को रत्ती भर का आश्चर्य नहीं हुआ.
सच कहा जाए तो कहीं न कहीं दोनों स्त्रियों में बहुत पहले से कुछ ख़ास नहीं बनती थी. रुना सीमा को पसंद ही नहीं करती थी और सीमा को भी रुना के रूप लावण्य से सदैव ईर्ष्या रही.
रुना अपने आप में अलग थी ज़रूर और इसी कारण विवाहिता होते हुए भी गाँव के कई पुरुषों के रातों की, उनके सपनों की रानी भी थी; पर कहीं न कहीं सीमा रुना को टक्कर देती जान पड़ती थी और कभी कभी यही बात रुना को भी तनिक असुरक्षा का बोध करा देती थी.
थोड़ी ही देर बाद हरिपद कमरे से निकला और चुपचाप एक खाली कुर्सी पर जा के बैठ गया.
फ़िर एक एक कर के सबको बुलाया गया.
सबसे औसतन करीब पन्द्रह मिनट तक सवाल जवाब होते रहे.
सिवाय रुना और सीमा के.
इन दोनों को दो दो बार सवाल जवाब के लिए बुलाया गया और आधे - आधे घंटे तक प्रश्न सत्र चलता रहा.
इन दोनों को बार बार बुलाए जाने से इन दोनों के पति, नबीन बाबू और तुपी काका भी काफ़ी परेशान रहे पर क्या करते... सिक्युरिटी के काम में रुकावट डालने का जोखिम भला कौन ले?
जब सब बाहर अपने जगह पर बैठे थे तब रॉय और श्याम अलग से १५ मिनट तक आपस में बातें करते रहे.
फ़िर एकाएक अपने कमरे से निकले.
रॉय ने सबको एकबार अच्छे से देखा और कहा,
“आप लोगों ने काफ़ी अच्छा सहयोग किया. इसके लिए बहुत धन्यवाद. आज के लिए इतना ही. आगे अगर ज़रूरत पड़ी तो फ़िर से आप लोगों थाने बुलाया जाएगा.”
देबू और बिल्टू ने गला खँखार कर धीरे से कहा,
“साहब, फ़िर से आना पड़ेगा? साहब... हम लोगों का काम....”
उनका वाक्य ख़त्म होने से पहले ही रॉय गुस्सा करता हुआ बोला,
“तुम्हें क्या लगता है... आज यहाँ पार्टी करने के लिए बुलाया था क्या? हँसी मसखरी होती है यहाँ? इन सवाल जवाबों में हमारा भी समय जाता है... कई काम हमारे धरे के धरे रह जाते हैं. जो कहा जा रहा है.. सुनो और करो.”
इतना कह कर रॉय गुस्से से अंदर चला गया.
हवलदार श्याम ने सबको इशारे से जाने को कहा... रॉय के गुस्से को देख कर किसी को किसी से कुछ कहने पूछने का हिम्मत नहीं हुआ. सब चुपचाप अपने अपने जगह से उठे और बाहर जाने लगे.
तभी अंदर से रॉय ने आवाज़ दिया,
“श्याम... इधर सुनना.”
“यस सर.”
श्याम तुरंत अंदर आया.
“श्याम... सब गए या नहीं?”
“जी सर, जा ही रहे हैं.”
“ह्म्म्म.. सबके बातों को नोट किया?”
“जी सर... सबने जो भी कहा... उसमें जो कुछ भी महत्वपूर्ण लगा; मैंने वो सब नोट कर लिया.”
“गुड. वैरी गुड. अब एक और बात बताओ...”
“जी सर...”
“सबसे सवाल जवाब होते समय तुम यहीं थे... पूरे समय... तुमने हर किसी के जवाबों को सुना... नोट किया.... सबकी बातों को सुनने के बाद तुम्हें प्रथमदृष्ट्या क्या लगता है... कौन अपराधी हो सकता है... किसपे संदेह सबसे अधिक हुआ है?”
“सर, मुझे तो लगता है कि..........”
श्याम ने जैसे ही बोलना शुरू किया बाहर से चीख पुकार की आवाज़ आने लगी.
बहुत ज़ोरों से आवाजें आ रही थीं... आदमी और औरत... दोनों के.
रॉय और श्याम पहले तो कुछ समझ नहीं पाए. पहले पाँच सेकंड तक एक दूसरे को देखते रहे... फ़िर एक साथ लगभग दौड़ते हुए कमरे से बाहर निकले. दोनों ने देखा की थाने के सिपाही सब भी थाने के बाहर खड़े हैं और किन्हीं को छुड़ाने का असफल प्रयास कर रहे हैं.
रॉय और श्याम दोनों जल्दी से थाने के मेन दरवाज़े तक आए.
बाहर आ कर जो देखा उससे दोनों ही स्तब्ध रह गए.
बाहर सीमा और रुना दोनों एक दूसरे से भीड़ी हुई थीं. दोनों ही एक दूसरे को थप्पड़ों से मार रही थी और जितना ज़ोर से हो सके उतना मारने का प्रयास कर रही थी. खास कर सीमा... उसके गुस्से का कोई पार नहीं दिख रहा था.
वो तो ऐसे कर रही थी जैसे की अभी के अभी रुना के कई टुकड़े कर के उसे कच्चा ही चबा जाएगी. रुना भी पलट कर उसके थप्पड़ों का जवाब दे रही थी पर मारने से कहीं ज्यादा वो खुद को बचाने का प्रयास कर रही थी.
सीमा रह रह के बार बार एक ही बात दोहरा रही थी,
“तू...तूने ही खाया है मिथुन... तूने ही छीना है हमसे... मेरे मिथुन को... उस बेचारे ... भोले लड़के को तूने ही निगला है. बता... बोल न.. क्यों की ऐसा... कमीनी...”
दोनों के पति और वहाँ उपस्थित बाकी सभी लोग दोनों को छुड़ाने का प्रयास कर रहे थे लेकिन थोड़ा छूटने के तुरंत बाद सीमा फिर से रुना पर टूट पड़ती. धीरे धीरे वहाँ बहुत भीड़ जमा हो गई.
थाने के सामने इस तरह का एक तमाशा होता देख कर रॉय बुरी तरह गुस्से में भर गया और बहुत ज़ोर से चीखते हुए गरज उठा,
“बस करो... क्या लगा रखा है यहाँ? कोई बाज़ार है?? या गाँव का अखाड़ा है??? जो करना है अपने गाँव में... अपने घर में करो... जाओ... अब अगर एक शब्द भी तुम लोगों में से किसी के भी मुँह से सुना तो अभी के अभी बिना किसी कंप्लेंट के तुम सबको पूरे एक महीने के लिए अंदर डाल दूँगा... समझे..! जाओ यहाँ से!!”
रॉय के इस धमकी ने तुरंत वहाँ जमा हुए लोगों पर अपना असर दिखाया और सब हड़बड़ा कर वहाँ से भाग खड़े हुए. सीमा और रुना ने भी अब तक एक दूसरे को छोड़ दिया था और आगे बढ़ गई थी.
सीमा अब भी गुस्से से बीच बीच में रुना को देख रही थी पर कुछ कह नहीं पा रही थी क्योंकि वो तो खुद अब रॉय के गुस्से से डर गई थी.
और भला एक गुस्सैल सिक्युरिटी वाला को कौन उकसाए?
यही सोच कर उसने फ़िलहाल अपने गुस्से को काबू करने का पूरजोर कोशिश कर रही थी.
सबके चले जाने के करीब आधे घंटे बाद थाने के अंदर की गतिविधि भी थोड़ी शांत हुई और जब दैनिक कामकाज पटरी पर आई तब रॉय ने बद्री को बुला कर चाय लाने को कहा और साथ ही श्याम को भी बुलवा भेजा.
श्याम ने आते ही सैल्यूट मारा और कहा,
“आपने बुलाया सर?”
“अं.. हाँ... पहले बैठो... कुछ बात करनी है.”
श्याम तुरंत आदेश का पालन करता हुआ रॉय के सामने चेयर पर बैठ गया.
“तुमने तो सब देखा... सुना... और तो और थाने के ठीक बाहर हुए तमाशे के समय भी तुम वहाँ मेरे साथ ही थे...क्या लगता है... कौन है असली अपराधी?”
उत्तर देने से पहले श्याम दो क्षण सोचा और बड़े विचारणीय ढंग से बोला,
“सर... मुझे लगता है इन सब में ये.... रुना... रुना जी का हाथ है.”
“ऐसा क्यों?”
“सर, वो जब प्रश्नों के उत्तर दे रही थी तब काफ़ी अटक जा रही थी.. लग रहा था मानो वो बोलना चाह कर भी नहीं बोलना चाहती.. या फ़िर सही बात किसी भी हाल में न निकले इसका भरसक प्रयास कर रही थी.”
“यस, राईट! रुना मुखर्जी कुछ जानती ज़रूर है पर कहना नहीं चाहती. और कुछ?”
श्याम सोचते हुए बोला,
“सर, और कुछ तो अभी याद नहीं आ रहा. मैंने जो सबके स्टेटमेंट्स नोट किया है; एकबार उनको अच्छे से स्टडी करना पड़ेगा. थोड़ा टाइम लगेगा सर.”
“हाँ... थोड़ा टाइम तो ज़रूर लगेगा. लेकिन कोशिश करना पड़ेगा की टाइम थोड़ा ही लगे... ज्यादा न हो जाए. ओके?”
“यस सर.”
“हम्म.. और कोई नयी बात? अच्छा....वो नया लड़का कैसा काम कर रहा है?”
“काम तो ठीक ही कर लेता है सर... पर आज थोड़ी सी गलती हो गई उससे... अभी जब मैं यहाँ आया तो देखा बद्री उसे समझा रहा था.”
“गलती!! कैसी गलती?”
“व..वो...सर...”
“ओह.. कम ऑन श्याम. जल्दी बोलो.”
“स...सर...वो... बाहर कुर्सी पर जब रुना और लोगों के साथ बैठी हुई थी तब उसे प्यास लगी थी... बद्री को बोलने पर उसने उस लड़के को पानी देने को कहा. लड़का जब पानी दिया तो रुना के बहुत पास था... अ...औ...”
“और??” रॉय की उत्सुकता बढ़ने लगी.
“और व.. वो... रुना जी.. पर .... मोहित हो गया.”
“हैं?!!”
“जी सर.”
रॉय ने श्याम को गौर से देखा.
श्याम सच बोल रहा था. ये बात समझते ही रॉय खिलखिला कर हँस पड़ा. उसे हँसता देख कर श्याम भी हँसी रोक नहीं सका और हँस पड़ा.
“ओके.. जो हुआ सो हुआ... अब काम की बात.. मैं अभी पुराने कुछ केसेस को लेकर व्यस्त रहूँगा.. उनको स्टडी करूँगा; तो ध्यान रहे कोई मुझे डिस्टर्ब न करे. बहुत ज़रूरी होने पर ही मेरे पास किसी को आने देना. समझे?”
“यस सर.”
“ओके. यू मे गो नाउ.”
अनुमति मिलते ही श्याम वहाँ से चला गया.
श्याम के जाते ही रॉय ने बगल में रखी एक फाइल को उठा कर उसके नीचे दबी कुछ पासपोर्ट साइज़ के फ़ोटो निकाले. ये वो फ़ोटो थे जिन्हें उसने आज सवाल जवाब के समय नबीन बाबू, रुना और अन्य लोगों को लाने को कहा था.
दो सफ़ेद पेपर लिया, उनमें से एक पर उसने सभी पुरुषों के फ़ोटो रख दिया और दूसरे पर दोनों महिला, अर्थात् सीमा और रुना का फ़ोटो रखा और पेपर पर ही एक जगह पेन से पासपोर्ट साइज़ का एक चतुर्भुज बनाया. अब दोनों फ़ोटो और वो चतुर्भुज ऐसे बने और रखे थे कि अगर तीनों को रेखाओं से जोड़ा जाए तो एक त्रिकोण बन जाए.
रॉय ने अब एक सिगरेट सुलगाया, तीन – चार कश लगाया और अपने आप से ही कहा,
“पता नहीं श्याम ने इस बात को नोटिस किया या नहीं... ये दो औरतें... सीमा और रुना... शुरू से ही संदेह के घेरे में हैं. दोनों के लंबे बाल हैं... दोनों के ही बालों का रंग लाइट ब्राउन है, दोनों ने ही अपने नाखूनों को थोड़ा बढ़ाया हुआ है, नाखूनों पर नेलपॉलिश लगी है, दोनों ने ही मैनीक्योर किया है. रुना मुखर्जी तो है ही सुन्दर... लेकिन सीमा को भी इस मामले में नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है. दोनों ने ही शायद परफ्यूम भी शायद एक सा लगाया था.... या शायद.... म्मम्म....खैर...”
रॉय ने अब दो कागज और लिया; और उन दोनों कागज़ों में से एक पर नबीन बाबू, हरिपद और तुपी काका के फ़ोटो उसी त्रिकोण तरीके से रखा और दूसरे पर देबू, कालू और शुभो के.
इसके बाद रॉय ने टेबल का ही एक और दराज खोला, हेडफ़ोन निकाला और उसे उसी दराज में रखे एक छोटे से टेप रिकॉर्डर से कनेक्ट कर के कुछ सुनने लगा. ज्यों ज्यों सुनता गया... त्यों त्यों उसके चेहरे के भाव कई बार बदलते गए.
इधर,
गाँव में...
एक बड़े घने छाँवदार वृक्ष के नीचे गाँव के कुछ प्रबुद्ध और वरिष्ठ लोग एकत्र हुए थे. सबके ही मुख मंडल पर घोर चिंता के घनघोर बादल छाए हुए थे. सभी किसी सोच में एक साथ डूबे हुए थे. सब के सब बिल्कुल चुप.
बड़ी देर बाद गाँव के सबसे वरिष्ठ सज्जन श्री सुमलय बिस्वास ने गला साफ़ करते हुए कहा,
“नहीं मेरे मित्रों... व्यक्तिगत रूप से मेरा यही मानना है कि इस समस्या का समाधान हमारे खुद के हाथों में नहीं है. सिक्युरिटी चाहे कुछ भी कहे या करे; मेरा स्वयं का मानना है की ये सभी घटनाएँ किसी बहुत ताकतवर ऊपरी बला का काम है... और इसका मुकाबला करने के लिए हमें भी ऐसे ही किसी ताकत की सहायता लेनी होगी.”
एक वृद्ध सज्जन बोल पड़े,
“वो तो हम सब समझ ही रहें हैं बिस्वास जी... पर असल प्रश्न तो यही है कि क्या आप या इस गाँव में कोई भी ऐसी किसी शक्ति को जानता है जो हमारी सहायता करने के लिए तैयार हो?”
इस प्रश्न पर सभी चुपचाप एक दूसरे का मुँह ताकने लगे... और जब उत्तर नहीं मिला तो परे देखने लगे... सिवाय बिस्वास जी के.
उन्होंने कांपते लहजे में कहा,
“हाँ... मैं जानता हूँ ऐसे किसी को.”
उनका ये कहना था कि सभी आश्चर्य से बिस्वास जी की ओर देखने लगे. लेकिन बिस्वास जी के चेहरे पर दृढ़ता के साथ साथ एक अनिश्चितता का भी भाव था. एक घबराहट थी उनमें.
उन्हें ऐसा देख कर एक दूसरा सज्जन उनके पास आया और पूछा,
“कौन? किसकी बात कर रहे हैं आप?”
होंठों पर जीभ फेर कर खुद को नार्मल दिखाने की कोशिश करते हुए बिस्वास जी बोले,
“कापालिक!”
अगले दिन सुबह ठीक दस बजे थाने के बाहर सिक्युरिटी की जीप आ कर रुकी.
इंस्पेक्टर रॉय उतरा और थाने की सीढ़ियाँ चढ़ा.
दरवाज़े के दोनों तरफ दो सिपाही अपनी अपनी राइफलें ले कर सतर्क बैठे थे... रॉय को देखते ही झट से खड़े हो कर सैल्यूट किया. रॉय ने हाथ उठा कर उनके सैल्यूट का उत्तर दिया.
अंदर अपने टेबल के सामने हवलदार कुछ लोगों के साथ बात कर रहा था. उसने भी रॉय को देख कर खड़े हो कर सैल्यूट किया. रॉय ने भी पहले जैसे ही उत्तर दिया. हवलदार के बैठने के स्थान के ठीक बगल में; दाएँ साइड रॉय का कमरा है.
कमरे में घुसने से पहले रॉय ठिठक गया. सिर घूमा कर देखा; आज और दिन के मुकाबले कुछ ज्यादा ही लोग आए हैं. उसने प्रश्नसूचक दृष्टि डाली श्याम पर. श्याम ने तुरंत आँखों के इशारे से ही कुछ कहा रॉय को जिसे रॉय एक क्षण में ही समझ गया.
बेंच और चेयरों पर बैठे लोगों की ओर एक नज़र देख कर श्याम को बोला,
“तुम पाँच मिनट बाद अंदर आना.”
“यस सर!”
अपने कमरे में जाने के बाद सबसे पहले रॉय ने टेबल पर पहले से रखे ग्लास से पानी पिया, फिर अपने पॉकेट से अपने भगवान की फ़ोटो निकाल कर उन्हें प्रणाम किया और फिर अपने गुरुदेव के फ़ोटो को.
फ़िर आराम से अपनी कुर्सी पर बैठा.
सामने कुछ फाइलें रखी थीं.
उनमें से दो – तीन फाइल के पन्ने पलट कर देखा, दूसरे पॉकेट से सिगरेट का पैकेट निकाला, सिगरेट सुलगाया और ऊपर चलते पंखे की ओर देखते हुए मन ही मन कुछ बातों को क्रमवार सजाने लगा.
ठीक पाँच मिनट बाद ही दरवाज़े पर श्याम आया और विनम्र स्वर में बोला,
“आपने बुलाया था सर?”
श्याम के आवाज़ से विचारों के उधेड़बुन से बाहर आया रॉय ने पहले श्याम की ओर देखा और फ़िर उसपर से नज़रें हटा कर सामने रखे आधे खाली ग्लास की ओर देखते हुए बोला,
“हाँ... सुनो.”
श्याम अंदर आया और सैल्यूट मार कर सावधान की पोजीशन में खड़ा हो गया.
“श्याम... सब आ गए हैं?”
“जी सर!”
“किसी ने भी नखरे दिखाए... ना नुकुर किया?”
“दो – तीन ने किया सर.”
“दो – तीन?! कौन कौन?”
“नबीन, उनकी पत्नी रुना और जिष्णु चायवाला.”
“बाकी सब तैयार हो गए थे?”
“सभी कुछ न कुछ कहना चाहते थे शायद... पर सिक्युरिटी के डर के कारण शायद कुछ बोला नहीं गया इनसे, सर.”
“हम्म... और कोई नयी बात?”
“नहीं सर, फिलहाल नहीं. पर इतना ही की नबीन और दूसरे जन बोल रहे हैं कि उन्हें जल्दी छोड़ दिया ताकि तुरंत अपने काम पर जा सके.”
“हाँ.. हाँ.. ऐसा ही होगा... अब तुम जाओ और अगले दस मिनट बाद एक एक कर के सब को भेजना. जब कोई एक आए तो तुम भी यहाँ रहोगे? ओके?... और बद्री को बोलो बाहर तुम्हारे काम को तब तक वो सम्भाले.”
“यस सर.”
“और ये लो... ये लिस्ट है.. जिसका जिस नम्बर पर नाम है उसे वैसे ही अंदर भेजना.”
“यस सर.”
कह कर श्याम सैल्यूट दे कर कमरे से निकल गया.
इधर, उसके बाहर निकलते ही रॉय जल्दी से आँखें बंद कर अपने उन्हीं विचारों पर फिर से ध्यान केन्द्रित कर दिया.
ठीक दस मिनट बाद हवलदार श्याम अंदर आया और रॉय से अनुमति लेने के बाद एक एक कर सबको बुलाने लगा.
सबसे पहले हरिपद को बुलाया गया.
रॉय ने उसे टेबल के विपरीत अपने सामने वाले चेयर पर बैठने को कहा.
उसके बैठते ही रॉय ने अपने दाएँ हाथ की ऊँगलियों से कुछ इशारा किया श्याम को जिसे सिर्फ़ श्याम ही समझ सकता था. हरिपद का ध्यान तो इस तरफ गया ही नहीं. उस बेचारे का तो डर से ही हालत ख़राब हुए जा रहा था कि न जाने क्या क्या पूछा जायेगा और अगर किन्ही प्रश्नों का उत्तर अगर वो न दे सका तो कहीं उस जेल में न डाल दे.
सिक्युरिटी और उनसे जुड़े कुछ अफवाहों को हरिपद ने इतना सुन रखा था बचपन से की आज जैसे उसकी आँखों के सामने वे सभी अफवाहें किसी चलचित्र की भांति एक एक कर के चलने लगी हो.
रॉय ने उसे पहले पानी पीने को कहा.
हरिपद ने उसके लिए सामने रखे ग्लास को उठाया और गटागट पूरा ग्लास खाली कर दिया.
उसकी हालत देख कर रॉय और श्याम दोनों एक दूसरे की ओर देख कर मुस्कराए.
“ठीक हो हरिपद?”
“जी, साहब.”
“कुछ सवाल करूँगा... सही जवाब दोगे?”
“पूरी कोशिश करूँगा माई बाप.”
हरिपद हाथ जोड़कर मिमियाते हुए बोला.
रॉय हल्का सा मुस्कराया. सीधा बैठा. श्याम को इशारा कर के हरिपद से एक हाथ दूर खड़े रहने को कहा.
और फ़िर शुरू हुआ प्रश्नकाल.
किसी प्रश्न का हरिपद बड़ी सहजता के साथ उत्तर दे गया तो किसी प्रश्न में बुरी तरह गड़बड़ा गया.
एक एक कर उससे कुल बारह प्रश्न किए गए. सभी प्रश्नों के उत्तर देते हरिपद के हरेक गतिविधि को बहुत सूक्ष्मता से देख रहा था रॉय.
इधर, बाहर बैठी रुना को धीरे धीरे बेचैनी होने लगी थी.
उसे ऐसा लगने लगा मानो उसके अंदर... उसके सीने में किसी ने दहकता आग का गोला रख दिया हो.
वो सामने श्याम के स्थान पर बैठे बद्री को पानी के लिए बोली. बद्री ने दूसरे सिपाही को पानी के लिए बोला. दूसरा सिपाही एक नया भर्ती हुआ बाईस वर्षीय लड़का था जो निर्देश मिलते ही जल्दी से एक ग्लास पानी ला कर रुना को दिया. रुना ने जरा सा नज़र उसकी ओर करके कृतज्ञता पूर्ण स्वर में धन्यवाद कहा और पानी पीने लगी.
वो लड़का वापस जाने से पहले दो मिनट वहीं खड़ा रहा.
दरअसल उसे रुना की सुन्दरता भा गई थी. अत्यधिक टेंशन के कारण पीठ पर से साड़ी को हटाने के फलस्वरूप रुना के डीप बैक स्क्वायर कट ब्लाउज से पर्याप्त अंश में बाहर दिखती उसकी स्वच्छ, निर्मल, बेदाग़ पीठ और उसपे भी टाइट ब्लाउज के कारण मांसल गदराई पीठ पर बनती हल्की सी क्लीवेज ने तो बस उसे पल भर में ही रुना का दीवाना बना लिया.
काजल लगी आँखें, होंठों पर लाल लिपस्टिक ऐसा मानो अभी अभी ताज़े रक्त में भीगी हुई हो, एक सुंदर पतली चेन जो आंचल के नीचे वक्षस्थल में कहीं समाई हो, दोनों में लाल चूड़ियों के साथ एक एक सफ़ेद शाखा चूड़ी. आंचल सीने पर अच्छे से लिए होने के बावजूद भी उस लड़के को रुना के वक्षों के आकार का अनुमान करने में कोई असुविधा नहीं हुई.
इतना कुछ देखने के बाद वो लड़का अपने धड़कनों पर नियंत्रण नहीं रख पाया.
उसका दिल धाड़ धाड़ से ज़ोरों से धड़कने लगा. सूख गए होंठों पर बार बार जीभ फिरा कर उन्हें भिगाने की कोशिश करने लगा. इतना तो फिर भी ठीक था.. असल मुश्किल तो तब हुई जब उसे अपने चड्डी के अंदर बेलगाम हलचल होने का आभास हुआ.
बिन हड्डी वाला मांसल अंग अपने दूसरे रूप में आ चुका था जिस कारण पैंट के अंदर से बनी तम्बू के कारण उस लड़के को अपने आप से लज्जा होने लगी. वह तुरंत वहाँ से चला गया.
पानी पीने के बाद बेचैनी तो पूरी तरह से गई नहीं रुना की पर थोड़ा आराम ज़रूर मिला उसे. कुर्सी के बैकरेस्ट से पीठ टिका कर आराम से बैठ गई और अंदर ही अंदर खुद को सिक्युरिटी इंटेरोगेशन के लिए दोबारा तैयार करने लगी.
इधर तुपी काका की पत्नी सीमा रुना को खा जाने वाली निगाहों से देख रही थी.
दरअसल जब से वो थाने में आई है और रुना को अपने सामने देखी है तब से ही उसे उसी खा जाने वाली नज़रों से देखे जा रही थी. आँखों में गज़ब का गुस्सा झलक रहा था. तुपी काका, नबीन बाबू, कालू और यहाँ तक की रुना ने भी सीमा के इस बर्ताव को देखा. पर सिवाए तुपी काका और नबीन बाबू के रुना को रत्ती भर का आश्चर्य नहीं हुआ.
सच कहा जाए तो कहीं न कहीं दोनों स्त्रियों में बहुत पहले से कुछ ख़ास नहीं बनती थी. रुना सीमा को पसंद ही नहीं करती थी और सीमा को भी रुना के रूप लावण्य से सदैव ईर्ष्या रही.
रुना अपने आप में अलग थी ज़रूर और इसी कारण विवाहिता होते हुए भी गाँव के कई पुरुषों के रातों की, उनके सपनों की रानी भी थी; पर कहीं न कहीं सीमा रुना को टक्कर देती जान पड़ती थी और कभी कभी यही बात रुना को भी तनिक असुरक्षा का बोध करा देती थी.
थोड़ी ही देर बाद हरिपद कमरे से निकला और चुपचाप एक खाली कुर्सी पर जा के बैठ गया.
फ़िर एक एक कर के सबको बुलाया गया.
सबसे औसतन करीब पन्द्रह मिनट तक सवाल जवाब होते रहे.
सिवाय रुना और सीमा के.
इन दोनों को दो दो बार सवाल जवाब के लिए बुलाया गया और आधे - आधे घंटे तक प्रश्न सत्र चलता रहा.
इन दोनों को बार बार बुलाए जाने से इन दोनों के पति, नबीन बाबू और तुपी काका भी काफ़ी परेशान रहे पर क्या करते... सिक्युरिटी के काम में रुकावट डालने का जोखिम भला कौन ले?
जब सब बाहर अपने जगह पर बैठे थे तब रॉय और श्याम अलग से १५ मिनट तक आपस में बातें करते रहे.
फ़िर एकाएक अपने कमरे से निकले.
रॉय ने सबको एकबार अच्छे से देखा और कहा,
“आप लोगों ने काफ़ी अच्छा सहयोग किया. इसके लिए बहुत धन्यवाद. आज के लिए इतना ही. आगे अगर ज़रूरत पड़ी तो फ़िर से आप लोगों थाने बुलाया जाएगा.”
देबू और बिल्टू ने गला खँखार कर धीरे से कहा,
“साहब, फ़िर से आना पड़ेगा? साहब... हम लोगों का काम....”
उनका वाक्य ख़त्म होने से पहले ही रॉय गुस्सा करता हुआ बोला,
“तुम्हें क्या लगता है... आज यहाँ पार्टी करने के लिए बुलाया था क्या? हँसी मसखरी होती है यहाँ? इन सवाल जवाबों में हमारा भी समय जाता है... कई काम हमारे धरे के धरे रह जाते हैं. जो कहा जा रहा है.. सुनो और करो.”
इतना कह कर रॉय गुस्से से अंदर चला गया.
हवलदार श्याम ने सबको इशारे से जाने को कहा... रॉय के गुस्से को देख कर किसी को किसी से कुछ कहने पूछने का हिम्मत नहीं हुआ. सब चुपचाप अपने अपने जगह से उठे और बाहर जाने लगे.
तभी अंदर से रॉय ने आवाज़ दिया,
“श्याम... इधर सुनना.”
“यस सर.”
श्याम तुरंत अंदर आया.
“श्याम... सब गए या नहीं?”
“जी सर, जा ही रहे हैं.”
“ह्म्म्म.. सबके बातों को नोट किया?”
“जी सर... सबने जो भी कहा... उसमें जो कुछ भी महत्वपूर्ण लगा; मैंने वो सब नोट कर लिया.”
“गुड. वैरी गुड. अब एक और बात बताओ...”
“जी सर...”
“सबसे सवाल जवाब होते समय तुम यहीं थे... पूरे समय... तुमने हर किसी के जवाबों को सुना... नोट किया.... सबकी बातों को सुनने के बाद तुम्हें प्रथमदृष्ट्या क्या लगता है... कौन अपराधी हो सकता है... किसपे संदेह सबसे अधिक हुआ है?”
“सर, मुझे तो लगता है कि..........”
श्याम ने जैसे ही बोलना शुरू किया बाहर से चीख पुकार की आवाज़ आने लगी.
बहुत ज़ोरों से आवाजें आ रही थीं... आदमी और औरत... दोनों के.
रॉय और श्याम पहले तो कुछ समझ नहीं पाए. पहले पाँच सेकंड तक एक दूसरे को देखते रहे... फ़िर एक साथ लगभग दौड़ते हुए कमरे से बाहर निकले. दोनों ने देखा की थाने के सिपाही सब भी थाने के बाहर खड़े हैं और किन्हीं को छुड़ाने का असफल प्रयास कर रहे हैं.
रॉय और श्याम दोनों जल्दी से थाने के मेन दरवाज़े तक आए.
बाहर आ कर जो देखा उससे दोनों ही स्तब्ध रह गए.
बाहर सीमा और रुना दोनों एक दूसरे से भीड़ी हुई थीं. दोनों ही एक दूसरे को थप्पड़ों से मार रही थी और जितना ज़ोर से हो सके उतना मारने का प्रयास कर रही थी. खास कर सीमा... उसके गुस्से का कोई पार नहीं दिख रहा था.
वो तो ऐसे कर रही थी जैसे की अभी के अभी रुना के कई टुकड़े कर के उसे कच्चा ही चबा जाएगी. रुना भी पलट कर उसके थप्पड़ों का जवाब दे रही थी पर मारने से कहीं ज्यादा वो खुद को बचाने का प्रयास कर रही थी.
सीमा रह रह के बार बार एक ही बात दोहरा रही थी,
“तू...तूने ही खाया है मिथुन... तूने ही छीना है हमसे... मेरे मिथुन को... उस बेचारे ... भोले लड़के को तूने ही निगला है. बता... बोल न.. क्यों की ऐसा... कमीनी...”
दोनों के पति और वहाँ उपस्थित बाकी सभी लोग दोनों को छुड़ाने का प्रयास कर रहे थे लेकिन थोड़ा छूटने के तुरंत बाद सीमा फिर से रुना पर टूट पड़ती. धीरे धीरे वहाँ बहुत भीड़ जमा हो गई.
थाने के सामने इस तरह का एक तमाशा होता देख कर रॉय बुरी तरह गुस्से में भर गया और बहुत ज़ोर से चीखते हुए गरज उठा,
“बस करो... क्या लगा रखा है यहाँ? कोई बाज़ार है?? या गाँव का अखाड़ा है??? जो करना है अपने गाँव में... अपने घर में करो... जाओ... अब अगर एक शब्द भी तुम लोगों में से किसी के भी मुँह से सुना तो अभी के अभी बिना किसी कंप्लेंट के तुम सबको पूरे एक महीने के लिए अंदर डाल दूँगा... समझे..! जाओ यहाँ से!!”
रॉय के इस धमकी ने तुरंत वहाँ जमा हुए लोगों पर अपना असर दिखाया और सब हड़बड़ा कर वहाँ से भाग खड़े हुए. सीमा और रुना ने भी अब तक एक दूसरे को छोड़ दिया था और आगे बढ़ गई थी.
सीमा अब भी गुस्से से बीच बीच में रुना को देख रही थी पर कुछ कह नहीं पा रही थी क्योंकि वो तो खुद अब रॉय के गुस्से से डर गई थी.
और भला एक गुस्सैल सिक्युरिटी वाला को कौन उकसाए?
यही सोच कर उसने फ़िलहाल अपने गुस्से को काबू करने का पूरजोर कोशिश कर रही थी.
सबके चले जाने के करीब आधे घंटे बाद थाने के अंदर की गतिविधि भी थोड़ी शांत हुई और जब दैनिक कामकाज पटरी पर आई तब रॉय ने बद्री को बुला कर चाय लाने को कहा और साथ ही श्याम को भी बुलवा भेजा.
श्याम ने आते ही सैल्यूट मारा और कहा,
“आपने बुलाया सर?”
“अं.. हाँ... पहले बैठो... कुछ बात करनी है.”
श्याम तुरंत आदेश का पालन करता हुआ रॉय के सामने चेयर पर बैठ गया.
“तुमने तो सब देखा... सुना... और तो और थाने के ठीक बाहर हुए तमाशे के समय भी तुम वहाँ मेरे साथ ही थे...क्या लगता है... कौन है असली अपराधी?”
उत्तर देने से पहले श्याम दो क्षण सोचा और बड़े विचारणीय ढंग से बोला,
“सर... मुझे लगता है इन सब में ये.... रुना... रुना जी का हाथ है.”
“ऐसा क्यों?”
“सर, वो जब प्रश्नों के उत्तर दे रही थी तब काफ़ी अटक जा रही थी.. लग रहा था मानो वो बोलना चाह कर भी नहीं बोलना चाहती.. या फ़िर सही बात किसी भी हाल में न निकले इसका भरसक प्रयास कर रही थी.”
“यस, राईट! रुना मुखर्जी कुछ जानती ज़रूर है पर कहना नहीं चाहती. और कुछ?”
श्याम सोचते हुए बोला,
“सर, और कुछ तो अभी याद नहीं आ रहा. मैंने जो सबके स्टेटमेंट्स नोट किया है; एकबार उनको अच्छे से स्टडी करना पड़ेगा. थोड़ा टाइम लगेगा सर.”
“हाँ... थोड़ा टाइम तो ज़रूर लगेगा. लेकिन कोशिश करना पड़ेगा की टाइम थोड़ा ही लगे... ज्यादा न हो जाए. ओके?”
“यस सर.”
“हम्म.. और कोई नयी बात? अच्छा....वो नया लड़का कैसा काम कर रहा है?”
“काम तो ठीक ही कर लेता है सर... पर आज थोड़ी सी गलती हो गई उससे... अभी जब मैं यहाँ आया तो देखा बद्री उसे समझा रहा था.”
“गलती!! कैसी गलती?”
“व..वो...सर...”
“ओह.. कम ऑन श्याम. जल्दी बोलो.”
“स...सर...वो... बाहर कुर्सी पर जब रुना और लोगों के साथ बैठी हुई थी तब उसे प्यास लगी थी... बद्री को बोलने पर उसने उस लड़के को पानी देने को कहा. लड़का जब पानी दिया तो रुना के बहुत पास था... अ...औ...”
“और??” रॉय की उत्सुकता बढ़ने लगी.
“और व.. वो... रुना जी.. पर .... मोहित हो गया.”
“हैं?!!”
“जी सर.”
रॉय ने श्याम को गौर से देखा.
श्याम सच बोल रहा था. ये बात समझते ही रॉय खिलखिला कर हँस पड़ा. उसे हँसता देख कर श्याम भी हँसी रोक नहीं सका और हँस पड़ा.
“ओके.. जो हुआ सो हुआ... अब काम की बात.. मैं अभी पुराने कुछ केसेस को लेकर व्यस्त रहूँगा.. उनको स्टडी करूँगा; तो ध्यान रहे कोई मुझे डिस्टर्ब न करे. बहुत ज़रूरी होने पर ही मेरे पास किसी को आने देना. समझे?”
“यस सर.”
“ओके. यू मे गो नाउ.”
अनुमति मिलते ही श्याम वहाँ से चला गया.
श्याम के जाते ही रॉय ने बगल में रखी एक फाइल को उठा कर उसके नीचे दबी कुछ पासपोर्ट साइज़ के फ़ोटो निकाले. ये वो फ़ोटो थे जिन्हें उसने आज सवाल जवाब के समय नबीन बाबू, रुना और अन्य लोगों को लाने को कहा था.
दो सफ़ेद पेपर लिया, उनमें से एक पर उसने सभी पुरुषों के फ़ोटो रख दिया और दूसरे पर दोनों महिला, अर्थात् सीमा और रुना का फ़ोटो रखा और पेपर पर ही एक जगह पेन से पासपोर्ट साइज़ का एक चतुर्भुज बनाया. अब दोनों फ़ोटो और वो चतुर्भुज ऐसे बने और रखे थे कि अगर तीनों को रेखाओं से जोड़ा जाए तो एक त्रिकोण बन जाए.
रॉय ने अब एक सिगरेट सुलगाया, तीन – चार कश लगाया और अपने आप से ही कहा,
“पता नहीं श्याम ने इस बात को नोटिस किया या नहीं... ये दो औरतें... सीमा और रुना... शुरू से ही संदेह के घेरे में हैं. दोनों के लंबे बाल हैं... दोनों के ही बालों का रंग लाइट ब्राउन है, दोनों ने ही अपने नाखूनों को थोड़ा बढ़ाया हुआ है, नाखूनों पर नेलपॉलिश लगी है, दोनों ने ही मैनीक्योर किया है. रुना मुखर्जी तो है ही सुन्दर... लेकिन सीमा को भी इस मामले में नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है. दोनों ने ही शायद परफ्यूम भी शायद एक सा लगाया था.... या शायद.... म्मम्म....खैर...”
रॉय ने अब दो कागज और लिया; और उन दोनों कागज़ों में से एक पर नबीन बाबू, हरिपद और तुपी काका के फ़ोटो उसी त्रिकोण तरीके से रखा और दूसरे पर देबू, कालू और शुभो के.
इसके बाद रॉय ने टेबल का ही एक और दराज खोला, हेडफ़ोन निकाला और उसे उसी दराज में रखे एक छोटे से टेप रिकॉर्डर से कनेक्ट कर के कुछ सुनने लगा. ज्यों ज्यों सुनता गया... त्यों त्यों उसके चेहरे के भाव कई बार बदलते गए.
इधर,
गाँव में...
एक बड़े घने छाँवदार वृक्ष के नीचे गाँव के कुछ प्रबुद्ध और वरिष्ठ लोग एकत्र हुए थे. सबके ही मुख मंडल पर घोर चिंता के घनघोर बादल छाए हुए थे. सभी किसी सोच में एक साथ डूबे हुए थे. सब के सब बिल्कुल चुप.
बड़ी देर बाद गाँव के सबसे वरिष्ठ सज्जन श्री सुमलय बिस्वास ने गला साफ़ करते हुए कहा,
“नहीं मेरे मित्रों... व्यक्तिगत रूप से मेरा यही मानना है कि इस समस्या का समाधान हमारे खुद के हाथों में नहीं है. सिक्युरिटी चाहे कुछ भी कहे या करे; मेरा स्वयं का मानना है की ये सभी घटनाएँ किसी बहुत ताकतवर ऊपरी बला का काम है... और इसका मुकाबला करने के लिए हमें भी ऐसे ही किसी ताकत की सहायता लेनी होगी.”
एक वृद्ध सज्जन बोल पड़े,
“वो तो हम सब समझ ही रहें हैं बिस्वास जी... पर असल प्रश्न तो यही है कि क्या आप या इस गाँव में कोई भी ऐसी किसी शक्ति को जानता है जो हमारी सहायता करने के लिए तैयार हो?”
इस प्रश्न पर सभी चुपचाप एक दूसरे का मुँह ताकने लगे... और जब उत्तर नहीं मिला तो परे देखने लगे... सिवाय बिस्वास जी के.
उन्होंने कांपते लहजे में कहा,
“हाँ... मैं जानता हूँ ऐसे किसी को.”
उनका ये कहना था कि सभी आश्चर्य से बिस्वास जी की ओर देखने लगे. लेकिन बिस्वास जी के चेहरे पर दृढ़ता के साथ साथ एक अनिश्चितता का भी भाव था. एक घबराहट थी उनमें.
उन्हें ऐसा देख कर एक दूसरा सज्जन उनके पास आया और पूछा,
“कौन? किसकी बात कर रहे हैं आप?”
होंठों पर जीभ फेर कर खुद को नार्मल दिखाने की कोशिश करते हुए बिस्वास जी बोले,
“कापालिक!”