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Thriller Drugs Ka Dhanda (Pulp Fiction, Crime, Suspense, Triller Story - Hardcore BF)
#21
Update kab doge?
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#22
(19-09-2025, 08:35 PM)Marishka Wrote: Update kab doge?

Dunga. By Sunday Evening. I am writing a book too - A superhero story and a horror story.  Tongue Tongue Tongue  Amazon pe publish karna hai.
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#23
PART 4 - CONT'D

अजंता गाँडू का मुँह ताकते हुए, उसकी घिनौनी आँखों को घूर रही है, जैसे उसकी बातों का स्वाद ले रही हो। वो अपना सर नीचे की तरफ हल्का सा झटका देती है, जैसे ठरक को झटक रही हो।

अजंता: (आवाज़ में तंज, लेकिन ठरक छुपी) हट्ट!!!!

[Image: 5cbe06c4-111c-4720-9a8f-63f84ae20d09.jpg]

गाँडू: (सलाखों से मुँह सटाकर, हिचकिचाते हुए, आँखें अजंता की जांघों पर) मैडम, सच में!!!! पास आओ—तुम्हें राज की बात बताता हूँ।

अजंता की आँखें सिकुड़ती हैं, वो चेयर पर और फैलती है, उसकी स्वादिष्ट जांघें और उभरती हैं, गांड चेयर पर दबकर और गुदाज़ लग रही है।

अजंता: (आवाज़ में सख्ती, लेकिन उत्सुकता, जैसे राज जानने को बेताब) अभी स्टेशन में कोई नहीं है। खुलके बता।

गाँडू: (थोड़ा हिचकिचाते हुए, देहाती लहजे में, आँखें नीचे) मैडम, बड़े घर की, अमीर, हद से ज्यादा गोरी, गुदाज़, लंबी कद-काठी की कुछ औरतें इस शहर में सड़कछाप घिनौने मर्दों को नंगा मज़ा देती हैं, कसके पटती हैं, गंदी-गंदी जगहों पर अश्लील साड़ी और ब्लाउज पहनकर आती हैं। बहुत से सड़कछाप मर्दों ने बड़े घर की गोरी, गुदाज़, स्वादिष्ट औरतों का नंगा बदन चूसा है।

अजंता की साँसें तेज हो जाती हैं, वो अपनी जांघ को थोड़ा मसलती है, लेकिन बाहर से शांत। उसकी आँखें गाँडू पर टिकती हैं।

अजंता: (आवाज़ में हैरानी, आँखें सिकुड़ती) क्या चल रहा है इस शहर में???

गाँडू: (हल्के से मुस्कुराते हुए, लेकिन डरते हुए) हमें जाने दो, मैडम। अगले हफ्ते हमारा... कुछ सेक्स एडुकेशन... का क्लास होगा। कोई औरत आके सिखाएगी।

अजंता उठती है, वो चेयर से झटके से उठती है, और गाँडू के पास लॉकअप के ग्रिल्स तक जाती है, उसकी गोरी बाहें चमक रही हैं, कमर हल्की सी मटक रही है।

अजंता: (आवाज़ में सख्ती, लेकिन आँखें चमकती) क्या बोला??? सेक्स एजुकेशन?? तुम्हें??? कौन दे रहा है?

गाँडू: (सलाखों से हाथ बाहर, आँखें अजंता के मम्मों पर, देहाती लहजे में) मेरे साथ तीन और सड़कछाप मर्द होंगे, मैडम—लोड़ू, चोदू, मुट्ठल।

अजंता थोड़ा सोचती है, उसकी उंगलियाँ यूनिफॉर्म की पॉकेट पर बेचैन, जैसे दिमाग में कुछ क्लिक हुआ हो। उसकी आँखें सिकुड़ती हैं, ठरक और शक मिलकर।

अजंता: (आवाज़ में शक) कुछ तो गड़बड़ है। कौन करा रहा है ये?

गाँडू: (हिचकिचाते हुए, आँखें नीचे) कोई NGO है, मैडम।

अजंता: (आवाज़ में चालाकी, आँखें गाँडू पर टिकी) तुम एक काम करो। मेरे खबरी बनोगे?

गाँडू: (उत्सुकता से, आँखें चमकती) हाँ मैडम। बस हमें जाने दीजिए।

अजंता चाल में मटकती हुई अपने टेबल पर जाती है, उसकी गांड यूनिफॉर्म में उभर रही है। वो टेबल पर पड़े चाबी के गुच्छे को और गाँडू के छोटे बेसिक फोन को उठाती है। गाँडू बेचैन हो जाता है, उसकी आँखें फड़फड़ा रही हैं, जैसे आजादी बस दो मिनट दूर है, पेट निकला हुआ, लुंगी में लंड हल्का सा हिल रहा है।अजंता लॉकअप के ग्रिल्स के पास आके गाँडू को उसका फोन देती है, और फिर कुंडी पर लटके ताले को खोलने लगती है, चाबी घुमाती हुई, उसकी गोरी उंगलियाँ चमक रही हैं।

अजंता: (आवाज़ में हुक्म, आँखें गाँडू पर) मेरा नंबर नोट करो! ########## और तुम्हारे क्लास में जो होगा, मुझे बताओ।

गाँडू: (फोन पर बटन दबाकर, हिचकिचाते हुए) जी मैडम।

सनप्रीत जैसी बड़े घर की, अमीर, हद से ज्यादा गोरी, गुदाज़, 5 फुट 10 इंच लंबी, बड़े, गोल, फूले और तने हुए मम्मों और कसी हुई, उभरी हुई गोल और बड़ी गांड वाली स्वादिष्ट अजंता इतने पास खड़ी है, कामुक सेंट महकाते हुए, उसकी गोरी चमड़ी चमक रही है, मम्मे यूनिफॉर्म में उभरे, लेकिन गाँडू के मन में आजादी का खयाल दौड़ रहा है।

अजंता लॉकअप का गेट खोलती है, चाबी की आवाज गूंजती है, और गाँडू बाहर चाल में आता है, उसके पैर कांप रहे हैं, बनियान पसीने से चिपकी।

अजंता: (आवाज़ में सख्ती, आँखें गाँडू पर, जैसे उसे तौल रही हो) कोई भी अजीब चीज होती हुई दिखे या कुछ भी गड़बड़ पता चले, मुझे बताना। और कहाँ हो रही ये क्लास।

गाँडू को ऊपर की तरफ देखना पड़ रहा है, उसका सर अजंता के मम्मों के नीचे तक ही आ रहा है, साला इतना नाटा है कि उसका माथा अजंता के मम्मों से टकराने को हैं।

गाँडू: (ऊपर देखते हुए, हल्के से कांपते हुए) वो मीट बाजार में NGO ने अनपढ़ मज़दूरों के लिए क्लास खोला है। वही पे। मज़दूर वही रहते हैं तो क्लास बाजार के अंदर ही बनवा दिया ताकि अनपढ़ मज़दूर आसानी से आके पढ़ सकें।

अजंता: (आवाज़ में हैरानी, लेकिन ठरक भरी, होंठ काटते हुए) कुछ भी हो रहा है इस शहर में। अच्छा जाओ!!

गाँडू आराम से स्टेशन के दरवाजे तक जाता है, उसके पैर धीमे, जैसे आजादी की खुशबू सूंघ रहा हो। और जैसे ही दरवाजे पर पहुँचता है—पूरी जान लगाकर भागता है, बेचैन सा, हाँफते हुए गाली बकता है, जैसे जान में जान आई हो—"तेरी बहन का!!!"
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#24
Part 4 - CONT'D

अजंता दरवाजे की तरफ देखती है, जहाँ गाँडू हाँफता हुआ, गाली बकता हुआ भाग रहा है। उसकी आँखें सिकुड़ती हैं,जैसे उसकी ठरक और गुस्सा एक साथ उबल रहे हों।अजंता: (फुसफुसाते हुए, आँखें दरवाजे पर) "गाँडू साला।"

गाँडू के जाते ही अजंता के दिमाग में "NGO" शब्द खटकता है, जैसे कोई गहरी सुई चुभ गई हो। उसकी भौंहें सिकुड़ती हैं, उंगलियाँ यूनिफॉर्म की पॉकेट पर बेचैन। वो लॉकअप के ग्रिल्स के पास से चाल में टेबल की तरफ जाती है, उसकी मांसल जांघें यूनिफॉर्म में मटक रही हैं, गांड उछल रही है, जैसे हर कदम में ठरक और शक का मेल। वो टेबल पर पड़ा अपना स्मार्टफोन उठाती है, स्क्रीन अनलॉक करती है, और तेजी से एक कॉल लगाती है। उसकी गोरी उंगलियाँ स्क्रीन पर नाचती हैं, साँसें तेज, लेकिन बाहर से शांत।

अजंता: (आवाज़ में बनावटी शराफत, लेकिन उत्सुकता) हेलो! कृतिका!! हाँ, कैसे हो आप!!

फोन पर कृतिका की आवाज़ आती है, मखमली, लेकिन उसमें वो शैतानी खनक, जैसे वो हमेशा कुछ छुपा रही हो।

कृतिका: (आवाज़ में हल्की हँसी, जैसे अजंता को तौल रही हो) हाँ, अजंता!! कुछ दिनों से दिखी नहीं हो। आओ ना, कल हवेली पर!

अजंता टेबल के पास खड़ी, एक हाथ से फोन पकड़े, दूसरा हाथ अपनी जांघ पर, जैसे ठरक को दबा रही हो (शायद गांडू के फ्लैशबैक वाले कहानी का असर)।

अजंता: (आवाज़ में उत्साह, लेकिन शक छुपा) आऊँगी, आऊँगी!! लेकिन एक बात पूछनी थी आपसे। असल में मिलना था। कल शाम को आती हूँ क्लब में। सॉरी! हवेली में!! (थोड़ा हस्ती है)

कृतिका: (आवाज़ में शैतानी, जैसे जाल बिछा रही हो) हाँ, बिलकुल!! एक नया यूरोपियन हर्बल तेल और क्रीम मँगवाया है।

अजंता की आँखें चमकती हैं, लेकिन शक और ठरक का मिश्रण।

अजंता: (आवाज़ में उत्सुकता, लेकिन सावधानी) अच्छा!! क्या करता है ये!!

कृतिका: (आवाज़ धीमी, जैसे मज़ा ले रही हो) आओ तो कल। दिखाती हूँ!!

अजंता होंठ काटती है, जैसे कुछ सोच रही हो। उसकी उंगलियाँ फोन पर कस जाती हैं, साँसें तेज।

अजंता: (आवाज़ में शराफत, लेकिन शक भरा) ठीक है!!

कॉल कटती है। अजंता फोन टेबल पर रखती है।
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#25
PART 5 - LODU, CHODU AUR MUTTHAL KI ENTRY (SAB 45-55 SAAL KE BEECH KE MIDDLE AGED MARD)

गाँडू अपने स्लम वाले इलाके में पहुँचता है। सुबह के 2 बजे हैं। स्लम की गलियाँ तंग, गंदी, कीचड़ से सनी, हवा में कचरे और पेशाब की बू। दीवारें टूटी-फूटी, टीन की चादरों से बने घर, जगह-जगह कचरे के ढेर, जिनमें कुत्ते भौंक रहे हैं। एक-दो लालटेन टिमटिमा रही हैं, बिजली के तार उलझे हुए, गलियों में पानी रिस रहा है। दूर से किसी की खाँसी की आवाज़।

गाँडू चुपके से अपनी खोली की तरफ बढ़ता है, उसके पैर कीचड़ में धंस रहे हैं, लुंगी पसीने से चिपकी, बनियान फटी हुई। वो अपनी खोली में घुसता है, दरवाजा थोड़ा खुला हुआ, टूटी कब्ज़ वाली लकड़ी का।

खोली बस एक छोटा सा कमरा, दीवारें काली पड़ चुकी, सीलन की बू। कोने में एक चूल्हा, कुछ बर्तन, और दीवार से सटे चार छोटे बिस्तर—पतले, गंदे गद्दे, चादरें मैली। बिस्तरों पर उसके जैसे ही तीन और सड़कछाप, घुप्प काले, 5 फुट से भी नाटे, पेट निकले, लुंगी पहने घिनौने मर्द लेटे हैं—लोड़ू, चोदू, मुट्ठल। सब सो रहे हैं, खर्राटों की आवाज़, एक का मुँह खुला, लार टपक रही है।

गाँडू चुपके से अपने बिस्तर पर पासर जाता है, लुंगी उतारकर फेंकता है, सिर्फ़ बनियान में, और सो जाता है, जैसे कुछ हुआ ही न हो।

सुबह, स्लम का पब्लिक टॉयलेटसुबह 7 बजे: स्लम का पब्लिक टॉयलेट, बड़ा, लेकिन गंदा। 15-20 क्यूबिकल्स की लाइन, दीवारें पान की पीक से लाल, फर्श गीला, पेशाब और गंदगी की बू इतनी तेज़ कि साँस रुक जाए। बाहर कीचड़, कचरे के ढेर, और टूटी सड़क। पास में एक नलका, जहाँ पानी टपक रहा है।

कुछ और स्लमवाले इधर-उधर, कोई बाल्टी लिए, कोई साबुन लिए। गाँडू, लोड़ू, चोदू, और मुट्ठल चार क्यूबिकल्स में हगने बैठे हैं, बाहर से दिख नहीं रहे, लेकिन उनकी कर्कश आवाज़ें गूंज रही हैं।

गाँडू: (क्यूबिकल से, देहाती लहजे में, ज़ोर से) ओए लोड़ू!

लोड़ू: (पास वाले क्यूबिकल से, आवाज़ में भकचोदी) कल पूरा दिन कहाँ था, बे?

गाँडू: (हँसते हुए, मज़ाक में) थाने में था बे!

मुट्ठल: (तीसरे क्यूबिकल से, चिल्लाते हुए) हे! थाने में? क्या किया बे तूने!

चोदू: (लोड़ू और मुट्ठल के बीच वाले क्यूबिकल से, ठहाका मारते हुए) ताका-झाँकी किया होगा कहीं फिर से!

गाँडू: (आवाज़ में मज़ा, लेकिन गुस्सा) हाँ, किया था! पर जिसका कर रहे थे, उसको फड़क नहीं पड़ना था! ये साले मादरचोद क़िस्म के लोग होते हैं ना—कबाब में हड्डी! बहनचोद, खुद को कुछ मिलता नहीं, दूसरों को भी लेने नहीं देते!!

लोड़ू: (हँसते हुए, क्यूबिकल की दीवार पर थपथपाते हुए) हाँ बे!! ये जो ज़्यादा संस्कारी बनते हैं, वही सबसे बड़े मादरचोद होते हैं!!

चारों क्यूबिकल्स से अब बाहर हैं, लुंगी पहने, ऊपर से नंगे, घुप्प काले, पेट निकले, नाटे बदन। वो बाथरूम में बैठकर साबुन घिस-घिसकर नहाने लगते हैं। बाल्टियाँ और मग आसपास बिखरे हुए। लोड़ू, चोदू, और मुट्ठल गाँडू को घेरकर बैठते हैं, साबुन उनके काले, खुरदरे बदन पर फिसल रहा है, पानी टपक रहा है। लेकिन बातचीत अजंता पर चल रही है, सब अश्लील, भकचोदी भरी।

लोड़ू: (साबुन घिसते हुए, आँखें चमकती) क्या बात कर रहा है, बे!! बताओ, कैसी थी वो?

गाँडू: (हँसते हुए, साबुन अपने पेट पर मलते हुए) माँ का! वो नई मेम थी बे! फिल्मों में होना चाहिए उसे! सिक्युरिटी में क्या कर रही है, पता नहीं! हद से ज़्यादा गोरी, लंबी, गुदाज़, स्वादिष्ट बदन। लाल होंठ, चेहरा हीरोइन जैसा... नहीं बे, किसी भी हीरोइन से ज़्यादा खूबसूरत!

चोदू: (पानी डालते हुए, मुँह बिचकाते हुए) साले, सच बोल रहा है? कितनी गोरी?

गाँडू: (आँखें फाड़कर, भकचोदी में) अरे, एकदम दूध! जांघें इतनी मांसल। और वो मम्मे—बड़े, गोल, फूले हुए, तने हुए, यूनिफॉर्म में जैसे फटने को तैयार!

मुट्ठल: (साबुन अपने काले चूतड़ पर घिसते हुए, हँसते हुए) और गांड? बोल, साले, गांड कैसी थी?

गाँडू: (हँसते हुए, पानी का मग अपने सिर पर उड़ेलते हुए) गांड? माँ कसम, इतनी उभरी, इतनी गोल! यूनिफॉर्म में कसी हुई थी बे, हर कदम पर उछल रही थी।

लोड़ू: (आँखें चमकती, साबुन अपनी जांघों पर मलते हुए) साले, तू तो उसकी चूत तक चला गया होगा, ना?

गाँडू: (हँसते हुए, भकचोदी में) अरे, चूत तो नहीं देखी, लेकिन वो सेंट, बे! वो महक! जैसे कोई अमीर घर की माल हो। माँ कसम, पास खड़ी थी तो लंड फड़फड़ा गया!

चोदू: (पानी डालते हुए, मज़ाक में) साले, तूने कुछ किया? छुआ - दबाया?

गाँडू: (आँख मारते हुए, लेकिन मुट्ठल की तरफ देखते हुए) अरे, वो मेम थी बे! हाथ लगाता तो हड्डियाँ तोड़ देती। लेकिन उसकी आँखें—माँ कसम, जैसे वो भी मज़ा ले रही थी। कुछ तो गड़बड़ है उस मेम में!

मुट्ठल: (हँसते हुए, साबुन अपने पेट पर घिसते हुए) साले, मुझे भी कोई भकचोदी करके थाने जाना पड़ेगा!

गाँडू: (हँसते हुए, पानी अपने चेहरे पर छपकाते हुए) वो माल है बे! हम जैसे सड़कछापों के लिए नहीं। लेकिन मज़ा लिया, बे, आँखों से ही चोद लिया!

चारों हँसते हैं, पानी की छपछप और साबुन की फिसलन के बीच। लेकिन गाँडू अपनी खबरी की बात छुपाता है, जैसे कोई गहरा राज़ दबा लिया हो।

[Image: download.jpg]
[Image: gettyimages-1229684130-612x612.jpg]
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#26
PART 6 - NAYE CHARACTER KI ENTRY - SANAYA - 21 YEARS - COLLEGE GIRL!!

दिल्ली का एक पॉश कॉलेज, जहाँ हरे-भरे लॉन, ग्लास की इमारतें, और महंगी कारों की पार्किंग। अमीर घरों के 19 साल से ऊपर के लड़के-लड़कियाँ यहाँ पढ़ते हैं—डिज़ाइनर बैग, ब्रांडेड जूते, और हवा में महंगे परफ्यूम की महक। इस कॉलेज में यूनिफार्म पहनी जाती है।

कॉलेज का स्टाफ रूम साफ-सुथरा, एयर-कंडीशंड, लकड़ी की टेबल, कुर्सियाँ, और दीवार पर किताबों की शेल्फ। दोपहर के 2 बजे।

सनाया, 19 साल की वो माल, स्टाफ रूम में घुसती है। छोटी स्कर्ट, जो उसकी हद से ज्यादा गोरी, मांसल जांघों को मुश्किल से ढक रही है, शर्ट टाइट, टाई ढीली, बेल्ट कमर पर कसी हुई, फ्लैट जूते और सॉक्स। 5 फुट 9 इंच की लंबी, गोरी चमड़ी इतनी चिकनी कि लाइट में चमक रही है। उसके मम्मे बड़े, गोल, तने हुए, शर्ट के बटनों पर खिंचे हुए, जैसे कभी झुकने का नाम न लें। जांघें मोटी, मुलायम, गुदाज़, स्कर्ट के नीचे से झांक रही हैं, जैसे चूसने लायक हों। गांड फूली हुई, गोल, इतनी उभरी कि स्कर्ट में कसी हुई लग रही है। सनप्रीत और अजंता जितनी ही हद से ज्यादा गर्म, लेकिन 19 साल की ताज़गी के साथ—होंठ गुलाबी, आँखें काली, चमकती हुई। वो स्टाफ रूम में पूर्णिमा को ढूंढती है, जो टेबल पर फाइलें सॉर्ट कर रही है।

पूर्णिमा, 30 साल की, वो ही टीचर जो पुराने टॉयलेट में तीन नीच मर्दों के साथ गंदा सेक्स कर रही थी, लेकिन बाहर से शरीफ, पर हद से ज़्यादा गोरी, लंबी, मांसल। गाँडू और उस दिन का कांड छुपा हुआ है, कोई हवा भी नहीं।

सनाया पूर्णिमा के पास जाती है, उसके कूल्हे मटकते हैं।

सनाया: (आवाज़ में शराफत, लेकिन हल्की सी मुस्कान, टेबल पर झुकते हुए) पूर्णिमा मैम?  

पूर्णिमा: (फाइल से नजर उठाते हुए, हल्के से मुस्कुराते हुए, आँखें सनाया के चेहरे पर) हाँ, सनाया? आओ, बैठो। असाइनमेंट का क्या सीन है?  

सनाया कुर्सी पर बैठती है, स्कर्ट और ऊपर सरक जाती है, हद से ज़्यादा गोरी, मांसल जांघें और नंगी हो जाती हैं। वो अपना नोटबुक टेबल पर रखती है, उंगलियाँ बालों में फेरती है।

सनाया: (नोटबुक खोलते हुए, आवाज़ में उत्सुकता) मैम, वो सोशियोलॉजी का असाइनमेंट... आपने कहा था कि स्लम्स और अमीर इलाकों के बीच क्लास डिफरेंस पर। मैंने ड्राफ्ट लिखा है, लेकिन इंट्रोडक्शन में कुछ स्टक हूँ। आप देख लीजिए?  

पूर्णिमा: (नोटबुक की तरफ झुकते हुए, हल्के से सिर हिलाते हुए) हाँ, दिखाओ। (पढ़ते हुए, पेन से नोट्स मारते हुए) अच्छा है, सनाया। लेकिन इंट्रो में डायरेक्ट फैक्ट्स डाल दो—जैसे, दिल्ली में 20% पॉपुलेशन स्लम्स में, लेकिन वो 80% लेबर फोर्स हैं। ये बैलेंस करेगा।  

सनाया: (आँखें चमकती, झुककर पढ़ते हुए) ओह, हाँ मैम, ये अच्छा रहेगा। लेकिन मैम, बॉडी में मैंने इंटरव्यूज ऐड किए हैं—कुछ स्लम के लोगों से। वो रियल लगेंगे?  

पूर्णिमा: (हल्के से हँसते हुए, सनाया की तरफ देखते हुए) बिलकुल रियल। लेकिन सेंसिटिव रखना। तुम्हारा व्यू पॉइंट बैलेंस्ड रखो।  

सनाया: (होंठ काटते हुए, थोड़ा सोचते हुए) हाँ, मैम। मैंने एक स्लम विजिट का मेंशन किया है—वो रॉ था। लेकिन क्या वो ओवर लगेगा?  

पूर्णिमा: (नोटबुक बंद करते हुए, मुस्कुराते हुए) नहीं, अच्छा है। रियल एक्सपीरियंस ऐड करता है। बस, कंक्लूजन में सॉल्यूशन सजेस्ट करो।

सनाया: (उठते हुए, नोटबुक उठाते हुए, हल्के से स्माइल) थैंक यू मैम। कल सबमिट कर दूँगी। आप बेस्ट टीचर हो!  

पूर्णिमा: (हँसते हुए, सनाया की तरफ) थैंक्स, सनाया। गुड लक।  

सनाया स्टाफ रूम से बाहर जाती है, उसके कूल्हे मटकते हुए, जांघें स्कर्ट में चमकती हुई।

***

कॉलेज की छुट्टी हो चुकी है, अभी दोपहर के 2:45 बज रहे है। सनाया लाइब्रेरी में असाइनमेंट पर काम करके बाहर निकल रही है, उसका बैग कंधे पर, स्कर्ट हल्की सी मटक रही है। उसका फोन वाइब्रेट करता है, स्क्रीन पर ड्राइवर का नाम। वो कॉरिडोर में रुककर कॉल लेती है, गोरी उंगलियाँ स्क्रीन पर।

सनाया: (आवाज़ में हल्की चिंता, लेकिन शांत) हेलो, अंकल? क्या हुआ?  

ड्राइवर: (आवाज़ में घबराहट, बैकग्राउंड में गैरेज की आवाज़ें) बिटिया, गाड़ी रास्ते में खराब हो गई। मैं गैरेज में ले गया हूँ। आपकी मम्मी ने कहा है कि किसी दोस्त की गाड़ी में लिफ्ट ले लो।  

सनाया: (हल्के से सिर खुजाते हुए, लाइब्रेरी के गेट पर रुककर) अरे, ओके अंकल। कितनी देर लगेगी ठीक करने में?  

ड्राइवर: (हिचकिचाते हुए) दो-तीन घंटे तो लगेंगे। आप टेंशन मत लो।  

सनाया: (हल्के से स्माइल, लेकिन अंदर चिंता) ठीक है, अंकल। मैं देख लूँगी।  कॉल कटती है। सनाया लाइब्रेरी के अंदर वापस जाती है, लाइब्रेरियन—एक घरेलू सी दिखने वाली औरत, 40 की, साड़ी में, चश्मा लगाए—को पुस्तकें रिटर्न करते हुए पूछती है।

सनाया: (काउंटर पर झुकते हुए, बैग साइड में) मैम, आप तो जा रही होंगी? कोई लिफ्ट मिल जाएगी?  

लाइब्रेरियन: (किताबें स्कैन करते हुए, मुस्कुराते हुए) अरे सनाया, आज लेट हो गई? मैं तो दूसरे रूट से जा रही हूँ, चार टीचर्स के साथ कार पूल का वादा है। तुम गेट के बाहर जाकर देख लो, शायद दोस्त मिल जाएँ। आज के दिन सारे कैब वालो की और ऑटो वालो की हड़ताल है|

सनाया: (हल्के से सिर हिलाते हुए) ओके मैम।

सनाया बैग उठाकर लाइब्रेरी से निकलती है - कॉलेज के गेट की तरफ जाती है। गेट के साइड में पार्किंग लॉट, लेकिन एक भी कार नहीं—सब दोस्त कब के निकल चुके। सनाया गेट से बाहर निकलती है, सड़क पर सूरज तेज़, दोपहर के 3 बज रहे हैं। वो बस स्टैंड तक चलती है, पैर हल्के से थकते हुए, स्कर्ट हवा में लहराती।

सिटी बस की फ्रीक्वेंसी कम, अगली बस 20 मिनट बाद। वो एक टूटे-फूटे, गंदे छोटे सिटी बस में चढ़ जाती है। बस पुरानी, सीटें फटी हुई, हवा में पसीने और धूल की बू। अंदर खचाखच भीड़, ज्यादातर नीच, सड़कछाप मज़दूर—घुप्प काले, 5 फुट से भी नाटे, कुछ बैठे, कुछ खड़े। हिलने तक की जगह नहीं, सबके बदन एक-दूसरे से सटे। सनाया जैसे बड़े घर की, हद से ज़्यादा गोरी, इतनी गरम लड़की को देखके नीच मर्दो का बुरी तरह से टनटनाने लगता है|

सनाया का स्टॉप बहुत दूर है। वो कंडक्टर को पैसे देते हुए टिकट लेती है, कंडक्टर—एक मोटा, पसीने से लथपथ मर्द—उसे देखकर आँखें फाड़ता है।

कंडक्टर: (टिकट देते हुए, आवाज़ में कर्कशता, लेकिन नजर सनाया की जांघों पर) 50 रुपये। पीछे कोने में खड़ी हो जाओ, तुम्हारा स्टॉप लास्ट में है। आगे भीड़ है।  

सनाया: (हल्के से मुस्कुराते हुए, टिकट लेते हुए) ओके।  

सनाया बस के पीछे कोने में धकेलती हुई जाती है, भीड़ में रगड़ खाते हुए, उसके मम्मे किसी के कंधे से सट जाते हैं, जांघें किसी बाज़ू से जो बैठा हुआ है। वो कोने में खड़ी हो जाती है, बैग सीने से लगाकर, साँसें तेज़।

[Image: 121212121.gif]
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#27
Ohhhhh Yeaaahhhh!!!! Maza aa gaya!!
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#28
Aisa lag raha hai - netflix par koi thriller dekh rahe hai!
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#29
(20-09-2025, 10:10 PM)mike_kite56 Wrote: Dunga. By Sunday Evening. I am writing a book too - A superhero story and a horror story.  Tongue Tongue Tongue  Amazon pe publish karna hai.

Tabhi toh.... itna movie movie jaisa feel kyu aa raha hai! Baaki stories mein sab incest ke ch*de ho gaye hai!! jab dekho jeeja saali, devar bhabhi, pak gaya tha. Yeh mila kuch naya. Kuch tagdaa..  yr): Likhte raho bhai!
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#30
(22-09-2025, 11:25 AM)wayy140 Wrote: Tabhi toh.... itna movie movie jaisa feel kyu aa raha hai! Baaki stories mein sab incest ke ch*de ho gaye hai!! jab dekho jeeja saali, devar bhabhi, pak gaya tha. Yeh mila kuch naya. Kuch tagdaa..  yr): Likhte raho bhai!

thanks
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#31
Pls give more hot update

Waiting
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#32
(26-09-2025, 03:42 AM)Marishka Wrote: Pls give more hot update

Waiting

Coming Soon. happy
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#33
write in Hinglish
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#34
(27-09-2025, 12:18 PM)behka Wrote: write in Hinglish

Thank you for your comment. But let me explain. Before internet, in the early 2000s, I accidentally read one pulp fiction sex story book written in pure devanagari script Hindi. The titles used to be short and crisp and erotic. And, then I read some more. That's why I am writing in that old fashioned pulp fiction style (it's nostalgic). Have you seen Mastram!! It's the hardcore version of that. Keep reading and keep supporting.  Sleepy
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#35
PART 6 - CONT'D

सनाया बस के कोने में खड़ी है, एक बार को कसके पकड़े हुए, जैसे वो ही उसकी जान है। उसके आस-पास सब घिनौने, नाटे, घुप्प काले मर्द खड़े हैं—लुंगी पहने, पसीने से लथपथ, उनके बदन से गटर की बू आ रही है। सबके सब बुरे तरीके से गर्म हो रहे हैं, कसमसा रहे हैं, बस देख रहे हैं। आँखों में गंदा नशा चढ़ रहा है, जैसे कोई सस्ती दारू पी ली हो। इतने बड़े घर की, हद से ज़्यादा गोरी, गुदाज़, लंबी स्वादिष्ट लड़की अपनी जांघें नंगी करके उनके इतने पास खड़ी है—उसकी स्कर्ट ऊपर सरकी हुई, गोरी, मांसल जांघें चमक रही हैं। सनाया का चेहरा सख्त, होंठ कसे हुए, लेकिन अंदर से उसकी साँसें तेज़, जैसे भीड़ की गर्मी उसके बदन को छू रही हो। वो फोन स्क्रीन पर नज़रें गड़ाए रखती है, बैग कंधे पर टंगा हुआ है।

सनाया के दाएँ और दो घुप्प काले, नाटे मज़दूर सीट पर बैठे हैं, लुंगी ऊपर सरकी हुई, उनके पेट निकले हुए, चेहरे घिनौने, दाँत पीले। सनाया उसी सीट पर अपनी गांड टिका के खड़ी है, उसकी फूली हुई, गोल गांड लुंगी वाले मर्द के कंधे से सट रही है, हल्की सी रगड़ खा रही है। उसकी लंबाई की वजह से उसकी हद से ज़्यादा गोरी, गुदाज़ नंगी जांघें पहली सीट पर बैठे मज़दूर के एकदम पास हैं—उसके चेहरे से बस दो इंच दूर। वो मज़दूर—एक 45 साल का घिनौना, कलमुहा, पसीने से तर, अपनी आँखें फाड़कर सनाया की नंगी जांघों को कसके घूरता है। उसकी साँसें फूली हुई, मुँह से हल्की सी सिसकारी। फिर वो आस-पास खड़े बाकी मज़दूरों को देखके इशारा करता है—आँखें फाड़कर—"बाप रे!" मन तो सबका कर रहा है, लंड पैंट में फड़फड़ा रहे हैं, लेकिन हिम्मत नहीं। बस घूर रहे हैं, कसमसा रहे हैं, एक-दूसरे को कोहनी मार रहे हैं, लेकिन कुछ कर भी नहीं पाते—डर लगता है।

सनाया सख्त चेहरा बनाए रखती है, फोन पर स्क्रॉल करती रहती है, लेकिन उसके कानों में उनकी फुसफुसाहट सुनाई दे रही हैं, जांघों पर उनकी नज़रों का एहसास हो रहा है। दूसरे ही स्टॉप पर लगभग सारे मज़दूर उतर जाते हैं—शायद सब एक ही ग्रुप में कहीं दीहाड़ी पर जा रहे हैं। बस खाली हो जाती है, सीटें खाली, हवा में अब सिर्फ़ पसीने की बू।

बस पाँच-छह घुप्प काले, लुंगी पहने, घिनौने, बदसूरत मज़दूर रह जाते हैं—कुछ खड़े, कुछ बैठे, लेकिन सबकी नज़रें अभी भी सनाया पर। इनमें से चार तो लोड़ू, चोदू, गाँडू और मुट्ठल ही हैं, जो सनाया के बाएँ और थोड़ा सा दूर खड़े हैं, एक-दूसरे को कोहनी मारते, लेकिन आँखें सनाया की नंगी जांघों पर अटकी।

देखो, ठरक सारे मर्दों में होती है, लेकिन कुछ मर्द ऐसे होते हैं जिनसे ठरक बर्दाश्त नहीं होती, और वो खुलके अपनी घिनौनी इच्छाएँ दिखाने लगते हैं। इन मर्दों को एक बार एहसास हो जाए कि सामने वाली बड़े घर की, अमीर, हद से ज़्यादा गोरी, गदराई हुई, स्वादिष्ट औरत या लड़की पटने को तैयार है, तो ये खुलके घिनौनी हरकतें और रंडाने इशारे करके उस औरत या लड़की को पटा लेते हैं।

बस में देश की सबसे गरम, हद से ज़्यादा गोरी, भरे हुए स्वादिष्ट बदन वाली सनाया खड़ी है, अपने हद से ज़्यादा गोरे जांघों को मादरजात नंगा करके। सनाया जहाँ खड़ी है, वहीँ खड़ी रहती है, और नाटे घिनौने मर्द उसके आस-पास बिखरे हुए हैं। सब अंदर ही अंदर कसमसा रहे हैं। उनके मन में उथल-पुथल मची हुई है। लोड़ू, चोदू, गाँडू और मुट्ठल एक ग्रुप में सनाया के बाएँ और थोड़ा सा दूर खड़े हैं—उनकी अश्लील बातें शुरू हो जाती है।

गाँडू: (कानाफूसी में, ठरक से मुँह बिचकाते हुए) कहीं ये भी वैसी तो नहीं—नंगा मज़ा देने वाली बड़े घर की लड़की? अबे, हद से ज़्यादा गोरी और भरी हुई है, गांड, मम्मे, सब भयंकर तरीके से फूले हुए हैं—ए भाई, ए!! बहुत मन कर रहा है, नंगा चूसना है इसे!!  

लोड़ू: (हँसते हुए, लुंगी के ऊपर से लंड खुजाते हुए) हाँ यार! पर लग नहीं रहा! वैसी है तो माँ कसम, क्या गंदा मज़ा मिलेगा!  

चोदू: (आँखें फाड़कर, सनाया की जांघों को ताड़ते हुए) हाँ बे! इतनी गोरी है! पानी निकल रहा है मेरा!  

मुट्ठल: (मुँह से लार टपकाते) साले, वो गांड देख! एकदम फूली हुई है, ले चुकी है अंदर ये!

सनाया के दाएँ और थोड़ा दूर दो और मज़दूर खड़े हैं, उनके मुँह सटे हुए, काना-फूसी चल रही है। उनकी आँखें सनाया की जांघों पर, जैसे भूखे कुत्ते।

मज़दूर 1: (कान में फुसफुसाते, आँखें सनाया की जांघों पर) आााीशशशशश! बहुत मन कर रहा है!  

मज़दूर 2: (हल्के से हँसते, लुंगी के नीचे लंड दबाते) साले, ये तो बहुत अमीर घर की लग रही है। कसके पटाने का मन कर रहा है! चल करते है! जो होगा देखा जायेगा!
 
इधर लोड़ू, चोदू, गाँडू, और मुट्ठल की बातें चल रही हैं।

मुट्ठल: (सीट की तरफ इशारा करते, आँखें सनाया पर) सीट खाली हो चुकी है। ये बैठ क्यों नहीं रही?  

गाँडू: (हँसते हुए) अरे, बड़े घर की है बे! गंदी सीट पर क्यों बैठेगी?  

तभी सनाया उस सीट पर बैठ जाती है, एक टाँग के ऊपर दूसरी, उसकी गोरी, गुदाज़ जांघें और नंगी हो गयी हैं, गांड का उभार स्कर्ट में कस गया।

लोड़ू: (फुसफुसाते) लो! बैठ गई!  

गाँडू: (हैरानी से) साले, वो देख! वो दोनों झुक के क्या देख रहे हैं??  

सनाया के दाएँ वाले दो मज़दूर बारी-बारी नीचे झुक रहे हैं, उनकी आँखें सनाया की पूरी तरह नंगी जांघों पर। उनके हाथ लुंगी के नीचे, लंड मसल रहे हैं, साँसें तेज़, मुँह ठरक से कसा हुआ।

लोड़ू: (हल्के से गुस्से में, लेकिन ठरक भरा) भेनचोद! इनमें तो कोई डर ही नहीं है!  

चोदू: (आँखें फाड़कर, फुसफुसाते) साले, ये लड़की कुछ बोल क्यों नहीं रही इनको?  

लोड़ू: (गन्दी उत्साह में) माँ का! कहीं ये भी पटने वाली तो नहीं बे?  

मुट्ठल: (लुंगी ठीक करते, आँखें सनाया पर) हाँ, बे! वैसी माल है!  

गाँडू: (हल्के से डरते, फुसफुसाते) चुप साले! कहीं हम गलत हुए तो? मुझे फिर से थाने नहीं जाना!  

चोदू: (फुसफुसाते) हाँ, बे! रुक जा! इन दोनों हरामियों को पटा लेने दे। देखते हैं, क्या होता है।  

मुट्ठल: (हल्के से सिर हिलाते) हाँ, बे! थोड़ा रुक जा। अगर ये माल वैसी निकली, तो मज़ा ले लेंगे!  

सनाया चुप, फोन पर रील्स स्क्रॉल करती रहती है, लेकिन उसकी आँखें हल्की सी उठती हैं, जैसे उन दो मज़दूरों की हरकतों को नोटिस कर रही हो। वो होंठ काटती है, साँसें तेज़, लेकिन चेहरा सख्त।

[Image: hghghghg.gif]
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#36
Choddho kaun likhega. Bhaad mein jaaye yeh story. Admin delete this thread.
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#37
Nice update

But don't loose your patient

Just write.
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