20-06-2020, 10:03 PM
५)
एक दिन तुपी काका के घर के सामने बहुत भीड़ लग गई. ऐसी भीड़ की लगे मानो सारा गाँव उठ कर तुपी काका के घर आ गया हो. जवान हो, या बच्चा या बूढ़ा या फ़िर महिलाएँ... सबके मुँह में केवल यही बातें हो रही हैं कि ‘हाय राम.. ये कैसे हो गया?’, ‘न जाने बूढ़े माँ बाप का क्या होगा?’, ‘अभी तो जवान हो ही रहा था.. इतनी जल्दी... न जाने कैसे हो गया....?’ इत्यादि.
तभी ‘जगह दीजिए...’ ‘आगे जाने दीजिए.’ ‘हटिए हटिए’ ‘साइड होइए’ कहते हुए सात सिक्युरिटीियों वाला एक दल उस ठसाठस भीड़ में से खुद के लिए जगह बनाते हुए काका के घर के मुख्य दरवाज़े तक पहुंची.
दल को लीड करने वाला एक मोटा तोंदू सा सिक्युरिटी वाला आगे बढ़ा और घर के ही एक सदस्य से पूछा,
“घटना कहाँ घटी है...? तुपी काका कौन हैं?”
उस सदस्य के मुँह से बोली नहीं फूट रही थी. चेहरे पर ऐसी हवाईयाँ उड़ रही थी मानो कुछ ऐसा देखा है उसने जो इस जीवन में कभी देखने या सुनने की उम्मीद बिल्कुल नहीं की होगी.. कभी नहीं की होगी.
काँपते हाथ से घर के एक तरफ़ इशारा किया उसने.
उस सिक्युरिटी वाले ने आँखों से इशारा कर के उसे आगे चलने को कहा. वो जाना बिल्कुल नहीं चाह रहा था पर सिक्युरिटी वाले की रोब झलकाती आँखों को देख कर और भी डर गया. मान गया.
चुपचाप आगे आगे चलने लगा.
चार सिपाहियों को वहाँ भीड़ संभालने की जिम्मेदारी दे कर वह तोंदू सिक्युरिटी वाला अपने साथ दो सिक्युरिटी वाले को लेकर उस सदस्य के पीछे पीछे चलने लगा.
कच्चे मार्ग से आगे बढ़ कर दाएँ मुड़ना पड़ा और फ़िर दस कदम चलने के बाद एक छोटा सा खटाल/गोशाला में पहुंचे सब. यहाँ तीन गाय और दो भैंसे बंधी हैं.. साफ़ सुथरा ही है सब.
“ये किसका है?” उस मोटे सिक्युरिटीिये ने पूछा.
“तुपी जी का ही है.” उस सदस्य ने कहा.
“आप कौन लगते हैं उनके??”
“जी, मैं उनका भांजा हूँ. चार दिनों के लिए घूमने आया था.”
“ह्म्म्म... तो आज कितने दिन हुए?”
“जी दो ही दिन हुए.”
“तुपी जी कहाँ हैं?”
“सुबह जब से वह भयावह काण्ड देखा है... मानो सुध बुध ही खो चुके हैं. वहीं उसी जगह बैठे हुए हैं.”
“ले चलिए हमें वहाँ.”
आदेश दिया सिक्युरिटीिए ने.
तुरन्त पालन हुआ आदेश का.
उन सब को ले कर थोड़ा और आगे बढ़ा वो युवक. खटाल से सटा हुआ एक छोटे से कमरे के पास पहुँचा.
उस कमरे के पास पहुँचने पर सबने देखा की आस पास फर्श पर खून ही खून है जो कि अंदर कमरे से बह कर बाहर निकल रही है. सभी तुरन्त अंदर घुसे... और घुस कर अंदर का जो दृश्य देखा उससे तो सबका दिमाग ही घूम गया. दिल दहल गया. उल्टी होने को आई. सामने जो दृश्य था ऐसा कभी कुछ उन लोगों को जीवन में कभी देखना भी होगा ये अपने सबसे बुरे सपने में भी नहीं सोचा था किसी ने.
सामने फर्श पर पाँच कदम आगे एक नवयुवक का शव पड़ा हुआ था. शरीर तो सामने की ओर था पर सिर पूरी तरह पीछे घूमा हुआ था. साथ ही पूरे शरीर में जगह जगह से माँस नोचा हुआ था. सबसे भयावह था उस शरीर का सीने वाला हिस्सा जहाँ बहुत बड़ा सा गड्ढा बना हुआ था...
वो मोटा सिक्युरिटी वाला आगे बढ़ कर शव को तनिक ध्यान से देखने पर पाया कि सीने से तो दिल ही गायब है!
“हे भगवान! इतनी क्रूरता!”
बरबस ही निकला उसके मुँह से.
बगल में ही, शव से चार हाथ दूर फर्श पर ही एक प्रौढ़ आदमी बैठा हुआ था. अत्यंत उदास... बदहवास... आँखों से अविरल आँसू बहाता हुआ.
उस आदमी की हालत देख कर मोटा सिक्युरिटीिया को भी थोड़ा बुरा लगा पर क्या करे... सिक्युरिटी जो ठहरा... ये समय संवेदना जताने से अधिक ड्यूटी बजाने का है.
गला खंखार कर उस आदमी से पूछा,
“सुनिए...आप ही तुपी काका हैं क्या?”
वह आदमी कुछ बोला नहीं.. अभी भी कहीं खोया हुआ अपलक उस शव को निहारे जा रहा था. उसे तो शायद इस बात का भी भान न हुआ होगा कि कोई उस कमरे में घुस कर उनके सामने खड़ा भी हुआ है.
सिक्युरिटी वाला साथ आए युवक को इशारे से पास बुलाया और धीमे स्वर में पूछा,
“तुपी काका यही हैं न?”
युवक पूरे आत्मविश्वास के साथ सिर हिलाता हुआ बोला,
“हाँ साहब.”
“ह्म्म्म... और ये मृत युवक कौन है? क्या लगता है इनका?”
“ये इस घर में काम करता था. नौकर जैसा ही था पर चूँकि बहुत ही कम उम्र से ही इस घर में रहता आ रहा था इसलिए घर के सदस्य जैसा ही हो गया था. यहाँ तक कि तुपी काका और सीमा काकी ने भी सभी को कह दिया था कि कोई इसे नौकर न समझे और हमेशा अच्छे से नाम ले कर ही बुलाया करे.”
“नाम क्या है इसका?”
“नाम तो कुछ और था... पर सीमा काकी प्यार से मिथुन कह कर बुलाती थी... धीरे धीरे घर में सभी और गाँव वाले भी इसे मिथुन नाम से ही बुलाने लगे थे.”
उस युवक का वाक्य खत्म होते ही तपाक से सिक्युरिटी वाले ने पूछा,
“ये सीमा काकी कौन हैं?”
“इनकी (तुपी काका की ओर इशारा करते हुए) पत्नी है साहब.”
“हम्म.. और तुम्हारा नाम?”
“गोबिन्दो दास, साहब... घर और बाहर सब प्यार से बिल्टू कह कर बुलाते हैं.”
“बिल्टू... हम्म.. अच्छा नाम है.. मैं भी इसी नाम से बुलाऊँगा तुझे.. कोई दिक्कत?”
खैनी और गुटखा से पीले पड़ चुके दांतों को एक बड़ी सी मुस्कान से दिखाते हुए चापलूसी वाले अंदाज़ में हाथ जोड़ते हुए बिल्टू बोला,
“आप माई बाप हो सरकार... जो जी में आए...कह सकते हैं.”
सिक्युरिटी वाला पैनी नज़रों से एकबार उस युवक की आँखों में अच्छे से देखा; फ़िर तुपी काका की ओर इशारा करते हुए धीमे पर गंभीर आवाज़ में बोला,
“इन्हें पानी दो... सम्भालो.”
युवक जल्दी से एक बड़े से ग्लास में पानी ले आया और हथेली में थोड़ा पानी ले तुपी काका के चेहरे पर छींट दिया.
वास्तविकता में लौटने में एक-दो मिनट और लग गए तुपी काका को.
सामने सिक्युरिटी वाला को अचानक से देख सहम गए. प्रश्नसूचक नेत्रों से बिल्टू की ओर देखा. बिल्टू ने शव की ओर इशारा कर के सिक्युरिटी के आने का आशय समझा दिया काका को.
तुपी काका उठे और हाथ जोड़ कर सिक्युरिटी वाले के सामने जा कर खड़े हो गए.
“तुपी काका आप ही हैं न?” उत्तर जानते हुए भी सिक्युरिटी वाले ने पूछा.
काका ने सिर हिलाते हुए जवाब दिया,
“जी मालिक.”
“आपका पूरा नाम...बढ़िया नाम?”
“तपन सुनील पाल, मालिक.”
“हम्म.. पिताजी का नाम सुनील पाल?”
“जी मालिक.”
“हैं?”
“नहीं मालिक... चार साल हो गए उनके गुज़रे हुए.”
“ओह.. सॉरी.”
एक पल चुप रह कर सिक्युरिटीिए ने फ़िर कहा,
“मेरा नाम बिशम्बर रॉय है. इंस्पेक्टर बिशम्बर रॉय. थाना इंचार्ज.”
प्रत्युत्तर में तुपी काका ने केवल हाथ जोड़ कर अभिवादन जताया.
“ये युवक आपका कौन था?”
“बेटा था मालिक.” कहते हुए तुपी काका फफक पड़े.
“जी?!”
इंस्पेक्टर चौंक कर उछल पड़े.
“मतलब मालिक... कम उम्र से ही मेरे यहाँ काम कर रहा है न मालिक... इसलिए घर का सदस्य और मेरे बेटे जैसा हो गया था. बहुत अच्छा लड़का था... कर्मठ, आज्ञाकारी, विनोदी....”
और भी बहुत कुछ कहना चाह रहे थे तुपी काका... पर गला भर आया था उनका... फ़िर से रोने लगे.
इंस्पेक्टर रॉय से भी तुपी काका की हालत देखी नहीं जा रही थी. उन्होंने बगल में खड़े हवलदार को बुलाया.. आगे की पूछताछ और कुछेक कार्यवाही का निर्देश दिया और वहाँ से निकल गए.
जा कर भीड़ हटाते हुए अपनी जीप में बैठ गए.
सीट पर ही रखा पानी का बोतल उठा कर पीने लगे.
पानी पीते पीते ही उनकी नज़र गई तुपी काका के घर के दूसरी मंजिल की खिड़की पर.
खिड़की से लगे पर्दे के ओट से एक महिला नीचे भीड़ को देख रही थी. महिला गुमसुम सी थी... बहुत उदास... इंस्पेक्टर समझ गए की हो न हो यही सीमा जी हैं... तुपी काका की धर्मपत्नी.
इंस्पेक्टर रॉय को कुछ अलग लगा सीमा में. उसके चेहरे में, चेहरे के कसावट में, बालों में....
इंस्पेक्टर ने गौर किया... सीमा जी की नज़रें उस भीड़ पर एकदम स्थिर है... लगातार एक ही ओर देखे जा रही है... कदाचित उस भीड़ में से किसी एक ही व्यक्ति को देख रही है... इंस्पेक्टर ने उस ओर देखने का प्रयास किया. भीड़ में सबकुछ स्पष्ट तो नहीं था पर इतना ज़रूर दिख गया की सीमा जी जिसे लगातार अपलक देखे जा रही है वो एक महिला है.
इंस्पेक्टर के दिमाग ने शक उपजाऊ प्रश्न करना शुरू कर दिया,
‘सीमा जी उस महिला को ऐसे क्यों देख रही हैं? क्या सीमा जी कुछ जानती हैं इस हत्या के बारे में? जिसे वो देख रही हैं क्या उस महिला का इस हत्या से कोई सम्बन्ध है?’
-------------
थाने में,
टेबल पर गरमागर्म चाय रखा हुआ है पर इंस्पेक्टर रॉय दोनों हाथों को सिर के पीछे रख आँखें बंद किए किसी गहन सोच में डूबा हुआ है. तभी हवलदार वहाँ आया और सलाम कर के खड़ा हो गया.
इंस्पेक्टर रॉय ने आँख खोला, सामने हवलदार को देख कर मुस्कराया और कुर्सी पर ठीक से बैठते हुए पूछा,
“और... क्या ख़बर लाए हो?”
“ख़बर तो है सर, पर बहुत अटपटी सी.”
“क्या अटपटी है.. ज़रा हम भी तो सुने.”
“सर, आपके आ जाने के बाद मैंने और दूसरे सिपाहियों ने घटना से संबंधित पूछताछ की ग्रामीणों से... अधिकतर तो कुछ बता पाने की स्थिति में नहीं थे... पर कुछेक ऐसे भी मिले जिनसे जो कुछ जानने को मिला.. उस पे विश्वास कर पाना थोड़ा मुश्किल हो रहा है.”
“हुंम.”
“सर, एक ग्रामीण का कहना था कि वैसे तो मिथुन अर्थात् मृत युवक का गाँव के सभी लोगों के साथ उठाना बैठना था और काफ़ी व्यवहार कुशल भी था... पर सप्ताह – दस दिन से बहुत गुमसुम चुपचाप सा रहने लगा था. पहले किसी को देखते ही बोल पड़ता था पर कुछ दिनों से ऐसा हो गया था कि कुछ पूछने पर ही जवाब देता था... कड़े मेहनत से कड़ा हुआ उसका शरीर पिछले दिनों से काफ़ी सूख सा गया था. चेहरा निस्तेज हो गया था.”
“ओह.. ये बात थोड़ा अलग तो है... पर अजीब तो नहीं.”
“एक अजीब बात तुपी काका ने बताया सर.”
“तुपी काका ने? कैसे है वो अभी...??”
“आपके जाने के पन्द्रह बीस मिनट बाद तक रोते रहे वो... धीरे धीरे शांत हुए... शांत होने के बाद ही उन्होंने बताया की पिछले कुछ समय से मिथुन प्रायः अपने आप से ही बातें करता रहता और पहले की तुलना में थोड़ा आलसी भी हो गया था. लगातार तीन रात उन्होंने मिथुन को मध्यरात्रि में आँगन में चहलकदमी करता और बात करता हुआ देखा था... देख कर लग रहा था कि अपने आप से बातें नहीं कर वो मानो किसी और के साथ बातें कर रहा था. हँस रहा था.. मुस्करा रहा था.”
“हुमम्म... ये बातें तो कुछ और ही इशारा कर रही हैं... मैं तो सोच रहा था की कोई षड्यंत्रकारी होगा... हत्यारा होगा... हत्या का कोई मोटिव होगा... पर यहाँ तो... कुछ और ही खिचड़ी पक रही है.”
“जी सर.”
“अच्छा श्याम... वो लड़का.. क्या नाम...”
“मिथुन.”
“हाँ.. मिथुन!.. वो दिमागी तौर पर कैसा था?”
“ठीक था सर. कोई बीमारी नहीं.”
“और तुपी काका ने कुछ देखा था क्या... उस रात... जब मिथुन आँगन में किसी से बातें कर रहा था..? कोई था वहाँ?”
“नहीं सर ... कोई नहीं था.. मिथुन अकेला था... मैंने बहुत अच्छे से पूछा है तुपी काका से.”
“तुम तो उसी गाँव से हो न?”
“यस सर.”
“तब तो तुपी काका को बहुत पहले से और शायद अच्छे से जानते होगे?”
“यस सर.”
“उनके बारे में तुम्हारे क्या विचार हैं?”
“अच्छे इंसान हैं... गाय और भैंस पालते हैं. उन्हीं के दूध बेच कर उनका गुज़ारा चलता है. पुश्तैनी धंधा है. बाप दादा परदादा.. सब यही व्यापार करते आए हैं. दूध बेचने में कभी कोई घपला घोटाला नहीं हुआ है उनकी तरफ़ से. बाप सुनील पाल भी बहुत अच्छे थे. इतना दूध बेचते आए हैं कि दूध बेच कर जमा किए पैसो से एक बहुत अच्छा दो मंजिला घर बना लिया तुपी काका ने.”
“ओह... ओके.”
इंस्पेक्टर थोड़ा चिंतित स्वर में बोला.
ऐसी भयावह हत्या का दृश्य बार बार उनके आँखों के सामने तैर रहा था.
हवलदार इंस्पेक्टर को चिंतित देख कर बोला,
“क्या बात है सर... परेशान लग रहे हैं?”
“हाँ... एक बात समझ में नहीं आ रही... वहाँ से आने से पहले मैंने दूसरी मंजिल की खिड़की पे एक महिला को देखा था.. सीमा जी ही होंगी... वो वहाँ चुपचाप खड़ी नीचे घर के सामने जमा भीड़ की ओर देख रही थी. पता नहीं मुझे बार बार उनका चेहरा, रंगत आदि सब अलग सा क्यों लग रहा था?”
हवलदार दो पल चुप रहा... फ़िर बोला,
“सर, अलग लग सकती है... क्योंकि उनकी आयु बहुत कम है. करीब १२ साल छोटी हैं तुपी काका से. दरअसल काका शादी करने के खिलाफ़ थे.. आजीवन अकेले रहना चाहते थे और अपने वृद्ध हो चले माँ बाप की सेवा करना चाहते थे.. सब ठीकठाक चल रहा था. एक दिन अचानक उनकी माँ को दिल का दौरा पड़ा और गुज़र गईं. तब उनके पिताजी ने ही ज़िद कर के उनकी शादी करवाई कि माँ तो बहु नहीं देख पाई.. कम से कम वो मतलब पिताजी ही देख ले. साथ ही, वृद्धावस्था में कोई साथी हो होगा पास में. तुपी काका की जो उम्र हो रही थी उस वक़्त उतनी उम्र की दुल्हन मिलना बड़ा दुष्कर कार्य था. तब बहुत खोजने पर एक गरीब परिवार की लड़की मिली. सीमा. उसी के साथ काका की शादी हो गई. बिना किसी दान - दहेज़ के.”
“ओह.. ये बात है. बच्चे हैं इनके?”
“पता नहीं सर. मैंने उतना खोज ख़बर लिया नहीं. पर जहाँ तक लगता है.... शायद नहीं है.”
“ह्म्म्म.. अच्छा ठीक है.. तुम जाओ अभी.”
“जी सर.”
सलाम ठोक कर हवलदार श्याम वहाँ से चला गया और इधर इंस्पेक्टर रॉय फ़िर किसी सोच में डूब गया.
एक दिन तुपी काका के घर के सामने बहुत भीड़ लग गई. ऐसी भीड़ की लगे मानो सारा गाँव उठ कर तुपी काका के घर आ गया हो. जवान हो, या बच्चा या बूढ़ा या फ़िर महिलाएँ... सबके मुँह में केवल यही बातें हो रही हैं कि ‘हाय राम.. ये कैसे हो गया?’, ‘न जाने बूढ़े माँ बाप का क्या होगा?’, ‘अभी तो जवान हो ही रहा था.. इतनी जल्दी... न जाने कैसे हो गया....?’ इत्यादि.
तभी ‘जगह दीजिए...’ ‘आगे जाने दीजिए.’ ‘हटिए हटिए’ ‘साइड होइए’ कहते हुए सात सिक्युरिटीियों वाला एक दल उस ठसाठस भीड़ में से खुद के लिए जगह बनाते हुए काका के घर के मुख्य दरवाज़े तक पहुंची.
दल को लीड करने वाला एक मोटा तोंदू सा सिक्युरिटी वाला आगे बढ़ा और घर के ही एक सदस्य से पूछा,
“घटना कहाँ घटी है...? तुपी काका कौन हैं?”
उस सदस्य के मुँह से बोली नहीं फूट रही थी. चेहरे पर ऐसी हवाईयाँ उड़ रही थी मानो कुछ ऐसा देखा है उसने जो इस जीवन में कभी देखने या सुनने की उम्मीद बिल्कुल नहीं की होगी.. कभी नहीं की होगी.
काँपते हाथ से घर के एक तरफ़ इशारा किया उसने.
उस सिक्युरिटी वाले ने आँखों से इशारा कर के उसे आगे चलने को कहा. वो जाना बिल्कुल नहीं चाह रहा था पर सिक्युरिटी वाले की रोब झलकाती आँखों को देख कर और भी डर गया. मान गया.
चुपचाप आगे आगे चलने लगा.
चार सिपाहियों को वहाँ भीड़ संभालने की जिम्मेदारी दे कर वह तोंदू सिक्युरिटी वाला अपने साथ दो सिक्युरिटी वाले को लेकर उस सदस्य के पीछे पीछे चलने लगा.
कच्चे मार्ग से आगे बढ़ कर दाएँ मुड़ना पड़ा और फ़िर दस कदम चलने के बाद एक छोटा सा खटाल/गोशाला में पहुंचे सब. यहाँ तीन गाय और दो भैंसे बंधी हैं.. साफ़ सुथरा ही है सब.
“ये किसका है?” उस मोटे सिक्युरिटीिये ने पूछा.
“तुपी जी का ही है.” उस सदस्य ने कहा.
“आप कौन लगते हैं उनके??”
“जी, मैं उनका भांजा हूँ. चार दिनों के लिए घूमने आया था.”
“ह्म्म्म... तो आज कितने दिन हुए?”
“जी दो ही दिन हुए.”
“तुपी जी कहाँ हैं?”
“सुबह जब से वह भयावह काण्ड देखा है... मानो सुध बुध ही खो चुके हैं. वहीं उसी जगह बैठे हुए हैं.”
“ले चलिए हमें वहाँ.”
आदेश दिया सिक्युरिटीिए ने.
तुरन्त पालन हुआ आदेश का.
उन सब को ले कर थोड़ा और आगे बढ़ा वो युवक. खटाल से सटा हुआ एक छोटे से कमरे के पास पहुँचा.
उस कमरे के पास पहुँचने पर सबने देखा की आस पास फर्श पर खून ही खून है जो कि अंदर कमरे से बह कर बाहर निकल रही है. सभी तुरन्त अंदर घुसे... और घुस कर अंदर का जो दृश्य देखा उससे तो सबका दिमाग ही घूम गया. दिल दहल गया. उल्टी होने को आई. सामने जो दृश्य था ऐसा कभी कुछ उन लोगों को जीवन में कभी देखना भी होगा ये अपने सबसे बुरे सपने में भी नहीं सोचा था किसी ने.
सामने फर्श पर पाँच कदम आगे एक नवयुवक का शव पड़ा हुआ था. शरीर तो सामने की ओर था पर सिर पूरी तरह पीछे घूमा हुआ था. साथ ही पूरे शरीर में जगह जगह से माँस नोचा हुआ था. सबसे भयावह था उस शरीर का सीने वाला हिस्सा जहाँ बहुत बड़ा सा गड्ढा बना हुआ था...
वो मोटा सिक्युरिटी वाला आगे बढ़ कर शव को तनिक ध्यान से देखने पर पाया कि सीने से तो दिल ही गायब है!
“हे भगवान! इतनी क्रूरता!”
बरबस ही निकला उसके मुँह से.
बगल में ही, शव से चार हाथ दूर फर्श पर ही एक प्रौढ़ आदमी बैठा हुआ था. अत्यंत उदास... बदहवास... आँखों से अविरल आँसू बहाता हुआ.
उस आदमी की हालत देख कर मोटा सिक्युरिटीिया को भी थोड़ा बुरा लगा पर क्या करे... सिक्युरिटी जो ठहरा... ये समय संवेदना जताने से अधिक ड्यूटी बजाने का है.
गला खंखार कर उस आदमी से पूछा,
“सुनिए...आप ही तुपी काका हैं क्या?”
वह आदमी कुछ बोला नहीं.. अभी भी कहीं खोया हुआ अपलक उस शव को निहारे जा रहा था. उसे तो शायद इस बात का भी भान न हुआ होगा कि कोई उस कमरे में घुस कर उनके सामने खड़ा भी हुआ है.
सिक्युरिटी वाला साथ आए युवक को इशारे से पास बुलाया और धीमे स्वर में पूछा,
“तुपी काका यही हैं न?”
युवक पूरे आत्मविश्वास के साथ सिर हिलाता हुआ बोला,
“हाँ साहब.”
“ह्म्म्म... और ये मृत युवक कौन है? क्या लगता है इनका?”
“ये इस घर में काम करता था. नौकर जैसा ही था पर चूँकि बहुत ही कम उम्र से ही इस घर में रहता आ रहा था इसलिए घर के सदस्य जैसा ही हो गया था. यहाँ तक कि तुपी काका और सीमा काकी ने भी सभी को कह दिया था कि कोई इसे नौकर न समझे और हमेशा अच्छे से नाम ले कर ही बुलाया करे.”
“नाम क्या है इसका?”
“नाम तो कुछ और था... पर सीमा काकी प्यार से मिथुन कह कर बुलाती थी... धीरे धीरे घर में सभी और गाँव वाले भी इसे मिथुन नाम से ही बुलाने लगे थे.”
उस युवक का वाक्य खत्म होते ही तपाक से सिक्युरिटी वाले ने पूछा,
“ये सीमा काकी कौन हैं?”
“इनकी (तुपी काका की ओर इशारा करते हुए) पत्नी है साहब.”
“हम्म.. और तुम्हारा नाम?”
“गोबिन्दो दास, साहब... घर और बाहर सब प्यार से बिल्टू कह कर बुलाते हैं.”
“बिल्टू... हम्म.. अच्छा नाम है.. मैं भी इसी नाम से बुलाऊँगा तुझे.. कोई दिक्कत?”
खैनी और गुटखा से पीले पड़ चुके दांतों को एक बड़ी सी मुस्कान से दिखाते हुए चापलूसी वाले अंदाज़ में हाथ जोड़ते हुए बिल्टू बोला,
“आप माई बाप हो सरकार... जो जी में आए...कह सकते हैं.”
सिक्युरिटी वाला पैनी नज़रों से एकबार उस युवक की आँखों में अच्छे से देखा; फ़िर तुपी काका की ओर इशारा करते हुए धीमे पर गंभीर आवाज़ में बोला,
“इन्हें पानी दो... सम्भालो.”
युवक जल्दी से एक बड़े से ग्लास में पानी ले आया और हथेली में थोड़ा पानी ले तुपी काका के चेहरे पर छींट दिया.
वास्तविकता में लौटने में एक-दो मिनट और लग गए तुपी काका को.
सामने सिक्युरिटी वाला को अचानक से देख सहम गए. प्रश्नसूचक नेत्रों से बिल्टू की ओर देखा. बिल्टू ने शव की ओर इशारा कर के सिक्युरिटी के आने का आशय समझा दिया काका को.
तुपी काका उठे और हाथ जोड़ कर सिक्युरिटी वाले के सामने जा कर खड़े हो गए.
“तुपी काका आप ही हैं न?” उत्तर जानते हुए भी सिक्युरिटी वाले ने पूछा.
काका ने सिर हिलाते हुए जवाब दिया,
“जी मालिक.”
“आपका पूरा नाम...बढ़िया नाम?”
“तपन सुनील पाल, मालिक.”
“हम्म.. पिताजी का नाम सुनील पाल?”
“जी मालिक.”
“हैं?”
“नहीं मालिक... चार साल हो गए उनके गुज़रे हुए.”
“ओह.. सॉरी.”
एक पल चुप रह कर सिक्युरिटीिए ने फ़िर कहा,
“मेरा नाम बिशम्बर रॉय है. इंस्पेक्टर बिशम्बर रॉय. थाना इंचार्ज.”
प्रत्युत्तर में तुपी काका ने केवल हाथ जोड़ कर अभिवादन जताया.
“ये युवक आपका कौन था?”
“बेटा था मालिक.” कहते हुए तुपी काका फफक पड़े.
“जी?!”
इंस्पेक्टर चौंक कर उछल पड़े.
“मतलब मालिक... कम उम्र से ही मेरे यहाँ काम कर रहा है न मालिक... इसलिए घर का सदस्य और मेरे बेटे जैसा हो गया था. बहुत अच्छा लड़का था... कर्मठ, आज्ञाकारी, विनोदी....”
और भी बहुत कुछ कहना चाह रहे थे तुपी काका... पर गला भर आया था उनका... फ़िर से रोने लगे.
इंस्पेक्टर रॉय से भी तुपी काका की हालत देखी नहीं जा रही थी. उन्होंने बगल में खड़े हवलदार को बुलाया.. आगे की पूछताछ और कुछेक कार्यवाही का निर्देश दिया और वहाँ से निकल गए.
जा कर भीड़ हटाते हुए अपनी जीप में बैठ गए.
सीट पर ही रखा पानी का बोतल उठा कर पीने लगे.
पानी पीते पीते ही उनकी नज़र गई तुपी काका के घर के दूसरी मंजिल की खिड़की पर.
खिड़की से लगे पर्दे के ओट से एक महिला नीचे भीड़ को देख रही थी. महिला गुमसुम सी थी... बहुत उदास... इंस्पेक्टर समझ गए की हो न हो यही सीमा जी हैं... तुपी काका की धर्मपत्नी.
इंस्पेक्टर रॉय को कुछ अलग लगा सीमा में. उसके चेहरे में, चेहरे के कसावट में, बालों में....
इंस्पेक्टर ने गौर किया... सीमा जी की नज़रें उस भीड़ पर एकदम स्थिर है... लगातार एक ही ओर देखे जा रही है... कदाचित उस भीड़ में से किसी एक ही व्यक्ति को देख रही है... इंस्पेक्टर ने उस ओर देखने का प्रयास किया. भीड़ में सबकुछ स्पष्ट तो नहीं था पर इतना ज़रूर दिख गया की सीमा जी जिसे लगातार अपलक देखे जा रही है वो एक महिला है.
इंस्पेक्टर के दिमाग ने शक उपजाऊ प्रश्न करना शुरू कर दिया,
‘सीमा जी उस महिला को ऐसे क्यों देख रही हैं? क्या सीमा जी कुछ जानती हैं इस हत्या के बारे में? जिसे वो देख रही हैं क्या उस महिला का इस हत्या से कोई सम्बन्ध है?’
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थाने में,
टेबल पर गरमागर्म चाय रखा हुआ है पर इंस्पेक्टर रॉय दोनों हाथों को सिर के पीछे रख आँखें बंद किए किसी गहन सोच में डूबा हुआ है. तभी हवलदार वहाँ आया और सलाम कर के खड़ा हो गया.
इंस्पेक्टर रॉय ने आँख खोला, सामने हवलदार को देख कर मुस्कराया और कुर्सी पर ठीक से बैठते हुए पूछा,
“और... क्या ख़बर लाए हो?”
“ख़बर तो है सर, पर बहुत अटपटी सी.”
“क्या अटपटी है.. ज़रा हम भी तो सुने.”
“सर, आपके आ जाने के बाद मैंने और दूसरे सिपाहियों ने घटना से संबंधित पूछताछ की ग्रामीणों से... अधिकतर तो कुछ बता पाने की स्थिति में नहीं थे... पर कुछेक ऐसे भी मिले जिनसे जो कुछ जानने को मिला.. उस पे विश्वास कर पाना थोड़ा मुश्किल हो रहा है.”
“हुंम.”
“सर, एक ग्रामीण का कहना था कि वैसे तो मिथुन अर्थात् मृत युवक का गाँव के सभी लोगों के साथ उठाना बैठना था और काफ़ी व्यवहार कुशल भी था... पर सप्ताह – दस दिन से बहुत गुमसुम चुपचाप सा रहने लगा था. पहले किसी को देखते ही बोल पड़ता था पर कुछ दिनों से ऐसा हो गया था कि कुछ पूछने पर ही जवाब देता था... कड़े मेहनत से कड़ा हुआ उसका शरीर पिछले दिनों से काफ़ी सूख सा गया था. चेहरा निस्तेज हो गया था.”
“ओह.. ये बात थोड़ा अलग तो है... पर अजीब तो नहीं.”
“एक अजीब बात तुपी काका ने बताया सर.”
“तुपी काका ने? कैसे है वो अभी...??”
“आपके जाने के पन्द्रह बीस मिनट बाद तक रोते रहे वो... धीरे धीरे शांत हुए... शांत होने के बाद ही उन्होंने बताया की पिछले कुछ समय से मिथुन प्रायः अपने आप से ही बातें करता रहता और पहले की तुलना में थोड़ा आलसी भी हो गया था. लगातार तीन रात उन्होंने मिथुन को मध्यरात्रि में आँगन में चहलकदमी करता और बात करता हुआ देखा था... देख कर लग रहा था कि अपने आप से बातें नहीं कर वो मानो किसी और के साथ बातें कर रहा था. हँस रहा था.. मुस्करा रहा था.”
“हुमम्म... ये बातें तो कुछ और ही इशारा कर रही हैं... मैं तो सोच रहा था की कोई षड्यंत्रकारी होगा... हत्यारा होगा... हत्या का कोई मोटिव होगा... पर यहाँ तो... कुछ और ही खिचड़ी पक रही है.”
“जी सर.”
“अच्छा श्याम... वो लड़का.. क्या नाम...”
“मिथुन.”
“हाँ.. मिथुन!.. वो दिमागी तौर पर कैसा था?”
“ठीक था सर. कोई बीमारी नहीं.”
“और तुपी काका ने कुछ देखा था क्या... उस रात... जब मिथुन आँगन में किसी से बातें कर रहा था..? कोई था वहाँ?”
“नहीं सर ... कोई नहीं था.. मिथुन अकेला था... मैंने बहुत अच्छे से पूछा है तुपी काका से.”
“तुम तो उसी गाँव से हो न?”
“यस सर.”
“तब तो तुपी काका को बहुत पहले से और शायद अच्छे से जानते होगे?”
“यस सर.”
“उनके बारे में तुम्हारे क्या विचार हैं?”
“अच्छे इंसान हैं... गाय और भैंस पालते हैं. उन्हीं के दूध बेच कर उनका गुज़ारा चलता है. पुश्तैनी धंधा है. बाप दादा परदादा.. सब यही व्यापार करते आए हैं. दूध बेचने में कभी कोई घपला घोटाला नहीं हुआ है उनकी तरफ़ से. बाप सुनील पाल भी बहुत अच्छे थे. इतना दूध बेचते आए हैं कि दूध बेच कर जमा किए पैसो से एक बहुत अच्छा दो मंजिला घर बना लिया तुपी काका ने.”
“ओह... ओके.”
इंस्पेक्टर थोड़ा चिंतित स्वर में बोला.
ऐसी भयावह हत्या का दृश्य बार बार उनके आँखों के सामने तैर रहा था.
हवलदार इंस्पेक्टर को चिंतित देख कर बोला,
“क्या बात है सर... परेशान लग रहे हैं?”
“हाँ... एक बात समझ में नहीं आ रही... वहाँ से आने से पहले मैंने दूसरी मंजिल की खिड़की पे एक महिला को देखा था.. सीमा जी ही होंगी... वो वहाँ चुपचाप खड़ी नीचे घर के सामने जमा भीड़ की ओर देख रही थी. पता नहीं मुझे बार बार उनका चेहरा, रंगत आदि सब अलग सा क्यों लग रहा था?”
हवलदार दो पल चुप रहा... फ़िर बोला,
“सर, अलग लग सकती है... क्योंकि उनकी आयु बहुत कम है. करीब १२ साल छोटी हैं तुपी काका से. दरअसल काका शादी करने के खिलाफ़ थे.. आजीवन अकेले रहना चाहते थे और अपने वृद्ध हो चले माँ बाप की सेवा करना चाहते थे.. सब ठीकठाक चल रहा था. एक दिन अचानक उनकी माँ को दिल का दौरा पड़ा और गुज़र गईं. तब उनके पिताजी ने ही ज़िद कर के उनकी शादी करवाई कि माँ तो बहु नहीं देख पाई.. कम से कम वो मतलब पिताजी ही देख ले. साथ ही, वृद्धावस्था में कोई साथी हो होगा पास में. तुपी काका की जो उम्र हो रही थी उस वक़्त उतनी उम्र की दुल्हन मिलना बड़ा दुष्कर कार्य था. तब बहुत खोजने पर एक गरीब परिवार की लड़की मिली. सीमा. उसी के साथ काका की शादी हो गई. बिना किसी दान - दहेज़ के.”
“ओह.. ये बात है. बच्चे हैं इनके?”
“पता नहीं सर. मैंने उतना खोज ख़बर लिया नहीं. पर जहाँ तक लगता है.... शायद नहीं है.”
“ह्म्म्म.. अच्छा ठीक है.. तुम जाओ अभी.”
“जी सर.”
सलाम ठोक कर हवलदार श्याम वहाँ से चला गया और इधर इंस्पेक्टर रॉय फ़िर किसी सोच में डूब गया.