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Adultery HAWELI By The Vampire
#21
Update 17

"मैं कुच्छ ऐसे ही दीवार के साथ लगी नंगी ही खड़ी रही" बिंदिया ने अपनी बात जारी रखी " मुझे यकीन नही हो रहा था के जिसे मैं एक छ्होटा बच्चा समझती थी वो अभी अभी मेरी गान्ड मारके गया है. समझ नही आ रहा था के मेरा बलात्कार हुआ है या मैने अपनी मर्ज़ी से अपनी गान्ड मराई है. तभी मुझे पायल के आने की आवाज़ सुनाई दी तो मैने जल्दी से कपड़े पहने"

"चंदर ने इस बारे में क्या कहा?" रूपाली ने पुचछा

"वही तो बात है ना मालकिन. आज तक मेरी चंदर से उस दिन के बारे में कोई बात नही हुई है. बस जब उसका दिल करता है तो वो मेरे पास आके इशारे से समझा देता है और अगर मेरा दिल करता है तो मैं उसे इशारा कर देती हूँ. हम में से कोई भी इस बारे में चुदाई हो जाने के बाद बात नही करता. बाकी वक़्त हमारा रिश्ता वही रहता है जो हमेशा से था." बिंदिया ने जवाब दिया

"ह्म्‍म्म्मम" रूपाली ने हामी भारी

"उस दिन वो पूरा दिन गायब रहा और रात 9 बजे से पहले घर नही आया. जब वो आया तो पायल सो चुकी थी पर मैं जाग रही थी. वो अपनी चारपाई पर जाकर चुपचाप लेट गया. खाना भी नही माँगा और सो गया. पर मेरी आँखों से नींद गायब थी. दोपहर को मेरी गान्ड मारके उसने मेरे अंदर एक आग लगा दी थी. मैं कई साल से नही चुदी थी और उस दिन मेरा दिल बेकाबू हो रहा था. समझ नही आ रहा था के क्या करूँ पर सो ना सकी. आधी रात के करीब हुलचूल महसूस हुई तो मैने चादर हटाके देखा तो वो मेरे बिस्तर के पास खड़ा था. अंधेरे में हम एक दूसरे को देख नही सके पर समझ गया था के मैं जाग चुकी हूँ. मैं थोड़ी देर ऐसे ही लेटी रही और वो यूँ ही खड़ा हुआ मुझे देखता रहा. मुझे आज तक नही पता के मैने कैसे किया पर कुच्छ देर बाद मैं अपनी चारपाई पर एक तरफ को हो गयी. वो इशारा समझ गया के मैं उसे अपनी पास आके लेटने के लिए कह रही हूँ. वो फ़ौरन चारपाई पर चढ़ गया और मेरे पास आके लेट गया.

"मैं उसकी तरफ पीठ करके लेटी थी और वो मेरा चेहरा दूसरी तरफ था. वो सीधा लेटा हुआ था. कुच्छ पल यूँ ही गुज़र गये. जब उसने देखा के मैं बस चुपचाप लेती हूँ तो उसने मेरी तरफ करवट ली और मेरे कंधे पर हाथ रखा. मुझे लगा के वो मुझे अपनी तरफ घुमाएगा पर उसने धीरे धीरे मेरे कंधे को सहलाना शुरू कर दिया और उसका हाथ धीरे धीरे मेरी पीठ से होता हुआ फिर मेरी गान्ड तक आ पहुँचा. उसने थोड़ी देर पकड़कर मेरी गान्ड को दबाया और पिछे से ही हाथ मेरी टाँगो के बीच घुसकर मेरी चूत टटोलने लगा. इस वक़्त उसे मेरी तरफ से किसी इनकार का सामना करना नही पड़ रहा था. उसने मेरी टाँगो में हाथ घुसाया और मैने उसे रोका नही. उसने मेरी चूत पर हाथ फेरना शुरू किया और तब भी मैं कुच्छ नही बोली. पर हां उसकी इस हरकत ने मेरे जिस्म में जैसे आग लगा दी. मेरी साँस भारी हो गयी और मेरे मुँह से एक आह निकल गयी. वो समझ गया के मैं भी उसके साथ हूँ और मेरे साथ सॅट गया. उसका लंड फिर मेरी गान्ड पर आ लगा और तब मुझे महसूस हुआ के वो अपना पाजामा उतार चुका था. उसके लंड और मेरी गान्ड के बीच फिर से सिर्फ़ मेरा घाघरा ही था जिसे उसने फिर एक बार उपेर को खींचना शुरू कर दिया. मुझे उसकी इस हरकत से फ़ौरन दिन की कहानी याद आ गयी और मेरा दिल सहम गया के वो कहीं से फिर से लंड गान्ड में ना घुसा दे. ये ख्याल आते ही मैं फ़ौरन सीधी होकर लेट गयी जैसे अपनी गान्ड को अपने नीचे करके उसे बचा रही हूँ. मेरा घाघरा वो काफ़ी उपेर उठा चुका था और मेरे यूँ अचानक सीधा होने से और भी उपेर हो गया. मैं जाँघो तक नंगी हो चुकी थी. मेरी दोनो आँखें बंद थी और मैं खामोशी से उसकी अगली हरकत का इंतेज़ार कर रही थी. दिल ही दिल में मुझे अपने उपेर हैरानी हो रही थी के मैं उसे रोक क्यूँ नही रही. वो मेरे बेटे जैसा था और उसे अपनी चूत देना एक पाप था पर दूसरी तरफ दिल से ये आवाज़ आ रही थी के बेटे जैसा ही तो है. मेरा अपना बेटा तो नही तो पाप कैसा. मैं इसी सोच में थी के मुझे अपने उपेर वज़न महसूस हुआ. आँखें खोली तो देखा के वो मेरे उपेर आ चुका था. मेरा घाघरा उसने और उपेर खिच दिया था और मेरी चूत खुल चुकी थी. वो मेरे उपेर आया और हाथ में लंड पकड़कर चूत में डालने की कोशिश करने लगा" बिंदिया बोले जा रही थी. अब उसे भी अपनी चुदाई की दास्तान सुनने में मज़ा आ रहा था.

"सीधे चूत में लंड? उससे पहले कुच्छ नही?" रूपाली ने पुचछा

"पहली बार ज़िंदगी में किसी औरत के नज़दीक आया था मालकिन और वो भी सिर्फ़ 16-17 साल का लड़का. उसे तो बस चूत मारने की जल्दी थी. उसे क्या पता था के एक औरत को कैसे गरम तैय्यार करते हैं. उसे तो ये तक नही पता था के चूत में लंड कैसे डालते हैं. मेरी दोनो टांगे बंद थी और वो उपेर मेरे बालों पे लंड रगदकर घुसने की जगह ढूँढ रहा था. मेरी दोनो टाँगें उसकी इस हरकत से अपने आप खुल गयी और वो ठीक मेरी टाँगो के बीच आ गया. लंड को उसने फिर चूत पर रगड़ा तो मेरे मुँह से फिर आह निकल गयी. चूत पूरी तरह गीली हो चुकी थी पर वो अब भी लंड घुसाने में कामयाब नही हो पा रहा था. लंड को चूत पर रखकर धक्का मारता तो लंड फिसलकर इधर उधर हो जाता. जब खुद मुझसे भी बर्दाश्त नही हुए तो मैने अपने घुटने मॉड्कर टांगे उपेर हवा में कर ली. गान्ड मेरी उपेर उठ चुकी थी और चूत लंड के बिल्कुल सामने हो गयी. नतीजा ये हुआ के उसके अगले ही धक्के में लंड पूरा चूत में उतरता चला गया. बहुत दिन बार चुड रही थी इसलिए मेरे मुँह से आह निकल गयी और जैसी की मुझे उम्मीद थी, लंड चूत में घुसते ही उसके पागलों की तरह धक्के शुरू हो गये. उसने कुच्छ नही किया था. ना मुझे चूमा, ना मेरे जिस्म में कोई रूचि दिखाई. बस लंड चूत में डाला और धक्के मारने शुरू. 10-12 धक्को में ही उसके लंड ने पानी छ्चोड़ दिया और उसने मेरी चूत को भर दिया. मैं झल्ला उठी. मुझे अभी मज़ा आना शुरू ही हुआ था के वो ख़तम हो गया. मुझे लगा के शायद वो रुकेगा पर उसने लंड चूत में से निकाला, मेरे उपेर से उठा और पाजामा उठाकर अपने बिस्तर पर जाकर लेट गया"

"और तू अभी तक गरम थी?" रूपाली ने पुचछा

"हां और क्या. मेरे जिस्म से तो जैसे अँगारे उठ रहे थे. मैं यूँ ही पड़ी रही. घाघरा उपेर पेट तक चढ़ा हुआ और चूत खुली हुई. मुझे ये तक फिकर नही रही के अगले ही बिस्तर पर मेरी जवान बेटी सो रही है जो किसी भी पल जाग सकती थी.चंदर मुझे ऐसी हालत में छ्चोड़के गया था के मेरा दिल कर रहा था उसे एक थप्पड़ जड़ दूं. मेरे हाथ मेरी चूत तक पहुँच गये और मैं खुद ही अपनी चूत को टटोलने लगी. उसका पानी अब तक चूत में से बाहर बह रहा था. मैं अपनी चूत मसलनी शुरू की पर दी पर जो मज़ा लंड में था वो अपने हाथ में कहा. जब मुझसे बर्दाश्त ना हुआ तो मैं बिस्तर से उठी और खुद चंदर की चारपाई के पास जा पहुँची. वो सीधा लेटा हुआ था और उसने अब तक पाजामा नही पहना था. मुझे हैरत हुई के मेरी तरह उसे भी पायल के जाग जाने की कोई परवाह नही थी. उसने गर्दन घूमकर मुझे देखा और मैने उसकी तरफ. अंधेरा था इसलिए एक दूसरे के चेहरे को सॉफ देख नही सकी. मैने अपना घाघरा खोला और नीचे गिरा दिया. नीचे से पूरी तरह नंगी होकर मैं उसकी चारपाई पर चढ़ि. उसने हिलकर साइड होने की कोशिश की पर मैने उसका हाथ पकड़कर उसे वहीं लेट रहने का इशारा किया और अपनी टाँगें उसके दोनो तरफ रखकर उसके उपेर चढ़ गयी. उसका लंड अभी भी बैठा हुआ था. मैने उसे अपने हाथ से पकड़ा और गान्ड थोड़ी उपेर उठाकर नीचे से लंड चूत पर रगड़ने लगी. वो वैसे ही लेटा रहा और मैने लंड रगड़ना जारी रखा. मेरी चूत पूरी तरह गीली और गरम थी और लंड रगड़ने से और भी ज़्यादा शोले भड़क रहे थे. थोड़ी देर लंड यूँ ही रगड़ने का अंजाम सामने आया और उसका लंड फिर खड़ा हो गया. मैने अपनी गान्ड नीचे की और लंड पूरा चूत में ले लिया." बिंदिया ने जैसे बात ख़तम करते हुए कहा

"तो तूने भी उसे बता दिया के तू भी वही चाहती है?" रूपाली ने पुचछा

"और क्या करती मालकिन. जिस्म में मेरे भी आग लगी हुई थी. वो बच्चा था इसलिए बार बार जल्दी से झाड़ जाता. उस पूरी रात मैं उससे चुड़वति रही. तब तक जब तक की मेरी चूत की आग ठंडी नही हो गयी. उस रात हम दोनो का रिश्ता पूरा बदल गया पर हमने कभी इस बारे में बात नही की. तबसे अब तक वो हर रोज़ मुझे चोद्ता है. दिन में कम से कम 3 बार तो चोद ही लेता है और कम्बख़्त ने गान्ड भी नही बख़्शी. कभी चूत मारता है तो कभी गान्ड." बिंदिया हस्ते हुए बोली

"और तू मरवा लेती है? दर्द नही होता?" रूपाली ने फिर हैरत से पुचछा

"होता है पर जब लंड घुसता है तब. बाद में मज़ा आने लगता है. अरे मालकिन औरत को लंड घुसने से मज़ा ही आता है. अब वो लंड चाहे उसके मुँह में घुसे, या चूत में या गान्ड में"  जिस औरत ने अपने तीनो छेदों का मज़ा नही लिया तो क्या खाक सेक्स किया बिंदिया ऐसी बोली जैसे सेक्स पर कोई ग्यान दे रही ही रूपाली को

"पर उसके लंड से काम चल जाता है तेरा?" रूपाली ने पुचछा

"मतलब" बिंदिया आँखें सिकोडती बोली

"अरे देखा था आज मैने दिन में जब तू उसके लंड पर कूद रही थी. थोडा छ्होटा ही लगा मुझे तो" रूपाली ने जवाब दिया

"बच्चा है वो अभी मालकिन. इस उमर में एक आम आदमी का जितना होता है उतना ही है उसका भी. पर ये कमी वो दूसरी जगह पूरी कर देता है. शुरू शुरू में जल्दी झाड़ जाता था पर अब तो आधे घंटे से पहले पानी छ्चोड़ने का नाम नही लेता. और चूत मारे या गान्ड, धक्के ऐसे मारता है के मेरा पूरा जिस्म हिला देता है. दिन में 3-4 बार चोद्के भी दोबारा चोदने को तैय्यार रहता है" बिंदिया बोली

"कभी पायल को शक नही हुआ?" रूपाली ने फिर सवाल किया

"पता नही. शायद हुआ हो. हम अक्सर ऐसे वक़्त ही चोद्ते थे जब वो कहीं बाहर गयी होती थी पर कह नही सकती." बिंदिया ने जवाब दिया

रूपाली और बिंदिया अब ऐसे बात कर रहे थे जैसे बरसो की दोस्ती थी. रूपाली जानती थी के उसका तीर निशाने पर लगा है. बिंदिया बॉटल में उतार चुकी है. वो रूपाली को वो सब बता देगी जो वो मालूम करना चाहती है और इस बात का किसी से ज़िक्र भी नही करेगी. रूपाली अच्छी तरह जानती थी के अगर ठाकुर को ये पता चला के वो उनके खानदान के बारे में नौकरों से पुछ्ती फिर रही है तो ये रूपाली के लिए ठीक ना रहता. और उपेर से वो ठाकुर को दुख भी नही पहुँचना चाहती थी इसलिए इस बात को गुप्त रखना चाहती थी.

बातों बातों में दिल धंले को आ गया था इसलिए रूपाली जानती थी के अब उसे वापिस जाना पड़ेगा. उसने बिंदिया को अगले दिन पक्का हवेली आने को कहा और अपनी कार की तरफ बढ़ चली. वो चाहती थी के अगले दिन बिंदिया हवेली आए और वो उससे वो सब मालूम कर सके जो वो करना चाहती थी.

कार चलाती रूपाली हवेली पहुँची तो हैरान रह गयी. हवेली के कॉंपाउंड में पोलीस की जीप खड़ी थी और कुच्छ आदमी एक तरफ खड़े नीची आवाज़ में कुच्छ बात कर रहे थे. रूपाली कार से उतरी और आगे बढ़ी ही थी के एक तरफ से आवाज़ आई

"सलाम अर्ज़ करता हूँ मोहतार्मा"

वो पलटी तो देखा के इनस्पेक्टर मुनव्वर ख़ान खड़ा हुआ था

"क्या हो रहा है ये सब?" रूपाली ने पुचछा

"लाश मिली है एक." इनस्पेक्टर ने जवाब दिया "यहीं हवेली के कॉंपाउंड से"

"कैसी लाश?" रूपाली ने चौंकते हुए पुचछा

"ओजी लाश तो लाश होती है" ख़ान सिगेरेत्टे का काश लेता हुआ बोला "ऐसी लाश वैसी लाश मैं कैसे बताऊं. लाश तो सब एक जैसी ही होती हैं"

"पिताजी कहाँ है?" रूपाली ने ख़ान की बात सुनकर झुंझलाते हुए पुचछा

"रूपाली" ठाकुर की आवाज़ आई. रूपाली ने फ़ौरन अपने सर पर सारी का पल्लू डाल लिया. औरों के सामने तो उसे यही दिखना था के वो अब भी ठाकुर से परदा करती है. भले अकेले में शरम के सारे पर्दे उठा देती हो.

"आप अंदर जाइए. हम आपको बाद में बताते हैं" ठाकुर ने उससे कहा और खुद ख़ान से बात करने लगे

रूपाली धीमे कदमो से हवेली के अंदर आ गयी. उसने आते हुए चारों तरफ नज़र दौड़ाई पर लाश जैसा कुच्छ दिखाई नही दिया. हां बाहर खड़े आदमी उसे देखकर नीची आवाज़ में कुच्छ बात कर रहे थे. अपने कमरे में आकर रूपाली फ़ौरन खिड़की के पास आई पर जिस तरफ उसके कमरे की खिड़की खुलती थी वहाँ से कुच्छ नज़र नही आ रहा था. थोड़ी देर बाद पोलीस की जीप हवेली के दरवाज़े से बाहर निकल गयी. उसमें बेता ख़ान अब भी सिगेरेत्टे के कश लगा रहा था.

कपड़े बदलकर रूपाली नीचे आई.

"वो ख़ान क्या कह रहा था. लाश?" उसने बड़े कमरे में परेशान बैठे ठाकुर से पुचछा

"हां. हवेली के पिच्चे के दीवार के पास मिली है. लाश क्या अब तो सिर्फ़ हड्डियाँ बची थी. सिर्फ़ एक कंकाल" ठाकुर ने परेशान आवाज़ में कहा

"हवेली में लाश?" रूपाली को जैसे यकीन नही हो रहा था "किसकी थी?"

"क्या पता" ठाकुर ने उसी सोच भारी आवाज़ में कहा "अब तो सिर्फ़ हड्डियाँ ही बाकी थी."

"पर यहाँ तो कोई आता जाता भी नही. बरसो से हवेली में कोई आया गया नही" रूपाली परेशान सी बोली

"यही बात तो हमें परेशान कर रही है. हमारी ही हवेली में एक लाश गाड़ी हुई थी और हमें ही कोई अंदाज़ा नही? ऐसा कैसे हो सकता है?" ठाकुर की आवाज़ में गुस्से झलक रहा था
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#22
Update 18

"ख़ान क्या कह रहा था? उसे किसने खबर की?" रूपाली सामने सोफे पर बैठते हुए बोली

"आपके कहने पर हमने कुच्छ आदमी सुबह बुलवाए थे. हवेली के कॉंपाउंड में सफाई करने के लिए. ये लोग पिछे उगी हुई झाड़ियाँ काट रहे थे तब इनको वो लाश दिखाई दी. इन्हें में से कोई एक पोलीस को खबर कर आया. और वो ख़ान क्या कहेगा? एक मामूली पोलीस वाला है." ठाकुर ने कहा

रूपाली दिल ही दिल में ठाकुर की इस बात से सहमत नही थी. रूपाली को ख़ान उन आदमियों में से लगता था जो बॉल की खाल निकालने में यकीन रखते थे. वो शकल से ही एक खड़ूस पोलीस वाला लगता था जो हर चीज़ को अपने बाप का माल समझके हड़पने की कोशिश करते हैं

"मालकिन आपकी चाय" सुनकर रूपाली पलटी तो पिछे पायल चाय की ट्रे लिए खड़ी थी. रूपाली भूल ही गयी थी के आते हुए उसने पायल को चाय के लिए बोला था. पायल ने उसे बताया था के वो खाना तो नही पर चाय वगेरह बना सकती थी.

रूपाली ने चाय लेकर पायल को जाने का इशारा किया और फिट बात करने के लिए ठाकुर की तरफ पलटी ही थी के हवेली के कॉंपाउंड से कार की आवाज़ आई. कॉंपाउंड बड़ा होने के कारण कार से भी हवेली के बाहर के दरवाज़े से हवेली तक आने में तकरीबन 3 मिनट लगते थे. ठाकुर और रूपाली खामोशी से धीरे धीरे पास आती कार की आवाज़ सुनते रहे. कार हवेली के बाहर आकर रुकी और ठाकुर का वकील देवधर एक बाग उठाए हवेली में दाखिल हुआ. ठाकुर के हाव भाव से रूपाली समझ गयी के उन्होने ही उसे फोन करके बुलाया था. देवधर के आते ही रूपाली उठी और अपने कमरे की तरफ बढ़ गयी. वो जानती थी के ठाकुर उसके सामने वकील से बात नही करना चाहेंगे इसलिए खुद ही उठ गयी.

देवधर के बारे में सोचती रूपाली अपने कमरे में पहुँची. देवधर को उसने अपनी शादी में पहली बार देखा था. वो उसके पति पुरुषोत्तम का बहुत करीबी दोस्त था. ठाकुर के सारे बिज़्नेस के क़ानूनी पहलू वो ही संभलता था. सब कहते थे के वो पुरुषोत्तम का दोस्त कम चमचा ज़्यादा था पर रूपाली को वो हमेशा आस्तीन का साँप लगा. ऐसे साँप जो आपके ही घर में पलता है और वक़्त आने पर आपको भी डॅस सकता है. इन 10 सालों में वही एक था जो अब भी ठाकुर से रिश्ता रखे हुए था. बाकी तो अपने भी रिश्ता छ्चोड़ गये थे. ठाकुर उसकी इस हरकत को उसकी हवेली के साथ वफ़ादारी समझते थे पर रूपाली जानती थी के देवधर सिर्फ़ इसलिए आता है क्यूंकी उसे भी ठाकुर से हर महीने के लगे बँधे पैसे मिलते थे. भले ही उसने सालों से ठाकुर के लिए क़ानूनी काम कोई ना किया हो. बल्कि उसके सामने ही ठाकुर का भतीजा ठाकुर की सारी जयदाद उनकी नाक के नीचे से ले गया था और देवधर ने कुच्छ ना किया था. जो बात रूपाली को खटक रही थी वो ये थी के मरने से कुच्छ दिन पहले पुरुषोत्तम ने उसे बताया था के देवधर ने उससे 25 लाख उधर माँगे थे. किसलये वो नही जानती थी. क्या उसके पति ने देवधर को वो पैसे दिए थे ये भी वो नही जानती थी. और अगर दिए थे तो क्या देवधर ने अब तक ठाकुर को वो पैसे वापिस किए? रूपाली ने दिल में सोच लिया के वो आज रात ठाकुर से ये बात पुछेगि.

रूपाली अपनी ही सोच में थी के उसे अचानक पायल का ध्यान आया. उस बेचारी का आज हवेली में दूसरा ही दिन था और आज ही उसने ये सब देख लिया. जाने उसपे क्या गुज़री होगी सोचते हुए रूपाली ने अपने कमरे के बीच का दरवाज़ा खोला और पायल के कमरे में दाखिल हुई. पायल वहाँ नही थी. रूपाली दरवाज़ा खोलकर उस कमरे में पहुँची जहाँ उसने पायल को बाथरूम इस्तेमाल करने के लिए कहा था. बाथरूम से शवर की आवाज़ आ रही थी मतलब के पायल यहीं है. रूपाली वहीं कोने में रखी एक कुर्सी पर बैठ गयी और पायल के बाहर निकलने का इंतेज़ार करने लगी.

थोड़ी देर बाद बाथरूम का दरवाज़ा खुला और उसके साथ ही रूपाली की आँखें भी खुली रह गयी. पायल नाहकार बाथरूम से बिल्कुल नंगी बाहर निकल आई थी. उसकी नज़र कमरे में बैठी पायल पर नही पड़ी और वो सीधी कमरे में शीशे के सामने जाकर खड़ी हो गयी. उसने सर पर तोलिया लपेटा हुआ था जिससे वो अपने बॉल सूखा रही थी. रूपाली पिछे से उसके नंगे जिस्म को देखने लगी. हल्का सावला रंग, पति कमर. पायल की उठी हुई गान्ड देखकर रूपाली को उसकी माँ बिंदिया की गान्ड ध्यान में आ गयी. पायल की गान्ड भी उसकी माँ की तरह बड़ी और भरी हुई थी. पायल अब भी उससे बेख़बर अपने सर पर तोलिया रगड़ रही थी.

"यूँ नंगी बाहर ना आया कर. कमरे में कोई भी हो सकता है" रूपाली ने कहा

उसकी आवाज़ सुनते ही पायल फ़ौरन पलटी और कमरे में उसे देखकर उसके मुँह से हल्की चीख निकल पड़ी. उसने फ़ौरन हाथ में पकड़ा हुआ तोलिया अपने आगे करके अपनी छातियाँ और चूत को धक लिया. पायल के मुँह से हल्की हसी छूट पड़ी

"अरे तेरा सब देख लिया मैने. अब क्या छुपा रही है" वो मुस्कुराते हुए बोली

"आप कब आई मालकिन?" पायल ने पुचछा

"अभी जब तू नहा रही थी. यूँ नंगी ना निकल आया कर कमरे से. समझी?" रूपाली ने उससे कहा. पायल ने रज़ामंदी में सर हिलाया. वो अभी भी शरम से सर झुकाए खड़ी थी.

"कपड़े पहेन कर नीचे आ जा. राते के खाने का वक़्त हो रहा है. खाना बनाना सीख ले जल्दी से तू" कहते हुए रूपाली कमरे से बाहर निकल गयी. उसने ये सोच कर राहत की साँस ली के हवेली में लाश मिलने की खबर से पायल परेशान नही दिख रही थी.

रूपाली नीचे आई तो ठाकुर और देवधर अब भी कुच्छ बात कर रहे थे. वो वहीं दीवार की ओट में खड़ी होकर सुनने लगी

"तो अब ख़ान का क्या करना है?" ठाकुर शौर्या सिंग कह रहे थे

"उसकी आप फिकर मत कीजिए. उसे मैं संभाल लूँगा. आपको फिकर करने की कोई ज़रूरत नही." देवधर ने जवाब दिया

"और उसे ये भी समझा देना के हमारे सामने दोबारा ऐसे बात की जैसे आज कर रहा था तो उसकी लाश भी कहीं ऐसे ही गढ़ी हुई मिलेगी" ठाकुर गुस्से में बोले

"आप चिंता ना कीजिए. मुझपे छ्चोड़ दीजिए. आप बस अगले हफ्ते केस के दिन टाइम पे कोर्ट पहुँच जाइएएगा." देवधर कह रहा था

देवधर और ठाकुर उठ कर खड़े हो चुके थे. देवधर अपने सारे काग़ज़ समेट कर अपने बॅग में रख रहा था. तभी रूपाली को उपेर से पायल के सीढ़ियाँ उतरने की आवाज़ आई. वो दीवार की ओट से निकली और सर पर घूँघट डालकर किचन की तरफ बढ़ चली. उसके बड़े कमरे में आते ही ठाकुर और देवधर दोनो चुप हो गये.

रात को पायल के सोने के बाद रूपाली फिर उठकर अपने ससुर के कमरे में पहुँची. ठाकुर अब भी बड़े कमरे में ही बैठे हुए थे, चेहरे पर परेशानी के भाव लिए.

"क्या हुआ पिताजी? अब तक सोए नही आप?" रूपाली ने पुचछा. उसने देख लिया था के भूषण भी अब तक हवेली में ही था.

"नही नींद नही आ रही" ठाकुर ने जवाब दिया

रूपाली ठाकुर को पिछे जा खड़ी हुई और उनके सर पर हाथ फेरने लगी

"चलिए आपको हम सुला देते हैं" उसने प्यार से कहा

ठाकुर ने उसका हाथ पकड़ा और प्यार से घूमाकर अपने सामने बैठाया

"आप जाकर सो जाइए. आज हवेली में जो कुच्छ हुआ उसे लेकर हम थोड़ा परेशन हैं"

रूपाली ठाकुर का इशारा समझ गयी. मतलब आज रात वो चुदाई के मूड में नही थे और उसे अपने कमरे में जाकर सोने के लिए कह रहे थे. उसने कुच्छ कहने के लिए मुँह खोला ही था के सामने से भूषण चाय की ट्रे लिए आता दिखाई दिया. रूपाली चुप हो गयी और उठकर खड़ी हो गयी.

"आपको किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो हमें आवाज़ दे दीजिएगा" उसने ठाकुर से कहा

"नही आप आराम कीजिए. आप इस हवेली की मालकिन हैं, नौकर नही जो आपको हम यूँ परेशान करें. आप जाकर सो जाइए" ठाकुर ने प्यार से कहा

रूपाली अपने कमरे की तरफ चल दी. भूषण की बगल से निकलते हुए दोनो की आँखें एक पल के लिए मिली और रूपाली सीढ़ियाँ चढ़कर अपने कमरे में पहुँच गयी.

बिस्तर पर रूपाली को जैसे अपने उपेर हैरत हो रही थी. हवेली में एक लाश मिली थी जिसकी परेशानी ठाकुर के चेहरे पर सॉफ दिखाई दे रही थी. भूषण भी बोखलाया हुआ था. ऐसे महॉल में खुद रूपाली को भी परेशान होना चाहिए था पर हो इसका बिल्कुल उल्टा रहा था. वो परेशान होने के बजाय जैसे अपने अंदर एक ताक़त सी महसूस कर रही थी. हवेली में लाश मिलने की बात ने इस बात को सॉफ कर दिया था के हवेली में बहुत कुच्छ ऐसा है जो वो नही जानती. जो उसे मालूम करना था. और सबसे ज़्यादा हैरानी उसे अपने जिस्म में उठ रही आग पे था. वो पिच्छले कुच्छ दीनो से हर रात चुद रही थी और आज रात भी उसका जिस्म फिर किसी मर्द के जिस्म की तलब कर रहा था. रूपाली ने अपने दिमाग़ से ये ख्याल झटकने की कोशिश की पर बार बार उसका ध्यान अपनी टाँगो के बीच उठ रही हलचल पर जा रहा था. दिन में बिंदिया के मुँह से चुदाई की दास्तान सुनकर दोपहर से ही उसके दिल में वासना पूरे ज़ोर पर थी.

वो अपने ही ख्यालों में खोई हुई थी के बीच के दरवाज़े पर हल्की सी दस्तक हुई. पायल अपने कमरे की तरफ से दरवाज़ा खटखटा रही थी. रूपाली ने उठकर दरवाज़ा खोला

"क्या हुआ?" उसने सामने खड़ी पायल से पुचछा. पायल अब भी आधी नींद में थी. बॉल बिखरे हुए.

"मालकिन मैं आपके कमरे में सो जाऊं? डर लग रहा है" पायल ने छ्होटी बच्ची की तरह पुचछा

"कैसा डर?" रूपाली ने पुचछा

" जी वो जो आज हवेली में लाश मिली थी. बुरे बुरे सपने आ रहे हैं. मैं यहीं नीचे सो जाऊंगी" पायल जैसे रोने को तैय्यार थी.

रूपाली को उसपर तरस आ गया. आख़िर अभी बच्ची ही तो थी. और हमेशा अपनी मा के साथ सोती थी.

"आजा सो जा" रूपाली ने इशारा किया. पायल कमरे में आई तो रूपाली ने दोबारा दरवाज़ा बंद कर दिया.

पायल वहीं रूपाली के बिस्तर के पास नीचे बिछि कालीन पर आकर सो गयी. रूपाली फिर अपने बिस्तर पर जा गिरी.

आधी रात गुज़र गयी पर रूपाली की आँखों में नींद का कोई निशान नही था. उसके जिस्म में लगी आग उसे अब भी पागल किए जा रही थी. नीचे पायल जैसे दुनिया से बेख़बर सोई पड़ी थी. रूपाली ने बिस्तर पर आगे को सरक कर पायल पर नज़र डाली तो देखती रह गयी.

पायल उल्टी सोई हुई थी. उसकी कमर साँस के साथ उपेर नीचे हो रही थी. घाघरा चढ़ कर जाँघो तक आ चुका था और उसकी आधी से ज़्यादा टांगे नंगी थी. रूपाली ने उसके जिस्म को देखा तो उसकी साँसें और तेज़ हो गयी. पायल ग़रीब सही पर उसका जिस्म भगवान ने बिल्कुल उसकी माँ जैसा बनाया था. एकदम गाथा हुआ. जिस्म का हर हिस्सा जैसे तराशा हुआ था. जहाँ जितना माँस होना चाहिए उतना ही. ना कम ना ज़्यादा. उसकी गान्ड देखकर रूपाली समझ गयी के पायल ने अंदर पॅंटी नही पहेन रखी थी. शायद ज़िंदगी में कभी नही पहनी इसलिए उतारकर सोती है. कमर पर भी चोली के नीचे ब्रा के स्ट्रॅप्स नही थे. शायद वो भी उतारकर आई थी. रूपाली को वो पल याद आया जब उसने पायल को नाहकार नंगी निकलते देखा था. उसका हाथ जैसे अपने आप आगे पड़ा और बिस्तर के साइड में लेटी पायल के घाघरे को पकड़कर उपेर सरकाने लगा. घाघरा पायल के नीचे दबा हुआ था इसलिए रूपाली को उसे थोड़ा खींचना पड़ा. उसके दिल में ज़रा भी ये डर नही था के पायल जाग गयी तो क्या सोचेगी. थोडा ज़ोर लगाकर खींचा तो घाघरा पायल की गान्ड से उठकर उसकी कमर तक आ गया. पायल नींद में थोड़ा हिली. शायद गान्ड पर एसी की ठंडी हवा महसूस होने से या फिर घाघरा उपेर सरकने की हुलचूल से पर फिर दोबारा नींद में चली गयी. रूपाली एकटक उसकी खुली हुई गान्ड को देखती रही. उसकी गान्ड की गोलाई जैसे कमाल थी. रूपाली ने अपना एक हाथ आगे बढ़ाया और धीरे से पायल की गान्ड पर फिराया. ऐसा करते ही उसके मुँह से आ निकल पड़ी. टाँगो के बीचे की आग और तेज़ हो गयी और फिर उसे बर्दाश्त ना हुआ. उसने जल्दी से अपनी नाइटी उपेर खींची और पॅंटी उतारकर एक तरफ फेंक दी. अपनी टांगे फेला दी और एक हाथ से अपनी चूत मसल्ने लगी. दूसरा हाथ उसने फिर पायल की गान्ड पर रखा धीरे धीरे सहलाने लगी. रूपाली को जैसे अपने उपेर यकीन नही हो रहा था. वो एक लड़की की गान्ड देखकर उसे सहलाते हुए गरम हो रही थी और अपनी चूत मसल रही थी. एक दूसरी औरत का जिस्म उसके जिस्म में आग लगा रहा था, उसे मज़ा दे रहा था. रूपाली के दिमाग़ में फिर ख्याल आया के क्या वो ठीक है जो औरत को देखकर भी गरम हो जाती है या ये बरसो से दभी हुई वासना है जो औरत और मर्द दोनो का स्पर्श पाकर बाहर आ जाती है. एक पल के लिए आए इस ख्याल को रूपाली ने अपने दिमाग़ से निकाला और पायल की गान्ड सहलाते हुए अपनी चूत में उंगली करने लगी.

अगले दिन सुबह रूपाली की आँख खुली तो पायल उठकर जा चुकी थी. वो अपने बिस्तर से उठी और नीचे आई तो ठाकुर कहीं बाहर जा रहे थे.

"हम दोपहर तक लौट आएँगे. देवधर का फोन आया था. कह रहा थे के इनस्पेक्टर ख़ान से हमें भी उसके साथ मिल लेना चाहिए" उन्होने रूपाली को देखते हुए कहा

"जी ठीक है." रूपाली ने जवाब दिया

"आपको कहीं जाना तो नही है आज?" ठाकुर ने पुचछा

"नही कहीं नही जाना" रूपाली ने जवाब दिया

"वैसे कल कहाँ थी आप सारा दिन?" ठाकुर कार की चाबियाँ उठाते हुए बोले

"जी ऐसे ही अपनी ज़मीन के चक्कर लगा रही थी. देख रही थी के कहाँ से दोबारा शुरुआत किया जाए." रूपाली बोली

"तो कुच्छ पता चला के कहाँ से दोबारा शुरू करने वाली हैं आप?" ठाकुर ने मुस्कुराते हुए सवाल किया

रूपाली ने हां में सर हिला दिया. ठाकुर उसकी और देखकर हसे और हवेली से बाहर निकल गये.

ठाकुर के जाने के बाद रूपाली वहीं बड़े कमरे में बैठ गयी. पूरी रात सोने के बावजूद उसका पूरा जिस्म जैसे टूट रहा था. उसे समझ नही आ रहा थे के ऐसा इसलिए है क्यूंकी कल रात वो हवेली में लाश मिलने की बात से परेशान थी या इसलिए के कल रात वो चूड़ी नही थी. जो भी था, रूपाली का दिल कर रहा था के वो फिर बिस्तर पर जा गिरे. उसने घूमकर पायल को आवाज़ दी. उसकी आवाज़ सुनकर पायल और भूषण दोनो किचन से बाहर आए

"एक कप चाय ले आ ज़रा" रूपाली ने कहा और भूषण की तरफ पलटी "इसे खाना बनाते वक़्त अपने साथ रखिए और खाना बनाना सीखा दीजिए ज़रा"

"जी वही कर रहा हूँ" भूषण ने जवाब दिया. वो दोनो पलटकर फिर किचन की तरफ बढ़ गये.

रूपाली का ध्यान फिर हवेली में मिली लाश की तरफ चला गया. किसकी हो सकती थी? कब से वहाँ थी? हवेली में कोई खून हुआ हो ऐसा उसने कही सुना तो नही था फिर अचानक? वो अपने ख्यालों में ही के के तभी फोन की घंटी बज उठी. रूपाली ने आगे बढ़कर फोन उठाया

"कैसी हैं दीदी?" दूसरी तरफ से एक जानी पहचानी आवाज़ आई. ये उसके छ्होटे भाई इंदर की आवाज़ थी.

इंदर रूपाली का लाड़ला छ्होटा भाई था. वो रूपाली से 5 साल छ्होटा था और रूपाले के बचपन का खिलोना था. वो उसे बड़े लाड से रखती थी, उसकी हर बात मानती और हमेशा उसे अपने माँ बाप की डाँट से बचाती. इंदर यूँ तो दिमाग़ से बड़ा तेज़ था पर किताबें शायद उसके लिए नही बनी थी. वो बहुत ही छ्होटी उमर में कॉलेज से निकल गया था और अपने बाप का काम काज में हाथ बटाया करता था. रूपाली के पिता का कपड़ों का बहुत बड़ा कारोबार था अब इंदर ही उसकी देख रेख करता था.

"ठीक हूँ. तू कैसा है?" रूपाली ने पुचछा

"मैं भी ठीक हूँ. आप तो अब याद ही नही करती. मैने पहले भी 2-3 बार फोन किया था पर किसी ने उठाया ही नही. मम्मी पापा भी आपके लिए काफ़ी परेशान थे." इंदर बोला

"हां शायद मैं इधर उधर कहीं होगी इसलिए फोन नही उठाया" रूपाली बोली

"कभी खुद फोन कर लेती दीदी. आप तो हमें भूल ही गयी" इंदर शिकायत बोला तो रूपाली को ध्यान आया के उसने महीनो से अपने माँ बाप से बात नही की थी

"वो सब छ्चोड़" रूपाली ने बात टालते हुए कहा "काम कैसा चल रहा है?"

"सब ठीक है दीदी." इंदर ने जवाब दिया "आप कुच्छ दिन के लिए घर क्यूँ नही आ जाती. उस मनहूस हवेली में आख़िर तब तक अकेली रहेंगी आप?"

रूपाली बस हलकसे इतना ही निकाल पाई

"आऊँगी. ज़रूर आऊँगी."

"अच्छा एक काम कीजिए. मैं आपसे मिलने आ जाऊं?" इंदर बोला

"नही तू मत आ मैं ही घर आ जाऊंगी" रूपाली ने फ़ौरन मना किया. उसे डर था के अगर इंदर यहाँ आ गया तो शायद उसके रास्ते में रुकावट बन सकता है

"कब?" इंदर ने पुचछा

"जल्दी ही" रूपाली प्यार से बोली

"अच्छा एक काम कीजिए. घर फोन करके मम्मी से बात कर लीजिए. मैं अभी रखता हूँ. बाद में फोन करूँगा" इंदर ने कहा

"ठीक है" रूपाली ने अपनी भाई को प्यार से अपना ध्यान रखने के लिए कहा और फोन रख दिया. ज़िंदगी में अगर कोई एक इंसान जिसे रूपाली ने सबसे ज़्यादा चाहा था तो शायद वो उसका अपना भाई था. वो अपने भाई के लिए जान तक दे सकती थी, बिना सोचे. पर वक़्त ने कितना कुच्छ बदल दिया था उसके लिए. अब एक वक़्त ये भी आया था के उसी भाई से बात किए उसे महीनो गुज़र गये थे.
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#23
Update 19

फोन रखकर रूपाली उठी जे तभी पायल चाय लेकर आ गयी. रूपाली को रात का वो नज़ारा याद आया जब उसने पायल की गान्ड पर हाथ फेरते हुए अपने जिस्म की आग ठंडी की थी. वो एकटूक पायल को देखने लगी, उसकी अल्हड़ जवानी को निहारने लगी.

"क्या हुआ मालकिन?" पायल ने पुचछा "ऐसे क्या देख रही हैं?"

"कुच्छ नही" रूपाली ने कहा और अपने कमरे की तरफ बढ़ गयी.

अगला कुच्छ वक़्त रूपाली ने यूँ ही बिस्तर पर पड़े पड़े ही गुज़ार दिया. उसका पूरा बदन टूट रहा था. लग रहा था जैसे बरसो की बीमार हो. उसे बहुत सारे काम करने थे पर हिम्मत ही नही हो रही थी के उठे. थोड़ी देर बाद दरवाज़े पर नॉक हुआ. रूपाली ने उठकर दरवाज़ा खोला. सामने पायल खड़ी थी.

"माँ आई हैं. कह रही थी के आपने बुलाया था" पायल ने कहा तो रूपाली को ध्यान आया के उसने आज बिंदिया को आने के लिए कहा था

"हां उसे यहीं उपेर मेरे कमरे में ले आ" उसने पायल को कहा और फिर बिस्तर पर आकर बैठ गयी. थोड़ी ही देर बाद पायल अपनी माँ के साथ वापिस आई

"नमस्ते मालकिन" रूपाली को देखते ही बिंदिया ने हाथ जोड़े

"नमस्ते" रूपाली ने जवाब दिया "आ अंदर आजा"

बिंदिया वहीं कमरे में आकर खड़ी हो गयी. पायल बाहर दरवाज़े पर ही खड़ी थी.

"अपनी माँ को चाय पानी के लिए नही पुछेगि?" रूपाली ने कहा तो पायल मुस्कुरकर नीचे चली गयी.

"कैसी है?" रूपाली ने बिंदिया की तरफ देखकर कहा "बैठ ना"

"ठीक हूँ" कहती हुई बिंदिया वहीं नीचे ज़मीन पर बिछि कालीन पर बैठ गयी

"घर जाने की कोई जल्दी तो नही है ना?" रूपाली ने मुस्कुराते हुए पुचछा

"नही तो." बिंदिया हैरानी से बोली "क्यूँ?"

"नही मैं सोच रही थी के तेरा और चंदर का तो रोज़ का प्लान होता है ना वो भी दिन में 3-4 बार. इसलिए मैने सोचा के .........." रूपाली ने बात अधूरी छ्चोड़ दी.

बिंदिया की हसी छूट पड़ी.

"नही अभी आज को कोटा पूरा करके आई हूँ" उसने हस्ते हुए कहा

"आगे से पूरा करवाके आई है या पिछे से?" रूपाली ने भी उसी अंदाज़ में पुचछा

दोनो ज़ोर ज़ोर से हासणे लगी. तभी पायल पानी लेकर आ गयी

"चाय पिएगी माँ?"उसने बिंदिया से पुचछा

"नही रहने दे" बिंदिया ने पानी का ग्लास लिया और पानी पीने लगी

"पायल तू नीचे जाके भूषण काका का हाथ में काम बटा. मुझे तेरी माँ से एक ज़रूरी बात करनी है" रूपाली ने पायल को जाने का इशारा किया. पायल सहमति में गर्दन हिलती नीचे चली गयी.

बिंदिया ने पानी ख़तम करके ग्लास एक तरफ रखा और रूपाली की तरफ देखकर बोली

"मुझसे ज़रूरी बात करनी है?"

"हां" रूपाली हल्के से हस्ते हुए बोली "तुझसे ये सीखना है के तू लंड गान्ड में भी कैसे ले लेती है?"

दोनो फिर ज़ोर ज़ोर से हासणे लगी. रूपाली ने कह तो दिया पर अगले ही पल अपनी ग़लती का एहसास हुआ. बिंदिया के नज़र में वो विधवा थी तो उसे ये क्यूँ पता करना था, उसे किसका लंड लेना था अब. पति तो उसका मर चुका था.

"तुझसे कुच्छ बातें मालूम करनी थी" उसे हसी रोक कर पुचछा

"हां पुच्हिए" बिंदिया ने कहा

"पर एक बात है. जो बातें यहाँ बंद कमरे में मेरे और तेरे बीच हो रही हैं कहीं और बाहर ना जाएँ" उसने ऐसे कहा जैसे बिंदिया से एक आश्वासन माँग रही हो

"आप फिकर ना करें मालकिन" बिंदिया ने कहा "ज़ुबान खुले तो कटवा दीजिएगा"

"देख मुझे वैसे तो हवेली में आए 10 साल से उपेर हो चुके हैं" पायल उठकर कमरे में चहल कदमी करने लगी "पर मेरे आने के कुच्छ वक़्त तक ही ये हवेली एक घर थी. उसके बाद तो जैसे एक वीरान खंडहर हो गयी जहाँ मैं और पिताजी भूत की तरह बसे हुए हैं"

बिंदिया ने सहमति में सर हिलाया

"मेरे पति का मरना मेरी सबसे बड़ी बदक़िस्मती थी. पर उससे भी ज़्यादा बुरा हवेली का यूँ बर्बाद हो जाना है. मैं जानती हूँ के हवेली और पिताजी के घर खानदान के बारे में काफ़ी कुच्छ ऐसा है जो मैं नही जानती पर मालूम करना चाहती हूँ" रूपाली ये सब कहते हुए जैसे अंधेरे में तीर चला रही थी. उसे भुसन की कही हुई वो बात आज भी याद थी के उसके पति की हत्या की वजह यहीं हवेली में दफ़न है कहीं, जिसे उसको पता करना है.

"आप क्या कह रही हैं मालकिन?" बिंदिया ने पुचछा

"मैं ये कह रही हूँ के तेरा मर्द तो हमेशा से ठाकुर साहब के लिए काम करता था और तू भी बड़े वक़्त से यहीं हमारी ज़मीनो पर काम कर रही है. क्या तू मुझे कुच्छ ऐसा बता सकती हैं जो मैं नही जानती पर जिस बात की खबर मुझे होनी चाहिए?"

"आप करना क्या चाहती हैं मालकिन?" बिंदिया ने थोड़ी फिकर भारी आवाज़ में पुचछा

"मैं इस हवेली को दोबारा घर बनाना चाहती हूँ. यहाँ दोबारा खुशियाँ देखना चाहती हूँ. फिर से इसे वैसे ही देखना चाहती हूँ जैसी के ये पहली थी और इसके लिए ज़रूरी है के मुझे पहले सब कुच्छ पता हो ताकि मैं बर्बादी की हर वजह को मिटा सकूँ. समझी?" रूपाली एक साँस में बोली

बिंदिया ने हां में सर हिलाया

"तो अब बता" रूपाली उसके सामने बिस्तर पर बैठते हुए बोली "तू जानती है ऐसा कुच्छ?"

"छ्होटा मुँह बड़ी बात हो जाएगी मालकिन" बिंदिया ने हिचकिचाते हुए बोला

"तू फिकर ना कर. "रूपाली ने कहा "बस कुच्छ जानती है है तो बता मुझे"

"मैं नही जानती मालकिन के आपके लिए क्या ज़रूरी है क्या नही या आप क्या जानती हैं क्या नही. मैं बस अपने हिसाब से आपको कुच्छ बातें बता देती हूँ जो मुझे लगता है के आपसे च्छुपाई गयी होंगी. इस घर की नयी बहू से जो की आप आज से 10 साल पहले थी." बिंदिया ने कहा तो रूपाली ने हां में सर हिलाया

"आपको क्या लगता है के ठाकुर साहब की बर्बादी का सबसे बड़ा ज़िम्मेदार कौन है?" बिंदिया ने पुचछा तो रूपाली ने अपने कंधे हिलाए जैसे कह रही हो के पता नही

"आप अपने देवर जय के बारे में जानती हैं ना?" बिंदिया ने पुचछा "ठाकुर साहब के छ्होटे भाई का बेटा"

रूपाली ने हां में सर हिलाया

"वो हैं आस्तीन का असली साँप जो आपके पति ने पाल रखा था. आपके पति के मरते ही उसने ठाकुर साहब का सब कुच्छ ऐसे हड़प लिया जैसे कबे मौके की ताक में बैठा हो" बिंदिया ने आवाज़ यूँ नीची की जैसे बहुत बड़े राज़ की बात बता रही हो

"मालूम है मुझे" रूपाली ने कहा

"आप जानती हैं उसने ऐसा क्यूँ किया जबकि ठाकुर साहब ने अपने तीन बेटों के साथ उसे भी अपने चौथे बेटे की तरह पाला था" बिंदिया ने पुचछा

रूपाली ने फिर इनकार में सर हिलाया

"क्यूंकी गाओं में हर कोई ये कहता है के ठाकुर साहब ने पूरी जायदाद के लिए खुद अपने भाई का खून किया था" बिंदिया ने कहा

रूपाली पर जैसे कोई बॉम्ब गिरा हो

"मैं नही मानती. बकवास है ये" उसने बिंदिया से कहा

"मैं भी नही मानती मालकिन पर गाओं और आस पास के सारे इलाक़े में हर कोई यही कहता है. और जहाँ तक मेरा ख्याल है जय के कानो में भी यही बात पड़ गयी इसलिए तो खुद अपने चाचा के खिलाफ दिल में ज़हेर पालता रहा" बिंदिया ने जवाब दिया

"पर पिताजी ऐसा क्यूँ करेंगे?" रूपाली बोली

"वही तो." बिंदिया ने कहा "आपके ससुर और उनके भाई में बहुत बनती थी. भाई कम दोनो दोस्त ज़्यादा थे इसलिए तो ठाकुर साहब ने अपने भाई के बेटे को अपने बेटे की तरह पाला"

"जय के माता पिता की मौत कैसे हुई थी?" रूपाली ने पुचछा

"कार आक्सिडेंट था. गाड़ी खाई में जा गिरी थी. सब कहते हैं के ठाकुर साहब ने ही गाड़ी में कुच्छ खराबी की थी जिसकी वजह से आक्सिडेंट हुआ था." बिंदिया बोली

"कोरी बकवास है ये" रूपाली थोड़ा गुस्से में बोली "मैं जानती हूँ पिताजी को. वो ऐसा कुच्छ कर ही नही सकते"

"मैं जानती हूँ नही कर सकते मालकिन" बिंदिया ने भी हां में हां मिलाई "मैं तो बस आपको बता रही हूँ के गाओं के लोग क्या कहते हैं. मुझसे पुच्हिए तो मैं तो खुद ये कहती हूँ के ठाकुर साहब जैसा भला आदमी हो ही नही सकता"

उसकी बात सुन रूपाली मुस्कुराइ. जैसे अपने प्रेमी की तारीफ सुनकर खुश हुई हो

"और कोई बात?" उसने बिंदिया से पुचछा

"हां एक बात है तो पर पता नही के कितनी सच्ची है" बिंदिया ने कहा

"बता मुझे" रूपाली बोली

"मेरे मर्द की और मेरी एक अजीब आदत थी" बिंदिया ने कहा "बिस्तर पर हम चुप नही रहते थे. बातें करते करते चुदाई करते थे"

"कैसी बातें?" रूपाली हैरत से बोली "वो कोई बातें करने का टाइम होता है भला?"

"जानती हूँ बातें करने का वक़्त नही होता पर चुदाई की बातें करने का वक़्त वही होता है मालकिन. सच बड़ा मज़ा आता था" बिंदिया मुस्कुराते बोली

"मैं कुच्छ समझी नही" रूपाली बोली

"जब वो मुझे चोद्ता था तो हम गंदी गंदी बातें करते थे. जैसे मैं उसे कहती थी के चूत मारो, गान्ड मारो और वो कहता था के लंड चूस मेरा, गान्ड में ले, घोड़ी बन, उपेर आ. कभी कभी हम दोनो सोचते थे के हम बिस्तर पर नही कहीं और चुदाई कर रहे हैं जैसे खेत में या नदी किनारे और फिर हम दोनो बातों बातों में चुदाई करते थे. असल में वो मुझे उस वक़्त चोदा करता था और बातों में कहीं और चुदाई चल रही होती थी. वो मुझे कहता के अब मैं तुम्हें झुका कर चोद रहा हूँ और मैं कहती के मेरी चूचियाँ तुम्हारे हर धक्के के साथ हिल रही हैं. समझ रही हैं आप?" बिंदिया ने कहा

"कुच्छ कुच्छ" रूपाली बोली

"ऐसी ही एक चुदाई के वक़्त उसने मुझे बताया था के उसने आज एक लड़की को चूड़ते हुए देखा और बताया के उसने क्या देखा. मुझे चोद्ते हुए उसने पूरी कहानी बताई के उसने क्या देखा था. हम दोनो को बहुत मज़ा आया. चुदाई के बाद जब मैने उससे पुचछा के वो लड़की कौन थी तो वो बात टाल गया. और फिर अक्सर ऐसा ही करता. मुझे चोद्ता तो उस लड़की की कहानी दोहराता. उसकी चूचियाँ कैसी थी बताता. वो कैसे चुद्व रही थी ये पूरा अच्छे से मुझे बताता पर हमेशा उस लड़की का नाम टाल जाता. फिर एक दिन मैने उसे चूत देने से इनकार कर दिया. शर्त ये रखी के मैं चूत तब तक नही दूँगी जब तक के वो मुझे ये नही बताता के वो लड़की कौन थी. तब जाके उसने मुझे उसका नाम बताया." बिंदिया ने कहा और चुप हो गयी

"कौन थी लड़की?" रूपाली ने पुचछा. बिंदिया ने जवाब ना दिया

"बता ना" रूपाली ने फिर कहा

"आपकी ननद, कामिनी" बिंदिया ने जैसे धमाका किया "ठाकुर साहब के एकलौती बेटी"

"तू जानती है तू क्या बकवास कर रही है?" रूपाली लगभग चीखते हुए बोली

"मैं नही मालकिन ऐसा मेरा मर्द कहता था" बिंदिया ज़रा सहमी से आवाज़ में बोली

"ठाकुर साहब के कानो में अगर ये बात पड़ गयी तो जानती है ना के तेरा क्या अंजाम होगा" रूपाली ने कहा

"जानती हूँ मालकिन और यही बात मैने अपने मर्द से कही थी." बिंदिया ने कहा तो रूपाली ने अपने चेहरे से गुस्से के भाव हटाए

"क्या बताया था तेरे मर्द ने?" उसने बिंदिया ने पुचछा पर बिंदिया ने डर से कुच्छ ना कहा

"अच्छा डर मत ये बात कहीं नही जाएगी. अब बता" रूपाली ने ज़रा मुस्कुराते हुए कहा

"जी मेरे घर से थोड़ी दूर पहले आपकी ज़मीन पर एक ट्यूबिवेल होता था. तब वहाँ पर हर भर खेत थे जिनकी देखभाल मेरा मर्द करता था" बिंदिया ने बताना शुरू किया "वो कहता था के एक दिन उसे कामिनी की गाड़ी खेतों के बाहर सड़क पर खड़ी दिखाई दी. गाड़ी इस अंदाज़ में खड़ी की थी के सड़क से किसी को ना दिखे पर अगर कोई खेत की तरफ से आए तो उसे सॉफ नज़र आती थी. वो हैरत में पड़ गया के कामिनी के गाड़ी यहाँ क्या कर रही है. वो उसे ढूंढता हुआ ट्यूबिवेल की तरफ निकला क्यूंकी वहीं पर ठाकुर साहब ने थोड़ी जगह सॉफ करवाके एक छ्होटा सा कमरा बनवा रखा था. उसी के आगे वो अक्सर आके बेता करते थे और उसी कमरे में एक कुआँ था जिसमें ट्यूबिवेल लगा हुआ था. मेरे मर्द को लगा के कामिनी भी शायद उधर ही गयी होगी. वो उसे ढूंढता हुआ वहाँ पहुँचा तो देखा के कमरे का ताला खुला हुआ था पर दरवाज़ा अंदर से बंद था और अंदर से किसी के धीमी आवाज़ में बात करने की आवाज़ आ रही थी. टुबेवेल्ल की मोटर कमरे के अंदर थी और ट्यूबिवेल का पाइप कमरे में एक जगह से बाहर निकलता था. मेरे मर्द ने वहीं से अंदर झाँक कर देखा तो........"

"तो क्या?" रूपाली ने पुचछा "बता मुझे"

"वो कहता था के उसने देखा के कामिनी नीचे ज़मीन पर झुकी हुई थी, बिल्कुल नंगी. वो जहाँ से देख रहा था वहाँ से उसे कामिनी के आगे का हिस्सा नज़र आ रहा था, मतलब के उसकी कमर से उपेर का हिस्सा. उसकी चूचियाँ नीचे को लटकी हुई थी और वो आगे पिछे हो रही थी जिससे के ज़ाहिर था के पिछे से कोई उसे चोद रहा था. उसके बाल उसके चेहरे पर बिखरे हुए थे और उसने मज़े में आँखें बंद की हुई थी" बिंदिया बोली

"कौन छोड़ रहा था?" रूपाली ने जल्दी से पुचछा

"ये मेरा मर्द नही देख पाया क्यूंकी कामिनी की कमर से नीचे का हिस्सा उसे नज़र नही आ रहा था. उसने बस किसी के हाथों को देखा था जो कामिनी की कमर और उसकी चूचियों को सहला रहे थे, हाथ किसके थे ये वो नही देख पाया.'"बिंदिया बोली

"फिर?" रूपाली ने सवाल किया

"फिर वो कहता था के चुद्ते चुद्ते कामिनी ने अपनी गर्दन घुमाई और ठीक उस तरफ देखा जहाँ से मेरा मर्द झाँक रहा था. उसे लगा के कामिनी ने उसे देख लिया है और वो वहाँ से सर पर पावं रखकर भागा." बिंदिया ने बोला

"उसने वहाँ रुक कर ये देखने की कोशिश नही की के कामिनी के साथ वो आदमी कौन था?" रूपाली ने पुचछा

"मज़ाक कर रही हैं? उसे तो लगा था के वो अब गया जान से. उसने सोचा कामिनी ठाकुर साहब से कहके उसकी गर्दन कटवा देगी. 2-3 दिन तक बोखलाया सा रहा और फिर जब उसे लगा के कुच्छ नही हुआ तो तब उसने मुझे ये बात बताई." बिंदिया ने जवाब दिया

"हर रात यही बात करता था?" रूपाली ने कहा

"हां. मर्द था ना. चोद मुझे रहा होता था और याद उसे नंगी कामिनी आती थी" बिंदिया ने ऐसे कहा जैसे अपने मरे हुए मर्द को ताना मार रही हो

"फिर क्या हुआ? उसने दोबारा कभी देखा कामिनी को वहाँ?" रूपाली ने सवाल किया

"कहाँ मालकिन. महीने भर बाद ही मर गया था वो."

"कैसे?"

"वहीं उसी कमरे में. जो कुआँ बना हुआ है ना अंदर, उसी में लाश मिली थी उसकी. टुबेवेल्ल ठीक करने गया था और पता नही कैसे अंदर गिर पड़ा. उसका सर नीचे जा रहे ट्यूबिवेल के पाइप पे लगा और वो मर गया. पता नही चोट लगने से या डूबके मरने से." बिंदिया ने आह लेते हुए कहा

"बुरा ना माने तो एक बात कहूँ मालकिन?" बिंदिया बोली

"हां बोल" रूपाली ने कहा

"कामिनी के बारे में लोग अच्छा नही कहते. जो नौकर उस वक़्त यहाँ काम करते थे वो कहते थे के उसका चल चलन ठीक नही है. पता नही क्यूँ कहते थे पर हर कोई कहता था के सीधी सी दिखने वाली चुप चुप रहने वाली कामिनी ऐसी नही थी जैसी वो दिखती थी"

"हां कुच्छ ऐसा सुना था मैने भी. पर आज से पहले किसी ने ऐसी किसी घटना का ज़िक्र नही किया था." रूपाली ने जवाब दिया

"नौकरों से ध्यान आया मालकिन" बिंदिया बोली "अब तो घर में कोई नौकर बचा नही, इतनी बड़ी हवेली का ध्यान कैसे रखती हैं?"

"भूषण है ना. और फिर हम हवेली में 2 ही लोग हैं. मैं और पिताजी. चल जाता है" रूपाली ने कहा

"हां यही एक बेचारा रह गया जो हमेशा आपका वफ़ादार रहा."बिंदिया बोली "और वैसे भी इस उमर में जाता कहाँ. कोई है ही नही आगे पिछे. एक बीवी थी वो छ्चोड़के भाग गयी"

"भाग गयी?" रूपाली ने हैरानी से पुचछा "मुझे लगा था के वो मर गयी थी"

"अरे नही मालकिन" बिंदिया ने कहा "इतनी जल्दी कहाँ. अपनी भारी जवानी में थी वो"

"मतलब?" रूपाली ने पुचछा

"जब इसने शादी की थी तो ये लगभग 40 का था और वो लड़की मुश्किल से 20 की. कोई 15 साल इसके साथ रही और फिर भाग गयी किसी और के साथ" बिंदिया बोली

रूपाली को इस बात से काफ़ी हैरानी हुई. वो पुच्छना चाहती थी के वो लड़की क्यूँ भागी पर फिर जवाब खुद अपने दिल ने ही दे दिया. जब भूषण 40 का था तो बिस्तर पे उसे खुश रखता होगा. 15 साल में उमर ढली तो इसकी जवानी गयी और जवानी के साथ ही बीवी भी किसी और के साथ गयी.

रूपाली और बिंदिया थोड़ी देर और इधर उधर की बातें करते रहे. बिंदिया ने उसे गाओं और ठाकुर साहब की जायदाद के बारे में काफ़ी कुच्छ बताया पर कुच्छ भी ऐसा नही जो रूपाली पहले से ना जानती हो. कुच्छ देर बाद बिंदिया ने उठते हुए कहा के अब उसको चलना चाहिए.

"क्यूँ फिर टाँगो के बीच आग लग रही है क्या?" रूपाली ने कहा तो बिंदिया भी उसके साथ हस पड़ी

"वैसे मानना होगा तुझे बिंदिया. कोई देखके कह नही सकता के एक जवान बेटी की माँ है तू. साथ खड़ा कर दो तो पायल की बड़ी बहेन लगेगी, माँ नही" रूपाली बोली

"छ्चोड़िए मालकिन" हस्ते हुए बिंदिया ने कहा और कमरे से बाहर चली गयी.

रूपाली वहीं बिस्तर पर बैठी थोड़ी देर तक उसकी बातों पर गौर करती रही. अगर जो बिंदिया ने कहा था वो सच था तो कामिनी के बारे में जो घर के नौकर कहते थे वो भी ठीक ही था. मतलब कोई प्रेमी था उसका जिससे मिलने वो उस दिन खेतों की तरफ गयी थी और बहुत हद ये भी मुमकिन था के वहीं आदमी उससे मिलने हवेली में आता था. और ये भी मुमकिन था के उसी ने पुरुषोत्तम का भी खून किया हो. पर अब सवाल ये था के वो आदमी था कौन.

यही सोचती रूपाली अपने कमरे की खिड़की के पास आकर खड़ी हुई और नीचे देखने लगी. सामने से एक कार आकर रुकी और उसका देवर तेज गाड़ी से बाहर निकला. उसके पति का दूसरा भाई.

"आ गये मियाँ अययश" रूपाली ने दिल में सोचा

तभी हवेली के दरवाज़े से बिंदिया निकली और तेज के सामने हाथ जोड़कर नमस्ते करती हुई उसकी बगल से निकल गयी. जिस बात ने रूपाली का ध्यान अपनी और किया वो था तेज का पलटकर बिंदिया को देखना. वो कुच्छ पल के लिए पिछे से बिंदिया को देखता रहा. जिस अंदाज़ से वो देख रहा था उससे रूपाली ने यही अंदाज़ा लगाया के वो बिंदिया की गान्ड देख रहा था. बिंदिया थोड़ा आगे निकल गयी तो तेज पलटकर हवेली में दाखिल हो गया.रूपाली खिड़की से हटी ही थी के उसके दिमाग़ में एक ख्याल आया और वो मुस्कुरा उठी.

तेज अय्याश था, औरतों का शौकीन और इसी चक्कर में यहाँ वहाँ रंडियों में मुँह मारता फिरता था. रूपाली चाहती थी के वो हवेली में रुके और अपनी ज़मीन जायदाद की देखभाल की तरफ ध्यान दे, अपने पिता का हाथ बताए पर इसके लिए ज़रूरी था उसका हवेली में रुकना. उसे रोकने का एक तरीका ये था के घर में ही उसके लिए चूत का इन्तेजाम कर दिया जाए. रूपाली ने दोबारा खिड़की से बाहर कॉंपाउंड में जाती हुई बिंदिया को देखा, फिर एक पल पायल के बारे में सोचा और खुद ही मुस्कुरा उठी.

रूपाली अपने कमरे से बाहर निकली तो सामने से आता तेज मिल गया

"प्रणाम भाभी माँ" उसने बिल्कुल ठाकुरों के अंदाज़ में हाथ जोड़े और झुक कर रूपाली के पावं च्छुए

एक बात जो रूपाली को हैरत में डालती थी वो ये थी के तेज लाख आय्याश सही पर उसका हमेशा बहुत आदर करता था. हवेली में वो जबसे आई थी तबसे वो हमेशा उसे भाभी माँ कहकर बुलाता था और हमेशा उसके पावं छुता था

"कैसे हो तेज?" रूपाली ने पुचछा

"ठीक हूँ भाभी. आप कैसी हैं?" तेज ने जवाब दिया

"ठीक हूँ. घर की याद आ गयी आपको?" रूपाली ने हल्का सा ताना मारते हुए कहा. तेज ने कोई जवाब नही दिया

"दोबारा कब जा रहे हैं?" रूपाली ने फिर सवाल किया

"आप ऐसा क्यूँ कह रही हैं भाभी?" तेज ने कहा

"और कैसा कहूँ तेज?" रूपाली ने हल्का सा गुस्सा दिखाते हुए कहा "एक जवान देवर के होते हुए अगर उसकी भाभी को सार काम करना पड़ा तो और क्या कहूँ मैं?"

"कैसा काम भाभी?" तेज हल्का शर्मिंदा होते हुए बोला "आप मुझे कहिए"

"आप यहाँ हों तो आपको कहूँ ना. आप तो इस घर में मेहमान की तरह आते हैं" रूपाली ना उसी अंदाज़ में दोबारा ताना मारा

तेज फिर चुप खड़ा रहा. रूपाली को हमेशा उसपर हैरत होती थी. ये वही तेज वीर सिंग है जिसने जाने कितनी लाशें गिरा दी थी अपने भाई का बदला लेने के लिए, ये वही तेज है जिसके सामने कोई ज़ुबान नही खोलता था, खुद ठाकुर साहब भी नही पर रूपाली के सामने तेज हमेशा सर झुकाए ही खड़ा रहता था.

"खैर अब आप आए ही हैं तो हम चाहते हैं के आप कुच्छ दिन रुकें. हवेली में कुच्छ काम है और हमें अच्छा लगेगा के आप हमारा हाथ बटाये" रूपाली ने कहा

"जैसा आप ठीक समझें" तेज ने कहा और अपने कमरे की तरफ बढ़ गया

रूपाली उसे जाता देखकर मुस्कुराइ. वो जानती थी के उसका प्लान काम कर रहा है.
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#24
Update 20

रूपाली नीचे आकर किचन में पहुँची. पायल और भूषण खाना लगभग तैय्यार कर चुके थे.

"खाना तैय्यार है बहू रानी" भूषण ने कहा

"मैं अभी नही खाऊंगी" रूपाली ने कहा "पिताजी के आने के बाद ही खाऊंगी."

फिर वो पायल की तरफ पलटी

"जाकर छ्होटे मलिक के कमरे में पुच्छ आ कि उन्होने अभी खाना है या नही" वो चाहती थी के तेज पायल को देखे और उसे पता चल जाए के उसके लिए इस घर में ही चूत का इन्तजाम है. एक कच्ची कुँवारी कली का.

रूपाली वापिस अपने कमरे में पहुँची और सोच में पड़ गयी. उसने तेज को यहाँ रुकने को कह तो दिया था पर इससे खुद उसके लिए परेशानी खड़ी हो गयी थी. पहली परेशानी तो ये के इतने आदमियों के रहते वो खुले तौर पर ठाकुर से नही चुदवा सकती थी. अब जो कुच्छ भी हो चोरी छुपे ही हो सकता था, बड़ी सावधानी के साथ. दूसरी बात ये के ठाकुर अपने दूसरे बेटे तेज को इतना पसंद नही करते थे और ना ही तेज की अपने पिता के साथ कोई बोलचाल थी. इस वजह से शायद ठाकुर काम में तेज की धखल अंदाज़ी पसंद ना करते. और तीसरा ये के उसने अब तक तेज के कमरे की तलाशी नही ली थी. अब तेज के आ जाने से इस काम में दिक्कत हो सकती थी.

तलाशी के बारे में सोचते ही रूपाली के दिमाग़ में कई ख्याल एक साथ आए. उसने कुच्छ देर बैठ कर अपनी सोच को एक दूसरे के साथ जोड़ा और जल्दी से उठकर अपनी अलमारी के पास गयी. अलमारी से उसने वो दोनो चाबियाँ निकाली जिनमें से एक तो उसे भूषण ने दी थी ये कहकर के उसे रात को ये हवेली के पिछे के बगीचे से मिली थी और दूसरी जो उसे अपनी सास की सारी के पल्लू से मिली थी. दोनो चाबियों को रूपाली ने एक साथ रखा और मिलाया. यक़ीनन दोनो चाबियाँ एक ही ताले की थी पर सवाल ये था के किस ताले की. और ये दोनो चाबियाँ नकल थी तो असली कहाँ थी. रूपाली ने मन ही मन कुच्छ फ़ैसला किया और चाबियाँ उठाकर अपने पर्स में रख दी.

कुच्छ देर बाद रूपाली अपने कमरे से निकलकर तेज के कमरे की और बढ़ी. वो उससे कुच्छ बात करना चाहती थी. कमरे के दरवाज़े के सामने आती हसी की आवाज़ सुनकर वो वहीं रुक गयी. अंदर पायल और तेज हस हॅस्कर कुच्छ बात कर रहे थे. दरवाज़ा बंद होने की वजह से वो देख तो नही पाई पर तेज कुच्छ पुच्छ रहा था और पायल हस हॅस्कर जवाब दे रही थी. रूपाली मुस्कुराइ और पलटकर फिर अपने कमरे में आ गयी.

थोड़ी देर बाद ठाकुर भी वापिस आ गये. रूपाली ने उनके आने के बाद उनके साथ ही खाना खाया.

"तेज घर पर है?" ठाकुर ने पुचछा

"जी अभी थोड़ी देर पहले वापिस आए हैं" रूपाली ने जवाब दिया

"कितनी देर के लिए?" ठाकुर ने नफ़रत से पुचछा तो रूपाली ने जवाब ना दिया और दोनो खामोशी से खाना खाते रहे.

खाने के बाद ठाकुर अपने कमरे में आराम करने चले गये. रूपाली बड़े कमरे में बैठी टीवी देख रही और पायल भी वहीं उसके सामने ज़मीन पर बैठी हुई थी. तभी तेज नीचे उतरा और हवेली के बाहर जाने लगा

"कहाँ जा रहे हैं?" रूपाली ने पुचछा

"जी एक दोस्त के यहाँ" तेज ने जवाब दिया. उसके अंदाज़ से ही सॉफ मालूम हो गया के उसे रूपाली का यूँ टोकना पसंद नही आया

इससे पहले के रूपाली कुच्छ कहती, तेज ने खुद ही बता दिया के वो रात में वापिस नही आएगा और बिना रूपाली के जवाब का इंतेज़ार किए घर से निकल गया.

रूपाली अच्छी तरह जानती थी के रात बसर करने तेज फिर किसी रंडी के यहाँ गया है.

रात के 10 बज चुके थे. रूपाली अपने बिस्तर पर पड़ी करवट बदल रही थी. आज रात भी पायल वहीं उसके कमरे में सोने आई थी और नीचे ज़मीन पर पड़ी सो रही थी. रूपाली को उसपर गुस्सा आ रहा था क्यूंकी वो ठाकुर के कमरे में जाना चाहती थी पर पायल के डर की वजह से थोड़ी सावधानी बरतनी पड़ रही थी.रूपाली ने अपने ससुर को कहा था के वो थोड़ी देर बाद उनके कमरे में सोने आ जाएगी.

रूपाली बिस्तर से उठने को हुई ही थी के कमरे का दरवाज़ा खुला और ठाकुर खुद उसके कमरे में आ गये. पास आकर वो चुप चाप रूपाली के बिस्तर पर आ गये

"आप यहाँ?"रूपाली ने धीरे से पुचछा

"हां हमने सोचा के के आप उठकर हमारे कमरे में आएँगी तो पायल और भूषण को शक हो सकता है इसलिए हम ही आ गये" ठाकुर ने धीमी आवाज़ में जवाब दिया

रूपाली ने बिस्तर पर खिसक कर ठाकुर के लिए जगह बनाई

"पर यहाँ पायल....." उसने कहने के लिए मुँह खोला ही था के ठाकुर ने अपने होंठ उसके होंठो पर रख दिए. उनका एक हाथ निघट्य के उपेर से ठीक रूपाली की चूत पर आ गया. इसके बाद रूपाली कुच्छ ना कह सकी. एक एक करके उसके सारे कपड़े उतरते चले गये. वो पूरी तरह से नंगी होकर ठाकुर के नीचे आ गयी. उसके ससुर का लंड पहले उसके मुँह में और फिर उसकी चूत में आ गया. उसके टांगे हवा में फेल गयी और टाँगो के बीच ठाकुर ने उसकी चूत में लंड अंदर बाहर करना शुरू कर दिया.

चुदाई बड़ी देर तक चलती रही. ना ठाकुर हार मानने को तैय्यार थे और ना ही रूपाली. दोनो के जिस्म में आग लगी हुई थी और दोनो जैसे पूरी तरह एक दूसरे में घुस जाना चाहते थे. उन्हें इस बात की कोई फिकर नही थी के वहीं बिस्तर के पास नीचे ज़मीन पर पायल सोई हुई थी जो किसी भी पल जाग सकती थी. रूपाली कभी सीधी लेटकर चूड़ी, तो कभी ठाकुर के उपेर आकर तो कभी घोड़ी बनकर. झुका कर चोद्ते हुए ठाकुर ने उसकी चूत पर ऐसे धक्के मारे के रूपाली से संभाला ना गया और वो बिस्तर उल्टी लेट गयी. ठाकुर उसकी उपेर लेट गये और पिछे से उसकी चूत मारने लगे. गान्ड पर धक्के अब भी उतनी ही ज़ोर से पड़ रहे थे और लंड रूपाली की चूत की गहराई पूरी तरह से नाप रहा था. रूपाली उस वक़्त बिस्तर पर टेढ़ी लेती हुई थी. उसका सर बिस्तर के किनारे पर रखा हुआ था. उसका चूत अच्छी तरह से मारी जा रही थी और ठाकुर ने अपना सर उसकी गर्दन के पास रखा हुआ था. रूपाली के बॉल उनके चेहरे पर बिखरे हुए थे और उनकी आँखें बंद थी. रूपाली ने एक नज़र पायल की तरफ उठाकर देखा तो वो बेख़बर सोई हुई थी. शायद उसे गहरी नींद में सोने की आदत थी. रूपाली की नज़र उसके जिस्म की तरफ पड़ी. रूपाली ने पायल को पहेन्ने के लिए काई कपड़े दिए थे पर रात को पायल वही अपना ल़हेंगा और चोली पहेनकर सोती थी. उसका ल़हेंगा फिर उसकी जाँघो तक चढ़ आया था और उसकी आधी टांगे नंगी थी. रूपाली सॉफ समझ गयी थी के इस वक़्त भी पायल ने कपड़ो के नीचे ब्रा और पॅंटी नही पहेन रखी थी. रूपाली को जाने क्या सूझी के उसे अपना एक हाथ आगे किया और सामने पड़ी पायल का ल़हेंगा खींचकर उसके पेट तक कर दिया. पायल की चूत खुलकर उसके सामने क्या आ गयी. चूत पर घने बॉल थे. लगता था के उसने बॉल कभी सॉफ नही किए थे. रूपाली ने एक पल उसकी चूत को देखा और फिर उसे च्छुने के लिए हाथ आगे बढ़ाया ही था के अचानक उसकी चूत पर पड़ते ठाकुर के धक्के बंद हो गये. रूपाली ने पलटकर ठाकुर की तरफ देखा उन्होने आँखें खोल दी थी और वो भी वही देख रहे थे जो रूपाली देख रही थी.

ठाकुर और रूपाली दोनो ही बिस्तर पर टेढ़े लेते हुए थे. रूपाली उल्टी थी और पिछे से ठाकुर ने अपना लंड उसकी चूत के अंदर उतरा हुआ था. दो पल के लिए दोनो की नज़रें मिली और फिर दोनो पायल को देखके मुस्कुराए. बेख़बर पायल अब भी गहरी नींद में थी. उसे कोई अंदाज़ा नही था के इस वक़्त उसकी चूत दो लोगों के सामने खुली हुई थी. रूपाली ने ठाकुर को देखा तो पाया के उनकी नज़रें पायल की टाँगो के बीच बालों पर अटक गयी थी. रूपाली दिल से ठाकुर को चाहती थी पर जाने क्यूँ उसे इस बात का ज़रा बुरा नही लगा के वो उसके अलावा किसी और की चूत देख रहे हैं. उल्टा इस बात से उसकी जिस्म की वासना और तेज़ होने लगी. उसने अपना एक हाथ आगे किया और ठाकुर के सामने ही ले जाकर पायल की चूत पर रख दिया और सहलाने लगी.उसकी इस हरकत ने जैसे ठाकुर के अंदर वासना का ज्वार सा उठा दिया और वो फिर बेरहमी से उसकी चूत मारने लगे. दोनो अब भी एकटक सामने पड़ी पायल को देख रहे थे. रूपाली ने थोड़ी देर पायल की चूत और झंघो पर हाथ फेरा और फिर हाथ उपेर करके पायल की छाति पर रख दिया. ठाकुर जिस तरह उसे चोद रहे थे उससे इस बात का अंदाज़ा सॉफ होता था के इस खेल में उन्हें कितना मज़ा आ रहा है.

रूपाली ने धीरे से पायल की चोली का एक बटन खोल दिया. उसके साथ साथ ठाकुर की नज़रें भी अब आकर पायल की बड़ी बड़ी च्चातियो पर अटक गयी. धीरे धीरे रूपाली ने एक एक करके पायल की चोली के सारे बटन खोल दिए और हल्के से उसकी चोली दोनो तरफ से साइड खिसका दी.

पायल की चूचयान खुलकर दोनो की नज़रों के सामने आ गयी और दोनो जैसे पागल हो उठे. चुदाई में और तेज़ी आ गयी. इस बात की दोनो को कोई फिकर नही थी के पायल सिर्फ़ सो रही है, बेहोश नही थी. अगर जो जाग जाती तो खुद को नंगा पाती और ससुर और बहू को चुदाई करते हुए नंगा देख लेती. रूपाली पायल की चूचियों पर हाथ फेर रही थी. वो इस बात का ख्याल रख रही थी के हल्का सा भी दबाव ना डाले ताकि पायल की नींद ना खुले. ठाकुर आँखें फाडे पायल के जिस्म को देख रहे थे और उसपर हाथ फेरती रूपाली को बेरहमी से चोद रहे थे.

रूपाली उल्टी लेटी थी और ठाकुर उसके उपेर. उनके दोनो हाथ रूपाली के नीचे थे जिसमें उन्होने उसकी दोनो चूचियाँ पकड़ रखी थी. रूपाली थोडा सा उपेर हुई और ठाकुर का एक हाथ अपनी छाति से हटाया. ठाकुर ने उसकी तरफ देखा. रूपाली मुस्कुराइ और उसने ठाकुर का हाथ धीरे से नीचे किया और पायल की चूत पर रख दिया. खुद वो फिर से पायल की चूचियाँ सहलाने लगी. इस हरकत ने जैसे दोनो के उपेर जादू सा कर दिया. ठाकुर पायल की चूत सहलाने लगे और आहें भरते हुए रूपाली की चूत पर ऐसे धक्के मारने लगे जैसे आज के बाद कभी नही मिलेगी.

सुबह सवेरे पायल की आँख खुली. उसने घड़ी की तरफ नज़र डाली तो सुबह के 5 बज रहे थे. वो अभी भी पूरी तरह नंगी थी. जिस्म पर कपड़े के नाम पर कुच्छ नही था. उसने अपनी गान्ड पर हाथ फेरा तो वहाँ रात को ठाकुर का गिराया हुआ पानी सूख चुका था. रूपाली ने उठकर अपने कपड़े उठाए और पायल की तरफ नज़र डाली तो उपेर की साँस उपेर और नीचे की नीचे रह गयी. रात चुदाई के बाद वो ठाकुर के साथ ऐसे ही थोड़ी देर लेटी रही और उनके जाने के बाद वैसे ही सो गयी थी. ना तो उसने अपने कपड़े पहने थे और ना ही पायल के कपड़े ठीक किए थे. पायल अब भी वैसे ही पड़ी थी. ल़हेंगा खिसक कर थोड़ा नीचे चूत के उपेर हो गया था पर जांघें अब भी खुली हुई थी. उसकी चोली पूरी तरह से खुली हुई थी और बड़ी बड़ी चूचियाँ खुली पड़ी थी. रूपाली जल्दी से बिस्तर से नीचे उतरी और पायल की चोली के बटन धीरे धीरे बंद करने लगी. फिर उसने ल़हेंगा नीचे किया और जब तसल्ली हो गयी के पायल को अपने कपड़े देखकर कुच्छ शक नही होगा तो उसके बाद रूपाली ने अपने कपड़े पहने. कपड़े क्या पहने बस उपेर से एक नाइटी डाल ली जो उसे सर से लेके पावं तक ढक लेती थी. नाइटी के नीचे कुच्छ नही पहना. एक पल के लिए उसने सोचा के पायल को जगाए पर फिर इरादा बदलकर नीचे आ गयी.

गर्मी के दिन होने की वजह से सुबह 5 बजे ही बाहर हल्की हल्की रोशनी होनी शुरू हो गयी थी. रूपाली नीचे उतरकर बड़े कमरे में पहुँची. तेज कल का गया रात को घर नही लौटा और ठाकुर साहब अब भी सो रहे थे. रूपाली को दिल ही दिल में डर था के कहीं ऐसा ना हो के तेज वापिस ही ना आए. बड़े कमरे में भूषण सफाई में लगे हुए थे.

"बड़ी जल्दी उठ गये काका?" रूपाली ने पुचछा

"मैं तो रोज़ाना इस वक़्त तक उठ जाता हूँ बहूरानी" भूषण ने जवाब दिया और रूपाली की तरफ पलटा

"हां मैं तो खुद ही इतनी देर से उठती हूँ के पता नही होता के आप कब उठे" कहते हुए रूपाली मुस्कुराइ. उसने ध्यान दिया के भूषण उसके गले की और ध्यान से देख रहा था

"क्या हुआ काका?" कहते हुए रूपाली ने अपने गले पर हाथ फिराया तो हल्का दर्द का एहसास हुआ. तभी उसे ध्यान आया के रात चोद्ते हुए ठाकुर से उसके गले पर अपने दाँत गढ़ा दिए थे

"ओह ये" रूपाली फिर मुस्कुराइ. भूषण ने अपनी नज़र फेर ली और फिर काम में लग गया. रूपाली किचन की तरफ बढ़ गयी.

रूपाली अच्छी तरह जानती थी के वो जो कर रही है उसमें भूषण का उसके साथ होना बहुत ज़रूरी है. वो पूरे परिवार को दोबारा जोड़ना चाहती थी पर उसके और ठाकुर के रिश्ते की हल्की सी भी भनक अगर किसी को लग जाती तो पूरे परिवार को एक साथ लाना नामुमकिन हो जाता. बदनामी हो जाती सो अलग. इसके लिए बहुत ज़रूरी था के भूषण को वो अपने साथ रखे.

किचन में खड़े खड़े रूपाली ने भूषण को आवाज़ लगाई. भूषण किचन में आया

"काका मेरी कमर पर बहुत दर्द सा हो रहा है. ज़रा देखेंगे के कुच्छ हुआ है क्या?" भूषण एकटूक रूपाली को देखने लगा

रूपाली उसके जवाब की फिकर किए बिना भूषण की तरफ अपनी कमर करके खड़ी हो गयी. फिर उसने जो किया वो देखकर भूषण के तो जैसे होश उड़ गये. वो नीचे झुकी और अपनी नाइटी को नीचे से उठाकर पूरा गले तक कर लिए. अब वो भूषण के सामने जैसे एक तरीके से नॅंगी ही खड़ी थी. नाइटी उसने अपने दोनो हाथों से उपेर उठाकर अपने गले के पास पकड़ी हुई थी. भूषण पिछे खड़ा उसकी गोरी चिकनी और क़यामत ढा रही उसकी गान्ड को देख रहा था.

"कुच्छ निशान वगेरह है क्या काका?" उसने वैसे ही खड़े खड़े भूषण से पुचछा

"नही कुच्छ नही है." भूषण सूखे गले से मुश्किल से जवाब दे सका

"ज़रा मेरी कमर पर धीरे से सहला देंगे. खुजली सी लग रही है. लगता है रात किसी चीज़ ने काट लिया" रूपाली ने कहा पर भूषण वैसे ही खड़ा रहा.

जब रूपाली ने देखा के भूषण आगे नही बढ़ रहा है तो वो खुद ही पिछे को हो गयी और भूषण के नज़दीक आ गयी. अब उसकी कमर भूषण के बिल्कुल सामने थी. दोनो के जिस्म में बस कुच्छ इंच का फासला था.

"थोडा सा हाथ फेर दीजिए ना काका" रूपाली ने कहा तो भूषण ने अपना कांपता हुआ हाथ उठाया और उसकी कमर पर फेरने लगा. बुड्ढे नौकर की तेज़ी से चलती साँस से साफ पता चलता के वो भी गरम हो सकता था.

रूपाली थोड़ा सा पिछे को सरकी और अपना जिस्म भूषण के जिस्म से मिला दिया पर जो वो चाहती थी वो हो ना सका. क्यूंकी भूषण उससे कद में छ्होटा था इसलिए उसका लंड रूपाली की गांद से आ लगा और रूपाली की गांद भूषण के पेट से. ये ना हुआ तो रूपाली ने अपना हाथ घूमकर भूषण का हाथ पकड़ा और आगे अपनी छाती पर ले आई

"ज़रा यहाँ भी सहला दीजिए ना काका" कहते हुए वो खुद ही भूषण के हाथ को पकड़कर अपनी छाति पर फेरने लगी.

रूपाली चाहती तो ये थी के इस नाटक को थोड़ी देर और करके भूषण को मज़ा दे पर तभी किसी की सीढ़ियाँ उतरने की आवाज़ सुनकर दोनो चौंक गये. रूपाली ने अपनी नाइटी फ़ौरन नीचे गिराई और भूषण से थोड़ा अलग होकर खड़ी हो गयी.

आँखें मलती हुई पायल ने किचन में कदम रखा

"उठ गयी तू?" रूपाली ने उसकी और देखते हुए पुचछा

केस का आज पहला दिन था. ठाकुर साहब सुबह से ही सब काग़ज़ जोड़ने में लगे हुए थे. उन्हें देखकर पता चलता था के वो थोड़े परेशान से थे

"सब ठीक होगा पिताजी. आप परेशान ना हों" रूपाली ने कहा

"हम जानते हैं"ठाकुर ने जवाब दिया

थोड़ी ही देर बाद ठाकुर कोर्ट के लिए निकल गये. रूपाली जानती थी के वो शाम से पहले ना आ सकेंगे.

वो अपने कमरे में पहुँची और तैय्यार होकर अलमारी में रखी दोनो चाबियाँ उठाई. ये वही चाबियाँ थी जिनमें से एक उसे भूषण ने दी थी और दूसरी उसे अपनी सास की साडी से मिली थी. रूपाली के दिमाग़ में एक अंदाज़ा था और वो देखना चाहती थी के उसका अंदाज़ा कितना ठीक है.

उसने पायल और भूषण को हवेली के आस पास सफाई शुरू करने को कहा और कार लेकर निकल गयी. हवेली से बाहर निकलते ही उसे सामने से तेज की कार दिखाई दी.

"चलो कम से कम वापिस तो आया" रूपाली ने मन ही मन सोचा और अपनी तरफ का शीशा नीचे किया. अपना हाथ बाहर निकलके उसने सामने से आते तेज को रुकने का इशारा किया

दोनो गाड़ियाँ एक दूसरे के पास आकर रुक गयी. तेज ने अपनी तरफ का शीशा नीचे किया

"पिताजी घर पर नही हैं. कोर्ट गये हैं" रूपाली ने तेज को बताया. तेज ने समझते हुए गर्दन हिलाई

"आज ज़मीन के केस की पहली तारीख है. अच्छा होता के आप भी उनके साथ चले जाते." रूपाली बोली

"आज नही" तेज ने जैसे बात टाल दी "अगली तारीख पर चला जाऊँगा. आप मुझे ये बताएँ के ये हवेली में लाश मिलने का क्या किस्सा है?"

"मैं फिलहाल कुच्छ काम से जा रही हूँ. आकर बताती हूँ." रूपाली ने कहा और अपनी गाड़ी का शीशा उपेर करने लगी.

तभी उसे कुच्छ याद आया और उसने फिर शीशा नीचे किए

"एक काम कीजिएगा. अगर आप घर पर ही हैं तो गाओं से कुच्छ आदमी बुलवाकर हवेली की सफाई का काम करवा लीजिए. परसो शुरू हुआ तो था पर कल कुच्छ नही हुआ"

"ठीक है" तेज ने कहा और गाड़ी आगे बढ़ा दी

रूपाली अपनी कार लेकर फिर बिंदिया के घर की और चल दी. उसने अपनी गाड़ी फिर वहीं पेड़ के पास छ्चोड़ दी और पैदल बिंदिया की झोपड़ी की तरफ चल दी. झोपड़ी के पास पहुँच कर वो बिंदिया को आवाज़ लगाने ही वाली थी के फिर कुच्छ सोचके मुस्कुराइ और दबे पावं आगे बढ़ती हुई झोपड़ी तक पहुँची.

बिंदिया की झोपड़ी में दरवाज़ा नही था सिर्फ़ दरवाज़े के नाम पर एक कपड़े को पर्दे की तरह टाँग दिया था. बिंदिया ने रूपाली को बताया था के उसके घर में ऐसा कुच्छ नही जो चोरी हो सके इसलिए उसने दरवाज़े के बारे में कभी नही सोचा था. रुपई दरवाज़े के पास पहुँची और परदा धीरे से एक तरफ हटके अंदर झाँका.

उसका शक सही निकला. उसने जो सोचा था झोपड़ी में वही हो रहा था. चंदर अपना पाजामा नीचे किए खड़ा था और बिंदिया उसके सामने बैठ कर उसका लंड चूस रही थी. वो उपेर से नंगी थी और नीचे बस अपना घाघरा पहना हुआ था. रूपाली उन दोनो को साइड से देख रही थी. किसी का मुँह रूपाली की तरफ नही था इसलिए किसी का ध्यान दरवाज़े की तरफ नही गया. रूपाली चुप चाप देखने लगी.

बिंदिया नीचे बैठी पूरे जोश में चंदर के लंड को मुँह में अंदर बाहर कर रही थी और एक हाथ से उसके अंडे सहला रही थी. उसका दूसरा हाथ अपनी छातियों पर था जिन्हें वो खुद ही दबाने में लगी हुई थी. तभी चंदर के मुँह से एक आह निकली

"नही" बिंदिया ने ऐसे कहा जैसे चंदे को रोकना चाहती हो और लंड मुँह से बाहर निकाला पर तब तक जैसे देर हो चुकी थी. चंदर के लंड ने पानी छ्चोड़ना शुरू कर दिया जो आधा बिंदिया के चेहरे पे गिरा और आधा उसके उपेर से नंगे जिस्म पर.

"अभी से पानी निकल दिया?" बिंदिया गुस्से में चंदर की तरफ देखते बोली "अब तुझे खड़ा करने में फिर आधा घंटा लगेगा और तब तक मैं परेशान होती रहूंगी"

उसने फिर चंदर का लंड मुँह में ले लिए और फिर खड़ा करने की कोशिश करने लगी.

रूपाली समझ गयी के अभी चुदाई का प्रोग्राम शुरू ही हुआ है और अभी टाइम लगेगा. दिल ही दिल में उसने फ़ैसला किया के जिस काम से वो आई थी उसके लिए बेहतर है के वो अकेले ही जाए. बिंदिया से वो जो बात करना चाहती थी वो बाद में आकर कर सकती है.

रूपाली ने एक आखरी नज़र लंड चूस रही बिंदिया पर डाली और दरवाज़े से हटकर फिर खेत की तरफ आई. बिंदिया ने उसे बताया था के जहाँ तक नज़र पड़ती थी वो सब ज़मीन ठाकुर साहब की ही थी पर जिस जगह को रूपाली ढूँढना चाहती थी उसे उसमें कोई मुश्किल नही हुई. खेत में पानी देने के लिए छ्होटे नाली जैसी जगह बनी हुई थी जिसमें से बहकर पानी खेत के हर कोने में जाता था. अब वो सूख चुकी थी क्यूंकी बरसो से यहाँ कोई खेती नही हुई थी. ऐसी ही एक नाली के साथ साथ चलती रूपाली वहाँ पहुँची जहाँ उसने आने की कल सोची थी. खेत में लगे ट्यूबिवेल और वहाँ बने कमरे पर.

बिंदिया ने उसे बताया था के यूँ तो खेत में कोई 50 के उपेर ट्यूबिवेल थे पर जहाँ उसका पति मरा था वो ट्यूबिवेल उसकी झोपड़ी से थोड़ी ही दूर था. और यहीं पर उसके पति ने कामिनी को चुद्ते हुए भी देखा था.

रूपाली कमरे तक पहुँची. कमरे पर ताला लगा हुआ था. रूपाली ने अपने पर्स से दोनो चाबियाँ निकाली और एक चाभी से ताला खोलने की कोशिश की. पुराना ताला था इसलिए थोड़ा ज़ोर लगाना पड़ा पर ताला फ़ौरन खुल गया.

रूपाली ने ताला खोलकर अपने हाथ में लिए और दूसरी चाभी से कोशिश की. उससे भी वो ताला खुल गया.

रूपाली आँखें खोले कभी कमरे की तरफ देखती तो कभी ताले की तरफ. तो ये चाभी इस कमरे की थी पर सवाल ये उठता था के असली किसके पास थी. इसकी नकल उस आदमी से गिरी थी जो हवेली में रात को चोरी च्छूपे आता था तो कौन था वो? बिंदिया का मर्द इस कमरे में आता था तो चाबी उसके पास तो ज़रूर होगी. तो क्या रात को वो ही हवेली में आता था पर क्यूँ? रूपाली के दिमाग़ में ऐसे कई सवाल उठ खड़े हुए पर सबसे ज़्यादा उसे एक सवाल परेशान कर रहा था.

बिंदिया ने बताया था के उसके मर्द ने यहाँ कामिनी को चुद्ते हुए देखा था तो मुमकिन है के कामिनी के प्रेमी के पास इसकी चाभी थी. तो क्या वो रात को हवेली में आता था? और वो था कौन? और उसके पास चाबी आई कैसे? असली किसके पास थी? और सबसे ज़रूरी सवाल ये था के अगर कामिनी यहाँ आती थी तो इसकी चाभी कामिनी के पास से मिलनी चाहिए थी पर उसे तो चाबी अपनी सास की साडी में बँधी हुई मिली थी. उनके पास ये चाभी क्या कर रही थी और ये चाभी इतनी ज़रूरी क्यूँ थी के वो इसे अपनी साडी से बाँधके हमेशा अपने पास रखा करती थी?

रूपाली ने कमरे के अंदर कदम रखा. कमरे में कुच्छ नही था. एक खाली कमरे और उसके बीचे बीच एक कुआँ जिसमें ट्यूबिवेल की नाल अंदर तक जा रही थी. रूपाली को याद आया के बिंदिया ने बताया था के इसी कमरे में उसका पति की मौत हुई थी. रूपाली ने कुच्छ पल और वहीं गुज़ारे और दरवाज़ा बंद करके बाहर आ गयी.

उसके दिमाग़ में हज़ारों सवाल उठ रहे थे. अपनी ही सोच में खोई हुई वो फिर बिंदिया की झोपड़ी की तरफ चल पड़ी. उसे बिंदिया से एक ज़रूरी बात और करनी थी.

बिंदिया ने उसे दूर से ही आता देख लिया था और झोपड़ी के बाहर खड़ी उसका इंतजार कर रही थी.

"कहाँ से आ रही हैं मालकिन?" उसने रूपाली से पुचछा

"ऐसे ही आगे तक का चक्कर लगाके आ रही हूँ. आई तो असल में तुझसे मिलने ही थी" रूपाली ने कमरे पर लगा ताला और अपने पास रखी दोनो चाबियों की बात च्छूपा ली

"जब मैं यहाँ आई तो तू और चंदर दोनो लगे हुए थे. इसलिए मैने सोचा के जब तक तुम अपना काम ख़तम करो मैं ज़रा आगे तक टहल आऊँ" रूपाली ने कहा तो बिंदिया मुस्करा दी

"तुम्हें और कोई काम नही है क्या? जब देखो लगे रहते हो" रूपाली झोपड़ी के अंदर आई और चारपाई पर बैठ गयी

"नया नया जवान लड़का है मालकिन." बिंदिया ने उसे पानी का ग्लास देते हुए कहा "लंड खड़ा होना शुरू ही हुआ था के घुसने के लिए छूट मिल गयी इसलिए खून बार बार गर्मी मरता है उसका. कल तो पूरी रात सोने नही दिया. मुझे तो याद भी नही के कितनी बार छोड़ा होगा उसने मुझे. तका दिया था मुझे और सुबह मेरी आँख भी तब खुली जब उसने फिर सुबह सुबह अपना लंड मेरी छूट में डाला. पहली पायल थी तो तोड़ा रुका रहता था पर अब वो नही है तो हर वक़्त चढ़ा रहता है मुझपर. उसका बस चले तो मुझे नंगी ही रखे 24 घंटे"

रूपाली ने पानी का ग्लास फिर बिंदिया को थमाया और उसे गौर से देखने लगी

"मेरे पास ज़्यादा वक़्त नही है. हवेली में कुच्छ काम करवाना है इसलिए वापिस जाना होगा. तेरे से एक ज़रूरी बात करनी है" उसने बिंदिया से कहा

"हां कहिए" बिंदिया ने भी गौर से उसकी बात सुनते हुए कहा

"एक बात बता. पायल अब जवान हो गयी है. कभी उसकी शादी की नही सोची तूने?" रूपाली ने सोच तो बिंदिया ने एक लंबी आह भारी

"कई बार सोचा है मालकिन पर सर के उपेर एक पक्की छत तो डाल नही सकी आज तक, शादी का खर्चा कैसे उठाऊंगी समझ नही आता. और कौन करना चाहेगा उस ग़रीब की लड़की से शादी"

"मेरे पास एक रास्ता है अगर तू हाँ कह दे तो" रूपाली ने अपना हर लफ्ज़ ध्यान से चुना "अगर तू मेरी बात मान ले तो तेरे सर पर पक्की छत भी आ जाएगी, तेरी बेटी की शादी भी हो जाएगी और अपनी बाकी की ज़िंदगी तू ऐश से रहेगी"

"कैसे?" बिंदिया ने उतावली होते हुए पुचछा

"देख तू तो जानती ही है के ठाकुर साहब का कारोबार और सब ज़मीन जयदाद किस हाल में है. उनका परिवार भी खुद उनके साथ नही है. मैं चाहती हूँ के सब कुच्छ पहले के जैसा हो जाए और हमारा परिवार वापिस साथ में आ जाए" रूपाली ने कहा

बिंदिया ने हां में सर हिलाया

"कभी कभी सही चीज़ को हासिल करने के लिए ग़लत रास्ते पर जाना पड़ता है और ऐसा ही कुच्छ करना पड़ रहा है फिलहाल मुझको. मैं चाहती हूँ के मेरा दूसरा देवर तेज हवेली वापिस आ जाए. वो कभी कभी महीनो घर से गायब रहता है पर मैं चाहती हूँ के वो वहीं हवेली में रहकर अपने कारोबार पर ध्यान दे, अपने पिता का हाथ बटाये पर इसके लिए ज़रूरी है उसे हवेली में रोकना" रूपाली ने बात जारी रखी

बिंदिया ने फिर हां में सर हिलाया

"मैं अच्छी तरह से जानती हूँ के तेज इतना पैसा कहाँ उड़ा रहा है और उसकी रातें कहाँ गुज़रती हैं. औरतों का शौकीन है वो" रूपाली ने कहा

"ये बात तो पूरा इलाक़ा जनता है मालकिन" बिंदिया ने अपनी बात जोड़ी

"हां. इसलिए मैने सोचा के तेज को रोकने का सबसे अच्छा तरीका ये है के जिस चीज़ के लिए वो बाहर मुँह मारता फिरता है वो उसे घर में ही हासिल हो जाए" रूपाली धीरे धीरे मतलब की बात पर आ रही थी

"मैं समझी नही" बिंदिया ने कहा

"एक औरत. एक चूत जो उसके लिए हर वक़्त हासिल हो. अगर तू हवेली में आकर रहने को राज़ी हो जाए और बिस्तर पर तेज को खुश रखे तो मैं तुझे हवेली के कॉंपाउंड में ही रहने के लिए कमरा दे दूँगी, पैसे दूँगी और तेरी बेटी की शादी का सारा खर्चा मैं उठाओँगी" रूपाली ने आखरी चोट की

बिंदिया के चेहरे से जैसा रंग उड़ गया. वो आँखे फाडे रूपाली को देखने लगी.

"आप जानती हैं आप क्या कह रही है?" बिंदिया ने रूपाली को देखते हुए कहा

"हां मैं जानती हूँ मैं क्या कह रही हूँ......." रूपाली ने कहा ही था के बिंदिया ने उसकी बात काट दी

"नही आप नही जानती मालकिन. आप मुझे एक रंडी बनने को कह रही हैं. अपने जिस्म का सौदा करने को कह रही हैं. आपने सोचा के मैं चंदर से चुदवा लेती हूँ तो किसी से भी चुदवा लूँगी पर आपने ग़लत सोचा" बिंदिया गुस्से में बोली

"ठीक है" रूपाली ने कहा " हां मैं तुझे कह रही हूँ के तू अपने जिस्म का सौदा कर. इसे अपने पास रखके आज तक कर भी क्या लिया तूने. एक पुरानी झोपड़ी में रह रही है. 17-18 साल के एक लड़के से अपने जिस्म की आग को ठंडा कर रही है ना अपने जिस्म पे ढंग के कपड़े डाल सकी ना अपनी जवान होती बेटी के."

बिंदिया चुप रही

"देख बिंदिया. मैं ये बात तुझसे इसलिए कह रही हूँ क्यूंकी मेरा तेरा रिश्ता दोस्ती जैसा है. तू मेरे काम आ और मैं तेरे काम आऊँगी. जितना पैसा चाहिए दूँगी. और मैं तुझे कौन सा कहीं कोठे पे जाके बैठने को कह रही हूँ. बस एक तेज का तुझे ध्यान रखना होगा. वो जब कहे बिना इनकार के कपड़े उतारने होंगे. उसके बदले में मैं तेरी ज़िंदगी बदल दूँगी. दो वक़्त का खाना बिना किसी तकलीफ़ के, सर पर छत, मुँहमांगा पैसा और तेरी बेटी की बेहतर ज़िंदगी. सोच ले बिंदिया. अपने नही तो अपनी बेटी के बारे में सोच." रूपाली ने बिंदिया को समझाते हुए कहा

"पर मैं ही क्यूँ?" बिंदिया ने पुचछा तो रूपाली समझ गयी के वो धीरे धीरे लाइन पे आ रही है.

"इसलिए के तू हमारे खानदान की वफ़ादार है. तू खूबसूरत है, तेरा जिस्म तो एक 17 साल के लड़के को भी दीवाना बना सकता है" रूपाली ने कहा तो बिंदिया समझ गयी के वो चंदर की तरफ इशारा कर रही है और धीरे से मुस्कुरा दी. रूपाली समझ गयी की बात बन चुकी है. उसे अंदाज़ा नही था के बिंदिया इतनी आसानी से मान जाएगी

"कल जब तू हवेली से निकली तो तेज पलटकर तुझे जाते हुए देख रहा था. नज़र तेरी गान्ड पर थी. तब मुझे ये तरकीब सूझी थी. बोल क्या कहती है?" रूपाली ने कहा

"पर चंदर?" बिंदिया ने फिर सवाल किया

"अरे चंदर को भी साथ ले आना. वहीं हवेली में रह लेगा और काम में हाथ बटा देगा. इसे भी कुच्छ पैसे दे दिया करूँगी मैं." रूपाली बोली "और फिर तेरे भी मज़े हो जाएँगे. सारा दिन कभी चंदर तो कभी तेज"

रूपाली ने हस्ते हुए कहा तो बिंदिया भी साथ हस्ने लगी

"मुझसे सोचने के लिए कुच्छ वक़्त चाहिए मालकिन" बिंदिया ने कहा तो रूपाली ने फ़ौरन हां कर दी

"सोच ले" वो कहती हुई उठी और झोपड़ी से बाहर निकली "तू नही तो मैं और किसी को ले आऊँगी. तू अच्छी तरह से जानती है के गाओं में कोई भी लड़की मेरी इस शर्त पर हवेली में आ जाएगी. पर मैं चाहती हूँ के तू आए"

रूपाली ने बात ख़तम की और बिना बिंदिया के जवाब का इंतेज़ार किए अपनी कार की तरफ चल पड़ी. अपने दिल में वो जानती थी बिंदिया का जवाब हां ही है और वो हवेली ज़रूर आएगी.

हवेली पहुँचकर रूपाली का गुस्सा सातवे आसमान पर पहुँच गया. वो जानते हुए तेज को जो काम कहकर गयी थी वो तो क्या शुरू होता खुद तेज फिर से गायब था. गुस्से में पैर पटकती रूपाली ने हवेली में कदम रखा तो सामने भूषण मिला

"तेज कहाँ है?" उसने भूषण से पुचछा

"पता नही. वो तो आपके जाने के थोड़ी देर बाद आए और फ़ौरन कहीं चले गये" भूषण ने जवाब दिया

"ह्म्‍म्म्म" रूपाली का गुस्से का घूँट पीते हुए कहा "पायल कहाँ है?"

"उपेर अपने कमरे में" भूषण ने जवाब दिया. रूपाली का गुस्सा उसे भी सॉफ नज़र आ रहा था इसलिए काफ़ी धीमी आवाज़ में जवाब दे रहा था

रूपाली उपेर अपने कमरे में पहुँची. सॉफ ज़ाहिर था के तेज को आवारापन बंद करना उतना आसान नही था जितना वो सोच रही थी. उसे जो भी करना था जल्दी करना था. तेज उसके कहने से हवेली में रुक तो गया था पर कब तक रुकेगा ये बात वो खुद भी नही जानती थी. रूपाली की समझ नही आ रहा था के क्या करे. बिंदिया से तेज के बारे में बात करने से पहले रूपाली ने लाख बार सोचा था. अगर बिंदिया ना मानती और इस बात का जिकर किसी और से कर देती के भाभी खुद अपने देवर के लिए चूत ढूँढती फिर रही है तो रूपाली कहीं की ना रहती. ये बात अगर ठाकुर साहब या खुद तेज के कानो में पड़ जाती तो खुद अपने ही घर में रूपाली की इज़्ज़त मिट्टी में मिल सकती थी.इसी सोच में उसने अपने कमरे के बीच का दरवाज़ा खोला और पायल के कमरे में आई. पायल अपने कमरे में बेख़बर सोई पड़ी थी.
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#25
Update 21


रूपाली ने पायल पर एक भरपूर नज़र डाली. उसके प्लान का एक हिस्सा तो कामयाब हो चुका था. बिंदिया को उसने बॉटल में उतार लिया था पर वो जानती थी के तेज उन मर्दों में से नही जो एक औरत तक सिमटकर रह जाएँ. वो भले कुच्छ दिन शौक से बिंदिया को चोद लेता पर दिल भरते ही फिर चलता बनता. रूपाली अच्छी तरह जानती थी के उसके लिए उसे एक और चूत का इंतज़ाम करना पड़ेगा और वो चूत उसे उस वक़्त पायल में नज़र आ रही थी. अगर एक ही घर में एक भरी हुई औरत और एक कमसिन कली एक साथ चोदने को मिले और वो भी दोनो माँ बेटी तो वो ज़रूर तेज को घर पर ही रोक सकती थी और इसी दौरान उसे उसका ध्यान अपने कारोबार की तरफ मोड़ने का वक़्त मिल सकता था. पर उसे जो भी करना था जल्दी करना था. वो ये भी अच्छी तरह जानती है के पायल भले ही जिस्म से एक पूरी औरत हो गयी थी पर थी वो अभी बच्ची ही. उसे पायल के साथ जो भी करना था बहुत सोच समझकर और पूरे ध्यान से करना था वरना बात बिगड़ सकती थी.

उसने पायल को आवाज़ देकर जगाया. पायल हमेशा की तरह घोड़े बेचकर सो रही थी. रूपाली ने बड़ी मुश्किल से उसे आवाज़ दे देकर जगाया. पायल ने उठकर उसकी तरफ देखा.

"कितना सोती है तू?"रूपाली ने थोड़ा गुस्से से कहा

"माफ़ करना मालकिन" पायल फ़ौरन उठ खड़ी हुई

"हाथ मुँह धो और नीचे पहुँच. मुझे हवेली के नीचे वाले हिस्से की सफाई करवानी है. बरसो से उधर कोई गया भी नही." रूपाली ने कहा और अपने कमरे में आ गयी.

हवेली के नीचे एक बेसमेंट बना हुआ था जिसका दरवाज़ा हवेली के पिछे की तरफ था.वो हिस्सा ज़्यादातर पुराना समान रखने के लिए स्टोर रूम की तरह काम आता था. इस हवेली में जो भी चीज़ एक बार आई थी वो कभी बाहर नही गयी थी. इस्तेमाल हुई और फिर नीचे स्टोर रूम में रख दी गयी. पुराना फर्निचर, कपड़ो से भरे पुराने संदूक बेसमेंट में भरे पड़े थे. रूपाली उस हिस्से की भी तलाशी लेना चाहती थी और क्यूंकी इस वक़्त घर पर कोई नही था, तो ये वक़्त उसे इस काम के लिए बिल्कुल ठीक लगा पर बेसमेंट में अकेले जाते उसे डर लग रहा था. बरसो से वहाँ नीचे किसी ने कदम नही रखा था इसलिए उसने अपने साथ पायल को ले जाने की सोची.

थोड़ी देर बाद रूपाली बेसमेंट की चाभी लिए हवेली के पिच्छले हिस्से में पहुँची. उसके साथ पायल थी जिसके हाथ में टॉर्च थी. रूपाली ने बेसमेंट का दरवाज़ा खोला. सामने नीचे की और जाती सीढ़ियाँ था और घुप अंधेरा होने की वजह से 10-12 सीढ़ियों से आगे कुच्छ नज़र नही आ रहा था.

"यहाँ तो बहुत अंधेरा है मालकिन" पायल ने कहा

"तो ये टॉर्च क्या तू गिल्ली डंडा खेलने के लिए लाई है?" रूपाली ने चिढ़ते हुए कहा और पायल के हाथ से टॉर्च लेकर आगे बढ़ी.

रूपाली धीरे धीरे सीढ़ियाँ उतरती नीचे पहुँची. उसके पिछे पिछे पायल भी नीचे आई. रूपाली ने नीचे आकर टॉर्च को चारों तरफ घुमाया. हर तरफ पुराना फर्निचर, पुराने बेड्स, कुच्छ पुराने बॉक्सस और ना जाने क्या क्या भरा हुआ था. हर चीज़ पर बेतहाशा धूल चढ़ि हुई थी. मकड़ियों ने चारो तरफ जाले बना रखे थे. रूपाली ने टॉर्च की लाइट चारो तरफ घुमाई. उसका अंदाज़ा सही निकला. नीचे बेसमेंट में भी लाइट का इंतज़ाम था. स्विच दरवाज़े के पास ही था. ये रूपाली की किस्मत ही थी के बेसमेंट के बीच लगा बल्ब अब भी काम कर रहा था और स्विच ऑन होते ही फ़ौरन जल उठा. हर तरफ रोशनी फेल गयी.

रूपाली आज पहली बार इस बेसमेंट में आई थी. उसने जितना बड़ा सोचा था बस्मेंट उससे कहीं ज़्यादा बड़ा था पर आधा हिस्सा खाली था. सारा पुराना समान हवेली के एक हिस्से में काफ़ी सलीके से लगाया हुआ था.

"यहाँ की सफाई तो बहुत मुश्किल है मालकिन" पायल ने कहा तो रूपाली उसकी तरफ पलटी.

पायल ने एक सफेद रंग की कमीज़ पहेन रखी थी. बहुत ज़्यादा गर्मी होने की वजह से वो दोनो ही पसीने से बुरी तरह भीग गयी थी. पायल की कमीज़ पसीने से भीग जाने के कारण उसके शरीर से चिपक गयी थी और उसके काले रंग के निपल्स कमीज़ के उपेर से नज़र आ रहे थे.

"तुझे मैने वो ब्रा क्या समान तोलने के लिए दे रखी हैं?" उसने पायल से पुचछा. "पहेनटी क्यूँ नही?"

पायल ने अपने सीने की तरफ देखा तो समझ गयी के रूपाली क्या कह रही थी. उसने फ़ौरन हाथ से पकड़के कमीज़ को झटका जिससे वो उसके जिस्म से अलग हो गयी

"पहेनटी क्यूँ नही है?" रूपाली ने दोबारा पुचछा

"जी वो बहुत फसा फसा सा महसूस होता है" पायल ने कहा

"अब तूने इतनी सी उमर में ये इतनी बड़ी बड़ी लटका ली हैं तो टाइट तो लगेगा ही. बिना उसे पहने घर में घूमेगी तो सबसे पहले नज़र तेरी इन हिलती हुई चूचियों पर जाएगी सबकी. घर में ठाकुर साहब होते हैं, तेज होता है, भूषण काका हैं. शरम नही आती तुझे?" रूपाली पायल को डाँट रही थी और वो बेचारी खड़ी चुप चाप सुन रही थी.

"जी अबसे पहना करूँगी" पायल ने जैसे रोते हुए जवाब दिया

पायल ने फिर चारों तरफ बेसमेंट पर नज़र डाली. उसे समझ नही आ रहा था के कहाँ से सफाई शुरू करवाए.

"चल एक काम कर. वो कपड़ा उठा वहाँ से और इन सब चीज़ों पर से सबसे पहले धूल झाड़ कर सॉफ कर. झाड़ू बाद में लगाते हैं" उसने पायल से कहा

पायल गर्दन हिलाती आगे बढ़ी और झुक कर सामने रखा कपड़ा उठाया

"क्या कर रही है?" रूपाली ने कहा तो वो फिर पलटी और सवालिया नज़र से उसकी तरफ देखने लगी. वो तो वही करने जा रही थी जो रूपाली ने उसे करने को कहा था

"ये जो कपड़े तूने पहेन रखे हैं ना तेरी माँ ने नही दिए तुझे. मैने दिए हैं. मेरी ननद के हैं और बहुत महेंगे हैं. इन्हें पहेंकर सफाई करेगी तो ये फिर पहेन्ने लायक नही बचेंगे" रूपाली ने कहा

पायल बेवकूफ़ की तरह उसकी तरफ देखने लगी. पायल क्या कहना चाह रही थी ये उसकी समझ में नही आ रहा था

"अरे बेवकूफ़ अपनी कमीज़ उतारकर एक तरफ रख और फिर सफाई कर" रूपाली ने कहा

पायल पर जैसे किसी ने पठार मार दिया हो.

"जी?" उसे ऐसे पुचछा जैसे अपने कानो पर भरोसा ना हुआ हो

"क्या जी?" रूपाली ने कहा "चल उतार जल्दी और काम शुरू कर"

"पर" पायल हिचकिचाते हुए बोली "मैने अंदर कुच्छ नही पहेन रखा"

"हां पता है. देखा था मैने अभी" रूपाली ने कहा "तो क्या हुआ? यहाँ कौन आ रहा है तेरी चुचियाँ देखने? यहाँ या तो मैं हूँ या तू है. और रही मेरी बात तो जैसी 2 तेरे पास हैं वैसी ही मेरे पास भी हैं. चल उतार अब"

पायल अब भी रूपाली की तरफ देखे जा रही थी. जब वो थोड़ी देर तक नही हिली तो रूपाली ने गुस्से से उसकी तरफ घूरा

"तू उतार रही है या ये काम मैं करूँ?"

पायल ने जब देखा के रूपाली का कहा उसे मानना पड़ेगा तो उसे कपड़ा एक तरफ रखा और अपनी कमीज़ उतार दी. वो उपेर से बिल्कुल नंगी हो गयी. बड़ी बड़ी पसीने में भीगी उसकी दोनो चूचियाँ आज़ाद हो गयी.

"ला ये मुझे पकड़ा दे" रूपाली ने उसके हाथ से कमीज़ लेते हुए कहा.....
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#26
Update 22

पिछले भाग मैं आपने पढ़ा था रूपाली पायल को लेका बेसमेंट की सफाई के लिए जाती है रूपाली पायल की कमीज़ उतरवा देती है ओर फिर उसे सफाई के लिए कहती है अब आगे........

पायल ने कपड़ा लेकर समान पर धीरे धीरे मारते हुए धूल हटानी शुरू की. बरसो की चढ़ि हुई धूल फ़ौरन हवा में उड़ने लगी और पायल ख़ासने लगी.

"इधर आ" रूपाली ने उसे अपने पास बुलाया

पायल उसके सामने आकर खड़ी हो गयी. रूपाली ने अपने गले से दुपट्टा हटाया और उसके मुँह पर इस तरह बाँध दिया की उसकी नाक और मुँह ढक गये. दुपट्टा बाँधते हुए वो रूपाली के ठीक सामने खड़ी थी और रूपाली चाहकर भी अपनी नज़रें उसकी चूचियों से नही हटा पर रही थी.

पायल ने दोबारा सफाई करनी शुरू की. रूपाली दो कदम पिछे हटकर खड़ी उसे देख रही थी. पहले तो पायल एक हाथ से सफाई कर रही थी और दूसरा हाथ अपनी चूचियों पर रखा हुआ था पर जब रूपाली ने टोका तो उसने दूसरा हाथ भी हटा लिया और चूचियाँ खुली छ्चोड़ दी.

रूपाली उसके पिछे खड़ी उसे देख रही थी. पायल पसीने में पूरी तरह भीग चुकी थी और उसकी सलवार भी उसके जिस्म से चिपक गयी थी. रूपाली उसे तकरीबन नंगी हालत में देखते हुए उसका जिस्म उसकी माँ बिंदिया से मिलने लगी. पायल भी अपनी माँ बिंदिया की तरह अच्छी कद काठी में ढली हुई थी. उसमें देखने लायक बात ये थी के वो भी अपनी माँ की तरह एकदम ढली हुई थी. दोनो का बदन एकदम गठा हुआ था और कहीं भी हल्के से भी मोटापे का निशान नही था. पायल अपनी माँ से भी दुबली पतली थी पर जिस चीज़ में वो अपनी माँ और खुद रूपाली को भी हरा देती थी वो थी उसकी चूचियाँ जो उसकी उमर के हिसाब से कहीं ज़्यादा बड़ी हो गयी थी. रूपाली ने उसकी चूचियो को घूरकर देखा और अंदाज़ा लगाया के पायल की चूचियाँ उससे भी ज़्यादा बड़ी थी. बिंदिया पायल से थोड़ी लंबी थी और दिन रात चुदने के कारण उसकी गान्ड थोड़ी बाहर निकल गयी थी.

काफ़ी देर तक रूपाली इस सोच में डूबी रही और पायल धूल झाड़ने में. अचानक रूपाली की नज़र कमरे में रखे एक बॉक्स पर पड़ी. बॉक्स पर कोई ताला नही था. उसने पायल को रुकने को कहा और बॉक्स के पास पहुँची और उसे खोला.

बॉक्स में कुच्छ कपड़े रखे हुए थे. देखने से लग रहा था के काफ़ी अरसे से यहीं पड़े हैं. खुद उसे पता नही था के किसके हैं पर एकदम ठीक हालत में थे. उसने कुच्छ सोचा और पायल की तरफ मूडी.

"क्या लगता है? तुझे ये कपड़े आ जाएँगे?" उसने पायल से पुचछा

"पता नही" पायल ने कंधे उचका दिए. उसने अपना एक हाथ फिर अपनी चूचियों पर रख लिया था. जिस्म पसीने से भीगा होने की वजह से धूल उसके जिस्म से चिपक गयी थी.

"पहेनके देख" उसने सबसे उपेर रखी एक चोली उठाकर पायल की तरफ बधाई. पायल ने हाथ बढाकर चोली ली और देखने लगी के कहाँ से पहने. अचानक रूपाली ने उसे रोक लिया

"तेरे पूरे जिस्म पर धूल लगी हुई है. ऐसे मत पहेन" उसने पायल से कहा तो पायल रुक कर अपने आपको देखने लगी.

रूपाली ने बॉक्स में से एक कपड़ा निकाला जो देखने में एक पुराने दुपट्टे जैसा लगता था.

"इधर आ" उसने पायल को इशारा किया

पायल ने अपनी चूचियों को हाथ से ढक रखा था. रूपाली ने उसका हाथ झटक कर एक तरफ कर दिया और उसके मुँह से अपना दुपट्टा खोलकर एक तरफ रख दिया

"हाथ उपेर कर" उसने पायल के हाथ पकड़कर उसके सर के उपेर कर दिया. पायल के दोनो चूचियों उपेर को खींच गयी और वो हाथ उपेर किए अजीब नज़रों से रूपाली को देखने लगी.

रूपाली ने हाथ में पकड़े कपड़े से उसके बदन पर लगी धूल सॉफ करनी शुरू कर दी. पहले पायल का चेहरा, फिर उसकी गर्दन, फिर हाथ और फिर वो धीरे से कपड़ा पायल की चूचियों पर फेरने लगी.

"मालकिन मैं कर लूँगी" कहते हुए पायल ने अपने हाथ नीचे किए

"खड़ी रह चुप छाप" पायल ने गुस्से से कहा तो उस बेचारी ने फिर अपने हाथ उपेर कर लिए

रूपाली ने फिर उसकी चूचियों पर कपड़ा फेरना शुरू कर दिया. उसने महसूस किया के पायल की चूचियों बहुत मुलायम थी जबकि उसकी अपनी इतनी ज़्यादा नही थी. उसने एक एक करके दोनो चूचियों पर कपड़ा फेरा तो धूल हट गयी पर रूपाली नही हटी. उसे पायल की चूचियों पर कपड़ा फेरने में बहुत मज़ा आ रहा था. धीरे से उसने अपने दूसरे हाथ को भी छाति पर लगाया. एक हाथ से उसने चुचि पकड़ी और दूसरे हाथ से सॉफ करने लगी. पायल की चूचियाँ बहुत बड़ी होने की वजह से अपने ही वज़न से नीचे को ढालकी हुई थी. रूपाली ने अपने हाथ से दोनो चूचियों को बारी बारी उठाया और उनके नीचे कपड़ा फेरने लगी.

सॉफ करना तो बस अब एक बहाना रह गया था. रूपाली सफाई के बहाने पायल की दोनो चूचियों को लगभग रगड़ रही थी. कपड़े से कम अपने हाथ से ज़्यादा. उसने महसूस किया के पायल की चूचियाँ तो काफ़ी बड़ी थी पर निपल्स नाम भर के लिए ही थे बस. वो उसके निपल्स को अपनी उंगलियों के बीचे में पकड़ कर धीरे धीरे घुमाने लगी. पायल के मुँह से एक आह निकली तो रूपाली ने उसके चेहरे की तरफ देखा. पायल हाथ उपेर किए चुप चाप खड़ी थी और उसने अपनी आँखें बंद कर रखी थी. रूपाली को समझ नही आया के पायल को मज़ा आ रहा था या उसने शरम से आँखें बंद कर ली थी. खुद उसकी हालत तो ये थी के चूत गीली होनी शुरू हो गयी थी. रूपाली को खुद अपने उपेर हैरत हो रही थी के वो एक लड़की के जिस्म को ऐसे सहला रही थी जैसे खुद कोई मर्द हो. उसे पायल का नंगा जिस्म देखने में मज़ा आ रहा था जबकि खुद उसके पास भी वही था जो पायल के पास.

पायल की चूचियों से थोड़ी देर खेलने के बाद उसने नज़र नीचे की और धीरे से उसके पेट पर हाथ फेरा. पायल अब उसे कुच्छ नही कह रही थी. बस आँखें बंद किए चुप चाप खड़ी थी पर हां उसकी साँस थोड़ी तेज़ हो गयी थी. रूपाली ने हल्का सा पिछे होकर उसकी टाँगो के बीच नज़र डाली. पसीने से भीगी होने की वजह से पायल की सलवार उसकी चूत के उपेर चिपक गयी थी. रूपाली ने देखा के उसने अंदर पॅंटी भी नही पहनी हुई थी और चूत के बाल सलवार के उपेर से नज़र आ रहे थे. रूपाली के दिल में अचानक पायल को पूरी तरह नंगी देखने के चाह उठी.

इसमें कुच्छ ल़हेंगे और सलवार भी हैं. तू वो भी पहन के देख सकती है के तुझे आएँगे या नही" रूपाली ने कहा और पायल की तरफ देखा. पायल कुच्छ ना बोली और ना ही उसने अपनी आँखें खोली.

रूपाली आगे बढ़ी और उसने पायल की सलवार का नाडा खोल दिया

"मालकिन" इस बार पायल पर फ़ौरन असर हुआ. उसने अपने हाथ जल्दी से नीचे किया और घुटनो तक सरक चुकी सलवार को उपेर कमर तक खींचा

"क्या हुआ? ये सलवार क्या इसके उपेर ही पहेनके देखेगी?" रूपाली ने कहा

"मैं बाद में देख लूँगी मालकिन. आप मुझे दे दीजिए" पायल ने जल्दी से कहा

"मेरे सामने ही देख. सारे के सारे तुझे थोड़े दे दूँगी. मुफ़्त का माल है क्या. दो तीन पहनके देख ले और जो सही आते हैं वो रख लेना. कुच्छ अपनी माँ के लिए भी निकाल लेना" रूपाली ने कहा

"मैं बाद में देख लूँगी" पायल अपनी सलवार छ्चोड़ने को तैय्यार नही थी. उसने खुली हुई सलवार को ऐसे पकड़ रखा था जैसे रूपाली उसके साथ बलात्कार करने वाली हो. रूपाली को गुस्सा आने लगा.

वो आगे बढ़ी, पायल को कंधे से पकड़ा और उसे लगभग धक्का देते हुए दीवार के साथ लगाके खड़ा कर दिया. पायल की कमर पिछे दीवार के साथ जा लगी.

"छ्चोड़ इसे" उसने पायल के हाथ पकड़कर फिर ज़बरदस्ती उसके सर के उपेर कर दिए. सलवार सरक कर पायल के पैरों में जा गिरी. वो हाथ उपेर किए रूपाली के सामने मादरजात नंगी खड़ी थी.

रूपाली ने बॉक्स में से एक सलवार निकाली और उसे पायल की कमर से लगाकर देखने लगी

"ये ठीक लग रही है" कहते हुए उसने सलवार एक तरफ रखी और ऐसे ही दो तीन कपड़े निकालकर पायल की जिस्म पर लगा लगाकर देखने लगी. पायल ने फिर आँखें बंद कर ली थी.

"अरे आँखें खोल ना" उसने पायल से कहा तो पायल ने इनकार में सर हिला दिया

"हे भगवान" रूपाली ने थोडा सा गुस्से में कहा और पायल के करीब आई "मुझसे क्या शर्मा रही है. मैं एक औरत हूँ मर्द नही. मेरे पास भी वही है जो तेरे पास है"

पायल ने फिर भी आँख नही खोली.

"वैसे एक बात कहूँ पायल" रूपाली इस बार थोड़े नरम लहज़े में बोली "शुक्र माना के मैं औरत हूँ. तू नंगी इतनी सुंदर लगती है ना के मैं अगर मर्द होती तो तेरे साथ यहीं सुहग्रात मना लेती"

कहकर रूपाली हसी तो इस बार उसने देखा के पायल पहली बार मुस्कुराइ

"अब तो आँखें खोल दे" रूपाली ने कहा तो पायल ने धीरे से अपनी आँखें खोली. रूपाली उसके ठीक सामने खड़ी थी. दोनो की नज़रें एक दूसरे से मिली. ना रूपाली कुच्छ बोली और ना ही पायल. बस दोनो एक दूसरे कुच्छ पल के लिए देखती रही. फिर ना जाने रूपाली के दिल में क्या आई के वो दो कदम पिछे हटी और सामने खड़ी पायल को सर से पैर तक नंगी देखने लगी. जैसे किसी खरीदी हुई चीज़ को अच्छी तरह से देख रही हो. इस बार पायल भी कुच्छ नही बोली और ना ही उसने अपनी आँखें बंद की. हाथ तक नीचे नही किए. वैसे ही हाथ उपेर किए नंगी खड़ी रही. रूपाली फिर थोड़ा आगे आई और धीरे से एक हाथ पायल की चूत पर रखा. पायल सिहर उठी पर बोली कुच्छ नही. ना ही रूपाली का हाथ अपनी चूत से हटाया.

"ये बाल क्यूँ नही हटा ती यहाँ से?"रूपाली ने पायल से पुचछा तो पायल उसकी तरफ चुप चाप देखने लगी. उसकी आँखें चढ़ गयी थी जिससे रूपाली को अंदाज़ा हो गया के उसे मज़ा आ रहा है. रूपाली ने धीरे धीरे अपना हाथ चूत पर उपेर नीचे फेरना शुरू किया. उसे यकीन नही हो रहा था के उसके अंदर का एक हिस्सा ऐसा भी है जो एक औरत के साथ भी जिस्म का मज़ा ले सकता है. वो चुपचाप पायल की चूत रगड़ती रही और दूसरा हाथ उसकी छातियों पर फेरना शुरू कर दिया. अब पायल की आँखें बंद होने लगी थी और उसने ज़ोर ज़ोर से साँस लेनी शुरू कर दी थी. रूपाली ने उसके चेहरे से नज़र हटाकर उसकी छाती पर डाली और पायल के छ्होटे छोटे निपल्स को देखा. फिर अगले ही पल उसने दो काम किए. पहला तो ये के नीचे को झुक कर पायल का एक निपल अपने मुँह में ले लिया और दूसरा नीचे से अपनी एक अंगुली पायल की चूत के अंदर घुसा दी.

"मालकिन" चूत में अंगुली घुसते ही पायल इतनी ज़ोर से हिली के रूपाली भी लड़खड़ाके गिरते गिरते बची. वो पायल से थोड़ी दूर होके संभली और खुद को गिरने से रोका.

"दर्द होता है मालकिन" पायल ने रूपाली से कहा पर रूपाली अब उसकी तरफ नही देख रही थी. उसकी नज़र कमरे में एक कोने में रखे एक दूसरे बॉक्स पर थी.

वो बॉक्स बाकी सब समान के बिल्कुल पिछे एक कोने में रखा हुआ था. देखकर ही लगता था के उसे च्छुपाने की कोशिश की गयी है. बॉक्स रखकर उसके सामने बाकी सब फर्निचर और दूसरा समान खींचा गया है. पर जिस वजह से रूपाली का ध्यान उस बॉक्स की तरफ गया था वो उस बॉक्स पर लगा ताला था. कमरे में और किसी बॉक्स पर ताला नही था. पुराने बेकार पड़े समान पर ताला लगाकर कोई करता भी क्या पर ना जाने क्यूँ उस बॉक्स पर ताला था. और उसे देखके पता चलता था के वो बाकी के बॉक्सस के मुक़ाबले नया था.

"मालकिन" पायल फिर बोली तो रूपाली ने उसकी तरफ देखा. पायल अब भी वैसे ही नंगी खड़ी थी. उसने कपड़े पहेन्ने की कोई कोशिश नही की थी.

"तू एक काम कर. इसमें से कुच्छ कपड़े उठा ले और कपड़े पहेनकर उपेर जा. मैं आती हूँ" रूपाली ने कहा

"पर बाकी का काम?" पायल ने कमरे पर निगाह घूमाते हुए कहा

"दिन ढलना शुरू हो गया है. पिताजी भी आते होंगे. बाकी कल देखते हैं. तू चल. मैं आती हूँ थोड़ी देर बाद" रूपाली ने पायल को जाने का इशारा किया.

पायल ने बॉक्स से कुच्छ कपड़े उठाए, अपने कपड़े पहने और सीढ़ियाँ चढ़ती बस्मेंट से निकल गयी.

पायल के जाने के बाद रूपाली ने अपने कपड़े ठीक किए और बाकी रखे समान के बीच से होती बॉक्स तक पहुँची.

वो बॉक्स एक कपड़े रखने का पुराने ज़माने के संदूक जैसा बड़ा सा लड़की का बना हुआ था.काफ़ी वक़्त से रखा होने की वजह से उसपर भी धूल चढ़ गयी थी. उसपर पीतल का कुण्डा और चारो तरफ पीतल की ही बाउंड्री सी हो रखी थी. उस पीतल को देखकर ही मालूम पड़ता था के ये संदूक बाकी सारे बॉक्सस के मुक़ाबले यहाँ कम वक़्त से है. पर जिस बात से रूपाली की नज़र उसपर थी वो ये थी के इस पर ताला क्यूँ था.अगर इसमें भी बाकी के बॉक्सस की तरह पुरानी चीज़ें थी तो ताला लगाने की क्या ज़रूरत थी. घर में अब सिर्फ़ एक तरह से 2 ही लोग थे. वो और ठाकुर. उसका वो बॉक्स था नही और ठाकुर साहब के चीज़ें यहाँ ताले में क्यूँ पड़ी होंगी. एक पल के लिए उसके दिल में ठाकुर से पुच्छने का ख्याल आया पर अगले ही पल उसने वो ख्याल खुद दिल से निकाल दिया. वो पहले खुद उस बॉक्स को खोलकर देखना चाहती थी.

रूपाली ने आस पास नज़र दौड़ाई ताकि कुच्छ ऐसी चीज़ मिल जाए जिससे वो ताला तोड़ सके. वो अभी ढूँढ ही रही थी के पायल फिर सीढ़ियाँ उतारकर नीचे आई.

"ठाकुर साहब आ गये हैं. आपको याद कर रहे हैं" उसने रूपाली से कहा

रूपाली बॉक्स को बाद में खोलने का इरादा बनके उसके साथ हवेली के अंदर आई. खुद वो भी पूरी धूल में सनी हुई थी. उसे देखकर ठाकुर हस्ने लगे.

"ये क्या हाल बना रखा है?"

"सफाई करने की कोशिश कर रही थी" रूपाली ने उन्हें देखते ही चेहरे पर घूँघट डाल लिया क्यूंकी पायल साथ थी.

"अरे तो ये काम खुद करने की क्या ज़रूरत थी. कल तक रुक जाती. हम नौकर बुलवा देते" ठाकुर ने कहा

"रुक ही गयी हूँ. अब तो कल ही होगा. कोशिश थी के मैं और पायल मिलकर कर लें पर बहुत मुश्किल है" रूपाली ने जवाब दिया

"ह्म्‍म्म्म " ठाकुर ने जवाब दिया

"हाँ ज़रा कपड़े बदलके आते हैं" रूपाली ने कहा और अपने कमरे की और चली. पायल भी उसके साथ थी.

"मेरे साथ आ ज़रा" रूपाल ने पायल को कहा तो वो उसके साथ अंदर आ गयी

अंदर आकर रूपाली ने कमरा बंद किया और पायल के सामने ही कपड़े उतारने लगी. सलवार और कमीज़ उतारके वो सिर्फ़ एक ब्रा और पॅंटी में रह गयी.

"ये कपड़े ले जाके धुलने के लिए डाल दे" उसने अपने कमीज़ और सलवार पायल की तरफ बढ़ाए

पायल आँखें खोले उसकी तरफ देख रही थी जैसे यकीन ना हो रहा हो के रूपाली उसके सामने आधी नंगी खड़ी है. रूपाली की पॅंटी सामने से बस उसकी चूत को हल्का सा ढक रही थी. उसने गौर किया के पायल की नज़र उसकी टाँगो के बीच थी.

"ऐसे क्या देख रही है" उसने पायल से पुचछा "वही सब है जो तेरे पास है. कुच्छ नया नही है"

पायल उसकी बात सुनकर थोड़ा झेंप गयी पर अगले ही पल हल्की सी आवाज़ में बोली

"तो आप मुझे नीचे क्यूँ देख रही थी?"

उसने कहा तो रूपाली हास पड़ी पर कुच्छ जवाब ना दिया. पायल अब भी टेडी नज़रों से उसकी पॅंटी की तरफ देख रही थी

"इतने गौर से क्या देख रही है?" रूपाली ने पुचछा

"वो मालकिन आपके .... "पायल ने बात अधूरी छ्चोड़ दी

"क्या?" रूपाली ने उसकी नज़र का पिच्छा करते हुए अपनी चूत की तरफ देखा

"आपके बाल नही है यहाँ पर." पायल ने ऐसे कहा जैसे कोई बहुत राज़ की बात बताई हो

"हां पता है मुझे. साफ करती हूँ. तू भी किया कर" रूपाली ने कहा और पलटकर अपना टॉवेल उठाया

"किससे?" पायल ने पुचछा

"बताऊंगी बाद में. अभी तू जा. मुझे नाहकार नीचे जाना है. पिताजी से कुच्छ बात करनी है" रूपाली ने कहा तो पायल गर्दन हिलाती चली गयी.

नाहकार रूपाली नीचे पहुँची. ठाकुर बड़े कमरे में बैठे टीवी देख रहे थे.

"कैसा रहा सब?" रूपाली ने पुचछा

"जी?" ठाकुर उसकी बात नही समझे

"केस की पहली डेट थी ना" रूपाली ने कहा

"ओह" ठाकुर उसकी बात समझते हुए बोले "कुच्छ ख़ास नही हुआ. आज पहला दिन था तो बस दोनो तरफ से अपनी दलील पेश की गयी. सुनवाई अभी शुरू नही हुई. एक हफ्ते बाद की तारीख मिली है."

"तो इतना वक़्त कहाँ लग गया ?" रूपाली ने दोबारा पुचछा
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#27
Update 23

"आप ही की तरह हम भी ये कोशिश कर रहे हैं के हवेली को फिर पहले की तरह बसा सकें. कुच्छ लोगों से बात करी है. कल से हमारी ज़मीन पर फिर से काम शुरू हो जाएगा. वहाँ फिर से खेती होगी. और हमने फ़ैसला किया है के खेती के सिवा हम और भी दूसरा कारोबार शुरू करेंगे."

"दूसरा कारोबार?" रूपाली ने उनके सामने बैठते हुए पुचछा

"हां सोचा है के एक कपड़े की फॅक्टरी लगाएँ. काफ़ी दिन से सोच रहे थे. आज उस सिलसिले में पहला कदम भी उठाया है. वकील और फॅक्टरी लगाने के लिए एक इंजिनियर से भी मिलके आए हैं" ठाकुर ने जवाब दिया

"ह्म .... "रूपाली मुस्कुराते हुए बोली.उसने अपना घूँघट हटा लिया था क्यूंकी पायल आस पास नही थी "आपको बदलते हुए देखके अच्छा लग रहा है"

"ये आपकी वजह से है" ठाकुर ने भी मुस्कुराते हुए जवाब दिया "और एक और चीज़ करके आए हैं हम आज. वो हमने आपके लिए किया है"

"क्या" रूपाली ने फ़ौरन पुचछा

"वो हम आपको कल बताएँगे. और ज़िद मत करिएगा. हमारे सर्प्राइज़ को सर्प्राइज़ रहने दीजिए. कल सुबह आपको पता चल जाएगा"

ठाकुर ने पहले ही ज़िद करने के लिए मना कर दिया था इसलिए रूपाली ने फिर सवाल नही किया. अचानक उसके दिमाग़ में कुच्छ आया और वो ठाकुर की तरफ देखती हुई बोली

"उस लाश के बारे में कुच्छ पता चला?"

लाश की बात सुनकर ठाकुर की थोड़ा संगीन हुए

"नही. हम इनस्पेक्टर ख़ान से भी मिले थे. वो कहता है के सही अंदाज़ा तो नही पर काफ़ी पहले दफ़नाया गया था उसे वहाँ." ठाकुर ने कहा

"आपको कौन लगता है?" रूपाली ने पुचछा

"पता नही" ठाकुर ने लंबी साँस छ्चोड़ते हुए बोले " हमारे घर से ना तो आज तक कोई लापता हुआ और ना ही ऐसी मौत किसी को आई तो यही लगता है के घर में काम करने वाले किसी नौकर का काम है."

"आपका कोई दूर का रिश्तेदार भी तो हो सकता है" रूपाली ने शंका जताई

"हमारे परदादा ने ये हवेली बनवाई थी. उनकी सिर्फ़ एक औलाद थी, हमारे दादा जी और हमारे दादा की भी एक ही औलाद थी,हमारे पिताजी.तो एक तरह से हमारा पूरा खानदान इसी हवेली में रहा है. इस हवेली से बाहर हमारे कोई परिवार नही रहा." ठाकुर ने जवाब दिया तो पायल को थोड़ी राहत सी महसूस हुई

"हवेली के आस पास बाउंड्री वॉल के अंदर ही इतनी जगह है के ये मुमकिन है के हादसा हुआ और किसी को कानो कान खबर लगी. किसी ने लाश को कोने में ले जाके दफ़ना दिया और वहाँ जबसे हवेली बनी है तबसे हमेशा कुच्छ ना कुच्छ उगाया गया है. पहले एक आम का छ्होटा सा बाग हुआ करता था और फिर फूलों का एक बगीचा. इसलिए कभी किसी के सामने ये हक़ीक़त खुली नही." ठाकुर ने कहते हुए टीवी बंद कर दिया और संगीन आवाज़ में रूपाली से बात करने लगे

"ऐसा भी तो हो सकता है के ये काम किसी बाहर के आदमी का हो जिससे हमारा कोई लेना देना नही" रूपाली बोली

"मतलब?" ठाकुर ने आगे को झुकते हुए कहा

"इस हवेली में पिच्छले 10 साल से सिर्फ़ मैं और आप हैं और एक भूषण काका. यहाँ कोई आता जाता नही बल्कि लोग तो हवेली के नाम से भी ख़ौफ्फ खाते हैं. तो ये भी तो हो सकता है के इसी दौरान कोई रात को हवेली में चुपचाप आया और लाश यहाँ दफ़नाके चला गया. ये सोचकर के क्यूंकी हवेली में कोई आता नही तो लाश का पता किसी को नही चलेगा." रूपाली ने कहा

"हो तो सकता है" ठाकुर ने जवाब दिया "पर उस हालत में हवेली के अंदर लाश क्यूँ? इस काम के लिए तो लाश को कहीं जंगल में भी दफ़ना सकता था"

"हां पर उस हालत में लाश मिलने पर ढूँढा जाता के किसकी लाश है. पर हवेली में लाश मिलने पर सारी कहानी हवेली के आस पास ही घूमके रह जाती जैसा की अब हो रहा है" रूपाली ने कहा तो ठाकुर ने हां में सर हिलाया

कह तो आप सही रही हैं. जो भी है, हम तो ये जानते हैं के हमारी हवेली में कोई बेचारी जान कब्से दफ़न थी. उसके घरवाले पर ना जाने क्या बीती होगी" ठाकुर सोफे पर आराम से बैठते हुए बोले

"बेचारी?" रूपाली ने फ़ौरन पुचछा

"हां हमने आपको बताया नही?" ठाकुर ने कहा "वो ख़ान कहता है के वो लाश किसी औरत की थी."

सारी शाम रूपाली के दिमाग़ में यही बात चलती रही के हवेली में मिली लाश किसी औरत की थी. वो यही सोचती रही के लाश किसकी हो सकती है. जब कुच्छ समझ ना आया तो उसने फ़ैसला किया के भूषण और बिंदिया से इस बारे में बात करेगी के गाओं से पिच्छले कुच्छ सालों में कोई औरत गायब हुई है क्या? पर फिर उसे खुद ही अपना ये सवाल बेफ़िज़ूल लगा. जाने वो लाश कब्से दफ़न है. किसको याद है के गाओं में कौन है और कौन नही.

आख़िर में उसने इस बात को अपने दिमाग़ से निकाला तो बेसमेंट में रखे बॉक्स की बात उसके दिमाग़ में अटक गयी. सोच सोचकर रूपाली को लगने लगा के उसका सर दर्द से फॅट जाएगा.

शाम का खाना खाकर वो अपने कमरे की तरफ बढ़ी. ठाकुर अपने कमरे में पहले ही जा चुके थे. पायल और भूषण किचन की सफाई में लगे हुए थे. रूपाली सीढ़ियाँ चढ़ ही रही थी के बाहर एक गाड़ी के रुकने की आवाज़ सुनकर उसके कदम थम गये. थोड़ी ही देर बाद तेज हवेली में दाखिल हुआ.

वो नशे में धुत था. कदम ज़मीन पर पड़ ही नही रहे थे. उसकी हालत देखकर रूपाली को हैरानी हुई के वो कार चलाकर घर तक वापिस कैसे आ गया. वो चलता हुआ चीज़ों से टकरा रहा था. ज़ाहिर था के उसे सामने की चीज़ भी सॉफ दिखाई नही दे रही थी.

सीढ़ियाँ चढ़कर तेज रूपाली की तरफ आया. उसका कमरे भी रूपाली के कमरे की तरह पहले फ्लोर पर था. रूपाली उसे देखकर ही समझ गयी के वो सीढ़ियाँ चढ़ने लायक हालत में नही है. अगर कोशिश की तो नीचे जा गिरेगा. वो सीढ़ियाँ उतरकर नीचे आई और तेज को सहारा दिया.

उसने एक हाथ से तेज की कमर को पकड़ा और उसे खड़े होने में मदद की. तेज उसपर झूल सा गया जिस वजह से खुद रूपाली भी गिरते गिरते बची.उसने अपने कदम संभाले और तेज को सहारा देकर सीढ़ियाँ चढ़नी शुरू की. तेज ने उसके कंधे पर हाथ रखा हुआ था. रूपाली जानती थी के उसे इतना भी होश नही के इस वक़्त वो उसे सहारा दे रही है और मुमकिन है के वो सुबह तक सब भूल जाएगा.

मुश्किल से सीढ़ियाँ चढ़ कर दोनो उपेर पहुँचे. रूपाली तेज को लिए उसके कमरे तक पहुँची और दरवाज़ा खोलने की कोशिश की. पर दरवाज़ा लॉक्ड था.

"तेज चाबी कहाँ है?"उसने पुचछा पर वो जवाब देने की हालत में नही था.

रूपाली ने तेज को दीवार के सहारे खड़ा किया और उसकी जेबों की तलाशी लेने लगी. तेज उसके सामने खड़ा था और उसका जिस्म सामने खड़ी रूपाली पर झूल सा रहा था. अचानक तेज ने अपने हाथ उठाए और सीधा रूपाली की गान्ड पर रख दिए.

रूपाली उच्छल पड़ी और तभी उसे तेज की जेब में रखी चाभी मिल गयी. उसने कमरे का दरवाज़ा खोला और सहारा देकर तेज को अंदर लाई.

बिस्तर पर लिटाकर रूपाली तेज के जूते उतारने लगी.उसने उस वक़्त एक नाइटी पहेन रखी और नीचे ना तो ब्रा था ना पॅंटी. तेज के सामने झुकी होने के कारण उसकी नाइटी का गला सामने की और झूल रहा था और उसकी दोनो छातियाँ झूलती हुई दिख रही थी.

नशे में धुत तेज ने गर्दन उठाकर जूते उतारती रूपाली की तरफ देखा. रूपाली ने भी नज़र उठाकर उसकी और देखा तो पाया तो तेज की नज़र कहीं और है. तभी उसे अपनी झूलती हुई छातियों का एहसास हुआ और वो समझ गयी के तेज क्या देखा रहा. उसने अपनी नाइटी का गला पकड़कर फ़ौरन उपेर किया पर तब्भी तेज ने ऐसी हरकत की जिसके लिए वो बिल्कुल तैय्यार नही थी.

उसने रूपाली के दोनो हाथ पकड़े और उसे अपने साथ बिस्तर पर खींच लिया. इससे पहले के रूपाली कुच्छ समझ पाती या कुच्छ कर पाती वो उसके उपेर चढ़ गया और हाथों से पकड़कर उसकी नाइटी उपेर खींचने लगा

"तेज क्या कर रहे हो?" रूपाली फ़ौरन गुस्से में बोली पर तेज कहाँ सुन रहा था. वो तो बस उसकी नाइटी उपेर खींचने में लगा हुआ.

"खोल ना साली" तेज नशे में बड़बड़ाया

उसकी बात सुनकर रूपाली समझ गयी के वो उसे उन्हीं रंडियों में से एक समझ रहा था जिन्हें वो हर रात चोदा करता था. हर रात वो उसे सहारा देती थी और वो उन्हें चोद्ता था पर फ़र्क़ सिर्फ़ ये था के आज रात वो घर पे था और सहारा रूपाली दे रही थी.

रूपाली ने पूरी ताक़त से तेज को ज़ोर से धकेल दिया और वो बिस्तर से नीचे जा गिरा. रूपाली बिस्तर से उठकर उसकी तरफ गुस्से से मूडी ताकि उसे सुना सके पर तेज ने एक बार "ह्म्‍म्म्म" किया और नीचे ज़मीन पर ही करवट लेकर मूड सा गया. रूपाली जानती थी के वो नशे की वजह से नींद के आगोश में जा चुका था. उसने बिस्तर से चादर उठाई और तेज के उपेर डाल दी.

अपने कमरे में जाकर रूपाली बिस्तर पर लुढ़क गयी. बिस्तर पर लेटकर वो अभी जो हुआ था उस बारे में सोचने लगी. उसे 2 बातों की खुशी थी. एक तो ये के आज रात तेज घर लौट आया था. और दूसरा उसकी हरकत से ये बात सही साबित हो गयी थी के उसके लिए अगर यहीं घर में ही चूत का इंतज़ाम हो जाए तो शायद वो अपना ज़्यादा वक़्त घर पे ही गुज़ारने लगे.

हल्की आहट से रूपाली की आँख खुली. उसने कमरे के दरवाज़े की तरफ नज़र की तो देखा के ठाकुर अंदर आ रहे थे. रूपाली ने फ़ौरन नज़र अपने बिस्तर के पास नीचे ज़मीन पर डाली. पायल वहाँ नही थी. आज रात वो अपने कमरे में ही सो गयी थी. रूपाली ने राहत की साँस ली और ठाकुर की तरफ देखकर मुस्कुराइ.

"पता नही कब आँख लग गयी" कहते हुए उसने घड़ी की तरफ नज़र डाली. रात के 11 बज रहे थे.

"आप आई नही तो हमें लगा के पायल आज भी आपके कमरे में ही सो रही है इसलिए हम ही चले आए" ठाकुर ने उसके करीब आते हुए कहा

"पायल का नाम बड़ा ध्यान है आपको" रूपाली ने मुस्कुराते हुए कहा तो जवाब में ठाकुर भी मुस्कुरा दिए.

रूपाली बिस्तर पर अपनी टांगे नीचे लटकाए बैठी थी. ठाकुर उसके सामने आकर खड़े हुए और झुक कर उसके होंठों को चूमा.

"हमें तो सिर्फ़ आपका नाम ध्यान है" ठाकुर ने कहा और हाथ रूपाली की छाती पर रखकर दबाने लगे. रूपाली ने ठाकुर के होंठ से होंठ मिलाए रखे और नीचे उनका पाजामा खोलने लगी. नाडा खुलते ही पाजामा सरक कर नीचे जा गिरा और लंड उसके हाथों में आ गया.

फिर कमरे में वासना का वो तूफान उठा जो दोनो से संभाला नही गया. कुच्छ ही देर बाद रूपाली ठाकुर के उपेर बैठी उनके लंड पर उपेर नीचे कूद रही थी. उसकी चूचियाँ उसके जिस्म के साथ साथ उपेर नीचे उच्छल रही थी जिन्हें ठाकुर लगातार ऐसे दबा रहे थे जैसे आटा गूँध रहे हों.

"क्या बाआआआत है आजज्ज मेरी ककककचातियों से हाआआआथ हट नही रहे आआआपके?" रूपाली ने महसूस किया था के आज ठाकुर का ध्यान उसकी चूचियों पर कुच्छ ज़्यादा ही था

"कहीं कल रात की देखी पायल की तो याद नही आ रही?" वो लंड पर उपेर नीचे होना बंद करती हुई बोली और मुस्कुराइ

जवाब में ठाकुर ने उसे फ़ौरन नीचे गिराया और फिर चुदाई में लग गये. कमरे में फिर वो खेल शुरू हो गया जिसमें आख़िर में दोनो ही खिलाड़ी जीत जाते हैं और दोनो ही हार जाते हैं.

एक घंटे की चुदाई के बाद ठाकुर और रूपाली बिस्तर पर नंगे पड़े हुए ज़ोर ज़ोर से साँस ले रहे थे.

"हे भगवान" रूपाली अपनी चूचियों पर बने ठाकुर के दांतो के निशान देखते हुए बोली "आज इनपर इतनी मेहरबानी कैसे?"

"ऐसे ही" ठाकुर ने हस्ते हुए कहा

"ऐसे ही या कोई और वजह? कहीं किसी और का जिस्म तो ध्यान नही आ रहा था? जो कल तो यहाँ था पर आज आपको वो दीदार नही हुआ?" रूपाली ने उठकर बैठते हुए कहा

तभी घड़ी में 12 बजे

ठाकुर उठे और उठकर रूपाली के होंठ चूमे

"क्या हुआ?" रूपाली अचानक दिखाए गये इस प्यार पर हैरान होती बोली

"जनमदिन मुबारक हो" ठाकुर ने कहा

रूपाली फ़ौरन दोबारा घड़ी की तरफ देखा और डेट याद करने की कोशिश की. आज यक़ीनन उसका जनमदिन था और वो भूल चुकी थी. एक दिन था जब वो बेसब्री से अपने जमदीन का इंतेज़ार करती थी और पिच्छले कुच्छ सालों से तो उसे याद तक नही रहता था के कब ये दिन आया और चला गया. उसके पिच्छले जनमदिन पर भी उसे तब याद आया जब उसके माँ बाप और भाई ने फोन करके उसे बधाई दी थी

"मुझे तो पता भी नही था के आपको मालूम है मेरा जनमदिन" रूपाली ने कहा

"मालूम तो हमेशा था" ठाकुर ने जवाब दिया "माफी चाहते हैं के आज से पहले कभी हमने आपको ना कोई तोहफा दिया और ना ही इस दिन को कोई एहमियत"

तोहफा सुनते ही रूपाली फ़ौरन बोली

"तो इस बार भी कहाँ दिया अब तक?"

"देंगे. ज़रूर देंगे. बस कल सुबह तक का इंतेज़ार कर लीजिए" ठाकुर ने मुस्कुराते हुए कहा

थोड़ी देर बाद वो उठकर अपने कमरे में चले गये और रूपाली नींद के आगोश में

अगले दिन सुबह रूपाली उठकर नीचे आई ही थी के उसके भाई का फोन आ गया

"जनमदिन मुबारक हो दीदी" वो दूसरी तरफ फोन से लगभग चिल्लाते हुए बोला "बताओ आपको क्या तोहफा चाहिए?"

"मुझे कुच्छ नही चाहिए" रूपाली ने भी हासकर जवाब दिया "मम्मी पापा कहाँ हैं?"

उसे थोड़ी देर अपने माँ बाप से बात की. वो लोग खुश थे के रूपाली इस साल अपने जनमदिन पर खुश लग रही थी. वरना पहले तो वो बस हां ना करके फोन रख देती थी. उसके बाद रूपाली ने कुच्छ देर और अपने भाई इंदर से बात की जिसने उसे बताया के वो उससे कुच्छ वक़्त के बाद मिलने आएगा.

फोन रूपाली ने रखा ही था के उसके पिछे से तेज की आवाज़ आई

"जनमदिन मुबारक हो भाभी"

वो पलटी तो तेज खड़ा मुस्कुरा रहा था. ज़ाहिर था के उसे अपनी कल रात की हरकत बिल्कुल याद नही थी

"शुक्रिया" रूपाली ने भी उस बात को भूलकर हस्ते हुए जवाब दिया

"तो क्या प्लान है आज का?" तेज वहीं बैठते हुए बोला

"मैं कोई कॉलेज जाती बच्ची नही जो अपने जनमदिन पर कोई प्लान बनाऊँगी. कोई प्लान नही है." रूपाली उसके सामने बैठते हुए बोली "वैसे आप क्या कर रहे हैं आज?"

"वो जो आपने मुझे कल करने को कहा था" तेज ने जवाब दिया "माफ़ कीजिएगा कल कहीं काम से चला गया था. पर वाडा करता हूँ के आज से हवेली की सफाई का काम शुरू हो जाएगा"

रूपाली तेज की बात सुनकर दिल ही दिल में बहुत खुश हुई. कोई भी वजह हो पर वो उसकी बात सुनता ज़रूर था.

"चाय लोगे?" रूपाली ने तेज से पुचछा. उसने हां में सर हिला दिया

थोड़ी ही देर बाद ठाकुर भी सोकर जाग गये. बाहर आकर उन्होने रूपाली को फिर से जनमदिन की बधाई दी. क्यूंकी घर में तेज और पायल भी थे इसलिए रूपाली ने अब अपना घूँघट निकाल लिया था

"आइए आपको आपका तोहफा दिखाते हैं" ठाकुर ने जवाब दिया

वो उसे बाहर लेकर उस जगह पर पहुँचे जहाँ उनकी गाड़ी खड़ी रहती थी.

कवर में ढाकी हुई अपनी कार की तरफ इशारा करते हुए वो बोले

"आपका तोहफा बेटी"

रूपाली को कुच्छ समझ नही आया. ठाकुर उसे अपनी 11 साल पुरानी गाड़ी तोहफे में दे रहे हैं. वो हैरानी से ठाकुर की तरफ देखने लगी

"आपकी कार?"

"नही" ठाकुर कार की तरफ बढ़े और कवर खींच कर उतार दिया "आपकी कार"

रूपाली की आँखें खुली रह गयी. कवर के नीचे ठाकुर की पुरानी कार नही बल्कि चमकती हुई एक नयी बीएमडब्ल्यू खड़ी थी

"ये कब लाए आप?" वो कार के पास आते हुए बोली

"कल शाम जब आप नीचे बेसमेंट में थी" ठाकुर ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया

"और आपकी कार?"रूपाली ने चारों तरफ नज़र दौड़ाई

"वो बेच दी. हमने सोचा के आप ये गाड़ी चलाएंगी तो हम आपकी गाड़ी ले लेंगे" ठाकुर ने अपनी जेब से चाबियाँ निकालते हुए कहा "टेस्ट राइड हो जाए?"

रूपाली ने जल्दी से चाभी ठाकुर से ली और एक छ्होटे बच्चे की तरह खुश होती कार का दरवाज़ा खोला. उसकी खुशी में ज़ोर से चिल्लाने की आवाज़ सुनकर तेज भी बाहर आ गया था और खड़ा हुआ उन्हें देख रहा था.

रूपाली उसे देखकर बोली

"तेज देखो हमारी नयी कार " वो अब सच में किसी कॉलेज जाती बच्ची की तरह खुशी से उच्छल रही थी. उसे ये भी ध्यान नही था के उसका घूँघट हट गया है और वो ठाकुर के सामने बिना पर्दे के थी जो तेज देख रहा था.

तेज ने रूपाली की बात पर सिर्फ़ अपनी गर्दन हिलाई और पलटकर फिर हवेली में चला गया. उसका यूँ चले जाना रूपाली को थोड़ा अजीब सा लगा. जाने क्यूँ उसे लग रहा था के तेज को ठाकुर को यूँ कार लाकर रूपाली को देना पसंद नही आया.

अगले एक घंटे तक रूपाली कार लिए यहाँ से वहाँ अकेले ही भटकती रही. उसने ठाकुर को भी आपे साथ नही आने दिया था. अकेले ही कार लेकर निकल गयी थी.

तकरीबन एक घंटे बाद वो हवेली वापिस आई और ठाकुर के बुलाने पर उनके कमरे में आई.

"ये रहा आपका दूसरा तोहफा" ठाकुर ने एक एन्वेलप उसकी तरफ बढ़ते हुए कहा

"ये क्या है?" रूपाली ने एन्वेलप की तरफ देखा

"हमारी वसीयत जो हमने बदल दी है. इसमें लिखा है के अगर हमें कुच्छ हो जाए तो हमारा सब कुच्छ आपको मिलेगा." ठाकुर ने कहा

"पिताजी" रूपाली वहीं कुर्सी पर बैठ गयी. उसे यकीन सा नही हो रहा था

"क्या हुआ" ठाकुर ने पुचछा "ग़लत किया हमने कुच्छ?"

"हां" रूपाली ने जवाब दिया. "आपको ऐसा नही करना चाहिए था"

"पर क्यूँ?" ठाकुर उसके करीब आते हुए बोले

"क्यूंकी आपकी 3 औलाद और हैं. दोनो बेटे तेज और कुलदीप और आपकी एकलौती बेटी कामिनी. उनका हक़ इस जायदाद पर हमसे ज़्यादा है."

वो हम नही जानते" ठाकुर बोले "हमने अपना सब कुच्छ आपके नाम कर दिया है. अगर आप उन्हें कुच्छ देना चाहती हैं तो वो आपकी मर्ज़ी है. हम समझते हैं के ये फ़ैसला आपसे बेहतर कोई नही कर सकता"

"नही पिताजी. आपको ये वसीयत बदलनी होगी" रूपाली ने कहा तो ठाकुर इनकार में गर्दन हिलाने लगे

"ये अब नही बदलेगी हमारा जो कुच्छ है वो अब आपका है. अगर आप बाँटना चाहती हैं तो कर दें. और वैसे भी ....." ठाकुर ने अपनी बात पूरी नही की थी के रूपाली ने हाथ के इशारे से उन्हें चुप करा दिया.

ठाकुर ने हैरानी से उसकी तरफ देखा. रूपाली ने इशारा किया के दरवाज़े के पास खड़ा कोई उनकी बात सुन रहा है. रूपाली चुप चाप उतार दरवाज़े तक आई और हल्का सा बंद दरवाज़ा पूरा खोल दिया. बाहर कोई नही था.

"वहाँ हुआ होगा आपको" ठाकुर ने कहा पर रूपाली को पूरा यकीन था के उसने आवाज़ सुनी है.

"शायद" रूपाली ने कहा और फिर ठाकुर की तरफ पलटी

"आपको हमारे लिए ये वसीयत बदलनी होगी. या फिर अगर आप चाहते हैं के हम जायदाद आगे बराबर बाँट दे तो वकील को बुलवा लीजिए" रूपाली ने कहा

"ठीक है. हम उसे फोन करके बुलवा लेंगे. अब खुश?" ठाकुर ने हाथ जोड़ते हुए कहा

रूपाली धीरे से मुस्कुराइ और हाथ में एन्वेलप लिए कमरे से निकल गयी.
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#28
Update 24

बाकी का दिन हवेली की सफाई में ही गुज़र गया. तेज गाओं से कुच्छ आदमी लेकर आ गया और वो सारा दिन हवेली के आस पास उगे हुए जंगल को काटकर सॉफ करने में लगे रहे. पूरा दिन काम चलने के बाद भी हवेली के कॉंपाउंड का सिर्फ़ एक हिस्सा ही सॉफ हो सका. वजह थी के गाओं से सिर्फ़ 3 आदमी ही हवेली में आकर काम करने को राज़ी हुए थे. बाकियों ने तो हवेली में काम करने के नाम से ही इनकार कर दिया था.

तेज के कहने पर खुद पायल भी उन आदमियों के साथ मिलकरकाम करने लगी. दिन ढलने पर वो आदमी काम अगले दिन जारी रखने की बात कहके अपने अपने घर चले गये.

रात को खाने की टेबल पर ठाकुर और रूपाली अकेले ही थे. तेज किसी काम का बहाना करके घर से निकला था और अब तक लौटा नही था और रूपाली ये बात जानती थी के वो रात भर अब घर नही आने वाला था. वो खुद सारा दिन बिंदिया की राह देखती रही थी पर बिंदिया नही आई थी. रूपाली ने दिल में फ़ैसला किया के कल और बिंदिया का इंतेज़ार करेगी और अगर वो नही आई तो उससे एक आखरी बार बात करके किसी और औरत को घर में काम के बहाने रख लेगी जो तेज को बिस्तर पर खुश रखने के बहाने घर पर रोक सके. पर उसके सामने मुसीबत दो थी. एक तो ये के किसी ऐसी खूबसूरत औरत को ढूँढना जिसपर तेज खुद ऐसे ही नज़र डाले जैसे उसने बिंदिया पर डाली थी और दूसरी मुसीबत थी के अगर कोई ऐसी औरत मिल भी जाए तो उसे तेज का बिस्तर गरम करने के लिए राज़ी कैसे करे.

रूपाली अपनी ही सोच में खाना ख़तम करके उठ ही रही थी के पायल अंदर आई.

"हो गया मालकिन" उसने रूपाली से कहा

हवेली में सारा दिन कॅटाइ और सफाई होने के कारण हवेली के बिल्कुल सामने कॉंपाउंड में काफ़ी सूखे पत्ते जमा हो गये थे. हवा तेज़ थी इसलिए रूपाली को डर था के वो उड़कर हवेली के अंदर ना आ जाएँ इसलिए उसने पायल को कहा था के अंधेरा होने से पहले हवेली के दरवाज़े के ठीक सामने से पत्ते हटा दे. उसने सोचा था के काम जल्दी हो जाएगा पर बेचारी पायल को काम ख़तम करते करते अंधेरा हो गया था. वो काफ़ी थॅकी हुई भी लग रही थी. पायल को उसपर तरस आ गया.

"भूख लगी होगी तुझे. जा पहले हाथ धोकर खाना खा ले. नहा बाद में लेना. सारे दिन से कुच्छ नही खाया तूने." उसने पायल से कहा

पायल हां में सर हिलाती किचन में दाखिल हो गयी. वो वहीं बैठकर खाना खा लेती थी.

खाना ख़तम करके ठाकुर उठकर अपने कमरे में चले गये. जाने से पहले उन्होने एक आखरी नज़र रूपाली पर डाली और उस नज़र में सॉफ ये इशारा था के वो रात को रूपाली के कमरे में आ जाएँगे.

रूपाली किचन में दाखिल हुई तो सामने नीचे बैठी पायल खाना खा रही थी. उसने सलवार कमीज़ पहेन रखा था. वो नीचे झुकी हुई ज़मीन पर बैठी खाना खा रही थी. पायल उसके करीब जाकर खड़ी हुई तो उपेर से पायल का क्लीवेज सॉफ नज़र आया. देखते ही पायल के दिमाग़ में ख्याल आया के जब तक बिंदिया या कोई दूसरी औरत आती है, तब तक क्यूँ ना पायल कोई ही तैय्यार किया जाए. एक कच्ची कली चोदने को मिले तो तेज भला बाहर कही मुँह मारने को क्यूँ जाएगा. मॅन में ख्याल आते ही वो मुस्कुराइ. पायल को तैय्यार करना कोई मुश्किल काम नही था. जिस तरह से पायल बेसमेंट में उसके सामने नंगी होकर उसकी बाहों में आ गई थी उससे सॉफ ज़ाहिर था के जो आग माँ के जिस्म में है वही बेटी कोई भी तोहफे में मिली है. अगर पायल एक औरत के साथ अपना जिस्म मिला सकती है तो मर्द के साथ तो और भी ज़्यादा आसानी होगी. बस एक काम जो करना था वो था उसे तैय्यार करना जो रूपाली ने फ़ौरन सोच लिया के उसे कैसे करना है. वो आगे बढ़ी और किचन में कुच्छ ढूँढने लगी. उसे एक चीज़ की ज़रूरत थी जो उसके काम में मददगार साबित हो सकती थी और जल्दी ही वो चीज़ उसे मिल भी गयी.

"खाना ख़तम करके मेरे कमरे में आ जाना." उसने पायल से कहा और किचन से बाहर निकली.

भूषण भी काम ख़तम करके कॉंपाउंड में बने अपने छ्होटे से कमरे की तरफ जा रहा था. रूपाली उसे देखकर मुस्कुराइ और अपने कमरे में चली गयी.

थोड़ी ही देर बाद पायल भी रूपाली के पिछे पिछे उसके कमरे में आ गयी.

"जी मालकिन?" उसने रूपाली से पुचछा

"कितनी गंदी हो रखी है तू. ऐसे मत आ. जा पहले नाहके आ" रूपाली ने उसे कहा.

पायल पलटकर जाने लगी तो रूपाली ने उसे रोक लिया

"एक काम कर. यहीं मेरे बाथरूम में नहा ले."

"आपके बाथरूम में?" रूपाली ने पुचछा

"हां मेरे बाथरूम में ही नहा ले. और एक बात बता. तू साडी नही पेहेन्ति?"

पायल ने इनकार में सर हिलाया

"मेरे पास है ही नही"

"रुक ज़रा" कहती हुई रुआली अपनी अलमारी की तरफ बढ़ी और अपनी एक पुरानी साडी निकाली. साडी पुरानी ज़रूर थी पर देखने में बहुत सुंदर थी.

"ये तू रख ले" रूपाली ने कहा तो पायल खुशी से उच्छल पड़ी

"सच मालकिन?" पायल झट से साडी पकड़ते हुए बोली

"हां. आज से तेरी हुई" रूपाली ने सारी के साथ का ब्लाउस और पेटीकोट भी पायल को देखते हुए कहा "अब जाके नहा ले. फिर तेरे से एक ज़रूरी बात करनी है"

पायल हां में सर हिलाती हुई बाथरूम की तरफ बढ़ी. रूपाली भी उसके पिछे पिछे बाथरूम में आ गयी और वहाँ रखी हुई चीज़ें दिखाने लगी

"ये शॅमपू है और ये कंडीशनर. और ये बॉडी लोशन है" उसने पायल से कहा

"ये सब क्या है मालकिन? साबुन कहाँ है?" पायल ने बाथरूम में चारों और देखते हुए पुचछा

रूपाली हल्के से मुस्कुरा दी.

"तूने ये सब कभी इस्तेमाल नही किया ना? चल मैं बताती हूँ" उसने कहाँ तो पायल उसे देखने लगी. जैसे रूपाली के बात आगे कहने का इनेज़ार कर रही हो

"ऐसे क्या देख रही है?" रूपाली ने कहा "नहाना शुरू कर. मैं बताती रहूंगी के क्या कैसे लगाना है. पहली बार मैं बता दूँगी बाद में तू खुद ही कर लेना."

पायल एकटूक उसे देखने लगी

"आपके सामने?" उसने रूपाली से पुचछा

"हां तो क्या हुआ?" रूपाली ने जवाब दिया "तेरे पास ऐसा क्या है जो मैने नही देखा?"

"शरम आती है मालकिन" पायल ने सर झुकाते हुए बोला

"अरे मेरी शर्मीली बन्नो अब टाइम खराब मत कर. चल कपड़े उतार जल्दी से" रूपाली ने थोड़ा आगे बढ़ते हुए कहा

"दरवाज़ा?" पायल ने बाथरूम के खुले हुए दरवाज़े की तरफ इशारा करते हुए कहा

"कमरे के अंदर का दरवाज़ा बंद है. कोई नही आएगा. चल जल्दी कर. सारी रात यहाँ खड़े खड़े गुज़ारनी है क्या?"

रूपाली ने कहा तो पायल ने धीरे से अपनी कमीज़ उतारनी शुरू की.

कुच्छ ही देर बाद पायल बाथरूम में मादरजात नंगी खड़ी थी. रूपाली ने उसे सर से पावं तक एक बार देखा

"तू उमर से भले बच्ची हो पर तेरा जिस्म तो पूरी भरी हुई औरत को भी मात दे जाए" रूपाली ने कहा तो पायल शर्माके नीचे देखने लगी

"चल शवर के नीचे खड़ी हो जा" रूपाली ने कहा तो पायल शोवेर के नीचे खड़ी हो गयी और अपने जिस्म को पानी से भिगोने लगी.

बाथरूम में एक तरफ खड़ी रूपाली उसके हसीन जिस्म को देख रही थी. थोड़ी ही देर में पायल सर से लेकर पावं तक पूरी भीग गयी.

"हाथ आगे कर" रूपाली ने कहा तो पायल ने अपना हाथ आगे कर दिया. रूपाली ने उसके हाथ में शॅमपू डाल दिया

"अब इससे अपने बाल धो ताकि वो बाल लगें.तेरे सर पे उगी हुई झाड़ियाँ नही" उसने पायल से कहा

पायल अपने हाथ उठाकर अपने सर में शॅमपू लगाने लगी. हाथ उपेर होने से उसकी दोनो छातियों भी उपेर को हो गयी थी और हाथ की हरकत के साथ हिल रही थी. पायल की नज़र भी उसकी छातियों के साथ ही उपेर नीचे हो रही थी.

जब शॅमपू पूरे बालों पर लग गया तो रूपाली ने उसे धोने को कहा और फिर कंडीशनर लगाने को कहा. वो भी लगकर धुल गया.

"अब ये ले" रूपाली ने बॉडी वॉश की बॉटल आगे करते हुए कहा "इसे भी शॅमपू की तरह अपने हाथ पर निकाल और फिर साबुन की तरह अपने बदन पर लगा"

पायल ने बॉटल हाथ में ली और ढक्कन खोलकर जैसे ही बॉटल को दबाया तो बहुत सारा बॉडी वॉश उसके हाथ पर आ गिरा

"ओफहो बेवकूफ़" रूपाली ने आगे बढ़कर उसके हाथ से बॉटल ले ली "एक साथ इतना सारा नही. थोड़ा थोड़ा लेते हैं. अब जो हाथ में है उसे अपने बदन पर लगा"

रूपाली के कहने पर पायल ने सारा बॉडी वॉश अपने चेहरे पर लगा लिया और अगले ही पल सिसक पड़ी

"मालकिन आँख जल रही है"

"तो तुझे किसने कहा था के सारा मुँह पे रगड़ ले. धो इसे अब और यहाँ आके बैठ" रूपाली ने आगे बढ़कर नाल चालू किया

चेहरे से बॉडी वॉश धोकर पायल ने रूपाली की तरफ देखा

"अब यहाँ आके बैठ. मैं ही लगा देती हूँ" रूपाली ने कहा तो पायल झिझकति हुई वहीं बाथ टब के किनारे पर बैठ गयी. रूपाली आकर उसके पिछे खड़ी हुई और अपने हाथ में बॉडी वॉश लिया.

रूपाली ने सबसे पहले बॉडी वॉश पायल की छातियों पर ही लगाया और हाथों से उसकी छातियाँ मसल्ने लगी. पायल की दोनो चूचियाँ उसके हाथ के दबाव से हल्के हल्के दब रही थी. फिर इसी तरह से उसने पायल के पेट पर बॉडी वॉश लगाया और फिर उसकी टाँगो पर. इस सारे काम में रूपाली पायल को नहला कम रही थी उसके जिस्म को सहला ज़्यादा रही थी. उसकी टाँगो के बीच नमी आनी शुरू हो रही थी. सामने बैठी एक नंगी लड़की को देखकर उसके जिस्म में फिर वासना का तूफान ज़ोर मार रहा था. रूपाली के हाथ फिर पायल की चूचियों पर पहुँच गये और वो उसके सामने घुटनो पर बैठ गयी और दोनो हाथों से उसकी छातियाँ दबाने लगी.

"हो गया मालकिन" पायल ने धीमी आवाज़ में कहा पर रूपाली ने जैसे सुना ही नही. वो उसी तरह उसकी चूचियो पर हाथ फेरती रही. अचानक उसने पायल का एक निपल अपने उंगलियों में पकड़ा और धीरे से दबाया.

"आआहह "पायल ने सिसकारी भरी "दर्द होता है मालकिन. अब बस करिए. हो गया. मैं धो लेती हूँ"

रूपाली ने उसकी तरफ देखा और उठ खड़ी हुई. उसने पायल का हाथ पकड़कर उसे खड़ा किया और शवर के नीचे ले जाकर शवर ऑन कर दिया. पर इस बार पायल के साथ वो खुद भी पानी में भीग रही थी. वो शवर के नीचे से हटी नही. पायल दीवार की तरफ मुँह किए खड़ी थी और रूपाली उसके पिछे खड़ी उसकी कमर से बॉडी वॉश धो रही थी. वो खुद भी पानी में पूरी तरह भीग चुकी थी और कपड़े बदन से चिपक गये थे. उसके हाथ पायल की कमर से सरकते हुए उसकी गान्ड तक आए और रूपाली ने अपने दोनो हाथों से उसकी गान्ड को पकड़कर दबाया. दबाने से पायल भी ज़रा आगे को हुई और बिकुल दीवार के साथ जा लगी. रूपाली ने थोड़ा सा आगे होकर उसकी गर्दन को चूम लिया. उसे यकीन नही हो रहा था के वो खुद एक औरत होकर एक नंगी लड़की के जिस्म को चूम रही है पर उसके जिस्म मेी उठती लहरें उस इस बात का सबूत दे रही थी के उसे मज़ा आ रहा था. गले पर चूमती ही पायल सिहर उठी

"क्या कर रही हैं मालकिन?" उसने रूपाली से पुचछा

"ऐसे ही खड़ी रह" कहकर रूपाली थोड़ा पिछे हटी और अपनी सलवार और कमीज़ उतारकर एक तरफ फेंक दी. अगले ही पल उसकी ब्रा और पॅंटी भी उसके बाकी कपड़ो के साथ पड़े थे और रूपाली पूरी तरह नंगी होकर एक बार फिर पिछे से पायल के साथ चिपक गयी.

अपने नंगे जिस्म पर रूपाली का नंगा जिस्म महसूस हुआ तो पायल सिहर उठी

"मालकिन" उसके मुँह से निकला पर वो अपनी जगह से हिली

"घबरा मत" रूपाली अपना मुँह उसके कान के पास ले जाकर धीरे से बोली "अब तेरी तरह मैं भी बिल्कुल नंगी हूँ"

कहकर रूपाली ने एक बार फिर पायल को गर्दन पर चूमा.पायल चुप चाप दीवार से लगी खड़ी थी और पायल ने उसे पिछे से गर्दन और कमर की उपरी हिस्से पर चूमना शुरू कर दिया. उसके हाथ पायल के पुर जिस्म पर घूम रहे थे, सहला रहे थे. रूपाली खुद वासना के कारण पागल हुई जा रही थी. बिल्कुल किसी मर्द की तरह वो पायल से बिल्कुल चिपक कर खड़ी हो गयी और उसका नंगा जिस्म महसूस करने लगी. पायल रूपाली से कद में थोड़ी छ्होटी थी. रूपाली ने अपने घुटने थोड़े मोड और अपनी चूत पायल की गान्ड पर दबाई जैसे उसके सामने एक लंड लगा हो जिसे वो पायल की गान्ड में घुसा रही हो. इस हरकत ने उसके जिस्म पर ऐसा असर किया के उसे अपने घुटने कमज़ोर होते महसूस होने लगे और वो पायल को ज़ोर से पकड़कर उससे चिपक गयी और अपनी चूत को पायल की गान्ड पर रगड़ने लगी.

"ओह पायल" रूपाली हल्के से पायल के कान में बोली. उसके हाथ पायल की कमर से हटकर आगे आए और पायल की चूचियों को पकड़ लिया. चूचियाँ हाथ में आई ही थी के रूपाली ने उन्होने पूरी ताक़त से दबा दिया और अपनी चूचियाँ पायल की कमर पे रगड़ने लगी. चूचियाँ इतनी ज़ोर से दबी तो पायल फिर सिहर उठी

"मालकिन" वो भी बिल्कुल पायल के अंदाज़ में धीरे से बोली "क्या कर रही हैं आप?"

"मज़ा आ रहा है?" रूपाली ने उसी तरह उसकी चूचियाँ दबाते हुए पुचछा. नीचे से उसकी कमर ऐसे हिल रही थी जैसे पायल की गान्ड मार रही हो

पायल ने जवाब नही दिया

"बोल ना" रूपाली ने उसकी चूचियों पर थोड़ा दबाव और बढ़ाया पर पायल फिर भी नही बोली

रूपाली ने अपना एक हाथ उसकी छाती से हटाया और उसके पेट पर से होते हुए नीचे ले जाने लगी. हाथ जैसे ही टाँगो के बीच पहुँचा तो पायल ने अपनी टांगे कसकर बंद कर ली. रूपाली ने अपना हाथ उसकी चूत के उपेर की तरफ रखा और ज़ोर से रगड़ा.

"मज़ा आ रहा है?" उसने अपना सवाल दोहराया और हाथ ज़बरदस्ती पायल की टाँगो में घुसकर उसकी चूत की मुट्ठी में पकड़ लिया. इस बार पायल से भी बर्दाश्त नही हुआ.

"आआआआआआअहह मालकिन. बहुत अच्छा लग रहा है. क्या कर रही हैं आप?" वो हल्के से चिल्लाई

"तुझे जवान कर रही हूँ" रूपाली ने जवाब दिया और पायल को अपनी तरफ घुमाया "तुझे जवानी के मज़े लेना सीखा रही हूँ"

अब पायल और रूपाली एक दूसरे की तरफ चेहरा किए खड़ी थी. पायल की कमर दीवार से लगी हुई थी. दोनो की आँखें मिली और एक पल के लिए एक दूसरे को देखती रही. रूपाली ने पायल के चेहरे को गौर से देखा. उसकी आँखों में वासना के डोरे सारे नज़र आ रहे थे. रूपाली आगे बढ़ी और अपने होंठ पायल के होंठों पर रख दिया. उसका एक हाथ पायल की चूचियों पर और दूसरा सरक कर उसकी चूत पर पहुँच गया.

रूपाली ने पायल के होंठ क्या चूमे के पायल उसकी बाहों में आ गिरी. उसने अपनी दोनो बाहें रूपाली के गले में डाली और उससे लिपट गयी. रूपाली समझ गयी के उसका काम बन चुका है. वो पायल के पूरे चेहरे को चूमने लगी और चूमते हुए गले पर और फिर पायल की चूचियों पर आ गयी. एक हाथ अब भी पायल की चूत रगड़ रहा था. पाया की दोनो टाँगें काँप रही थी और उसकी आँखें बंद थी. दोनो हाथों से उसने अब भी रूपाली को पकड़ा हुआ था. रूपाली ने उसका एक निपल अपने मुँह में लिया और चूसने लगी और थोड़ी देर बाद यही दूसरे निपल के साथ किया.

"बहुत मज़ा आ रहा है?" उसने फिर पायल से पुचछा

पायल ने सिर्फ़ हां में सर हिलाया.

रूपाली पायल से अलग हुई, उसका हाथ पकड़ा और उसे बाथरूम से लेके बेडरूम में आ गयी.

बेडरूम में लाकर रूपाली ने पायल को धक्का देकर बिस्तर पर गिरा दिया. पायल कमर के बल बिस्तर पर जा गिरी और सामने खड़ी नंगी रूपाली को देखने लगी. सर से पावं तक.

"क्या देख रही है?" रूपाली ने अपना एक हाथ अपनी चूचियों पर और दूसरा अपनी चूत पर फिराया "तेरे जैसा ही है. ये दो बड़ी बड़ी चूचियाँ तेरे पास हैं और मेरे पास भी हैं. जो तेरी टाँगो के बीच है वही मेरी टाँगो के बीच में भी है बस तुझपर से ये बाल हटाने है. फिर तेरी जवानी खुलकर सामने आ जाएगी" रूपाली ने पायल के चूत पर उगे हुए बाल की तरफ इशारा किया. शर्मा कर पायल ने अपने एक हाथ से अपनी चूत को छुपा लिया.

रूपाली मुस्कुरा कर बिस्तर पर चढ़ि और पायल के नज़दीक आई. पायल का हाथ उसकी चूत से हटाकर उसने फिर अपना हाथ रख दिया और चूत सहलाने लगी.

"टांगे खोल. पूरी फेला दे" उसने पायल से कहा और इस बार बिल्कुल उल्टा हुआ. रूपाली को उम्मीद थी के पायल मना कर देगी पर पायल ने फ़ौरन अपनी टांगे खोल दी. उसकी चूत खुलकर रूपाली के सामने आ गयी.

रूपाली उठकर पायल की टाँगो के बीच आ गयी और उसकी चूत देखने लगी. ज़िंदगी में पहली बार वो अपने सिवा किसी और औरत की चूत देख रही थी.

"कोई आया है आज तक तेरी टाँगो के बीच में?" उसने पायल की चूत सहलाते हुए कहा. पायल ने आँखें बंद किए हुए इनकार में सर हिलाया

"कोई बात नही. मैं सीखा दूँगी" रूपाली ने कहा और पायल की चूत को ज़ोर ज़ोर से रगड़ने लगी. पायल जोश में अपना सर इधर उधर करने लगी. रूपाली थोड़ा आगे को झुकी और किसी मर्द की तरह पायल पर पूरी तरह छा गयी. वो पायल के उपेर लेट गयी और उसके होंठ फिर से चूमने लगी. इस बार पायल ने भी जवाब दिया और उसने अपने उपेर लेटी रूपाली को कस्के पकड़ लिया. दोनो एक दूसरे के होंठ चूमने लगी.

"काफ़ी जल्दी सीख रही है" रूपाली ने कहा और नीचे होकर पायल की चूचियाँ चूमने लगी. उसने अपने हाथ से पायल का एक हाथ पकड़ा और लाकर अपनी छाती पर रख दिया

"दबा इसे. जैसे मैं तेरे दबा रही हूँ वैसे ही तू मेरे दबा" उसने पायल से कहा और पायल ने भी फ़ौरन उसकी चूचिया दबाने लगी

"किस्में ज़्यादा मज़ा आ रहा है? अपने चुसवाने में या मेरे दबाने में?" उसने पायल की चूचियाँ चूस्ते हुए कहा

"आआआआहह मालकिन. दोनो में" इस बार पायल ने फ़ौरन जवाब दिया

रूपाली थोड़ी देर तक पायल की दोनो चूचियों को एक एक करके चूस्ति रही और नीचे से अपनी चूत पायल की चूत पर रगड़ने की कोशिश करती रही. थोड़ी देर बाद वो उठकर पायल के उपेर बैठ गयी. टांगे पायल की कमर के दोनो तरफ थी जैसे कोई मर्द किसी औरत को बैठकर चोद रहा हो. वो आगे को झुकी और अपनी छातियाँ पायल के मुँह से लगा दी

"चूस इन्हें" उसने पायल से कहा. पायल ने भी उसकी छातियाँ ऐसे चूसनी शुरू कर दी जैसे काब्से इसी का इंतेज़ार कर रही हो

"तुझे पता है जब मर्द किसी औरत के साथ सोता है तो क्या करता है?" उसने पायल से पुचछा

पायल ने उसकी चूचियाँ चूस्ते हुए हां में सर हिलाया

"क्या करता है?" रूपाली ने अपने दोनो हाथों से पायल का सर पकड़ रखा था और उसे अपनी चूचियों पर दबा रही थी

"यही जो आप कर रही हैं मेरे साथ." पायल ने रूपाली का निपल अपने मुँह से निकालकर कहा और दोबारा अपने मुँह में लेकर चूसने लगी

"आआआहह "रूपाली के मुँह से निकला. उसने अपना एक हाथ पायल की चूत पर रखा "अरे पगली मैं पुच्छ रही हूँ के यहाँ क्या करता है"

"पता है मुझे" पायल ने कहा "माँ ने बताया था एक बार"

"किसी मर्द ने किया है कभी तेरे साथ ऐसा" रूपाली ने पुचछा तो पायल ने इनकार में सर हिला दिया

"तेरा दिल नही किया कभी करवाने का?" रूपाली ने पुचछा तो पायल ने फिर इनकार में सर हिलाया

"अब तक तो नही किया था कभी"

"अब कर रहा है?" रूपाली ने मुस्कुराते हुए पुचछा तो पायल ने भी शर्माकर मुस्कुराते हुए हां में सर हिला दिया

"तो चल आज मैं ही तेरे लिए मर्द बन जाती हूँ" कहते हुए रूपाली पायल के उपेर से हटी.

रूपाली पायल के उपेर से हटी और फिर उसकी टाँगो के बीच में आकर उसकी चूत सहलाने लगी

"यहाँ पर मर्द अपना लंड घुसाता है" उसने पायल से कहा "लंड जानती है किसी कहते हैं?"

पायल ने हां में सर हिलाया तो रूपाली मुस्कुराने लगी

"जानती सब है तू" कहते हुए रूपाली ने अपनी एक अंगुली धीरे से पायल की चूत में घुसा दी

"आआअहह मालकिन." पायल फ़ौरन बिस्तर पर उच्छली. कमर पिछे को खींचकर उसने रूपाली की अंगुली चूत में से निकल दी

"दर्द होता है" पायल बोली

"पहले थोडा सा होगा पर फिर नही. अब सीधी लेटी रह. हिलना मत वरना मुझसे बुरा कोई नही होगा" रूपाली ने पायल को हल्के से डांटा और फिर उसकी दोनो टांगे खोल ली.

थोड़ी देर चूत पर हाथ रॅगॅड्कर उसने अपनी बीच की अंगुली पायल की चूत में धीरे धीरे घुसा दी. अपने दूसरे हाथ से वो अपनी चूत रगड़ रही थी

"दर्द होता है मालकिन" पायल फिर बोली

"बस थोड़ी देर. फिर नही होगा" कहते हुए रूपाली ने अपनी अंगुली आगे पिछे करनी शुरू कर दी. नतीजा थोड़ी ही देर में सामने आ गया. जो पायल पहले दर्द से उच्छल रही थी अब वो ही आअहह आअहह करने लगी.

"मैने कहा था ना के मज़ा आएगा" रूपाली ने कहा "और करूँ या निकल लूँ?"

"और करिए" पायल ने आहह भरते हुए कहा

रूपाली ने तेज़ी से उसकी चूत में अंगुली अंदर बाहर करनी शुरू कर दी और अपना दूसरा हाथ अपनी चूत पर तेज़ी से रगड़ने लगी. अचानक उसकी नज़र सामने घड़ी पर पड़ी और उसने अपनी अंगुली पायल की चूत से निकाल ली. पायल ने अपनी आँखें खोलकर उसकी तरफ देखा

"क्या हुआ मालकिन?" उसने रूपाली से पुचछा

"अरे पागल एक मर्द का लंड मेरी अंगुली जितना थोड़े ही होता है. असली मज़ा लेना है तो या तो लंड से ले या लंड जैसी किसी चीज़ से ले" रूपाली बिस्तर से उठते हुए बोली

"मतलब?" पायल ने पुचछा. उसने उठने की कोई कोशिश नही की थी. बिस्तर पर वैसे ही टांगे हिलाए पड़ी थी

"मतलब ये" रूपाली ने टेबल पर रखे हुआ एक खीरा उठाया. यही वो चीज़ थी जो वो थोड़ी देर पहले किचन में ढूँढ रही थी.

"आप ये डालेंगी? ये तो बहुत मोटा है" पायल ने आँखें फेलाते हुए कहा. उसकी टांगे भी डर से अपने आप बंद हो गयी

"कोई कोई लंड इससे भी मोटा होता है. वो कैसे लेगी?" कहते हुए रूपाली ने पास रखे हेर आयिल की बॉटल उठाई और पूरे खीरे पर आयिल लगा दिया. वो फिर बिस्तर पर चढ़कर पायल के नज़दीक आई और उसकी टाँगें खोलने की कोशिश की

"नही मालकिन" पायल ने कहा "बहुत दर्द होगा"

"अरे हर औरत को होता है. मुझे भी हुआ था पहली बार पर फिर मज़ा आता है. चल अब टांगे खोल" कहते हुए रूपाली ने ज़बरदस्ती पायल की टांगे खोल दी

वो फिर पायल की टाँगो के बीच आ बैठी और खीरा उसकी चूत पर रगड़ने लगी. पायल ने फिर अपनी आँखें बंद कर ली थी. थोड़ा देर ऐसे ही रगड़ने के बाद रूपाली ने थोड़ा सा खीरा पायल की चूत में डालने की कोशिश की. पायल फ़ौरन पिछे को हो गयी

"आह" पायल करही "दर्द होता है"

"चुप कर और टांगे खोल और हिलना मत" रूपाली ने उससे कहा और दोबारा खीरा डालने की कोशिश की. थोड़ी देर ऐसे ही कोशिश करने के बाद जब पायल ने खीरा चूत में डालने नही दिया तो रूपाली बिस्तर से उठकर अपनी अलमार तक गयी और अपने 3 स्कार्फ उठा लाई.

"तू ऐसे नही मानेगी" कहते हुए वो फिर पायल के करीब आई और उसे बिस्तर से बाँधने लगी.
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#29
Update 25


कुच्छ ही देर बाद पायल के हाथ बिस्तर से ऐसे बँधे हुए थे के वो अपना उपरी हिस्सा हिला भी नही सकती थी.

"नही मालकिन" उसने फिर रूपाली से कहा पर रूपाली ने उसकी एक नही सुनी. वो पायल के सर के पास आई और एक स्कार्फ उसकी आँखों पर इस तरह बाँध दिया के पायल को कुच्छ दिखाई ना दे.

"ये क्यूँ मालकिन?" अंधी हो चुकी पायल ने पुचछा

"ताकि तू खीरा देखके इधर उधर उच्छले नही" रूपाली बोली और फिर पायल की टाँगो के पास आके बैठ गयी.

इस बार उसने पायल की टांगे पूरी नही फेलाइ. चूत खोलने के लिए जितनी ज़रूरी थी बस उठी ही खोली और उसकी टाँगो पर आकर बैठ गयी. रूपाली की गान्ड पायल के घुटनो पर थी. अब पायल चाहे जितनी कोशिश कर ले पर वो हिल नही सकती थी.

रूपाली पायल की तरफ देखकर मुस्कुराइ और खीरा पायल की चूत पर रख दिया. पायल का जिस्म एक बार फिर सिहर उठा. रूपाली ने खीरे का दबाव चूत पर डाला तो वो हल्का सा अंदर घुस गया. पायल के मुँह से अफ निकल गयी पर रूपाली इस बार उसकी सुनने के मूड में नही थी. उसने अपना एक हाथ आगे बढ़कर पायल के मुँह पर रखा ताकि वो कोई आवाज़ ना कर सके और धीरे धीरे खीरा चूत में घुसाने लगी. पायल की आँखें फेल्ती चली गयी. उसकी आँखें देखकर ही अंदाज़ा होता था के वो कितनी तकलीफ़ में थी. आँखों से पानी बह निकला. वो सर इधर उधर झटकने लगी पर रूपाली के हाथ की वजह से उसके मुँह से निकली चीख घुटकर रह गयी. आँखों ही आँखों में वो रूपाली से रहम की भीख माँग रही थी पर रूपाली मुस्कुराती रही और तभी रुकी जब खीरा पूरा चूत के अंदर घुस गया.

थोड़ी देर ऐसे ही रुकने के बाद रूपाली पायल से बोली

"हाथ हटा रही हूँ. शोर मत मचाना. मचाया तो मुझसे बुरा कोई ना होगा"

पायल ने हां में सर हिलाया तो रूपाली ने अपना हाथ उसके मुँह से हटा लिया

"बाहर निकालो मालकिन" पायल फ़ौरन बोली "मेरी दर्द से जान निकल रही है"

"बस ज़रा सी देर. और मुँह बंद रख अपना" रूपाली ने डाँटते हुए पायल से कहा तो पायल दर्द का घूंठ पीकर चुप हो गयी. रूपाली ने खीरे की तरफ देखा जो 80% चूत के अंदर था. हल्का सा खून देख कर वो समझ गयी के आज उसने पायल की चूत खोल दी.

उसने झुक कर पायल के होंठ चूमे और उसकी छातियाँ चूसने लगी. कुच्छ देर बाद पायल का कराहना बंद हुआ तो उसने पुचछा

"अब ठीक है?"

"दर्द अब भी है पर कम है" पायल ने जवाब दिया

"अब तू लड़की से औरत बन गयी. आज खीरा कल लंड" रूपाली ने हस्ते हुए कहा और चूत में घुसा हुआ खीरा पकड़कर बाहर को खींचा. थोडा सा खीरा अंदर छ्चोड़कर उसने फिर से पूरा अंदर घुसा दिया और धीरे धीरे खीरे से पायल को चोदने लगी.

"मत करो मालकिन" पायल फिर से कराही "ऐसे दर्द होता है"

"बस थोड़ी देर और" रूपाली ने कहा और ज़ोर से खीरा अंदर बाहर करने लगी. कुच्छ ही पल बाद पायल का कराहना बंद हुआ और वो आह आह करने लगी

"मज़ा आ रहा है?" रूपाली ने फिर पुचछा तो पायल ने हां में सर हिला दिया. उसकी आँखो पर अब भी स्कार्फ बँधा हुआ था और उसे कुच्छ नज़र नही आ रहा था.

अचानक रूपाली एक आहट से चौंक पड़ी और दरवाज़े की तरफ देखा

"रुक ज़रा" उसने पायल से कहा और खीरा उसकी चूत में ही छ्चोड़कर दबे पावं दरवाज़े तक पहुँची. उसने दरवाज़ा इतने धीरे से खोला के ज़रा भी आवाज़ नही हुई. दरवाज़े के बाहर शौर्या सिंग खड़े थे.

दरवाज़ा खुलते ही ठाकुर सामने नंगी खड़ी रूपाली को हैरत से देखने लगे. उन्होने कुच्छ कहने के लिए मुँह खोला ही था के रूपाली ने एक अंगुली अपने होंठो पर रखकर उन्हें चुप रहने का इशारा किया. ठाकुर चुप हो गये और रूपाली के इशारे पर धीरे से कमरे में आए.

कमरे का नज़ारा देखकर वो और भी चौंक पड़े. बिस्तर पर पायल नंगी बँधी हुई थी और उसकी आँखो पर भी पट्टी थी. उन्होने पलटकर रूपाली की तरफ देखा और जो अभी भी उन्हें चुप रहने का इशारा कर रही थी. इशारा में उन्होने पुचछा के ये क्या हो रहा है तो पायल ने मुस्कुरकर उनका हाथ पकड़ा और बिस्तर के करीब ले आई.

"क्या हुआ मालकिन?" पायल ने पुचछा. उसे ज़रा भी अंदाज़ा नही था के इस वक़्त कमरे में उन दोनो के अलावा एक तीसरा आदमी भी मौजूद था.

"कुच्छ नही" रूपाली ने कहा और फिर बिस्तर पर आकर पायल की छातियों पर हाथ फेरने लगी. दूसरे हाथ से उसने फिर खीरा अंदर बाहर करना शुरू कर दिया

"मज़ा आ रहा है ना पायल?" उसने ठाकुर की तरफ देखते हुए पायल से पुचछा. ठाकुर की अब भी कुच्छ समझ नही आ रहा था. वो हैरत से अपने सामने बिस्तर पर पड़ी दोनो नंगी औरतों को देख रहे थे.

"हां मालकिन" पायल ने कहा. अब चूत में अंदर बाहर हो रहे खीरे के साथ उसकी कमर भी उपेर नीचे हो रही थी.

रूपाली ने झुक कर पायल का एक निपल अपने मुँह में लिया और ठाकुर को इशारे से बिस्तर पर नंगे होकर धीरे से आने को कहा.

ठाकुर ने चुप चाप अपने सारे कपड़े उतारे और नंगे होकर बिस्तर पर आ गये.

पायल लेटी हुई थी, रूपाली उसके पास बैठी उसकी चूत में खीरा घुमा रही थी और ठाकुर वहीं रूपाली के पास आकर बैठ गये. रूपाली ने धीरे से उन्हें अपने पास किया और उनका लंड मुँह में लेके चूसने लगी. दूसरे हाथ से खीरा अब भी पायल की चूत में अंदर बाहर हो रहा था. पायल के मुँह से अब ज़ोर ज़ोर से आह आह निकलनी शुरू हो चुकी थी जिससे सॉफ पता चलता था के उसे कितना मज़ा आ रहा है. उसकी साँस भी अब भारी हो चली थी.

ठाकुर ने लंड चूस्ति रूपाली की तरफ देखा और अपना एक हाथ पायल की छाती पर रखने की कोशिश की. रूपाली ने फ़ौरन उनका हाथ खींच लिया और इशारे से कहा के मर्द का हाथ लगने से पायल को पता चल जाएगा के उसकी छाती रूपाली नही कोई और दबा रहा है.

थोड़ी देर यही खेल चलता रहा. पायल अब पूरे जोश में आ चुकी थी. रूपाली ने ठाकुर का लंड मुँह से निकाला और उन्हें पायल की टाँगो के बीच आने का इशारा किया. ठाकुर चुप चाप पायल की टाँगो के बीच आ गये.

"अब मैं तेरी चूत में कुच्छ और घुसाऊंगी" रूपाली ने पायल से कहा

"अब क्या मालकिन?" पायल ने अपनी भारी हो रही साँस के बीच पुछा

"तू बस मज़े ले" रूपाली ने कहा और खीरा चूत से बाहर निकल लिया. उसने पायल की दोनो टांगे मॉड्कर उसकी छातियों से लगा दी ताकि उसकी चूत बिल्कुल उपेर हो जाए और उसकी टांगे ठाकुर के शरीर से ना लगें.

"अपनी टांगे ऐसी ही रखना" उसने पायल से कहा. पायन ने हां में सर हिलाया और अपनी टांगे और उपेर को मोड़ ली. उसके घुटने उसकी चूचियों से आ लगे.

ठाकुर पायल की चूत के बिल्कुल सामने आ गये. रूपाली ने एक हाथ से ठाकुर का लंड पकड़ा और पायल की चूत पर रखकर उन्हें अंदर घुसने का इशारा किया. ठाकुर ने थोडा अंदर दबाया और लंड अंदर घुसने लगा. चूत पहले से ही खुली हुई थी और खीरे पर लगे आयिल की वजह से चिकनी हो रखी थी. लंड फ़ौरन आधे से ज़्यादा अंदर घुसता चला गया. ठाकुर ने मज़े से अपनी आँखें बंद की और बिना कोई आवाज़ के मुँह खोलकर आह कहने का इशारा सा किया. रूपाली समझ गयी के नयी कुँवारी चूत का मज़ा ठाकुर के चेहरे पर झलक रहा है. वो मुस्कुराइ. उसने ठाकुर का लंड अब भी पकड़ रखा था. ठाकुर ने लंड और घुसाने की कोशिश की तो रूपाली ने हाथ से रोक लिया ताकि ठाकुर के अंडे या और कोई जिस्म का हिस्सा पायल को ना छु जाए. ताकि उसे बस ये लगे के कोई लंबी सी चीज़ उसकी चूत में घुसी हुई है.

"ये क्या है मालकिन" पायल ने पुचछा

"है कुच्छ" रूपाली ने जवाब दिया. "मज़ा आ रहा है?"

"हां" पायल ने कहा और आगे बात जोड़ी "खीरे से भी ज़्यादा"

"तो बस मज़े ले" रूपाली ने कहा और ठाकुर को चोदने का इशारा किया.

ठाकुर ने लंड आगे पिछे करना शुरू कर दिया. उनका लंड काफ़ी लंबा था इसलिए रूपाली का हाथ उनके और पायल की चूत के बीच होने के बावजूद काफ़ी लंड चूत के अंदर था. वो धीरे धीरे अपना लंड अंदर बाहर करने लगे. अगर तेज़ी से चोद्ते तो शायद पायल को शक हो जाता.

थोड़ी देर चुदाई के बाद अचानक पायल का जिसम अकड़ने लगा. उसकी साँस तेज़ी से चलने लगी और फिर अगले ही पल वो ज़ोर से कराही, जिस्म ज़ोर से हिला और टांगे हवा में सीधी उठ गयी

"मालकिन" वो ज़ोर से बोली. पायल समझ गयी के उसका पानी निकल गया पर उसने ठाकुर को चुदाई जारी रखने का इशारा किया

"ये तेरा पानी निकला है. जब औरत पूरा मज़ा लेने लगती है तो ऐसा होता है. फिकर मत कर. अभी ऐसा ही फिर होगा" उसने पायल से कहा पर पायल तो लगता है जैसे अपनी ही दुनिया में थी. उसे कोई होश नही था. बस ज़ोर ज़ोर से साँस ले रही थी. रूपाली ने उसकी टांगे अब भी हवा में पकड़ रखी थी ताकि वो ठाकुर को ना छु जाए.

थोड़ी देर बाद रूपाली ने ठाकुर को देखा जो पायल आँखें बंद किए पायल को चोदने में लगे हुए थे. उसने ठाकुर को हाथ से हिलाया और अपना हाथ अपनी चूत पर फेरा. ठाकुर समझ गये के वो क्या चाहती है. उन्होने हां में सर हिलाया और पायल की चूत से लंड निकाल लिया.

"आआह " पायल कराही "निकाल क्यूँ लिया मालकिन?"

"अब फिर से यही ले" रूपाली ने खीरा फिर से उसकी चूत में घुसा दिया

"नही खीरा नही. वो जो पहले था वही" पायल वासना में पागल हो रही थी

"वो अब मेरी चूत में है" रूपाली ने कहा और खीरा पायल की चूत में अंदर बाहर करने लगी. उसने पायल के टांगे छोड़ दी थी और कुतिया की तरह पायल की साइड में झुकी हुई थी. ठाकुर उसके पिछे पहुँचे और उसकी गान्ड थामकर अपना लंड रूपाली के चूत में अंदर तक उतार दिया. रूपाली ने एक आह भारी और झुक कर पायल के निपल्स चूसने लगी. पीछे से उसकी चूत में ठाकुर का लंड अंदर बाहर होने लगा.

कमरे में फिर जो तूफान आया वो तब ही रुका जब तीनो थक कर निढाल हो गये. रूपाली का इशारा पाकर ठाकुर जिस तरह चुप चाप कमरे में आए थे वैसे ही निकल गये. रूपाली ने आकर पायल की आँखों पर से पट्टी हटाई और उसके हाथ खोले. पायल को अंदाज़ा भी नही था के वो अभी अभी एक मर्द से चुदी थी. बस बिस्तर पर आँखें बंद किए पड़ी रही. रूपाली ने कमरे का दरवाज़ा बंद किया और नंगी ही आकर पायल के पास लेट गयी.

सुबह नाश्ते की टेबल पर तीनो मिले. पायल बहुत खुश लग रही थी. ठाकुर और रूपाली उसे देखकर आपस में मुस्कुराए.

ठाकुर ने अपनी कपड़े की फॅक्टरी के सिलसिले में किसी से मिलने जाना था इसलिए वो तैय्यार होकर घर से निकलने लगे. जाते जाते उन्होने रूपाली को अपने कमरे में बुलाया.

"वो कल रात क्या था?" उन्होने रूपाली से पुछा

"कुच्छ नही. बस आपने एक कुँवारी कली को फूल बना दिया" रूपाली ने हस्ते हुए कहा

"पर कैसे?" ठाकुर ने भी हस्ते हुए रूपाली से पुचछा

"आपने हमें हमारे जनमदिन पर कार लाकर दी. बस यूँ समझिए के ये हमारी तरफ से बिर्थडे पार्टी थी आपके लिए. कब कैसे मत पुच्हिए अब" रूपाली ने कहा. उसे खुद पर हैरत हो रही थी. वो दिल ही दिल में ठाकुर को अपने ससुर नही बल्कि अपने प्रेमी की तरह चाहती थी. और उसे इस बात कोई कोई अफ़सोस नही था के उसने खुद अपने प्रेमी को एक पराई औरत के साथ सुलाया था.

ठाकुर के जाने के बाद उसकी समझ ना आया के वो क्या करे. तेज कल रात का गया लौटा नही था इसलिए सफाई के लिए अब तक कोई नही आया था. रूपाली अगले एक घंटे तक उनका इंतेज़ार करती रही पर जब कोई नही आया तो उसने नीचे बेसमेंट में रखे बॉक्स की तलाशी लेने की सोची.

वो उठकर बेसमेंट की और चली ही थी के फोन बज उठा. रूपाली ने फोन उठाया. दूसरी तरफ से एक अजनबी आवाज़ आई.

"मेडम मैं डॉक्टर कुलकर्णी बोल रहा हूँ. ठाकुर साहब का आक्सिडेंट हो गया है. काफ़ी चोट आई हैं. सीरीयस हालत में हैं. आप फ़ौरन हॉस्पिटल आ जाइए."
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#30
Update 26

रूपाली कार लेकर हॉस्पिटल पहुँची. साथ में भूषण भी आया था. पायल को उसने वहीं हवेली में छ्चोड़ दिया था. हवेली से हॉस्पिटल तक तकरीबन एक घंटे की दूरी थी. जब रूपाली हॉस्पिटल पहुँची तो इनस्पेक्टर ख़ान वहाँ पहले से ही मौजूद था.

रूपाली ने उसकी तरफ ऐसे देखा जैसे फिर किसी बात का इंतेज़ार कर रही हो. ख़ान जैसे पोलिसेवाले मौके हाथ से नही जाने देते इस बात को वो अच्छे से जानती थी. पर उसकी उम्मीद से बिल्कुल उल्टा हुआ. ख़ान ने कुच्छ नही कहा. बस इशारे से उस कमरे की तरफ सर हिलाया जहाँ पर ठाकुर अड्मिट थे.

रूपाली कमरे में पहुँची तो उसका रोना छूट पड़ा. पट्टियों में लिपटे ठाकुर बेहोश पड़े थे. उसने डॉक्टर की तरफ देखा.

"सर में चोट आई है" डॉक्टर ने रूपाली का इशारा समझते हुए कहा "बेहोश हैं. कह नही सकता के कब तक होश आएगा."

"कोई ख़तरे की बात तो नही है ना?" रूपाली ने उम्मीद भरी आवाज़ में पुचछा

"सिर्फ़ एक" डॉक्टर बेड के करीब आता हुआ बोला "जब तक इन्हें होश नही आ जाता तब तक इनके कोमा में जाने का ख़तरा है"

"इसलिए पिताजी को हमने शहेर भेजने का इंतज़ाम करवा दिया है" तेज की आवाज़ पिच्चे से आई तो सब दरवाज़े की तरफ पलते. दरवाज़े पर तेज खड़ा था.

"कल सुबह ही इन्हें शहेर ट्रान्स्फर कर दिया जाएगा" तेज ने कहा और आकर ठाकुर के बिस्तर के पास आकर खड़ा हो गया. उसने दो पल ठाकुर की तरफ देखा और कमरे से निकल गया.

रूपाली सारा दिन हॉस्पिटल में ही रुकी रही. शाम ढालने लगी तो उसने भूषण को हॉस्पिटल में ही रुकने को कहा और खुद हवेली वापिस जाने के लिए निकली. हॉस्पिटल से बाहर निकालकर वो अपनी कार की तरफ बढ़ी ही थी के सामने से ख़ान की गाड़ी आकर रुकी.

"मुझे लगा ही था के आप यहीं मिलेंगी" पास आता ख़ान बोला

"कहिए" रूपाली ने कहा

"ठाकुर साहब आज आपकी गाड़ी में निकले थे ना?" ख़ान बोला

"जी हां" रूपाली ने कहा

"मतलब के उनकी जगह गाड़ी में आप होती तो हॉस्पिटल में बिस्तर पर भी आप ही होती" ख़ान मुस्कुराते हुए बोला "समझ नही आता के इसे आपकी खुश किस्मती कहीं या ठाकुर साहब की बदनसीबी"

"आप मुझे ये बताने के लिए यहाँ आए थे?" रूपाली हल्के गुस्से से बोली

"जी नही" ख़ान ने कहा "पुचछा तो कुच्छ और था आपसे पर इस वक़्त मुनासिब नही है शायद. क्या आप कल पोलीस स्टेशन आ सकती हैं?

"ठाकूरो के घर की औरतें पोलीस स्टेशन में कदम नही रखा करती. हमारी शान के खिलाफ है ये. पता होना चाहिए आपको" रूपाली को अब ख़ान से चिड सी होने लगी थी इसलिए ताना मारते हुए बोली

"चलिए कोई बात नही" ख़ान भी उसी अंदाज़ में बोला "हम आपकी शान में गुस्ताख़ी नही करेंगे. कल हम ही हवेली हाज़िर हो जाएँगे."

इससे पहले के रूपाली कुच्छ कहती ख़ान पलटकर अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ गया. जाते जाते वो फिर रूपाली की तरफ देखकर बोला

"मैने तो ये भी सुना था के ठाकूरो के घर की औरतें परदा करती हैं. आप तो बेझिझक बिना परदा किए ठाकुर साहब के कमरे में चली आई थी. आपकी कैसे पता के ठाकुर साहब बेहोश थे. होश में भी तो हो सकते थे" ख़ान ने कहा और रूपाली को हैरान छ्चोड़कर अपनी गाड़ी में बैठकर निकल गया

हवेली पहुँचते हल्का अंधेरा होने लगा था. रूपाली तेज़ी से कार चलती हवेली पहुन्नची. उसे लग रहा था के पायल हवेली में अकेली होगी पर वहाँ उसका बिल्कुल उल्टा था. हवेली में पायल के साथ बिंदिया और चंदर भी थे. बिंदिया को देखते ही रूपाली समझ गयी के उसने बात मान ली है और वो तेज के साथ सोने को तैय्यार है. पर तेज आज रात भी हवेली में नही था.

"नमस्ते मालकिन" बिंदिया ने हाथ जोड़ते हुए कहा "अब कैसे हैं ठाकुर साहब?"

"अभी भी सीरीयस हैं" रूपाली ने जवाब दिया "तू कब आई?"

"बस अभी थोड़ी देर पहले" बिंदिया ने कहा और वहीं नीचे बैठ गयी

रूपाली ने पायल को पानी लेने को कहा. वो उठकर गयी तो चंदर भी उसके पिछे पिछे किचन की तरफ चल पड़ा.

"मुझे आपकी बात मंज़ूर हैं मालकिन" अकेले होते ही बिंदिया बोली

"अभी नही" रूपाली ने आँखें बंद करते हुए कहा "बाद में बात करते हैं"

उस रात रूपाली ने अकेले ही खाना खाया. बिंदिया और चंदर को उसने हवेली के कॉंपाउंड में नौकरों के लिए बने कमरो में से 2 कमरे दे दिए. खाने के बाद वो चाय के कप लिए बड़े कमरे में बैठी थी. तभी बिंदिया सामने आकर बैठ गयी.

"आक्सिडेंट कैसे हुआ मालकिन?" उसने रूपाली से पुचछा

"पता नही" रूपाली ने जवाब दिया "ये तो कल ही पता चलेगा"

दोनो थोड़ी देर खामोश बैठी रही

"तो तुझे मेरी बात से कोई ऐतराज़ नही?" थोड़ी देर बाद रूपाली ने पुचछा. बिंदिया ने इनकार में सर हिला दिया

"तो फिर जितनी जल्दी हो सके तो शुरू हो जा. अब चूँकि ठाकुर साहब बीमार हैं तो मुझे घर के काम काज देखने के लिए तेज का सहारा लेना होगा जिसके लिए ज़रूरी है के वो घर पर ही रुके"

बिंदिया ने बात समझते हुए हाँ में सर हिलाया

"पर एक बात समझ नही आई. तू एक तो तरफ तो तेज को संभालेगी और दूसरी तरफ चंदर?" रूपाली ने चाय का कप बिंदिया को थमाते हुए पुचछा

"उसकी आप चिंता ना करें" बिंदिया ने मुस्कुराते हुए कहा

रात को सब अपने अपने कमरे में चले गये. रूपाली अपने कमरे में लेटी सोने की कोशिश कर रही थी. नींद उसकी आँखों से जैसे कोसो दूर थी. तभी बीच का दरवाज़ा खुला और पायल रूपाली के कमरे में दाखिल हुई. हल्की रोशनी में रूपाली देख सकती थी के वो अपने कमरे से ही पूरी तरह नंगी होकर आई थी.

"माँ की तरह बेटी भी उतनी ही गरम है. जिस्म की गर्मी संभाल नही रही" रूपाली ने दिल में सोचा

"आज नही पायल" उसने एक नज़र पायल की तरफ देखते हुए कहा

उसकी बात सुनकर पायल फिर दोबारा अपने कमरे की तरफ लौट गयी.

सुबह रूपाली उठी तो उसका पूरा जिस्म दुख रहा था. हर रात बिस्तर पर रगडे जाने के जैसे उसे आदत पड़ गयी थी. बिना चुदाई के नींद बड़ी मुश्किल से आई. उसने घड़ी की तरफ नज़र डाली तो सुबह के 6 बज रहे थे. वो बिस्तर से उठी. पायल के कमरे का दरवाज़ा खुला हुआ था. उसने कमरे में नज़र डाली तो देखा के पायल बिस्तर पर पूरी तरह से नंगी पड़ी सो रही थी. शायद कल रात रूपाली के मना कर देने की वजह से ऐसे ही जाकर सो गयी थी.

वो उठकर नीचे आई. भूषण ठाकुर के पास हॉस्पिटल में ही था इसलिए उसने बिंदिया को नाश्ता बनाने के लिए कहने की सोची. वो हवेली से बाहर आकर बिंदिया के कमरे की तरफ चली. दरवाज़े पर पहुँचकर बिंदिया को आवाज़ देने की सोची तो कमरे में से बिंदिया के करहने की आवाज़ आई. गौर से सुना तो रूपाली समझ गयी के कमरे के अंदर बिंदिया और चंदर का खेल जारी था.

"सुबह सुबह 6 बजे" सोचकर रूपाली मुस्कुराइ और वापिस हवेली में आकर खुद किचन में चली गयी.

उसने सुबह सवेरे ही हॉस्पिटल जाने की सोची. पूरी रात ठाकुर के बारे में सोचकर वो अपने आप को कोस्ती रही के क्यूँ उसने अपनी गाड़ी ठाकुर को दे दी थी. आख़िर प्यार करती थी वो ठाकुर से. अंदर ही अंदर उसका दिल चाह रहा था था के जो ठाकुर के साथ हुआ काश वो उसके साथ हो जाता.

सुबह के 10 बजे तक रूपाली तेज के आने का इंतेज़ार करती रही. उसने कहा था के वो ठाकुर को शहेर के हॉस्पिटल में शिफ्ट करने का इंतज़ाम कर रहा है इसलिए रूपाली ने उसके साथ ही हॉस्पिटल जाने की सोची. पर 10 बजे तक तेज नही आया बल्कि अपने कहे के मुताबिक इनस्पेक्टर ख़ान आ गया.

"सलाम अर्ज़ करता हूँ ठकुराइन जी" ख़ान ने अपनी उसी पोलीस वाले अंदाज़ में कहा. रूपाली ने सिर्फ़ हाँ में सर हिलाते हुए उसे बैठने का इशारा किया. ख़ान की कही कल रात की बात उसे अब भी याद थी के वो बिना परदा किए हॉस्पिटल में ठाकुर के कमरे में आ पहुँची थी.

"कहिए" उसने ख़ान के बैठते ही पुचछा

"एक ग्लास पानी मिल सकता है?" ख़ान ने कमरे में नज़र दौड़ते हुए कहा. रूपाली ने पायल को आवाज़ दी और एक ग्लास पानी लाने को कहा.

"इस इलाक़े में मैं जबसे आया हूँ तबसे इस हवेली में मुझे सबसे ज़्यादा इंटेरेस्ट रहा है" ख़ान ने कहा. तभी पायल पानी ले आई. ख़ान ने पानी का ग्लास लिया और एक भरपूर नज़र से पायल को देखा. जैसे आँखों ही आँखों में उसका X-रे कर रहा हो. रूपाली ने पायल को जाने का इशारा किया

"जान सकती हूँ क्यूँ?" रूपाली ने कहा तो ख़ान चौंका

"क्यूँ क्या?" उसने पुचछा

"हवेली में इतना इंटेरेस्ट क्यूँ?"रूपाली ने पुचछा

"ओह्ह्ह्ह" ख़ान को जैसे अपनी ही कही बात याद आई "आपकी पति की वजह से"

"मतलब?"

"मतलब ये मॅ'म के आपके पति इस इलाक़े के एक प्रभाव शालि आदमी थी और आपके ससुर उसने भी ज़्यादा. इस गाओं के कई घरों में आपके खानदान की वजह से चूल्हा जलता था तो ऐसे कैसे हो गया के आपके पति को मार दिया गया?" ख़ान ने आगे को झुकते हुए कहा

"ये बात आपको पता लगानी चाहिए. पोलिसेवाले आप हैं. मैं नही" रूपाली ने भी उसी अंदाज़ में जवाब दिया

"वही तो पता लगाने की कोशिश कर रहा हूँ. काफ़ी सोचा है मैने इस बारे में पर कोई हल नही निकल रहा. वो क्या है के आपके पति की हत्या की वजह है ही नही कोई सिवाय एक के" ख़ान ने कहा

"कहते रहिए" रूपाली ने जवाब दिया

"अब देखिए. आपके खानदान का कारोबार सब ज़मीन से लगा हुआ है. जो कुच्छ है सब इस इलाक़े में जो ज़मीन है उससे जुड़ा हुआ है. और दूसरे आपकी पति एक बहुत सीधे आदमी थे ऐसा हर कोई कहता है. कभी किसी से उनकी अनबन नही रही. तो किसी के पास भी उन्हें मारने की कोई वजह नही थी क्यूंकी ज़मीन तो सारी ठाकुर खानदान की है. झगड़ा उनका किसी से था नही" ख़ान बोलता रहा

"आप कहना क्या चाह रहे है हैं?" रूपाली को ख़ान की बात समझ नही आ रही थी

"आपको क्या लगता है ये पूरी जायदाद किसकी है?" ख़ान ने हवेली में फिर नज़र दौड़ाई

"हमारी" रूपाली ने उलझन भारी आवाज़ में कहा "मेरा मतलब ठाकुर साहब की"

"ग़लत" ख़ान ने मुस्कुराते हुए कहा "ये सब आपका है मॅ'म. इस पूरी जायदाद की मालकिन आप हैं"

"आप होश में है?" रूपाली ने थोड़ा गुस्से में कहा "सुबह सुबह पीकर आए हैं क्या?"

"मैं ,., हूँ मॅ'म और हमारे यहाँ शराब हराम है. पूरे होश में हूँ मैं" ख़ान सोफे पर बैठते हुए बोला

"ये सब मेरा? आपका दिमाग़ ठीक है?" रूपाली ने उसी गुस्से से भरे अंदाज़ में पुचछा

"वो क्या है के हुआ यूँ के ये जायदाद ठाकुर शौर्या सिंग की कभी हुई ही नही" ख़ान ने अपनी बात जारी रखी "उनके बाप ने अपनी ये जायदाद पहले अपने दूसरे बेटे के नाम की थी. क्यूँ ये कोई नही जानता पर जब उनका दूसरा बेटा गुज़र गया तो उन्हें नयी वसीयत बनाई और जायदाद अपनी बहू यानी आपकी सास सरिता देवी के नाम कर दी. सरिता देवी ने जब देखा के आपके पति पुरुषोत्तम सब काम संभाल रहे हैं और एक भले आदमी हैं तो उन्हें सब कुच्छ आपके पति के नाम कर दिया"

रूपाली आँखें खोल ख़ान को ऐसे देख रही थी जैसे वो कोई अजूबा हो

"अब आपके पति की सबसे करीबी रिश्तेदार हुई आप तो उनके मरने से सब कुच्छ आपका हो गया" ख़ान ने फिर आगे को झुकते हुए कहा

"ज़रूरी तो नही" रूपाली को समझ नही आ रहा था के वो क्या कहे

"हां ज़रूरी तो नही है पर क्या है के आपके पति के मरने से एक हफ्ते पहले उन्होने एक वसीयत बनाई थी के अगर उन्हें कुच्छ हो जाए तो सब कुच्छ आपको मिले. तो इस हिसाब से आप हुई इस पूरी जायदाद की मालकिन" ख़ान ये बात कहकर चुप हो गया

कमरे में काफ़ी देर तक खामोशी रही. ख़ान रूपाली को देखता रहा और रूपाली उसे. उसकी समझ नही आ रहा था के ख़ान क्या कह रहा है और वो उसके बदले में क्या कहे

"आपको ये सब कैसे पता?" आख़िर रूपाली ने ही बात शुरू की

"पोलिसेवला हूँ मैं ठकुराइन जी" ख़ान फिर मुस्कुराया "सरकार इसी बात के पैसे देती है मुझे"

"ऐसा नही हो सकता" रूपाली अब भी बात मानने को तैय्यार नही थी

"अब सरिता देवी नही रही, आपके पति की हत्या हो चुकी है, एक देवर आपका अय्याश है जिसे दुनिया से कोई मतलब नही और दूसरा विदेश में पढ़ रहा है और अभी खुद बच्चा है" ख़ान ने रूपाली की बात नज़र अंदाज़ करते हुए कहा

"तो?" रूपाली के सबर का बाँध अब टूट रहा था

"अच्छा एक बात बताइए" ख़ान ने फिर उसका सवाल नज़र अंदाज़ कर दिया "आपकी ननद कामिनी कहाँ है?

"विदेश" रूपाली ने जवाब दिया

"मैने पता लगाया है. उसके पासपोर्ट रेकॉर्ड के हिसाब से तो वो कभी हिन्दुस्तान के बाहर गयी ही नही" ख़ान ने जैसे एक और बॉम्ब फोड़ा

रूपाली को अब कुच्छ अब समझ नही आ रहा था. वो बस एकटूक ख़ान को देखे जा रही थी

"कब मिली थी आप आखरी बार उससे?" ख़ान ने पुचछा

"मेरे पति के मरने के बाद. कोई 10 साल पहले" रूपाली ने धीरे से कहा

"मैने लॅब से आई रिपोर्ट देखी है. जो लाश आपकी हवेली से मिली है वो किसी औरत की है और उसे कोई 10 साल पहले वहाँ दफ़नाया गया था" बोलकर ख़ान चुप हो गया

रूपाली की कुच्छ कुच्छ समझ आ रहा था के ख़ान क्या कहना चाह रहा है. हवेली में मिली लाश? कामिनी? नही, ऐसा नही हो सकता, उसने दिल ही दिल में सोचा.

"बकवास कर रहे हैं आप" रूपाली की अब भी समझ नही आ रहा था के क्या कहे

"बकवास नही सच कह रहा हूँ. और अब जबकि ठाकुर भी लगभग मरने वाली हालत में आ चुके हैं तो बस आपके 2 देवर ही रह गये और फिर हवेली आपकी" ख़ान बोला

रूपाली का दिल किया के उसे उठकर थप्पड़ लगा दे.

"कहना क्या चाहते हैं आप?" उसकी आँखें गुस्से से लाल हो उठी

"यही के ठाकुर आपकी ही गाड़ी में मरते मरते बचे हैं. आपके पति की हत्या ये जायदाद आपके नाम हो जाने के ठीक एक हफ्ते बाद हो गयी. आपकी ननद का कहीं कुच्छ आता पता नही. आपका देवर सालों से हिन्दुस्तान नही आया. इतनी बड़ी जायदाद बहुत कुच्छ करवा सकती है" ख़ान ने ऐसे कहा जैसे रूपाली को खून के इल्ज़ाम में सज़ा सुना रहा हो

"अभी इसी वक़्त हवेली से बाहर निकल जाइए" रूपाली चिल्ला उठी.

"मैं तो चला जाऊँगा मॅ'म" ख़ान ने उठने की कोई कोशिश नही की "पर सच तो आख़िर सच ही है ना"

"तो सच पता करने की कोशिश कीजिए" रूपाली उठ खड़ी हुई "और अब दफ़ा हो जाइए यहाँ से"

ख़ान ने जब देखा के अब उसे जाना ही पड़ेगा तो वो भी उठ गया और रूपाली की तरफ एक आखरी नज़र डालकर हवेली से निकल गया.

ख़ान चला तो गया पर अपने पिछे कई सवाल छ्चोड़ गया था. रूपाली के सामने इस वक़्त 2 सबसे बड़े सवाल थे के जायदाद के बारे में जो ख़ान ने बताया था वो आख़िर कभी ठाकुर ने क्यूँ नही कहा? और दूसरा सवाल था कामिनी के बारे में पर इस वक़्त उसने इस बारे में सोचने से बेहतर हॉस्पिटल में कॉल करना समझा क्यूंकी तेज अभी तक नही आया था.

उसने आगे बढ़कर फोन उठाया ही था के सामने से तेज आता हुआ दिखाई दिया

"कहाँ थे अब तक?" रूपाली ने थोड़ा गुस्से में पुचछा

"हॉस्पिटल" तेज सोफे पर आकर बैठ गया "रात भर वहीं था"

रूपाली को तेज की बात पर काफ़ी हैरत हुई

"रात भर?" उसने तेज से पुचछा

"हाँ" तेज ने आँखें बंद कर ली

"मुझे बता तो देते" रूपाली ने उसके पास बैठते हुए कहा

"सोचा आपको बताऊं फिर सोचा के सुबह घर तो जाऊँगा ही इसलिए आकर ही बता दूँगा" तेज वैसे ही आँखें बंद किए बोला

"शहेर कब शिफ्ट करना है?" रूपाली ने पुचछा

"ज़रूरत नही होगी. डॉक्टर का कहना है के अब हालत स्टेबल है. वो अभी भी बेहोश हैं, बात नही कर सकते पर ख़तरे से बाहर हैं" तेज ने कहा तो रूपाली को लगा के उसके सीने से एक बोझ हट गया. वो भी वहीं सोफे पर बैठ गयी.

"मैं शाम को देख आओंगी. अभी तुम जाकर आराम कर लो" उसने तेज से कहा तो वो उठकर अपने कमरे की तरफ बढ़ गया

तेज के साथ साथ ही रूपाली भी उठकर अपने कमरे की तरफ जाने लगी. तभी उसे सामने हवेली के कॉंपाउंड में चंदर खड़ा हुआ दिखाई दिया. वो बाहर चंदर की तरफ आई

"क्या कर रहे हो?" उसने पुचछा तो चंदर फ़ौरन उसकी तरफ पलटा

"जी कुच्छ नही" उसने सर झुकाते हुए कहा "ऐसे ही खड़ा था"

"एक काम करो" रूपाली ने चंदर से कहा "तुम हवेली की सफाई क्यूँ शुरू नही कर देते. काफ़ी दिन से गाओं से आदमी बुलाकर करवाने की कोशिश कर रही हूँ पर काम कुच्छ हो नही पा रहा है. तुम अब यहाँ हो तो तुम ही करो"

चंदर ने हां में सर हिला दिया

"जो भी समान तुम्हें चाहिए वो सामने स्टोर रूम में है." रूपाली ने सामने स्टोर रूम की तरफ इशारा किया और वापिस हवेली में आ गयी.

कमरे में आने से पहले उसने बिंदिया को उपेर आने का इशारा कर दिया था. उसके पिछे पिछे बिंदिया भी उसके कमरे में आ गयी

"तुझे जिस काम के लिए यहाँ बुलाया है तू आज से ही शुरू कर दे. तेज को इशारा कर दे के तू भी उसे बिस्तर पर चाहती है" उसने बिंदिया से कहा

"जी ठीक है" बिंदिया ने हाँ में सर हिला दिया

"और ज़रा चंदर से चुदवाना कम कर. तेज ने देख लिए तो ठीक नही रहेगा" रूपाली ने कहा

बिंदिया के जाने के बाद रूपाली वहीं बिस्तर पर बैठ गयी. उसे कामिनी वाली बात परेशान किए जा रही थी. दिल ही दिल में उसने फ़ैसला किया के वो कामिनी से बात करेगी और फोन उठाया.

उसने अपनी डाइयरी से कामिनी का नंबर लिया और डाइयल किया. दूसरी तरफ से आवाज़ आई के ये नंबर अब सर्विस में नही है. कामिनी का दिल बैठने लगा. क्या ख़ान की बात सच थी? तभी उसे नीचे बेसमेंट में रखा वो बॉक्स ध्यान आया. जो बात उसके दिमाग़ में आई उससे उसका डर और बढ़ गया. वो उठकर बेसमेंट की और चल दी.

बेसमेंट में पहुँचकर रूपाली सीधे बॉक्स के पास आई.
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#31
Update 27

बेसमेंट में खड़ी रूपाली एकटूक सामने रखे बॉक्स को देखने लगी. उसकी समझ नही आ रहा था के बॉक्स में किस चीज़ के होने की उम्मीद करे. वो अभी अपनी सोच में ही थी के उसे सीढ़ियों से किसी के उतरने की आवाज़ सुनाई दी. पलटकर देखा तो वो पायल थी.

"क्या हुआ?" उसने पायल से पुचछा

"छ्होटे मलिक आपको ढूँढ रहे हैं" पायल ने तेज की और इशारा करते हुए कहा

रूपाली ने बॉक्स बाद में खोलने का इरादा किया और वापिस हवेली में आई. तेज उपेर अपने कमरे में ही था.

"क्या हुआ तेज?" वो तेज के कमरे में दाखिल होती हुई बोली

"वो हमें कुच्छ काम से बाहर जाना था पर हमारी गाड़ी स्टार्ट नही हो रही. तो हम सोच रहे थे के क्या हम आपकी कार ले जा सकते हैं? घंटे भर में ही वापिस आ जाएँगे" तेज ने पहली बार रूपाली से कुच्छ माँगा था

रूपाली जानती थी के वो फिर कहीं शराब पीने या किसी रंडी के पास ही जाएगा पर फिर भी उसने पुचछा

"कहाँ जाना है? पूरी रात के जागे हुए हो तुम. आराम कर लो"

"आकर सो जाऊँगा" तेज ने कहा "कुच्छ ज़रूरी काम है"

रूपाली ने उससे ज़्यादा सवाल जवाब करना मुनासिब ना समझा. वो नही चाहती थी के तेज उससे चिडने लगे

"मैं कार की चाभी लाती हूँ" कहते हुए वो अपने कमरे की और बढ़ गयी.

अपने कमरे में आकर रूपाली ने चाभी ढूंढी और वापिस तेज के कमरे की और जाने ही लगी थी के उसे ख़ान की कही बात याद आई के ये सारी जायदाद अब उसकी है. उसने दिल ही दिल में कुच्छ फ़ैसला किया और वापिस तेज के कमरे में आई.

तेज तैय्यार खड़ा था. रूपाली ने उसे एक नज़र देखा तो दिल ही दिल में तेज के रंग रूप की तारीफ किए बिना ना रह सकी. उसका नाम उसकी पर्सनॅलिटी के हिसाब से ही था. उसके चेहरे पर हमेशा एक तेज रहता था और वो भी अपने बाप की तरह ही बहुत खूबसूरत था. वो तीनो भाई ही शकल सूरत से बहुत अच्छे थे. बस यही एक फरक था ठाकुर शौर्या सिंग की औलाद में. जहाँ उनके तीनो लड़के शकल से ही ठाकुर लगते थे वहीं उनकी बेटी कामिनी एक मामूली शकल सूरत की लड़की थी. उसे देखकर कोई कह नही सकता था के वो चारों भाई बहेन थे.

रूपाली ने चाभी तेज को दी और बोली

"अब पिताजी हॉस्पिटल में है तो मैं सोच रही थी के तुम कारोबार क्यूँ नही संभाल लेते?"

तेज हस्ता हुए उसकी तरफ पलटा

"कौन सा कारोबार भाभी? हमारी बंजर पड़ी ज़मीन? और कौन सी हमारी फॅक्ट्री हैं?"

"ज़मीन इसलिए बंजर है क्यूंकी उसकी देखभाल नही की गयी. तुम्हारे भैया होते तो क्या ऐसा होने देते?" रूपाली पूरी कोशिश कर रही थी के तेज को अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास हो.

भाई का ज़िक्र आते ही तेज फ़ौरन खामोश हो गया और फिर ठहरी हुई आवाज़ में बोला

"भाय्या हैं नही इसी बात का तो अफ़सोस है भाभी और उससे ज़्यादा अफ़सोस इस बात का है के जिसने उनकी जान ली वो शायद आज भी कहीं ज़िंदा घूम रहा है. और आप तो जानती ही हैं के मुझसे ये सब नही होगा. आप विदेश से कुलदीप कोई क्यूँ नही बुलवा लेती? और कितनी पढ़ाई करेगा वो?"

कहते हुए तेज कमरे के दरवाज़े की तरफ बढ़ा और इससे पहले के रूपाली कुच्छ कहती वो कमरे के बाहर निकल गया. जाते जाते वो कह गया के एक घंटे के अंदर अंदर वापिस आ जाएगा.

रूपाली खामोशी से तेज के कमरे में खड़ी रह गयी. उसकी कुच्छ समझ नही आ रहा था के क्या करे. दिमाग़ में लाखों सवाल एक साथ चल रहे थे. ख़ान की कही बात अब भी दिमाग़ में चल रही थी. वो तेज से बात करके ये भी जानना चाहती थी के क्या उसे इस बात का शक है के ये पूरी जायदाद रूपाली के नाम है पर ऐसा कोई मौका तेज ने उसे नही दिया.

उसने दिल ही दिल में ठाकुर के वकील से बात करने की कोशिश की. उसे जाने क्यूँ यकीन था के ख़ान सच बोल रहा था पर फिर भी उसने अपनी तसल्ली के लिए वकील से बात करने की सोची.

उसने तेज के कमरे पर नज़र डाली. वो तेज के कमरे की तलाशी भी लेना चाहती थी. भूषण की कही बात के उसके पति की मौत का राज़ हवेली में ही कहीं है उसे याद थी. एक पल के लिए उसने सोचा के कमरे की तलाशी ले पर फिर उसने अपना दिमाग़ बदल दिया. तेज हवेली में ही था और उसे शक हो सकता था के उसके कमरे की चीज़ें यहाँ वहाँ की गयी हैं. रूपाली चुप चाप कमरे से बाहर निकल आई.

नीचे पहुँचकर वो बड़े कमरे में सोफे पर बैठ गयी. तभी बिंदिया आई.

"छ्होटे मलिक कहीं गये हैं?" उसने रूपाली से पुचछा

"हाँ कहीं काम से गये हैं. क्यूँ?" रूपाली ने आँखें बंद किए सवाल पुचछा

"नही वो आपने कहा था ना के मैं उनके करीब जाने की कोशिश शुरू कर दूँ. तो मैने सोचा के जाकर उनसे बात करूँ" बिंदिया थोडा शरमाते हुए बोली

"दिन में नही.दिन में किसी को भी शक हो सकता है. तुझे मेहनत नही करनी पड़ेगी. रात को किसी बहाने से तेज के कमरे में चली जाना." रूपाली ने खुद ही बिंदिया को रास्ता दिखा दिया

बिंदिया ने हां में सर हिला दिया

रूपाली की समझ में नही आ रहा था के अब क्या करे. दिमाग़ में चल रही बातें उसे पागल कर रही थी. समझ नही आ रहा था के पहले वकील को फोन करे, या तेज के कमरे की तलाशी ले, या हॉस्पिटल जाकर ठाकुर साहब को देख आए या नीचे रखे बॉक्स की तलाशी ले.

एक पल के लिए उसने फिर बसेमेंट में जाने की सोची पर फिर ख्याल दिमाग़ से निकाल दिया. वो बॉक्स की तलाशी आराम से अकेले में लेना चाहती थी और इस वक़्त ये मुमकिन नही था. और तेज कभी कभी भी वापिस आ सकता था. उसने फ़ैसला किया के वो ये काम रात को करेगी.उसने सामने रखा फोन उठाया और ठाकुर साहब के वकील का नंबर मिलाया. दूसरी तरफ से ठाकुर साहब के वकील देवधर की आवाज़ आई.

"कहिए रूपाली जी" उसने रूपाली की आवाज़ पहचानते हुए कहा

"जी मैं आपसे मिलना चाहती थी. कुच्छ ज़रूरी बात करनी थी" रूपाली ने कहा

"जी ज़रूर" देवधर बोला "मुझे लग ही रहा था के आप फोन करेंगी"

देवधर की कही इस बात ने अपने आप में ये साबित कर दिया के जो कुच्छ ख़ान ने कहा था वो सच था

"मैं कल ही हाज़िर हो जाऊँगा" देवधर आयेज बोला

"नही आप नही" रूपाली ने फ़ौरन मना किया "मैं खुद आपसे मिलने आऊँगी"

वो जानती थी के गाओं से शहेर तक जाने में उसे कम से कम 3 घंटे लगेंगे पर जाने क्यूँ वो देवधर से बाहर अकेले में मिलना चाहती थी.

"जैसा आप बेहतर समझें" देवधर ने भी हां कह दिया

"अभी कह नही सकती के किस दिन आऊँगी पर आने से एक दिन पहले मैं आपको फोन कर दूँगी" रूपाली ने कहा

देवधर ने फिर हां कह दी तो उसने फोन नीचे रख दिया.

तेज के लौट आने पर रूपाली उसके साथ हॉस्पिटल पहुँची. डॉक्टर के हिसाब से ठाकुर की हालत में सुधार पर उसे ऐसा कुच्छ ना लगा. ठाकुर अब भी पूरी तरह बेहोश थे. रूपाली ने थोड़ा वक़्त वहीं हॉस्पिटल में गुज़ारा और लौट आई. भूषण अब भी वहीं हॉस्पिटल में ही था.

चंदर ने हवेली के कॉंपौंत में काफ़ी हद तक सफाई कर दी थी. कुच्छ दिन से चल रहे काम का नतीजा ये था के पहले जंगल की तरह उग चुकी झाड़ियाँ अब वहाँ नही थी. अब हवेली का लंबा चौड़ा कॉंपाउंड एक बड़े मैदान की तरह लग रहा था जिसे रूपाली पहले की तरह हरा भरा देखना चाहती थी.

हमेशा की तरह ही तेज फिर शाम को गायब हो गया. वो रूपाली की गाड़ी लेकर गया था. उसने जाने से पहले ये कहा तो था के वो रात को लौट आएगा पर रूपाली को भरोसा नही था के वो आएगा.

खाने के बाद रूपाली अपने कमरे में बैठी हुई कामिनी की वो डाइयरी देख रही थी जिसमें उसने काफ़ी शेरो शायरी लिखी हुई थी. साथ ही उसने काग़ज़ का वो टुकड़ा रखा हुआ था जो उसे कामिनी की डाइयरी के अंदर से मिला था और जिसकी हॅंड राइटिंग कामिनी की हॅंडराइटिंग से मॅच नही करती थी. रूपाली दिल ही दिल में इस बात पर यकीन कर चुकी थी की इस सारी उलझन की एक ही कड़ी है और वो है कामिनी. कामिनी की पूरी डाइयरी में शायरी थी जिसमें से ज़्यादातर शायरी दिल टूट जाने पर थी. डाइयरी की आख़िरी एंट्री पुरुषोत्तम के मरने से एक हफ्ते की थी जो कुच्छ इस तरह थी जिसपर रूपाली का सबसे ज़्यादा ध्यान गया

तू भी किसी का प्यार ना पाए खुदा करे

तुझको तेरा नसीब रुलाए खुदा करे

रातों में तुझको नींद ना आए खुदा करे

तू दर बदर की ठोकरें खाए खुदा करे

आए बाहर तेरे गुलिस्ताँ में बार बार

तुझपर कभी निखार ना आए खुदा करे

मेरी तरह तुझे भी जवानी में घाम मिले

तेरा ना कोई साथ निभाए खुदा करे

मंज़िल कभी भी प्यार की तुझको ना मिल सके

तू भी दुआ में हाथ उठाए खुदा करे

तुझपर शब-ए-विसल की रातें हराम हो

शमा जला जलके बुझाए खुदा करे

हो जाए हर दुआ मेरी मेरे यार ग़लत

बस तुझपर कभी आँच ना आए खुदा करे

दिल ही दिल में रूपाली शायरी की तारीफ किए बिना ना रह सकी. लिखे गये शब्द इस बात की तरफ सॉफ इशारा करते थे के कामिनी का दिल टूटा या किसी वजह से. उसके प्रेमी ने या तो हवेली के डर से उसका साथ निभाने से इनकार कर दिया था या कोई और वजह थी पर जो भी थी, वो आदमी ही इस पहेली की दूसरी कड़ी था. और शायद वही था जो रात को चोरी से हवेली में आने की हिम्मत करता था. पर डाइयरी में कहीं भी इस बात की तरफ कोई इशारा नही था के वो आदमी आख़िर था तो कौन था. परेशान होकर रूपाली ने डाइयरी बंद करके वापिस अपनी अलमारी में रख दी.

वो बिस्तर पर आकर बैठी ही थी के कमरे के दरवाज़ा पर बाहर से नॉक किया गया. रूपाली ने दरवाज़ा खोला तो सामने बिंदिया खड़ी थी.

"क्या हुआ?" उसने बिंदिया से पुचछा

"ये आज आया था" कहते हुए बिंदिया ने उसकी तरफ एक एन्वेलप बढ़ा दिया "आप जब हॉस्पिटल गयी थी तब. मैं पहले देना भूल गयी थी"

रूपाली ने हाथ में एन्वेलप लिए. वो एक ग्रीटिंग कार्ड था उसके जनमदिन पर ना पहुँचकर देर से आए थे.

रूपाली ने ग्रीटिंग कार्ड लेकर दरवाज़ा बंद कर दिया और अपने बिस्तर पर बैठकर एन्वेलप खोला. कार्ड उसके छ्होटे भाई इंदर ने भेजा था. ये वो हर साल करता था. हर साल एक ग्रीटिंग कार्ड रूपाली को पहुँच जाता था. चाहे कोई और उसे जनमदिन की बधाई भेजे ने भेजे पर इंदर ने हर साल उसे एक कार्ड ज़रूर भेजा था.

रूपाली ने ग्रीटिंग खोलकर देखा. ग्रीटिंग पर फूल बने हुए थे जिसके बीच इंदर और रूपाली के माँ बाप ने बिर्थडे मेसेज लिखा हुआ था. रूपाली बड़ी देर तक कार्ड को देखती रही. इस बात के एहसास से उसकी आँखों में आँसू आ गये के उसके माँ बाप को आज भी उसका उतना ही ख्याल है जितना पहले था. उसने सोचा के अपने घर फोन करके बता दे के उसे कार्ड मिल गया है और अपने माँ बाप से थोड़ी देर बात करके दिल हल्का कर ले. ये सोचकर उसके कार्ड सामने टेबल पर रखा और कमरे से बाहर जाने लगी.

दरवाज़े की तरफ बढ़ते रूपाली के कदम अचानक वहीं के वहीं रुक गये. उसके दिल की धड़कन अचानक तेज होती चली गयी और दिमाग़ सन्न रह गया. उसे समझ नही आया के क्या करे और एक पल के लिए वहीं की वहीं खड़ी रह गयी. दूसरे ही पल वो जल्दी से मूडी और अपनी अलमारी तक जाकर कामिनी की डाइयरी फिर से निकाली. कामिनी की डाइयरी से उसने वो पेज निकाला जिसपर कामिनी के साइवा किसी और की लिखी शायरी थी. उसने जल्दी से वो पेज खोला और टेबल पर जाकर ग्रीटिंग कार्ड के साथ में रखा. उसने एक नज़र काग़ज़ पर डाली और दूसरी ग्रीटिंग कार्ड पर. काग़ज़ पर लिखी शायरी और ग्रीटिंग कार्ड के एन्वेलप पर लिखा अड्रेस एक ही आदमी का लिखा हुआ था. दोनो हंदवरटिंग्स आपस में पूरी तरह मॅच करती थी. इस बात में कोई शक नही था के कामिनी की डाइयरी में पेपर उसे मिला था, उसपर शायरी किसी और ने नही बल्कि उसके अपने छ्होटे भाई इंदर ने लिखी थी.

रूपाली का खड़े खड़े दिमाग़ घूमने लगा और वहीं सामने रखी चेर पर बैठ गयी. जिस आदमी को वो आज तक अपने पति का हत्यारा समझ रही थी वो कोई और नही उसका अपना छ्होटा भाई था. पर सवाल ये था के कैसे? इंदर हवेली में बहुत ही कम आता जाता था और कामिनी से तो उसने कभी शायद बात ही नही की थी? तो कामिनी और उसके बीच में कुच्छ कैसे हो सकता था? और दूसरा सवाल था के अगर कामिनी का प्रेमी ही उससे रात को मिलने आता था तो उसका भाई वो आदमी कैसे हो सकता है? रूपाली का घर एक दूसरे गाओं में था जो ठाकुर के गाओं से कई घंटो की दूरी पर था? तो उसका भाई रातों रात ये सफ़र कैसे कर सकता है? कैसे ये बात सबकी और सबसे ज़्यादा रूपाली की नज़र से बच गयी के उसके अपने भाई और ननद के बीच कुच्छ चल रहा है और क्यूँ इंदर ने ये बात उसे नही बताई?

और सबसे ज़रूरी सवाल जो रूपाली के दिमाग़ में उठा वो ये था के क्या उसके भाई ने ही डर से पुरुषोत्तम का खून किया था?

काफ़ी देर तक रूपाली उस काग़ज़ के टुकड़े और सामने रखे ग्रीटिंग कार्ड को देखती रही. जब कुच्छ समझ ना आया के क्या करे तो वो उठकर अपने कमरे से बाहर निकली और नीचे बेसमेंट की और बढ़ गयी. बेसमेंट पहुँचकर उसने वहीं कोने में रखा एक भारी सा सरिया उठाया और उस बॉक्स के पास पहुँची जो वो काफ़ी दिन से खोलने की कोशिश में थी. बॉक्स पर लॉक लगा हुआ था जिसपर रूपाली ने सरिया से 2 3 बार वार किया. लॉक तो ना टूट सका पर बॉक्स की कुण्डी उखड़ गयी और लॉक के साथ नीचे की और लटक गयी. रूपाली ने बॉक्स खोला और उसे सामने वही दिखा जिसकी वो उम्मीद कर रही थी.

बॉक्स में किसी लड़की के इस्तेमाल की चीज़ें थी. कुच्छ कपड़े, परफ्यूम्स, जूते और मेक अप का समान. एक नज़र डालते ही रूपाली समझ गयी के ये सारा समान कामिनी का था क्यूंकी जिस दिन कामिनी हवेली से गयी थी उस दिन रूपाली . उसे ये सारा समान पॅक करते देखा था. रूपाली ने बॉक्स से चीज़ें बाहर निकालनी शुरू की और हर वो चीज़ जो कामिनी के साथ होनी चाहिए थी वो इस बॉक्स में थी. रूपाली एक एक करके सारी चीज़ें निकालती चली गयी और कुच्छ ही देर मे उसे बॉक्स में रखा कामिनी का पासपोर्ट और वीसा भी मिल गया. रूपाली की दिमाग़ में फ़ौरन ये सवाल उठा के अगर ये सारी चीज़ें यहाँ हैं तो रूपाली विदेश में कैसे हो सकती है और अगर वो विदेश में नही है तो कहाँ है? क्या वो उसके भाई के साथ भाग गयी थी और अब उसके भाई के साथ ही रह रही है?

रूपाली समान निकाल ही रही थी के अचानक उसे फिर हैरानी हुई. कामिनी के समान के ठीक नीचे कुच्छ और भी कपड़े थे पर उनको देखकर सॉफ अंदाज़ा हो जाता था के वो कामिनी के नही हैं. कुच्छ सलवार कमीज़ और सारी थी जो रूपाली के लिए बिल्कुल अंजान थी. वो कपड़े ऐसे थे जैसे के उसने अपने घर के नौकरों के पहने देखा और इसी से उसे पता चला के ये कपड़े कामिनी के नही हो सकते क्यूंकी कामिनी के सारे कपड़े काफ़ी महेंगे थे.अंदर से कुच्छ ब्रा निकली जिन्हें देखकर अंदाज़ा हो जाता था के ये कामिनी के नही हैं क्यूंकी कामिनी की छातियो का साइज़ ब्रा के साइज़ से बड़ा था.

रूपाली ने सारा समान बॉक्स से निकालकर ज़मीन पर फैला दिया और वहीं बैठकर समान को देखने लगी. जो 2 सवाल उसे परेशान कर रहे थे वो ये थे के कामिनी कहाँ है और बॉक्स के अंदर रखे बाकी के कपड़े किसके हैं? हवेली में सिर्फ़ 3 औरतें हुआ करती थी. वो खुद, उसकी सास और कामिनी और तीनो में से ये कपड़े किसी के नही हो सकते और ख़ास बात ये थी के इन कपड़ों को कामिनी के कपड़ों के साथ ऐसे च्छुपाकर ताले में क्यूँ रखा गया था? कामिनी अभी अपनी सोच में ही थी के बाहर से कार की आवाज़ आई. तेज वापिस आ चुका था. उसने समान वहीं बिखरा छ्चोड़ा और बेसमेंट में ताला लगाकर बड़े कमरे में पहुँची.
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#32
Update 28

"तूने चंदर से कह दिया था ना के तू रात में हवेली में ही सोया करेगी?" रूपाली ने ड्रॉयिंग रूम में ही बैठी टीवी देख रही बिंदिया से पुचछा

"हां मैने उसे कह दिया था के मैं आपके कमरे में सोया करूँगी क्यूंकी आपको रात को डर सा लगता है" बिंदिया ने टीवी बंद करते हुए कहा

"ठीक है. तेज आ गया है. मैं अपने कमरे में जा रही हूँ. आयेज का काम तेरा है" कहते हुए रूपाली अपने कमरे की और बढ़ गयी.

अपने कमरे में आकर रूपाली बिस्तर पर निढाल गिर पड़ी. उसकी कुच्छ समझ नही आ रहा था के क्या सोचे और क्या करे. सोचते सोचते उसे 2 घंटे से ज़्यादा गुज़र गये.पिच्छले कुच्छ दीनो में उसकी पूरी ज़िंदगी बदल चुकी थी. एक सीधी सादी घरेलू औरत से वो कुच्छ और ही बन चुकी थी. भगवान का नाम सुबह शाम जपने वाली औरत का अपने ही ससुर से नाजायज़ संबंध बन गया था और वो अपने ससुर से प्यार भी करने लगी थी. उसका वो ससुर जिसकी असलियत खुद उसके लिए सवाल बनकर खड़ी हो गयी थी. एक तरफ उसके पति की मौत का सवाल था और दूसरी तरफ वो इनस्पेक्टर जो उसपर ही शक कर रहा था. कहाँ वो कल तक ठाकुर खानदान की बहू थी और कहाँ वो आज पूरी जायदाद की मालकिन हो गयी थी. कहाँ उसने पिच्छले 10 साल से अपनी ज़िंदगी से समझौता कर रखा था और कहाँ अब वो खुद ही जाने कितने सवालों के जवाब ढूँढने निकल पड़ी थी. हद तो ये थी के कहाँ वो कल तक एक शर्मीली सी औरत थी और कहाँ अब वो मर्द तो मर्द औरतों के साथ भी बिस्तर पर जाने को तैय्यार थी.

ये ख्याल आते ही उसका ध्यान पायल की तरफ गया जो आज उसके कमरे में नही आई थी. बल्कि आज तो पूरा दिन पायल उसे नज़र नही आई थी. रूपाली ने उठकर बीच का दरवाज़ा खोला और पायल के कमरे में आई. पायल अपने उसी बेख़बर अंदाज़ में सोई पड़ी थी. ना खुद का होश और ना अपने कपड़ो का. रूपाली उसे देखकर मुस्कुराइ और वापिस अपने कमरे में आ गयी.

खिड़की पर खड़े खड़े उसकी नज़र सामने कॉंपाउंड में बिंदिया और चंदर के कमरो की तरफ गयी. दोनो के कमरो की लाइट्स ऑफ थी यानी के आज रात काम नही चल रहा था. तभी रूपाली को ध्यान आया के उसने आज रात बिंदिया को तेज को इशारा कर देने को कहा था. ये ख्याल आते ही वो फ़ौरन अपने कमरे से निकली और तेज के कमरे की तरफ आई. कमरे अंदर से बंद था. रूपाली ने दरवाज़े पर कान लगाकर ध्यान से सुनने की कोशिश की. गहरी रात थी और हर तरफ सन्नाटा था इसलिए उसे कमरे के अंदर से आती बिंदिया की आवाज़ सुनने में कोई परेशानी नही हुई. आवाज़ सुनकर ही उसने अंदाज़ा लगा लिया के अंदर बिंदिया चुद रही है. रूपाली फिर मुस्कुरा उठी. उसने तो सिर्फ़ बिंदिया को इशारा करने को कहा था पर वो तो पहली ही रात तेज के बिस्तर में पहुँच गयी थी. रूपाली को लगा जैसे उसने कोई बहुत बड़ी जीत हासिल कर ली हो. उसे यकीन था के अगर हर रात बिंदिया तेज का बिस्तर गरम करे तो यूँ रातों को तेज का हवेली से बाहर रहना कम हो जाएगा.

वो फिर वापिस अपने कमरे में पहुँची. आधी रात होने को आई थी और नींद उसकी आँखों से कोसो दूर थी. ये बात उसे खाए जा रही थी के उसके अपने भाई का चक्कर कामिनी के साथ था और उसे इस बात का कोई अंदाज़ा नही था. या फिर चक्कर था ही नही. ये भी तो हो सकता है के उन दोनो को शायरी का शौक रहा हो और इंदर ने बस यूँ ही शायरी लिख कर कामिनी को दी हो. रूपाली ने अपनी अलमारी खोलकर फिर से कामिनी की डाइयरी निकली. डाइयरी उसने कपड़ो के बीच च्छुपाकर रखी थी इसलिए. डाइयरी निकालते ही कुच्छ कपड़े अलमारी से निकलकर बाहर गिर पड़े. रूपाली कपड़े उठाकर वापिस अलमारी में रखने लगी. उन्ही कपड़ो में एक वो ब्रा भी था जो उसे अपने सबसे छ्होटे देवर कुलदीप के कमरे से मिला था. जो ना तो उसका था, ना कामिनी का और ना ही उसकी सास सरिता देवी का. रूपाली ने एक नज़र ब्रा पर डाली और अलमारी में रखने ही लगी थी के अचानक उसे कुच्छ ध्यान आया. उसने जल्दी से डाइयरी अलमारी में वापिस रखी, अलमारी बंद करी और ब्रा हाथ में लिए हुए अपने कमरे से बाहर आई.

सीढ़ियाँ उतरती वो सीधा बेसमेंट में पहुँची. वो अपने साथ कमरे से टॉर्च उठा लाई थी इसलिए लाइट्स ऑन करने के बाजार टॉर्च ऑन कर ली. वो नही चाहती थी के अगर तेज या कोई और बाहर आए तो इस वक़्त उसे बेसमेंट में पाए और सबसे ज़्यादा वो अभी किसी से बॉक्स के बारे बात नही करना चाहती थी. टॉर्च की रोशनी उसने नीचे ज़मीन पर डाली. कपड़े अभी भी ज़मीन पर यूँ ही पड़े थे जैसे वो शाम को छ्चोड़कर गयी थी. रूपाली ने नीचे बैठकर कपड़े इधर उधर करने शुरू किए. कामिनी के साथ जिस दूसरी औरत के कपड़े बॉक्स में थे उसने उन कपड़ो में से उस औरत का ब्रा निकाला और टॉर्च की रोशनी में उस ब्रा से मिलाया जो उसे कुलदीप के कमरे से मिला था. एक नज़र डालते ही वो सॉफ समझ गयी के दोनो ब्रा एक ही औरत के थे. रंग के सिवा दोनो ब्रा बिल्कुल एक जैसे थे. साइज़ के साथ साथ ब्रा का पॅटर्न भी बिल्कुल एक जैसा था. सॉफ ज़ाहिर था के या तो ये दोनो किसी एक ही औरत के हैं या दो ऐसी औरतों के हैं जिनका कपड़े का अंदाज़ बिल्कुल एक दूसरे की तरह था.

रूपाली अभी अपनी ही सोच में थी के उसे एक हल्की सी आहट आई. कोई बस्मेंट का दरवाज़ा खोल रहा था. उसने फ़ौरन अपनी टॉर्च ऑफ की और हाथ में वो सरिया उठा लिया जिससे उसने बॉक्स का ताला तोड़ा था.

रूपाली साँस रोके चुप खड़ी हो गयी. बेसमेंट में घुप अंधेरा हो गया था. हल्की सी रोशनी बेसमेंट के दरवाज़े से आ रही थी. उसी रोशनी में एक परच्छाई धीरे धीरे सीढ़ियाँ उतरने लगी. रूपाली की कुच्छ समझ नही आ रहा था के ये कौन हो सकता था. उसने पहले भी एक बार किसी को हवेली के कॉंपाउंड में देखा था रात को पर तब उसे लगा था के ये उसका भ्रम है. क्या ये वही शक्श है? उसकी समझ नही आ रहा था के चुप रहे या शोर मचाए?

वो परच्छाई धीरे धीरे बड़ी होती चली गयी और एक साया सीढ़ियाँ उतारकर बेसमेंट के अंदर आ गया. हल्की सी रोशनी में रूपाली ने अंदाज़ा लगाया के वो आदमी बेसमेंट में चारो तरफ देख रहा है. फिर उस शक्श ने धीरे से एक आवाज़ की

"आएययी"

और रूपाली समझ गयी के वो चंदर था. गूंगे की आवाज़ में साफ ये सवाल था के जैसे वो किसी से पुच्छ रहा हो के " हो क्या?"

रूपाली हैरत में पड़ गयी. वो इतनी रात को यहाँ क्या कर रहा था और उसे कैसे पता के रूपाली यहाँ है. रूपाली ने धीरे से सरिया नीचे गिरा दिया और कोने से निकलकर आगे को बढ़ी.

सरिया गिरने की आवाज़ से चंदर ने भी उस तरफ देखा जहाँ रूपाली खड़ी थी. उस कोने में बिल्कुल अंधेरा पर रूपाली का साया फिर भी नज़र आ रहा था. रूपाली आगे बढ़ी ही थी के चंदर भी फ़ौरन उसकी तरफ बढ़ा और इससे पहले के वो कुच्छ समझ पाती उसने रूपाली को दोनो बाहों से पकड़ लिया. गिरफ़्त बहुत सख़्त थी. रूपाली कुच्छ कहना चाहती ही थी के चंदर ने उसे पलटके घुमा दिया और सामने रखी एक पुरानी टेबल पर ज़बरदस्ती झुका दिया.

टेबल पर कुच्छ रखा हुआ जो आंधरे में ना रूपाली को नज़र आया और ना ही चंदर को. जैसे ही रूपाली झुकी वो चीज़ सीधे उसके माथे पर लगी और उसकी आँखों के आगे तारे नाच गये. उसे लगा जैसे उसकी सर में बॉम्ब फॅट रहे हो और उसकी हाथ पावं ढीले पड़ गये. वो टेबल पर गिर सी पड़ी. वो अब भी होश में थी पर लग रहा था जैसे जिस्म से जान निकल चुकी हो. रूपाली ने आधी बेहोशी में उठकर सीधी खड़ी होने की कोशिश की पर चंदर का हाथ उसकी कमर पर था. उसे कोई अंदाज़ा नही था के इस छ्होटे से लड़के में इतनी ताक़त है. उसने दूसरे हाथ से रूपाली की नाइटी उपेर करनी शुरू कर दी और तब रूपाली को समझ आया के वो क्या करने जा रहा था. उसने फिर उठने को कोशिश की पर चंदर ने उसे काफ़ी ज़ोर से पकड़ रखा था. एक ही पल में रूपाली की नाइटी उठकर उसकी कमर तक आ गयी और कमर के नीचे वो बिल्कुल नंगी हो गयी. नाइटी के नीचे उसने पॅंटी नही पहेन रखी थी इसलिए चंदर का हाथ सीधा उसकी नंगी गान्ड पर पड़ा.

रूपाली की आँखें भारी हो रही थी. सर पर लगी चोट की वजह से उसका सर घूमता हुआ महसूस हो रहा था और वो चाहकर भी इतनी हिम्मत नही जोड़ पा रही थी के उठकर खड़ी हो जाए ये कुच्छ बोले. उसे चंदर का हाथ अपनी चूत पर महसूस हुआ और फिर कोई चीज़ उसकी चूत में घुसने लगी. रूपाली जानती थी के ये चंदर का लंड है और वो उसे चोदने की कोशिश कर रहा है पर वो टेबल पर वैसे ही पड़ी रही. आँखें और भी भारी हो रही थी.

"चंदर" रूपाली के मुँह से बस इतना ही निकला और पिछे से चंदर के धक्के शुरू हो गये. वो रूपाली की गान्ड पकड़े धक्के मारे जा रहा था और रूपाली आधी बेहोशी में चुप चाप चुदवा रही थी. पर इस हालत में भी उसे अपने जिस्म में फिर से वही वासना महसूस होने लगी जो वो पिच्छले कुच्छ दिन से महसूस कर रही थी. चंदर किसी जंगली जानवर की तरह धक्के मार रहा था. उसके हाथ रूपाली की गान्ड सहला रहे थे और उसके मुँह से आ आ की आवाज़ निकल रही थी.

धीरे धीरे सर पर लगी अचानक चोट का असर कम हुआ और रूपाली को अपने जिस्म में फिर से ताक़त आती महसूस हुई. उसका दिमाग़ कह रहा था के उठकर चंदर को रोके और एक थप्पड़ उसके मुँह पर लगा दे पर दिल कुच्छ और ही कह रहा था. वो पिच्छली रातों में चुदी नही थी और उसका जिस्म टूट रहा था. पिच्चे से चूत पर पड़ते चंदर के धक्के जैसे उसके जिस्म में लहरें उठा रहे थे और रूपाली ना चाहते हुए भी वैसे ही झुकी रही. उसकी दोनो छातिया नीचे टेबल पर रगड़ रही थी और उसके जिस्म में वासना पूरे ज़ोर पर पहुँच चुकी थी. वो यूँ ही झुकी रही और चंदर उसे पिछे से चोद्ता रहा.

थोड़ी देर बाद चंदर के धक्के एक्दुम तेज़ हो गये और रूपाली समझ गयी के वो झड़ने वाला है. वो अब तक खुद भी 2 बार झाड़ चुकी और तीसरी बार झड़ने को तैय्यार थी. चंदर ने किसी पागल सांड़ की तरह धक्के मारने शुरू कर दिए. उसका पूरा लंड रूपाली की चूत से निकलता और फिर पूरा अंदर समा जाता. बेसमेंट में ठप ठप की आवाज़ें गूँज रही थी.

"आआआहह " की आवाज़ के साथ चंदर ने एक ज़ोर से धक्का मारा और रूपाली की चूत से तीसरी बार पानी बह निकला. ठीक उसी पल चंदर ने अपना लंड बाहर निकाला और झुकी हुई रूपाली की गान्ड पर अपना पानी गिरने लगा. रूपाली की आँखें बंद हो चली थी. उसे सिर्फ़ नीचे अपनी चूत से बहता पानी और उपेर गान्ड पर गिर रहा चंदर का पानी महसूस हो रहा था. उसे लगा जैसे कई दिन के बीमार को दवाई मिल गयी हो. उसका पूरा जिस्म ढीला पड़ चुका था.

जब वासना का ज़ोर थमा और रूपाली का जिस्म शांत पड़ा तो वो टेबल से उठकर सीधी हुई और अपनी नाइटी को ठीक किया. बेसमेंट में नज़र घुमाई तो वहाँ कोई नही था. तभी उसे सीढ़ियाँ चढ़ता चंदर नज़र आया. वो उसे छोड़कर उसी खामोशी से चला गया जैसे आया था

रूपाली वापिस अपने कमरे में पहुँची. सर पर लगी चोट के कारण अब भी उसके सर में दर्द हो रहा था. अभी अभी बस्मेंट में जो हुआ था उसके बारे में कुच्छ सोचने की हिम्मत उसमें नही थी. कमरे में पहुँचकर वो सीधा बिस्तर पर गिरी और धीरे धीरे नींद के आगोश में चली गयी.

सुबह आँख खुली तो सर अब भी भारी था. उसने उठकर शीशे में अपने आपको देखा तो सर पर जहाँ चोट लगी थी वहाँ एक नीला निशान पड़ गया था. अच्छी बात ये थी के निशान उसके माथे पर उपर की और पड़ा था. अगर रूपाली अपने बाल हल्के से आगे को कर लेती तो किसी को वो निशान नज़र ना आता. रूपाली ने ऐसा ही किया. बाल हल्के से आगे किए और अपने कमरे से उतरकर नीचे आई.

बिंदिया उसे बड़े कमरे में ही मिली.

"कैसा रहा?" उसने बिंदिया से पुचछा

"मुश्किल नही था. हल्का सा इशारा किया मैने और वही हुआ जो आपने चाहा था" बिंदिया मुस्कुराते हुए बोली

"बाद में बताना मुझे" रूपाली ने कहा "एक चाय लाकर दे और तेज कहाँ है?"

"वो तो सुबह सुबह ही कहीं निकल गये" बिंदिया ने कहा और किचन की तरफ चाय लेने निकल पड़ी.

रूपाली अभी सोच ही रही थी के क्या करे के तभी फोन की घंटी बजी. उसने फोन उठाया तो दूसरी तरफ से ख़ान की आवाज़ आई.

"आपको पोलीस स्टेशन आना होगा मॅ'म" ख़ान कह रहा था "मैं जानता हूँ के आपके घर की औरतें पोलीस स्टेशन्स में नही जाया करती पर और कोई चारा नही है मेरे पास. कुच्छ ज़रूरी काम है"

"ठीक है" रूपाली उससे बहेस करने के मूड में बिल्कुल नही थी. उसने ख़ान से कहा के वो अभी पोलीस स्टेशन आ रही है और फोन रख दिया. वैसे भी उसके पास करने को कुच्छ ख़ास नही था.

तकरीबन 2 घंटे बाद रूपाली पोलीस स्टेशन में दाखिल हुई.

"कहिए" उसने ख़ान के सामने रखी हुई चेर पर बैठते हुए पुचछा

ख़ान उसे देखकर अपने उसे पोलिसेया अंदाज़ में मुस्कुराया

"कैसी हैं आप?" उसने ऐसे पुचछा जैसे रूपाली पर बहुत बड़ा एहसान कर रहा हो

"ज़िंदा हू" रूपाली ने लंबी साँस लेते हुए कहा "काम क्या है ये कहिए"

"वो क्या है मॅ'म के आपकी हवेली से अगर कुच्छ मिले तो उसकी ज़िम्मेदारी भी तो आपकी ही हुई ना इसलिए याद किया था मैने" ख़ान ने कहा

"मतलब? ज़िम्मेदारी?" रूपाली को उसकी बात समझ नही आई

"आपकी हवेली से मिली लाश के बारे में बात कर रहा हूँ. लावारिस पड़ी है बाहर आंब्युलेन्स में. कोई नही है जलाने या दफ़नाने वाला तो मैने सोचा के लावारिस समझके आग देने से पहले मैं आपसे पुच्छ लूँ" ख़ान ने सामने रखे पेपरवेट को घूमते हुए कहा

"मुझसे पुच्छना क्यूँ ज़रूरी समझा?" रूपाली को गुस्सा आ रहा था के इस बात पर ख़ान ने उसे इतनी दूर बुलाया है

"अब आपकी हवेली से मिली है तो ये भी तो हो सकता है के आपके किसी रिश्तेदार की हो इसलिए" ख़ान ने कहा

रूपाली गुस्से में उठ खड़ी हुई

"आपको लाश के साथ जो करना है करिए और आइन्दा ऐसी फ़िज़ूल बात के लिए हमें तकलीफ़ ना दीजिएगा"

"लाश कहाँ बची मॅ'म. कुच्छ हड्डियाँ हैं बस" रूपाली जाने के लिए मूडी ही थी के ख़ान फिर बोला "मुझे जो करना है वो तो मैं कर ही लूँगा पर उसके लिए इस पेपर पर आपके साइन चाहिए क्यूंकी लाश आपकी प्रॉपर्टी से बरामद हुई है"

ख़ान ने एक पेपर रूपाली की और सरकाया. रूपाली ने पेन उठाकर ख़ान की बताई हुई जगह पर साइन कर दिए

"बैठिए" ख़ान ने उसे फिर बैठने को कहा "आपने कुच्छ पुच्छना भी है"

"क्या पुच्छना है?"रूपाली ने खड़े खड़े ही पुचछा

"बैठ तो जाइए" ख़ान ने ज़ोर देकर कहा तो रूपाली बैठ गयी

"कुच्छ रिपोर्ट्स वगेरह कराई थी मैने. डीयेने वगेरह मॅच कराया. आपको जानकार खुशी होगी के लाश कामिनी की नही है" ख़ान ने कहा

रूपाली को दिल ही दिल में एक आराम सा मिला. उसे ये डर अंदर अंदर ही खा रहा था के कहीं हवेली में मिली लाश कामिनी की तो नही.

"दो बातें" उसने ख़ान से कहा "पहली तो ये के मुझे पता है के वो कामिनी की नही है. और दूसरी ये के आपको ये क्यूँ लगा के वो लाश कामिनी की हो सकती है?

"अब कोई लापता हो जाए तो सारे पहलू सोचने पड़ते हैं ना" ख़ान भी अब काफ़ी सीरीयस अंदाज़ में बोल रहा था

"मेरी ननद लापता नही है" रूपाली ने बड़े आराम से कहा

"अच्छा तो कहाँ है वो?" ख़ान ने कहा "विदेश नही गयी ये मैं जानता हूँ"

रूपाली ने कोई जवाब नही दिया. कुच्छ देर तक ना वो बोली और ना ख़ान

"अच्छा खेर ये बात छ्चोड़िए. जब आपके पति का खून हुआ था उस वक़्त आप कहाँ थी?" ख़ान ने थोड़ी देर बाद दूसरा सवाल किया

"क्या मतलब?" रूपाली ने हैरत से पुचछा "हवेली में और कहाँ"

"इस बात का कोई गवाह है आपके पास?" ख़ान ने फिर पुचछा

"ठाकुर साहब" रूपाली ने कहना शुरू ही किया था के ख़ान बीच में बोल पड़ा

"जो की ज़िंदा हैं या मर गये समझ नही आता. जबसे आक्सिडेंट हुआ है वो तो होश में ही नही आए" ख़ान ने ताना सा मारते हुए पुचछा

"मेरी सास" रूपाली ने अपनी सास का नाम लिया

"जो मर चुकी हैं" ख़ान ने फिर ताना सा मारा

"मेरी ननद" रूपाली ने तीसरा नाम लिया

"कामिनी जो कहाँ है ना आपको पता ना मुझे" ख़ान ने ये बात भी काट दी

"घर के नौकर" रूपाली के पास ये आखरी नाम था

"बात कर ली मैने उनसे भी. उनमें से किसी ने भी आपकी उस वक़्त हवेली में नही देखा था" ख़ान के पास जैसे इस बात का भी जवाब था

"क्यूंकी उस वक़्त मैं अपने कमरे में थी. मैं उन दीनो ज़्यादा वक़्त अपने कमरे के पूजा घर में ही बिताया करती थी" रूपाली जैसे लगभग चीख पड़ी

उसकी ये बात सुनकर ख़ान हस्ने लगा. जैसे रूपाली ने कोई जोक सुनाया हो

तभी पोलीस स्टेशन का दरवाज़ा ज़ोर से खुला और थाने में बैठे 3 कॉन्स्टेबल्स और एक हवलदार उठकर खड़े हो गये, जैसे किसी बहुत बड़े आदमी के आने पर नौकर उसकी इज़्ज़त में उठ खड़े होते हैं. रूपाली ने पलटकर देखा. दरवाज़े पर तेज खड़ा था. उसका चेहरा गुस्से में लाल हो रहा था.

"आप बाहर जाइए भाभी" उसने रूपाली से कहा

"एक मिनिट" रूपाली जाने ही लगी थी के ख़ान बोल पड़ा "मुझे इनसे कुच्छ और सवाल पुच्छने हैं"

उसकी ये बात सुनकर तेज उसकी तरफ ऐसे बढ़ा जैसे शेर अपने शिकार पर लपकता है. ख़ान भी उसकी इस अचानक हरकत से एक कदम पिछे को हो गया

"तुझे जो बात करनी है मुझसे कर" तेज उसके बिल्कुल सामने आ खड़ा हुआ "साले 2 कौड़ी के पोलिसेवाले, तेरी हिम्मत कैसी हुई हमारे घर की औरत को पोलीस स्टेशन बुलाने की"

"यहाँ किससे क्या पूछना है और किसे बुलाना है ये फ़ैसला मैं करूँगा" ख़ान भी अब संभाल चुका था और उसकी आवाज़ भी ऊँची हो गयी थी "ये मेरा इलाक़ा है"

"अपने चारों तरफ देख ख़ान" तेज ने खड़े हुए कॉन्स्टेबल्स की तरफ इशारा किया "मेरे कदम रखते ही ये सारे उठ खड़े हुए. ये रुतबा है हमारा. और जब तक मैं ना कह दूँ ये बैठेंगे नही. अब सोच के इलाक़ा किसका है"

रूपाली ने तेज को बहुत दिन बाद इस रूप में देखा था. आज उसे 10 साल पुराना वो तेज नज़र आ रहा था जिसके सामने बोलने की हिम्मत खुद उसने पिता ठाकुर शौर्या सिंग भी नही करते थे

"बैठ जाओ" ख़ान खड़े हुए कॉन्स्टेबल्स और हवलदार पर चिल्लाया पर कोई नही बैठा. उसने दूसरी बार और फिर तीसरी बार हुकुम दिया पर सब ऐसे ही खड़े रहे.

तेज हस पड़ा

"चलिए भाभी जी" उसने रूपाली से कहा

रूपाली दरवाज़े से बाहर निकली. तेज उसके पिछे ही था.

"मैं जानता हूँ" पीछे खड़ा ख़ान फिर गुस्से में बोला "ये पोलिसेवाले जिन्हें तुमने हवेली का कुत्ता बना रखा था इनके दम पर ही तुमने अपने भाई के खून को ढका है ना? मैं जानता हूँ सालों के ये काम तुम्हारा ही है और तुम्हारी गर्दन दबाके रहूँगा मैं"

तब तक रूपाली और तेज पोलीस स्टेशन से बाहर आ चुके थे. ख़ान की ये बात सुन तेज एक बार फिर अंदर जाने को मुड़ा. वो जानती थी के इस बार वो अंदर गया तो ख़ान पर हाथ उठाएगा इसलिए उसने फ़ौरन तेज का हाथ पकड़कर रोका और उसे गर्दन हिलाकर मना किया. उसके मना करने पर तेज भी रुक गया और दोनो सामने खड़ी रूपाली की कार की तरफ बढ़े.

"आप आगे चलिए" रूपाली के कार में बैठने पर तेज ने कहा "मैं अपनी कार में पिछे आ रहा हूँ"
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#33
Update 29

रूपाली और तेज दोनो ही हवेली पहुँचे.

"आपको क्या ज़रूरत थी यूँ पोलीस स्टेशन जाने की?" तेज ने रूपाली से हवेली में घुसते ही पुचछा

रूपाली ने कोई जवाब नही दिया

"वो पोलीस वाला अपने आपको बहुत बड़ा शेर समझता है" तेज अब भी गुस्से में जल रहा था "1 दिन में हेकड़ी निकाल दूँगा. आज तक किसी की हिम्मत नही हुई के इस हवेली की शान में गुस्ताख़ी करे"

बोलकर तेज अपने कमरे की और बढ़ा ही था के रूपाली की आवाज़ सुनकर रुक गया

"कौन सी शान की बात कर रहे हो ठाकुर तएजवीर सिंग"

तेज रूपाली की तरफ पलटा

"इस हवेली में अब उल्लू भी नही बोलते. लोग इस तरफ आने से भी कतराते हैं. वो तो फिर गैर हैं छ्चोड़ो, यहाँ तो अपने भी हवेली में कदम नही रखते. किस शान की बात कर रहे हैं आप?" रूपाली ने पुचछा तो इस बार तेज के पास कोई जवाब नही था.

"ज़रा बाहर निकालकर नज़र डालिए तएजवीर जी. इस हवेली पर अब मनहूसियत बरसती है. बाहर से देखने से ऐसा लगता है जैसे यहाँ बरसो से कोई नही रहा. इस हवेली की शान में गुस्ताख़ी तो गुज़रते वक़्त ने कर दी है वो पोलीस वाला क्या करेगा." रूपाली बोलती रही और तेज चुप खड़ा उसकी तरफ देखता रहा

"हमारी ज़मीन हमारा ही अपना कोई हमारी नज़र के सामने से चुरा ले गया. जो रह गयी वो बंजर पड़ी हैं. बची हुई जो दौलत है वो ख़तम हो रही है. इस हवेली के मलिक हॉस्पिटल में पड़े हैं. आपके भाई को बीच सड़क किसी ने गोली मार दी थी. आपने नाम पर लोग हस्ते हैं. और आप हवेली की शान की बात कर रहे हैं?" रूपाली ने जैसे अपने दिल में जमा सारा ज़हेर तेज पर उगल दिया और अपने कमरे की तरफ बढ़ चली.

"और हां" जाते जाते वो फिर पलटी "जब घर के आदमियों का कहीं आता पता ना हो तो घर की औरतों को ही पोलीस स्टेशन जाना पड़ता है"

रूपाली ने एक आखरी ताना सा मारा और अपने कमरे की तरफ बढ़ चली. अपने पिछे उसे तेज गुस्से में पेर पटकता हुआ हवेली के बाहर जाता हुआ दिखाई दिया.

कमरे में पहुँच कर रूपाली के आँसू निकल पड़े. उसने जो कुच्छ तेज से कहा था वो गुस्से में था पर इन बातों ने उसके खुद के ज़ख़्म हरे कर दिए थे. कुच्छ देर तक यूँ ही आँसू बहाने के बाद उसने सामने रखा फोन उठाया और देवधर का नंबर मिलाया

"हां रूपाली जी कहिए" दूसरी तरफ से देवधर की आवाज़ आई

रूपाली को वो ज़माना याद आ गया जब देवधर जैसे उसे छ्होटी ठकुराइन के नाम से बुलाते थे. आज उसकी इतनी औकात हो गयी थी के उसे नाम से बुला रहा था. वो एक ठंडी आह भरकर रह गयी. दिल में जानती थी के ये ग़लती देवधर की नही बल्कि ठाकुर खानदान की ही है. जब अपने ही सिक्के खोटे हों तो कोई क्या करे.

"मैने आपसे कहा था ने के आने से एक दिन पहले फोन करूँगी." रूपाली ने जवाब दिया

"तो आप कल आ रही हैं?" देवधर उसकी बात का मतलब समझ गया

"हां" रूपाली ने जवाब दिया "कल सुबह यहाँ से निकलेंगे तो दोपहर तक आपके पास पहुँच जाएँगे."

"जैसा आप ठीक समझें" देवधर ने कहा "वैसे आप एक बार बता देती के किस बारे में बात करी है तो मैं पेपर्स वगेरह तैय्यार रखता"

"ये आकर ही बताती हूँ" कहकर रूपाली ने फोन काट दिया. अपनी हालत ठीक की और फिर नीचे आई.

पायल बड़े कमरे में बैठी टीवी देख रही थी.

"तेरी माँ कहाँ है?" रूपाली ने पुचछा

"जी वो नहाने गयी हैं" पायल ने टीवी की आवाज़ धीरे करते हुए कहा

"और चंदर?" रूपाली ने पुचछा तो पायल ने कंधे हिला दिए

"पता नही"

रूपाली हवेली से निकलकर बिंदिया के कमरे की तरफ बढ़ी. वो कमरे की नज़दीक पहुँची ही थी के बिंदिया के कमरे का दरवाजा खुला और वो माथे से पसीना साफ करती हुई बाहर निकली. पीछे चंदर था. रूपाली फ़ौरन समझ गयी के वो क्या करके आ रहे हैं पर कुच्छ नही बोली.

"अगर तू नहा ली हो तो मेरे कमरे में आ. कुच्छ बात करनी है" रूपाली ने कहा तो बिंदिया ने हां में सर हिला दिया.

रूपाली चंदर की तरफ मूडी

"और तुझे मैने कहा था सफाई के लिए. उस तरफ देख" रूपाली ने हवेली के कॉंपाउंड में उस तरफ इशारा किया जहाँ अब भी कुच्छ झाड़ियाँ थी. उसके चेहरे पर अब भी हल्के गुस्से के भाव थे. चंदर ने फ़ौरन इशारे से कहा के वो अभी सफाई शुरू कर देगा.

रूपाली अपने कमरे की तरफ बढ़ चली. कल रात के बाद उसने अब पहली बार चंदर को देखा था. जिस अंदाज़ से चंदर ने उसकी तरफ देखा था उससे रूपाली सोचने पर मजबूर हो गयी थी. उसमें ऐसा कोई अंदाज़ नही था जैसा की उसे चोदने के बाद होना चाहिए था. चंदर ने अब भी उसे उसी इज़्ज़त से देखा था जैसे पहले देखा था और अब भी वैसे ही उसका हुकुम माना था जैसे पहले मानता था.

थोड़ी देर बाद बिंदिया और रूपाली दोनो रूपाली के कमरे में बैठे थे और रूपाली गुस्से से बिंदिया को घूर रही थी.

"अपनी रंग रलियान ज़रा कम कर. दिन में इस वक़्त? वो भी तब जब तेरी बेटी यहीं बैठी थी? अगर तेज देख लेते तो काट देते तुझे और उस चंदर को भी"

माफ़ कर दीजिए मालकिन" बिंदिया ने सर झुकाए कहा "अब नही होगा"

रूपाली वहीं उसके सामने बिस्तर पर बैठ गयी

"कल रात का बता. क्या लगता है तुझे? खुश था चंदर तेरे साथ बिस्तर पर?" रूपाली ने बिंदिया से पुचछा तो वो मुस्कुरा उठी

"खुश? मालकिन कल पूरी रात सोने नही दिया मुझे" बिंदिया बोली

"तूने मनाया कैसे तेज को?" रूपाली ने पुचछा

"ज़रूरत ही कहाँ पड़ी मनाने की. वो तो पहले ही तैय्यार बैठे थे" बिंदिया ने जब देखा के रूपाली का गुस्सा थोड़ा कम हो रहा है तो वो भी खुलकर बात करने लगी

"मतलब?" रूपाली ने पुचछा

"मतलब ये के रात अपने कमरे में जाने से पहले उन्होने मुझसे कहा के एक कप चाय उनके कमरे में ले आओं. मैं उसी वक़्त इस समझ गयी की मुझे कुच्छ करने की ज़रूरत नही और मुझे कमरे में चाय के बहाने क्यूँ बुलाया जा रहा है. मैने चाय बनाई और लेकर उनके पास जाने से पहले पायल के कमरे में पहुँची. वहाँ जाकर में अपनी चोली उतारी और पायल की पहेन ली"

"पायल की चोली? वो क्यूँ?" रूपाली ने हैरत से पुचछा

"क्यूंकी पायल की छातिया मुझसे काफ़ी बड़ी हैं. कभी कभी तो मुझे खुद को हैरानी होती है. ज़रा सी उमर में ही उसकी छातिया मुझसे दुगुनी हो गयी हैं" बिंदिया ने कहा

"तू अपनी ही बेटी की छातिया क्यूँ देखती है?" रूपाली ने मुस्कुराते हुए पुचछा

"माँ हून मालकिन" बिंदिया ने कहा "जवान बेटी घर में हो तो सब देखना पड़ता है. और वैसे भी उस ज़रा सी बच्ची के जिस्म पर सबसे पहले उसकी बड़ी बड़ी छातिया ही दिखाई देती हैं"

रूपाली का दिल किया के उसको बताए के जिसे वो ज़रा सी बच्ची कह रही है उसके जिस्म में माँ से भी ज़्यादा आग है और एक लंड ले भी चुकी है.

"अच्छा वो छ्चोड़" रूपाली बोली "तूने पायल की चोली क्यूँ पहनी?"

"मालकिन उसकी चोली मुझे ढीली आती है क्यूंकी मेरी छातिया इतनी नही" बिंदिया ने अपनी चुचियों की तरफ देखते हुए कहा. रूपाली ने भी अपनी नज़र उधर ही डाली

"उसकी छातिया बड़ी होने की वजह से अगर मैं उसकी चोली पहेन लूँ तो सामने से इतनी ढीली हो जाती है के हल्का सा झुकते ही सारा नज़ारा सामने आ जाता है" बिंदिया ने समझाते हुए कहा

"ओह अब समझी. फिर?"

"फिर मैं चाय लेकर उनके कमरे में पहुँची और कप बिल्कुल उनके सामने रखा. कप रखते हुए मैं झुकी और बस. मेरी चूचियाँ आपके देवर के सामने थी" बिंदिया बोली

"तेज ने देखी?" रूपाली अब बेझिझक सवाल पुच्छ रही थी.

"देखी? हाथ बढ़ाकर सीधा एक चूची पकड़ ली." बिंदिया हस्ते हुए बोली

रूपाली दिल ही दिल में तेज की हिम्मत की दाद दिए बिना ना रह सकी

"पकड़ ली? तूने क्या कहा?" उसने बिंदिया से पुचछा

"मैं क्या कहती. मैं तो पहली ही तैय्यार थी. चूची पकड़कर छ्होटे ठाकुर ने हल्का सा दबाव डाला और कहा के मेरी चूचियाँ काफ़ी सख़्त हैं. इस उम्र में ज़रा भी ढीली नही हैं. अब बारी थी मेरी तरफ से इशारे की."

रूपाली चुप चाप बैठी सुन रही थी

"मैं मुस्कुराइ और कहा के छ्होटे ठाकुर चोली के उपेर से हाथ लगाके कहाँ पता चलता है के चूचियाँ सख़्त हैं या उमर के साथ ढीली पड़ गयी हैं" बिंदिया ने बात जारी रखी "इतना इशारा काफ़ी था. वो उठे और चोली मेरे जिस्म से ऐसे अलग की जैसे फाड़ रहे हों. जब मैं उपेर से नंगी हो गयी तो उन्होने मेरी चूचियों पर हाथ फेरा और कहा के मैं सही था. तुम्हारी चूचियाँ सही में काफ़ी सख़्त हैं और हाथ से दबाने लगा. तब तक मैं खुद भी गरम हो चुकी थी. मैं उनके बाल सहलाने लगी. वो कभी मेरी चूचियो को दबाते तो कभी मेरे निपल्स को सहलाते. थोड़ी देर तक यही खेल चलता रहा. जब मुझसे और बर्दाश्त ना हुआ तो मैने उनका सर आगे को खींचा और उनका मुँह अपनी छाती पर दबा दिया. मेरा एक निपल सीधा उनके मुँह में गया और वो ऐसे चूसने लगे जैसे आज के बाद कोई औरत नंगी देखने को नही मिलेगी."

"तुझे मज़ा आया?"रूपाली ने पुचछा

"मेरे निपल्स मेरे शरीर का सबसे कमज़ोर हिस्सा हैं मालकिन. मुझे सबसे ज़्यादा मज़ा निपल्स चुसवाने में आता है " बिंदिया ने फिर एक बार अपनी चूचियों पर नज़र डाली "पर मेरी किस्मत के ना तो मेरा मर्द ये बात समझ सका और ना ही चंदर. दोनो ही मेरी चूचियों पर कुच्छ ख़ास ध्यान नही देते थे इसलिए जब छ्होटे ठाकुर ने तसल्ली के साथ मेरे निपल्स को रगड़ा तो मैं वही पिघल गयी. मैने खुद अपना ल़हेंगा खोलकर नीचे गिरा दिया और उनके सामने नंगी हो गयी. उनके हाथ मेरे पुर जिस्म पर फिरने लगे और जाकर मेरी गांद पर रुक गये. उन्होने मेरी आँखों में देखते हुए निपल मुँह से निकाला और बोले के उन्हें सबसे ज़्यादा मेरी गांद पसंद है और ये कहते हुए गांद को हल्के से दबा दिया."

"फिर?"रूपाली इतना ही कह सकी

"मैं समझ गयी के आज मेरी चूत के साथ साथ गांद का भी नंबर लगेगा. मैं मुस्कुराइ और बोली के ठाकुर साहब मैं तो पूरी आपकी हूँ पर पहले आपको तैय्यार तो कर दूँ. ये कहते हुए मैं उनके सामने बैठ गयी और उनका पाजामा नीचे सरका कर उनका लंड बाहर निकाला" बिंदिया ने कहा

कैसा था, ये बात रूपाली के मुँह से निकलते निकलते रह गयी. उसे फ़ौरन ये एहसास हुआ के वो अपने देवर के बारे में बात कर रही है और बिंदिया से इस तरह का कोई सवाल ग़लत साबित हो सकता है. दूसरा उसे खुद ये हैरत हुई के वो तेज के लंड के बारे में जानना चाहती है. उसने बात फ़ौरन अपने दिमाग़ से झटकी.

"थोड़ी ही देर बाद मैं नंगी उनके सामने बैठी थी और लंड मेरे मुँह में था" बिंदया ने कहा तो रूपाली मन मसोस कर रह गयी. वो उम्मीद कर रही थी के बिंदिया खुद ये कहेगी के उसे तेज का लंड कैसा लगा

"मेरा इरादा तो ये था के बिस्तर पर मैं जो जानती हूँ वो करूँ ताकि छ्होटे ठाकुर को खुश कर सकूँ पर ऐसा हो ना सका. थोड़ी देर बाद उन्होने लंड मेरे मुँह से निकाला और मुझे बिस्तर पर आने को कहा. मैं मुस्कुराते हुए बिस्तर पर आई और उनके सामने लेटकर अपनी टांगे फेला दी. पर उनका इरादा कुच्छ और ही था. उन्होने मेरी टांगे फिर बंद की और मुझे घूमकर उल्टा कर दिया" बिंदिया ने कहा

"मतलब तेरी......" रूपाली ने बात अधूरी छ्चोड़ दी

"हां" बिंदिया समझ गयी के वो क्या कहना चाह रही थी "मैं समझ गयी के पहला नंबर मेरी गांद का लगने वाला है और ऐसा ही हुआ. तेज ने अपने पुर लंड पर तेल लगा लिया और थोड़ा मेरी गांद पर. उनकी इस हरकत से मैं समझ गयी के वो पहले ही किसी औरत की गांद मार चुके हैं"

"फिर?" खुद रूपाली भी अब गरम हो रही थी

"फिर वो आकर मेरे उपेर आकर बैठ गये और दोनो हाथों से मेरी गांद को फेला दिया. और फिर लंड मेरी गांद पर दबाया और बिना रुके धीरे धीरे पूरा लंड अंदर घुसा दिया. मैं दर्द से कराह उठी" बिंदिया ने कहा

"दर्द? पर तू तो पहले भी ये कर चुकी है" रूपाली ने हैरान होते पुचछा

"तो क्या हुआ मालकिन" बिंदिया ने भी उसी अंदाज़ में पुचछा "कोई चूत थोड़े ही है के पहली बार में ही दर्द हो. गांद में लंड घुसेगा तो दर्द तो होगा ही. चाहे पहली बार हो या बार बार."

"अच्छा फिर ?" रूपाली ने उसे आयेज बताने को कहा

"छ्होटे ठाकुर भी बिस्तर पर खिलाड़ी थे. गांद में लंड जाते ही समझ गये की मैं आगे से क्या पिछे से भी कुँवारी नही हूँ. धीरे से मेरे कान में बोले के अच्छा तो यहाँ भी कोई हमसे पहले आके जा चुका है. मैं कहा के ठाकुर साहब ये कोई सड़क नही है जहाँ से लोग आए जाएँ तो सड़क खराब हो जाए. यहाँ तो कितने भी आकर चले जाएँ कोई फरक नही पड़ता. जगह वैसे की वैसी ही रहती है, थोड़ी देर बाद वो मेरे उपेर लेते थे और लंड मेरे अंदर बाहर हो रहा था. मुझे भी मज़ा आ रहा था इसलिए मैं भी पूरा साथ दे रही थी पर उल्टी लेटी होने की वजह से मैं ज़्यादा कुच्छ कर नही पा रही थी और ये बात ठाकुर भी समझ गये. थोड़ी देर ऐसे ही गांद मारने के बाद उन्होने मुझे उपेर आकर लंड गांद में लेने को कहा. फिर वो सीधा लेट गये और मैं उनके उपेर बैठ गयी. लंड एक बार फिर गांद में घुस गया. फिर मैं कभी आराम से हिलती तो कभी तेज़ी से उपेर नीचे होती. कभी अपनी चूचियाँ खुद दबाती तो कभी उनके मुँह में घुसा देती. बस ये मानिए के मैने तब तक हार नही मानी जब तक के मैं खुद भी झाड़ गयी और ठाकुर का पानी अपनी गांद में ना निकाल लिया. उपेर बैठकर सब मुझे करना था इसलिए मैं ख्याल रखा के कोई कमी नई रहने दूं और ठाकुर को खुश कर दूं" बिंदिया मुस्कुराते हुए ऐसे बोली जैसे कोई जुंग जीत कर आई हो

"शाबाश" रूपाली ने कहा "मतलब पूरी रात चूत और गांद ली गयी तेरी?"

"कहाँ मालकिन" बिंदिया ने कहा "ठाकुर ने चूत की तरफ तो ध्यान ही नही दिया. पूरी रात बस मेरी गांद में ही मारते रहे. कभी लिटाके मारी, तो कभी उपेर बैठके. कभी खड़ी करके मारी तो कभी झुकाके."

"पूरी रात?" रूपाली ने फिर हैरानी से कहा. "तूने कहा नही आगे से करने को?"

"मैं तो बस चूत में लंड लेने का सोचती ही रही पर कहा नही क्यूंकी मैं ठाकुर को जो वो चाहें बस वो करने देना चाहती थी." बिंदिया बोली

"फिर?" रूपाली ने पुचछा

"चंदर भी रात की ज़िद कर रहा था और मेरा भी चूत में लंड लेने का दिल हो रहा था इसलिए मैं उसे आने से पहले इशारा कर आई थी के रात को हवेली के पिछे जो तहखाना है वहाँ आ जाए" बिंदिया ने कहा तो रूपाली चौंक पड़ी

"क्या? बेसमेंट में? क्यूँ?"

"मालकिन अब ठाकुर के पास से उठकर अपने कमरे की तरफ जाती तो उन्हें शक हो सकता था क्यूंकी उनके कमरे की खिड़की से मेरा कमरा सॉफ नज़र आता है. ये मैने पहले ही देख लिया था इसलिए मैने चंदर को कह दिया था के अब से हर रात मुझे वहीं मिला करे क्यूंकी मैं रात को पायल के कमरे में सोया करूँगी और बाहर नही आ सकूँगी"

बिंदिया की ये बात सुनकर रूपाली को कल रात की कहानी समझ आ गयी और ये भी समझ आ गया के चंदर के बर्ताव में कोई बदलाव क्यूँ नही था. उसे तो पता भी नही था के बेसमेंट के अंधेरे में उसने बिंदिया की नही रूपाली की चूत मारी थी.

"तो फिर तू गयी?" रूपाली पक्का करना चाहती थी के बिंदिया ने वहाँ आकर उसे चूड़ते हुए देखा तो नही

"कहाँ मालकिन" बिंदिया हस्ते हुए बोली "गांद में से लंड निकलता तो जाती ना"

"और चंदर?" रूपाली ने कहा

"सुबह इशारा कर रहा था के रात को बेसमेंट में मज़ा नही आया. अब वहाँ नही करेंगे. पता नही क्या कह रहा था. मैं तो वहाँ गयी ही नही तो मज़ा कैसा. पक्का कोई सपना देखा होगा और बेवकूफ़ उसे ही सच समझ बैठा" बिंदिया ने कहा तो रूपाली की जान में जान आ गयी.

वो रात गुज़ारनी रूपाली के लिए जैसे मौत हो गयी. उसके जिस्म में आग लगी हुई थी. बिंदिया के साथ की गरम बातों ने उसकी गर्मी को और बढ़ा दिया था. बिस्तर पर पड़े पड़े वो काफ़ी देर तक करवट बदलती रही और जब सुकून नही मिला तो उसने अपनी नाइटी को उपेर खींचा और चूत की आग को अपनी उंगलियों से ठंडी करने की बेकार कोशिश करने लगी.

तेज शाम ढले घर वापिस आ गया था और बिंदिया आज रात भी उसके कमरे में थी. रूपाली उस दिन हॉस्पिटल नही जा पाई थी पर फोन पर भूषण से बात हुई थी. ठाकुर की हालत अब भी वैसी ही थी. बिस्तर पर पड़े पड़े ठाकुर के दिमाग़ में सिर्फ़ ठाकुर का लंड घूम रहा था. जब उंगलियों से बात नही बनी तो वो परेशान होकर उठी और तेज के कमरे के सामने पहुँची. कान लगाकर सुना तो अंदर से बिंदिया के आ ऊ की आवज़ें आ रही थी. रूपाली थोड़ी देर तक वहीं खड़ी सुनती रही. अंदर से कभी बिंदिया के "धीरे ठाकुर साहब" तो कभी "आराम से करिए ना" की आवाज़ें आ रही थी. उसकी आवाज़ सुनकर रूपाली मुस्कुरा उठी. लगता है तेज उसके लिए बिस्तर पर काफ़ी भारी पड़ रहा था.

सुबह उठी तो रूपाली का पूरा जिस्म फिर से दुख रहा था. गयी पूरी रात वो बिस्तर पर परेशान करवट बदलती रही और ढंग से सो नही पाई. दिमाग़ में कयि बार उठकर पायल के पास जाने का ख्याल आया पर फिर उसने अपना इरादा बदल दिया और पायल को सुकून से सोने दिया.

उसने आज देवधर से मिलने जाना था. गाओं से शहेर तक जाने में उसे कम से कम 4 घंटे लगने वाले थे तो वो सुबह सवेरे ही उठकर निकल गयी. दोपहर के तकरीबन 11 बजे वो देवधर के ऑफीस में बैठी थी.

देवधर पटेल कोई 45 साल का एक मोटा आदमी थी. सर से आधे बॉल उड़ चुके थे. उसका पूरा खानदान वकील ही था और शुरू से वो ही ठाकुर का खानदानी वकील था. उससे पहले उसका बाप ये काम संभाला करता था और वकील बनने के बाद देवधर ने अपने बाप की जगह ले ली.

उसने रूपाली को फ़ौरन बैठाया और अपनी सेक्रेटरी को किसी को अंदर ना आने देने को कहकर रूपाली के सामने आ बैठा.

"कहिए छ्होटी ठकुराइन" उसने रूपाली से कहा

रूपाली उम्मीद कर रही थी के वो उसे नाम से बुलाएगा पर देवधर ने ऐसा नही किया.

"सीधे मतलब की बात पे आती हूँ" रूपाली ने कहा "मैं ठाकुर साहब की वसीयत के बारे में जानना चाहती हूँ"

"मुझे लगा ही था के आप इस बारे में ही बात करेंगी."देवधर मुस्कुराते हुए बोला "असल में वसीयत ठाकुर साहब की नही आपके पति की है, ठाकुर पुरुषोत्तम सिंग की"

रूपाली ये बात ख़ान के मुँह से पहले ही सुन चुकी थी

"मैं जानता हूँ के आप ये बात पहले से जानती हैं इसलिए इसमें आपके लिए हैरानी की कोई बात नही"

"आपको कैसे पता?" रूपाली ने पुचछा

"वो ख़ान पहले मेरे पास आया था. ज़ोर ज़बरदस्ती करके सब उगलवा गया. मैं जानता था के वो आपसे इस बारे में बात करेगा" देवधर ने चोर नज़र से रूपाली की और देखते हुए कहा

"आप एक खानदानी वकील हैं. और आपको पैसे हमारे घर के राज़ पोलीस को बताने के नही मिलते. और अगर आप कहें के एक पोलीस वाला आपसे ज़बरदस्ती सब उगलवा गया तो ये बात कुच्छ हजम नही होती देवधर जी" रूपाली ज़रा गुस्से में बोली

"मैं एक वकील हूँ छ्होटी ठकुराइन. मेरे भी हाथ कई जगह फसे रहते हैं जहाँ हमें पोलीस की मदद लेनी पड़ती है. ऐसी ही कई बातों में मुझे उलझाके सब मालूम कर गया वो कमीना पर मैं माफी चाहता हूँ" देवधर ने नज़र नीची करते हुए कहा

"खैर" रूपाली भी जानती थी के अब इस बात पर बहेस करने से कोई फ़ायदा नही "मतलब की बात पर आते हैं. ये सारी जायदाद मेरी कैसे है?"

"देखिए बात सॉफ है" देवधर कुच्छ काग़ज़ खोलते हुए बोला. एक काग़ज़ का उसने रूपाली की तरफ सरकाया "ये आपके ससुर ठाकुर शौर्या सिंग के पिता की वसीयत है जिसमें उन्होने अपना सब कुच्छ आपके पति के नाम कर दिया था. तब ही जब पुरुषोत्तम सिंग छ्होटे थे."

"पर ख़ान ने तो कुच्छ और ही कहा" रूपाली थोड़ी हैरान हुई "वो तो कह रहा था वसीयत सरिता देवी की थी"

"यहाँ आकर बात थोड़ी टेढ़ी हो जाती है" देवधर ने दूसरा काग़ज़ आगे सरकाया "ये पहली वसीयत है जिसमें सब कुच्छ ठाकुर शौर्या सिंग के भाई ठाकुर गौरव सिंग के नाम किया गया था.

फिर देवधर ने एक दोसरा काग़ज़ आगे सरकाया

"जब ठाकुर गौरव सिंग और उनकी पत्नी की कार आक्सिडेंट में मौत हो गयी और पिछे उनका एकलौता बेटा जय ही रह गया तो ये दूसरी वसीयत बनाई गयी जिसमें सब कुच्छ आपकी सास सरिता देवी के नाम किया गया था."

फिर एक चौथा काग़ज़ आगे किया

"और ये आपके पति की वसीयत है जो उन्होने मरने से कुच्छ दिन पहले बनाई थी. इसमें सब कुच्छ आपके नाम किया गया है."

रूपाली परेशान सी अपने सामने रखे पेपर्स को देखने लगी

"तो अब देखा जाए तो पहले ये जायदाद ठाकुर शौर्या सिंग के भाई के पास गयी, फिर उनकी पत्नी के पास, फिर उनके बड़े बेटे के पास और अब उनकी बहू के पास. उनके पास तो कभी आई ही नही."

रूपाली थोड़ी देर खामोश रही

"ये मुझे तब क्यूँ ना बताया गया जब मेरे पति की मौत हुई थी?" उसने देवधर से पुचछा

"आप शायद अपने ससुर को नही जानती. इस इलाक़े में राज था उनका जो कुच्छ हद तक अब भी है. इस इलाक़े के नेता और मिनिस्टर्स भी उनके आगे मुँह नही खोलते और आपके देवर तेज के तो नाम से लोगों की हवा निकल जाती थी. अपनी जान मुझे भी प्यारी थी. मेरी क्या मज़ाल जो मैं उनके हुकुम खिलाफ जाता" देवधर रूपाली की आँखों में देखते हुए बोला

"आपको ठाकुर साहब ने मना किया था?" रूपाली ने पुचछा तो देवधर ने हां में सर हिला दिया

"इस वसीयत के बारे में किस किसको पता है?" रूपाली ने काग़ज़ उठाते हुए कहा

"अब तो सबको पता है पर आपके पति के मरने के बाद सिर्फ़ ठाकुर साहब को पता था. आपके पति की मौत के बाद जब मैं आपसे मिलने हवेली पहुँचा तो मुझे आपसे मिलने नही दिया गया. आपके पति के मरने के बाद ही इस वसीयत का पता ठाकुर साहब को चला था. उससे पहले सिर्फ़ मैं जानता था के जायदाद आपके नाम हो चुकी है" देवधर ने जवाब दिया.

"एक बात समझ नही आई" रूपाली ने देवधर की और देखते हुए कहा "ठाकुर गौरव सिंग के नाम से जायदाद मेरी सास के नाम पर इसलिए गयी क्यूंकी वो मारे गये. पर मेरी सास के नाम से जायदाद हटाकर मेरी पति के नाम क्यूँ की गयी जो की उस वक़्त सिर्फ़ मुश्किल से 10 साल के थे? और दूसरी बात ये के क्यूँ कभी जायदाद ठाकुर के नाम नही हुई जो की अपने पिता की बड़े बेटे थे?"

देवधर की पास इन सवालों का कोई जवाब नही था

"ये बात तो शायद सिर्फ़ ठाकुर शौर्या सिंग के पिता भी बता सकते थे" देवधर बोला "ठाकुर के नाम जायदाद ना करने की वजह शायद उनका गुस्सा हो सकता था जो हमेशा से ही बड़ा तेज़ था. सिर्फ़ 15 साल की उमर में उन्होने घर के नौकर को गोली मार दी थी जबकि उनके पिता इसके बिल्कुल उल्टा थे. वो एक शांत आदमी थे जो हर किसी से प्यार से बात करते थे. शायद उन्हें ठाकुर शौर्या सिंग के गुस्से का डर था इसलिए उनके नाम कुच्छ नही किया. पर आपकी सास के नाम से जायदाद हटाने की वजह मैं खुद भी नही जानता."

"वसीयत आपने ही बदली थी?" रूपाली ने पुचछा तो देवधर हस्ने लगा

"मैं तो उस कॉलेज में ही था शायद. वसीयत मेरे पिताजी ने बदली थी"

"और वो कहाँ हैं?" रूपाली ने पुचछा तो देवधर ने अपनी एक अंगुली आसमान की तरफ उठा दी. रूपाली समझ गयी के देवधर का बाप मार चुका था.

"और फिर मेरे नाम? वो वसीयत तो आपने बदली होगी?" रूपाली के इस सवाल पर देवधर ने हां में सर हिलाया

"मरने से कुच्छ दिन पहले ठाकुर पुरुषोत्तम मेरे पास आए थे. काफ़ी परेशान लग रहे थे. मैने वसीयत बदलने की वजह पुछि तो हॅस्कर कहने लगे के भाई आदमी का सब कुच्छ उसकी बीवी का ही तो होता है"

"तो अगर मैं कोर्ट में पहुँच जाऊं के ये सब मेरा है और बेचना शुरू कर दूँ तो मुझे कोई नही रोक सकता?" रूपाली ने पुचछा

"इतना आसान नही है" देवधर ने कहा "एक ये बात के वसीयत बार बार बदली गयी आपके खिलाफ जा सकती है. कोई भी आपके पति की वसीयत को कोर्ट में चॅलेंज कर सकता है और जब तक कोर्ट का फ़ैसला ना हो जाए, तब तक कुच्छ भी किसी को नही मिलेगा"

"कौन चॅलेंज कर सकता है?" रूपाली बोली

"कोई भी" देवधर ने हाथ फेलाते हुए जवाब दिया "ठाकुर साहब, आपके देवर ठाकुर तएजवीर, सबसे छ्होटे देवर कुलदीप, आपकी ननद कामिनी और सबसे बड़ी परेशानी खड़ी करेगा ठाकुर साहब का भतीजा जय"

"जय?" रूपाली फिर से हैरान हुई

"देखिए जय ने ठाकुर साहब की जायदाद आधी अपने नाम इस लिए कर ली क्यूंकी ठाकुर साहब के नाम पर कभी कुच्छ नही था. सब कुच्छ आपके पति के नाम पर था और ठाकुर साहब ने मुझे आपके पति की वसीयत का ज़िक्र करने से मना किया था. मैने नयी वसीयत के बारे में मुँह नही खोला और इस हिसाब से सब कुच्छ मौत के बाद भी आपके पति के नाम पर था. अब आपके पति को अपने कज़िन जय पर इतना भरोसा था के उन्होने उसे पोवेर ऑफ अटर्नी दे रखी थी जिसका फ़ायदा जय ने उनके मरने के बाद उठाया और धीरे धीरे प्रॉपर्टीस अपने नाम पर करता रहा. पेपर्स में उसने ये लिख दिया के असल मलिक अब ज़िंदा नही है और बिज़्नेस के भले के लिए ये फ़ैसला लिया जाना ज़रूरी है. अब अगर आप कोर्ट पहुँच जाती हैं ये कहते हुए के सब कुच्छ आपका है तो जो कुच्छ जाई ने अपने नाम पर किया था वो सब भी चॅलेंज हो जाएगा. क्यूंकी फिर ये बात उठ जाएगी के पति के मरते ही सब कुच्छ आपका हो गया था तो आपके पति की दी हुई पवर ऑफ अटर्नी भी बेकार हो जाती है. और उसका फ़ायदा उठाकर आपके पति के मरने के बाद उसने जो भी नये पेपर्स बनाए थे वो सब भी बेकार हो जाएँगे. इस हिसाब से सब कुच्छ फिर आपकी झोली में आ गिरेगा और जय सड़क पर आ जाएगा"

देवधर से थोड़ी देर और बात करके रूपाली वापिस हवेली की और चल पड़ी. ख़ान ने जो कुच्छ कहा था उस बात पर देवधर ने सच्चाई की मोहर लगा दी थी. रूपाली की आँखो के आगे दुनिया जैसे घूम रही थी. उसे समझ नही आ रहा था के किस्पर भरोसा करे और किस्पर नही. हर कोई उसे एक अजनबी लग रहा था. पिच्छले सवालों के जवाब मिले नही थे के नये कुच्छ और उठ खड़े हुए.

क्यूँ ठाकुर ने उस तक देवधर को पहुँचने नही दिया. क्यूँ उससे ये बात च्छुपाई गयी? शायद पहले ना बताने की वजह उसका चुप चुप रहना था पर एक बार जब वो ठाकुर के साथ सो चुकी थी तो तब ठाकुर ने उसको कुच्छ क्यूँ नही कहा? दूसरा उसे सब कुच्छ अपनी सास के नाम से हटाकर उसके पति के नाम पर कर देने की बात बहुत अजीब लगी? और पुरुषोत्तम मरने से पहले इतने परेशान क्यूँ थे? क्या उन्हें एहसास हो गया था के उन्हें नुकसान पहुँचाया जा सकता है और अगर हां तो उन्होने रूपाली से इस बात का ज़िक्र क्यूँ नही किया?

अब तक ये बात रूपाली के सामने सॉफ हो चुकी थी की उसकी पति की मौत की वजह ये सारी जायदाद ही थी. पर सवाल ये था के मौत का ज़िम्मेदार कौन था? उसके सामने सबके चेहरे घूमने लगे और उसे हर कोई एक हत्यारा नज़र आने लगा.

"जय ऐसा कर सकता था. सबसे ज़्यादा वजह उसी के पास थी क्यूंकी वो ठाकुर के खानदान से चिढ़ता था. पर तेज भी तो हो सकता है. अपनी अययाशी के लिए उसे पैसा चाहिए जो बहुत जल्दी मिलना बंद हो जाता क्यूंकी सारी जायदाद पुरुषोत्तम के पास थी. और सबसे छ्होटा भाई कुलदीप. वो भी तो उसके पति की मौत के वक़्त यहीं था. चुप चुप रहता है पर है बहुत तेज़ और इस बात का सबूत थी उसके कमरे से मिली वो ब्रा. क्या ठाकुर साहब खुद? हां क्यूँ नही. ये जायदाद बड़ा होने के नाते उन्हें मिलनी चाहिए थी पर मिली नही. कभी नही मिली. यहाँ से वहाँ होती रही पर उनके नाम नही हुई. और फिर देवधर को भी तो उन्होने मुँह खोलने से मना किया था. बिल्कुल कर सकते हैं वो ऐसा. सरिता देवी? ये सारी जायदाद अचानक ही उनके नाम से हटा दी गयी थी.हाथ आई इतनी सारी दौलत निकल जाए तो क्या बेटा और कहाँ का बेटा. हो सकता है उन्होने किया हो और पुरुषोत्तम मरने से पहले उन्हें ही तो छ्चोड़ने मंदिर गये थे. कामिनी? लड़की थी पर ऐसा करने की हिम्मत बिल्कुल थी उसमें. उसका किसी से प्यार था और ये बात ठाकुर बर्दाश्त ना करते. पर अगर सारी दौलत उसकी हो जाती तो कोई क्या कर सकता था"

कामिनी के प्रेमी के बारे में सोचते ही रूपाली को ध्यान आया के वो अब जानती है के उसका प्रेमी कौन था. उसका अपना छ्होटा भाई इंदर जिसने उससे हमेशा ये राज़ च्छुपाकर रखा. पर क्यूँ? उसको भला क्या ऐतराज़ होता अगर इंदर कामिनी से शादी करना चाहता. रूपाली अपने ख्यालों में इतना खोई हुई थी के कई बार आक्सिडेंट होते होते बचा. शाम के करीब 4 बजे वो हवेली वापिस पहुँची और हवेली में कदम रखते ही चौंक पड़ी. बड़े कमरे में खड़ा था उसका छ्होटा भाई इंदर. ठाकुर ईन्द्रसेन राणा.

"वो आए हैं महफ़िल में चाँदनी लेकर, के रोशनी में नहाने की रात आई है" रूपाली को आता देख इंदर खड़ा हुआ

"कब आया इंदर?" एक पल के लिए अपने भाई को देखकर रूपाली जैसे सब कुच्छ भूल गयी

"मैं तो सुबह ही आ गया था दीदी" इंदर बहेन के गले लग गया "पता चला के आप सुबह से कहीं गयी हुई हैं"

"हां कुच्छ काम था" रूपाली भाई के सर पर हाथ फेरते हुए बोली "आ बैठ ना"

"ठाकुर साहब के बारे में पता चला" तेज ने कहा "बहुत अफ़सोस हुआ. मैं आते हुए हॉस्पिटल होता हुआ आया था. अभी भी बेहोश हैं"

"हां जानती हूँ" रूपाली साँस छ्चोड़ते हुए बोली

इंद्रासेन राणा करीब 30 साल का एक बहुत खूबसूरत आदमी था. उसको भगवान ने ऐसा बनाया था के लड़कियाँ देखकर दिल थाम लें और लड़के जल जाए. लंबा चौड़ा कद, गोरा रंग, टन्द्रुस्त शरीर और जब बोलता था तो लगता था के जैसे फूल झाड़ रहे हों. रूपाली काफ़ी देर तक इंदर के साथ वहीं बैठी बात करती रही और पता ही नही चला के कब रात के 9 बज गये. वक़्त का एहसास तब हुआ जब तेज हवेली में दाखिल हुआ. इंदर को सामने बैठा देख वो एक पल के लिए रुका और फिर हाथ आगे करता इनडर की तरफ बढ़ा.

"कैसे हैं ठाकुर इंद्रासेन?" वो हमेशा इंदर को उसके पूरे नाम से ही बुलाता था

"मैं ठीक हूँ बड़े भाय्या" इंदर ने भी आगे बढ़कर हाथ आगे मिलाया

"आज इस तरफ कैसे आना हुआ?" तेज ने पुचछा तो इंदर ने मुस्कुरा के कंधे झटकाए

"ऐसे ही आप लोगों की याद आई तो मिलने चला आया"

खाने की टेबल पर तीनो साथ थे. रूपाली ने ध्यान दिया के पायल की नज़र तेज पर कुच्छ ज़्यादा ही थी. वो उसका ख़ास तौर पर ध्यान रख रही थी. बार बार आकर उससे पुछ्ति के कुच्छ चाहिए तो नही. इंदर को देख कर मुस्कुराती. रूपाली भी दिल ही दिल में उसकी हरकत देख कर मुस्कुरा उठी. ये पहली बार नही था के उसने अपने भाई के आस पास लड़कियों की पागल होते हुए देखा था. उसके भाई के पिछे पागल होने वाली एक तो उसकी अपनी ननद ही थी.

इंदर को उसने ग्राउंड फ्लोर पर ही कमरे दे दिया. जब वो और तेज अपने कमरे में चले गये तो वो बिंदिया और पायल को किचन सॉफ करने का कहकर अपने कमरे में पहुँची. वो तेज से कामिनी के बारे में और आज हुई देवधर से मुलाक़ात के बारे में बात करना चाह रही थी इसलिए एक नाइटी पहेनकर तेज के कमरे में पहुँची.

तेज के कमरे का दरवाज़ा खुला हुआ था. वो अंदर दाखिल हुई. एक नज़र केमर में दौड़ाई तो तेज कहीं नज़र नही आया. रूपाली ने उसे बुलाने के लिए आवाज़ देनी चाही ही थी के अचानक उसके पेर हवा में उठ गये. एक हाथ पिछे से उसकी कमर पर होता हुआ सीधा नाइटी के उपेर से उसकी चूत पर आया और दूसरा उसकी एक छाती पर और उसे हवा में थोडा सा उपेर उठा दिया गया. अपनी कमर पर उसे किसी की छाती महसूस हुई और नीचे से एक लंड उसकी गांद पर आ दबा.

"आज इतनी देर कहाँ लगा दी थी?" पीछे से तेज की आवाज़ आई

ये सब एक पल में हुआ. रूपाली को कुच्छ कहने या करने का मौका ही नही मिला. और उसके अगले ही पल तेज को एहसास हुआ के उसने बिंदिया को नही बल्कि रूपाली को पकड़ रखा है. उसके हाथ रूपाली के जिस्म से फ़ौरन हट गये जैसे रूपाली में अचानक से करेंट दौड़ गया हो. वो जल्दी से 2 कदम पिछे को हुआ और परेशान नज़र से रूपाली को देखने लगा.

"माफ़ कीजिएगा भाभी" उसे समझ नही आ रहा था के क्या कहे "वो मुझे लगा के..... के....."

उसे समझ नही आया के कैसे रूपाली से कहे के वो घर की नौकरानी को चोद रहा था.

दोनो के लिए वो सिचुयेशन इतनी अजीब हो गयी के रूपाली चाह कर भी कुच्छ कह ना सकी. वो तेज से कुच्छ बात करने आई थी पर उस वक़्त उसने कुच्छ ना कहना बेहतर समझा और चुपचाप कमरे से निकल गयी.
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#34
Update 30

अपने कमरे में पहुँच कर वो बिस्तर पर गिर पड़ी. ये दूसरी बार था के तेज ने उसे इस तरह से पकड़ा था. एक बार नशे में और दूसरी बार अंजाने में. उस्नी रूपाली की छाती को पकड़कर इतनी ज़ोर से दबाया था के रूपाली को अब तक दर्द हो रहा था. उसने अपनी छाती को सहलाया और तभी उसे तेज का वो चेहरा याद आया जब वो उसे खड़ा देख रहा था. और फिर जिस तरह से वो ये नही कह पाया था के उसने बिंदिया का सोचकर रूपाली को पकड़ा था वो सोचकर रूपाली की हल्की सी हसी छूट पड़ी. उसे क्या पता था के बिंदिया उससे चुदवा सिर्फ़ इसलिए रही है क्यूंकी रूपाली ने ऐसा कहा था.

आज की रात भी कोई अलग रात ना थी. आज की रात भी रूपाली बिस्तर पर पड़ी अपने जिस्म की आग में जल रही थी. उसे समझ नही आ रहा था के क्या करे. उसका जिस्म वासना से तप रहा था जैसे बुखार हो गया हो. थोड़ी देर के लिए उसने अपने हाथ का सहारा लेना चाहा पर बात बनी नही. उसका गला सूखने लगा था. उसने उठकर अपने कमरे में रखे जग की तरफ देखा पर उसमें पानी नही था. बिस्तर से उठकर उसने अपने कपड़े ठीक किए और नीचे उतरकर किचन की तरफ बढ़ी.

किचन में खड़ी वो पानी पी ही रही थी के उसे किसी के कदमो की आवाज़ सुनाई दी. रात का सन्नाटा हर तरफ फेल चुका था और उस खामोशी में किसी के चलने की आवाज़ सॉफ सुनाई दे रही थी. कोई सीढ़ियाँ चढ़ रहा था. रूपाली को हैरत हुई के इस वक़्त कौन हो सकता है. उसने किचन से बाहर निकालकर देखा तो इंदर सीढ़ियाँ चढ़कर कामिनी के कमरे की तरफ जा रहा था. उसके चलने का अंदाज़ ही चोरों जैसा था जैस वो घर में चुपके से चोरी करने के लिए घुसा हो. कामिनी के कमरे तक पहुँचकर उसने इधर उधर देखा और फिर धीरे से दरवाज़ा खोलने की कोशिश की. दरवाज़ा लॉक्ड था. रूपाली को सबसे ज़्यादा हैरत उस वक़्त हुई जब इंदर ने अपनी जेब से एक चाभी निकाली और कामिनी के कमरे का दरवाज़ा खोलकर अंदर दाखिल हो गया.

रूपाली एक पल के लिए वही खड़ी रही. वो इंदर से अभी कामिनी के बारे में बात नही करना चाहती थी. उसका ख्याल था के सही वक़्त देखकर इंदर के सामने ये बात उठाएगी पर इंदर को कामिनी के कमरे में यूँ घुसता देख रूपाली से रहा नही गया.

वो हल्के कदमों से सीढ़ियाँ चढ़कर पहले अपने कमरे में पहुँची. उसने अलमारी से कामिनी की डाइयरी निकाली और फिर कामिनी के कमरे के सामने आई इंदर ने अपने पीछे कामिनी का कमरा बंद अंदर से कर लिया था पर रूपाली के पास हवेली के हर कमरे की चाबी थी. उसने अपनी चाबी से रूम का लॉक खोला, हॅंडल घुमाया और एक झटके में पूरा दरवाज़ा खोल दिया.

सामने इनडर कामिनी की अलमारी के सामने खड़ा उसके कपड़ो में कुच्छ ढूँढ रहा था. दरवाज़ा यूँ खोल दिए जाने से वो पलटा और सामने रूपाली को देखकर उसके पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गयी. चेहरा यूँ सफेद हो गया जैसे काटो तो खून नही. हाथ में पकड़े कामिनी के कुच्छ कपड़े उसके हाथ से छूट कर ज़मीन पर गिर पड़े.

"क्या ढूँढ रहे हो इंदर?" कामिनी ने पुचछा

इंदर से जवाब देते ना बना

"क्या ढूँढ रहे थे?" रूपाली ने अपने पिछे दरवाज़ा बंद कर लिया और थोड़ी ऊँची आवाज़ में पुचछा

"जी दीदी ... वो .... मैं..... "इंदर की ज़ुबान लड़खड़ा गयी

रूपाली ने अपने हाथ में पकड़ी कामिनी की डाइयरी आगे की

"ये तो नही ढूँढ रहे थे?"

रूपाली के हाथ में डाइयरी देखकर इंदर समझ गया के उसका राज़ खुल चुका है. वो नज़रें नीची करके ज़मीन की और देखने लगा

"काब्से चल रहा था ये सब?" रूपाली ने वहीं खड़े खड़े पुचछा

जब इंदर ने जवाब ना दिया तो उसने अपना सवाल फिर दोहराया.

"जी आपकी शादी होने से तकरीबन एक साल पहले से....." इंदर को इस बार जवाब देना पड़ा.

इस बार हैरान होने की बारी रूपाली की थी

"तुम मेरी शादी होने से पहले से कामिनी को जानते थे?"

थोड़ी देर बाद वो दोनो रूपाली के कमरे में बैठे थे. रूपाली को लगा के यूँ कामिनी के कमरे में खड़े होकर बात करना ठीक नही होगा. कोई भी जाग सकता है. वो इंदर को अपने आठ अपने कमरे में ले आई.

"मुझे सब कुच्छ मालूम करना है, सब कुच्छ " रूपाली ने पहले कामिनी की डाइयरी बिस्तर पर इंदर के सामने फेंकी और फिर वो काग़ज़ जिसपर इंदर ने एक शेर लिखा था "और तुम शायरी काब्से करने लगे? और वो भी इतनी अच्छी उर्दू में?"

"मेरी नही हैं" इंदर सर झुकाए बोला " कामिनी को शायरी बहुत पसंद थी इसलिए मैं कहीं से पढ़कर उसे ये सब भेजता था. आप जानती हैं शायरी करना मेरे बस की बात नही"

"कैसे शुरू हुआ ये सब?" रूपाली अपने भाई के सामने बैठते हुए बोली

"मेरे एक दोस्त की शादी में मिली थी मुझे कामिनी. वो लड़की वालों की तरफ से आई थी. वहाँ हमारी जान पहचान हो गयी. घर आकर हम अक्सर फोन पर बात किया करते थे और ये कब ये दोस्ती प्यार में बदली मुझे पता ही नही चला" इनडर किसी तोते की तरह कहानी सुना रहा था.

"इरादा क्या था?" रूपाली का गुस्सा अब थोड़ा ठंडा हो चला था

"शादी करना चाहता था मैं उससे." रूपाली को इंदर की ये बात सुनकर बड़ा अजीब लगा. इंदर शकल सूरत से ऐसा था के वो जिस लड़की की तरफ देख लेता वो लड़की उसे अपनी खुश नसीबी समझती जबकि कामिनी एक बेहद मामूली सी शकल सूरत वाली लड़की थी.

"फिर इसे किस्मत कहिए या कुच्छ और के आपकी शादी भी कामिनी के घर में ही हुई. उस वक़्त हम लोग बहुत खुश थे. कामिनी खुद बहुत खुश थी. मैने कई बार चाहा के वो आपसे बात करे और हमारे बारे में बताए पर वो हमेशा आपके सामने इस बारे में बात करने से शरमाती थी. कहती थी के भाभी पता नही क्या सोचेंगी." इंदर ने आगे कहा

उसकी ये बात सुनकर रूपाली को जैसे अपने एक सवाल का जवाब मिल गया. तो ये वजह थी के कामिनी उसके सामने आने से कतरा जाती थी. उस वक़्त रूपाली बहुत ज़्यादा पूजा पाठ में रहा करती थी तो कामिनी का ये सोचना के कहीं वो उसके और अपने भाई के रिश्ते के खिलाफ ना हो जाए जायज़ था. उसकी जगह कोई भी लड़की होती तो डरती. ख़ास तौर से जब बाप और भाई ठाकुर शौर्या सिंग और तेज जैसे हों.

"हम लोग शहेर में ही मिला करते थे. वो अपने ड्राइवर और बॉडीगार्ड को हवेली में ही छ्चोड़कर मुझसे मिलने शहेर आ जाया करती थी." इंदर अब बिना पुच्छे ही सब बता रहा था

उसकी इस बात ने रूपाली के दूसरे सवाल का जवाब दे दिया.तो वो इंदर ही था जिससे मिलने कामिनी जाया करती थी, अकेले. तभी उसे बिंदिया की कही वो बात याद आई जब उसके मर्द ने खेतों में बने ट्यूबिवेल वेल कमरे में कामिनी को चुड़वाते हुए देखा था.

"जब शहेर में मिलते थे तो यहाँ खेतों में मिलने की क्या ज़रूरत थी? डर नही लगा तुम दोनो को?" रूपाली ने पुचछा

"खेतों में?" इंदर ने हैरानी से पुचछा "आप मज़ाक कर रही हैं? यहाँ मिलना तो खुद मौत को दावत देने जैसा था"

"क्या?" रूपाली कुच्छ ऐसे बोली के उसकी हैरानी उसकी आवाज़ में छलक उठी "तुम उसे ट्यूबिवेल वाले कमरे में नही मिलते थे?"

"ट्यूबिवेल?" इंदर ने पुचछा "कौन सा ट्यूबिवेल?"

रूपाली समझ गयी के उसे इस बारे में कुच्छ पता नही था और वो उसकी आँखें देखकर बता सकती थी के वो सच बोल रहा है

"नही कुच्छ नही" रूपाली बात टालने के अंदाज़ में बोली "वो उसकी डाइयरी पढ़कर मुझे लगा के तुम लोग यहीं खेतों में मिला करते थे"

"नही यहाँ कहीं आस पास तो वो खुद ही नही मिलना चाहती थी. मैने उसे कई बार कहा के हम घर पर बात कर लेते हैं पर वो जाने क्यूँ हर बार मना कर देती थी. और फिर वो धीरे धीरे बदलने लगी. मुझसे उसकी बात भी काफ़ी कम हो गयी. मैने कई बार उससे पुच्छने की कोशिश की पर उसने हर बार टाल दिया. और फिर एक दिन उसका फोन आया के वो मुझसे शादी नही करना चाहती क्यूंकी वो मेरे लायक नही है. ये कहकर उसने फोन रख दिया"

"कबकि बात है ये?" रूपाली ने पुचछा

"ठीक उसी दिन जब जीजाजी का खून हुआ था. उसका फोन रखने के थोड़ी देर बाद ही हमें हवेली के नौकर का फोन आया था और उसने मुझे बताया के बड़े भाई साहब का खून हो गया था." इंदर ने कहा

रूपाली की धड़कन तेज़ होने लगी पर उसने अपने चेहरे पर कुच्छ ज़ाहिर ना होने दिया

"फिर कभी बात नही हुई?" उसने इंदर से पुचछा

"मैने कई बार उसे फोन करने की कोशिश की पर वो हर बार मेरी आवाज़ सुनकर फोन काट देती थी. और फिर एक दिन मुझे पता चला के वो विदेश चली गयी और बस हमारी कहानी ख़तम हो गयी" इंदर सर झुकाए बोला

कमरे में थोड़ी देर खामोशी रही

"तो तुम अब उसके कमरे में क्या ढूँढ रहे थे?" रूपाली ने खड़े होते हुए पुचछा

"ये" इंदर ने उस काग़ज़ की तरफ इशारा किया जो रूपाली को कामिनी की डाइयरी से मिला था "और ऐसे कई और पेपर्स. मुझे डर था के अगर ये आप के हाथ कभी लग गया तो आप मेरी हॅंडराइटिंग पहचान जाएँगी.

अगले दिन सुबह रूपाली रूपाली इंदर के साथ हॉस्पिटल पहुँची. डॉक्टर ने बताया के ठाकुर की हालत में अब भी कोई सुधार नही आया था. भूषण अब भी ठाकुर के साथ हॉस्पिटल में ही था.थोड़ी देर वहीं रुक कर रूपाली हवेली वापिस आ गयी. सुबह के 10 बस चुके थे. तेज रूपाली को बड़े कमरे में बैठा मिला.

"तेज हमें आपसे कुच्छ बात करनी है. आप हमारे कमरे में आ जाइए" रूपाली ने तेज से कहा और उसके जवाब का इंतेज़ार किए बिना ही अपने कमरे में चली आई

थोड़ी देर बाद ही तेज रूपाली के कमरे में दाखिल हुआ

"दरवाज़ा बंद कर दीजिए" रूपाली ने तेज से कहा

दरवाज़ा बंद कर देते ही तेज ने अपने दोनो हाथ जोड़ दिए

"हमें माफ़ कर दीजिए भाभी. बहुत बड़ा पाप हो गया हमसे कल रात. पर वो सब अंजाने में हुआ"

रूपाली ने इशारे से तेज को बैठने को कहा.

"कोई बात नही. हमने उस बारे में बात करने के लिए नही बुलाया है आपको. हमें कुच्छ और ज़रूरी बात करनी है" कहते हुए रूपाली अपनी टेबल तक गयी और ड्रॉयर से पुरुषोत्तम सिंग की वसीयत निकाली

तेज हैरानी से उसकी और देख रहा था. उसे उम्मीद थी के रूपाली उससे कल रात के बारे में सवाल जवाब करेगी पर वो तो उस बारे में कोई बात ही नही करना चाह रही थी. जैसे कुच्छ हुआ ही ना हो

"आपने कामिनी से आखरी बार बात कब की थी?" रूपाली तेज की और देखते हुए बोली

"उसके विदेश जाने से पहले" तेज ने सोचते हुए कहा

रूपाली समझ गयी के तेज को कामिनी के बारे में कोई जानकारी नही है

"और कुलदीप से?" रूपाली ने पुचछा तो तेज सोच में पड़ गया

"शायद जब वो आखरी बार हवेली आया था तब."

"फोन पर बात नही हुई आपकी कभी?" रूपाली ने पुचछा तो तेज ने इनकार में सर हिला दिया. रूपाली को इसी जवाब की उम्मीद थी. तेज को अययाशी से टाइम मिलता तो अपने भाई और बहेन के बारे में सोचता

"ये कामिनी का पासपोर्ट है" रूपाली ने अपने हाथ में पकड़ा पासपोर्ट तेज को थमा दिया "अगर ये यहाँ है तो कामिनी विदेश में कैसी हो सकती है?"

तेज हैरानी से पासपोर्ट की तरफ देखने लगा

"मतलब? तो कहाँ है कामिनी?" उसने रूपाली से पुचछा

"हमें लगा के आपको पता होगा" रूपाली ने जवाब दिया

"ये कहाँ मिला आपको?" तेज ने फिर सवाल किया

"वो ज़रूरी नही है" रूपाली ने उसे बेसमेंट में रखे बॉक्स के बारे में बताना ज़रूरी नही समझा "ज़रूरी ये है के ये यहाँ हवेली में मिला, जबकि हिन्दुस्तान में ही नही मिलना चाहिए था"

तेज खामोशी से बैठा अपनी सोच में खोया हुआ था

"एक बात और है" रूपाली ने कहा और पुरुषोत्तम की वसीयत तेज के हाथ में थमा दी और चुप रही. तेज खुद ही वसीयत खोलकर पढ़ने लगा.जैसे जैसे वो पेजस पलट रहा था, वैसे वैसे उसके चेहरे के भाव भी बदल रहे थे. जब वो पूरी वसीयत पढ़ चुका तो वो थोड़ी देर तक ज़मीन की तरफ देखता रहा और फिर नज़र उठाकर रूपाली की तरफ देखा

"कुच्छ ग़लत मत सोचना तेज" इससे पहले के वो कुच्छ कहता रूपाल खुद बोल उठी "मैं ऐसा कुच्छ नही चाहती. मैं ये वसीयत खुद बदलने वाली हूँ"

तेज अब भी खामोशी से उसे देखता रहा

"मुझे ये दौलत नही चाहिए तेज. मैं सिर्फ़ अपने घर को, इस हवेली को एक घर की तरह देखना चाहती हूँ. तुम चाहो तो मैं अभी फोन करके वकील को बुला लेती हूँ. ये दौलत सारी मुझे मिल जाए, मैं नही चाहती के ऐसा हो"

"ऐसा मैं होने भी नही दूँगा" तेज ने कहा और इससे पहले के रूपाली कुच्छ कह पाती वो उठकर कमरे से बाहर चला गया

रूपाली जो करना चाहती थी वो हो गया. उसे देखना था के क्या तेज को दौलत को भूख है और वो उसने देख लिया था. अगर तेज खामोशी से बैठा रहता तो इस बात का सवाल ही नही होता था के इस दौलत के लिए उसने अपने भाई को मारा हो पर यहाँ तो उल्टा ही हुआ. रूपाली ने उसे अभी बताया था के उसकी बहेन 10 साल से गायब है और उसकी फिकर करने के बजाय वो हाथ से निकलती दौलत के पिछे चिल्लाता हुआ कमरे से चला गया था. जिसको अपनी बहेन की कोई फिकर नही, वो दौलत के लिए अपने भाई का खून क्यूँ नही कर सकता. बिल्कुल कर सकता है.

थोड़ी देर बाद रूपाली भी नीचे बड़े कमरे में आई. तेज का कहीं आता पता नही था. रूपाली ने खिड़की से बाहर देखा तो उसकी कार भी बाहर नही थी.

सामने रखे फोन को उठाकर रूपाली देवधर का नंबर मिलाने लगी.

"कहिए रूपाली जी" दूसरी तरफ से देवधर की आवाज़ आई

"मैं चाहती हूँ के कल आप हवेली आएँ" रूपाली ने देवधर से कहा. देवधर ने हां कर दी तो उसने फोन रख दिया और इंदर के कमरे में आई

इंदर अपने कमरे में नही था. रूपाली किचन में पहुँची तो वहाँ बिंदिया दोपहर का खाना बनाने में लगी हुई थी. चंदर उसके साथ खड़ा उसकी मदद कर रहा था

"इंदर को देखा कहीं?" रूपाली ने बिंदिया से पुचछा

"अभी थोड़ी देर पहले तो बड़े कमरे में ही थे" बिंदिया ने कहा

रूपाली ने हवेली के बाहर कॉंपाउंड में आकर देखा तो इंदर की कार वहीं खड़ी हुई थी. वो कॉंपाउंड में इधर उधर देखने लगी पर इंदर नज़र नही आया. उसे ढूँढती हुई वो हवेली के पीछे की तरफ आई तो देखा के बेसमेंट का दरवाज़ा खुला हुआ था

"ये किसने खुला छ्चोड़ दिया?" सोचते हुए रूपाली दरवाज़े के पास पहुँची. उसने दरवाज़ा बंद करने की सोची ही थी के बेसमेंट के अंदर से एक आवाज़ सुनाई दी. गौर से सुना तो वो आवाज़ पायल की थी.

"ये यहाँ क्या कर रही है?" सोचते हुए रूपाली ने पहली सीधी पर कदम रखा ही था के उसके कदम फिर से रुक गये

"आआअहह क्यार कर रहे हैं आप" ये आवाज़ पायल की थी

रूपाली ने अपने कदम धीरे धीरे सीढ़ियों पर रखे और किसी चोर की तरह उतरती हुई नीचे पहुचि. सीढ़ियों पर खड़े खड़े ही उसने धीरे से गर्दन घूमकर बेसमेंट में झाँका तो उसके पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गयी.

पायल एक टेबल पर बैठी हुई थी. ये वही टेबल थी जिसपर झुका कर चंदर ने उसे चोदा था. वो टेबल के किनारे पर बैठी हुई थी और हाथों के सहारे से पिछे को झुकी हुई थी. उसकी सलवार उतरी हुई एक तरफ पड़ी थी और दोनो टांगे सामने नीचे ज़मीन पर बैठे इंदर के कंधो पर थी. इंदर ने उसकी दोनो टाँगो को पूरी तरह फेला रखा था और बीच में बैठा पायल की चूत चाट रहा था.

"आआआह्ह्ह्ह्ह मालिक" पायल कराह रही थी.

रूपाली फ़ौरन फिर से दीवार की ओट में हो गयी. उसे यकीन नही हो रहा था. वो हमेशा अपने भाई को बहुत सीधा सा समझती थी और यही वजह थी के कामिनी के साथ उसके रिश्ते के बारे में सुनकर वो चौंक पड़ी थी. और यहाँ उसका भाई घर की नौकरानी की चूत चाट रहा था, वो भी उस नौकरानी की जिससे वो कल ही मिला था.

एक पल के लिए रूपाली ने सोचा के वहाँ से चली जाए पर फिर जाने क्या सोचकर वो फिर दीवार की आड़ में खड़ी इंदर और पायल को देखने लगी.

इंदर अब उठ खड़ा हुआ था और पायल की होंठ चूम रहा था. वो पायल की टाँगो के बीच खड़ा था और पायल ने अपनी टांगे उसकी कमर के दोनो तरफ लपेट रखी थी और हाथों से वो इंदर के सर को सहला रही थी. इंदर ने थोड़ी देर उसके होंठ चूमने के बाद उसकी चूचियों को कमीज़ के उपेर से ही चूमना शुरू कर दिया और उसकी नंगी जाँघो पर हाथ फेरने लगा. पायल वासना से अपने सर को ज़ोर ज़ोर से इधर उधर झटक रही थी.

"जल्दी कीजिए मालिक. कोई आ जाएगा" पायल ने आँखें बंद किए हुए ही कहा

उसकी बात सुनकर इंदर ने दोबारा उसके होंठ चूमने शुरू कर दिए और अपनी पेंट की ज़िप खोलने लगा. थोड़ी ही देर में उसकी पेंट सरक कर नीचे जा पड़ी और रूपाली फ़ौरन फिर से दीवार के पिछे हो गयी. वो अपनी ही छ्होटे भाई को नंगा नही देखना चाहती थी. एक पल के लिए उसने कदम उठाए के बेसमेंट से बाहर चली जाए पर तब तक खुद उसके जिस्म में आग लग चुकी थी. उसका एक हाथ कब उसकी चूत पर पहुँच गया था उसे पता भी नही चला था. उसने एक पल के लिए सोचा और फिर से इंदर और पायल को देखने लगी.

इंदर अपना कार्य करम शुरू कर चुका था. उसका लंड पायल की चूत में अंदर बाहर हो रहा था. अब पायल टेबल पर सीधी लेट गयी थी. उसकी गांद टेबल के बिल्कुल कोने पर थी और टांगे इंदर के कंधो पर जो उसकी टाँगो के बीचे खड़ा अपना लंड अंदर बाहर कर रहा था. पायल की कमीज़ उसने खींच कर उपेर कर दी थी और दोनो चूचियों को ऐसा मसल रहा था जैसे आता गूँध रहा हो.

"पहले भी करवा चुकी हो क्या?" उसने पायल से पुचछा

"नही" पायल ने सर हिलाते हुए जवाब दिया

"फिर तुम्हें ..... "इंदर ने कुच्छ कहना चाहा और फिर बात अधूरी छ्चोड़कर पायल की चूत पर धक्के मारने लगा

सीढ़ियों पर खड़ी रूपाली का हाथ उसकी चूत के साथ जुंग लड़ रहा था. उसे यकीन नही हो रहा था के वो च्छुपकर अपने भाई को किसी लड़की को चोद्ते हुए देख रही है और बजे वहाँ से जाने के खुद भी गरम हो रही थी.

इंदर के धक्के अब काफ़ी तेज़ हो चुके थे.

"और ज़ोर से मलिक" पायल अपनी आह आह के बीच बोल रही थी.

रूपाली को हैरत हुई के कहाँ तक कल की सीधी सी शर्मीली और कहाँ आज खुद ज़ोर से ज़ोर से का नारा लगा रही थी. उसकी खुद की हालत अब तक खराब हो चुकी थी और वो जानती थी के फिलहाल उसके पास चूत की आग भुझाने का कोई तरीका नही था. और जिस तरह से इंदर धक्के मार रहा था, रूपाली समझ गयी के अब काम ख़तम होने वाला है. उसने अपना हाथ चूत से हटाया, अपने कपड़े ठीक किए और धीरे से सीढ़ियाँ चढ़ती बेसमेंट से बाहर निकल गयी.

थोड़ी देर बाद इंदर और रूपाली दोनो बड़े कमरे में बैठे टीवी देख रहे थे. जबसे इंदर बेसमेंट में पायल को चोद्कर आया था तबसे उसके और रूपाली के बीच कोई बात नही हुई थी. रूपाली बैठी टीवी देख रही थी और इंदर उसके पास ही आके खामोशी से बैठ गया था.

रूपाली को समझ नही आ रहा था के अपने भाई के बारे में क्या सोचे. वो भाई जिसे वो दुनिया का सबसे सीधा इंसान समझती रही. जिसके सिर्फ़ 2 शौक हुआ करते थे, शिकार करना और अपना बिज़्नेस संभालना. पिच्छले कुच्छ वक़्त में वो कितना बदल गया था. उसके शौक में कब शायरी और लड़कियाँ जुड़ गयी रूपाली को पता ही ना चला. पर पता चल भी कैसे सकता था. इंदर से पिच्छले 10 साल में मुश्किल से उसने 10 बार बात की होगी और अब पता नही कितने वक़्त के बाद मिली है.

"कामिनी के साथ तेरा रिश्ता कहाँ तक पहुँचा था?" आख़िर में उसने खामोशी तोड़ी और इंदर से पुचछा

"मतलब?" इंदर ने उसकी तरफ नज़र घुमाई

तभी पायल के ग्लास में पानी लेकर कमरे में आई तो रूपाली खामोश हो गयी. रूपाली को पानी थमाते हुए पायल ने एक नज़र इंदर को देखा और मुस्कुरा कर वापिस चली गयी.

"मतलब के तुम लोग कितने करीब थे" रूपाली ने पानी पीते हुए कहा "मेरा मतलब ....."

वो थोड़ी अटकी और फिर अपनी बात कह ही दी

"मेरा मतलब जिस्मानी तौर पर"

इंदर इस बात के लिए तैय्यार नही था. वो चौंक पड़ा

"ये कैसा सवाल है?"

"सवाल जैसा भी है" रूपाली ने सीधा उसकी आँखों में देखते हुए कहा "जवाब क्या है?"

"मैं जवाब देना ज़रूरी नही समझता" इंदर ने गुस्से में कहा और उठकर कमरे से बाहर जाने लगा

"मालकिन" बिंदिया की आवाज़ पर रूपाली ने उसकी तरफ़ नज़र उठाकर देखा

"बाहर पोलीस आई है. वही खाड़ुस इनस्पेक्टर जो हमेशा आता है"

बिंदिया ने कहा तो इंदर के कदम भी रुक गये. उसने पलटकर रूपाली की तरफ देखा

"अंदर ले आओ" रूपाली ने बिंदिया से कहा

थोड़ी देर बाद कमरे में इनस्पेक्टर ख़ान दाखिल हुआ

"सलाम अर्ज़ करता हूँ" वो अपने उसी अंदाज़ में बोला

"तुम अपने कमरे में जाओ" रूपाली ने इंदर को इशारा किया

"अरे नही रुकिये ठाकुर साहब" ख़ान ने फ़ौरन इंदर को रोका "मुझे आपसे भी कुच्छ बात करनी है"

"मुझसे?" इंदर ने हैरानी से पुचछा

"जी आपसे. आइए बैठिए ना. अपना ही घर है" ख़ान ने उसे सामने रखी कुर्सी की तरफ इशारा करके बैठने को कहा

"आप जानते हैं ये कौन है?" रूपाली हैरत में पड़ गयी थी के इंदर से ख़ान क्या बात करना चाहता था

"आपके छ्होटे भाई हैं"ख़ान खुद भी एक चेर पर बैठता हुआ बोला "ठाकुर इंद्रासेन राणा"

"आप कैसे जानते हैं मुझे?" इंदर बैठते हुए बोला

"अजी आप एक ठाकुर हैं. सूर्यवंशी हैं. आपको ना पहचान सकूँ इतनी बड़ा भी बेवकूफ़ नही हूँ मैं" ख़ान ने कहा

ना रूपाली की समझ आया के ख़ान इंदर की तारीफ कर रहा था या मज़ाक उड़ा रहा था और ना खुद इंदर की

"आपके घर फोन किया था मैने तो पता चला के आप बढ़ी बहेन से मिलने गये हुए हैं. अब पोलीस स्टेशन आना तो आप ठाकुरों की शान के खिलाफ है तो मैने सोचा के मैने के मैं ही जाके मिल आऊँ" ख़ान ऐसे कह रहा था जैसे हवेली आकर उसने ठाकुर खानदान पर बहुत बड़ा एहसान किया हो

"कौन है ये आदमी?" इंदर चिड सा गया "और ये क्या बकवास कर रहा है"

"मतलब की बात पर आइए" रूपाली ने इंदर के सवाल का जवाब ना देते हुए ख़ान की तरफ पलटकर कहा

"चलिए मतलब की बात ही करता हूँ" ख़ान बोला और फिर इंदर की तरफ पलटा "वैसे आपको बता दूं के मुझे इनस्पेक्टर मुनव्वर ख़ान कहते हैं, वैसे मेरे चाहने वाले तो मुझे मुन्ना कहते हैं पर मुनव्वर ख़ान मेरा पूरा नाम है और इस इलाक़े में नया आया हूँ. आप चाहें तो आप भी मुझे मुन्ना कहते सकते हैं. अब तो हमारी जान पहचान हो ही गयी है"

"जैसा की आप जानती हैं के आपके पति के खून में मुझे कुच्छ ज़्यादा ही इंटेरेस्ट है" ख़ान रूपाली से बोला "और यकीन मानिए जबसे मैं यहाँ आया हूँ सुबह से शाम तक इसी बारे में सोचता रहता हूँ"

"पर क्यूँ?" रूपाली ने ख़ान की बात बीच में काट दी "मैं जानती हूँ के ये आपका काम है पर हमारे देश के पोलिसेवाले अपना काम काब्से करने लगे?"

रूपाली की बात सुनकर ख़ान हसणे लगा

"फिलहाल के लिए इतना जान लीजिए के मैं ये इसलिए नही कर रहा क्यूंकी ये मेरा काम है. और भी बहुत केस पड़े हैं जिनपर मैं अपना दिमाग़ खपा सकता हूँ. यूँ समझ लीजिए के आपके पति का एक एहसान था मुझपर जो मैं अब उतारने की कोशिश कर रहा हूँ"

"मेरे पति को मरे हुए 10 साल हो चुके हैं" रूपाली ने ख़ान को ताना मारा "अब याद आया है आपको एहसान का बदला चुकाना?"

"वो एक अलग कहानी है" ख़ान ने रूपाली की बात का जवाब नही दिया "फिर कभी फ़ुर्सत में बताऊँगा. फिलहाल मैं जिसलिए आया था वो बात करता हूँ. क्या है के जब आपके पति की मौत हुई थी उस वक़्त उनका पोस्टमॉर्टम नही हुआ था. पोस्टमॉर्टम के लिए बॉडी गयी ज़रूर थी पर बीच में आपके ससुर और आपका सबसे छ्होटा देवर बीच में आ गये थे. वहाँ उन्होने डॉक्टर्स के साथ मार पीट की और बॉडी उठा लाए. अब क्यूंकी वो यहाँ के ठाकुर थे और पोलिसेवाले उनकी जेब में थे इसलिए किसी ने मुँह नही खोला."

"तो?" इस बार रूपाली की जगह इंदर बोला

"तो ये ठाकुर साहब के पोस्टमॉर्टम तो पूरा नही हुआ पर रिपोर्ट्स में इतना ज़रूर लिखा हुआ था के ठाकुर पुरुषोत्तम की मौत कैसे हुई थी"

"गोली लगने से. ये तो हम सब जानते हैं" रूपाली ने कहा

"जी हां आप सब जानते हैं पर अब मैं कुच्छ ऐसा आपको बताता हूँ जो आप नही जानती" ख़ान ले बोलने का अंदाज़ अब कासी सीरीयस हो चुका था "रिपोर्ट्स के हिसाब से ठाकुर पुरुषोत्तम सिंग को एक रेवोल्वर से गोली मारी गयी थी और वो रेवोल्वेर ना तो इंडिया में बनती है और ना ही बिकती है."

रूपाली और इंदर चुप बैठे थे

"ठाकुर साहब को एक कोल्ट अनकॉंडा 6" बॅरल से गोली मारी गयी थी. इस तरह की रिवॉलवर्स अब इंडिया में मिलती हैं या नही ये तो मैं नही जानता पर आज से 10 साल पहले तो बिल्कुल नही मिलती थी. हां ऑर्डर करके मँगवाया ज़रूर जा सकती थी पर उसमें काफ़ी परेशानी होती थी क्यूंकी आप एक हथ्यार खरीद कर दूसरे देश से मग़वा रहे हैं. ये काम सिर्फ़ किसी ऐसी आदमी के बस में था जिसकी अच्छी पहुँच हो और खर्च करने के लिए पैसा बेशुमार हो.जैसे के कोई खानदानी ठाकुर"

"क्या मतलब है आपका" ईन्देर ने गुस्से में पुचछा

"बताता हूँ. सबर रखिए " ख़ान ने भी उसी अंदाज़ में जवाब दिया "तो मैने सोचा के ठाकुर साहब के खानदान से ही शुरू करूँ. अब ठाकुर शौर्या सिंग के खानदान में हथ्यार तो बहुत थे, गन्स भी थी, पर ज़्यादातर दोनाली राइफल्स और जो रिवॉलवर्स या पिस्टल थी वो यहीं इंडिया से खरीदी गयी थी. किसी के भी नाम पर किसी विदेशी बंदूक का रिजिस्ट्रेशन नही था. तो मैने सोचा के क्यूँ ना ठाकुर साहब के रिश्तेदारों में तलाश किया जाए. जब पता लगाया तो मालूम चला के ठाकुर इंद्रासेन राणा ने आज से 11 साल पहले एक कोल्ट अनकॉंडा 6" बॅरल मँगवाई थी."

कमरे में सन्नाटा छा गया. रूपाली और ख़ान दोनो ही इंदर की तरफ देख रहे थे.

"वो इसलिए क्यूंकी मुझे शिकार करने और हथ्यारो का शौक था" इंदर ने अपनी सफाई में कहा

"अब आपकी रिवॉलव कहाँ है ठाकुर?" ख़ान ने सवाल किया

"वो रिवॉलव 10 साल पहले खो गयी थी. मैं शिकार पर गया था और वहीं जंगल में कहीं गिर गयी थी" इंदर ने जवाब दिया

"आपने पोलीस में रिपोर्ट कराई?" ख़ान ने पुचछा

"हम ठाकुर हैं इनस्पेक्टर" इंदर गुस्से में बोलता हुआ खड़ा हुआ "हम अपने मामलो में पोलीस को इन्वॉल्व नही करते"

ये कहकर इंदर गुस्से में पेर पटकता हुआ कमरे से निकल गया

उसके जाने के बाद रूपाली और ख़ान दोनो खामोशी से बैठे रहे. कुच्छ देर बाद रूपाली ने बोलने के लिए मुँह खोला ही था के ख़ान ने उसकी बात बीच में काट दी

"आप ग़लत सोच रही हैं. मैं ये नही कहता के आपके पति को आपके भाई ने मारा है पर ये बहुत मुमकिन है के इन्ही के रेवोल्वेर से आपके पति को गोली मारी गयी."

रूपाली ने सहमति में सर हिलाया और कमरे में फिर खामोशी छा गयी. थोड़ी देर बाद ख़ान उठा

"मुझे यही पता करना था के वो रेवोल्वेर अब ठाकुर इंद्रासेन के पास है के नही. अगर होती तो मैं चेकिंग के लिए माँगता पर ये तो कह रहे हैं के गन ही खो गयी थी. मैं चलता हूँ"

ख़ान जाने लगा तो रूपाली ने उसे रोका

"आप कल सुबह हवेली आ सकते हैं? कुच्छ काम है मुझे"

ख़ान ने हां में सर हिलाया और कमरे से बाहर निकल गया
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#35
Update 31

थोड़ी देर बाद रूपाली दरवाज़ा खोलकर इंदर के कमरे में दाखिल हुई. इंदर बिस्तर पर सर पकड़े ऐसे बैठा था जैसे लुट गया हो.

"सच क्या है इंदर? मैं जानती हूँ तू कुच्छ च्छूपा रहा है मुझसे" वो इंदर के करीब जाते हुए बोली

इंदर ने कोई जवाब नही दिया. बस सर पकड़े बैठा रहा.

"तुझे बताया नही मैने पर अब सोचती हूँ के बता ही दूँ." रूपाली इंदर के ठीक सामने जा खड़ी हुई "कामिनी का पासपोर्ट मुझे यहीं हवेली में मिला. हर वो चीज़ जो वो जाने से पहले पॅक करके ले गयी थी वो यहीं हवेली में बंद एक कमरे में मिली. वो विदेश कभी गयी ही नही इंदर और कोई नही जानता के पिच्छले 10 साल से कहाँ है"

रूपाली की बात सुनकर इंदर ने उसकी तरफ नज़र उठाई. वो आँखें फेलाए रूपाली की तरफ देख रहा था. आँखों में एक खामोश सवाल था जैसे के वो रूपाली से पुच्छ रहा हो के क्या वो सच बोल रही है. रूपाली ने भी उसी खामोशी से हां में सर हिलाया

"मुझे खुद अभी 3-4 दिन पहले ही पता चला" रूपाली ने कहा

"और किसी ने उसके बारे में पता करने की कोशिश नही की?" इंदर को जैसे अब भी यकीन नही हो रहा था

"पता नही. जिससे पूछती हूँ वो यही कहता है के कामिनी विदेश में है. ठाकुर साहब हॉस्पिटल में हैं और उनके आक्सिडेंट होने से पहले मुझे ये बात पता नही थी इसलिए उनसे बात करना अभी बाकी है" रूपाली ने कहा

"मैं जानता था के कुच्छ गड़बड़ हुई है वरना ऐसा हो ही नही सकता था के वो एक बार भी मुझे फोन ना करे. आपने पोलीस में बताया?" इंदर की आवाज़ से सॉफ पता चल रहा था के उसे अब भी इस बात पर यकीन नही हो रहा था

"ख़ान ये बात पहले से ही जानता है. असल में उसने ही मुझसे ये बात सबसे पहले बताई थी" रूपाली ने कहा

"आपने कुलदीप को फोन नही किया? उसके पास ही तो गयी थी कामिनी" इंदर सोचता हुआ बोला

"उसके जितने नंबर मुझे मिल सके मैने सब ट्राइ किए. एक भी काम नही कर रहा" रूपाली ने कहा तो इंदर फिर अपना सर पकड़ कर बैठ गया

"मुझे लगता है के अब वक़्त आ गया है के तुम मुझे सब सच बताओ. शुरू से आख़िर तक." रूपाली ने पुचछा तो इंदर इनकार में सर हिलाने लगा

रूपाली ने उसका चेहरा अपने हाथों में लिया और उपेर उठाकर इंदर की आँखों में देखा

"एक वक़्त था जब तेरी हर बात मुझे पता होती थी इंदर. मैं तेरी बहेन से ज़्यादा तेरी दोस्त थी. हर छ्होटी बड़ी शरारत तू मुझे बताया करता था और मैं तुझे बचाया करती थी. अब क्या हुआ मेरे भाई? कब इतना बदल गया तू के अपनी बहेन से बातें च्छुपाने लगा?"

रूपाली की बात सुनकर इंदर की आँखों से पानी बहने लगा

"कल रात जब मैं कामिनी के कमरे में कुच्छ तलाश कर रह था और आप आ गयी थी तब मैने आपको कहा था के मैं वो पेपर्स ढूँढ रहा था जिसपर मैने शायरी लिखी हुई थी. ये बात कुच्छ अजीब नही लगी आपको? आख़िर कुच्छ काग़ज़ ही तो थे. ऐसी कोई बड़ी मुसीबत तो नही थी के मैं आधी रात को कामिनी के कमरे में जाता" इंदर ने कहा

"आजीब तो लगी थी पर तेरी हर बात पर यकीन करने की आदत सी पड़ गयी है मुझे इसलिए कुच्छ नही बोली" रूपाली ने इंदर का चेहरा छ्चोड़कर उसके साथ बिस्तर पर जा बैठी

"मैं वो रेवोल्वेर ढूँढ रहा था दीदी. मेरी रेवोल्वेर जंगल में नही खोई थी. वो मैने कामिनी को दी थी. आख़िरी कुच्छ दीनो में वो बहुत परेशान सी रहती थी. कहती थी के उसे हवेली में डर लगता है. अपने ही घरवाले उसे अजनबी लगते हैं क्यूंकी हर किसी ने अपने चेहरे पर एक नकली चेहरा लगा रखा था. एक दिन वो मुझसे मिलने आई तो रो रही थी. मैने पुचछा तो कुच्छ बोली नही बस मुझसे मेरी गन माँगी. मुझे अजीब लगा. मैं रेवोल्वेर उसे देना नही चाहता था पर उसके आँसू देख भी नही सकता था. दिल के हाथों मजबूर होकर मैने वो रेवोल्वेर कामिनी को दे दी."

उसने वापिस नही दी?" रूपाली हैरान सी इंदर को देख रही थी

"नौबत ही नही आई" इंदर ने सर झटकते हुए कहा "उसके 2 दिन बाद ही जीजाजी का खून हो गया और फिर मैं कामिनी से मिल नही सका. पिच्छले 10 साल से सोचता रहा के आकर उसका कमरा देखूं के शायद वो रेवोल्वेर यहीं कहीं रखा छ्चोड़ गयी हो पर हिम्मत नही पड़ी. एक दो बार आपसे मिलने के बहाने आया भी तो कामिनी के कमरे में जाने का मौका नही मिला"

"तेरे पास कामिनी के कमरे की चाभी कहाँ से आई?" रूपाली को अचानक याद आया के इंदर बड़ी आसानी से कमरा खोलकर अंदर चला गया था

"वो जब आखरी बार मिलने आई तो बहुर घबराई हुई थी. उसी घबराहट में चाभी मेरी गाड़ी में छ्चोड़ गयी थी" इंदर ने जवाब दिया

"शुरू से बता इंदर. सब कुच्छ" रूपाली ने कहा

"मैने कामिनी को अपने एक दोस्त की शादी में देखा था" इंदर ने बताना शुरू किया

पार्टी पूरे जोश पर थी. इंदर शराब नही पीता था पर आज उसके एक बहुत करीबी दोस्त की शादी थी इसलिए दोस्तों के कहने पर मजबूरन पीनी पड़ी. थोड़ी ही देर बाद उसे एहसास हो गया के नशा अब उसके सर पर चढ़ने लगा है. वो हमेशा से अपनी ज़ुबान पर काबू रखने वाला आदमी था. सिर्फ़ उतना ही बोलता था जितना ज़रूरी हो. कभी भी कहीं पर उसकी ज़ुबान से ऐसी बात नही निकलती थी जो वो ना कहना चाहता हो. पर इंसान नशे में हो तो ना खुद पर काबू रहता है और ना अपनी ज़ुबान पर और ये बात इंदर अच्छी तरह जानता था. पार्टी में मौजूद हर लड़की बस जैसे उसी की तरफ देख रही थी और उससे बात करने या उसके करीब आने की कोशिश कर रही थी. नशे की हालत में कहीं वो किसी के साथ कोई बदतमीज़ी ना कर दे ये सोचकर इंदर ने सबसे अलग कहीं अकेले जाकर बैठने का फ़ैसला किया. अभी वो नशे में था पर नशा इतना नही था के वो होश खो दे पर अगर दोस्तों के बीच रहता तो वो उसे और पीला देते और फिर बात काबू से बाहर हो जाती.

अकेला इंदर अपने दोस्त की ससुराल के घर की सीढ़ियाँ चढ़ता छत की और चला. छत पर पहुँचते ही ठंडी हवा का झोंका उसके चेहरे पर लगा और उसे कुच्छ रहट सी महसूस हुई. नीचे सिगेरेत्टे के धुएँ में उसका दम सा घुटने लगा था.

छ्हत पर कोई नही था. इंदर ने कोने में रखी एक चेर देखी और जाकर उसपर बैठ गया.

"हे भगवान " उसने ज़ोर से कहा "इंसान शराब क्यूँ पीता है"

तभी उसे छत के कोने पर कुच्छ आहट महसूस हुई. नज़र घूमकर देखा तो वहाँ एक लड़की खड़ी थी जो उसके ज़ोर से बोलने पर मुड़कर उसकी तरफ देख रही थी.

"माफ़ कीजिएगा" इंदर फ़ौरन चेर से उठ खड़ा हुआ "मैने आपको देखा नही. शायद ये चेर आप लाई हैं उपेर. आपकी है"

उस लड़की ने एक नज़र इंदर पर डाली और फिर आसमान की तरफ देखने लगी. इंदर को ये थोड़ा अजीब लगा. नीचे खड़ी हर लड़की बस उसी की तरफ देखे जा रही थी और इस लड़की ने उसपर एक नज़र डाली थी. आख़िर आसमान में ऐसा क्या है जिसके लिए उसे भी नज़र अंदाज़ कर दिया गया. ये सोचते हुए इंदर ने आसमान की तरफ नज़र उठाई.

"शिकन लिए मुस्कुराते लबों पे,बात आती है कभी कभी,

क़ुरबतों में पली वो ज़िंदगी, साथ आती है कभी कभी

आसमान से चाँद चुराकर कहीं ले जा तू आज सितम्गर,

जी लेने दे अंधेरे को, के अमावस की रात आती है कभी कभी"

आसमान की तरफ देखते हुए उस लड़की ने कहा

"जी?" इंदर ने उसकी तरफ देखा "अपने मुझसे कुच्छ कहा?"

वो लड़की फिर से इंदर की तरफ देखने लगी

"आप यहाँ उपेर अकेले में क्या कर रहे हैं? आइए नीचे चलें" लड़की ने कहा तो इस बार इंदर को और ज़्यादा हैरानी हुई. कहाँ तो हर लड़की अकेले में उससे बात करना चाह रही थी और कहाँ ये लड़की उसे वापिस नीचे जाने को कह रही थी.

इंदर ने एक नज़र उसपर डाली. वो एक मामूली सूरत की आम सी दिखने वाली लड़की थी. हल्का सावला रंग, गोल चेहरा, काली आँखें और काले बॉल.

"मैं अगर नीचे गया तो मुसीबत आ जाएगी. मेरे दोस्त फिर से मेरे हाथ में शराब थमा देंगे" उसने मुस्कुराते हुए उस लड़की से कहा

"तो क्या हुआ? यहाँ तो हर कोई पी रहा है" उस लड़की ने कहा

"जी हां पर अगर मैं पी लूँ तो मैं पागल हो जाता हूँ. अपने होश में नही रहता. अगर एक बार मुझे नशा चढ़ जाए तो मैं बीच बाज़ार में नाचना शुरू कर दूं" इंदर ने हल्का शरमाते हुए जवाब दिया

उसकी बात सुनकर वो लड़की हस पड़ी. उसके हासणे की आवाज़ ऐसी थी के इंदर बस उसे देखता रह गया. लड़की ने हाथ के इशारे से उसे फिर नीचे चलने को कहा तो इंदर ने फ़ौरन इनकार में सर हिला दिया

"जी बिल्कुल नही. ना तो मेरा आज पागल होने का इरादा है और ना कहीं नशे में नाचने का, ना बाज़ार में और ना ही यहाँ पार्टी में"

उसकी बात सुनकर वो लड़की उसके थोडा करीब आई और हल्की सी आवाज़ में ऐसे बोली जैसे कोई राज़ की बात बता रही हो

"आज बाज़ार में पबाजोला चलो

दस्त अफ्शान चलो,मस्त-ओ-रकसान चलो

खाक बरसर चलो,खून बदमा चलो

राह तकता है सब,शहेर-ए-जाना चलो

हाकिम-ए-शहेर भी, मजमा-ए-आम भी

तीर-ए-इल्ज़ाम भी, संग-ए-दुश्नाम भी

सुबह-ए-नाशाद भी, रोज़-ए-नाकाम भी

इनका दम्साज अपने सिवा कौन है

शहेर-ए-जाना में अब बसिफ़ा कौन है

दस्त-ए-क़ातिल के शायन रहा कौन है

रखत-ए-दिल बाँध लो, दिलफ़िगारो चलो

फिर हम ही क़त्ल हो आएँ यारो चलो"

"जी?" एक शब्द भी इंदर के पल्ले नही पड़ा "ये कौन सी भाषा थी"

उसकी बात सुनकर वो लड़की फिर खिलखिलाकर हस्ने लगी और सीढ़ियाँ उतरकर नीचे चली गयी.

नीचे आकर इंदर ने पता किया तो लड़की का नाम कामिनी था और वो ठाकुर शौर्या सिंग की बेटी थी. कामिनी में ऐसा कुच्छ भी नही था जिसपर आकर किसी की नज़र थम जाए पर जाने क्यूँ इंदर की नज़र बार बार उसी पर आकर रुकती. जिस तरह से वो उपेर खड़ी आसमान को देख रही थी, जिस तरह से उसने हाथ से इशारा करके इंदर को नीचे चलने को कहा था, और जिस तरह से वो कुच्छ धीरे से कहती थी जो इंदर को समझ नही आया था, इन सब बातों में इंदर उलझ कर रह गया थे. पूरी रात पार्टी में वो बस कामिनी को ही देखता रहा और उसने महसूस किया के वो भी पलटकर उसी की तरफ देख रही थी. कई बार दोनो की नज़र आपस में टकराती और दोनो ने मुस्कुरा कर नज़र फेर लेते.

सुबह के 4 बाज रहे थे. इंदर लड़केवालों की तरफ से बारात के साथ आया था जबकि कामिनी लड़की वालो की तरफ से थी. विदाई की वक़्त हो गया था और हर कोई दूल्हा और दुल्हन के आस पास भटक रहा था. इंदर जानता था के थोड़ी देर बाद उसको जाना होगा पर वो कामिनी से एक बार बात करना चाहता था. जाने क्या था के उसकी नज़र पागलों की तरह भीड़ में कामिनी को तलाश रही थी पर वो कहीं नज़र नही आई. अचानक इंदर को छत का ख्याल आया और वो भागता हुआ फिर छत पर पहुँचा. जैसा की उसने सोचा था, कामिनी वहीं खड़ी फिर से आसमान की तरफ देख रही थी. इंदर भागता हुआ छत पर आया था इसलिए उसकी साँस फूल रही थी. उसके हाफने की आवाज़ सुनकर कामिनी उसकी तरफ पलटी और खामोशी से उसे देखने लगी. कुच्छ देर तक इंदर भी कुच्छ नही बोला और छत की दीवार का सहारा लेकर खड़ा हो गया.

"शुक्रिया" थोड़ी देर बाद कामिनी बोली

इंदर ने सवालिया नज़र से उसकी तरफ देखा

"किस बात के लिए?" उसने कामिनी से पुचछा

"आज रात के लिए. आज रात आप हमारे साथ रहे उसके लिए" कामिनी ने एक नज़र इंदर की तरफ देखा और फिर आसमान की तरफ देखने लगी

"मैं आपके साथ कहाँ था. आपको तो अपनी दोस्तों से वक़्त ही नही मिला" इंदर ने कामिनी की तरफ देखा. वो अब भी उपेर ही देख रही थी

"क्या देख रही हैं आप? क्या है आसमान में" आख़िर इंदर ने पुच्छ ही लिया

उसकी बात सुनकर कामिनी ने उसकी तरफ देखा और उसके सवाल को नज़र अंदाज़ कर दिया

"भले आप खुद हमारे साथ नही थे पर आपकी नज़र ने हमें एक पल के लिए भी अकेला कहाँ होने दिया. पूरी रात आपकी नज़र हमारे साथ रही" कामिनी ने कहा तो इंदर ने मुस्कुराते हुए नज़र नीची कर ली

"तो आप जानती थी?" उसने कामिनी से पुचछा

जवाब में कामिनी कुच्छ नही बोली. बस खामोशी से उसके करीब आई और फिर उसी हल्की सी आवाज़ में बोली, जैसे कोई बहुत बड़े राज़ की बात बता रही हो

"कुच्छ इस अदा से आप यूँ पहलू-नसहीन रहे

जब तक हमारे पास रहे, हम नहीं रहे

या रब किसी के राज़-ए-मोहब्बत की खैर हो

दस्त-ए-जुनून रहे ना रहे आस्तीन रहे"

इंदर को एक बार फिर पूरी तरह से कामिनी की बात समझ नही आई पर वो किस मोहब्बत के राज़ की बात कर रही थी ये वो अच्छी तरह समझ गया था. उसने कामिनी की तरफ देखा.

"दुआ करती हूँ के मैने जो अभी कहा है, इसके बाद की लाइन्स कहने की नौबत कभी ना आए" कामिनी ने धीरे से पिछे होते हुए कहा

"जी?" इंदर ने कामिनी की और देखते हुए पुचछा

कामिनी फिर से हस्ने लगी और इंदर फिर उसको एकटूक देखने लगा

"कभी इस जी के सिवा कुच्छ और भी कहिए ठाकुर इंद्रासेन राणा" कामिनी ने कहा और सीढ़ियाँ उतरकर नीचे चली गयी

इंदर समझ गया था के जिस तरह वो अपने दोस्तों से कामिनी के बारे में मालूम करने की कोशिश कर रहा था वैसे ही कामिनी ने भी उसका नाम कहीं से मालूम किया था. थोड़ी ही देर बाद बारात विदा हो गयी. जाते हुए इंदर को कामिनी कहीं नज़र नही आई पर वो जानता था के वो उसे फिर ज़रूर मिलेगा.

शादी के 2 दिन बाद इंदर अपने कमरे में सोया हुआ था. सुबह के 9 बाज रहे थे पर उसे देर से सोने और देर तक सोते रहने की आदत थी. उसके पास रखा फोन बजने लगा तो चिड़कर इंदर ने तकिया अपने मुँह पर रख लिया. फोन लगातार बजता रहा तो उसने गुस्से में फोन उठाया.

"हेलो" आधी नींद में इंदर बोला.

दूसरी तरफ से वही ठहरी हुई धीमी आवाज़ आई जिसने 2 दिन पहले इंदर को पागल सा कर दिया था.

लज़्ज़त-ए-घाम बढ़ा दीजिए,

आप यूँ मुस्कुरा दीजिए,

क़यामत-ए-दिल बता दीजिए,

खाक लेकर उड़ा दीजिए,

मेरा दामन बहुत साफ है

कोई इल्ज़ाम लगा दीजिए

"कामिनी" इंदर बिस्तर पर फ़ौरन उठ बैठा.

"हमें तो लगा के आप हमें भूल गये" दूसरी तरफ से कामिनी की आवाज़ आई

"कैसे भूल सकता हूँ पर आप अपने नंबर देकर ही नही गयीं" इंदर अपनी सफाई में बोला

"नंबर तो आपने भी नही दिया पर हमें तो मिल गया" कामिनी ने कहा तो इंदर के पास अब कोई जवाब नही था.

कुच्छ देर तक वो इधर उधर की बातें करते रहे. कामिनी ने उसे अपने बारे में बताया और इंदर ने कामिनी को अपने बारे में. खबर ही नही हुई के दोनो को बात करते करते कब 2 घंटे से ज़्यादा वक़्त हो गया. आख़िर में इंदर ने फिर से मिलने की बात की तो कामिनी खामोश हो गयी.

"क्या हुआ?" इंदर ने पुचछा "आप मिलना नही चाहती?"

"अगर इंसान के चाहने से सब कुच्छ हो जाया करता तो फिर दुनिया में इतनी मुसीबत ना हुआ करती" दूसरी तरफ से कामिनी की आवाज़ आई "हम फिर फोन करेंगे"

कहकर कामिनी ने फोन रख दिया. इंदर परेशान सा फोन की तरफ देखने लगा. इस बार भी कामिनी ने उसे अपना फोन नंबर नही दिया था.

"फिर क्या हुआ?" रूपाली खामोशी से बैठी इंदर की बात सुन रही थी

"उसने उस दिन फोन ऐसे ही रख दिया पर मैं समझ चुका था के वो भी मुझे चाहती है. मैने अपने उस दोस्त को फोन किया जिसकी शादी में मुझे कामिनी मिली थी और उसकी बीवी के ज़रिए मैने कामिनी का फोन नंबर निकाल लिया. यानी यहाँ हवेली का नंबर" इंदर ने कहा

":ह्म्‍म्म्मम "रूपाली ने हामी भारी

"पर मुसीबत ये थी के अगर मैं फोन करूँ तो पता नही कामिनी उठती या कोई और. फिर भी मैने कोशिश की. 3 दिन तक मैं लगातार कोशिश करता रहा पर हर बार कोई और ही फोन उठता और मुझे फोन काटना पड़ता. इस बीच कामिनी ने भी मुझे फोन नही किया. 3 दिन बाद एक दिन मैने फोन किया तो फोन कामिनी ने उठाया. पहले तो वो मेरे फोन करने पर ज़रा परेशान हुई के मुझे यूँ फोन नही करना चाहिए था और अगर घर में किसी को पता चला तो मुसीबत आ जाएगी. पर फिर खुद ही हस्कर कहने लगी के वो देखना चाहती थी के मैं फोन करूँगा या नही इसलिए खुद भी मुझे 3 दिन से फोन नही कर रही थी. ये थी मेरी और उसकी पहली मुलाक़ात. इसके बाद हम दोनो के बीच फोन शुरू हो गये और हम घंटो एक दूसरे से बातें करते रहते. मुझे खबर ही नही हुई के मैं कब कामिनी को इतना चाहने लगा था पर वो थी के मुझसे मिलने को तैय्यार ही नही होती थी. फिर तकरीबन 6 महीने बाद वो मुझसे मिलने को तैय्यार हुई." इंदर अब बिना रुके अपनी पूरी कहानी बता रहा था

"शहेर में मिलते थे तुम दोनो?" रूपाली ने पुचछा

"हां" इंदर ने हां में सर हिलाया "कामिनी गाड़ी अकेली ही लाती थी. ना ड्राइवर ना बॉडीगार्ड. उन दीनो वो काफ़ी खुश रहती थी. हम साथ रहते, बातें करते और कुच्छ वक़्त साथ गुज़रने के बाद वो वापिस चली आती. उन दीनो में ऐसा कुच्छ नही हुआ जो कुच्छ अजीब हो. बस एक लड़का लड़की मिलते और एक दूसरे का हाथ थामे घंटो बातें करते रहते. कुच्छ दिन बाद जाने कैसे पर आपकी शादी कामिनी के घर ही पक्की हो गयी. हम दोनो इस बात को लेकर बहुत खुश थे और इसे अपनी खुशमति मान रहे थे. मैं इसलिए खुश था के मैं आपकी शादी के बाद बिना किसी परेशानी के हवेली में आ जा सकता था और वो इसलिए खुश थी के उसे मेरे साथ शादी की बात चलाने का एक बहाना मिल गया था, यानी के आप. पर वो चाहकर भी कभी आपसे बात नही कर सकी और ना ही मैं और इसकी वजेह थी के आप मंदिर से कभी बाहर ही नही निकलती थी. हम दोनो ये सोचकर चुप रह जाते के जाने आप कैसे रिक्ट करेंगी. इसी उलझन में कब वक़्त गुज़रता चला गया हमें पता ही नही चला. कभी कभी मैं आपसे मिलने के बहाने हवेली आ जाया करता था पर अब भी हम ज़्यादातर बाहर ही मिला करते थे"

"कामिनी में बदलाव कब देखा तुमने" रूपाली ने पुचछा

"आखरी कुच्छ दीनो में. जीजाजी के मरने से कोई 2 महीने पहले से. एक दिन वो मुझसे मिलने शहेर आई" इंदर ने बताना शुरू किया...
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#36
Update 32

इंदर अपनी गाड़ी रोके कोई एक घंटे से कामिनी का इंतेज़ार कर रहा था. कभी ऐसा नही होता था के कामिनी देर से पहुँचे, बल्कि वो इंदर से पहले ही पहुँच जाती थी पर आज इंदर को इंतेज़ार करना पड़ रहा था. वो शहेर के बाहर एक सुनसान इलाक़े में गाड़ी रोके खड़ा था. कामिनी और वो अक्सर यहीं मिला करते थे.

थोड़ी देर बाद उसे कामिनी की गाड़ी आती हुई नज़र आई. वो अपनी कार से बाहर निकला. कामिनी ने उसकी कार के पिछे लाकर अपनी कार रोकी और उसकी तरफ चलती हुई आई.

"सॉरी" कामिनी ने करीब आते हुए कहा "आज देर हो गयी"

"कोई बात नही" इंदर ने मुस्कुराते हुए कहा "इतने वक़्त से तुम मेरा इंतेज़ार करती थी. आज मैने कर लिया तो कौन सी बड़ी बात है"

इंदर ने अपनी कार का दरवाज़ा खोला और वो दोनो उसकी कार की बॅक्सीट पर बैठ गये. दोपहर का वक़्त था और गर्मी सर चढ़कर बोल रही थी. इंदर ने कार का एसी ऑन कर दिया

कामिनी आज इंदर से पूरे 2 महीने बाद मिल रही थी. वो 2 महीने से कोशिश कर रहा था पर कामिनी मना कर देती थी. उसने हवेली जाने की सोची पर वहाँ वो अकेले में वक़्त नही बिता पाते थे.

"क्या हुआ?" इंदर ने रूपाली के माथे पर हाथ फेरते हुए कहा "परेशान सी लग रही हो"

"कुच्छ नही" कामिनी ने ज़बरदस्ती मुस्कुराते हुए कहा "तक गयी हूँ"

"इंदर कार की बॅक्सीट पर एक कोने में हो गया और कामिनी को इशारा किया के वो लेट जाए. कामिनी ने पहले तो मना किया पर इंदर के ज़ोर डालने पर वो लेट गयी और अपना सर इंदर की जाँघ पर रख लिया

"क्या हुआ आज हमेशा की तरह कोई शायरी नही?" इंदर ने पुचछा

"जब ज़िंदगी खुद अपनी शायरी सुनाना शुरू कर दे तो इंसान कहाँ शायरी कर पता है" कामिनी ने उदास सी आवाज़ में जवाब दिया

"क्या हुआ?" इंदर ने दोबारा पुचछा

"कुच्छ नही. बस इंसान का चेहरा देखकर कभी कभी समझ नही आता के असली कौन सा है और नकली कौन सा" कामिनी ने कहा और अपनी आँखें बंद कर ली

इंदर ने उसके उदास चेहरे की तरफ देखा और आगे कुच्छ ना पुछा. वो प्यार से कामिनी के सर पर हाथ फेरता रहा

कामिनी ने सलवार कमीज़ पहेन रखी थी. इंदर की गोद में लेटे होने की वजह से उसका दुपट्टा सरक कर कार में नीचे गिर पड़ा था. वो इस तरीके से लेटी हुई थी के दोनो टांगे भी उपेर सीट पर थी और उसका पूरा जिस्म मुड़ा हुआ था जिसकी वजह से नीचे दे दबाव पड़ने के कारण उसकी चूचियाँ कमीज़ के उपेर से बाहर को निकल रही थी.

इंदर की नज़र कामिनी की चूचियों पर पड़ी तो पहले तो उसने नज़र फेर ली पर फिर दोबारा उसी तरफ देखने लगा. कामिनी और उसके बीच अब तक कोई जिस्मानी रिश्ता नही बना था. कभी कभी वो दोनो एक दूसरे को चूम लेते थे और बस. ना तो कभी इससे आगे बात गयी और ना ही इंदर ने कोशिश की के इससे आगे कुच्छ और करे. पर आज कामिनी को यूँ इस हालत में देखकर उसके दिल की धड़कन तेज़ होने लगी.

उसका हाथ कामिनी के सर पर रुक गया था. कुच्छ देर तक आँखें बंद रखने के बाद कामिनी ने आँखें खोली और इंदर की तरफ देखा. इंदर की नज़र अब भी उसकी चूचियों पर थी. कामिनी ने शर्मा कर अपने दोनो हाथ अपने सीने पर रख लिए.

उसकी इस हरकत से इंदर ने उसकी आँखों में देखा. वो धीरे से नीचे झुका और अपने होंठ कामिनी के होंठ पर रख दिए. कामिनी के मुँह से आह निकल गयी और उसका हाथ इंदर का सर सहलाने लगा. दोनो के होंठ आपस में एक दूसरे से चिपक गये और ज़ुबान एक दूसरे की ज़ुबान से टकराने लगी. अपने होंठ कामिनी के होंठों से चिपकाए हुए ही इंदर ने अपने एक हाथ से कामिनी के हाथों को उसके सीने से हटाया. कामिनी ने इनकार करना चाहा पर इंदर की ज़िद के आगे हार मानकर अपने हाथ हटा दिए. इंदर का हाथ उसके गले से होते हुआ उसके सीने पर आया और कमीज़ के उपेर से ही कामिनी की चूचियाँ दबाने लगा. अब तक कामिनी की साँसें भी भारी हो चली थी. ये पहली बार था के वो और इंदर इतने करीब आए थे और इंदर ने उसके जिस्म को च्छुआ था. उसने भी पलटकर पूरे ज़ोर से इंदर को चूमना शुरू कर दिया.

थोड़ी देर कमीज़ के उपेर से ही चूचिया सहलाने के बाद इंदर का हाथ फिर कामिनी के गले पर आया और इस बार उसके कमीज़ के गले से होते हुए अंदर गया और फिर ब्रा के अंदर घुसता हुआ सीधा कामिनी की नंगी चूची पर आ गया. कामिनी का पूरा जिस्म ऐसा हिला जैसे उसे कोई ज़बरदस्त झटका लगा हो. उसने अपने होंठ इंदर के होंठ से हटाया, उसका हाथ पकड़कर बाहर खींचा और उठकर बैठ गयी. बैठकर वो ज़ोर ज़ोर से साँस लेने लगी और अपने बाल ठीक करने लगी. नीचे पड़ा दुपट्टा उठाकर उसने अपने गले में डाल लिया

"क्या हुआ?" इनडर ने पुचछा.

कामिनी ने जवाब नही दिया तो उसने अपना हाथ उसके हाथ पर रखा

"क्या हुआ कामिनी? बुरा लगा क्या?" इंदर ने उसके करीब होने की कोशिश की पर कामिनी दूर होती हुई कार का दरवाज़ा खोलकर बाहर निकल गयी

"ओक आइ आम सॉरी" इंदर भी अपनी तरफ का दरवाज़ा खोलकर बाहर निकला "तुम जानती हो मैं तुमसे प्यार करना चाहता हूँ और शादी करना चाहता हूँ इसलिए शायद थोड़ा आगे बढ़ गया. कुच्छ ग़लत किया मैने?"

"नही. कुच्छ ग़लत नही किया"कामिनी पलटकर चिल्लाई "ये तो हमारे रिश्ते के लिए बहुत ज़रूरी था ना"

"कामिनी !!!!! " इंदर ने पहली बार कामिनी को यूँ चिल्लाते देखा था इसलिए हैरानी से उसकी तरफ देखने लगा

"इस जिस्म में ऐसा क्या है इंदर जो हर कोई पागल हुआ रहता है इसके पिछे. के अपनी आग लोगों से संभाली नही जाती" कामिनी अब भी गुस्से में थी

"क्या मतलब?" इंदर को समझ नही आ रहा था के कामिनी यूँ ओवर रिक्ट क्यूँ कर रही थी

"हर किसी को यही चाहिए, है ना? हर किसी को बस इसी एक चीज़ की ख्वाहिश लगी रहती है. फिर ना तो रिश्ते मतलब रखते हैं और ना कोई और चीज़. फिर चाहे जितना गिरना पड़े पर जिस्म की आग बुझनी चाहिए, चाहे किसी के साथ भी हो. फिर ये नज़र नही आता के कौन अपने घर का है और कौन ........." कामिनी ने बात अधूरी छ्चोड़ दी. इंदर अब भी उसको चुप खड़ा देख रहा था

"बस यही एक चीज़ चाहिए सबको" कामिनी ने दोनो हाथ हवा में फेलते हुए फिर अपनी बात दोहराई

"सबको मतलब" इंदर बस इतना ही कह सका. कामिनी उसकी बात का जवाब दिए बिना अपनी कार में बैठी और वहाँ से निकल गयी.

"उसके बाद?" रूपाली इंदर से पुचछा

"वो आखरी बार था जब कामिनी मेरे इतने करीब आई थी. उसके बाद अगले 2 महीने तक मैं फोन ट्राइ करता रहा पर उससे बात नही हो पाई. मैं कई बार हवेली आपसे मिलने आया पर वो मुझे देखकर अपने कमरे में चली जाती थी और तब तक बाहर नही आती थी जब तक के मैं वापिस ना चला जाऊं" इंदर बोला

"उसने कुच्छ नही बताया के वो किस बात को लेकर इतना परेशान थी?" रूपाली को समझ नही आ रहा था के क्या सोचे

"इस बात का मौका ही नही मिला दीदी के मैं उससे आराम से बैठकर बात कर पाता या कुच्छ पुच्छ पाता. उस दिन जब वो मिली तो मुझसे लड़कर चली गयी थी. पता नही किसका गुस्सा उसने मुझपर निकाला था और उसके बाद कभी हमें मौका ही नही मिला के आराम से बैठकर बात कर पाते" इंदर ने कहा

"तो अपनी रेवोल्वेर कब दी तुमने उसको?" रूपाली ने पुचछा

"जीजाजी के खून से 3 दिन पहले उसका मेरे पास फोन आया" इंदर ने आगे बताना शुरू किया

इंदर अपने कमरे में बैठा एक किताब पढ़ रहा था. फोन की घंटी बजी तो उसने आगे बढ़कर फोन उठाया. फोन के दूसरी तरफ से कामिनी के रोने की आवाज़ आई.

"कामिनी" इंदर जैसे चिल्ला उठा "ओह थॅंक गॉड कामिनी. मुझे तो लगा था के तुम मुझसे अब कभी बात ही नही करोगी. मेरी ग़लती की इतनी बड़ी सज़ा दे रही थी मुझे?"

दूसरी तरफ से कामिनी ने कुच्छ नही कहा. बस रोती रही. उसके रोने की आवाज़ ऐसी थी जैसे वो बहुत तकलीफ़ में हो. इंदर से बर्दाश्त नही हुआ. उसकी अपनी आँखो में पानी आ गया

"मुझे माफ़ कर दो कामिनी. मैं मानता हूँ के ग़लती मेरी है. मुझे शादी से पहले ऐसी हरकत नही करनी चाहिए थी. पर तुम जानती हो मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ. मैं आज ही तुमसे शादी करने को तैय्यार हूँ अगर तुम कहो तो. हम अपने घर में बात कर लेंगे. नही माने तो कोर्ट मॅरेज कर लेंगे. मेरा यकीन करो कामिनी" इंदर पागलों की तरह कहता जा रहा था.

कुच्छ देर दोनो खामोश रहे. थोड़ी देर बाद रूपाली ने रोते रोते कहा

"मुझे नही पता के अब मैं किसका यकीन करूँ और किसका नही इंदर. अब तो हर कोई अजनबी सा लगने लगा है. हर किसी की शकल देखकर ऐसा लगता है जैसे उसने अपनी शकल पर एक परदा सा डाल रखा हो. अंदर से कुच्छ और और बाहर से कुच्छ और. किस्मत का खेल तो देखो इंदर के जो अपने थे वो पराए हो गये और जो पराया था वो अपना गया."

"मैं कभी पराया नही था कामिनी. मैं तो हमेशा से तुम्हारा अपना था. तुम ऐसी बातें क्यूँ कर रही हो?" इंदर तदपकर बोला

फोन पर फिर थोड़ी देर तक खामोशी बनी रही

"मेरी जान को ख़तरा है इंदर" रूपाली ने रोना बंद करते हुए कहा

इंदर को ऐसा लगा जैसे उसको 1000 वॉट का झटका लगा हो

"किससे?" उसने पुचछा

"ये सब बातें बाद में. मैं अभी ज़्यादा देर बात नही कर सकती. तुम मेरी बात सुनो. तुम मुझे कोई हथ्यार दे सकते हो? हिफ़ाज़त के लिए? तुम्हारी कोई पिस्टल या रेवोल्वेर?" कामिनी अब बहुत धीरे धीरे बोल रही थी

"पिस्टल? ऱेवोल्वेर? तुम क्या कह रही हो मेरी कुच्छ समझ नही आ रहा" ईन्देर के सचमुच कुच्छ भी पल्ले नही पड़ रहा था

"अभी समझने का वक़्त नही है. तुम एक काम करो. कल दोपहर 2 बजे उसी जगह पर मेरा इंतेज़ार करना जहाँ हम आखरी बार मिले थे. और अपनी रेवोल्वेर लेकर आना" कामिनी ने कहा

"कामिनी मेरी बात सुनो" इंदर बोला "कल 2 बजे तो मैं आ जाऊँगा पर ......."

वो अभी कह ही रहा था के पिछे से सरिता देवी की आवाज़ आई"

"कामिनी बेटा"

और कामिनी ने फोन काट दिया.

अगले दिन इंदर कामिनी की बताई हुई जगह पर खड़ा इंतेज़ार कर रहा था. कामिनी ने 2 बजे आने को कहा था पर 3 दिन बज चुके थे और वो अब तक नही आई थी. कल रात से इंदर का सोच सोचकर दिमाग़ फटा जा रहा था. जान को ख़तरा? अपने अजनबी हो गये? कामिनी की कही कोई बात उसे समझ नही आ रही थी.

जब घड़ी में 3 बज गये तो वो समझ गया के कामिनी नही आएगी. उसने वापिस जाने का फ़ैसला किया और कार स्टार्ट ही की थी के रिव्यू कार में उसे कामिनी की गाड़ी आती हुई दिखाई दी. उसकी जान में जान आई. कामिनी ने उसकी कार के पिछे अपनी कार लाकर रोकी. इंदर अपनी गाड़ी से निकालने ही वाला था के कामिनी खुद अपनी कार से निकलकर जल्दी जल्दी इंदर की गाड़ी की तरफ आई और दरवाज़ा खोलकर अंदर आ गयी.

"गन लाए?" कामिनी ने गाड़ी में बैठते ही पुचछा

"हां लाया हूँ पर मेरी बात सुनो कामिनी" इंदर ने कुच्छ कहना चाहा ही था के कामिनी ने सामने रखी रेवोल्वेर देखी और जल्दी से उठा ली

"अभी कुच्छ कहने या सुनने का वक़्त नही है इंदर. मैं ये गन कुच्छ दिन बाद तुम्हें लौटा दूँगी और तब सब कुच्छ समझा दूँगी" कहकर कामिनी ने अपनी तरफ का दरवाज़ा खोला और इससे पहले के इंदर कुच्छ कह पता या कर पाता वो कार से बाहर निकल गयी. इंदर भी जल्दी से अपनी तरफ का दरवाज़ा खोलकर बाहर निकला. कामिनी तेज़ कदमों से चलती अपनी कार की तरफ जा रही थी और जब तक के इंदर उस तक पहुँचता, वो कार स्टार्ट कर चुकी थी.

"रूको कामिनी" इंदर भागता हुआ कामिनी की तरफ आया और कार की विंडो पर हाथ रखकर झुका "तुम मेरे साथ ऐसा नही कर सकती. तुम्हें बताना होगा के आख़िर हो क्या रहा है"

कामिनी उसकी तरफ देखकर मुस्कुराइ और इंदर के चेहरे पर प्यार से हाथ फेरा.

"इंदर" उसने मुस्कुराते हुआ कहा "मेरा इंदर"

"मैं हमेशा तुम्हारा हूँ कामिनी पर .... "इंदर ने कुच्छ कहना चाहा ही था के कामिनी ने उसके होंठ पर अपनी अंगुली रख कर उसे चुप करा दिया

"तुम्हें याद है इंदर जब हम पहली बार मिले थे तब मैने तुम्हें एक शेर सुनाया था और मैने कहा था के खुदा ना करे मुझे कभी इसकी आखरी लाइन्स भी तुम्हें कहनी पड़ें?" कामिनी ने पुचछा तो इंदर ने हां में सर हिला दिया

कामिनी खिड़की के थोडा नज़दीक आई और इंदर के गले में हाथ डालकर उसे थोड़ा नज़दीक किया. अगले ही पल दोनो के होंठ मिल गये. कामिनी उसे धीरे धीरे प्यार से चूमने लगी और फिर अपने होंठ इंदर के होंठ से हटाकर उसके कान के पास लाई. अपनी उसी अंदाज़ में फिर वो ऐसे बोली जैसे कोई बहुत बड़े राज़ की बात बता रही हो.

"कुच्छ इस अदा से आप यूँ पहलू-नॅशिन रहे

जब तक हमारे पास रहे हम नहीं रहे

ये दिन भी देखना फाज़ था तेरी आश्की में,

रोने की हसरत है मगर आँसू नहीं रहे,

जा और कोई सुकून की दुनिया तलाश कर,

मेरे महबूब हम तो तेरे क़ाबिल नहीं रहे"

और इससे पहले के इंदर कुच्छ समझ पाता, कामिनी के कार उसकी आँखो से तेज़ी के साथ दूर होती जा रही थी.

"बस" इंदर ने एक लंबी साँस ली "इतनी ही थी हमारी कहानी. आप पुच्छ रही थी ना के हम कितना करीब आए थे? इतना करीब आए थे हम दीदी"

और इंदर अपना सर अपने हाथों में पकड़कर रोने लगा

"तुमने ये बात किसी से कही क्यूँ नही?" रूपाली ने पुचछा

"मैं क्या कहता? इंदर बोला "जीजाजी का खून होने के बाद अगर मैं किसी से ये कहता के मैने गन कामिनी को दी थी तो सब लोग क्या समझते? और अगर ये कहता के मेरे से गुम हुई है तो सब मेरे बारे में क्या सोचते? बिल्कुल वही सोचते जो इस वक़्त वो इनस्पेक्टर सोच रहा है"

रूपाली थोड़ी देर तक इंदर के सामने चुप बैठी रही. उसे समझ नही आ रहा थे के क्या कहे और इंदर को कैसे संभाले. माहौल को हल्का करने के लिए उसने बात बदलने की सोची

"एक लड़की के इश्क़ में यूँ रो रहे हो और हरकतें कुच्छ और कर रहे हो?" उसने इंदर के सर पर हल्के से थप्पड़ मारा

"क्या मतलब" इंदर ने अपना सर उपेर उठाया

"मैने देखा था बेसमेंट में. तुम्हें और वो कल की छ्छोकरी पायल को

इंदर का मुँह हैरानी से खुला रह गया. वो रूपाली के मुस्कुराते चेहरे को थोड़ी देर तक देखता रहा और फिर खुद शरमाता हुआ हस पड़ा

"आप वहाँ कब आई?"

"जिस तरह से वो पायल टेबल पर लेटी शोर मचा रही थी उससे तो मुझे हैरानी है के पूरा गाओं क्यूँ नही आ गया" रूपाली ने जवाब दिया तो दोनो भाई बहेन हस पड़े

"मैं क्या करता दीदी" इंदर ने कहा "कामिनी जिस तरह से गयी उससे मैं बोखला उठा था. सोचा मैं क्यूँ एक लड़की के इश्क़ में मारा जा रहा हूँ. उसके बाद जो सामने आई मैं नही रुका. पता नही क्या साबित करना चाह रहा था या पता नही दिल ही दिल में शायद कामिनी को दिखाना चाह रहा था के मैं उसके बिना जी सकता हूँ. कमी नही है मेरे पास"

उसके बाद रूपाली और थोड़ी देर इंदर के कमरे में बैठी रही. उसके बाद वो उठकर अपने कमरे में आ गयी. अचानक उसे कामिनी के कमरे में मिली सिगेरेत्टेस की बात याद आई. उसने सोचा के इंदर से पुच्छे के क्या वो कामिनी को सिगेरेत्टेस लाकर देता था? ये सोचकर वो वापिस इंदर के कमरे पर पहुँची तो कमरा अंदर से बंद था. रूपाली ने खोलने की कोशिश की तो कमरे को अंदर से लॉक पाया. वो इंदर का नाम पुकारने ही वाली थी के अंदर से आती पायल की आवाज़ सुनकर उसका हाथ रुक गया. आवाज़ से सॉफ पता चल रहा था के अंदर पायल और इंदर क्या कर रहे हैं.

रूपाली का मुँह हैरत से खुला रह गया. उसे अभी इंदर के कमरे से गये मुश्किल से 15 मिनट ही हुए थे. जो लड़का अभी थोड़ी देर पहले बैठा कामिनी के इश्क़ में आँसू बहा रहा था वो 15 मिनट में ही पायल पर चढ़ा हुआ था. वो भी भरे दिन में. तब जबकि उसकी अपनी बड़ी बहेन और पायल की माँ उसी हवेली में मौजूद थी.

रूपाली वापिस अपने कमरे की और चल पड़ी. इंदर की हरकत से उसे शक़ होने लगा था के जो इंदर ने कामिनी के और अपने बारे में कहानी रूपाली को सुनाई थी, क्या वो सच थी. और अगर सच थी तो कितनी सच थी.

रात ढाल चुकी थी. पिच्छली कुच्छ रातों की तरह ये रात भी अलग नही थी. रूपाली अपने बिस्तर पर पड़ी थी. पूरी तरह नंगी. टांगे फेली हुई, एक हाथ उसकी छाती पर और दूसरा टाँगो के बीच उसकी चूत पर. उसे अपने उपेर हैरत थी के कहाँ कल की एक सीधी सादी घरेलू औरत और कहाँ एक ये औरत जिससे अपने जिस्म की गर्मी एक रात भी नही संभाली जाती थी. उसने अपनी 3 अंगुलिया अपनी चूत में घुसा रखी थी पर जिस्म था के खामोश होने का नाम ही नही ले रहा था. चिढ़कर रूपाली ने अपना हाथ टाँगो के बीच से हटाया और गुस्से में बिस्तर पर ज़ोर से मारा.

रात के तकरीबन 9 बजे तेज वापिस आ गया था. उसने रूपाली या किसी और से कोई बात नही की थी. चुप चाप बस अपने कमरे में चला गया था. काम ख़तम करके बिंदिया को भी रूपाली ने उसके ही कमरे में जाते देखा था. आज की रात रूपाली ऐसा भी नही कर सकती थी के पायल के साथ ही अपने जिस्म की आग भुझाने की कोशिश करे क्यूंकी पायल भी अपने कमरे में नही थी और रूपाली अच्छी तरह जानती थी के इस वक़्त वो इंदर के कमरे में चुद रही होगी.

इस ख्याल से उसका जिस्म और भड़कने लगा. परेशान होकर वो बिस्तर से उठी और नीचे बड़े कमरे में जाकर टीवी देखने का फ़ैसला किया क्यूंकी नींद आँखो से बहुत दूर थी.

सीढ़ियाँ उतरती रूपाली के कदम अचानक से रुक गये. बड़े कमरे में टीवी ऑन था. इस वक़्त कौन देख रहा हो सकता है? टीवी आखरी बार वो खुद ही देख रही थी और उसको अच्छी तरह से याद था के वो टीवी बंद करके गयी थी. सोचती हुई वो सीढ़ियाँ उतरी और जैसे ही बड़े कमरे में आई उसकी आँखें खुली रह गयी.

कमरे में टीवी ऑन था और उसपर कोई गाना चल रहा था. सामने चंदर बैठा हुआ था. गाने में हेरोयिन भीगी हुई सारी में हीरो को रिझाने की कोशिश कर रही थी जो उसके करीब नही आ रहा था. चंदर सामने ज़मीन पर टांगे मोड बैठा था. उसका पाजामा नीचे था और कुर्ता उसने उपेर करके अपने गले में फसाया हुआ था.आँखें टीवी पर गाड़ी हुई और उसका हाथ लंड को पकड़े उपेर नीचे हो रहा था.

रूपाली उसे एक पल वहीं खड़ी देखती रही. चंदर टीवी में इतना खोया हुआ था के उसे रूपाली के आने का आभास ही नही हुआ. रूपाली कभी टीवी की तरफ देखती तो कभी चंदर के हाथ जो उपेर नीचे हो रहा था. रूपाली की आँखों के आगे फिर वो नज़ारा आ गया जब चंदर ने उसको बस्मेंट में बिंदिया समझकर अंधेरे में चोद दिया था. रूपाली की पहले से गीली चूत से जैसे नदी सी बहने लगी. उसका दिल किया के आयेज बढ़कर चंदर का लंड पकड़ ले पर फिर वो खुद ही रुक गयी और उसका दिल खुद से ही सवाल जवाब करने लगा

सवाल : "एक नौकर के साथ?"

जवाब : तो क्या हुआ. भूषण भी तो नौकर ही था. पायल के साथ भी रूपाली सोई थी और पायल भी तो नौकरानी थी.

सवाल : पर वो एक ठकुराइन है

जवाब : तो क्या हुआ. जब उसका भाई घर की नौकरानी को चोद सकता है तो वो क्यूँ नही. और आज से पहले कौन सा उसने इस बारे में सोचा था.

सवाल : और ठाकुर साहब? उनसे तो वो प्यार करती थी.

जवाब : तो क्या हुआ? उस रात रूपाली के कहने पर जब ठाकुर ने पायल को चोदा था तब उन्होने तो ऐसा कुच्छ नही सोचा

सवाल : किसी को पता लगा तो

जवाब : चंदर उससे डरता है. उसकी मज़ाल नही के किसी से कुच्छ कहे. और फिर वो तो गूंगा है. चाहे भी तो कुच्छ कह नही सकता

रूपाली अपने सवाल जवाब में ही उलझी हुई थी के टीवी पर गाना ख़तम हो गया. चंदर का ध्यान टीवी से हटा तो उसको एहसास हो गया के पिछे कोई खड़ा है. पलटा तो रूपाली को देखकर वो डर से काँप उठा. फ़ौरन खड़ा हो गया. उसको इतना भी होश नही रहा के उसका पाजामा नीचे था. बस उसने जल्दी से अपने दोनो हाथ जोड़ दिए.

रूपाली के दिल ने जैसे फ़ैसला कर लिया. वो आगे बढ़ी. उसे करीब आता देख चंदर और भी डर से काँपने लगा. आँखो से आँसू तक गिर पड़े.

रूपाली चुपचाप उसके करीब आई और कुच्छ भी नही कहा. एक पल चंदे की आँखो में देखा और हाथ से उसका लंड पकड़ लिया.

रूपाली का हाथ लंड पर पड़ते ही चंदर उच्छल पड़ा और 2 कदम पिछे को हो गया. रूपाली भी उसके साथ साथी ही आगे को बढ़ी और फिर से चंदर का लंड पकड़ लिया. डर के मारे चंदर का लंड बिल्कुल बैठा हुआ था. रूपाली ने थोड़ी देर पाजामे के उपेर से लंड को सहलाया और फिर धीरे से हाथ चंदर के कुर्ते के अंदर डाल कर उसका लंड पकड़ लिया.

चंदर ने इस बार फिर से पिछे होने की कोशिश की पर रूपाली ने उसका लंड अपनी मुट्ठी में पकड़ रखा था इसलिए पिछे हो नही पाया. वो परेशान नज़र से रूपाली की तरफ देखने लगा. रूपाली ने एक बार उसकी तरफ देखा और फिर अपने दोनो तरफ नज़र घुमाई. उसने चंदर का लंड छ्चोड़ा और उसे अपना पाजामा उपेर करने को कहा. चंदर ने जल्दी से अपना पाजामा उपेर करके बाँध लिया और फिर से अपने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया.

रूपाली ने उसका एक हाथ पकड़ा और उसे लगभग खींचते हुए अपने कमरे में लाई. दरवाज़ा बंद करने के बाद रूपाली चंदर की तरफ बढ़ी ही थी के रुक कर मुस्कुराइ. उसे बिंदिया के कही वो बात याद आ गयी जब उसने ये बताया था के चंदर कह रहा था रात बेसमेंट में मज़ा नही आया. रूपाली चंदर की तरफ बढ़ी और उसको धक्का देकर बिस्तर पर गिरा दिया.

चंदर बिस्तर पर गिरते ही दोबारा उठने लगा पर रूपाली ने उसको लेट रहने का इशारा किया. चंदर फिर बिस्तर पर लेट गया.

रूपाली अपनी अलमारी की तरफ बढ़ी और उसमें से अपने चार दुपट्टे निकाल लाई. चंदर अब भी उसको हैरान नज़र से देख रहा था. रूपाली उसके करीब आई और बिस्तर पर चढ़कर उसका कुर्ता उतारने लगी.चंदर ने मना करना चाहा तो उसने उसको घूरके देखा और चंदर ने अपने हाथ उपेर उठा दिया.

कुर्ता उतेर जाने के बाद रूपाली ने इशारे से चंदर को अपने दोनो हाथ उपेर करने को कहा जो उसने कर दिए. रूपाली ने मुस्कुराते हुए उसका एक हाथ पकड़ा और अपने दुपट्टे से उसका हाथ बिस्तर के कोने पर बाँध दिया. यही हाल उसने उसके दूसरे हाथ और फिर उसकी टाँगो का भी किया. अब चंदर बिस्तर पर पूरी तरह से बँधा हुआ पड़ा था.

जब रूपाली को यकीन हो गया के चंदर चाहकर भी नही हिल सकता तो वो उठकर सीधी खड़ी हुई. उसने महसूस किया के चंदर कमरे में नज़र घूमकर कुच्छ ढूँदने की कोशिश कर रहा है. जब रूपाली ने उसकी तरफ देखा तो चंदर ने अपने होंठ हिलाए. आवाज़ तो नही आई पर होंठ पढ़कर रूपाली समझ गयी के वो पुच्छ रहा है के बिंदिया कहाँ है. उसे याद आया के बिंदिया ने चंदर को ये कह रखा है के वो रात को रूपाली के साथ सोती है. रूपाली ने अपने कमरे के बीच के दरवाज़े की तरफ इशारा किया और कहा के बिंदिया उस तरफ दूसरे कमरे में है.

इशारा करके वो उठ खड़ी हुई. बिस्तर पर खड़े खड़े ही उसने अपनी नाइटी उपेर खींची और उतारकर फेंक दी. चंदर उसके नंगे जिस्म को घूरता ही रह गया. बड़ी बड़ी छातिया, भरा हुआ जिस्म, सॉफ की हुई चूत, चंदर की नज़र जैसे रूपाली के जिस्म का एक्स्रे कर रही थी. रूपाली एक पल के लिए यूँ ही बिस्तर पर खड़ी रही और चंदर को अपनी तरफ घूर्ने दिया.

थोड़ी देर बाद वो झुकी और अपनी दोनो चूचियाँ लाकर चंदर के मुँह पर दबा दी. चंदर का पूरा चेहरा उसकी चूचियों के बीच जैसे खो सा गया. रूपाली को इस सब में एक अजीब सा मज़ा आ रहा था. आज से पहले वो जितनी बार भी चुदी थी, वो चुद रही होती थी पर आज ऐसा लगा रहा था जैसे के वो खुद चुड़वा रही है. वो कंट्रोल में है. बिस्तर पर कोई और उसके जिस्म से नही खेल रहा बल्कि वो खुद एक मर्दाना जिस्म से खेल रही है.

चूचियो को थोड़ी देर चंदर के चेहरे पर रगड़ने के बाद वो थोड़ा सा उपेर हुई और अपने निपल्स उसके होंठों पर लगाने लगी. चंदर ने निपल अपने मुँह में लेने के लिए जैसे ही मुँह खोला रूपाली ने अपनी चूची पिछे कर ली. फिर वो बार बार ऐसा ही करती. चूची चंदर के मुँह के करीब लाती और जैसे ही वो निपल मुँह में लेने लगता वो पिछे को हो जाती. चंदर जैसे बोखला सा रहा था. वो चाहकर भी कुच्छ नही कर पा रहा था. उसके दोनो हाथ मज़बूती से बँधे हुए थे.

रूपाली थोडा नीचे खिसकी और अपनी चूचियाँ चंदर के सीने पर रगड़ने लगी. एक हाथ से उसने चंदर के पाजामे को खोलना शुरू किया और खींचकर नीचे कर दिया. चंदर का लंड फिर से खड़ा हो चुका था जिसे रूपाली अपने हाथ में पकड़कर उपेर नीचे करने लगी. रूपाली के हाथ के साथ साथ चंदर की कमर भी उपेर नीचे हो रही थी. रूपाली का दूसरा हाथ खुद उसकी चूत पर था.

जब उससे और बर्दाश्त नही हुआ तो वो उठ खड़ी हुई और चंदर के उपेर आ गयी. एक पल के लिए उसने नीचे होकर लंड चूत में लेने की सोची पर फिर इरादा बदलकर आगे को हुई और ठीक चंदर के चेहरे पर आकर खड़ी हो गयी. चंदर के चेहरा ठीक उसकी टाँगो के बीच था और नज़र रूपाली की चूत पर. रूपाली नीचे हुई और अपनी चूत लाकर चंदर के होंठो पर रख दी.

वो फ़ौरन पहचान गयी के चंदर ने आजसे पहले चूत पर मुँह नही लगाया था और शायद उसको पसंद भी नही था क्यूंकी वो अपना चेहरा इधर उधर करने की कोशिश कर रहा था पर रूपाली की भरी हुई गांद में जैसे उसका पूरा चेहरा दफ़न हो गया था. रूपाली को इसमें एक अलग ही मज़ा सा आ रहा था. उसे महसूस हो रहा था के वो आज जो चाहे कर सकती है, जैसे चाहे अपने जिस्म को ठंडा कर सकती है. उसने अपनी गांद आगे पिछे करनी शुरू की और चूत चंदर के मुँह पर रगड़ने लगी. उसकी साँस भारी हो चली थी और मुँह से आहह आहह की आवाज़ आनी शुरू हो गयी थी.

कुच्छ देर यही खेल खेलने के बाद वो फिर से खड़ी हुई और पिछे होकर फिर से नीचे बैठी पर इस बार उसकी चूत चंदर के मुँह के बजाय उसके लंड पर आई जो बहुत आसानी के साथ अंदर घुसता चला गया. लंड के अंदर जाते ही रूपाली के मुँह से एक लंबी आह निकल गयी. उसे लगा जैसे किसी प्यासे को पानी मिल गया हो. वो कुच्छ देर तक यूँ ही बैठी रही, लंड को चूत में महसूस करती रही, और फिर उपेर नीचे हिलना शुरू कर दिया. चंदर का लंड ठाकुर के लंड के मुक़ाबले कुच्छ भी नही था और रूपाली को इस बात की कमी खल रही थी पर इस वक़्त उसका वो हाल था के जो मिले वो अच्छा. वो किसी पागल की तरह चंदर के उपेर कूदने लगी. वो आगे को झुकती, अपने निपल्स चंदर के मुँह पर रगड़ती तो कभी उसकी चूची पर. लंड का चूत में अंदर बाहर होना बराबर जारी रहा.

थोड़ी देर बाद रूपाली के दिमाग़ में एक ख्याल आया. उसके पति और खुद ठाकुर ने कई बार उसकी गांद मारने की कोशिश की थी पर रूपाली ने करने नही दिया था. चंदर का लंड दोनो के मुक़ाबले छ्होटा था क्यूंकी वो खुद अभी बच्चा था. रूपाली ने कोशिश करने की सोची. वो थोड़ा सा उपेर हुई और लंड चूत से निकालकर हाथ में पकड़ लिया.
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#37
Update 33

चंदर ने उसकी तरफ ऐसे देखा जैसे पुच्छ रहा हो के हो गया क्या? रूपाली मुस्कुराइ, उसके लंड को अपनी गांद पर रखा और धीरे धीरे नीचे होने की कोशिश करने लगी.

वो नीचे को होती और लंड जैसे ही गांद में जाता उसके जिस्म में दर्द होना शुरू हो जाता और वो फिर उपेर हो जाती. कई जब कई बार कोशिश करने पर भी वो लंड ले नही सकी तो उसने गुस्से में एक लंबी साँस खींची, अपनी आँखें बंद की, लंड गांद पर रखा और नीचे बैठती चली गयी.

दर्द की एक ल़हेर उसके जिस्म में उपेर से नीचे तक दौड़ गयी पर वो रुकी नही. अगले ही पल उसकी गांद नीचे चंदर की जाँघ से मिल गयी और लंड पूरी तरह गांद में समा गया. रूपाली से दर्द बर्दाश्त नही हो रहा था और आँखो से आँसू बह रहे थे. वो अभी रुक कर साँस ही ले रही थी के नीचे से चंदर ने नीचे से कमर झटक कर गांद पर एक धक्का मारा. रूपाली की चीख निकल गयी.

अगले दिन रूपाली की आँख जल्दी खुल गयी. वो अब भी बिस्तर पर नंगी पड़ी थी और गांद में अब तक दर्द हो रहा था. कल रात उसने उस वक़्त तो गांद मारा ली थी क्यूंकी थोड़ी देर बाद मज़ा आने लगा था पर चंदर के जाने के बाद उसका सोना मुश्किल हो गया था. इतना दर्द तो उसे तब भी नही हुआ था जब वो शादी के बाद पहली बार चुदी थी.

वो बिस्तर से उठके नीचे आई और सबसे पहले देवधर को फोन करने की सोची जिसे उसने आज घर आने को कहा.

"मैं बस अभी निकल ही रहा था" देवधर ने कहा

"आप हवेली ना आएँ" रूपाली ने कहा

"जी?" देवधर की समझ ना आया

"आप सीधे जय के घर पहुँचे. मैं दोपहर 12 बजे आपसे वहीं मिलूंगी" रूपाली ने कहा और फोन रख दिया

तेज सुबह सुबह ही कहीं गायब हो गया था और इंदर अब तक सो रहा था. पायल और बिंदिया रूपाली को किचन में मिले.

बिंदया अब भी अपने पुराने कपड़े में ही खड़ी थी जबकि पायल ने रूपाली की दिए हुए कपड़े पहेन रखे थे.

बिंदिया को देखकर रूपाली के दिल में ख्याल आया के उसे भी कुच्छ कपड़े दे दे पर सवाल था के किसके. सोचा तो उसके दिमाग़ में अपनी सास का नाम आया. सरिता देवी के मरने के बाद से उनके कपड़े सब यूँ ही रखे थे.

रूपाली उस कमरे में पहुँची जिस में सरिता देवी ने अपने आखरी कुच्छ दिन गुज़ारे थे. बीमार होने के बाद उन्हें इस कमरे में शिफ्ट कर दिया गया था और उनका सारा समान भी यहीं था. रूपाली कमरे में आई और कपड़े उठा उठाकर देखने लगी

कुच्छ कपड़े पसंद करने के बाद वो कमरे से निकल ही रही थी के उसे वो डिब्बा नज़र आया जिसमें सरिता देवी अपनी दवाई रखा करती थी. कुच्छ गोलियाँ डिब्बे में अब भी थी. अब उनका कुच्छ काम नही था ये सोचकर रूपाली ने डिब्बा उठाया और खोला.

उसमें नीचे एक पेपर मॉड्कर रखा हुआ था और उसपर कुच्छ गोलियाँ रखी हुई थी. रूपाली ने डिब्बा उलटकर दवाइयाँ बिस्तर पर गिराई. गोलियों के साथ ही अंदर रखा वो काग़ज़ भी निकालकर बिस्तर पर गिर पड़ा और तब रूपाली का ध्यान पड़ा के वो असल में एक काग़ज़ नही बल्कि एक तस्वीर थी.

तस्वीर ब्लॅक आंड वाइट थी. उसमें कामिनी एक लड़के के साथ खड़ी हुई थी. लड़का कौन था ये रूपाली पहचान नही सकी पर सबसे ज़्यादा हैरत उसे कामिनी के कपड़ो पर हुई. कामिनी कभी इस तरह के कपड़े नही पेहेन्ति थी और तब रूपाली ने ध्यान से देखा तो उसको एहसास हुआ को वो लड़की कामिनी नही बल्कि खुद सरिता देवी थी. ये उनकी जवानी के दीनो की तस्वीर थी. कामिनी शकल सूरत से बिल्कुल अपनी माँ पर गयी थी इसलिए कोई भी इस तस्वीर को देखकर ये धोखा खा सकता था के तस्वीर में कामिनी खड़ी है.

रूपाली का ध्यान सरिता देवी के साथ खड़े लड़के पर गया. जहाँ तक उसको पता था सरिता देवी का कोई भाई नही था और फोटो में खड़ा लड़का ठाकुर साहब तो बिल्कुल नही थे. लड़का शकल सूरत से खूबसूरत था पर सरिता देवी से हाइट में छ्होटा था. रूपाली ने तस्वीर उठाकर अपने पास रख ली और कमरे से बाहर निकल आई.

बाहर आकर उसने इनस्पेक्टर ख़ान को फोन किया और उसको भी हवेली आने के बजाय जय के घर पर मिलने की हिदायत दी.

इंदर अब तक सो रहा था. रूपाली ने उसे जगाना चाहा पर फिर अपनी सोच बदलकर तैय्यार हुई और खुद ही अकेली कार लेकर निकल पड़ी.

थोड़ी देर बाद वो हॉस्पिटल पहुँची.

ठाकुर अब भी बेहोश थे. भूषण वहीं बेड के पास बैठा हुआ था. रूपाली को देखकर वो खड़ा हुआ.

रूपाली वो तस्वीर अपने साथ लाई थी जो उसे सरिता देवी के कमरे में मिली थी. वो जानती थी के अगर कोई उसको तस्वीर में खड़े लड़के के बारे में बता सकता था तो वो एक भूषण ही था.

रूपाली ने तस्वीर निकालकर भूषण को दिखाई.

"कौन है ये आदमी काका?" उसने भूषण से पुचछा

तस्वीर देखते ही भूषण की आँखें फेल गयी.

"आपको ये कहाँ मिली?" भूषण ने पुचछा

"माँ के कमरे से" रूपाली अपनी सास को माँ कहकर ही बुलाती थी "कौन है ये?"

"था एक बदनसीब" भूषण ने कहा "जिसकी मौत इस हवेली में लिखी थी और उसको यहाँ खींच लाई थी"

"मतलब?" रूपाली ने पुचछा

"ये ठकुराइन के बचपन का दोस्त था. ये लोग साथ में पले बढ़े थे. सरिता देवी इसको अपने भाई की तरह मनती थी पर इसके दिल में शायद कुच्छ और ही था. जब उनकी शादी ठाकुर साहब के साथ हुई तो इसने बड़ा बवाल किया था सुना है पर शादी रोक नही पाया क्यूंकी सरिता देवी खुद ऐसा नही चाहती थी."

"फिर?" रूपाली ने पुचछा

"फिर शादी हो गयी और सब इस बात को भूल गये. ठाकुर साहब को तो इस बात की खबर भी उस दिन लगी जब ये हवेली में आ पहुँचा"

"हवेली?"रूपाली बोली

"हां" भूषण ने कहा "शादी के कोई 1 महीने बाद की बात है. एक दिन ये हवेली के दरवाज़े पर आ खड़ा हुआ और इसकी बदक़िस्मती के सबसे पहले ठाकुर साहब से ही टकरा गया. उनसे गुहार करने लगा के वो ठकुराइन से प्यार करता है और उनके बिना जी नही सकता. और जैसे इसके दिल की मुराद पूरी हो गयी"

रूपाली खामोश खड़ी सुन रही थी

"ठाकुर साहब ने इसे इतना मारा के इसने वहीं दम तोड़ दिया. लोग प्यार में जान देते हैं मैने सुना था पर उस दिन देखा पहली बार था" भूषण ने कहा

रूपाली को अपने कानो पर यकीन नही हो रहा था. उसे समझ नही आ रहा था के क्या कहे और क्या सोचे. उसने अपनी घड़ी पर नज़र डाली. दोपहर होने को थी. उसने फ़ैसला किया के तस्वीर के बारे में बाद में सोचेगी और वहाँ से निकालकर जय के घर की तरफ बढ़ी.

12 बजने में थोड़ी ही देर थी जब रूपाली ने जय के घर के बाहर कार रोकी. देवधर और इनस्पेक्टर ख़ान बाहर ही खड़े उसका इंतेज़ार कर रहे थे.

"यहाँ क्यूँ बुलाया?" ख़ान ने रूपाली को देखते हुए पुचछा

"सोचा के जो मेरा है वो वापिस ले लिया जाए" रूपाली ने कहा तो देवधर और ख़ान दोनो उसकी तरफ हैरानी से देखने लगे

"आप ही ने कहा था ना के मेरे पति की मौत होते ही सब मेरे नाम हो गया था.पवर ऑफ अटर्नी बेकार थी तो मतलब के जय ने जिस हक से ये घर खरीदा वो भी ख़तम था. तो मतलब के ये घर मेरा हुआ?" रूपाली ने कहा तो ख़ान और देवधर दोनो मुस्कुरा दिए और उसके साथ जय के घर के गेट की तरफ बढ़े.

वॉचमन ने बताया के जय घर पर ही था और अंदर जाकर जय को उनके आने की खबर करके आया. कुच्छ देर बाद वो तीनो जय के सामने बैठे थे.

जाई तकरीबन पुरुषोत्तम की ही उमर का था. शकल पर वही ठाकुरों वाली अकड़. बैठा भी ऐसे जैसे कोई राजा अपने महेल में बैठा हो.

रूपाली को हैरत थी के वो कभी जाई से मिली नही थी. वो उसकी शादी से पहले ही अलग घर बनाकर रहने लगा था पर कभी किसी ने उसका ज़िक्र रूपाली के सामने नही किया था और ना ही रूपाली ने उसको अपनी शादी में देखा था जबकि वो उसके पति का सबसे करीबी था. पर इसका दोष उसने खुद को ही दिया. उन दीनो तो उसे अपनी पति तक की खबर नई होती थी, जाई की क्या होती.

"कहिए" उसने रूपाली को देखते हुए पुचछा

"गेट आउट" रूपाली ने उसे देखते हुए कहा

"क्या?" जाई ने ऐसे पुचछा जैसे अँग्रेज़ी समझ ही ना आती हो

"मेरे घर से अभी इसी वक़्त बाहर निकल जाओ" रूपाली ने कहा

"आपके घर से?" जाई ने हस्ते हुए पुचछा

रूपाली ने देवधर की तरफ देखा. देवधर आगे बढ़ा और वो सारी बातें जाई को बताने लगा जो उसने पहले रूपाली को बताया था. धीरे धीरे जाई की समझ आया के रूपाली किस हक से उसके घर को अपना कह रही थी और वो परेशान अपने सामने रखे पेपर्स को देखने लगा.

"और अगर मैं जाने से इनकार कर दूँ तो?" जाई ने पेपर्स एक तरफ करते हुए पुचछा

रूपाली ने खामोशी से इनस्पेक्टर ख़ान की तरफ देखा. वो जानती थी के जाई ऐसा बोल सकता है इसलिए ख़ान को साथ लाई थी

"मैं ये मामला अदालत में ले जाऊँगा. ऐसे कैसे घर आपका हो गया? मैं अपने वकील को बुलाता हूँ" जाई ने फोन की तरफ हाथ बढ़ाया

"बाहर एक एसटीडी बूथ है. वहाँ से करना. फिलहाल घर से बाहर निकल" ख़ान बीचे में बोल पड़ा

"तमीज़ से बात करो" जाई ख़ान पर चिल्लाते हुए बोला

"ये देखा है?" ख़ान ने अपना हाथ आगे किए "एक कान के नीचे पड़ा ना तो तमीज़ और कमीज़ में फरक समझ नही आएगा तुझे. चल निकल"

जाई चुप हो गया. वो उठकर घर के अंदर की तरफ जाने लगा.

"वहाँ कहाँ जा रहा है?" ख़ान फिर बोला "दरवाज़ा उस तरफ है"

"अपना कुच्छ समान लेने जा रहा हूँ" जाई रुकते हुए बोला

"वो समान भी मेरे पैसो से आया था तो वो भी मेरा हुआ. अब इससे पहले के मैं ये कपड़े जो तुमने पहेन रखे हैं ये भी उतरवा लूँ, निकल जाओ" रूपाली खड़ी होते हुए बोली

"फिलहाल तो जा रहा हूँ पर इतना आसान नही होगा आपके लिए मुझे हराना" जाई ने कहा तो रूपाली मुस्कुराने लगी

"आपको क्या लगता है के ये सब उस नीच ठाकुर का है जो अपने ही भाई को दौलत के लिए मार डाले? जो साले अपने घर की नौकरानी को भी नही छ्चोड़ते?" जाई ने रूपाली के करीब आते हुए कहा.

उसकी इस हरकत पर ख़ान उसकी तरफ बढ़ा पर रूपाली ने उसको हाथ के इशारे से रोक दिया

"क्या मतलब?" उसने जाई से पुचछा "क्या बकवास कर रहे हो?"

"सच कह रहा हूँ" जाई ने कहा "आपको शायद नही पता पर मैने देखा है. वो भूषण की बीवी, उसे ठाकुर के खानदान ने अपनी रखैल बना रखा था. ज़बरदस्ती सुबह शाम रगड़ते थे उसे. ठाकुर, तेज, कुलदीप और खुद आपके पति पुरुषोत्तम सिंग जी"

"भूषण की बीवी?" रूपाली हैरान हुई

"जी हां" तेज बोला "जब उस बेचारी ने जाकर सब कुच्छ भूषण या आपकी सास को बता देने की धमकी दी तो गायब हो गयी और बात ये फेला दी गयी के अपने किसी आशिक़ के साथ भाग गयी"

रूपाली के दिमाग़ की बत्तियाँ जैसे एक एक करके जलने लगी. हवेली में मिली लाश जो कामिनी की नही थी, कुलदीप के कमरे में मिला वो ब्रा. खुद ख़ान भी चुप खड़ा सुन रहा था.

"तुम्हें ये कैसे पता?" रूपाली ने पुचछा

"हवेली में बचपन गुज़ारा है मैने. देखा है सब अपनी आँखो से. जैसे ही वो हवेली में काम करने आई तो सबसे पहले ठाकुर की नज़र उस पर पड़ी तो पहले उन्होने काम किया. फिर उनकी देखा देखी उनके सबसे बड़े बेटे पुरुषोत्तम सिंग जिन्हें दुनिया भगवान राम का अवतार समझती थी उन्होने अपना सिक्का चला दिया बेचारी पर. जब बड़े भाई ने मुँह मार लिया तो बाकी के दोनो कहाँ पिछे रहने वाले थे. मौका मिलते ही तेज और कुलदीप ने फ़ायदा उठा लिया"

रूपाली की आँखों के आगे अंधेरा सा च्चाने लगा.

"बकवास कर रहे हो तुम" उसने जाई से कहा

"सच बोल रहा हूँ मैं. अपनी हवस संभाली नही जाती इन लोगों से, फिर चाहे वो औरत की हो या दौलत की और इसी के चलते पुरुषोत्तम भी मरा. आपसी लड़ाई थी वो इन लोगों की दौलत के पिछे. एक भाई ने दूसरे को मारा है" जाई ने कहा

पर रूपाली का दिमाग़ उस वक़्त दूसरी ही तरफ चल रहा था. उसे इंदर की कही बातें याद आ रही थी जो कामिनी ने उसको कही थी.

"बस जिस्म की आग बुझनी चाहिए. फिर नज़र नही आता के कौन अपने घर का है और कौन ........."

उसे अपने पति का वो रूप याद आया जो वो रोज़ रात को बिस्तर पर देखा करती थी. किस तरह से वो उसको नंगी करते ही इंसान से कुच्छ और ही बन जाता था. उसे याद आया के किस आसानी से बिंदिया तेज के बिस्तर पर पहुँच गयी थी और तेज ने मौका मिलते ही उसको चोद लिया था. उसको याद आया के किस आसानी से उस रात ठाकुर ने उसके सामने ही पायल को चोद लिया था. ज़रा भी नही सोचा था दोनो ने के वो एक मामूली नौकरानी है और वो वहाँ के ठाकुर. पर क्या कोई इतना गिर सकता था के अपनी ही बहेन के साथ? सोचकर रूपाली का दिमाग़ फटने लगा. तो ये वजह थी पायल के गायब होने की. अपने भाई को गोली मारकर छुपति फिर रही थी.
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#38
Update 34

थोड़ी देर बाद ख़ान और रूपाली वापिस हवेली में दाखिल हुए. तेज के जाने के बाद रूपाली ने घर पर ताला लगा दिया था. देवधर वापिस शहेर चला गया था और ख़ान उसके साथ वापिस हवेली तक आया था.
रूपाली के दिमाग़ में लाखों बातें एक साथ चल रही थी. वो समझ नही पाई के कैसे उसको ये सब बातें पहले समझ नही आई. कामिनी का यूँ अपने ही घर में चुप चुप रहना. अगर उसके अपने भाई ही उसका फ़ायदा उठाएँ बेचारी अपने ही घर में भीगी बिल्ली की तरह तो रहेगी ही. वो हवेली में मिली लाश. रूपाली को उसी वक़्त समझ जाना चाहिए था के ये लाश किसकी है जब बिंदिया ने उसको भूषण की बीवी के बारे में बताया था. कुलदीप के कमरे में मिली ब्रा, बेसमेंट में रखे बॉक्स में वो कपड़े, सब उस बेचारी के ही थी जिसको मारकर यहाँ दफ़ना गया था. उसको हैरानी थी के उसको तभी शक क्यूँ नही हुआ जब ठाकुर ने ये कहा के उन्हें नही पता के वो लाश किसकी थी. ऐसा कैसे हो सकता है के घर के मलिक को ही ना पता हो के लाश कहाँ से आई. उस वक़्त हवेली के बाहर गार्ड्स होते थे, हवेली के कॉंपाउंड में रात को कुत्ते छ्चोड़ दिए जाते थे तो ये ना मुमकिन था के कोई बाहर का आकर ये काम कर जाता. वो खुद अपनी वासना में इतनी खोई हुई थी के उसको एहसास ही नही हुआ के कितनी आसानी से उसने पायल और बिंदिया को ठाकुर और तेज के बिस्तर पर पहुँचा दिया था.
हवेली के अंदर पहुँच कर उसने बिंदिया और पायल को आवाज़ लगाई पर दोनो कहीं दिखाई नही दे रही थी.
"ये दोनो कहाँ गयी" बैठते हुए रूपाली ने कहा. ख़ान उसके सामने रखी एक कुर्सी पर बैठ गया
"क्या लगता है कौन है आपके पति के खून के पिछे ? तेज?" ख़ान ने कहा तो रूपाली ने इनकार में सर हिलाया
"कामिनी." रूपाली ने कहा तो ख़ान ने हैरानी से उसको तरफ देखा
"कल आपके जाने के बाद इंदर से बात हुई थी मेरी. काफ़ी परेशन थी वो मेरे पति के मरने से पहले और गन उसने इंदर से ली थी" रूपाली ने कहा
"पर मुझे तो कहा गया था के ....." ख़ान ने कल की इंदर की बताई बात को याद करते हुए कहा
"झूठ बोल रहा था. गन उसने कामिनी को दी थी. बाद में बताया मुझे" रूपाली ने आँखें बंद करते हुए कहा
"सोचा नही था के ये सब ऐसे ख़तम होगा. मैं तो तेज पर शक कर रहा था और एक वक़्त पर तो मुझे आप पर भी शक हुआ था. पर कामिनी पर कभी नही" ख़ान ने कहा
"एक बात समझ नही आई" रूपाली ने आँखें खोलते हुए कहा "आपका मेरे पति से क्या रिश्ता था? किस एहसान की बात कर रहे थे?"
"बचपन में इसी गाओं में रहा करता था मैं. मेरे अब्बू यहीं के थे" ख़ान मुस्कुराते हुए बोला "ठाकुर साहब के खेतों में काम करते थे. एक बार ठाकुर साहब खेतों में शिकार कर रहे थे. वो जिस परिंदे पर निशाना लगा रहे थे मुझे उसपर तरस आ गया और मैने शोर मचाकर उसको उड़ा दिया. बस फिर क्या था. ठाकुर को गुस्सा आया और उन्होने बंदूक मेरी तरफ घुमा दी. उस वक़्त आपके पति वहाँ थे. उन्होने बचा लिया वरना उस दिन हो गया था मेरा काम"
रूपाली भी जवाब में मुस्कुराइ
"उसके बाद हम लोगों ने गाओं छ्चोड़ दिया. मैं शहेर में पाला बढ़ा, पोलीस जोइन की और उस बात को भूल गया. जब मेरा यहाँ ट्रान्स्फर हुआ तो मैने सोचा के आपके पति से मिलुगा पर यहाँ आके पता चला के उन्हें मरे तो 10 साल हो चुके हैं" ख़ान ने कहा
"नही शायद उन्हें मरे एक अरसा हो गया था. आज एक नया ही रूप देखा मैने ठाकुर पुरुषोत्तम सिंग का जो मेरे पति का तो बिल्कुल नही था. जो आदमी इस हद तक गिर जाए उसको अपना पति तो नही कह सकती मैं" रूपाली ने कहा "सच कहूँ तो आज इस हवेली के हर आदमी का एक नया चेहरा देखा. मेरी सास का भी"
"आपकी सास का? वो तो मर चुकी हैं ना?" ख़ान ने पुचछा
रूपाली ने अपने पर्स से वो तस्वीर निकली और ख़ान को थमा दी
"सुना है उनका भी कोई चाहने वाला था. यही जो इस तस्वीर में है. ये भी ठाकुर साहब के गुस्से की बलि चढ़ गया था." रूपाली ने फिर आँखें बंद कर ली
"पर चलिए आपको आपके सवालों के जवाब तो मिले" ख़ान अब भी तस्वीर को देख रहा था
"जवाब तो मिल गये पर अब समझ ये नही आ रहा के इन जवाबों के साथ आगे की ज़िंदगी कैसे गुज़रेगी" रूपाली ने फिर आँखें खोलकर ख़ान की तरफ देखा. वो अब भी तस्वीर को घूर रहा था.
"ऐसे क्या देख रहे हैं?" रूपाली ने पुचछा
"ये कामिनी नही है?" ख़ान ने कहा तो रूपाली हस्ने लगी
"मैने भी यही सोचा था पर ये मेरी सास की जवानी की तस्वीर है. कामिनी बिल्कुल उन्ही पर गयी थी" रूपाली बोली
"पता नही क्यूँ ऐसा लग रहा है के मैने इस आदमी कोई भी कहीं देखा है" ख़ान तस्वीर में खड़े आदमी की तरफ इशारा करता हुआ बोला
"इसको मरे तो एक अरसा हो चुका है" रूपाली बोली " और सच कहूँ तो कुच्छ सवाल अब भी ऐसे हैं जिनका जवाब मुझे समझ नही आ रहा"
"जैसे के?" ख़ान ने पुचछा
"जैसे के रात को हवेली में आने वाला आदमी कौन था, जैसे की कामिनी के साथ ट्यूबिवेल पर उस दिन दूसरा आदमी कौन था, जैसे की जो चाबियाँ मुझे हवेली में मिली उनकी असली किसके पास है और एक चाभी सरिता देवी के पास क्यूँ थी जबकि वो कभी खेतों की तरफ जाती ही नही थी" रूपाली ने कहा
ख़ान ने हैरत से उसकी तरफ देखा तो रूपाली को याद आया के वो इस बारे में कुच्छ नही जानता था.
"बताती हूँ" उसने कहना शुरू किया ही था के ख़ान ने उसको हाथ के इशारे से रोक दिया. उसने तस्वीर सामने टेबल पर रखी, जेब से पेन निकाला, तस्वीर में खड़े आदमी के चेहरे पर थोड़ी सी दाढ़ी बनाई, हल्के से नाक ने नीचे बॉल बनाए, सर के बॉल थोड़े लंबे किए और चेहरे पर झुर्रियाँ डाली और तस्वीर रूपाली की तरफ घुमाई.
"पहचानती हैं इसे?" ख़ान ने पुचछा
रूपाली ने तस्वीर की तरफ देखा तो उसके पैरों तले ज़मीन जैसे हिलने लगी. तस्वीर में सरिता देवी के साथ भूषण खड़ा था.
"अब जहाँ तक मेरा ख्याल है सिर्फ़ एक सवाल बाकी रह गया है. कामिनी कहाँ है?" ख़ान ने कहा
"मर चुकी है. हवेली के पिछे जहाँ मेरी बीवी की लाश मिली थी वहीं पास ही उसकी भी लाश दफ़न है" पीछे से आवाज़ आई तो ख़ान और रूपाली दोनो पलते. सामने भूषण खड़ा था.
पर ये भूषण वो नही था जिसे रूपाली ने हमेशा देखा था. सामने एक बुद्धा आदमी तो खड़ा था पर अब उसकी कमर झुकी हुई नही थी, अब वो शकल से बीमार नही लग रहा था और ना ही कमज़ोर. सामने जो भूषण खड़ा था वो सीधा खड़ा था और उसके हाथ में एक गन थी.
"आप यहाँ? ठाकुर साहब के साथ कौन है?" रूपाली ने पुचछा
"कोई नही क्यूंकी अब उसकी ज़रूरत नही. ठाकुर साहब नही रहे. गुज़र गये" भूषण ने कहा
उसके ये कहते ही ख़ान फ़ौरन हरकत में आया. उसका हाथ उसकी गन की तरफ गया ही था के भूषण के हाथ में थमी गन के मुँह ख़ान की तरफ मुड़ा, एक गोली चली और अगले पल रूपाली के कदमों के पास ख़ान की लाश पड़ी थी.
रूपाली चीखने लगी और भूषण खड़ा हुआ उसको देखने लगा. रूपाली को उस वक़्त जो भी नाम याद आया उसने चिल्ला दिया. बिंदिया, पायल, चंदर, तेज, इंदर पर कोई नही आया.
उसने घबराकर चारों तरफ देखा और जब कोई नही दिखा तो उसने फिर भूषण पर नज़र डाली.
"बिंदिया और पायल" भूषण ने बोला "वहाँ किचन में पड़ी हैं. तेज की लाश बाहर कॉंपाउंड में पड़ी है, मेरे कमरे के पास. इंदर खून से सने अपने बिस्तर पर पड़ा है. वो तो बेचारा सोता ही रह गया. सोते सोते दिमाग़ में एक गोली घुसी और नींद हमेशा की नींद में बदल गयी"
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#39
Update 35

भूषण रूपाली की तरफ बढ़ा तो रूपाली पिछे होकर फिर चिल्ल्लाने लगी.
"चिल्लओ" भूषण ने आराम से कहा "ये हवेली इतनी मनहूस है के किसी ने सुन भी लिया तो इस तरफ आएगा नही"
थोड़ी देर चिल्लाने के बाद रूपाली चुप हो गयी
"क्यूँ?" उसने भूषण से पुचछा
"क्यूँ?" भूषण बोला "क्यूंकी तुम अपने आपको झाँसी की रानी समझने लग गयी थी अचानक. मैं ये सब ऐसे नही चाहता था. मैं तो ठाकुर के खानदान को एक एक करके, सड़ सड़के, रिस रिसके मरते हुए देखना चाहता था. बची हुई इज़्ज़त को ख़तम होने के बाद मारना चाहता था. पर तुमने सारा खेल बिगाड़ दिया. क्या ज़रूरत थी वो तस्वीर दुनिया को दिखाते हुए फिरने की?"
"पर क्यूँ?" रूपाली ने सवाल फिर दोहराया
"क्यूंकी बर्बाद किया था मुझे ठाकुर ने. सारी ज़िंदगी मैने एक नौकर बनके गुज़ार दी. प्यार करता था मैं सरिता से और वो मुझसे पर क्यूंकी मैं ग़रीब उनके घर के नौकर का बेटा था इसलिए उसकी शादी मुझसे हो नही सकती थी. हम दोनो भाग जाने के चक्कर में थे के जाने कहाँ से ये शौर्या सिंग बीच में आ गया. ना सरिता कुच्छ कर सकी और ना मैं" भूषण गुस्से से चिल्लाते हुए बोला
"तो वो कहानी जो हॉस्पिटल में सुनाई थी?" रूपाली ने कहा
"झूठ थी. शादी के बाद मैने हार नही मानी. मैं सरिता के बिना ज़िंदा नही रह सकता था इसलिए यहाँ चला आया. पड़ा रहा एक नौकर बनके क्यूंकी यहाँ मुझे वो रोज़ नज़र आ जाती थी" भूषण ने कहा
"तो फिर ये सब क्यूँ?" रूपाली बोली
"2 वजह थी. पहली तो ये के इन्होने मेरी बीवी को मार दिया. सरिता के कहने पर मैने उस बेचारी से शादी की थी ताकि किसी को शक ना हो पर यहाँ लाकर तो मैने जैसे उसे मौत के मुँह में धकेल दिया. इन सबने उसे अपनी हवस का शिकार बनाया और फिर मारके पिछे ही दफ़ना दिया. जानती हो उसकी गर्दन पर तलवार से वार किसने किया था? तुम्हारे सबसे छ्होटे देवर कुलदीप ने जो उस वक़्त मुश्किल से 18-19 साल का था. और दूसरी वजह थी कामिनी. उसे पता चल गया था के वो मेरी बेटी है और सबको बता देना चाहती थी"
"आपकी बेटी?" रूपाली ने कहा
"हां मेरी बेटी थी वो. पर एक दिन उसने मुझे और सरिता को खेतों में नंगी हालत में देख लिया था और सरिता को उसको मजबूर होते हुए सब बताना पड़ा." भूषण की ये बात सुनते ही रूपाली को जैसे अपने बाकी सवालों के जवाब भी मिल गये.
टुबेवेल्ल पर बिंदिया के पति ने कामिनी और किसी आदमी को नही बल्कि सरिता देवी और भूषण को देखा था. क्यूंकी कामिनी की शकल सरिता देवी से मिलती थी इसलिए दूर से उसको लगा के कामिनी है क्यूंकी इस हालत में होने की उम्मीद एक जवान औरत से ही की जा सकती है, ना के एक जवान बेटी की माँ से. और इसलिए ट्यूबिवेल के कमरे की चाभी उसको सरिता देवी के पास से मिली थी. और यही वजह थी के कामिनी की शकल उसके भाइयों से नही मिलती थी. क्यूंकी वो ठाकुर की औलाद थी ही नही. जहाँ उसके चारों भाई बेहद खूबसूरत थे वहीं वो एक मामूली सी सूरत वाली थी क्यूंकी वो ठाकुर पर नही बल्कि अपनी माँ और घर के नौकर पर गयी थी.
"वो जो आदमी हवेली में रात को आता था" रूपाली ने पुचछा
"झूठ था. मैने तो तुम्हें पहले दिन ही कहा था के तुम्हारे पति की मौत का राज़ इसी हवेली में है. मैं था इस हवेली में पर तुम देख नही सकी. शुरू से मैं तुम्हें वो दिखाता रहा जो तुम देखना चाहती थी."
भूषण बोला

"और कुलदीप?" रूपाली बोली
"उस साले को तो मैने कामिनी से पहले ही मार दिया था. उसकी लाश भी वहीं आस पास है जहाँ मेरी बीवी की लाश मिली थी." भूषण बोला
"कामिनी को आपने मारा था?" रूपाली को यकीन नही हुआ "अपनी बेटी को"
"तो क्या करता. वो खुद अपनी माँ को मारना चाहती थी जिसके लिए वो गन तुम्हारे भाई से लाई थी. ये गन" भूषण गन रूपाली को दिखता हुआ बोला
रूपाली को धीरे धीरे बाकी बात भी समझ आने लगी. रूपाली अपनी माँ के बारे में बात कर रही थी ना की अपने बारे में जब उसने इंदर को ये कहा था के सबको बस जिस्म की भूख मिटानी है क्यूंकी उसने अपनी माँ को घर के नौकर के साथ नंगी हालत में देखा था. तब उसकी माँ ये भूल गयी थी के कौन अपने घर का उसका अपना पति है और कौन एक मामूली नौकर. इसलिए उसने इंदर को कहा था के वो उसके काबिल नही क्यूंकी इंदर एक ठाकुर था और वो एक नौकर की बेटी.
"ठाकुर साहब?" रूपाली ने पुचछा
"अभी अपने हाथों से गला दबाके मारकर आया हूँ. यहाँ इरादा तो तेज को ख़तम करने का था पर पहले कमरे में इंदर मिल गया. तो उसी को निपटा दिया. गोली की आवाज़ से बिंदिया और पायल आई तो उन दोनो को भी मारना पड़ा. अभी मैं तेज को ढूँढ ही रहा था के बाहर से उसकी कार आती हुई दिखाई दी. साले की मौत सही वक़्त पर ले आई थी उसको यहाँ. मैं वही घर का बुद्धा नौकर बनके उसके पास गया, कमर झुकाए हुए और जैसे ही वो करीब आया, एक गोली उसके जिस्म में. खेल ख़तम"
"कुलदीप और कामिनी के बारे में किसी को पता कैसे नही था?" रूपाली जैसे आखरी कुच्छ सवाल पुच्छ रही थी
"क्यूंकी उनको मैने रास्ते में मारा. क्या है के उन दोनो के साथ मैं उन्हें एरपोर्ट तक छ्चोड़ने गया था. गाड़ी का ड्राइवर बनके. मेरा काम था उनको छ्चोड़ना और गाड़ी वापिस लाना. दोनो को रास्ते में ख़तम किया और डिकी में लाश डालकर वापिस हवेली ले आया. रात को दफ़ना दिया" भूषण ने जवाब दिया. वो भी जैसे चाहता था के मारने से पहले रूपाली को सब बता दे.
"पर एक सवाल रहता है जिसने ये सारा बखेड़ा शुरू किया. मेरे पति को क्यूँ मारा?" रूपाली ने कहा
"उस दिन कामिनी सरिता को मारने के इरादे से निकली थी. वो सोच रही थी के जाकर सरिता को मंदिर में ही मारकर आ जाएगी तब जबकि पुरुषोत्तम उसको छ्चोड़के चला जाएगा. मुझे उसके इरादे नेक नही लग रहे थे इसलिए उसपर नज़र रखा हुआ था. वो हवेली से कुच्छ दूर ही गयी थी के मैने उसका पिच्छा करके उसको रास्ते में रोक लिया. उससे बात करते हुए मैने ये गन उसके हाथ से छीन ली और अभी हम बात कर ही रहे थे के पुरुषोत्तम जाने क्यूँ हवेली वापिस आ गया. कामिनी मुझपर चिल्ला रही थी और मेरे हाथ में रेवोल्वेर थी. जाने उसने क्या सोचा पर वो चिल्लाता हुआ मेरी तरफ बढ़ा. मैने गोली मार दी. ये मेरी किस्मत ही थी के उस वक़्त कोई भी नौकर वहाँ से नही गुज़रा वरना घर के सारे नौकर उसी रास्ते से उसी वक़्त घर वापिस जाते थे. पुरुषोत्तम को मारने के बाद मैने कामिनी को डराकर चुप तो कर दिया पर मुझे पता था के वो मुँह खोल देगी इसलिए उसको भी मारना पड़ा."
"अपनी ही बेटी को?" रूपाली ने कहा "प्यार नही था उससे?"
"मुझे सिर्फ़ सरिता से प्यार था" भूषण बोला
"क्या हो रहा है यहाँ?" दरवाज़े की तरफ से आवाज़ आई तो भूषण और रूपाली दोनो पलटे. दरवाज़े पर जय खड़ा था. इससे पहले के वो कुच्छ समझ पाता भूषण का हाथ फिर सीधा हुआ और ऱेवोल्वेर से गोली चली और जय के सीने पर लगी.
जय लड़खदाया और अगले ही पल भूषण की तरफ बढ़ा. भूषण ने फिर फाइयर करने की कोशिश की पर वो पूरी 6 गोलियाँ चला चुका था. गन से फाइयर नही हुआ और जय उस तक पहुँच गया. उसने भूषण को गले से पकड़ा और पिछे की तरफ धकेलना शुरू कर दिया. पीछे रखे सोफे पर भूषण का पेर फँसा और दोनो नीचे टेबल पर गिरे और फिर ज़मीन पर.
रूपाली खड़ी दोनो की तरफ देख रही थी. भूषण नीचे गिरा हुआ था और जय उसके उपेर पड़ा था. भूषण के सर से खून नदी की तरह बह रहा था जो टेबल पर गिरने की वजह से लगी चोट से था. इसके बाद ना भूषण हिला और ना जय. रूपाली ने झुक कर जय को हिलाने की कोशिश की पर भूषण की चलाई गोली ने देर से सही मगर अपना असर ज़रूर दिखाया था. वो मर चुका था.
रूपाली उठकर खड़ी हो गयी. उसे आस पास 7 लाशें पड़ी थी और इनमें से एक लाश उस आदमी की भी थी जिसने उसके पति को मारा था. वो वहीं नीचे ज़मीन पर बैठ गयी. समझ नही आ रहा था के क्या करे. रात का अंधेरा धीरे धीरे फेलने लगा था.

वो हवेली आज भी वैसे ही सुनसान थी जैसे की वो पिच्छले 10 साल से थी


End
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#40
Awesome Bro. This is really one of the best erotic stories ever written and special thanks to you for bringing this out from the ruins of Xossip.
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