15-06-2020, 08:29 PM
४)
एक दिन सुबह उठते ही रुना को अपना शरीर भारी और हल्का; दोनों ही लगने लगा. ऐसा पहले कभी हुआ नहीं था उसके साथ. बिस्तर पर उठ बैठी. आँखें खोलना चाही पर नींद तो जैसे जम कर पलकों पर बैठ गई हो. फ़िर भी कोशिश करते करते किसी तरह आँख खोल पाई. संयोग ऐसा हुआ की आँख खोलते ही अपने बदन पर ही सबसे पहले उसकी नज़र गई.
और इसी के साथ बुरी तरह चौंक उठी वह.
सीने पर उसके तो ब्लाउज है ही नहीं..!
सिर्फ़ ब्रा में है और उसमें भी नब्बे प्रतिशत चूचियाँ ब्रा कप से ऊपर उठ कर बाहर की ओर झलक रही हैं... और ऐसा हो भी क्यों न... ब्रा तो खुद भी अधखुली सी है... एक स्ट्रेप कंधे पर से उतरी हुई है. साड़ी तो जैसे हो कर भी नहीं है बदन पर.. ज़रा सा हिस्सा ही कमर पर किसी तरह लिपटा हुआ है ...वो भी सिर्फ़ जांघों तक ही.!
आशंकित सी हो पलट कर बिस्तर पर अपने बगल में देखी.
पति पेट के बल लेटे मुँह दूसरी ओर किए अभी भी गहरी नींद में सो रहा है.
रुना जल्दी से पलंग से उतरी.. और कमरे में ही मौजूद अटैच्ड बाथरूम में घुस गई.
कपड़ों को ठीक करने के बाद ब्रश वगैरह की.
मुँह अच्छे से धोकर बाथरूम से निकलने के बाद रुना को अच्छा तो लग रहा था पर बदन अब भी टूट रहा था. आँखों पर इतना पानी देने, इतना धोने साफ़ करने के बाद भी नींद तो जैसे अंगद के पाँव की तरह आँखों पर जम गई थीं.. पति को ऑफिस के लिए देर न हो जाए ये सोच कर वो अपने वर्तमान शारीरिक अनुभूतियों को छोड़ नीचे उतर कर सीधे रसोई में घुसी.
कुछ देर में पति के लिए टिफ़िन तैयार कर के उन्हें जगाने ऊपर अपने कमरे में गई. सुबह का नाश्ता के साथ साथ अपने और अपने पति के लिए टिफ़िन जल्दी बन जाने के कारण रुना थोड़ा खुश थी. दो दिन हुआ बिट्टू अपने नाना नानी के पास (मामार बाड़ी) चला गया है. इसलिए चाहे नाश्ता हो, टिफ़िन हो या फ़िर दोपहर और रात का खाना; रुना को थोड़ा कम ही मेहनत करनी पड़ रही है पिछले दो दिन से.
कमरे में पहुँच कर पलंग पर अभी भी बेख्याली से सोये अपने पति को देख कर मुस्कराई.
पति को तीन चार बार आवाज़ दी ... उठने को बोली... पर पति ने कोई जवाब नहीं दिया.
अचरज हो जैसे ही पति के पास जा कर उन्हें हाथ लगा कर उठाने को हुई; अचानक से उसे अपना सिर फ़िर भारी सा लगने लगा. झुकी हुई स्थिति से तुरंत सीधी हो कर खड़ी हो गई. ध्यान दी, सिर सच में भारी हो गया है. नींद ठीक से न हो पाने को कारण मानते हुए वह तुरंत बाथरूम में घुसी और वॉशबेसिन का नल चला कर आँखों और मुँह पर ज़ोर ज़ोर से पानी लेने लगी.
पूरे दो मिनट तक वो जम कर अपने चेहरे, आँखों पर पानी लेती रही.
इस क्रम में उसकी साड़ी का ऊपरी हिस्सा और ब्लाउज भी बहुत भीग गए. करीब 70% तक ब्लाउज बुरी तरह भीग कर उसके बदन से चिपक गया. भीगे कपड़ों में खड़े रहने पर जैसा आभास होता है ठीक वैसा ही अब रुना को होने लगा.
नल बंद की..
वॉशबेसिन के ऊपर लगे आईने में खुद को देखने के लिए चेहरा ऊपर उठाई...
पलकों पर अभी भी बहुत पानी होने के कारण तुरंत आँख खोल कर देख नहीं पाई.
और जब आँखें खोल पाई, तब आईने में जो देखी... जो दिखा उसे... उसे बिल्कुल भी विश्वास नहीं हुआ. कुछ क्षण अपलक देखती रही वो आईने में. कुछ पल आईने में देखते हुए उसे ऐसा लगने लगा मानो उसे बहुत नींद आ रही है... उसकी आँखें बंद होने लगीं... उसे उसी समय बिस्तर पर जा कर लेट जाने का मन करने लगा. उसकी धड़कने धीरे धीरे तेज़ होने लगी.
वॉशबेसिन के दोनों साइड को अपने हाथों से कस कर पकड़ कर खुद को खड़ा रखने की कोशिश करने लगी. आईने में जो कुछ दिखा उसे; उसे कन्फर्म करने के लिए दुबारा देखने की कोशिश की.. पर आँखें अब बंद हो आई थीं... जो उसके लाख चाहने के बावजूद खुलने को राज़ी नहीं हो रहे थे.
खुद को सम्भालने के लिए कुछ सोचती; कि तभी वो चिहुंक उठी...
और ऐसा करने को विवश किया दो मर्दाना हाथों ने जो उसके पेट को पीछे से दोनों साइड से सहलाते हुए अपने आगोश में ले लिया था. दो गर्म हथेलियों का स्पर्श अपने पेट की नर्म त्वचा पर पाते ही रुना पहले डर ज़रूर गई थी पर जल्द ही उसका सारा डर उन हाथों की कोमल सहलाहट ने दूर कर दिया.
उन दोनों हाथों ने नर्म और कोमल तरीके से रुना के पेट, नाभि और कमर का मसाज करना शुरू कर दिया. इतने प्यार से कि कुछ ही पलों में रुना ने खुद को, अपने सिर दर्द को, अपने टूटते बदन की पीड़ा को उन हाथों के स्पर्श से हो रही चमत्कारिक सुख के हवाले कर दिया. किसी के भी हाथों के स्पर्श से ऐसी सुख की कभी आशा नहीं की थी रुना ने.
अब तक आँचल भी सीने पर ढीला हो कर कंधे से सरक कर बाएँ हाथ पर किसी तरह फँस कर रह गया था.
पर रुना को तो अब इसकी भी सुध नहीं थी...
उसे तो ये तक पता नहीं चला कि उन हाथों ने उसकी साड़ी को पेटीकोट सहित कमर व नाभि से नीचे.... बहुत नीचे कर दिया था. मतलब इतना नीचे कि शायद अगली एक और कोशिश में रुना की गांड की दरार और सामने से झांटें दिख जाए.
कुछ देर बड़े प्यार से चर्बीयुक्त कमर को मसलने के बाद वे हाथ धीरे धीरे ऊपर उठने लगे... बिल्कुल मेरुदंड की सीध में... उठते उठते ब्लाउज के बॉर्डर के पास जा रुके... फ़िर उस पूरे जगह को दोनों अँगूठों की मदद से थोड़े दबाव से मसाज किया जाने लगा.
रुना की सांसे गहरी और लंबी होने लगी.
इधर दोनों हाथ अब ब्लाउज के बॉर्डर को थोड़ा ऊपर कर अंदर घुस चुके थे... एक साथ दोनों हाथों को न संभाल पाने के कारण पीठ के तरफ़ से ही ब्लाउज का सिलाई दो साइड से खुल गया जिससे अब तक बदन पर फ़िट बैठता ब्लाउज अब अपेक्षाकृत ढीला हो गया. दोनों हाथ अब बहुत सरलता से ब्लाउज के अंदर रहते हुए पूरे मांसल पीठ पर घूमने लगे.
भरे पीठ को अच्छे से मसलते हुए वे दोनों हाथ बहुत बेहतरीन मसाज दे रहे थे.
मदहोशी में होने के बावजूद कुछ अटपटा सा ज़रूर लग रहा था रुना को पर वो इस मसाज वाले शारीरिक सुख को अभी तुरंत न तो रोक सकती है और ना ही रोकना चाहती है. जिस तरह इन हाथों ने उसके चर्बीयुक्त कमर, पेट और यहाँ तक की नाभि को रगड़ रगड़ कर आराम दिया है; ऐसा आराम वो अपने पूरे बदन पर पाने को इच्छुक हो गई. उसका रोम रोम इस मर्दाना छुअन से पुलकित हुआ जा रहा था. मन के किसी कोने में एक तमन्ना ऐसी जगने लगी थी कि काश ये हाथ अब उसके स्तनों पर जाए और जिस प्रकार अभी तक उसके शरीर के दूसरे अंगों को आराम मिला ठीक वैसा ही आराम ये हाथ उसके स्तनों का बेरहमी से मर्दन कर के दे.
अचानक उसे लगा जैसे पीठ पर पड़ने वाला दबाव कम हो गया... कम ही नहीं बल्कि दबाव एकदम से ही हट गया. पर.. पर... दोनों हाथ तो अब भी वहीँ हैं... उसके पीठ पर ... उसके भरी हुई पीठ का आनंद लेते हुए उसे आनंद देने का काम करते... तो फ़िर..?
क्षण भर बाद ही उसे उसका उत्तर मिल गया... और ऐसा होते ही स्त्री सुलभ एक मोहक लाज उसके सुंदर मुखरे पर बिखर गई.
उन दो हथेलियों के अलावा जो चीज़ रुना के पीठ पर दबाव बना रहा था और जो अभी अभी एकदम से हट गया; वो था उसकी ब्रा की हुक. उन हथेलियों की करामाती अँगुलियों ने बड़े ही सरलता से उसके हुक को खोल दिए जिसका पता खुद रुना को कम से कम दो तीन मिनट बाद लगा.
अब तो वे हथेलियाँ और भी स्वतंत्र रूप से पूरे पीठ का भ्रमण करने लगे... जहाँ मन करे वहीँ रम जाए ... और फ़िर बड़े अच्छे तरीके से बिना तेल के ही मर्दन करने लग जाए.
काम पीड़ित होती जा रही रुना उन हथेलियों का स्पर्श अपने यौनक्षुद्रात स्तनों पर पाने की कामना में इतनी ही विभोर हो गई थी कि उसे अपने बदन के दूसरी जगह पर होते छेड़छाड़ का रत्ती भर भी पता न चला. पता ही कब और कैसे उसकी साड़ी पेटीकोट सहित उसके भरे गोल पिछवाड़े पर से और नीचे सरक गई थी और अब तो किसी प्रकार इस तरह ऊपरी जांघों के इर्द – गिर्द इस तरह लिपटी – अटकी हुई थी की अब गिरे तो तब गिरे!
और अब एक और मर्दाना अंग अपने काम पर लग चुका था.
जोकि बड़े प्रेम और समर्पित भाव से रुना के गांड के दरार पर ऊपर नीचे हो रहा था. एक बार ऊपर से नीचे आता.. फ़िर नीचे से ऊपर.... फ़िर ऊपर से नीचे... पर अब की बार बीच में ही रुक कर कुछेक क्षणों के लिए दरार पर हल्का दबाव डालता... और फ़िर नीचे जाता... और फ़िर वही काम शुरू से शुरू होता.
ऐसी लगातार हरकतों ने रुना को गर्म करने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
चरम यौनेतेज्जना में ‘म्मम्म....आह्ह्ह..’ करने लगी..
उस गर्म अंग का यूँ बार बार ऊपर नीचे हो कर उसकी तृष्णा को बढ़ा कर छोड़ देना; ये उससे सहन नहीं हो रहा था. वो उस अंग को जल्द से जल्द अपने में समाहित करना चाहती थी. इसलिए धीरे धीरे अपनी गांड को पीछे करने लगी... उसके ऐसा करने के बावजूद वह अंग अपने पूर्व की हरकत से तनिक भी नहीं डिगा और पहले की तरह ही दरार पर ऊपर नीचे होता रहा.
रुना के बर्दाश्त के बाहर होने लगा ये सब अब. उसके अतृप्त मन ने ठान लिया की अब चाहे जो हो, जैसे भी हो, जितना भी हो.. वो उस गर्म फड़कते अंग को अपने अंदर ले कर रहेगी. ये सोचने के साथ ही उसने अपनी गांड को आगे पीछे करना शुरू किया. तीन से चार बार ऐसा की ही थी कि कानों से एक आवाज़ टकराई,
“रुना....ओ रुना...”
पर उसने ध्यान नहीं दिया... वो तो बस अपने अतृप्त मन की अधीन हो अपने जिस्म के एक एक रोएँ को आराम... सुख देना चाहती थी.
आवाज़ फ़िर गूँजी..
और साथ ही किसी ने उसके बाँह को पकड़ कर झकझोड़ा,
“अरे रुना... उठो... क्या कर रही हो??”
रुना अचानक से हड़बड़ा कर उठी,
और इसी के साथ वर्तमान स्थिति को देख कर हतप्रभ रह गई...
सीने पर आँचल अनुपस्थित है.. ब्लाउज के सारे बटन खुले हुए हैं... ब्रा भी गैर हाजिर... पेटीकोट कमर तक उठा हुआ और खुद उसका हाथ... बायीं हाथ की मध्यमा और अनामिका ऊँगली उसकी चूत में अंदर तक प्रविष्ट हैं जो खुद भी गीली है!
रुना अविश्वास से अपने आस पास देखी...
बगल में ही उसके पति श्री नबीन मुख़र्जी, अर्थात् “नबीन बाबू” बड़े आश्चर्य से आँखें फाड़े उसे देख रहे थे...
बोले,
“रुना.. ये क्या कर रही हो... सुबह सुबह ही... छी: ... कोई और समय होता तो और बात होती... क्या हुआ है तुम्हें..?”
सेक्स को लेकर नबीन बाबू आज भी उतने ही अपरिचित हैं जितना की सत्रह साल पहले अपने शादी के समय थे.. सफलता बस इतनी ही रही की किसी तरह अपने खड़े अंग को किसी तरह रुना के ताज़ी योनि में डाल पाए और समय समय पर थोड़ा बहुत कर के एक संतानोपत्ति कर पाए.
ऐसा नहीं की सेक्स के मामले में एकदम भोंदू हैं नबीन बाबू... फ़िर भी सेक्स किसी रॉकेट साइंस की ही तरह रहा है हमेशा से उनके लिए.
“ज..जी... वो....म”
“चलो चलो... जल्दी उठो... मुझे देर हो रही है.. आठ बजने को आया है.”
“आप नहा लिए?”
“हाँ.”
“ओह.. ठीक है. नाश्ता टेबल पर है. खा लीजिए.” खुद को सम्भालते हुए बोली रुना.
नबीन बाबू कुछ बोले नहीं.. आश्चर्य से देखते रहे रुना को.
रुना को अजीब लगा.. बोली,
“क्या हुआ... क्या देख रहे हैं?”
“देख रहा हूँ की ये तुम क्या अनाप शनाप बक रही हो... तुम सुबह से एक बार भी उठी ही कब थी? मैंने तुम्हें उठाया... अभी... जब उठी ही नहीं तब नाश्ता कैसे बना ली?”
“ओह्हो... मैं बना चुकी हूँ... टेबल पर है... चलिए .. दिखाती हूँ.”
रुना नबीन को लेकर नीचे वाले कमरे में आई...
“देखिए... टेबल प...”
डाइनिंग टेबल की ओर इशारा करते करते रुना के हाथ और होंठ थम गए.
टेबल पर कुछ नहीं था!
रुना आश्चर्य से दोहरी हो गई.
उसे अपने सामने खाली टेबल को देख कर खुद पे विश्वास नहीं हो रहा था.
कहाँ गया सारा नाश्ता...??
कुछ देर पहले ही तो रखी थी....
नबीन बाबू कुछ बोले नहीं.. काम के प्रेशर का नतीजा बता कर उसे कॉलेज से छुट्टी लेकर आज घर पर ही रहने को कहा.
नबीन का बिना कुछ खाए ही ऑफिस के लिए निकल जाते देख रुना को बहुत दुःख हुआ.
पर दुखी होने से भी ज़्यादा अपने साथ सुबह से हो रही घटनाओं को लेकर परेशान हो रही थी.
बिस्तर पर लेटी हुई पूरे घटनाक्रम के बारे में सोच ही रही थी कि मुख्य दरवाज़े पर दस्तक हुई.
साथ ही एक आवाज़ भी आई,
“मैडम जी, दूध ले लीजिए...”
इच्छा तो नहीं थी उठने की... फ़िर भी उठी....
रसोई में गई, बर्तन ली और जा कर दरवाज़ा खोल कर बर्तन आगे बढ़ा दी.
“नमस्ते मैडम जी.”
“हम्म.. नमस्ते.”
अनमने भाव से रुना प्रत्युत्तर देते हुए देबू की ओर देखी.. और एक बार फ़िर बुरी तरह चौंक उठी,
“अरे...ये क्या.... ये तो बिल्कुल सुबह जैसे.... उफ़..!!”
एक दिन सुबह उठते ही रुना को अपना शरीर भारी और हल्का; दोनों ही लगने लगा. ऐसा पहले कभी हुआ नहीं था उसके साथ. बिस्तर पर उठ बैठी. आँखें खोलना चाही पर नींद तो जैसे जम कर पलकों पर बैठ गई हो. फ़िर भी कोशिश करते करते किसी तरह आँख खोल पाई. संयोग ऐसा हुआ की आँख खोलते ही अपने बदन पर ही सबसे पहले उसकी नज़र गई.
और इसी के साथ बुरी तरह चौंक उठी वह.
सीने पर उसके तो ब्लाउज है ही नहीं..!
सिर्फ़ ब्रा में है और उसमें भी नब्बे प्रतिशत चूचियाँ ब्रा कप से ऊपर उठ कर बाहर की ओर झलक रही हैं... और ऐसा हो भी क्यों न... ब्रा तो खुद भी अधखुली सी है... एक स्ट्रेप कंधे पर से उतरी हुई है. साड़ी तो जैसे हो कर भी नहीं है बदन पर.. ज़रा सा हिस्सा ही कमर पर किसी तरह लिपटा हुआ है ...वो भी सिर्फ़ जांघों तक ही.!
आशंकित सी हो पलट कर बिस्तर पर अपने बगल में देखी.
पति पेट के बल लेटे मुँह दूसरी ओर किए अभी भी गहरी नींद में सो रहा है.
रुना जल्दी से पलंग से उतरी.. और कमरे में ही मौजूद अटैच्ड बाथरूम में घुस गई.
कपड़ों को ठीक करने के बाद ब्रश वगैरह की.
मुँह अच्छे से धोकर बाथरूम से निकलने के बाद रुना को अच्छा तो लग रहा था पर बदन अब भी टूट रहा था. आँखों पर इतना पानी देने, इतना धोने साफ़ करने के बाद भी नींद तो जैसे अंगद के पाँव की तरह आँखों पर जम गई थीं.. पति को ऑफिस के लिए देर न हो जाए ये सोच कर वो अपने वर्तमान शारीरिक अनुभूतियों को छोड़ नीचे उतर कर सीधे रसोई में घुसी.
कुछ देर में पति के लिए टिफ़िन तैयार कर के उन्हें जगाने ऊपर अपने कमरे में गई. सुबह का नाश्ता के साथ साथ अपने और अपने पति के लिए टिफ़िन जल्दी बन जाने के कारण रुना थोड़ा खुश थी. दो दिन हुआ बिट्टू अपने नाना नानी के पास (मामार बाड़ी) चला गया है. इसलिए चाहे नाश्ता हो, टिफ़िन हो या फ़िर दोपहर और रात का खाना; रुना को थोड़ा कम ही मेहनत करनी पड़ रही है पिछले दो दिन से.
कमरे में पहुँच कर पलंग पर अभी भी बेख्याली से सोये अपने पति को देख कर मुस्कराई.
पति को तीन चार बार आवाज़ दी ... उठने को बोली... पर पति ने कोई जवाब नहीं दिया.
अचरज हो जैसे ही पति के पास जा कर उन्हें हाथ लगा कर उठाने को हुई; अचानक से उसे अपना सिर फ़िर भारी सा लगने लगा. झुकी हुई स्थिति से तुरंत सीधी हो कर खड़ी हो गई. ध्यान दी, सिर सच में भारी हो गया है. नींद ठीक से न हो पाने को कारण मानते हुए वह तुरंत बाथरूम में घुसी और वॉशबेसिन का नल चला कर आँखों और मुँह पर ज़ोर ज़ोर से पानी लेने लगी.
पूरे दो मिनट तक वो जम कर अपने चेहरे, आँखों पर पानी लेती रही.
इस क्रम में उसकी साड़ी का ऊपरी हिस्सा और ब्लाउज भी बहुत भीग गए. करीब 70% तक ब्लाउज बुरी तरह भीग कर उसके बदन से चिपक गया. भीगे कपड़ों में खड़े रहने पर जैसा आभास होता है ठीक वैसा ही अब रुना को होने लगा.
नल बंद की..
वॉशबेसिन के ऊपर लगे आईने में खुद को देखने के लिए चेहरा ऊपर उठाई...
पलकों पर अभी भी बहुत पानी होने के कारण तुरंत आँख खोल कर देख नहीं पाई.
और जब आँखें खोल पाई, तब आईने में जो देखी... जो दिखा उसे... उसे बिल्कुल भी विश्वास नहीं हुआ. कुछ क्षण अपलक देखती रही वो आईने में. कुछ पल आईने में देखते हुए उसे ऐसा लगने लगा मानो उसे बहुत नींद आ रही है... उसकी आँखें बंद होने लगीं... उसे उसी समय बिस्तर पर जा कर लेट जाने का मन करने लगा. उसकी धड़कने धीरे धीरे तेज़ होने लगी.
वॉशबेसिन के दोनों साइड को अपने हाथों से कस कर पकड़ कर खुद को खड़ा रखने की कोशिश करने लगी. आईने में जो कुछ दिखा उसे; उसे कन्फर्म करने के लिए दुबारा देखने की कोशिश की.. पर आँखें अब बंद हो आई थीं... जो उसके लाख चाहने के बावजूद खुलने को राज़ी नहीं हो रहे थे.
खुद को सम्भालने के लिए कुछ सोचती; कि तभी वो चिहुंक उठी...
और ऐसा करने को विवश किया दो मर्दाना हाथों ने जो उसके पेट को पीछे से दोनों साइड से सहलाते हुए अपने आगोश में ले लिया था. दो गर्म हथेलियों का स्पर्श अपने पेट की नर्म त्वचा पर पाते ही रुना पहले डर ज़रूर गई थी पर जल्द ही उसका सारा डर उन हाथों की कोमल सहलाहट ने दूर कर दिया.
उन दोनों हाथों ने नर्म और कोमल तरीके से रुना के पेट, नाभि और कमर का मसाज करना शुरू कर दिया. इतने प्यार से कि कुछ ही पलों में रुना ने खुद को, अपने सिर दर्द को, अपने टूटते बदन की पीड़ा को उन हाथों के स्पर्श से हो रही चमत्कारिक सुख के हवाले कर दिया. किसी के भी हाथों के स्पर्श से ऐसी सुख की कभी आशा नहीं की थी रुना ने.
अब तक आँचल भी सीने पर ढीला हो कर कंधे से सरक कर बाएँ हाथ पर किसी तरह फँस कर रह गया था.
पर रुना को तो अब इसकी भी सुध नहीं थी...
उसे तो ये तक पता नहीं चला कि उन हाथों ने उसकी साड़ी को पेटीकोट सहित कमर व नाभि से नीचे.... बहुत नीचे कर दिया था. मतलब इतना नीचे कि शायद अगली एक और कोशिश में रुना की गांड की दरार और सामने से झांटें दिख जाए.
कुछ देर बड़े प्यार से चर्बीयुक्त कमर को मसलने के बाद वे हाथ धीरे धीरे ऊपर उठने लगे... बिल्कुल मेरुदंड की सीध में... उठते उठते ब्लाउज के बॉर्डर के पास जा रुके... फ़िर उस पूरे जगह को दोनों अँगूठों की मदद से थोड़े दबाव से मसाज किया जाने लगा.
रुना की सांसे गहरी और लंबी होने लगी.
इधर दोनों हाथ अब ब्लाउज के बॉर्डर को थोड़ा ऊपर कर अंदर घुस चुके थे... एक साथ दोनों हाथों को न संभाल पाने के कारण पीठ के तरफ़ से ही ब्लाउज का सिलाई दो साइड से खुल गया जिससे अब तक बदन पर फ़िट बैठता ब्लाउज अब अपेक्षाकृत ढीला हो गया. दोनों हाथ अब बहुत सरलता से ब्लाउज के अंदर रहते हुए पूरे मांसल पीठ पर घूमने लगे.
भरे पीठ को अच्छे से मसलते हुए वे दोनों हाथ बहुत बेहतरीन मसाज दे रहे थे.
मदहोशी में होने के बावजूद कुछ अटपटा सा ज़रूर लग रहा था रुना को पर वो इस मसाज वाले शारीरिक सुख को अभी तुरंत न तो रोक सकती है और ना ही रोकना चाहती है. जिस तरह इन हाथों ने उसके चर्बीयुक्त कमर, पेट और यहाँ तक की नाभि को रगड़ रगड़ कर आराम दिया है; ऐसा आराम वो अपने पूरे बदन पर पाने को इच्छुक हो गई. उसका रोम रोम इस मर्दाना छुअन से पुलकित हुआ जा रहा था. मन के किसी कोने में एक तमन्ना ऐसी जगने लगी थी कि काश ये हाथ अब उसके स्तनों पर जाए और जिस प्रकार अभी तक उसके शरीर के दूसरे अंगों को आराम मिला ठीक वैसा ही आराम ये हाथ उसके स्तनों का बेरहमी से मर्दन कर के दे.
अचानक उसे लगा जैसे पीठ पर पड़ने वाला दबाव कम हो गया... कम ही नहीं बल्कि दबाव एकदम से ही हट गया. पर.. पर... दोनों हाथ तो अब भी वहीँ हैं... उसके पीठ पर ... उसके भरी हुई पीठ का आनंद लेते हुए उसे आनंद देने का काम करते... तो फ़िर..?
क्षण भर बाद ही उसे उसका उत्तर मिल गया... और ऐसा होते ही स्त्री सुलभ एक मोहक लाज उसके सुंदर मुखरे पर बिखर गई.
उन दो हथेलियों के अलावा जो चीज़ रुना के पीठ पर दबाव बना रहा था और जो अभी अभी एकदम से हट गया; वो था उसकी ब्रा की हुक. उन हथेलियों की करामाती अँगुलियों ने बड़े ही सरलता से उसके हुक को खोल दिए जिसका पता खुद रुना को कम से कम दो तीन मिनट बाद लगा.
अब तो वे हथेलियाँ और भी स्वतंत्र रूप से पूरे पीठ का भ्रमण करने लगे... जहाँ मन करे वहीँ रम जाए ... और फ़िर बड़े अच्छे तरीके से बिना तेल के ही मर्दन करने लग जाए.
काम पीड़ित होती जा रही रुना उन हथेलियों का स्पर्श अपने यौनक्षुद्रात स्तनों पर पाने की कामना में इतनी ही विभोर हो गई थी कि उसे अपने बदन के दूसरी जगह पर होते छेड़छाड़ का रत्ती भर भी पता न चला. पता ही कब और कैसे उसकी साड़ी पेटीकोट सहित उसके भरे गोल पिछवाड़े पर से और नीचे सरक गई थी और अब तो किसी प्रकार इस तरह ऊपरी जांघों के इर्द – गिर्द इस तरह लिपटी – अटकी हुई थी की अब गिरे तो तब गिरे!
और अब एक और मर्दाना अंग अपने काम पर लग चुका था.
जोकि बड़े प्रेम और समर्पित भाव से रुना के गांड के दरार पर ऊपर नीचे हो रहा था. एक बार ऊपर से नीचे आता.. फ़िर नीचे से ऊपर.... फ़िर ऊपर से नीचे... पर अब की बार बीच में ही रुक कर कुछेक क्षणों के लिए दरार पर हल्का दबाव डालता... और फ़िर नीचे जाता... और फ़िर वही काम शुरू से शुरू होता.
ऐसी लगातार हरकतों ने रुना को गर्म करने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
चरम यौनेतेज्जना में ‘म्मम्म....आह्ह्ह..’ करने लगी..
उस गर्म अंग का यूँ बार बार ऊपर नीचे हो कर उसकी तृष्णा को बढ़ा कर छोड़ देना; ये उससे सहन नहीं हो रहा था. वो उस अंग को जल्द से जल्द अपने में समाहित करना चाहती थी. इसलिए धीरे धीरे अपनी गांड को पीछे करने लगी... उसके ऐसा करने के बावजूद वह अंग अपने पूर्व की हरकत से तनिक भी नहीं डिगा और पहले की तरह ही दरार पर ऊपर नीचे होता रहा.
रुना के बर्दाश्त के बाहर होने लगा ये सब अब. उसके अतृप्त मन ने ठान लिया की अब चाहे जो हो, जैसे भी हो, जितना भी हो.. वो उस गर्म फड़कते अंग को अपने अंदर ले कर रहेगी. ये सोचने के साथ ही उसने अपनी गांड को आगे पीछे करना शुरू किया. तीन से चार बार ऐसा की ही थी कि कानों से एक आवाज़ टकराई,
“रुना....ओ रुना...”
पर उसने ध्यान नहीं दिया... वो तो बस अपने अतृप्त मन की अधीन हो अपने जिस्म के एक एक रोएँ को आराम... सुख देना चाहती थी.
आवाज़ फ़िर गूँजी..
और साथ ही किसी ने उसके बाँह को पकड़ कर झकझोड़ा,
“अरे रुना... उठो... क्या कर रही हो??”
रुना अचानक से हड़बड़ा कर उठी,
और इसी के साथ वर्तमान स्थिति को देख कर हतप्रभ रह गई...
सीने पर आँचल अनुपस्थित है.. ब्लाउज के सारे बटन खुले हुए हैं... ब्रा भी गैर हाजिर... पेटीकोट कमर तक उठा हुआ और खुद उसका हाथ... बायीं हाथ की मध्यमा और अनामिका ऊँगली उसकी चूत में अंदर तक प्रविष्ट हैं जो खुद भी गीली है!
रुना अविश्वास से अपने आस पास देखी...
बगल में ही उसके पति श्री नबीन मुख़र्जी, अर्थात् “नबीन बाबू” बड़े आश्चर्य से आँखें फाड़े उसे देख रहे थे...
बोले,
“रुना.. ये क्या कर रही हो... सुबह सुबह ही... छी: ... कोई और समय होता तो और बात होती... क्या हुआ है तुम्हें..?”
सेक्स को लेकर नबीन बाबू आज भी उतने ही अपरिचित हैं जितना की सत्रह साल पहले अपने शादी के समय थे.. सफलता बस इतनी ही रही की किसी तरह अपने खड़े अंग को किसी तरह रुना के ताज़ी योनि में डाल पाए और समय समय पर थोड़ा बहुत कर के एक संतानोपत्ति कर पाए.
ऐसा नहीं की सेक्स के मामले में एकदम भोंदू हैं नबीन बाबू... फ़िर भी सेक्स किसी रॉकेट साइंस की ही तरह रहा है हमेशा से उनके लिए.
“ज..जी... वो....म”
“चलो चलो... जल्दी उठो... मुझे देर हो रही है.. आठ बजने को आया है.”
“आप नहा लिए?”
“हाँ.”
“ओह.. ठीक है. नाश्ता टेबल पर है. खा लीजिए.” खुद को सम्भालते हुए बोली रुना.
नबीन बाबू कुछ बोले नहीं.. आश्चर्य से देखते रहे रुना को.
रुना को अजीब लगा.. बोली,
“क्या हुआ... क्या देख रहे हैं?”
“देख रहा हूँ की ये तुम क्या अनाप शनाप बक रही हो... तुम सुबह से एक बार भी उठी ही कब थी? मैंने तुम्हें उठाया... अभी... जब उठी ही नहीं तब नाश्ता कैसे बना ली?”
“ओह्हो... मैं बना चुकी हूँ... टेबल पर है... चलिए .. दिखाती हूँ.”
रुना नबीन को लेकर नीचे वाले कमरे में आई...
“देखिए... टेबल प...”
डाइनिंग टेबल की ओर इशारा करते करते रुना के हाथ और होंठ थम गए.
टेबल पर कुछ नहीं था!
रुना आश्चर्य से दोहरी हो गई.
उसे अपने सामने खाली टेबल को देख कर खुद पे विश्वास नहीं हो रहा था.
कहाँ गया सारा नाश्ता...??
कुछ देर पहले ही तो रखी थी....
नबीन बाबू कुछ बोले नहीं.. काम के प्रेशर का नतीजा बता कर उसे कॉलेज से छुट्टी लेकर आज घर पर ही रहने को कहा.
नबीन का बिना कुछ खाए ही ऑफिस के लिए निकल जाते देख रुना को बहुत दुःख हुआ.
पर दुखी होने से भी ज़्यादा अपने साथ सुबह से हो रही घटनाओं को लेकर परेशान हो रही थी.
बिस्तर पर लेटी हुई पूरे घटनाक्रम के बारे में सोच ही रही थी कि मुख्य दरवाज़े पर दस्तक हुई.
साथ ही एक आवाज़ भी आई,
“मैडम जी, दूध ले लीजिए...”
इच्छा तो नहीं थी उठने की... फ़िर भी उठी....
रसोई में गई, बर्तन ली और जा कर दरवाज़ा खोल कर बर्तन आगे बढ़ा दी.
“नमस्ते मैडम जी.”
“हम्म.. नमस्ते.”
अनमने भाव से रुना प्रत्युत्तर देते हुए देबू की ओर देखी.. और एक बार फ़िर बुरी तरह चौंक उठी,
“अरे...ये क्या.... ये तो बिल्कुल सुबह जैसे.... उफ़..!!”