07-06-2020, 10:16 PM
नदी का रहस्य
१)
घर के मुख्य दरवाज़े पर ‘ठक ठक ठक ठक’ की आवाज़ हुई ... और इसी के साथ आवाज़ आया....
“हाँ..... मैडम जी.... दूध ले लीजिए...!!”
अभी ये आवाज़ ठीक से ख़त्म हुई भी नहीं कि घर के ऊपर तल्ले से एक जनानी की खनकती सी आवाज़ गूँज उठी,
“बिट्टू... ए बिट्टू... देख बेटा ... दूधवाला आया है.. जा के दूध ले ले ज़रा...”
लेकिन बिट्टू की ओर से कोई आवाज़ नहीं आया...
जब और दो तीन बार आवाज़ देने के बाद भी बिट्टू ने कोई उत्तर नहीं दिया तब उसी जनानी की आवाज़ गूँजी... झुँझलाहट भरी,
“ओफ्फ़.. इस लड़के को तो सिर्फ़ खाना और सोना है... और सोना भी ऐसा कि चिल्लाते रह जाओ .... या फ़िर, बगल से रेलगाड़ी ही क्यों न गुज़रे... मजाल इसके कानों में जूँ तक भी रेंग जाए.... |”
इसके एक मिनट बाद ही कमरे से वही खनकती आवाज़ की मालकिन निकली...
रुना...
रुना मुखर्जी नाम है इनका...
गौर और गेहूँअन के बीच की वर्ण की है ... सुन्दर गोल मुख... भरा बदन ... धनुषाकार भौहें (भवें) और उतने ही सुंदर बड़ी आँखें ... दोनों हाथों में पाँच पाँच लाल रंग की मोटी चूड़ियाँ जिन पर सोने की अति सुन्दर नक्काशी की हुई हैं ... |
सीढ़ियों पर से जल्दी उतरती हुई नीचे सीधे रसोई घर में घुसी और एक बड़ा सा बर्तन लेकर तेज़ कदमों से चलते हुए घर के मुख्य दरवाज़े की ओर बढ़ी...
दरवाज़ा खोली...
और,
बर्तन आगे बढ़ाते हुए बोली,
“लीजिए भैया... जल्दी भर दीजिए... मुझे देर हो रही है.”
दूध वाला बर्तन लेने के लिए हाथ बढ़ाते हुए एक नज़र रुना की ओर डालता है ... और ऐसा करते ही उसके हाथ और आँखें दोनों जम जाती हैं..
रुना एक तो है ही रूपवती ... और उसपे भी इस समय दूधवाले के सामने ब्लाउज और पेटीकोट में खड़ी है.
38C के उन्नत उभारों के कारण ब्लाउज में बने सुंदर उठाव ध्यान तो खींच ही रहे हैं... साथ ही V शेप से बाहर झाँकता ४ इंच लम्बा क्लीवेज तो बस मुग्ध ही किये दे रहा है.
देबू ने रुना को देखा तो है कई बार... पर कभी इस तरह... ऐसे कपड़ों में नहीं देखा.
देबू को यूँ अपनी ओर अपलक आश्चर्य और एक अव्यक्त आनंद से देखता हुआ देखी तो रुना का भी ध्यान अपनी ओर गया .... और खुद की अवस्था का बोध जैसे ही हुआ; तो हड़बड़ी के कारण हुई अपनी इस नादान गलती से वह बुरी तरह अफ़सोस करते हुए लगभग उछल पड़ी..
खुद को जल्दी से दरवाज़े के पीछे करती हुई आँखें बड़ी बड़ी करके बोली,
“ए चल... जल्दी कर... कहा न मुझे देर हो रही है.”
देबू मुस्कराया... बर्तन लिया और दूध भर कर वापस रुना की ओर बढ़ाया.. पर जानबूझ कर इतनी दूरी रखा कि रुना को बर्तन लेने के लिए हाथ तनिक और बढ़ाना पड़े ... अब चाहे इस क्रम में उसे थोड़ा झुक कर आगे बढ़ना पड़े या फ़िर कुछ और करना पड़े.
देबू की इस करतूत को रुना समझ नहीं पाई. एक तो उसे देर हो रही थी और दूजे, जल्दबाजी में ऐसे अर्धनग्न अवस्था में एक पराए लड़के के सामने खड़े रहते हुए शर्म से ज़मीन में गड़ी जा रही थी.
देबू को ठीक से हाथ आगे न बढ़ा कर देते हुए देख कर रुना झुँझलाते हुए अपना बायाँ हाथ आगे बढ़ाई.. पर बर्तन अभी भी कुछ इंच दूर है.. वो देबू को कुछ बोले उससे पहले ही देबू बोल पड़ा,
“जल्दी कीजिए मालकिन... मेरे को अभी दस जगह और जाना है.”
जो बात वो देबू को फ़िर से बोलना चाह रही थी; वही बात देबू ने उसे कह दी..
कुछ और सोच समझ न पाई वो..
दरवाज़े के पीछे से थोड़ा आगे आई... एक कदम आगे बढ़ाई, थोड़ा सामने की ओर झुकी और हाथ बढ़ाकर बर्तन पकड़ ली.
पर तुरंत ही बर्तन को ले न सकी क्योंकि देबू ने छोड़ा ही नहीं... वो फ़िर से आँखें बड़ी कर घोर अविश्वास से रुना की ओर देखने लगा था. रुना की स्त्री सुलभ प्रवृति ने तुरंत ही ताड़ लिया कि देबू क्या देख रहा है.
देबू को डाँटने के लिए मुँह खोली... पर एकदम से कुछ बोल न पाई.
उसका कामातुर स्त्री - मन इस दृश्य का ... एक मौन प्रशंसा का आनंद लेने के लिए व्याकुल हो उठा.
जवानी में तो बहुत देखे और सुने हैं... पर अब उम्र के इस पड़ाव पर उसकी देहयष्टि किसी पर क्या प्रभाव डाल सकते हैं और कोई प्रभाव डाल भी सकते हैं या नहीं इसी बात को जानने की एक उत्कंठा घर कर गई उसके मन में.
करीब दो मिनट तक ऐसे ही खड़ी रही वह.. केवल ब्लाउज पेटीकोट में... आगे की ओर झुकी हुई... देबू की लालसा युक्त तीव्र दृष्टि के तीरों के चुभन अपने वक्षों पर साफ़ महसूस करने लगी और साथ ही उसके खुद के झुके होने के कारण अपने ब्लाउज कप्स पर पड़ते दबाव का भी स्पष्ट अनुभव होने लगा उसे.
इधर देबू का भी हालत ख़राब होता जा रहा है. गाँव में बहुत सी छोरियों को देखा है उसने; और सुंदर भाभियों को भी. उनमें से एक है ये रुना मुख़र्जी. दूध पहुँचाने के सिलसिले में कई बार रुना के घर आता जाता रहा है और इसी वजह कई बार भेंट भी हुई है उसकी रुना से, कई बार बातें भी हुईं, और बातों के दौरान ही कई बार देबू ने अच्छे से रुना को ताड़ा भी; पर साड़ी से अच्छे से ढके होने के कारण उसकी उभार एवं चर्बीयुक्त सुगठित देह के ऐसे कटाव को कभी समझ न सका था. हमेशा अच्छे कपड़ों में रहने वाली रुना दिखने में हमेशा से ही प्यारी और सुसंस्कृत लगी है उसे; पर वास्तव में वह प्यारी होने के साथ साथ इतनी सुपर हॉट हो सकती है ये देबू ने कभी नहीं सोचा था |
और फ़िलहाल तो उसकी नज़रें निर्बाध टिकी हुई थी ब्लाउज कप्स से झाँकते रुना के दूधिया चूचियों के ऊपरी अंशों पर एवं झुके होने के कारण ४ से ६ इंच हो चुकी उस मस्त कर देने वाले क्लीवेज और क्लीवेज के ठीक सामने, गले से लटकता पानी चढ़ा सोने की चेन पर जो कदाचित उसका मंगलसूत्र भी है.
रुना ने हाथ से बर्तन को ज़रा सा झटका दिया और तब जा कर देबू की तंद्रा टूटी. वह बेचारा चोरी पकड़े जाने के डर से नर्वसा गया. आँखें नीची कर के जल्दी से अपने कैन को बंद किया और झट से उठ गया. रुना भी अब तक दुबारा दरवाज़े के पीछे आ गयी थी. देबू अपने दूध के बड़े से कनिस्तर को उठा कर जाने के लिए आगे बढ़ा ही था कि रुना बोली,
“सुनो, कल भी लगभग इसी समय आना... पर थोड़ा जल्दी करना.”
देबू ने रुना की ओर देखा नहीं पर सहमति में सिर हिलाया.
रुना मुस्करा पड़ी.
देबू तब तक दो कदम आगे बढ़ चुका था.. पर नज़रें उसकी तिरछी ही थीं... रुना के उस अनुपम रूप को जाते जाते अंतिम बार अपने आँखों में कैद कर लेना चाहता था.
और इसलिए रुना जब मुस्कराई तो वह नज़ारा भी देबू की आँखों कैद हो गई. ‘उफ्फ्फ़ क्या मुस्कान है... क्या मुस्कराती है यार! एक तो ऐसी अवस्था में, ऊपर से ऐसी कातिल मुस्कान...’ देबू पूरे रास्ते रुना के बारे में सोचता ही रहा. और सिर्फ़ रास्ता ही क्या, वह पूरा दिन रुना के बारे में सोचते हुए बीता दिया और रात में रुना के उस अनुपम सुगठित देह के बारे में सोच सोच कर स्वयं को तीन बार संतुष्ट करके सो गया.