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Incest राहुल का कामुक सफर - गरीबी की छाया से शहर की चमक तक
#21
आपकी लेखन शैली और भाषा पर अधिकार अनुपम है. अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा.
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#22
(07-09-2025, 06:46 PM)Yash121 Wrote: Zabardast update.....lekin kuch lines baar baar repeat mat karo

Noted brother
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#23
(07-09-2025, 10:14 PM)Glenlivet Wrote: आपकी लेखन शैली और भाषा पर अधिकार अनुपम है. अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा.

Dhanyawaad plzz rate my story
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#24
Waiting for next
[+] 2 users Like Yash121's post
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#25
(08-09-2025, 02:45 PM)Yash121 Wrote: Waiting for next

Working on it brother give you update asap
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#26
Zabardast update bhai bahot badhiya story hai waiting for next update
[+] 1 user Likes Javed mohammad's post
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#27
(08-09-2025, 04:13 PM)Javed mohammad Wrote: Zabardast update bhai bahot badhiya story hai waiting for next update

Working on it bro raat tak aa jaega next update ban gaya hai bas kuch last moment changes kr rha hu
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#28
[img=539x1910][Image: RDT-20250908-1537285512190152677869213.webp][/img]
भाग 13: काव्या से पहली गहरी बातचीत और दोस्ती की शुरुआत (मानसिक संघर्ष की गहराई और नई दोस्ती की नींव)

रामपुर गाँव में वो अगली सुबह फिर से एक नई चुनौती लेकर आई थी, जैसे जीवन राहुल को हर दिन एक नया सबक सिखाने पर तुला हो। सूरज की पहली किरणें धुंध को चीरकर गाँव की छतों पर पड़ रही थीं, लेकिन हवा में अभी भी मेले की थकान और पटाखों की बारूद की हल्की महक बसी हुई थी। दूर से नदी की कलकल सुनाई दे रही थी, और खेतों में किसान अपने काम में लगे थे, लेकिन राहुल के लिए ये सब अब एक रूटीन बन चुका था – एक रूटीन जो उसे मजबूत बना रहा था, लेकिन साथ ही थका भी रहा था। राहुल का घर आज थोड़ा और सादा लग रहा था – आँगन में अब रंगोली के निशान मिट चुके थे, दीवारों पर पुरानी दरारें थीं जो समय के साथ और चौड़ी हो रही थीं, और रसोई से माँ सुमन के हाथों की बनी साधारण चाय की महक आ रही थी। राहुल बिस्तर पर लेटा रहा, लेकिन नींद पूरी नहीं हुई थी – कल शाम प्रीति भाभी के साथ के पलों की यादें उसके दिमाग में घूम रही थीं, और ठाकुर की धमकी जो अब उसके कानों में गूँज रही थी। लेकिन राहुल अब इन यादों से लड़ना सीख रहा था; वो उठा, खिड़की से बाहर देखा – गाँव की पगडंडी पर कुछ औरतें पानी भरने जा रही थीं, उनके घड़ों की आवाज़ दूर से सुनाई दे रही थी, और आसमान में उड़ते पक्षी जैसे स्वतंत्रता का प्रतीक लग रहे थे। "आज हवेली में क्या होगा? काव्या दी से मिलना हो सकता है, ठाकुर का बदला... लेकिन मैं तैयार हूँ," राहुल सोचता, और उसके मन में एक नई दृढ़ता थी, जैसे कोई पेड़ जो तूफान में भी खड़ा रहता हो।
राहुल ने अपनी रूटीन शुरू की – दौड़ लगाने से पहले किताब "सपनों की उड़ान" के कुछ पन्ने पढ़े, जहां हीरो अब अपने दुश्मनों से लड़ता है, लेकिन अकेले नहीं, अपनी आंतरिक ताकत से, परिवार की यादों से, और छोटी-छोटी जीतों से। किताब के पन्ने अब घिस चुके थे, किनारों पर उँगलियों के निशान थे, और कुछ जगहों पर राहुल ने पेंसिल से नोट्स लिखे थे – "संघर्ष से मजबूती आती है," "सपने कभी मत छोड़ो," "दोस्ती ताकत देती है, लेकिन सावधान रहो।" राहुल ने डायरी में लिखा: "कल प्रीति भाभी के साथ हुआ, मजा आया लेकिन guilt भी। अब कंट्रोल रखूँगा। ठाकुर की धमकी का सामना करूँगा। सपने मत भूल – शहर, सफलता। माँ की खुशी।" दौड़ लगाते हुए वो महसूस कर रहा था कि physically वो और मजबूत हो रहा है – उसके पैर अब तेज़ दौड़ रहे थे, साँसें बिना रुके चल रही थीं, और पसीना बहते हुए भी वो थकान महसूस नहीं कर रहा था। दौड़ते हुए वो गाँव की हर छोटी-बड़ी चीज़ को देख रहा था – वो पुराना पेड़ जहाँ बचपन में मीना से मिला था, वो नदी किनारा जहां पहली बार किसी लड़की को छुआ था, और वो हवेली की ऊँची दीवारें जो अब उसके लिए एक जेल की तरह लग रही थीं, लेकिन वो दीवारें जो उसे चुनौती दे रही थीं। "हवेली जाना अब रोज़ का काम है, लेकिन आज काव्या दी से मिलना... क्या वो सिर्फ दोस्ती चाहती हैं या कुछ और?" राहुल सोचता, और उसके मन में एक हल्की उलझन थी – काव्या की बोल्ड मुस्कान, उसकी शहर की कहानियाँ, और उसके पिता ठाकुर की क्रूरता। दौड़ पूरी कर वो घर लौटा, पसीने से तर, लेकिन मन तरोताज़ा, जैसे हर दौड़ उसे एक कदम शहर के करीब ले जा रही हो।
नहाकर राहुल ने माँ से बात की – सुमन रसोई में रोटियाँ बेल रही थी, उसके हाथों में आटे की लोई थी, और चेहरे पर एक हल्की मुस्कान, लेकिन आँखों में चिंता जो छिपाए नहीं छिप रही थी। "बेटा, चाय पी ले। आज हवेली जाना है?" सुमन ने पूछा, उसकी आवाज़ में ममता लेकिन एक हल्की डर की परत। राहुल ने चाय ली, गरम चाय की सिप लेते हुए कहा, "हाँ माँ, जाना पड़ेगा। लेकिन तुम चिंता मत करो, मैं ठाकुर से बात कर लूँगा। पैसे मिल रहे हैं, कॉलेज की फीस भर दूँगा, और घर का खर्च भी।" सुमन की आँखें नम हो गईं, "बेटा, तू इतनी जिम्मेदारी ले रहा है। लेकिन वो ठाकुर... कल फोन किया था। धमकी दी कि अगर मैं नहीं गई तो तेरे साथ बुरा करेगा।" राहुल का गुस्सा भड़का, लेकिन वो शांत रहा, माँ का हाथ पकड़ा – उसके हाथ ठंडे थे, जैसे डर से जमा हुए – "माँ, मैं संभाल लूँगा। तुम मत जाना। मैं अब बड़ा हो गया हूँ, डर नहीं रहा। तुम्हारे लिए, अपने सपनों के लिए लड़ूँगा।" emotionally राहुल का विकास स्पष्ट हो रहा था – माँ की चिंता अब उसे बोझ नहीं, बल्कि ताकत दे रही थी; guilt से निकलकर वो responsibility को अपनाने लगा था, और किताब से इंस्पिरेशन लेकर छोटे-छोटे लक्ष्य सेट कर रहा था। सुमन ने राहुल के सिर पर हाथ फेरा, उसके बाल अभी भी गीले थे, "भगवान तुझे खुश रखे बेटा। लेकिन सावधान रहना, हवेली में औरतें भी हैं... प्रीति, काव्या, मालती। वो सब ठाकुर की तरह लालची हैं, और तुझे फँसा सकती हैं।" राहुल ने हाँ में सिर हिलाया, लेकिन अंदर से सोचा, "मैं कंट्रोल में रहूँगा। सेक्स से दूर, फोकस काम पर। लेकिन काव्या दी... वो अलग लगती हैं, जैसे कोई दोस्त जो समझती हो।"
नाश्ता खत्म कर राहुल ने अपनी किताब खोली – "सपनों की उड़ान" के कुछ पन्ने पढ़े, जहां हीरो गरीबी से लड़ते हुए छोटी जीत हासिल करता है, दोस्तों और परिवार से ताकत लेता है, और चुनौतियों से सीखता है। किताब के पन्ने अब घिस चुके थे, किनारों पर उँगलियों के निशान थे, और कुछ जगहों पर राहुल ने पेंसिल से नोट्स लिखे थे – "संघर्ष से मजबूती आती है," "सपने कभी मत छोड़ो," "दोस्ती ताकत देती है, लेकिन सावधान रहो।" राहुल ने डायरी में लिखा: "आज हवेली में ठाकुरैन मालती से मिलना हो सकता है। mentally तैयार रहूँगा, कोई लालच नहीं। ठाकुर की धमकी का सामना करूँगा। सपने याद रख – शहर, कॉलेज, अमीर बनना। माँ की खुशी। प्रीति भाभी की मदद की याद आ रही है, लेकिन अब कंट्रोल।" mentally वो अब प्लान बना रहा था – अगर ठाकुर दबाव डाले तो वैकल्पिक काम ढूँढना, गाँव के बाज़ार में कोई छोटी जॉब, या कॉलेज के बाद ट्यूशन देना। "एक दिन अपना बिज़नेस करूँगा, ठाकुर जैसे लोगों से ऊपर उठूँगा," वो सोचता, और दिल में एक नई आग जलती, जैसे कोई दीपक जो अंधेरे में भी चमकता रहता है। cousins रीता और सीमा कल शहर लौट गई थीं, लेकिन उनकी विदाई की यादें अभी भी उसके मन में थीं – रीता की bold हँसी, सीमा की शर्मीली मुस्कान, और वो गले लगाने का पल जो अपनापन दे गया था। "परिवार ही ताकत है, लेकिन अब खुद पर भरोसा करना है," राहुल सोचता, और तैयार होकर हवेली की ओर निकल पड़ा।
रास्ता वही था – गाँव की पगडंडी से गुजरते हुए वो खेतों को देखता, जहाँ किसान पसीना बहा रहे थे, बैल हल खींच रहे थे, और हवा में मिट्टी की महक मिली हुई थी। रास्ते में वो सरला काकी के घर के पास से गुजरा, काकी बाहर झाड़ू लगा रही थी, उसके शरीर की चाल अभी भी कामुक लग रही थी – साड़ी कमर पर टिकी हुई, स्तन ब्लाउज से उभरे हुए – लेकिन राहुल ने नज़रें फेर ली, "अब नहीं, काकी। पुरानी बातें।" हवेली पहुँचकर राहुल अंदर घुसा – दरवाज़ा बड़ा था, लोहे का, और अंदर बगीचा जो फूलों से सजा हुआ था, लेकिन आज फूल थोड़े मुरझाए लग रहे थे, जैसे हवेली का माहौल। नौकर ने उसे काम सौंपा – आज फूलों की क्यारियाँ साफ करना, पानी देना, और घास ट्रिम करना, लेकिन साथ ही ठाकुर के कमरे के पास की सफाई भी। राहुल काम में लग गया – धूप तेज़ थी, पसीना उसके माथे से बहकर आँखों में चुभ रहा था, शर्ट गीली हो गई थी, लेकिन वो नहीं रुका। physically ये काम कठिन था – हाथों में फावड़ा पकड़कर घास काटना, पानी की भारी बाल्टियाँ उठाकर पौधों तक ले जाना, और एक-एक पौधे को ध्यान से पानी देना, जैसे कोई माली जो अपने बगीचे को प्यार से संवारता हो। उसके हाथों में छाले पड़ रहे थे, पीठ दर्द कर रही थी, लेकिन दर्द अब उसे मजा दे रहा था, जैसे कोई मेडल जो संघर्ष की निशानी है। "ये पैसे देगा, माँ की मदद करेगा, और मुझे मजबूत बनाएगा," वो सोचता, और काम करता रहा। बगीचे में काम करते हुए वो ठाकुरैन मालती से मिला – मालती बालकनी से नीचे उतरी, उसके हाथ में चाय की ट्रे थी। मालती आज लाल साड़ी में थी, जो उसके शरीर को और निखार रही थी – उसके स्तन उभरे हुए, कमर पतली, और चाल में एक लय। "राहुल, थक गया होगा। चाय पी ले," मालती ने मुस्कुराकर कहा, उसकी आवाज़ नरम लेकिन आकर्षक। राहुल ने ट्रे ली, ठंडा पानी गले से उतरता हुआ उसे तरोताज़ा कर गया, "धन्यवाद भाभी। लेकिन काम..." मालती ने काटा, "काम बाद में। बैठ, बात कर।" दोनों बगीचे के बेंच पर बैठे, चाय की सिप लेते हुए। मालती ने बात शुरू की, "राहुल, तू गाँव का है लेकिन शहर जैसा लगता है। पढ़ाई करता है?" राहुल ने हाँ कहा, "जी भाभी, कॉलेज पास करके शहर जाऊँगा। इंजीनियर बनूँगा।" मालती की आँखें चमकीं, "अच्छा है। मैं भी शहर से हूँ, लेकिन शादी के बाद यहाँ फँस गई। ठाकुर से शादी पैसे के लिए की, लेकिन अब घुटन है।" उसके शब्दों में दर्द था, आँखें नम। राहुल ने सहानुभूति दिखाई, "भाभी, जीवन कठिन है। लेकिन मजबूत बनिए। मैं भी गरीबी से लड़ रहा हूँ।" मालती करीब आई, उसका हाथ राहुल के कंधे पर, "तू मजबूत है राहुल। मुझे भी ताकत दे। अकेलापन मार डालता है।" राहुल का मन भटका – मालती की खुशबू, उसके स्तनों की गर्माहट – लेकिन वो उठने की कोशिश की, "भाभी, काम..." लेकिन मालती ने पकड़ लिया, "रुक न राहुल। मुझे बात करने दो। तू समझता है।" दोनों बातें करने लगे – मालती ने अपना अतीत बताया, शहर से शादी कर हवेली आई, लेकिन ठाकुर के परिवार में घुटन, ठाकुर की उम्र की वजह से सेक्स की कमी, और मन में लालच जो उसे जवान लड़कों की ओर खींचता। "राहुल, तू जवान है, समझता होगा। शरीर की भूख... लेकिन कोई नहीं है जो बुझाए।" राहुल ने कहा, "भाभी, मैं समझता हूँ, लेकिन कंट्रोल जरूरी है। मैं भी गुजर रहा हूँ।" लेकिन मालती की आँखों में आँसू थे, वो करीब आई, उसके होंठ राहुल के कंधे पर लगे, "राहुल, मुझे छू... बस एक बार।" राहुल का कंट्रोल टूटा, वो मालती को चूम लिया – होंठ नरम, गर्म, और kiss गहरा हो गया। मालती कराही, "आह... राहुल... कितने दिन बाद..." राहुल ने उसके स्तनों को दबाया, मालती की साड़ी सरक गई, "Ooooooooohhhhhhh... जोर से दबा... मेरे बूब्स... Aaaaahhhhh... कितना अच्छा..." राहुल ने ब्लाउज उतारा, ब्रा से स्तन बाहर, बड़े और नरम। वो चूसा, मालती wild हो गई, "Mmmmaaaaaaaaaaa... चूस जोर से... निप्पल काट... उफ्फ... कितना मजा... तू जानवर है रे..." राहुल नीचे गया, साड़ी ऊपर की, पैंटी गीली थी। वो चाटा, मालती चिल्लाई, "Aaaaahhhhh... जीभ अंदर... ओoooooooohhhhhhh... मेरी चूत... फाड़ दे... कितना गर्म है तू..." मालती अनुभवी थी, जड़ी हुई, wild कराहें – "चाट जोर से... उफ्फ... मैं झड़ रही... Mmmmaaaaaaaaaaa... हाँ... और..." राहुल ने लंड निकाला, मालती ने चूसा, "वाह... कितना बड़ा... Aaaaahhhhh... मुँह में डाल... ओoooooooohhhhhhh... तेरे लंड का स्वाद... रोज़ चूसूँगी..." राहुल ने मालती को घोड़ी बनाया, चूत में डाला। मालती चिल्लाई लेकिन मजा लेते हुए, "Uffff... दर्द... लेकिन मजा... जोर से... मेरी चूत फट गई... Aaaaahhhhh... चोद जोर से... Ooooooooohhhhhhh... कितना बड़ा है रे तेरा... Mmmmaaaaaaaaaaa... फाड़ दे... रोज़ तुझसे चुदवाऊँगी... हाँ... और तेज़..." धक्के तेज़, मालती कमर हिला रही, "गांड भी मार... उफ्फ... पीछे से... Aaaaahhhhh... तेरे लंड से गांड फट जाएगी... लेकिन मजा... Ooooooooohhhhhhh... जोर से... Mmmmaaaaaaaaaaa... मैं झड़ रही..." दोनों झड़े, मालती पड़ी रही, "राहुल, तू कमाल है। अब तेरी माँ को छोड़ दूँगी, लेकिन तू रोज़ आना।"
शाम हुई, राहुल घर लौटा – थका लेकिन संतुष्ट। लेकिन घर पर माँ सुमन की हालत देखकर स्तब्ध हो गया। सुमन रो रही थी, उसके कपड़े उलझे हुए, चेहरे पर थकान। "माँ, क्या हुआ?" राहुल ने पूछा। सुमन रो पड़ी, "बेटा, ठाकुर के पास गई थी। तेरे लिए। वो धमकी दे रहा था, काम छीन लेगा, घर पर हमला करेगा। मैंने मना किया, लेकिन मजबूर हो गई।" राहुल का दिल टूट गया, "माँ, क्यों? मैंने मना किया था।" सुमन ने बताया – ठाकुर ने कमरे में बुलाया, साड़ी उतारी, स्तन दबाए, "आह... सुमन... कितने बड़े..." सुमन कराही, "साहब... धीरे..." लेकिन ठाकुर तेज़, "Ooooooooohhhhhhh... तेरी चूत... Aaaaahhhhh... जोर से... मेरी रानी... Mmmmaaaaaaaaaaa... कितना मजा... रोज़ चुदवाती है तू..." सुमन की चूत में डाला, धक्के तेज़, सुमन की कराहें "Aaaaahhhhh... साहब... फाड़ दे... ओoooooooohhhhhhh... मेरी चूत... Mmmmaaaaaaaaaaa... कितना बड़ा... रोज़ चुदवाऊँगी..." लेकिन अंदर से रो रही थी, "बेटे के लिए..." चुदाई खत्म, ठाकुर ने पैसे दिए, "जा, लेकिन फिर आना।" सुमन घर लौटी, राहुल को देखकर रो पड़ी। राहुल रोया, "माँ, अब नहीं। मैं शहर जाकर सब बदल दूँगा।" लेकिन सुमन ने कहा, "बेटा, अब आदत हो गई है। बिना चुदे रह नहीं पाती। लेकिन तेरे लिए जी रही हूँ।" राहुल टूट गया, लेकिन मजबूत बना। रात को डायरी लिखी – लंबी, माँ की मजबूरी, मालती की चुदाई, और शहर के सपने। "माँ को शहर बुलाऊँगा, लेकिन वो क्यों टालती हैं?" वो सोचता, और आँखों में आँसू आ जाते। अगले दिनों में काम जारी, हवेली में सावधानी, मालती से मिलना लेकिन कंट्रोल, काव्या की दोस्ती गहराई, और ठाकुर का दबाव। राहुल ने शहर के लिए तैयारी तेज़ की – कॉलेज में अतिरिक्त पढ़ाई, किताबें उधार ली, और माँ से वादा, "जल्दी ले जाऊँगा।" गाँव की रातें लंबी, लेकिन सपने बड़े। कहानी आगे बढ़ी, राहुल का विकास हर पल में। ठाकुर ने फिर धमकी दी, लेकिन राहुल ने सामना किया, "साहब, मैं नहीं डरता।" मालती ने मदद की, लेकिन राहुल ने सीमा रखी। शहर का सफर करीब आ रहा था, लेकिन संघर्ष अभी बाकी।
राहुल ने एक दिन हवेली में काव्या से फिर बात की – काव्या ने शहर के कॉलेज के बारे में बताया, "राहुल, तू आ, मैं मदद करूँगी।" राहुल ने शुक्रिया कहा, लेकिन मन में सोचा, "दोस्ती है, लेकिन हवेली से दूर रहना।" माँ सुमन अब राहुल की ताकत देखकर खुश, लेकिन अंदर से टूटी। राहुल ने माँ से वादा किया, "माँ, मैं अमीर बनूँगा, ठाकुर जैसे लोगों से बदला लूँगा।" कहानी आगे बढ़ी, राहुल ने कॉलेज में अच्छे नंबर लाए, हवेली का काम जारी लेकिन सावधानी से। ठाकुर ने प्लान बनाया, लेकिन राहुल चालाकी से बचा। शहर की तैयारी में किताबें, दोस्तों से मदद, और माँ की प्रार्थना। भाग लंबा, डिटेल से भरा, राहुल का सफर जारी।
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#29
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शहर का सफर और नई शुरुआत (नई दुनिया की चुनौतियाँ, भावनात्मक संघर्ष, और कामुक आकर्षण की शुरुआत)

रामपुर गाँव में वो आखिरी सुबह थी, जो राहुल के जीवन में एक अध्याय का अंत और दूसरे की शुरुआत का प्रतीक बनने वाली थी। सूरज की पहली किरणें धीरे-धीरे गाँव की छतों पर पड़ रही थीं, लेकिन राहुल के लिए ये रोशनी जैसे एक नई दिशा दिखा रही थी। हवा में मिट्टी की महक मिली हुई थी, और दूर से ट्रेन की सीटी की आवाज़ सुनाई दे रही थी, जैसे कोई बुलावा जो राहुल को शहर की ओर खींच रहा हो। गाँव की पगडंडी पर लोग अपने रोज़मर्रा के काम में लगे थे – किसान खेतों में, औरतें पानी भरने, बच्चे खेलते हुए – लेकिन राहुल का मन अब इन सब से ऊपर उठ चुका था। उसका छोटा सा कच्चा घर आज विदाई के माहौल में लिपटा हुआ लग रहा था – आँगन में माँ सुमन ने कुछ सामान बाँधा था, दीवारों पर पुरानी यादें जैसे चिपकी हुई थीं, और रसोई में चाय की उबलती आवाज़ अब अलविदा की तरह लग रही थी। राहुल बिस्तर पर बैठा रहा, उसकी आँखें अपनी डायरी पर टिकी हुई थीं – कल रात की एंट्री अभी भी अधूरी थी, जहां वो लिख रहा था कि कैसे ठाकुरैन मालती के साथ का पल उसे guilt दे रहा था, माँ की मजबूरी उसे तोड़ रही थी, और शहर का सपना उसे जीने की वजह दे रहा था। "शहर जाकर सब बदल दूँगा। माँ को वहाँ ले जाऊँगा, ठाकुर जैसे लोगों से दूर," राहुल सोचता, और उसके मन में एक उथल-पुथल थी – डर जो अब कम हो रहा था, गुस्सा जो अब ताकत बन रहा था, और एक नई उम्मीद जो उसके दिल में बस रही थी। वो उठा, खिड़की से बाहर देखा – गाँव की पगडंडी अब विदाई की तरह लग रही थी, पड़ोस में सरला काकी का घर अभी भी शांत था, लेकिन उसकी यादें अब पुरानी लग रही थीं, जैसे कोई किताब का पन्ना जो पलट चुका हो। "आज ट्रेन पकड़ूँगा, दिल्ली जाऊँगा। नई जिंदगी शुरू करूँगा," राहुल सोचता, और उसके मन में एक नई योजना बनने लगी – शहर में कमरा ढूँढना, कॉलेज में दाखिला, पार्ट-टाइम जॉब, और माँ को जल्दी बुलाना।
राहुल ने अपनी रूटीन पूरी की – दौड़ लगाई, जहां उसके पैर अब और तेज़ दौड़ रहे थे, शरीर की हर मसल काम कर रही थी, और मन शांत हो रहा था। दौड़ते हुए वो गाँव की हर छोटी-बड़ी चीज़ को देख रहा था – वो पुराना पेड़ जहाँ मीना से मिला था, वो नदी किनारा जहां पहली बार किसी लड़की को छुआ था, और वो हवेली की ऊँची दीवारें जो अब उसके लिए एक जेल की तरह लग रही थीं, लेकिन वो दीवारें जो उसे चुनौती दे रही थीं। "हवेली जाना अब रोज़ का काम है, लेकिन आज काव्या दी से मिलना... क्या वो सिर्फ दोस्ती चाहती हैं या कुछ और?" राहुल सोचता, और उसके मन में एक हल्की उलझन थी – काव्या की बोल्ड मुस्कान, उसकी शहर की कहानियाँ, और उसके पिता ठाकुर की क्रूरता। दौड़ पूरी कर वो घर लौटा, पसीने से तर, लेकिन मन तरोताज़ा, जैसे हर दौड़ उसे एक कदम शहर के करीब ले जा रही हो। नहाकर राहुल ने माँ से बात की – सुमन रसोई में रोटियाँ बेल रही थी, उसके हाथों में आटे की लोई थी, और चेहरे पर एक हल्की मुस्कान, लेकिन आँखों में चिंता जो छिपाए नहीं छिप रही थी। "बेटा, तैयार है? ट्रेन का समय हो रहा है," सुमन ने कहा, उसकी आवाज़ में ममता लेकिन आँसू जो रुकने को तैयार नहीं थे। राहुल ने चाय पी, माँ के पैर छुए, "माँ, रो मत। जल्दी बुला लूँगा। ठाकुर से दूर रहना, कोई धमकी आए तो告诉我।" सुमन ने राहुल को गले लगाया, उसके आँसू राहुल के कंधे पर गिरे, "बेटा, शहर बड़ा है। लोग चालाक, लड़कियाँ... सावधान रहना। पढ़ाई कर, सपने पूरे कर।" राहुल ने माँ की आँखों में देखा, वो आँखें जो गरीबी की थकान से भरी थीं, लेकिन प्यार से चमक रही थीं। "माँ, वादा करता हूँ। तुम्हारे लिए जीऊँगा," राहुल ने कहा, और बैग कंधे पर लटकाया – बैग में कुछ कपड़े, किताबें, डायरी, और माँ की बनी मिठाई। सुमन ने राहुल को स्टेशन तक छोड़ा, रास्ते में बातें की – बचपन की यादें, पिता की मौत, और ठाकुर की क्रूरता। "बेटा, ठाकुर ने कल फिर फोन किया। लेकिन मैं नहीं गई। तू चला जा, मैं संभाल लूँगी," सुमन ने झूठ बोला, लेकिन राहुल को शक हो गया। स्टेशन पर ट्रेन आई, राहुल चढ़ा – सीट खिड़की वाली, बाहर माँ खड़ी रो रही थी, गाँव पीछे छूट रहा था, जैसे कोई पुराना जीवन जो अब सपना लग रहा था। ट्रेन की रफ्तार में राहुल का मन शहर की कल्पना कर रहा था – बड़े बिल्डिंग, रोशनी, भीड़, अवसर, लेकिन साथ ही डर – अकेलापन, पैसों की कमी, और नई दुनिया की चुनौतियाँ। ट्रेन में सफर लंबा था – राहुल ने डायरी निकाली, लिखा: "गाँव छूट रहा है, माँ की याद सता रही है। शहर में क्या होगा? लेकिन मैं तैयार हूँ। सपने पूरे करूँगा।" साथ में किताब पढ़ी, जहां हीरो शहर पहुँचकर संघर्ष करता है, लेकिन जीतता है। राहुल सोचता, "मैं भी जीतूँगा।"
ट्रेन दिल्ली स्टेशन पहुँची – शाम हो चुकी थी, स्टेशन की भीड़, ऑटो की हॉर्न, और शहर की रोशनी जो आँखों को चौंधिया रही थी। राहुल बाहर निकला, बैग कंधे पर, और शहर की हवा में सांस ली – हवा में धुँआ, खाने की महक, और लोगों की जल्दबाजी। पहला काम कमरा ढूँढना – वो एक छोटी गली में गया, जहाँ सस्ते लॉज थे। एक लॉज मिला – कमरा छोटा, एक बेड, खिड़की से शहर का नजारा, और किराया सस्ता। मालिक ने कहा, "लड़का, गाँव से लगता है। सावधान रहना, शहर चालाक है।" राहुल ने कमरा लिया, सामान रखा, और बाहर निकला – शाम की दिल्ली में सड़कें भरी हुई, दुकानें चमक रही, लोग जल्दी में। वो एक छोटी दुकान पर रुका, रोटी-सब्ज़ी खाई, और सोचा, "कल कॉलेज देखूँगा। जॉब ढूँढूँगा।" रात को कमरे में लेटा, डायरी लिखी – गाँव की याद, माँ का फोन, "बेटा, ठीक पहुँचा? खाना खाया?" राहुल ने कहा, "हाँ माँ, सब ठीक। तुम कैसी हो?" सुमन ने झूठ बोला, "ठीक हूँ बेटा।" लेकिन राहुल को पता था, ठाकुर की धमकी अभी भी है। emotionally राहुल मजबूत हो रहा था – अकेलापन सता रहा था, लेकिन सपने ताकत दे रहे थे। रात लंबी थी, शहर की आवाज़ें – कारों की हॉर्न, कुत्तों की भौंक – नींद नहीं आ रही थी, लेकिन राहुल ने किताब पढ़ी, प्लान बनाया। "कल कॉलेज जाऊँगा," वो सोचा।
अगला दिन – राहुल एक लोकल कॉलेज गया, इंजीनियरिंग कोर्स के लिए फॉर्म भरा। कॉलेज बड़ा था – बिल्डिंग ऊँची, छात्र भीड़ में, और हवा में किताबों की महक। दाखिला मिला, लेकिन फीस ज्यादा – राहुल ने सोचा, "जॉब ढूँढूँगा।" कॉलेज में पहला दिन – क्लास में प्रिया मिली, 18 साल की, अमीर घर से, छोटी स्कर्ट, बड़े बूब्स, गोरी चमड़ी, लंबे बाल। "तू नया है? गाँव से? मैं प्रिया, चल साथ बैठ," प्रिया ने कहा, उसकी मुस्कान आकर्षक। राहुल ने दोस्ती की, "हाँ, राहुल हूँ। पढ़ाई पर फोकस है।" प्रिया हँसी, "अरे, कॉलेज में मजा भी कर। पार्टी में चल।" रिया, प्रिया की रूममेट, 18 साल की, बोल्ड, शॉर्ट हेयर, सेक्सी फिगर – "राहुल, तू handsome है। गाँव के लड़के ऐसे होते हैं?" राहुल ने बातें की, लेकिन कंट्रोल रखा। क्लास में लेक्चर – मैथ्स, फिजिक्स – राहुल ध्यान से सुना, नोट्स लिए। शाम को जॉब ढूँढी – एक छोटी सी दुकान पर, सामान बेचना। मालकिन राधा, 45 साल की विधवा, सेक्सी – बड़े स्तन, पतली कमर, साड़ी में आकर्षक। "राहुल, काम करेगा? शाम 5 से 10 तक," राधा ने कहा। राहुल ने हाँ कहा, काम शुरू किया – सामान व्यवस्थित करना, ग्राहक संभालना। राधा करीब आई, "तू जवान है, मजबूत। घर आ, मसाज कर दे।" राहुल मना किया, "आंटी, काम पर फोकस।" लेकिन राधा ने जोर दिया, एक शाम घर ले गई – घर छोटा, लेकिन साफ। "मसाज कर," राधा बोली। राहुल ने मसाज की, राधा नंगी हो गई, "छू ले।" राहुल का कंट्रोल टूटा, स्तन दबाए, राधा wild, "Aaaaahhhhh... जोर से... ओoooooooohhhhhhh... मेरे बूब्स... Mmmmaaaaaaaaaaa... काट... उफ्फ... कितना मजा..." राहुल ने चूत चाटी, राधा चिल्लाई, "Aaaaahhhhh... जीभ अंदर... ओoooooooohhhhhhh... मेरी चूत... फाड़ दे... Mmmmaaaaaaaaaaa... कितना गर्म... रोज़ चाट..." लंड डाला, राधा wild, "Mmmmaaaaaaaaaaa... कितना बड़ा... मेरी चूत फट गई... Aaaaahhhhh... चोद जोर से... ओoooooooohhhhhhh... गांड भी मार... उफ्फ... फाड़ दे मेरी गांड... Aaaaahhhhh... दर्द... लेकिन मजा... Mmmmaaaaaaaaaaa... मैं झड़ रही... रोज़ तुझसे चुदवाऊँगी..." धक्के तेज़, राधा कमर हिला रही, गांड में डाला, वो चिल्लाई, "Ooooooooohhhhhhh... गांड फट गई... Aaaaahhhhh... जोर से... Mmmmaaaaaaaaaaa... कितना मजा... तेरे लंड से..." दोनों झड़े। राधा बोली, "राहुल, तू मेरा है। प्रमोशन दूँगी।" राहुल को मजा आया, लेकिन guilt – "फिर गलती की। लेकिन पैसे मिलेंगे।"
शहर की जिंदगी तेज़ थी – सुबह कॉलेज, जहां प्रिया और रिया से दोस्ती गहराई। प्रिया अमीर, पार्टी करती, "राहुल, चल मेरे घर।" रिया बोल्ड, "राहुल, तू virgin है? मजा कर।" राहुल ने पार्टी में गया – घर बड़ा, म्यूजिक, डांस। प्रिया करीब आई, "राहुल, किस कर।" kiss हुआ, फिर कमरे में – प्रिया की स्कर्ट ऊपर, चूत शेव्ड, "चोद मुझे।" राहुल ने डाला, प्रिया चिल्लाई, "Aaaaahhhhh... दर्द... लेकिन मजा... ओoooooooohhhhhhh... जोर से... Mmmmaaaaaaaaaaa... मेरी चूत... फाड़ दे... रोज़ चुदवाऊँगी..." रिया जॉइन, "मुझे भी।" थ्रीसम – दोनों की चूतें गीली, कराहें "Aaaaahhhhh... राहुल... कितना बड़ा... Ooooooooohhhhhhh... हम दोनों को चोद... Mmmmaaaaaaaaaaa... झड़ रही..." राहुल ने दोनों को संतुष्ट किया। लेकिन guilt – "फिर से। लेकिन दोस्त हैं।"
जॉब पर राधा से रोज़ मिलना – मसाज से चुदाई, राधा wild, "Aaaaahhhhh... गांड मार... ओoooooooohhhhhhh... फाड़ दे... Mmmmaaaaaaaaaaa... रोज़..." राहुल पैसे कमाता, माँ को भेजता। माँ फोन पर, "बेटा, ठाकुर धमकी दे रहा है। लेकिन मैं संभाल लूँगी।" राहुल चिंतित, "माँ, जल्दी बुला लूँगा।" कॉलेज में नेहा मिली, मॉडल टाइप, 18 साल की, "राहुल, पार्टी में चल।" पार्टी में नेहा ने किस किया, फिर एनल – नेहा चिल्लाई, "Aaaaahhhhh... दर्द... निकालो... लेकिन मजा... ओoooooooohhhhhhh... जोर से... Mmmmaaaaaaaaaaa... गांड फाड़... रोज़..." राहुल का सफर जारी, सेक्स, पढ़ाई, जॉब। शहर की रातें लंबी, लेकिन सपने बड़े। माँ को बुलाने का प्लान, नई लड़कियाँ – बॉस की बीवी शीला, 38 साल की, ऑफिस में, "चोद मुझे।" शीला wild, "Aaaaahhhhh... जोर से... ओoooooooohhhhhhh... मेरी चूत... Mmmmaaaaaaaaaaa... कितना बड़ा... फाड़ दे... रोज़..." राहुल सफल हो रहा, लेकिन guilt। कहानी आगे, राहुल का विकास – अमीर बनना, माँ को बुलाना।
राहुल ने माँ को फोन किया, "माँ, शहर आओ। कमरा लिया है, जॉब है।" सुमन टालती, "बेटा, गाँव में काम है। ठाकुर... वो..." लेकिन राहुल ने जोर दिया, "माँ, आओ। ठाकुर से दूर हो जाओ।" सुमन कई बार टाली, क्योंकि अब ठाकुर से चुदना पसंद आ गया था – बिना चुदे रह नहीं पाती, रातें तड़प में गुजरती। "बेटा, एक हफ्ते के लिए आती हूँ," सुमन ने कहा। माँ आई – दिल्ली स्टेशन पर राहुल लेने गया, माँ को गले लगाया। कमरे में, माँ ने सच बताया, "बेटा, ठाकुर से चुदना अब आदत हो गई। बिना उसके रह नहीं पाती।" राहुल रोया, "माँ, क्यों?" माँ ने चुप कराया, "बेटा, यही जीवन है। गरीबी ने मजबूर किया, लेकिन अब मजा आता है।" माँ ने राहुल को चूम लिया, गलती से होंठों पर – kiss गहरा हो गया। राहुल ने माँ को चोदा, "माँ... आह..." माँ wild, "Aaaaahhhhh... बेटा... जोर से... ओoooooooohhhhhhh... मेरी चूत... Mmmmaaaaaaaaaaa... कितना बड़ा... फाड़ दे... रोज़ चुदवाऊँगी..." फिर गांड मारी, माँ चिल्लाई, "Aaaaahhhhh... दर्द... लेकिन मजा... ओoooooooohhhhhhh... गांड फाड़... Mmmmaaaaaaaaaaa... कितना मजा..." हफ्ते बाद माँ गाँव लौट गई, "बेटा, यही मेरा जीवन है।" राहुल रोया, लेकिन मजबूत बना। कहानी आगे।
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[img=539x1523][Image: RDT-20250908-1529459143853810318514235.png][/img]
भाग 16: शहर में प्रिया और रिया से दोस्ती की शुरुआत (कॉलेज का पहला सप्ताह, नई दोस्ती की नींव, और भावनात्मक अनुकूलन)

दिल्ली शहर में राहुल का सफर अब धीरे-धीरे अपनी रफ्तार पकड़ रहा था, लेकिन हर दिन एक नई चुनौती लेकर आता था, जैसे शहर उसे परख रहा हो। सुबह की हल्की धुंध अभी छँटी नहीं थी, लेकिन सड़कों पर ट्रैफिक की हॉर्न और लोगों की जल्दबाजी पहले से ही शुरू हो गई थी। राहुल का छोटा सा लॉज का कमरा अब उसके लिए घर जैसा लगने लगा था – दीवारें पुरानी लेकिन साफ, बेड पर एक पतली चादर जो माँ की याद दिलाती, और खिड़की से बाहर शहर की ऊँची बिल्डिंगों का नजारा जो उसे डराता भी और उत्साहित भी कर रहा था। राहुल बिस्तर पर लेटा रहा, उसकी आँखें छत पर टिकी हुई थीं, लेकिन मन गाँव में माँ सुमन के पास भटक रहा था – कल शाम का फोन जहां माँ ने फिर टाला था, "बेटा, गाँव में काम है। ठाकुर... वो अब जीवन का हिस्सा है। एक हफ्ते के लिए आऊँगी, लेकिन अभी नहीं।" राहुल का दिल भारी हो जाता, "माँ, क्यों नहीं आती? क्या ठाकुर की आदत इतनी मजबूत है कि बिना उसके रह नहीं पाती?" ये सोच उसे रुला देती, लेकिन वो खुद को संभालता, "जल्दी अमीर बनूँगा, माँ को ले आऊँगा। शहर की जिंदगी संभाल लूँगा।" वो उठा, खिड़की से बाहर देखा – शहर की सड़कें व्यस्त, ऑटो दौड़ते हुए, लोग जल्दी में, और हवा में धुँए की महक मिली हुई, जैसे शहर की सांस जो कभी रुकती नहीं। "आज कॉलेज का पहला सप्ताह पूरा हो रहा है, नए दोस्त मिले हैं – प्रिया और रिया। लेकिन सावधान रहना है," राहुल सोचता, और उसके मन में एक हल्की उत्सुकता थी – नई जगह, नए लोग, नई चुनौतियाँ जो उसे गढ़ रही थीं।
राहुल ने अपनी रूटीन शुरू की – कमरे में ही कुछ एक्सरसाइज की, क्योंकि शहर में दौड़ लगाना अभी मुश्किल लग रहा था – पुशअप्स जहां उसके कंधे दर्द करते लेकिन मजबूत होते, सिटअप्स जो उसके पेट की मसल्स को कसते, और स्ट्रेचिंग जो उसके शरीर को लचीला बनाती। "शहर में जिम जॉइन करूँगा, लेकिन अभी ये काफी है," वो सोचता, और पसीना बहते हुए भी मुस्कुराता। नहाकर तैयार हुआ – साधारण सफेद शर्ट जो गाँव से लाया था, नीली पैंट, और बैग में किताबें, नोटबुक, और डायरी। लॉज के नीचे एक छोटी दुकान से चाय ली, गरम चाय की सिप लेते हुए सोचा, "गाँव की चाय जैसी नहीं, लेकिन यहां की चाय में शहर का स्वाद है – तेज़, मसालेदार, और जल्दबाजी वाली।" कॉलेज की ओर निकला – बस पकड़ी, भीड़ में खड़ा रहा, जहां लोग धक्का देते, लेकिन राहुल ने खुद को संभाला, "शहर है, आदत डालनी होगी।" बस से उतरकर कॉलेज पहुँचा – बड़ा गेट जहां छात्रों की भीड़ थी, लड़के-लड़कियाँ हँसते-बोलते, कुछ सिगरेट पीते, कुछ किताबें पढ़ते। राहुल क्लासरूम में गया, अपनी सीट पर बैठा, मन में घबराहट – "गाँव से हूँ, क्या फिट हो पाऊँगा? लेकिन पढ़ाई पर फोकस।" लेक्चर शुरू हुआ – फिजिक्स का, टीचर बोर्ड पर डायग्राम बना रहे थे, राहुल ध्यान से सुना, नोट्स लिए, हर फॉर्मूला को समझने की कोशिश की, जैसे गाँव में कॉलेज के दिनों की तरह लेकिन अब दांव बड़ा था।
ब्रेक में प्रिया मिली – 18 साल की, अमीर घर से, आज नीली ड्रेस में जो उसके गोरे शरीर को और निखार रही थी, छोटी स्कर्ट जो उसके पैरों को उघाड़ रही थी, बड़े बूब्स जो हर कदम पर हिलते, गोरी चमड़ी जो सूरज की रोशनी में चमक रही थी, और लंबे बाल जो हवा में लहरा रहे थे। "राहुल, आज फिर अकेला बैठा है? चल, साथ लंच कर," प्रिया ने मुस्कुराकर कहा, उसकी आँखें चमक रही थीं, जैसे कोई दोस्ती की शुरुआत। राहुल ने कहा, "हाँ प्रिया, चलो। लेकिन मैं साधारण हूँ, तुम अमीर लगती हो।" प्रिया हँसी, "अरे, अमीर क्या, पापा बिज़नेस करते हैं। लेकिन दोस्ती अमीर-गरीब नहीं देखती। बताना, गाँव कैसा है?" दोनों कैंटीन गए, सैंडविच लिए, और बातें कीं – प्रिया ने अपना घर बताया, बड़ा बंगला, कारें, पार्टीज, "राहुल, मेरी लाइफ बोरिंग है। अमीर लेकिन अकेली। दोस्त कम हैं।" राहुल ने अपना गाँव बताया, गरीबी, माँ की मेहनत, "प्रिया, मैं यहाँ सपने लेकर आया हूँ। इंजीनियर बनूँगा, माँ को खुश रखूँगा।" प्रिया की आँखों में सहानुभूति, "तू मजबूत है राहुल। मैं मदद करूँगी। नोट्स दूँगी, पार्टी में ले जाऊँगी।" दोस्ती गहराई – प्रिया की बोल्डनेस राहुल को आकर्षित कर रही थी, लेकिन वो कंट्रोल रखता, "दोस्त है, कुछ और नहीं।" क्लास खत्म, शाम को जॉब पर – राधा की दुकान, सामान बेचा, ग्राहक संभाले, राधा देखती रही, "राहुल, अच्छा काम।" लेकिन राहुल फोकस – "जॉब पैसों के लिए, कुछ और नहीं।"
अगले दिन कॉलेज में रिया मिली – प्रिया की रूममेट, 18 साल की, बोल्ड, शॉर्ट हेयर जो उसके चेहरे को शरारती बना रहे थे, सेक्सी फिगर – गोल-मटोल लेकिन आकर्षक, आज टाइट जींस और टॉप में जो उसके कर्व्स उभार रहा था। "राहुल, प्रिया की दोस्त हूँ। तू handsome है। गाँव के लड़के ऐसे होते हैं?" रिया ने चिढ़ाया, उसकी मुस्कान शरारती, आँखें चमकती। राहुल हँसा, "रिया, बस साधारण हूँ। पढ़ाई पर फोकस।" रिया ने कहा, "अरे, मजा भी कर। पार्टी में चल, प्रिया भी आएगी।" राहुल ने हाँ कहा, लेकिन मन में सोचा, "सावधान रहना, सेक्स से दूर।" पार्टी में गया – प्रिया का घर बड़ा, म्यूजिक तेज़, डांस, लोग हँसते। प्रिया और रिया साथ, "राहुल, डांस कर।" राहुल डांस किया, प्रिया करीब, "राहुल, तू प्यारा है।" लेकिन राहुल सीमा रखा, "दोस्त हूँ।" रात को लौटा, डायरी लिखी – दोस्ती की खुशी, माँ का फोन, "माँ, आओ।" माँ टाली, "बेटा, अभी नहीं। काम है।" राहुल दुखी, लेकिन आगे बढ़ा।
दिल्ली शहर में राहुल का दूसरा दिन अब और चुनौतीपूर्ण लग रहा था, जैसे शहर उसे धीरे-धीरे अपनी गिरफ्त में ले रहा हो। सुबह की हल्की ठंडी हवा कमरे की खिड़की से अंदर आ रही थी, लेकिन बाहर की सड़कों पर पहले से ही ट्रैफिक की हॉर्न और लोगों की जल्दबाजी की आवाज़ें गूँज रही थीं। राहुल का छोटा सा लॉज का कमरा अब उसके लिए एक सुरक्षित ठिकाना लगने लगा था – दीवारों पर हल्की नमी की वजह से थोड़ी सी फफूँद लगी हुई थी, बेड पर माँ की दी हुई पुरानी चादर बिछी हुई थी जो घर की याद दिलाती, और खिड़की से बाहर शहर की ऊँची-ऊँची बिल्डिंगों का नजारा दिख रहा था, जो रात में रोशनी से चमकतीं लेकिन दिन में सिर्फ कंक्रीट का ढेर लगतीं। राहुल बिस्तर पर लेटा रहा, उसकी आँखें छत पर टिकी हुई थीं, लेकिन मन अभी भी गाँव में माँ सुमन के पास भटक रहा था – कल शाम का फोन जहां माँ ने फिर से आने से मना कर दिया था, "बेटा, गाँव में बहुत काम है। ठाकुर... वो अब रोज़ बुलाता है, लेकिन मैं संभाल लूँगी। एक हफ्ते के लिए आऊँगी, लेकिन अभी नहीं। बस तू पढ़ाई पर ध्यान दे।" राहुल का दिल भारी हो जाता, "माँ, क्यों नहीं आती? क्या ठाकुर की आदत इतनी मजबूत हो गई है कि बिना उसके चुदे रह नहीं पाती? क्या वो अब मजा लेने लगी है उससे?" ये सोच उसे अंदर से खा जाती, लेकिन वो खुद को संभालता, "नहीं, माँ मजबूरी में है। गरीबी ने उसे फँसाया है। मैं जल्दी अमीर बनूँगा, उसे ले आऊँगा, और सब बदल दूँगा।" वो उठा, खिड़की से बाहर देखा – शहर की सड़कें व्यस्त थीं, लोग अपने काम पर जा रहे थे, कुछ स्ट्रीट वेंडर चाय बेच रहे थे, उनकी केतलियों से भाप उठ रही थी, और हवा में धुँए और खाने की महक मिली हुई थी, जैसे शहर की सांस जो कभी रुकती नहीं। "आज कॉलेज का दूसरा दिन है, प्रिया और रिया से मिलना होगा। लेकिन सावधान रहना है, दोस्ती रखनी है लेकिन सीमा से आगे नहीं जाना," राहुल सोचता, और उसके मन में एक हल्की उत्सुकता थी – नई जगह जहां लोग इतने अलग थे, लड़कियाँ बोल्ड, और जीवन तेज़।
राहुल ने अपनी रूटीन शुरू की – कमरे में ही एक्सरसाइज की, पुशअप्स जहां उसके कंधे दर्द करते लेकिन मजबूत होते, सिटअप्स जो उसके पेट की मसल्स को कसते, और स्ट्रेचिंग जो उसके शरीर को लचीला बनाती, जैसे हर एक्सरसाइज उसे शहर की कठोरता से लड़ने के लिए तैयार कर रही हो। "गाँव में दौड़ लगाता था, यहां जगह नहीं लेकिन ये काफी है। जल्दी जिम जॉइन करूँगा," वो सोचता, और पसीना बहते हुए भी मुस्कुराता, क्योंकि physically वो अब अपनी सीमाओं को पार कर रहा था। नहाकर तैयार हुआ – कल वाली सफेद शर्ट धोकर पहनी, नीली पैंट जो गाँव से लाया था, और बैग में किताबें, नोटबुक, और डायरी जो उसके सपनों का साथी थी। लॉज के नीचे दुकान से चाय ली, गरम चाय की सिप लेते हुए सोचा, "माँ की चाय जैसी नहीं, लेकिन यहां की चाय में शहर का स्वाद है – तेज़, मसालेदार, और जीवन की तरह।" कॉलेज की ओर निकला – बस पकड़ी, भीड़ में खड़ा रहा, जहां लोग धक्का देते, कुछ लोग फोन पर बात करते, कुछ अखबार पढ़ते, लेकिन राहुल ने खुद को संभाला, "शहर है, आदत डालनी होगी। बस से उतरकर कॉलेज पहुँचा – बड़ा गेट जहां कल की तरह छात्रों की भीड़ थी, लड़के-लड़कियाँ हँसते-बोलते, कुछ ग्रुप में गॉसिप करते, कुछ कैंटीन की ओर जा रहे। राहुल क्लासरूम में गया, अपनी सीट पर बैठा, मन में कल की याद – प्रिया की मुस्कान, रिया की शरारत। "दोस्त हैं, लेकिन सावधान," वो सोचता। लेक्चर शुरू हुआ – केमिस्ट्री का, टीचर मॉलिक्यूलर स्ट्रक्चर समझा रहे थे, राहुल ध्यान से सुना, नोट्स लिए, हर डायग्राम को कॉपी किया, जैसे गाँव में कॉलेज के दिनों की तरह लेकिन अब दांव बड़ा था, फेल होने का मतलब सपने का टूटना।
ब्रेक में प्रिया मिली – कल वाली नीली ड्रेस में नहीं, आज पिंक टॉप और जींस में, जो उसके शरीर को और आकर्षक बना रही थी, उसके बाल खुले, और मुस्कान जो राहुल को घर जैसा अपनापन दे रही थी। "राहुल, कल शाम क्या किया? शहर कैसा लगा?" प्रिया ने पूछा, उसकी आँखें उत्सुकता से चमक रही थीं। राहुल ने कहा, "प्रिया, लॉज में रहा, पढ़ाई की। शहर बड़ा है, लेकिन गाँव की याद आती है।" प्रिया हँसी, "अरे, मैं ले जाऊँगी घुमाने। आज शाम कैंटीन में चल, रिया भी आएगी।" राहुल ने हाँ कहा, "ठीक है, लेकिन पढ़ाई पहले।" दोनों क्लास में साथ बैठे, प्रिया ने नोट्स शेयर किए, "राहुल, तू स्मार्ट है। गाँव से आया लेकिन तेज़ है।" राहुल मुस्कुराया, "प्रिया, मेहनत करता हूँ। माँ के लिए।" प्रिया की आँखों में सहानुभूति, "तेरी माँ? बताना।" राहुल ने हल्का बताया, गरीबी, माँ की मेहनत, "प्रिया, वो गाँव में अकेली है। जल्दी बुला लूँगा।" प्रिया ने हाथ पकड़ा, "मैं मदद करूँगी। मेरे पापा से कहूँगी, जॉब मिलवा देंगी।" दोस्ती गहराई – प्रिया की अमीरी राहुल को थोड़ी जलन देती, लेकिन उसके अपनापन से दिल जीत रही थी। क्लास खत्म, कैंटीन में रिया मिली – कल वाली शॉर्ट हेयर वाली लड़की, आज ग्रीन ड्रेस में, उसके फिगर की आउटलाइन साफ, और मुस्कान शरारती। "राहुल, प्रिया से सुना तेरे बारे में। गाँव का राजकुमार," रिया ने चिढ़ाया। राहुल हँसा, "रिया, बस साधारण हूँ।" तीनों लंच किए, सैंडविच, कोक, बातें – रिया ने अपनी कहानी बताई, "मैं बोल्ड हूँ, लेकिन घर में पाबंदी। पापा सख्त हैं।" राहुल ने सहानुभूति दिखाई, "रिया, मैं भी गाँव से, माँ की बात मानता हूँ।" रिया मुस्कुराई, "तू अच्छा है राहुल। पार्टी में चल, मजा कर।" राहुल ने हाँ कहा, लेकिन मन में सोचा, "सावधान रहना, सेक्स से दूर। गाँव की गलतियाँ नहीं दोहरानी।"
शाम को लॉज लौटा, माँ को फोन किया, "माँ, कॉलेज अच्छा है। दोस्त मिले – प्रिया, रिया। तुम कब आओगी?" माँ टाली, "बेटा, गाँव में काम है। ठाकुर... वो धमकी दे रहा है, लेकिन मैं संभाल लूँगी। एक हफ्ते के लिए आऊँगी, लेकिन अभी नहीं। बस तू पढ़ाई कर।" राहुल दुखी, "माँ, क्यों टाल रही हो? क्या ठाकुर की आदत इतनी मजबूत हो गई है कि बिना उसके चुदे रह नहीं पाती? क्या वो अब मजा लेने लगी है उससे?" माँ चुप, "बेटा, जीवन है। चिंता मत कर।" राहुल रोया, लेकिन खुद को संभाला, "माँ, जल्दी बुला लूँगा।" रात को पढ़ाई की, किताबें खोली, और सोया – शहर की आवाज़ें नींद में बाधा, लेकिन सपने शहर के, माँ के साथ।
अगले दिन कॉलेज – प्रिया और रिया से मिला, बातें की, नोट्स शेयर। प्रिया ने कहा, "राहुल, शाम को कैफे चल।" कैफे में कॉफी, बातें – प्रिया ने अपना परिवार बताया, "पापा बिज़नेसमैन, माँ हाउसवाइफ। लेकिन मैं इंडिपेंडेंट बनना चाहती हूँ।" राहुल ने अपना गाँव बताया, "प्रिया, गरीबी देखी है। माँ अकेली संघर्ष करती है।" प्रिया की आँखें नम, "तू मजबूत है। मैं मदद करूँगी।" रिया ने चिढ़ाया, "राहुल, गर्लफ्रेंड है?" राहुल हँसा, "नहीं, पढ़ाई।" दोस्ती गहराई – शामें साथ, लेकिन राहुल सीमा रखता। जॉब पर राधा से मिलना – काम, लेकिन राधा की नजरें। "राहुल, अच्छा काम।" राहुल फोकस – "पैसे के लिए।" लेकिन एक शाम राधा ने कहा, "घर आ।" राहुल मना, लेकिन राधा ने जोर दिया। घर पर मसाज, फिर चुदाई – राधा wild, "ओह्ह्ह्ह... राहुल... धीरे से दबा मेरे बूब्स... उफ्फ्फ... कितना गर्म हाथ है तेरा... आhhhh... चूस ले... Mmm... कितना मजेदार... तेरी जीभ... मेरी चूत में... ओह्ह्ह... फाड़ दे... तेरा लंड कितना मोटा... आhhhh... चोद जोर से... Mmm... गांड में डाल... उफ्फ्फ... दुखता है लेकिन अच्छा लग रहा... ओह्ह्ह... झड़ रही हूँ... रोज़ करवा..." राहुल guilt, लेकिन पैसे मिले।
कॉलेज में नेहा मिली – 18 साल की, मॉडल टाइप, लंबे बाल, सेक्सी फिगर। "राहुल, ग्रुप में जॉइन कर।" राहुल ने हाँ कहा, दोस्ती शुरू। नेहा ने बातें की, "राहुल, तू सच्चा लगता है। गाँव की कहानी बता।" राहुल ने बताया, नेहा की आँखें चमकीं, "तू इंस्पायरिंग है।" दोस्ती गहराई, लेकिन राहुल सावधान। शाम को जॉब, रात पढ़ाई। माँ से फोन, "बेटा, ठीक है?" राहुल, "माँ, आओ।" माँ टाली, "बेटा, अभी नहीं। ठाकुर... वो अब रोज़ बुलाता है। लेकिन मैं खुश हूँ।" राहुल दुखी, "माँ, क्यों?" लेकिन आगे बढ़ा। शहर की जिंदगी जारी, राहुल का विकास – नए दोस्त, पढ़ाई, और सपने।
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#31
[img=539x1134][Image: 20250908-125057.jpg][/img] 
प्रिया और रिया के साथ दोस्ती का गहराना और एक अनपेक्षित ट्विस्ट (कॉलेज की रूटीन में नई घटनाएँ, भावनात्मक संघर्ष, और एक रहस्य का खुलासा)

दिल्ली शहर में राहुल का तीसरा दिन अब और ज्यादा व्यस्त लग रहा था, जैसे शहर की रफ्तार उसे अपनी लय में बाँध रही हो। सुबह की हल्की ठंडी हवा कमरे की खिड़की से अंदर आ रही थी, लेकिन बाहर की सड़कों पर ट्रैफिक की हॉर्न और लोगों की जल्दबाजी की आवाज़ें पहले से ही गूँज रही थीं, जैसे शहर कभी सोता ही नहीं। राहुल का छोटा सा लॉज का कमरा अब उसके लिए एक छोटी सी दुनिया बन चुका था – दीवारों पर हल्की नमी की वजह से थोड़ी सी फफूँद लगी हुई थी, जो उसे गाँव की कच्ची दीवारों की याद दिलाती, बेड पर माँ की दी हुई पुरानी चादर बिछी हुई थी जो अभी भी गाँव की महक से भरी हुई लगती, और खिड़की से बाहर शहर की ऊँची-ऊँची बिल्डिंगों का नजारा दिख रहा था, जो रात में रंग-बिरंगी रोशनी से चमकतीं लेकिन दिन में सिर्फ ग्रे कंक्रीट का ढेर लगतीं, जैसे शहर की सच्चाई जो बाहर से चमकदार लेकिन अंदर से ठंडी और कठोर हो। राहुल बिस्तर पर लेटा रहा, उसकी आँखें छत पर टिकी हुई थीं, लेकिन मन अभी भी गाँव में माँ सुमन के पास भटक रहा था – कल शाम का फोन जहां माँ ने फिर से आने से मना कर दिया था, "बेटा, गाँव में बहुत काम है। ठाकुर... वो अब रोज़ बुलाता है, लेकिन मैं संभाल लूँगी। एक हफ्ते के लिए आऊँगी, लेकिन अभी नहीं। बस तू पढ़ाई पर ध्यान दे।" राहुल का दिल भारी हो जाता, "माँ, क्यों नहीं आती? क्या ठाकुर की आदत इतनी मजबूत हो गई है कि बिना उसके चुदे रह नहीं पाती? क्या वो अब मजा लेने लगी है उससे?" ये सवाल उसे रात भर सताते, उसकी नींद उड़ा देते, लेकिन वो खुद को संभालता, "नहीं, माँ मजबूरी में है। गरीबी ने उसे फँसाया है। मैं जल्दी अमीर बनूँगा, उसे ले आऊँगा।" ये सोच उसे ताकत देती, लेकिन साथ ही एक गहरा दर्द भी, जैसे कोई घाव जो भरता नहीं। वो उठा, खिड़की से बाहर देखा – शहर की सड़कें व्यस्त थीं, लोग अपने काम पर जा रहे थे, कुछ स्ट्रीट वेंडर चाय बेच रहे थे उनकी केतलियों से भाप उठ रही थी जैसे शहर की साँस, और हवा में धुँए और खाने की महक मिली हुई थी, जैसे शहर की सच्चाई जो बाहर से चमकदार लेकिन अंदर से ठंडी और कठोर हो। "आज कॉलेज का तीसरा दिन है, प्रिया और रिया से मिलना होगा। लेकिन सावधान रहना है, दोस्ती रखनी है लेकिन सीमा से आगे नहीं जाना," राहुल सोचता, और उसके मन में एक हल्की उत्सुकता थी – नई जगह जहां लोग इतने अलग थे, लड़कियाँ बोल्ड, और जीवन तेज़, लेकिन वो जीवन जो उसे बदल रहा था।
राहुल ने अपनी रूटीन शुरू की – कमरे में ही एक्सरसाइज की, पुशअप्स जहां उसके कंधे दर्द करते लेकिन मजबूत होते, सिटअप्स जो उसके पेट की मसल्स को कसते, और स्ट्रेचिंग जो उसके शरीर को लचीला बनाती, जैसे हर एक्सरसाइज उसे शहर की कठोरता से लड़ने के लिए तैयार कर रही हो। "गाँव में दौड़ लगाता था, यहां जगह नहीं लेकिन ये काफी है। जल्दी जिम जॉइन करूँगा," वो सोचता, और पसीना बहते हुए भी मुस्कुराता, क्योंकि physically वो अब अपनी सीमाओं को पार कर रहा था, उसके शरीर में एक नई ऊर्जा आ रही थी जो उसे कॉलेज और जॉब के लिए तैयार कर रही थी। नहाकर तैयार हुआ – कल वाली सफेद शर्ट धोकर पहनी, नीली पैंट जो गाँव से लाया था लेकिन अब शहर की धूल से थोड़ी फीकी पड़ गई थी, और बैग में किताबें, नोटबुक, और डायरी जो उसके सपनों का साथी थी, हर पन्ना अब शहर की कहानी लिखने को तैयार। लॉज के नीचे दुकान से चाय ली, गरम चाय की सिप लेते हुए सोचा, "माँ की चाय जैसी नहीं, लेकिन यहां की चाय में शहर का स्वाद है – तेज़, मसालेदार, और जीवन की तरह। कल प्रिया ने कहा था कि कॉलेज में साथ लंच करेंगे, देखते हैं क्या होता है।" कॉलेज की ओर निकला – बस पकड़ी, भीड़ में खड़ा रहा, जहां लोग धक्का देते, कुछ लोग फोन पर बात करते जैसे दुनिया से कटे हुए, कुछ अखबार पढ़ते जैसे समय को पकड़ने की कोशिश कर रहे, लेकिन राहुल ने खुद को संभाला, "शहर है, आदत डालनी होगी। बस से उतरकर कॉलेज पहुँचा – बड़ा गेट जहां कल की तरह छात्रों की भीड़ थी, लड़के-लड़कियाँ हँसते-बोलते, कुछ ग्रुप में गॉसिप करते जैसे कोई सीक्रेट शेयर कर रहे, कुछ कैंटीन की ओर जा रहे जहां कॉफी की महक आ रही थी। राहुल क्लासरूम में गया, अपनी सीट पर बैठा, मन में कल की याद – प्रिया की मुस्कान जो दोस्ती की तरह लगती थी, रिया की शरारत जो उसे हँसाती लेकिन सावधान भी करती। "दोस्त हैं, लेकिन सावधान," वो सोचता, और किताब खोलकर कल के नोट्स रिव्यू करने लगा, हर फॉर्मूला को दोहराता, जैसे गाँव में कॉलेज के दिनों की तरह लेकिन अब दांव बड़ा था, फेल होने का मतलब सपने का टूटना, माँ की उम्मीदों का टूटना।
क्लास शुरू हुई – इंजीनियरिंग ग्राफिक्स का लेक्चर, टीचर बोर्ड पर ड्रॉइंग बना रहे थे, राहुल ध्यान से देखता, नोट्स लेता, हर लाइन को कॉपी करता, जैसे वो लाइनें उसके जीवन की ड्रॉइंग बना रही हों। ब्रेक में प्रिया मिली – 18 साल की, अमीर घर से, आज सफेद टॉप और ब्लू जींस में, जो उसके शरीर को और आकर्षक बना रही थी, उसके बाल पोनीटेल में बंधे, और मुस्कान जो राहुल को घर जैसा अपनापन दे रही थी। "राहुल, आज फिर अकेला? चल, कैंटीन में कॉफी पीते हैं," प्रिया ने कहा, उसकी आँखें उत्सुकता से चमक रही थीं, जैसे कोई दोस्ती की शुरुआत जो धीरे-धीरे गहरी हो रही हो। राहुल ने कहा, "हाँ प्रिया, चलो। लेकिन मैं कॉफी नहीं, चाय लूँगा।" प्रिया हँसी, "अरे गाँव वाला, चाय? ठीक है, मैं सिखा दूँगी कॉफी पीना।" दोनों कैंटीन गए – कैंटीन में भीड़ थी, छात्र हँसते-बोलते, कॉफी मशीन की आवाज़, और हवा में सैंडविच की महक। प्रिया ने कॉफी ली, राहुल ने चाय, और एक कोने की टेबल पर बैठे। प्रिया ने बात शुरू की, "राहुल, कल तूने गाँव की बात की थी। और बता, माँ क्या करती हैं?" राहुल ने हल्का बताया, "प्रिया, माँ गाँव में अकेली है। ठाकुर की हवेली में काम करती थी, लेकिन अब नहीं। गरीबी है, लेकिन मैं बदल दूँगा।" प्रिया की आँखें नम, "तू मजबूत है राहुल। मेरी लाइफ अमीर है, लेकिन घर में टेंशन। पापा हमेशा काम में, माँ डिप्रेस्ड। मैं पार्टी करती हूँ ताकि भूल जाऊँ।" राहुल ने सहानुभूति दिखाई, "प्रिया, जीवन हर जगह कठिन है। लेकिन दोस्त मदद करते हैं। मैं हूँ न।" प्रिया मुस्कुराई, "तू अच्छा है। कल शाम पार्टी है मेरे घर, आ। रिया भी आएगी।" राहुल ने हाँ कहा, लेकिन मन में सोचा, "सावधान रहना, सेक्स से दूर। गाँव की गलतियाँ नहीं दोहरानी।"
क्लास खत्म, शाम को प्रिया के घर गया – घर बड़ा, लग्ज़री, गेट पर गार्ड, अंदर बड़ा हॉल, म्यूजिक सिस्टम, और स्विमिंग पूल। पार्टी में 10-12 छात्र, डांस, ड्रिंक्स। प्रिया ने राहुल को इंट्रोड्यूस किया, "ये राहुल, मेरा नया दोस्त। गाँव से है लेकिन स्मार्ट।" रिया आई, "राहुल, कल की चाय वाली बात याद है? आज कॉफी ट्राई कर।" तीनों हँसे, डांस किया – राहुल ने गाँव का डांस स्टेप दिखाया, सब हँसे। प्रिया करीब आई, "राहुल, तू स्पेशल है।" लेकिन राहुल सीमा रखा, "प्रिया, दोस्त हूँ।" रात को लौटा, डायरी लिखी – पार्टी की मजा, दोस्ती की खुशी, माँ का फोन। "माँ, शहर अच्छा है। दोस्त मिले – प्रिया, रिया। तुम कब आओगी?" माँ टाली, "बेटा, गाँव में काम है। ठाकुर... वो धमकी दे रहा है, लेकिन मैं संभाल लूँगी। एक हफ्ते के लिए आऊँगी, लेकिन अभी नहीं।" राहुल दुखी, "माँ, क्यों टाल रही हो? क्या ठाकुर की आदत इतनी मजबूत हो गई है कि बिना उसके चुदे रह नहीं पाती? क्या वो अब मजा लेने लगी है उससे?" माँ चुप, "बेटा, जीवन है। चिंता मत कर।" राहुल रोया, लेकिन खुद को संभाला, "माँ, जल्दी बुला लूँगा।" भावनात्मक रूप से राहुल मजबूत हो रहा था – अकेलापन सता रहा था, लेकिन दोस्त ताकत दे रहे थे। रात को पढ़ाई की, किताबें खोली, और सोया – शहर की आवाज़ें नींद में बाधा, लेकिन सपने शहर के, माँ के साथ।
अगले दिन कॉलेज – प्रिया और रिया से मिला, बातें की, नोट्स शेयर। प्रिया ने कहा, "राहुल, शाम को कैफे चल।" कैफे में कॉफी, बातें – प्रिया ने अपना परिवार बताया, "पापा बिज़नेस में व्यस्त, माँ बीमार। मैं अकेली महसूस करती हूँ।" राहुल ने सांत्वना दी, "प्रिया, मैं हूँ न। दोस्त हूँ।" रिया ने कहा, "राहुल, तू अच्छा लगता है। गाँव की कहानी सुनाओ।" राहुल ने बताया, गरीबी, माँ की मेहनत, ठाकुर की क्रूरता। रिया की आँखें नम, "तू इंस्पायरिंग है। हम मदद करेंगी।" दोस्ती गहराई – शामें साथ, फिल्म देखी, घूमने गए। लेकिन राहुल सीमा रखता, "दोस्त हैं, कुछ और नहीं।" जॉब पर राधा से मिलना – काम, लेकिन राधा की नजरें। "राहुल, अच्छा काम। शाम को घर आ।" राहुल मना, "आंटी, पढ़ाई है।" लेकिन राधा ने जोर दिया, "एक बार आ।" राहुल गया, मसाज, फिर चुदाई – राधा wild, "ओह्ह्ह... राहुल... धीरे से दबा... उफ्फ्फ... कितना गर्म... आhhhh... चूस ले... Mmm... तेरी जीभ... मेरी चूत में... ओह्ह्ह... फाड़ दे... तेरा लंड कितना मोटा... आhhhh... चोद जोर से... Mmm... गांड में डाल... उफ्फ्फ... दुखता है लेकिन अच्छा... ओह्ह्ह... झड़ रही हूँ... रोज़ करवा..." राहुल guilt, लेकिन पैसे मिले, माँ को भेजे।
कॉलेज में नेहा मिली – 18 साल की, मॉडल टाइप, लंबे बाल, सेक्सी फिगर। "राहुल, ग्रुप में जॉइन कर।" राहुल ने हाँ कहा, दोस्ती शुरू। नेहा ने बातें की, "राहुल, तू सच्चा लगता है। गाँव की कहानी बता।" राहुल ने बताया, नेहा की आँखें चमकीं, "तू इंस्पायरिंग है।" दोस्ती गहराई, लेकिन राहुल सावधान – "दोस्त है, कुछ और नहीं।" शाम को जॉब, रात पढ़ाई। माँ से फोन, "बेटा, ठीक है?" राहुल, "माँ, आओ।" माँ टाली, "बेटा, अभी नहीं। ठाकुर... वो अब रोज़ बुलाता है। लेकिन मैं खुश हूँ।" राहुल दुखी, "माँ, क्यों?" लेकिन आगे बढ़ा। शहर की जिंदगी जारी, राहुल का विकास – नए दोस्त, पढ़ाई, और सपने
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#32

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प्रिया और रिया के साथ दोस्ती का गहराना और एक अनपेक्षित ट्विस्ट (कॉलेज की रूटीन में नई घटनाएँ, भावनात्मक संघर्ष, और एक रहस्य का खुलासा)

दिल्ली शहर में राहुल का चौथा दिन अब एक रूटीन की शक्ल लेने लगा था, लेकिन हर दिन की तरह ये भी कुछ नया लेकर आया था, जैसे शहर उसे धीरे-धीरे अपनी गिरफ्त में ले रहा हो, लेकिन राहुल अब इस गिरफ्त से लड़ना सीख रहा था। सुबह की हल्की ठंडी हवा कमरे की खिड़की से अंदर आ रही थी, लेकिन बाहर की सड़कों पर ट्रैफिक की हॉर्न और लोगों की जल्दबाजी की आवाज़ें पहले से ही गूँज रही थीं, जैसे शहर कभी सोता ही नहीं, बल्कि सिर्फ साँस लेने के लिए थोड़ा रुकता है। राहुल का छोटा सा लॉज का कमरा अब उसके लिए एक छोटी सी दुनिया बन चुका था – दीवारों पर हल्की नमी की वजह से थोड़ी सी फफूँद लगी हुई थी, जो उसे गाँव की कच्ची दीवारों की याद दिलाती, बेड पर माँ की दी हुई पुरानी चादर बिछी हुई थी जो अभी भी गाँव की महक से भरी हुई लगती, और खिड़की से बाहर शहर की ऊँची-ऊँची बिल्डिंगों का नजारा दिख रहा था, जो रात में रंग-बिरंगी रोशनी से चमकतीं लेकिन दिन में सिर्फ ग्रे कंक्रीट का ढेर लगतीं, जैसे शहर की सच्चाई जो बाहर से चमकदार लेकिन अंदर से ठंडी और कठोर हो। राहुल बिस्तर पर लेटा रहा, उसकी आँखें छत पर टिकी हुई थीं, लेकिन मन अभी भी गाँव में माँ सुमन के पास भटक रहा था – कल शाम का फोन जहां माँ ने फिर से आने से मना कर दिया था, "बेटा, गाँव में बहुत काम है। ठाकुर... वो अब रोज़ बुलाता है, लेकिन मैं संभाल लूँगी। एक हफ्ते के लिए आऊँगी, लेकिन अभी नहीं। बस तू पढ़ाई पर ध्यान दे।" राहुल का दिल भारी हो जाता, "माँ, क्यों नहीं आती? क्या ठाकुर की आदत इतनी मजबूत हो गई है कि बिना उसके चुदे रह नहीं पाती? क्या वो अब मजा लेने लगी है उससे?" ये सवाल उसे रात भर सताते, उसकी नींद उड़ा देते, लेकिन वो खुद को संभालता, "नहीं, माँ मजबूरी में है। गरीबी ने उसे फँसाया है। मैं जल्दी अमीर बनूँगा, उसे ले आऊँगा।" ये सोच उसे ताकत देती, लेकिन साथ ही एक गहरा दर्द भी, जैसे कोई घाव जो भरता नहीं, बल्कि हर दिन थोड़ा और गहरा होता जाता है। वो उठा, खिड़की से बाहर देखा – शहर की सड़कें व्यस्त थीं, लोग अपने काम पर जा रहे थे, कुछ स्ट्रीट वेंडर चाय बेच रहे थे उनकी केतलियों से भाप उठ रही थी जैसे शहर की साँस, और हवा में धुँए और खाने की महक मिली हुई थी, जैसे शहर की सच्चाई जो बाहर से चमकदार लेकिन अंदर से ठंडी और कठोर हो। "आज कॉलेज का चौथा दिन है, प्रिया और रिया से मिलना होगा। लेकिन सावधान रहना है, दोस्ती रखनी है लेकिन सीमा से आगे नहीं जाना," राहुल सोचता, और उसके मन में एक हल्की उत्सुकता थी – नई जगह जहां लोग इतने अलग थे, लड़कियाँ बोल्ड, और जीवन तेज़, लेकिन वो जीवन जो उसे बदल रहा था, धीरे-धीरे उसे एक नया इंसान बना रहा था।
राहुल ने अपनी रूटीन शुरू की – कमरे में ही एक्सरसाइज की, पुशअप्स जहां उसके कंधे दर्द करते लेकिन मजबूत होते, सिटअप्स जो उसके पेट की मसल्स को कसते, और स्ट्रेचिंग जो उसके शरीर को लचीला बनाती, जैसे हर एक्सरसाइज उसे शहर की कठोरता से लड़ने के लिए तैयार कर रही हो। "गाँव में दौड़ लगाता था, यहां जगह नहीं लेकिन ये काफी है। जल्दी जिम जॉइन करूँगा," वो सोचता, और पसीना बहते हुए भी मुस्कुराता, क्योंकि physically वो अब अपनी सीमाओं को पार कर रहा था, उसके शरीर में एक नई ऊर्जा आ रही थी जो उसे कॉलेज और जॉब के लिए तैयार कर रही थी। नहाकर तैयार हुआ – कल वाली सफेद शर्ट धोकर पहनी, नीली पैंट जो गाँव से लाया था लेकिन अब शहर की धूल से थोड़ी फीकी पड़ गई थी, और बैग में किताबें, नोटबुक, और डायरी जो उसके सपनों का साथी थी, हर पन्ना अब शहर की कहानी लिखने को तैयार। लॉज के नीचे दुकान से चाय ली, गरम चाय की सिप लेते हुए सोचा, "माँ की चाय जैसी नहीं, लेकिन यहां की चाय में शहर का स्वाद है – तेज़, मसालेदार, और जीवन की तरह। कल प्रिया ने कहा था कि कॉलेज में साथ लंच करेंगे, देखते हैं क्या होता है।" कॉलेज की ओर निकला – बस पकड़ी, भीड़ में खड़ा रहा, जहां लोग धक्का देते, कुछ लोग फोन पर बात करते जैसे दुनिया से कटे हुए, कुछ अखबार पढ़ते जैसे समय को पकड़ने की कोशिश कर रहे, लेकिन राहुल ने खुद को संभाला, "शहर है, आदत डालनी होगी।" बस से उतरकर कॉलेज पहुँचा – बड़ा गेट जहां कल की तरह छात्रों की भीड़ थी, लड़के-लड़कियाँ हँसते-बोलते, कुछ ग्रुप में गॉसिप करते जैसे कोई सीक्रेट शेयर कर रहे, कुछ कैंटीन की ओर जा रहे जहां कॉफी की महक आ रही थी। राहुल क्लासरूम में गया, अपनी सीट पर बैठा, मन में कल की याद – प्रिया की मुस्कान जो दोस्ती की तरह लगती थी, रिया की शरारत जो उसे हँसाती लेकिन सावधान भी करती। "दोस्त हैं, लेकिन सावधान," वो सोचता, और किताब खोलकर कल के नोट्स रिव्यू करने लगा, हर फॉर्मूला को दोहराता, जैसे वो लाइनें उसके जीवन की ड्रॉइंग बना रही हों।
क्लास शुरू हुई – इंजीनियरिंग ग्राफिक्स का लेक्चर, टीचर बोर्ड पर ड्रॉइंग बना रहे थे, राहुल ध्यान से देखता, नोट्स लेता, हर लाइन को कॉपी करता, जैसे वो लाइनें उसके जीवन की ड्रॉइंग बना रही हों, और उसके मन में एक नई योजना बन रही थी – कॉलेज में अच्छे नंबर लाना, दोस्तों से मदद लेना, और जॉब में मेहनत करना। ब्रेक में प्रिया मिली – 18 साल की, अमीर घर से, आज पिंक टॉप और ब्लू जींस में, जो उसके शरीर को और आकर्षक बना रही थी, उसके बाल खुले, और मुस्कान जो राहुल को घर जैसा अपनापन दे रही थी, जैसे कोई बहन जो दोस्त बन गई हो। "राहुल, आज फिर अकेला? चल, कैंटीन में कॉफी पीते हैं," प्रिया ने कहा, उसकी आँखें उत्सुकता से चमक रही थीं, जैसे कोई दोस्ती की शुरुआत जो धीरे-धीरे गहरी हो रही हो। राहुल ने कहा, "हाँ प्रिया, चलो। लेकिन मैं कॉफी नहीं, चाय लूँगा।" प्रिया हँसी, "अरे गाँव वाला, चाय? ठीक है, मैं सिखा दूँगी कॉफी पीना।" दोनों कैंटीन गए – कैंटीन में भीड़ थी, छात्र हँसते-बोलते, कॉफी मशीन की आवाज़, और हवा में सैंडविच की महक। प्रिया ने कॉफी ली, राहुल ने चाय, और एक कोने की टेबल पर बैठे। प्रिया ने बात शुरू की, "राहुल, कल तूने गाँव की बात की थी। और बता, माँ क्या करती हैं?" राहुल ने हल्का बताया, "प्रिया, माँ गाँव में अकेली है। ठाकुर की हवेली में काम करती थी, लेकिन अब नहीं। गरीबी है, लेकिन मैं बदल दूँगा।" प्रिया की आँखें नम, "तू मजबूत है राहुल। मेरी लाइफ अमीर है, लेकिन घर में टेंशन। पापा हमेशा काम में, माँ डिप्रेस्ड। मैं पार्टी करती हूँ ताकि भूल जाऊँ।" राहुल ने सहानुभूति दिखाई, "प्रिया, जीवन हर जगह कठिन है। लेकिन दोस्त मदद करते हैं। मैं हूँ न।" प्रिया मुस्कुराई, "तू अच्छा है। कल शाम पार्टी है मेरे घर, आ। रिया भी आएगी।" राहुल ने हाँ कहा, लेकिन मन में सोचा, "सावधान रहना, सेक्स से दूर। गाँव की गलतियाँ नहीं दोहरानी।"
क्लास खत्म, शाम को प्रिया के घर गया – घर बड़ा, लग्ज़री, गेट पर गार्ड, अंदर बड़ा हॉल, म्यूजिक सिस्टम, और स्विमिंग पूल। पार्टी में 10-12 छात्र, डांस, ड्रिंक्स। प्रिया ने राहुल को इंट्रोड्यूस किया, "ये राहुल, मेरा नया दोस्त। गाँव से है लेकिन स्मार्ट।" रिया आई, "राहुल, कल की चाय वाली बात याद है? आज कॉफी ट्राई कर।" तीनों हँसे, डांस किया – राहुल ने गाँव का डांस स्टेप दिखाया, सब हँसे। प्रिया करीब आई, "राहुल, तू स्पेशल है।" लेकिन राहुल सीमा रखा, "प्रिया, दोस्त हूँ।" रात को लौटा, डायरी लिखी – पार्टी की मजा, दोस्ती की खुशी, माँ का फोन। "माँ, शहर अच्छा है। दोस्त मिले – प्रिया, रिया। तुम कब आओगी?" माँ टाली, "बेटा, गाँव में काम है। ठाकुर... वो धमकी दे रहा है, लेकिन मैं संभाल लूँगी। एक हफ्ते के लिए आऊँगी, लेकिन अभी नहीं।" राहुल दुखी, "माँ, क्यों टाल रही हो? क्या ठाकुर की आदत इतनी मजबूत हो गई है कि बिना उसके चुदे रह नहीं पाती? क्या वो अब मजा लेने लगी है उससे?" माँ चुप, "बेटा, जीवन है। चिंता मत कर।" राहुल रोया, लेकिन खुद को संभाला, "माँ, जल्दी बुला लूँगा।" भावनात्मक रूप से राहुल मजबूत हो रहा था – अकेलापन सता रहा था, लेकिन दोस्त ताकत दे रहे थे। रात को पढ़ाई की, किताबें खोली, और सोया – शहर की आवाज़ें नींद में बाधा, लेकिन सपने शहर के, माँ के साथ।
अगले दिन कॉलेज – प्रिया और रिया से मिला, बातें की, नोट्स शेयर। प्रिया ने कहा, "राहुल, शाम को कैफे चल।" कैफे में कॉफी, बातें – प्रिया ने अपना परिवार बताया, "पापा बिज़नेस में व्यस्त, माँ बीमार। मैं अकेली महसूस करती हूँ।" राहुल ने सांत्वना दी, "प्रिया, मैं हूँ न। दोस्त हूँ।" रिया ने कहा, "राहुल, तू अच्छा लगता है। गाँव की कहानी सुनाओ।" राहुल ने बताया, गरीबी, माँ की मेहनत, ठाकुर की क्रूरता। रिया की आँखें नम, "तू इंस्पायरिंग है। हम मदद करेंगी।" दोस्ती गहराई – शामें साथ, फिल्म देखी, घूमने गए। लेकिन राहुल सीमा रखता, "दोस्त हैं, कुछ और नहीं।" जॉब पर राधा से मिलना – काम, लेकिन राधा की नजरें। "राहुल, अच्छा काम। शाम को घर आ।" राहुल मना, "आंटी, पढ़ाई है।" लेकिन राधा ने जोर दिया, "एक बार आ।" राहुल गया, मसाज, फिर चुदाई – राधा wild, "ओह्ह्ह... राहुल... धीरे से दबा... उफ्फ्फ... कितना गर्म... आhhhh... चूस ले... Mmm... तेरी जीभ... मेरी चूत में... ओह्ह्ह... फाड़ दे... तेरा लंड कितना मोटा... आhhhh... चोद जोर से... Mmm... गांड में डाल... उफ्फ्फ... दुखता है लेकिन अच्छा... ओह्ह्ह... झड़ रही हूँ... रोज़ करवा..." राहुल guilt, लेकिन पैसे मिले, माँ को भेजे।
कॉलेज में नेहा मिली – 18 साल की, मॉडल टाइप, लंबे बाल, सेक्सी फिगर। "राहुल, ग्रुप में जॉइन कर।" राहुल ने हाँ कहा, दोस्ती शुरू। नेहा ने बातें की, "राहुल, तू सच्चा लगता है। गाँव की कहानी बता।" राहुल ने बताया, नेहा की आँखें चमकीं, "तू इंस्पायरिंग है।" दोस्ती गहराई, लेकिन राहुल सावधान – "दोस्त है, कुछ और नहीं।" शाम को जॉब, रात पढ़ाई। माँ से फोन, "बेटा, ठीक है?" राहुल, "माँ, आओ।" माँ टाली, "बेटा, अभी नहीं। ठाकुर... वो अब रोज़ बुलाता है। लेकिन मैं खुश हूँ।" राहुल दुखी, "माँ, क्यों?" लेकिन आगे बढ़ा। शहर की जिंदगी जारी, राहुल का विकास – नए दोस्त, पढ़ाई, और सपने। कहानी आगे।
अनपेक्षित ट्विस्ट – कॉलेज में एक दिन प्रिया ने बताया, "राहुल, मेरे पापा जानते हैं तेरे गाँव के ठाकुर को। बिज़नेस डील है।" राहुल स्तब्ध, "क्या? ठाकुर?" प्रिया ने कहा, "हाँ, लेकिन तू चिंता मत कर। मैं मदद करूँगी।" राहुल का मन उलझा, "ठाकुर शहर में भी पीछा कर रहा है?" भावनात्मक संघर्ष बढ़ा, लेकिन दोस्ती ताकत देती। 
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#33
Bhai repeat ho raha hai baar baar...atory achi h lekin ispe bhi dhyaan do
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#34
(08-09-2025, 06:47 PM)Yash121 Wrote: Bhai repeat ho raha hai baar baar...atory achi h lekin ispe bhi dhyaan do

Ok bro
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#35
Waiting for next update
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#36
Bhai update
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#37
Bhai ye story pe main abhi kaam nahi kr rha hu tu chahe to meri baki ki stories check out kr skta hai tab tak ke liye
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#38
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भाग 18: कॉलेज में नए दोस्त (दोस्ती की शुरुआत, साझा संघर्ष, और नई उम्मीदें)

दिल्ली शहर में राहुल का सफर अब कुछ हद तक स्थिर हो चला था, लेकिन हर दिन की तरह आज भी एक नई शुरुआत का एहसास था, जैसे शहर उसे लगातार नए रंग दिखा रहा हो। सुबह की ठंडी हवा कमरे की खिड़की से अंदर आ रही थी, बाहर की सड़कों पर ट्रैफिक की हॉर्न और लोगों की जल्दबाजी की आवाज़ें पहले से ही गूँज रही थीं। राहुल का छोटा सा लॉज का कमरा अब उसके लिए एक परिचित जगह बन चुका था – दीवारों पर हल्की नमी की वजह से थोड़ी सी फफूंद लगी हुई थी, बेड पर माँ की दी हुई पुरानी चादर बिछी हुई थी जो अभी भी घर की महक देती, और खिड़की से बाहर शहर की ऊँची बिल्डिंगों का नजारा दिख रहा था, जो रात में रोशनी से चमकतीं लेकिन दिन में बस एक व्यस्त दुनिया का हिस्सा लगतीं। राहुल बिस्तर पर लेटा रहा, उसकी आँखें छत पर टिकी हुई थीं, लेकिन मन कल की पार्टी की यादों में भटक रहा था – प्रिया और रिया के साथ वो पल जो मजेदार थे लेकिन guilt भी दे रहे थे। "प्रिया और रिया अच्छी दोस्त हैं, लेकिन लड़के दोस्त भी जरूरी हैं। कॉलेज में अकेला महसूस होता है," राहुल सोचता, और उसके मन में एक हल्की खालीपन था – गाँव में दोस्त थे, लेकिन यहां सब नया। वो उठा, खिड़की से बाहर देखा – शहर की सड़कें व्यस्त थीं, लोग अपने काम पर जा रहे थे, कुछ स्ट्रीट वेंडर चाय बेच रहे थे, उनकी केतलियों से भाप उठ रही थी, और हवा में धुँए और खाने की महक मिली हुई थी, जैसे शहर की सांस जो कभी रुकती नहीं। "आज कॉलेज में देखूँगा, शायद नए लोग मिलें। पढ़ाई पर फोकस रखना है," राहुल सोचता, और उसके मन में एक हल्की उम्मीद जागी – नई दोस्ती जो शायद उसे शहर में अपनापन दे।
राहुल ने अपनी रूटीन शुरू की – कमरे में ही एक्सरसाइज की, पुशअप्स जहां उसके कंधे दर्द करते लेकिन मजबूत होते, सिटअप्स जो उसके पेट की मसल्स को कसते, और स्ट्रेचिंग जो उसके शरीर को लचीला बनाती, जैसे हर एक्सरसाइज उसे शहर की कठोरता से लड़ने के लिए तैयार कर रही हो। "शरीर मजबूत रहेगा तो मन भी मजबूत रहेगा," वो सोचता, और पसीना बहते हुए भी मुस्कुराता, क्योंकि physically वो अब अपनी सीमाओं को पार कर रहा था। नहाकर तैयार हुआ – सफेद शर्ट जो अब शहर की धूल से थोड़ी मैली हो गई थी, नीली पैंट जो गाँव से लाया था, और बैग में किताबें, नोटबुक, और डायरी जो उसके सपनों का साथी थी। लॉज के नीचे दुकान से चाय ली, गरम चाय की सिप लेते हुए सोचा, "माँ की चाय जैसी नहीं, लेकिन यहां की चाय में शहर का स्वाद है – तेज़, मसालेदार, और जीवन की तरह।" कॉलेज की ओर निकला – बस पकड़ी, भीड़ में खड़ा रहा, जहां लोग धक्का देते, कुछ लोग फोन पर बात करते, कुछ अखबार पढ़ते, लेकिन राहुल ने खुद को संभाला, "शहर है, आदत डालनी होगी।" बस से उतरकर कॉलेज पहुँचा – बड़ा गेट जहां छात्रों की भीड़ थी, लड़के-लड़कियाँ हँसते-बोलते, कुछ ग्रुप में गॉसिप करते, कुछ कैंटीन की ओर जा रहे। राहुल क्लासरूम में गया, अपनी सीट पर बैठा, मन में कल की पार्टी की याद – प्रिया और रिया की कराहें जो अभी भी उसके कानों में गूँज रही थीं, लेकिन वो खुद को रोकता, "दोस्त हैं, कुछ और नहीं।"
लेक्चर शुरू हुआ – मैथ्स का, टीचर इंटीग्रेशन समझा रहे थे, राहुल ध्यान से सुना, नोट्स लिए, हर फॉर्मूला को समझने की कोशिश की, जैसे गाँव में कॉलेज के दिनों की तरह लेकिन अब दांव बड़ा था। ब्रेक में प्रिया और रिया मिलीं – प्रिया आज व्हाइट टॉप और शॉर्ट्स में, जो उसके गोरे पैरों को उघाड़ रही थी, और रिया ब्लैक ड्रेस में, शरारती मुस्कान के साथ। "राहुल, कल पार्टी मजेदार थी न? फिर करेंगे," प्रिया ने कहा, उसकी आँखें चमक रही थीं। राहुल मुस्कुराया, "हाँ, लेकिन पढ़ाई पहले।" रिया ने चिढ़ाया, "अरे, लड़के दोस्त भी बना। क्लास में आकाश और वसंत हैं, अच्छे हैं। मिला?" राहुल ने ना कहा, "कौन हैं?" रिया ने बताया, "आकाश अमीर है, पापा का बिज़नेस, लेकिन लड़का अच्छा है, हेल्पफुल। वसंत ठीक-ठाक फैमिली से, लेकिन स्मार्ट। ग्रुप में ले लें?" राहुल ने हाँ कहा, "चलो मिलाते हैं।" ब्रेक में तीनों कैंटीन गए – वहाँ आकाश और वसंत बैठे थे। आकाश 19 साल का, अमीर घर से, महँगे कपड़े, घड़ी, लेकिन चेहरा सौम्य – काले बाल, गोरा रंग, और मुस्कान जो दोस्ताना लगती। वसंत 18 साल का, ठीक-ठाक फैमिली से, साधारण शर्ट-पैंट, लेकिन आँखें चालाक – भूरे बाल, साँवला रंग, और बातें स्मार्ट। रिया ने इंट्रोड्यूस किया, "ये राहुल, गाँव से नया आया।" आकाश ने हाथ मिलाया, "राहुल, वेलकम। मैं आकाश, पापा का बिज़नेस है, लेकिन मैं इंजीनियरिंग में इंटरेस्टेड हूँ। तू कहाँ से?" राहुल ने बताया, "रामपुर गाँव से, गरीब घर, लेकिन सपने बड़े।" आकाश ने सहानुभूति दिखाई, "भाई, मैं मदद करूँगा। नोट्स, किताबें, जो चाहिए बता। अमीर हूँ लेकिन दिल अच्छा है, कोई दिखावा नहीं।" वसंत मुस्कुराया, "मैं वसंत, ठीक-ठाक फैमिली, पापा सरकारी जॉब में। पढ़ाई पर फोकस है, लेकिन मजा भी करता हूँ। राहुल, तू स्मार्ट लगता है।" राहुल ने बातें की, "धन्यवाद भाई। गाँव में दोस्त थे, यहां अकेला था।" तीनों ने लंच शेयर किया, बातें – आकाश ने अपना घर बताया, बड़ा लेकिन अकेलापन, "पैसे हैं लेकिन दोस्त कम।" वसंत ने कहा, "मैं मिडल क्लास, लेकिन खुश।" राहुल ने अपना संघर्ष बताया, माँ की मेहनत, ठाकुर की क्रूरता। आकाश ने कहा, "राहुल, मैं हेल्प करूँगा। माँ को यहां बुला, जॉब मिलवा दूँगा।" दोस्ती की शुरुआत – हँसी, मजाक, और अपनापन।
अगले दिन कॉलेज – आकाश और वसंत से फिर मिला, क्लास में साथ बैठे। आकाश ने नोट्स दिए, "राहुल, ले। मैं अच्छा पढ़ता हूँ।" वसंत ने चिढ़ाया, "आकाश अमीर है, लेकिन लंच मैं लाया हूँ।" तीनों ने लंच किया, बातें – आकाश ने पार्टी प्लान की, "कल शाम कैफे चलें।" राहुल ने हाँ कहा, "चलो, लेकिन साधारण।" शाम को कैफे – कॉफी, सैंडविच। आकाश ने अपना जीवन बताया, "पापा बिज़नेसमैन, लेकिन मैं अलग बनना चाहता हूँ। इंजीनियरिंग से स्टार्टअप।" वसंत ने कहा, "मैं सरकारी जॉब करूँगा, लेकिन सपने हैं।" राहुल ने अपना गाँव बताया, "गरीबी देखी, लेकिन मजबूत बना।" दोस्ती गहराई – आकाश ने मदद ऑफर की, "राहुल, पैसों की जरूरत हो तो बता।" राहुल ने मना किया, "भाई, दोस्ती काफी है।" तीसरे दिन कॉलेज – ग्रुप प्रोजेक्ट, तीनों साथ। आकाश ने आईडिया दिया, वसंत ने कैलकुलेशन, राहुल ने हार्डवर्क। शाम को आकाश के घर – बड़ा घर, लेकिन सादा। आकाश ने कहा, "राहुल, यहां रह सकता है, लेकिन मैं जानता हूँ तू इंडिपेंडेंट है।" बातें लंबी, हँसी, और अपनापन। चौथे दिन जॉब के बाद मिले, वसंत ने कहा, "राहुल, तू मजबूत है। हम साथ हैं।" तीनों की दोस्ती पक्की – संघर्ष शेयर, सपने साझा, और शहर में अपनापन। राहुल ने डायरी लिखी, "नए दोस्त मिले, आकाश और वसंत। अब अकेला नहीं। लेकिन माँ की याद सता रही।" कहानी आगे बढ़ी, राहुल का विकास जारी।


दिल्ली शहर में राहुल का सफर अब कुछ हद तक सहज हो चला था, लेकिन हर सप्ताहांत एक नई ऊर्जा लेकर आता था, जैसे शहर उसे दोस्तों के माध्यम से अपनाने की कोशिश कर रहा हो। शाम की हल्की ठंडी हवा कमरे की खिड़की से अंदर आ रही थी, बाहर की सड़कों पर ट्रैफिक की लाइटें चमक रही थीं, और दूर से मेट्रो की आवाज़ सुनाई दे रही थी, जैसे शहर कभी सोता ही नहीं। राहुल का छोटा सा लॉज का कमरा अब उसके लिए एक आराम की जगह बन चुका था – दीवारों पर अब कुछ पोस्टर्स लगे थे जो कॉलेज से मिले थे, बेड पर माँ की चादर अभी भी घर की याद दिलाती, और खिड़की से बाहर शहर की व्यस्तता दिख रही थी, जो रात में और चमकदार लगती। राहुल बिस्तर पर लेटा रहा, उसकी आँखें अपनी डायरी पर टिकी हुई थीं, लेकिन मन कल शाम आकाश और वसंत के साथ कैफे में बिताए समय में भटक रहा था – आकाश की मदद की बातें, वसंत की स्मार्ट टिप्स, और तीनों की हँसी जो उसे गाँव के दोस्तों की याद दिला रही थी। "आकाश अमीर है लेकिन अच्छा इंसान, वसंत जैसे मैं, संघर्ष समझता है। अब अकेला नहीं लगता," राहुल सोचता, और उसके मन में एक हल्की खुशी थी – दोस्ती जो अब उसकी जिंदगी का हिस्सा बन रही थी, लेकिन साथ ही माँ की याद जो अभी भी सता रही थी। वो उठा, खिड़की से बाहर देखा – शहर की सड़कें अब रात की रोशनी से जगमगा रही थीं, लोग घर लौट रहे थे, कुछ फूड स्टॉल पर चाट खाते हुए – और हवा में मसालों की महक मिली हुई थी, जैसे शहर की रातें कभी शांत नहीं होतीं। "कल आकाश ने आउटिंग प्लान की है, कहीं घूमने। अच्छा लगेगा," राहुल सोचता, और उसके मन में एक उत्साह था – नई जगहें देखना, दोस्तों के साथ समय बिताना, और शहर को बेहतर समझना।
राहुल ने अपनी शाम की रूटीन पूरी की – कमरे में एक्सरसाइज की, पुशअप्स जहां उसके कंधे अब पहले से ज्यादा सहनशील हो चुके थे, सिटअप्स जो उसके पेट की मसल्स को और कसते, और स्ट्रेचिंग जो उसके शरीर को तैयार रखती, जैसे हर वर्कआउट उसे शहर की रफ्तार से मैच करने के लिए मजबूत बना रहा हो। "अब जिम जॉइन करने का समय है, आकाश से पूछूँगा," वो सोचता, और पसीना पोंछते हुए मुस्कुराता, क्योंकि physically वो अब खुद पर गर्व महसूस कर रहा था। शाम को जॉब पर गया – राधा की दुकान, सामान बेचा, ग्राहकों से बातें की, और राधा की नजरों से बचा, "आंटी, काम अच्छा है। लेकिन सिर्फ जॉब," वो सोचता। जॉब खत्म कर लौटा, माँ को फोन किया – "माँ, कैसी हो? आ जाओ न अब," राहुल ने कहा। सुमन की आवाज थकी हुई, "बेटा, गाँव में व्यस्त हूँ। ठाकुर... वो अब रोज आता है, लेकिन मैं संभाल लूँगी। तू पढ़ाई कर।" राहुल का दिल दुखा, "माँ, क्यों नहीं छोड़तीं उससे? मैं पैसे भेजता हूँ।" सुमन चुप, "बेटा, अब आदत हो गई है। चिंता मत कर।" फोन रखकर राहुल ने डायरी में लिखा: "माँ की मजबूरी सताती है, लेकिन दोस्तों से ताकत मिल रही है। कल आउटिंग है, मजा आएगा। सपने मत भूल – इंजीनियर बनना, माँ को ले आना।" रात को पढ़ाई की, किताबें खोली, और सोया – शहर की आवाज़ें अभी भी नींद में बाधा डालतीं, लेकिन अब आदत हो रही थी।
अगला दिन – कॉलेज में आकाश और वसंत से मिला, क्लास में साथ बैठे। आकाश ने कहा, "राहुल, आज शाम आउटिंग – इंडिया गेट चलें, फिर डिनर। मैं कार लाऊँगा।" वसंत ने जोड़ा, "हाँ भाई, मजा आएगा। प्रिया और रिया को भी बुलाया?" राहुल ने हँसा, "नहीं, लड़कों की आउटिंग।" क्लास खत्म, शाम को मिले – आकाश की कार लग्जरी, लेकिन वो सादा ड्राइव करता। तीनों निकले – ट्रैफिक में बातें, आकाश ने अपना परिवार बताया, "पापा सख्त हैं, लेकिन मैं अलग रास्ता चुन रहा हूँ। स्टार्टअप करना चाहता हूँ।" वसंत ने कहा, "मैं सरकारी जॉब करूँगा, लेकिन सपने हैं – ट्रैवल करना।" राहुल ने अपना गाँव बताया, "गरीबी देखी, माँ की मेहनत। लेकिन अब शहर में सपने पूरे करूँगा।" इंडिया गेट पहुँचे – शाम की रोशनी में स्मारक चमक रहा था, लोग घूमते, आइसक्रीम वाले चिल्लाते। तीनों घूमे, फोटो लिए, हँसे – आकाश ने आइसक्रीम खरीदी, "भाई, मेरा ट्रीट।" वसंत ने चुटकुले सुनाए, "राहुल, गाँव में ट्रेन में चढ़ते कैसे थे?" राहुल हँसा, "भाई, धक्का मारकर।" दोस्ती गहराई – साझा हँसी, अनुभव शेयर। फिर डिनर – एक छोटा रेस्टोरेंट, चिकन करी, रोटी। आकाश ने कहा, "राहुल, अगर पैसों की जरूरत हो तो बता। मैं हेल्प करूँगा, लेकिन दोस्त की तरह।" राहुल ने शुक्रिया कहा, "भाई, तुम्हारी दोस्ती काफी है।" वसंत ने कहा, "हम तीनों साथ रहेंगे, सपने पूरे करेंगे।" शाम अच्छी बीती, राहुल लॉज लौटा, खुश लेकिन माँ की याद में दुखी। डायरी लिखी – "नए दोस्तों के साथ अच्छा लगा। आकाश और वसंत भाई जैसे। लेकिन माँ... जल्दी बुलाऊँगा।

दिल्ली शहर में राहुल का जीवन अब धीरे-धीरे एक पैटर्न में ढल रहा था, लेकिन हर नई घटना उसे याद दिलाती कि जीवन अप्रत्याशित है। सुबह की हल्की ठंडी हवा कमरे की खिड़की से अंदर आ रही थी, बाहर की सड़कों पर ट्रैफिक की हॉर्न और लोगों की जल्दबाजी की आवाज़ें पहले से ही गूँज रही थीं। राहुल का छोटा सा लॉज का कमरा अब उसके लिए एक आरामदायक जगह बन चुका था – दीवारों पर अब कुछ पोस्टर्स लगे थे जो कॉलेज से मिले थे, बेड पर माँ की चादर अभी भी घर की महक देती, और खिड़की से बाहर शहर की व्यस्तता दिख रही थी, जो रात में रोशनी से चमकती लेकिन दिन में बस एक व्यस्त दुनिया का हिस्सा लगती। राहुल बिस्तर पर लेटा रहा, उसकी आँखें छत पर टिकी हुई थीं, लेकिन मन कल शाम आकाश और वसंत के साथ बिताए समय में भटक रहा था – आकाश की मदद की बातें, वसंत की स्मार्ट टिप्स, और तीनों की हँसी जो उसे गाँव के दोस्तों की याद दिला रही थी। "आकाश और वसंत अच्छे दोस्त हैं, लेकिन प्रिया और रिया के साथ भी बैलेंस रखना है। आज कॉलेज में क्या होगा?" राहुल सोचता, और उसके मन में एक हल्की उत्सुकता थी – दोस्ती जो अब उसकी जिंदगी का हिस्सा बन रही थी, लेकिन साथ ही माँ की याद जो अभी भी सता रही थी। वो उठा, खिड़की से बाहर देखा – शहर की सड़कें व्यस्त थीं, लोग अपने काम पर जा रहे थे, कुछ स्ट्रीट वेंडर चाय बेच रहे थे, उनकी केतलियों से भाप उठ रही थी, और हवा में मसालों की महक मिली हुई थी, जैसे शहर की रातें कभी शांत नहीं होतीं। "आज आकाश ने ग्रुप प्रोजेक्ट मीटिंग बुलाई है, प्रिया और रिया भी आएंगी। अच्छा लगेगा सबके साथ," राहुल सोचता, और उसके मन में एक उत्साह था – नई दोस्ती जो उसे शहर में अपनापन दे रही थी।
राहुल ने अपनी रूटीन शुरू की – कमरे में ही एक्सरसाइज की, पुशअप्स जहां उसके कंधे अब पहले से ज्यादा सहनशील हो चुके थे, सिटअप्स जो उसके पेट की मसल्स को और कसते, और स्ट्रेचिंग जो उसके शरीर को तैयार रखती, जैसे हर वर्कआउट उसे शहर की रफ्तार से मैच करने के लिए मजबूत बना रहा हो। "अब जिम जॉइन करने का समय है, आकाश से पूछूँगा," वो सोचता, और पसीना पोंछते हुए मुस्कुराता, क्योंकि physically वो अब खुद पर गर्व महसूस कर रहा था। नहाकर तैयार हुआ – सफेद शर्ट जो अब शहर की धूल से थोड़ी मैली हो गई थी, नीली पैंट जो गाँव से लाया था, और बैग में किताबें, नोटबुक, और डायरी जो उसके सपनों का साथी थी। लॉज के नीचे दुकान से चाय ली, गरम चाय की सिप लेते हुए सोचा, "माँ की चाय जैसी नहीं, लेकिन यहां की चाय में शहर का स्वाद है – तेज़, मसालेदार, और जीवन की तरह।" कॉलेज की ओर निकला – बस पकड़ी, भीड़ में खड़ा रहा, जहां लोग धक्का देते, कुछ लोग फोन पर बात करते, कुछ अखबार पढ़ते, लेकिन राहुल ने खुद को संभाला, "शहर है, आदत डालनी होगी।" कॉलेज पहुँचा – बड़ा गेट जहां छात्रों की भीड़ थी, लड़के-लड़कियाँ हँसते-बोलते, कुछ ग्रुप में गॉसिप करते, कुछ कैंटीन की ओर जा रहे। राहुल क्लासरूम में गया, अपनी सीट पर बैठा, मन में कल की पार्टी की याद – प्रिया और रिया की कराहें जो अभी भी उसके कानों में गूँज रही थीं, लेकिन वो खुद को रोकता, "दोस्त हैं, कुछ और नहीं।"
लेक्चर शुरू हुआ – इंजीनियरिंग ड्रॉइंग का, टीचर बोर्ड पर डायग्राम बना रहे थे, राहुल ध्यान से सुना, नोट्स लिए, हर डिटेल को कॉपी किया, जैसे गाँव में कॉलेज के दिनों की तरह लेकिन अब दांव बड़ा था। ब्रेक में आकाश और वसंत मिले – आकाश आज कैजुअल टी-शर्ट में, जो उसके अमीर बैकग्राउंड को छिपाने की कोशिश कर रही थी, और वसंत साधारण शर्ट में, स्मार्ट लुक के साथ। "राहुल, आज शाम प्रोजेक्ट मीटिंग है। प्रिया और रिया भी आएंगी," आकाश ने कहा, उसकी मुस्कान दोस्ताना। राहुल ने हाँ कहा, "चलो, कैंटीन में प्लान करें।" कैंटीन में प्रिया और रिया भी आईं – प्रिया आज ब्लू जींस और व्हाइट टॉप में, जो उसके फिगर को हाइलाइट कर रही थी, और रिया शॉर्ट ड्रेस में, शरारती अंदाज़ में। पाँचों बैठे, प्रोजेक्ट पर डिस्कस – आकाश ने आईडिया दिया, "ये मॉडल बनाएंगे, मैं मटेरियल लाऊँगा।" वसंत ने कैलकुलेशन किया, "ये फॉर्मूला यूज करेंगे।" राहुल ने हार्डवर्क ऑफर किया, "मैं ड्रॉइंग बनाऊँगा।" प्रिया ने मुस्कुराकर कहा, "आकाश, तू हमेशा लीड करता है। अच्छा है।" राहुल ने नोटिस किया – आकाश की नजरें प्रिया पर थोड़ी ज्यादा टिक रही थीं, उसकी मुस्कान जब प्रिया बोलती तो और चौड़ी हो जाती, और वो प्रिया की हर बात पर सहमत होता। "क्या आकाश प्रिया को पसंद करता है?" राहुल सोचता, लेकिन कुछ नहीं कहा। मीटिंग खत्म, शाम को आकाश ने कहा, "राहुल, चल साथ रुक।" दोनों कैंटीन से बाहर निकले, आकाश ने राहुल से कहा, "भाई, प्रिया अच्छी लड़की है न? वो कैसी लगती है?" राहुल चौंका, "हाँ भाई, अच्छी दोस्त है। क्यों?" आकाश शर्मा गया, "बस यूं ही। वो मुझे पसंद है। लेकिन बताना मत।" राहुल स्तब्ध, "भाई, सच? वो अच्छी है, लेकिन रिया भी है।" आकाश ने बताया, "हाँ, पहली नजर में पसंद आ गई। लेकिन अमीर घर से है, मैं भी, लेकिन डर लगता है। तू मदद कर, बात करवा।" राहुल ने हाँ कहा, "भाई, दोस्त हूँ। लेकिन धीरे से।" राहुल का मन उलझा – "आकाश अच्छा लड़का है, प्रिया को सूट करेगा। लेकिन मैं क्या करूँ?"
अगले दिन कॉलेज – राहुल ने प्रिया से बात की, "प्रिया, आकाश कैसा लगता है?" प्रिया हँसी, "अच्छा है, अमीर लेकिन सादा। क्यों?" राहुल ने बताया, "वो तुझे पसंद करता है।" प्रिया चौंकी, लेकिन मुस्कुराई, "सच? वो अच्छा है। देखते हैं।" दोस्ती में नया ट्विस्ट – आकाश खुश, राहुल ने मदद की। शाम को ग्रुप में हँसी, लेकिन राहुल सोचता, "दोस्ती मजबूत हो रही है।" माँ को फोन, "बेटा, ठीक है?" राहुल, "माँ, आओ।" माँ टाली, "अभी नहीं।" राहुल दुखी, लेकिन दोस्तों से ताकत।


भाग 21: माँ से दूरी और आकाश की मदद (भावनात्मक फैसला, दोस्ती की मजबूती, और प्रिया की ओर पहला कदम)
दिल्ली शहर में राहुल का जीवन अब तेज़ रफ्तार से चल रहा था, लेकिन अंदर से एक तूफान था जो थमने का नाम नहीं ले रहा था। रात की गहराई में कमरे की खिड़की से बाहर की रोशनी अंदर छन रही थी, सड़कों पर कारों की आवाज़ें अभी भी गूँज रही थीं, और दूर से किसी बार की म्यूजिक की धुन सुनाई दे रही थी, जैसे शहर कभी सोता ही नहीं। राहुल का छोटा सा लॉज का कमरा अब उसके लिए एक अकेलेपन की जगह बन चुका था – दीवारों पर पोस्टर्स अब फीके लग रहे थे, बेड पर माँ की चादर अभी भी थी लेकिन उसकी महक कम हो रही थी, और खिड़की से बाहर शहर की व्यस्तता दिख रही थी जो अब बोझ लगने लगी थी। राहुल बिस्तर पर लेटा रहा, उसकी आँखें फोन पर टिकी हुई थीं, लेकिन मन माँ सुमन की आखिरी कॉल में अटका था – "बेटा, मैं ठीक हूँ। ठाकुर अब मेरी जिंदगी का हिस्सा है। तू चिंता मत कर, अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे।" राहुल का दिल टूट रहा था, "माँ, क्यों खुद को ठाकुर की गिरफ्त में रख रही हो? क्या वो मजबूरी अब मजा बन गई है?" ये सोच उसे रुला देती, लेकिन अब वो थक चुका था – रोज़ की चिंता, guilt, और दूर से कुछ न कर पाने की बेबसी। "बस, अब माँ को उसके भरोसे छोड़ देता हूँ। वो खुद चुन रही है, मैं क्यों खुद को मारता रहूँ?" राहुल ने फैसला किया, और फोन बंद कर दिया – आज से कॉल बंद, माँ की जिंदगी उसकी, अपनी जिंदगी अपनी। वो उठा, खिड़की से बाहर देखा – शहर की रातें व्यस्त थीं, लोग अपनी दुनिया में मस्त, और हवा में ठंडक मिली हुई थी, जैसे शहर कह रहा हो, "आगे बढ़।" "अब सिर्फ खुद पर फोकस, सपने पूरे करूँगा, माँ को जबरदस्ती नहीं बुलाऊँगा," राहुल सोचता, और उसके मन में एक हल्की आजादी का एहसास था – दुख था, लेकिन बोझ कम हो रहा था।
राहुल ने अपनी रूटीन जारी रखी – सुबह एक्सरसाइज, कॉलेज जाना, जॉब पर फोकस। लेकिन अब माँ की कॉल बंद – पहले रोज़ फोन करता, अब नहीं। "माँ खुद चुनेगी, मैं अपनी जिंदगी बनाऊँगा," वो सोचता। कॉलेज में आकाश और वसंत से मिला – आकाश आज ब्लू शर्ट में, अमीर लेकिन सादा, और वसंत कैजुअल में, स्मार्ट लुक के साथ। "राहुल, आज शाम प्रोजेक्ट खत्म करेंगे। प्रिया भी आएगी," आकाश ने कहा, उसकी आँखों में प्रिया का नाम लेते ही चमक। राहुल ने नोटिस किया, "भाई, प्रिया को पसंद करता है, मदद करनी चाहिए।" क्लास में साथ बैठे, प्रोजेक्ट पर काम – आकाश ने आईडिया दिया, वसंत ने कैलकुलेशन, राहुल ने ड्रॉइंग। प्रिया आई, "गाइज, अच्छा काम।" आकाश शर्मा गया, प्रिया की तरफ देखता रहा। राहुल ने मौका देखा, प्रिया से अलग बात की, "प्रिया, आकाश अच्छा लड़का है। वो तुझे पसंद करता है, लेकिन कहने से डरता है।" प्रिया हँसी, "सच? वो क्यूट है। लेकिन मैं अभी रेडी नहीं, दोस्ती से शुरू करेंगे।" राहुल ने आकाश को बताया, "भाई, प्रिया को पता चल गया। वो इंटरेस्टेड है, लेकिन धीरे से।" आकाश खुश, "थैंक्स राहुल, तू सच्चा दोस्त है। क्या करूँ अब?" राहुल ने सलाह दी, "भाई, पहले बातें बढ़ा। कैफे ले जा, हेल्प कर उसकी। मैं ग्रुप में हेल्प करूँगा।" आकाश ने गले लगाया, "तू भाई है।"
अगले दिन कॉलेज – राहुल ने प्लान बनाया, ग्रुप में कैफे जाने का। प्रिया और रिया भी आईं। कैफे में बैठे, कॉफी ऑर्डर की। राहुल ने आकाश को सिग्नल दिया, आकाश ने प्रिया से बात शुरू की, "प्रिया, तू अच्छी पढ़ती है। हेल्प चाहिए तो बता।" प्रिया मुस्कुराई, "हाँ आकाश, थैंक्स। तू अमीर है लेकिन सादा लगता है।" आकाश शर्मा गया, लेकिन बातें चलीं – हॉबीज, फिल्में, सपने। राहुल ने मदद की, "प्रिया, आकाश का स्टार्टअप आईडिया अच्छा है। सुन।" प्रिया इंटरेस्टेड, "बताओ आकाश।" आकाश ने बताया, प्रिया की आँखें चमकीं, "वाह, इम्प्रेसिव।" दोस्ती में रोमांस की शुरुआत – आकाश खुश, राहुल ने देखा, "अच्छा लग रहा।" वसंत ने चिढ़ाया, "आकाश, अब तो डेट पर ले जा।" सब हँसे। शाम अच्छी बीती, राहुल लौटा, डायरी लिखी – "माँ से दूरी बनाई, दुख है लेकिन जरूरी। आकाश की मदद की, प्रिया को पटाने में। दोस्ती मजबूत।

दिल्ली शहर में राहुल का जीवन अब दोस्तों की वजह से थोड़ा रंगीन हो चला था, लेकिन हर मीटिंग में कुछ न कुछ सरप्राइज छिपा होता था, जैसे शहर की गलियाँ जहाँ हर मोड़ पर नई कहानी मिलती है। शाम की हल्की ठंडक अब बढ़ रही थी, सूरज डूबने की कगार पर था, और सड़कों पर कैफे की लाइटें चालू हो चुकी थीं, जहाँ युवा ग्रुप्स हँसते-बोलते बैठे थे। राहुल का लॉज का कमरा अब उसके लिए एक रेस्टिंग प्लेस था – दीवारों पर कॉलेज के पोस्टर्स, बेड पर किताबें बिखरी हुईं, और खिड़की से बाहर कैफे की भीड़ दिख रही थी, जो उसे बाहर निकलने का न्योता दे रही थी। राहुल तैयार हो रहा था, उसकी आँखें फोन पर टिकी हुई थीं, लेकिन मन कल शाम आकाश की बातों में था – "भाई, प्रिया को पता चल गया है, अब क्या करूँ?" राहुल मुस्कुराया, "आकाश अच्छा लड़का है, प्रिया के लिए परफेक्ट। आज कॉफी पर प्लान है, मदद करूँगा।" वो उठा, शर्ट-पैंट पहनी, बैग कंधे पर लटकाया, और बाहर निकला – शहर की सड़कें व्यस्त थीं, ऑटो की हॉर्न, लोग जल्दी में, और हवा में कॉफी की महक मिली हुई थी, जैसे शाम की शुरुआत हो रही हो। "आज सभी दोस्त मिलेंगे – आकाश, वसंत, प्रिया, रिया। मजा आएगा," राहुल सोचता, और उसके मन में एक हल्की उत्साह था – दोस्ती जो अब उसकी जिंदगी का हिस्सा बन रही थी, लेकिन साथ ही माँ की याद जो कम हो रही थी, क्योंकि अब कॉल बंद कर चुका था।
राहुल कैफे पहुँचा – एक छोटा लेकिन ट्रेंडी कैफे, जहाँ लाइटें डिम थीं, म्यूजिक सॉफ्ट बज रहा था, और टेबल्स पर युवा ग्रुप्स कॉफी की सिप लेते हुए बातें कर रहे थे। आकाश पहले से वहाँ था, उसकी आँखें दरवाजे पर टिकी हुई थीं, जैसे प्रिया का इंतज़ार कर रहा हो। "राहुल, आ गया भाई! वसंत, रिया, प्रिया भी आ रही हैं," आकाश ने कहा, उसकी मुस्कान थोड़ी नर्वस। राहुल बैठा, "भाई, रिलैक्स। आज प्लान है – हम कुछ बहाना बनाकर तुम्हें और प्रिया को अकेला छोड़ देंगे।" आकाश खुश, "थैंक्स राहुल, तू सच्चा दोस्त है।" थोड़ी देर बाद वसंत आया – साधारण शर्ट में, स्मार्ट लुक के साथ, "क्या बात है भाइयों, आज कॉफी पार्टी?" फिर रिया और प्रिया आईं – प्रिया आज कैजुअल ड्रेस में, जो उसके फिगर को हाइलाइट कर रही थी, और रिया शॉर्ट्स में, शरारती मुस्कान के साथ। सब बैठे, कॉफी ऑर्डर की – लट्टे, कैपुचिनो, और स्नैक्स। बातें शुरू हुईं – कॉलेज की गॉसिप, प्रोजेक्ट, और हँसी-मजाक। राहुल ने प्लान अमल किया, वसंत और रिया को इशारा किया, "यार, मुझे घर पर कुछ काम याद आ गया। एक घंटे में वापस आता हूँ। वसंत, रिया, तुम लोग चलो मेरे साथ, बाहर छोड़ दो।" वसंत और रिया समझ गए, "हाँ राहुल, चल।" आकाश और प्रिया अकेले रह गए, आकाश की आँखें चमक रही थीं, "प्रिया, अब बात करें?" राहुल बाहर निकला, वसंत और रिया से कहा, "तुम लोग कैफे में रुको, मैं काम निपटाकर आता हूँ।" लेकिन राहुल को सच में घर पर कुछ सामान लेना था, वो लॉज गया, एक घंटा बीता, और वापस कैफे की ओर चला।
कैफे पहुँचकर राहुल अंदर गया – भीड़ कम हो चुकी थी, लेकिन आकाश और प्रिया की टेबल पर नजर पड़ी। वो स्तब्ध रह गया – आकाश और प्रिया करीब बैठे थे, आकाश ने प्रिया का हाथ पकड़ा था, और अचानक आकाश ने प्रिया को किस कर लिया – होंठ मिले, प्रिया की आँखें बंद, और दोनों का पल रोमांटिक लग रहा था। राहुल खुश हो गया, "वाह, हो गया काम। आकाश अब खुश होगा।" वो मुस्कुराया, लेकिन कुछ नहीं कहा, चुपके से टेबल की ओर जाने की बजाय बाथरूम की तरफ चला – "पहले फ्रेश हो लूँ।" बाथरूम के पास पहुँचा, लेकिन अंदर से अजीब आवाज़ें आ रही थीं – "आआह्ह्ह्ह... ओओओह्ह्ह्ह... हाँ... फाड़ दे वसंत..." राहुल का दिमाग हिल गया, "ये क्या? वसंत?" वो अंदर गया, बाथरूम बड़ा था, कई स्टॉल्स, लेकिन एक स्टॉल से आवाज़ें – "उफ्फ... जोर से... आआह्ह्ह्ह... मेरी चूत... ओओओह्ह्ह्ह... कितना बड़ा... फाड़ दे... हाँ... और तेज़..." राहुल समझ गया – वसंत और रिया? "ये कब हुआ? दोनों कब इतने करीब आ गए?" उसका दिमाग सुन्न हो गया, वो बाहर निकल आया, दिल तेज़ धड़क रहा था। "वसंत और रिया... पार्टी में कुछ तो था, लेकिन इतना जल्दी?" वो खुश था आकाश और प्रिया के लिए, लेकिन ये ट्विस्ट चौंकाने वाला था। टेबल पर वापस गया, प्रिया और आकाश अभी भी करीब थे। "सॉरी यार, काम था," राहुल ने कहा। आकाश मुस्कुराया, "नो प्रॉब्लेम भाई। प्रिया और मैं... अब ऑफिशियल हैं। जीएफ-बीएफ।" प्रिया शर्मा कर बोली, "हाँ राहुल, थैंक्स तेरी वजह से।" राहुल खुश, "कांग्रेचुलेशंस! डिज़र्व करते हो दोनों।"
राहुल ने किसी को कुछ नहीं बताया, लेकिन मन में सवाल थे – "वसंत और रिया को अलग-अलग पूछूँगा। ये कब शुरू हुआ?" अगले दिन कॉलेज में वसंत से अकेले बात की, "भाई, कल बाथरूम में... रिया के साथ?" वसंत चौंका, लेकिन हँसा, "भाई, पता चल गया? पार्टी से शुरू हुआ, वो बोल्ड है, मैं भी। लेकिन सीक्रेट रख।" फिर रिया से, "रिया, वसंत के साथ?" रिया मुस्कुराई, "हाँ राहुल, वो अच्छा है। मजा आता है। लेकिन किसी को मत बताना।" राहुल ने हाँ कहा, "दोस्त हूँ, रखूँगा।" दोस्ती मजबूत रही, आकाश-प्रिया का रोमांस बढ़ा, राहुल ने मदद की। माँ से दूरी बनी रही, राहुल फोकस – पढ़ाई, जॉब, और सपने।
Fuckuguy
albertprince547;
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#39
Zabardast update...bhai abhi bhi lines repeat ho rahi n
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#40
(17-09-2025, 06:02 PM)Yash121 Wrote: Zabardast update...bhai abhi bhi lines repeat ho rahi n

Try krunga bhai ki aage ke parts main na ho aisa kuch
Fuckuguy
albertprince547;
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