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Adultery HAWELI By The Vampire
#1
Rainbow 
HAWELI By "The Vampire"


 This not my story .....this one of my favorite story ....so all credit goes to original writer 

  and HAWELI By "The Vampire" is one the best story of all time
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#2
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HAWELI  By "The Vampire"


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#3
"HAWELI "  (हिंदी में)

INDEX

1.Update 1

2.Update 2

3.Update 3

4.Update 4

5.Update 5

6.Update 6

7.Update 7

8.Update 8

9.Update 9

10.Update 10

11.Update 11

12.Update 12

13.Update 13

14.Update 14

15.Update 15

16.Update 16

17.Update 17

18.Update 18

19.Update 19

20.Update 20

21.Update 21

22.Update 22

23.Update 23

24.Update 24

25.Update 25

26.Update 26

27.Update 27

28.Update 28

29.Update 29

30.Update 30

31.Update 31

32.Update 32

33.Update 33

34.Update 34

35.Update 35


END
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#4
"HAWELI "  (In English font 

Index  

1.Update 1

2.Update 2

3.Update 3

4.Update 4

5.Update 5

6.Update 6

7.Update 7

8.Update 8

9.Update 9

10.Update 10

11.Update 11

12.Update 12

13.Update 13

14.Update 14

15.Update 15

16.Update 16

17.Update 17

18.Update 18

19.Update 19

20.Update 20

END
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#5
Update 1

वो हवेली आज भी वैसे ही सुनसान थी जैसे की वो पिच्छले 10 साल से थी. आसमान में चाँद पुर नूर पे था और हर तरफ चाँदनी फैली हुई थी. उसके बावजूद हवेली के गलियारे अंधेरे में डूबे हुए थे. दूर से कोई देखे तो इस बात का अंदाज़ा तक नही हो सकता था के इसमें कोई ज़िंदा इंसान भी रहता है. आँगन में सूखी घास, बबूल की झाड़ियाँ, खुला हुआ बड़ा दरवाज़ा, डाल पे बोलता हुआ उल्लू, हर तरफ मनहूसियत पुर जोश पर ही.

पूरी हवेली में 25 कमरे में जिसमें से 23 अंधेरे में डूबे हुए. सिर्फ़ 2 कमरो में हल्की सी रोशनी थी. एक कमरा था ठाकुर शौर्या सिंग का और दूसरा उनकी बहू रूपाली का. हवेली में फेले हुए सन्नाटे की एक वजह 2 दिन पहले हुई मौत भी थी. मौत हवेली की मालकिन और ठाकुर शौर्या सिंग की बीवी सरिता देवी की जो एक लंबी बीमारी के बाद चल बसी थी. उस रात हवेली में मौत का ख़ौफ्फ हर तरफ देखा जा सकता था. मरने से पहले बीमारी में दर्द की वजह से उठी सरिता देवी की चीखें जैसी आज भी हर तरफ गूँज रही थी.

मगर हमेशा यही आलम ना था. इस हवेली ने खूबसूरत दिन भी देखे थे. हवेली को शौर्या सिंग के परदादा महाराजा इंद्रजीत सिंग ने बनवाया था. ना तो आसपास के किसी रजवाड़े में ऐसी हवेली थी और ना ही किसी का इतना सम्मान था जितना इंद्रजीत सिंग का था. परंपरा अगली कयि पीढ़ियों तक बनी रही. हर तरफ इंद्रजीत सिंग के कुल पर लोक गीत गाए जाते थे. जो भी हवेली तक आया कभी खाली हाथ नही गया. जो भी गुज़रता, हवेली के दरवाज़े पे सर झुकाके जाता जैसे वो कोई मंदिर हो और यहाँ भगवान बस्ते हों.

आज़ादी के बाद महाराजा की उपाधि तो चली गयी मगर रुतबा और सम्मान वही रहा. लोग आज भी हवेली में रहने वालो को महाराज के नाम से ही पुकारते थे. और यही सम्मान शौर्या सिंग ने भी पाया जब उनका राजतिलक किया गया. और फिर एक दिन पड़ोस के रजवाड़े की बेटी सरिता देवी को बहू बनाकर इस हवेली में लाया गया.

शौर्या सिंग को सरिता देवी से 4 औलाद हुई. 3 बेटे और एक बेटी. सबसे बड़े बेटे पुरुषोत्तम की शादी रूपाली से हुई और वही अपने पिता जी ज़मीन जायदाद की देखबाल भी करता था. दूसरा बेटा तएजवीर सिंग अपने बड़े भाई का हाथ साथ देता था पर ज़्यादा वक़्त अययाशी में गुज़रता था. तीसरा बेटा कुलदीप सिंग अब भी विदेश में पढ़ रहा था. और सबसे छ्होटी थी सबकी लड़ली कामिनी. 3 भाइयों की दुलारी और घर में सबकी प्यारी शौर्या सिंग की एकलौती बेटी.

हवेली में हर तरफ हसी गूँजती रहती थी. आनेवाले अपनी झोलिया भरके जाते और दुआ देते के कुल का सम्मान सदा ऐसे ही बना रहे और शायद होता भी यही मगर एक घटना ने जैसे सब बर्बाद कर दिया. वो एक दिन ऐसा आया के शौर्या सिंग से उसका सब छीन्के ले गया. उनका सम्मान, खुशियाँ, दौलत और उनका सबसे बड़ा बेटा पुरुषोत्तम सिंग.

एक शाम पुरुषोत्तम सिंग घर से गाड़ी लेके निकला तो रात भी लौटके नही आया. ये कोई नयी बात नही थी. वो अक्सर काम की वजह से रात बाहर ही रुक जाता था इसलिए किसी ने इश्स बात पर कोई ध्यान नही दिया. मुसीबत सुबह हुई जब खबर ये आई के पुरुषोत्तम की गाड़ी हवेली से थोड़ी दूर सड़क के किनारे खड़ी मिली और पुरुषोत्तम का कहीं कोई पता नही था. गाड़ी में खून के धब्बे सॉफ देखे जा सकता थे. तलाश की गयी तो थोड़ी ही दूर पुरुषोत्तम सिंग की लाश भी मिल गयी. उसके जिस्म में दो गोलियाँ मारी गयी थी.

हवेली में तो जैसी आफ़त ही आ गयी. परिवार के लोग तो पागलसे हो गये. किसी को कोई अंदेशा नही था के ये किसने किया. पहले तो किसी की इतनी हिम्मत ही नही सकती थी के शौर्या सिंग की बेटे पे हाथ उठा देते और दूसरा पुरुषोत्तम सिंग इतना सीधा आदमी था का सबसे हाथ जोड़के बात करता था. उसकी किसी से दुश्मनी हो ही नही सकती थी.

उसके बाद जो हुआ वो बदतर था. शौर्या सिंग ने बेटे के क़ातिल की तलाश में हर तरफ खून की नदियाँ बहा दी. जिस किसी पे भी हल्का सा शक होता उसकी लाश अगले दिन नदी में मिलती. सबको पता था के कौन कर रहा था पर किसी ने डर के कारण कुच्छ ना कहा. यही सिलसिला अगले 10 साल तक चलता रहा. शौर्या सिंग और उनके दूसरे बेटे तएजवीर सिंग ने जाने कितनी लाशें गिराई पर पुरुषोत्तम सिंग के हत्यारे को ना ढूँढ सके.

हत्यारा तो ना मिला लेकिन कुल पर कलंक ज़रूर लग गया. जो लोग शौर्या सिंग को भगवान समझते थे आज उनके नाम पे थूकने लगे. जिसे महाराज कहते थे आज उसे हत्यारा कहने लगे. और हवेली को तो जैसे नज़र ही लग गयी. जो कारोबार पुरुषोत्तम सिंग के देखरेख में फल फूल रहा था डूबता चला गया. शौर्या सिंग ने भी बेटे के गम में शराब का सहारा लिया. यही हाल तएजवीर सिंग का भी था जिसे पहले से ही नशे की लत थी. कर्ज़ा बढ़ता चला गया और ज़मीन बिकती रही

हवेली का 150 साल का सम्मान 10 सालों में ख़तम होता चला गया.

रूपाली अपने कमेरे में अकेली लेटी हुई थी. नींद तो जैसे आँखो से कोसो दूर थी. बस आँखें बंद किए गुज़रे हुए वक़्त को याद कर रही थी. वो 20 साल की थी जब पुरुषोत्तम सिंग की बीवी बन कर उसने इस हवेली में पहली बार कदम रखा था. पिच्छले 13 सालों में कितना कुच्छ बदल गया था. गुज़रे सालों में ये हवेली एक हवेली ना रहकर एक वीराना बन गयी थी.

रूपाली पास के ही एक ज़मींदार की बेटी थी. वो ज़्यादा पढ़ी लिखी नही थी और हमेशा गाओं में भी पली बढ़ी थी. भगवान में उसकी श्रद्धा कुच्छ ज़्यादा ही थी. हमेशा पूजा पाठ में मगन रहती. ना कभी बन सवारने की कोशिश की और ना ही कभी अपने अप्पर ध्यान दिया. उसकी ज़िंदगी में बस 2 ही काम थे. अपने परिवार का ख्याल रखना और पूजा पाठ करना.

पर जब शौर्या सिंग ने उसे पहली बार देखा तो देखते ही रह गये. वो सादगी में भी बला की खूबसूरत लग रही थी. ऐसी ही तो बहू वो ढूँढ भी रहे थे अपने बेटे के लिए. जो उनके बेटे की तरह सीधी साधी हो, पूजा पाठ करती हो और उनके परिवार का ध्यान रख सके. बस फिर क्या था, बात आगे बढ़ी और 2 महीनो में रूपाली हवेली की सबसे बढ़ी बहू बनकर आ गयी.

उसके जीवन में पुरुष का संपर्क पहली बार सुहग्रात को उसके पति के साथ ही था. वो कुँवारी थी और अपनी टाँगें ज़िंदगी में पहली बार पुरुषोत्तम के लिए ही खोली. पर उस रात एक और सच उस पर खुल गया. सीधा साधा दिखनेवाला पुरुषोत्तम बिस्तर पर बिल्कुल उल्टा था. उसने रात भर रूपाली को सोने ना दिया. दर्द से रूपाली का बुरा हाल था पर पुरुषोत्तम था के रुकने का नाम ही नही ले रहा था. वो बहुत खुश था के उसे इतनी सुंदर पत्नी मिली और रूपाली हैरत में अपने पति को देखती रह गयी.

यही समस्या अगले 3 साल तक उनकी शादी में आती रही. पुरुषोत्तम हर रात उसे चोदना चाहता था और रूपाली की रति क्रिया में रूचि बस नाम भर की थी. वो बस नंगी होकर टांगे खोल देती और पुरुषोत्तम उसपर चढ़कर धक्के लगा लेता. यही हर रात होता रहा और धीरे धीरे पुरूहोत्तम उससे दूर होता चला गया.

रूपाली को इस बात का पूरा ग्यान था के उसका पति उससे दूर जा रहा है पर वो चाहकर भी कुच्छ ना कर सकी. पुरुषोत्तम बिस्तर पे जैसे एक शैतान का रूप ले लेता और वो उसके आक्रामक अंदाज़ का सामना ना कर पाती. उसके लिए इन सब कामों की ज़रूरत बस बच्चे पैदा करने के लिए थी, ना की ज़िंदगी का मज़ा लेने के लिए. धीरे धीरे बात यहाँ तक आ पहुँची के दोनो बिस्तर पे नंगे होते पर बात नही करते थे. और फिर एक दिन जब पुरुषोत्तम की हत्या का पता चला तो रूपाली की दुनिया ही लूट गयी. वो इतनी बड़ी हवेली में जैसे अकेली रही गयी और पहली बार उसे अपने पति की कमी का एहसास हुआ.

उसके बाद जो हुआ वो उसने बस एक मूक दर्शक बनके देखा. खून में सनी तलवार जैसे हवेली में आम बात हो गयी थी. कोई किसी से बात नही करता था. अगले दस साल तक यही सन्नाटा हवेली में छाया रहा और इन सबका सबसे बुरा असर उसकी सास सरिता देवी पर हुआ जो बिस्तर से जा लगी. हर तरह की दवा की गयी पर उनकी बीमारी का इलाज ना हो सका. और 10 साल बाद उन्होने दम तोड़ दिया.

उस रात रूपाली अपनी सास के पास ही थी. घर में और कोई भी ना था. ठाकुर शौर्या सिंग शराब के नशे में कहीं बाहर निकल गये थे. दूसरा बेटा तो कयि दिन तक घर ना आता था और बेटी कामिनी अपने भाई कुलदीप के पास विदेश में थी. नौकर तो कब्के हवेली छ्चोड़के भाग चुके थे. बस एक वही थी जो अपनी सास को मरते हुए देख रही थी, वहीं उनके पास बैठे हुए. सरिता देवी ने उसका हाथ पकड़ा हुआ था जब उन्होने आखरी साँस ली, पर उससे पहले उन्होने जो कहा उसने रूपाली को हैरत में डाल दिया. मरने से ठीक पहले सरिता देवी ने उसकी आँखों में देखा और उससे एक वादा लिया के वो इस हवेली की खुशियाँ वापस लाएगी. रूपाली की समझ में नही आया के कैसे पर एक मारती हुई औरत का दिल रखने के लिए उसने वादा कर दिया. फिर सरिता देवी ने जो कहा वो रूपाली की समझ में बिल्कुल नही आया. उनके आखरी शब्द अब भी उसके दिमाग़ में गूँज रहे थे “ बेटी, औरत का जिस्म दुनिया में हर फ़साद की सबसे बड़ी जड़ है और ऐसा हमेशा से होता आया है. महाभारत और रामायण तक इसी औरत के जिस्म की वजह से हुई. पर इस जिस्म के सहारे फ़साद ख़तम भी किया जा सकता है” और इसके बाद सरिता देवी कुच्छ ना कह सकी.

उसकी सास की कही बात का मतलब अब उसे समझ आ रहा था. मरती हुई उस औरत ने उससे एक वादा लिया और ये भी बता गयी के उस वादे को पूरा कैसे करना है. कैसे इस पूरे परिवार को एक साथ फिर इस हवेली की छत के नीचे लाना है. ये बात अगर आज से दस साल पहले रूपाली ने सुनी होती तो शायद वो अपनी सास को ही थप्पड़ मार देती पर इन 10 सालों में जो उसने देखा था उसके कारण भगवान से उसकी श्रद्धा जैसे ख़तम ही हो गयी थी.

रूपाली अपने बिस्तर से उठी और कुच्छ सोचती हुई खिड़की तक गयी. खिड़की से बाहर का नज़ारा देखकर उसका रोना छूट पड़ा. आज जो आँगन कब्रिस्तान जैसा लग रहा है कभी इसी आँगन में देर रात तक महफ़िल जमा होती थी. नाच गाना होता था. हसी गूंजा करती थी. उसने अपने आँसू पोंचछते हुए खिड़की पर पर्दे डाल दिए और दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया. फिर उसने पलटके कमरे में लगे बड़े शीशे में अपने आप को देखा.

वो 33 साल की हो चुकी थी. पिच्छले 10 साल में उसने सिर्फ़ और सिर्फ़ दुख देखे थे पर इन सबके बावजूद जो एक चीज़ नही बदली थी वो था उसका हुस्न. वो आज भी वैसे ही खूबसूरत थी जैसे आज से 13 साल पहले जब दुल्हन बनकर इस कमरे में पहली बार आई थी. हन उस वक़्त थोड़ी दुबली पतली थी और अब उसका पूरा जिस्म गदरा गया था. तब वो एक लड़की थी और आज एक औरत. कमरे में ट्यूबलाइज्ट की सफेद रोशनी फेली हुई थी और नीले रंग की साड़ी में उसका रूप ऐसा खिल रहा था जैसे चाँदनी में किसी झील का पानी.

रूपाली ने अपना हाथ अपने कंधे पे रखा और साड़ी का पल्लू सरका दिया. दूसरे ही पल शरम से खुद उसकी अपनी आँखें झुक गयी. पहली बार आज उसने अपने आपको इस नज़र से देखा था. ये नज़र तो उसने अपने अप्पर तब भी नही डाली थी जब वो शादी के जोड़े में तैय्यार हो रही थी. उसने धीरे से अपनी नज़र उठाई और फिर अपने आप को देखा. नीले रंग का ब्लाउस और उसमें क़ैद उसके 36 साइज़ की छातियाँ और नीचे उसकी गोरी नाभि. उसके होंठो पे एक हल्की सी मुस्कुराहट आई और उसने टेढ़ी होकर अपनी छातियों को निहारा. जैसे दो पर्वत सर उठाए खड़े हों. गौरव के साथ और नीचे उसकी नाभि जैसे धूप में सॉफ सफेद चमकता कोई रेगिस्तान. उसने अपना एक हाथ अपने पेट पे फेरते हुए अपने दाई तरफ के स्तन पे रखा और जैसे अपने आप ही उसके हाथ ने उसकी छाति को दबा दिया. दूसरे ही पल उसके शरीर में एक ल़हेर से दौड़ गयी और उसके घुटने कमज़ोर से होने लगे. पहली बार उसने अपने आप को इस अंदाज़ में छुआ था और आज जो महसूस कर रही थी वो तो तब भी महसूस ना किया था जब यही छातियाँ उसके पति के हाथों में होती थी, जब वो इनको अपने मुँह में लेके चूसा करता था.

रूपाली ने जैसे एक नशे की सी हालत में अपने ब्लाउस के बटन खोलने शुरू कर दिए. उसे 10 साल से किसी मर्द ने नही छुआ था और 10 साल में ना ही कभी उसके जिस्म ने कोई ख्वाहिश की पर आज उसकी सास की कही बात ने सब कुच्छ बदल दिया. एक एक करके ब्लाउस के सारे बटन खुल गये और अगले ही पर वो सरक कर नीचे ज़मीन पे जा गिरा. ब्रा में अपनी छातियों को देखकर रूपाली एक बार फिर शर्मा सी गयी पर अगले ही पल नज़र उठाकर अपने आपको देखने लगी. सफेद रंग की ब्रा में उसकी बड़ी बड़ी छातियाँ जैसे खुद उसपर ही क़यामत ढा रही थी. ब्रा उसकी छातियों पे कसा हुआ था और आधे स्तन ब्रा से उभरकर बाहर आ रहे थे. जैसे किसी ग्लास में शराब ज़रूरत से ज़्यादा डाल दी गयी हो और अब छलक कर बाहर गिर रही हो. रूपाली अपना एक हाथ कमर तक ले गयी और ब्रा के हुक को खोलने की कोशिश करने लगी. जैसे ही खुद उसके हाथ का स्पर्श उसकी नंगी कमर पे हुआ, उसे फिर अपने घुटने कमज़ोर होते से महसूस हुए.

धीरे से ब्रा का हुक खुला और अगले ही पल उसके दोनो स्तन आज़ाद थे. दो पर्वत जो 33 साल की उमर होने के बाद भी ज़रा नही झुके थे. आज भी उसी अकड़ से अपना सर उठाए मज़बूत खड़े थे. रूपाली को खुद अपने अप्पर ही गर्व महसूस होने लगा. उसके दोनो हाथों ने उसकी छातियों को थाम लिया और धीरे धीरे सहलाने लगे. उसके मुँह से एक ठंडी आह निकल गयी और पहली बार उसे अपनी टाँगो के बीच नमी का एहसास हुआ और उसका ध्यान अपने शरीर के निचले हिस्से की तरफ गया. उसकी टांगे मज़बूती से एक दूसरे से चिपक गयी जैसे बीच में उठती ख्वाहिश को पकड़ना चाह रही हो और छातियों पर उसकी पकड़ और सख़्त हो गयी, जैसे दबके बरसो से दबी आग को बाहर निकलना चाह रही हो.उसने फ़ौरन अपनी साड़ी को पेटिकोट से निकाला और बिस्तर की तरफ उछाल दिया. फिर उसके हाथ पेटिकोट को ऐसे उतरने लगे जैसे उसमें आग लग गयी हो. थोड़ी ही देर बाद उसका पेटिकोट भी बिस्तर पर पड़ा था और और वो सिर्फ़ एक पॅंटी पहने अपने आप को निहार रही थी. और तब उसे एहसास हुआ के उसने पिच्छले 10 साल में अपने उपेर ज़रा भी ध्यान नही दिया. पॅंटी ने उसकी चूत को तो ढक लिया था पर दोनो तरफ से बॉल बाहर निकल रहे थे. वजह ये थी के 10 साल में उसने एक बार भी नीचे शेव नही किया था. पति के मरने के बाद कभी ज़रूरत ही महसूस नही हुई. जब वो अपनी आर्म्स के नीचे के बॉल सॉफ करती तो बस वही रुक जाती . कभी चूत की तरफ ध्यान ही ना जाता. यही सोचते हुए उसने अपनी पॅंटी उतारी और पहली बार अपने आपको पूरी तरह से नंगी देखा.

शीशे में नज़ारा देखकर रूपाली के मुँह से सिसकारी निकल गयी. उसे अपनी पूरी जवानी कभी एहसास ना हुआ के वो इतनी खूबसूरत है. कभी पूजा पाठ से ध्यान ही ना हटा. जैसे आज उसने अपने आपको पहली बार पूरी तरह नंगी देखा हो. उसका लंबा कद,36 साइज़ के बड़े बड़े भारी स्तन, पतली कमर और भारी उठी हुई गांद. दो लंभी लंबी सफेद टाँगें और उनकी बीच बालों में छिपि उसकी चूत. वो पलटी और अपनी कमर से लेके अपनी गांद तक को निहारा. वो जो देख रही थी वो किसी भी मर्द को पागल कर देने के लिए काफ़ी थी. ये सोचते हुए वो मुस्कुराइ. बस एक चीज़ से छूट कारा पाना है और वो थे उसकी चूत को छिपा रहे लंबे बाल. उसने अपना एक हाथ उठे हुए बालों पे फिराया और चौंक पड़ी. बॉल गीले थे. उसका हाथ टाँगो के बीच आया तो एहसास हुए के खुद अपने आपको देख कर उसकी चूत गीली हो चुकी थी. जैसे ही उसने अपनी चूत को थोड़ा सहलाया उसके घुटने जवाब दे गये और वो ज़मीन पे गिर पड़ी. आज पहली बार उसने जाना के चूत गीला होना किसे कहते हैं और क्यूँ उसका पति उसे चोदने से पहले लंड पे तेल लगता था. क्यूंकी कभी भी उसकी चूत गीली नही होती थी और इसलिए उसे लंड लेने में तकलीफ़ होती थी.
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#6
Update 2

रूपाली ने ज़मीन पे पड़े पड़े ही अपने घुटने मोड और टांगे फैलाई. चूत खुलते ही उसे एसी की ठंडक का एहसास अपनी चूत पे हुआ. हाथ चूत तक आया और फिर धीरे धीरे उपर नीचे होने लगा. उसकी आँखें आनंद के कारण बंद होती चली गयी और मुँह से एक लंबी आ निकल गयी. हाथ थोड़ा और नीचे आया तो वो जगह मिली जहाँ उसके पति का लंड अंदर घुसता था. जगह मिली तो एक अंगुली अपने आप ही अंदर चली गयी. जोश में रूपाली ने गर्देन झटकी तो शीशे में फिर खुदपे नज़र पड़ी. नीचे कालीन पे पड़ा उसका नंगा जिस्म जैसे दुनिया की सबसे खूबसूरत चीज़ लग रहा था. बिखरे बॉल, मूडी कमर, छत की तरफ उठे हुए स्तन, जोश और एसी की ठंडी हवा के कारण सख़्त हो चुके निपल्स, खोली हुई लाबी टाँगें, गीली खुली हुई उसकी चूत और उसकी चूत को सहलाता उसका हाथ. इस नज़रे ने खुद उसके जोश को सीमा के पार पहुँचा दिया और फिर जैसे उसकी चूत और हाथ में एक जंग छिड़ गयी. मुँह से लंबी आह निकालने लगी और बदन अकड़ता चला गया.

जब जोश का तूफान ठंडा हुआ तो रूपाली के जिस्म में जान बाकी ना रही थी. उसने अपने आपको इतना कमज़ोर कभी महसूस ना किया था. बदन में जो ल़हेर उठी थी आज से पहले कभी ना उठी थी. उसकी चूत से पानी निकल कर उसकी गांद तक को गीला कर चुक्का था. उसने फिर अपने आप को शीशे में निहारा तो मुस्कुरा उठी. आज जैसे उसने अपने आप को पा लिया था. वो थोड़ी देर वैसे ही पड़ी अपने नंगे जिस्म को देखती रही और फिर जब उठने की कोशिश की तो दर्द की एक ल़हेर उसके सर में उठी. अपने सर पे हाथ फेरा तो 2 बातों को एहसास हुआ. एक के उसने जोश में अपना सर ज़मीन पे पटक लिया था जिसकी वजह से सर में दर्द हो रहा था और दूसरा चूत सहलाते गर्मी इतनी ज़्यादा हो गयी थी के चूत से बाल तक तोड़ लिए थे जो अभी भी उसकी उंगलियों के बीच फसे हुए थे. उसने अपने सर को सहलाया और अचानक उसकी हसी छूट पड़ी. आज उसे पता था के उसे क्या करना है.

रूपाली यूँ ही ज़मीन पे काफ़ी देर तक नंगी ही पड़ी रही और उसे पता ही नही चला के कब उसकी आँख लग गयी. जब नींद खुली तो सुबह के 5 बाज रहे थे.उसने कल रात ही सोच लिया था के उसे क्या करना है और कैसे करना है. अब तो बस सोच को अंजाम देने का वक़्त आ गया था.

उसने उठकर अपने कपड़े पहने और बॉल ठीक करके नीचे आई. घर में अभी भी हर तरफ सन्नाटा था. वो खामोश कदम रखते अपने ससुर के कमरे तक पहुँची. दरवाज़ा खुला था. वो अंदर दाखिल हो गयी. ठाकुर शौर्या सिंग नशे में धुत सोए पड़े थे. शराब की बॉटल अभी तक हाथ में थी. एक नज़र उनपर डालकर रूपाली का जैसे रोना छूट पड़ा. एक वक़्त था जब शौर्या सिंग का शौर्या हर तरफ फेला था. हर कोई उन्हें इज़्ज़त की नज़र से देखता था, उनका अदब करता था. शराब को कभी उन्हें कभी भी हाथ ना लगाया था. और आज उसी इंसान से हर कोई नफ़रत करता है, हर तरफ उसके नाम पे थुका जाता है.

रूपाली ने अपने ससुर के हाथ से शराब की बॉटल लेके एक तरफ रख दी. अगर हवेली की इज़्ज़त को दोबारा लाना है तो सबसे पहले उसे अपने ससुर को इस 10 साल की लंबी नींद से जगाना होगा, ये बात वो बहुत आछे से जानती थी. एक शौर्या सिंग ही हैं जो सब कुच्छ दोबारा ठीक कर सकते हैं और अभी तो एक सवाल का जवाब उसे और चाहिए थे, के उसके पति को मारने की हिम्मत किसने की थी. किसकी जुर्रत हुई थी के हवेली की खुशियों पे नज़र लगाए.

रूपाली बाहर बड़े कमरे में रखे सोफे पे आके बैठ गयी. उसे इंतेज़ार था घर के एकलौते नौकर भूषण का. भूषण ने अपनी सारी ज़िंदगी इसी हवेली की सेवा करते गुज़ार दी थी और बुढ़ापे में भी अपने ज़िंदगी के आखरी दीनो में हवेली का वफ़ादार रहा. उसने वो सब देखा जो हवेली में हुआ पर कभी गया नही. यूँ तो अब वो ही हवेली का सारा काम करता था पर अब उसके कामों में एक काम और जुड़ गया था. 24 घंटे नशे में धुत ठाकुर का ख्याल रखना. उसके दिन की शुरुआत भी ठाकुर की जगाने और उनके नहाने का इन्तेजाम करने से ही होती थी.

थोड़ी ही देर में रूपाली को नौकर के कदमों की आहट सुनाई दे गयी.

“अरे बहू आप? इतनी सुबह?” भूषण ने पुचछा.

“हां वो आपसे कुच्छ काम था. मेरा कल माँ दुर्गा का व्रत था और आज पूजा के बाद ही मैं कुच्छ खा सकती हूँ. अभी देखा तो घर में पूजा का समान ही नही है. आप लाल मंदिर जाकर पूजा की सामग्री ले आइए. क्या क्या लाना है मैं सब इस काग़ज़ पे लिख दिया है” रूपाली ने काग़ज़ का एक टुकड़ा भूषण की तरफ बढ़ाते हुए कहा. लाल मंदिर हवेली से तकरीबन 100 किलोमीटर की दूरी पे था और भूषण 4-5 घंटे से पहले वापिस नही आ सकता था ये बात रूपाली अच्छी तरह जानती थी.

“जैसा आप कहें” भूषण ने काग़ज़ का टुकड़ा लेते हुए कहा. “ पर घर का काम?”

“वो सब मैं देख लूँगी. आप जल्दी ये सब समान ले आइए” रूपाली ने उसे जाने का इशारा करते हुए कहा.

बहू की भगवान में कितनी शरद्धा है. कितना पूजा पाठ करती है और फिर भी उपेरवाले ने बेचारी को भरी जवानी में ऐसे दिन दिखाए. ये सोचता हुआ भूषण धीरे धीरे दरवाज़े की तरफ बढ़ गया.

बाहर सवेरे का सूरज दिखना शुरू हो गया था. अब वक़्त था ठाकुर को जगाने का. रूपाली अपने कमरे में पहुँची और अपनी ब्रा और पॅंटी उतार फेंकी. विधवा होने के कारण उसे हमेशा सफेद सारी में ही रहना पड़ता था पर उसमें भी उसका हुस्न देखते ही बनता था. ब्रा ना होने के कारण सफेद ब्लाउस में उसकी दोनो छातियाँ हल्की हल्की नज़र आने लगी थी. रूपाली ने आईने में एक नज़र अपने उपेर डाली और सारी का पल्लू थोड़ा सा एक तरफ कर दिया और ब्लाउस का उपेर का एक बटन खोल दिया. सफेद ब्लाउस में अब उसकी चूचियाँ पल्लू ना होने के कारण और ज़्यादा नज़र आने लगी थी. निपल तो सॉफ देखा जा सकता था और ब्लाउस का एक बटन खुल जाने के बाद उसका क्लीवेज किसी की भी धड़कन रोक देने के लिए काफ़ी था.

अपने आप को देखकर रूपाली फिर मुस्कुरा उठी.वो अभी ठाकुर को जाकर जगाने का सोच ही रही थी के नीचे से शौर्या सिंग की आवाज़ आई. वो चिल्लाकर भुसन को आवाज़ दे रहे थे. रूपाली ने जल्दी से अपना पल्लू ठीक किया, सर पे घूँघट डाला और तेज़ कदमो से चलती नीचे बड़े कमरे में आई.

“जी पिताजी”

उसकी आवाज़ सुन शौर्या सिंग पलटे.

“भूषण कहाँ है बहू”

“जी उन्हें मैने लाल मंदिर भेजा है. घर में पूजा की सामग्री नही है. मेरा कल से व्रत था जो मुझसे पूजा के बाद ख़तम करना है” रूपाली ने सोचा समझा जवाब दिया.

“ह्म. ठीक है” शौर्या सिंग एक नज़र बहू पे डाली और कुच्छ कह ना सके पर चेहरे पे आई झुंझलाहट रूपाली ने देख ली थी.

“आपके नहाने का पानी हमने गरम कर दिया है और बाथरूम में है. आप नहा लीजिए तब तक हम नाश्ता बना देते हैं” रूपाली ने कहा

शौर्या सिंग अब भी नशे में धुत थे ये बात रूपाली से छुपि नही. कदम अब भी लड़खड़ा रहे थे.

“ठीक है” कहते हुए शौर्या सिंग वापिस अपने कमरे में जाने के लिए पलते और लड़खड़ा गये. घुटना सामने रखे सोफे से टकराया और वो गिरने लगे. रूपाली ने फ़ौरन आगे बढ़के सहारा दिया और इस चक्कर में उसकी सारी का पल्लू उसका सर से सरक कर नीचे जा गिरा.

“संभलके पिताजी” रूपाली ने अपने ससुर के सीने के दोनो तरफ बाहें डाली और उन्हें गिरने से बचाया. शौर्या सिंग का एक हाथ उसके सारी के बीच नंगे पेट पे आया और दूसरा उसके कंधे पे. कुच्छ पल के लिए उसका सीना रूपाली की चुचियों से दब गया. जब संभले तो एक नज़र रूपाली पे डाली. वो अभी तक उन्हें सहारा दे रही थी इसलिए सारी का पल्लू ठीक नही किया था. शौर्या सिंग ने आज दूसरी बार उसका चेहरा देखा था. पहली बार जब उसे पहली बार उसके बाप के घर देखा था और आज. वो आज भी उतनी ही सुन्दर लग रही थी, बल्कि उससे कहीं ज़्यादा. और फिर नज़र चेहरे से हटके उसके गले से होती उसकी चुचियों पे आ गयी जो ब्रा से बाहर निकलके गिरने को हो रही थी. सफेद रंग के ब्लाउस में निपल सॉफ नज़र आ रहे थे. दूसरे ही पल उन्होने शरम से नज़र फेर ली.

पर ससुर की नज़र को रूपाली से बची नही. वो जानती थी के ससुर जी ने वो सब देख लिया है जो वो दिखाना चाहती थी. जब शौर्या सिंग संभले तो उसने अलग हटके अपने सारी ठीक करी.

“आप थोड़ी देर यहीं बैठ जाइए. मैं तब तक आपके लिए चाय ला देती हूँ” कहते हुए उसने ससुर जी को वहीं बिठाया और किचन की तरफ बढ़ गयी. किचन में जाकर उसने एक प्याली में चाय निकाली और फिर ब्लाउस में से वो छ्होटी से बॉटल निकाली जो उसकी माँ ने शादी से पहले उसे दी थी.

“ये एक जड़ी बूटी है. ये पुरुष में काम उत्तेजना जगाती है.इसे अपने पास रखना. अगर कभी तेरा पति बिस्तर पे तेरा साथ ना दे रहा हो तो उसे ये पीला देना. फिर वो तुझे रात भर सोने नही देगा” ये बात उसकी माँ ने उसे मुस्कुराते हुए बताई थी. उस वक़्त रूपाली ये बात सुनके शरम से गड़ गयी थी और उसका दिल किया था के इसे फेंक दे. पर फिर जाने क्या सोचकर रख ली थी और आज यही चीज़ उसके काम आ रही थी. माँ तो रही नही पर उनकी चीज़ आज काम आई सोचते हुए रूपाली ने आधी बॉटल चाय की प्याली में मिला दी.

ठाकुर को चाय की प्याली थमाकर वो उनके नहाने का पानी बाथरूम में रखने चली गयी. वापिस आई तो ठाकुर चाय ख़तम कर चुके थे.

“हमें तो पता ही नही था के आप इतनी अच्छी चाय बनाती हैं बेटी” शौर्या सिंग ने कहते हुए चाय की प्याली नीचे रखी

“शुक्रिया पिताजी” कहते हुए रूपाली चाय की प्याली उठाने को झुकी और शौर्या सिंग का कलेजा उनके मुँह को आ गया. बहू के झुकते ही उसका क्लीवेज फिर उनकी आँखो के सामने एक पल के लिए आया और उन्होने अपने जिस्म में एक हरकत महसूस की. लंड ने जैसे एक ज़माने के बाद आज अंगड़ाई ली हो. ठाकुर को अपने उपेर आश्चर्या हुआ. वो हमेशा सोचते थे के अपने काम पे उन्हें पूरा काबू है पर आज उनकी बेटी समान बहुर को देख कर उनका जिस्म उन्हें धोखा दे रहा था. उन्हें इस बात का ज़रा भी एहसास नही था के ये कमाल उनकी चाय में मिली जड़ी बूटी का था.

रूपाली चाय की प्याली रखकर वापिस आई तो देखा के ठाकुर उठने की कोशिश कर रहे हैं पर नशे के कारण कदम लड़खड़ा रहे थे. उसने फिर आगे बढ़के सहारा दिया.

“आइए हम आपको बाथरूम तक ले चलते हैं” कहते हुए रूपाली ने ठाकुर को सहारा दिया. ठाकुर शौर्या बहू का कंधा पकड़के खड़े हुए. रूपाली ने एक हाथसेउनका पेट पकड़कर एक हाथ से उनका दूसरा हाथ पकड़ रखा था जो उसके कंधे पे था. उसके हाथ की नर्माहट और उसके जिस्म की गर्माहट शौर्या सिंग सॉफ महसूस कर सकते थे. अंजाने में ही उनकी नज़र फिर बहुर के ब्लाउस पे चली गयी. क्लीवेज तो ना दिखा क्यूँ सारी पूरी तरफ से चुचियों के उपेर थी पर इस बात का अंदाज़ा ज़रूर हो गया के ब्लाउस का अंदर बहुर की छातियाँ कितनी बड़ी बड़ी हैं.

धीरे कदमों से दोनो बाथरूम तक पहुँचे. ठाकुर को अंदर छ्चोड़कर रूपाली बाहर कमरे में आई ही थी के अंदर बाथरूम में ज़ोर की एक आवाज़ आई. वो भागकर फिर बाथरूम में पहुँची तो देखा के शौर्या सिंग नीचे गिरे पड़े थे.

“ओह पिताजी. आपको चोट तो नही आई” उसने अपने ससुर को उठाके बिठाया.

“नही कोई ख़ास नही. पेर फिसल गया था पर मैने दीवार का सहारा ले लिया इसलिए ज़्यादा ज़ोर से नही गिरा.” ठाकुर ने अपनी कमर सहलाते हुए जवाब दिया.

“ये कम्बख़्त भूषण. इसे पता है के हमें नहलाने का काम इसका है फिर भी सुबह सुबह गया ” ठाकुर ने गुस्से में कहा.

“ग़लती हमारी है पिताजी. हमने भेजा था.” रूपाली ने कहा

“फिर भी. उसे सोचना चाहिए था.” ठाकुर ने फिर अपनी कमर पे हाथ फिराया.

“लगता है आपकी कमर में चोट आई है. हमें दिखाइए” कहते हुए रूपाली ठाकुर के पिछे आई और इससे पहले के वो कुच्छ कहते उनके कुर्ते को उपेर उठाकर कमर देखने लगी

शौर्या सिंग जैसे हक्के बक्के रह गये. वो मना करना चाहते थे पर बहू ने इंतेज़ार ही नही किया.

“ज़्यादा चोट नही आई पिताजी. हल्की सी खरोंच है” रूपाली ने कुर्ता फिर नीचे करते हुए कहा.

“ह्म्‍म्म्म…” ठाकुर बस इतना ही कह सके.

“आप बैठिए. हम आपको नहला देते हैं वरना आप फिर गिर जाएँगे.” रूपाली ने कहा

ठाकुर उसे मना करना चाहते थे पर शरीर में उठी काम उत्तेजना ने चुप कर दिया. रूपाली ने उनका कुर्ता पकड़के उतारा और ठाकुर ने अपने दोनो हाथ हवा में उठाकर उसकी मदद की. अब जिस्म पे सिर्फ़ एक धोती रह गयी.

“घूँघट में नहलाओगी? कुच्छ नज़र आएगा?” ठाकुर ने मुस्कुराते हुए पुचछा.

रूपाली ने अपने चेहरे से घूँघर हटा दिया और सारी का पल्लू अपनी कमर में पेटिकोट के साथ फँसा लिए. अब उसका पल्लू उसके ब्लाउस के बीच से जा रहा था और एक भी छाती को नही ढक रहा था. शौर्या सिंग ने उसका चेहरे को सॉफ तरह इतनी नज़दीक से पहली बार देखा था. उन्होने उसपे एक भरपूर नज़र डाली और दिल ही दिल में तारीफ किए बिना ना रह सके. और फिर नज़र जैसे अपने आप उसकी छातियो से आके चिपक गयी जो अब पल्लू हट जाने के वजह से ब्लाउस में सॉफ नज़र आ रही थी.

रूपाली ने अपने ससुर के शरीर पे पानी डालना शुरू किया. पानी वो इस अंदाज़ में डाल रही थी के आधा पानी ठाकुर के उपेर गिरता और आधा उसके अपने उपेर. थोड़ी ही देर में ठाकुर के साथ साथ वो भी पूरी तरह भीग चुकी थी. उसका ब्लाउस उसकी छातियों से चिपक गया था. अंदर ब्रा ना होने के कारण अब उस ब्लाउस का होना ना होना एक बराबर था. वो ठाकुर के सामने खड़ी थी जिसकी वजह से उसकी छातियों का भरपूर नज़ारा उसके ससुर को मिल रहा था. उसने साबुन उठाया और अपने सासूस के सर पे लगाना शुरू किया.

उधर शौर्या सिंग का अपने उपेर काबू रखना मुश्किल हो रहा था. सालों से उन्होने किसी को नही चोदा था और आज एक औरत का जिस्म इतने करीब था. उनकी बहू झुकी हुई उनके सर पे साबुन लगा रही थी. पानी से भीगा ब्लाउस अब जैसे था ही नही. उसकी दोनो चूचियाँ उनके सामने सॉफ नज़र आ रही थी. रूपाली उनके इतना करीब थी के वो अगर अपना मुँह हल्का सा आगे कर दें तो उसके क्लीवेज को चूम सकते थे.

रूपाली घूमकर ठाकुर के पिछे आई और कमर पे साबुन लगाने लगी. बुढ़ापे में भी अपने ससुर का जिस्म देखकर उसकी मुँह से जैसे वाह निकल पड़ी थी. इस उमर में इतना तन्द्रुस्त जिस्म. बुढ़ापे का कहीं कोई निशान नही,चौड़ी छाती, मज़ब्बूत कंधे. उसे इस बात का भी अंदाज़ा था के ठाकुर एकटूक उसकी चूचियों को ही घूर रहे थे और यही तो वो चाहती भी थी. अचानक वो आगे को गिरी और और अपनी दोनो चूचियाँ ठाकुर के कंधो पे रखके दबा दी.
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#7
Update 3

“माफ़ कीजिएगा पिताजी. पेर फिसल गया था” कहते हुए तो खड़ी हुई और पानी डालकल साबुन धोने लगी.

अचानक उसकी नज़र बैठे हुए ठाकुर की टाँगो की तरफ पड़ी और उसकी आँखें खुली रह गयी. उसके ससुर का लंड खड़ा हुआ था ये धोती में भी सॉफ देखा जा सकता था. सॉफ पता चलता था के लंड कितना लंबा और मोटा है. रूपाली को पहली बार अंदाज़ा हुआ के लंड इतना लंबा और मोटा भी हो सकता है. उसके पति का तो शायद इसका आधा भी नही था. एक बार को तो उसे ऐसा लगा के हाथ आगे बढ़के पकड़ ले.अपने दिल पे काबू करके रूपाली ने नहलाने का काम ख़तम किया और मुड़कर बाथरूम से बाहर निकल गयी.

शौर्या सिंग की नज़र तो जैसे बहू की छातियों से हटी ही नही. जब वो नहलाकर जाने के लिए मूडी तो उनका कलेजा जैसे फिर उनके मुँह को आ गया. सारी भीग जाने की वजह से रूपाली की गांद से चिपक गयी थी और गांद के बीच की दरार में जा फासी थी. उसकी उठी हुई गांद की गोलैईयों को देखकर ठाकुर के दिल में बस एक ही बात आई.

“बहुत सही नाम रखा इसके माँ बाप ने इसका. रूपाली”

पानी में भीगी रूपाली जैसे भागती हुई अपने कमरे में पहुँची. इस सारे कार्यक्रम में उसका खुद का जिस्म जैसे दहक उठा था. अगर वो 2 मिनट और बाथरूम में रुक जाती तो उसे पता था के वो खुद अपने ससुर का लंड अपने हाथ में ले लेती. कमरे में घुसते ही उसे अपने जिस्म से भीगे कपड़े उतार के फेकने शुरू किए. नंगी होकर वो बिस्तर पे जा गिरी और एक बार फिर उसकी उंगलियो की चूत से जुंग शुरू हो गयी.

उधेर रूपाली के जाते ही शौर्या सिंग का हाथ अपनी धोती तक पहुँच गया. उन्हें याद भी ना था के आखरी बार अपने हाथ से कब काम चलाया था उन्होने. शायद बचपन में कभी. और आज बहू ने उनसे ये काम बुढ़ापे में करवा दिया. लंड को हाथ से हिलाते शौर्या सिंग ने जैसे ही बहू के नंगे जिस्म की कल्पना अपने नीचे की तो पुर शरीर में जैसे रोमांच की एक ल़हेर सर से पावं तक दौड़ गयी.

चूत में लगी आग ठंडी होकर जब उंगलियों पे बहने लगी तो रूपाली ने उठकर अपने कपड़े समेटे. दिल तो चाह रहा था के अभी ससुर जी के सामने जाके टांगे खोल दे पर उसने अपने उपेर काबू रखा. पहेल उसने शौर्या सिंग से ही करनी थी वरना सारा खेल बिगड़ सकता था. उसे ऐसी बनना था के शौर्या सिंग लट्तू की तरह उसी की आगे पिछे घूमता रहे. कपड़े बदलकर भीगे हुए कपड़ो को सूखने के लए वो अपने कमरे की बाल्कनी में आई तो उसे अपना पहले देवर तएजवीर सिंग की गाड़ी आती दिखाई दी.

तएजवीर सिंग को ज़्यादातर लोग कुल का कलंक कहते थे. वजह थी उसकी अययाशी की आदत. औरतों के बाज़ार में उसका आना जाना था, नशे की उसे लत थी. अक्सर हफ्तों तक घर वापिस नही आता था पर किसी की हिम्मत कभी नही हुई के उसे पलटके कुच्छ कहे. ऐसा रौब था उसका. उसका बाप तक उसके आगे कुच्छ नही कहता था. तेज अपनी मर्ज़ी का आदमी था. जो चाहा करता. आज भी वो 2 हफ्ते बाद घर वापिस आया था.

तेज का कमरा जहाँ था वहाँ तक जाने के लिए उसे रूपाली के कमरे की आगे से होके गुज़रना पड़ता था. वो हमेशा रुक कर पहले अपनी भाभी का हाल पुछ्ता था और फिर अपने कमरे तक जाता था. आज भी ऐसा ही होगा ये बात रूपाली जानती थी. वो पलटकर अपने कमरे तक वापिस पहुँची और कमरे का दरवाज़ा खोल दिया. कार पार्क करके यहाँ तक पहुँचने में तेज को कम से कम 5 मिनट्स का टाइम लगेगा. ये सोचे हुए वो बाथरूम में पहुँची. अपने सारे बाल गीले किए और अपनी सारी और ब्लाउस उतार दिया. अब सिर्फ़ एक काले रंग के पेटिकोट और उसी रंग के ब्रा में वो शीशे के सामने आके खड़ी हो गयी, जैसे अभी नहा के निकली हो. दरवाज़ा उसके पिछे था और वो शीशे में देख सकती थी. थोड़ी देर वक़्त गुज़रा और उसे तेज के कदमो के आवाज़ आई. जैसे जैसे कदम रखने की आवाज़ नज़दीक आती रही वैसे वैसे रूपाली के दिल की धड़कन बढ़ती रही. उसके जिस्म में शरम, वासना और दार की अजीब सी ल़हेर उठ रही थी. थोड़ी देर बाद दरवाज़ा थोड़ा सा खुला और उसे तेज का चेहरा नज़र आया.

तेजविंदर सिंग 2 हफ्ते बाद घर कुच्छ पैसे लेने के लिए लौटा था. जो पैसे वो लेके गया था वो रंडी चोदने और शराब पीने में उड़ा चुक्का था. उसने गाड़ी हवेली के सामने रोकी और अंदर दाखिल हुआ. सामने ही उसके बाप का कमरा था पर उसने वहाँ जाना ज़रूरी नही समझा. वैसे भी वो सिर्फ़ थोड़ी देर के लिए आया था. पैसे लेके उसने वापिस चले जाना था. वो अपने कमरे की तरफ बढ़ गया. रास्ते में भाभी का कमरा पड़ता था. उनका हाल वो हमेशा पुछ्ता था. रूपाली पे उसे दया आती थी. बेचारी भारी जवानी में इस वीरान हवेली में क़ैद होके रह गयी थी. वो रूपाली के कमरे के सामने रुका और दरवाज़ा हल्का सा खोला ही था के उसका गला सूखने लगा.

रूपाली लगभग आधी नंगी शीशे के सामने खड़ी बाल बना रही थी. वो शायद अभी नाहके निकली थी और जिस्म पर सिर्फ़ एक ब्रा और पेटिकोट था. लंबे गीले बॉल उसके पेटिकोट को भी गीला कर रहे थे जो भीग कर उसकी गांद से चिपक गया था. एक पल के लिए वो शरम के मारे दरवाज़े से हट गया और अपने कमरे की तरफ चल पड़ा पर फिर पलटा और दरवाज़े से झाँकने लगा. उसने अपनी ज़िंदगी में कितनी औरतों को नंगी देखा था ये गिनती उसे भी याद नही थी पर रूपाली जैसी कोई भी नही थी. गोरा मखमल जैसा जिस्म, मोटापे का कहीं कोई निशान नही, लंबे बॉल, पतली कमर और गोल उठी हुई गांद. इस नज़ारे ने जैसे उसकी जान निकल दी. वो एक अय्याश आदमी था और भाभी है तो क्या, चूत तो आख़िर चूत ही होती है ऐसी उसकी सोच थी. वो औरो के चक्कर में जाने किस किस रंडी के यहाँ पड़ा रहता था और उसे अब अपनी बेवकूफी पे मलाल हो रहा था. घर में ऐसा माल और वो बाहर के धक्के खाए? नही ऐसा नही होगा.

रूपाली जानती थी के पिछे दरवाज़े पे खड़ा तेज उसे देख रहा था. शीशे के एक तरफ वो उसके चेहरे की झलक देख सकती थी. उसने बड़ी धीरे धीरे अपने गीले बॉल सुखाए ताकि उसका देवर एक लंबे वक़्त तक उसे देख सके. वो जान भूझ कर अपनी गांद को थोड़ा आगे पिछे करती और उसकी वो हरकत तेज की क्या हालत कर रही थी ये भी उसे नज़र आ रहा था. थोड़ी देर बाद उसने अपना ब्लाउस उठाया और पहेनटे हुए बाथरूम की तरफ चली गयी. कपड़े पहेन कर जब वो वापिस आई तो तेज भी दरवाज़े पे नही था. उसने अपने कपड़े ठीक किए और दरवाज़ा खोलकर बाहर निकली.

बाहर निकलकर रूपाली ने एक नज़र तेज के कमरे की तरफ डाली. दरवाज़ा बंद था. उसने एक लंबी साँस ली और सीढ़ियाँ उतरकर बड़े कमरे में आई. उसके ससुर कहीं बाहर जाने को तैय्यार हो रहे थे.

“भूषण आ गया क्या?” शौर्या ने पुचछा

“जी नही. तेज आए हैं” रूपाली सिर झुकाके बोली

“आ गया अय्याश” कहते हुए शौर्या ने एक नज़र रूपाली पे डाली. अभी यही औरत जो घूँघट में खड़ी है थोड़ी देर पहले उन्हें नहला रही थी. थोड़ी देर पहले इसकी दोनो छातियाँ उनके चेहरे के सामने आधी नंगी लटक रही थी सोचकर ही शौर्या सिंग के बदन में वासना की लहर दौड़ उठी. अब उनकी नज़र में जो उनके सामने खड़ी थी वो उनकी बहू नही एक जवान औरत थी.

“मैं ज़रा बाहर जा रहा हूँ. शाम तक लौट आउन्गा. भूषण आए तो उसे मेरे कपड़े धोने के लिए दे देना.” कहते हुए शौर्या सिंग बाहर निकल गये

रूपाली उन्हें जाता देखकर मुस्कुरा उठी. ये सॉफ था के वो नशे में नही थे. और उसे याद भी नही था के आखरी बार शौर्या सिंग ने हवेली से बाहर कदम भी कब रखा था.

यही सोचती हुई वो शौर्या सिंग के कमरे में पहुँची और चीज़ें उठाकर अपनी जगह पे रखने लगी. गंदे कपड़े समेटकर एक तरफ रखे. एक नज़र बाथरूम की तरफ पड़ी तो शरम से आँखें झुक गयी. यहीं थोड़ी देर पहले वो अपने ससुर के सामने आधी नंगी हो गयी थी. अभी वो इन ख्यालों में ही थी के कार स्टार्ट होने की आवाज़ आई. वो लगभग भागती हुई बाहर आई तो देखा के तेज कार लेके फिर निकल गया था.

“फिर निकल गये अययाशी करने.” जाती हुई कार को देखके रूपाली ने सोचा.

ससुर का कमरा सॉफ करके वो किचन में पहुँची. खाना बनाया और खाने ही वाली थी के याद आया के उसने भूषण को कहा था के उसका व्रत है. वो बाहर आके उसका इंतेज़ार करने लगी और थोड़ी ही देर में भूषण लौट आया.

“लो बहू. आपकी पूजा का पूरा समान ले आया.” कहते हुए भूषण ने समान उसके सामने रख दिया.

रूपाली ने व्रत खोलने का ड्रामा किया और खाना ख़ाके अपने कमरे में आ गयी. दोपहर का सूरज आसमान से जैसे आग उगल रहा था. इस साल बारिश की एक बूँद तक नही गिरी थी. वो सुबह की जागी हुई थी. बिस्तर पे लेटी ही थी के आँख लग गयी ओर अपने अतीत के मीठे सपने मैं खो गयी

पुरुषोत्तम के एक हाथ में रूपाली की सारी का पल्लू था जो वो अपनी और खींच रहा था. दूसरी तरफ से रूपाली अपनी सारी को उतारने से बचने के लिए पूरा ज़ोर लगा रही थी और पुरुषोत्तम से दूर भाग रही थी.

“छ्चोड़ दीजिए ना. मुझे पूजा करनी है” उसने पुरुषोत्तम से कहा.

“पहले प्रेम पूजा फिर काम दूजा” कहते हुए पुरुषोत्तम ने उसकी सारी को ज़ोर का झटका दिया. रूपाली ने अपने दोनो हाथों से कसकर सारी को थाम रखा था जिसका नतीजा ये हुए के वो एक झटके में पुरुषोत्तम की बाहों में आ गयी.

“उस भगवान का सोचती रहती हो हमेशा. पति भी तो परमेश्वर होता है. हमें खुश करने का धर्म भी तो निभाया करो” पुरषोत्तम ने उसे देखके मुस्कुराते हुए कहा.

“आपको इसके अलावा कुच्छ सूझता है क्या” रूपाली पुरुषोत्तम के हाथ को रोकने की कोशिश कर रही थी जो उसके पेट से सरक कर उसकी सारी पेटिकोट से बाहर खींचने की कोशिश कर रहा था.

“तुम्हारी जैसी बीवी जब सामने हो तो कुच्छ और सूझ सकता है भला” कहते हुए पुरुषोत्तम ने अपने एक हाथ उसके पेटिकोट में घुसाया और सारी बाहर खींच दी.

रूपाली ने सारी को दोनो हाथों से पकड़ लिया जिसकी वजह से वो पूरी तरह से पुरषोत्तम के रहमो करम पे आ गयी. पुरोशोत्तम ने आगे झुक कर अपने होंठ उसके होंठो पे रख दिया और दूसरा हाथ कमर से नीचे होता हुआ उसकी गांद पे आ गया.

रूपाली ने दोनो हाथ पुरुषोत्तम के सीने पे रख उसे पिछे धकेलने की कोशिश की. इस चक्कर में उसकी सारी उसकी हाथ से छूट गयी और खुली होने की वजह से उसके पैरों में जा गिरी. अब वो सिर्फ़ ब्लाउस और पेटिकोट में रह गयी थी. पुरुषोत्तम ने उसे ज़ोर से पकड़ा और अपने साथ चिपका लिया. उसका लंड पेटिकोट के उपेर से ठीक रूपाली की चूत से जा टकराया. दूसरा हाथ गांद पे दबाव डाल रहा था जिससे चूत और लंड आपस में दबे जा रहे थे.

“छ्चोड़ दीजिए ना” रूपाली ने कहा

“नही जान. बोलो चोद दीजिए ना” पुरूहोत्तम ने कहा और रूपाली शरम से दोहरी हो गयी.

“हे भगवान. एक तो आपकी ज़ुबान. जाने क्या क्या बोलते हैं” कहते हुए रूपाली ने पूरा ज़ोर लगाया और पुरुषोत्तम की गिरफ़्त से आज़ाद हो गयी. छूट कर वो पलटी ही थी के पुरुषोत्तम ने उसे फिर से पकड़ लिया और सामने धकेलते हुए दीवार से लगा दिया. रूपाली दीवार से जा चिपकी और उसकी दोनो चुचियाँ दीवार से दब गयी. पुरुषोत्तम पिछे से फिर रूपाली से चिपक गया और उसके गले को चूमना लगा. नीचे से उसका लंड रूपाली की गांद पे दब रहा था और उसका एक हाथ घूमकर रूपाली की एक छाति को पकड़ चुका था.

“रेप करोगे क्या” रूपाली ने पुचछा जिसके जवाब में पुरुषोत्तम ने उसकी छाति को मसलना शुरू कर दिया. उसका लंड अकड़ कर पत्थर की तरह सख़्त हो गया था ये रूपाली महसूस कर रही थी. उसके लंड का दबाव रूपाली की गांद पे बढ़ता जराहा था और एक हाथ दोनो चुचियों का आटा गूँध रहा था.

“ओह रूपाली. आज गांद मरवा लो ना” पुरुषोत्तम ने धीरे से उसके कान में कहा.

“बिल्कुल नही” रूपाली ने ज़रा नाराज़गी भरी आवाज़ में कहा “ और अपनी ज़ुबान ज़रा संभालिए”

पुरुषोत्तम का दूसरा हाथ उसका पेटिकोट उपेर की तरफ खींच रहा था. रूपाली को उसने इस तरह से दीवार के साथ दबा रखा था के वो चाहकर भी कुच्छ ना कर पा रही थी. थोड़ी ही देर में पेटी कोट कमर तक आ गयी और उसकी गांद पर सिर्फ़ एक पॅंटी रह गयी. वो भी अगले ही पल सरक कर नीचे हो गयी और पुरुषोत्तम का हाथ उसकी नंगी गांद को सहलाने लगा.

रूपाली की समझ में नही आ रहा था के वो क्या करे. वो चाहकर हिल भी नही पा रही थी. वो अभी नाहकार पूजा करने के लिए तैय्यार हो ही रही थी के ये सब शुरू हो गया. अब दोबारा नहाना पड़ेगा ये सोचकर उसे थोड़ा गुस्सा भी आ रहा था.

तभी उसे अपनी गांद पे पुरुषोत्तम का नंगा लंड महसूस हुआ. उसे पता ही ना चला के उसने कब अपनी पेंट नीचे सरका दी थी और लंड को उसकी गांद पे रगड़ने लगा था.

“थोड़ा झुक जाओ” पुरुषोत्तम ने कहा और उसकी कमर पे हल्का सा दबाव डाला. रूपाली ने झुकने से इनकार किया तो वो फिर उसके कान में बोला.

“भूलो मत के लंड के सामने तुम्हारी गांद है. अगर नही झुकी तो ये सीधा गांद में ही जाएगा. सोच लो”

रूपाली ना चाहते हुए भी आधे मॅन के साथ झुकने लगी.

“रूपाली, रूपाली” बाहर दरवाज़े पे से उसकी सास सरिता देवी की आवाज़ आ रही थी.

“बेटा पूजा का वक़्त हो गया है. दरवाज़ा खोलो”

रूपाली सीधी खड़ी हो गयी और कपड़े ठीक करने लगी. पुरुषोत्तम तो कबका पिछे हटके पेंट फिर उपेर खींच चुक्का था. चेहरे पे झल्लाहट के निशान सॉफ दिख रहे थे जिसे देखकर रूपाली की हसी छूट पड़ी.

“बहू” दरवाज़े फिर से खाटकाया गया और फिर से आवाज़ आई

“बहू” और इसके साथ ही रूपाली के नींद खुल गयी. बाहर खड़ा भूषण उसे आवाज़ दे रहा था.
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#8
Update 4

“क्या हुआ?” रूपाली ने बिस्तर से उठते हुए पुचछा

“बड़े मलिक आपको याद कर रहे हैं” भूषण की आवाज़ आई

“अभी आती हूँ” कहते हुए रूपाली अपने बिस्तर से उठी

उसका ध्यान अपने सपने की और चला गया. पुरुषोत्तम से ये उसकी आखरी मुलाकात थी. इसके बाद पुरुषोत्तम जो गया तो फिर ज़िंदा लौटके नही आया. रूपाली की मोटी मोटी आँखों से आँसू बह निकले.जीतने समय वो पुरुषोत्तम की बीवी रही हमेशा यही होता था जो उसने सपने में देखा था.वो हमेशा उसके करीब आने की कोशिश करता और वो यूँ ही टाल मटोल करती. कभी बिस्तर पे उसका साथ ना देती. उसके लिए चुदाई का मतलब सिर्फ़ टांगे खोलके लेट जाना था. बस इससे ज़्यादा कुच्छ नही पर पुरुषोत्तम ने उसके साथ कभी बदसुलूकी नही की. वो हमेशा की तरह उससे आखरी वक़्त तक वैसे ही प्यार करता रहा और ना ही उसने बिस्तर पर कभी ज़्यादा की ज़िद की. पूछ ता ज़रूर था पर रूपाली के मना कर देने पे हमेशा रुक जाता था. कभी ज़बरदस्ती नही करता था. वो भारी कदमों से अपनी पति की तस्वीर की तरफ गयी और उसपे हाथ फिराती तस्वीर से बातें करने लगी.

“आप फिकर ना करें. जो भी आपकी मौत का ज़िम्मेदार है वो अब ज़्यादा दिन साँसें नही लेगा” उसने भारी आवाज़ में अपने पति की तस्वीर से कहा.

“अपने पति को हमेशा प्यासा रखा और अपने ससुर पे डोरे डाल रही हूँ. वाह रे भगवान” सोचते हुए रूपाली नीचे आई.

भूषण काम ख़तम करके जा चुक्का था. अब हवेली में सिर्फ़ रूपाली और शौर्या सिंग रह गये थे. रूपाली नीचे आई तो शौर्या सिंग बड़े कमरे में बैठे उसका इंतेज़ार कर रहे थे.

“आओ बहू. बैठो” शौर्या सिंग ने पास पड़ी कुर्सी की तरफ इशारा करते हुए कहा. ”एक बात बताओ. तुमने आखरी बार नये कपड़े कब लिए थे.

ससुर ने पुचछा तो रूपाली को ध्यान आया के उसने पिच्छले 10 साल में एक नया कपड़ा नही खरीदा. आखरी बार नये कपड़े उसे पुरुषोत्तम ने ही लाके दिए थे.

“जी याद नही. कभी ज़रूरत ही नही पड़ी. हमारे पास पहले से ही इतने कपड़े हैं के हमने सारे पहने ही नही. और वैसे भी जिसे सफेद सारी पहन नी हो उसे नये कपड़े लाके क्या करना” रूपाली ने कहा.

“अब ऐसा नही होगा. आपको सफेद सारी पहेन्ने की कोई ज़रूरत नही.पुरुषोत्तम के चले जाने से आपकी ज़िंदगी ख़तम हो जाए ऐसा हम नही चाहते. हम आपके लिए कुच्छ कपड़े लाए हैं. ये ले जाइए और कल से ये पहना कीजिए.” शौर्या ने पास रखे कपड़ो की तरफ इशारा करते हुए कहा.

“पर लोग क्या कहेंगे?” रूपाली थोड़ा झिझक रही थी.

“उसकी आप चिंता ना करें. वैसे भी अब यहाँ आता कौन है. यहाँ सिर्फ़ आप और हम हैं. आप ये कपड़े ले जाएँ” ठाकुर ने ऐसी आवाज़ में कहा जैसे कोई फ़ैसला सुनाया हो. मतलब सॉफ था. रूपाली आगे कुच्छ नही कह सकती थी. उसे अपने ससुर की बात मान लेनी थी.

रूपाली ने आगे बढ़के कपड़े उठाए.

“और एक बात और” शौर्या सिंग ने कहा”घर में आपको घूँघट करने की ज़रूरत नही. आपका चेहरा हमसे छुपा नही है.”

“जी जैसा आप कहें” रूपाली कपड़े उठाके कमरे से बाहर जाने लगी “आप कपड़े बदलके बाहर आ जाएँ. हम खाना लगा देते हैं”

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रूपाली कपड़े लेके उपेर अपने कमरे में पहुँची और कपड़े एक एक करके देखने लगी. सब कपड़े रंगीन थे. ब्लाउस सारे लो नेक थे और ज़्यादातर ट्रॅन्स्परेंट थे. केयी ब्लाउस तो बॅकलेस थे. उसने कपड़ो की तरफ देखा और मुस्कुरा उठीं. शौर्या सिंग को फसाना इतना आसान होगा ये उसने सोचा नही था पर अगले ही पल उसने अपने सवाल का जवाब खुद ही मिल गया. 10 साल से वो इंसान सिर्फ़ शराब के नशे में डूबा रहा. किसी औरत के पास नही गया और आज जब एक जवान औरत खुद इतना नज़दीक आ गयी तो बहू बेटी का लिहाज़ कहाँ रह जाता है. फिर तो सामने सिर्फ़ एक जवान जिस्म नज़र आता है. और वो खुद कहाँ उससे अलग थी. क्या वो खुद गरम नही हो गयी थी अपने ससुर को नहलाते हुए. उसे भी तो 10 साल से मर्द की जिस्म की ज़रूरत थी.

रूपाली ने कपड़े समेटकर अलमारी में रखे और फिर नीचे आई. शौर्या सिंग खाने की टेबल पे उसका इंतेज़ार कर रहा था.

वो किचन में गयी और खाना लाके टेबल पे लगाने लगी. ऐसा करते हुए उसे कई बार शौर्या सिंग के नज़दीक आने पड़ा. उसने सॉफ महसूस किया के उसके ससुर की नज़र कभी सारी से नज़र आ रहा उसके नंगे पेट पे थी तो कभी ब्लाउस में बंद उसकी बड़ी बढ़ी छातियों की निहार रही थी. उसने खामोशी से खाना लगाया और खुद भी सामने बैठ कर खाने लगी.

“खाना अच्छा बना लेती हैं आप” शौर्या सिंग ने कहा

“जी शुक्रिया” रूपाली ने अपने ससुर के कहे अनुसार घूँघट हटा दिया. उसकी नज़र शौर्या सिंग की नज़र से टकराई तो उसमें वासना की ल़हेर सॉफ नज़र आई.

“हम जो कपड़े लाए थे वो नही पहने आपने?”

“जी सुबह पहेन लूँगी. फिलहाल खाना लगाना था तो ऐसे ही आ गयी”

रूपाली दोबारा उठकर शौर्या सिंग को खाना परोसने लगी. वो ठाकुर के दाई तरफ खड़ी प्लेट में खाना डालने के लिए झुकी तो सारी का पल्लू सरक कर सामने रखी दाल में जा गिरा.

“ओह….माफ़ कीजिएगा” रूपाली फ़ौरन सीधी खड़ी होकर सारी झटकने लगी.

शौर्या सिंग की नज़र मानो उसकी छाती से चिपक कर रह गयी. वो सारी का पल्लू हटाकर उसे सॉफ कर रही थी. ब्लाउस में बंद उसकी छातियों को देख कर शौर्या सिंग सिर्फ़ ये सोचते रह गये के ये छातियाँ नंगी कैसी दिखती होंगी, कितनी बड़ी होंगी, कितनी गोरी होंगी अंदर से.

“मैं कुच्छ और ला देती हूँ” रूपाली ने सारी का पल्लू ठीक किया. उसे पता था के शौर्या सिंग इतनी देर से क्या घूर रहा था.

“नही ठीक है. हम खा चुके” कहते हुए शौर्या सिंग उठकर अपने कमरे की तरफ बढ़ गये.

रूपाली बर्तन उठा कर किचन की तरफ बढ़ चली. एक वक़्त था जब नौकरों की लाइन होती थी घर में और आज उसे खुद बर्तन सॉफ करने पड़ रहे थे. ये सोचते हुए वो किचन की सफाई करने लगी. एक बात जो सोचकर वो खुश हो रही थी वो ये थी के हमेशा नशे में डूबा रहने वाला उसका ससुर आज शराब के करीब तक नही गया था. पूरा दिन अपने पुर होश में रहा.

आहट सुनकर वो पाली तो देखा के शौर्या सिंग किचन के दरवाज़े पे खड़ा था.

“बहू ज़रा भूषण को बाहर उसके कमरे से बुला लाओ. हमारे पैरों में दर्द हो रहा है. थोड़ा मालिश कर देगा आकर.” ठाकुर ने कहा

“पर वो तो अब तक सो चुके होंगे” रूपाली पलटकर बोली

“तो क्या हुआ. जगा दो” शौर्या सिंग ने ठाकुराना अंदाज़ में कहा.

“इस उमर में क्यूँ उनकी नींद खराब करें. हम ही कर देते हैं” रूपाली ज़रा शरमाते हुए बोली

“आप? आप कर सकेंगी?” शौर्या सिंग ज़रा चौंकते हुए बोला

“हां क्यूँ नही. आप कमरे में चलिए. हम तेल ज़रा गरम करके ले आते हैं” रूपाली ने कहा

शौर्या सिंग पलटकर अपने कमरे में चले गये. रूपाली ने एक कटोरी में थोड़ा तेल लिया और उसे हल्का सा गरम करके ससुर के पिछे पिछे कमरे में दाखिल हो गयी.

शौर्या सिंग सिर्फ़ अपनी धोती पहने खड़े थे. कुर्ता वो उतार चुके थे.

“हमने सोचा के जब आप कर ही रही तो ज़रा कमर पे भी तेल लगा देना” ठाकुर ने कहा

“जी ज़रूर” कहते हुए रूपाली ने अपने सारी का पल्लू अपनी कमर में घुसा लिया.

शौर्या सिंग कमरे के बीच में खड़ा हुआ था. रूपाली ने बिस्तर की तरफ देखा और जैसे इशारे में ठाकुर को लेट जाने के लिए कहा. बदले में शौर्या सिंग ने कहा के खड़े हुए ही ठीक है.

रूपाली ठाकुर के सामने जाकर अपने घुटनो पे बैठ गयी.

ठाकुर ने अपनी धोती खींचकर अपने घुटनो के उपेर कर ली.रूपाली ने अपने हाथों में थोड़ा तेल लिया और अपने ससुर की पिंदलियों पे लगाके मसल्ने लगी. उसके च्छुने भर से ही ठाकुर के मुँह से एक लंबी आह छूट गयी. जाने कितने अरसे बाद एक औरत आज दूसरी बार उनके इतना करीब आई थी. उसके हाथ जिस्म पे लगे ही थे के ठाकुर के लंड में हलचल होनी शुरू हो गयी थी. समझ नही आ रहा था के अपने आपको कोसें के अपने मरे हुए बेटे की बीवी का सोचकर लंड खड़ा हो रहा है या फिर सिर्फ़ सामने बैठे हुए एक जवान खूबसूरत जिस्म पे ध्यान दें. रूपाली अब उनके घुटनो के उपेर तक तेल लगाके हाथों से रगड़ रही थी. ठाकुर ने नीचे की तरफ देखा तो लंड ने जैसे आंदोलन कर दिया हो. रूपाली सामने बैठी हुई थी. उसने सारी का पल्लू साइड में पेटिकोट के अंदर घुसा रखा था जिससे वो एक तरफ को सरक गया था. उसका क्लीवेज पूरी तरह से नज़र आ रहा था और उपेर से देखने के कारण ठाकुर की नज़र उसकी छातियों के बीच गहराई तक उतर गयी और वो ये अंदाज़ा लगाने लगे के इन चुचियों का साइज़ क्या होगा. लंड अब पुर जोश पे था.

रूपाली सामने बैठी अपने ससुर की टाँगो की सख़्त हाथों से मालिश कर रही थी. उसे पूरी तरह खबर थी के खड़े उसे उसके ससुर की नज़र उसके ब्लाउस के अंदर तक जा रही थी और वो उसकी छातियों का नज़ारा कर रहा था. उसने जान भूझ कर अपनी सारी को इस तरह से लपेटा था के उसका क्लीवेज खुल जाए और जो वो करना चाहती थी वो हो गया. उसका ससुर खड़ा हुआ उसकी चुचियाँ निहार रहा था और गरम हो रहा था. इस बात का सबूत उसका खड़ा होता लंड था जो धोती में एक टेंट जैसा आकर बना रहा था. रूपाली की साँसें उखाड़ने लगी थी. एक तो मरद की इतना नज़दीक, उपेर से ऐसी हालत में जिसमें उसकी छातियों की नुमाइश हो रही थी, तीसरे वो एक मर्द के जिस्म को काफ़ी वक़्त बाद हाथ लगा रही थी और सबसे ज़्यादा उसके ससुर का खड़ा होता लंड जिसे रूपाली बड़ी मुश्किल से नज़र अंदाज़ कर रही थी. दिल तो कर रहा था के बस नज़र जमाएँ उसे देखती ही रहे.

बैठे बैठे उसके घुटने में दर्द हुआ तो रूपाली ने ज़रा अपनी पोज़िशन बदली और अगले पल जो हुआ उसने उसके दिल की धड़कन को दुगना कर दिया. जैसे ही वो उपेर की उठी उसके ससुर का खड़ा लंड सीधा उसके माथे पे लगा. 10 साल बाद कोई लंड उसके जिस्म से लगा था. हल्के से टच ने ही रूपाली के अंदर वासना की लहरें उठा दी और उसे अपनी टाँगों के बीच होती नमी का एहसास होने लगा. जब बात बर्दाश्त के बाहर होने लगी तो वो उठकर शौर्या सिंग के पिछे आ गयी और पिछे बैठ कर टाँगो पे तेल मलने लगी.

रूपाली का माथा उनके लंड से टकराया तो शौर्या सिंग का जिस्म काँप उठा. लगा के लंड को अभी धोती से आज़ाद करके बहू के हाथ में थमा दें पर दिल पे काबू रखा. लंड खड़ा है इस बात का अंदाज़ा तो बहू को हो गया होगा. जाने क्या सोच रही होगी ये सोचकर शौर्या सिंग थोड़ा झिझके पर अगले ही पल जब रूपाली उठकर पिछे जा बैठी तो ठाकुर का दिल डूबने लगा. बहू को लंड का अंदाज़ा हो गया था इसलिए वो पिछे की तरफ चली गयी. ज़रूर इस वक़्त मुझे दिल में गालियाँ दे रही होगी. नफ़रत कर रही होगी मुझसे. सोच रही होगी के कितना गिरा हुआ इंसान हूँ मैं जो खुद अपनी बहुर के लिए ऐसा सोच रहा हूँ.

रूपाली अब अपने ससुर की टाँगो पे तेल लगा चुकी थी. उसने फिर तेल की कटोरी उठाई खड़ी हो गयी. उसने अपनी हथेली में तेल लिया और ठाकुर की कमर पे तेल लगाने लगी.हाथ ससुर की कमर पे फिसलने लगे. पीछे से भी धोती में खड़ा हुआ ठाकुर का लंड उसे सॉफ दिख रहा था और उसके अपने घुटने जवाब दे रहे थे. टाँगो के बीच की नमी बढ़ती जा रही थी. उसने कमर पे तेल और लगाकर सख़्त हाथो से मालिश शुरू कर दी और ऐसी ही एक कोशिश में उसका हाथ कमर से फिसल गया और वो लड़खड़ा कर पिछे से शौर्या सिंग के साथ जा चिपकी. उसने दोनो हाथों से अपने ससुर के जिस्म को थाम लिया ताकि गिरे नही और शौर्या सिंग के साथ लिपट सी गयी. दोनो चूचियों ठाकुर की कमर पे जाकर दब गयी और रूपाली के मुँह से आह निकल गयी. वो एक पल के लिए वैसे ही ठाकुर को थामे खड़ी रही और फिर शर्माके अलग हो गयी.

पर इन कुच्छ पलों ने ही ठाकुर को काफ़ी कुच्छ समझा दिया. अचानक से बहू का हाथ फिसला और फिर जैसे कमाल हो गया. बहू की दोनो चुचियों उनकी कमर पे आके दब गयी और बहू उनसे लिपट गयी. वो जानते थे के ऐसा उसने गिरने से बचने के लिए किया है पर जब वो अगले कुच्छ पल अलग नही हुई तो शौर्या सिंग को अजीब लगा. कमर पे छातियाँ अभी भी दबी हुई थी और ठाकुर का खुद पे काबू करना मुश्किल हो रहा था. बहुत दिन बाद चुचियों का स्पर्श उनके जिस्म को मिला था. उनकी साँसें उखाड़ने लगी और पूरा ध्यान कमर पे दबी चुचियों पे चला गया. और फिर जो हुआ वो सुनके ठाकुर के दिमाग़ में केयी बातें सॉफ हो गयी. उन्हें थामे थामे बहू के मुँह से निकली आह की आवाज़ वो बखूबी जानते थे. ऐसी आह औरत के मुँह से तब ही निकलती है जब वो गरम होती है. तो आग दोनो तरफ बराबर थी. अगर उनका लंड खड़ा हो रहा था तो रूपाली की चूत में भी आग लग रही थी.
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Update 5


रूपाली अपने ससुर से अलग हुए और फिर कमर पे तेल लगाने लगी. फिर उसने अपने हाथों से ठाकुर को इशारा किया के वो अपनी दोनो बाँहे उपेर उठाए. ठाकुर ने आर्म्स उपेर उठाई और रूपाली जिस्म के दोनो तरफ तेल लगाने लगी. इस कोशिश में वो ठाकुर के काफ़ी करीब आ चुकी थी और उसकी चुचियाँ फिर ठाकुर की कमर पे दबने को तैय्यार थी. रूपाली से और रहा नही गया. उसकी अपनी वासना उसे पागल कर रही थी. उसने हाथ जिस्म ठाकुर के साइड से सरका कर उसकी छाती पे तेल लगाने लगी. ऐसा करने से उसे अपने ससुर के और करीब आना पड़ा और उसकी छातियाँ फिर ठाकुर की कमर से जा लगी.उसके जिस्म में जैसे गर्मी और ठंडक एक साथ उठ गयी. ठंडक मर्दाना जिस्म के इतना करीब होके और गर्मी उसकी टाँगो के बीच उसकी चूत में. वो ठाकुर के सीने पे तेल मलने लगी और पिछे हाथ हिलने से उसकी दोनो छातियाँ ठाकुर की कमर पे घिसने लगी.

शौर्या सिंग का अब खुद पे काबू रखना मुश्किल हो गया था. रूपाली अब उनकी कमर पे तेल लगा रही थी और पिछे से उसकी दोनो छातियाँ उनकी कमर पे दब रही थी. ये बात सॉफ थी के बहू अपनी चुचियों को उनकी कमर पे और ज़्यादा घिस रही थी, और उनके करीब होके चुचियाँ कमर पे दबा रही थी. उसके मुँह से निकलती आह सीधा उनके कानो में पड़ रही थी. ठाकुर ने अपना हाथ बहू के हाथ पे रखा और उसे सहलाने लगे. दूसरे हाथ से उन्होने अपनी धोती थोड़ी ढीली की और लंड को बाहर निकाला. रूपाली उनसे लगी खड़ी थी. हाथ छाती पे तेल लगा रहे थे, चुचियाँ कमर पे दब रही थी और उसका सिर उनके कंधे पे टेढ़ा रखा हुआ था. उन्हें रूपाली का हाथ धीरे से पकड़के नीचे किया और अपने लंड पे ले जाके टीका दिया.

रूपाली की वासना से हालत खराब थी. वो और ज़ोर से अपने ससुर के साथ चिपक गयी थी और छातियाँ ज़ोर ज़ोर से उनकी कमर पे रगड़ रही थी. वो जानती थी के अब तक शौर्या सिंग जान गये होंगे के वो भी गरम हो चुकी है पर इस बात की अब उसे कोई परवाह नही थी. वो उनकी छाती को अब मालिश के लिए नही सहला रही थी. अब इस सहलाने में सिर्फ़ और सिर्फ़ वासना थी. उसके मुँह से निकलती आह इस बात का सॉफ सबूत थी के वो चुदना चाहती थी. लंड लेना चाहती थी अपने अंदर. टाँगो खोल देना चाहती थी आज 10 साल बाद. उसने अपना सर ठाकुर के कंधे पे रख दिया और अपने ससुर के जिस्म से चिपक गयी. फिर धीरे से उसे एहसास हुआ के ठाकुर ने उसके हाथ को सहलाना शुरू कर दिया है. मतलब आग दोनो तरफ लग चुकी थी और दोनो को ही इस बात का अंदाज़ा था के आग पुर जोश पे है. ठाकुर के हाथ ने रूपाली के हाथ को नीचे सरकाना शुरू किया और इससे पहले के वो कुच्छ समझ पाती उसके हाथ में एक लंबा सख़्त डंडा सा कुच्छ आ गया.

ठाकुर ने जैसे ही अपनी लंड पे रूपाली का हाथ खींचा तो रूपाली ने हाथ फ़ौरन वापिस खींचना चाहा. पर ठाकुर की गिरफ़्त मज़बूत थी. उसने हाथ हटने ना दिया और अपने लंड पे रूपाली के हाथ से मुट्ठी सी बना दी. रूपाली ने फिर हाथ हटाने की कोशिश की पर हटा नही पाई. एक औरत का हाथ अपने लंड पे ठाकुर को अलग ही मज़ा दे रहा था. इस लंड का आखरी बार इस्तेमाल कब हुआ था ये ठाकुर को याद तक नही था. उसने धीरे धीरे रूपाली के हाथ को आगे पिछे करना शुरू कर दिया और लंड को उसके हाथ से सहलाने लगा. थोड़ी देर बाद उसने अपना हाथ हटा लिया पर रूपाली का हाथ अपने आप लंड पे आगे पिछे होता रहा. ठाकुर के मुँह से आह आह की आवाज़ ज़ोर से निकलने लगी. तेल लगा होने के कारण बड़ी आसानी से लंड रूपाली के हाथ में फिसल रहा था. गर्मी बढ़ती जा रही थी. इतने वक़्त से ठाकुर ने चुदाई नही की थी इसलिए अब खुद पर काबू रखना मुश्किल हो रहा था. वो जानते थे के ज़्यादा वक़्त नही टिक पाएँगे वो इस गरम जिस्म के सामने.

रूपाली इस हमले के लिए तैय्यार नही थी. उसने लंड बहुत कम अपने हाथ में पकड़ा था वो भी अपने पति के बार बार ज़िद करने पर. उसने हाथ हटाना चाहा पर हटा नही पाई. ठाकुर ने अभी भी उसका हाथ अपने हाथ में पकड़ रखा था और उसकी उंगलियाँ अपने लंड पे लपेटकर मुट्ठी सी बना दी थी. रूपाली ने फिर हाथ हटाने की कोशिश की पर फिर नाकाम रही. अब उसके ससुर ने हाथ आगे पिछे करना शुरू कर दिया था और पूरा लंड रूपाली के तेल लगे हाथ में आगे पिछे हो रहा था. ठाकुर ने थोड़ी देर बाद हाथ हटा लिया पर रूपाली ने अपना हाथ हिलाना जारी रखा. आज पहली बार वो अपनी मर्ज़ी से एक लंड को पकड़ रही थी और उसका मज़ा ले रही थी. ठाकुर के लंड की लंबाई का अंदाज़ा उसे सॉफ तौर पे हो रहा था. लग रहा था जैसे किसी लंबे मोटे डंडे पे उसका हाथ फिसल रहा हो. ठाकुर के मुँह से जैसे जैसे आह निकलती रूपाली के हाथ की रफ़्तार और तेज़ होती जाती . वो पिछे से अपने ससुर से चिपकी खड़ी थी और उसका लंड हिला रही थी. छातियाँ उसकी कमर पर रगर रही थी और नीचे से अपनी चूत ठाकुर की गांद पे दबा रही थी. धीरे धीरे ठाकुर की आह तेज़ होती चली गयी और रूपाली पागलों की तरह लंड हिलाने लगी अचानक उसके ससुर की जिस्म थर्रा उठा, एक लंबी आह निकली और एक गरम सा लिक्विड रूपाली के हाथ पे आ गिरा. ठाकुर के लंड ने माल छ्चोड़ दिया था. रूपाली ने लंड हिलाना चालू रखा और लंड से पिचकारी पे पिचकारी निकलती रही. कुच्छ रूपाली के हाथ पे गिरी, कुच्छ सामने बिस्तर पर और और ज़मीन पर. जब माल निकलना बंद हुआ तो ठाकुर की साँस भारी होनी लगी, उसका जिस्म रूपाली की गिरफ़्त में ढीला पड़ने लगा तो वो समझ गयी के काम ख़तम हो चुका है. वो ठाकुर के जिस्म से शरमाते हुए अलग हुए, तेल की कटोरी उठाई और कमरे से बाहर आ गयी.

बाहर आकर रूपाली सीधा अपने कमरे में पहुँची. आज बहुत सी चीज़ें पहली बार हुई थी. उसने पहली बार अपनी मर्ज़ी से लंड पकड़ा था, पहले बार किसी मर्दाने जिस्म से अपनी मर्ज़ी से सटी थी, पहली बार किसी मर्द के साथ गरम हुई थी और उसके और ससुर के बीच पुराना रिश्ता टूट चुका था. अब जो नया रिश्ता बना था वो वासना का था, जिस्म की भूख का था. वो ठाकुर के लंड को को तो हिलाके ठंडा कर आई थी पर खुद उसके जिस्म में जैसी आग लग गयी थी. चूत गीली हो गयी थी और लग रहा था जैसे उसमें से लावा बहके निकल रहा हो. उसके हाथ पे अभी भी ठाकुर के लंड से निकला पानी लगा हुआ था. वो अपने बिस्तर पे गिर पड़ी. टांगे खुद ही मूड गयी, सारी उपेर खींच गयी, पॅंटी सरक कर घुटनो तक आ गयी, हाथ चूत तक पहुँचा और फिर जैसे उसकी टाँगो के बीच एक जुंग का आगाज़ हो गया.

दरवाज़े खटखटाने की आवाज़ से रूपाली की आँख खुली तो देखा के सुबह का सूरज आसमान में काफ़ी उपेर जा चुका था. रात कब उसकी आँख लग गयी उसे पता तक ना चला. सुबह देर तक सोती रही. भूषण फिर जगाने आया था. उसे अपने उठ जाने का बताकर रूपाली बाथरूम में पहुँची. हालत अभी भी कल रात वाली ही थी. पॅंटी अभी तक घुटनो में ही फासी हुई थी और ठाकुर का माल अभी भी हाथ पे ही लगा हुआ सूख चुका था. उसने बाथरूम में पहुँचकर अपने कपड़े उतारे और नंगी खड़ी होकर फिर शीशे में देखने लगी. आज जो उसे नज़र आया वो उसने पहले कभी नही देखा था. अबसे पहले शीशे में उसे सिर्फ़ एक परिवारिक औरत नज़र आती थी जिसकी भगवान में बहुत श्रद्धा थी. पर आज उसे एक नयी औरत नज़र आई. वो औरत जो चीज़ों को अपने हाथ में लेना जानती थी. जो अपने जिस्म का का इस्तेमाल करना जानती थी. जो हर चीज़ पे काबू पाना चाहती थी. जो अब और प्यासी ना रहकर अपने जिस्म की आग मिटाना चाहती थी. और सबसे ज़्यादा, जो ये पता लगाना चाहती थी के उसके पति के साथ क्या हुआ था. कौन था जिसने एक सीधे सादे आदमी की हत्या की थी.

रूपाली ने पास पड़ी क्रीम उठाई और नीचे बाथ टब के किनारे पे बैठ गयी. उसकी चूत पे अभी भी घने बॉल थे. अब इस जगह के इस्तेमाल का वक़्त आ गया था तो इन बालों की ज़रूरत नही थी. उसने क्रीम अपने हाथ में ली और धीरे धीरे चूत पर और चूत के आस पास लगानी शुरू की. हाथ चूत पे धीरे धीरे उपेर नीचे होता रहा और रूपाली को एहसास हुआ के उसकी चूत में उसी के हाथ लगाने से फिर गर्मी बढ़ती जा रही है. वो हाथ को ज़ोर से हिलाने लगी और टांगे फेलते चली गयी. दूसरा हाथ अपने आप चुचियों पे पहुँचकर उन्हें हिलाने लगा. उसने एक अंगुली पे ज़रा ज़्यादा क्रीम लगाई और उसे धीरे धीरे चूत की गहराई तक पहुँचा दिया. दूसरी अंगुली भी जल्दी ही पहली के साथ अंदर तक उतरती चली गयी. अभी उसने मज़ा लेना शुरू ही किया था के नीचे से एक शोर की आवाज़ आई. लगा जैसे दो आदमियों में बहस हो रही है. एक आवाज़ तो उसके ससुर की थी पर दूसरी आवाज़ अंजानी लगी. उसने जल्दी से रेज़र उठाया और अपनी चूत से बॉल सॉफ करना शुरू किए.

नहा कर रूपाली नीचे पहुँची तो बहस अभी भी चालू थी. उसके ससुर एक अंजान आदमी से किसी बात पे लड़ रहे थे. दोनो आदमियों ने रूपाली को नीचे आते देखा तो खामोश हो गये.

"सोच लीजिए. मैं अब और इंतेज़ार नही कर सकता" वो अंजान शक्श ये कहकर वापिस दरवाज़े से निकल गया.मेरी सभी स्टोरी आप मेरे ब्लॉग हिन्दी सेक्सी स्टोरी ब्लॉग स्पॉट डॉट कॉम और सेक्सी कहानी ब्लॉग स्पॉट डॉट कॉम पर पढ़ सकते है

"इसकी हिम्मत दो देखो. कल तक हमारे जूते चाटने वाला आदमी आज हमारे दरवाज़े पे खड़ा होकर हमारे सामने आवाज़ उँची कर रहा है" ठाकुर ने रूपाली को देखते हुए कहा

रूपाली ने इस वक़्त घूँघट निकल रखा था क्यूंकी घर में भूष्ण भी था. इस वजह से वो कुच्छ ना बोली और ठाकुर पेर पटक कर अपने कमरे में दाखिल हो गये.

"कौन था ये आदमी" रूपाली ने किचन में आते ही भूषण से पुचछा पर भूषण ने कोई जवाब ना दिया और एक ग्लास और कुच्छ नमकीन लेकर ठाकुर के कमरे की तरफ बढ़ गया.

शाम ढाल चुकी थी. ठाकुर अब तक अपने कमरे से बाहर नही आए थे. रूपाली अच्छी तरह से जानती थी के कमरे में घुसे रहने की दो वजह थी. एक तो ये के कल रात जो हुआ उसके बाद ठाकुर उससे नज़रें मिलने से कतरा रहे हैं और दूसरा गुस्से में डूबे वो फिर शराब की बॉटल खोले बैठे होंगे. ये बात तभी सॉफ हो गये थी जब भूषण ग्लास और नमकीन लेकर ठाकुर के कमरे की तरफ गया था.

"अब वक़्त आ गया है कुच्छ बातों पे से परदा उठ जाए" सोचते हुए रूपाली ठाकुर के कमरे की तरफ बढ़ी. भूषण अपना काम निपटाके जा चुका था. हवेली में अब सिर्फ़ रूपाली और ठाकुर बाकी रह गये थे.

रूपाली अपने ससुर के कमरे में पहुँची तो देखा के वो शराब के नशे में धुत बिस्तर पे पसरे पड़े थे. उसने अंदर आकर दरवाज़ा बंद कर लिया.

वो अपने ससुर के बिस्तर के पास पहुँची और गौर से देखने लगी. ज़ाहिर था के शराब का नशा अब हद के पार जा चुका था और उन्हें कुच्छ भी खबर नही थी के आस पास क्या हो रहा है.वो दिल मसोस कर रह गयी. इस हालत में वो उसके सवालो के जवाब देना तो दूर की बात है अपना नाम तक बता दें तो बहुत बड़ी बात होगी.उसने शराब की बॉटल और ग्लास उठाकर एक तरफ रखा और ससुर को ढंग से बिस्तर पे लिटाया. कमरे में इधर उधर पड़ी चीज़ें उठाकर सलीके से जगह पर रखी और बाहर जाने के लिए मूडी पर तभी शौर्या सिंग के मुँह से एक आवाज़ सुनकर वापिस पलटी. कमरे में काफ़ी ठंडक और ठाकुर सर्दी से सिकुड़कर लेटे हुए थे. रूपाली पलटकर वापिस आई और चादर उठाकर अपने ससुर के उपर डालने लगी के तभी उसकी नाज़ुर उनकी धोती में बने हुए उभार पे पड़ी.

रूपाली का दिल एक बार फिर ज़ोर से धड़कने लगा. कल शौर्या सिंग का लंड हिलाते हुए वो उनके पिछे खड़ी थी इसलिए देख नही पाई थी. काफ़ी लंबा और मोटा था इस बात का अंदाज़ा तो उसे हो गया था पर नज़र नही पड़ी थी. उस वक़्त बैठा हुआ लंड भी किसी लंबे मोटे साँप की तरह लग रहा था. रूपाली के घुटने काँप उठे और उसे समझ नही आया के वो क्या करे. एक तरफ तो उसका दिल चूड़ने के लिए कर रहा था पर ठाकुर जिस हालत में सोए पड़े थे उसमें ऐसा कुच्छ भी हो पाना मुमकिन नही था. ठाकुर से चुदने की बात सोचकर ही रूपाली की टाँगो के बीच फिर नदी बहने लगी. वो सोचने लगी के अगर ठाकुर उसे चोद्ते तो कैसा होता पर अगर माणा कर देते तो क्या? आज सुबह जब वो उसके सामने आए थे तो उससे नज़र नही मिला पा रहे थे. ज़ाहिर था के वो कल रात मालिश करते हुए जो हुआ वो सोचकर झिझक रहे थे. कैसे भी हो आख़िर वो थे तो उसके ससुर ही और वो उनके मरे हुए बेटे की बीवी. उनकी बेटी के समान. रूपाली वहीं बिस्तर पे बैठ गयी और सोचने लगी के अगर ज़रूरत पड़ी तो ठाकुर को खुश करने के लिए उसे क्या करना चाहिए. वो बिस्तर पे बिल्कुल अनाड़ी थी. पति के साथ वो कभी उसका साथ नही देती थी. बस वो जो कहता था वो सुनती रहती थी, करती भी नही थी.

अचानक उसके दिमाग़ में अपने पति का ख्याल आ गया. वो बिस्तर पे काफ़ी कामुक था. रोज़ नयी नयी फरमाइश करता रहता था. ज़ाहिर था जो चीज़ें उसे पसंद थी वही बाकी मर्दों को भी पसंद होगी.उसने वो सब बातें एक एक करके याद करनी शुरू की. उसका पति चाहता था के वो लंड हाथ से हिलाए, उसे मुँह में लेके चूसे,चुद्ते वक़्त अलग अलग पोज़िशन में आए और भी ना जाने क्या क्या. रूपाली ने मॅन में सोच लिया के वो वही सब अपने ससुर के साथ करेगी जिसके लिए उसने अपने पति को हमेशा मना किया और उसमें से एक चीज़ थी लंड चूसना जो उसका पति उसे हमेशा बोलता था पर वो करती नही थी.

ठाकुर इस वक़्त गहरी नींद में थे. रूपाली ने एक नज़र उनके चेहरे पे डाली और फिर धोती में बंद उनके लंड पर. अगर उसने बाद में ये लंड चूसना ही है तो अभी थोड़ी प्रॅक्टीस क्यूँ ना कर ली जाए. ससुर जी अभी सो रहे हैं तो कुच्छ अगर ग़लत भी हुआ तो कुच्छ नही होगा. कम से कम उसे पता तो चल जाएगा के आख़िर करना क्या है. इन सबसे ज़्यादा जो ख्वाहिश उसके दिल में उठ रही थी वो थी लंड को देखने की.

रूपाली थोडा आयेज को झुकी और काँपते हाथो से अपने ससुर को हिलाया.

"पिताजी. सो गये क्या?" उसने इस बात की तसल्ली करनी चाही के ठाकुर सचमुच गहरी नींद में है.जब दो तीन बार हिलने पर भी ठाकुर की आँख नही खुली तो रूपाली समझ गयी के कोई ख़तरा नही. फिर भी एक आखरी तसल्ली करने के लिए उसके पास रखा एक स्टील को फ्लवरपॉट उठाया और ज़ोर से ज़मीन पे फेका.

रात की खामोश पड़ी हवेली फ्लवरपॉट गिरने की आवाज़ से गूँज उठी. खुद रूपाली के कान बजने लगे पर ठाकुर की नींद नही खुली.

अपनी तसल्ली होने पर रूपाली मुस्कुराइ और फिर ठाकुर के बिस्तर पे आके बैठ गयी. काँपते हुए हाथों के उसने फिर ठाकुर की धोती की तरफ बढ़ाया. उसका गला सूख रहा था और पूरा जिस्म सूखे पत्ते के जैसे हिल रहा था. एक तो जिस्मानी रिश्ता और वो भी अपने ही ससुर के साथ. पाप और वासना के इस मेल ने उसके रोमांच को और बढ़ा दिया था.

धीरे से रूपाली ने अपना हाथ ठाकुर के सोए हुए लंड पे रखा और सिहर उठी.लगा जैसे लोहे की कोई गरम रोड उसके हाथ में आ गयी हो. उसकी दोनो टांगे आपस में और सिकुड गयी और छ्होट की दीवारें आपस में घिसने लगी. उसने हाथ को धीरे धीरे लंड पे आगे पिछे किया और लंड की पूरी लंबाई का अंदाज़ा लिया.

"बैठा हुआ भी कितना लंबा है" रूपाली ने धीरे से सोचा

उसने धोती के उपेर से ही लंड को धीरे धीरे हिलाना और दबाना शुरू किया. आनंद की वजह से उसकी दिल की धड़कन और तेज़ हो गयी थी. आँखें मदहोश सी हो रही थी. दूसरा हाथ अपने आप उसकी चूत पे पहुँच गया और धीरे धीरे सारी के उपेर से ही उपेर नीचे होने लगा.

थोड़ी देर ऐसे ही हिलाकर रूपाली ने ठाकुर की धोती को एक तरफ सरकाना शुरू किया ताकि लंड को बाहर निकाल सके. ठाकुर आराम से लेटे हुए थे इसलिए थोड़ी परेशानी हो रही थी. रूपाली ने अपना हाथ धीरे से धोती के अंदर घुसकर लंड की तरफ बढ़ाया और उसके मुँह से आह निकल पड़ी.

ठाकुर ने धोती के नीचे कुच्छ नही पहेन रखा था. रूपाली के हाथ अंदर डालते ही उसके हाथ में ठाकुर का लंड आ गया. रूपाली के होश उड़ गये.पहली बार उसने बिना किसी के कहे अपनी मर्ज़ी से एक लंड को अपने हाथ में लिया था. मज़ा जो आ रहा था उसे शब्द बयान नही कर सकते. रूपाली ने पूरे लंड पे हाथ फिराया और उसे देखने के लिए पागल सी होने लगी. उसने अपने हाथ की गिरफ़्त लंड पे मज़बूत की और दूसरा हाथ चूत से हटाकर उससे धोती का एक सिरा पकड़ा. हाथ को एक ज़ोर का झटका दिया तो धोती खुलकर एक तरफ हो गया और रूपाली के आँखो के सामने ठाकुर का लंबा मोटा काला लंड आ गया.

रूपाली की आँखें और मुँह दोनो ही खुले रह गये. लंड कैसा होता है आज उसने ये पहली बार गौर से देखा था. कुच्छ देर तक वो लंड को ऐसे ही पकड़े देखती रही. कुच्छ ना किया.फिर धीरे से अपना हाथ पुर लंड की लंबाई पे फिराया. लंड अपने आप थोड़ा हिला और ठाकुर के जिस्म में थोड़ी हरकत हुई. रूपाली ने फ़ौरन अपना हाथ रोक लिया और ठाकुर को देखने लगी पर लंड वैसे ही पकड़े रखा. फिर उसे एहसास हुआ के उसके लंड हिलने से ठाकुर को नींद में भी मज़ा आया था और जिस्म जोश की वजह से हिला था. ये सोचकर रूपाली ने लंड फिर धीरे से सहलाया और लंड में फिर करकट हुई. तभी उसे कल रात की बात याद आई जब ठाकुर ने अपना लंड उसके हाथ में देकर मुट्ठी बना दी थी. यही सोचते हुए रूपाली ने फिर लंड को वैसे ही हाथ में पकड़ लिया और उसी तरह से आगे पिछे करने लगी.

उसने हाथ ने फिर अपना जादू दिखाया. नशे में सोए पड़े ठाकुर का लंड नींद में भी खड़ा होने लगा. देखते देखते लंड अपनी पूरी औकात पे आ गया और रूपाली हैरत से देखने लगी. अगर वो दोनो हाथों से पकड़ ले तो भी पूरा लंड नही पकड़ पाएगी. मुट्ठी मुश्किल से लंड को पूरा घेर पा रही थी. रूपाली वैसे ही लंड को हिला रही थी के तभी उसके अपने पति के वो शब्द याद आए जो वो हर रात उसे कहता था

"जान. लंड मुँह में लेके चूसो ना एक बार" ये उसके पति के हमेशा ख्वाहिश होती थी जिसे रूपाली ने कभी पूरा नही किया था. लंड मुँह में लेने का सोचकर ही उसे उल्टी सी आती थी और वो हमेशा पुरुषोत्तम को मना कर देती थी. ठाकुर के लंड को हिलाते हिलाते रूपाली के दिमाग़ में ख्याल आया के क्यूँ ना आज ये भी करके देखा जाए. उसका पति हमेशा कहता था इसका मतलब मर्द को लंड चुसवाने में मज़ा आता है. आज अगर वो कर सकी तो अपने ससुर को भी इसी तरह अपने वश में रखेगी. ना कर सकी तो कुच्छ और सोचेगी. यही सोचते हुए रूपाली ने अपने होंठ पर जीभ फिराई और मुँह को खोला.

लंड के उपेर के हिस्से को उसने अपनी सारी से सॉफ किया और मुँह को ऐसे ही खोलके लंड मुँह में लेने के लिए झुकी ही थी के उसकी साँस उपेर की उपेर और नीचे की नीचे रह गयी. सामने बड़े शीशे में कमरे का दरवाज़ा दिखाई दे रहा था और दिख रहा था दरवाज़े पे खड़ा भूषण जो ना जाने कबसे खड़ा हुआ सब देख रहा था.

रूपाली घबराकर फ़ौरन पलटी. लंड उसके हाथ से छूट गया और वो बिस्तर से उठकर खड़ी हो गयी. नज़रें दरवाज़े पे खड़े भूषण से मिली. उसके यूँ अचानक पलट जाने से बुद्धा भूषण भी घबरा गया और फ़ौरन पलटकर चला गया.मेरी सभी स्टोरी आप मेरे ब्लॉग हिन्दी सेक्सी स्टोरी ब्लॉग स्पॉट डॉट कॉम और सेक्सी कहानी ब्लॉग स्पॉट डॉट कॉम पर पढ़ सकते है

रूपाली की समझ में नही आया के क्या करे. हवेली में क्या हो रहा था अगर ये बात बाहर निकल गयी तो रही सही इज़्ज़त भी चली जाएगी. वो कहीं मुँह दिखाने लायक नही रहेगी. अगर उसके देवरो और ननद को ये बात पता चली तो वो क्या करेंगे? तेज तो शायद उसे काटकर फेक देगा. और उसका अपना खानदान? उसके बाप भाई? वो तो कहीं के नही रहेंगे. रूपाली की पूरी दुनिया उसकी आँखों के सामने घूमने लगी. समझ नही आया के क्या करे. उसने पलटकर अपने ससुर की तरफ देखा. वो अभी भी सोए पड़े थे और लंड अब भी वैसा ही खड़ा था पर जिस लंड को देखकर उसकी चूत में आग लग रही थी अब उसे देखकर कुच्छ महसूस नही हुआ. वो धीमे कदमो से ठाकुर के कमरे से बाहर निकली और बाहर बड़े कमरे में आकर सोफे पे बैठ गयी.

भूषण ने सब देख लिया था. जाने क्या सोच रहा होगा. अगर उसने किसी को कहा तो? अगर उसने ठाकुर को ही बता दिया तो? वो रात को यहाँ क्या करने आया था? शायद उसके फ्लवरपॉट फेकने की आवाज़ सुनके आया होगा. अब क्या करूँ? रूपाली का दिमाग़ जैसे फटने लगा और उसे अपना पूरा प्लान एक पल में डूबता सा लगने लगा. भूषण इस हवेली के बारे में सब कुच्छ जानता है और इज़्ज़त भी करता था. अब मैं उसकी नज़रों में एक रंडी से ज़्यादा कुच्छ नही बची.

तभी रूपाली के दिमाग़ में एक ख्याल आया. "भूषण इस हवेली के बारे में सब कुच्छ जानता था."

यही बात रूपाली अपने दिमाग़ में काई बार दोहराती रही. उसे कुच्छ सवालों के जवाब चाहिए थे और भूषण इस हवेली के बारे में सब कुच्छ जानता था. रूपाली ने इससे आगे और कुच्छ ना सोचा. वो उठ खड़ी हुई और तेज़ कदमो से भूषण के कमरे की तरफ बढ़ी.

भूषण हवेली के बाहर बड़े दरवाज़े के पास बने एक छ्होटे से कमरे में रहता था. वो हवेली से बाहर निकली तो देखा के भूषण हवेली के लॉन में ही तेज़ कदमो से इधर उधर घूम रहा था. देखने में बेचेन से लग रहा था. वो एक छ्होटी सी कद काठी का आदमी था. मुश्किल से साढ़े पाँच फुट और बहुत ही दुबला पतला. 70 के आसपास था इसलिए कमज़ोर जिस्म में एक मुर्दे जैसा लगता था.वो परेशान सा यहाँ वहाँ घूम रहा था के सामने आती रूपाली को देखकर अपने कमरे में जाने के लिए मुड़ा.

"भूषण" रूपाली की मज़बूत आवाज़ सुनकर वो ठिठक गया.

"माफ़ करना बहूरानी. वो हवेली में ज़ोर से कुच्छ गिरने की आवाज़ आई तो मैं तो बस देखने गया था. पर मैं तो......" वो बोल ही रहा था के रूपाली ठीक उसके सामने आ खड़ी हुई.

"ये बात अगर मेरे और तुम्हारे अलावा किसी और को पता चली को गर्दन काट कर हवेली के दरवाज़े पे टंगा दूँगी" रूपाली की घायल शेरनी सी आवाज़ सुनकर भूषण सहम गया. रूपाली के लंबे छोड़े कद के आगे वो 70 साल का कमज़ोर छ्होटा सा बुद्धा ऐसा लग रहा था जैसे किसी शेरनी के सामने हिरण का बच्चा.

"ज़ुबान खुले तो कटवा दीजिएगा बहूरानी. आप भरोसा रखिए ...... " भूषण फिर दोबारा अपनी बात पूरी ना कर सका. वजह थी उसके पाजामे पे रखा रूपाली का हाथ.

रूपाली ने आगे बढ़कर भूषण के लंड को थाम लिया. भूषण घबराकर फ़ौरन पिछे हटा पर रूपाली साथ साथ आगे बढ़ी. वो पिछे एक पेड़ के साथ जा लगा और रूपाली आगे बढ़कर उससे सॅटकर खड़ी हो गयी.

उसकी नज़र ठीक भूषण की नज़रों से जा मिली. भूषण का लंड इतना छ्होटा था के रूपाली को अपने हाथ से पाजामे में लंड ढूँढना पड़ा. एक तो छ्होटा सा आदमी और बुढहा. ये तो होना ही था सोचते हुए रूपाली ने हाथ उपेर किया और उसके पाजामे का नाडा खोल दिया.

"ये आप क्या कर रही हैं बहूरानी?" भूषण बोल ही रहा था के रूपाली ने उसके मुँह पे अंगुली रखकर खामोश होने का इशारा किया और उसके सामने अपने घुटनो पे बैठ गयी.

भूषण की कुच्छ समझ नही आ रहा था. सब कुच्छ इतनी जल्दी हो रहा था के उसका दिमाग़ झल्ला रहा था. उसने सामने बैठी रूपाली पे एक नज़र में डाली और रूपाली ने एक झटके में उसका पाजामा नीचे खींच दिया.भूषण ने नीचे झुक कर पाजामा पकड़ने की कोशिश की पर नाकाम रहा. रूपाली ने दूसरा हाथ उसकी छाती पे रखा और उसे वापिस सीधा खड़ा कर दिया.

भूषण का जिस्म काँप रहा था. रूपाली ने उसका छ्होटा सा लंड अपने हाथ में लिया और धीरे धीरे हिलाने लगी और मुँह उठाकर नज़र भूषण से मिलाई.

"मैं तुमसे कुच्छ सवाल करूँगी भूषण. और मुझे सीधे सीधे जवाब चाहिए. कुच्छ भी छुपाया तो काट कर इसी लोन में गाड़ दूँगी" रूपाली की आवाज़ में जाने क्या था के उसे सुनकर ही भूषण की धड़कन रुकने लगी. पूजा पाठ में हमेशा डूबी रहने वाली ये औरत आज उसे कोई जल्लाद लग रही थी. वो सामने बैठी उसका लंड ऐसे हिला रही थी जैसे अपने सवालों के जवाब के लिए उसे रिश्वत दे रही हो.

"जी बहूरानी" भूषण ने धीमी आवाज़ में कहाँ. रूपाली अब भी उसका लंड हिला रही थी पर कुच्छ असर नही हो रहा था. लंड वैसे ही बैठा हुआ था बल्कि और भी सिकुड रहा था.

"आज जो आदमी आया था वो कौन था?" रूपाली ने पहला सवाल पुचछा. उसे महसूस हुआ के अपने ही नौकर का छ्होटा सा लंड हिलाते हुए भी उसकी चूत फिर गीली होने लगी थी. उसका दूसरा हाथ खुद ही फिर उसकी चूत पे पहुँच गया. रूपाली ने लंड गौर से देखा और अगले ही पल आगे बढ़ी और मुँह खोलकर लंड मुँह में ले लिया.
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#10
Update 6

भूषण का छ्होटा सा लंड रूपाली के मुँह पे पूरा समा गया. उसने ज़िंदगी में पहली बार कोई लंड अपने मुँह में लिया था, वो भी घर के बूढ़े नौकर का. मुँह में एक अजीब सा स्वाद भर गया. नाक में पसीने की बदबू चढ़ गयी. एक पल को रूपाली का दिल किया के मूह से निकाल दे पर उसने ऐसा किया नही और अपना मुँह आगे पिछे करने लगी. उसने महसूस किया के भूषण का लंड अब तक बैठा हुआ था. ज़रा भी खड़ा नही हुआ था. पर भूषण के जिस्म से उठ रही हरकत को वो सॉफ तौर पर महसूस कर सकती थी. जैसे ही उसने उसका लंड अपने मुँह में लिया था वो काँप उठा था. पता नही मज़े की वजह से या किसी और कारण पर उसका जिस्म थर्रा गया था. और जब रूपाली ने लंड मुँह में आगे पिछे करना शुरू किया तो भूषण के दोनो हाथ पिछे की और हो गये और उसने अपने पिछे पेड़ को पकड़ लिया था. रूपाली के लिए बड़ा मुश्किल हो रहा था उसके लंड को अपने मुँह में रख पाना. एक तो बैठा हुआ लंड, वो भी छ्होटा सा और उपेर से रूपाली का पहली बार. पर वो फिर भी लगी रही. उसने लंड एक पल के लिए मुँह से निकाला और अपना सवाल दोहराया.

"वो आदमी कौन था भूषण काका"

भूषण ने एक नज़र उसके चेहरे पे डाली. उसके मुँह से बोल नही फूट रहे पर जैसे तैसे बोला.

"ठाकुर साहब का भतीजा. उनके एकलौते भाई का एकलौता बेटा. ठाकुर साहब के अपने परिवार के सिवा और उनके खानदान में बस एक यही है" भूषण ने जवाब दिया.

रूपाली ने लंड मुँह से निकाला " मुझे नही पता था के ससुर जी का कोई भाई भी है" बोलकर उसने लंड फिर मुँह में ले लिया

"है नही था. बरसो पहले वो और उनकी पत्नी एक कार दुर्घटना में मर गये थे. ठाकुर साहब ने ही उसे पाल पोस्के बड़ा किया था" भूषण बोला

"फिर?" रूपाली ने लंड मुँह में लिए लिए ही कहा.

"फिर वो ज़मीन की देखबाल और घर के बिज़्नेस में हाथ बटाने लगा. ज़्यादातर समय पुरुषोत्तम के साथ ही रहता था और फिर पुरुषोत्तम की मौत के बाद सारा काम वो खुद ही देखने लगा. ठाकुर साहब और आपके देवर तेज तो बस पुरुषोत्तम के हत्यारे को ढूँढने में ही रह गये. काम काज से उनका ध्यान ही हट गया"

"ह्म्‍म्म्म" रूपाली लंड चूस्ते चूस्ते बोली

"इसका नाम जावर्धन सिंग है. जाई ही घर के सारे बिज़्नेस संभलता रहा और इसी में उसने कब धीरे धीरे सब कुच्छ अपने काबू में कर लिया इसका पता ही नही चला. धीरे धीरे ठाकुर साहब की सब ज़मीन जयदाद उसने अपने नाम पे कर ली और किसी को इस बात की भनक तक नही पड़ी. जब पता चला तब तक देर हो चुकी थी."

रूपाली के लिए अब लंड चूसना मुश्किल हो रहा था. उसे बड़ी मेहनत करनी पड़ रही थी लंड को मुँह में रखने के लिए क्यूंकी भूषण का लंड अब भी बैठा हुआ था जिस वजह से उसका रूपाली का मुँह दुखने लगा था. और फिर वो लंड चूस भी तो पहली बार रही थी. लंड खड़ा नही था पर रूपाली जानती थी के फिर भी भूषण को मज़ा ज़रूर आ रहा है. जाने कब आखरी बार किसी औरत के करीब गया होगा ये, सोचते हुए रूपाली उठकर खड़ी हो गयी. अब वो भूषण के बिल्कुल सामने खड़ी थी. भूषण ने उसे सवालिया नज़रों से देखा जैसे कहना चाह रहा हो के लंड चूसना बंद क्यूँ कर दिया.

"फिर क्या हुआ?" रूपाली ने कहा और धीरे से भूषण के और नज़दीक आ गयी. उसने उसका हाथ अपने हाथ में लिए और ठीक सारी के उपेर से अपनी चूत पे रख दिया. भूषण और रूपाली दोनो के जिस्म काँप उठे. रूपाली ने अपने हाथ को थोड़ा सा सख़्त किया और ज़ोर लगाकर भूषण का हाथ अपनी टाँगो के बीच तक दबा दिया. अब उसकी चूत भूषण की मुट्ठी में थी.

"बस अब एक ये हवेली ही है जो अभी भी ठाकुर साहब के पास है और कुच्छ ज़मीन जो कामिनी के पास है. वरना और कुच्छ भी नही" कहते हुए भूष्ण ने धीरे से उसकी चूत को टटोलना शुरू किया. रूपाली के मुँह से आह निकल गयी और वो भूषण से सटकार खड़ी हो गयी. उसकी दोनो छातियाँ भूषण के जिस्म से सिर्फ़ 1 इंच की दूरी पे थी.

"अब वो ये हवेली खरीदना चाहता है. कह रहा था के ठाकुर साहब ये हवेली छ्चोड़कर कहीं और चले जाएँ और वो मुँह माँगी रकम देने को तैय्यार है" भूषण ये कहते हुए सारी के उपेर से रूपाली की टाँगो में ऐसे हाथ चला रहा था जैसे याद करने की कोशिश कर रहा हो के चूत कैसी होती है.रूपाली के टांगे खुद ही खुलती जा रही थी ताकि भूषण आराम से जो चाहे कर सके.

"ठाकुर साहब बेचने को तैय्यार नही हैं. उसी बात पे झगड़ा हो रहा था" भूषण ने कहा और अपने हाथ को रूपाली की चूत पे उपेर से नीचे तक सहलाया तो रूपाली जैसे मस्ती में पागल होने लगी. जाने कितने अरसे बाद उसके अपने हाथ के सिवा किसी और का हाथ उसकी चूत की मालिश कर रहा था. वो भूषण से तकरीबन सटी खड़ी थी. जब वासना का ज़ोर जिस्म में और बढ़ गया तो वो अपने हाथ नीचे ले गयी और धीरे धीरे अपनी सारी को उपेर सरकाना शुरू किया.

"क्या तेज को इस बात का पता है?" रूपाली ने भूषण से पुछा. उसकी सारी खींचकर उसकी जाँघो के उपेर आ चुकी थी.

"तेज को अय्याशि से फ़ुर्सत ही कहाँ है के उसे ये पता होगा"भूषण ने रूपाली की और देखते हुए कहा. दोनो के जिस्म गरम हो चुके थे पर बात बराबर कर रहे थे.भूषण ने रूपाली की टाँगो को अपने हाथ से थोड़ा और खोलना चाहा तो उसका हाथ पे रूपाली की नंगी टाँग महसूस हुई. उसे पता ही ना चला था के कब रूपाली ने अपनी सारी उपेर खींच ली थी.

रूपाली भूषण के इतने करीब खड़ी थी के वो नीचे देख नही सकता था पर हां वो नीचे से सारी उपेर उठाके नंगी हो चुकी है इस बात का एहसास उसे हो गया था. धीरे धीरे भूषण का हाथ रूपाली की नंगी जाँघो पे सरकाने लगा. रूपाली को जैसे रात के अंधेरे में भी सूरज दिखने लगा था. उसने भूषण के हाथ को पकड़कर अपनी टाँगो के बीच खींचा और ठीक अपनी पॅंटी के उपेर से अपनी चूत पे रख दिया. वो जानती थी के भूषण भले एक 70 साल का बुद्धा नौकर ही सही पर मर्द तो है और वो भी गरम हो चुका है इस बात का अंदाज़ा उसे हो गया था. अगले ही पल रूपाली की सोच सही निकली. भूषण ने उसकी पॅंटी को एक तरफ सरकया और हाथ सीधा उसकी नंगी चूत पे रख दिया.

रूपाली की साँस रुक गयी. उसे लगा जैसे वो अभी मरने वाली है. इतना मज़ा उसे ज़िंदगी में कभी नही आया था. भूषण उसकी नंगी चूत पे हाथ ऐसे रगड़ रहा था जैसे चिंगारी उठाने की कोशिश कर रहा हो. रूपाली अब भी उसे सटके खड़ी थी इसलिए वो देख अब भी कुच्छ नही सकता था जिसकी कमी वो अपने हाथ से पूरी कर रहा था. जैसे अपने हाथ से उसकी चूत देखना चाह रहा हो, अंदाज़ा लगाना चाह रहा हो. रूपाली ने अपनी बंद आँखें खोली और सीधे भूषण को देखा. वो उसकी साँस के साथ उठती और गिरती चुचियों को देख रहा था. रूपाली जानती थी के वो नौकर है और आगे बढ़ने की हिम्मत नही कर पा रहा है. उसने भूषण का दूसरा हाथ पकड़ा और अपनी एक छाती पे रखके दबा दिया. इस के साथ ही जैसे आसमान फॅट पड़ा. हाथ छाति पे रखते ही भूषण ने अपनी दो उंगलियाँ उसकी चूत में घुसा दी और छाति को ऐसे कासके पकड़ लिया जैसे दबाके कुच्छ निकालने की कोशिश कर रहा हो. रूपाली का पूरा बदन काँप उठा. उसकी साँस रुक गयी. दिमाग़ में बम फॅट पड़े और चूत से नदी सी बह निकली. उसने एक हाथ से कस्के भूषण का लंड पकड़ लिया और दूसरे हाथ से भूषण के चूत पे रखे हाथ को दबा दिया. और इसके साथ ही उसके घुटने कमज़ोर पड़ गये और वो समझ गयी के वो झाड़ चुकी है.

रूपाली ने अपनी सारी को नीचे गिराया और भूषण से दूर हटके खड़ी हो गयी. उसने अपना मुँह दूसरी तरफ कर लिया और अपनी साँस पे काबू करने लगी. उसने देखा भी नही के भूषण क्या कर रहा है. जब पलटी तो वो अपने कमरे की तरफ जा रहा था.

"भूषण काका." उसकी आवाज़ सुनकर भूषण पलटा

"मेरे पति को किसने मारा? क्या जाई ने?" भूषण ने अपने दोनो कंधे झटकाए जैसे कहना चाह रहा हो के पता नही और अपने कमरे की तरफ बढ़ गया.

सुबह रूपाली देर तक सोती रही. आज भूषण ने भी उसे आकर नही जगाया. शायद कल रात की बात पे हिचकिचा रहा है.सोचते हुए रूपाली उठी और बाथरूम की तरफ बढ़ गयी.

नाहकार जब वो नीचे उतरी तो ठाकुर शौर्या सिंग फिर कहीं बाहर गये हुए थे. वो किचन में पहुँची तो भूषण दोपहर का खाना बनाने की तैय्यरी कर रहा था.

"आपने आज मुझे जगाया नही?" उसने भूषण से पुचछा पर भूषण ने जवाब ना दिया. जब रूपाली ने देखा के भूषण उसकी तरफ नज़र नही उठा रहा है तो वो बाहर आकर सोफे पे बैठ गयी.

थोड़ी देर बाद भूषण किचन से बाहर आया.

"बहूरानी आपसे एक बात कहनी थी."उसने रूपाली की और देखते हुए कहा.

"मैं जानती हूँ आप क्या कहना चाह रहे हैं काका. कल रात........" रूपाली बोलना ही चाह रही थी के भूषण ने उसकी बात को काट दिया

"मैं समझ सकता हूँ. आप जवान हैं और 10 साल से इस हवेली में क़ैद हैं. मुझसे आपसे कोई शिकायत नही बहूरानी. मैं तो सिर्फ़ इतना कहना चाह रहा था के अगर किसी को इस बात की भनक भी पड़ गयी तो...."भूषण ने बात अधूरी छ्चोड़ दी.

"किसी को कुच्छ पता नही चलेगा काका. और वैसे भी इस हवेली में अब आता जाता कौन है" रूपाली ने जैसे मज़ाक सा बनाते हुए हासकर कहा.

भूषण की समझ में नही आया के वो क्या कहे. वो थोड़ी देर ऐसे ही खड़ा रहा और फिर वापिस किचन में जाने के लिए मुड़ा.

"भूषण काका" रूपाली ने कहा. भूसान फिर पलटा.

"आपने आखरी बार एक किसी औरत को नंगी कब देखा था" रूपाली ने सीधा उसकी आँखो में देखते हुए पुचछा.

भूषण हड़बड़ा गया. इस सीधे हमले के लिए वो तैय्यार नही था. इस तरह का सवाल और वो भी हवेली की मालकिन से. उसके मुँह से बोल ना फूटा.

"बताइए काका. आखरी बार किसी औरत के साथ कब थे आप. कल रात से पहले" रूपाली ने सवाल फिर दोहराया.

"मेरी बीवी के गुज़रने से पहले." भूषण ने धीमी आवाज़ में कहा" कोई 25 साल पहले"

"25 साल?" रूपाली ने हैरत से कहा"आपका कभी दिल नही किया?"

भूषण कुच्छ ना बोला तो उसने सवाल फिर दोहराया.

"दिल करता भी तो क्या करता बहूरानी? कहाँ जाता?" भूषण ने अपनी नज़र नीचे झुका रखी थी. जैसे शरम से गढ़ा जा रहा हो.

"अब दिल करता है?" रूपाली ने फिर सीधा सवाल दागा.

भूषण कुच्छ ना बोला. रूपाली ने सवाल फिर पुचछा पर भूषण से जवाब देते ना बना.

रूपाली उठकर फिर भूषण के करीब आ गयी. उसने भूषना का हाथ पकड़ा और उसे अपने साथ लाकर बिठाया.

"मुझे आपकी मदद चाहिए काका" भूषण अब उसकी तरफ ही देख रहा था.

"मुझे अपनी पति के हत्यारे का पता लगाना है. मैं आपकी मदद चाहती हूँ. बदले में आप जो कहें मैं करने को तैय्यार हूँ" रूपाली जैसे एक सौदा कर रही थी.

"पर कैसे?"भूषण की कुच्छ समझ नही आया.

"वो आप मुझपे छ्चोड़ दीजिए. बस आपको मेरे साथ रहना होगा. जो मैं कहूँ वो करना होगा."

भूषण की अब भी कुच्छ समझ में नही आ रहा था.

"ज़्यादा सोचिए मत काका. बस आप मेरे कहे अनुसार चलते रहिए. मेरी खातिर. मैं आपके हाथ जोड़ती हूँ"रूपाली की आँख में पानी भर आया"मैं अब और इस हवेली में एक मूर्ति बनकर नही रह सकती"

भूषण ने फ़ौरन उसके सामने हाथ जोड़ लिए

"आप जैसा कहें मैं वैसा ही करूँगा मालकिन. आप रोइए मत. आपको इस हालत में देखकर मुझे भी बुरा लगता है. आपको जो ठीक लगे मुझे बता दीजिएगा और मुझसे जो बन पड़ेगा मैं करूँगा."

रूपाली धीरे से मुस्कुराइ. दोनो थोड़ी देर ऐसे ही खामोश बैठे रहे.

"मैं खाना बना लेता हूँ" कहते हुए भूषण उठा और किचन की तरफ बढ़ चला.

"पिताजी कहाँ हैं?"रूपाली ने पुचछा

"वो तो सुबह से ही बाहर गये हुए हैं."भूषण ने कहा और फिर कुच्छ सोचकर फिर रूपाली से पुचछा

"कल रात ठाकुर साहब के कमरे में आप और ठाकुर साहब दोनो....."भूषण हिचकिचा कर बोला

"नही वो नशे में सो रहे थे. उन्हें कुच्छ पता नही था."रूपाली ने कहा" सब बता दूँगी काका. आपको सब समझ आ जाएगा धीरे धीरे"

भूषण ने अपना सर हिलाकर उसकी हां में हां मिलाई और किचन की तरफ बढ़ गया. दरवाज़े पर पहुँच कर वो फिर पलटा और रूपाली से कहा

"एक बात कौन बहूरानी?"

रूपाली ने सवालिया नज़र से भूषण की तरफ देखा.

"आपके पति के खून का राज़ इसी हवेली में कहीं है. इन दीवारो में क़ैद है कहीं जो 10 साल से नज़र नही आया. इस वीरान पड़ी हवेली में कहीं कुच्छ ऐसा है जो आपकी पति की मौत के साथ जुड़ा हुआ है. अगर आप अपने पति की हत्या का राज़ मालूम करना चाहती हो तो इस हवेली से पुच्छना होगा. यहीं कहीं दफ़न है सारी कहानी" कहते हुए भूषण फिर किचन में चला गया

भूषण के जाने के बाद रूपाली थोड़ी देर वहीं बड़े कमरे में बैठी रही और फिर उठकर अपने कमरे में आ गयी.भूषण के कहे शब्द उसके कान में गूँज रहे थे. "इस हवेली में कहीं कुच्छ ऐसा है जो आपके पति की मौत के साथ जुड़ा हुआ है" उसे ये बात हमेशा से महसूस होती थी के काफ़ी कुच्छ ऐसा है जो वो जानती नही और उसने कभी पता करने की कोशिश भी नही की. उसकी दुनिया तो सिर्फ़ उसके कमरे में बसे मंदिर तक थी. शादी से पहले भी, शादी के बाद भी और विधवा हो जाने के बाद भी. उसे अपने उपेर हैरत हो रही थी के कैसे उसने 10 साल गुज़र दिए, खामोशी से. शायद सामने रखी मूर्ति को पूजते पूजते वो खुद भी एक मूरत ही हो गयी थी. खामोश, चुप चाप रहने वाली एक गुड़िया जिसे किसी चीज़ से कोई मतलब नही था. जिसे जो कह दिया जाता वो कर देती. उसे हैरत थी के कैसे उसने 10 साल से अपने पति के बारे में जानने की कोई कोशिश नही की. कैसे सब चुप हो गये थे कुच्छ अरसे के बाद और वो भी उन चुप लोगों में से एक थी.खामोशी से सब पुरुषोत्तम को भूल गये थे. वो सिर्फ़ सामने लगी एक तस्वीर में सिमट गया था और इसमें सबसे ज़्यादा कसूर शायद उसकी अपनी बीवी का था जिसने ना उसके जीते जी कभी उसे कोई सुख दिया और ना ही उसके मरने के बाद उसकी बीवी होने का फ़र्ज़ अदा किया.

पर अब ऐसा नही होगा, सोचते हुए रूपाली उठी और फिर शीशे के सामने जा खड़ी हुई.

"मैं अब अपनी ज़िंदगी इस तरह से बेकार नही होने दूँगी"जैसे वो अपने आप से ही कह रही हो. वो अब भी सफेद सारी में ही थी.

"वक़्त आ गया है के इसे हमेशा के लिए अपने जिस्म से हटाया जाए" कहते हुए रूपाली ने अपनी सारी उतरनी शुरू की और सामने रखी उसकी ससुर की लाल रंग की सारी की तरफ देखा.

अचानक उसे वो शाम याद गयी जब वो आखरी बार अपने पति से मिली थी. उसे चोदने के लिए बेताब पुरुषोत्तम अपनी माँ की आवाज़ सुनकर ऐसे ही रह गया था. सामने चूत खोले हुए झुकी खड़ी बीवी को उसी हालत में छ्चोड़कर उसे बाहर जाना पड़ा था.

रूपाली की आँखों के सामने वो गुज़री शाम फिर से घूमने लगी. सावित्री देवी यानी उसकी मर चुकी सास को मंदिर जाना था जिसके लिए उन्होने पुरुषोत्तम को बुलाया. उस वक़्त शाम के लगभग 5 बज रहे थे. पुरुषोत्तम तैय्यार होकर नीचे पहुँचा और अपनी माँ को कार में बैठाकर मंदिर की तरफ निकल गया. उसने अपनी माँ को मंदिर छ्चोड़कर कहीं काम से जाना था और आते हुए फिर मंदिर से सावित्री देवी को लेते हुए आना था. उनके जाने के बाद रूपाली अपने कमरे में बैठी टीवी देख रही थी. पुरुषोत्तम के जाने के कोई 4 घंटे बाद नीचे उठा शोर सुनकर वो भागती हुई नीचे आई. उस वक़्त हवेली में रौनक हुआ करती थी. शौर्या सिंग का पूरा खानदान यहीं था. घर में नौकरों की लाइन हुआ करती थी इसलिए शोर भी काफ़ी तेज़ी से उठा था. रूपाली भागती हुई नीचे आई तो बड़े रूम का नज़ारा देखकर उसकी आँखें खुली रह गयी. पुरुषोत्तम सिंग खून से सना हुआ सोफे पे पड़ा था. रूपाली को उस वक़्त उस बात का बिल्कुल अंदाज़ा नही था के वो मर चुका है. उसे लगा के शायद घायल है. और ना ही शायद कोई और ये बात मान लेने को तैय्यार था के पुरुषोत्तम के जिस्म में अब जान बाकी नही रही. ठाकुर शौर्या सिंग अपने बेटे की लाश के पास खड़े जाने नौकरों से क्या कुच्छ नही लाने को कह रहे थे. कभी पानी, तो कभी कोई दवाई. तेज डॉक्टर को लेने के लिए पहले से ही जा चुका था. कामिनी अपने भाई के चेहरे पे हल्के हल्के थप्पड़ मार रही थी, जैसे एक मुर्दे को जगाने की कोशिश कर रही हो. वो नज़ारा देखकर रूपाली तो जैसे वहीं खड़ी ही रह गयी थी और अगले ही पल चक्कर खाकर गिर पड़ी. फिर क्या हुआ उसे कुच्छ याद नही.

जब होश आया तो हवेली में मरघाट सन्नाटा था. हर तरफ खामोशी थी. उसे याद नही किसने पर किसी ने धीरे से उसके कान में कहा था के पुरुषोत्तम अब नही रहा. उसके बाद कुच्छ दिन तक क्या हुआ उसका रूपाली को कोई अंदाज़ा नही रहा. वो होश में होते भी होश में नही थी. कब पुरुषोत्तम का संस्कार किया गया, कब उसे सफेद सारी में लपेट दिया गया रूपाली कोई कुच्छ याद नही था. वो जैसे एक सपने में थी और उसी सपने में उसने अगले 10 साल गुज़र दिए. पति की मौत के बाद जैसे उसे किसी से कोई सरोकार ना रहा.वो और भगवान में विलीन हो गयी. घंटो मूर्ति के सामने बैठी पूजा करती रहती. उसके अपने मायके से उसके माँ बाप उसे मिलने आए, उसका एकलौता भाई आया, उसे साथ ले जाने के लिए पर वो कहीं नही गयी. जैसे ये हवेली एक ही जगह पे खड़ी थी वैसे भी रूपाली भी वहीं अपने कमरे में ही क़ैद रही. 10 साल तक.

रूपाली ने अपना सर झटका और ये सारे ख्याल दिमाग़ से हटाए.आज 10 साल बाद उसकी नींद खुली थी. पूरी तरह. और अब वो सब कुच्छ अपने हाथ में कर लेना चाहती थी. अपने पति के हत्यारे को अंजाम तक पहुँचना चाहती थी, इस हवेली की खुशी को लौटना चाहती थी. इस हवेली में फिर से वही रौनक देखना चाहती थी.

रूपाली ने शीशे में अपने आपको देखा. वो सफेद सारी उतारकर एक बार फिर नंगी खड़ी अपना जिस्म देख रही थी. पिच्छले दो दिन में कितना कुच्छ बदल गया था. उसने अपने आपको इतनी बार नंगी कभी नही देखा था जितना इन 2 दिन में देख लिया था. टांगे थोड़ी फेलाकर उसने अपनी चूत पे एक नज़र डाली जहाँ भूषण की उंगलियाँ कल रात घुसी हुई थी. रूपाली पलटी और लाल सारी उठाकर पहेन्ने लगी.

उसके पति की मौत से जुड़े कई सवाल थे जो उसे 2 दिन से परेशान कर रहे थे. हवेली जिस जगह पर थी वो गाओं से काफ़ी बाहर थी. मंदिर गाओं के दूसरी तरफ था. फिर भी कार से मंदिर जाने तक 20 मिनट से ज़्यादा समय नही लगता था. उसके सिवा पुरुषोत्तम को कहाँ जाना था ये बात कोई नही जानता था जबकि वो हमेशा घर में बताके जाता था के उसने कहाँ जाना है. पर उस शाम इस बात का उसने किसी से कोई ज़िक्र नही किया था. उसने कहीं जाना था ये उसने सावित्री देवी को मंदिर छ्चोड़ने के बाद उनसे कही थी पर तब भी उन्हें नही बताया था के वो कहाँ जा रहा है. उसकी लाश हवेली से मुश्किल से 10 कदम की दूरी पे मिली थी. वो सावित्री देवी को छ्चोड़कर वापिस हवेली की तरफ क्यूँ आया था. उसपर 2 गोलियाँ चलाई गयी और लाश रात के 9 बजे के आस पास मिली थी. लाश जिस हालत में मिली थी उसे देखकर यही लगता था के उसे गोली मुस्किल से 15 मिनट पहले मारी गयी थी मतलब के उस रात ढल चुकी थी तो रात के सन्नाटे में हवेली में किसी ने गोली की आवाज़ क्यूँ नही सुनी. वो हवेली से शाम के 5 बजे निकला था, मतलब के 5.30 तक उसने अपनी माँ को मंदिर छ्चोड़ दिया होगा. तो फिर अगले 3 घंटे तक वो कहाँ था? उसकी लाश उसकी बहेन कामिनी को मिली थी जो उस रात गाओं में अपनी किसी सहेली के घर से आ रही थी. रास्ते में पुरुषोत्तम की गाड़ी खड़ी देखकर उसने गाड़ी रोकी तो गाड़ी में कोई नही था. खून के निशान का पिच्छा किया तो भाई की लाश मिली. पर उससे 10 मिनट पहले ही शौर्या सिंग हवेली में आए थे. तो उस वक़्त गाड़ी वहाँ क्यूँ नही थी? हवेली से गाओं तक का पूरा रास्ते पर ठाकुर ने लॅंप पोस्ट्स लगवा रखे थे और तकरीबन उसी वक़्त घर के सारे नौकर वापिस गाओं जाते थे फिर उनमें से किसी ने कुच्छ होते क्यूँ नही देखा? पुरुषोत्तम के 2 आदमी हमेशा उसके साथ होते थे, हथ्यार के साथ पर उस शाम वो अकेला क्यूँ गया? कामिनी भी उस शाम अकेली गयी थी. हिफ़ाज़त के लिए रखे गये हत्यारबंद आदमी उस शाम कहाँ थे? सोच सोचकर रूपाली का सर फटने लगा तो उसे भूषण की कही बात फिर याद आने लगी " आपके पति की हत्या का राज़ इसी हवेली में बंद है. दफ़न है यहीं कहीं"

रूपाली लाल सारी पेहेन्के नीचे आई तो भूषण खाना बनाकर बड़े घर की सफाई में लगा हुआ था. रूपाली को देखा तो देखता ही रह गया. 10 साल से जिसे सफेद सारी में देखा था उसे लाल सारी में एक पल के लिए तो पहचान ही नही पाया.
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#11
Update 7

"काफ़ी खूबसूरत लग रही हो बहूरानी" भूषण ने कहा

रूपाली ने मुस्कुरा कर उसका शुक्रिया अदा किया और सफाई में उसका हाथ बटाने लगी.

"आप रहने दीजिए"भूषण ने मना किया भी तो रूपाली हटी नही

"ऐसी अच्छी लगती हैं आप. ऐसी ही रहा करो. भरी जवानी में ही सफेद सारी में लिपटी मत रहा करो" भूषण ने कहा तो रूपाली ने उसकी तरफ देखा

"पिताजी ने लाकर दी है" रूपाली ने कहा तो भूषण काम छ्चोड़कर कुच्छ सोचने लगा

"मैं जानती हून आप क्या सोच रहे हैं काका. कल रात की बात ना. आपने कल रात जो देखा था वो मेरी मर्ज़ी थी. इस हवेली में फिर से सब कुच्छ पहले जैसा हो उसके लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी है के पिताजी होश में आए. आअप जानते हैं ना मैं क्या कह रही हूँ?" रूपाली ने पुचछा

भूषण ने सर इनकार में हिलाया.

"आपकी ग़लती नही है काका. मैं शायद खुद भी नही जानती के मैं क्या कह रही हूँ, क्या सोच रही हूँ और क्या कर रही हूँ. मैं सिर्फ़ इतना जानती हूँ के मेरे नंगे जिस्म की हल्की सी झलक पाकर पिताजी ने परसो पूरा दिन शराब नही पी थी और काफ़ी अरसे बाद अब वो हवेली से बाहर निकले हैं." रूपाली ने कहाँ तो भूषण ने हैरानी से उसकी तरफ देखा.

"आप ठीक सोच रहे हो काका."रूपाली ने जैसे उसका चेहरा पढ़ते हुए कहा "और इसलिए मैने आपसे कहा था के मुझे आपकी मदद चाहिए. ये बात हवेली से बाहर ना निकले. बदले में आप जो चाहें आपको मिल जाएगा. जो कल रात मैने आपको दिया वो मैं दोबारा देने को तैय्यार हूँ"

रूपाली ने जो बे झिझक कहा था वो बात सुनकर भूषण का सर चकराने लगा था. रूपाली कुच्छ करने वाली है ये बात वो जानता था पर क्या अब समझ आया. वो अपने ही ससुर के साथ सोने की बात कर रही थी.

"पर बहूरानी"भूषण से कुच्छ बोलते नही बन पा रहा था.

"पर क्या काका?" अब दोनो में से कोई कुच्छ काम नही कर रहा था.

रूपाली अच्छी तरह से जानती थी के भूषण का खामोश रहना कितना ज़रूरी था. ये बात अगर गाओं में फेल गयी तो रही सही इज़्ज़त भी चली जाएगी. इस हवेली की तो कोई ख़ास इज़ात नही बची थी पर उसके आपके पिता और भाई की इज़्ज़त पर भी दाग लग जाएगा. क्या सोचेंगे वो ये जानकर के उनकी अपनी बेटी अपने ससुर से चुदवा रही है.

"बहूरानी आपके पिता समान हैं वो. पाप है ये" भूषण ने हिम्मत जोड़कर कहा

"पाप और पुण्या क्या है काका? मैने तो कभी कोई पाप नही किया था आज तक पर मुझे क्या मिला? भारी जवानी में एक सफेद सारी?"कहते हुए रूपाली भूषण के करीब आई

"और आप काका? आप पाप की बात कर रहे हैं? क्या आप मेरे पिता समान नही हैं? कल रात जब मेरी टाँगो के बीच में अपनी उंगलियाँ घुसा रहे थे तब ये ख्याल आया था आपको के मैं आपकी बेटी जैसी हूँ? जब मेरी छाति को दबा रहे थे तब ये ख्याल आया था के ये पाप है"रूपाली का चेहरा अब सख़्त हो चला था. वो सीधा भूषण की आँखो में झाँक रही थी.

"कल जब मैने आपका अपने मुँह में ले रखा था तब ये ख्याल आया था आपको काका? नही. नही आया था क्यूंकी तब आपके साआँने आपकी बेटी जैसी एक लड़की नही सिर्फ़ एक औरत थी. मुझमें आपको सिर्फ़ एक औरत का नंगा जिस्म दिखाई दे रहा था और कुच्छ नही." कहते हुए रूपाली फिर आगे आई और अपनी सारी का पल्लू गिरा दिया.

सारी का पल्लू जैसे ही हटा तो ब्लाउस में बंद रूपाली की दोनो छातियाँ भूषण के सामने आ गयी. ब्लाउस रूपाली की बड़ी बड़ी चुचियों के हिसाब से छ्होटा था इसलिए दोनो छातियाँ जैसे बाहर को निकलकर गिर रही थी.क्लीवेज ही इतना ज़्यादा दिखाई दे रहा था के किसी के भी मुँह में पानी आ जाए.भूषण का सर चकराने लगा. उसने अपने मुँह दूसरी तरफ कर लिया.

"क्या हुआ काका? रात तो बड़ी ज़ोर से दबाया था. अब उधर क्यूँ देख रहे हो?"कहते हुए रूपाली ने भूषण का सर पकड़ा और अपनी चुचियों की तरफ घुमाया

रूपाली की दोनो छातियाँ अब भूषण के चेहरे से ज़रा ही दूर थी. रूपाली उससे लंबी थी. 70 साल का वो बूढ़ा जिस्मानी तौर पे रूपाली से कमज़ोर था. उसका चेहरा सिर्फ़ रूपाली की दोनो चुचियो तक ही आ रहा था इसलिए वो उसकी नज़रों के सामने थी. रूपाली ने फिर वो किया जिससे भूषण की रही सही हिम्मत भी जवाब दे गयी. उसने भूषण का सर पकड़कर आगे की तरफ खींचा और अपने क्लीवेज में दबा लिया. इसके साथ ही रूपाली और भूषण दोनो के मुँह से आह निकल गयी.

भूषण का चेहरा आगे से रूपाली के नंगे क्लीवेज पे दब रहा था. उसके नंगे जिस्म का स्पर्श मिलते ही भूषण के जिस्म में फिर हलचल होने लगी. बुद्धा ही सही पर था तो मर्द ही. जब रूपाली ने पकड़ ढीली की तो उसने अपने सर पिछे हटाया और रूपाली की दोनो चुचियों की तरफ देखने लगा. कल रात उसने एक हाथ से एक छाती दबाई ज़रूर थी पर अंधेरे में कुच्छ देख ना सका था और दबाई भी बस पल भर के लिए थी. अगले ही पल रूपाली झाड़ गयी थी और उससे अलग हो गयी थी. उसकी दोनो नज़रें जैसे रूपाली की छातियों से चिपक कर रही गयी.

"क्या हुआ काका? अब ध्यान नही आ रहा बेटी और पाप का?"रूपाली ने कहा पर भूषण अब उसकी कोई बात नही सुन रहा था. वो तो बस एकटक उसकी चुचियों को ब्लाउस के उपेर से निहार रहा था. पर उसकी हिम्मत नही पड़ रही थी के इसके अलावा कुच्छ आगे कर सके.

रूपाली ने जैसे उसके दिल में उठती ख्वाहिश को ताड़ लिया और अपने ब्लाउस के बटन खोलने लगी.

"लो काका. आप भी क्या याद रखोगे. इस उमर में एक जवान जिस्म का नज़ारा करो" रूपाली को खुद पे हैरत होने लगी थी. पिच्छले दो दिन में वो दिमागी तौर पे तो बदल ही गयी थी पर उसकी ज़ुबान पे एकदम से अलग हो गयी थी. कहाँ दबी दबी सी आवाज़ में बोलने वाली एक मासूम सी लड़की और कहाँ बेबाक उँची आवाज़ में बोलती एक शेरनी के जैसी औरत जिसने शब्द भी रंडियों की तरह बोलने शुरू कर दिए थे.

रूपपली ने बटन तो सारे खोल दिए थे पर ब्लाउस को दोनो तरफ से पकड़ रखा था. भूषण इंतेज़ार कर रहा था के वो ब्लाउस दोनो तरफ से खोले तो उसे अंदर का नज़ारा मिले पर रूपाली वैसे ही खड़ी रही.

"क्या हुआ काका?"रूपाली ने पुचछा तो भूषण ने उसकी तरफ देखा पर कुच्छ बोला नही. मगर उसकी आँखें सॉफ उसके दिल की की बात कह रही थी.

"रूपाली धीरे से मुस्कुराइ और ब्लाउस को दोनो तरफ से छ्चोड़ दिया और ब्रा में बंद उसकी चुचियाँ भूसान के सामने थी. गोरी चाँदी पे काला ब्रा अलग ही खिल रहा था. भूषण की साँस तेज़ होने लगी थी. इस उमर में इतनी उत्तेजना उससे बर्दाश्त नही हो रही थी. लग रहा था जैसे अभी हार्ट अटॅक हो जाएगा.

"ये आपके लिए है काका. देखो जी भर के देखो" कहते हुए रूपाली ने भूषण का हाथ पकड़ा और अपनी एक चुचि पे रख दिया. उसने भूषण के हाथ पे थोड़ा ज़ोर डाला और उसका इशारा पाकर भूषण ने भी अपने हाथ को थोड़ा बंद किया. नतीजा? रूपाली की छाती थोड़ी सी दब गयी.

"ओह काका" रूपाली के मुँह से निकल पड़ा"थोड़ा सा और ज़ोर लगाओ"

उसने कहा तो भूषण ने अपना हाथ और ज़ोर से दबाया और उसकी ब्रा के उपेर से ही छाती को मसल्ने लगा.

"हां काका. ऐसे ही. और ज़ोर से. मज़ा आ रहा है ना आपको भी" कहते हुए रूपाली ने अपनी आँखें बंद कर ली.

भूषण को इतना इशारा काफ़ी थी. उसने अपना दूसरा हाथ भी रूपाली की छाती पे रख दिया और दोनो छातियों को दबाने लगा. दोनो की साँस भारी हो चली थी. भूषण कभी उसकी चुचियों को सहलाता तो कभी ज़ोर लगाकर दबाता पर अब उसके हाथ में इतनी ताक़त नही बची थी. रूपाली और ज़ोर से दबाओ कह रही थी और भूषण पूरा ज़ोर लगा रहा था. दोनो एकदम चिपके खड़े थे.

रूपाली ने अपनी आँखें बंद किए ही अपना एक हाथ थोड़ा नीचे किया और पाजामे के उपेर से भूषण का लंड टटोलने लगी. उसके जिस्म में आग लगी हुई थी. टांगे कमज़ोर हुई जा रही थी. उसने भूषण के छ्होटे से लंड को हाथ से पकड़के दबाया. उसे हैरत थी के भूषण का लंड अब भी बैठा हुआ था पर शायद इस उमर में इससे ज़्यादा वो कर भी नही सकता था. ये सोचकर रूपाली ने अपना एक हाथ अपनी ब्रा के नीचे रखा और अपनी ब्रा को एक तरफ से खींचकर अपनी छाती को बाहर निकाल दिया.

अब उसकी एक छाती ब्रा के अंदर थी और दूसरी नीचे की तरफ से बाहर. वो भूषण से लगी खड़ी थी और उसका एक हाथ पाजामे के उपेर से लंड हिला रहा था. उसने आँखें खोली तो भूषण आँखें फाडे उसकी बाहर निकली छाती को देख रहा था. धीरे से भूषण का हाथ उपेर आया और उसकी नंगी छाती पे पड़ा. रूपाली जैसा पागल होने लगी. घर के बूढ़े नौकर का ही सही पर हाथ था तो एक मर्द का. उसके निपल्स खड़े हो गये थे. भूषण एक बार फिर उसकी छाती पे लग गया था और पूरी ताक़त लगाकर दबा रहा था जैसे आटा गूँध रहा हो.

"चूसोगे नही काका" रूपाली ने कहा और फिर खुद ही अपनी एक छाती को पकड़कर भूषण के मुँह की तरफ कर दिया. उसका निपल भूषण के मुँह से जा लगा. भूषण ने मुँह खोला और निपल को मुँह में लेने ही लगा था के रूपाली ने कहा

"चूसो काका. अपनी बेटी समान लड़की की छाती चूसो. जो करना है करो. पाप को भूल जाओ पर एक बात याद रखना. ये बात अगर हवेली के बाहर गयी तो गर्दन काटकर हवेली के दरवाज़े पे टाँग दूँगी"

रूपाली की आवाज़ में कुच्छ ऐसा था के भूषण अंदर तक काँप गया. जैसे किसी घायल शेरनी के गुर्र्रने की आवाज़ सुनी हो. उसका खुला मुँह बंद हो गया और वो रूपाली की तरफ देखने लगा. उसकी आँखों में डर रूपाली को सॉफ नज़र आ रहा था और रूपाली की आँखों में जो था वो देखकर तो भूषण को लगा के वो पाजामे में ही पेशाब कर देगा.

"डरो मत काका"रूपाली फिर मुस्कुराइ तो भूषण की जान में जान आई"खेलो मेरे जिस्म से. ये आपका हो सकता है जब भी आप चाहो बस आपकी ज़ुबान बंद रहे और जो मैं कहूँ वो हो जाए. आपको मेरे साथ मेरी हर बात मान लेनी होगी बिना कोई सवाल किए. समझे?" रूपाली ने पुचछा. भूषण ने हां में सर हिला दिया.

तभी बाहर कार की आवाज़ सुनकर दोनो अलग हो गये. ठाकुर शौर्या सिंग वापस आ गये थे. दोनो एक दूसरे से अलग हुए और अपने कपड़े ठीक करने लगे.

इससे पहले के ठाकुर शौर्या सिंग हवेली के अंदर आते, रूपाली अपने कपड़े ठीक करते हुए जल्दी जल्दी उपेर अपने कमरे की तरफ चली गयी. उसका ब्लाउस अभी भी खुला हुआ था और एक छाती अब भी ब्रा से बाहर थी. उसने ऐसे ही आगे से ब्लाउस को दोनो तरफ से थामा और लगभग दौड़ती हुई अपने कमरे में पहुँची. कमरे के अंदर पहुँचते ही उसे एक लंबी साँस छ्चोड़ दी. ब्लाउस छ्चोड़ दिया और उसकी एक छाती फिर बाहर निकल पड़ी. रूपाली अंदर से बहुत गरम हो चुकी थी. 2 दिन से यही हो रहा था. 2 बार अपने ससुर और 2 बार भूषण के करीब जाने से उसके जिस्म में जैसे आग सी लगी हुई थी. उसे खुद अपने उपेर हैरत थी के उसके जिस्म की ये गर्मी इतने सालो से कहाँ थी जो पिच्छले 2 दिन में बाहर आई थी. वजह शायद ये थी के उसने अब अपने आपको मानसिक तौर पे बदला था जिसका नतीजा अब पूरे जिस्म पे नज़र आ रहा था. वो ऐसे ही बिस्तर पे गिर पड़ी और अपनी बाहर निकली छाती को खुद ही दबाते हुए भूषण की कही बात के बारे में सोचने लगी. उसे इस हवेली के अंदर से ही तलाश शुरू करनी थी. अब 2 दिन से चल रहे खेल से आगे बढ़ने का वक़्त आ गया था. उसे चीज़ों को अब अपने हाथ में लेना था. भूषण उसकी मुट्ठी में आ चुका था. और अब बारी थी इस कड़ी के सबसे ख़ास हिस्से की, ठाकुर शौर्या सिंग की.

रूपाली शाम तक अपने ही कमरे में रही. भूषण खाने को पुच्छने आया था उसने अपने कमरे में ही मंगवा लिया. रात का अंधेरा फेल चुका था. भूषण जब खाना देने आया था उसने धीरे से रूपाली के कान में कहा के ठाकुर साहब ने उसे आज मालिश के लिए माना किया है. कहा है के आज ज़रूरत नही है.

रूपाली उसकी बात समझते हुए बोली "आज से उन्हें मालिश की ज़रूरत आपसे नही है काका" भूष्ण समझ गया के वो क्या कहना चाह रही है. वो इस हवेली में बहुत कुच्छ होता देख चुका था.

"अब और ना जाने क्या क्या देखना होगा" सोचते हुए वो वापिस चला गया.

रूपाली खाना खाकर नीचे आई तो भूषण जा चुका था. अब हवेली में सिर्फ़ वो और शौर्या सिंग रह गये थे. उसने अपने ससुर के कमरे की तरफ देखा जो शायद अंदर से बंद था. वो कमरे के आगे से निकली और किचन तक पहुँची. किचन में उसने एक कटोरी में तेल लिया और हल्का सा गरम किया. हाथ में तेल की कटोरी लिए वो शौर्या सिंग के कमरे तक पहुँची और धीरे से नॉक किया.

"अंदर आ जाओ बहू" शौर्या सिंग जैसे उसके आने का ही इंतेज़ार कर रहे थे.

रूपाली कमरे के अंदर पहुँची. वो लाल सारी में थी. हाथ में तेल की कटोरी थी. ब्लाउस के उपर का एक बटन उसने खुद ही खोला छ्चोड़ दिया था. तेल की कटोरी एक तरफ रखकर उसके अपने ससुर की तरफ देखा.

शौर्या सिंग सिर्फ़ धोती पहने खड़े थे. कुर्ता वो पहले ही उतार चुके थे. शौर्या सिंग और रूपाली की नज़रें मिली. दोनो ने कुच्छ नही कहा. एक दूसरे की तरफ पल भर देखने के बाद शौय सिंग बिस्तर पे जाके लेट गये और रूपाली तेल की कटोरी लिए बिस्तर तक पहुँची. साइड में रखी टेबल पे तेल रखकर वो भी बिस्तर पे चढ़ गयी. अपने ससुर के बिस्तर पर. लाल सारी में.

शौर्या सिंग उल्टे पेट के बाल लेटे हुए थे. रूपाली ने पीठ पे थोड़ा तेल गिराया और धीरे धीरे मालिश करने लगी. उसके हाथ ठाकुर की पूरी पीठ पे फिसल रहे थे. कंधो से शुरू होकर ठाकुर की गांद तक.

"थोड़ा सख़्त हाथ से करो बहू" शौर्या सिंग ने कहा तो रूपाली थोड़ा आगे होकर अपने ससुर के उपेर झुक सी गयी जिससे के उसके हाथ का वज़न ठाकुर के पीठ पे पड़े. वो अपने घुटनो के बल खड़ी सी थी. घुटने के नीचे का हिस्सा ठाकुर के फेले हुए हाथ को च्छू रहा था. ठाकुर का हाथ नीचे से उसके पेर पे सटा हुआ था और रूपाली को महसूस हो रहा था के वो उसे सहला रहे हैं. उसके खुद के जिस्म में धीरे धीरे से फिर वही आग उठ रही थी जिसे वो पिच्छले 2 दिन से महसूस कर रही थी.

जब वो पीठ पे हाथ फेरती हुई नीचे ठाकुर की गांद की तरफ जाती और फिर हाथ उपेर लाती तो उसका हाथ ठाकुर की धोती में हलसा सा अटक जाता. ऐसे ही एक बार जब हाथ फिसलकर नीचे आया तो नीचे ही चला गया. रूपाली को महसूस ही ना हुआ के कब ठाकुर ने अपनी धोती ढीली कर दी थी जिसकी वजह से उसका हाथ ठाकुर की धोती के अंदर तक चला गया. शौर्या सिंग ने धोती के नीचे कुच्छ नही पहेन रखा था इसलिए जब रूपाली का हाथ नीचे गया तो सीधा रेंग कर ठाकुर की गांद पे चला गया. रूपाली ने फ़ौरन अपना हाथ वापिस खींचा जैसे 100 वॉट का झटका लगा हो और शौर्या सिंग की तरफ देखा पर वो वैसे ही लेटे रहे जैसे कुच्छ हुआ ही ना हो. रूपाली एक पल के लिए रुकी और उठकर ठाकुर के पैरो की तरफ आ गयी.

उसने तेल अपने हाथ में लेकर अपने ससुर की पिंदलियों में पे तेल मलना शुरू किया. घुटनो के नीचे नीचे उसने सख़्त हाथ से ठाकुर की टाँगो की मालिश शुरू कर दी. वो फिर अपने घुटनो के बल बिस्तर पे खड़ी सी थी और ठाकुर के दोनो पावं उसके बिल्कुल सामने. जब वो हाथ घुटनो की तरफ उपेर की और ले जाती तो उसे थोड़ा आगे होकर झुकना पड़ता और हाथ नीचे की और लाते हुए फिर वापिस पिछे आना पड़ता. मालिश करते हुए रूपाली ने महसोस्स किया के वो थोडा सा आगे खिसक गयी थी और जब झुककर वापिस पिछे आती तो ठाकुर का पंजा नीचे से उसकी जाँघ पे अंदर की और टच होता. चूत से सिर्फ़ कुच्छ इंच की दूरी पर. फिर भी रूपाली वैसे ही मालिश करती रही. ठाकुर के पेर का स्पर्श उसे अच्छा लग रहा था. उसने नज़र उठाकर ठाकुर के चेहरे की तरफ देखा तो वो दोनो आँखें बंद किए पड़े थे. धोती खुली होने की वजह से थोड़ी नीचे सरक गयी थी और ठाकुर की गांद आधी खुल गयी थी.

"सीधे हो जाइए पिताजी" रूपाली ने बिस्तर के एक तरफ होते हुए कहा.

उसके पुर हाथों में तेल लगा हुआ था जो उसकी सारी पे भी कई जगह लग चुका था. सारी बिस्तर पे इधर उधर होने की वजह से सिकुड़कर घुटनो तक उठ गयी थी और घुटनो के नीचे रूपाली की दोनो टांगे खुल गयी थी.

ठाकुर उठकर सीधे हुए तो रूपाली को एक पल के लिए नज़रें नीचे करनी पड़ गयी. वजह थी ठाकुर का लंड जो पूरी तरफ खड़ा हो चुका था और धोती में टेंट बना रहा था. धोती खुली होने की वजह से ऐसा लग रहा था जैसे लंड के उपेर बस एक कपड़ा सा डाल रखा हो. रूपाली ने ठाकुर के चेहरे की तरफ देखा तो उन्होने अब भी अपनी दोनो आँखें बंद कर रखी थी. वो फिर धीरे से आगे बढ़ी और ठाकुर की छाती पे तेल लगाने लगी. तेल लगाकर वो फिर अपने घुटनो के बल खड़ी सी हो गयी और हाथों पे वज़न डालकर तेल छाती से पेट तक रगड़ने लगी. उसकी नज़र अब भी ठाकुर के खड़े लंड पे ही चिपकी हुई थी. धोती थोड़ी से नीचे की और सरक गयी थी जिससे उसे ठाकुर की झाँटें सॉफ नज़र आ रही थी. वो जब तेल रगड़ती नीचे की और जाती तो लंड की जड़ से बस कुच्छ इंच की दूरी पे ही रुकती. दिल तो उसका कर रहा था के आगे बढ़कर लंड पकड़ ले पर अपने दिल पे काबू रखा और तेल लगाती रही. इसी चक्कर में उसकी सारी का पल्लू खिसक कर नीचे गिर पड़ा था जिसे रूपाली ने दोबारा उठाकर ठीक करने की कोशिश नही की. उसकी दोनो छातियाँ ब्लाउस में उपेर नीचे हो रही थी. उपेर का एक बटन खुला होने के कारण क्लीवेज काफ़ी हाढ़ तक गहराई तक नज़र आ रहा था. एक ही पोज़िशन में रहने के कारण रूपाली का घुटना अकड़ने लगा तो उसने अपनी पोज़िशन हल्की सी चेंज के और उसकी टाँग ठाकुर के हाथ से जा लगी. ठाकुर का हाथ सीधा उसकी घुटनो से नीचे नंगी टाँग पे आ टिका. पर ना तू रूपाली ने साइड हटने की कोशिश की और ना ही ठाकुर ने अपना हाथ हटाने की कोशिश की. रूपाली वैसे ही ठाकुर की छाती पे तेल रगड़ती रही और नीचे धीरे धीरे ठाकुर ने उसकी टाँग को सहलाना शुरू कर दिया. रूपाली की आँखें भी बंद होने लगी.

अब मालिश मालिश ना रह गयी थी. रूपाली भी वैसे ही बस एक ही जगह आँखें बंद किया हाथ ठाकुर की छाती पे रगड़ रही थी और ठाकुर उसकी घुटनो से नीचे नंगी टाँग को सहला रहा था. अचानक रूपाली ने महसूस किया के ठाकुर का हाथ उसकी सारी में उपेर की और जाने की कोशिश कर रहा है. जैसे ही ठाकुर की हाथ अंदर उसकी नंगी जाँघ पे लगा तो रूपाली की दोनो आँखें खुल गयी. उसे झटका सा लगा और वो अंजाने में ही एक तरफ को हो गयी. ठाकुर का हाथ उसकी टाँग से अलग हो गया.

एक पल को रूपाली को भी बुरा सा लगा के वो अलग क्यूँ हुई क्यूंकी ठाकुर के सहलाने में उसे भी मज़ा आ रहा था. उसने फिर थोड़ा सा तेल अपने हाथ में लिया और ठाकुर के पेट पे डाला. तेल को उसके रगड़कर हाथ सख़्त करने के लिए जैसे ही अपना वज़न अपने हाथ पे डाला ठाकुर के मुँह से कराह निकल गयी. शायद वज़न कुच्छ ज़्यादा हो गया था. वो हल्का सा मुड़े और एक हाथ से रूपाली की कमर को पकड़ लिया.

"माफ़ कीजिएगा पिताजी" रूपाली ने ठाकुर की तरफ देखा पर वो कुच्छ नही बोले और आँखें वैसे ही बंद रही.

रूपाली ने फिर मालिश करनी शुरू कर दी पर ठाकुर का हाथ वहीं उसकी कमर पे ही रहा. उन्होने उसकी ब्लाउस और पेटिकोट के बीच के हिस्से से कमर को पकड़ रखा था. नंगी कमर पे उनका हाथ पड़ते ही रूपाली जैसे हवा में उड़ने लगी. ठाकुर का हाथ धीरे धीरे फिर उसकी कमर को सहलाने लगा और रूपाली की आँखें फिर बंद हो गयी. वो ठाकुर को पेट को सहलाती रही और वो उसकी नंगी कमर को. हाथ धीरे से आगे से होकर उसके पेट पे आया और फिर कमर पे चला गया. अब वो उसके नंगे पेट और कमर को सिर्फ़ सहला नही रहे थे, बल्कि मज़बूती से रगड़ रहे थे. एक बार ठाकुर का हाथ रूपाली के पेट पे गया तो सरक कर आगे आने की बजाय नीचे की और उसकी गांद पे गया. उन्होने एक बार हाथ रूपाली की पूरी गांद पे फिराया और फिर उसके एक कूल्हे को अपने मुट्ठी में पकड़ लिया.

रूपाली फिर चिहुन्क कर एक तरफ को हुई. वो शायद इन अचानक हो रहे हमलो से थोड़ा सा घबरा सी जाती पर ठाकुर का हाथ हट जाते ही अगले ही पल खुद अफ़सोस करती क्यूँ ठाकुर के हाथ का मज़ा आना बंद हो जाता.

"लाइए आपके हाथ पे कर देती हूँ" कहते हुए रूपाली ने ठाकुर का अपनी तरफ का हाथ सीधा किया. ठाकुर का पंजा उसके कंधे पे आ गया और वो दोनो हाथ से अपने ससुर की पूरी आर्म पे तेल लगाके मालिश करने लगी. उसकी सारी का पल्लू अब भी नीचे था और छातियाँ सिर्फ़ ब्लाउस में थी. ब्रा रूपाली आने से पहले ही उतारकर आई थी. उसके ससुर की कलाई उसकी एक छाती पे दब रही थी जिसकी वजह से ब्लाउस पे पूरा तेल लग गया था. लाल ब्लाउस होने के बावजूद उसके निपल्स सॉफ नज़र आने लगे थे. जैसे जैसे उसकी मालिश का दबाव ठाकुर के हाथ पे बढ़ रहा था वैसे वैसे ही उनकी कलाई का दबाव उसकी छाती पे बढ़ रहा था. धीरे धीरे हाथ कंधे से सरक कर उसके गले पे आ गया और ठाकुर की आर्म उसकी दोनो छातियों पे दब गयी. रूपाली की साँस भारी हो चली थी और उसे महसूस हो रहा था के ठाकुर की साँस भी तेज़ हो रही है. रूपाली ने बंद आँखें खोली तो देखा के ठाकुर की छाती तेज़ी से उपेर नीचे हो रही है. लंड अब पूरा अकड़ चुका था और धोती में हिल रहा था. धोती अब भी लंड के उपेर पड़ी थी इसलिए रूपाली सिर्फ़ अंदाज़ा ही लगा सकती थी के वो कैसा होगा. चाहकर भी वो धोती को लंड से हटाने से अपने आपको रोके हुए थी. ठाकुर ने अब उसकी छातियों पे अपनी आर्म का दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया था. उनके हाथ का पंजा रूपाली के क्लीवेज पे हाथ और नीचे वो अपनी कलाई से उसकी दोनो छातियों को रगड़ रही थी.

रूपाली ने ठाकुर के अपनी तरफ के हाथ को छ्चोड़कर दूसरे हाथ को उठाया. वो अब भी उसी साइड बैठी हुई थी जिसकी वजह से उसे दूसरा हाथ अपनी तरफ लेना पड़ा. पहले हाथ की तरफ ये हाथ उसके कंधे तक नही पहुँचा. ठाकुर ने उसके इशारे से पहले ही खुद डिसाइड कर लिया के हाथ कहाँ रखा जाना चाहिए. उन्होने हाथ उठाकर सीधा रूपाली की दोनों चूचियों पे रख दिया. रूपाली की साँस अटकने लगी. ये ठाकुर का अपने हाथ से उसकी चूची पे पहला स्पर्श था. उसने इस बार ना तो पिछे होने की कोशिश की और ना ही हाथ हटाके कहीं और रखने की कोशिश की. वो चुपचाप आर्म पे मालिश करने लगी और ठाकुर ने अब सीधे सीधे उसकी दोनो चूचियों को दबाना शुरू कर दिया. दोनो की साँस तेज़ हो चली थी और दोनो की ही आँखें बंद थी. ठाकुर ज़ोर ज़ोर से रूपाली की दोनो चूचियों को मसल रहे थे और वो भी अब मालिश नही, उनके हाथ को सहला रही थी जो उसे इतने मज़े दे रहा था. ठाकुर ने अपना दूसरा हाथ ले जाकर उसकी गांद पे रखा दिया और सहलाने लगे.वो उसके दोनो कूल्हे अपने हाथ में पकड़ने की कोशिश करते पर रूपाली की मोटी गांद का थोड़ा सा हिस्सा ही पकड़ पाते. अब दोनो के बीच पर्दे जैसे कुच्छ नही रह गया था और जो हो रहा था वो सॉफ तौर पे हो रहा था पर फिर भी दोनो में से बोल कोई कुच्छ नही रहा था. ठाकुर का हाथ अब सारी के उपेर से ही उसकी गांद के बीचो बीच रेंग रहा था और धीरे से पिछे से होता उसकी चूत पे आ गया और इस बार रूपाली और बर्दाश्त नही कर सकी. उसे लगा के अब अगर वो नही हटी तो ठाकुर को लगेगा के वो भी चुदने के लिए बेताब है जो उसके प्लान का हिस्सा नही था.

"मैं चलती हूँ पिताजी. मालिश हो गयी" कहकर रूपाली उठने लगी पर ठाकुर ने उसका एक हाथ पकड़के फिर बिठा लिया.

रूपाली ने ठाकुर की तरफ देखा तो वो आँखें खोल चुके थे. उसे सवालिया नज़रों से ठाकुर की तरफ देखा जैसे पुच्छ रही हो के अब क्या और इससे पहले के कुच्छ समझ पाती, ठाकुर ने एक हाथ से अपनी खुली हुई धोती को एक तरफ फेंक दिया और दूसरे हाथ से रूपाली का हाथ अपने लंड पे रख दिया जैसे कह रहे हों के यहाँ की मालिश रह गयी.

रूपाली ने हाथ हटाने की कोशिश की पर ठाकुर ने उसका हाथ मज़बूती से पकड़ रखा था. कुच्छ पल दोनो यूँ ही रुके रहे और फिर धीरे से रूपाली ने अपना हाथ लंड पे उपेर की और किया. ठाकुर इशारा समझ गये की रूपाली मान गयी है और उन्होने अपना हाथ हटा लिया. रूपाली ने दूसरे हाथ से लंड पे थोड़ा तेल डाला और अपना हाथ उपेर नीचे करने लगी. ठाकुर के लंड पे जैसे उसकी नज़र चिपक गयी थी. उसने अब तक देखे सिर्फ़ 2 लंड थे. अपने पति का और अब ठाकुर का. यूँ तो उसने भूषण का लंड भी पकड़ा था पर उसे देखा नही थी. और भूषण का छ्होटा सा लंड तो ना होने के बराबर ही था. वो दिल ही दिल में ठाकुर के लंड को अपने पति के लंड से मिलाने लगी. ठाकुर का लंड लंबाई और चौड़ाई दोनो में उसके पति के लंड से दुगना था. रूपाली के मुँह में जैसे पानी सा आने लगा और नीचे चूत भी पूरी तरह गीली हो गयी. अब जैसे उसे खबर ही नही थी के वो क्या कर रही है. बस एकटूक लंड को देखते हुए अपना हाथ ज़ोर ज़ोर से उपेर नीचे कर रही थी. थोड़ी देर बाद जब उसका हाथ थकने लगा तो उसने अपना दूसरा हाथ भी लंड पे रख दिया और दोनो हाथों से लंड को हिलाने लगी जैसे कोई खंबा घिस रही हो. ठाकुर को एक हाथ वापिस उसकी गांद पे जा चुका था और नीचे सारी के उपेर से उसकी चूत को मसल रहा था. रूपाली दोनो हाथों से लंड पे मेहनत कर रही थी और नीचे ठाकुर की अंगलियों उसकी चूत को जैसे कुरेद रही थी. रूपाली ने इस बार हटने की कोई कोशिश नही की थी. चुपचाप बैठी हुई थी और चूत मसलवा रही थी. उसका ब्लाउस तेल से भीग चुका था और उसके दोनो निपल्स सॉफ नज़र आ रहे थे पर उसे किसी बात की कोई परवाह नही थी. उसे तो बस सामने खड़ा लंड नज़र आ रहा था. ठाकुर ने दूसरा हाथ उठाके उसकी छाती पे रख दिया और उसकी बड़ी बड़ी छातियों को रगड़ने लगे. एक उंगली उसके क्लीवेज से होती दोनो छातियों के बीच अंदर तक चली गयी. फिर उंगली बाहर आई और इस बार ठाकुर ने पूरा हाथ नीचे से उसके ब्लाउस में घुसाकर उसकी नंगी छाती पे रख दिया. ठीक उसी पल उन्होने अपने दूसरे हाथ की उंगलियों को रूपाली की चूत पे ज़ोरसे दबाया. रूपाली के जिस्म में जैसे 100 वॉट का कुरेंट दौड़ गया. वो ज़ोर से ठाकुर के हाथ पे बैठ गयी जैसे सारी फाड़ कर उंगलियों को अंदर लेने की कोशिश कर रही हो. उसके मुँह से एक लंबी आआआआआअहह छूट पड़ी और उसकी चूत से पानी बह चला.. अगले ही पल ठाकुर उठ बैठे, रूपाली को कमर से पकड़ा और बिस्तर पे पटक दिया.इससे पहले के रूपाली कुच्छ समझ पाती, लंड उसके हाथ से छूट गया और ठाकुर उसके उपेर चढ़ बैठे. उसकी पहले से ही घुटनो के उपेर हो रखी सारी को खींचकर उसकी कमर के उपेर कर दिया. रूपाली आने से पहले ही ब्रा और पॅंटी उतारके आई थी इसलिए सारी उपेर होते ही उसकी चूत उसके ससुर के सामने खुल गयी. रूपाली को कुच्छ समझ में नही आ रहा था इसलिए उसकी तरफ से ठाकुर को कोई प्रतिरोध का सामना ना करना पड़ा. वो अब अब तक ठाकुर के अपनी चूत पे दभी उंगलियों के मज़े से बाहर ही ना आ पाई थी. जब तक रूपाली की कुच्छ समझ आया के क्या होने जा रहा है तब तक ठाकुर उसकी दोनो टांगे खोलके घुटनो से मोड़ चुके थे. उसके दो पावं के पंजे ठाकुर के पेट पे रखे हुए थे जिसकी वजह से उसकी चूत पूरी तरह से खुलके ठाकुर के सामने आ गयी थी. रूपाली रोकने की कोशिश करने ही वाली थी के ठाकुर ने लंड उसकी चूत पे रखा और एक धक्का मारा.

रूपाली के मुँह से चीख निकल गयी. उसे लगा जैसे किसी ने उसके अंदर एक खूँटा थोक दिया हो. एक तो वो 10 साल से चुदी नही थी और 10 साल बाद जो लंड अंदर गया वो हर तरह से उसके पति के लंड से दोगुना था. उसकी चूत से दर्द की लहर उठकर सीधा उसके सर तक पहुँच गयी. उसका पूरा जिस्म अकड़ गया और उसने अपने दोनो पावं इतनी ज़ोर से झटके के ठाकुर की मज़बूत पकड़ में भी नही आए. उसने बदन मॉड्कर लंड चूत से निकालने की कोशिश की पर तब तक ठाकुर उसके उपेर लेट चुके थे. रूपाली ने अपने दोनो नाख़ून ठाकुर की पीठ में गाड़ दिए. कुच्छ दर्द की वजह से और कुच्छ गुस्से में और कुच्छ ऐसे जैसे बदला ले रही हो. उसके दाँत ठाकुर के कंधे में गाडते चले गये. इसका नतीजा ये हुआ के ठाकुर गुस्से में थोड़ा उपेर को हुए और उसके ब्लाउस को दोनो तरफ से पकड़के खींचा. खाट, खाट, खाट, ब्लाउस के सारे बटन खुलते चलये गये. ब्रा ना होने के कारण रूपाली की दोनो चुचियाँ आज़ाद हो गयी. बड़ी बड़ी दोनो चूचियाँ देखते ही ठाकुर उनपर टूट पड़े. एक चूची को अपने हाथ में पकड़ा और दूसरी का निपल अपने मुँह में ले लिया. रूपाली के जिस्म में अब भी दर्द की लहरें उठ रही थी. तभी उसे महसूस हुआ के ठाकुर अपना लंड बाहर खींच रहे हैं पर अगले ही पल दूसरा धक्का पड़ा और इस बार रूपाली की आँखों के आगे तारे नाच गये. चूत पूरी फेल गयी और उसे लगा जैसे उसके अंदर उसके पेट तक कुच्छ घुस गया हो. ठाकुर के अंडे उसकी गांद से आ लगे और उसे एहसास हुआ के पहले सिर्फ़ आधा लंड गया था इस बार पूरा घुसा है. उसकी मुँह से ज़ोर से चीख निकल गयी

"आआआआहह पिताजी" रूपाली ने कसकर दोनो हाथों से ठाकुर को पकड़ लिया और उनसे लिपट सी गयी जैसे दर्द भगाने की कोशिश कर रही हो.

उसका पूरा बदन अकड़ चुका था. लग रहा था जैसे आज पहली बार चुद रही हो. बल्कि इतना दर्द तो तब भी ना हुआ था जब पुरुषोत्तम ने उसे पहली बार चोदा था. उसके पति ने उसे आराम से धीरे धीरे चोदा था और उसके ससुर ने तो बिना उसकी मर्ज़ी की परवाह के लंड जड़ तक अंदर घुसा दिया था.. ठाकुर कुच्छ देर यूँही रुके रहे. दर्द की एक ल़हेर उसकी छाती से उठी तो रूपाली को एहसास हुआ के दूसरा धक्का मारते हुए उसके ससुर ने उसकी एक चूची पे दाँत गढ़ा दिए थे. ठाकुर ने अब धीरे धीरे धक्के मारने शुरू कर दिए थे. लंड आधा बाहर निकालते और अगले ही पल पूरा अंदर घुसा देते. रूपाली के दर्द का दौर अब भी ख़तम नही हुआ था. लंड बाहर को जाता तो उसे लगता जैसे उसके अंदर से सब कुच्छ लंड के साथ साथ बाहर खींच जाएगा और अगले पल जब लंड अंदर तक घुसता तो जैसे उनकी आँखें बाहर निकलने को हो जाती. उसकी पलकों से पानी की दो बूँदें निकलके उसके गाल पे आ चुकी थी. उसकी घुटि घुटि आवाज़ में अब भी दर्द था जिससे बेख़बर ठाकुर उसे लगातार चोदे जा रहे था. लंड वैसे ही उसकी चूत में अंदर बाहर हो रहा था बल्कि अब और तेज़ी के साथ हो रहा था. ठाकुर के हाथ अब रूपाली की मोटी गांद पे था जिसे उन्होने हाथ से थोड़ा सा उपेर उठा रखा था ताकि लंड पूरा अंदर तक घुस सके. वो उसके दोनो निपल्स पे अब भी लगे हुए थे और बारी बारी दोनो चूस रहे थे. रूपाली की दोनो टाँगें हवा में थी जिन्हें वो चाहकर भी नीचे नही कर पा रही थी क्यूंकी जैसे ही घुटने नीचे को मोडती तो जांघों की नसे अकड़ने लगती जिससे बचने के लिए उसे टांगे फिर हवा में सीधी करनी पड़ती. कमरे में बेड की आवाज़ ज़ोर ज़ोर से गूँज रही थी.रूपाली की गांद पे ठाकुर के अंडे हर झटके के साथ आकर टकरा रहे थे. दोनो के जिस्म आपस में टकराने से ठप ठप की आवाज़ उठ रही थी. ठाकुर के धक्को में अब तेज़ी आ गयी थी. अचानक एक ज़ोर का धक्का रूपाली के चूत पे पड़ा, लंड अंदर तक पूरा घुसता चला गया और उसकी चूत में कुच्छ गरम पानी सा भरने लगा. उसे एहसास हुआ के ठाकुर झाड़ चुके हैं. मज़ा तो उसे क्या आता बल्कि वो तो शुक्र मना रही थी के काम ख़तम हो गया. ठाकुर अब उसके उपेर गिर गये थे. लंड अब भी चूत में था, हाथ अब भी रूपाली के गांद पे था और मुँह में एक निपल लिए धीरे धीरे चूस रहे थे. रूपाली एक लंबी साँस छ्चोड़ी और अपनी गर्दन को टेढ़ा किया. उसकी नज़र दरवाज़े पे पड़ी जो हल्का सा खुला हुआ था और जिसके बाहर खड़ा भूषण सब कुच्छ देख रहा था.
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#12
Update 8

रूपाली की आँख खुली तो रात अब भी पुर नूर पे थी. उसने घड़ी की तरफ देखा तो रात के 2 बज रहे थे. वो अब भी आधी नंगी हालत में पड़ी थी. .साड़ी उपेर को खिसकी हुई थी और कमर से खुल गयी थी. उसकी चूत तो ढाकी हुई थी पर टांगे जाँघ तक खुली हुई थी. ब्लाउस के सारे बटन ठाकुर ने तोड़ दिए थे जिसके कारण वो उसे चाहकर भी बंद नही कर सकती थी. ब्लाउस उसके सीने से हटकर दोनो तरफ से कमर के नीचे दबा हुआ था और दोनो चूचियाँ खुली पड़ी थी. रूपाली ने गर्दन घूमाकर ठाकुर की तरफ देखा तो वो भी वैसे ही नंगे सोए पड़े थे. लंड बैठ चुका था और उनका एक हाथ अब भी रूपाली के पेट पे था. रूपाली ने उठने की कोशिश की तो दर्द से उसकी चीख सी निकल गयी. उसकी चूत में अब भी दर्द हो रहा था. छातियाँ चूसे जाने की वजह से पूरी लाल थी और एक छाती पे ठाकुर के दाँत के निशान बने हुए थे. रूपाली ने अपनी चूत पे हाथ फिराया तो कराह उठी. नीचे उसकी गांद पे भी ठाकुर ने अपने नाख़ून गाड़ा दिए थे.

रूपाली ने ठाकुर का हाथ अपने पेट से हटाया और फिर बिस्तर पे गिर पड़ी. उसने अपने आपको ढकने की कोई कोशिश नही की. फायडा भी नही था. वो चाहती भी तो यही थी के ऐसा हो पर ये नही जानती थी के इस तरह होगा. ठाकुर ने उसको संभलने का कोई मौका नही दिया. जो आग 10 साल से जमा हो रही थी एक झटके में रूपाली के उपेर निकाल दी. इससे पहले के रूपाली कुच्छ समझ पाती वो चुद रही थी अपने ही ससुर से. उन्होने उसके दर्द की कोई परवाह नही की. बस उसे किसी रंडी की तरह नीचे पटका और उसपर चढ़ गये.

रूपाली का ध्यान फिर से अपने गुज़रे कल में चला गया. कहाँ वो सीधी सादी से लड़की जो अपने भगवान में खोई रहती थी और कहाँ ये बदली हुई औरत जो अपने ससुर के बिस्तर पे नंगी पड़ी हुई थी, उनसे चुद्वने के बाद. जिसकी चूत में उसका नौकर तक उंगलियाँ कर चुका था. उसने एक ठंडी आह भारी और अपने भगवान को कोसने लगी. उसने क्या सोचा था और नसीब ने उसे क्या दिन दिखाए थे. कहाँ वो इस हवेली में एक बहू की हैसियत से आई थी और अपने ही ससुर की रखेल बनने की तैय्यारि कर रही थी. वजह सिर्फ़ एक थी. उसे अपने पति के क़ातिल का पता लगाना था, पता करना था के वो कौन शक्श था जिसने उसकी ज़िंदगी बर्बाद की थी.

"यही बदला दिया है तूने मेरी पूजा पाठ का, है ना?" उसने अपने दिल ही दिल में भगवान पे जैसे चीखते हुए कहा.

अचानक उसका ध्यान दरवाज़े की तरफ गया जो अब बंद हो चुका था. भूषण ने उसकी पूरी चुदाई देखी थी. जाने वो काब्से दरवाज़े पे खड़ा सब कुच्छ देख रहा था. शायद रूपाली के चीख सुनकर आया था या शायद उससे पहले ही खड़ा था. जब ठाकुर के झाड़ जाने के बाद रूपाली ने उसकी तरफ देखा तो एक पल के लिए दोनो की नज़र एक दूसरे से टकराई. रूपाली ने सीधे भूषण की आँख में आँख डालकर देखा तो भूषण ने नज़र नीची कर ली और दरवाज़ा बंद करके वापिस चला गया. उसके बाद ठाकुर यूँ ही थोड़ी देर रूपाली के उपेर. लंड सिकुड़कर खुद ही चूत से बाहर निकल गया तो वो बिस्तर पे ढेर हो गये. दोनो जाग रहे थे पर किसी ने कुच्छ नही कहा. ना रूपाली ने उठकर अपने आपको ढकने की कोशिश की और ना ही ठाकुर बिस्तर से उठे. दोनो यूँ ही नंगे पड़े पड़े जाने कब सो गये थे.

रूपाली ने नज़र उठाकर घड़ी की तरफ देखा तो 3 बज चुके थे. उसने एक पल के लिए उठकर अपने कमरे में जाने की सोची पर फिर एक ठंडी आह भारी, अपने आपको किस्मत के हवाले किया और वहीं अपने ससुर के बिस्तर पे ही फिर सो गयी और सपने मैं खो गयी

रूपाली एक जंगल के बीचो बीच खड़ी थी. चारो तरफ ऊँचे पेड़ थे. अजीब अजीब सी आवाज़ आ रही थी. अंधेरा इतना के हाथ को हाथ नही सूझ रहा था. उसने पेर आगे बढ़ाने की कोशिश की तो दर्द की एक तेज़ ल़हेर उठी. वो नंगे पेर थी और उसने एक काँटे पे पेर रख दिया था. रूपाली ने अपना पेर उठाया और काँटे को बाहर खींचकर फिर लड़खड़ा कर आगे बढ़ी. आसमान पे नज़र डाली तो पूरा चाँद था पर चाँदनी नही थी. कोई रोशनी कहीं से नज़र नही आ रही थी. हर तरफ घुप अंधेरा. पास ही किसी साँप की फूंकारने की आवाज़ आ रही थी जो धीरे धीरे नज़दीक आ रही थी. शायद वो साँप उसी की तरफ बढ़ रहा था. रूपाली ने तेज़ी से कदम उठाए और आवाज़ से दूर भागने लगी. पर जैसे जैसे वो कदम आगे उठा रही थी किसी शेर के गुर्राने की आवाज़ नज़दीक आ रही थी. शायद आगे कोई शेर था जिसकी तरफ वो भागी जा रही थी. रूपाली फ़ौरन रुकी और दूसरी तरफ भागने लगी. साँप और शेर की आवाज़ अब भी उसके पिछे से आ रही थी. अचानक एक शोर सा पेड़ से उठा और रूपाली को बहुत से बंदर हल्के हल्के दिखाई दिए. वो बंदर बहुर शोर मचा रहे थे. शायद उन्हें उसका अपने इलाक़े में आना पसंद नही आ रहा था. रूपाली रुकी और फिर पलटकर दूसरी तरफ को भागने लगी. पर अब बंदर भी उसके पिछे पड़े हुए थे. उसके पिछे साँप, शेर और बंदर तीनो आ रहे थे. रूपाली को समझ नही आ रहा था के क्या करे. बस बदहवास भागती जा रही थी. साँप से दूर. शेर से दूर, बंदरों से दूर.

भागती भागती अचानक वो जंगल से निकलकर एक खुले मैदान में आ पहुँची. यहाँ अंधेरा नही था. यहाँ चाँदनी थी. रोशनी में आई तो रूपाली को एहसास हुआ के उसकी ब्लाउस खुली हुई है और अंदर ब्रा नही थी जिसकी वजह से उसकी दोनो बड़ी बड़ी चूचियाँ खुली हुई थी और भागते हुए उपेर नीचे हो रही थी. रूपाली ने एकदम अपने ब्लाउस को पकड़के सामने किया और अपने सीने को ढका. वो भागते भागते थक चुकी थी और जानवर शायद अब उसके पिछे नही थे क्यूंकी शोर बंद हो गया था. रूपाली तक कर ज़मीन पे बैठी ही थी के शोर फिर उठा. वो एक खुले मैदान में थी जिसके चारों तरफ घना जंगल था. ऊँचे पेड़ थे जिनके अंदर अंधेरे की वजह से कुच्छ नज़र नही आ रहा था. अचानक शोर फिर उठा और एक तरफ से सारे पेड़ हिलने लगे. उनपर से बड़े बड़े बंदर ज़मीन पे उतरकर चीखते हुए दाँत दिखाते हुए रूपाली के तरफ बढ़ने लगे. रूपाली घबराकर फिर उठी और भागने को हुई ही थी के देखा के दूसरी तरफ से एक बड़ा सा साँप जंगल से निकला और उसकी तरफ बढ़ा. तीसरी तरफ से एक बहुत बड़ा शेर जंगल से निकल गुर्राते हुए उसकी तरफ आने लगा. बंदरों का शोर उसके कानो के पर्दे फाड़ रहा था. वो तीन तरफ से घिर चुकी थी. रूपाली के पास अब और कोई चारा नही था सिवाय इसके के चौथी तरफ से फिर जंगल में भाग उठे. वो फिर जंगल की तरफ भागी पर अचानक उसके सामने से एक तेज़ रोशनी आती हुई दिखाई दी. रूपाली फिर सहम कर रुक गयी. रोशनी धीरे धीरे नज़दीक आती गयी और साथ ही कार के एंजिन की आवाज़ भी आने लगी. रोशनी अब बहुत नज़दीक आ गयी थी और रूपाली को अपनी आँखों पे हाथ रखना पड़ा. अचानक एक कार जंगल से निकली और रूपाली से थोड़ी दूर जाकर रुक गयी. रूपाली ने आँखें खोलकर देखा तो वो कार पुरुषोत्तम की थी. उसकी जान में जान आ गयी. उसका पति उसे बचाने को आ गया था. वो खुश होते हुई कार की तरफ भागी तो ध्यान दिया के सारे जानवर अब जा चुके हैं. शायद कार से डरकर भाग गये थे. वो खुश होती कार के पास पहुँची ही थी के कार का दरवाज़ा खुला और खून से लथपथ पुरुषोत्तम गाड़ी से बाहर निकलकर गिर पड़ा. उसकी आँख, नाक, कान मुँह हर जगह से खून निकल रहा था. उसने ज़मीन पे गिरे गिरे मदद के लिए रूपाली की तरफ हाथ उठाया. रूपाली अपने पति के पास पहुँची और ज़मीन पे बैठ कर उसका सर अपनी गोद में रख लिया.

"क्या हुआ आपको?" उसने लगभग चिल्लाते हुए पुरुषोत्तम से पुचछा.

"रूपाली ..................." पुरुषोत्तम जवाब में बस इतना ही कह सका. उसके मुँह से खून अब और ज़्यादा बहने लगा था. आअंखों में खून उतर जाने की वजह से आँखें लाल हो गयी थी.

रूपाली ने परेशान होकर अपने चारों तरफ देखा जैसे मदद के लिए किसी को ढूँढ रही हो और सामने से उसे भूषण आता हुआ दिखाई दिया एक बार फिर उसकी हिम्मत बँधने लगी.

"भूषण काका" वो भूषण की तरफ देखके चिल्लाई " देखिए इन्हें क्या हो गया है. मदद कीजिए. इन्हें डॉक्टर के पास ले जाना पड़ेगा"

पर भूषण अब उससे थोड़ी दूर रुक गया था और खड़ा हुआ सिर्फ़ देख रहा था.

"आप रुक क्यूँ गये. इधर आइए ना" रूपाली फिर चिल्लाई पर भूषण वहीं खड़ा हुआ उसे एक मुर्दे की तरह देखता रहा.

"रूपाली" अपने पिछे से एक जानी पहचानी भारी सी आवाज़ सुनकर रूपाली पलटी तो देखा के पिछे उसके ससुर ठाकुर शौर्या सिंग खड़े हुए थे.

"पिताजी" रूपाली की आँखों में खुशी के आँसू आ गये

"देखिए क्या हो गया" उसने अपनी पति की तरफ इशारा किया.

जवाब में ठाकुर ने उसके बाल पकड़े और उसे खींचकर सीधा खड़ा कर दिया. पुरुषोत्तम का सिर उसकी गोद से निकलकर ज़मीन पे गिर पड़ा. रूपाली की कुच्छ समझ नही आ रहा था के क्या हो रहा है. ठाकुर उसे बाल से पकड़कर खींचता हुआ कार की तरफ ले गया और कार के बोनेट पे उसे गिरा दिया.

"क्या कर रहे हैं पिताजी?" रूपाली ने पुचछा तो ठाकुर ने उसे खींचकर फिर सीधा खड़ा किया, घुमाया और उसे झुककर उसका सर कार के बोनेट से लगा दिया. अब रूपाली झुकी हुई अपने ससुर के सामने खड़ी थी.

उसने उठने की कोशिश की पर पिछे उठ नही पाई. ठाकुर अब पिछे से उसकी सारी उठा रहे थे और रूपाली चाहकर भी कुच्छ नही कर पा रही थी. जैसे उसके हाथ पावं में जान ही ना बची हो. जैसे किसी अंजान ताक़त ने उसे पकड़ रखा हो. ठाकुर सारी उठाकर अब उसकी कमर पे डाल चुके थे. नीचे से रूपाली की दोनो टाँगें और गांद खुल गयी थी. उसकी चूत पिछे से ठाकुर के सामने खुली हुई थी.ठंडी हवा लगी तो रूपाली को महसूस हुआ के आज तो उसने पॅंटी भी नही पहनी थी.

"ये कैसे हुए, कैसे भूल गयी मैं" रूपाली सोच ही रही थी के उसे अपनी चूत में कुच्छ घुसता हुआ महसूस हुआ. उसके बदन में दर्द की चुभन उठती चली गयी. लगा जैसे चूत को फाड़ कर दो हिस्सो में कर दिया गया हो. वो लंबी सी मोटी चीज़ अब भी उसके अंदर घुसती चली जा रही थी. उसका सर और हाथ कार के बोनेट पे रखे हुए थे और दोनो चूचियाँ सामने लटक गयी थी. एक हाथ आगे आया और उसके एक चूची को पकड़कर दबाने लगा.

रूपाली के अंदर जान बाकी नही थी. वो चाहकर भी कुच्छ ना कर पा रही थी. बश झुकी खड़ी थी. पीछे से उसके ससुर ने एक हाथ से उसकी गांद और दूसरे हाथ से उसकी एक चूची पकड़ रखी थी. थोड़ी दूर खड़ा भूषण अब ज़ोर ज़ोर से हस रहा था. एक लंबी मोटी से चीज़ उसकी चूत में अब भी और अंदर घुसने की कोशिश कर रही थी.

हड़बड़ा कर रूपाली की आँख खुली तो देखा के वो एक सपना देख रही. उसके पूरा बदन पसीने से भीग चुका था और वो सूखे पत्ते की तरफ काँप रही थी. ठाकुर अब उसकी साइड में नही थे और वो अकेली ही बिस्तर पे आधी नंगी पड़ी थी. उसे बहुत ज़ोर से सर्दी लग रही थी. हाथ लगाया तो देखा के उसका माथा किसी तवे की तरह गरम हो चुका था. सपना जैसे अब भी उसकी आँखों के सामने घूम रहा था और भूषण के हस्ने की आवाज़ अब भी उसके कान में थी.

रूपाली लड़खड़ाते हुए बिस्तर से उठी. खड़ी होते ही खुली हुई साड़ी ज़मीन पे जा गिरी. रूपाली ने झुक कर उसे उठाया पर बाँधने की कोई कोशिश नही की. सामने से ब्लाउस खुला हुआ था और उसकी चूचियाँ बाहर लटक रही थी. रूपाली ने साडी को अपने सामने पकड़ा और चूचियों को ढका. वो धीरे धीरे चलती ठाकुर के कमरे से बाहर निकली और इधर उधर देखा. हवेली सुनसान पड़ी थी. भूषण भी कहीं नज़र नही आ रहा था. वो धीमे कदमों से सीढ़ियाँ चढ़ते अपने कमरे में पहुँची और फिर जाकर अपने बिस्तर पे गिर पड़ी. उसके जिस्म में बिल्कुल जान नही थी. पूरा बदन आग की तरह गरम हो रहा था. सर्दी भी उसे बहुत लग रहा था. माथा गरम हो चुका था और बुखार की वजह से आँखें भी लाल हो रही थी. रूपाली बिस्तर पे पड़े पड़े ही अपने जिस्म से कपड़े हटाए और नंगी होकर बाथरूम में आई. दरवाज़े का सहारा लिए लिए ही उसने बाथटब में पानी भरा और नहाने के लिए टब में उतर गयी.

शाम ढल चुकी थी. रूपाली अब भी अपने कमरे में ही थी. उसने सुबह से कुच्छ नही खाया था और ना ही अपने कमरे से निकली थी. बुखार अब और तेज़ और हो चुका था और रूपाली के मुँह से कराहने की आवाज़ निकलने लगी थी. उसने कई बार बिस्तर से उठने की कोशिश की पर नाकाम रही. गर्मी के मौसम में भी उसने अलमारी से निकालकर रज़ाई ओढ़ रखी थी पर सर्दी फिर भी नही रुक रही थी. वो बिस्तर पे सिकुड सी गयी. जब दर्द की शिद्दत बर्दाश्त नही हुई तो उसकी आँखो से आँसू बह चले और वो बेज़ार रोने लगी.

उसे याद था के पुरुषोत्तम के मरने से पहले जब वो एक बार बीमार हुई थी तो किस तरह उसके पति ने उसका ख्याल रखा था और आज वो अकेली बिस्तर पे पड़ी कराह रही थी. पति की याद आई तो उसका रोना और छूट पड़ा. वो बराबर रज़ाई के अंदर रोए जा रही थी पर जानती थी के ये रोना सुनने वाला अब कोई नही है. उसे खुद ही रोना है और खुद ही चुप हो जाना है. आँसू अब उसके चेहरे से लुढ़क कर तकिये को गीला कर रहे थे.

"बहू" दरवाज़े पे दस्तक हुई. बाहर भूषण खड़ा था

"खाना तैय्यार है. आके खा लीजिए." वो उसे रात के खाने पे बुला रहा था.

"नही मुझे भूख नही है" रूपाली ने हिम्मत बटोरकर कहा.

भूषण वापिस चला गया तो रूपाली को फिर अपने उपेर तरस आ गया. आज बीमार में उसे कोई खाने को पुच्छने वाला भी नही है. उसे अपनी माँ और भाई की याद आई जो कैसे उसे लाड से ज़बरदस्ती खिलाया करते थे, उसे अपने पति की याद आई जो उसकी कितनी देखभाल करता था.

थोड़ी देर बाद दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई तो रूपाली ने रज़ाई से सर निकालकर बाहर देखा. दरवाज़े पे उसके ससुर खड़े थे जो हैरानी से उसे देख रहे थे. वजह शायद रज़ाई थी जो उसने गर्मी के मौसम में भी अपने उपेर पूरी लपेट रखी थी.

"क्या हुआ?" ठाकुर ने पुचछा

"जी कुच्छ नही. बस थोड़ी तबीयत खराब है" रूपाली ने उनकी तरफ देखते हुए कहा

ठाकुर धीरे से उसके नज़दीक आए और उसके माथे को छुआ. अगले ही पल उन्होने हाथ वापिस खींच लिया.

"हे भगवान. तुम्हें तो बहुत तेज़ बुखार है बहू" ठाकुर ने कहा

"नही बस थोड़ा सा ऐसे ही बदन टूट रहा है. आप फिकर ना करें" रूपाली ने उठने की कोशिश करते हुए कहा.

ठाकुर ने उसका कंधा पकड़कर उसे वापिस लिटा दिया.

"हमें माफ़ कर दो बेटी. हम जानते हैं के ये हमारी वजह से हुआ है. कल रात हमने तुम्हें बहुत तकलीफ़ पहुँचाई थी." ठाकुर की आवाज़ भी भारी हो चली. जैसे अभी रोने को तैय्यार हों.

रूपाली ने जवाब में कुच्छ ना कहा.

"बहू, कल रात जो हुआ हम उसके लिए माफी माँगते हैं. कल रात.............." ठाकुर बोल ही रहे थे की रूपाली ने उनकी बात बीच में काटी दी.

"पिताजी कल रात जो हुआ वो मर्ज़ी से होता है, ज़बरदस्ती से नही. ज़रा सोचिए के जब आपको मर्ज़ी हासिल हो चुकी थी तो बलात्कार की क्या ज़रूरत थी"

रूपाली के मुँह से निकली इस बात ने बहुत कुच्छ कह दिया था. उसने अपने ससुर के सामने सॉफ कर दिया था के वो खुद चुदवाने को तैय्यार है, उन्हें उसे ज़बरदस्ती हासिल करने की कोई ज़रूरत नही है. वो खुद उनके साथ सोने को तैय्यार है तो उन्हें खुद उसे पकड़के गिराने की क्या ज़रूरत है. उसने सॉफ कह दिया था के असली मज़ा तो तब है जब वो खुद भी अपनी मर्ज़ी से चुदवाके साथ दे रही हो. उसमें क्या मज़ा के जब वो नीचे पड़ी दर्द से कराह रही हो.

रूपाली के बात सुनकर ठाकुर ने उसकी आँख में आँख डालकर देखा. जवाब में रूपाली ने भी अपना चेहरा पक्का करके नज़र से नज़र मिला दी, झुकाई नही. दोनो इस बात को जानते थे के अब उनके बीच हर बात सॉफ हो चुकी है. ठाकुर ने प्यार से फिर उसका सर सहलाया और पास पड़ा फोन उठाकर डॉक्टर का नंबर डायल करने लगे.
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#13
Update 9

रूपाली यूँ ही कुच्छ देर तक कामिनी की डायरी के पेजस पलट कर देखती रही पर वहाँ से कुच्छ हासिल नही हुआ. उसमें सिर्फ़ कुच्छ बड़े शायरों की लिखी हुई गाज़ल थी, कुच्छ ऐसी भी जो काई सिंगर्स ने गायी थी. जब डायरी से कुच्छ हासिल नही हुआ तो परेशान होकर रूपाली ने कामिनी की अलमारी खोली पर वहाँ भी सिवाय कपड़ो के कुच्छ ना मिला. रूपाली कामिनी के कमरे की हर चीज़ यहाँ से वहाँ करती रही और जब कुच्छ ना मिला तो तक कर वहीं बैठ गयी.

उसे कामिनी के कमरे में काफ़ी देर हो गयी थी.शाम ढलने लगी थी. रूपाली ने एक आखरी नज़र कामिनी के कमरे में फिराई और उठकर बाहर निकलने ही वाली थी के उसकी नज़र कामिनी के बिस्तर की तरफ गयी. चादर उठाकर बिस्तर के नीचे देखा तो हैरान रह गयी. नीचे एक अश् ट्रे और कुच्छ सिगेरेत्टेस के पॅकेट रखे थे. कुच्छ जली हुई सिगेरेत्टेस भी पड़ी हुई थी.

"कामिनी और सिगेरेत्टेस?" रूपाली सोचने पे मजबूर हो गयी क्यूंकी कामिनी ही घर में ऐसी थी जो अपने दूसरे भाई तेज को सिगेरेत्टे छ्चोड़ने पे टोका करती थी. वो हर बार यही कहती थी के उसे सिगेरेत्टे पीने वालो से सख़्त नफ़रत होती है तो फिर उसके कमरे में सिगेरेत्टेस क्या कर रही है? या वो बाहर सिर्फ़ तमाशा करती थी और अपने कमरे में चुप चाप बैठ कर सिगेरेत्टे पिया करती थी? पर अगर वो पीटी भी थी तो सिगेरेत्टे कहाँ से लाती थी? गाओं में जाकर ख़रीदती तो पूरा गाओं में हल्ला मच जाता?

रूपाली हैरानी से सिगेरेत्टेस की और देखती रही. शायद रूपाली किसी और से ये सिगेरेत्टे मँगवाती थी पर किससे? घर में कौन ऐसा था जो ये ख़तरा उठा सकता था क्यूंकी अगर किसी को पता चल जाता तो कामिनी को तो कोई कुच्छ ना कहता पर उस इंसान का गला ज़रूर कट जाता जो कामिनी को सिगेरेत्टेस लाके देता था.

रूपाली फिर परेशान होकर कमरे में ही बैठ गयी. ये सच था के कामिनी हमेशा उसे परेशानी में डाल देती थी. उसे देखकर ही रूपाली को लगता था के वो जो दिखती है वैसी है नही. लगता था जैसे पता नही कितने राज़ उसने अपने दिल में दफ़न कर रखे थे. रूपाली ने जब भी उससे बात करने की कोशिश की थी, कामिनी हर बार दूसरी तरफ मुँह घुमा लेती थी जैसे उससे नज़र मिलाने से घबरा रही हो. अचानक रूपाली को कुच्छ ध्यान आया और उसे एक सवाल का जवाब मिल गया. घर में उसके देवर तेज के अलावा सिगेरेत्टे सिर्फ़ भूषण पिया करता था. बाद में डॉक्टर के मना करने पे छ्चोड़ दी थी पर जब कामिनी यहाँ थी तो वो सिगेरेत्टे रखा करता था अपने पास. और वही एक ऐसा था जो एक बार ठाकुर के गुस्से का सामना कर सकता था क्यूंकी वो इस घर के सबसे पुराना नौकर था. रूपाली ने सोच लिया के वो भूषण से इस बारे में बात करेगी.

सिगेरेत्टेस वापिस बिस्तर के नीचे सरका कर रूपाली उठी और कामिनी की डायरी उठाकर कमरे से बाहर निकली. कमरे पे फिर से उसने लॉक लगाया और डायरी पढ़ती हुई नीचे की और चल दी. डायरी में हर शायरी ऐसी थी जिसे पढ़कर सिर्फ़ लिखने वाले के दर्द का अंदाज़ा लगाया जा सकता था. हर शायरी में मौत का ज़िक्र था. हर पेज में लिखने वाले ने अपनी मर जाने की ख्वाहिश का ज़िक्र किया था. डायरी पढ़ती हुई रूपाली अपने कमरे में पहुँची और डायरी को सामने रखी टेबल की तरफ उच्छाल दिया. डायरी थोड़ी सी खुली और एक पेज उसमें से निकल कर बाहर गिर पड़ा. रूपाली ने झुक कर काग़ज़ का वो टुकड़ा उठाया और पढ़ने लगी

तूने मयखाना निगाहों में च्छूपा रखा है

होशवालो को भी दीवाना बना रखा है

नाज़ कैसे ना करूँ बंदा नवाज़ी पे तेरी

मुझसे नाचीज़ को जब अपना बना रखा है

हर कदम सजदे बशौक किया करता हूँ

मैने काबा तेरे कूचे में बना रखा है

जो भी गम मिलता है सीने से लगा लेता हूँ

मैने हर दर्द को तक़दीर बना रखा है

बख़्श कर आपने एहसास की दौलत मुझको

ये भी क्या कम है के इंसान बना रखा है

आए मेरे परदा नशीन तेरी तवज्जो के निसार

मैने इश्क़ तेरा दुनिया से च्छूपा रखा है

काग़ज़ के टुकड़े पे लिखी ग़ज़ल को पढ़कर रूपाली ने जल्दी से कामिनी की डायरी खोली और पेजस पलटने लगी. कुच्छ बातों पे फ़ौरन उसका ध्यान गया. पहली तो ये के ये काग़ज़ इस डायरी का हिस्सा नही था. सिर्फ़ डायरी के अंदर कुच्छ इस अंदाज़ से रखा गया था के डायरी उठाने पर बाहर निकलकर ना गिरे. कामिनी की डायरी इंपोर्टेड थी जो उसके सबसे छ्होटे भाई ने विदेश से भेजी थी इसलिए पेपर्स की क्वालिटी काफ़ी अच्छी थी जबकि जो काग़ज़ उसमें रखा गया था वो एक सादा पेपर था जो किसी स्कूल के बच्चे की नोटबुक से फाडा हुआ लगता था. ऐसी नोटबुक जो गाओं में कहीं भी आसानी से मिल सकती थी. दूसरी और सबसे ज़रूरी चीज़ ये थी के ये लाइन्स कामिनी ने नही लिखी थी. हॅंडराइटिंग बिल्कुल अलग थी. रूपाली की हॅंडराइटिंग बहुत सॉफ थी और काग़ज़ पे लिखी हुई लाइन्स को देखके तो लगता था जैसे किसी ने काग़ज़ पे कीड़े मार दिए हों. तीसरी बात ये थी की कामिनी की डायरी में लिखी हुई सब लाइन्स एक लड़की की तरफ से कही गयी शायरी थी और काग़ज़ पे लिखी हुई ग़ज़ल एक लड़के की तरफ से कही गयी थी. चौथी बात ये के डायरी में कामिनी ने जो भी लिखा था सब इंग्लीश में था. लाइन्स तो सब उर्दू या हिन्दी में थी पर स्क्रिप्ट इंग्लीश उसे की थी. रूपाली जानती थी के कामिनी हिन्दी अच्छी तरह से लिख नही सकती थी इसलिए स्क्रिप्ट वो हमेशा इंग्लीश ही उसे करती थी पर काग़ज़ में स्क्रिप्ट भी हिन्दी ही थी.

रूपाली फिर सोच में पड़ गयी. क्या सच में कामिनी का कोई प्रेमी था? शायरी को पढ़कर तो यही लगता था के वो जो कोई भी था, कामिनी को बहुत चाहता था पर इश्क़ मजबूरी ज़ाहिर नही कर सकता था. रूपाली का सर जैसे दर्द की वजह से फटने लगा. वो उठी और डायरी को उठाकर अपनी अलमारी में रख दिया.

खिड़की पे नज़र पड़ी तो बाहर अंधेरा हो चुका था. वो जानती थी के आज रात वो अपने कमरे में नही सोने वाली है. आज की रात तो उसने ठाकुर के कमरे में सोना है, उनकी बीवी की तरह. रात भर अपने ससुर से चुदवा है. यही सोचते हुए वो शीसे के सामने पहुँची और मुस्कुराते हुए जैसे एक नयी दुल्हन की तरह सजकर तैय्यार होने लगी. उसने सोच लिया था के बिस्तर पे ठाकुर से बात करेगी और हवेली के बारे में वो सब मालूम करेगी जो वो जानती नही. जो उसके इस घर में आने से पहले हुआ था.

त्य्यार होकर रूपाली बाहर आई तो भूषण किचन में था.

"पिताजी जाग गये?" रूपाली ने भूषण से पुचछा

"नही अभी सो ही रहे हैं. मैं जगा दूं?" भूषण ने जवाब दिया

"नही मैं ही उठा देती हूँ. आप खाना लगाने की तैय्यार कीजिए" कहते हुए रूपाली किचन से बाहर जाने लगी पर फिर रुक गयी और भूषण की तरफ पलटी

"काका आप सिगेरेत्टे पीते हैं क्या"

भूषण हैरानी से रूपाली की और देखने लगा

"नही अब नही पीता. पहले पीता था पर फिर डॉक्टर ने मना किया तो छ्चोड़ दी. क्यूँ?" उसे रूपाली के बात का जवाब देते हुए पुचछा

"नही ऐसे ही पुच्छ रही थी. घर में और कोई भी सिगेरेत्टे पीता था? मेरे यहाँ आने से पहले?" रूपाली फिर भूषण के पास वापिस आकर खड़ी हो गयी

"सिर्फ़ एक छ्होटे ठाकुर पीते हैं. आपके देवर तेज सिंग" भूषण ने जवाब दिया

"पहले तो घर में इतने नौकर होते थे. कोई नौकर वगेरह?" रूपाली ने फिर पुचछा

"नही बेटी. नौकरों की कहाँ इतनी हिम्मत के हवेली में सिगेरेत्टे या बीड़ी पिएं. अपनी नौकरी सबको प्यारी होती है" भूषण बोला

"पर आप तो पीते थे ना काका. आपको नौकरी प्यारी नही थी?" रूपाली ने सीधे भूषण की आँखों में देखते हुए कहा

भूषण से इस बात का जवाब देते ना बना.

"चलिए छ्चोड़िए. एक बात और बताइए. इस हवेली में आपने आज तक सबसे अजीब क्या देखा है जो आज तक आपकी समझ में नही आया और जिस बात ने आज तक आपको परेशान किया है" रूपाली ने पुचछा

भूषण परेशान होकर इधर उधर देखने लगा. उससे रूपाली के इस सवाल का जवाब भी नही दिया जा रहा था. रूपाली समझ गयी के वो परेशान क्यूँ है और बोल क्यूँ नही रहा. उसका इशारा खुद रूपाली की हरकतों की तरफ था.

"नही काका. जो मैं कर रही हूँ उसके अलावा" रूपाली ने कहा

भूषण ने एक लंबी साँस छ्चोड़ी और वहीं किचन में दीवार का सहारा लेकर खड़ा हो गया

"देखो बेटी. कभी कभी ये ज़रूरी हो जाता है के जो गुज़र चुका है उसे गुज़रने दिया जाए. पुरानी बातों को जानकार क्या करोगी. क्यूँ अचानक गढ़े मुर्दे उखाड़ने की कोशिश कर रही हो तुम?" उसे रूपाली से कहा

"आप मेरी बात का जवाब दीजिए काका. जिन गढ़े मुर्दों की आप बात कर रहे हैं उनमें एक मेरा पति भी है" रूपाली की आवाज़ ठंडी हो चली थी

भूषण ने जब देखा के वो नही मानेगी तो उसने हथ्यार डाल दिए

"ठीक है तो सुनो. मैने इस हवेली में अपनी पूरी ज़िंदगी गुज़ार दी. यहाँ जो होता था एक तरीके से होता था. बड़े ठाकुर की मर्ज़ी से होता था. उनके गुस्से के सामने कोई मुँह नही खोलता था और ना ही किसी की हिम्मत होती थी के उनकी मर्ज़ी के खिलाफ कुच्छ कर सके. पर एक किस्सा ऐसा है जो आज तक मुझे समझ नही आया."

"क्या काका" रूपाली ने कहा

"तुमने हवेली के पिछे वाला हिस्सा देखा है? जहाँ अब पूरा बबूल की झाड़ियों का जंगल उग चुका है?" भूषण ने पुचछा

"हां देखा है. क्यूँ?" रूपाली अब गौर से सुन रही थी

"कभी उस जगह पे फूलों का एक बगीचा होता था. ठाकुर साहब को फूल बहुत पसंद थे. जब तुम आई थी तब भी तो था. याद है?" भूषण ने 10 साल पहले की बात की तरफ इशारा किया

रूपाली ने दिमाग़ पे ज़ोर डाला तो ध्यान आया के भूषण सच कह रहा था. वहाँ एक बगीचा हुआ करता था. बहुत खूबसूरत. वो खुद भी अक्सर वहाँ जाकर बैठा करती थी अकेले. उसके पति के मरने के बाद किसी ने हवेली के उस हिस्से की तरफ ध्यान नही दिया और बगीचा सूख कर झाड़ियों में तब्दील हो गया.

"हां याद है." रूपाली ने कहा

"उस बगीचे में कयि फूल ऐसे थे जो विदेश से मँगवाए गये थे. उनको पानी की ज़रूरत ज़्यादा होती थी. हर 2 घंटे में पानी डालना होता था तो मैं अक्सर रात को उठकर उस तरफ जाया करता था पानी डालने के लिए." कहकर भूषण चुप हो गया जैसे आगे की बात कहना ना चाह रहा हो

"आगे बोलिए काका" रूपाली ने कहा

भूषण रुक रुक कर फिर बोला, जैसे शब्द ढूँढ रहा हो

"हवेली में रात को कोई आया करता था बेटी. उस बगीचे में मैने कई बार महसूस किया के जैसे मैने एक साया देखा हो जो मेरा आने पे च्छूप गया. मैने काई बार कोशिश की पर मिला नही कोई पर मुझे महसूस होता रहता था के जो कोई भी है, वो मुझे च्छूप कर देख रहा है. मेरे वापिस जाने का इंतेज़ार कर रहा है"

भूषण बोलकर चुप हो गया और रूपाली एक पल के लिए उसके चेहरे को देखती रही. थोड़ी देर खामोश रहने के बाद वो बोली

"मैं कुच्छ समझी नही काका"

"हवेली में रात को कोई चुपके से दाखिल होता था. मैं नही जानता के वो कौन था और क्या करने आता था पर फूलों के बगीचे के आस पास ही मुझे ऐसा लगता था के कोई मेरे अलावा भी मौजूद है वहाँ" भूषण ने कहा

"पर कोई हवेली में कैसे आ सकता था? बाहर दरवाज़े पे उन दीनो 3 गार्ड्स होते थे, घर के कुत्ते खुले होते थे और हवेली के चारो तरफ ऊँची दीवार है जिसे चढ़ा नही जा सकता" रूपाली एक साँस में बोल गयी

"मैं नही जनता बेटी के वो कैसे आता था पर आता ज़रूर था. शायद हर रात" भूषण की आवाज़ में यकीन सॉफ झलक रहा था

"आप इतने यकीन से कैसे कह सकते हैं काका? अभी तो आपने कहा के आपको बस ऐसा महसूस होता था. आपका भरम भी तो हो सकता है. इतने यकीन क्यूँ है आपको?" रूपाली ने पुचछा तो भूषण ने जवाब नही दिया. रूपाली ने उसकी आँखों में देखा तो अगले ही पल अपने सवाल का जवाब आप मिल गया

"आपने देखा था उसे है ना काका? कौन था?" रूपाली ने कहा. अचानक उसकी आवाज़ तेज़ हो चली थी. उतावलापन आवाज़ में भर गया था.

"मैं ये नही जनता के वो कौन था बेटी" भूषण ने अपनी बात फिर दोहराई"और ना ही मैने उसे देखा था. मुझे बस उसकी भागती हुई एक झलक मिली थी वो भी पिछे से"

"मैं सुन रही हूं" कहकर रूपाली खामोश हो गयी

"उस रात मैने अपने दिल में ठान रखी थी की इस खेल को ख़तम करके रहूँगा. मैं अपने कमरे में आने के बजाय शाम को ही बगीचे की तरफ चला गया और वहीं च्छूप कर बैठ गया. जाने कब तक मैं यूँ ही बैठा रहा और फिर मुझे धीरे से आहट महसूस हुई. मुझे लगा के आज मैं राज़ से परदा हटा दूँगा पर तभी कुच्छ ऐसा हुआ के मेरा सारा खेल बिगड़ गया"

"क्या हुआ?" रूपाली ने पुचछा

"उपेर हवेली के एक कमरे में अचानक किसी ने लाइट ऑन कर दी. मैं हिफ़ाज़त के लिए अपने साथ एक कुत्ते को लिए बैठा था. लाइट ऑन होते ही उस कुत्ते ने भौकना शुरू कर दिया और शायद वो इंसान समझ गया के उसके अलावा भी यहाँ कोई और है. मैं फ़ौरन अपने च्चिपने की जगह से बाहर आया और उस शक्श को भागकर अंधेरे हिस्से की तरफ जाते देखा. बस पिछे से हल्की सी एक झलक मिली जो मेरे साथ खड़े कुत्ते ने भी देख ली. कुत्ता उस साए के पिछे भागा और कुत्ते के पिछे पिछे मैं भी" भूषण ने कहा

"फिर?" रूपाली ने पुचछा

"पर वो साया तो जैसे हवा हो गया था. ना मुझे उसका कोई निशान मिला और ना ही कुत्ते को. मैं 3 घंटे तक पूरी हवेली के आस पास चक्कर लगाता रहा पर कहीं कोई निशान नही मिला. हवेली और दीवार के बीच में काफ़ी फासला है. अब तो जैसे पूरा जंगल उग गया है पर उस वक़्त सॉफ सुथरा हुआ करता था फिर भी ना तो मैं कुच्छ ढूँढ सका और ना ही मेरे साथ के कुत्ते"

भूषण बोलकर चुप हो गया तो रूपाली भी थोड़ी देर तक नही बोली. आख़िर में भूषण ने ही बात आगे बढ़ाई.

इसके बाद एक हफ्ते तक मैने एक दो बार और कोशिश की पर शायद उस आदमी को भी पता लग गया था के उसका आना अब च्छूपा नही है इसलिए उसके बाद वो नही आया. और उसके ठीक एक हफ्ते बाद आपके पति पुरुषोत्तम की हत्या कर दी गयी थी. फिर क्या हुआ ये तो आप जानती ही हो"

रूपाली ये सुनकर हैरत से भूषण की और देखने लगी

"कितने वक़्त तक चला ये किस्सा? मेरा मतलब काब्से आपको ऐसा लगता था के कोई है जो आता जाता है रात को?" रूपाली ने पुचछा

"आपके पति के मरने से एक साल पहले से. एक साल तक तकरीबन हर रात यही किस्सा दोहराया जाता था" भूषण अलमारी से प्लेट्स निकालते हुए बोला

"आपने किसी से कहा क्यूँ नही काका?" रूपाली उसकी कोई मदद नही कर रही थी. वो तो बस खड़ी हुई आँखें फाडे भूषण की बातें सुन रही थी

"मैं क्या कहता बेटी? सब कहते के मेरा भरम है और मज़ाक उड़ाते. आखरी हवेली में रात को घुसने की हिम्मत कर भी कौन सकता था वो भी गार्ड्स और कुत्तो के रहते" भूषण प्लेट्स कपड़े से सॉफ करने लगा

"पर मेरे पति के मरने के बाद तो कह सकते थे. आप जानते हैं के आपने क्या च्छूपा रखा था? हो सकता है मेरे पति की जान उसी आदमी ने ली हो"रूपाली लगभग चीख पड़ी

"मैं अपना मुँह कैसे खोल सकता था बेटी?" भूषण ने नज़र झुका ली " मैं तो एक मामूली नौकर था. किसी से क्या कहता के मैने क्या देखा है जबकि ....... " भूषण ने बात अधूरी छ्चोड़ दी.

"जबकि क्या?" रूपाली से भूषण की खामोशी बर्दाश्त नही हो रही थी.

जब भूषण ने जवाब नही दिया तो रूपाली ने फिर वही सवाल दोहराया

"उस रात ये सब मैने अकेले नही देखा था. कोई और भी था जो ये सब देख रहा था" भूषण अटकते हुए बोला

"कौन?" रूपाली ने पुचछा

"आपकी सास" भूषण ने नज़र उठाकर कहा " घर की मालकिन श्रीमती सरिता देवी"
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#14
Update 10

रूपाली का मुँह फिर खुला रह गया . भूषण उसकी मर चुकी सास की बात कर रहा था

"क्या कह रहे हो काका?" उसे भूषण से कहा

"सही कह रहा हूँ बेटी. उस रात उनके कमरे की ही लाइट ऑन हुई थी जिसे देखकर कुत्ता भौंका था. जब वो शख्स भागा तो मैने एक नज़र उपेर कमरे की तरफ उठाई तो देखा के मालकिन खिड़की पर खड़ी थी. पता नही वो क्या देख रही थी पर उनकी नज़र मेरी तरफ नही थी. मैं उस आदमी के पिछे भगा और थोड़ी देर बाद जब नज़र उठाकर देखा तो कमरे की खिड़की बंद हो चुकी थी और लाइट ऑफ कर दी गयी थी"

रूपाली की समझ नही आया के वो क्या करे और क्या कहे. उसके दिमाग़ में काफ़ी सारी बातें एक साथ चल रही थी.

"भागते हुए वो आदमी कुच्छ गिरा गया था जो एक कुत्ता सूंघटा सूंघटा उठा लाया था" भूषण ने कहा

"क्या?" रूपाली ने अपनी खामोशी तोड़ी

"एक चाबी" भूषण ने जवाब दिया

"चाबी?" रूपाली ने फिर हैरत से पुचछा

"हां. वो आज भी मेरे ही पास है"

भूषण के बात सुनकर रूपाली दीवार के साथ टेक लगाकर खड़ी हो गयी.

"आपको कैसे पता के ये चाबी उसी आदमी ने गिराई थी?" उसने भूषण से पुचछा

"यकीन से तो नही कह सकता पर वो चाबी वही कुत्ता उठाके लाया था जो उस आदमी के पिछे भगा था. कुत्ता ऐसी किसी चीज़ को उठाके क्यूँ लाएगा? सिर्फ़ इसलिए क्यूंकी उस चाबी में उस आदमी की खुश्बू थी जिसके पिछे कुत्ता भाग रहा था"

"वो चाबी कहाँ है काका?" रूपाली ने कहा

"मेरे कमरे में है" बात करते करते भूषण खाना लगाने की पूरी तैय्यारि कर चुका था

"काका आपको ये सब बातें ससुर जी से अगले ही दिन बता देनी चाहिए थी. शायद मेरे पति की जान बच जाती" रूपाली की आवाज़ भारी हो चली थी

"चाहता तो मैं भी यही था बेटी" भूषण उसके करीब आता हुआ बोला"मैं तो अपने दिल में इरादा कर भी चुका था. मैने सोचा के बड़ी मालकिन अगले दिन इस बात का ज़िक्र तो करेंगी ही पर उन्होने किसी से कुच्छ नही कहा. ना तो इस बात का कोई ज़िक्र किया और ना ही कुच्छ ऐसा किया जिससे किसी को लगता के वो कुच्छ च्छूपा रही हैं. मैं उनकी इसी बात से परेशानी में पड़ गया. समझ नही आया के किसी से कहूँ या ना कहूँ और कहूँ तो क्या कहूँ और इससे पहले की मैं कोई फ़ैसला कर पता तब तक बहुत देर हो चुकी थी."

रूपाली की आँख भर आई थी. उसे भूषण पे गुस्सा भी आ रहा था और दिल से एक आवाज़ ये भी आ रही थी के इसमें इस बेचारे बुड्ढे आदमी का क्या कसूर. अचानक उसके ससुर ने उसका नाम पुकारा तो उसने जल्दी से अपने आँसू पोन्छे.

"आई पिताजी" उसने ऊँची आवाज़ में जवाब दिया और भूषण की और पलटके बोली " आअप खाना निकालो."

जाते जाते रूपाली फिर भूषण की और पलटी.

"क्या पिताजी को इस बात की खबर है?" उसने पुचछा

भूषण ने इनकार में सर हिला दिया

"होनी भी नही चाहिए" कहते हुए रूपाली चली गयी.

तेज़ कदमो से चलती वो ठाकुर के कमरे तक पहुँची. ठाकुर उठकर खड़े हुए थे

"अरे पिताजी क्या कर रहे हैं" वो भागती हुई ठाकुर के करीब पहुँची "आप लेट जाइए वरना दर्द बढ़ जाएगा पावं में"

"नही अब काफ़ी ठीक लग रहा है. लगता है मामूली मोच थी" ठाकुर ने एक कदम आगे बढ़ने की कोशिश की तो आगे की और गिरने लगे. रूपाली ने भागकर सहारा दिया

"मामूली नही थी. अब आअप लेट जाइए" रूपाली ने हस्ते हुए कहा

ठाकुर का एक हाथ रूपाली के कंधे पे था और दूसरा हाथ आधा उसकी कमर पर और आधा उसकी गांद पर.

रूपाली ने सहारा देकर ठाकुर को फिर लेटा दिया और अपनी सारी का पल्लू ठीक करते हुए बोली

"आप यहीं लेट जाइए. मैं खाना यहीं लगा देती हूं. आपको उठने की ज़रूरत नही"

कमरे से बाहर आकर वो किचन की तरफ आई. भूषण टेबल पे खाना लगा रहा था

"टेबल पे नही. पिताजी आज अपने कमरे में ही खाएँगे." रूपाली ने उसकी और आते हुए कहा

उसकी बात सुनकर भूषण प्लेट्स फिर उठाने लगा, ठाकुर के कमरे में ले जाने के लिए

"आप रहने दीजिए."रूपाली ने उसे रोकते हुए कहा"मैं कर लूँगी. आप अपने में जाके आराम कीजिए. कल सुबह मिलेंगे"

रूपाली ने उसकी आँखों में देखते हुए प्लेट्स उसके हाथ से ले ली. भूषण हैरत से उसकी तरफ देख रहा था. अब तक रूपाली और उसके बीच उस रात के बारे में कोई ज़िक्र नही हुआ था जब ठाकुर ने रूपाली को चोदा था. वो दोनो जानते थे के दोनो ने उस रात एक दूसरे को देख लिया था और शायद इसी वजह से उस बारे में बात करने से क़तरा रहे थे. भूषण पलटकर जाने लगा तो रूपाली ने उसे पिछे से कहा

"अब रात को हवेली में आपकी ज़रूरत नही होगी काका. आप आराम कर लीजिएगा. पिताजी का ख्याल मैं रख लूँगी, हर रात"

रूपाली की बात सुनकर भूषण फिर पलटकर उसे देखने लगा. रूपाली ने जैसी उसकी आँखें पढ़ ली.

"आप ठीक सोच रहे हैं काका. ठीक उसी रात की तरह जब आपने मुझे पिताजी के बिस्तर पे देखा था. बस ध्यान रहे के उस रात आपने जो किया वो फिर ना करें."

भूषण के जाने के बाद रूपाली ने ठाकुर को खाना खिलाया और खुद ही किचन सॉफ किया. सारे काम जब तक उसने निपटाए तब तक बाहर रात गहरा चुकी थी. गर्मी पुर जोश पे थी. रूपाली को हल्का हल्का सा पसीना भी आ रहा था. किचन बंद कर वो सारी के पल्लू से अपना सर पोन्छ्ते ठाकुर के कमरे में पहुँची.

"तुम क्यूँ काम कर रही हो?" उसे देखकर ठाकुर ने पुचछा

"अपने घर में मैं नही तो और कौन काम करेगा पिताजी?" रूपाली हस्ते हुए बोली और ठाकुर के पास आकर उनके पावं को देखने लगी

"अब बेहतर लग रहा है सुबह से." रूपाली ने अपने ससुर से कहा " आप आराम कीजिए. मैं थोड़ा नहा लूँ"

रूपाली जाने ही लगी थी के ठाकुर ने उसका एक हाथ पकड़ा और खींच कर बिस्तर पे गिरा दिया.

"क्या कर रहे हैं? नहा तो लेने दीजिए. जल्दी क्या है?" रूपाली ने एक ही बात में अपने ससुर के सामने सॉफ ज़ाहिर कर दिया के आज रात उसे कोई एतराज़ नही.

बदले में ठाकुर ने कुच्छ नही कहा और सिर्फ़ उसकी आँखों में खामोशी से देखते रहे.उन्होने रूपाली को खींच कर पूरी तरह से बिस्तर पे लिटा लिया था और अपने करीब कर लिया था. कमरे में एसी ऑन था इसलिए रूपाली के बदन से पसीना सूखने लगा था.

"मुझे पसीना आ रहा है. एक बार नाहकार आ जाऊं?" रूपाली ने अपने माथे पे आखरी बची कुच्छ पसीने की बूँदों की तरफ इशारा किया.

हर बार की तरह इस बार भी ठाकुर ने कुच्छ नही कहा और बस प्यार से उसके सर पे हाथ फिरते रहे. फिर हाथ माथे पे लाए और पसीना सॉफ कर दिया. रूपाली ने महसूस किया था के बिस्तर पर ठाकुर कुच्छ बोलते नही थे. बस चुप चाप सारे काम करते रहते थे.

दोनो करवट लिए एक दूसरे की तरफ चेहरा किए लेटे हुए था. नज़र अब भी एक दूसरे की नज़र से मिली हुई थी. बस एक दूसरे को देखे जा रहे थे. ठाकुर का एक हाथ धीरे धीरे रूपाली का सर सहला रहा था. नीचे टांगे एक दूसरे से मिल रही थी. रूपाली की सारी थोड़ी सी उठकर उपेर घुटनो तक आ पहुँची थी. धीरे धीरे ठाकुर ने उसके चेहरे को सहलाना शुरू किया और एक उंगली उसके होंठ पर फिराई तो रूपाली की साँस अटकने लगी. अगले ही पल ठाकुर ने आगे बढ़कर अपने होंठ रूपाली के होंठो पर रख दिया

रूपाली के मुँह से आह निकल पड़ी और दोनो के होंठ एक दूसरे से मिल गये. ठाकुर ने उसके होंठो का रस चूसना शुरू किया तो रूपाली भी जवाब देने लगी. दोनो एक होंठ जैसे एक दूसरे में घुसे जा रहे थे और ज़ुबान आपस में टकराने लगी थी. रूपाली आगे को खिसक कर अपने ससुर से चिपक गयी थी और चुंबन में उनका पूरा साथ दे रही थी. बड़ी देर तक दोनो एक दूसरे के होंठ चूस्ते रहे. रूपाली ने अपने दोनो हाथों से ठाकुर का सर पकड़ रखा था और अपने ससुर के अंदर जैसे घुसी जा रही थी. ठाकुर का एक हाथ पिछे से उसकी सारी के अंदर ब्लाउस के नीचे उसकी नंगी कमर को सहला रहा था जिससे रूपाली के जिस्म की गर्मी और बढ़ती जा रही थी.

चुंबन चलता रहा और ठाकुर का हाथ सरक कर पिछे से रूपाली के ब्लाउस के अंदर चला गया. और उसकी नंगी कमर को सहलाने लगा. रूपाली जैसे हवा में उड़ रही थी. उसकी आँखें बंद हो चली थी. वो तो बस अपने ससुर के होंठ और अपने नंगे जिस्म पे उनके हाथ का मज़ा ले रही थी. ठाकुर का हाथ थोड़ी देर बाद सरक कर आगे आया और सारी के उपेर से रूपाली की छातियों के उपेर आ गया. रूपाली से रहा ना गया और जैसे ही ठाकुर ने हाथ का दबाव उसकी छातियों पे डाला वो सूखे पत्ते की तरह काँप उठी. ठाकुर धीरे धीरे सारी और ब्लाउस के उपेर से उसकी दोनो चुचियों को दबाने लगे. दोनो एक दूसरे से बुरी तरह चिपक गये थे और ठाकुर का खड़ा लंड रूपाली को अपने पेट पे महसूस हो रहा था. वो भी धीरे से आगे सारा कर अपने पेट से लंड को घिस रही थी.

ठाकुर ने हाथ रूपाली की छाती से हटाकर एक हाथ से उसका हाथ पकड़ा और अपने लंड की तरफ खींचने लगे. शरम से रूपाली ने अपना हाथ वापिस लेना चाहा पर ठाकुर ने हाथ फिर भी खींचकर अपने लंड पे रख दिया. धोती के उपेर से लंड हाथ में आते ही रूपाली के हाथ वापिस लेना बंद कर दिया और लंड हाथ में पकड़ लिया. ठाकुर ने अब उसके पुर चेहरे को चूमना शुरू कर दिया और उसके गले तक आ पहुँचे थे. रूपाली को अब किसी बात की परवाह नही थी. उसे तो बस अब चुद जाना था. वो भी उतने ही जोश के साथ अपने ससुर का साथ दे रही थी. धीरे से ठाकुर ने उसे अपने नीचे लिया और उसके उपेर चढ़ गये. होंठ फिर रूपाली के होंठो पे आ गये, हाथ से उसकी कमर पकड़ी और लंड का दबाव सारी के उपेर से सीधा उसकी चूत पे डाला. रूपाली ने कुच्छ जोश में और कुच्छ शरम से अपनी टांगे बंद करने की कोशिश की पर ठाकुर ने अपने घुटनो से उसकी दोनो टांगे फेला दी और लंड धीरे धीरे उसकी चूत पे बड़ाने लगे.

रूपाली अब ज़ोर ज़ोर से आहें भर रही थी. एसी में भी पसीना दोबारा उसके माथे पे आ गया था. ठाकुर उसे पागलों की तरह चूम रहे थे और नीचे से सारी के उपेर से ही उसकी चूत पे धक्के मार रहे थे. हाथ उसके नंगे पेट पे घूम रहा था. थोड़ी देर बाद वो उठ कर सीधे हुए, अपना कुर्ता निकाला और फिर रूपाली के उपेर लेट गये. चुंबन फिर शुरू हो गया पर इस बार हाथ सीधा रूपाली की चूचियों पे आ गये थे. थोड़ी देर ऐसे ही चूचियाँ दबाने के बाद उन्होने उसकी सारी का पल्लू हटाया और उसके ब्लाउस के बटन्स खोलने लगे. रूपाली को फिर शरम महसूस हुई. वो अपनी दोनो चूचियाँ ठाकुर को पहले भी दिखा चुकी थी, दबवा चुकी थी पर फिर भी ऐसा लग रहा था जैसे पहली बार कर रही हो. वो कुच्छ समझ पाती उससे पहले ही उसका ब्लाउस खुल चुका था और दोनो चूचियाँ सफेद ब्रा में बंद ठाकुर के सामने थी. ठाकुर ने अपने होंठ उसके क्लीवेज पर रख दिए और नीचे से ब्रा उपेर को उठाने लगे. रूपाली ने रोकने की कोशिश की जो किसी काम ना आई और उसका ब्रा उपेर कर दिया गया. दोनो चूचियाँ छलक कर ठाकुर के सामने थी.

ठाकुर ने उसकी दोनो चूचियों को अपने हाथों में थामा और दबाते हुए नीचे झुक कर चूसने लगे. एक एक करके रूपाली के दोनो निपल ठाकुर के मुँह में जाने लगे. हाथ से दबाने का काम अब भी चल रहा था और नीचे से सारी के उपेर से ही चूत पे धक्के पड़ रहे थे. रूपाली अपने आपे से बिल्कुल बाहर जा चुकी थी. उसे अब कोई परवाह नही थी के उसपर चढ़ा हुआ मर्द उसका अपना ससुर था. उसे तो बस अब एक लंड की ज़रूरत थी.

उसने महसूस किया के ठाकुर उसके उपेर से उतर कर थोड़ा एक तरफ को हो गये. लंड चूत से हट गया तो रूपाली एक ठंडी आह भर कर रह गयी. चूचियाँ अब भी ठाकुर के हाथों में थी. उसने आँखें बंद किए कुच्छ समझने की कोशिश की के क्या हो रहा है और जल्दी ही पता चल गया. ठाकुर का एक हाथ अब उसके पेट से होके सारी के उपेर से उसकी चूत पे आ गया था और धीरे से उसकी टाँगो के बीच घुस गया था. रूपाली तड़प उठी और उसने फ़ौरन अपने टांगे बंद करके ठाकुर के हाथ को हटाने की कोशिश की पर फिर नाकाम रही. हाथ वहीं रहा और उसकी चूत को घिसता रहा. थोड़ी देर बाद उसे ठाकुर का हाथ अपनी चूत से हटकर फिर अपने पेट पे आता हुआ महसूस हुआ और अगले ही पल उसकी सारी सामने की तरफ से बाहर खींच दी गयी.

रूपाली के पुर जिस्म ने एक झटका लिए और उसने दोनो हाथों से अपनी सारी से अपना जिस्म ढकने की कोशिश की. ठाकुर ने उसके दोनो हाथों को अपने एक हाथ से पकड़ा और उसके सर के उपेर ले जाकर पकड़ लिया. रूपाली ने लाख कोशिश की पर अपने हाथ च्छुडा नही पाई. दिल ही दिल में वो ठाकुर की ताक़त की क़ायल हो गयी. इस उमर में भी सिर्फ़ एक हाथ से उन्होने उसे काबू कर लिया. वो सोच ही रही थी के उसे अपने पेटीकोट का नाडा खुलता हुआ महसूस हुआ. उसके मुँह से फिर एक आह निकल पड़ी जो आधी मज़े में डूबी हुई थी और आधी एक इनकार में जो ठाकुर को रोकने के लिए थे. दूसरे ही पल नाडा खुल गया, पेटीकोट ढीला हुआ और ठाकुर का हाथ उसके पेटीकोट में घुसकर पॅंटी से होता सीधा उसकी चूत पे जा पहुँचा.

रूपाली के जिस्म में करेंट दौड़ने लगा. जिस्म झटके मारने लगा और उसने अपनी टांगे ज़ोर से बंद कर ली. ठाकुर ने उसकी चूत को उपेर से रगड़ना शुरू कर दिया और अपनी एक टाँग उसके उपेर ले जाकर फिर रूपाली की दोनो टाँगो को फेला दिया. वो अब भी एक हाथ से उसके दोनो हाथों को पकड़े हुए थे. ठाकुर का हाथ एक बार फिर उसकी टाँगो के बीचे गया और धीरे से एक अंगुली रूपाली की चूत में दाखिल हो गयी और अंदर बाहर होने लगी.

अब रूपाली की टांगे खुद ही खुल चुकी थी. उसने अपने हाथ छुड़ाने की कोशिश भी बंद कर दी थी. ठाकुर एक उंगली से उसकी चूत मारने लगे और बारी बारी दोनो निपल्स चूसने लगे. रूपाली से जब बर्दाश्त नही हुआ तो उसके अपने एक हाथ साइड किया और ठाकुर का लंड धोती के उपेर से पकड़के दबाने लगी. उसने अब ठाकुर को रोकने की सारी कोशिश बिल्कुल बंद कर दी थी. उसका लंड पकड़ना ठाकुर के लिए जैसे एक इशारा था. वो फ़ौरन उठे और उसका पेटिकोट उतारकर फेंक दिया. रूपाली को एक पल के लिए बिठाया और उसका ब्लाउस और ब्रा भी एक तरफ कमरे में उच्छाल दिया गया. अब रूपाली अपने ससुर के सामने बिल्कुल नंगी पड़ी थी. उसके हाथ खुद बखुद आगे को आकर उसकी चूचियों की ढकने की नाकाम कोशिश करने लगे. ठाकुर ने उसकी दोनो टांगे फेलाइ और घुटनो मॉड्कर चूत बिल्कुल लंड के सामने कर ली. रूपाली की आँखों के सामने फिर वही नज़ारा आ गया जब ये लंड पहली बार उसकी चूत में घुसा था. फिर वही दर्द याद आया तो जोश एक पल में गायब हो गया. जो चूत अब तक गीली और खुली गयी थी फ़ौरन सिकुड गयी. उसने ठाकुर की तरफ देखा जो लंड उसकी चूत पे रख चुके थे और अंदर डालने की कोशिश कर रहे थे पर एक तो लंड इतना मोटा और उपेर से रूपाली की चूत जो सूख चुकी थी. लंड अंदर जा ही नही रहा था.

ठाकुर ने रूपाली की तरफ देखा जैसे कह रहे हों के "तुम अभी तैय्यार नही हो बहू" और उसके उपेर से हटने लगे. रूपाली ने फ़ौरन हाथ आगे करके लंड पकड़ा और अपनी चूत के मुँह पे रख दिया और अंदर को दबाने लगी. ठाकुर इशारा समझ गये और उन्होने एक तेज़ धक्का मारा. लंड का अगला हिस्सा रूपाली की चूत के अंदर था.

रूपाली को एक हल्की सी चुभन महसूस हुई और उसके अपने ससुर को अपने उपेर खींच कर उनसे लिपट गयी. ठाकुर ने उसके मुड़े हुए घुटनो को अपने हाथ से पकड़ा और लंड धीरे धीरे अंदर बाहर करने लगे. हल्के हल्के धक्को के साथ लंड चूत में और अंदर जाता रहा और रूपाली की आँखें फेल्ती चली गयी. उसे दर्द होना शुरू हो गया था पर ये दर्द पिच्छले दर्द के मुक़ाबले कुच्छ नही था. इस दर्द में मज़ा ज़्यादा था.लंड काफ़ी हद तक अंदर जा चुका था. ठाकुर ने एक आखरी बार लंड थोड़ा सा बार खींचकर ज़ोर से धक्का मारा और लंड पूरा रूपाली की चूत में घुसता चला गया. ठाकुर की टटटे आकर रूपाली की गांद से टकरा गये.

रूपाली के मुँह से हल्की सी चीख निकल गयी. आँखें फेल गयी, मुँह खुल गया और माथे पे सिलवटें पड़ गयी. उसकी कमर ने ज़ोर से झटका मारा और टांगे सीधी होकर ठाकुर की गिरफ़्त से आज़ाद हो गयी. रूपाली ने कसकर अपने ससुर को अपने से चिपका लिया और टांगे मोड़ कर उनकी कमर पर कस दी. लंड अब चूत में अंदर बाहर होना शुरू हो गया था और रूपाली की चुदाई शुरू हो गयी थी. ठाकुर उसके उपेर पड़े हुए उसे बराबर चोदे जा रहे थे. धक्को में अब तेज़ी आ गयी थी और रूपाली की चूत फिर से पूरी फेल गयी. उसकी आँखें फिर से बंद हो गयी और रात में भी जैसे दिमाग़ में सूरज की रोशनी सी फेल गयी. चूत पे पड़ता हर धक्का उसे जन्नत का नज़ारा करा रहा था. जाने कितनी देर वो ऐसे ही पड़ी चुदवाती रही. उसे अपनी टाँगो पे ठाकुर के हाथ महसूस हुए वो उन्हें सीधी कर रहे थे. ठाकुर उठके सीधे बैठे और रूपाली को करवट से लिटा दिया और खुद उसके पिछे की तरफ लेट गये. लंड अब भी चूत में ही था. रूपाली ने करवट लेकर पास रखे तकिये को ज़ोर से पकड़ लिया. अब वो करवट से लेटी हुई थी. ठाकुर उसके पिछे से करवट लेकर उससे चिपक कर लेटे हुए थे. उनका चौड़ा सीना उसकी पीठ पे लग रहा था और एक हाथ रूपाली की चूचियों की बेरहमी से मसल रहा था. लंड पिछे से चूत में अंदर बाहर रहा था और ठाकुर के लंड के पास का अगला हिस्सा रूपाली के गांद से टकरा रहा था. रूपाली की आहें अब तेज़ होकर कमरे में गूंजने लगी थी. एक बार ठाकुर ने ज़ोर से धक्का मारकर लंड बाहर की तरफ खींचा तो लंड पूरा ही बाहर निकल गया. रूपाली को लगा जैसे उसके जिस्म का ही एक हिस्सा बाहर चला गया हो और वो फिर से लंड लेने को तड़प उठी. उसने जल्दी से हाथ पिछे ले जाकर लंड पकड़कर चूत में घुसाने की कोशिश की पर ठाकुर तब तक ऑलरेडी लंड घुसाने की कोशिश कर रहे थे.दोनो करवट से लेटे हुए थे. ठाकुर उसके पिछे थे और रूपाली की भारी भारी उठी हुई गांद होने के कारण लंड को चूत का मुँह नही मिल रहा था. रूपाली ने भी हाथ नीचे करके लंड पकड़ना चाहा ताकि चूत का रास्ता दिखा सके. ऐसे ही एक कोशिश में लंड फिसल कर रूपाली के गांद पे आ गया और ठाकुर ने आगे घुसने की कोशिश को तो रूपाली को लंड अपनी गांद में घुसता महसूस हुआ. वो चिहुनक कर आगे की तरफ हो गयी ताकि लंड गांद में ना घुसे. ठाकुर को उसकी इस हरकत से पता चल गया के वो ग़लती से लंड कहाँ घुसा रहे थे और उनके दिल में रूपाली की गांद मारने की ख्वाहिश उठी. उसने रूपाली का चेहरा अपनी तरफ किया और उससे नज़र मिलाई जैसे रूपाली की पर्मिशन माँग रहे हों उसकी गांद मारने के लिए. रूपाली एक पल को रुकी और वासना के कारण अपने पलक झपका कर अपनी मंज़ूर दे दी. वो फिर अपने करवट पे हो गयी और तकिया ज़ोर से पकड़ लिया ताकि गांद पे होने वाले हमले को झेल सके. ठाकुर ने पिच्छ से लंड फिर उसकी गांद पे रखा और घुसने की कोशिश की पर लंड मोटा होने की वजह से नाकाम रहे. थोड़ी देर ऐसे ही कोशिश करने के बाद वो उठ बैठे. रूपाली का पेट पकड़ा और उसे उठाकर बिस्तर पे घुटनो के बल झुका दिया. अब रूपाली एक कुतिया की तरह अपने ससुर के सामने झुकी हुई थी. चूचियाँ सामने लटक रही थी. सर उसने सामने तकिये पे रख दिया और टांगे फेला दी. आज वो बिस्तर पे पहली बार किसी मर्द के सामने झुकी थी और वो भी अपने ससुर के सामने. ये तो उसने तब भी नही किया था जब उसके पति ने उसे झुकने को कहा था.

ठाकुर ने पीछे से उसकी गांद पे हाथ रखे और थोडा फेलाया. लंड अब भी रूपाली की चूत के रस से भीगा हुआ था. उन्होने फिर से लंड को रूपाली की गांद पे टीकाया और आगे को दबाने लगे. लंड का दबाव गांद पे पड़ा तो रूपाली को अपनी गांद खुलती हुई महसूस हुई और दर्द की एक तेज़ ल़हेर उसके जिस्म में दौड़ गयी. वो अगले ही पल बिस्तर पे बैठ गयी और ठाकुर की तरफ देखकर सर इनकार में हिलाया जैसे गांद मारने के लिए मना कर रही हो.

ठाकुर ने मुस्कुरा कर उसके इनकार को क़बूल कर लिया और फिर झुकने को कहा. रूपाली समझ गयी के अब ठाकुर उसे झुकाके चूत मारना चाहते हैं. वो फिर झुक गयी. टांगे फेला दी और चूत अपने ससुर के सामने पेश कर दी. अगले ही पल लंड फिर से उसकी चूत में था और धक्के फिर शुरू हो गये. रूपाली के मज़े का ठिकाना ना रहा. आज वो पहली बार इस पोज़िशन में चुद रही थी. ठाकुर का धक्का जैसे ही उसकी चूत पे पड़ता लंड चूत की गहराई तक उतर जाता, उसका सर तकिये में धस जाता और दोनो चूचियाँ हिलने लगती. रूपाली ने अपने एक हाथ से खुद ही अपनी चूचियाँ दबानी शुरू कर दी. ठाकुर के धक्को में अब तेज़ी आ गयी. वो किसी पागल सांड़ की तरह उसकी चूत पे धक्के मार रहे थे. हाथों से उसकी कमर को मज़बूती से पकड़ रखा था और लंड चूत में पेले जा रहे थे.

रूपाली को महसूस हुआ के अब तक उसके ससुर ने एक शब्द भी मुँह से नही कहा है. उसने झुके झुके ही अपनी आहह आहह के बीच ठाकुर से पुचछा

"आप क्या कर रहे हैं पिताजी?"

जवाब ना आया पर हां चूत पे धक्के और ज़ोर से पड़ने लगे. लंड और बेरहमी से चूत में अंदर बाहर होने लगा. रूपाली का अब गला सूखने लगा था. उसने फिर सवाल दोहराया.

"आप क्या कर रहे हैं पिताजी?"

इस बार भी कोई जवाब नही आया. चूत पे धक्के बराबर पड़ते रहे. ठाकुर का एक हाथ अब रूपाली एक छाति पे आ चुका था. रूपाली ने फिर पुचछा

"आप क्या कर रहे हैं पिताजी?"

इस बार ठाकुर धीरे से बोले, जैसे शर्मा रहे हों.

"हम आपसे प्यार कर रहे हैं बेटी"

"नही पिताजी" रूपाली की आह आह अब कमरे में गूँज रही थी " बताइए ना आप क्या कर रहे हैं"

"हम आपको अपना बना रहे हैं बेटी" ठाकुर ने कहा तो रूपाली को हल्की सी झल्लाहट हुई

"नही पिताजी. आप चोद रहे हैं हमें. आप अपनी बहू की चूत मार रहे हैं."

और जैसे रूपाली की बात ने कमाल कर दिया. ठाकुर . अंदर एक नयी ताक़त से आ गयी. हाथों से उसकी गांद को ज़ोर से पकड़ा और ऐसे धक्के मारने लगे जैसे रूपाली की चूत फाड़ देना चाहते हों.

"आप अपनी बहू को चोद रहे हैं पिताजी" मज़ा अचानक बढ़ जाने के करें रूपाली इस बार लगभग चिल्लाते हुए बोली " अपनी बहू की चूत में लंड घुसा रखा है आपने"

अपने मुँह से निकलती बातें सुनकर रूपाली को खुद भी हैरत हो रही थी. ये सब उसका पति उससे बुलवाना चाहता था पर वो कभी नही बोलती थी और आज खुद ही बोले जा रही थी. हैरत की बात ये थी के अपने मुँह से इन शब्दों का इस्तेमाल सुनकर वो खुद भी और गरम होती जा रही थी

"हां हम आपको चोद रहे हैं बेटी. आपकी चूत में अपना लंड पेल रहे हैं" कहते हुए ठाकुर जैसे पागल हो उठे

"चोदो पिताजी, और ज़ोर से चोदो" रूपाली भी साथ साथ चिल्ला उठी.

बेड के हिलने की आवाज़ शायद पूरी हवेली में गूँज रही थी. कमरे में वासना का एक तूफान आया हुआ था. रूपाली अपने ही ससुर के सामने कुतिया बनी हुई थी और वो पिछे से उसकी चूत पे पागलों की तरह धक्के मारने लगे. अचानक धक्के इतने ज़ोर से पड़ने लगे की रूपाली का दिल उसके मुँह को आने लगा. उसका सर सामने बेड के किनारे से जाके लगने लगा और फिर एक धक्का इतनी ज़ोर से पड़ा के उसे लगा के वो अब मर जाएगी. लंड पूरा चूत में धस्ता चला गया और एक गरम सा पानी उसकी चूत को भरने लगा. उस गरम सी चीज़ के चूत में भरते ही रूपाली की चूत ने भी पानी छ्चोड़ दिया. उसकी आँखों के आगे तारे नाचने लगी. उसे लगा वो बेहोश होने वाली है. अब झुके रहने की हिम्मत उसमें नही थी. वो बिस्तर पे उल्टी लेट गयी और ठाकुर उसके उपेर लेट गये. लंड अब भी चूत में पिचकारी मार रहा था और रूपाली की चूत किसी नदी में बदल गयी थी जो पानी छ्चोड़े जा रही थी. इतना मज़ा उसे कभी नही आया था. उसके पलके भारी हो चली थी और बंद होने लगी. उसने बंद होती पलकों से सामने शीशे की और देखा तो उसमें फिर से दरवाज़ा हल्का सा खोलकर बाहर से सब नज़ारा देखता भूषण नज़र आया.
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#15
Update 11

सुबह कुच्छ शोर सुनकर रूपाली की आँख खुली तो देखा के वो अब भी अपने ससुर के बिस्तर पर ही थी. उठकर बैठी तो एहसास हुआ के वो पूरी तरह से नंगी पड़ी, थी. जिस्म पर कोई कपड़ा नही था और ना ही चादर भी ओढ़ रखी थी. कमरे के बीचो बीच रखे बड़े से बिस्तर पे पूरी तरह से खुली हुई नंगी सो रही थी. रात की सारी कहानी एक झटके में उसके ज़हेन में दौड़ गयी और उसने जल्दी से चादर खींचकर अपने चारो तरफ लपेट ली.उसे कपड़े बिस्तर के पास नीचे पड़े हुए थे. रूपाली बिस्तर पे बैठे बैठे ही झुकी और अपने कपड़े उठाए तो टाँगो में हल्का सा दर्द महसूस हुआ. ठाकुर ने उसे कल रात 3 बार चोदा था. जब भी बीच में उनकी आँख खुलती वो रूपाली पे चढ़कर चूत में लंड घुसा देते. रूपाली की आँख भी चूत में लंड के घुसने से ही खुलती थी. उसकी चूत में अभी भी हल्का हल्का सा दर्द हो रहा था. चूचियाँ अभी भी हल्की हल्की सी लाल थी और गले पे ठाकुर के दांतो के हल्के से निशान बने हुए थे. वो शरम से दोहरी हो गयी पर ये भी सच था के कल रात उसे अपने औरत होने का पहली बार एहसास हुआ था. जिस्म से जो आनंद मिलता है उसका पता उसे कल रात चला था. अपने पति से चुदवाते वक़्त तो उसे बस इस बात का इंतेज़ार होता था के कब वो ख़तम करके उसके उपर से उतर पर अपने ससुर के साथ उसने जवानी के मज़े पूरी तरह लूटे. पहली बार सिर्फ़ टांगे खोलकर चुदवाया नही बल्कि कई पोज़िशन्स में अपनी चूत ठाकुर के सामने पेश करी. पहली बार गांद मरवाने की भी कोशिश की. उसे खुशी भी हुई और गम भी के ये सुख उसने अपने पति को कभी नही दिया.

बाहर अब भी कोई ऊँची आवाज़ में बोल रहा था. रूपाली जल्दी से उठकर खड़ी हुई और अपने जिस्म पे कपड़े डालकर बाहर आने को हुई थी के दरवाज़े पे रुक गयी. बाहर जो कोई भी था अगर रूपाली को ठाकुर के कमरे से सुबह सुबह इस हालत में बाहर आता देखता तो सब समझ जाता. वो दरवाज़े के पास ही कान लगाकर सुनने लगी और जल्दी ही समझ आ गया के आवाज़ किसकी थी. वो ठाकुर का अपना भतीजा जय था जो ठाकुर साहब से किसी बात पे बहेस कर रहा था.

"चाचा जी आप सोच लीजिए. मैं आपको जीतने पैसे आप चाहें देने को तैय्यार हूँ पर ये हवेली मुझको चाहिए" जय कह रहा था

"कौन से पैसो की बात कर रहे हो जय" ठाकुर की आवाज़ आई " वो पैसे जो मेरे ही हैं और जो तुमने मुझसे चुराए हैं?"

"वो सब अब मेरा है चाचा जी. और क्या चुराया मैने? आप और मेरे पिताजी इस जयदाद में बराबर के हिस्सेदार थे पर आपने उनको क्या दिया? मैने वही वापिस लिया है जो मेरा अपना था और अब इस हवेली को हासिल करके रहूँगा" जय चिल्ला रहा था और रूपाली को यकीन नही हो रहा था के ठाकुर उसकी बात सुन रहे हैं. एक वक़्त था के अपने सामने आवाज़ ऊँची करने वाले की वो गर्दन काट दिया करते थे.

बहेस कुच्छ देर और चलती रही थोड़ी देर बाद जय धमकी देकर चला गया. रूपाली बाहर निकालने की सोच ही रही थी के दरवाज़ा खुला और ठाकुर अंदर आए. उसे देखकर रुक गये और मुस्कुराते हुए बोले

"तुम कब उठी बेटी?"

"बस अभी थोड़ी देर पहले. ये आदमी कौन था पिताजी?" रूपाली ने पुछा जबकि वो अच्छी तरह से जानती थी के बाहर कौन आया था. ये कहानी वो भूषण से सुन चुकी थी.

"कोई नही. तुम छ्चोड़ो इस बात को. भूषण अपने कमरे में गया हुआ है. इससे पहले के वो वापिस आए तुम अपने कमरे में चली जाओ."

रूपाली ने ठाकुर से इस वक़्त कुच्छ पुच्छना मुनासिब नही समझा. उसने अपनी सारी का पल्लू ठीक किया और अपने कमरे में आ गयी. कमरे में आकर उसने कपड़े उतारे और बात टब में जाके बैठ गयी. कल रात की सारी कहानी फिर उसके दिमाग़ में चलने लगी और वो सोचने लगी के आगे क्या करे. ठाकुर में आया बदलाव वो देख चुकी थी. ठाकुर ने शराब को हाथ भी नही लगाया था और अब ज़िंदगी की और लौट रहे थे. शायद उनके अंदर वही मर्द लौट आया था जो पहली कहीं सो गया था. रूपाली को अपना ये मकसद तो पूरा होता दिख रहा था पर दूसरा मक़सद अभी भी अधूरा था. वो अब तक ऐसी कोई जानकारी हासिल नही कर सकी थी जिससे ये पता चल सके के उसके पति के खून की वजह क्या थी.

उसका ध्यान जय पे गया. अगर पुरुषोत्तम ज़िंदा होता तो कभी जय को वो ना करना देता जो उसके मरने के बाद जय ने किया. सारे ज़मीन जायदाद पुरुषोत्तम ही देखता था और हर चीज़ पे उसकी पकड़ थी. उसकी मौत का सबसे ज़्यादा फयडा जय को हुआ जिसने उसके जाते ही ठाकुर की पूरी जायदाद हड़प ली. वही एक शख्स था जो पुरुषोत्तम के मरने का एक कारण अपने पास रखता था. उसने मॅन ही मॅन जय से मिलने का इरादा कर लिया पर मुसीबत ये थी के उससे मिले कैसे? ठाकुर अपने घर की बहू को इस बात की इजाज़त कभी नही देंगे. और वो जय से मिलके क्या करे? कैसे इस बात का पता लगाए के जय ने उसके पति को क्यूँ मारा?

यही सोचती रूपाली बाथरूम से बाहर निकली. कपड़े पहनकर नीचे आई तो ठाकुर कहीं बाहर जा चुके थे. भूषण घर की सफाई में लगा हुआ था.

वो नीचे आई तो भूषण ने उसपे एक नज़र डाली और फिर काम में लग गया. भूषण को देखते ही रूपाली को चाभी वाली बात याद आई.

"वो चाबी कहाँ है काका?" उसने भूषण से पुचछा

"कौन सी चाभी?" भूषण उसकी तरफ देखने लगा

"बनो मत काका. वही चाबी जो आपने बगीचे से उठाई थी. वही चाभी जो आपको लगता है के उस आदमी ने गिराई थी जो रात को हवेली में आया था" रूपाली ने आवाज़ थोड़ी ऊँची करते हुए कहा

"वो मेरे कमरे में है" भूषण उसकी और देखते हुए बोला. रूपाली ने महसूस किया के वो उसके गले पे बने हुए निशान की तरफ देख रहा था

"लेकर आइए. मैं देखना चाहती हूँ" रूपाली ने निशान को ढकने की कोई कोशिश नही की.

"अभी लता हूँ" भूषण बाहर चला गया.

उसके जाने के बाद रूपाली वहीं सोफे पे बैठ गयी. उसके दिमाग़ में दो बातें आई. एक तो ये के एक भूषण ही था जो जय से मिलने में उसकी मदद कर सकता था और दूसरे ये के उसने अब तक सिर्फ़ कामिनी का कमरा देखा था. घर के बाकी कमरो में तलाशी अभी बाकी थी. उसका ध्यान सरिता देवी यानी अपनी सास की तरफ गया. बीमारी के वक़्त उनका कमरा अलग कर दिया था. वो अपने पति के साथ नही सोती थी. भूषण ने कहा था के हवेली में आने वाले अजनबी को उन्होने भी देखा था तो किसी से कुच्छ कहा क्यूँ नही? रूपाली ने उनके कमरे की तलाशी लेने का इरादा किया.

तभी भूषण वापिस हवेली में आता दिखाई दिया.

भूषण ने लाकर चाबी रूपाली के हाथ में थमा दी. रूपाली ने गौर से देखा तो चाभी किसी आम से ताले में लगने वाली चाभी थी.

"ये चाभी बनवाई गयी है बेटी" भूषण ने कहा

"क्या मतलब?" रूपाली ने पुचछा

"मतलब ये के जिस ताले को ये खोलती होगी, ये उसकी असली चाभी नही है. ये किसी ने असली चाभी की नकल बनवाई है. ये देखो घिसने के निशान" भूषण ने चाभी के आगे की तरफ इशारा किया

रूपाली ने ध्यान दिया. भूषण सच कह रहा था. चाभी बनवाई गयी थी. सामने के तरफ घिसने के निशान सॉफ देखे जा सकते थे

"हवेली में कहीं इस तरह का कोई ताला नही है" भूषण ने कहा " तो ज़ाहिर के ये चाभी इस हवेली की नही है"

"ये चाभी मैं रख रही हूँ काका" कहते हुए रूपाली ने चाभी अपनी मुट्ठी में बंद कर ली

"तुम इसका क्या करोगी?" भूषण ने पुचछा

"वही जो आपने नही किया" कहते हुए रूपाली अपने कमरे की तरफ बढ़ गयी. पीछे हैरान परेशान खड़े भूषण को छ्चोड़कर

"जाने ये क्या करना चाहती है पर वो जो भी है, अच्छा नही है" सोचते हुए भूषण भी हवेली के बाहर अपने कमरे की तरफ बढ़ गया

अपने कमरे में आकर रूपाली ने कपड़े बदलकर शलवार कमीज़ पहन ली और अपने बिस्तर पर गिर पड़ी. उसके दिमाग़ में चल रहे सवालो में से एक का भी जवाब उसे नही मिला था बल्कि और काई सवाल खड़े हो गये थे. कौन था जो हवेली में रात को आता जाता था? कामिनी के पास सिगेरेत्टेस कहाँ से आती थी? चाबी की तरफ उसका कोई ख़ास ध्यान नही था पर फिर भी उसने रख ली थी. ये कोई आम सी चाभी भी हो सकती थी. जो आदमी रात को हवेली में आता था उसके घर या अलमारी की चाबी. बस एक ही बात थी चाभी के बारे में जो सोचने लायक थी और वो ये के ये असली चाभी नही थी. जो भी ताला था ये उसकी एक नकल थी. और सबसे ज़्यादा बात जो रूपाली को परेशान कर रही थी वो ये थी के रात को कोई हवेली में आया था इस बात का ज़िक्र उसकी सास ने किसी से क्यूँ नही किया? कौन सी बात थी जिसे वो च्छूपा रही थी?

सरिता देवी की तरफ ध्यान गया तो रूपाली को उनके कमरे की तलाशी लेने का ख्याल आया. हवेली की चाबियाँ अब भी उसके पास ही थी. सरिता देवी का कमरा बीमारी के वक़्त अलग कर दिया गया था डॉक्टर के कहने पे. डॉक्टर ने कहा था के जब तक सरिता देवी ठीक हों उनका ठाकुर से दूर रहना बेहतर होगा. पर सरिता देवी कभी ठीक नही हुई. लंबी बीमारी के बाद चल बसी.

रूपाली सरिता देवी के कमरे के आगे पहुँची और ताला खोलकर अंदर दाखिल हुई. अंदर कमरे में घुसकर ही इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सकता था के यहाँ किसी की मौत हुई थी. अजीब मनहूसियत सी थी कमरे के अंदर. दवाई की महेक कमरे में अब भी मौजूद थी. रूपाली कमरे में आकर थोड़ी देर खड़ी यही सोचती रही के कहाँ से शुरू करे.कमरे में ज़्यादा समान नही था. बस एक अलमारी जिसमें सरिता देवी के कुच्छ कपड़े रखे थे और एक टेबल जिसपे उनकी दवाइयाँ रखी होती थी. रूपाली कमरे में टहलती खिड़की तक पहुँची और खोलकर बाहर देखने लगी. सामने झाड़ियों का एक जंगल उगा हुआ था. कभी यहाँ पर फूलों का एक खूबसूरत बगीचा होता था. रूपाली को फ़ौरन एहसास हुआ के इस जगग पे खड़े होकर पुर बगीचे का नज़ारा उपेर से मिलता था. अगर कोई बगीचे में था तो रात के अंधेरे में भी सॉफ नज़र आता तो अगर भूषण जो कह रहा है वो सच है, तो सरिता देवी ने उस रात उस आदमी को ज़रूर देखा होगा पर किसी से कुच्छ कहा नही.

रूपाली पलटकर फिर कमरे में आई और सरिता देवी के कपड़े उठाकर बिस्तर पर रखने लगी. अलमारी पूरी खाली कर दी पर कुच्छ हाथ ना आया. उसने कमरे में रखे सोफे के गद्दे हटाए पर वहाँ भी कुच्छ ना मिला. बिस्तर की चादर हटाकर एक तरफ कर दी. थोड़ी देर में पूरा कमरा उथल पुथल हो चुका था पर रूपाली के हाथ सिर्फ़ निराशा ही लगी.

तक कर रूपाली वहीं सोफे पे बैठ गयी और दरवाज़े की तरफ नज़र की तो उसके होश उड़ गये. वहाँ खड़ा भूषण आँखें फाडे उसे देख रहा था. वो समझ चुका था के रूपाली कमरे की तलाशी ले रही है रूपाली झटके से उठकर खड़ी हो गयी और भूषण की तरफ देखने लगी. उसका दिल काँप उठा था. अगर भूषण ने जाकर ठाकुर को बता दिया तो रूपाली क्या कहेगी के वो क्या कर रही थी और क्यूँ कर रही थी? उसका सारा प्लान बिगड़ जाएगा.

उसने दिल ही दिल में कुच्छ फ़ैसला किया और तेज़ कदमो से भूषण की तरफ बढ़ी. भूषण ने उसे पास आता देखा तो दो कदम पिछे हटा. रूपाली एक ही पल में उसके करीब पहुँची और उसे धक्का देकर दीवार से लगा दिया. इससे पहले के भूषण कुच्छ समझ पता रूपाली उससे सॅट गयी और अगले ही पल दोनो के होंठ मिल चुके थी. रूपाली ने भूखी शेरनी की तरफ भूषण के होंठो को चूसना शुरू कर दिया, अपनी चूचियाँ भूषण की छ्चाटी से चिपका दी और नीचे अपने हाथ से भूषण का लंड पकड़ लिया. उसे सॉफ महसूस हो रहा था के भूषण का पूरा जिस्म काँपने लगा था. आख़िर 70 साल का बुद्धा था बेचारा. रूपाली ने एक हाथ से भूषण का पाजामा खोला और उसे नीचे सरका दिया. अगले ही पल भूषण के लंड उसके हाथ में था जिसने उसे हिलाना शुरू कर दिया. भूषण काँप ज़रूर रहा था पर पिछे हटने की कोई कोशिश नही कर रहा था. उल्टे उसका एक हाथ रूपाली की कमर से घूमकर उसकी गांद पे आ गया था. रूपाली अब भी उसे होंठ चूस रही थी और उसके लंड पे मूठ मार रही थी. वो इस कोशिश में थी के शायद बुढहा लंड खड़ा हो जाए पर ऐसा हुआ नही. थोड़ी देर ऐसे ही लंड हिलाके भी जब उसे कुच्छ होता नज़र ना आया तो उसने भूषण के लंड से हाथ हटाया और अपनी शलवार का नाडा खोल दिया. सलवार एक पल में सरक कर नीचे जा गिरी.पॅंटी रूपाली ने अंदर पहन नही रखी थी. भूषण ने फिर से हाथ उसकी गांद पे रख दिया पर अब शलवार बीच में नही थी. कमीज़ के अंदर से होता हाथ सीधा रूपाली की नंगी गांद पे आ लगा.
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#16
Update 12

रूपाली ने भूषण का हाथ अपनी गांद से हटाया और थोड़ा पिछे होकर मुस्कुराइ. भूषण ने उसे सवालिया नज़र से देखा. रूपाली चलकर कमरे में रखी टेबल तक पहुँची. शलवार अब भी उसके पैरों में फसि हुई थी. टेबल के नज़दीक पहुँचकर रूपाली ने अपनी दोनो हाथ अपनी टाँगो पे फेरते हुए उपेर अपनी गांद पे लाई और अपनी कमीज़ को उपेर उठा लिया. एक हाथ से कमीज़ को पकड़े हुए उसने दूसरा हाथ टेबल पे रखा और आगे को झुक गयी. टांगे उसने अपने फेला दी. अब उसकी गांद भूषण के सामने दी. आगे को झुकी होने के कारण पिछे से उसे रूपाली की चूत भी सॉफ नज़र आ रही थी. रूपाली ने पलटकर भूषण की तरफ देखा. वो रूपाली की गांद को ऐसे देख रहा था जैसे को भूखा कुत्ता गोश्त की बोटी को देख रहा हो. रूपाली भूषण की तरफ देखकर मुस्कुराइ और अपनी कमीज़ को छ्चोड़कर वो हाथ अपनी गांद पे फेरने लगी. कमीज़ उसके पेट पे सिकुड गयी. रूपाली गांद पे हाथ फेरते हुए अपनी टाँगो के बीच हाथ ले गयी. एक बार अपनी चूत को धीरे से सहलाया और भूषण की तरफ देखते हुए बोली

"आ जाओ काका. देखते ही रहोगे क्या?"

भूषण आखें फाडे उसकी तरफ देख रहा जैसे उसे यकीन सा ना हो रहा हो. रूपाली ने दोबारा उसे आँख के इशारे से अपनी तरफ आने का इशारा किया तो वो धीरे धीरे रूपाली की तरफ बढ़ा. वो सीधा रूपाली के पिछे जा खड़ा हुआ और उसकी मोटी गांद को आँखें फाडे देखने लगा. उसकी साँस ऐसे चल रही थी जैसे कोई दमे का मरीज़ हो, जैसे अभी अस्थमा का अटॅक आया हो. जब भूषण ने कुच्छ ना किया तो रूपाली ने थोड़ा पिछे होकर उसका एक हाथ पकड़ा और अपनी गांद पे रख दिया.

"क्या हुआ काका? अभी थोड़ी देर पहले शलवार के उपेर से तो बड़ा गांद सहला रहे थे. अब मैं खोलके खड़ी हूँ तो बस देखे जा रहे हो?"

भूषण ने अपने हाथ से फिर उसकी गांद को सहलाना शुरू कर दिया. रूपाली ने देखा के दूसरे हाथ से वो अपना लंड हिला रहा था, शायद खड़ा करने की नाकाम कोशिश कर रहा था. भूषण ने अपने हाथ रूपाली की गांद के बीचे में रखा और उसकी गांद के छेद से चूत तक अपनी उंगली फिरने लगा. रूपाली का जिस्म भी अब गरम होने लगा था और चूत गीली हो रही थी. थोड़ी देर तक ऐसे ही सहलाने के बाद भूषण ने अपना दूसरा हाथ भी रूपाली के गांद पर रख दिया और उसकी गांद को मज़बूती से पकड़ लिया. रूपाली कद में उससे ऊँची थी, उससे कहीं ज़्यादा लंबी इसलिए उसके चूत भूषण के पेट तक आ रही थी. रूपाली पलटी तो देखा के भूषण अपने पंजो पे खड़ा होकर अपना लंड उसकी चूत तक पहुँचने की कोशिश कर रहा है पर कर नही पा रहा था. वो किसी मरियल कुत्ते की तरह अपना लंड हवा में ही हिला रहा था. रूपाली की हसी छूटने लगी पर उसपे कभी करते हुए उसने अपने घुटने मोड़ लिया. शलवार अब भी टाँगो में फासी हुई थी इसलिए वो अपने पेर और ज़्यादा नही फेला सकी पर घुटने काफ़ी हाढ़ तक मोड़ लेने की वजह से उसकी चूत नीचे हो गयी. अब भूषण का लंड उसकी चूत से आ लगा पर भूषण अब भी उसे चोदने में कामयाब नही हो पाया. उसका लंड ज़रा भी खड़ा नही हुआ था. एक तो छ्होटा सा लंड, उपेर से 70 साल के आदमी का और वो भी बैठा हुआ, भूषण बस लंड चूत पे रगड़ता ही रह गया.

अपने नंगे जिस्म पे भूषण के हाथों के स्पर्श से रूपाली पूरी तरह गरम हो चुकी थी और जब भूषण लंड चूत में घुसा नही पाया तो वो झल्ला उठी. उसने भूषण का हाथ अपनी गांद से हटाया और सीधी होकर खड़ी हो गयी. भूषण की तरफ पलटी और भूषण को खींचकर लगभग धक्‍का सा देकर उसे अपनी सास के बिस्तर पे गिरा दिया. उसके बाद उसने झुक कर अपने पैरों में फासी शलवार को निकालर एक तरफ उच्छाल दिया और भूषण के साथ बिस्तर पे चढ़ गयी. भूषण अब भी हैरान परेशान सा उसे देख रहा था. उसके हालत सचमुच एक कुत्ते जैसे हो गयी थी. रूपाली ने अपने दोनो हाथ उसकी छाती पे रखे और अपनो दोनो टाँगें भूषण के दोनो तरफ रखकर उसपे चढ़ बैठी. उसने नीचे से एक हाथ में भूषण का लंड पकड़ा और अपनी छूट में घुसने की कोशिश करने लगी पर नतीजा वही. लंड 1 इंच भी अंदर नही जा पा रहा था. रूपाली का दिल किया के भूषण को वहीं कमरे से नीचे फेंक दे, उसने अंदर लंड घुसने की कोशिश छ्चोड़ अपने अपनी गांद नीचे की और चूत को भूषण के लंड पे उपेर से ही रगड़ने लगी. भूषण ने दोनो हाथ से बेड को पकड़ रखा था और अपने उपेर बैठी रूपाली को चूत लंड पे रगड़ते देख रहा था. उसका लंड रूपाली की चूत के नीचे दबा हुआ था.

रूपाली तो जैसे हवा में उड़ रही थी. ये पहली बार था के वो किसी मर्द के उपेर बैठी थी. आज तक सिर्फ़ वो चुदी थी, कभी खुद नही चुदवाया था. लंड चूत में ना होने के बावजूद उसके शरीर में वासना पुर जोश पे आ चुकी थी. चूत उसने ज़ोर ज़ोर से भूषण के लंड पे रगड़नी चालू कर दी थी. पूरा बिस्तर हिल रहा था. रूपाली कभी खुद कमीज़ के उपेर से ही अपनी चूचियाँ दबाती, कभी खुद अपनी गांद पे हाथ फिराती और कभी झुक कर बिस्तर पे अपने दोनो हाथ रख भूष्ण के उपेर लेट सी जाती. बिस्तर पे रखी उसकी सास के कपड़े इधर उधर फेल चुके थे. रूपाली की एक नज़र उनपे पड़ी तो उसके दिमाग़ में घंटियाँ सी बजने लगी.

सामने सरिता देवी की सारी रखी हुई थी और खुलकर आधी बिस्तर से नीचे लटक रही थी और उस सारी के पल्लू में बँधी हुई थी एक चाभी. रूपाली ने भूषण के लंड पे चूत रगड़ते हुए गौर से देखा तो ये चाभी उस चाभी से मिलती लगी जो भूषण ने उसे दी थी. उसने हाथ बढ़कर चाभी उठाने की कोशिश की ही थी के हवेली के बाहर एक कार के रुकने की आवाज़ आई.

भूषण और रूपाली एक झटके में एक दूसरे से अलग हो गये और अपने कपड़े ठीक करने लगे.

"शायद पिताजी आ गये. आप नीचे चलिए मैं कमरा ठीक करके आती हूँ" रूपाली ने शलवार का नाडा बाँधते हुए भूषण से कहा.

भूषण ने अपना पाजामा उपेर खींचा और उसे ठीक से पहनता हुआ कमरे से बाहर चला गया. रूपाली ने उसके जाते ही अपना हुलिया ठीक किया और सारी में बँधी चाभी को निकालकर अपने ब्रा में घुसा लिया. वो कमरा ठीक करने को हुई ही थी के नीचे से भूषण की उसे बुलाने की आवाज़ आई

"बहू ज़रा नीचे आइए. कोई आया है"

रूपाली हैरत में पड़ गयी. आज सालो बाद शायद कोई अजनबी इस हवेली में आया है. उसे अपना दुपट्टा ठीक किया और सीढ़ियाँ उतारकर नीचे आई. नीचे बड़े कमरे में एक आदमी सफेद कमीज़ और खाकी पेंट पहने खड़ा हवेली को देख रहा था, जैसे जायज़ा ले रहा हो. रूपाली को आता देखा तो वो उसकी तरफ पलटा और अपनी जेब में हाथ डाला.

"सलाम अर्ज़ करता हूँ मेडम." उसने अपनी जेब से कुच्छ निकाला और रूपाली की तरफ बढ़ाया

"बंदे को ख़ान कहते हैं, इनस्पेक्टर ख़ान" वो अपना आइ कार्ड रूपाली को दिखाते हुए बोला "वैसे मेरा पूरा नाम मुनव्वर ख़ान है पर लोग मुझे प्यार से मुन्ना भी कहते हैं"

"कहिए" रूपाली सीढ़ियों से उतरती हुई बोली

"ख़ास कुच्छ नही है" ख़ान उसे उपेर से नीचे तक देखते हुए बोला" इस इलाक़े में नया आया हूँ तो सोचा ठाकुर साहब से मिल लूँ एक बार"

"वो तो इस वक़्त घर पर नही हैं" रूपाली सोफे की तरफ इशारा करते हुए बोली " आप बैठिए. कुच्छ लेंगे"

"इस वक़्त तो ठंडा ही ले लेते हैं" ख़ान सोफे पर बैठते हुए बोला. रूपाली ने भूषण को ठंडा लाने का इशारा किया

"अगर मैं ग़लत नही हूँ तो आप ठाकुर साहब की बड़ी बहू रूपाली जी हैं ? " ख़ान ने रूपाली से पुचछा

"बड़ी बहू नही, उनकी एकलौती बहू" रूपाली ने कहा

"ओह " ख़ान ने तभी आए भूषण के हाथ से ग्लास पकड़ते हुए बोला

तभी बाहर से कार रुकने की आवाज़ आई

"लगता है ठाकुर साहब आ गये" ख़ान ग्लास नीचे रखकर खड़ा होता हुआ बोला

कुच्छ पल बाद ही ठाकुर दरवाज़े से अंदर दाखिल हुए. ख़ान फ़ौरन हाथ जोड़कर आगे बढ़ा

"सलाम अर्ज़ करते हूँ ठाकुर साहब"

ठाकुर ने ख़ान की तरफ अजीब सी नज़र से देखा.

"जी मेरा नाम इनस्पेक्टर मुनव्वर ख़ान है. इस इलाक़े में नया ट्रान्स्फर हुआ हूँ" ख़ान ने फिर ई कार्ड निकालकर दिखाया " वैसे लोग मुझे प्यार से मुन्ना भी कहते हैं"

ठाकुर ने सोफे पे बैठे हुए ख़ान को बैठने का इशारा किया और रूपाली की तरफ देखकर उसे वहाँ से जाने का इशारा किया. रूपाली बड़े कमरे से निकलकर सीढ़ियों के पास आकर रुक गयी और दीवार की ओट में बातें सुनने लगी.

"शर्मा का क्या हुआ?" ठाकुर ने ख़ान से पहले उस इलाक़े में पोस्टेड इनस्पेक्टर के बारे में पुचछा

"रिटाइर हो गये." ख़ान ने जवाब दिया

"ह्म्‍म्म्म" ठाकुर ने इतना ही कहा

"मैं नया आया था तो सोचा के आपसे मुलाक़ात हो जाए" ख़ान ने अपनी बात जारी रखी " और आपसे कुच्छ बात भी करनी थी तो सोचा के वो भी कर लूँ"

"किस बारे में " ठाकुर ने पुचछा

"आपके बेटे के मौत के बारे में" ख़ान ने सीधा जवाब दिया.

थोड़ी देर यूँ ही खामोशी बनी रही. ना ठाकुर ने कुच्छ कहा ना ख़ान ने. थोड़ी देर बाद फिर ठाकुर के आवाज़ आई.

"मेरे बेटे को मरे हुए 10 साल हो चुके हैं .....ह्म्‍म्म्मम क्या नाम बताया तुमने अपना?

"ख़ान, मुनव्वर ख़ान. वैसे लोग मुझे मुन्ना भी कहते हैं" ख़ान की आवाज़ आई" 10 साल बीत तो चुके हैं ठाकुर साहब पर केस तो हमारी फाइल्स में आज भी ओपन है. देखा जाए तो शर्मा ने इस बारे में कुच्छ नही किया"

"उसे ज़रूरत भी नही थी कुच्छ करने की" ठाकुर की आवाज़ थोड़ी तेज़ हो गयी "हमारे मामले हम खुद निपटाते हैं. पोलीस धखल नही देती हमारी बातों में"

"जानता हूँ" ख़ान ने ठहरी हुई आवाज़ में जवाब दिया " आप अपने मामले खुद निपटाते हैं शायद इसी लिए आपने आस पास के इलाक़े में ना जाने कितनी लाशें गिरा दी अपने बेटे के क़ातिल की तलाश में, है ना ठाकुर साहब"

थोड़ी देर के लिए हवेली में सन्नाटा छा गया. कोई कुच्छ नही बोला. रूपाली की साँस भी अटक गयी. ठाकुर के सामने इस तरह से बात करने की किसी ने जुर्रत नही की थी. उनका रुबब अब इलाक़े में ख़तम हो चुका था शायद इसी लिए एक मामूली पोलीस वाला उनके सामने बैठकर इस अंदाज़ में बात कर रहा था.

"हवेली के बाहर जाने का रास्ता तुम्हें मालूम है या मैं बताऊं?" ठाकुर की आवाज़ आई

"मालूम है ठाकुर साहब" ख़ान ने जवाब दिया.

थोड़ी देर बाद ख़ान के हवेली से बाहर जाते कदमों की आवाज़ आई.

उस रात रूपाली फिर अपने ससुर के बिस्तर पे नंगी पड़ी हुई थी. ठाकुर उसे चोद्कर नींद के आगोश में जा चुके थे पर रूपाली की आँखों से नींद कोसो दूर थी. उसे ख़ान का यूँ हवेली में आना और 10 साल पुरानी हत्या के बारे में बात करना कुच्छ ठीक नही लग रहा था. आम तौर पर पुलिस वाले हवेली के अंदर आने की हिम्मत नही करते थे पर आज वक़्त बदल गया था. ठाकुर का रौब ख़तम हो चुका था. आज एक पुलिस वाला उनकी ही हवेली में उनपर इस बात का इल्ज़ाम लगा गया था के उन्होने अपने बेटे के बदले में खुद कई लोगों की हत्या की है. वो अब भी जवाबों से कोसों दूर थी.

ख़ान के जाने के बाद वो सीधा अपने कमरे में पहुँची थी और अपनी सास के कमरे से मिली चाभी को भूषण की दी चाभी से मिलाने लगी. दोनो चाबियाँ एक जैसी थी और सबसे गौर तलब बात ये थी के दोनो में से एक भी चाभी असली नही थी. दोनो ही नकल थी असली चाभी की. जो बात रूपाली को परेशान कर रही थी वो ये थी के क्या उसकी सास उस आदमी को जानती थी जिसे भूषण ने रात में हवेली में देखा था. शायद जानती थी इसलिए किसी से उसके बारे में कुच्छ कहा नही और अगर नही जानती थी तो ये चाभी उनके पास क्या कर रही है?

रूपाली को दो बातें और परेशान कर रही थी. एक तो ये के उसकी शादी से पहले इस हवेली में क्या कुच्छ हुआ था वो कुच्छ नही जानती थी. इस हवेली के इतिहास के बारे में कभी उसके पति ने भी उससे ज़िक्र नही किया था. और जो दूसरी बात थी वो जय की कही हुई थी. के उसने ठाकुर से वही सब लिया जो उसका अपना था. और इन दोनो बातों के सही जवाब जो आदमी उसे दे सकता था वो खुद जय था. आख़िर वो इसी घर का हिस्सा था. इसी हवेली में पला बढ़ा था. पर उससे रूपाली मिले कैसे. और अगर मिले भी तो अपने सवालों के जवाब कैसे हासिल करे. ठाकुर से वो इस बारे में सीधी बात नही कर सकती थी क्यूंकी वो जानती थे के ठाकुर या तो बताएँगे नही और अगर बताएँगे तो पूरी बात नही. और फिर ये सवाल भी उठेगा के रूपाली क्यूँ ये सब सवाल कर रही है.

रूपाली ने दरवाज़े की तरफ देखा. आज रात दरवाज़ा बंद ही रहा. आज भूषण ने पिच्छली 2 बार की तरह उसे चुदवाते हुए नही देखा था और ना ही रूपाली ने भूषण से आज इस बारे में बात की थी. और इसी चक्कर में वो ये भी पुच्छना भूल गयी थी के क्या भूषण कामिनी को सिगेरेत्टेस लाकर देता था और अगर लाता था तो काब्से?

यही सब सोचते रूपाली ने आपे ससुर की तरफ नज़र उठाई जो दुनिया से बेख़बर सो रहे थे. रूपाली के दिल में अब उनके लिए प्यार उठने लगा था. जो आदमी रूपाली के पास नंगा सोया पड़ा था वो उसका ससुर नही उसका प्रेमी था. रूपाली ने करवट ली और ठाकुर के सोए हुए लंड को हाथ में पकड़ा. लंड बैठा होने के बावजूद पूरा उसके हाथ में नही आ रहा था. रूपाली ने मुट्ठी बंद की और लंड को धीरे धीरे हिलाने लगी. उसकी इस हरकत से ठाकुर की आँख खुल गयी और उन्होने मुस्कुराते हुए उसकी तरफ करवट ली. रूपाली ने लंड हिलना जारी रखा. लंड जब पूरा खड़ा हो गया तो ठाकुर ने उसे सीधा लिटाया, उसके उपेर चढ़े और उसकी टांगे खोलकर लंड अंदर घुसा दिया

दोस्तो यह कहानी आप जब तक पूरी नही पढ़ेंगे तब तक शायद आपकी समझ मैं ना आए इसलिए इस कहानी को को पूरा

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अगले दिन सुबह रूपाली फिर देर से उठी. वो ठाकुर के बिस्तर पे नंगी पड़ी थी और ठाकुर उठ चुके थे. पिच्छले कुच्छ दीनो से रूपाली का रोज़ाना देर से उठना जैसे उसकी एक आदत बन गया था. कहाँ तो वो रोज़ाना सुबह 4 बजे उठकर नहा धोकर पूजा पाठ में लग जाती थी और कहाँ अब उसे होश ही नही रहता के कितने बजे उठना है.

"आप कुच्छ हवेली की सफाई की बात कर रही थी. कुच्छ होता दिख नही रहा" नाश्ता करते हुए ठाकुर ने उससे पुचछा

रूपाली से जवाब ना सूझा. कैसे बताती के उसने चाबियाँ सिर्फ़ हवेली की तलाशी लेने के लिए ली थी, सफाई तो सिर्फ़ एक बहाना था.

"कई बार हिम्मत की के शुरू करूँ पर इतनी बड़ी हवेली और अकेली मैं, सोचकर ही हिम्मत हार जाती थी" रूपाली हस्ते हुए बोली

"मैं कुच्छ आदमियों का इंतजाम कर देता हूँ" ठकुए ने भी हस्ते हुए जवाब दिया

"नही उसकी ज़रूरत नही. मैं खुद ही कर लूँगी. कल से शुरू कर दूँगी" रूपाली ने कहा

"कल से?" ठाकुर ने पुचछा " क्यूँ आज कोई ख़ास प्लान है क्या?

"हां" रूपाली ने सावधानी से अपने शब्द चुनते हुए कहा " मैं सोच रही थी के........"

"क्या?" ठाकुर ने चाइ का ग्लास उठाते हुए कहा

"मैं कुच्छ नही जानती हमारी ज़मीन जायदाद के बारे में. जबसे शादी करके आई हूँ तबसे बस घर की छिप्कलि बनी बैठी रही." रूपाली ने नज़र झुकाए हुए बोला

"तो?" ठाकुर ने चाइ पीते हुए उससे पुचछा

"तो मैं सोच रही थी के आज ज़मीन का एक चक्कर लगा आउ. अगर आप इजाज़त दें तो" रूपाली ने नज़र अब भी झुकाए रखी

"अरे इसमें मेरी इजाज़त की क्या ज़रूरत है? आपका घर हैं, आपकी ज़मीन है. आप जब चाहे देखिए" ठाकुर ने नाश्ते की टेबल से उठते हुए कहा.

रूपाली भी उनके साथ साथ उठ खड़ी हुई

"मुझे आज वक़ील से मिलने जाना है और कुच्छ और काम भी है. आप भूषण को साथ ले जाइए"ठाकुर ने कहा

उनके चले जाने के बाद रूपाली तैय्यार हुई. अब सवाल ये था के अगर वो भूषण को साथ लेके गयी तो हवेली खाली हो जाएगी. उसने फ़ैसला किया के वो खुद जाएगी. भूषण को जब उसने बताया तो पहले तो उसने मना किया पर फिर रूपाली के ज़ोर डालने पर मान गया और उसे जो ज़मीन अब भी ठाकुर के पास बची थी उसका रास्ता बता दिया.

रूपाली गाड़ी लेकर अकेली ही निकल गयी. कार चलाना उसे अच्छी तरह आता था पर उसे याद नही था के आखरी बार वो ड्राइविंग सीट पे कब बैठी थी इसलिए धीरे धीरे कार चलते हुए गाओं पार कर जिस तरफ भूषण ने बताया था उस तरफ निकल गयी.
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#17
Update 13

ज़मीन का वो टुकड़ा जिसकी बात भूषण कर रहा था उसे ढूँढने में रूपाली को ज़्यादा तकलीफ़ नही हुई. वजह ये थी के गाओं के आस पास के ज़्यादातर ज़मीन ठाकुर शौर्या सिंग की ही थी, या यूँ कहा जाए के हुआ करती थी और अब जय ने अपने नाम पे कर ली थी. जिस हिस्से को भूषण ने ज़मीन का एक टुकड़ा बताया था वो एक बहुत लंबा चौड़ा खेत था. रूपाली ने कार कच्चे रास्ते पर उतार दी और ज़मीन के चारो तरफ एक चक्कर लगाने की सोची. वो काफ़ी देर तक ड्राइव करती रही और आस पास निगाह दौड़ती रही. चारो तरफ सूखी पड़ी ज़मीन थी. कहीं खेती का कोई नामो निशान नही था. रूपाली ये देखकर खुद हैरत में थी. ठाकुर की ज़मीन हर साल गाओं वाले या तो किराए पर लेकर उसमें खेती करते थे या फिर ठाकुर के लिए ही काम करते थे. रूपाली की याददास्त के मुताबिक तो ऐसा ही होता था पर ज़मीन की जो अब हालत थी उसे देखके तो लगता था के इसपर बरसो से खेती नही हुई.

रूपाली ने एक पेड़ देखकर उसके नीचे गाड़ी रोकी और खड़ी होकर चारो तरफ देखने लगी. दोपहर का सूरज सर पर आ चुका था. गर्मी की वजह से जैसे ज़मीन आग उगल रही थी. थोड़ी देर यूँ ही खड़े रहकर रूपाली ने वापिस लौटने का इरादा किया ही था के पिछे से किसी ने उसका नाम पुकारा.

"मालकिन"

आवाज़ सुनकर रूपाली पलटी तो पिछे एक गाओं की एक औरत खड़ी थी

"आप ठाकुर साहब की बहू रूपाली हैं ना?" उस औरत ने रूपाली से पुचछा

"हां" रूपाली ने उसकी तरफ देखते हुए जवाब दिया. औरत ने फ़ौरन अपने हाथ जोड़ दिए

"आज पहली बार आपको देख रही हूँ मालकिन. लोगों से सुना था के आप बहुत सुंदर हैं पर आज देखा पहली बार है"

अपनी तारीफ सुन रूपाली मुस्कुरा उठी

"तुम कौन हो?" उसने उस औरत से पुचछा

"जी मैं यहीं ठाकुर साहब की ज़मीन की देख रेख करती हूँ. असल में काम तो ये मेरे मर्द का था पर उसके मरने के बाद अब मैं और मेरी बेटी करते हैं" उस औरत ने बताया

रूपाली ने उस औरत को गौर से देखा. वो कोई 40 साल के करीब लग रही थी या उससे एक दो साल उपेर ही. एक गंदी से सारी उसने लपेट रखी थी. जिस बात ने रूपाली का ध्यान अपनी तरफ खींचा वो ये थी के इस उमर में भी उस औरत का बदन एकदम गठा हुआ था. कहीं फालतू चरबी या मोटापा नही आया था. शायद सारा दिन खेतो में काम करती है इस वजह से.

"तुम्हारे पास पानी होगा? मुझे प्यास लगी है" रूपाली ने उस औरत से कहा

"मेरा मकान यहीं पास में ही है. अगर मालकिन को ऐतराज़ ना हो तो आप आ जाइए. थोड़ी देर आराम भी कर लीजिएगा"

रूपाली ने देखा के जिस तरफ वो औरत इशारा कर रही थी वहाँ एक झोपड़ी बनी हुई. थोड़ी सी दूरी पर थी पर कार वहाँ तक नही जा सकती थी. रूपाली ने कार वही पेड़ के नीचे छ्चोड़ी और उस औरत के साथ चल पड़ी.

"काब्से काम कर रही हो यहाँ पर" चलते चलते रूपाली ने उस औरत से पुचछा " और तुम्हारा नाम क्या है?"

"मेरा नाम बिंदिया है मालकिन. मेरा मर्द पहले ठाकुर साहब की ज़मीन की देखभाल करता था इसलिए मैने तो जबसे उससे शादी की तबसे यही काम कर रही हूँ" उस औरत ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया

"तुम यहाँ अकेली रही हो? गाओं से बाहर?" रूपाली ने पुचछा

"मैं और मेरी बेटी यहाँ रहते हैं. अब हमारे पास अपना घर या ज़मीन तो है नही मालकिन इसलिए यहीं ठाकुर साहब की ज़मीन पे गुज़ारा करते हैं. गाओं में रहें गे कहाँ" बिंदिया ने बताया

चलते चलते वो दोनो झोपड़ी तक पहुँचे. रूपाली ने देखा के बिंदिया ने अपनी ज़मीन के आस पास थोड़ी सब्ज़ियाँ और कुच्छ फूल उगा रखे थे. झोपड़ी के बाहर कोई 18 साल की एक लड़की बैठी हुई कपड़े धो रही थी.

"ये मेरी पायल है" बिंदिया ने उस लड़की की तरफ इशारा किया

रूपाली ने उस लड़की की तरफ देखा. उसकी शकल देखके सॉफ मालूम होता था के वो अभी 18-19 साल से ज़्यादा की नही है पर सर के नीचे जिस्म किसी पूरी तरह जवान औरत का था. उसने जो कपड़े पहेन रखे थे उसे देखके मालूम पड़ता था के उसने काफ़ी वक़्त से कपड़े नही सिलवाए. पुराने वही कपड़े बचपन से पहेन रही है जो अब उसके जिस्म पे छ्होटे पड़ रहे हैं. चोली इतनी तंग हो चुकी थी के पायल की बड़ी बड़ी चूचियाँ उसमें समा नही रही थी, आधी से ज़्यादा चूचियाँ उपेर से बाहर की तरफ निकल रही थी. उसका घाघरा सिर्फ़ घुटनो तक आ रहा था और बैठे होने की वजह से रूपाली को उसकी जांघें सॉफ नज़र आ रही थी.

रूपाली को देख वो लड़की हाथ जोड़कर उठ कही हुई

"नमस्ते मालकिन"

रूपाली ने अंदाज़ा लगाया के बेटी का जिस्म भी अपनी मान की तरह एकदम गठा हुआ था.

बिंदिया ने वहीं पास पड़ी एक चारपाई पर चादर डाल दी. पायल भागकर एक ग्लास पानी ले आई.

"आज इस तरफ कैसे आना हुआ मालकिन" बिंदिया ने नीचे ज़मीन पर बैठे हुए कहा. पायल जाकर अपने धोए हुए कुच्छ कपड़े बाल्टी में डालने लगी.

"हवेली में कुच्छ करने को था नही" रूपाली ने जवाब दिया " इसलिए सोचा के ज़मीन का ही एक चक्कर लगा आऊँ"

कहते हुए उसने पायल की तरफ देखा जो झुकी हुई कपड़े बाल्टी में डाल रही थी. झुकी होने की वजह से उसकी चूचियाँ ब्लाउस में से बाहर निकलकर गिरने को तैय्यार थी. रूपाली ने अंदाज़ा लगाया के उसकी चूचियाँ कम से कम 36 साइज़ की होंगी उसके बावजूद उसने ब्रा नही पहेन रखी थी

"बेचारी के पास पहेन्ने को कपड़े तो हैं नही ढंग के. ब्रा कहाँ से लाएगी" रूपाली ने मन ही मन सोचा

"अब यहाँ क्या बचा है देखने को मालकिन" बिंदिया उसके सामने बैठी उसे बता रही थी " कुच्छ साल पहले तक यहाँ लहराते हुए हारे भरे खेत होते थे पर अब तो सिर्फ़ ये बंजर ज़मीन है"

"तुम यहाँ खेती क्यूँ नही करती?" रूपाली ने बिंदिया से पुचछा

"हमारी ऐसी औकात कहाँ के इतनी बड़ी ज़मीन पर खेती करें" बिंदिया ने जवाब दिया " पहले ठाकुर साहब के इशारे पर ही यहाँ फसल उगा करती थी. हर तरफ हरियाली होती थी पर अब तो सब ख़तम हो गया"

"कितनी बड़ी है ये ज़मीन?" रूपाली ने पुचछा

"गाओं के इस तरफ की सारी ज़मीन ठाकुर साहब की है" बिंदिया ने ठंडी आह भरते हुए कहा" जहाँ तक आपकी नज़र जा रही है ये सब ज़मीन आपकी ही है. कभी गाओं के दूसरी तरफ की ज़मीन भी ठाकुर साहब की ही थी पर अब वो आपका देवर जय देखता है. वहाँ अब भी खेती होती है पर गाओं के इस तरफ तो सब बंजर हुआ पड़ा है. अब ठाकुर साहब को तो जैसे होश ही नही रहा अपनी जायदाद का"

रूपाली से बेहतर इस बात को कौन जान सकता था के क्यूँ होश नही रहा इसलिए वो कुच्छ नही बोली

"तुम माँ और बेटी अपना गुज़ारा कैसे चलाते हो?" रूपाली ने पुचछा

"गुज़ारा कहाँ चलता है मालकिन" बिंदिया बोली " बस जैसे तैसे वक़्त गुज़ार रहे हैं. मेरे मर्द के मरने के बाद तो सब तबाह हो गया हमारे लिए. वो होता था तो ज़मीन भी देखता था और हमें भी. अब बस मैं ही हूँ जो थोड़ा बहुत हाथ पेर मारकर हम दोनो को ज़िंदा रखे हुए हों"

पायल तब तक कपड़े सुखाकर अपनी माँ के पास आ बैठी थी. नीचे बैठे होने के कारण उसका घाघरा उपेर चढ़ गया था और रूपाली को उसकी जांघें काफ़ी अंदर तक दिखाई दे रही थी.

गर्मी बढ़ती जा रही थी. रूपाली को अपने बदन में जलन महसूस होने लगी थी. वो उठ खड़ी हुई

"एक काम करो बिंदिया. कल तुम अपनी बेटी को लेकर हवेली आ जाओ. वहाँ कुच्छ काम है वो कर लिया करना. मैं पैसे दे दूँगी तुम्हें"

"जी बहुत अच्छा" बिंदिया ने कहा " पर ठाकुर साहब से बिना पुच्छे ..... "

"उसकी तुम चिंता मत करो. बस कल सुबह तक वहाँ पहुँच जाना" कहते हुए रूपाली अपनी कार की तरफ बढ़ गयी. बिंदिया और पायल उसे कार तक छ्चोड़ने उसके पिछे पिछे आ रहे थे.

रूपाली वापिस हवेली पहुँची. आज उसने काफ़ी अरसे बाद कार चलाई थी इसलिए उसे ड्राइव करना अच्छा भी लग रहा. गाड़ी बाहर छ्चोड़ वो अंदर हवेली में पहुँची.

"पिताजी नही आए?" उसने सामने खड़े भूषण से पुचछा

"नही अभी तक तो नही आए. आप कुच्छ खावगी?" भूषण ने कहा

"नही मुझे कोई ख़ास भूख नही. थोड़ी देर आराम करूँगी. पिताजी आएँ तो मुझे आवाज़ दे दीजिएगा" रूपाली ने पानी पीते हुए कहा

वो उपेर अपने कमरे में आई और कपड़े बदलने लगी. ब्लाउस खोलकर ब्रा निकाला तो उसकी नज़र अपनी चूचियों पर पड़ी. फ़ौरन उसके ध्यान में पायल की चूचियाँ आ गयी. रूपाली 30 साल के करीब थी और पायल मुश्किल से 18 फिर भी पायल की चूचियाँ तकरीबन रूपाली के बराबर ही थी. थोड़ी देर अपनी चूचियों को देखकर रूपाली को खुद पे हैरत होने लगी. उसने कभी सोचा भी ना था के एक लड़की का जिस्म देखकर ही उसे ऐसा महसूस होगा. उसकी नज़र में अब भी पायल की चूचियाँ घूम रही थी. इस ख्याल को अपने दिमाग़ से झटक कर रूपाली बाथरूम में नहाने के लिए घुस गयी.

नहाकर रूपाली थोड़ी देर लेटी ही थे के उसके ध्यान में घर के बाकी कमरों पर एक नज़र डालने पा गया. वो उठी और अलमारी से चाबियाँ निकालकर अपने कमरे से बाहर निकली. भूषण नीचे किचन में था इसलिए उससे कोई ख़तरा भी नही था. और अगर वो देख भी लेता तो रूपाली को सिर्फ़ अपनी चूत उसके सामने खोलनी थी. भूषण का मुँह बंद करना एक बहुत आसान काम था.

रूपाली कामनि के कमरे के सामने से होती अपने सबसे छ्होटे देवर कुलदीप के कमरे के सामने पहुँची. उसके कमरे से रूपाली को कुच्छ ख़ास मिलने के उम्मीद नही थी फिर भी उसने कमरा खोला.

कुलदीप ठाकुर का सबसे छ्होटा बेटा और घर का सबसे ज़्यादा लाड़ला भी. छ्होटा होने की वजह से उसका हर कोई बहुत लाड़ किया करता था. दोनो माँ बाप,2 बड़े भाई और एक छ्होटी बहेन, साबकी आँखों का तारा था वो. रूपाली की उससे ज़्यादा मुलाक़ात नही हुई थी और ना ही कोई ज़्यादा बात. वजह थी के कुलदीप बचपन से ही विदेश में पढ़ा था और बस साल में एक बार कुच्छ दीनो के लिए छुट्टियों पर आया करता था. पुरुषोत्तम ने एक बार रूपाली को बताया था के यहाँ गाओं में कुलदीप का दिल नही लगता था इसलिए वो कम ही आता था. घर के बाकी लोग अक्सर उससे मिलने विदेश जाते रहते थे. इसी बहाने उससे मिल भी लेते थे और घूमना फिरना भी हो जाता था. एक बार पुरुषोत्तम रूपाली को लेकर कुलदीप से मिलने जाना चाहता था पर किसी वजह से वो प्लान बन नही पाया था.

जब रूपाली इस घर में आई थी तो कुलदीप 17-18 साल का था, रूपाली से सिर्फ़ 2-3 साल छ्होटा. वो हमेशा से ही बहुत शर्मिला था और इसलिए जब भी जब भी रूपाली उसे अपने पास बुलाती तो वो शर्माके भाग जाता. आखरी बार वो पुरुषोत्तम के मरने से पहले आया था और उसके बाद कभी नही. रूपाली ने उसे पिच्छले 10 साल से नही देखा था. और ना ही घर से किसी ने उसे यहाँ वापिस बुलाने की सोची थी. उल्टा कामिनी भी अपने भाई के पास ही चली गयी थी और दोनो जैसे बस वहीं के होके रह गये थे.

रूपाली ने कुलदीप का कमरा खोला और अंदर दाखिल हुई. लाइट ऑन करते ही उसके दिल से वाह निकल गयी. ये कमरा घर के बाकी कमरों से कहीं ज़्यादा सॉफ सुथरा था. हर चीज़ अपनी जगह पर थी और कहीं भी कुच्छ इधर उधर नही था. हर छ्होटी से छ्होटी चीज़ भी सलीके से रखी हुई थी. रूपाली को ध्यान आया के कुलदीप भी ऐसा ही था. हमेशा सॉफ सुथरा रहता. कपड़े पे एक धब्बा भी लग जाए तो फ़ौरन बदल देता. घर में भी वो ऐसे बन ठनके रहता था जैसे बस अभी कहीं बाहर जाने वाला हो. ज़रा सा हाथ भी गंदा हो जाए तो हाथ धोने के बजाय वो नहाने ही चला जाता था. दिन में 10 बार तो वो इस बहाने से नहा ही लेता था.

रूपाली ने कमरे पर नज़र डाली और कुलदीप की अलमारी की तरफ बढ़ी. अलमारी खोलने की कोशिश की तो वो लॉक्ड थी. रूपाली ने बाकी चाबियाँ लगाने की कोशिश की पर अलमार खोल नही सकी. जाने से पहले कुलदीप ने अपनी अलमारी बंद की थी और चाबियाँ शायद साथ ले गया था. रूपाली को हैरत नही हुई. जिस तरह से कुलदीप अपनी चीज़ों को सॉफ सुथरा रखता था उससे ज़ाहिर था के वो नही चाहता था के उसकी चीज़ों के साथ कोई छेड़ छाड करे. अलमारी की तरह ही उसके कमरे के बाकी सब कबोर्ड्स ताले लॉक थे और चाबियों का कहीं पता नही था. कुलदीप के कमरे में कहीं एक काग़ज़ भी इधर उधर नही था. रूपाली ने उसके बेड के उपेर नीचे तलाशी लेनी चाही पर वहाँ भी कुच्छ हासिल नही हुआ. तक कर रूपाली वापिस कुलदीप के कमरे से बाहर आ गयी. कमरे का दरवाज़ा उसने बंद किया ही था के उसकी नज़र में कुच्छ ऐसा आया के उसने दरवाज़ा वापिस खोल दिया और फिर कुलदीप की अलमारी की तरफ आई.

अलमारी यूँ तो बंद थी पर साइड से कपड़े का एक टुकड़ा हल्का सा बाहर निकला रह गया था जिसपर रूपाली की कमरा बंद करते वक़्त नज़र पड़ गयी थी. रूपाली नीचे बैठी और कपड़े को बाहर पकड़कर खींचे की कोशिश की पर अलमारी बंद होने के कारण वो किवाड़ के बीच में फसा हुआ था. रूपाली ने गौर से देखा तो वो एक ब्रा की स्ट्रॅप थी जो हल्की सी शायद अलमारी बंद करते हुए बाहर रह गयी और कुलदीप ने ध्यान नही दिया. रूपाली को बहुत हैरानी हुई. कुलदीप के कमरे में एक ब्रा क्या कर रही थी? वो ये कहाँ से लाया और क्यूँ लाया? रूपाली ने ब्रा की स्ट्रॅप को देखकर अंदाज़ा लगाया के ये प्लैइन ब्रा नही थी. काफ़ी सारे रंग थे उसपर. शायद कलर स्ट्रिपेस थी या कई रंग के फूल बने हुए था या रंग के छीटे थे. रूपाली का सर चकराने लगा. इस घर में उस वक़्त 3 ही औरतें थी जिस वक़्त कुलदीप यहाँ आया था. रूपाली ने अपनी कपड़ो की तरफ ध्यान दिया तो उसके पास इस तरह की कोई ब्रा नही थी. उसकी सारी ब्रा या तो सफेद रंग की थी या काले और यही हाल उसकी सास सरिता देवी का भी था. उनके आखरी वक़्त में रूपाली ही उनका ध्यान रखती थी और उनके कपड़े वगेरह धुलवाती थी. तब उसने अपनी सास के कपड़े देखे थे और सरिता देवी या तो प्लैइन वाइट या ब्लॅक ब्रा ही पेहेन्ति थी. बची कामिनी? क्या ये कामिनी की ब्रा हो सकती है? पर अगर है भी तो कुलदीप की अलमारी में क्या कर रही है?

रूपाली फ़ौरन कुलदीप के कमरे से निकली और बंद करके कामिनी के कमरे में पहुँची. उसने कामिनी के कपड़े इधर उधर किए और उसकी ब्रा देखने लगी. कामिनी की अलमारी में उसे कुच्छ ब्रा दिखाई दी और उसने राहत की साँस ली. कामिनी की कुच्छ ब्रा कोलोरेड थी पर सब प्लैइन कोलोरेड थी. कोई भी ऐसे नही थी जिसपे कई सारे रंग हो. पूरी ब्रा एक ही रंग की थी. कामिनी की ब्रा के स्ट्रॅप्स देखकर रूपाली ने अंदाज़ा लगाया के कुलदीप की अलमारी में रखी ब्रा कामिनी की ब्रा से काफ़ी अलग थी.

रूपाली कुलदीप को अपने छोटे देवर और उसके खामोश और सुलझे हुए नेचर की वजह से काफ़ी पसंद करती थी. जब उसे लगा के ये ब्रा कामिनी की है तो वो परेशान हो गयी थी ये सोचकर के क्या कुलदीप अंदर अंदर अपनी ही बहेन की ब्रा चुरा ले गया था? पर जब उसने कामिनी की ब्रा देखी तो उसे अच्छा लगा. कुलदीप अपनी खुद की बहेन पर नज़र नही रखता था. वो मानसिक तौर पर भी ठीक था फिर भी सवाल ये था के उसके कमरे में एक ब्रा क्या कर रही थी?

रूपाली ने कामिनी के कपड़े वापिस रखे और अलमारी बंद करने लगी. फिर कुच्छ सोचकर उसने कामिनी के कुच्छ कपड़े उठा लिए और कुच्छ ब्रा और पॅंटीस भी और उन्हें लेकर अपने कमरे में आ गयी.

रात को रूपाली फिर अपने ससुर के बिस्तर पे नंगी पड़ी हुई थी. उनके लंड उसके हाथ में जिसे वो ज़ोर ज़ोर से हिला रही थी. ठाकुर उसके साइड में लेते हुए थे. रूपाली का एक निपल उनके मुँह में था जिसे वो चूस रहे थे और 2 उंगलियाँ रूपाली की चूत में अंदर बाहर हो रही थी.

"पिताजी" रूपाली ने ज़ोर ज़ोर से साँस लेते हुए कहा

"ह्म्‍म्म्म" ठाकुर ने जवाब दिया और रूपाली की चूत से उंगलियाँ निकल कर उसके उपेर चढ़ गये. अब रूपाली की दोनो चुचियाँ उनके हाथों में थी जिन्हें वो बारी बारी चूसने लगे.

रूपाली से सबर करना मुश्किल हो रहा था ठाकुर के लंड पे उसकी गिरफ़्त मज़बूत हो गयी थी और हाथ तेज़ी के साथ उपेर नीचे हो रहा था

"आअज मैं ज़मीन देखने गयी थी" उसने अपनी भारी हो रही साँसों के बीच बोला

"ह्म" ठाकुर ने फिर इतना ही कहा और रूपाली की चुचियाँ छोड़ थोड़ा नीचे होकर उसके पेट को चूमने लगे. हाथ अभी भी दोनो चुचियाँ मसल रहे थे.

"मैं वहाँ काम करने वाली एक औरत से मिली. वो कह रही थी के उसके आदमी को आपने ज़मीन के देख भाल करने के लिए रखा था पर उसके मरने के बाद अब वो और उसकी बेटी ये काम करती हैं" रूपाली बड़ी मुश्किल से बोल सकी. उसकी धड़कन तेज़ हो चली थी. ठाकुर उसके पेट को चूम रहे थे. रूपाली की दोनो टांगे खुली हुई थी और चूत गीली हो रही थी. उसका दिल कर रहा था के ठाकुर सब छ्चोड़कर लंड उसके अंदर घुसा दें.

"हमने काम के लिए काफ़ी लोग रखे हुए थे. धीरे धीरे सब चले गये क्यूंकी ज़मीन पे कुच्छ काम ही नही था. फसल लगवानी हमने बंद कर दी थी.बस एक कालू ही रह गया था. शायद तुम उसकी बीवी से ही मिली होंगी. वो कुच्छ दिन पहले मर गया था. उसकी बीवी को हम अभी भी कुच्छ पैसे भेजते हैं. वैसे तो ज़मीन में देखभाल करने को कुच्छ बचा नही पर फिर भी तरस खाकर हमने उसे हटाया नही." कहते हुए ठाकुर ने रूपाली की दोनो टाँगें खोलकर अपने कंधे पे रख ली और थोड़ा और नीचे हो गये. रूपाली की चूत अब उनके चेहरे के सामने थी.

"नाम तो नही बताया उसने अपनी पति का पर हां शायद वो ही थी. उसकी बेटी भी है" रूपाली ने कहा. उसकी समझ नही आ रहा था के ठाकुर क्या कर रहे हैं. वो लंड के लिए मरी जा रही थी और ठाकुर इतनी देर से लंड घुसाने का नाम नही ले रहे थे. वो अब उसके टाँगो को अपने कंधे पे रखकर उसकी जाँघो को चूम रहे थे.

"हां वही होगी. बिंदिया नाम है शायद उस औरत का" ठाकुर उसकी जाँघो को चूमते हुए धीरे धीरे उसकी चूत की तरफ आ रहे थे.

" हां बिंदिया ही था" रूपाली ने कहा और इससे पहले के वो कुच्छ समझ पाती ठाकुर ने अपने होंठ उसकी चूत पे रख दिए

"आआआआआआआहह पिताजी" रूपाल की जैसे चीख निकल पड़ी. उसके जिस्म में बढ़ती गर्मी एक ज्वालामुखी बनकर फॅट पड़ी. उसकी चूत पे आज तक किसी ने मुँह नही लगाया था. ठाकुर ने जैसे ही अपने होंठ उसकी चूत पे रखकर जीभ उसकी चूत पे फिराई, रूपाली की चूत ने पानी छ्चोड़ दिया.

रूपाली ने कसकर ठाकुर के सर को पकड़ लिया और अपनी चूत में और ज़ोर से घुसाने लगी. उसने अपने टाँगो को अपने ससुर के कंधो पर लपेट दिया जैसे अपनी टाँगो में उन्हें दबाकर मारना चाहती हो. ठाकुर की जीभ उसकी चूत पे उपेर से नीचे तक जा रही थी. रूपाली के पति ने कभी ये ना तो किया था और ना ही करने की कोशिश की थी. रूपाली को तो पता भी नही था के चूत में इस तरह भी मज़ा लिया जा सकता है. ठाकुर की एक उंगली अब उसकी चूत में घुस चुकी थी और अंदर बाहर हो रही थी. साथ साथ वो उसकी चूत की चाट भी रहे थे.

"मैने कल उसे यहाँ हवेली में बुलाया है" रूपाल ने कहा. उसने ठाकुर के बॉल पकड़ रखे थे और चूत में उनका मुँह दबा रही थी. उसके कमर मूड गयी थी. चूचियाँ उपेर छत की तरफ हो गयी थी, सर पिछे झटक दिया था और नीचे से गांद अपने आप हिलने लगी थी. वो खुद ही ठाकुर के मुँह पे अपनी चूत रगड़ रही थी.

"क्यूँ" कहते हुए ठाकुर रूपाली की टाँगें खोलते हुए सीधे हुए और घूमकर उसके उपेर आ गये. अब उनका मुँह रूपाली की चूत पर था और रूपाली का सर उनकी टाँगो के बीच. लंड सीधा रूपाली के मुँह के उपेर लटक रहा था.

"इसे कहते हैं 69 पोज़" ठाकुर नीचे से रूपाली की तरफ देखकर मुस्कुराए और फिर उसकी चूत चाटने लगे. रूपाली का जिस्म फिर गरम हुआ जा रहा था. उसने एक लंभी साँस छ्चोड़ी और ठाकुर का लंड अपने मुँह में ले लिया.

"क्यूँ बुलाया है" ठाकुर ने उसकी चूत पे जीभ फिरते हुए कहा

"हवेली की सफाई करनी है. मैने सोचा के उसकी बेटी मेरा हाथ बटा देगी." रूपाली ने लंड मुँह से निकाल कर कहा और फिर लंड मुँह में ले लिया

"वो मान गयी?" ठाकुर ने कहा और रूपाली की चूत से मुँह हटाकर साइड बैठ गये. दोनो हाथों से रूपाली के सर को पकड़ा और लंड उसके मुँह में अंदर बाहर करने लगे. 

"ह्म्‍म्म्मम" लंड मुँह में होने के कारण रूपाली इतना ही कह सकी.उसके ससुर उसके मुँह को चोद रहे थे.

थोड़ी देर लंड मुँह में हिलने के बाद ठाकुर बिस्तर से उतर गये और रूपाली को भी नीचे आने का इशारा किया. सवालिया नज़र से ठाकुर को देखती रूपाली बिस्तर से नीचे उतर खड़ी हुई जैसे पुच्छ रही हो के क्या हुआ?

ठाकुर ने उसे बिस्तर पे हाथ रखने को कहा और धीरे से उसे झुका दिया. रूपाली समझ गयी. उसने अपनी टांगे फेला दी, हाथ बिस्तर पे रहे और गांद पिछे को निकालकर खड़ी हो गयी, चुदने के लिए तैय्यार. ठाकुर उसके पिछे आए, दोनो हाथो से उसकी गांद को पकड़ा और एक ही झटके में लंड उसकी चूत के अंदर पूरा घुसा दिया.

"इसी बहाने सोच रही थी के हवेली के बाहर भी कुच्छ सफाई हो गयी. बाहर से देखने से तो लगता ही नही के अब हवेली में कोई रहता भी है" रूपाली ने कहा. उसकी चूत पे ठाकुर धक्के मार रहे थे. उसकी दोनो छातियाँ लटकी हुई उसके नीचे झूल रही थी. हर धक्के पे रूपाली थोड़ा आगे को सरक्ति और उसकी दोनो चूचियाँ बिस्तर के कोने से टकराती.

"जैसा आप ठीक समझें" ठाकुर ने कहा और धक्को की रफ़्तार बढ़ाकर पूरे ज़ोर से रूपाली को चोदने लगे.
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#18
Update 14

अगले ही दिन सुबह सुबह पायल हवेली आ पहुँची. वो अकेली ही थी.

"तेरी माँ कहाँ है?" रूपाली ने उसे देखते हुए पुचछा

"माँ को कुच्छ काम पड़ गया था मालकिन" पायल ने जवाब दिया"इसलिए मुझे अकेले ही भेज दिया. कह रही थी के वो शाम को आएगी"

"ठीक है"कहते हुए रूपाली ने पायल को उपेर से नीचे तक देखा.

शकल सूरत से पायल भले ही बहुत ज़्यादा नही पर सुंदर ज़रूर थी. उसने एक चोली पहनी हुई थी जो छ्होटी होने से उसके जिस्म पे बहुत ज़्यादा फसि हुई थी. पीछे खींचकर बँधे जाने की वजह से पायल की दोनो चूचियाँ बुरी तरह से दब रही थी और लग रहा था के या तो चोली फाड़कर बाहर आ जाएँगी या उपेर से उच्छालकर बाहर आ गीरेंगी. रूपाली को हैरत हुई के ये लड़की साँस भी कैसे ले रही है. चोली ठीक पायल की दोनो चूचियों के नीचे ही ख़तम हो रही थी. उसका पूरा पेट खुला हुआ था. ल़हेंगा चूत से बस ज़रा सा ही उपेर बँधा हुआ था और मुश्किल से घुटनो तक आ रहा था. एक तरह से देखा जाए तो पायल जैसे आधी नंगी ही थी.

"वा री ग़रीबी" रूपाली ने सोचा

"तेरा समान कहाँ है?" उसे पायल से पुचछा

"समान?" पायल ने सवालिया नज़रों से रूपाली को देखा. उसके इस तरह देखने से ही रूपाली समझ गयी के उस बेचारी के पास समान कुच्छ है ही नही.

"आजा अंदर आजा" उसने पायल को इशारा किया

पायल रूपाली के पिछे पिछे हवेली में दाखिल हुई. हवेली में घुसते ही वो आँखे फाडे चारो तरफ देखने लगी

"क्या हुआ" रूपाली ने पुचछा

"इतना बड़ा घर" पायल घूमकर हवेली देखते हुए बोली " इतना आलीशान. यहाँ तो बहुत सारे लोग रहते होंगे ना मालकिन?"

"नही" रूपाली हस्ते हुए बोली " बहुत कम लोग रहते हैं"

पायल हवेली और अंदर हर चीज़ को ऐसे देख रही थी जैसे कहीं जादू की नगरी में आ गयी हो

"ऐसा तो मैने कभी सपने में भी नही देखा था मालकिन" उसे पायल के पिछे पिछे सीढ़ियाँ चढ़ते हुए कहा

"अब रोज़ देखती रहना. यहीं रहेगी तू" कहते हुए रूपाली उसे लेकर अपने कमरे तक बढ़ी.

रूपाली के कमरे से लगता हुआ एक छ्होटा कमरा था. वो कमरा ज़्यादातर समान रखने के काम ही आता था, किसी स्टोर रूम की तरह. उस कमरे का एक दरवाज़ा रूपाली के कमरे में भी खुलता था. कमरा बनवाया इसलिए गया था के अगर रूपाली वाले कमरे में समान ज़्यादा होने लगे तो छ्होटे कमरे में रख दो और अंदर से दरवाज़ा होने की वजह से जब चाहो उठा लाओ. रूपाली पायल को लेकर कमरे के अंदर पहुँची.

"ये आज से तेरा कमरा होगा" रूपाली ने पायल से कहा

कमरे में हर तरफ समान बिखरा पड़ा था. पायल कभी कमरे को देखती तो कभी रूपाली को

"ऐसे क्या देख रही है?" रूपाली ने कहा "ये सारा समान हट जाएगा यहाँ से. अपना कमरा सॉफ कर लेना. जो समान तुझे चाहिए रख लेना बाकी निकालकर स्टोर रूम में पहुँचा देना"

"नही मालकिन वो......" पायल ने कहने की कोशिश की

"क्या?"रूपाली ने पुचछा

"नही वो आपने कहा के मेरा कमरा. मतलब मैं यहीं रहूंगी? हवेली में?" पायल बोली

"हां और नही तो क्या" रूपाली वहीं दीवार से टेक लगते हुए बोली " तू यहीं रहकर मेरे काम में हाथ बटाएगी"

"पर माँ?" पायल फिर अटकते हुए बोली

"तेरी माँ की चिंता मत कर. उसे मैं कह दूँगी. और फिर यहाँ काम करने के हर महीने पैसे भी तो दूँगी मैं तुझे" रूपाली ने ऐसे कहा जैसे फ़ैसला सुना रही हो

"जी ठीक है" पायल ने रज़ामंदी में सर हिलाया

"अगर तुझे बाथरूम वगेरह जाना हो तो सामने गेस्ट रूम है वहाँ चली जाना. इस कमरे में बाथरूम नही है. और ये दरवाज़े के इस तरफ मेरा कमरा है" रूपाली ने अंदर वाले दरवाज़े की तरफ इशारा करते हुए कहा

पायल ने फिर रज़ामंदी में सर हिला दिया

"चल अब तू नहा ले. कितनी गंदी लग रही है. मैं तुझे कुच्छ कपड़े ला देती हूँ." रूपाली ने कहा

"कपड़े?" पायल ने ऐसे पुचछा के जैसे पुच्छ रही हो के कपड़े क्या होते हैं

"हां कपड़े?" रूपाली ने कहा " तेरे पास इस चोली और ल़हेंगे के साइवा पहेन्ने को कुच्छ नही है ना?"

पायन ने इनकार में सर हिला दिया.

रूपाली उसे लेकर गेस्ट रूम में पहुँची और बाथरूम का दरवाज़ा खोला.

"तू नहा ले. मैं तुझे कुच्छ और कपड़े ला देती हूँ" पायल को गेस्ट रूम में छ्चोड़कर रूपाली कमरे से बाहर निकल गयी

रूपाली कामिनी के कमरे में पहुँची और उसकी अलमारी से 3 जोड़ी सलवार कमीज़ निकल लिया. उसने जान भूझकर वही कपड़े निकाले थे जिन्हें पुराना हो जाने की वजह से कामिनी ने अलमारी में नीचे की तरफ फेंका हुआ था और कभी उन्हें पेहेन्ति नही थी. कपड़े लेकर वो वापिस गेस्ट रूम में पहुँची तो पायल वैसी की वैसी ही खड़ी थी.

"क्या हुआ? अंदर जाकर नहा ले ना" उसने पायल से कहा

"पर यहाँ पानी कहाँ है?" पायल ने जवाब दिया

रूपाली की जैसे हसी छ्होट पड़ी.

"अरे पगली यहाँ कोई कुआँ नही है जहाँ से तूने पानी निकालके नहाना है"रूपाली बाथरूम में दाखिल हुई " ये देख इसे शोवेर घूमाते हैं. इसे इस तरफ घुमाएगी तो उपेर यहाँ से पानी गिरेगा और ऐसे उल्टा घुमाएगी तो बंद हो जाएगा. समझी"

पायल ने हैरत से शवर की तरफ देखता हुआ फिर गर्दन हिला दी.

"ये यहाँ साबुन रखा हुआ है. नाहकार बाहर आजा" कहते हुए रूपाली बाथरूम से निकल गयी.

वो वापिस नीचे बड़े कमरे में पहुँची. ठाकुर सुबह सवेरे ही कहीं बाहर चले गये थे. किचन में भूषण दोपहर के खाने की तैय्यारि कर रहा था. रूपाली को आता देख उसकी तरफ मुस्कुराया

"एक काम कीजिए काका" रूपाली ने भूषण से कहा "ये लड़की अबसे यहीं हवेली में रहेगी और काम में हाथ बटाएगी. इसके साथ मिलकर हवेली की पूरी सफाई कर दीजिएगा"

"कौन है ये लड़की?" भूषण ने पुचछा

"गाओं की ही है" रूपाली ने जवाब दिया " और एक काम और करना. ये हवेली के बाहर जितना भी जंगल उगा पड़ा है इसे कटवाकर बाहर फिर से लॉन और गार्डेन लगवाना है"

"जैसा आप कहो" भूषण ने कहा " पर हवेली के आस पास इतनी जगह है के सफाई करने में एक हफ़्ता निकल जाएगा"

"कोई बात नही" रूपाली ने कहा

:और इसलिए लिए गाओं से आदमी बुलाने पड़ेंगे." भूषण ने बाहर खिड़की से बाहर देखते हुए कहा. एक वक़्त था जब हवेली के आस पास घास का कालीन सा बिच्छा हुआ था और अब सिर्फ़ झाड़ियाँ

"ठीक है आप आदमी बुला लेना" कहते हुए रूपाली बड़े कमरे में आई और सोफे पे बैठ कर टीवी देखने लगी

थोड़ी देर बाद वो वापिस गेस्ट रूम में पहुँची तो पायल नाहकार बाहर निकली ही थी. उसने फिर अपना चोली और ल़हेंगा पहेन लिया था. उसे देखते ही रूपाली को ध्यान आया के वो कामिनी के कपड़े पायल के लिए ले तो आई थी पर उसे बताना भूल गयी थी.

"अरी पगली. ये दोबारा क्यूँ पहेन लिया" उसने पायल से कहा " ये नही अब ये कपड़े पहना कर"

रूपाली ने कामिनी के कपड़े पायल की तरफ बढ़ाए.

पायल पूरी भीगी खड़ी थी. नाहकार उसने बिना बदन पोन्छे ही कपड़े पहेन लिए थे जिसकी वजह से कपड़े गीले होकर उसके बदन से चिपक गये थे. चोली छातियों से जा लगी थी और निपल्स कपड़े के उपेर उभर गये थे. नीचे ल़हेंगा जो वैसे ही सिर्फ़ घुटनो तक आता था भीगने के कारण उसकी टाँगो से चिपक गया था और उपेर टाँगो के बीच चूत का उभार सॉफ नज़र आने लगा था. पायल की घाघरे के उपेर से ही चूत का उभार देखकर रूपाली ने अंदाज़ा लगाया के उसने अंदर पॅंटी भी नही पहेन रखी थी. पायल के दोनो हाथ पीठ के पिछे थे

"क्या हुआ?" रूपाली ने पुचछा

"जी वो ये चोली बँध नही रही" पायल ने शरमाते हुए कहा

रूपाली फ़ौरन समझ गयी. पायल की चूचियाँ काफ़ी बड़ी बड़ी थी और उसकी चोली इतनी छ्होटी के वो खुद उसे पिछे बाँध ही नही सकती थी. ज़रूर उसकी माँ ही खींचकर बाँधती होगी

"उसे छ्चोड़ दे. ये कमीज़ सलवार पहेन ले" रूपाली ने कामिनी के कपड़े पायल की तरफ बढ़ाए

पायल एक सलवार कमीज़ लेकर वापिस बाथरूम की तरफ बढ़ी. उसकी पीठ पर चोली खुली हुई थी जिससे उसकी कमर बिल्कुल नंगी थी.

"सुन" रूपाली ने उसकी नंगी कमर की तरफ देखते हुए कहा जहाँ ब्रा के स्ट्रॅप्स ना देखकर उसे कुच्छ याद आया था " तू ब्रा नही पेहेन्ति ना?"

"ब्रा?" पायन ने घूमते हुए ऐसे कहा जैसे किसी अजीब सी चीज़ का ज़िक्र हो रहा हो

"अरे वो जो औरतें छातियों पे पेहेन्ति हैं. तेरी माँ नही पेहेन्ति?" रूपाली ने पुचछा

पायल ने इनकार में गर्दन हिल्याई

"तेरे पास नही है?" रूपाली ने पुचछा तो पायल ने फिर इनकार में गर्दन हिला दी.

रूपाली ने ठंडी साँस ली

"अब इसे ब्रा कहाँ से दूं?" उसने दिल में सोचा फिर ख्याल आया के अपनी कोई पुरानी ब्रा दे दे.

"पर मेरी ब्रा आएगी इसे?" उसने दिल में सोचा और पायल की तरफ देखा

"इधर आ" उसने पायल को नज़दीक आने का इशारा किया " साइज़ कितना है तेरा?"

"जी?" पायल ने फिर हैरा से पुचछा

"अरे साइज़ पगली. तेरी चूचोयो का. कितनी बड़ी हैं तेरी?" रूपाली ने थोड़ा गुस्से में पुचछा

पायल सहम गयी. हाथ में पकड़े कपड़े ऐसे अपने सामने की तरफ कर लिए जैसे रूपाली से अपनी चूचियों को च्छूपा रही हो

"ओफहो" रूपाली झुंझला गयी पर अगले ही पल ख्याल आया के ये बेचारी गाओं की एक ग़रीब सीधी सादी लड़की है.इसे क्या पता होगा ये सब

"चल कोई नही. मैं दे दूँगी ब्रा. इसे सामने से हटा ज़रा." रूपाली ने पायल के हाथ में पकड़े हुए कपड़ों की तरफ इशारा किया

पायल ने शरमाते हुए कमीज़ हटा दी. रूपाली गौर से उसकी चूचियों को देखने लगी. पायल की दोनो चूचियाँ काफ़ी बड़ी थी, बल्कि बहुत बड़ी. रूपाली ने थोड़ा और गौर से देखा तो महसूस हुआ के 18 साल की उमर में ही पायल की चुचियाँ खुद उसके बराबर ही थी. मतलब के पायल को उसका ब्रा आ जाना चाहिए

"ज़रा घूम" कहते हुए रूपाली ने पायल को घुमाया और उसकी नंगी कमर को देखते हुए पिछे से ब्रा का अंदाज़ा लेने लगी. उसने नज़र नीचे की तरफ गयी तो देखा के गीला होने की वजह से पायल का ल़हेंगा उसकी गांद से चिपक गया था. गांद का पूरा शेप ल़हेंगे के उपेर से नज़र आ रहा था.

"यहीं रुक" कहती हुई पायल कमरे से बाहर निकली और अपने कमरे से 2 ब्रा और अपनी 2 पॅंटीस उठा लाई

"ये पहना कर कपड़े के नीचे" उसे ब्रा और पॅंटीस पायल को दी " अब ये पहेन, फिर सलवार कमीज़ पहन कर नीचे आ"

पायल ब्रा को हाथ में पकड़े देखने लगी और फिर रूपाली को देखा

"अब क्या हुआ" रूपाली ने पुचछा

"इसे पेहेन्ते कैसे हैं?" उसने एक बेवकूफ़ की तरफ रूपाली से पुचछा

"हे भगवान" कहते हुए रूपाली करीब आई " चल मैं बताती हूँ. अपनी चोली उतार"

"जी?" पायल ने सुना तो शर्माके 2 कदम पिछे हट गयी

"अरे" रूपाली ने गुस्से से उसकी तरफ देखा" शर्मा क्या रही है. जो तेरे पास है वही मेरे पास भी है. जो मेरी ब्लाउस में च्छूपा हुआ है वही है तेरी चोली में भी. चल उतार."

रूपाली पायल के पास आई और उसके दोनो हाथ पकड़कर सीधे किया. फिर उसने खींचकर चोली को उतार दिया. पायल ने रोकने की कोशिश की तो रूपाली ने घूरकर उसकी तरफ देखा और चोली को जिस्म से अलग करके बिस्तर पे फेंक दिया

चोली उतरते ही पायल की दोनो चूचियाँ रूपाली की आँखो के सामने थी. खुद एक औरत होते हुए भी पायल की चुचियों को देखकर रूपाली की धड़कन जैसे तेज़ हो गयी हो. पायल की चुचियाँ इतनी बड़ी हैं इसका अंदाज़ा उसे चोली के उपेर से हो गया था पर चोली उतरते ही तो जैसे दो पहाड़ सामने आ गये हो. हल्के सावली रंग की 2 चुचियाँ और उनपर काले रंग के निपल्स. और इतनी बड़ी बड़ी होने की वजह से अपने ही वज़न से हल्का सा निच्चे को झुक गयी थी. पायल ने रूपाली को अपनी चुचियों को घूरते देखा तो हाथ आगे करके अपनी छाती ढक ली. रूपाली मुस्कुरा दी

"कितनी उमर है तेरी?" रूपाली ने पुचछा

"जी 18 साल" पायल ने शरमाते हुए जवाब दिया

"और अभी से इतनी बड़ी बड़ी लेके घूम रही है?" रूपाली ने हस्ते हुए कहा तो पायल पे जैसे घड़ो पानी गिर गया.

"अच्छा शर्मा मत. हाथ आगे कर" कहते हुए रूपाली ने ब्रा आगे की और पायल को ब्रा कैसे पेहेन्ते हैं बताने लगी. ब्रा को फिर करते हुए उसी बारी बारी पायल की दोनो चुचियों को हाथ से पकड़ना पड़ा ताकि ब्रा ढंग से पहना सके. उसने पहली बार किसी और औरत की चूचियों को हाथ लगाया. खुद रूपाली को समझ नही आया के उसे मज़ा आया या कैसा लगा पर जो भी था, अजीब सा था. उसकी धड़कन अब भी जैसे तेज़ होने चली थी

"हो गया" पीछे से ब्रा के हुक्स लगते हुए रूपाली बोली " अब तो खुद पहेन लेगी ना या रोज़ाना सुबह सवेरे मुझे तेरी छातियाँ देखना पड़ा करेंगी?" रूपाली पिछे से हटे हुए बोली.

"नही मुझे आ गया. अबसे खुद पहेन लिया करूँगी" जवाब में पायल भी मुस्कुराते हुए बोली

"वैसे एक बात तो है. काफ़ी बड़ी बड़ी और मुलायम सी हैं तेरी" कहते हुए रूपाली ने पायल की दोनो चूचियों पे हाथ फेरा और ज़ोर से हस्ने लगी

"क्या मालकिन आप भी" पायल शरमाते हुए आगे को बढ़ी

"अरे सुन" पीछे से रूपाली ने उसका हाथ पकड़ा" वो सामने पॅंटी पड़ी है. ये तो खुद पहेन लेगी ना या मैं ही पहनाके दिखाऊँ?"

"नही आप रहने दीजिए" रूपाली ने फ़ौरन अपने ल़हेंगे को ऐसे पकड़ा जैसे रूपाली उसे खींचकर उतार देगी" मैं खुद पहेन लूँगी"

"हाँ पहना कर. वरना ल़हेंगे के उपेर से तेरा पूरा पिच्छवाड़ा नज़र आता है" कहते हुए रूपाली ने पिछे से पायल की गांद पे पिंच किया
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#19
Update 15

शाम को पायल अपनी माँ का इंतेज़ार करती रही पर वो नही आई. रात को खाने की टेबल पर रूपाली ने पायल को ठाकुर से मिलवाया.

"इसे मैने रख लिया है काम में मेरा हाथ बटाने के लिए. खाना वगेरह बनाना इसे आता नही पर धीरे धीरे सीख जाएगी" रूपाली ने कहा

ठाकुर ने सिर्फ़ सहमति में सर हिलाया, एक नज़र पायल पर डाली और खाना खाने लगे. रूपाली ठाकुर के साइड में ही बैठी खा रही थी. एक मौका ऐसा आया जब पायल ठाकुर के सामने रखे ग्लास में पानी डालने लगी. वो रूपाली के सामने टेबल के दूसरी और खड़ी थी इसलिए पानी डालने के लिए उसे थोड़ा झुकना पड़ा. झुकने से उसके ब्रा में बंद दोनो चूचियाँ सॉफ दिखने लगी. रूपाली और ठाकुर दोनो की नज़र एक साथ पायल के क्लीवेज पर पड़ी. ठाकुर ने एक नज़र डाली और दूसरे ही पल नज़र हटाकर खाना खाने लगे, जैसे कुच्छ देखा ही ना हो. ये बात भले ही छ्होटी सी थी पर रूपाली ने ये देखा तो उसके दिल में खुशी की एक ल़हेर दौड़ गयी. जिसे वो चाहती थी वो सिर्फ़ उसे ही देखता था.

खाना खाने के बाद रूपाली के सामने मुसीबत ये थी के पायल उसके अगले कमरे में ही थी और रूपाली रात तो अपने ससुर के बिस्तर पर चुद रही होती थी. अगर पायल रात को उठकर उसके कमरे पर आई तो हक़ीक़त खुलने का डर था. रूपाली की समझ में कुच्छ ना आया था उसने ठाकुर को धीरे से कह दिया के वो रात को पायल के सोने के बाद उनके कमरे में आ जाएगी.

धीरे धीरे काम ख़तम करने के बाद सब अपने अपने कमरे में चले गये. रूपाली अपने कमरे में बैठी बेसब्री से वक़्त गुज़रने का इंतेज़ार कर रही थी ताकि पायल नींद में चली जाए और वो उठकर अपने ससुर के कमरे में जा सके. उसकी टाँगो के बीच आग लगी हुई थी और उसकी नज़र के सामने रह रहकर ठाकुर का लंबा मोटा लंड घूम रहा था. अचानक कमरे के बीच के दरवाज़े पर दस्तक हुई. दस्तक पायल के कमरे की तरफ से थी.

"हां क्या हुआ?" रूपाली ने दरवाज़ा खोलते हुए कहा

"आज तक मैं कभी अकेली सोई नही मालकिन. डर सा लग रहा है इतने बड़े घर में" पायल ने कहा

"अरे इसमें डरने की क्या बात है. इस कमरे में मैं हूँ ना" रूपाली ने कहा तो पायल सर हिलाती हुई फिर अपने बिस्तर की तरफ बढ़ गयी. रूपाली ने दरवाज़ा बंद किया और आकर अपने बिस्तर पर लेट गयी.

करीब एक घंटा गुज़र जाने के बाद रूपाली उठी और दरवाज़ा खोलकर पायल के कमरे में पहुँची. पायल बेख़बर सोई पड़ी थी. उसके कमरे में एक पंखा चल रहा था पर फिर भी कमरे में गर्मी थी. शायद इसी वजह से पायल ने अपनी कमीज़ उतार दी थी और सिर्फ़ ब्रा पहने सो रही थी. उसकी बड़ी बड़ी चूचियाँ ब्रा में उसकी साँस के साथ उपेर नीचे हो रही थी. रूपाली ने एक नज़र उसे देखा तो उसका दिल किया के एक बार पायल की चुचियों पर हाथ लगाके देखे पर इस इरादे को उसने अपने दिल में ही रखा. वो चुपचाप वापिस अपने कमरे में आई, पायल के कमरे से लगे दरवाज़े को अपनी तरफ से बंद किया और अपने कमरे से निकालकर नीचे ठाकुर के कमरे में पहुँची. दरवाज़ा खोलकर अंदर दाखिल हुई तो कमरे में हल्की रोशनी थी.

"हम आप ही का इंतेज़ार कर रहे थे" उसे देखते हुए ठाकुर ने कहा

रूपाली अपने ससुर के बिस्तर के पास पहुँची तो देखा के वो पहले से ही पुर नंगे पड़े अपना लंड हिला रहे थे. लंड टंकार पूरी तरह खड़ा हुआ था. रूपाली मुस्कुराइ और अपने कपड़े उतारने लगी. पूरी तरह से नंगी होकर वो भी बिस्तर पर ठाकुर के पास आकर लेट गयी.

सुबह 4 बजे का अलार्म बजा तो रूपाली की आँख खुली. वो नंगी अपने ससुर की बाहों में पड़ी हुई थी जो बेख़बर सो रहे थे. रात चुद्नने के बात सोने से पहले ही रूपाली ने ठाकुर को बता दिया था के वो सुबह सुबह ही अपने कमरे में लौट जाएगी ताकि पायल को शक ना हो. इसलिए वो सुबह 4 बजे का अलार्म लगाके सोई थी. धीरे से वो बिस्तर से उठी और अपने कपड़े उठाकर पहेन्ने लगी. कपड़े पहेंकर रूपाली ने झुक कर ठाकुर के होंठ एक बार धीरे से चूमे और हल्के कदमों से चलती हुई दरवाज़े की तरफ बढ़ी ताकि ठाकुर की नींद खराब ना हो. दरवाज़ा खोलकर रूपाली पानी पीने के लिए किचन की तरफ बढ़ी. बाहर के कमरे में एक ऐसी खिड़की भी थी जहाँ से हवेली के बड़ा दरवाज़ा सीधा नज़र आता था. हवेली से लेकर बड़े दरवाज़े तक तकरीबन 200 मीटर्स का फासला था जिसमें बीचे में कभी घास बिछि होती थी पर अब सिर्फ़ सूखी ज़मीन थी. हवेली के चारो तरफ तकरीबन 10 फुट की दीवार थी और उतना ही बड़ा लोहे का बड़ा दरवाज़ा भी था. कभी यहाँ 24 घंटे 2 आदमी पहरे पर रहते थे पर अब कोई नही होता था. कभी कभी तो रात को दरवाज़ा बंद तक नही होता था.

रूपाली खिड़की के सामने से निकली तो उसके पावं जैसे वहीं जम गये. नज़र खिड़की से होती हुई बड़े दरवाज़े से चिपक गयी. एक पल के लिए उसे लगा के उसने किसी को दरवाज़े से बाहर जाते देखा है. पर दरवाज़ा काफ़ी दूर होने के कारण वो सॉफ तौर पर कुच्छ देख नही पाई. दरवाज़े के पास एक ट्यूबलाइज्ट जल रही थी और उसकी की रोशनी में एक पल को यूँ लगा जैसे कोई चादर सी लपेटे अभी दरवाज़े से बाहर निकला है. रूपाली वहीं सहम कर खिड़की के साइड में छिप कर खड़ी सी हो गयी और खिड़की के बाहर देखने लगी. सुबह के 4 बज रहे थे. बाहर अब भी घुप अंधेरा था. बड़े दरवाजे के पास जल रही ट्यूबलाइज्ट की रोशनी और खिड़की के बीचे में कुच्छ नज़र नही आ रहा. बस दूर लोहे का वो दरवाज़ा दिखाई दे रहा था जो अब भी हल्का सा खुला हुआ था. रूपाली चारो तरफ अंधेरे में नज़र घूमती रही. 15 मिनट यूँ ही गुज़र गये. उसे समझ नही आ रहा था के ये उसका ख्याल था या उसने सच में किसी को देखा था. अचानक उसके दिल में एक ख्याल आया और वो भागती हुई से हवेली के दरवाज़े पर पहुँची. दरवाज़ा अंदर से बंद था. यानी के जो कोई भी था, वो बड़े दरवाज़े से अंदर आया पर हवेली के अंदर दाखिल नही हो पाया. बस हवेली के कॉंपाउंड तक ही आ पाया होगा. पर इस वक़्त चोरों की तरह कौन हो सकता है. सोचती हुई रूपाली फिर खिड़की तक पहुँची और थोड़ी देर तक फिर बाहर झाँकति रही. जब और कुच्छ दिखाई नही दिया तो वो किचन में पहुँची और पानी पीकर अपने कमरे में आ गयी.

कमरे में आकर रूपाली कपड़े बिस्तर पर लेटकर फिर उस आदमी के बारे में सोचने लगी. क्या उसे सच में किसी को देखा था या बस अंधेरे में यूँ ही वहाँ हुआ था. उसने खुद को समझने की कोशिश की के ये उसका भ्रम था. हवेली में यूँ रात को कोई क्यूँ आएगा. अब तो हवेली को मनहूस कहते हुए लोग हवेली के पास को भी नही आते अंदर आने की हिम्मत कौन करेगा? पर फिर भी उसका दिल जाने क्यूँ इस बात को समझने को तैय्यार नही था. उसका दिल बार बार यही कह रहा था के उसने किसी को देखा है. खुद रूपाली को भी इस बात पे हैरत थी के वो इस बात को लेके इतना घबरा क्यूँ रही थी? इतना डर क्यूँ गयी थी.

वो यूँ ही अपनी सोच में खोई हुई थी के अचानक उसके दिल में पायल का ख्याल आया. अपनी तसल्ली करने के लिए के पायल अब भी सो रही है वो बीच का दरवाज़ा खोलकर पायल के कमरे में आई.

पायल अब भी वैसे ही बेख़बर घोड़े बेचकर सोई पड़ी थी. फ़र्क सिर्फ़ ये था के अब उसने ब्रा भी एक तरफ उतारकर रख दी थी. वो उल्टी सोई हुई थी और उसकी दोनो चुचियाँ खुली हुई उसके नीचे दबकर साइड से बाहर को निकल रही थी. रूपाली धीमे कदमों से चलती उसके पास पहुँची और पायल की नंगी कमर को देखने लगी. दुबली पतली सावली सी कमर देखकर उसे अपने शादी से पहले के दिन याद आए. कभी वो भी ऐसी ही थी. दुबली पतली, उठी हुई गांद और बड़ी बड़ी चुचियाँ. अब जिस्म थोड़ा भर गया था. जाने किस ख्याल में वो वही पायल के बिस्तर पर बैठ गयी और एक हाथ उसकी कमर पर रखकर सहलाने लगी. पायल की नंगी कमर पर उसने धीरे से हाथ फिराया और साइड से उसकी एक चूची को च्छुआ. छाती पर हाथ लगते ही पायल नींद में थोड़ा हिली और रूपाली फ़ौरन उठकर बिस्तर से खड़ी हो गयी. उसने अपने सर को एक हल्का सा झटका दिया और पायल के कमरे से वापिस अपने कमरे में आ गयी. अब उसके दिमाग़ में दो ख्याल चल रहे थे. एक तो दरवाज़े पे दिखे आदमी का और दूसरा ये के क्या वो खुद ठीक है जो एक औरत के जिस्म को यूँ देखती है?

वापिस अपने कमरे में आकर रूपाली सो गयी. आँख खुली तो सुबह के 9 बज चुके थे और पायल बाहर दरवाज़े पर चाइ लिए खड़ी थी. फ्रेश होकर रूपाली नीचे आई तो बड़े कमरे में ठाकुर बैठे कुच्छ काग़ज़ देख रहे थे. रूपाली को आता देख वो उसकी तरफ मुस्कुराए.

"आँख खुल गयी आपकी?"

"पता नही क्यूँ आजकल इतनी नींद आने लगी है" रूपाली पास बैठते हुए मुस्कुराइ.

"क्यूंकी हमेशा बचपन से सुबह 5 बजे उठ जाती थी ना इसलिए. अब वो नींद पूरी कर रही हैं आप" कहकर ठाकुर हँसने लगे.

रूपाली ने मुस्कुराते हुए सामने रखे पेपर्स की तरफ देखा

"ये क्या है?" उसने ठाकुर से पुचछा

"कुच्छ नही. बॅंक स्टेट्मेंट्स और कुच्छ जायदाद के पेपर्स." ठाकुर थोड़ा सीरीयस होते हुए बोले "अंदाज़ा लगा रहे हैं के पिच्छले 10 साल में अपने बेटे और अपनी इज़्ज़त के सिवा और हमने कितना कुच्छ खोया है"

कमरे में थोड़ी देर खामोशी सी छा गयी. ना रूपाली कुच्छ बोली और ना ही ठाकुर. खामोशी टूटी पायल की आवाज़ से

"मैं आज क्या करूँ मालकिन?" उसने रूपाली से पुचछा

"बताती हूँ. किचन में चल" रूपाली ने पायल को किचन की तरफ जाने का इशारा किया. पायल के जाने के बाद वो ठाकुर की तरफ पलटी

"आप आज कहीं जा रहे हैं?"

"नही क्यूँ?" ठाकुर ने पुचछा

"नही मैं सोच रही थी के ज़मीन की तरफ आज एक फिर चक्कर लगा आऊँ. और फिर ये भी सोच रही थी के भूषण को बोलकर कुच्छ आदमी गाओं से बुलवा लूँ और हवेली के आस पास थोड़ी सफाई करा दूं" रूपाली ने कहा

"ज़मीन का चक्कर? क्यूँ?" ठाकुर ने पुचछा

"बंजर पड़ी ज़मीन किस काम की पिताजी?" मैं वहाँ दोबारा खेती शुरू करना चाहती हूँ

"तो वो हम पर छ्चोड़ दीजिए. आपको वैसे भी इस बारे में क्या पता?" ठाकुर ने कहा

"नही पिताजी. इस बार मुझे करने दीजिए. मैं हवेली को दोबारा पहले जैसा देखना चाहती हूँ और ये काम मैं खुद करना चाहती हूँ" रूपाली ने ऐसा कहा जैसे कोई फ़ैसला सुना रही हो

"ठीक है जैसा आप ठीक समझें" ठाकुर ने सामने खड़ी बला की खूबसूरत लग रही रूपाली के सामने हथ्यार से डाल दिए

"मैं भूषण को बोल देती हूँ के कुच्छ आदमी गाओं से बुलवा ले. आप देख लीजिएगा" रूपाली ने ठाकुर से कहा और किचन की तरफ बढ़ी.

पायल को उसने हवेली के कुच्छ हिस्सो में सफाई करने के बारे में बता दिया. पायल किसी समझदार बच्ची की तरह उसके पिछे गर्दन हिलती घूमती रही और समझती रही के उसे आज क्या करना है.

पायल को सब समझाकर रूपाली गाड़ी लेकर हवेली से बाहर निकल गयी. उसने फिर ज़मीन को उस हिस्से की तरफ गाड़ी घुमा दी जहाँ पायल और उसकी माँ बिंदिया का घर था. बिंदिया ने उसे कहा था के वो हमेशा से यहीं काम करती थी और उसका मर्द उससे पहले से. यानी बिंदिया उसे काफ़ी कुच्छ बता सकती है जो रूपाली को पता नही था. रूपाली की शादी से पहले के बारे में. उन दीनो के बारे में जब उसका पति पुरुषोत्तम सब काम देखा करता था. रूपाली का इरादा ये था का कहीं से उसे कुच्छ ऐसा पता चल जाअए जिससे उसे अपने पति की मौत की वजह का कोई सुराग मिले. इसलिए उसने ठाकुर को भी साथ आने से मना कर दिया था. क्यूंकी वो बिंदिया से अकेले में बात करना चाहती थी.

गाड़ी चलती रूपाली उसी जगह पहुँची जहाँ बिंदिया उसे पहले मिली थी. गाड़ी को उसी पेड़ के नीचे छ्चोड़कर रूपाली पैदल बिंदिया की झोपड़ी की तरफ बढ़ी. झोपड़ी का दरवाज़ा खुला हुआ था. दरवाज़े पर पहुँचकर रूपाली ने बिंदिया के नाम से उसे आवाज़ लगाई पर कोई हलचल नही हुई. दरवाज़े पर खड़ली रूपाली ने अंदर देखा तो कोई नज़र नही आया. रूपाली दरवाज़े से हटकर घूमकर झोपड़ी के पिछे आई ये सोचकर के शायद बिंदिया पिछे हो. सामने का नज़ारा देखकर उसके कदम वही जम गये और वो दो कदम पिछे हटकर फिर झोपड़ी की आड़ में चली गयी. एक पल को झोपड़ी के दीवार के सहारे खड़े रहकर उसने धीरे से थोड़ा आगे बढ़ी और दम साधे देखने लगी.

सामने एक नीम का पेड़ था जिसके नीचे एक चादर बिछी थी. चादर पर दो नंगे जिस्म एक दूसरे से उलझे हुए थे, एक मर्दाना और एक ज़नाना. मर्दाना जिस्म जिस किसी का भी था वो नीचे लेटा हुआ था और औरत उपेर बैठी हुई थी. हाथ आगे आदमी के सीने पर रखकर वो औरत आगे को झुकी हुई थी. रूपाली जहाँ खड़ी थी वहाँ से उसे उस औरत की कमर और आदमी की औरत की गांद के नीचे से निकलती हुई टांगे नज़र आ रही थी. औरत का मुँह रूपाली से दूसरी तरफ था और क्यूंकी वो आदमी के उपेर बैठी हुई थी इसलिए रूपाली को आदमी का चेहरा नज़र नही आ रहा था.

औरत आदमी के उपेर घुटने टांगे मोदकर बैठी हुई थी. उसकी दोनो टांगे आदमी के पेट के दोनो तरफ थी और घुटनो ज़मीन पर टीके हुए थे. वो हाथ सामने आदमी के सीने पर रखकर अपनी गांद को उपेर नीचे कर रही थी और पिछे से रूपाली को लंड उस औरत की चूत में अंदर बाहर होता नज़र आ रहा था. देखने से ही अंदाज़ा होता था के आदमी कोई छोटी कद काठी का था और औरत उससे लंबी और चौड़ी थी. रूपाली दम साधे देखती रही. उस औरत की मोटी गांद लंड पर तेज़ी के साथ उपेर नीचे हो रही थी और रूपाली की नज़र चूत में अंदर बाहर होते लंड पर जम गयी.उस आदमी का लंड भी इतना बड़ा नही था. शायद उसके छ्होटे जिस्म के हिसाब से लंड भी छ्होटा था. कई बार वो औरत उपेर को जाती तो लंड चूत से बाहर फिसल जाता जिसे वो फिर हाथ में पकड़कर लंड के अंदर घुसाती और उपेर नीचे होने लगती.

थोड़ी देर तक यही माजरा चलता रहा. अचानक वो औरत उस आदमी के उपेर से उठकर खड़ी हो गयी और तब रूपाली को उसका चेहरा नज़र आया. वो बिंदिया थी और इस वक़्त पूरी तरह से नंगी खड़ी हुई थी. रूपाली उसके जिस्म को देखकर दिल ही दिल में वा किए बिना ना रह सकी. इस औरत की 18 साल की एक बेटी थी पर जिस्म अब भी खुद किसी 18-19 साल की लड़की से कम नही था. कहीं भी जिस्म के किसी हिस्से में ढीला पन नही था. बड़ी बड़ी तनी हुई चूचियाँ, पतली कमर, सपाट पेट,मोटी उठी हुई गांद, खूबसूरत टाँगें. कहीं कोई फालतू मोटापा नही. गांद भी ना ज़्यादा फेली हुई और ना ही छ्होटी. तभी रूपाली की नज़र उस आदमी पर पड़ी और उसे समझ आया के वो क्यूँ छ्होटी सी कद काठी का लग रहा था. वो मुस्किल से 16-17 साल का एक लड़का था और कद में अपनी उमर के लड़को से कुच्छ छ्होटा ही था. रूपाली चुपचाप खड़ी देखती रही.

बिंदिया ने खड़ी होकर उस लड़के को उठने को कहा. वो चुपचाप उसकी बात मानकर खड़ा हो गया. बिंदिया उसके सामने घुटनो पे बैठ गयी और उसका लंड मुँह में लेकर चूसने लगी. लड़के का लंड पूरा खड़ा हुआ था पर फिर भी बिंदिया उसे पूरा मुँह में ले गयी. कभी वो उसके लंड को मुँह में अंदर बाहर करती तो कभी जीभ से उसे चाटने लगती, तो कभी लड़के के अंडे अपने मुँह में लेके चूस्ति. लड़का आँखें बंद किए खड़ा था और अपने दोनो हाथों से बिंदिया का सर पकड़ रखा था. थोड़ी देर लंड चूसने के बाद बिंदिया अपने घुटनो पे किसी कुतिया के तरह झुक गयी. घुटने फैलाकर उसके अपनी गांद उपेर को उठा दी ताकि उसकी चूत खुलकर लड़के के सामने आ जाए. उसकी दोनो चूचियाँ सामने से नीचे चादर पे रगड़ रही थी.

लड़का इशारा समझ गया और बिंदिया के पिछे आ गया. जहाँ रूपाली खड़ी थी वहाँ से उसे दोनो साइड से नज़र आ रहे थे. घुटनो पे झुकी हुई बिंदिया और उसके पिछे उसकी गांद पे हाथ रखे वो लड़का.

"रुक ज़रा वरना तू पिच्छली बार की तरह ग़लती से फिर गांद में डाल देगा" कहते हुए बिंदिया ने एक हाथ पिछे ले जाकर उस लड़के का लंड पकड़ा और उसे अपनी चूत का रास्ता दिखाया. एक बार लंड अंदर हुआ तो लड़के ने चूत पे धक्के मारने शुरू कर दिए. पीछे से उसकी टाँगो की बिंदिया की गांद पे ठप ठप टकराने की आवाज़ और सामने से बिंदिया के मुँह से आ आ की आवाज़ ने अजीब सा महॉल बना दिया था. थोड़ी देर बाद शायद बिंदिया झड़ने के करीब आ गयी थी. वो खुद भी अपनी गांद हिलाने लगी और लड़के को और ज़ोर से चोदने को कहने लगी. लड़का भी पूरा जोश में था. वो अपना लंड उसकी चूत में ऐसे पेल रहा था जैसे आज चूत फाड़ के ही दम लेगा. उसके हर धक्के से बिंदिया का सर नीचे ज़मीन से टकराता और वो उसे और ज़ोर से धक्का मारने को कहती.

अचानक बिंदिया ज़ोर से चीखी और उसने सामने से चादर को अपने दोनो हाथों में कासके पकड़ लिया. उसने अपना सर नीचे ज़मीन पे टीकाया और उसका पूरा जिस्म कापने लगा. उसकी आ आ और तेज़ हो गयी. चादर खींचकर उसने अपने मुँह में भींच ली और ज़ोर ज़ोर से ज़मीन पे हाथ मारते हुए आआआआअहह आआआआआअहह चीखने लगी. पीछे से लड़का भी पूरी जान लगाकर उसकी चूत पे धक्के मारने लगा. थोड़ी देर ऐसे ही चीखने के बाद बिंदिया ठंडी पड़ी तो रूपाली समझ गयी के वो ख़तम हो चुकी है. लड़का भी अब पूरी तेज़ी से उसकी चूत में लंड पेल रहा था.

"चूत में मत निकल देना" बिंदिया ने लड़के से कहा

लड़के ने हां में सर हिलाया और 3-4 और ज़ोर के झटके मारकर लंड बिंदिया की चूत से बाहर खींचा और उसकी गांद पे रख दिया. लंड ने पिचकारी छ्चोड़ी और कुच्छ बिंदिया की गांद पर गिरा, कुच्छ कमर पर और कुच्छ उसके बालों पर.

रूपाली धीरे से पिछे हुई और झोपड़ी के सामने रखी चारपाई पर आकर बैठ गयी.

थोड़ी ही देर बाद माथे से पसीना पोंचछति बिंदिया भी झोपड़ी के पिछे से निकली. उसके पिछे पिछे वो लड़का भी था. दोनो ने अपने अपने कपड़े पहेन लिए थे. रूपाली को बैठा देखकर दोनो ठिठक गये.

"अरे मालकिन आप? आप कब आई?" बिंदिया ने रूपाली से पुचछा

"बस अभी आई एक मिनट पहले" रूपाली ने झूठ बोला " तुम नही दिखी तो सोचा के इंतेज़ार कर लूँ"

"हां वो मैं ज़रा थोड़ा कुच्छ काम से गयी थी. ये चंदर है." बिंदिया ने कहा

लड़के ने हाथ जोड़कर रूपाली के सामने सर हल्का सा झुकाया और चला गया.

"आअप पानी लेंगी?" उसके जाने के बाद बिंदिया ने रूपाली से पुचछा

"हां" रूपाली ने कहा

बिंदिया झोपड़ी में जाकर एक ग्लास में पानी ले आई और रूपाली को दिया

"मालकिन वो मैं ..... " झिझकते हुए बिंदिया बोली

"ठीक है बिंदिया" रूपाली ने ग्लास एक तरफ रखते हुए कहा "तुम जो कर रही थी वो दुनिया की हर औरत करती है. शरमाने की ज़रूरत नही"

रूपाली ने बिंदिया के सामने सॉफ ज़ाहिर कर दिया के उसने सब देख लिया था. बिंदिया ने फिर भी कुच्छ नही कहा और सर झुकाए ज़मीन की और देखती रही.

"बाकी सब तो ठीक है पर थोड़ा छ्होटा नही था? इतने से काम चल जाता है तुम्हारा?" रूपाली ने हस्ते हुए कहा तो बिंदिया की भी हसी छूट पड़ी.

"नही मेरा मतलब था के लड़का थोड़ा छ्होटा नही है? तुम्हारी बेटी की उमर का लगता है" रूपाली ने कहा

"नही मेरी बेटी से 2 साल छ्होटा है" बिंदिया वहीं ज़मीन पर बैठते हुए बोली "पर काम चल जाता है. इसके माँ बाप नही हैं. इसलिए मैं ही खाने वगेरह को दे देती हूँ"

"और बदले में थोड़ा काम निकल लेती हो?" रूपाली मुस्कुराते हुए बोली

बिंदिया हँसने लगी

"नही ये तो पता नही कैसे हो गया वरना ये तो बहुत छ्होटा था जब मैं इसके माँ बाप मर गये थे. गाओं से मैं इसे लाई और यूँ समझिए के अपनी बेटी के साथ इसे भी बड़ा किया"बिंदिया ने कहा. रूपाली ने ग्लास से पानी का आखरी घूंठ लिया और ग्लास बिंदिया को दिया.

"तुम कल आई नही पायल के साथ?" रूपाली ने बिंदिया से पुचछा

"नही कल चंदर की तबीयत थोड़ी खराब थी. सुबह से ही हल्का बुखार था इसे तो मैं यहीं रुक गयी और पायल को भेज दिया. वो काम ठीक से कर तो रही है ना मालकिन?" बिंदिया ने पुचछा

"हां सब ठीक है." रूपाली ने कहा और फिर थोड़ा रुकते हुए बोली " मैं असल मैं तुमसे थोड़ा बात करने आई थी. अकेले में इसलिए किसी को साथ नही लाई"

"हां कहिए" बिंदिया बोली. तभी चंदर आया और हाथ के इशारे से बिंदिया को कुच्छ बताने लगा.

"हां ठीक है जा पर शाम तक आ जाना. आते हुए गाओं से थोड़ा दूध लेता आना. पैसे हैं ना तेरे पास?" बिंदिया चंदर से बोली. चंदर ने हां में सर हिलाया और चला गया

"बोल नही सकता बेचारा. गूंगा है" बिंदिया रूपाली की तरफ देखती हुई बोली

"काब्से?" रूपाली ने पुचछा

"बचपन से ऐसा ही है. इसके माँ बाप के मरने के बाद जब मैं इसे लाई तो बहुत वक़्त लग गया मुझे इसे बातें समझाने में. इसके इशारे समझ ही नही आते थे पहले तो" बिंदिया बोली

"माँ बाप कैसे मारे थे इसके?" रूपाली ने पुचछा तो बिंदिया बगले झाँकने लगी. थोड़ी देर तक वो यूँ ही चुप बैठी रही.

"क्या हुआ. बताओ ना" रूपाली ने दोबारा पुचछा

"छ्चोड़िए मालकिन. आपको अच्छा नही लगेगा" बिंदिया ने कहा

"क्यूँ?" रूपाली हैरत में बोली

"क्यूंकी इसके माँ बाप ठाकुर साहब की गोली के शिकार हुए थे. ठाकुर साहब ने ही एक रात दोनो को मौत की नींद सुलाया था."
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#20
Update 16

"पर क्यूँ?"रूपाली के मुँह से अपने आप ही निकल गया

"जब आपकी पति छ्होटे ठाकुर की हत्या हुई तो उसके पिछे आस पास के इलाक़े में बहुत सारे लोग मौत की नींद सोए थे मालकिन. ठाकुर साहब और आपके देवर ठाकुर तेजवीर सिंग ने आपके पति की मौत का बदला लेने के लिए आस पास के इलाक़े में दहशत फेला दी थी."

"जानती हूँ" रूपाली ने ठंडी आवाज़ में कहा " आगे बोलो"

"गाओं में एक बनिया हुआ करता था. जाने क्यूँ ठाकुर साहब को लगा के उस बानिए का कुच्छ हाथ है आपके पति की हत्या में. बस एक रात ठाकुर साहब और उनकी आदमियों ने बानिए के घर पर हल्ला बोल दिया"

बिंदिया ने बात जारी रखते हुए कहा

"ह्म्‍म्म्मम फिर?" रूपाली गौर से उसकी बात सुन रही थी

"चंदर के माँ बाप उसी बानिए के घर पर काम करते थे. उनकी किस्मत खराब के उस रात बानिए के घर पर कोई पूजा चल रही थी जिसमें हाथ बटाने के लिए उसने चंदर के माँ बाप को रात भर के लिए रोक लिया था. आधी रात के करीब ठाकुर साहब अपने आदमियों के साथ बानिए के घर पहुँचे और घर में जो कोई भी था उसे मौत के घाट उतार दिया. उन लोगों में इस बेचारे चंदर के माँ बाप भी थे" बिंदिया ने साँस छ्चोड़ते हुए कहा और थोड़ी देर के लिए चुप हो गयी.

"ये आज से करीब 9 साल पहले की बात है. तब ये चंदर मुश्किल से 7-8 साल का था. गाओं में यूँ ही कुच्छ दिन अनाथ बेचारा यहाँ वहाँ घूमता रहा. एक दिन मेरे घर खाना माँगने आया तो मैने यहीं रख लिया" बिंदिया ने बात पूरी करते हुए कहा

रूपाली को समझ नही आया के क्या कहे. बिंदिया भी अपनी बात कहकर चुप हो गयी थी. दोनो औरतें खामोश बैठी यहाँ वहाँ देखती रही. रूपाली को ठाकुर के बारे में ये सुनना अच्छा नही लगा. पहले तो वो उसके ससुर थे और अब तो रिश्ता भी बदलकर मोहब्बत का हो गया था. उसका दिल ठाकुर को ग़लत मानने को तैय्यार नही था और ना ही उनके खिलाफ कुच्छ सुनने को तैय्यार था. उसके लिए ठाकुर वही आदमी था जिनकी बाहों में वो रात भर सोती थी और जो उसे इतना चाहते थे, वो आदमी नही जो किसी के घर में घुसकर लोगों को मारना शुरू कर दे. रूपाली ने बात बदलने की सोची

"एक बात कहूँ बिंदिया?" रूपाली ने कहा

"हां मालकिन" बिंदिया ने फ़ौरन उसकी तरफ देखा

"तुम्हारी उमर कितनी होगी?"

"सही तो नही पता पर 40 के आस पास तो होगी ही. क्यूँ?" बिंदिया ने सवालिया अंदाज़ में कहा

"क्यूंकी तुम्हारा नंगा जिस्म देखकर एक पल के लिए तो मुझे लगा के कोई 20 साल की लड़की है. लगा ही नही के तुम हो, एक 18 साल की लड़की की माँ" रूपाली ने मुस्कुराते हुए कहा

"मालकिन" बिंदिया शरम से पानी पानी हो गयी"आपने ..........?"

"हां सब देखा था मैने. जब मैं यहाँ आई तो तुम उस लकड़े के उपेर चढ़ि हुई थी इसलिए मैने पिछे से देखा. तुम्हारा जिस्म तो कमाल का है बिंदिया. मैं एक पल के लिए तो पिछे हटी पर फिर देखने लगी. खुद एक औरत होते हुए भी मैं तुम्हारे जिस्म को देखकर वहीं रुक ही गयी" पायल बोली

बिंदिया शरम से आँखें नीचे किए बैठी थी. उसपर तो लग रहा था जैसे किसी ने पानी फेंक दिया हो.

"मालकिन आपने सब ,,,,,,,,,,? मुझे तो लगा था के आपने इस बात से अंदाज़ा लगाया के मैं और चंदर एक साथ कपड़े ठीक करते हुए आए थे" बिंदिया अटकते हुए बोली

"नही तुम्हारा पूरा कार्यक्रम देखा था मैने. तुम लड़के के उपेर और फिर तुम झुकी हुई. अच्छा एक बात बताओ. तुम क्या आख़िर में हमेशा ऐसे ही शोर मचाती हो?" पायल ने अपनी बात जारी रखी. उसे बिंदिया का यूँ शरमाना अच्छा लग रहा था.

बिंदिया के मुँह से बोल नही फूट रहा था. वो नज़रें नीची किए ज़मीन की तरफ देख रही थी. रूपाली को ये मौका ठीक लगा. अगर उसे बिंदिया से और बातें पता करनी हैं तो उसके लिए ज़रूरी है के बिंदिया उसके साथ पूरी तरह खुल जाए और उस काम के लिए ये ठीक मौका था.

"अच्छा अब शरमाना छ्चोड़. मुझसे क्या शर्मा रही है?" रूपाली ने बिंदिया के सर पर हाथ मारते हुए कहा "मुझे अपनी दोस्त समझ, मालकिन नही."

बिंदिया ने रूपाली की तरफ देखा और मुस्कुराइ. रूपाली को अपना काम बनता लगा

"भूख लग रही है बहुत. कुच्छ खाने को है तेरे यहाँ?" उसने बिंदिया से पुचछा

बिंदिया घर में जो कुच्छ मिला खाने के लिए ले आई

"मालकिन ज़्यादा तो कुच्छ नही है मुझ ग़रीब के घर में. जो है बस यही है" उसने चारपाई पर खाना परोसते हुए रूपाली से कहा

"अरे पगली 2 वक़्त की रोटी मिल जाए, यही काफ़ी है इंसान के लिए" रूपाली ने हसते हुए जवाब दिए

रूपाली ने खामोशी से खाना खाया और बिंदिया वहीं नीचे बैठी उसे देखती रही. रूपाली ने उसे साथ खाने को कहा पर वो नही मानी. खाना ख़तम करके रूपाली ने हाथ धोए और घूमकर झोपड़ी के पिछे वहीं आ गयी जहाँ थोड़ी देर पहले बिंदिया चुड़वा रही थी. वो वही एक पेड़ की छाँव में आकर खड़ी हो गयी.

"क्या हुआ मालकिन" पीछे से आते हुए बिंदिया ने पुचछा

"कितनी शांति है यहाँ" रूपाली ने जवाब दिया"कितना सुकून"

"शांति नही मालकिन" बिंदिया ने कहा"सन्नाटा कहिए. एक बंजर पड़ी ज़मीन पे मौत का सा सन्नाटा"

"मौत का सन्नाटा?" रूपाली हस्ते हुए बोली "और इस मौत के सन्नाटे में तुम चंदर के साथ कबड्डी खेल रही थी?"

सुनते ही बिंदिया फिर से लाल हो गयी. वो दोनो चलते हुए फिर झोपड़ी के अंदर आ गयी.

"अच्छा ये सब शुरू कैसे हुआ ये तो बता?रूपाली फिर से बैठते हुए बोली

"क्या?"बिंदिया ने कहा

"यही. चंदर के साथ कबड्डी कबड्डी का खेल" रूपाली ने जवाब दिया

"क्या मालकिन आप भी. कोई और बात कीजिए ना" बिंदिया ने बात टालने की कोशिश की

"अरे बता ना. क्या बचपन से इसे लाते ही शुरू कर दिया था?" रूपाली बोली

"नही नही. ये तो अभी साल भर पहले ही शुरू हुआ था." बिंदिया बोली

"कैसे? बता ना" रूपाली ने ऐसे पुचछा जैसे कोई बहुत मज़े की बात सुनना शुरू कर रही हो

"छोड़िए ना मालकिन" बिंदिया ने एक और बार बात बदलने की कोशिश की

"बता ना" रूपाली ज़िद पर आदि रही

"ठीक है." बिंदिया ने हथ्यार डालते हुए कहा "जब चंदर को मैं यहाँ लाई थी तो ये मुश्किल से 7-8 साल का था. पाल पोस्के बड़ा किया. ये धीरे धीरे जवान होता चला गया पर शायद मैं इसे हमेशा एक बच्चे की तरह ही देखती रही. मेरे लिए तो ये वही बच्चा था जिसे अनाथ देखकर मैं अपने घर ले आई थी."

"ह्म्‍म्म्म" रूपाली ना हामी भारी

"मेरे इस कंधे में काफ़ी चोट लग गयी थी जिसकी वजह से ये हाथ ज़्यादा पिछे की तरफ मूड नही पाता" बिंदिया ने अपने लेफ्ट कंधे पर हाथ रखते हुए कहा. " इसी वजह से नहाते वक़्त मैं अपने हाथ से कमर पर साबुन नही लगा पाती. नहाते वक़्त या तो मैं अपने मर्द को बुला लेती थी या अपनी बेटी पायल को. जब मेरा मर्द मर गया तो ये काम पायल ही करती थी. एक दिन पायल घर पर नही तो तो मैने चंदर को कह दिया. तब वो बच्चा ही था. और फिर यह सिलसिला चल निकला. कभी पायल मेरी कमर पर साबुन लगा देती और जब वो ना होती तो मैं चंदर से लगवा लेती."

"तू नंगी हो जाती थी उसके सामने? बच्चा था तो क्या हुआ?" रूपाली ने हैरत से पुचछा

"अरे नही मालकिन. घाघरा उपेर खींच लेती थी सीने तक. बस कमर थोड़ा सा खोल देती थी ताकि वो साबुन आराम से लगा सके" बिंदिया बोली

"ह्म्‍म्म्म. फिर?" रूपाली ने आगे की बात बताने के लिए कहा

"फिर मेरा मर्द मर गया. कई साल तक मैं यूँ ही अकेले रही. एक बार जिस्म की आग इस कदर बढ़ गयी के अपने आप को रोक नही पाई और चंदर के साथ जिस्मानी रिश्ता बन गया. बस तबसे ऐसा ही चल रहा है" बिंदिया ने बात ख़तम करते बोला

"ये क्या बात हुई. अरे मैं वो किस्सा सुनना चाहती हूँ जब तुम दोनो ने पहली बार किया. वो कहानी बता. हर बात को बता के उसने क्या किया ओर तूने क्या किया" रूपाली जैसे हुकुम देते हुए बोली

"मालकिन" बिंदिया को जैसे यकीन नही हुआ

"क्या मालकिन?" रूपाली बनावटी गुस्सा दिखाते हुए बोली"जैसे तूने कभी किसी औरत के साथ ऐसी बात नही की. औरतें तो अक्सर ऐसी बातें करती हैं आपस में"

"वो तो ठीक है मालकिन पर फिर भी" बिंदिया अब भी हिचकिचा रही थी

"पर वार कुच्छ नही अब बता. मैने कहा ने मुझे अपनी दोस्त ही समझ. अब जल्दी से बता. बताआआआअ नाआआआअ" रूपाली किसी बच्चे की तरह ज़िद करते हुए बोली

ठीक है आप सुनना ही चाहती हैं तो सुनिए" बिंदिया ने आह भरते हुए कहा

"बात आज से कोई एक साल पहले की है. पायल घर पर नही थी. मैं यहीं झोपड़ी में नहाती थी. रोज़ की तरह नहाने लगी और चंदर को आवाज़ देकर अपनी कमर पर साबुन लगाने को कहा. सच कहिए तो उस दिन मुझे अंदाज़ा हुआ था के वो अब बच्चा नही रहा, एक मर्द बन चुका है"

"ह्म्‍म्म्म" रूपाली हामी भरते बोली

"रोज़ की तरह मैने अपना घाघरा उपेर खींच रखा था. मेरे सीने से मेरे घुटने तक. चंदर आया और मेरी कमर पर साबुन लगाने लगा. पर उस दिन जो ग़लती मुझसे हुई वो ये थी के मैने सफेद रंग का घाघरा पहेन रखा था और अंदर कुच्छ भी नही था" बिंदिया बोली

"मतलब पानी गिरते ही घाघरा बदन से चिपक गया और तेरा सारा समान चंदर के सामने?" रूपाली हस्ते हुए बोली

"हां" बिंदिया ने भी हसके ही जवाब दिया"मुझे इस बात का अंदाज़ा ही नही था के मैं एक तरह से उसके सामने नंगी ही हूँ. वो चुपचाप मेरे पिछे खड़ा साबुन लगा रखा था. कमर तो मैने खोल ही रखी थी पर सफेद घाघरा जिस्म से चिपक जाने के कारण मेरे पिच्छला नीचे का हिस्सा भी एक तरह से उसे नज़र ही आ रहा था."

"मतलब तेरा पिच्छवाड़ा?" रूपाली ने सीधी चोट की, हस्ते हुए"तेरी गान्ड?"

बिंदिया पर जैसे घड़ो पानी गिर गया. रूपाली उसके लिए उसकी मालकिन थी, एक अच्छे घर की सीधी शरीफ बहू. उससे इस तरह की भाषा की बिंदिया को बिल्कुल उम्मीद नही थी. वो रूपाली का मुँह देखने लगी.

"ऐसे क्या देख रही है. गान्ड को गान्ड नही तो क्या गोल गप्पा कहूँ? अगर तू ऐसे शरमाएगी मेरे सामने तो तेरी मेरी दोस्ती यहीं ख़तम. मैं जा रही हूँ और फिर कभी नही आने वाली"रूपाली चारपाई से उठने को हुई

"अरे नही मालकिन" बिंदिया ने फ़ौरन से रोका "आप ग़लत समझ रही हैं. गाओं की सब औरतें ऐसी ही ज़ुबान में बात करती हैं. मैं खुद भी करती हूँ ऐसे ही बातें जब सब औरतें आपस में बैठी होती हैं तो. बस आपके मुँह से सुनके थोडा अजीब सा लगा"

"अजीब छ्चोड़. मेरे से वैसे ही बात कर जैसे तू बाकी औरतों से करती है. मैं भी तो एक औरत ही हूँ. अब आगे बता" रूपाली ने वापिस आराम से बैठते हुए कहा

"थोड़ी देर यूँ ही गुज़र गयी. वो साबुन रगड़ रहा था. अचानक मेरी नज़र सामने मेरी च्चातियों पर पड़ी तो मैने फ़ौरन अपने हाथ आगे किए. मेरा घाघरा मेरे सीने से चिपक गया था और मेरी दोनो छातियाँ सॉफ दिखाई दे रही थी. मैने फ़ौरन अपने हाथों से अपने सीने को ढका और दिल ही दिल में सोचा के अच्छा हुआ चंदर आगे की तरफ नही खड़ा."

"ह्म्‍म्म्मम" रूपाली ने फिर हामी भारी. उसका प्लान कामयाब हो रहा था. बिंदिया उससे खुल रही थी. आराम से सब बातें कर रही थी. चुदाई के ये कहानी तो बस एक ज़रिया थी. असल बात जो रूपाली मालूम करना चाहती थी वो तो हवेली के बारे में थी. पर अब इस कहानी में उसे खुद भी थोड़ा मज़ा आने लगा था. वो कान लगाकर गौर से सुन रही थी.

"तभी मुझे ध्यान आया के जो हाल आगे हैं वो पिछे भी होगा" बिंदिया ने बात जारी रखी"मैं और चंदर दोनो ही खड़े हुए थे और मैं फ़ौरन समझ गयी के पिछे से मेरी गान्ड भी सॉफ दिखाई दे रही होगी कपड़े के उपेर से. मैने फ़ौरन अपने दोनो हाथो से अपने घाघरे को झटका ताकि वो मेरे जिस्म से अलग हो जाए, चिपका ना रहे और थोड़ा आगे को होकर चंदर की तरफ पलटी. वो अजीब सी नज़र से मुझे देख रहा था. तब मुझे एहसास हुआ के मैं एक बच्चे की नही, एक जवान लड़के की आँखों में देख रही हूँ जो थोड़ी देर पहली मेरी गान्ड का नज़ारा कर रहा था."

"फिर?" रूपाली थोड़ा आगे को होते हुए बोली

"कुच्छ पल के लिए ना चंदर कुच्छ बोला और ना मैं. दोनो एक दूसरे की आँखों में आँखें डाले देख रहे थे. मुझे समझ नही आ रहा था के क्या करूँ. फिर मुझे एहसास हुआ के चंदर की नज़र नीचे को झूल गयी है. मुझे लगा के वो शर्मा रहा है पर फिर एहसास हुआ के वो असल में मेरी टाँगो के बीच की जगह की तरफ देख रहा था. मैने अपने हाथ आगे को कर रखे थे इसलिए छातियाँ तो ढाकी हुई थी पर नीचे घाघरा फिर बदन से चिपक गया था. टाँगो के बीचे की जगह हल्की हल्की दिखाई दे रही थी"

"मतलब तेरी चूत?"रूपाली ने फिर सीधी चोट की

"नही चूत नही"बिंदिया फिर हस्ते हुए बोली"वो कैसे दिखेगी. मेरे पेट पे थोड़े ही लगी है मेरी चूत. वो तो टाँगो के बीचे में है, नीचे की तरफ."

"फिर?"रूपाली भी उसके साथ हस्ने लगी

"सामने से उसे मेरी चूत के उपेर के बॉल नज़र आने लगे थे. मेरे मर्द के मरने के बाद मैं बॉल सॉफ नही किए थे इसलिए काफ़ी ज़्यादा उग गये थे. चंदर की नज़र वहीं जमी हुई थी. मैं शरम से ज़मीन में गड़ गयी. उसे फ़ौरन बाहर जाने को कहा और उसकी तरफ फिर अपनी पीठ करके खड़ी हो गयी. घाघरे को मैने फिर झटका ताकि पिछे से वो फिर मेरी गान्ड से चिपक ना जाए"

"वो गया बाहर?"रूपाली ने पुचछा

"नही बल्कि वो मेरे और करीब आ गया. मेरे पिछे खड़ा होकर फिर मेरी कमर पर हाथ लगाया. मैं सिहर उठी और उसे फिर बाहर जाने को कहा पर वो नही गया. वो धीरे धीरे मेरी पीठ सहलाने लगा. मुझे समझ नही आए के क्या करूँ इसलिए दो कदम आगे को बढ़ गयी पर वो फिर भी नही माना. वो भी आगे को आ गया. ऐसा मैने एक दो बार किया तो बिल्कुल दीवार के पास आ गयी. अब मैं और आगे नही बढ़ सकती थी और चंदर मान नही रहा था. बार बार आगे आकर मेरी पीठ सहला रहा था. मुझे कुच्छ सूझ नही रहा था. मैं बस उसे बाहर जाने को कह रही थी और वो नही मान रहा था. तभी उसने धीरे से मेरी पीठ सहलाते सहलाते अपना हाथ आगे की और बढ़के मेरी एक छाति पकड़ने की कोशिश की और बस. मेरा गुस्सा सातवे आसमान पर पहुँच गया और मैने पलटके उसे एक थप्पड़ मार दिया पर उसपर तो जैसे असर ही नही पड़ा. जैसे ही मैं पलटी और थप्पड़ मारा उसने आगे बढ़कर अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए"

"वा" रूपाली बोली " लड़का बड़ा तेज़ है. फिर?"

"मैने मुश्किल से अपने आपको उससे अलग किया और फिर उसके मुँह पर एक थप्पड़ जड़ दिया और फिर उसकी तरफ पीठ करके खड़ी हो गयी और रोते हुए उसे बाहर जाने को कहा" बिंदिया बोली

"तू रोने लगी?" रूपाली ने फिर हैरत से पुचछा

"हां ना जाने क्यूँ मेरा रोना छूट पड़ा पर उसे मेरे रोने से जैसे कुच्छ लेना देना ही नही था. इधर मैने रोना शुरू किया और उधर वो आगे बढ़कर पिछे से मेरे साथ सटकार खड़ा हो गया. उसका पूरा जिस्म मेरे जिस्म से लगा हुआ था और उसने मेरे गले को चूमना शुरू कर दिया. सच मानिए मालकिन, मुझे लग रहा था जैसे मेरा बलात्कार हो रहा हो. ज़रा भी मज़ा नही आ रहा था"

"ह्म. फिर?"रूपाली ने पुचछा

"फिर उसने अपना वो धीरे धीरे मेरे जिस्म से रगड़ना शुरू कर दिया" बिंदिया बोली

"वो?" रूपाली ने उसे देखते हुए कहा" तेरा मतलब उसका लंड?"

"हन मालकिन" बिंदिया फिर मुस्कुराइ"वो मेरे से लंबा है इसलिए उसका लंड मेरी कमर पर लग रहा था जिसे वो रग़ाद रहा था धीरे धीरे. मुझे कुच्छ समझ नही आ रहा था के क्या करूँ और ना ही मैं कुच्छ कर रही थी. बस दीवार की तरफ मुँह किए रो रही थी और वो पिच्छ से लगा हुआ था. थोड़ी देर बाद उसने धीरे से अपने घुटने मोड और अपना लंड कपड़ो के उपेर से ठीक मेरी गान्ड पे सटा दिया और वो पहला मौका था जब मेरे जिस्म में एक अजीब सी लहर उठी"

"तुझे मज़ा आया?" रूपाली ने पुचछा

"ऐसा ही समझ लो. मैं सालो बाद एक लंड को अपने जिस्म पर महसूस कर रही थी वो भी उसके लंड को जिसे मैने अपने बेटे की तरह पाला था" बिंदिया बोली "धीरे धीरे उसका रगड़ना और तेज़ हो गया और मेरा रोना भी बंद हो गया. मुझे अब भी कुच्छ समझ नही आ रहा था और मैं चुपचाप खड़ी अपने जिस्म में उठती हरारत को महसूस कर रही थी. तभी उसका लंड एक पल के लिए मेरी गान्ड से हटा और उसने अपने हाथ भी मेरी कमर से हटा लिए. पीछे कुच्छ हरकत हुई और इससे पहले के मैं कुच्छ समझ पाती वो फिर मेरे जिस्म से आ लगा. हाथ फिर कमर पर रख दिए और लंड फिर गान्ड से सटा दिया पर इस बार एक फरक था"

"क्या?"रूपाली ने पुचछा

"इस बार उसका पाजामा उसके लंड पर नही था" बिंदिया धीरे से मुस्कुराते बोली

"पाजामा उतार दिया उसने?" रूपाली ने पुचछा

"नही बस नीचे सरका दिया था" बिंदिया बोली

"हां एक ही बात है. लंड तो बाहर आ गया था ना. फिर?" रूपाली को अब सच में कहानी सुनने में मज़ा आने लगा था

"अब उसके लंड और मेरी गान्ड के बीचे सिर्फ़ मेरा घाघरा ही था. वो पूरे ज़ोर से अपना लंड मेरी गान्ड पर दबा रहा था और मेरे गले और कमर को चूम रहा था. मैं बस खड़ी ही थी. ना कुच्छ कर रही थी और जा उसे कुच्छ कह रही थी. जो मेरे साथ हो रहा था उसमें मज़ा भी आने लगा था और दुख भी हो रहा था के मेरे साथ ये क्या हो रहा है. मैं जैसे एक नींद सी में चली गयी थी. बस अपने जिस्म पे उसका जिस्म महसूस हो रहा था. ना वो कुच्छ कह रहा था और ना मैं. तभी मुझे अपना घाघरा उपेर को होता महसूस हुआ. वो मेरे घाघरे को पकड़के नीचे से उपेर को खींच रहा था ताकि मैं नीचे से नंगी हो जाऊ. मैं दीवार के साथ सटी खड़ी थी इसलिए उपेर से वो उसे उतार नही सकता था. कोशिश करता तो मैं रोक देती इसलिए उसने नीचे से उपेर को उठना शुरू कर दिया" बिंदिया कहती रही

"फिर? तूने रोका उसे?" रूपाली साँस रोके सुने जा रही थी

"चाहती तो बहुत थी पर ना जाने मुज़ेः क्या हो गया था. उसने मेरा घाघरा उपेर उठाकर मेरी कमर तक कर दिया और मैने कुच्छ ना कहा. मेरी चूत और गान्ड खुल गयी थी और मैं बस वैसे ही खड़ी थी. अब उसका लंड सीधा मेरी गान्ड को च्छू रहा था और उसने फिर वही रगड़ना शुरू कर दिया कौन होगा मेरी गान्ड के बीचो बीच अपना लंड उपेर नीचे को कर रहा था और मेरी टाँगो पर हाथ फेर रहा था, उसकी साँस भारी हो चली थी और खुद मुझ पर भी एक नशा सा चढ़ गया था. शायद इतने दिन बाद एक मर्द के इतने करीब होने से."

"ह्म्‍म्म्म" रूपाली सुनती रही

"फिर उसने वो हरकत की जिसके लिए मैं शायद तैय्यार नही थी. उसने खड़े खड़े मेरी दोनो टांगे फेलाइ और थोडा नीचे को होके खड़े खड़े ही मेरी चूत में लंड डालने की कोशिश करने लगा. मैने फ़ौरन हटने की कोशिश की पर उसने मुझे मज़बूती से पकड़ रखा था इसलिए हिल भी नही पाई. पर इसका नतीजा ये हुआ के वो चूत लंड नही डाल पा रहा था क्यूंकी मैं बहुत हिल डुल रही थी. तभी उसने ज़ोर से मेरी कमर को पकड़ा और मुझे दीवार के साथ दबा दिया ताकि मैं एक इंच भी ना हिल सकूँ और फिर चूत में लंड डालने की कोशिश करने लगा," बिंदिया बोली

"अंदर डाला उसने?" रूपाली ने पुचछा

"इतनी आसानी से कहाँ मालकिन. नया लड़का था. पहली बार किसी औरत के इतना करीब था और उपेर से हम खड़े थे, बिस्तर पे लेते हुए नही थे और उसपे मैं उसका बिल्कुल साथ नही दे रही थी. काई बार कोशिश के बावजूद भी वो लंड छूट में नही घुसा पाया और शायद इसपर खुद भी झल्ला रहा था. उसने अभी थोड़ी देर पहले ही मेरी कमर पर साबुन लगाया था जो अब भी लगा हुआ था. जब उसका लंड मेरी कमर और गांद पर रगड़ा तो उसके लंड पर भी साबुन लग गया था. ऐसे ही कोशिश करते करते उसने झल्लाके एक बार ज़ोर से धक्का मारा और इस बार लंड को घुसने की जगह मिल गयी." बिंदिया मुस्कुराते हुए बोली

"तेरी चूत में डाल दिया?"रूपाली ने ऐसा पुचछा जैसे बहुत राज़ की बात कर रही हो

"नही मालकिन. लंड घुसा तो पर चूत में नही गान्ड में" बिंदिया बोली

"क्या?" रूपाली जैसे लगभज् चिल्ला उठी "लंड गान्ड में घुस भी गया?"

"अरे साबुन से पूरा लंड चिकना हो रखा था मालकिन. उसने एक ज़ोर का धक्का मारा तो पूरा लंड गान्ड में अंदर तक घुसता चला गया" बिंदिया बोली

"पूरा का पूरा? दर्द नही हुआ तुझे?" रूपाली ने पुचछा

"हुआ ना" बिंदिया हलकसे से हस्ते बोली "मेरी चीख निकल गयी. मेरी पूरी ज़िंदगी में मेरे मर्द ने भी कभी मेरी गान्ड नही मारी थी. ज़िंदगी में पहली बार लंड गान्ड में लिया तो जैसे मुझे चक्कर आने लगा. इतनी तकलीफ़ तो तब भी नही हुई थी जब पहली बार चुदी थी"

"फिर?"रूपाली अब भी हैरानी से सुन रही थी

"फिर क्या. उसने धक्के मारने शुरू कर दिए. उसे शायद पता भी नही था के उसने लंड कहाँ डाल रखा है. उसे तो बस इस बात से मतलब था के उसका लंड मेरे अंदर आ चुका है. नया लड़का था. पता हो भी नही सकता था. लंड अंदर जाते ही उसने जल्दी से मेरी गान्ड पे धक्के मारने शुरू कर दिए. लंड गान्ड में तेज़ी से अंदर बाहर होने लगा. मेरे घुटने कमज़ोर होने लगा था और मुझे लग रहा था के मैं चक्कर खाकर गिर जाऊंगी पर उसने मुझे ऐसे पकड़ रखा था के मैं हिल भी नही पा रही थी. दोनो छातियाँ दीवार के साथ दबी हुई थी और वो मेरी कमर पकड़े मेरी गान्ड मार रहा था" बिंदिया एक साँस में बोली

"तुझे मज़ा आया?" रूपाली बोली

"बिल्कुल भी नही. अभी तो दर्द का दौर भी ख़तम नही हुआ था के वो ख़तम होने लगा" बिंदिया ने जवाब दिया

"इतनी जल्दी? कितनी देर गान्ड मारी तेरी उसने?"रूपाली ने फिर सवाल किया

"मुश्किल से एक मिनट." बिंदिया ने कहा "वो ज़िंदगी में पहली बार किसी औरत को भोग रहा था. मुझे तो हैरत थी के लंड घुसते वक़्त उसका खड़ा था वरना पहली बार तो मर्द का जोश की वजह से ढंग से खड़ा भी नही होता और ज़्यादातर तो अंदर डालने से पहले ही झाड़ जाता है पर उसके साथ ऐसा नही हुआ. उसका लंड खड़ा भी हुआ और मेरी गांद में भी गया पर नया है इस बात का सबूत जल्दी ही मिल गया. उसने पागलों की तरह एक मिनट मेरी गान्ड मारी और थोड़ी देर बाद ही अपना पानी मेरी गान्ड में छ्चोड़ दिया"

"फिर" रूपाली को हैरानी हो रही थी के कोई औरत गान्ड भी मरा सकती है

"जब उसका निकल गया तो वो यूँ ही थोड़ी देर मेरे साथ लगा खड़ा रहा. उसका चेहरा मेरे गले पर था और वो दोनो हाथों से मेरी गान्ड सहला रहा था. लंड बैठने लगा तो गान्ड में से अपने आप बाहर निकल गया. लंड निकलते ही वो पलटा और मुझे यूँ ही नंगी खड़ी छ्चोड़कर कमरे से बाहर निकल गया"
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