20-07-2020, 10:23 PM
९)
धीरे धीरे दस दिन बीत गए.
हर रोज़ नबीन बाबू के ऑफिस के लिए निकल जाने के बाद देबू दूध देने आता और बहुत सा समय रुना के साथ बिताता.
और इन्हीं दस दिनों में शुभो ने भी कम से कम सात दिन देबू का रुना के घर तक पीछा किया, पेड़ पर चढ़ा, उस कमरे की खिड़की की ओर टकटकी बाँधे बैठा रहता किसी एक डाली पर और तब तक बैठा रहता जब तक उस खिड़की से रुना भाभी और देबू के कामक्रियाओं का कुछ दृश्य दिखाई न दे देता.
जब कुछ भी दिखना बंद हो जाता तब भारी मन से पेड़ से उतर कर अपने दुकान जाता और सारा दिन खोया खोया सा रहते हुए काम करता.
इसमें कोई संदेह नहीं है की शुभो को रुना भाभी अच्छी नहीं लगती थी.. वो तो उसे बहुत अच्छी... हद से भी अधिक अच्छी लगती थी.. पर सिर्फ़ गाँव की एक शिक्षित और सुसंस्कृत महिला के रूप में. पर जब से रुना को देबू के साथ काम लीला में रत देखना शुरू किया है तब से सिर्फ़ और सिर्फ़ रुना को एक कामदेवी के रूप में देखने लगा है.
पर इससे भी बड़ी बात ये है कि वासना से भी अधिक जो अब शुभो के दिलो दिमाग पर छा गया है वो है ‘डर’.
जब पहली बार उसने खिड़की से देबू और रुना को आपस में प्रेम प्रणय करते देखा था उसी दिन उसने कभी न भूलने वाली एक बात और देखा था.
रुना की काली आँखें!
हो सकता है की शायद ये शुभो के मन का वहम हो परन्तु शुभो तो जैसे ये मान ही बैठा था कि उसी दिन रुना ने शुभो को पेड़ की डाली पर बैठ पत्तों के झुरमुठ से उस कमरे की खिड़की में ताक झाँक करते हुए देख लिया था...
और यही वो समय था जब शुभो ने रुना की काली... पूरी तरह से काली हो चुकी आँखों को देखा था.
हालाँकि उस दिन के बाद से शुभो इतना डर गया था कि हस्तमैथुन भी करे तो डर के कारण वीर्य के स्थान पर मूत निकल जाए; फिर भी वो इन बीते दस में से सात दिन खुद को रोक न सका और नबीन बाबू के घर के पीछे जा उसी पेड़ की डाली पर बैठ रुना और देबू के शारीरिक आह्लाद वाली खेल को बड़े चाव से देखा.
एक बात जो उसे अच्छी लगी; वो ये कि इन सात दिनों में एक बार भी ऐसा नहीं लगा की रुना दोबारा उसकी तरफ देखी हो.
लेकिन एक बार जो वो भय उसके मन में घर कर गया... वो अब निकाले न निकले.
अपने डर के अनुभव को तो वो कालू के साथ बाँट ही चुका था.. सिर्फ़ देबू ही रह गया था.
पर शुभो को तब बहुत आश्चर्य हुआ जब उसके ये पूछने पर कि देबू और रुना के बीच क्या चक्कर है तो देबू ऐसी किसी भी बात से साफ़ मुकर गया. शुभो ने जब दोस्ती खातिर देबू पर दबाव डाला तब देबू ने साफ़ कह दिया,
“देख भाई, तू पिछले कुछ दिनों से बड़ा अजीब तरह से बर्ताव कर रहा है. इतनी उल्टी सीधी और बहकी बहकी बातें कर रहा है कि कभी कभी तो लगता है तुझे शहर ले जा कर डॉक्टर से दिखाना पड़ेगा. सुन, ये सब न कालू के सामने किया कर... वो भरोसा करता है ऐसी बातों पे और जल्दी मान भी जाता है. यार, तुझे शर्म आनी चाहिए जो तूने रुना भाभी जैसी एक संभ्रांत परिवार की महिला पर इस तरह का ऐसा घिनौना संदेह किया, उनके चरित्र पर अँगुली उठाया. और उससे भी बड़ी दुःख की बात ये की तूने अपने इस जिगरी यार पर भी संदेह करता हुआ ऐसा बेहूदा आरोप लगाया. तेरे से ऐसी अपेक्षा नहीं थी. धिक्कार है ऐसी मित्रता पर.”
आँखों में आँसू लिए देबू वहाँ से चला गया.
और शुभो को एक अलग ही द्वंद्व में डाल दिया.
अपने और रुना भाभी के बीच के अमान्य सम्बन्ध को स्वीकार करने से साफ़ मना करने और ऐसी नीच बात सोचने और देबू पर झूठे आरोप लगाने की बात बोलकर उल्टे शुभो को ही देबू ने बहुत भला बुरा कह दिया और इसी के साथ ही दोनों की दोस्ती में दरार पड़ गई.
अपने सीने पर लगे खरोंच, कुछ दिन पहले हुई कुछ अनजानी बातों और अब शुभो के मुँह से रुना भाभी के बारे में सुनने के बाद से ही कालू और अधिक डर गया था और अब अपने घर से दुकान और दुकान से सीधे घर पहुँचता. कहीं किसी से कोई बेकार की बातें करना या समय बर्बाद करना; ये सब आदत उसकी रातों रात छूट गई.
चाय दुकान पर भी यदि शुभो से मिलता भी तो बस दस से पन्द्रह मिनट के लिए... फिर तेज़ क़दमों से चल कर सीधे घर पहुँचता.
देबू ने साथ उठना बैठना छोड़ दिया था.
शुभो और कालू ने उसे समझाने और मनाने की कोशिश की पर... सब व्यर्थ हुआ.
दिन किसी तरह कटते रहे...
अब बहुत कुछ पहले जैसा नहीं रहा.
एक दिन सुबह नींद से जागते ही शुभो को सीने पर दर्द होने लगा. कुछ चुभता हुआ सा लगा.
जल्दी से अपना टी शर्ट उतार कर देखा तो वो दंग रह गया.
उसके सीने पर ठीक वैसे खरोंचों के निशान थे जो आज से कुछ दिन पहले कालू ने अपने सीने पर दिखाया था. गहरे, टीस देते, सूजे हुए. आँखों पर से आश्चर्य के बादल हटते ही शुभो को असीमित भय के आवरण ने घेर लिया. उसके मन – मस्तिष्क में केवल भय ही भय बैठ गया. वह जल्दी से बिस्तर से उठा और कालू से मिलने के लिए तैयार होने लगा. पर तैयार होते होते ही उसे याद आया कि जब तक वो नहा धो कर, नाश्ता नहीं कर लेता तब तक घर के बाहर कदम नहीं रख सकता. ये एक ऐसा नियम था जो उसके परदादा के भी परदादा के ज़माने से चला आ रहा था और आज भी उसके दादाजी के साथ साथ उसके माता – पिता भी पूरे निष्ठा के साथ इस नियम का पालन करते हैं.
अतः तैयार होना छोड़ कर शुभो झट से बाथरूम में घुसा और नहाने लगा. मग से जब सिर पर पानी डालता और जब वह पानी बहते हुए सीने पर लगे घाव पे जा लगता तो घोर वेदना से शुभो सिहर उठता. अब तक उसे अंदाजन इतना तो समझ में आ ही गया था कि ये कोई मामूली खरोंच के दाग नहीं हैं अपितु कोई पराभौतिक मामला है.
नहा धो कर अपने कमरे में आया और जल्दी जल्दी कपड़े पहनने लगा. इसी दौरान उसने बिस्तर पर कुछ ऐसा देखा जो उसे थोड़ा अजीब लगा. बिस्तर पर उसके तकिये पर एक बाल था. चूँकि तकिया का कवर सफ़ेद रंग का था इसलिए अनायास ही उसकी नज़र तकिये पर चली गई थी. शुभो अपेक्षाकृत छोटे बाल रखता है और यहाँ ये बाल थोड़ा बड़ा था. उत्सुकता ने शुभो को तकिये पास जा कर खड़ा कर दिया. शुभो थोड़ा झुका और अंगूठे और तर्जनी अँगुली की मदद से उस बाल को तकिये पर उठा कर अपने आँखों के बहुत पास ला कर देखा.
बाल सिर्फ़ बड़ा ही नहीं, वरन बहुत बड़ा था और निःसंदेह किसी स्त्री का था और पूरी तरह काले रंग का न हो कर लाइट ब्राउन था.
एक के बाद एक दो बड़ी बातों ने शुभो के दिमाग का काम करना बंद कर दिया. पहले तो सीने पर खरोंच और अब तकिये पर एक स्त्री का बाल. पहला सुलझा नहीं की दूसरे ने और उलझा दिया.
मन ही मन सोचा,
‘किसी और से तो बात हो नहीं सकती इस बारे में. देबू तो सुनने वाला नहीं. बचा अब ये कालू. इस बाल के बारे में कुछ बता पाए या न बता पाए... इन खरोंचों के बारे में कुछ तो बता ही सकता है.’
जल्दी से नाश्ता खत्म कर वह कालू से मिलने उसके घर के लिए रवाना हो गया.
साइकिल से ज्यादा टाइम नहीं लगा कालू के घर तक पहुँचने में. उसके घर के बाहर उसकी छोटी बहन अपनी दो सहेलियों के साथ बैठी थी. शुभो को देखते ही खुश हो गई. दौड़ कर उसके पास गई और बोली,
“नमस्ते भैया... आप भैया से मिलने आए हैं?”
“हाँ छोटी... क्या कर रहे हैं तुम्हारे भैया? सो रहे हैं?”
“नहीं जाग रहे हैं. भैया, आप मेरे लिए लाए हैं?”
कहते हुए अपना दायाँ हाथ आगे बढ़ा दी छोटी.
जीभ काटते हुए शुभो उदास चेहरा बनाते हुए बोला,
“सॉरी छोटी. आज जल्दी में था इसलिए भूल गया. कल पक्का ला दूँगा. ठीक है?”
सुन कर छोटी निराश हो गई. दिल छोटा हो गया उसका. एक शुभो ही था जो अक्सर ही उसे टॉफ़ी ला कर देता था. घर में सब उसे ज्यादा टॉफ़ी खाने से मना करते थे. पर छोटी जैसी कम आयु की लड़की क्या जाने टॉफ़ी खाने के फायदे या नुकसान.. अक्सर ही ज़िद करती रहती. कभी कभार कालू उसे दे देता था पर ये शुभो ही था जो छोटी को बहन से भी ज्यादा प्यार देते हुए उसे अक्सर ही तरह तरह के फ्लेवर वाले टॉफ़ी ला कर देता था.
अभी शुभो के मुँह से ‘ना’ सुनकर उसका दिल तो छोटा हो गया पर वो जानती है कि शुभो बाद में उसे ज़रूर टॉफ़ी देगा. इसलिए तुरंत ही मुस्करा कर बोली,
“अच्छा तो बाद में देंगे न?”
“बिल्कुल!”
“पक्का प्रॉमिस?”
“पक्का प्रॉमिस!”
“ओके. थैंक्यू!”
“अच्छा, चल अब बता... तेरे भैया अगर जाग रहे हैं तो किधर हैं?”
“घर के पीछे... पुआल घर में.”
“क्या? पुआल घर में..?? क्या बात है.. सुबह सुबह ही ग्राहक आ गए?”
“ग्राहक नहीं भैया... मैडम आईं है.”
“मैडम? कौन मैडम?”
“मैडम मतलब नहीं समझे? रुना मैडम आईं हैं!”
“क्या??”
शुभो के तो होश ही उड़ गए.
ऐसा कुछ सुनने की तो उसने कोई आशा ही नहीं की थी. सीने पर उभर आए घाव के साथ साथ जिस व्यक्ति विशेष के बारे में कालू से थोड़ा चर्चा करना चाहता था वो स्वयं ही यहाँ आ पहुंची है! पर क्यों? क्या वाकई उन्हें कुछ लेना – खरीदना है? या फ़िर....??
छोटी को बाय बोल कर अपनी साईकिल वहीँ खड़ी कर के वो आहिस्ते क़दमों से चलता हुआ घर के पीछे पहुँचा. घर के सामने से पीछे तक पहुँचने में उसे कुल बाईस कदम चलने पड़े और घर के पीछे पहुँचने पर उसने देखा की पुआल घर थोड़ा और पीछे हट कर स्थित है जहाँ तक पहुँचने में अंदाजन उसे पंद्रह से सोलह कदम चलने पड़ेंगे.
उसने एक लंबी साँस ली, मानसिक तौर पर खुद को तैयार किया ताकि वहाँ पहुँचने पर अगर उसे कोई ऐसी वैसी भयावह दृश्य देखने को मिले तो वो घबराए न, ज़ोर पकड़ती धड़कनों की स्पीड को संयत करने का प्रयास किया और मन ही मन अपने ईश्वर को याद कर के आगे बढ़ा. उसका दायाँ हाथ उसके गले में पतले धागे से बंधे उसके कुलदेवता के एक छोटी सी ताबीज नुमा फ़ोटो पर थी. अपने कुलदेवता से अपनी रक्षा का और कोई अनुचित या अवांछित दृश्य न दिखने का प्रार्थना करता हुआ सधे पर धीमे कदमो से आगे बढ़ता रहा.
जैसे ही पुआल घर के एकदम पास पहुँचा; उसे दबी आवाज़ में किसी की हँसी सुनाई दी.
किसी भयावह दृश्य से सामना होने की परिकल्पना अब तक अपने मन मस्तिष्क में संजोए शुभो के लिए हँसी की आवाज़ बहुत ही अप्रत्याशित थी. एक तरह से झटका लगा उसे.
चारों तरफ पुआल ही पुआल. बगल में ही पुआलों के ढेर में उसे कुछ हलचल होती दिखी. शुभो तुरंत उस ओर बढ़ा.
और उस ओर जाने पर उसे जो दिखा; उसके बारे में भी उसने नहीं सोचा था.
पुआलों के ढेर पर रुना अधनंगी लेटी हुई थी और उसके बगल में कालू लेटा हुआ उसे प्यार किए जा रहा था.
इस दृश्य को देखते ही शुभो को फ़ौरन दो मिनट खुद को सँभालने में लग गए.
आँखों को हल्के से मसल कर वो दोबारा उस तरफ देखा.
सच में! रुना और कालू पुआल के ढेर में लेटे हुए आपस में प्यार करते हुए अपनी रंगीन दुनिया में खोए हुए हैं. कालू के हाथ रुना के आधे अधूरे कपड़ों के ऊपर से ही उसके पूरे बदन पर घूम रहे हैं और कालू खुद भी रुना के उभारों और गहराईयों की मस्ती में खोया हुआ उसे चूमे और प्यार किए जा रहा है.
दोनों को एक साथ ऐसी अवस्था में देख कर शुभो घोर अविश्वास से दोहरा हो गया. दिमाग सांय सांय करने लगा. उसके आँखों के सामने ही वे दोनों धीरे धीरे प्यार के सागर की गहराईयों में डूबते जा रहे थे.
“क्या कर रहा है बे?!”
शुभो ज़ोर से चिल्ला पड़ा.
अचानक ऐसी आवाज़ सुन कर रुना और कालू; दोनों ही बहुत बुरी तरह से डर कर हड़बड़ा गए. शुभो को देख कर दोनों एक झटके में उठ बैठे और जल्दी जल्दी अपने कपड़ों को ठीक करने लगे.
“रुको!”
शुभो फ़िर चिल्लाया.
दोनों हतप्रभ हो उसे देखने लगे. दोनों के चेहरों के रंग सफ़ेद पड़ चुके थे और चोरी पकड़े जाने के कारण भयभीत थे.
शुभो दो कदम आगे बढ़ कर फ़िर गुर्राया,
“अब अगर तुम दोनों में से किसी की भी एक ऊँगली तक हिली तो मैं चिल्ला चिल्ला कर सबको यहाँ इकट्टा कर लूँगा.”
ये वाक्य ख़त्म होते ही पहले से बुरी तरह डरे कालू और रुना को जैसे साँप सूंघ गया. दोनों जड़वत वहीं बैठ गए.
“साले... कुत्ते.... तेरे को न जाने कितनी बार समझाया था पहले की चाहे जो भी हो जाए... इस चुड़ैल से दूर रहना. इसका कोई भरोसा नहीं. विवाहिता होते हुए भी अपने दूधवाले को अपने रूपजाल में फँसा चुकी है और अब तेरे पे डोरे डाल रही है. अबे पागल... तू ये तक भूल गया कि तूने ही सबसे पहले मुझे और देबू को बताया था उस दिन कि मिथुन के साथ तूने रुना को कई बार देखा है और जिस दिन वो मरा उसके पहले वाले दिन भी उसे इसी के साथ देखा था. आज खुद ही देख ले; तुझे और देबू को अधिकतर बातें याद नहीं रहती. देबू तो हम दोनों से दोस्ती तक तोड़ चुका है.. क्यों? कब हुआ ऐसा? जब से इसके प्रेमजाल में फँसा है तब से. मैंने बताया था तुझे इसकी काली आँखों के बारे में... फ़िर भी तू.... कैसे यार?!!”
शुभो एक साँस में बोलता चला गया. जो कुछ उसके मन में था सब कुछ बोलता चला गया. और वे दोनों चुपचाप सुनते रहे. यहाँ एक बात कालू और शुभो में से किसी ने गौर नहीं किया कि जब शुभो ने रुना और मिथुन के साथ वाले घटना का ज़िक्र किया तब रुना चौंक गई थी और तिरछी नज़रों से गौर से कालू को देखने लगी थी.
“देख यार शुभो, तू जो सोच रहा है .....”
कालू के बात को बीच में ही काटते हुए शुभो बोल पड़ा,
“हाँ... ये अच्छा है.. जब तक चोरी पकड़ी नहीं गई, तब तक सब ठीक है... पर जैसे ही पकड़ में आ जाओ तो कहो की जो दूसरे सोच रहे हैं वैसा कुछ नहीं है... हम्म... साले.. क्या कहना चाहता है तू....आं.. कि तू यहाँ रुना भाभी को लेटा कर उनकी मसाज कर दे रहा था.. या कपड़ों की फिटिंग देख रहा था ताकि नए कपड़े दिलवा सको? अबे इतना बेवकूफ़, नासमझ और लापरवाह कैसे हो सकता है तू? ये एक ख़तरनाक औरत है... तू नहीं जानता क्या? पहले तो बड़ा शक किया करता था... अब क्या हुआ?”
“यार... सुन..”
“अबे चुप... क्या सुनूँ मैं तेरी... और क्यों सुनूँ...? हाँ..?”
कहते कहते अचानक से शुभो की नज़र इतनी देर बाद दोबारा रुना पर गई जो अभी साड़ी के थोड़े से भाग से अपने बड़े वक्षस्थलों को ढकने का असफल प्रयास कर रही थी... और इसी में उसकी लंबी गहराई वाली वक्षरेखा बहुत कामुक रूप से दृश्यमान हो रही थी.. वह दृश्य इतना नयनाभिराम था कि कुछ पलों के लिए शुभो भी अपने पलकें झपकाने भूल गया.
पर तुरंत ही खुद को सम्भाला और ये सोच कर की कहीं उसकी ये हरकत इन दोनों ने न देख ली हो इसलिए वो अब रुना भाभी पर भी बुरी तरह बरस पड़ा. वो भाभी जिसे वो बहुत सम्मान किया करता था. जिसे सोच कर ही उसका सिर स्वयमेव ही श्रद्धा से झुक जाया करता था.
“ये... इसी ने तेरा, मेरा, देबू का और न जाने कितनों का दिमाग ख़राब कर रखा है. विवाहिता होते हुए भी कितने ही परायों से सम्बन्ध बनाए घूमती रहती है. काम भी क्या करती है... शिक्षिका... हम्म... शिक्षिका हैं ये देवी जी... जब शिक्षिका ही ऐसी हैं तो पता नहीं कॉलेजों, विद्यालयों में पढ़ने वाले देश के भविष्यों का क्या भविष्य होगा...छि.. शर्म नहीं आती तुम्हें..??!”
रुना भाभी के लिए ‘आप’ से सीधे ‘तुम’ पर आ गया.
अनर्गल बातें बोलता हुआ शुभो को अपने द्वारा कही गई बातों का होश ही नहीं रह गया था और अत्यधिक भावना में बहते हुए गुस्से में रुना की ओर थूक भी दिया. हालाँकि थूक रुना के जगह से बहुत पहले ही गिर गई पर शुभो के इस कृत्य ने सहसा रुना के अंदर प्रतिरोध करने की शक्ति उत्पन्न कर दी.
शांत, मर्यादित, आहत भाव से बोली,
“शुभो... जो और जितना कह रहे हो; कहो... पर इसमें अपनी सीमा और मर्यादा को मत भूलो. चाहे मुझसे कैसी भी गलती हुई हो... मेरा दोष कैसा भी हो... तुम्हें इस तरह से मेरे साथ ऐसा बर्ताव करने का कोई अधिकार नहीं है!”
हर दक्ष शिक्षक और शिक्षिका में प्रतिवाद की एक अनूठी कला होती है और यह इस समय रुना के स्वर में स्पष्ट परिलक्षित हुई.
यहाँ तक की शुभो भी अपने कृत्य पर बुरी तरह शर्मिंदा हो गया.
परन्तु वो किसी भी हाल में इस समय रुना और कालू के सामने अपने बर्ताव के लिए क्षमा माँग कर खुद को उनके बराबर या उनसे छोटा करने के मूड में बिल्कुल नहीं था.
अतः मामले को थोड़ा सम्भालने का प्रयास करता हुआ बोला,
“मुझे आपसे किसी तरह का ज्ञान नहीं चाहिए मैडमजी. और तू (कालू की ओर ऊँगली से इशारा करता हुआ) ... तेरी भलाई इसी में होगी कि तू इस चरित्रहीन औरत का साथ आज से ही छोड़ दे. नहीं तो मैं तुम दोनों की करतूतों की खबर हर किसी को कर दूँगा. ख़ास कर आप (रुना की ओर इशारा करते हुए), अगर आपने भी अपना ये त्रिया चरित्र वाला खेल बंद नहीं किया न.. तो आपकी पोल खोलने में मैं रत्ती भर का समय नहीं गवाऊँगा. नबीन भैया को खुद जा कर बताऊँगा और अगर ज़रुरत हुआ तो प्रमाण भी दिखा दूँगा.”
नबीन बाबू को बता देने की धमकी को सुन रुना भय से काँप उठी. क्षण भर को तो उन्हें अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ पर शुभो के गुस्से से भरे चेहरे को देख कर ही समझ गई कि ये कोई कोरी धमकी नहीं है और ऐसा करने के लिए शुभो शत प्रतिशत दृढ़ प्रतिज्ञ है.
घृणा भरी नज़रों से दोनों को देख कर शुभो पीछे मुड़ा और वहाँ से जाने लगा. जब वो मुड़ रहा था तब रुना की नज़र उसके गले में बंधे ताबीज पर गई. उसकी भवें आगे की ओर सिकुड़ गई पर अगले ही क्षण नार्मल हो गई और साथ ही होंठों के कोने में एक हल्की मुस्कराहट उभर आई.
कुछ कदम चलने के बाद अचानक से शुभो को अपने पैरों में तेज़ दर्द महसूस हुआ और लड़खड़ा कर पास की झाड़ियों पर गिर पड़ा. बदन पर कुछ कांटे चुभ गए जिस कारण शुभो को असहनीय पीड़ा हुई.
कालू अपने दोस्त को ऐसे गिर कर दर्द से कराहते देख कर सहायता के लिए आगे बढ़ना चाहा पर अभी कुछ देर पहले हुई तकरार को याद कर के रुक गया. कालू का आगे बढ़ना और तुरंत रुक जाना देख कर शुभो को भी बुरा लगा. वो कोई सहायता तो नहीं चाह रहा था पर मन के किसी कोने में एक क्षण के लिए आशा की दीप जल उठी थी कि शायद कालू हमदर्दी दिखाए.
पर कालू का यूँ रुक जाना शुभो के मन में अनचाहे ही विषैली भावनाओं की एक नयी पौधरोपण कर गई. साथ ही उसे इस बात की अनुभूति भी हुई कि अवश्य ही उसने ताव में आकर बहुत कुछ ऐसा कह दिया है जिससे उनकी मित्रता कहीं न कहीं थोड़ी दरक चुकी है.
ख़ुद को सम्भालते हुए शुभो उठा और वहाँ से चला गया.
क्रमशः
धीरे धीरे दस दिन बीत गए.
हर रोज़ नबीन बाबू के ऑफिस के लिए निकल जाने के बाद देबू दूध देने आता और बहुत सा समय रुना के साथ बिताता.
और इन्हीं दस दिनों में शुभो ने भी कम से कम सात दिन देबू का रुना के घर तक पीछा किया, पेड़ पर चढ़ा, उस कमरे की खिड़की की ओर टकटकी बाँधे बैठा रहता किसी एक डाली पर और तब तक बैठा रहता जब तक उस खिड़की से रुना भाभी और देबू के कामक्रियाओं का कुछ दृश्य दिखाई न दे देता.
जब कुछ भी दिखना बंद हो जाता तब भारी मन से पेड़ से उतर कर अपने दुकान जाता और सारा दिन खोया खोया सा रहते हुए काम करता.
इसमें कोई संदेह नहीं है की शुभो को रुना भाभी अच्छी नहीं लगती थी.. वो तो उसे बहुत अच्छी... हद से भी अधिक अच्छी लगती थी.. पर सिर्फ़ गाँव की एक शिक्षित और सुसंस्कृत महिला के रूप में. पर जब से रुना को देबू के साथ काम लीला में रत देखना शुरू किया है तब से सिर्फ़ और सिर्फ़ रुना को एक कामदेवी के रूप में देखने लगा है.
पर इससे भी बड़ी बात ये है कि वासना से भी अधिक जो अब शुभो के दिलो दिमाग पर छा गया है वो है ‘डर’.
जब पहली बार उसने खिड़की से देबू और रुना को आपस में प्रेम प्रणय करते देखा था उसी दिन उसने कभी न भूलने वाली एक बात और देखा था.
रुना की काली आँखें!
हो सकता है की शायद ये शुभो के मन का वहम हो परन्तु शुभो तो जैसे ये मान ही बैठा था कि उसी दिन रुना ने शुभो को पेड़ की डाली पर बैठ पत्तों के झुरमुठ से उस कमरे की खिड़की में ताक झाँक करते हुए देख लिया था...
और यही वो समय था जब शुभो ने रुना की काली... पूरी तरह से काली हो चुकी आँखों को देखा था.
हालाँकि उस दिन के बाद से शुभो इतना डर गया था कि हस्तमैथुन भी करे तो डर के कारण वीर्य के स्थान पर मूत निकल जाए; फिर भी वो इन बीते दस में से सात दिन खुद को रोक न सका और नबीन बाबू के घर के पीछे जा उसी पेड़ की डाली पर बैठ रुना और देबू के शारीरिक आह्लाद वाली खेल को बड़े चाव से देखा.
एक बात जो उसे अच्छी लगी; वो ये कि इन सात दिनों में एक बार भी ऐसा नहीं लगा की रुना दोबारा उसकी तरफ देखी हो.
लेकिन एक बार जो वो भय उसके मन में घर कर गया... वो अब निकाले न निकले.
अपने डर के अनुभव को तो वो कालू के साथ बाँट ही चुका था.. सिर्फ़ देबू ही रह गया था.
पर शुभो को तब बहुत आश्चर्य हुआ जब उसके ये पूछने पर कि देबू और रुना के बीच क्या चक्कर है तो देबू ऐसी किसी भी बात से साफ़ मुकर गया. शुभो ने जब दोस्ती खातिर देबू पर दबाव डाला तब देबू ने साफ़ कह दिया,
“देख भाई, तू पिछले कुछ दिनों से बड़ा अजीब तरह से बर्ताव कर रहा है. इतनी उल्टी सीधी और बहकी बहकी बातें कर रहा है कि कभी कभी तो लगता है तुझे शहर ले जा कर डॉक्टर से दिखाना पड़ेगा. सुन, ये सब न कालू के सामने किया कर... वो भरोसा करता है ऐसी बातों पे और जल्दी मान भी जाता है. यार, तुझे शर्म आनी चाहिए जो तूने रुना भाभी जैसी एक संभ्रांत परिवार की महिला पर इस तरह का ऐसा घिनौना संदेह किया, उनके चरित्र पर अँगुली उठाया. और उससे भी बड़ी दुःख की बात ये की तूने अपने इस जिगरी यार पर भी संदेह करता हुआ ऐसा बेहूदा आरोप लगाया. तेरे से ऐसी अपेक्षा नहीं थी. धिक्कार है ऐसी मित्रता पर.”
आँखों में आँसू लिए देबू वहाँ से चला गया.
और शुभो को एक अलग ही द्वंद्व में डाल दिया.
अपने और रुना भाभी के बीच के अमान्य सम्बन्ध को स्वीकार करने से साफ़ मना करने और ऐसी नीच बात सोचने और देबू पर झूठे आरोप लगाने की बात बोलकर उल्टे शुभो को ही देबू ने बहुत भला बुरा कह दिया और इसी के साथ ही दोनों की दोस्ती में दरार पड़ गई.
अपने सीने पर लगे खरोंच, कुछ दिन पहले हुई कुछ अनजानी बातों और अब शुभो के मुँह से रुना भाभी के बारे में सुनने के बाद से ही कालू और अधिक डर गया था और अब अपने घर से दुकान और दुकान से सीधे घर पहुँचता. कहीं किसी से कोई बेकार की बातें करना या समय बर्बाद करना; ये सब आदत उसकी रातों रात छूट गई.
चाय दुकान पर भी यदि शुभो से मिलता भी तो बस दस से पन्द्रह मिनट के लिए... फिर तेज़ क़दमों से चल कर सीधे घर पहुँचता.
देबू ने साथ उठना बैठना छोड़ दिया था.
शुभो और कालू ने उसे समझाने और मनाने की कोशिश की पर... सब व्यर्थ हुआ.
दिन किसी तरह कटते रहे...
अब बहुत कुछ पहले जैसा नहीं रहा.
एक दिन सुबह नींद से जागते ही शुभो को सीने पर दर्द होने लगा. कुछ चुभता हुआ सा लगा.
जल्दी से अपना टी शर्ट उतार कर देखा तो वो दंग रह गया.
उसके सीने पर ठीक वैसे खरोंचों के निशान थे जो आज से कुछ दिन पहले कालू ने अपने सीने पर दिखाया था. गहरे, टीस देते, सूजे हुए. आँखों पर से आश्चर्य के बादल हटते ही शुभो को असीमित भय के आवरण ने घेर लिया. उसके मन – मस्तिष्क में केवल भय ही भय बैठ गया. वह जल्दी से बिस्तर से उठा और कालू से मिलने के लिए तैयार होने लगा. पर तैयार होते होते ही उसे याद आया कि जब तक वो नहा धो कर, नाश्ता नहीं कर लेता तब तक घर के बाहर कदम नहीं रख सकता. ये एक ऐसा नियम था जो उसके परदादा के भी परदादा के ज़माने से चला आ रहा था और आज भी उसके दादाजी के साथ साथ उसके माता – पिता भी पूरे निष्ठा के साथ इस नियम का पालन करते हैं.
अतः तैयार होना छोड़ कर शुभो झट से बाथरूम में घुसा और नहाने लगा. मग से जब सिर पर पानी डालता और जब वह पानी बहते हुए सीने पर लगे घाव पे जा लगता तो घोर वेदना से शुभो सिहर उठता. अब तक उसे अंदाजन इतना तो समझ में आ ही गया था कि ये कोई मामूली खरोंच के दाग नहीं हैं अपितु कोई पराभौतिक मामला है.
नहा धो कर अपने कमरे में आया और जल्दी जल्दी कपड़े पहनने लगा. इसी दौरान उसने बिस्तर पर कुछ ऐसा देखा जो उसे थोड़ा अजीब लगा. बिस्तर पर उसके तकिये पर एक बाल था. चूँकि तकिया का कवर सफ़ेद रंग का था इसलिए अनायास ही उसकी नज़र तकिये पर चली गई थी. शुभो अपेक्षाकृत छोटे बाल रखता है और यहाँ ये बाल थोड़ा बड़ा था. उत्सुकता ने शुभो को तकिये पास जा कर खड़ा कर दिया. शुभो थोड़ा झुका और अंगूठे और तर्जनी अँगुली की मदद से उस बाल को तकिये पर उठा कर अपने आँखों के बहुत पास ला कर देखा.
बाल सिर्फ़ बड़ा ही नहीं, वरन बहुत बड़ा था और निःसंदेह किसी स्त्री का था और पूरी तरह काले रंग का न हो कर लाइट ब्राउन था.
एक के बाद एक दो बड़ी बातों ने शुभो के दिमाग का काम करना बंद कर दिया. पहले तो सीने पर खरोंच और अब तकिये पर एक स्त्री का बाल. पहला सुलझा नहीं की दूसरे ने और उलझा दिया.
मन ही मन सोचा,
‘किसी और से तो बात हो नहीं सकती इस बारे में. देबू तो सुनने वाला नहीं. बचा अब ये कालू. इस बाल के बारे में कुछ बता पाए या न बता पाए... इन खरोंचों के बारे में कुछ तो बता ही सकता है.’
जल्दी से नाश्ता खत्म कर वह कालू से मिलने उसके घर के लिए रवाना हो गया.
साइकिल से ज्यादा टाइम नहीं लगा कालू के घर तक पहुँचने में. उसके घर के बाहर उसकी छोटी बहन अपनी दो सहेलियों के साथ बैठी थी. शुभो को देखते ही खुश हो गई. दौड़ कर उसके पास गई और बोली,
“नमस्ते भैया... आप भैया से मिलने आए हैं?”
“हाँ छोटी... क्या कर रहे हैं तुम्हारे भैया? सो रहे हैं?”
“नहीं जाग रहे हैं. भैया, आप मेरे लिए लाए हैं?”
कहते हुए अपना दायाँ हाथ आगे बढ़ा दी छोटी.
जीभ काटते हुए शुभो उदास चेहरा बनाते हुए बोला,
“सॉरी छोटी. आज जल्दी में था इसलिए भूल गया. कल पक्का ला दूँगा. ठीक है?”
सुन कर छोटी निराश हो गई. दिल छोटा हो गया उसका. एक शुभो ही था जो अक्सर ही उसे टॉफ़ी ला कर देता था. घर में सब उसे ज्यादा टॉफ़ी खाने से मना करते थे. पर छोटी जैसी कम आयु की लड़की क्या जाने टॉफ़ी खाने के फायदे या नुकसान.. अक्सर ही ज़िद करती रहती. कभी कभार कालू उसे दे देता था पर ये शुभो ही था जो छोटी को बहन से भी ज्यादा प्यार देते हुए उसे अक्सर ही तरह तरह के फ्लेवर वाले टॉफ़ी ला कर देता था.
अभी शुभो के मुँह से ‘ना’ सुनकर उसका दिल तो छोटा हो गया पर वो जानती है कि शुभो बाद में उसे ज़रूर टॉफ़ी देगा. इसलिए तुरंत ही मुस्करा कर बोली,
“अच्छा तो बाद में देंगे न?”
“बिल्कुल!”
“पक्का प्रॉमिस?”
“पक्का प्रॉमिस!”
“ओके. थैंक्यू!”
“अच्छा, चल अब बता... तेरे भैया अगर जाग रहे हैं तो किधर हैं?”
“घर के पीछे... पुआल घर में.”
“क्या? पुआल घर में..?? क्या बात है.. सुबह सुबह ही ग्राहक आ गए?”
“ग्राहक नहीं भैया... मैडम आईं है.”
“मैडम? कौन मैडम?”
“मैडम मतलब नहीं समझे? रुना मैडम आईं हैं!”
“क्या??”
शुभो के तो होश ही उड़ गए.
ऐसा कुछ सुनने की तो उसने कोई आशा ही नहीं की थी. सीने पर उभर आए घाव के साथ साथ जिस व्यक्ति विशेष के बारे में कालू से थोड़ा चर्चा करना चाहता था वो स्वयं ही यहाँ आ पहुंची है! पर क्यों? क्या वाकई उन्हें कुछ लेना – खरीदना है? या फ़िर....??
छोटी को बाय बोल कर अपनी साईकिल वहीँ खड़ी कर के वो आहिस्ते क़दमों से चलता हुआ घर के पीछे पहुँचा. घर के सामने से पीछे तक पहुँचने में उसे कुल बाईस कदम चलने पड़े और घर के पीछे पहुँचने पर उसने देखा की पुआल घर थोड़ा और पीछे हट कर स्थित है जहाँ तक पहुँचने में अंदाजन उसे पंद्रह से सोलह कदम चलने पड़ेंगे.
उसने एक लंबी साँस ली, मानसिक तौर पर खुद को तैयार किया ताकि वहाँ पहुँचने पर अगर उसे कोई ऐसी वैसी भयावह दृश्य देखने को मिले तो वो घबराए न, ज़ोर पकड़ती धड़कनों की स्पीड को संयत करने का प्रयास किया और मन ही मन अपने ईश्वर को याद कर के आगे बढ़ा. उसका दायाँ हाथ उसके गले में पतले धागे से बंधे उसके कुलदेवता के एक छोटी सी ताबीज नुमा फ़ोटो पर थी. अपने कुलदेवता से अपनी रक्षा का और कोई अनुचित या अवांछित दृश्य न दिखने का प्रार्थना करता हुआ सधे पर धीमे कदमो से आगे बढ़ता रहा.
जैसे ही पुआल घर के एकदम पास पहुँचा; उसे दबी आवाज़ में किसी की हँसी सुनाई दी.
किसी भयावह दृश्य से सामना होने की परिकल्पना अब तक अपने मन मस्तिष्क में संजोए शुभो के लिए हँसी की आवाज़ बहुत ही अप्रत्याशित थी. एक तरह से झटका लगा उसे.
चारों तरफ पुआल ही पुआल. बगल में ही पुआलों के ढेर में उसे कुछ हलचल होती दिखी. शुभो तुरंत उस ओर बढ़ा.
और उस ओर जाने पर उसे जो दिखा; उसके बारे में भी उसने नहीं सोचा था.
पुआलों के ढेर पर रुना अधनंगी लेटी हुई थी और उसके बगल में कालू लेटा हुआ उसे प्यार किए जा रहा था.
इस दृश्य को देखते ही शुभो को फ़ौरन दो मिनट खुद को सँभालने में लग गए.
आँखों को हल्के से मसल कर वो दोबारा उस तरफ देखा.
सच में! रुना और कालू पुआल के ढेर में लेटे हुए आपस में प्यार करते हुए अपनी रंगीन दुनिया में खोए हुए हैं. कालू के हाथ रुना के आधे अधूरे कपड़ों के ऊपर से ही उसके पूरे बदन पर घूम रहे हैं और कालू खुद भी रुना के उभारों और गहराईयों की मस्ती में खोया हुआ उसे चूमे और प्यार किए जा रहा है.
दोनों को एक साथ ऐसी अवस्था में देख कर शुभो घोर अविश्वास से दोहरा हो गया. दिमाग सांय सांय करने लगा. उसके आँखों के सामने ही वे दोनों धीरे धीरे प्यार के सागर की गहराईयों में डूबते जा रहे थे.
“क्या कर रहा है बे?!”
शुभो ज़ोर से चिल्ला पड़ा.
अचानक ऐसी आवाज़ सुन कर रुना और कालू; दोनों ही बहुत बुरी तरह से डर कर हड़बड़ा गए. शुभो को देख कर दोनों एक झटके में उठ बैठे और जल्दी जल्दी अपने कपड़ों को ठीक करने लगे.
“रुको!”
शुभो फ़िर चिल्लाया.
दोनों हतप्रभ हो उसे देखने लगे. दोनों के चेहरों के रंग सफ़ेद पड़ चुके थे और चोरी पकड़े जाने के कारण भयभीत थे.
शुभो दो कदम आगे बढ़ कर फ़िर गुर्राया,
“अब अगर तुम दोनों में से किसी की भी एक ऊँगली तक हिली तो मैं चिल्ला चिल्ला कर सबको यहाँ इकट्टा कर लूँगा.”
ये वाक्य ख़त्म होते ही पहले से बुरी तरह डरे कालू और रुना को जैसे साँप सूंघ गया. दोनों जड़वत वहीं बैठ गए.
“साले... कुत्ते.... तेरे को न जाने कितनी बार समझाया था पहले की चाहे जो भी हो जाए... इस चुड़ैल से दूर रहना. इसका कोई भरोसा नहीं. विवाहिता होते हुए भी अपने दूधवाले को अपने रूपजाल में फँसा चुकी है और अब तेरे पे डोरे डाल रही है. अबे पागल... तू ये तक भूल गया कि तूने ही सबसे पहले मुझे और देबू को बताया था उस दिन कि मिथुन के साथ तूने रुना को कई बार देखा है और जिस दिन वो मरा उसके पहले वाले दिन भी उसे इसी के साथ देखा था. आज खुद ही देख ले; तुझे और देबू को अधिकतर बातें याद नहीं रहती. देबू तो हम दोनों से दोस्ती तक तोड़ चुका है.. क्यों? कब हुआ ऐसा? जब से इसके प्रेमजाल में फँसा है तब से. मैंने बताया था तुझे इसकी काली आँखों के बारे में... फ़िर भी तू.... कैसे यार?!!”
शुभो एक साँस में बोलता चला गया. जो कुछ उसके मन में था सब कुछ बोलता चला गया. और वे दोनों चुपचाप सुनते रहे. यहाँ एक बात कालू और शुभो में से किसी ने गौर नहीं किया कि जब शुभो ने रुना और मिथुन के साथ वाले घटना का ज़िक्र किया तब रुना चौंक गई थी और तिरछी नज़रों से गौर से कालू को देखने लगी थी.
“देख यार शुभो, तू जो सोच रहा है .....”
कालू के बात को बीच में ही काटते हुए शुभो बोल पड़ा,
“हाँ... ये अच्छा है.. जब तक चोरी पकड़ी नहीं गई, तब तक सब ठीक है... पर जैसे ही पकड़ में आ जाओ तो कहो की जो दूसरे सोच रहे हैं वैसा कुछ नहीं है... हम्म... साले.. क्या कहना चाहता है तू....आं.. कि तू यहाँ रुना भाभी को लेटा कर उनकी मसाज कर दे रहा था.. या कपड़ों की फिटिंग देख रहा था ताकि नए कपड़े दिलवा सको? अबे इतना बेवकूफ़, नासमझ और लापरवाह कैसे हो सकता है तू? ये एक ख़तरनाक औरत है... तू नहीं जानता क्या? पहले तो बड़ा शक किया करता था... अब क्या हुआ?”
“यार... सुन..”
“अबे चुप... क्या सुनूँ मैं तेरी... और क्यों सुनूँ...? हाँ..?”
कहते कहते अचानक से शुभो की नज़र इतनी देर बाद दोबारा रुना पर गई जो अभी साड़ी के थोड़े से भाग से अपने बड़े वक्षस्थलों को ढकने का असफल प्रयास कर रही थी... और इसी में उसकी लंबी गहराई वाली वक्षरेखा बहुत कामुक रूप से दृश्यमान हो रही थी.. वह दृश्य इतना नयनाभिराम था कि कुछ पलों के लिए शुभो भी अपने पलकें झपकाने भूल गया.
पर तुरंत ही खुद को सम्भाला और ये सोच कर की कहीं उसकी ये हरकत इन दोनों ने न देख ली हो इसलिए वो अब रुना भाभी पर भी बुरी तरह बरस पड़ा. वो भाभी जिसे वो बहुत सम्मान किया करता था. जिसे सोच कर ही उसका सिर स्वयमेव ही श्रद्धा से झुक जाया करता था.
“ये... इसी ने तेरा, मेरा, देबू का और न जाने कितनों का दिमाग ख़राब कर रखा है. विवाहिता होते हुए भी कितने ही परायों से सम्बन्ध बनाए घूमती रहती है. काम भी क्या करती है... शिक्षिका... हम्म... शिक्षिका हैं ये देवी जी... जब शिक्षिका ही ऐसी हैं तो पता नहीं कॉलेजों, विद्यालयों में पढ़ने वाले देश के भविष्यों का क्या भविष्य होगा...छि.. शर्म नहीं आती तुम्हें..??!”
रुना भाभी के लिए ‘आप’ से सीधे ‘तुम’ पर आ गया.
अनर्गल बातें बोलता हुआ शुभो को अपने द्वारा कही गई बातों का होश ही नहीं रह गया था और अत्यधिक भावना में बहते हुए गुस्से में रुना की ओर थूक भी दिया. हालाँकि थूक रुना के जगह से बहुत पहले ही गिर गई पर शुभो के इस कृत्य ने सहसा रुना के अंदर प्रतिरोध करने की शक्ति उत्पन्न कर दी.
शांत, मर्यादित, आहत भाव से बोली,
“शुभो... जो और जितना कह रहे हो; कहो... पर इसमें अपनी सीमा और मर्यादा को मत भूलो. चाहे मुझसे कैसी भी गलती हुई हो... मेरा दोष कैसा भी हो... तुम्हें इस तरह से मेरे साथ ऐसा बर्ताव करने का कोई अधिकार नहीं है!”
हर दक्ष शिक्षक और शिक्षिका में प्रतिवाद की एक अनूठी कला होती है और यह इस समय रुना के स्वर में स्पष्ट परिलक्षित हुई.
यहाँ तक की शुभो भी अपने कृत्य पर बुरी तरह शर्मिंदा हो गया.
परन्तु वो किसी भी हाल में इस समय रुना और कालू के सामने अपने बर्ताव के लिए क्षमा माँग कर खुद को उनके बराबर या उनसे छोटा करने के मूड में बिल्कुल नहीं था.
अतः मामले को थोड़ा सम्भालने का प्रयास करता हुआ बोला,
“मुझे आपसे किसी तरह का ज्ञान नहीं चाहिए मैडमजी. और तू (कालू की ओर ऊँगली से इशारा करता हुआ) ... तेरी भलाई इसी में होगी कि तू इस चरित्रहीन औरत का साथ आज से ही छोड़ दे. नहीं तो मैं तुम दोनों की करतूतों की खबर हर किसी को कर दूँगा. ख़ास कर आप (रुना की ओर इशारा करते हुए), अगर आपने भी अपना ये त्रिया चरित्र वाला खेल बंद नहीं किया न.. तो आपकी पोल खोलने में मैं रत्ती भर का समय नहीं गवाऊँगा. नबीन भैया को खुद जा कर बताऊँगा और अगर ज़रुरत हुआ तो प्रमाण भी दिखा दूँगा.”
नबीन बाबू को बता देने की धमकी को सुन रुना भय से काँप उठी. क्षण भर को तो उन्हें अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ पर शुभो के गुस्से से भरे चेहरे को देख कर ही समझ गई कि ये कोई कोरी धमकी नहीं है और ऐसा करने के लिए शुभो शत प्रतिशत दृढ़ प्रतिज्ञ है.
घृणा भरी नज़रों से दोनों को देख कर शुभो पीछे मुड़ा और वहाँ से जाने लगा. जब वो मुड़ रहा था तब रुना की नज़र उसके गले में बंधे ताबीज पर गई. उसकी भवें आगे की ओर सिकुड़ गई पर अगले ही क्षण नार्मल हो गई और साथ ही होंठों के कोने में एक हल्की मुस्कराहट उभर आई.
कुछ कदम चलने के बाद अचानक से शुभो को अपने पैरों में तेज़ दर्द महसूस हुआ और लड़खड़ा कर पास की झाड़ियों पर गिर पड़ा. बदन पर कुछ कांटे चुभ गए जिस कारण शुभो को असहनीय पीड़ा हुई.
कालू अपने दोस्त को ऐसे गिर कर दर्द से कराहते देख कर सहायता के लिए आगे बढ़ना चाहा पर अभी कुछ देर पहले हुई तकरार को याद कर के रुक गया. कालू का आगे बढ़ना और तुरंत रुक जाना देख कर शुभो को भी बुरा लगा. वो कोई सहायता तो नहीं चाह रहा था पर मन के किसी कोने में एक क्षण के लिए आशा की दीप जल उठी थी कि शायद कालू हमदर्दी दिखाए.
पर कालू का यूँ रुक जाना शुभो के मन में अनचाहे ही विषैली भावनाओं की एक नयी पौधरोपण कर गई. साथ ही उसे इस बात की अनुभूति भी हुई कि अवश्य ही उसने ताव में आकर बहुत कुछ ऐसा कह दिया है जिससे उनकी मित्रता कहीं न कहीं थोड़ी दरक चुकी है.
ख़ुद को सम्भालते हुए शुभो उठा और वहाँ से चला गया.
क्रमशः