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Incest राहुल का कामुक सफर - गरीबी की छाया से शहर की चमक तक
#1
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राहुल का कामुक सफर - गरीबी की छाया से शहर की चमक तक  भाग 1

मुख्य पात्रों का विस्तृत परिचय

इस कहानी को हम एक बड़े उपन्यास की तरह विकसित करेंगे, जहाँ हर पात्र की गहराई, उनकी भावनाएँ, अतीत, और आंतरिक संघर्ष को धीरे-धीरे खोला जाएगा। जल्दबाजी नहीं, हर सीन को विस्तार से जीवंत बनाएंगे, जैसे कि पाठक खुद वहाँ मौजूद हो। कहानी कामुक है, लेकिन इसमें महत्वाकांक्षा, गरीबी, प्यार, विश्वासघात और विकास की परतें होंगी।
राहुल: कहानी का केंद्र। उम्र 18 साल, लेकिन उसके चेहरे पर गरीबी की थकान और सपनों की चमक दोनों दिखती हैं। वो रामपुर गाँव का रहने वाला है, जहाँ उसके पिता की मौत एक दुर्घटना में हो गई थी जब वो मात्र 10 साल का था। पिता एक मजदूर थे, और उनकी मौत के बाद घर की जिम्मेदारी माँ पर आ गई। राहुल पढ़ाकू है, लेकिन गरीबी ने उसे जल्दी बड़ा बना दिया। वो कॉलेज में टॉप करता है, लेकिन अंदर से असुरक्षित महसूस करता है – क्या वो कभी इस गरीबी से निकल पाएगा? उसका शरीर पतला लेकिन मजबूत है, काले बाल, गहरी आँखें जो हमेशा सोच में डूबी रहती हैं। सेक्स उसके लिए शुरुआत में अनजाना है, लेकिन जैसे-जैसे कहानी बढ़ेगी, ये उसकी कमजोरी और ताकत दोनों बनेगा। वो अपनी माँ से बहुत जुड़ा है, लेकिन उनके राज उसे परेशान करेंगे।
सुमन (राहुल की माँ): उम्र 35 साल, लेकिन गरीबी और मेहनत ने उसे समय से पहले बूढ़ा कर दिया है। वो विधवा है, पति की मौत के बाद ठाकुर के हवेली में नौकरानी का काम करती है। उसका अतीत: युवावस्था में वो गाँव की सबसे सुंदर लड़की थी, लेकिन गरीब परिवार से होने के कारण ठाकुर ने उसे फंसाया। अब वो ठाकुर से गुप्त संबंध रखती है, जो पैसे के लिए मजबूरी है लेकिन अंदर से उसे घुटन देता है। उसके बड़े-बड़े स्तन, काली साड़ी में लिपटा शरीर, और थकी हुई मुस्कान। वो राहुल से बेइंतहा प्यार करती है, उसके सपनों के लिए कुछ भी कर सकती है, लेकिन अपने राज छिपाती है। उसकी लेयरिंग: वो मजबूत दिखती है, लेकिन रातों को रोती है, सोचती है कि क्या वो अच्छी माँ है?
ठाकुर साहब (पूर्ण नाम: ठाकुर रघुवीर सिंह): उम्र 50 साल, गाँव का जमींदार। अमीर, क्रूर, और औरतों का शौकीन। उसका अतीत: युवा दिनों में वो शहर से पढ़कर लौटा था, लेकिन गाँव की सत्ता ने उसे भ्रष्ट बना दिया। उसके दो बेटे हैं, लेकिन पत्नी की मौत हो चुकी है। सुमन से उसका संबंध सिर्फ शारीरिक नहीं, वो उसे अपनी संपत्ति समझता है। उसका शरीर मोटा, दाढ़ी वाली चेहरा, और आँखों में लालच। वो दयालु बनने की कोशिश करता है, लेकिन अंदर से स्वार्थी है। कहानी में वो राहुल के जीवन में बाधा बनेगा।
सरला काकी (पड़ोस वाली): उम्र 40 साल, विधवा। उसके पति की मौत शराब की लत से हुई थी, और अब वो अकेली रहती है। उसका शरीर कामुक – बड़े स्तन, पतली कमर, और हल्की मुस्कान जो रहस्य छिपाती है। अतीत: वो सुमन की दोस्त थी, लेकिन ठाकुर से उसका भी पुराना संबंध रहा है, जो अब टूट चुका है। वो राहुल को बचपन से देखती आई है, उसे बेटे जैसा मानती है लेकिन अंदर से आकर्षण महसूस करती है। उसकी लेयरिंग: वो अकेलेपन से जूझती है, रातों को सपने देखती है, और सेक्स को अपनी भावनाओं का सहारा बनाती है।
मीना: उम्र 18 साल, राहुल की कॉलेज सहपाठी। गाँव की मासूम लेकिन बोल्ड लड़की। उसका परिवार किसान है, लेकिन वो पढ़ाई में अच्छी है। लंबे काले बाल, गोरी चमड़ी, और शर्मीली मुस्कान। अतीत: बचपन में वो राहुल से खेलती थी, लेकिन अब बड़ा होकर उसे पसंद करने लगी है। उसकी लेयरिंग: वो कुंवारी है, सेक्स के बारे में उत्सुक लेकिन डरती है। वो सपने देखती है शहर जाने के, राहुल के साथ।
मोना: उम्र 18 साल, मीना की दोस्त और राहुल की क्लासमेट। थोड़ी शरारती, गोल-मटोल लेकिन आकर्षक फिगर। लाल होंठ, छोटे बाल। अतीत: उसके पिता गाँव के दुकानदार हैं, वो अमीर घर से है लेकिन बोर होती है। उसकी लेयरिंग: वो बोल्ड है, सेक्स के बारे में जानती है (किताबों से), और राहुल को चिढ़ाती है। लेकिन अंदर से असुरक्षित, क्या कोई उसे सीरियस लेगा?
अन्य पात्र कहानी बढ़ने के साथ जुड़ेंगे, जैसे शहर की लड़कियाँ, लेकिन हर एक को गहराई से पेश किया जाएगा। अब कहानी शुरू करते हैं, धीरे-धीरे।
भाग 1: गाँव की सुबहें और छिपे राज़ (परिचय और शुरुआती दिन)
रामपुर गाँव सुबह की धुंध में लिपटा रहता था, जहाँ खेतों की हरी सरसों लहराती थी और दूर से ठाकुर की हवेली की ऊँची दीवारें दिखती थीं। हवा में मिट्टी की महक थी, और मुर्गों की बांग से दिन की शुरुआत होती। राहुल का छोटा सा कच्चा घर गाँव के किनारे पर था – दो कमरे, एक रसोई, और बाहर एक छोटा सा आँगन जहाँ सुमन सब्जियाँ उगाती थी। घर की दीवारें फटी हुई थीं, छत से बारिश में पानी टपकता था, लेकिन राहुल के लिए ये दुनिया थी।
सुबह के पाँच बजे, सुमन उठती। उसकी आँखें अभी भी नींद से भरी होतीं, लेकिन चेहरे पर एक मजबूत इरादा। वो लाल साड़ी पहनती, जो सालों पुरानी थी लेकिन उसकी कमर को खूबसूरती से लपेटती। उसके बाल खुले होते, काले और घने, जो उसके कंधों पर गिरते। वो रसोई में जाती, चूल्हा जलाती, और राहुल के लिए चाय बनाती। "बेटा, उठ जा। कॉलेज का समय हो रहा है," वो पुकारती, उसकी आवाज में ममता लेकिन थकान भी। सुमन का दिन ठाकुर की हवेली से शुरू होता। वो वहाँ झाड़ू-पोछा करती, खाना बनाती, और शाम तक लौटती। लेकिन असली राज रात का था, जो राहुल अभी नहीं जानता था।
राहुल बिस्तर से उठता, उसकी आँखें छोटी-छोटी, बाल बिखरे। वो 18 साल का था, लेकिन गरीबी ने उसे जिम्मेदार बना दिया था। उसके पिता की मौत की याद उसे सताती – वो दुर्घटना में ट्रैक्टर के नीचे दब गए थे। राहुल सोचता, "अगर पापा होते तो माँ को इतनी मेहनत न करनी पड़ती।" वो कॉलेज की किताबें उठाता, एक पुरानी साइकिल पर सवार होता, और गाँव की पगडंडी से कॉलेज जाता। रास्ते में वो सपने देखता – बड़े शहर, दिल्ली या मुंबई, जहाँ वो इंजीनियर बनेगा, अमीर होगा, और माँ को राजरानी की तरह रखेगा। लेकिन अभी तो किताबें ही उसकी दोस्त थीं।
कॉलेज एक छोटी सी इमारत थी, जहाँ 50-60 बच्चे पढ़ते। राहुल की क्लास में मीना और मोना थीं। मीना हमेशा आगे की बेंच पर बैठती, उसके बाल पोनीटेल में बंधे, और नोट्स साफ-सुथरे। वो गाँव के किसान की बेटी थी, लेकिन उसकी आँखों में चमक थी। बचपन में वो और राहुल नदी किनारे खेलते थे, पत्थर फेंकते, हँसते। अब बड़ा होकर मीना राहुल को देखकर शर्मा जाती। "राहुल, तू हमेशा पढ़ाई में खोया रहता है। कभी बात तो कर," वो सोचती, लेकिन कहती नहीं। उसका दिल धड़कता जब राहुल मुस्कुराता। मीना कुंवारी थी, सेक्स के बारे में सिर्फ सुनी-सुनाई बातें जानती, लेकिन रातों को सपने देखती – किसी के साथ होना, छूना, लेकिन डरती भी।
मोना पीछे की बेंच पर बैठती, थोड़ी शरारती। उसके होंठ हमेशा मुस्कुराते, और वो क्लास में चुपके से नोट्स पास करती। उसके पिता की दुकान थी, तो वो थोड़ी अमीर थी – नई ड्रेस, चमकदार जूते। मोना राहुल को चिढ़ाती, "अरे गांव के राजकुमार, आज क्या सोच रहा?" लेकिन अंदर से वो उसे पसंद करती। उसकी लेयरिंग: मोना बाहर से बोल्ड, लेकिन घर पर पिता की सख्ती से दबी। वो किताबों में छिपकर रोमांटिक कहानियाँ पढ़ती, सेक्स के बारे में कल्पना करती, लेकिन असल में अनुभवहीन।
एक दिन, लंच ब्रेक में तीनों एक पेड़ के नीचे बैठे। हवा ठंडी थी, पत्ते सरसराते। मीना ने अपना टिफिन खोला – रोटी और सब्जी। "राहुल, तू ले," वो बोली, उसकी आवाज में शर्म। राहुल ने लिया, उनकी उँगलियाँ छुईं, और मीना का चेहरा लाल हो गया। मोना हँसी, "अरे मीना, तू तो शर्मा गई। राहुल, तुझे लड़कियाँ पसंद हैं न?" राहुल मुस्कुराया, लेकिन अंदर से उत्तेजना महसूस की। वो पहली बार लड़कियों को ऐसे देख रहा था – मीना की स्कर्ट हवा में उड़ी, उसकी गोरी जांघें दिखीं। मोना की शर्ट टाइट थी, उसके छोटे-छोटे स्तन उभरे हुए। राहुल का मन भटका, लेकिन वो पढ़ाई पर फोकस करने की कोशिश करता।
शाम को राहुल घर लौटा। सुमन अभी हवेली से नहीं लौटी थी। वो किताबें खोलकर बैठा, लेकिन मन नहीं लगा। पड़ोस से सरला काकी की आवाज आई, "राहुल बेटा, इधर आ। चाय पी ले।" सरला का घर राहुल के बगल में था – एक छोटा सा मकान, लेकिन साफ-सुथरा। सरला विधवा थी, उसके पति की मौत 5 साल पहले हो गई थी। वो अकेली रहती, सिलाई करके गुजारा करती। उसका चेहरा सुंदर था – बड़ी आँखें, भरे हुए होंठ। शरीर कामुक, साड़ी में उसके कूल्हे हिलते जब वो चलती। सरला राहुल को बचपन से जानती थी, उसे दूध पिलाती, कहानियाँ सुनाती। लेकिन अब राहुल बड़ा हो गया था, और सरला के मन में कुछ और भावनाएँ जाग रही थीं। अकेलापन उसे सताता, रातों को वो बिस्तर पर करवटें बदलती, सोचती – कोई तो हो जो उसे छुए, प्यार करे।
राहुल सरला के घर गया। अंदर खुशबू थी – अगरबत्ती की। सरला ने चाय दी, और बैठकर बात की। "बेटा, तेरी माँ देर से आती है। ठाकुर साहब कितना काम करवाते हैं। तू अकेला रहता है, कभी जरूरत हो तो बता।" उसकी आँखों में कुछ था – देखभाल लेकिन आकर्षण भी। राहुल ने चाय पी, और सरला का हाथ छुआ। सरला की उँगलियाँ नरम थीं, और वो मुस्कुराई। राहुल को अजीब लगा, उसका शरीर में हलचल हुई। वो घर लौटा, लेकिन वो स्पर्श भूल नहीं पाया।
रात हुई। सुमन देर से लौटी, उसके चेहरे पर थकान। वो भीगी हुई थी – बाहर हल्की बारिश हो रही थी। साड़ी गीली, उसके शरीर की आउटलाइन दिख रही। राहुल ने देखा – माँ के स्तन बड़े, निप्पल उभरे हुए। सुमन ने कपड़े बदले, लेकिन राहुल की नजरें टिकी रहीं। "माँ, आज इतनी देर क्यों?" राहुल ने पूछा। सुमन ने झूठ बोला, "काम ज्यादा था बेटा।" लेकिन असल में ठाकुर ने उसे रोका था। ठाकुर की हवेली में, शाम को वो अकेले थे। ठाकुर ने सुमन को अपनी गोद में बिठाया, उसके स्तनों को दबाया। "सुमन, आज रुक जा," ठाकुर बोला, उसकी साँसें तेज। सुमन ने मना किया, लेकिन पैसे की जरूरत ने उसे झुका दिया। ठाकुर ने उसकी साड़ी उतारी, उसके नंगे शरीर को चूमा। सुमन की चूत गीली हो गई, वो कराही, "साहब, धीरे..." ठाकुर का लंड बड़ा था, वो सुमन को बिस्तर पर लिटाकर चोदा। धक्के तेज, सुमन की आँखों में आँसू लेकिन मजा भी। चुदाई के बाद ठाकुर ने पैसे दिए, और सुमन घर लौटी।
राहुल सो गया, लेकिन रात को जागा। उसे कमरे से आवाजें सुनाई दीं। वो चुपके से उठा, दरार से देखा – ठाकुर आया था! माँ के कमरे में। ठाकुर सुमन को फिर चोद रहा था। सुमन नंगी थी, उसके स्तन हिल रहे। "आह साहब... जोर से..." सुमन बोली। राहुल स्तब्ध था, उसका लंड खड़ा हो गया। वो बाहर जाकर मुठ मारी, लेकिन मन में सवाल थे – माँ क्यों? वो रोया, लेकिन फैसला किया – पढ़ाई करके शहर जाऊंगा, सब बदल दूंगा।
कहानी जारी रहेगी।
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#2
Nice update
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#3
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राहुल का कामुक सफर - गरीबी की छाया से शहर की चमक तक भाग 2


भाग 2: कॉलेज की दोस्तियाँ और सरला काकी का करीब आना (कॉलेज के दिन और घर की शामें)

रामपुर गाँव में सुबहें हमेशा की तरह शांत थीं, लेकिन राहुल के मन में अब एक तूफान उठ रहा था। उस रात की घटना – माँ को ठाकुर के साथ देखना – उसे सोने नहीं दे रही थी। वो बिस्तर पर लेटा रहा, आँखें बंद लेकिन दिमाग चलता रहा। "माँ क्यों करती है ये सब? क्या गरीबी इतनी मजबूर कर देती है?" वो सोचता, और उसके मन में गुस्सा, दुख, और एक अजीब सी उत्तेजना का मिश्रण था। सुबह उठकर वो कॉलेज की तैयारी करता, लेकिन आज उसकी आँखों के नीचे काले घेरे थे। सुमन ने नोटिस किया, "बेटा, क्या हुआ? रात को नींद नहीं आई?" राहुल ने झूठ बोला, "पढ़ाई कर रहा था माँ।" सुमन ने उसके सिर पर हाथ फेरा, उसकी उँगलियाँ नरम लेकिन थकी हुईं। वो जानती थी कि राहुल बड़ा हो रहा है, और उसके राज अब छिपाना मुश्कil हो रहा था। सुमन का दिल दुखता – वो राहुल के लिए जीती थी, लेकिन ठाकुर की गिरफ्त से निकलना असंभव लगता। "एक दिन सब ठीक हो जाएगा," वो खुद से कहती, लेकिन अंदर से डरती कि राहुल पता चलेगा तो क्या सोचेगा?
राहुल साइकिल पर सवार होकर कॉलेज चला गया। रास्ता लंबा था – खेतों के बीच से, जहाँ किसान काम कर रहे थे, और हवा में ताजी मिट्टी की खुशबू। कॉलेज पहुँचकर वो अपनी सीट पर बैठा, किताबें खोलीं, लेकिन मन भटक रहा था। मीना आज उसके बगल में बैठी थी। वो हमेशा की तरह साफ-सुथरी दिख रही थी – सफेद शर्ट, नीली स्कर्ट, और बालों में रिबन। मीना के परिवार में चार भाई-बहन थे, पिता खेतों में मजदूरी करते, और माँ घर संभालती। मीना बचपन से मेहनती थी, लेकिन कॉलेज उसके लिए भागने की जगह था। वो राहुल को देखकर सोचती, "वो इतना गंभीर क्यों रहता है? कभी हँसता क्यों नहीं?" मीना का दिल राहुल के लिए धड़कता था – बचपन की दोस्ती अब कुछ और बन रही थी। वो रातों को सोचती, उसके बारे में कल्पना करती: उसका हाथ पकड़ना, गले लगना। लेकिन गाँव की लड़की होने के नाते, वो शर्माती, डरती कि कोई देख लेगा। सेक्स के बारे में उसे सिर्फ सहेलियों से सुनी बातें पता थीं – "लड़के छूते हैं तो अच्छा लगता है," लेकिन वो कुंवारी थी, उत्सुक लेकिन अनजान।
क्लास शुरू हुई। टीचर इतिहास पढ़ा रहे थे – मुगल काल की कहानियाँ। राहुल नोट्स ले रहा था, लेकिन मीना ने चुपके से एक कागज पास किया। उस पर लिखा था: "ब्रेक में पेड़ के नीचे मिलना?" राहुल ने देखा, मुस्कुराया, और हाँ में सिर हिलाया। मोना पीछे से देख रही थी। मोना आज थोड़ी उदास थी – उसके पिता ने कल रात डाँटा था, "पढ़ाई पर ध्यान दे, लड़कों से दूर रह।" मोना के घर में पैसे थे, लेकिन आजादी नहीं। वो शरारती थी, क्लास में हँसती, लेकिन अंदर से अकेली महसूस करती। मोना को राहुल पसंद था – उसकी गंभीर आँखें, मजबूत कंधे। वो कल्पना करती, "काश वो मुझे छुए, किस करे।" मोना ने किताबों में छिपकर कुछ कामुक कहानियाँ पढ़ी थीं, जहाँ लड़कियाँ बोल्ड होतीं। लेकिन असल जीवन में वो डरती, सोचती कि क्या राहुल उसे पसंद करेगा? उसकी बॉडी थोड़ी गोल-मटोल थी, लेकिन स्तन उभरे हुए, जो शर्ट से झाँकते।
ब्रेक की घंटी बजी। तीनों पेड़ के नीचे मिले। हवा में ठंडक थी, पत्ते हिल रहे थे। मीना ने अपना टिफिन खोला – घर की बनी रोटियाँ और आचार। "राहुल, तू ले ना। तेरी माँ अच्छा बनाती है?" मीना बोली, उसकी आवाज में मिठास। राहुल ने लिया, उनकी उँगलियाँ फिर छुईं। इस बार राहुल ने महसूस किया – मीना की त्वचा नरम, गर्म। मीना का चेहरा लाल हो गया, वो नीचे देखने लगी। मोना ने हँसकर माहौल हल्का किया, "अरे, तुम दोनों तो ऐसे शर्मा रहे हो जैसे पहली बार मिले। राहुल, बताना, तुझे कैसी लड़कियाँ पसंद हैं? मासूम वाली जैसे मीना, या शरारती वाली जैसे मैं?" राहुल हँसा, पहली बार खुलकर। "दोनों अच्छी हैं," वो बोला। बातें चलती रहीं – कॉलेज की गॉसिप, टीचर की नकल। लेकिन राहुल की नजर मीना की स्कर्ट पर गई, जो हवा से थोड़ी ऊपर उठी। उसकी गोरी जांघें दिखीं, और राहुल के मन में वो रात की याद आई – माँ की नंगी बॉडी। उसका शरीर में हलचल हुई, पैंट में तनाव। मीना ने नोटिस किया, लेकिन कुछ नहीं कहा। मोना ने चिढ़ाया, "राहुल, क्या देख रहा है? तुझे लड़कियाँ इतनी पसंद हैं?" तीनों हँसे, लेकिन अंदर से उत्तेजना बढ़ रही थी। ब्रेक खत्म हुआ, लेकिन वो पल राहुल के मन में बस गया – पहली बार लड़कियों के साथ इतना करीब महसूस किया।
शाम को राहुल घर लौटा। सुमन अभी हवेली में थी। वो पढ़ाई करने बैठा, लेकिन मन नहीं लगा। बाहर से सरला काकी की आवाज आई, "राहुल बेटा, इधर आ। कुछ काम है।" राहुल गया। सरला का घर हमेशा साफ रहता – फर्श पर चटाई, दीवार पर पुरानी तस्वीरें उसके पति की। सरला आज हरी साड़ी में थी, जो उसके शरीर को खूबसूरती से लपेट रही थी। उसके स्तन बड़े, कमर पतली, और चाल में एक लय। सरला अकेलेपन से जूझ रही थी – पति की मौत के बाद गाँव में अफवाहें थीं कि वो ठाकुर से मिली हुई थी, लेकिन अब वो अलग थी। रातों को वो बिस्तर पर लेटती, अपने शरीर को छूती, कल्पना करती – कोई जवान लड़का जो उसे प्यार दे। राहुल को देखकर उसके मन में वो भाव जागते – वो उसे बेटे जैसा मानती, लेकिन अब आकर्षण भी। "बेटा, मेरी सिलाई मशीन खराब है। देख ले," सरला बोली। राहुल अंदर गया, मशीन देखी। सरला उसके पास खड़ी हो गई, इतनी करीब कि उसकी साड़ी राहुल के हाथ से छू गई। सरला की खुशबू – साबुन और पसीने की मिश्रित – राहुल को मदहोश कर रही थी।
राहुल ने मशीन ठीक की, और सरला ने कहा, "शाबाश बेटा। अब चाय पी ले।" वो रसोई गई, लेकिन वापस आते वक्त ठोकर खाई। राहुल ने उसे संभाला, उसका हाथ सरला की कमर पर गया। सरला की कमर नरम, गर्म। वो रुकी, राहुल की आँखों में देखा। "तू बड़ा हो गया है रे। तेरी माँ खुशकिस्मत है," सरला बोली, उसकी आवाज में कंपन। राहुल का दिल तेज धड़का, उसका हाथ सरला के स्तनों के पास था। सरला ने हाथ नहीं हटाया, बल्कि मुस्कुराई। "कभी अकेला लगे तो आ जाना। मैं हूँ ना," वो बोली। राहुल को अजीब लगा – देखभाल या कुछ और? वो घर लौटा, लेकिन सरला का स्पर्श भूल नहीं पाया। रात को सोते वक्त वो कल्पना करता – सरला की बॉडी, मीना की मुस्कान। उसका लंड खड़ा हो गया, पहली बार उसने खुद को छुआ, मुठ मारी। मजा आया, लेकिन guilt भी। "ये गलत है," वो सोचता।
उधर, सुमन हवेली से लौटी। ठाकुर आज फिर मिला था। हवेली के बड़े कमरे में, ठाकुर ने सुमन को दीवार से सटाया। "सुमन, तेरी बॉडी आज भी जवान है," ठाकुर बोला, उसकी मूंछें सुमन के गाल पर लगीं। सुमन ने विरोध किया, लेकिन ठाकुर ने साड़ी उतार दी। उसके स्तन बाहर, ठाकुर ने उन्हें चूसा। सुमन की कराह निकली, "साहब, घर जाना है..." लेकिन ठाकुर ने नहीं सुना। उसने सुमन को घुटनों पर बिठाया, अपना लंड मुँह में डाला। सुमन ने चूसा, आँखें बंद। फिर ठाकुर ने उसे बिस्तर पर लिटाया, चूत में डाला। धक्के तेज, सुमन की चूत गीली। "आह... साहब... जोर से..." वो बोली, मजबूरी में लेकिन मजा भी लेते हुए। चुदाई के बाद ठाकुर ने पैसे फेंके, "जा अब।" सुमन घर आई, थकी हुई। राहुल सो रहा था, लेकिन सुमन रोई – "कब तक ये सब?"
राहुल का सफर अब शुरू हो रहा था – दोस्तियाँ गहरा रही थीं, राज खुल रहे थे।
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भाग 3: कॉलेज की शरारतें और माँ का राज खुलना (कॉलेज के छिपे पल और घर की सच्चाई)

रामपुर गाँव में दिन अब थोड़े अलग लगने लगे थे राहुल को। सुबह की धुंध में वो साइकिल चलाता, लेकिन मन में सरला काकी का स्पर्श और मीना-मोना की मुस्कानें घूमती रहतीं। वो रात की वो घटना – खुद को छूना – उसे guilt देती, लेकिन एक नई ऊर्जा भी। "ये सब नॉर्मल है क्या?" वो सोचता, लेकिन जवाब नहीं मिलता। कॉलेज पहुँचकर वो अपनी सीट पर बैठा, किताबें खोलीं। आज क्लास मैथ्स की थी, टीचर बोर्ड पर सवाल लिख रहे थे। राहुल का ध्यान लगा, लेकिन मीना ने फिर एक नोट पास किया: "ब्रेक में मिलना, कुछ बात करनी है।" राहुल ने देखा, मीना की आँखें चमक रही थीं। मीना आज थोड़ी nervous लग रही थी – उसके मन में राहुल के लिए भावनाएँ उमड़ रही थीं। घर पर उसकी माँ ने कहा था, "बेटी, पढ़ाई पर ध्यान दे, लड़कों से दूर रह।" लेकिन मीना का दिल नहीं मानता। वो रात को बिस्तर पर लेटती, राहुल की कल्पना करती – उसका चेहरा, उसकी मुस्कान। उसके शरीर में एक अजीब सी सिहरन होती, वो अपनी जांघों को रगड़ती, लेकिन आगे नहीं जाती। "क्या ये प्यार है?" वो सोचती, और शर्मा जाती।
मोना आज क्लास में ज्यादा शरारती थी। वो पीछे बैठी, चुपके से राहुल की तरफ कागज की गोली फेंकी। उस पर लिखा: "तू मीना को देखकर शर्मा क्यों जाता है? मुझे भी देख ना।" मोना के मन में जलन थी – मीना की मासूमियत उसे अच्छी नहीं लगती। मोना घर पर अकेली महसूस करती, पिता हमेशा दुकान पर, माँ बीमार। वो राहुल को अपना बनाने की सोचती, कल्पना करती कि वो उसे किस करे, छुए। मोना ने एक बार गुपचुप तरीके से एक कामुक किताब पढ़ी थी – गाँव के बाजार से चुराई हुई। उसमें औरतों के बारे में लिखा था, कैसे वो मजा लेती हैं। मोना ने ट्राई किया था – खुद को छुआ, उँगलियाँ अंदर डालीं, और पहली बार झड़ी थी। "वाह, कितना अच्छा लगा," वो सोचती, लेकिन अब वो राहुल के साथ करना चाहती।
ब्रेक की घंटी बजी। तीनों फिर उस पेड़ के नीचे मिले, लेकिन आज माहौल अलग था। चारों तरफ बच्चे खेल रहे थे, लेकिन वो कोने में छिप गए। मीना ने शुरू किया, "राहुल, तू कल से कुछ उदास लग रहा है। क्या हुआ?" उसकी आवाज में चिंता थी, आँखें नम। राहुल ने झिझकते हुए कहा, "कुछ नहीं, घर की टेंशन। माँ देर रात आती है।" मोना ने हँसकर कहा, "अरे, तेरी माँ ठाकुर के यहाँ काम करती है न? वो तो अमीर हैं, अच्छा होगा।" लेकिन राहुल का चेहरा बदल गया। मीना ने उसका हाथ पकड़ा – पहली बार। "चिंता मत कर, हम हैं न तेरे साथ।" राहुल ने महसूस किया – मीना का हाथ नरम, गर्म। वो करीब आ गई, उसकी साँसें राहुल के चेहरे पर लगीं। मोना ने देखा, और जलन में कहा, "चलो, थोड़ी मस्ती करें।" वो राहुल के कंधे पर हाथ रखकर हँसी। राहुल का मन भटका – तीनों इतने करीब। हवा में एक तनाव था, जैसे कुछ होने वाला हो।
मीना ने शर्मा कर कहा, "राहुल, तुझे पता है, मैं तुझे बचपन से पसंद करती हूँ।" राहुल स्तब्ध, लेकिन खुश। मोना ने चिढ़ाया, "अरे, मैं भी!" और अचानक मोना ने राहुल का गाल चूम लिया। राहुल का शरीर झनझना गया। मीना ने देखा, और वो भी करीब आई, राहुल के होंठों पर अपना होंठ रख दिया – पहला किस। मीना के होंठ नरम, मीठे। राहुल ने जवाब दिया, उसका हाथ मीना की कमर पर गया। मोना ने पीछे से राहुल को गले लगाया, उसके स्तन राहुल की पीठ से दबे। "राहुल, छू ना मुझे," मोना फुसफुसाई। राहुल ने मुड़कर मोना की शर्ट पर हाथ रखा, उसके स्तन दबाए। मोना कराही, "आह... अच्छा लग रहा..." मीना देख रही थी, उसकी साँसें तेज। वो अपनी स्कर्ट ऊपर की, "राहुल, देख..." उसकी पैंटी गीली दिख रही थी। राहुल ने छुआ – मीना की चूत गर्म, गीली। "उफ्फ... राहुल..." मीना बोली। मोना ने राहुल की पैंट खोली, उसका लंड निकाला – पहली बार किसी लड़की ने छुआ। "वाह, कितना बड़ा," मोना बोली, और चूसने लगी। राहुल के मुँह से सिसकारी निकली। मीना ने अपनी पैंटी उतारी, राहुल की उँगलियाँ अंदर डालीं। तीनों उत्तेजित, लेकिन घंटी बज गई। वो रुक गए, लेकिन वादा किया – "कल जारी रखेंगे।"
शाम को राहुल घर लौटा, मन में उथल-पुथल। सुमन घर पर थी, खाना बना रही। "बेटा, आज कैसा रहा कॉलेज?" सुमन ने पूछा, उसकी मुस्कान थकी हुई। राहुल ने देखा – माँ आज सुंदर लग रही थी, साड़ी में उसके कर्व्स दिख रहे। लेकिन रात की याद आई, और गुस्सा आया। "माँ, तुम ठाकुर के यहाँ क्यों इतनी देर रहती हो?" राहुल ने पूछा। सुमन का चेहरा पीला पड़ गया। "बेटा, काम है। पैसे की जरूरत है।" लेकिन राहुल ने जोर दिया, "मैंने देखा है माँ। रात को ठाकुर आता है।" सुमन रो पड़ी। वो बैठ गई, राहुल को सब बताया – पिता की मौत के बाद गरीबी, ठाकुर की मदद लेकिन बदले में उसका शरीर। "बेटा, तेरे लिए कर रही हूँ। कॉलेज की फीस, खाना..." सुमन सोबती। राहुल का दिल टूटा, लेकिन गुस्सा भी। वो माँ को गले लगाया, "माँ, मैं सब ठीक कर दूंगा। पढ़ाई करके शहर जाऊंगा।" लेकिन गले लगते वक्त राहुल ने महसूस किया – माँ का शरीर गर्म, उसके स्तन दबे। सुमन ने भी महसूस किया, लेकिन कुछ नहीं कहा।
रात हुई। ठाकुर फिर आया। सुमन ने दरवाजा खोला, लेकिन राहुल जाग रहा था। वो छिपकर देखा – ठाकुर ने सुमन को बाहों में लिया, किस किया। सुमन की साड़ी उतरी, उसके बड़े स्तन बाहर। ठाकुर ने चूसे, सुमन कराही, "साहब..." ठाकुर ने सुमन को घोड़ी बनाया, चूत में डाला। धक्के तेज, सुमन की गांड हिल रही। "चोदो मुझे साहब... आह..." सुमन बोली। राहुल देखता रहा, उसका लंड खड़ा। लेकिन इस बार वो अंदर गया। "रुक जाओ!" राहुल चिल्लाया। ठाकुर हँसा, "आजा बेटा, तेरी माँ की चूत सबकी है।" सुमन डर गई, "नहीं बेटा..." लेकिन राहुल का गुस्सा उत्तेजना में बदल गया। वो माँ के पास गया, उसके स्तन चूसे। सुमन ने मना किया, लेकिन उसकी चूत गीली हो गई। ठाकुर देख रहा था। राहुल ने अपना लंड निकाला, माँ की चूत में डाला। "आह बेटा... नहीं..." सुमन बोली, लेकिन कमर हिलाने लगी। राहुल ने धक्के दिए, माँ की चूत टाइट। "माँ... तुम्हारी चूत कितनी गर्म..." राहुल बोला। सुमन झड़ गई, राहुल ने अंदर झाड़ा। ठाकुर हँसा, "अब तू भी मर्द बन गया।" राहुल रोया, लेकिन एक नई शुरुआत हो गई। अब माँ-बेटे का संबंध बदल चुका था – प्यार लेकिन कामुक।

राहुल ने फैसला किया – कॉलेज खत्म करके शहर जाएगा, लेकिन अब सेक्स उसकी जिंदगी का हिस्सा था।

कहानी जारी रहेगी।
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#5
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#7
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भाग 4: पहला प्यार की शुरुआत और मीना के साथ अंतरंग पल (भावनाओं की उथल-पुथल और गाँव की नदी किनारे की शाम)

रामपुर गाँव में वो सुबह कुछ अलग ही थी। सूरज की पहली किरणें खेतों पर पड़ रही थीं, हरी सरसों की फसल लहरा रही थी, और दूर से मुर्गों की बांग सुनाई दे रही थी। राहुल का छोटा सा कच्चा घर अभी भी शांत था, लेकिन उसके मन में तूफान मचा हुआ था। रात की घटना – माँ सुमन के साथ वो अनचाहा लेकिन उत्तेजक पल, ठाकुर की क्रूर हँसी, और खुद की शरीर की वो अनियंत्रित प्रतिक्रिया – सब कुछ उसे सता रहा था। वो बिस्तर पर लेटा रहा, आँखें बंद लेकिन नींद दूर। उसके दिमाग में बार-बार वो दृश्य घूम रहे थे: माँ की नंगी पीठ, उसके स्तनों की गर्माहट, और वो कराहें जो मजबूरी और मजा का मिश्रण लगती थीं। "क्या मैंने गलत किया? माँ के साथ... ये पाप तो नहीं?" राहुल खुद से सवाल करता, लेकिन जवाब नहीं मिलता। guilt की एक लहर उसे डुबो रही थी, जैसे कोई भारी पत्थर उसके सीने पर रखा हो। वो उठा, पानी से मुँह धोया, लेकिन चेहरा अभी भी थका हुआ लग रहा था। आईने में खुद को देखकर वो सोचता, "मैं कौन हूँ? गरीब गाँव का लड़का, जो अब सेक्स की दलदल में फंस गया है?"
सुमन रसोई में थी, चूल्हे पर चाय उबाल रही। उसकी साड़ी पुरानी लेकिन साफ थी, बाल खुले और थोड़े उलझे हुए। वो राहुल की तरफ देखती, लेकिन आँखें मिलाने से डरती। रात की वो घटना ने उनके बीच एक दीवार खड़ी कर दी थी – प्यार अभी भी था, लेकिन अब वो शुद्ध नहीं लगता। सुमन का दिल दुखता था। वो सोचती, "मैंने अपने बेटे को क्या बना दिया? ठाकुर की वजह से सब बर्बाद हो गया। लेकिन गरीबी ने मुझे मजबूर किया, पैसे के बिना राहुल की पढ़ाई कैसे होती?" उसकी आँखें नम हो जातीं, लेकिन वो छिपाती। "बेटा, चाय पी ले। कॉलेज का समय हो रहा है," सुमन ने कहा, उसकी आवाज में ममता लेकिन एक कंपन। राहुल ने चाय ली, लेकिन कुछ नहीं बोला। वो जानता था कि माँ भी परेशान है, लेकिन बात कैसे शुरू करे? घर की दीवारें अब राज़ों से भरी लगती थीं – वो दीवारें जो कभी सुरक्षा देती थीं, अब बोझ बन गई थीं। राहुल ने बैग उठाया और साइकिल पर सवार हो गया, लेकिन मन भारी था। रास्ते में वो सोचता रहा, "कॉलेज में मीना और मोना हैं, शायद वो मुझे भुला देंगी ये सब।"
कॉलेज पहुँचकर राहुल अपनी सीट पर बैठा। क्लासरूम की हवा में किताबों की महक थी, लेकिन आज वो उसे अच्छी नहीं लग रही थी। मीना उसके बगल में थी, हमेशा की तरह साफ-सुथरी – सफेद शर्ट टाइट, नीली स्कर्ट जो उसके गोरे पैरों को हल्का छुपाती, और बालों में लाल रिबन। मीना का चेहरा आज चमक रहा था, कल के ब्रेक टाइम के किस की याद से उसके गाल गुलाबी थे। वो राहुल को देखकर शर्मा गई, "राहुल, आज कैसा लग रहा है? कल का... वो पल..." मीना ने फुसफुसाकर कहा, उसकी आवाज में उत्साह और शर्म का मिश्रण। मीना का अतीत उसे याद आया – वो गाँव की किसान की बेटी थी, घर में चार भाई-बहन, पिता खेतों में पसीना बहाते, माँ घर संभालती। मीना बचपन से राहुल की दोस्त थी, नदी किनारे खेलते, पत्थर फेंकते, हँसते। लेकिन अब वो बड़ा होकर उसे प्यार करने लगी थी। रात को वो बिस्तर पर लेटती, राहुल की कल्पना करती – उसका हाथ पकड़ना, गले लगना, और वो किस जो कल हुआ था। उसके शरीर में एक मीठी सिहरन होती, वो अपनी जांघों को रगड़ती, लेकिन डरती कि कोई देख लेगा। "ये प्यार है न? राहुल मेरा पहला और आखिरी होगा," मीना सोचती।
मोना पीछे की बेंच से देख रही थी, उसके होंठों पर शरारती मुस्कान। वो आज नीली ड्रेस में थी, उसके गोल-मटोल शरीर पर टाइट, स्तन उभरे हुए। मोना ने एक नोट फेंका, "राहुल, आज ब्रेक में फिर?" लेकिन राहुल उदास था। टीचर क्लास पढ़ा रहे थे – विज्ञान की किताब से, लेकिन राहुल का ध्यान नहीं था। ब्रेक की घंटी बजी, और तीनों पेड़ के नीचे मिले। हवा ठंडी थी, पत्ते सरसराते। मीना ने राहुल का हाथ पकड़ा, "क्या हुआ? तू उदास क्यों है?" राहुल ने सब कुछ बता दिया – माँ का राज, ठाकुर के साथ की रात, और खुद की guilt। मीना की आँखें भर आईं, "राहुल, तू इतना अकेला क्यों महसूस करता है? मैं हूँ न तेरे साथ।" वो राहुल को गले लगा ली, उसके नरम स्तन राहुल के सीने से दबे। मोना ने भी सहारा दिया, लेकिन मीना ने कहा, "आज सिर्फ हम दोनों बात करें। मोना, तू जा।" मोना निराश हो गई, लेकिन चली गई। अब सिर्फ राहुल और मीना थे। मीना ने राहुल के आँसू पोछे, "तू मेरा पहला प्यार है राहुल। मैं तेरे दुख में साथ हूँ।"
दोनों पेड़ के नीचे बैठे, बातें कीं। मीना ने अपना दिल खोला – कैसे वो राहुल को बचपन से पसंद करती, कैसे उसके सपने राहुल के साथ जुड़े हैं। राहुल ने भी कहा, "मीना, तू मेरी जिंदगी की रोशनी है। ये गरीबी, ये राज़, सब भूल जाता हूँ तेरे साथ।" वो करीब आए, मीना के होंठ राहुल के होंठों से मिले। किस गहरा था, मीना की साँसें तेज। राहुल का हाथ मीना की कमर पर गया, वो सहम गई लेकिन रुकी नहीं। "राहुल, मुझे छू," मीना फुसफुसाई। राहुल ने मीना की शर्ट के बटन खोले, उसके छोटे लेकिन नरम स्तन बाहर। वो चूसा, मीना कराही, "आह... राहुल... अच्छा लग रहा है।" मीना की निप्पल कड़ी हो गईं, राहुल की जीभ उन्हें चाट रही थी। मीना का हाथ राहुल की पैंट पर गया, उसका लंड खड़ा महसूस किया। "ये... कितना बड़ा," मीना शर्मा कर बोली। राहुल ने मीना की स्कर्ट ऊपर की, पैंटी गीली थी। वो छुआ, मीना की चूत गर्म और कुंवारी। "उफ्फ... धीरे," मीना बोली। राहुल ने उँगली अंदर डाली, मीना की कराह निकली। दोनों उत्तेजित, लेकिन कॉलेज की घंटी बज गई। वो रुक गए, लेकिन वादा किया – "शाम को नदी किनारे मिलेंगे।"
शाम हुई। गाँव में सूरज डूब रहा था, आकाश लाल। राहुल घर से निकला, सुमन ने पूछा, "कहाँ जा रहा बेटा?" राहुल ने कहा, "दोस्त से मिलने।" सुमन चिंतित थी, लेकिन कुछ नहीं बोली। नदी किनारे मीना इंतजार कर रही थी, लाल सलवार सूट में, बाल खुले। वो सुंदर लग रही थी – गोरी चमड़ी, बड़ी आँखें, और मुस्कान जो राहुल का दिल जीत लेती। दोनों बैठे, पानी की कलकल सुनते। मीना ने कहा, "राहुल, आज मैं तेरी होना चाहती हूँ।" राहुल स्तब्ध, लेकिन खुश। वो करीब आए, मीना को किस किया। राहुल ने मीना के कपड़े उतारे – सूट नीचे, ब्रा और पैंटी में वो देवी लग रही। मीना शर्मा रही, "पहली बार..." राहुल ने ब्रा उतारी, उसके स्तनों को चूसा। मीना की कराहें गूँज रही थीं, "आह... राहुल... चूस जोर से..." राहुल की जीभ नीचे गई, मीना की चूत चाटी। मीना गीली हो गई, "उफ्फ... ये क्या कर रहा... मजा आ रहा है।" मीना ने राहुल का लंड निकाला, चूसा – पहली बार, लेकिन उत्साह से। "तेरा कितना मीठा," मीना बोली। राहुल ने मीना को घास पर लिटाया, उसकी चूत पर लंड रखा। "धीरे... दर्द होगा," मीना बोली। राहुल ने धीरे डाला, मीना चिल्लाई, "आह... फट रही हूँ..." लेकिन धीरे-धीरे मजा आने लगा। राहुल के धक्के तेज, मीना कमर हिला रही, "चोद मुझे राहुल... जोर से... आह..." दोनों का पहला सेक्स, मीना झड़ी, राहुल ने बाहर झाड़ा। मीना रो पड़ी, "तू मेरा पहला प्यार है।"
रात को दोनों लेटे रहे, सितारे देखते। मीना ने कहा, "हम हमेशा साथ रहेंगे।" राहुल खुश था, guilt थोड़ी कम हुई। लेकिन वो जानता था, गाँव की जिंदगी अभी और चुनौतियाँ लाएगी।
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#8
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भाग 5: मोना की जलन और अलगाव (शरारती दोस्ती का अंत और भावनात्मक दूरी)

रामपुर गाँव में अगली सुबह की शुरुआत हमेशा की तरह हुई, लेकिन राहुल के लिए सब कुछ बदल चुका था। सूरज की किरणें उसके छोटे से कमरे की खिड़की से अंदर आ रही थीं, दीवारों पर हल्की धूप फैल रही थी, और बाहर से पक्षियों की चहचहाहट सुनाई दे रही थी। राहुल बिस्तर पर लेटा रहा, आँखें बंद लेकिन नींद नहीं आ रही। कल शाम नदी किनारे मीना के साथ बिताए पल उसे याद आ रहे थे – मीना की नरम त्वचा, उसकी कराहें, और वो पहला अंतरंग अनुभव जो प्यार और उत्तेजना से भरा था। "मीना मेरा पहला प्यार है, वो मेरी है," राहुल सोचता, और उसके चेहरे पर एक हल्की मुस्कान आ जाती। लेकिन साथ ही guilt भी थी – माँ सुमन के साथ की रात, ठाकुर का राज, और अब मीना के साथ ये सब। "क्या मैं सही कर रहा हूँ? गरीबी ने मुझे क्या बना दिया?" वो खुद से सवाल करता, लेकिन जवाब नहीं मिलता। वो उठा, ठंडे पानी से मुँह धोया, और आईने में खुद को देखा – आँखों के नीचे हल्के काले घेरे, लेकिन चेहरे पर एक नई चमक। राहुल अब 18 साल का जवान लड़का था, गरीबी की मार ने उसे समय से पहले परिपक्व बना दिया था, लेकिन मीना का प्यार उसे जीने की वजह दे रहा था।
सुमन रसोई में काम कर रही थी, चूल्हे पर रोटियाँ सेंक रही। उसकी साड़ी आज नीली थी, जो उसके शरीर की आउटलाइन को हल्का उभार रही थी। सुमन का मन अभी भी भारी था – राहुल के साथ की वो रात उसे सता रही थी। "बेटा बड़ा हो गया है, लेकिन मैंने उसे गलत रास्ते पर धकेल दिया," वो सोचती, और आँखें नम हो जातीं। ठाकुर से वो अब दूर रहने की कोशिश कर रही थी, लेकिन हवेली का काम छोड़ना मुश्कil था। "बेटा, नाश्ता कर ले। कॉलेज जाना है," सुमन ने कहा, उसकी आवाज में ममता लेकिन एक दूरी। राहुल ने प्लेट ली, रोटी और सब्जी खाई, लेकिन माँ से आँखें नहीं मिलाईं। घर की हवा में अब एक अजीब सा तनाव था – पहले जहाँ सिर्फ प्यार था, अब राज़ और शर्म की परतें जुड़ गई थीं। राहुल ने बैग उठाया, साइकिल पर सवार हुआ, और कॉलेज की ओर चला गया। रास्ते में खेतों की हरी-भरी फसलें देखकर वो सोचता, "मीना के साथ सब ठीक हो जाएगा। वो मेरी ताकत है।"
कॉलेज पहुँचकर राहुल अपनी सीट पर बैठा। क्लासरूम में बच्चे शोर मचा रहे थे, लेकिन उसका ध्यान सिर्फ मीना पर था। मीना आज थोड़ी देर से आई, उसके चेहरे पर कल रात की थकान लेकिन खुशी की चमक। वो राहुल के बगल में बैठी, "राहुल, कल रात नींद नहीं आई। तेरी याद आ रही थी," मीना फुसफुसाई, उसकी आँखें चमक रही थीं। मीना का दिल अब पूरी तरह राहुल का हो चुका था – कल का सेक्स उसके लिए सिर्फ शारीरिक नहीं, भावनात्मक बंधन था। वो घर पर लेटकर सोचती, "राहुल मेरा सबकुछ है। उसके बिना जीवन सूना है।" लेकिन मोना पीछे की बेंच से सब देख रही थी। मोना का चेहरा आज उदास था – उसके लाल होंठ मुड़े हुए, आँखें जलन से भरी। मोना गाँव के दुकानदार की बेटी थी, घर में पैसे थे लेकिन भावनाओं की कमी। उसके पिता सख्त थे, माँ बीमार, और मोना अकेली महसूस करती। राहुल को वो बचपन से पसंद करती थी – उसकी गंभीर आँखें, मजबूत शरीर। लेकिन कल ब्रेक में जब मीना ने उसे अलग किया, तो जलन शुरू हो गई। "मीना क्यों बीच में आ गई? राहुल मेरा था," मोना सोचती, और उसके दिल में दर्द उठता। मोना शरारती थी, लेकिन अंदर से संवेदनशील – वो किताबों में छिपकर रोमांटिक कहानियाँ पढ़ती, कल्पना करती कि राहुल उसे छुए, प्यार करे। लेकिन अब लगता कि सब खो गया।
क्लास शुरू हुई। टीचर हिंदी की किताब पढ़ा रहे थे – एक कहानी प्यार और विश्वासघात की। राहुल नोट्स ले रहा था, लेकिन मोना ने एक कागज फेंका: "राहुल, ब्रेक में मिलना। अकेले।" राहुल ने देखा, मीना ने भी नोटिस किया लेकिन कुछ नहीं कहा। ब्रेक की घंटी बजी, और राहुल पेड़ के नीचे गया। मीना उसके साथ जाने लगी, लेकिन मोना ने रोका, "मीना, आज नहीं। मैं राहुल से अकेले बात करूँगी।" मीना हैरान, लेकिन चली गई। अब सिर्फ राहुल और मोना थे। हवा में ठंडक थी, पत्ते हिल रहे थे, और दूर से बच्चों की हँसी सुनाई दे रही। मोना ने शुरू किया, "राहुल, तू मीना के साथ क्या कर रहा है? कल ब्रेक में मुझे क्यों अलग किया? मैं भी तेरी दोस्त हूँ।" उसकी आवाज में जलन साफ थी, आँखें नम। राहुल ने समझाया, "मोना, मीना मेरा प्यार है। तू अच्छी दोस्त है, लेकिन..." मोना रो पड़ी, "दोस्त? बस दोस्त? मैं तुझे कितना पसंद करती हूँ राहुल। मीना से पहले मैं थी। तू मुझे भूल गया?" मोना का दिल टूट रहा था – वो राहुल को अपना मानती थी, कल्पना करती कि वो उसका पहला प्यार बनेगा। लेकिन अब मीना की एंट्री ने सब बदल दिया।
राहुल ने मोना को सांत्वना दी, "मोना, तू मेरी अच्छी दोस्त है। लेकिन मीना अलग है।" लेकिन मोना का गुस्सा फूट पड़ा, "मीना मासूम बनती है, लेकिन मैं जानती हूँ वो क्या चाहती है। तू अंधा है राहुल।" मोना करीब आई, उसका हाथ राहुल की छाती पर रखा। "मुझे छू, जैसे मीना को छूता है। मैं बेहतर हूँ।" राहुल पीछे हटा, लेकिन मोना ने किस करने की कोशिश की। राहुल ने रोका, "नहीं मोना, ये गलत है।" मोना की आँखों में आँसू थे, "तू मुझे रिजेक्ट कर रहा है? मीना के लिए?" वो रोती हुई चली गई। राहुल का मन भारी हो गया – वो मोना को दुख नहीं पहुँचाना चाहता था, लेकिन मीना उसका प्यार थी। ब्रेक खत्म हुआ, और क्लास में मोना चुप बैठी रही, राहुल की तरफ देखती भी नहीं। मीना ने पूछा, "क्या हुआ?" राहुल ने बताया, मीना ने कहा, "मोना जल रही है। लेकिन हमारा प्यार मजबूत है।"
शाम को कॉलेज खत्म हुआ। राहुल घर की ओर जा रहा था, लेकिन मोना ने रास्ते में रोका। गाँव की पगडंडी पर, जहाँ खेतों के बीच से रास्ता था, मोना इंतजार कर रही थी। उसकी ड्रेस आज काली थी, जैसे उसके मन का रंग। "राहुल, एक बार सुन," मोना बोली, उसकी आवाज काँप रही। राहुल रुका, "मोना, क्या है?" मोना ने अपना दिल खोला – कैसे वो राहुल को पसंद करती, कैसे मीना की दोस्ती ने उसे अलग कर दिया। "मैं अकेली हूँ राहुल। घर पर कोई नहीं समझता। तू मेरा सहारा था।" मोना रो रही थी, उसके आँसू गालों पर बह रहे। राहुल का दिल पिघला – वो मोना को दोस्त मानता था, उसकी शरारतें उसे पसंद थीं। "मोना, मैं तेरी दोस्ती नहीं तोड़ना चाहता। लेकिन मीना..." मोना ने काटा, "मीना! हमेशा मीना। मैं क्या हूँ तेरे लिए?" वो करीब आई, राहुल को गले लगा लिया। उसके स्तन राहुल के सीने से दबे, मोना की साँसें तेज। "मुझे एक मौका दे राहुल। मुझे महसूस कर।" राहुल हिचकिचाया, लेकिन मोना ने उसके होंठ चूम लिए। किस गहरा था, मोना की जीभ राहुल के मुँह में। राहुल का शरीर प्रतिक्रिया दे रहा था, उसका लंड खड़ा हो गया। मोना ने महसूस किया, "देख, तुझे भी अच्छा लग रहा।"
दोनों एक पेड़ के पीछे गए। मोना ने अपनी शर्ट उतारी, उसके गोल-मटोल स्तन बाहर – निप्पल कड़े। "चूस न राहुल," मोना बोली। राहुल ने चूसा, मोना कराही, "आह... जोर से... मीना से बेहतर हूँ न?" राहुल का मन भटका, वो मोना की स्कर्ट ऊपर कर चूत छुआ – गीली थी। मोना ने राहुल की पैंट खोली, लंड चूसा। "तेरा कितना बड़ा... मीना को मत देना," मोना बोली। राहुल ने मोना को घोड़ी बनाया, चूत में डाला। मोना चिल्लाई, "उफ्फ... चोद मुझे जोर से... मैं तेरी हूँ..." धक्के तेज, मोना कमर हिला रही, "आह... फाड़ दे मेरी चूत... मीना से बेहतर..." दोनों झड़े, लेकिन राहुल को guilt हुई। "ये गलत था मोना। मीना को पता चलेगा तो..." मोना हँसी, "पता चल जाए। वो जल जाएगी।" लेकिन राहुल ने कहा, "नहीं, अब से दूर रह।" मोना रो पड़ी, "तू मुझे इस्तेमाल कर फेंक दिया?" वो चली गई, दिल टूटा हुआ।
रात को राहुल घर लौटा, मन भारी। मीना को फोन किया (गाँव में एक पुराना फोन था), लेकिन मोना ने पहले ही मीना को बता दिया – "राहुल ने मुझे चोदा। वो धोखेबाज है।" मीना रो रही थी, "राहुल, क्यों?" राहुल ने माफी मांगी, लेकिन मीना ने कहा, "अब अलग हो जाएँ।" मोना की जलन ने सब बर्बाद कर दिया। राहुल टूट गया – दोस्ती खो दी, प्यार में दरार। मोना अब कॉलेज नहीं आती, घर पर बंद। राहुल सोचता, "जलन कितना नुकसान करती है।" गाँव की जिंदगी अब और जटिल हो गई।
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भाग 6: सरला काकी का करीब आना (अकेलेपन की छाया और गुप्त आकर्षण की शुरुआत)

रामपुर गाँव में वो दोपहर की धूप अब थोड़ी नरम हो चली थी, लेकिन राहुल के मन में अभी भी अंधेरा छाया हुआ था। सूरज की किरणें उसके घर की कच्ची छत से छनकर अंदर आ रही थीं, फर्श पर हल्की-हल्की छाया बना रही थीं, और बाहर से गायों की घंटियों की आवाज़ सुनाई दे रही थी। राहुल बिस्तर पर लेटा रहा, आँखें छत की ओर टिकीं लेकिन देख कुछ नहीं रहा था। कल शाम मोना के साथ की वो घटना – जलन से भरी वो चुदाई, मीना का रोना, और दोस्ती का टूटना – सब कुछ उसे काट रहा था। "क्यों मैंने मोना को छुआ? मीना को दुख पहुँचा कर क्या मिला?" राहुल खुद से सवाल करता, लेकिन जवाब सिर्फ guilt था। उसके दिल में एक खालीपन था, जैसे कोई महत्वपूर्ण हिस्सा खो गया हो। मीना अब फोन नहीं उठाती, मोना कॉलेज नहीं आती, और घर पर माँ सुमन से बात करने की हिम्मत नहीं होती। वो उठा, खिड़की से बाहर देखा – गाँव की पगडंडी शांत, खेतों में किसान काम कर रहे, लेकिन राहुल को सब सूना लग रहा था। "जीवन इतना जटिल क्यों है? गरीबी ऊपर से ये भावनाएँ," वो सोचता। राहुल अब कॉलेज नहीं जाना चाहता था, लेकिन पढ़ाई उसके सपनों का आधार थी। वो बैग उठाने लगा, लेकिन मन नहीं माना। आज छुट्टी कर ली, घर पर रहूँगा।
सुमन हवेली से लौट आई थी, उसके चेहरे पर थकान लेकिन चिंता भी। वो राहुल को देखकर रुकी, "बेटा, कॉलेज क्यों नहीं गया? क्या हुआ?" सुमन की आवाज़ में माँ का प्यार था, लेकिन रात की वो यादें दोनों के बीच दीवार बन गई थीं। सुमन का अतीत उसे सताता – ठाकुर के साथ की मजबूरी, राहुल का देखना, और अब उनका बदला संबंध। "मैं अच्छी माँ नहीं हूँ," वो खुद से कहती, लेकिन राहुल के लिए जीती। राहुल ने झूठ बोला, "सिर दर्द है माँ। आज आराम करूँगा।" सुमन ने उसके माथे पर हाथ रखा, "ठीक है बेटा। मैं बाज़ार जा रही हूँ, सब्ज़ी लाने। तू आराम कर।" सुमन चली गई, और घर खाली हो गया। राहुल बाहर आँगन में बैठा, किताब खोली लेकिन पढ़ाई नहीं हुई। उसकी नज़र पड़ोस के घर पर गई – सरला काकी का घर। सरला काकी, उम्र 40 साल, विधवा, अकेली रहती। राहुल को बचपन से जानती, हमेशा चाय पिलाती, बातें करती। लेकिन आज राहुल को लगा, शायद वो बात करके मन हल्का कर ले। "काकी से बात करूँ," वो सोचा और उनके घर की ओर चला।
सरला का घर छोटा लेकिन साफ-सुथरा था – दीवारें सफेद, आँगन में तुलसी का पौधा, और अंदर अगरबत्ती की खुशबू। सरला सिलाई मशीन पर काम कर रही थी, उसकी साड़ी हरी, जो उसके कामुक शरीर को लपेटे हुए थी। सरला का अतीत दुखद था – पति की मौत शराब की लत से हुई थी, कोई बच्चा नहीं, और गाँव में अकेली। वो सुमन की दोस्त थी, लेकिन ठाकुर से उसका भी पुराना संबंध रहा था, जो अब टूट चुका था। सरला अकेलेपन से जूझती, रातों को बिस्तर पर करवटें बदलती, सोचती – "कोई तो हो जो मुझे छुए, प्यार दे।" राहुल को देखकर उसके मन में ममता जागती, लेकिन अब वो बड़ा हो गया था, और सरला की आँखों में आकर्षण भी। "राहुल बेटा, आ गया? कॉलेज नहीं गया आज?" सरला ने मुस्कुराकर कहा, उसकी आवाज़ नरम और आमंत्रित। राहुल अंदर आया, "काकी, मन नहीं लगा। बात करनी थी।" सरला ने सिलाई रोकी, चाय बनाने लगी। "बैठ बेटा। क्या हुआ? तेरी माँ से बात की?" राहुल ने सब बताया – मीना का प्यार, मोना की जलन, चुदाई की घटना, और guilt। सरला सुनती रही, उसकी आँखें सहानुभूति से भरी। "बेटा, जीवन में गलतियाँ होती हैं। तू जवान है, भावनाएँ उमड़ती हैं। लेकिन दिल मत तोड़।"
चाय पीते हुए सरला करीब बैठी, उसका हाथ राहुल की जांघ पर रखा। "तू अकेला मत महसूस कर। मैं हूँ न। तेरी काकी हमेशा तेरे साथ।" राहुल ने महसूस किया – सरला की उँगलियाँ गर्म, स्पर्श में कुछ और। सरला का मन उथल-पुथल था – राहुल का जवान शरीर उसे आकर्षित कर रहा था। "वो बड़ा हो गया है, मजबूत। अगर वो मुझे छुए तो..." वो सोचती, और उसके शरीर में सिहरन दौड़ जाती। राहुल ने कहा, "काकी, आप अकेली रहती हैं। कभी उदास नहीं होतीं?" सरला हँसी, लेकिन आँखें नम, "होती हूँ बेटा। पति गए, कोई साथी नहीं। रातें लंबी लगती हैं।" वो करीब आई, राहुल के कंधे पर सिर रखा। "तू आया तो अच्छा लगा।" राहुल का दिल धड़का – सरला की खुशबू, उसके स्तनों की गर्माहट। "काकी..." राहुल बोला। सरला ने उसका हाथ पकड़ा, "बेटा, कभी जरूरत हो तो बता। मैं सब समझती हूँ।" बातें चलती रहीं – सरला ने अपना दुख बताया, कैसे पति की मौत ने उसे तोड़ दिया, कैसे ठाकुर ने फायदा उठाया लेकिन छोड़ दिया। राहुल सुनता, सहानुभूति महसूस करता। "काकी, आप मजबूत हैं।" सरला मुस्कुराई, "तू है तो ताकत आ जाती है।"
दोपहर बीती, सुमन अभी नहीं लौटी। सरला ने कहा, "बेटा, थक गया होगा। आराम कर ले मेरे कमरे में।" राहुल गया, बिस्तर पर लेटा। सरला अंदर आई, "मसाज कर दूँ? सिर दर्द जाएगा।" राहुल ने हाँ कहा। सरला उसके सिर पर हाथ फेरने लगी, लेकिन धीरे-धीरे कंधों पर। "आराम लग रहा?" सरला बोली। राहुल की आँखें बंद, लेकिन स्पर्श उत्तेजक। सरला का हाथ नीचे गया, कमीज के अंदर। "काकी..." राहुल बोला। सरला फुसफुसाई, "चुप बेटा। मैं जानती हूँ तुझे क्या चाहिए।" वो राहुल के ऊपर झुकी, उसके स्तन राहुल के चेहरे के पास। राहुल ने छुआ, सरला कराही, "आह... दबा न।" राहुल ने दबाया, सरला के बड़े स्तन नरम लेकिन कड़े निप्पल। "काकी, ये गलत..." राहुल बोला। सरला हँसी, "गलत क्या? हम दोनों अकेले हैं।" वो ब्लाउज उतारी, स्तन बाहर। "चूस ले बेटा।" राहुल ने चूसा, सरला की कराह निकली, "उफ्फ... जोर से... कितने साल बाद..." सरला का शरीर गर्म, वो राहुल की पैंट खोलने लगी। "तेरा कितना बड़ा... वाह।" सरला ने लंड पकड़ा, चूसा। राहुल सिसकारा, "काकी... आह..." सरला की जीभ घूम रही, लंड गीला। "मुझे चोद बेटा," सरला बोली। राहुल ने सरला को लिटाया, साड़ी उतारी। सरला की चूत बालों वाली, गीली। राहुल ने चाटी, सरला चिल्लाई, "आह... चाट जोर से... उफ्फ..." राहुल ने लंड डाला, सरला की चूत अनुभवी लेकिन टाइट। "चोद मुझे... जोर से... फाड़ दे..." सरला कमर हिला रही। धक्के तेज, सरला झड़ी, राहुल ने उसके मुँह में झाड़ा। "अब रोज आना बेटा," सरला बोली। राहुल को मजा आया, लेकिन guilt फिर।
शाम हुई, सुमन लौटी। राहुल घर आया, लेकिन सरला की याद सता रही। सरला अकेली लेटी, सोचती – "राहुल ने मुझे जीवंत कर दिया।" गाँव की रातें अब बदलने लगीं।
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#10
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भाग 7: टीचर की बीवी रेखा से मुलाकात (नदी किनारे की अकेली दोपहर और अनजानी इच्छाओं का जागना)

रामपुर गाँव में वो शाम की हवा अब थोड़ी ठंडी हो चली थी, लेकिन राहुल के मन में अभी भी गर्माहट की लहरें दौड़ रही थीं। सूरज डूबने की कगार पर था, आकाश में नारंगी रंग फैला हुआ था, और दूर से नदी की कलकल सुनाई दे रही थी। राहुल घर के आँगन में बैठा रहा, उसके हाथ में एक पुरानी किताब थी लेकिन आँखें पन्नों पर नहीं टिक रही थीं। कल दोपहर सरला काकी के साथ बिताए पल उसे सता रहे थे – काकी की नरम त्वचा, उसकी कराहें, और वो चुदाई जो देखभाल से शुरू होकर उत्तेजना में खत्म हुई थी। "काकी के साथ अच्छा लगा, लेकिन मीना की याद क्यों आ रही है? मोना का चेहरा क्यों सता रहा?" राहुल सोचता, और उसके दिल में एक उलझन थी। guilt और मजा का ये खेल उसे थका रहा था। मीना अब कॉलेज में नज़रें चुराती, मोना गायब, और घर पर माँ सुमन से बातें कम हो गईं। वो उठा, साइकिल उठाई, और नदी किनारे जाने का फैसला किया। "शायद पानी की ठंडक मन को शांत कर दे," वो सोचा। गाँव की पगडंडी से गुजरते हुए वो खेतों को देखता – हरी फसलें लहरा रही थीं, किसान घर लौट रहे थे, लेकिन राहुल को सब उदास लग रहा था।
सुमन घर पर रसोई में काम कर रही थी, उसके मन में भी उथल-पुथल थी। राहुल की उदासी उसे दिख रही थी, लेकिन खुद का राज़ उसे चुप करा देता। "बेटा बड़ा हो रहा है, लेकिन मैं उसे खुश नहीं रख पा रही," वो सोचती, और ठाकुर की हवेली जाने का समय हो रहा था। "आज जल्दी लौटूँगी," सुमन ने खुद से वादा किया। लेकिन राहुल पहले ही निकल चुका था। नदी किनारे पहुँचकर राहुल साइकिल खड़ी की, घास पर बैठ गया। पानी साफ था, छोटी-छोटी मछलियाँ तैर रही थीं, और हवा में मिट्टी की महक। राहुल पत्थर फेंकने लगा, उसके मन में मीना की याद – वो पहला सेक्स, मीना की कराहें। "मीना, तू क्यों दूर हो गई?" वो बुदबुदाया। अचानक पीछे से आवाज़ आई, "राहुल? तू यहाँ क्या कर रहा है?" राहुल मुड़ा, वहाँ रेखा खड़ी थी – उसके कॉलेज टीचर की बीवी। रेखा उम्र 32 साल, सुंदर और आकर्षक – लंबे काले बाल, स्लिम फिगर, और आज लाल साड़ी में जो उसके गोरे शरीर को और निखार रही थी। रेखा का चेहरा शांत लेकिन आँखों में एक अकेलापन।
रेखा गाँव के कॉलेज टीचर की पत्नी थी, लेकिन टीचर अक्सर शहर जाते थे – पढ़ाई के सिलसिले में या परिवार से मिलने। रेखा अकेली रहती, घर संभालती, लेकिन दिल में एक खालीपन। उसका अतीत: शादी के शुरुआती साल खुश थे, लेकिन पति की अनुपस्थिति ने उसे उदास कर दिया। सेक्स की कमी, अकेली रातें – रेखा रातों को सोचती, "कोई तो हो जो मुझे महसूस कराए, छुए।" राहुल को वो कॉलेज से जानती थी – होनहार छात्र, गरीब लेकिन मेहनती। "रेखा आंटी? आप यहाँ?" राहुल हैरान होकर बोला। रेखा मुस्कुराई, "हाँ बेटा, कभी-कभी नदी किनारे आती हूँ। मन शांत होता है। तू उदास लग रहा है। कॉलेज क्यों नहीं आया आज?" वो राहुल के पास बैठ गई, उसकी साड़ी हवा में लहराई, और राहुल को उसकी खुशबू महसूस हुई – फूलों जैसी। राहुल ने झिझकते हुए कहा, "आंटी, मन नहीं लगा। घर की टेंशन, दोस्तों से झगड़ा..." रेखा ने सहानुभूति से देखा, "बताना चाहे तो बता। मैं सुनूँगी।"
दोनों बातें करने लगे। रेखा ने अपना दुख बताया – पति दूर, अकेलापन, गाँव में कोई दोस्त नहीं। "बेटा, शादी के बाद लगता था जीवन सुंदर होगा, लेकिन अब रातें लंबी लगती हैं।" उसकी आवाज़ में दर्द था, आँखें नम। राहुल ने अपनी कहानी सुनाई – मीना का प्यार, मोना की जलन, सरला काकी के साथ का पल (बिना डिटेल के), और माँ का राज़। "आंटी, सब उलझ गया है। guilt खा रही है।" रेखा ने राहुल का हाथ पकड़ा, "तू जवान है राहुल। भावनाएँ आती हैं। लेकिन दिल मत तोड़। मैं भी अकेली हूँ, समझती हूँ।" राहुल ने महसूस किया – रेखा का हाथ नरम, गर्म। वो करीब बैठी, उसकी जांघ राहुल की जांघ से छू रही। हवा ठंडी थी, लेकिन दोनों के बीच गर्माहट बढ़ रही। रेखा सोचती, "राहुल कितना प्यारा है। जवान, मजबूत। अगर वो मुझे छुए तो..." उसके शरीर में सिहरन दौड़ी। राहुल की नज़र रेखा की साड़ी पर गई – ब्लाउज से उसके स्तनों की आउटलाइन दिख रही थी। "आंटी, आप सुंदर हैं। टीचर सर खुशकिस्मत हैं," राहुल बोला। रेखा हँसी, "सुंदर? अब कहाँ। लेकिन तू कह रहा है तो मान लेती हूँ।"
बातें गहराती गईं। रेखा ने कहा, "राहुल, कभी-कभी स्पर्श की जरूरत होती है। अकेलापन मार डालता है।" वो राहुल के कंधे पर सिर रखा, उसके बाल राहुल के चेहरे पर लगे। राहुल का दिल तेज धड़का, "आंटी..." रेखा ने आँखें बंद की, "चुप। बस ऐसे ही रह।" राहुल का हाथ रेखा की कमर पर गया, वो सहम गई लेकिन रुकी नहीं। "छू ले राहुल। मुझे अच्छा लग रहा," रेखा फुसफुसाई। राहुल ने कमर दबाई, रेखा की साड़ी सरक गई। वो उठी, "चल, झाड़ियों के पीछे। कोई देख लेगा।" दोनों झाड़ियों में गए, शाम का अंधेरा छा रहा था। रेखा ने साड़ी उतारी, ब्लाउज और पेटीकोट में खड़ी। उसके शरीर की आउटलाइन – पतली कमर, उभरे स्तन, गोरी जांघें। राहुल स्तब्ध, "आंटी, आप देवी हो।" रेखा मुस्कुराई, "चूम ले।" राहुल ने होंठ मिलाए, किस गहरा – रेखा की जीभ राहुल के मुँह में। "आह... राहुल..." रेखा कराही। राहुल ने ब्लाउज उतारा, ब्रा से स्तन बाहर। वो चूसा, रेखा के निप्पल कड़े। "जोर से चूस... उफ्फ... कितने साल बाद..." रेखा का हाथ राहुल की पैंट पर, लंड खड़ा महसूस किया। "वाह, कितना बड़ा।"
रेखा घुटनों पर बैठी, पैंट उतारी, लंड चूसा। राहुल सिसकारा, "आंटी... आह... धीरे..." रेखा की जीभ घूम रही, लंड गीला। "मुझे चोद राहुल। मुझे जीवंत कर," रेखा बोली। राहुल ने रेखा को घास पर लिटाया, पेटीकोट ऊपर किया। रेखा की चूत शेव्ड, गीली। राहुल ने चाटी, रेखा चिल्लाई, "आह... जीभ अंदर... उफ्फ... मजा आ रहा..." राहुल ने उँगली डाली, रेखा कमर हिलाई। "डाल दे अब... नहीं रुक सकती।" राहुल ने लंड रखा, धीरे डाला। रेखा की चूत टाइट, "उफ्फ... दर्द और मजा... जोर से..." धक्के शुरू, रेखा कराह रही, "चोद मुझे... फाड़ दे मेरी चूत... आह राहुल..." राहुल तेज हुआ, रेखा के स्तन हिल रहे। "आंटी... आपकी चूत कितनी गर्म..." दोनों का पसीना, कराहें गूँज रही। रेखा झड़ी, "आह... मैं गई..." राहुल ने बाहर झाड़ा। रेखा पड़ी रही, "राहुल, तूने मुझे खुश कर दिया। फिर मिलना।" राहुल को मजा आया, लेकिन guilt फिर। "मीना को पता चले तो..."
रात हुई, राहुल घर लौटा। रेखा घर गई, सोचती – "राहुल ने मुझे नई जिंदगी दी।" गाँव की शाम अब रहस्यों से भरी थी।
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#11
[img=539x1200][Image: 20250906-172628.jpg] [Image: 20250906-172555.jpg][/img]Guy's ye meri first long story hai to please support and koi bhi suggestion ho to free to tell main use bhi add kr dunga kuch bhi jo aapko kami Lage bas bol dena yahan ya tum mujhe mere personal mail I'd pe mail bhi kr skte ho albertprince547; 

Thanks & enjoy
Fuckuguy
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#12
Fucking awesome update
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#13
(07-09-2025, 02:09 PM)Yash121 Wrote: Fucking awesome update

Thanks you brother Pasand aaye to stars  zaroor dena yaar, motivation milta hai!
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#14
[img=539x1200][Image: 20250906-172628.jpg] [Image: 20250906-172555.jpg][Image: 20250907-151627.jpg][/img]



*बड़ी* अजीब *लत* है
पहले *पोस्ट* करो,
फिर *निगरानी* में लगे *रहो* 
कोई *LiKe* ♥️ कर रहा है या *नहीं* ...

?????
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#15
[img=539x1200][Image: RDT-20250908-0303271063218210970516183.jpg][/img]
भाग 8: गाँव के मेले की तैयारी और cousins का आना (भावनात्मक विकास और नई उम्मीदों की शुरुआत)

रामपुर गाँव में दिवाली का मेला आने वाला था, और पूरा गाँव उत्साह से भरा हुआ था। सुबह की धुंध अभी छँटी नहीं थी, लेकिन हवा में मिठाइयों की महक और झालरों की चमक पहले से ही महसूस हो रही थी। राहुल का छोटा सा घर आज थोड़ा अलग लग रहा था – आँगन में सुमन ने रंगोली बनाई थी, दीवारों पर पुरानी लाइटें टांगी थीं, और रसोई से गुड़ की मिठाई की खुशबू आ रही थी। राहुल बिस्तर से उठा, उसके मन में कल शाम रेखा के साथ बिताए पलों की यादें ताज़ा थीं – रेखा की गर्म चूत, उसकी कराहें, और वो मजा जो guilt के साथ मिला था। लेकिन आज वो खुद को संभालने की कोशिश कर रहा था। "बस, अब पढ़ाई पर फोकस करूँगा। मेला आएगा, शायद मन बहल जाएगा," राहुल सोचता, और आईने में खुद को देखा। उसका शरीर अब मजबूत हो रहा था – रोज़ की साइकिलिंग और घर के काम से मसल्स उभर आए थे, चेहरा गंभीर लेकिन आकर्षक। गरीबी ने उसे physically strong बनाया था, लेकिन emotionally वो अभी भी कमज़ोर था। मीना की दूरी, मोना का अलगाव, सरला काकी और रेखा के साथ के राज़ – सब उसे सताते। "मैं क्यों हर बार गिर जाता हूँ? सेक्स मजा देता है, लेकिन बाद में खालीपन क्यों?" वो खुद से सवाल करता, और फैसला करता – "अब mentally मजबूत बनूँगा। किताबें पढ़ूँगा, सपनों पर फोकस करूँगा। शहर जाना है, माँ को खुश रखना है।"
सुमन रसोई में थी, उसके हाथों में आटा गूंथा हुआ था। वो राहुल को देखकर मुस्कुराई, "बेटा, आज मेला की तैयारी है। शहर से तेरी cousins आ रही हैं – रीता और सीमा। तू उन्हें घुमाना।" सुमन का दिल आज हल्का था – मेले की वजह से गाँव में खुशी थी, और राहुल की उदासी कम लग रही थी। लेकिन अंदर से वो चिंतित थी, ठाकुर ने कल फिर बुलाया था, लेकिन वो मना कर आई थी। "अब बस, राहुल के लिए जीऊँगी," सुमन सोचती। राहुल ने नाश्ता किया – रोटी और दाल, और बोला, "माँ, मैं बाज़ार जाकर मेले की चीज़ें लाता हूँ।" सुमन ने पैसे दिए, "जल्दी लौटना बेटा।" राहुल साइकिल पर निकला, गाँव की सड़कों से गुजरते हुए वो सोचता रहा। बाज़ार में भीड़ थी – मिठाइयाँ, पटाखे, झालरें। राहुल ने कुछ मिठाई खरीदी, और एक किताब स्टॉल पर रुका। वहाँ एक किताब मिली – "सपनों की उड़ान" नाम की, जो महत्वाकांक्षा और संघर्ष की कहानी थी। "ये पढ़ूँगा," राहुल ने सोचा, और खरीद ली। किताब पढ़कर वो emotionally grow कर रहा था – किताब में हीरो गरीबी से निकलता है, राहुल को लगा, "मैं भी कर सकता हूँ। सेक्स से दूर रहूँगा, फोकस पढ़ाई पर।" physically वो रोज़ सुबह दौड़ने लगा था, शरीर मजबूत बनाने के लिए। mentally, वो डायरी लिखने लगा – अपनी भावनाएँ, guilt, और सपने। "मीना, मोना, सब भूल जाऊँगा। अब खुद के लिए जिऊँगा," वो लिखता।
दोपहर हुई, स्टेशन से cousins आईं – रीता और सीमा। रीता 19 साल की, शहर की लड़की, bold और आकर्षक – छोटी ड्रेस, लंबे बाल, और मुस्कान जो किसी को भी लुभा ले। सीमा 17 साल की, शर्मीली लेकिन प्यारी – सलवार सूट में, गोरी चमड़ी, और बड़ी आँखें। दोनों राहुल की मौसी की बेटियाँ थीं, बचपन में साथ खेलते थे। राहुल उन्हें लेने गया, "रीता दी, सीमा, कैसे हो?" रीता ने गले लगाया, "राहुल भाई, तू कितना बड़ा हो गया! शहर जैसा लग रहा है।" सीमा शर्मा कर मुस्कुराई, "भाई, गाँव अभी भी वैसा ही है?" राहुल हँसा, "हाँ, लेकिन मेला आएगा, मजा आएगा।" घर लौटते हुए बातें हुईं – रीता ने शहर की कहानियाँ सुनाईं, कॉलेज की पार्टीज़, बॉयफ्रेंड्स। राहुल सुनता, लेकिन अंदर से सोचता, "शहर ऐसा है? मैं भी जाऊँगा।" सीमा चुप थी, लेकिन राहुल को देखकर शर्मा रही। घर पहुँचकर सुमन ने स्वागत किया, मिठाई दी। शाम को मेला शुरू होने वाला था – गाँव में स्टेज सजा, नाच-गाना, झूले। राहुल cousins को घुमाने ले गया। मेला में रंग-बिरंगी लाइटें, पटाखों की आवाज़, और भीड़। रीता उत्साहित, "चल, झूला झूलें!" तीनों झूले पर चढ़े, हवा में उड़ते हुए हँसे। राहुल को लगा, "कितने से हँसा नहीं था। cousins के साथ अच्छा लग रहा।" emotionally वो heal हो रहा था – परिवार का साथ उसे अपनापन दे रहा था।
रात हुई, मेला और चमकदार। रीता ने कहा, "राहुल, चल पीछे घूमें। भीड़ से दूर।" तीनों मेला के पीछे गए, जहाँ अंधेरा था लेकिन सितारे चमक रहे। रीता bold थी, राहुल को चिढ़ाया, "भाई, girlfriend है? शहर में तो लड़कियाँ लाइन लगाती होंगी तेरे जैसे के लिए।" राहुल हँसा, "नहीं दी, पढ़ाई पर फोकस है।" लेकिन रीता करीब आई, "झूठ मत बोल। तू इतना handsome है।" सीमा देख रही थी, शर्मा रही। रीता ने राहुल का हाथ पकड़ा, "चल, मस्ती करें। cousins हैं, कोई प्रॉब्लम नहीं।" राहुल हिचकिचाया, लेकिन रीता ने किस कर लिया। "दी..." राहुल बोला। रीता हँसी, "चुप। मुझे अच्छा लग रहा।" सीमा हैरान, "दी, ये क्या?" लेकिन रीता ने सीमा को भी खींचा, "जॉइन कर न।" राहुल का मन भटका – cousins के साथ? लेकिन शरीर प्रतिक्रिया दे रहा था। रीता ने अपनी ड्रेस ऊपर की, पैंटी दिखाई। "छू न राहुल।" राहुल ने छुआ, रीता गीली थी। "आह... राहुल... उँगली डाल..." रीता कराही। राहुल ने डाली, रीता सिसकारी, "उफ्फ... जोर से... ओoooooooohhhhhhh... कितना अच्छा... तू expert है रे..."
सीमा देख रही थी, डरती लेकिन उत्सुक। रीता wild थी – शहर की लड़की, अनुभवी। वो राहुल की पैंट खोली, लंड निकाला। "वाह... कितना बड़ा... Aaaaahhhhh... चूसूँगी..." रीता चूसने लगी, तेज़। राहुल कराहा, "दी... आह..." रीता wild हो गई, "Mmmmaaaaaaaaaaa... कya लंड है तेरा... चोद मुझे राहुल... मेरी चूत फाड़ दे..." राहुल ने रीता को घोड़ी बनाया, चूत में डाला। रीता चिल्लाई लेकिन मजा लेते हुए, "Ooooooooohhhhhhh... हाँ... जोर से... मेरी चूत फट गई... कितना बड़ा है रे तेरा... Aaaaahhhhh... रोज़ चुदवाऊँगी तुझसे..." धक्के तेज़, रीता कमर हिला रही, wild कराहें – "फाड़ दे... उफ्फ... मैं झड़ रही... Aaaaahhhhh..." रीता झड़ी, राहुल ने बाहर झाड़ा।
सीमा अब डर रही थी, "भाई... मैं कुंवारी हूँ..." लेकिन रीता ने कहा, "ट्राई कर न।" राहुल धीरे से सीमा के पास गया, किस किया। सीमा शर्मा कर बोली, "भाई... धीरे..." राहुल ने उसके सूट उतारे, छोटे स्तन चूसे। सीमा सिसकारी, "उफ्फ... दर्द... लेकिन अच्छा..." राहुल नीचे गया, चूत चाटी। सीमा चिल्लाई, "निकालो... बहुत बड़ा लग रहा... दर्द हो रहा..." लेकिन राहुल धीरे से उँगली डाली, सीमा धीरे-धीरे मजा लेने लगी, "आह... अब अच्छा... सिसकारी... उफ्फ..." फिर राहुल ने लंड रखा, धीरे डाला। सीमा चिल्लाई, "Aaaaahhhhh... निकालो... बहुत बड़ा है... दर्द हो रहा... चूत फट जाएगी..." लेकिन राहुल रुका, चूमता रहा। धीरे-धीरे सीमा को मजा आया, सिसकारियाँ लेने लगी, "उफ्फ... अब अच्छा... धीरे चोद... आह..." फिर वो wild हुई, "जोर से... Ooooooooohhhhhhh... राहुल... चोद मुझे... मेरी चूत तेरी... Aaaaahhhhh... कितना मजा..." धक्के तेज़, सीमा झड़ी, "Mmmmaaaaaaaaaaa... मैं गई..." राहुल ने बाहर झाड़ा।
तीनों लेटे रहे, सितारे देखते। रीता बोली, "राहुल, तू कमाल है।" सीमा शर्मा कर, "भाई, फिर करेंगे।" राहुल को मजा आया, लेकिन guilt नहीं – "ये परिवार है, अपनापन है।" emotionally वो मजबूत हो रहा था, cousins के साथ हँसकर। मेले की रात बीती, राहुल ने सोचा, "अब शहर की तैयारी करूँगा।" physically वो दौड़ता रहा, किताब पढ़ता रहा। story आगे बढ़ रही थी, राहुल grow कर रहा था – mentally सपनों से, emotionally परिवार से।
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#16
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भाग 9: मेले में शरारतें और ठाकुर की हवेली का काम (मानसिक मजबूती का विकास और नई जिम्मेदारियों की शुरुआत)


रामपुर गाँव में दिवाली का मेला अब पूरे शबाब पर था, लेकिन राहुल के लिए ये सिर्फ एक बहाना था खुद को व्यस्त रखने का। सुबह की पहली किरणें अभी-अभी निकली थीं, हवा में हल्की ठंडक थी, और दूर से मेले की आवाज़ें – झूलों की चरचराहट, पटाखों की गूँज, और बच्चों की हँसी – गाँव को जीवंत बना रही थीं। राहुल का छोटा सा कच्चा घर आज थोड़ा चमकदार लग रहा था – आँगन में रंगोली के रंग बिखरे हुए, दरवाज़े पर टंगी झालरें हवा में हिल रही थीं, और रसोई से माँ सुमन के हाथों की बनी मिठाइयों की महक फैल रही थी। राहुल बिस्तर से उठा, उसके शरीर में एक नई ऊर्जा थी – कल रात cousins रीता और सीमा के साथ बिताए पलों की यादें अभी ताज़ा थीं, लेकिन आज वो खुद को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहा था। "कल का मजा अच्छा था, लेकिन अब बस। सेक्स हर समस्या का हल नहीं। मुझे mentally मजबूत बनना है," राहुल सोचता, और खिड़की से बाहर देखा। गाँव की पगडंडी पर लोग मेले की ओर जा रहे थे, खेतों में हरी फसलें लहरा रही थीं, और आकाश साफ नीला था। राहुल ने फैसला किया – आज सुबह दौड़ लगाऊँगा। physically मजबूत बनना उसके लिए अब एक लक्ष्य था; रोज़ की दौड़ से उसके पैर मजबूत हो रहे थे, साँसें नियंत्रित, और शरीर में स्टैमिना बढ़ रहा था। वो बाहर निकला, गाँव की सड़कों पर दौड़ने लगा – हवा उसके चेहरे से टकरा रही थी, पसीना बह रहा था, लेकिन मन शांत हो रहा था। "शहर में  sex  करने के लिए body और mind दोनों मजबूत चाहिए," वो खुद से कहता, और दौड़ते हुए किताब "सपनों की उड़ान" की बातें याद करता। किताब में हीरो गरीबी से लड़ता है, छोटी-छोटी जीत से बड़ा बनता है। राहुल emotionally grow कर रहा था – guilt कम हो रही थी, सपने साफ हो रहे थे। "मीना, मोना, रेखा, सरला – सब अतीत है। अब माँ और खुद के लिए जिऊँगा।"
दौड़ से लौटकर राहुल ने नहाया, ठंडे पानी से शरीर को तरोताज़ा किया। सुमन ने नाश्ता परोसा – गर्म रोटियाँ, दही, और घर की बनी चटनी। "बेटा, आज मेला घूम आए। cousins इंतज़ार कर रही हैं," सुमन ने कहा, उसके चेहरे पर मुस्कान लेकिन आँखों में चिंता। सुमन का मन आज हल्का था – मेले की वजह से गाँव में खुशी थी, और राहुल की उदासी कम लग रही थी। लेकिन ठाकुर की हवेली का काम उसे सता रहा था; कल ठाकुर ने फिर बुलाया था, लेकिन वो मना कर आई थी। "अब पैसे की व्यवस्था कैसे करूँ? राहुल की पढ़ाई..." सुमन सोचती, लेकिन राहुल से कुछ नहीं कहा। राहुल ने खाते हुए माँ से बात की, "माँ, मैं ठाकुर की हवेली में पार्ट-टाइम काम करने लगा हूँ। बगीचे का काम, पैसे मिलेंगे।" सुमन चौंकी, "बेटा, ठाकुर... वो..." लेकिन राहुल ने काटा, "माँ, मैं संभाल लूँगा। तुम चिंता मत करो।" emotionally राहुल मजबूत हो रहा था – माँ की जिम्मेदारी अब वो उठा रहा था, guilt से निकलकर responsibility ले रहा था। सुमन की आँखें नम हो गईं, "तू बड़ा हो गया बेटा। लेकिन सावधान रहना।" राहुल ने माँ को गले लगाया, "सब ठीक होगा माँ।"
सुबह बीती, राहुल cousins के साथ मेला घूमने निकला। रीता और सीमा तैयार थीं – रीता छोटी स्कर्ट में, सीमा सलवार सूट में। मेला अब दिन की रोशनी में और चमकदार लग रहा था – स्टॉलों पर मिठाइयाँ, खिलौने, और झूले घूम रहे थे। राहुल ने उन्हें घुमाया – पहले चाट का स्टॉल, जहाँ तीनों ने तीखी चाट खाई। रीता हँसती, "राहुल भाई, शहर में ऐसी चाट नहीं मिलती। तू साथ होता तो मजा आता।" सीमा शर्मा कर बोली, "भाई, कल रात की याद आ रही है।" राहुल मुस्कुराया लेकिन टॉपिक बदल दिया, "चलो, नाच देखें।" स्टेज पर लोक नृत्य हो रहा था – लड़कियाँ रंग-बिरंगी साड़ियों में घूम रही थीं, ढोल की थाप पर कमर हिला रही थीं। राहुल देखता रहा, लेकिन मन में सेक्स की बजाय संगीत का मजा ले रहा था। "पहले तो ऐसी चीज़ें उत्तेजित करतीं, लेकिन अब  है," वो सोचा। mentally वो grow कर रहा था – किताब पढ़कर, डायरी लिखकर, खुद को समझकर। cousins के साथ हँसना-बोलना उसे अपनापन दे रहा था; रीता की bold बातें, सीमा की शर्म – सब परिवार जैसा लगता। emotionally राहुल heal हो रहा था – बचपन की यादें ताज़ा हो रही थीं, गरीबी की कड़वाहट कम हो रही थी।
दोपहर हुई, राहुल ठाकुर की हवेली जाने लगा। "काम है, शाम को मिलते हैं," वो cousins से बोला। हवेली बड़ी थी – ऊँची दीवारें, बड़ा बगीचा, और अंदर ठाकुर का राज। राहुल बगीचे में काम करने लगा – पौधों को पानी देना, घास काटना। physically ये काम उसे मजबूत बना रहा था – पसीना बहता, मसल्स दर्द करते, लेकिन संतुष्टि मिलती। ठाकुर बाहर आया, उसका मोटा शरीर, दाढ़ी वाला चेहरा, और आँखों में लालच। "राहुल, अच्छा काम कर रहा है। तेरी माँ को बोल, आज शाम आए।" राहुल का गुस्सा भड़का, लेकिन शांत रहा, "साहब, माँ अब नहीं आएगी। मैं हूँ न काम के लिए।" ठाकुर हँसा, "बड़ा हो गया रे। लेकिन याद रख, गाँव मेरा है।" राहुल चुप रहा, लेकिन अंदर से मजबूत महसूस कर रहा था – "अब ठाकुर से नहीं डरूँगा। पैसे कमाऊँगा, माँ को बचाऊँगा।" काम करते हुए वो सोचता रहा – शहर जाने का प्लान, कॉलेज पास करना, और नई जिंदगी। mentally वो प्लान बना रहा था – किताब से इंस्पिरेशन लेकर, छोटे लक्ष्य सेट कर। emotionally, माँ की चिंता उसे motivate कर रही थी।
शाम हुई, राहुल घर लौटा। cousins इंतज़ार कर रही थीं। रीता ने कहा, "चल, फिर मेला घूमें। रात का मजा अलग है।" तीनों निकले – मेला अब लाइटों से जगमगा रहा था, पटाखे फूट रहे थे, और भीड़ में हँसी-ठिठोली। राहुल ने आइसक्रीम खरीदी, तीनों ने खाई। सीमा ने कहा, "भाई, शहर आना। वहाँ पढ़ाई कर।" राहुल ने हाँ कहा, "जल्दी आऊँगा।" रात गहराती गई, cousins के साथ बातें – रीता की शहर की कहानियाँ, सीमा की शरारतें। राहुल हँसता रहा, अपनापन महसूस करता। "परिवार ही ताकत है," वो सोचा। सेक्स की बजाय, आज का दिन विकास का था – physically काम से, mentally प्लानिंग से, emotionally बॉन्डिंग से। राहुल की story आगे बढ़ रही थी, वो अब सिर्फ गरीब लड़का नहीं, एक महत्वाकांक्षी युवा बन रहा था।
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#17
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भाग 10: ठाकुर की हवेली में नई मुलाकातें और चुनौतियाँ (संघर्ष की शुरुआत, मानसिक मजबूती का परीक्षण, और अप्रत्याशित आकर्षण


रामपुर गाँव में दिवाली का मेला अब अपने चरम पर पहुँच चुका था, लेकिन राहुल के जीवन में ये सिर्फ एक पड़ाव था – एक ऐसा पड़ाव जहाँ खुशी और चुनौतियाँ दोनों मिलकर उसकी परीक्षा ले रही थीं। सुबह की हल्की धुंध अभी पूरी तरह से छँटी नहीं थी, लेकिन सूरज की किरणें धीरे-धीरे गाँव की छतों पर पड़ रही थीं, उन्हें सुनहरा बना रही थीं। हवा में अभी भी पटाखों की बारूद की महक बसी हुई थी, और दूर से मेले के स्टॉलों से उठती मिठाइयों और चाट की खुशबू पूरे गाँव को सराबोर कर रही थी। राहुल का छोटा सा कच्चा घर आज थोड़ा शांत लग रहा था – आँगन में कल की रंगोली अभी भी बिखरी हुई थी, लेकिन हवा में उड़कर उसके रंग फीके पड़ने लगे थे, जैसे राहुल के मन की उथल-पुथल को दर्शा रहे हों। राहुल बिस्तर पर लेटा रहा, उसकी आँखें छत की फटी हुई दरारों पर टिकी हुई थीं, लेकिन दिमाग कहीं और भटक रहा था। कल रात cousins रीता और सीमा के साथ मेले के पीछे बिताए पलों की यादें अभी भी उसके शरीर में सिहरन पैदा कर रही थीं – रीता की wild कराहें, सीमा की शुरुआती चीखें जो धीरे-धीरे सिसकारियों में बदल गईं थीं, और वो मजा जो परिवार के अपनापन के साथ मिला था। लेकिन आज सुबह वो खुद को रोक रहा था, सोच रहा था, "ये सब कितना सही है? सेक्स मजा देता है, लेकिन बाद में मन क्यों भारी हो जाता है? क्या मैं सिर्फ शरीर की भूख का गुलाम बन रहा हूँ?" guilt की एक हल्की लहर फिर से उठी, लेकिन इस बार राहुल ने उसे दबाने की कोशिश की। वो उठा, खिड़की से बाहर देखा – गाँव की पगडंडी पर लोग अपने कामों में लगे थे, खेतों में किसान हल चला रहे थे, और दूर मेले का मैदान अब खाली हो रहा था, लेकिन कल की यादें अभी भी हवा में तैर रही थीं। राहुल ने फैसला किया – आज फिर दौड़ लगाऊँगा, शरीर को मजबूत बनाऊँगा। physically वो अब रोज़ की रूटीन पर अमल कर रहा था; दौड़ से उसके पैरों में ताकत आ रही थी, साँसें लंबी हो रही थीं, और शरीर में एक नई ऊर्जा का संचार हो रहा था। "शहर में अगर सफल होना है, तो body fit होनी चाहिए," वो खुद से कहता, और दौड़ते हुए अपनी डायरी की एंट्री याद करता – कल रात की एंट्री: "रीता और सीमा के साथ अच्छा लगा, लेकिन ये परिवार है। guilt मत रख, लेकिन कंट्रोल सीख। सपने पर फोकस कर।"
दौड़ से लौटकर राहुल ने ठंडे पानी से नहाया, उसके शरीर पर पानी की बूँदें गिर रही थीं, और वो महसूस कर रहा था कि physically वो बदल रहा है – उसके कंधे चौड़े हो रहे थे, पेट की मसल्स उभर रही थीं, और चेहरा अब पहले से ज्यादा भरा लग रहा था। सुमन रसोई में थी, उसके हाथों में आटे की लोई थी, और वो रोटियाँ बेल रही थी। सुमन का चेहरा आज थोड़ा थका हुआ लग रहा था – कल रात मेले की थकान, और ठाकुर की हवेली का काम जो अब राहुल संभाल रहा था, लेकिन सुमन को चिंता थी। "बेटा, नाश्ता कर ले। आज हवेली जाना है?" सुमन ने पूछा, उसकी आवाज़ में ममता लेकिन एक हल्की चिंता। राहुल ने प्लेट ली, रोटी और सब्ज़ी खाते हुए कहा, "हाँ माँ, काम है। लेकिन तुम चिंता मत करो, मैं सब संभाल लूँगा। ठाकुर से डरना नहीं है।" सुमन की आँखें नम हो गईं, "बेटा, तू बड़ा हो गया है। लेकिन वो ठाकुर क्रूर है, सावधान रहना।" राहुल ने माँ का हाथ पकड़ा, "माँ, मैं अब मजबूत हूँ। तुम्हारे लिए, खुद के लिए। शहर जाकर सब बदल दूँगा।" emotionally राहुल का विकास हो रहा था – माँ की चिंता उसे motivate कर रही थी, guilt से निकलकर responsibility ले रहा था। सुमन ने राहुल के सिर पर हाथ फेरा, "भगवान तुझे खुश रखे बेटा।" नाश्ता खत्म कर राहुल ने अपनी किताब "सपनों की उड़ान" खोली, कुछ पन्ने पढ़े – किताब में हीरो गरीबी से लड़ता है, छोटी-छोटी चुनौतियों से सीखता है। राहुल ने डायरी में लिखा: "आज ठाकुर की हवेली में काम। mentally तैयार रहूँगा, कोई लालच नहीं। सपने याद रख।" mentally वो अब प्लान बना रहा था – कॉलेज पास करने के बाद शहर का कॉलेज, पार्ट-टाइम जॉब, और माँ को साथ ले जाना। "एक दिन अमीर बनूँगा, माँ को राजरानी बनाऊँगा," वो सोचता, और दिल में एक नई उम्मीद जागती।
सुबह बीती, राहुल ठाकुर की हवेली की ओर चला। हवेली गाँव के बीच में थी – ऊँची दीवारें, बड़ा दरवाज़ा, और अंदर एक विशाल बगीचा जहाँ फूलों की क्यारियाँ, फव्वारे, और पेड़ों की छाया थी। राहुल अंदर घुसा, ठाकुर के नौकर ने उसे बगीचे में काम पर लगा दिया – पौधों को पानी देना, घास काटना, और फूलों की देखभाल। physically ये काम कठिन था – सूरज की धूप में पसीना बह रहा था, हाथों में छाले पड़ रहे थे, लेकिन राहुल नहीं रुका। "ये काम पैसे देगा, माँ की मदद करेगा," वो सोचता, और काम करता रहा। बगीचे में काम करते हुए वो ठाकुर की परिवार से मिला – ठाकुर की बहू प्रीति, उम्र 28 साल, शादीशुदा लेकिन पति शहर में काम करता था। प्रीति सेक्सी थी – बड़े स्तन, पतली कमर, और गोरी चमड़ी। वो हवेली की बालकनी से देख रही थी, उसके बाल खुले थे, और साड़ी में उसके कर्व्स उभर रहे थे। प्रीति का मन अकेला था – पति दूर, सास ठाकुरैन से नहीं बनती, और हवेली में बोरियत। वो राहुल को देखकर सोचती, "ये लड़का मजबूत लगता है। काम करता हुआ कितना attractive。" राहुल ने नज़र उठाई, प्रीति मुस्कुराई, "राहुल, पानी ठीक से देना। फूल मुरझा गए तो ठाकुर गुस्सा करेंगे।" राहुल ने हाँ कहा, लेकिन काम पर फोकस रखा। लेकिन प्रीति नीचे आई, "बेटा, थक गया होगा। चाय पी ले।" राहुल ने मना किया, "नहीं भाभी, काम है।" लेकिन प्रीति ने जोर दिया, "आ, बैठ।" दोनों बगीचे के बेंच पर बैठे, चाय पीते हुए बातें हुईं। प्रीति ने अपना दुख बताया – शादी के बाद खुश थी, लेकिन पति की अनुपस्थिति ने सब बदल दिया। "अकेलापन सता रहा है राहुल। तू समझता है?" राहुल ने सहानुभूति दिखाई, "भाभी, जीवन कठिन है। लेकिन मजबूत बनो।" प्रीति करीब आई, उसका हाथ राहुल की जांघ पर, "तू मजबूत है। मुझे भी ताकत दे।" राहुल का मन भटका, लेकिन वो उठा, "भाभी, काम करूँ।" emotionally वो मजबूत हो रहा था – लालच से दूर रह रहा था।
दोपहर हुई, ठाकुर की बेटी काव्या आई – उम्र 20 साल, कॉलेज जाती, मॉडर्न लड़की – छोटी ड्रेस, लंबे बाल, और बोल्ड अंदाज़। काव्या शहर से पढ़कर आई थी, हवेली में बोर होती। वो राहुल को देखकर मुस्कुराई, "अरे, तू नया नौकर है? cute लग रहा।" राहुल ने कहा, "जी, पार्ट-टाइम काम।" काव्या ने चिढ़ाया, "काम छोड़, बात कर। गाँव में क्या मजा है?" दोनों बातें करने लगे – काव्या ने शहर की कहानियाँ सुनाईं, कॉलेज की पार्टीज़, दोस्त। राहुल सुनता, उसके सपने जागते। "मैं भी शहर जाऊँगा," राहुल बोला। काव्या हँसी, "आजा मेरे साथ।" लेकिन ठाकुर आ गया, "काव्या, अंदर जा। राहुल, काम कर।" राहुल काम पर लगा, लेकिन काव्या की आँखें उसे फॉलो कर रही थीं। ठाकुरैन मालती, उम्र 45, ठाकुर की दूसरी पत्नी, हवेली की मालकिन – कामुक शरीर, बड़े स्तन, और साड़ी में आकर्षक। मालती का मन लालची था – ठाकुर से शादी पैसे के लिए की, लेकिन अब बोर। वो राहुल को देखकर सोचती, "ये जवान लड़का... मजा आएगा।" शाम हुई, काम खत्म। ठाकुर ने पैसे दिए, "अच्छा काम। लेकिन तेरी माँ को बोल, कल आए।" राहुल ने साफ मना किया, "साहब, माँ नहीं आएगी। मैं हूँ।" ठाकुर गुस्सा हुआ, "देखते हैं।" राहुल घर लौटा, मन में चुनौती – "ठाकुर से लड़ूँगा।"
घर पर cousins इंतज़ार कर रही थीं। रीता बोली, "राहुल, शाम को फिर मेला चलें?" राहुल हाँ कहा, लेकिन थका था। शाम को तीनों निकले – मेला अब रात की लाइटों से जगमगा रहा था। झूले, नाच, और भीड़। राहुल ने उन्हें घुमाया, लेकिन मन हवेली पर था। रीता ने करीब आकर कहा, "भाई, कल रात जैसा फिर?" राहुल मना किया, "दी, अब नहीं। फोकस पढ़ाई पर।" रीता निराश, लेकिन समझी। सीमा ने हाथ पकड़ा, "भाई, तू बदल रहा है। अच्छा लग रहा।" राहुल हँसा, emotionally मजबूत महसूस कर। रात हुई, घर लौटे। राहुल डायरी लिखी – "हवेली में चुनौतियाँ, लेकिन मैं तैयार हूँ। physically मजबूत, mentally प्लान, emotionally परिवार।" कहानी धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी, राहुल का विकास जारी था।
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#18
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भाग 11: प्रीति भाभी के साथ गहराती दोस्ती और संघर्ष (मानसिक मजबूती की परीक्षा, भावनात्मक उलझनें, और अप्रत्याशित निकटता)


रामपुर गाँव में वो अगली सुबह थोड़ी अलग थी – हवा में दिवाली के मेले की थकान अभी भी बसी हुई थी, लेकिन सूरज की किरणें धीरे-धीरे गाँव को नई ऊर्जा दे रही थीं। धुंध की हल्की परत अभी भी खेतों पर छाई हुई थी, जैसे कोई पुरानी यादों का पर्दा जो आसानी से नहीं हटता। दूर से मुर्गों की बांग सुनाई दे रही थी, और गाँव की पगडंडी पर कुछ किसान अपने बैलों के साथ खेतों की ओर जा रहे थे, उनके कंधों पर हल लटका हुआ था। राहुल का छोटा सा कच्चा घर आज भी वैसा ही था – दीवारें फटी हुई, छत से हल्की धूप अंदर छन रही थी, और आँगन में कल की रंगोली के अवशेष बिखरे पड़े थे, जो हवा के झोंके से उड़कर इधर-उधर हो रहे थे। राहुल बिस्तर पर लेटा रहा, उसकी आँखें खुली हुई थीं लेकिन नींद अभी भी पूरी नहीं हुई थी। कल शाम ठाकुर की हवेली में बिताए समय की यादें उसके दिमाग में घूम रही थीं – ठाकुर का क्रूर हँसना, प्रीति भाभी की मुस्कान, काव्या की बोल्ड बातें, और ठाकुरैन मालती की चालाक नजरें। "हवेली जाना अब रोज़ की आदत बन रही है, लेकिन ठाकुर से सावधान रहना होगा," राहुल सोचता, और उसके मन में एक हल्का डर था, लेकिन साथ ही एक दृढ़ संकल्प भी। वो उठा, खिड़की से बाहर देखा – गाँव की जीवनचर्या शुरू हो चुकी थी, पड़ोस में सरला काकी का घर शांत था, और दूर नदी की कलकल अभी भी सुनाई दे रही थी, जैसे कोई पुरानी धुन जो कभी थमती नहीं। राहुल ने फैसला किया – आज फिर सुबह दौड़ लगाऊँगा, शरीर को और मजबूत बनाऊँगा। physically वो अब अपनी रूटीन पर सख्ती से अमल कर रहा था; रोज़ की दौड़ से उसके पैरों में ताकत आ रही थी, साँसें लंबी और नियंत्रित हो रही थीं, और शरीर में एक नई लचक आ गई थी – उसके कंधे चौड़े हो चुके थे, बाहें मज़बूत, और पेट की मसल्स अब स्पष्ट रूप से उभर रही थीं। "शहर में अगर सफल होना है, तो body fit होनी चाहिए, लेकिन mind और भी मजबूत," वो खुद से कहता, और दौड़ते हुए अपनी डायरी की कल की एंट्री याद करता: "हवेली में ठाकुर की चुनौती, लेकिन मैं नहीं झुकूँगा। guilt कम हो रही है, सपने साफ हो रहे हैं। माँ की चिंता मुझे ताकत दे रही है।"
दौड़ से लौटकर राहुल ने ठंडे पानी से नहाया – पानी की बूँदें उसके शरीर पर गिर रही थीं, और वो महसूस कर रहा था कि physically वो बदल रहा है; उसके छाती की मसल्स अब पहले से ज्यादा सख्त लग रही थीं, पैरों में दर्द होता लेकिन वो दर्द अब मजा दे रहा था, जैसे कोई जीत की निशानी। नहाकर वो बाहर आया, तौलिए से शरीर पोंछा, और आईने में खुद को देखा – चेहरा अब पहले से ज्यादा भरा लग रहा था, आँखें गहरी लेकिन चमकदार, और बाल अभी भी गीले जो उसके माथे पर गिर रहे थे। सुमन रसोई में थी, उसके हाथों में चाय की केतली थी, और वो चाय उबाल रही थी। सुमन का चेहरा आज थोड़ा चिंतित लग रहा था – कल रात ठाकुर ने फोन किया था, माँग की थी कि सुमन हवेली आए, लेकिन सुमन ने मना कर दिया था। "बेटा, चाय पी ले। आज हवेली जाना है?" सुमन ने पूछा, उसकी आवाज़ में ममता लेकिन एक हल्की कंपकंपी। राहुल ने चाय की प्याली ली, गरम चाय की सिप लेते हुए कहा, "हाँ माँ, काम है। लेकिन तुम चिंता मत करो, मैं ठाकुर से बात कर लूँगा। पैसे मिल रहे हैं, कॉलेज की फीस भर दूँगा।" सुमन की आँखें नम हो गईं, "बेटा, तू इतनी जिम्मेदारी ले रहा है। लेकिन वो ठाकुर... वो क्रूर है। अगर कुछ हुआ तो?" राहुल ने माँ का हाथ पकड़ा, उसके हाथ नरम लेकिन थके हुए थे, "माँ, मैं अब बड़ा हो गया हूँ। डर नहीं रहा। तुम्हारे लिए, अपने सपनों के लिए लड़ूँगा।" emotionally राहुल का विकास स्पष्ट हो रहा था – माँ की चिंता अब उसे बोझ नहीं, बल्कि ताकत दे रही थी; guilt से निकलकर वो responsibility को अपनाने लगा था, और किताब "सपनों की उड़ान" से इंस्पिरेशन लेकर छोटे-छोटे लक्ष्य सेट कर रहा था। सुमन ने राहुल के सिर पर हाथ फेरा, उसके बाल अभी भी गीले थे, "भगवान तुझे खुश रखे बेटा। लेकिन सावधान रहना, हवेली में औरतें भी हैं... प्रीति, काव्या, मालती। वो सब ठाकुर की तरह लालची हैं।" राहुल ने हाँ में सिर हिलाया, लेकिन अंदर से सोचा, "मैं कंट्रोल में रहूँगा। सेक्स से दूर, फोकस काम पर।"
नाश्ता खत्म कर राहुल ने अपनी किताब खोली – "सपनों की उड़ान" के कुछ पन्ने पढ़े, जहाँ हीरो गरीबी से लड़ते हुए छोटी जीत हासिल करता है, दोस्तों और परिवार से ताकत लेता है। राहुल ने डायरी में लिखा: "आज हवेली में प्रीति भाभी से मिलना हो सकता है। mentally तैयार रहूँगा, कोई लालच नहीं। सपने याद रख – शहर, कॉलेज, अमीर बनना। माँ की खुशी। cousins की याद से अपनापन मिला, लेकिन अब आगे बढ़ना है।" mentally वो अब प्लान बना रहा था – कॉलेज पास करने के बाद शहर का कॉलेज चुनना, पार्ट-टाइम जॉब ढूँढना, और माँ को साथ ले जाना। "एक दिन ठाकुर जैसे लोगों से ऊपर उठूँगा," वो सोचता, और दिल में एक नई आग जलती। cousins रीता और सीमा आज शहर लौटने वाली थीं, लेकिन कल की बातें अभी भी उसके मन में थीं – रीता की wild कराहें "Aaaaahhhhh... कितना बड़ा है रे तेरा... Ooooooooohhhhhhh... मेरी चूत फट गई... Mmmmaaaaaaaaaaa... चोद जोर से... रोज़ तुझसे चुदवाऊँगी...", और सीमा की शुरुआती चीखें "Aaaaahhhhh... निकालो... बहुत बड़ा है... दर्द हो रहा... चूत फट जाएगी..." जो धीरे-धीरे सिसकारियों में बदल गईं "उफ्फ... अब अच्छा... आह... सिसकारी... जोर से... Ooooooooohhhhhhh... राहुल... कितना मजा... Aaaaahhhhh... मैं झड़ रही..."। लेकिन राहुल ने खुद को रोका, "ये अतीत है। अब कंट्रोल।" cousins को विदा करने गया, रीता ने गले लगाया, "भाई, शहर आना। मजा करेंगे।" सीमा शर्मा कर बोली, "भाई, याद रखना।" राहुल हँसा, emotionally मजबूत महसूस कर – परिवार का साथ उसे अपनापन दे रहा था, लेकिन अब अकेले लड़ने का समय था।
सुबह बीती, राहुल ठाकुर की हवेली की ओर चला। रास्ता लंबा था – गाँव की पगडंडी से गुजरते हुए वो खेतों को देखता, जहाँ किसान पसीना बहा रहे थे, बैल हल खींच रहे थे, और हवा में मिट्टी की महक थी। हवेली पहुँचकर राहुल अंदर घुसा – दरवाज़ा बड़ा था, लोहे का, और अंदर बगीचा जो फूलों से सजा हुआ था। नौकर ने उसे काम सौंपा – आज फूलों की क्यारियाँ साफ करना, पानी देना, और घास ट्रिम करना। राहुल काम में लग गया – धूप तेज़ थी, पसीना उसके माथे से बह रहा था, शर्ट गीली हो गई थी, लेकिन वो नहीं रुका। physically ये काम उसे चुनौती दे रहा था – हाथों में फावड़ा पकड़कर घास काटना, पानी की बाल्टियाँ उठाना, और पौधों को एक-एक करके पानी देना। उसके हाथों में छाले पड़ रहे थे, लेकिन दर्द अब उसे मजा दे रहा था, जैसे कोई मेडल। "ये पैसे देगा, माँ की मदद करेगा, और मुझे मजबूत बनाएगा," वो सोचता, और काम करता रहा। बगीचे में काम करते हुए वो प्रीति भाभी से मिला – प्रीति बालकनी से नीचे उतरी, उसके हाथ में चाय की ट्रे थी। प्रीति आज नीली साड़ी में थी, जो उसके गोरे शरीर को और निखार रही थी – उसके स्तन उभरे हुए, कमर पतली, और चाल में एक लय। प्रीति का चेहरा सुंदर था – बड़ी आँखें, गुलाबी होंठ, और बाल खुले जो हवा में लहरा रहे थे। "राहुल, थक गया होगा। चाय पी ले," प्रीति ने मुस्कुराकर कहा, उसकी आवाज़ नरम लेकिन आकर्षक। राहुल ने ट्रे ली, "धन्यवाद भाभी। लेकिन काम..." प्रीति ने काटा, "काम बाद में। बैठ, बात कर।" दोनों बगीचे के बेंच पर बैठे, चाय की सिप लेते हुए। प्रीति ने बात शुरू की, "राहुल, तू गाँव का है लेकिन शहर जैसा लगता है। पढ़ाई करता है?" राहुल ने हाँ कहा, "जी भाभी, कॉलेज पास करके शहर जाऊँगा। इंजीनियर बनूँगा।" प्रीति की आँखें चमकीं, "अच्छा है। मैं भी शहर से हूँ, लेकिन शादी के बाद यहाँ फँस गई। पति हमेशा बाहर, हवेली में अकेली।" उसके शब्दों में दर्द था, आँखें नम। राहुल ने सहानुभूति दिखाई, "भाभी, जीवन कठिन है। लेकिन मजबूत बनिए। मैं भी गरीबी से लड़ रहा हूँ।" प्रीति करीब आई, उसका हाथ राहुल के कंधे पर, "तू मजबूत है राहुल। मुझे भी ताकत दे। अकेलापन मार डालता है।" राहुल का मन भटका – प्रीति की खुशबू, उसके स्तनों की गर्माहट – लेकिन वो उठा, "भाभी, काम करूँ।" emotionally वो मजबूत हो रहा था – लालच से दूर रह रहा था, लेकिन प्रीति की आँखों में कुछ था जो उसे रोक रहा था।
दोपहर हुई, काम जारी था। ठाकुर बाहर आया – उसका मोटा शरीर, दाढ़ी वाला चेहरा, और आँखों में क्रूरता। "राहुल, अच्छा काम। लेकिन तेरी माँ क्यों नहीं आ रही? मैंने कहा था।" राहुल का गुस्सा भड़का, लेकिन शांत रहा, "साहब, माँ बीमार है। मैं हूँ न।" ठाकुर हँसा, "बीमार? या तू रोक रहा है? याद रख, गाँव मेरा है। पैसे चाहिये तो माँ को भेज।" राहुल ने साफ कहा, "साहब, पैसे काम से मिलेंगे। माँ नहीं आएगी।" ठाकुर गुस्सा हुआ, "देखते हैं रे।" राहुल काम पर लगा रहा, लेकिन अंदर से उबाल था – "ठाकुर से लड़ूँगा।" mentally वो प्लान बना रहा था – अगर ठाकुर दबाव डाले तो क्या करे, पैसे कहाँ से कमाए। काव्या आई – ठाकुर की बेटी, 20 साल की, मॉडर्न ड्रेस में – शॉर्ट स्कर्ट, टॉप जो उसके युवा शरीर को उभार रहा था। "राहुल, काम कर रहा है? मदद करूँ?" काव्या ने चिढ़ाया, उसके होंठ मुस्कुरा रहे थे। राहुल ने कहा, "नहीं दी, मैं कर लूँगा।" लेकिन काव्या करीब आई, "बोर हो रही हूँ। बात कर। शहर के बारे में बता।" दोनों बातें करने लगे – काव्या ने कॉलेज की कहानियाँ सुनाईं, पार्टीज़, बॉयफ्रेंड्स। "राहुल, तू girlfriend है? इतना handsome है।" राहुल हँसा, "नहीं दी, पढ़ाई पर फोकस।" काव्या की आँखें चमकीं, "झूठ। मुझे पसंद है तू।" राहुल हिचकिचाया, लेकिन काम पर लगा। ठाकुरैन मालती देख रही थी – 45 साल की, कामुक, साड़ी में उसके बड़े स्तन उभरे। मालती सोचती, "ये लड़का... मजा आएगा।" शाम हुई, काम खत्म। राहुल घर लौटा, थका लेकिन संतुष्ट। प्रीति की दोस्ती गहरा रही थी, लेकिन संघर्ष बढ़ रहा था।
रात हुई, राहुल डायरी लिखी – लंबी एंट्री, हवेली की डिटेल्स, प्रीति की बातें, ठाकुर की धमकी। "मजबूत रहूँगा।" कहानी धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी, राहुल का विकास जारी।
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भाग 12: प्रीति भाभी के साथ अंतरंग पल और ठाकुर का संघर्ष(भावनात्मक गहराई, शारीरिक निकटता, और महत्वाकांक्षा की जंग)


रामपुर गाँव में वो दोपहर की धूप अब और तेज़ हो चली थी, जैसे सूरज खुद राहुल की परीक्षा ले रहा हो। हवा में मिट्टी की महक मिली हुई थी, और दूर से खेतों में काम कर रहे किसानों की आवाज़ें – हल की खरखराहट, बैलों की घंटियाँ, और कभी-कभी कोई गीत की धुन – गाँव को जीवंत बना रही थीं। लेकिन राहुल के लिए ये सब पृष्ठभूमि मात्र थी; उसका दिमाग ठाकुर की हवेली पर अटका हुआ था, जहाँ कल की घटनाएँ – प्रीति भाभी की सहानुभूति भरी बातें, ठाकुर की धमकी, और काव्या की बोल्ड नजरें – उसे रात भर सोने नहीं दे रही थीं। राहुल का छोटा सा कच्चा घर आज थोड़ा और बोझिल लग रहा था – दीवारों पर पड़ी दरारें जैसे उसके मन की उलझनों को दर्शा रही थीं, छत से टपकती पानी की बूँदें (जो बारिश न होने पर भी नमी से गिरती रहतीं) उसके माथे पर पसीने की तरह महसूस हो रही थीं, और आँगन में बिखरी रंगोली के अवशेष अब पूरी तरह से फीके पड़ चुके थे, जैसे उसके जीवन की रंगीन यादें। राहुल बिस्तर पर लेटा रहा, उसकी आँखें छत पर टिकी हुई थीं लेकिन देख कुछ नहीं रहा था – कल शाम प्रीति भाभी के स्पर्श की याद, उसकी नरम उँगलियाँ जो उसके कंधे पर रखी गई थीं, और उसकी आँखों में छिपा अकेलापन, सब कुछ उसके दिमाग में घूम रहा था। "भाभी अच्छी हैं, लेकिन हवेली का माहौल खतरनाक है। ठाकुर की धमकी... क्या वो माँ को नुकसान पहुँचाएगा?" राहुल सोचता, और उसके मन में एक हल्का डर उभरता, लेकिन साथ ही एक दृढ़ इरादा भी – "नहीं, मैं अब कमज़ोर नहीं हूँ। माँ की रक्षा करूँगा, सपनों को पूरा करूँगा।" वो उठा, खिड़की से बाहर देखा – गाँव की जीवनचर्या सामान्य थी, पड़ोस में सरला काकी का घर अभी भी शांत था, लेकिन उसके मन में सरला की यादें भी थीं – वो कराहें "Aaaaahhhhh... जोर से... ओoooooooohhhhhhh... मेरी चूत फट गई... Mmmmaaaaaaaaaaa... कितना बड़ा है रे तेरा... रोज़ चुदवाऊँगी तुझसे..."। लेकिन राहुल ने खुद को रोका, "अब कंट्रोल। सेक्स मजा है, लेकिन जीवन उससे बड़ा है।"
राहुल ने फैसला किया – आज सुबह फिर दौड़ लगाऊँगा, शरीर को और मजबूत बनाऊँगा। physically वो अब अपनी रूटीन को और सख्त बना रहा था; रोज़ की दौड़ से उसके पैरों में ताकत आ रही थी, साँसें लंबी और नियंत्रित हो रही थीं, और शरीर में एक नई लचक आ गई थी – उसके कंधे अब और चौड़े लग रहे थे, बाहें मज़बूत हो चुकी थीं, और पेट की मसल्स स्पष्ट रूप से उभर रही थीं, जैसे कोई मूर्ति जो धीरे-धीरे तराशी जा रही हो। वो बाहर निकला, गाँव की सड़कों पर दौड़ने लगा – हवा उसके चेहरे से टकरा रही थी, पसीना उसके माथे से बहकर आँखों में चुभ रहा था, लेकिन वो नहीं रुका। दौड़ते हुए वो अपनी डायरी की कल की एंट्री याद करता: "हवेली में प्रीति भाभी की दोस्ती, ठाकुर की धमकी। mentally तैयार रहूँगा, कोई लालच नहीं। सपने याद रख – शहर, कॉलेज, अमीर बनना। माँ की खुशी। cousins की विदाई से अपनापन मिला, लेकिन अब अकेले लड़ना है।" mentally वो अब प्लान बना रहा था – कॉलेज पास करने के बाद शहर का कॉलेज चुनना, पार्ट-टाइम जॉब ढूँढना, और माँ को साथ ले जाना। "एक दिन ठाकुर जैसे लोगों से ऊपर उठूँगा, अपना घर बनाऊँगा, माँ को राजरानी बनाऊँगा," वो सोचता, और दिल में एक नई आग जलती, जैसे कोई लावा जो धीरे-धीरे फूटने वाला हो। दौड़ पूरी कर वो घर लौटा, पसीने से तर, लेकिन मन तरोताज़ा।
सुमन रसोई में थी, उसके हाथों में चाय की केतली थी, और वो चाय उबाल रही थी। सुमन का चेहरा आज और चिंतित लग रहा था – कल रात ठाकुर का फोन आया था, धमकी दी थी कि अगर सुमन नहीं आई तो राहुल का काम छीन लेगा। सुमन की आँखें लाल थीं, जैसे रात भर रोई हो, उसके बाल उलझे हुए थे, और साड़ी थोड़ी ढीली बंधी हुई थी। "बेटा, चाय पी ले। आज हवेली जाना है?" सुमन ने पूछा, उसकी आवाज़ में ममता लेकिन एक हल्की कंपकंपी, जैसे कोई डर जो छिपाना मुश्किल हो रहा हो। राहुल ने चाय की प्याली ली, गरम चाय की सिप लेते हुए कहा, "हाँ माँ, काम है। लेकिन तुम चिंता मत करो, मैं ठाकुर से बात कर लूँगा। पैसे मिल रहे हैं, कॉलेज की फीस भर दूँगा, और घर का खर्च भी।" सुमन की आँखें नम हो गईं, "बेटा, तू इतनी जिम्मेदारी ले रहा है। लेकिन वो ठाकुर... कल फोन किया था। धमकी दी कि अगर मैं नहीं गई तो तेरे काम का क्या होगा।" राहुल का गुस्सा भड़का, लेकिन वो शांत रहा, माँ का हाथ पकड़ा – उसके हाथ ठंडे थे, जैसे डर से जमा हुए – "माँ, मैं संभाल लूँगा। तुम मत जाना। मैं अब बड़ा हो गया हूँ, डर नहीं रहा। तुम्हारे लिए, अपने सपनों के लिए लड़ूँगा।" emotionally राहुल का विकास स्पष्ट हो रहा था – माँ की चिंता अब उसे बोझ नहीं, बल्कि ताकत दे रही थी; guilt से निकलकर वो responsibility को अपनाने लगा था, और किताब से इंस्पिरेशन लेकर छोटे-छोटे लक्ष्य सेट कर रहा था। सुमन ने राहुल के सिर पर हाथ फेरा, उसके बाल अभी भी गीले थे पसीने से, "भगवान तुझे खुश रखे बेटा। लेकिन सावधान रहना, हवेली में औरतें भी हैं... प्रीति, काव्या, मालती। वो सब ठाकुर की तरह लालची हैं, और तुझे फँसा सकती हैं।" राहुल ने हाँ में सिर हिलाया, लेकिन अंदर से सोचा, "मैं कंट्रोल में रहूँगा। सेक्स से दूर, फोकस काम पर। लेकिन प्रीति भाभी... वो अलग लगती हैं, जैसे कोई दोस्त।"
नाश्ता खत्म कर राहुल ने अपनी किताब "सपनों की उड़ान" खोली – कुछ पन्ने पढ़े, जहाँ हीरो गरीबी से लड़ते हुए छोटी जीत हासिल करता है, दोस्तों और परिवार से ताकत लेता है, और चुनौतियों से सीखता है। किताब के पन्ने अब घिस चुके थे, किनारों पर उँगलियों के निशान थे, और कुछ जगहों पर राहुल ने पेंसिल से नोट्स लिखे थे – "संघर्ष से मजबूती आती है," "सपने कभी मत छोड़ो।" राहुल ने डायरी में लिखा: "आज हवेली में प्रीति भाभी से मिलना हो सकता है। mentally तैयार रहूँगा, कोई लालच नहीं। ठाकुर की धमकी का सामना करूँगा। सपने याद रख – शहर, कॉलेज, अमीर बनना। माँ की खुशी। cousins की विदाई से अपनापन मिला, लेकिन अब अकेले लड़ना है। प्रीति भाभी की दोस्ती सच्ची लगती है, लेकिन सावधान।" mentally वो अब प्लान बना रहा था – अगर ठाकुर दबाव डाले तो वैकल्पिक काम ढूँढना, गाँव के बाज़ार में कोई छोटी जॉब, या कॉलेज के बाद ट्यूशन देना। "एक दिन अपना बिज़नेस करूँगा, ठाकुर जैसे लोगों से ऊपर उठूँगा," वो सोचता, और दिल में एक नई आग जलती, जैसे कोई दीपक जो अंधेरे में भी चमकता रहता है। cousins रीता और सीमा कल शहर लौट गई थीं, लेकिन उनकी विदाई की यादें अभी भी उसके मन में थीं – रीता की bold हँसी, सीमा की शर्मीली मुस्कान, और वो गले लगाने का पल जो अपनापन दे गया था। "परिवार ही ताकत है, लेकिन अब खुद पर भरोसा करना है," राहुल सोचता, और तैयार होकर हवेली की ओर निकल पड़ा।
रास्ता वही था – गाँव की पगडंडी से गुजरते हुए वो खेतों को देखता, जहाँ किसान पसीना बहा रहे थे, बैल हल खींच रहे थे, और हवा में मिट्टी की महक मिली हुई थी। रास्ते में वो सरला काकी के घर के पास से गुजरा, काकी बाहर झाड़ू लगा रही थी, उसके शरीर की चाल अभी भी कामुक लग रही थी – साड़ी कमर पर टिकी हुई, स्तन ब्लाउज से उभरे हुए – लेकिन राहुल ने नज़रें फेर ली, "अब नहीं, काकी।" हवेली पहुँचकर राहुल अंदर घुसा – दरवाज़ा बड़ा था, लोहे का, और अंदर बगीचा जो फूलों से सजा हुआ था, लेकिन आज फूल थोड़े मुरझाए लग रहे थे, जैसे हवेली का माहौल। नौकर ने उसे काम सौंपा – आज फूलों की क्यारियाँ साफ करना, पानी देना, और घास ट्रिम करना, लेकिन साथ ही ठाकुर के कमरे के पास की सफाई भी। राहुल काम में लग गया – धूप तेज़ थी, पसीना उसके माथे से बहकर आँखों में चुभ रहा था, शर्ट गीली हो गई थी, लेकिन वो नहीं रुका। physically ये काम कठिन था – हाथों में फावड़ा पकड़कर घास काटना, पानी की भारी बाल्टियाँ उठाकर पौधों तक ले जाना, और एक-एक पौधे को ध्यान से पानी देना, जैसे कोई माली जो अपने बगीचे को प्यार से संवारता हो। उसके हाथों में छाले पड़ रहे थे, पीठ दर्द कर रही थी, लेकिन दर्द अब उसे मजा दे रहा था, जैसे कोई मेडल जो संघर्ष की निशानी है। "ये पैसे देगा, माँ की मदद करेगा, और मुझे मजबूत बनाएगा," वो सोचता, और काम करता रहा। बगीचे में काम करते हुए वो प्रीति भाभी से फिर मिला – प्रीति आज गुलाबी साड़ी में थी, जो उसके गोरे शरीर को और निखार रही थी – उसके स्तन उभरे हुए, कमर पतली जैसे कोई घड़ी की सुई, और चाल में एक लय जो दिल धड़का दे। प्रीति का चेहरा सुंदर था – बड़ी आँखें जो आज थोड़ी उदास लग रही थीं, गुलाबी होंठ जो मुस्कुराने की कोशिश कर रहे थे, और बाल खुले जो हवा में लहरा रहे थे, जैसे कोई बादल जो बारिश की उम्मीद कर रहा हो। "राहुल, आज फिर आ गया। काम ज्यादा है?" प्रीति ने मुस्कुराकर कहा, उसके हाथ में पानी का गिलास था। राहुल ने गिलास लिया, ठंडा पानी गले से उतरता हुआ उसे तरोताज़ा कर गया, "जी भाभी, काम तो है। लेकिन कर लूँगा। आप कैसी हैं?" प्रीति ने बेंच पर बैठने का इशारा किया, "बैठ, बात कर। कल रात नींद नहीं आई। पति का फोन आया, लेकिन वो वापस नहीं आ रहे। अकेली हूँ।" उसके शब्दों में दर्द था, आँखें नम, और हाथ काँप रहे थे। राहुल ने सहानुभूति दिखाई, "भाभी, जीवन कठिन है। लेकिन मजबूत बनिए। मैं भी गरीबी से लड़ रहा हूँ, माँ की चिंता है। लेकिन सपने हैं।" प्रीति करीब आई, उसका हाथ राहुल के कंधे पर रखा, उसके स्पर्श में गर्माहट थी, "तू मजबूत है राहुल। मुझे भी ताकत दे। अकेलापन मार डालता है, रातें लंबी लगती हैं, शरीर जलता है लेकिन कोई नहीं है जो बुझाए।" राहुल का मन भटका – प्रीति की खुशबू, उसके स्तनों की गर्माहट जो उसके बगल से छू रही थी – लेकिन वो उठने की कोशिश की, "भाभी, काम..." लेकिन प्रीति ने पकड़ लिया, "रुक न राहुल। मुझे बात करने दो। तू समझता है।" दोनों बातें करने लगे – प्रीति ने अपना अतीत बताया, शहर से शादी कर हवेली आई, लेकिन ठाकुर के परिवार में घुटन, पति की अनुपस्थिति, और सेक्स की कमी जो उसे रातों को तड़पाती। "राहुल, तू जवान है, समझता होगा। शरीर की भूख... लेकिन कोई नहीं है।" राहुल ने कहा, "भाभी, मैं समझता हूँ, लेकिन कंट्रोल जरूरी है। मैं भी गुजर रहा हूँ।" लेकिन प्रीति की आँखों में आँसू थे, वो करीब आई, उसके होंठ राहुल के कंधे पर लगे, "राहुल, मुझे छू... बस एक बार।" राहुल का कंट्रोल टूटा, वो प्रीति को चूम लिया – होंठ नरम, गर्म, और kiss गहरा हो गया। प्रीति कराही, "आह... राहुल... कितने दिन बाद..." राहुल ने उसके स्तनों को दबाया, प्रीति की साड़ी सरक गई, "Ooooooooohhhhhhh... जोर से दबा... मेरे बूब्स... Aaaaahhhhh... कितना अच्छा..." राहुल ने ब्लाउज उतारा, ब्रा से स्तन बाहर, बड़े और नरम। वो चूसा, प्रीति wild हो गई, "Mmmmaaaaaaaaaaa... चूस जोर से... निप्पल काट... उफ्फ... कितना मजा... तू जानवर है रे..." राहुल नीचे गया, साड़ी ऊपर की, पैंटी गीली थी। वो चाटा, प्रीति चिल्लाई, "Aaaaahhhhh... जीभ अंदर... ओoooooooohhhhhhh... मेरी चूत... फाड़ दे... कितना गर्म है तू..." प्रीति अनुभवी थी, जड़ी हुई, wild कराहें – "चाट जोर से... उफ्फ... मैं झड़ रही... Mmmmaaaaaaaaaaa... हाँ... और..." राहुल ने लंड निकाला, प्रीति ने चूसा, "वाह... कितना बड़ा... Aaaaahhhhh... मुँह में डाल... ओoooooooohhhhhhh... तेरे लंड का स्वाद... रोज़ चूसूँगी..." राहुल ने प्रीति को घोड़ी बनाया, चूत में डाला। प्रीति चिल्लाई लेकिन मजा लेते हुए, "Uffff... दर्द... लेकिन मजा... जोर से... मेरी चूत फट गई... Aaaaahhhhh... चोद जोर से... Ooooooooohhhhhhh... कितना बड़ा है रे तेरा... Mmmmaaaaaaaaaaa... फाड़ दे... रोज़ तुझसे चुदवाऊँगी... हाँ... और तेज़..." धक्के तेज़, प्रीति कमर हिला रही, wild – "गांड भी मार... उफ्फ... पीछे से... Aaaaahhhhh... तेरे लंड से गांड फट जाएगी... लेकिन मजा... Ooooooooohhhhhhh... जोर से... Mmmmaaaaaaaaaaa... मैं गई..." दोनों झड़े, प्रीति पड़ी रही, "राहुल, तू मेरा हो गया।" राहुल को मजा आया, लेकिन guilt फिर – "ये गलत था। लेकिन भाभी की मदद की।"
शाम हुई, ठाकुर आया, धमकी दी। राहुल ने सामना किया, "साहब, माँ नहीं आएगी।" ठाकुर गुस्सा, लेकिन राहुल मजबूत रहा। घर लौटा, डायरी लिखी I
Fuckuguy
albertprince547;
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#20
Zabardast update.....lekin kuch lines baar baar repeat mat karo
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