20-07-2020, 10:28 PM
(जारी.....)
कालू के घर से ले कर अपने दुकान तक और फ़िर अपने दुकान से लेकर देर शाम अपने घर तक हर पल शुभो को ऐसा लगता रहा की वो अकेला नहीं है. कोई न कोई हर पल उसके साथ है. उस पूरे दिन उसके दिमाग में एक साथ इतनी बातें चल रही थी कि वो किसी भी काम पे ध्यान नहीं दे पाया. हरेक काम में कोई न कोई गलती होती रही उससे. यहाँ तक की अपने सीने पर उभर आए उन तीन खरोंचों के निशान तक को भी भूल गया.
देर शाम जब वो किसी दूसरे चाय दुकान में एक छोटी बेंच पर बैठा चाय पी रहा था तब हरिपद के साथ भेंट हुई. दरअसल हरिपद अपने अधीनस्थ दोनों नाविकों को उस दिन का खर्चा दे कर बचे हुए पैसे लेकर घर की ओर ही जा रहे थे कि अचानक से तेज़ बारिश होने लगी. ये चाय दुकान बगल में ही था तो बचने के लिए तुरंत वहीं घुस गए.
गाँव के चाय दुकान वाले हो या दैनिक बिक्री वाले दूसरे दुकानदार.. हमेशा बड़े और खुले जगह पर दुकान खोला करते हैं. दुकान ऐसा रखते हैं की एक साथ दस आदमी अंदर आराम से बैठ जाए.
उस समय शुभो और चाय वाले जिष्णु काका को लेकर कुल चार लोग थे. अब हरिपद भी शामिल हो गए. हरिपद और जिष्णु काका अच्छे दोस्त थे. उनमें बातें शुरू हो गई. शुभो अपने ख्यालों में खोया हुआ चाय - बीड़ी ले रहा था. बारिश अभी और तेज़ हुई ही थी कि दौड़ता हुआ बिल्टू भी घुस आया दुकान में. वो भी घर की ओर जा रहा था. अचानक बेमौसम बरसात का किसी को अंदाज़ा नहीं था. इसलिए सब बिना छाता के थे.
बिल्टू तो भीग भी गया था. जल्दी से एक आमलेट, चार बॉयल्ड अंडे और एक चाय का आर्डर दे बैठा.
शुभो को देख चहकते हुए पूछा,
“और दोस्त... कैसे हो?”
शुभो ने एक नज़र बिल्टू की ओर देखा और फिर बीड़ी का एक कश लगाते हुए बोला,
“ठीक हूँ... अपनी सुनाओ.”
“बस यार... सब ठीक चल रहा है जगदम्बे की कृपा से.”
“हम्म.”
बिल्टू के उत्तर पर बहुत छोटा सा ‘हम्म’ कर के शुभो दोबारा अपने ख्यालों में खो गया.
“क्या बात है यार? मन उदास है क्या?”
“नहीं यार. ऐसी बात नहीं?”
“क्या ऐसी बात नहीं.. अभी मुझे आए दस मिनट भी नहीं हुए हैं कि तुमने इतने ही देर में दो बीड़ी खत्म कर के तीसरी जला ली. कोई तो बात है. कोई प्यार व्यार का चक्कर है क्या?”
“नहीं.. वो भी नहीं.”
“तो फिर क्या बात है... बताओ भाई.”
बिल्टू के ज़ोर देने पर शुभो ने उसे रुना भाभी के बारे में बताने का सोचा. कहने ही जा रहा था कि उसकी नज़र गई पाँच कदम दूर बैठे हरिपद पर. एक हाथ में चाय की ग्लास और दूसरे में बेकरी वाला मोटा बिस्कुट लिए जिष्णु काका के साथ गप्पे लड़ाने में व्यस्त हैं.
हरिपद जिष्णु काका से कह रहे हैं,
“भाई.. सुना तुमने... परसों नदी के उस पार के तट पर फ़िर एक शव मिला... एक बत्तीस वर्षीया महिला का.”
“हाँ भई, सुना मैंने... बहुत बुरा. ये भी सुना की अभी चार साल ही हुए थे उसकी शादी को. पता नहीं अब उसके बच्चे का क्या होगा?”
कहते हुए जिष्णु काका अफ़सोस करने लगे.
उन दोनों की बातें सुनकर शुभो के मन में कुछ खटका. उसने ऐसी ही कोई बात करने की सोची बिल्टू के साथ...पर सीधे नहीं, घूमा कर.
धीरे से बोला,
“यार बिल्टू, एक बात पूछूँगा.. सही सही बताना.”
“हाँ बोल न.” सहमति जताने में बिल्टू ने देर नहीं की.
थोड़ा रुक कर शुभो पूछा,
“यार... तेरे को.. ये.. अम... ये... रु..रुना भाभी कैसी लगती है?”
प्रश्न सुनते ही बिल्टू आँखें बड़ी बड़ी कर के शुभो को देखने लगा. पूछा,
“क्यों बे? अचानक भाभियों में कब से तेरी रूचि जाग गई? और वो भी कोई ऐसी वैसी नहीं.. रुना भाभी!”
“अबे तू जो समझ रहा है वैसी कोई बात नहीं है. पर मैं जो कहना चाहता हूँ उसी से जुड़ा हुआ है.” शुभो ने उसे समझाते हुए कहा.
“हम्म.. देख भई, वैसे तो बड़ी मस्त लगती है. रस से भरपूर. पर मैं उन्हें गलत नज़र से नहीं देखता. बहुत सम्मानीय महिला हैं.” कहते हुए बिल्टू आँख मारी.
शुभो भी मन ही मन हँस पड़ा.
“सम्मानीय! हा हा हा”
फिर बोला,
“और?”
“और क्या?”
“पिछले कुछ दिनों से तुझे उनमें कोई परिवर्तन नहीं दिखा?”
“नहीं. और वैसे भी उतना देखना का समय कहाँ? सबको ताड़ता फिरूँगा तो काम कब करूँगा.. और जब काम नहीं कर पाऊँगा तब खाऊँगा क्या?”
तभी काका एक प्लेट आमलेट, चार बॉयल्ड अंडे और एक ग्लास चाय दे गए और बिल्टू चटकारे ले ले कर खाने लगा. उसे खाते देख शुभो को भी भूख लग गई और उसने भी आमलेट और चार अंडे आर्डर कर दिया.
उसने अभी आमलेट का एक टुकड़ा मुँह में रखा ही था कि अचानक उसे लगा जैसे किसी ने पीछे से उसके कंधे पर हाथ रखा है. वो डर कर पीछे पलटा.
उसे यूँ पलटते देख कर बिल्टू पूछा,
“क्या हुआ?”
“क.. कु.. कुछ नहीं... बस ऐसे ही.”
शुभो ने खाने को निगलते और डरते हुए कहा.
पीछे कोई नहीं था.
मन का वहम समझ कर वो फिर खाने पर ध्यान दिया. इस बार फिर किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा. हाथ इसबार कंधे पर नहीं रुका. वो धीरे धीरे फिसलते हुए उसके पीठ पर से होते हुए उसके कमर पर आ कर रुक गया, जैसे उसके पीठ को सहला रहा हो.
शुभो ने तुरंत कोई प्रतिक्रिया नहीं दिया. उसने गौर किया... ये हाथ मरदाना हाथ जैसा सख्त नहीं अपितु बहुत कोमल है. तभी उसे अपने पीठ के निचले हिस्से पर कुछ चुभता हुआ सा प्रतीत हुआ.
वो लगभग उछल पड़ा.
उसके ऐसा करने से बिल्टू भी थोड़ा डर गया.
“अबे क्या हुआ?”
“क... कुछ...नहीं... म.. मच्छर!”
“तो कोई ऐसे उछलता है क्या... साला पूरा मूड ख़राब कर दिया.” बिल्टू गुस्सा करते हुए बोला.
अब तक वहाँ उपस्थित बाकी लोगों का भी ध्यान उन दोनों पर आ गया था.
शुभो फटाफट अपना खाना खत्म कर हाथ धो कर काका के पास गया बिल देने. जब पैसे देने लगा तब एक और घटना घटी. दो हाथों की चूड़ियाँ उसके ठीक कानों के पास खनक उठी. शुभो हड़बड़ा कर इधर उधर देखने लगा. इस बार भय से उसके होंठ सूख गए. सांसे तेज़ हो गई. उसकी ऐसी स्थिति देख कर जिष्णु काका और हरिपद काका को भी बहुत अचरज हुआ.
वो कुछ पूछे इसके पहले ही शुभो पैसे दे कर वहाँ से चलता बना.
साइकिल चलाते हुए अपने घर को जाता शुभो को रास्ते भर ऐसा लगता रहा कि कोई उसके साइकिल पर... पीछे बैठा ... या.. बैठी हुई है. बार बार लगता रहा कि कोई उसके कमर को पकड़ी हुई है और रह रह कर उसके पुरुषांग को छू रही है.
रात को खाते समय भी उसका दिमाग इसी उधेड़बुन में था कि आखिर कालू कैसे रुना भाभी के चक्कर में फंस गया? एक तो भाभी पहले से ही विवाहिता हैं.. दूसरे, उन्होंने देबू को फँसा रखा है... तो फ़िर अब कालू के साथ क्यों? क्या भाभी सच में इतनी बुरी हैं? क्या उनका एक से मन नहीं भरता? क्या यही है एक पढ़ी लिखी सम्भ्रांत भाभी का असली चेहरा?
खाना खत्म कर के अपने कमरे में सोने गया. एक पुरानी कहानी की किताब ले कर पढ़ने बैठ गया. देर तक रात तक बीड़ी फूँकता हुआ कहानी पढ़ता रहा और अपने साथ घट रही घटनाओं के बारे में सोचता रहा. उस कहानी के नायक को हमेशा कुछ न कुछ लिखने का शौक था और हमेशा ही थोड़ा सा समय निकाल कर एक मोटी डायरी में लिखता रहता था. शुभो के भी दिमाग में कुछ लिखने का आईडिया आया और ऐसा ख्याल दिमाग में आते ही एकदम से उठ बैठा और एक मोटी कॉपी ले कर शुरू के कुछ पन्ने छोड़ कर उसमें कुछ लिखने लगा.
करीब चालीस मिनट तक लिखने के बाद उसे अच्छे से अपने सिरहाने बिस्तर के गद्दे के नीचे रख दिया और सो गया.
उसे सोए घंटे भर से ज्यादा का टाइम बीता होगा कि कमरे में हो रही कुछ खटपट की आवाज़ों से उसकी नींद टूट गई.
उसने जैसे ही उठने का कोशिश किया; आश्चर्य का ठिकाना न रहा.
वो तो हिल भी नहीं पा रहा है!
उसने फिर प्रयत्न किया... वही नतीजा!
घबराहट में वो छटपटाने लगा. पर सिवाय अपने सिर को दाएँ बाएँ घूमाने के और कुछ न कर सका. शुभो ऐसा लड़का है जो ऐसी परिस्थितियों के कल्पना मात्र से ही बुरी तरह सिहर उठता है.. लेकिन आज.. अभी... ऐसा ही कुछ साक्षात् घटित हो रहा है उसके साथ. वो बुरी तरह हांफने और कांपने लगा. साँसें इतनी तेज़ हो गई कि साँस ठीक से लेना भी एक चुनौती बन गई.
और तभी!
कमरे में पायल की रुनझुन सुनाई दी ! बहुत मीठी आवाज़!
लेकिन ऐसी परिस्थितियों में ऐसी आवाजें डर को बढ़ा देती है.. सुकून नहीं देती.
अपनी साँस पर नियंत्रण पाने की व्यर्थ चेष्टा करता शुभो दरवाज़े के पास एक हिलती परछाई देख कर और भी ज्यादा डर गया. बगल के कमरे में सो रहे अपने माँ बाबूजी को आवाज़ लगाना चाहा.. पर ये क्या? उसकी तो आवाज़ भी नहीं निकल रही. रात के सन्नाटे में ज़ोरों से चलती धड़कन उसे अपने सीने पर हथौड़े से पड़ते मालूम होने लगे. पूरे बदन पर पसीने की बूँदे छलक आईं. इतने देर बाद उसने गौर किया... उसके बदन पर से उसकी सैंडो गंजी (बनियान) गायब है!
‘मैं तो पहन कर ही सोया था...त... तो...’ इसके आगे सोचने से पहले ही उसकी नज़र उसी काली परछाई पर चली गई जो अब उसके बहुत पास आ गई थी.
‘ये.. ये... तो... कोई.... स्त्री.... है...’
डरते हुए शुभो ने धीरे से पूछा,
“क.. कौन हैं... आप?”
“श्श्शश्श्श...”
उस स्त्री के होंठों से एक शीत लहरी जैसी धीमी आवाज़ निकली. उसकी दायीं हाथ की तर्जनी ऊँगली उठी और धीरे धीरे आगे बढ़ती हुई शुभो के होंठों पर जा कर रुकी. फिर धीरे से नीचे उतरते हुए उसके सीने पर लगे खरोंचों तक पहुंची और उन घावों पर ऊँगली गोल गोल घूमने लगी.
और एकदम अचानक से तीन ऊँगलियों के नाखून उन घावों में धंस गए. अत्यधिक पीड़ा से बेचारा शुभो तड़प उठा. मारे उस दर्द के वो ज़ोरों से चीखना चाहा पर आवाज़ तब भी न निकली.
अब वो औरत धीरे से अपने नाखूनों को उसके सीने के घावों में से निकाली और अपने होंठों पर रख दी. इस अंधकार में भी शुभो कैसे उस औरत के अधिकांश हिस्सों को देख पा रहा है ये भी एक बहुत बड़ा आश्चर्य था उसके लिए.
नाखूनों पर लगे खून को अपने लंबे लाल जीभ से चाटने लगी वो. स्वाद लेने का तरीका ही बता रहा था कि उसे वो खून बहुत स्वादिष्ट लगा है. इधर शुभो के सीने पर से खून की एक धारा बह निकली जो अब धीरे धीरे बिस्तर पर बिछे चादर पर लग कर फैलने लगी.
पीड़ा और भय के मिले जुले भाव चेहरे पर लिए शुभो अब उस औरत के अगले कदम के बारे में सोचने लगा. अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी. वो औरत उसके पास से उठ कर उसके पैरों के तरफ गई. बिस्तर पर नहीं बैठ कर शुभो के नज़रों के एकदम सीध में ज़मीन पर घुटनों के बल बैठ कर शुभो के पैरों के तलवों को अपने नाखूनों से सहलाने लगी. सहलाते सहलाते वो ऊपर उठी और धीरे धीरे उसके जाँघों तक आई और एक झटके में उसके हाफ पैंट को दोनों साइड से पकड़ कर नीचे खींच दी.
अब शुभो का नग्न पुरुषांग उन दोनों के ही सामने था.
उस औरत ने दाएँ हाथ की अंजुली बना कर बड़े प्यार से उसके अंग (लंड) को हाथ में ली और अंगूठे के हल्के स्पर्श से मसलने लगी. तभी बादलों से ढके आसमान में एक ज़ोरदार गर्जन हुई और बिजली चमकी.
बाहर भयानक तूफ़ान शुरू हो गया था...
बिजली के चमकने से कमरे में थोड़ी रौशनी हुई और उसी रौशनी में शुभो ने गौर किया कि इस औरत के कपड़े बिल्कुल वैसे ही हैं जैसा सुबह रुना भाभी के बदन पर देखा था!
दुर्भाग्य से चेहरा न देख सका उस औरत का.
बीच बीच में उस औरत की हँसी सुनाई दे रही थी. दबी हुई हँसी. मानो लाख चाह कर भी अपना हँसी नहीं रोक पा रही है वो औरत.
उस औरत के हाथ के स्पर्श से ही शुभो का पुरुषांग धीरे धीरे फूलने लगा और कुछ ही क्षणों पश्चात् अपने पूरे रौद्र रूप में आ गया. उस औरत का हाथ उसके पूरे अंग पर फिसलने लगा और पतली उँगलियाँ मानो उस अंग की मोटाई और लम्बाई माप रही हो. और मापने का भी क्या अंदाज़ है.... चरम उत्तेजना में पहुँचा दे रही है.
तभी फिर बिजली चमकी.
और इस बार जो देखा शुभो ने वह देख उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ... भय से रोम रोम उसका खड़ा हो गया. कुछ देर पहले तन मन में छाई यौन उत्तेजना अब क्षण भर में गायब हो गई.
उस औरत की आँखें पूरी तरह से काली थीं और आँखों के कोनों से खून की पतली धारा बह रही थी. आँचल कई फोल्ड लिए बाएँ वक्ष के ऊपर थी. दायाँ स्तन ब्लाउज कप के ऊपर से ऐसे फूल कर उठी हुई थी मानो अभी फट पड़ेगी. गले पर चमकती एक मोटी चेन उसके लंबे गहरे वक्षरेखा में घुसी हुई थी. दोनों हाथों में सोने की मोटी मोटी चूड़ियाँ... कानों में सोने के चमकते झुमके. दोनों भवों के बीचोंबीच एक लम्बा पतला तिलक... शायद काले रंग का है...
![[Image: maxresdefault.jpg]](https://i.ytimg.com/vi/WNAo9lmIvJQ/maxresdefault.jpg)
“आ...आप....?!”
बस इतनी सी ही आवाज़ निकली शुभो की. उसके बाद तो शब्दों ने जैसे साफ़ मना कर दिया बाहर आने से.
होंठों के कोने में दुष्टता वाली मुस्कान लिए एकटक शुभो को कुछ देर तक देखने के बाद धीरे धीरे झुकते चली गई... और तभी शुभो को अपने जननांग पर कुछ गीला सा लगा. सिर उठा कर देखा... तो... वह औरत उसके पुनः खड़े हो चुके अंग को अपने मुँह में भर ली थी और किसी छोटे बच्चे के मानिंद आँखें बंद कर बड़े चाव और सुख से उसे चूसने लगी थी.
झुके होने के कारण स्त्री के दोनों वक्षों के अनावृत अंश रह रह कर उसके जाँघों पर रगड़ खा रहे थे जोकि शुभो के बदन में एक सनसनाहट पैदा कर रही थी.
सारा डर भूल कर शुभो आँखें बंद कर अब सिर्फ़ मुखमैथुन का आनंद लेने लगा.
मन ही मन कहने लगा,
“प्लीज़... मत रुकना... रुकना... मत...”
पल प्रति पल जैसे जैसे उस स्त्री का चूसने का गति बढ़ता गया वैसे वैसे शुभो चरम सुख से आत्मविभोर हो पागल सा होता गया. शहर जा कर कुछेक बाजारू लड़कियों से यौन सुख प्राप्त किया अवश्य था पर किसी के इस तरह चूसने से भी ऐसी चरम सुख वाली अवस्था प्राप्त होती है यह आज उसे पहली बार पता चला.
वो औरत बड़ी ही दक्षता से उसके पुरुषांग के मशरूम से लेकर जड़ तक और फिर जड़ से लेकर मशरूम सिर तक जीभ से भिगाती हुई चूम और चूस रही थी. ऊपर से नीचे और फिर नीचे से ऊपर तक... हरेक इंच को छूती, हर शिराओं का अहसास करती और कराती वो औरत शुभो को यौनोंमांद में पागल किए दे रही थी.
ऐसा कुछ भी आज से पहले उसने कभी अनुभव नहीं किया था.
इसलिए ज्यादा देर तक मैदान में न टिक सका.
कुछ ही समय बाद उसका वीर्यपात हो गया. लेकिन वो औरत फ़िर भी नहीं रुकी... चूसते रही. चूसते ही रही.
उसके वीर्य के एक बूँद तक को व्यर्थ नहीं जाने दी... सब निगल गई. एक क्षण के लिए रुक कर बड़े कामुक अंदाज़ में अपने होंठों पर जीभ फ़िरा कर सम्भावित बचे हुए वीर्य की बूँदों को चाट ली और फ़िर उसके जनेन्द्रिय को पूरे अधिकार से अपनी मुट्ठी की गिरफ्त में ले कर चूसना प्रारंभ कर दी.
शुभो को वाकई बहुत मज़ा आया लेकिन वीर्यपात होने के साथ ही वो आहिस्ते आहिस्ते चेतनाशून्य हो गया.
कुछ और समय बीता....
बाहर उठा तूफ़ान अब शांत हो चुका था...
और इधर धीरे धीरे शुभो का शरीर भी ठंडा होता चला गया.....
.....निष्प्राण.
कालू के घर से ले कर अपने दुकान तक और फ़िर अपने दुकान से लेकर देर शाम अपने घर तक हर पल शुभो को ऐसा लगता रहा की वो अकेला नहीं है. कोई न कोई हर पल उसके साथ है. उस पूरे दिन उसके दिमाग में एक साथ इतनी बातें चल रही थी कि वो किसी भी काम पे ध्यान नहीं दे पाया. हरेक काम में कोई न कोई गलती होती रही उससे. यहाँ तक की अपने सीने पर उभर आए उन तीन खरोंचों के निशान तक को भी भूल गया.
देर शाम जब वो किसी दूसरे चाय दुकान में एक छोटी बेंच पर बैठा चाय पी रहा था तब हरिपद के साथ भेंट हुई. दरअसल हरिपद अपने अधीनस्थ दोनों नाविकों को उस दिन का खर्चा दे कर बचे हुए पैसे लेकर घर की ओर ही जा रहे थे कि अचानक से तेज़ बारिश होने लगी. ये चाय दुकान बगल में ही था तो बचने के लिए तुरंत वहीं घुस गए.
गाँव के चाय दुकान वाले हो या दैनिक बिक्री वाले दूसरे दुकानदार.. हमेशा बड़े और खुले जगह पर दुकान खोला करते हैं. दुकान ऐसा रखते हैं की एक साथ दस आदमी अंदर आराम से बैठ जाए.
उस समय शुभो और चाय वाले जिष्णु काका को लेकर कुल चार लोग थे. अब हरिपद भी शामिल हो गए. हरिपद और जिष्णु काका अच्छे दोस्त थे. उनमें बातें शुरू हो गई. शुभो अपने ख्यालों में खोया हुआ चाय - बीड़ी ले रहा था. बारिश अभी और तेज़ हुई ही थी कि दौड़ता हुआ बिल्टू भी घुस आया दुकान में. वो भी घर की ओर जा रहा था. अचानक बेमौसम बरसात का किसी को अंदाज़ा नहीं था. इसलिए सब बिना छाता के थे.
बिल्टू तो भीग भी गया था. जल्दी से एक आमलेट, चार बॉयल्ड अंडे और एक चाय का आर्डर दे बैठा.
शुभो को देख चहकते हुए पूछा,
“और दोस्त... कैसे हो?”
शुभो ने एक नज़र बिल्टू की ओर देखा और फिर बीड़ी का एक कश लगाते हुए बोला,
“ठीक हूँ... अपनी सुनाओ.”
“बस यार... सब ठीक चल रहा है जगदम्बे की कृपा से.”
“हम्म.”
बिल्टू के उत्तर पर बहुत छोटा सा ‘हम्म’ कर के शुभो दोबारा अपने ख्यालों में खो गया.
“क्या बात है यार? मन उदास है क्या?”
“नहीं यार. ऐसी बात नहीं?”
“क्या ऐसी बात नहीं.. अभी मुझे आए दस मिनट भी नहीं हुए हैं कि तुमने इतने ही देर में दो बीड़ी खत्म कर के तीसरी जला ली. कोई तो बात है. कोई प्यार व्यार का चक्कर है क्या?”
“नहीं.. वो भी नहीं.”
“तो फिर क्या बात है... बताओ भाई.”
बिल्टू के ज़ोर देने पर शुभो ने उसे रुना भाभी के बारे में बताने का सोचा. कहने ही जा रहा था कि उसकी नज़र गई पाँच कदम दूर बैठे हरिपद पर. एक हाथ में चाय की ग्लास और दूसरे में बेकरी वाला मोटा बिस्कुट लिए जिष्णु काका के साथ गप्पे लड़ाने में व्यस्त हैं.
हरिपद जिष्णु काका से कह रहे हैं,
“भाई.. सुना तुमने... परसों नदी के उस पार के तट पर फ़िर एक शव मिला... एक बत्तीस वर्षीया महिला का.”
“हाँ भई, सुना मैंने... बहुत बुरा. ये भी सुना की अभी चार साल ही हुए थे उसकी शादी को. पता नहीं अब उसके बच्चे का क्या होगा?”
कहते हुए जिष्णु काका अफ़सोस करने लगे.
उन दोनों की बातें सुनकर शुभो के मन में कुछ खटका. उसने ऐसी ही कोई बात करने की सोची बिल्टू के साथ...पर सीधे नहीं, घूमा कर.
धीरे से बोला,
“यार बिल्टू, एक बात पूछूँगा.. सही सही बताना.”
“हाँ बोल न.” सहमति जताने में बिल्टू ने देर नहीं की.
थोड़ा रुक कर शुभो पूछा,
“यार... तेरे को.. ये.. अम... ये... रु..रुना भाभी कैसी लगती है?”
प्रश्न सुनते ही बिल्टू आँखें बड़ी बड़ी कर के शुभो को देखने लगा. पूछा,
“क्यों बे? अचानक भाभियों में कब से तेरी रूचि जाग गई? और वो भी कोई ऐसी वैसी नहीं.. रुना भाभी!”
“अबे तू जो समझ रहा है वैसी कोई बात नहीं है. पर मैं जो कहना चाहता हूँ उसी से जुड़ा हुआ है.” शुभो ने उसे समझाते हुए कहा.
“हम्म.. देख भई, वैसे तो बड़ी मस्त लगती है. रस से भरपूर. पर मैं उन्हें गलत नज़र से नहीं देखता. बहुत सम्मानीय महिला हैं.” कहते हुए बिल्टू आँख मारी.
शुभो भी मन ही मन हँस पड़ा.
“सम्मानीय! हा हा हा”
फिर बोला,
“और?”
“और क्या?”
“पिछले कुछ दिनों से तुझे उनमें कोई परिवर्तन नहीं दिखा?”
“नहीं. और वैसे भी उतना देखना का समय कहाँ? सबको ताड़ता फिरूँगा तो काम कब करूँगा.. और जब काम नहीं कर पाऊँगा तब खाऊँगा क्या?”
तभी काका एक प्लेट आमलेट, चार बॉयल्ड अंडे और एक ग्लास चाय दे गए और बिल्टू चटकारे ले ले कर खाने लगा. उसे खाते देख शुभो को भी भूख लग गई और उसने भी आमलेट और चार अंडे आर्डर कर दिया.
उसने अभी आमलेट का एक टुकड़ा मुँह में रखा ही था कि अचानक उसे लगा जैसे किसी ने पीछे से उसके कंधे पर हाथ रखा है. वो डर कर पीछे पलटा.
उसे यूँ पलटते देख कर बिल्टू पूछा,
“क्या हुआ?”
“क.. कु.. कुछ नहीं... बस ऐसे ही.”
शुभो ने खाने को निगलते और डरते हुए कहा.
पीछे कोई नहीं था.
मन का वहम समझ कर वो फिर खाने पर ध्यान दिया. इस बार फिर किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा. हाथ इसबार कंधे पर नहीं रुका. वो धीरे धीरे फिसलते हुए उसके पीठ पर से होते हुए उसके कमर पर आ कर रुक गया, जैसे उसके पीठ को सहला रहा हो.
शुभो ने तुरंत कोई प्रतिक्रिया नहीं दिया. उसने गौर किया... ये हाथ मरदाना हाथ जैसा सख्त नहीं अपितु बहुत कोमल है. तभी उसे अपने पीठ के निचले हिस्से पर कुछ चुभता हुआ सा प्रतीत हुआ.
वो लगभग उछल पड़ा.
उसके ऐसा करने से बिल्टू भी थोड़ा डर गया.
“अबे क्या हुआ?”
“क... कुछ...नहीं... म.. मच्छर!”
“तो कोई ऐसे उछलता है क्या... साला पूरा मूड ख़राब कर दिया.” बिल्टू गुस्सा करते हुए बोला.
अब तक वहाँ उपस्थित बाकी लोगों का भी ध्यान उन दोनों पर आ गया था.
शुभो फटाफट अपना खाना खत्म कर हाथ धो कर काका के पास गया बिल देने. जब पैसे देने लगा तब एक और घटना घटी. दो हाथों की चूड़ियाँ उसके ठीक कानों के पास खनक उठी. शुभो हड़बड़ा कर इधर उधर देखने लगा. इस बार भय से उसके होंठ सूख गए. सांसे तेज़ हो गई. उसकी ऐसी स्थिति देख कर जिष्णु काका और हरिपद काका को भी बहुत अचरज हुआ.
वो कुछ पूछे इसके पहले ही शुभो पैसे दे कर वहाँ से चलता बना.
साइकिल चलाते हुए अपने घर को जाता शुभो को रास्ते भर ऐसा लगता रहा कि कोई उसके साइकिल पर... पीछे बैठा ... या.. बैठी हुई है. बार बार लगता रहा कि कोई उसके कमर को पकड़ी हुई है और रह रह कर उसके पुरुषांग को छू रही है.
रात को खाते समय भी उसका दिमाग इसी उधेड़बुन में था कि आखिर कालू कैसे रुना भाभी के चक्कर में फंस गया? एक तो भाभी पहले से ही विवाहिता हैं.. दूसरे, उन्होंने देबू को फँसा रखा है... तो फ़िर अब कालू के साथ क्यों? क्या भाभी सच में इतनी बुरी हैं? क्या उनका एक से मन नहीं भरता? क्या यही है एक पढ़ी लिखी सम्भ्रांत भाभी का असली चेहरा?
खाना खत्म कर के अपने कमरे में सोने गया. एक पुरानी कहानी की किताब ले कर पढ़ने बैठ गया. देर तक रात तक बीड़ी फूँकता हुआ कहानी पढ़ता रहा और अपने साथ घट रही घटनाओं के बारे में सोचता रहा. उस कहानी के नायक को हमेशा कुछ न कुछ लिखने का शौक था और हमेशा ही थोड़ा सा समय निकाल कर एक मोटी डायरी में लिखता रहता था. शुभो के भी दिमाग में कुछ लिखने का आईडिया आया और ऐसा ख्याल दिमाग में आते ही एकदम से उठ बैठा और एक मोटी कॉपी ले कर शुरू के कुछ पन्ने छोड़ कर उसमें कुछ लिखने लगा.
करीब चालीस मिनट तक लिखने के बाद उसे अच्छे से अपने सिरहाने बिस्तर के गद्दे के नीचे रख दिया और सो गया.
उसे सोए घंटे भर से ज्यादा का टाइम बीता होगा कि कमरे में हो रही कुछ खटपट की आवाज़ों से उसकी नींद टूट गई.
उसने जैसे ही उठने का कोशिश किया; आश्चर्य का ठिकाना न रहा.
वो तो हिल भी नहीं पा रहा है!
उसने फिर प्रयत्न किया... वही नतीजा!
घबराहट में वो छटपटाने लगा. पर सिवाय अपने सिर को दाएँ बाएँ घूमाने के और कुछ न कर सका. शुभो ऐसा लड़का है जो ऐसी परिस्थितियों के कल्पना मात्र से ही बुरी तरह सिहर उठता है.. लेकिन आज.. अभी... ऐसा ही कुछ साक्षात् घटित हो रहा है उसके साथ. वो बुरी तरह हांफने और कांपने लगा. साँसें इतनी तेज़ हो गई कि साँस ठीक से लेना भी एक चुनौती बन गई.
और तभी!
कमरे में पायल की रुनझुन सुनाई दी ! बहुत मीठी आवाज़!
लेकिन ऐसी परिस्थितियों में ऐसी आवाजें डर को बढ़ा देती है.. सुकून नहीं देती.
अपनी साँस पर नियंत्रण पाने की व्यर्थ चेष्टा करता शुभो दरवाज़े के पास एक हिलती परछाई देख कर और भी ज्यादा डर गया. बगल के कमरे में सो रहे अपने माँ बाबूजी को आवाज़ लगाना चाहा.. पर ये क्या? उसकी तो आवाज़ भी नहीं निकल रही. रात के सन्नाटे में ज़ोरों से चलती धड़कन उसे अपने सीने पर हथौड़े से पड़ते मालूम होने लगे. पूरे बदन पर पसीने की बूँदे छलक आईं. इतने देर बाद उसने गौर किया... उसके बदन पर से उसकी सैंडो गंजी (बनियान) गायब है!
‘मैं तो पहन कर ही सोया था...त... तो...’ इसके आगे सोचने से पहले ही उसकी नज़र उसी काली परछाई पर चली गई जो अब उसके बहुत पास आ गई थी.
‘ये.. ये... तो... कोई.... स्त्री.... है...’
डरते हुए शुभो ने धीरे से पूछा,
“क.. कौन हैं... आप?”
“श्श्शश्श्श...”
उस स्त्री के होंठों से एक शीत लहरी जैसी धीमी आवाज़ निकली. उसकी दायीं हाथ की तर्जनी ऊँगली उठी और धीरे धीरे आगे बढ़ती हुई शुभो के होंठों पर जा कर रुकी. फिर धीरे से नीचे उतरते हुए उसके सीने पर लगे खरोंचों तक पहुंची और उन घावों पर ऊँगली गोल गोल घूमने लगी.
और एकदम अचानक से तीन ऊँगलियों के नाखून उन घावों में धंस गए. अत्यधिक पीड़ा से बेचारा शुभो तड़प उठा. मारे उस दर्द के वो ज़ोरों से चीखना चाहा पर आवाज़ तब भी न निकली.
अब वो औरत धीरे से अपने नाखूनों को उसके सीने के घावों में से निकाली और अपने होंठों पर रख दी. इस अंधकार में भी शुभो कैसे उस औरत के अधिकांश हिस्सों को देख पा रहा है ये भी एक बहुत बड़ा आश्चर्य था उसके लिए.
नाखूनों पर लगे खून को अपने लंबे लाल जीभ से चाटने लगी वो. स्वाद लेने का तरीका ही बता रहा था कि उसे वो खून बहुत स्वादिष्ट लगा है. इधर शुभो के सीने पर से खून की एक धारा बह निकली जो अब धीरे धीरे बिस्तर पर बिछे चादर पर लग कर फैलने लगी.
पीड़ा और भय के मिले जुले भाव चेहरे पर लिए शुभो अब उस औरत के अगले कदम के बारे में सोचने लगा. अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी. वो औरत उसके पास से उठ कर उसके पैरों के तरफ गई. बिस्तर पर नहीं बैठ कर शुभो के नज़रों के एकदम सीध में ज़मीन पर घुटनों के बल बैठ कर शुभो के पैरों के तलवों को अपने नाखूनों से सहलाने लगी. सहलाते सहलाते वो ऊपर उठी और धीरे धीरे उसके जाँघों तक आई और एक झटके में उसके हाफ पैंट को दोनों साइड से पकड़ कर नीचे खींच दी.
अब शुभो का नग्न पुरुषांग उन दोनों के ही सामने था.
उस औरत ने दाएँ हाथ की अंजुली बना कर बड़े प्यार से उसके अंग (लंड) को हाथ में ली और अंगूठे के हल्के स्पर्श से मसलने लगी. तभी बादलों से ढके आसमान में एक ज़ोरदार गर्जन हुई और बिजली चमकी.
बाहर भयानक तूफ़ान शुरू हो गया था...
बिजली के चमकने से कमरे में थोड़ी रौशनी हुई और उसी रौशनी में शुभो ने गौर किया कि इस औरत के कपड़े बिल्कुल वैसे ही हैं जैसा सुबह रुना भाभी के बदन पर देखा था!
दुर्भाग्य से चेहरा न देख सका उस औरत का.
बीच बीच में उस औरत की हँसी सुनाई दे रही थी. दबी हुई हँसी. मानो लाख चाह कर भी अपना हँसी नहीं रोक पा रही है वो औरत.
उस औरत के हाथ के स्पर्श से ही शुभो का पुरुषांग धीरे धीरे फूलने लगा और कुछ ही क्षणों पश्चात् अपने पूरे रौद्र रूप में आ गया. उस औरत का हाथ उसके पूरे अंग पर फिसलने लगा और पतली उँगलियाँ मानो उस अंग की मोटाई और लम्बाई माप रही हो. और मापने का भी क्या अंदाज़ है.... चरम उत्तेजना में पहुँचा दे रही है.
तभी फिर बिजली चमकी.
और इस बार जो देखा शुभो ने वह देख उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ... भय से रोम रोम उसका खड़ा हो गया. कुछ देर पहले तन मन में छाई यौन उत्तेजना अब क्षण भर में गायब हो गई.
उस औरत की आँखें पूरी तरह से काली थीं और आँखों के कोनों से खून की पतली धारा बह रही थी. आँचल कई फोल्ड लिए बाएँ वक्ष के ऊपर थी. दायाँ स्तन ब्लाउज कप के ऊपर से ऐसे फूल कर उठी हुई थी मानो अभी फट पड़ेगी. गले पर चमकती एक मोटी चेन उसके लंबे गहरे वक्षरेखा में घुसी हुई थी. दोनों हाथों में सोने की मोटी मोटी चूड़ियाँ... कानों में सोने के चमकते झुमके. दोनों भवों के बीचोंबीच एक लम्बा पतला तिलक... शायद काले रंग का है...
![[Image: maxresdefault.jpg]](https://i.ytimg.com/vi/WNAo9lmIvJQ/maxresdefault.jpg)
“आ...आप....?!”
बस इतनी सी ही आवाज़ निकली शुभो की. उसके बाद तो शब्दों ने जैसे साफ़ मना कर दिया बाहर आने से.
होंठों के कोने में दुष्टता वाली मुस्कान लिए एकटक शुभो को कुछ देर तक देखने के बाद धीरे धीरे झुकते चली गई... और तभी शुभो को अपने जननांग पर कुछ गीला सा लगा. सिर उठा कर देखा... तो... वह औरत उसके पुनः खड़े हो चुके अंग को अपने मुँह में भर ली थी और किसी छोटे बच्चे के मानिंद आँखें बंद कर बड़े चाव और सुख से उसे चूसने लगी थी.
झुके होने के कारण स्त्री के दोनों वक्षों के अनावृत अंश रह रह कर उसके जाँघों पर रगड़ खा रहे थे जोकि शुभो के बदन में एक सनसनाहट पैदा कर रही थी.
सारा डर भूल कर शुभो आँखें बंद कर अब सिर्फ़ मुखमैथुन का आनंद लेने लगा.
मन ही मन कहने लगा,
“प्लीज़... मत रुकना... रुकना... मत...”
पल प्रति पल जैसे जैसे उस स्त्री का चूसने का गति बढ़ता गया वैसे वैसे शुभो चरम सुख से आत्मविभोर हो पागल सा होता गया. शहर जा कर कुछेक बाजारू लड़कियों से यौन सुख प्राप्त किया अवश्य था पर किसी के इस तरह चूसने से भी ऐसी चरम सुख वाली अवस्था प्राप्त होती है यह आज उसे पहली बार पता चला.
वो औरत बड़ी ही दक्षता से उसके पुरुषांग के मशरूम से लेकर जड़ तक और फिर जड़ से लेकर मशरूम सिर तक जीभ से भिगाती हुई चूम और चूस रही थी. ऊपर से नीचे और फिर नीचे से ऊपर तक... हरेक इंच को छूती, हर शिराओं का अहसास करती और कराती वो औरत शुभो को यौनोंमांद में पागल किए दे रही थी.
ऐसा कुछ भी आज से पहले उसने कभी अनुभव नहीं किया था.
इसलिए ज्यादा देर तक मैदान में न टिक सका.
कुछ ही समय बाद उसका वीर्यपात हो गया. लेकिन वो औरत फ़िर भी नहीं रुकी... चूसते रही. चूसते ही रही.
उसके वीर्य के एक बूँद तक को व्यर्थ नहीं जाने दी... सब निगल गई. एक क्षण के लिए रुक कर बड़े कामुक अंदाज़ में अपने होंठों पर जीभ फ़िरा कर सम्भावित बचे हुए वीर्य की बूँदों को चाट ली और फ़िर उसके जनेन्द्रिय को पूरे अधिकार से अपनी मुट्ठी की गिरफ्त में ले कर चूसना प्रारंभ कर दी.
शुभो को वाकई बहुत मज़ा आया लेकिन वीर्यपात होने के साथ ही वो आहिस्ते आहिस्ते चेतनाशून्य हो गया.
कुछ और समय बीता....
बाहर उठा तूफ़ान अब शांत हो चुका था...
और इधर धीरे धीरे शुभो का शरीर भी ठंडा होता चला गया.....
.....निष्प्राण.