Thread Rating:
  • 6 Vote(s) - 2.33 Average
  • 1
  • 2
  • 3
  • 4
  • 5
Adultery नदी का रहस्य
#38
६)


संध्या समय...

छ: बज रहे होंगे.

रुना और नबीन गाँव में ही एक परिचित के यहाँ से लौट रहे थे...

एक चाय दुकान में कालू, देबू और शुभो चाय पीते हुए आपस में हंसी मजाक कर रहे थे. तभी रुना और नबीन उस दुकान के सामने से गुज़रे और साथ ही साथ चाय पीते तीनों दोस्तों की नजर भी उन दोनों पर गई.

कालू तुरन्त खड़ा हो गया और सधे कदमों से उन दोनों की ओर बढ़ कर हाथ जोड़ कर ‘नमस्ते’ किया...

नबीन और रुना ने भी मुस्करा कर नमस्ते का उत्तर दिया. कालू को कुछ कहने जा रही थी रुना की तभी उसकी नज़र गई देबू पर. उसे वहाँ देख कर रुना डर से सहम कर चुप हो गई. उसकी ये प्रतिक्रिया नबीन और कालू; दोनों ने नहीं देखा.

नबीन और कालू में कोई और ही बातें शुरू हो चुकी थीं.

नबीन हँसते हुए बोले,

“अरे कालू! कैसे हो?”

“बढ़िया हूँ भैया... आप कैसे हैं... और भाभीजी?”

“अच्छे हैं..” “बढ़िया हैं.”     नबीन और रुना ने एक साथ जवाब दिया.

“आपसे एक बात पूछनी है भैया.”

“हाँ कालू .. बोलो.”

“आप तो पोस्ट ऑफिस में काम करते हैं न?”

“हाँ.”

“मुझे एक टी. डी. करवानी है.”

“टी. डी. ?? किसके लिए?”

“जी, अपने लिए ही... नॉमिनेशन के लिए मम्मी का नाम दे दूँगा.”

“एक बात बोलूँ ... कालू?”

“जी भैया.. बिल्कुल.”

“तुम टी. डी. करवाने से बेहतर, आर. डी खोलवा लो.”

“क्यों भैया...??”

“अम्म्म... देखो... ये सब थोड़ा विस्तार से बताना पड़ता है. एक काम करो... तुम कल मिलना मुझसे... यहीं... चाय पीते हुए हम आगे की बात करेंगे. ठीक है?”

“ठीक है भैया. मुझे कोई दिक्कत नहीं.”

“ठीक है.. आज चलता हूँ.”

एक बार फ़िर हाथ जोड़ कर दोनों को नमस्ते कर के कालू वापस दुकान में आ गया और एक चाय का ऑर्डर दे कर बेंच पर अच्छे से बैठ गया.

शुभो हँसते हुए बोला,

“क्यों बे... अचानक ये टी. डी. खोलवाने की क्या ज़रुरत आन पड़ी है तुझे?”

“अबे नहीं बे... कोई टी. डी.  वी. डी. नहीं खोलवाना मुझे.”

“तो फ़िर?”

“भाभी को देखने गया था.”

“क्या? रुना भाभी को..?? साले... तूने पहले कभी बताया नहीं कि रुना भाभी पर तेरा दिल आ गया है?”  शुभो मज़े लेता हुआ बोला.

लेकिन कालू सीरियस था,

बोला,

“यार... जो तू समझ रहा है... वो बात नहीं है... बिल्कुल नहीं है.”

“तो असल बात ही समझा ना साले.”   देबू ने चिढ़ते हुए कहा.

“यार... मिथुन के साथ हुए हादसे की ख़बर है न तुझे?”

“हाँ भाई.. बिल्कुल है.. हमारा गाँव है ही कितना बड़ा जो ऐसी बातों की ख़बर देर से हो या बिल्कुल ही न हो.”

“लेकिन ऐसी एक बात है जो बहुत ही अजीब है और वो सिर्फ़ मुझे पता है.. तुम लोगो को नहीं... किसी को नहीं.”

“भाई...क्या सस्पेंस पे सस्पेंस दे रहा है... सीधे असल बात बता ना.”  शुभो ने कहा.

“मिथुन के मृत्यु वाले दिन से कुछ रोज़ पहले तक मैंने खुद अपनी इन्हीं आँखों से रुना भाभी और मिथुन को एक साथ देखा था. कई बार.”

“क्या बात कर रहा है बे?”   देबू और शुभो दोनों चौंक उठे.

“सच कह रहा हूँ.”

देबू कुछ सोचते हुए बोला,

“एक मिनट यार... तुमने रुना भाभी को मिथुन के साथ देखा.. शायद किसी काम से कहीं जाते वक़्त दोनों रास्ते में मिल गए हों और साथ चल पड़े हों? या फ़िर शायद रुना भाभी को ही कोई काम आन पड़ा हो जिसके लिए उन्हें मिथुन की सहायता लेने की ज़रुरत पड़ी हो??”

“हो सकता है... ये सही है की मैंने दोनों को साथ जाते हुए तो मैंने देखा था... पर बाद में जो देखा......”

कहते हुए कालू बीच में ही चुप हो गया.

देख के ऐसा लगने लगा मानो किसी और ही दुनिया में खो गया है.

शुभो ने उसके कंधे को पकड़ कर हिलाते हुए पूछा,

“बाद में क्या देखा था भाई; बता तो सही?”

कालू तुरंत कुछ बोलना नहीं चाह रहा था पर देबू और शुभो की ओर से लगातार पड़ते दबाव ने उसको अपना विचार बदलने को मजबूर किया.


चाय की अंतिम चुस्की लेकर कप को बेंच के नीचे रखा.. शर्ट के पॉकेट से एक मुड़ा हुआ पेपर निकाल कर उसमें से एक बीड़ी निकाल कर अपने दांतों के बीच दबाया और माचिस से सुलगाते हुए बोला,


“दरअसल बात है ही ऐसी जिसपे मैं आज भी यकीं नहीं कर पा रहा हूँ... और शायद तुम लोग भी नहीं कर पाओगे... पहले दिन दोनों को साथ जब सब्जी दुकानों की ओर जाते देखा तो मुझे कुछ अजीब नहीं लगा. दूसरे दिन भी मैंने दोनों को शम्भू जी के घर की ओर जाते देखा.. मुझे तब भी कुछ भी अजीब नहीं लगा. इसी तरह तीसरे दिन भी उन दोनों को मैंने देखा... साथ में... दोनों आपस में हँसते मुस्कराते हुए बातें करते जा रहे थे. तभी मेरा दिमाग ठनका... याद आया कि पिछले दो दिन भी ये दोनों इसी तरह आपस में हँसते मुस्कराते बातें करते हुए जा रहे थे. मेरा बदमाश मन ज़ोरों से मचलने लगा. मन अनजाने में ही गवाही देने लगा की कुछ तो गड़बड़ झाला है. उनसे थोड़ी दूरी बनाते हुए मैं भी उनके पीछे हो लिया.  कुछ दूर चलने पर पाया की दोनों तो जंगल की ओर जा रहे हैं! उस भयावह भूतिया जंगल में! जहाँ शायद परिंदा भी मुश्किल से पर मारता होगा.. दिल बैठने लगा मेरा.. सोचा, अब आगे नहीं जाऊँ. पर दोनों क्या गुल खिलने वाले हैं ये जानने के लिए मन भी बहुत बेचैन हो रहा था.


अपने अंदर चल रही इस उथल पुथल को शांत करने के लिए मैंने एक बीड़ी निकाल लिया. दो तीन धुआं छोड़ने के बाद निश्चय किया कि आगे ज़रूर जाऊँगा. जब तक कुछ देखूँगा नहीं... तब तक मन शांत नहीं होगा मेरा.


अपने सामने देखा तो चौंक गया.. कुछ देर पहले जहाँ दोनों मेरे सामने ही थोड़ी दूरी पर आगे आगे चल रहे थे; अभी अचानक से इतनी ही देर में दोनों न जाने कहाँ गायब हो गए? मैं तुरंत दौड़ कर आगे गया और उन दोनों को ढूँढने लगा. पर दोनों मुझे कहीं नहीं मिले. मैं ऐसे ही हार मानने वालों में नहीं.. खोजबीन जारी रखा. मुझे लगता है करीब एक घंटे तक उन दोनों को ढूँढता रहा था मैं... अपने आस पास गौर किया तो डर गया. मैं घने जंगल में था! पता नहीं उन दोनों को ढूँढने के चक्कर में कब उस घने भूतिया जंगल के एकदम अंदर घुस गया था.. थक हार कर और अंदर ही अंदर डर से काँपता हुआ मैं एक आम के पेड़ के नीचे बैठ गया. अपनी मूर्खता पर बड़ा क्रोध आ रहा था.. जहाँ मैं बैठा था; उससे कुछ दूरी पर सामने एक पुआल घर था.. ऊपर नीचे, आगे पीछे, पुआल ही पुआल... और स्थिति भी ऐसी कि उसे भी देख कर एक बार के लिए कोई भी डर जाए. अब भला ऐसे घने जंगल में पुआल से भरा और बना वीरान घर देख कर कौन न डरे...? घर नहीं बोल कर कुटिया कहना भी गलत नहीं होगा. अनमने भाव से ही गुस्से में एक पत्थर उठाया और सामने की ओर ज़ोर से फेंक दिया.
पत्थर सीधे पुआल के ढेर में जा गिरा.


और तभी एक हलचल हुई.

पुआलों के ढेर से मिथुन उठ बैठा और इधर उधर देखने लगा. मैं जल्दी से उस पेड़ के ओट में आ गया. मिथुन पत्थर फेंकने वाले को देखने की कोशिश कर ही रहा था कि एक जनाना हाथ उसका हाथ पकड़ के नीचे की ओर खींचा और मिथुन वापस उन ढेरों पर जा गिरा. फ़िर से मुझे उस ओर चलने वाली गतिविधियाँ दिखनी बंद हो गई थी इसलिए मैं पेड़ पर चढ़ गया ये सोच कर की शायद ऊँचाई से कुछ दिख जाए.

पेड़ पर चढ़ कर मैंने उस ओर देखा... और जो देखा उस पे विश्वास नहीं हुआ.


मिथुन पुआल के ढेरों पर लेटा हुआ है और रुना भाभी उसके कमर पर बैठी हुई ऊपर नीचे हो रही है. साड़ी पेटीकोट जांघ तक उठा हुआ था. आँचल भी शायद नीचे गिरा हुआ था.

मिथुन के होंठों पर मुस्कान और चेहरे पर तृप्ति के भाव थे.

थोड़ा और अच्छे से देखने के लिए मैं एक डाली पर आगे बढ़ कर पैर रखा ही था की वह डाली टूट गई. टूटने से जो आवाज़ हुई वो उन दोनों के कानों तक तो नहीं पहुँचना चाहिए था पर एक क्षण के लिए भाभी रुक ज़रूर गई थी और बैठे बैठे ही, ऊपर नीचे होते होते मेरी दिशा की ओर देखी... बड़ी अजीब ढंग से देख रही थी... हाँ, नज़र उनका कहीं और था... पेड़ पर नहीं. बस एक ही बार इधर उधर देख लेने के बाद भाभी फ़िर मिथुन की ओर मुड़ गई.


मुझे वहाँ से निकल जाने लायक यही सही समय उचित जान पड़ा और मैंने वही किया भी.

चुपचाप पेड़ से उतरा और सरपट गाँव की ओर जाने वाले रास्ते की ओर दौड़ पड़ा. भूल कर भी पीछे मुड़ कर नहीं देखा.”

पूरी बात कहने के बाद कालू चुप हुआ. एक गहरी साँस लिया और एक और चाय मँगवाया.

देबू और शुभो को काटो तो खून नहीं.


डर जैसा तो नहीं पर घोर अविश्वसनीय लगा ये घटना उन दोनों को. ऐसा कुछ पहली बार सुना था देबू और शुभो ने इसलिए आगे क्या कहे दोनों को समझ में नहीं आ रहा था. दोनों ही भाभी को बहुत मानते थे. एक अच्छी संस्कारी बहु और शिक्षिका के रूप में काफ़ी अच्छी पहचान और सम्मान है रुना भाभी का इस गाँव में. ऐसी चरित्रहीनता वाली चीज़ें करना तो दूर शायद सोचती तक नहीं होंगी वो.

देबू ने दबे स्वर में पूछा,

“भाई.. तू बिल्कुल पक्का है न... कि वो रुना भाभी ही थी?”

“अरे हाँ भाई हाँ... उनके पीछे उस दिन करीब २ घंटे बीत गए थे मेरे... उन दो घंटे तक मुझे ये पता नहीं चलेगा क्या की मैं किसे देख रहा हूँ और किसे नहीं?” कालू ने बीड़ी बुझाते हुए कहा.

इस पे देबू शांत रहा. शायद कुछ और ही सोचने लगा वो.

शुभो ने चिंतित स्वर में कहा,

“यार कालू, क्या मिथुन की मृत्यु में रुना भाभी का कोई सम्बन्ध .... हो सकता है?”

“लगता तो नहीं पर....”

“पर क्या?”

“जो कुछ अविश्वसनीय सा देखा... उसके बाद किसी तरह की बात या घटना पे विश्वास करना या संदेह होना कोई बड़ी बात नहीं. इसलिए मैंने सोचा है कि जब तक मिथुन की मृत्यु की गुत्थी सुलझ नहीं जाती तब तक मैं भाभी पे नज़र रखूँगा. अकेले.”

ये सुनकर देबू और शुभो चौंक गए.

एक साथ ही बोले,

“अबे क्या बात कर रहा है? पागल हो गया है क्या? भाभी के पीछे लगेगा? किसी ने देख लिया तो? मान ले भाभी को ही पता चल गया तो? क्या सोचेगी वो? शोर मचा कर तुझे पकड़वा देगी और फ़िर गाँव वालों के हाथों भरपेट मार खिलवाएगी.”

कालू हँसा...

बोला,

“अबे निश्चिन्त रहो बे अक्ल के अंधों... मेरा नाम कालू है कालू... कालीचरण घोष उर्फ़ कालू... हर काम पर्फेक्ट्ली करता हूँ. टेंशन न लो. समझे?”

कोई कुछ न बोला.


दुकान के मालिक घोष काका को शायद कालू के अंतिम तीन चार वाक्य सुनाई दे गए थे. उन तीनों की ओर मुड़ कर कुछ बोलने के लिए मुँह खोला ही था कि चार ग्राहक और आ गए. काका उसी तरफ़ व्यस्त हो गए और पल भर में ही कालू की बातों को भूल गए.

इधर कुछ देर शांत बैठे रहने के बाद तीनों दूसरे विषयों पर बात करते हुए हंसी मजाक में रम गए.

चाय पर चाय चलता रहा.


परन्तु तीनों को ही ये नहीं पता था की उनसे कुछ दूरी पर ज़मीन से दो फूट ऊँची.. हवा में स्थिर एक काला साया उन तीनों की बातें सुन रही थी ... चेहरे पर निष्ठुरता... होंठों पर मुस्कान और आँखें चमकती हुईं!
[+] 4 users Like Dark Soul's post
Like Reply


Messages In This Thread
नदी का रहस्य - by Dark Soul - 07-06-2020, 10:09 PM
RE: नदी का रहस्य - by sarit11 - 08-06-2020, 12:02 PM
RE: नदी का रहस्य - by Nitin_ - 09-06-2020, 10:51 PM
RE: नदी का रहस्य - by Abstar - 10-06-2020, 12:10 AM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 16-06-2020, 03:34 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 17-06-2020, 10:53 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 21-06-2020, 12:57 AM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 25-06-2020, 03:20 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 26-06-2020, 03:18 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 26-06-2020, 10:42 PM
RE: नदी का रहस्य - by Dark Soul - 27-06-2020, 01:58 PM
RE: नदी का रहस्य - by Nitin_ - 27-06-2020, 03:58 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 27-06-2020, 11:51 PM
RE: नदी का रहस्य - by Nitin_ - 04-07-2020, 10:16 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 04-07-2020, 10:33 PM
RE: नदी का रहस्य - by kill_l - 06-07-2020, 01:50 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 11-07-2020, 08:57 AM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 11-07-2020, 08:57 AM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 14-07-2020, 01:01 AM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 14-07-2020, 11:34 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 15-07-2020, 11:41 AM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 15-07-2020, 11:41 AM
RE: नदी का रहस्य - by Bregs - 18-07-2020, 07:03 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 21-07-2020, 08:57 AM
RE: नदी का रहस्य - by Bregs - 21-07-2020, 08:41 PM
RE: नदी का रहस्य - by Bicky96 - 25-07-2020, 10:55 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 26-07-2020, 10:04 AM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 26-07-2020, 11:13 PM
RE: नदी का रहस्य - by kill_l - 31-07-2020, 01:32 PM
RE: नदी का रहस्य - by Bicky96 - 31-07-2020, 07:08 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 31-07-2020, 08:25 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 31-07-2020, 08:26 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 31-07-2020, 08:26 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 01-08-2020, 09:15 AM
RE: नदी का रहस्य - by Bicky96 - 07-08-2020, 02:22 PM
RE: नदी का रहस्य - by Ramsham - 07-08-2020, 08:15 PM
RE: नदी का रहस्य - by kill_l - 10-08-2020, 01:58 PM
RE: नदी का रहस्य - by Bicky96 - 10-08-2020, 06:48 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 22-08-2020, 11:43 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 21-09-2020, 01:14 AM
RE: नदी का रहस्य - by kill_l - 24-09-2020, 01:43 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 01-10-2020, 08:49 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 03-10-2020, 07:22 AM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 14-10-2020, 10:51 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 16-10-2020, 08:44 AM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 17-10-2020, 11:54 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 19-10-2020, 01:47 AM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 20-10-2020, 11:41 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 28-10-2020, 01:29 AM
RE: नदी का रहस्य - by kill_l - 27-10-2020, 01:44 PM
RE: नदी का रहस्य - by bhavna - 31-10-2020, 09:00 AM
RE: नदी का रहस्य - by sri7869 - 09-05-2024, 05:24 AM



Users browsing this thread: 5 Guest(s)