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Incest राहुल का कामुक सफर - गरीबी की छाया से शहर की चमक तक
#1
राहुल का कामुक सफर - गरीबी की छाया से शहर की चमक तक  भाग 1

मुख्य पात्रों का विस्तृत परिचय

इस कहानी को हम एक बड़े उपन्यास की तरह विकसित करेंगे, जहाँ हर पात्र की गहराई, उनकी भावनाएँ, अतीत, और आंतरिक संघर्ष को धीरे-धीरे खोला जाएगा। जल्दबाजी नहीं, हर सीन को विस्तार से जीवंत बनाएंगे, जैसे कि पाठक खुद वहाँ मौजूद हो। कहानी कामुक है, लेकिन इसमें महत्वाकांक्षा, गरीबी, प्यार, विश्वासघात और विकास की परतें होंगी।
राहुल: कहानी का केंद्र। उम्र 18 साल, लेकिन उसके चेहरे पर गरीबी की थकान और सपनों की चमक दोनों दिखती हैं। वो रामपुर गाँव का रहने वाला है, जहाँ उसके पिता की मौत एक दुर्घटना में हो गई थी जब वो मात्र 10 साल का था। पिता एक मजदूर थे, और उनकी मौत के बाद घर की जिम्मेदारी माँ पर आ गई। राहुल पढ़ाकू है, लेकिन गरीबी ने उसे जल्दी बड़ा बना दिया। वो कॉलेज में टॉप करता है, लेकिन अंदर से असुरक्षित महसूस करता है – क्या वो कभी इस गरीबी से निकल पाएगा? उसका शरीर पतला लेकिन मजबूत है, काले बाल, गहरी आँखें जो हमेशा सोच में डूबी रहती हैं। सेक्स उसके लिए शुरुआत में अनजाना है, लेकिन जैसे-जैसे कहानी बढ़ेगी, ये उसकी कमजोरी और ताकत दोनों बनेगा। वो अपनी माँ से बहुत जुड़ा है, लेकिन उनके राज उसे परेशान करेंगे।
सुमन (राहुल की माँ): उम्र 35 साल, लेकिन गरीबी और मेहनत ने उसे समय से पहले बूढ़ा कर दिया है। वो विधवा है, पति की मौत के बाद ठाकुर के हवेली में नौकरानी का काम करती है। उसका अतीत: युवावस्था में वो गाँव की सबसे सुंदर लड़की थी, लेकिन गरीब परिवार से होने के कारण ठाकुर ने उसे फंसाया। अब वो ठाकुर से गुप्त संबंध रखती है, जो पैसे के लिए मजबूरी है लेकिन अंदर से उसे घुटन देता है। उसके बड़े-बड़े स्तन, काली साड़ी में लिपटा शरीर, और थकी हुई मुस्कान। वो राहुल से बेइंतहा प्यार करती है, उसके सपनों के लिए कुछ भी कर सकती है, लेकिन अपने राज छिपाती है। उसकी लेयरिंग: वो मजबूत दिखती है, लेकिन रातों को रोती है, सोचती है कि क्या वो अच्छी माँ है?
ठाकुर साहब (पूर्ण नाम: ठाकुर रघुवीर सिंह): उम्र 50 साल, गाँव का जमींदार। अमीर, क्रूर, और औरतों का शौकीन। उसका अतीत: युवा दिनों में वो शहर से पढ़कर लौटा था, लेकिन गाँव की सत्ता ने उसे भ्रष्ट बना दिया। उसके दो बेटे हैं, लेकिन पत्नी की मौत हो चुकी है। सुमन से उसका संबंध सिर्फ शारीरिक नहीं, वो उसे अपनी संपत्ति समझता है। उसका शरीर मोटा, दाढ़ी वाली चेहरा, और आँखों में लालच। वो दयालु बनने की कोशिश करता है, लेकिन अंदर से स्वार्थी है। कहानी में वो राहुल के जीवन में बाधा बनेगा।
सरला काकी (पड़ोस वाली): उम्र 40 साल, विधवा। उसके पति की मौत शराब की लत से हुई थी, और अब वो अकेली रहती है। उसका शरीर कामुक – बड़े स्तन, पतली कमर, और हल्की मुस्कान जो रहस्य छिपाती है। अतीत: वो सुमन की दोस्त थी, लेकिन ठाकुर से उसका भी पुराना संबंध रहा है, जो अब टूट चुका है। वो राहुल को बचपन से देखती आई है, उसे बेटे जैसा मानती है लेकिन अंदर से आकर्षण महसूस करती है। उसकी लेयरिंग: वो अकेलेपन से जूझती है, रातों को सपने देखती है, और सेक्स को अपनी भावनाओं का सहारा बनाती है।
मीना: उम्र 18 साल, राहुल की कॉलेज सहपाठी। गाँव की मासूम लेकिन बोल्ड लड़की। उसका परिवार किसान है, लेकिन वो पढ़ाई में अच्छी है। लंबे काले बाल, गोरी चमड़ी, और शर्मीली मुस्कान। अतीत: बचपन में वो राहुल से खेलती थी, लेकिन अब बड़ा होकर उसे पसंद करने लगी है। उसकी लेयरिंग: वो कुंवारी है, सेक्स के बारे में उत्सुक लेकिन डरती है। वो सपने देखती है शहर जाने के, राहुल के साथ।
मोना: उम्र 18 साल, मीना की दोस्त और राहुल की क्लासमेट। थोड़ी शरारती, गोल-मटोल लेकिन आकर्षक फिगर। लाल होंठ, छोटे बाल। अतीत: उसके पिता गाँव के दुकानदार हैं, वो अमीर घर से है लेकिन बोर होती है। उसकी लेयरिंग: वो बोल्ड है, सेक्स के बारे में जानती है (किताबों से), और राहुल को चिढ़ाती है। लेकिन अंदर से असुरक्षित, क्या कोई उसे सीरियस लेगा?
अन्य पात्र कहानी बढ़ने के साथ जुड़ेंगे, जैसे शहर की लड़कियाँ, लेकिन हर एक को गहराई से पेश किया जाएगा। अब कहानी शुरू करते हैं, धीरे-धीरे।
भाग 1: गाँव की सुबहें और छिपे राज़ (परिचय और शुरुआती दिन)
रामपुर गाँव सुबह की धुंध में लिपटा रहता था, जहाँ खेतों की हरी सरसों लहराती थी और दूर से ठाकुर की हवेली की ऊँची दीवारें दिखती थीं। हवा में मिट्टी की महक थी, और मुर्गों की बांग से दिन की शुरुआत होती। राहुल का छोटा सा कच्चा घर गाँव के किनारे पर था – दो कमरे, एक रसोई, और बाहर एक छोटा सा आँगन जहाँ सुमन सब्जियाँ उगाती थी। घर की दीवारें फटी हुई थीं, छत से बारिश में पानी टपकता था, लेकिन राहुल के लिए ये दुनिया थी।
सुबह के पाँच बजे, सुमन उठती। उसकी आँखें अभी भी नींद से भरी होतीं, लेकिन चेहरे पर एक मजबूत इरादा। वो लाल साड़ी पहनती, जो सालों पुरानी थी लेकिन उसकी कमर को खूबसूरती से लपेटती। उसके बाल खुले होते, काले और घने, जो उसके कंधों पर गिरते। वो रसोई में जाती, चूल्हा जलाती, और राहुल के लिए चाय बनाती। "बेटा, उठ जा। कॉलेज का समय हो रहा है," वो पुकारती, उसकी आवाज में ममता लेकिन थकान भी। सुमन का दिन ठाकुर की हवेली से शुरू होता। वो वहाँ झाड़ू-पोछा करती, खाना बनाती, और शाम तक लौटती। लेकिन असली राज रात का था, जो राहुल अभी नहीं जानता था।
राहुल बिस्तर से उठता, उसकी आँखें छोटी-छोटी, बाल बिखरे। वो 18 साल का था, लेकिन गरीबी ने उसे जिम्मेदार बना दिया था। उसके पिता की मौत की याद उसे सताती – वो दुर्घटना में ट्रैक्टर के नीचे दब गए थे। राहुल सोचता, "अगर पापा होते तो माँ को इतनी मेहनत न करनी पड़ती।" वो कॉलेज की किताबें उठाता, एक पुरानी साइकिल पर सवार होता, और गाँव की पगडंडी से कॉलेज जाता। रास्ते में वो सपने देखता – बड़े शहर, दिल्ली या मुंबई, जहाँ वो इंजीनियर बनेगा, अमीर होगा, और माँ को राजरानी की तरह रखेगा। लेकिन अभी तो किताबें ही उसकी दोस्त थीं।
कॉलेज एक छोटी सी इमारत थी, जहाँ 50-60 बच्चे पढ़ते। राहुल की क्लास में मीना और मोना थीं। मीना हमेशा आगे की बेंच पर बैठती, उसके बाल पोनीटेल में बंधे, और नोट्स साफ-सुथरे। वो गाँव के किसान की बेटी थी, लेकिन उसकी आँखों में चमक थी। बचपन में वो और राहुल नदी किनारे खेलते थे, पत्थर फेंकते, हँसते। अब बड़ा होकर मीना राहुल को देखकर शर्मा जाती। "राहुल, तू हमेशा पढ़ाई में खोया रहता है। कभी बात तो कर," वो सोचती, लेकिन कहती नहीं। उसका दिल धड़कता जब राहुल मुस्कुराता। मीना कुंवारी थी, सेक्स के बारे में सिर्फ सुनी-सुनाई बातें जानती, लेकिन रातों को सपने देखती – किसी के साथ होना, छूना, लेकिन डरती भी।
मोना पीछे की बेंच पर बैठती, थोड़ी शरारती। उसके होंठ हमेशा मुस्कुराते, और वो क्लास में चुपके से नोट्स पास करती। उसके पिता की दुकान थी, तो वो थोड़ी अमीर थी – नई ड्रेस, चमकदार जूते। मोना राहुल को चिढ़ाती, "अरे गांव के राजकुमार, आज क्या सोच रहा?" लेकिन अंदर से वो उसे पसंद करती। उसकी लेयरिंग: मोना बाहर से बोल्ड, लेकिन घर पर पिता की सख्ती से दबी। वो किताबों में छिपकर रोमांटिक कहानियाँ पढ़ती, सेक्स के बारे में कल्पना करती, लेकिन असल में अनुभवहीन।
एक दिन, लंच ब्रेक में तीनों एक पेड़ के नीचे बैठे। हवा ठंडी थी, पत्ते सरसराते। मीना ने अपना टिफिन खोला – रोटी और सब्जी। "राहुल, तू ले," वो बोली, उसकी आवाज में शर्म। राहुल ने लिया, उनकी उँगलियाँ छुईं, और मीना का चेहरा लाल हो गया। मोना हँसी, "अरे मीना, तू तो शर्मा गई। राहुल, तुझे लड़कियाँ पसंद हैं न?" राहुल मुस्कुराया, लेकिन अंदर से उत्तेजना महसूस की। वो पहली बार लड़कियों को ऐसे देख रहा था – मीना की स्कर्ट हवा में उड़ी, उसकी गोरी जांघें दिखीं। मोना की शर्ट टाइट थी, उसके छोटे-छोटे स्तन उभरे हुए। राहुल का मन भटका, लेकिन वो पढ़ाई पर फोकस करने की कोशिश करता।
शाम को राहुल घर लौटा। सुमन अभी हवेली से नहीं लौटी थी। वो किताबें खोलकर बैठा, लेकिन मन नहीं लगा। पड़ोस से सरला काकी की आवाज आई, "राहुल बेटा, इधर आ। चाय पी ले।" सरला का घर राहुल के बगल में था – एक छोटा सा मकान, लेकिन साफ-सुथरा। सरला विधवा थी, उसके पति की मौत 5 साल पहले हो गई थी। वो अकेली रहती, सिलाई करके गुजारा करती। उसका चेहरा सुंदर था – बड़ी आँखें, भरे हुए होंठ। शरीर कामुक, साड़ी में उसके कूल्हे हिलते जब वो चलती। सरला राहुल को बचपन से जानती थी, उसे दूध पिलाती, कहानियाँ सुनाती। लेकिन अब राहुल बड़ा हो गया था, और सरला के मन में कुछ और भावनाएँ जाग रही थीं। अकेलापन उसे सताता, रातों को वो बिस्तर पर करवटें बदलती, सोचती – कोई तो हो जो उसे छुए, प्यार करे।
राहुल सरला के घर गया। अंदर खुशबू थी – अगरबत्ती की। सरला ने चाय दी, और बैठकर बात की। "बेटा, तेरी माँ देर से आती है। ठाकुर साहब कितना काम करवाते हैं। तू अकेला रहता है, कभी जरूरत हो तो बता।" उसकी आँखों में कुछ था – देखभाल लेकिन आकर्षण भी। राहुल ने चाय पी, और सरला का हाथ छुआ। सरला की उँगलियाँ नरम थीं, और वो मुस्कुराई। राहुल को अजीब लगा, उसका शरीर में हलचल हुई। वो घर लौटा, लेकिन वो स्पर्श भूल नहीं पाया।
रात हुई। सुमन देर से लौटी, उसके चेहरे पर थकान। वो भीगी हुई थी – बाहर हल्की बारिश हो रही थी। साड़ी गीली, उसके शरीर की आउटलाइन दिख रही। राहुल ने देखा – माँ के स्तन बड़े, निप्पल उभरे हुए। सुमन ने कपड़े बदले, लेकिन राहुल की नजरें टिकी रहीं। "माँ, आज इतनी देर क्यों?" राहुल ने पूछा। सुमन ने झूठ बोला, "काम ज्यादा था बेटा।" लेकिन असल में ठाकुर ने उसे रोका था। ठाकुर की हवेली में, शाम को वो अकेले थे। ठाकुर ने सुमन को अपनी गोद में बिठाया, उसके स्तनों को दबाया। "सुमन, आज रुक जा," ठाकुर बोला, उसकी साँसें तेज। सुमन ने मना किया, लेकिन पैसे की जरूरत ने उसे झुका दिया। ठाकुर ने उसकी साड़ी उतारी, उसके नंगे शरीर को चूमा। सुमन की चूत गीली हो गई, वो कराही, "साहब, धीरे..." ठाकुर का लंड बड़ा था, वो सुमन को बिस्तर पर लिटाकर चोदा। धक्के तेज, सुमन की आँखों में आँसू लेकिन मजा भी। चुदाई के बाद ठाकुर ने पैसे दिए, और सुमन घर लौटी।
राहुल सो गया, लेकिन रात को जागा। उसे कमरे से आवाजें सुनाई दीं। वो चुपके से उठा, दरार से देखा – ठाकुर आया था! माँ के कमरे में। ठाकुर सुमन को फिर चोद रहा था। सुमन नंगी थी, उसके स्तन हिल रहे। "आह साहब... जोर से..." सुमन बोली। राहुल स्तब्ध था, उसका लंड खड़ा हो गया। वो बाहर जाकर मुठ मारी, लेकिन मन में सवाल थे – माँ क्यों? वो रोया, लेकिन फैसला किया – पढ़ाई करके शहर जाऊंगा, सब बदल दूंगा।
कहानी जारी रहेगी।
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#2
Nice update
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#3
राहुल का कामुक सफर - गरीबी की छाया से शहर की चमक तक भाग 2


भाग 2: कॉलेज की दोस्तियाँ और सरला काकी का करीब आना (कॉलेज के दिन और घर की शामें)
रामपुर गाँव में सुबहें हमेशा की तरह शांत थीं, लेकिन राहुल के मन में अब एक तूफान उठ रहा था। उस रात की घटना – माँ को ठाकुर के साथ देखना – उसे सोने नहीं दे रही थी। वो बिस्तर पर लेटा रहा, आँखें बंद लेकिन दिमाग चलता रहा। "माँ क्यों करती है ये सब? क्या गरीबी इतनी मजबूर कर देती है?" वो सोचता, और उसके मन में गुस्सा, दुख, और एक अजीब सी उत्तेजना का मिश्रण था। सुबह उठकर वो कॉलेज की तैयारी करता, लेकिन आज उसकी आँखों के नीचे काले घेरे थे। सुमन ने नोटिस किया, "बेटा, क्या हुआ? रात को नींद नहीं आई?" राहुल ने झूठ बोला, "पढ़ाई कर रहा था माँ।" सुमन ने उसके सिर पर हाथ फेरा, उसकी उँगलियाँ नरम लेकिन थकी हुईं। वो जानती थी कि राहुल बड़ा हो रहा है, और उसके राज अब छिपाना मुश्कil हो रहा था। सुमन का दिल दुखता – वो राहुल के लिए जीती थी, लेकिन ठाकुर की गिरफ्त से निकलना असंभव लगता। "एक दिन सब ठीक हो जाएगा," वो खुद से कहती, लेकिन अंदर से डरती कि राहुल पता चलेगा तो क्या सोचेगा?
राहुल साइकिल पर सवार होकर कॉलेज चला गया। रास्ता लंबा था – खेतों के बीच से, जहाँ किसान काम कर रहे थे, और हवा में ताजी मिट्टी की खुशबू। कॉलेज पहुँचकर वो अपनी सीट पर बैठा, किताबें खोलीं, लेकिन मन भटक रहा था। मीना आज उसके बगल में बैठी थी। वो हमेशा की तरह साफ-सुथरी दिख रही थी – सफेद शर्ट, नीली स्कर्ट, और बालों में रिबन। मीना के परिवार में चार भाई-बहन थे, पिता खेतों में मजदूरी करते, और माँ घर संभालती। मीना बचपन से मेहनती थी, लेकिन कॉलेज उसके लिए भागने की जगह था। वो राहुल को देखकर सोचती, "वो इतना गंभीर क्यों रहता है? कभी हँसता क्यों नहीं?" मीना का दिल राहुल के लिए धड़कता था – बचपन की दोस्ती अब कुछ और बन रही थी। वो रातों को सोचती, उसके बारे में कल्पना करती: उसका हाथ पकड़ना, गले लगना। लेकिन गाँव की लड़की होने के नाते, वो शर्माती, डरती कि कोई देख लेगा। सेक्स के बारे में उसे सिर्फ सहेलियों से सुनी बातें पता थीं – "लड़के छूते हैं तो अच्छा लगता है," लेकिन वो कुंवारी थी, उत्सुक लेकिन अनजान।
क्लास शुरू हुई। टीचर इतिहास पढ़ा रहे थे – मुगल काल की कहानियाँ। राहुल नोट्स ले रहा था, लेकिन मीना ने चुपके से एक कागज पास किया। उस पर लिखा था: "ब्रेक में पेड़ के नीचे मिलना?" राहुल ने देखा, मुस्कुराया, और हाँ में सिर हिलाया। मोना पीछे से देख रही थी। मोना आज थोड़ी उदास थी – उसके पिता ने कल रात डाँटा था, "पढ़ाई पर ध्यान दे, लड़कों से दूर रह।" मोना के घर में पैसे थे, लेकिन आजादी नहीं। वो शरारती थी, क्लास में हँसती, लेकिन अंदर से अकेली महसूस करती। मोना को राहुल पसंद था – उसकी गंभीर आँखें, मजबूत कंधे। वो कल्पना करती, "काश वो मुझे छुए, किस करे।" मोना ने किताबों में छिपकर कुछ कामुक कहानियाँ पढ़ी थीं, जहाँ लड़कियाँ बोल्ड होतीं। लेकिन असल जीवन में वो डरती, सोचती कि क्या राहुल उसे पसंद करेगा? उसकी बॉडी थोड़ी गोल-मटोल थी, लेकिन स्तन उभरे हुए, जो शर्ट से झाँकते।
ब्रेक की घंटी बजी। तीनों पेड़ के नीचे मिले। हवा में ठंडक थी, पत्ते हिल रहे थे। मीना ने अपना टिफिन खोला – घर की बनी रोटियाँ और आचार। "राहुल, तू ले ना। तेरी माँ अच्छा बनाती है?" मीना बोली, उसकी आवाज में मिठास। राहुल ने लिया, उनकी उँगलियाँ फिर छुईं। इस बार राहुल ने महसूस किया – मीना की त्वचा नरम, गर्म। मीना का चेहरा लाल हो गया, वो नीचे देखने लगी। मोना ने हँसकर माहौल हल्का किया, "अरे, तुम दोनों तो ऐसे शर्मा रहे हो जैसे पहली बार मिले। राहुल, बताना, तुझे कैसी लड़कियाँ पसंद हैं? मासूम वाली जैसे मीना, या शरारती वाली जैसे मैं?" राहुल हँसा, पहली बार खुलकर। "दोनों अच्छी हैं," वो बोला। बातें चलती रहीं – कॉलेज की गॉसिप, टीचर की नकल। लेकिन राहुल की नजर मीना की स्कर्ट पर गई, जो हवा से थोड़ी ऊपर उठी। उसकी गोरी जांघें दिखीं, और राहुल के मन में वो रात की याद आई – माँ की नंगी बॉडी। उसका शरीर में हलचल हुई, पैंट में तनाव। मीना ने नोटिस किया, लेकिन कुछ नहीं कहा। मोना ने चिढ़ाया, "राहुल, क्या देख रहा है? तुझे लड़कियाँ इतनी पसंद हैं?" तीनों हँसे, लेकिन अंदर से उत्तेजना बढ़ रही थी। ब्रेक खत्म हुआ, लेकिन वो पल राहुल के मन में बस गया – पहली बार लड़कियों के साथ इतना करीब महसूस किया।
शाम को राहुल घर लौटा। सुमन अभी हवेली में थी। वो पढ़ाई करने बैठा, लेकिन मन नहीं लगा। बाहर से सरला काकी की आवाज आई, "राहुल बेटा, इधर आ। कुछ काम है।" राहुल गया। सरला का घर हमेशा साफ रहता – फर्श पर चटाई, दीवार पर पुरानी तस्वीरें उसके पति की। सरला आज हरी साड़ी में थी, जो उसके शरीर को खूबसूरती से लपेट रही थी। उसके स्तन बड़े, कमर पतली, और चाल में एक लय। सरला अकेलेपन से जूझ रही थी – पति की मौत के बाद गाँव में अफवाहें थीं कि वो ठाकुर से मिली हुई थी, लेकिन अब वो अलग थी। रातों को वो बिस्तर पर लेटती, अपने शरीर को छूती, कल्पना करती – कोई जवान लड़का जो उसे प्यार दे। राहुल को देखकर उसके मन में वो भाव जागते – वो उसे बेटे जैसा मानती, लेकिन अब आकर्षण भी। "बेटा, मेरी सिलाई मशीन खराब है। देख ले," सरला बोली। राहुल अंदर गया, मशीन देखी। सरला उसके पास खड़ी हो गई, इतनी करीब कि उसकी साड़ी राहुल के हाथ से छू गई। सरला की खुशबू – साबुन और पसीने की मिश्रित – राहुल को मदहोश कर रही थी।
राहुल ने मशीन ठीक की, और सरला ने कहा, "शाबाश बेटा। अब चाय पी ले।" वो रसोई गई, लेकिन वापस आते वक्त ठोकर खाई। राहुल ने उसे संभाला, उसका हाथ सरला की कमर पर गया। सरला की कमर नरम, गर्म। वो रुकी, राहुल की आँखों में देखा। "तू बड़ा हो गया है रे। तेरी माँ खुशकिस्मत है," सरला बोली, उसकी आवाज में कंपन। राहुल का दिल तेज धड़का, उसका हाथ सरला के स्तनों के पास था। सरला ने हाथ नहीं हटाया, बल्कि मुस्कुराई। "कभी अकेला लगे तो आ जाना। मैं हूँ ना," वो बोली। राहुल को अजीब लगा – देखभाल या कुछ और? वो घर लौटा, लेकिन सरला का स्पर्श भूल नहीं पाया। रात को सोते वक्त वो कल्पना करता – सरला की बॉडी, मीना की मुस्कान। उसका लंड खड़ा हो गया, पहली बार उसने खुद को छुआ, मुठ मारी। मजा आया, लेकिन guilt भी। "ये गलत है," वो सोचता।
उधर, सुमन हवेली से लौटी। ठाकुर आज फिर मिला था। हवेली के बड़े कमरे में, ठाकुर ने सुमन को दीवार से सटाया। "सुमन, तेरी बॉडी आज भी जवान है," ठाकुर बोला, उसकी मूंछें सुमन के गाल पर लगीं। सुमन ने विरोध किया, लेकिन ठाकुर ने साड़ी उतार दी। उसके स्तन बाहर, ठाकुर ने उन्हें चूसा। सुमन की कराह निकली, "साहब, घर जाना है..." लेकिन ठाकुर ने नहीं सुना। उसने सुमन को घुटनों पर बिठाया, अपना लंड मुँह में डाला। सुमन ने चूसा, आँखें बंद। फिर ठाकुर ने उसे बिस्तर पर लिटाया, चूत में डाला। धक्के तेज, सुमन की चूत गीली। "आह... साहब... जोर से..." वो बोली, मजबूरी में लेकिन मजा भी लेते हुए। चुदाई के बाद ठाकुर ने पैसे फेंके, "जा अब।" सुमन घर आई, थकी हुई। राहुल सो रहा था, लेकिन सुमन रोई – "कब तक ये सब?"
राहुल का सफर अब शुरू हो रहा था – दोस्तियाँ गहरा रही थीं, राज खुल रहे थे।
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#4
भाग 3: कॉलेज की शरारतें और माँ का राज खुलना (कॉलेज के छिपे पल और घर की सच्चाई)

रामपुर गाँव में दिन अब थोड़े अलग लगने लगे थे राहुल को। सुबह की धुंध में वो साइकिल चलाता, लेकिन मन में सरला काकी का स्पर्श और मीना-मोना की मुस्कानें घूमती रहतीं। वो रात की वो घटना – खुद को छूना – उसे guilt देती, लेकिन एक नई ऊर्जा भी। "ये सब नॉर्मल है क्या?" वो सोचता, लेकिन जवाब नहीं मिलता। कॉलेज पहुँचकर वो अपनी सीट पर बैठा, किताबें खोलीं। आज क्लास मैथ्स की थी, टीचर बोर्ड पर सवाल लिख रहे थे। राहुल का ध्यान लगा, लेकिन मीना ने फिर एक नोट पास किया: "ब्रेक में मिलना, कुछ बात करनी है।" राहुल ने देखा, मीना की आँखें चमक रही थीं। मीना आज थोड़ी nervous लग रही थी – उसके मन में राहुल के लिए भावनाएँ उमड़ रही थीं। घर पर उसकी माँ ने कहा था, "बेटी, पढ़ाई पर ध्यान दे, लड़कों से दूर रह।" लेकिन मीना का दिल नहीं मानता। वो रात को बिस्तर पर लेटती, राहुल की कल्पना करती – उसका चेहरा, उसकी मुस्कान। उसके शरीर में एक अजीब सी सिहरन होती, वो अपनी जांघों को रगड़ती, लेकिन आगे नहीं जाती। "क्या ये प्यार है?" वो सोचती, और शर्मा जाती।
मोना आज क्लास में ज्यादा शरारती थी। वो पीछे बैठी, चुपके से राहुल की तरफ कागज की गोली फेंकी। उस पर लिखा: "तू मीना को देखकर शर्मा क्यों जाता है? मुझे भी देख ना।" मोना के मन में जलन थी – मीना की मासूमियत उसे अच्छी नहीं लगती। मोना घर पर अकेली महसूस करती, पिता हमेशा दुकान पर, माँ बीमार। वो राहुल को अपना बनाने की सोचती, कल्पना करती कि वो उसे किस करे, छुए। मोना ने एक बार गुपचुप तरीके से एक कामुक किताब पढ़ी थी – गाँव के बाजार से चुराई हुई। उसमें औरतों के बारे में लिखा था, कैसे वो मजा लेती हैं। मोना ने ट्राई किया था – खुद को छुआ, उँगलियाँ अंदर डालीं, और पहली बार झड़ी थी। "वाह, कितना अच्छा लगा," वो सोचती, लेकिन अब वो राहुल के साथ करना चाहती।
ब्रेक की घंटी बजी। तीनों फिर उस पेड़ के नीचे मिले, लेकिन आज माहौल अलग था। चारों तरफ बच्चे खेल रहे थे, लेकिन वो कोने में छिप गए। मीना ने शुरू किया, "राहुल, तू कल से कुछ उदास लग रहा है। क्या हुआ?" उसकी आवाज में चिंता थी, आँखें नम। राहुल ने झिझकते हुए कहा, "कुछ नहीं, घर की टेंशन। माँ देर रात आती है।" मोना ने हँसकर कहा, "अरे, तेरी माँ ठाकुर के यहाँ काम करती है न? वो तो अमीर हैं, अच्छा होगा।" लेकिन राहुल का चेहरा बदल गया। मीना ने उसका हाथ पकड़ा – पहली बार। "चिंता मत कर, हम हैं न तेरे साथ।" राहुल ने महसूस किया – मीना का हाथ नरम, गर्म। वो करीब आ गई, उसकी साँसें राहुल के चेहरे पर लगीं। मोना ने देखा, और जलन में कहा, "चलो, थोड़ी मस्ती करें।" वो राहुल के कंधे पर हाथ रखकर हँसी। राहुल का मन भटका – तीनों इतने करीब। हवा में एक तनाव था, जैसे कुछ होने वाला हो।
मीना ने शर्मा कर कहा, "राहुल, तुझे पता है, मैं तुझे बचपन से पसंद करती हूँ।" राहुल स्तब्ध, लेकिन खुश। मोना ने चिढ़ाया, "अरे, मैं भी!" और अचानक मोना ने राहुल का गाल चूम लिया। राहुल का शरीर झनझना गया। मीना ने देखा, और वो भी करीब आई, राहुल के होंठों पर अपना होंठ रख दिया – पहला किस। मीना के होंठ नरम, मीठे। राहुल ने जवाब दिया, उसका हाथ मीना की कमर पर गया। मोना ने पीछे से राहुल को गले लगाया, उसके स्तन राहुल की पीठ से दबे। "राहुल, छू ना मुझे," मोना फुसफुसाई। राहुल ने मुड़कर मोना की शर्ट पर हाथ रखा, उसके स्तन दबाए। मोना कराही, "आह... अच्छा लग रहा..." मीना देख रही थी, उसकी साँसें तेज। वो अपनी स्कर्ट ऊपर की, "राहुल, देख..." उसकी पैंटी गीली दिख रही थी। राहुल ने छुआ – मीना की चूत गर्म, गीली। "उफ्फ... राहुल..." मीना बोली। मोना ने राहुल की पैंट खोली, उसका लंड निकाला – पहली बार किसी लड़की ने छुआ। "वाह, कितना बड़ा," मोना बोली, और चूसने लगी। राहुल के मुँह से सिसकारी निकली। मीना ने अपनी पैंटी उतारी, राहुल की उँगलियाँ अंदर डालीं। तीनों उत्तेजित, लेकिन घंटी बज गई। वो रुक गए, लेकिन वादा किया – "कल जारी रखेंगे।"
शाम को राहुल घर लौटा, मन में उथल-पुथल। सुमन घर पर थी, खाना बना रही। "बेटा, आज कैसा रहा कॉलेज?" सुमन ने पूछा, उसकी मुस्कान थकी हुई। राहुल ने देखा – माँ आज सुंदर लग रही थी, साड़ी में उसके कर्व्स दिख रहे। लेकिन रात की याद आई, और गुस्सा आया। "माँ, तुम ठाकुर के यहाँ क्यों इतनी देर रहती हो?" राहुल ने पूछा। सुमन का चेहरा पीला पड़ गया। "बेटा, काम है। पैसे की जरूरत है।" लेकिन राहुल ने जोर दिया, "मैंने देखा है माँ। रात को ठाकुर आता है।" सुमन रो पड़ी। वो बैठ गई, राहुल को सब बताया – पिता की मौत के बाद गरीबी, ठाकुर की मदद लेकिन बदले में उसका शरीर। "बेटा, तेरे लिए कर रही हूँ। कॉलेज की फीस, खाना..." सुमन सोबती। राहुल का दिल टूटा, लेकिन गुस्सा भी। वो माँ को गले लगाया, "माँ, मैं सब ठीक कर दूंगा। पढ़ाई करके शहर जाऊंगा।" लेकिन गले लगते वक्त राहुल ने महसूस किया – माँ का शरीर गर्म, उसके स्तन दबे। सुमन ने भी महसूस किया, लेकिन कुछ नहीं कहा।
रात हुई। ठाकुर फिर आया। सुमन ने दरवाजा खोला, लेकिन राहुल जाग रहा था। वो छिपकर देखा – ठाकुर ने सुमन को बाहों में लिया, किस किया। सुमन की साड़ी उतरी, उसके बड़े स्तन बाहर। ठाकुर ने चूसे, सुमन कराही, "साहब..." ठाकुर ने सुमन को घोड़ी बनाया, चूत में डाला। धक्के तेज, सुमन की गांड हिल रही। "चोदो मुझे साहब... आह..." सुमन बोली। राहुल देखता रहा, उसका लंड खड़ा। लेकिन इस बार वो अंदर गया। "रुक जाओ!" राहुल चिल्लाया। ठाकुर हँसा, "आजा बेटा, तेरी माँ की चूत सबकी है।" सुमन डर गई, "नहीं बेटा..." लेकिन राहुल का गुस्सा उत्तेजना में बदल गया। वो माँ के पास गया, उसके स्तन चूसे। सुमन ने मना किया, लेकिन उसकी चूत गीली हो गई। ठाकुर देख रहा था। राहुल ने अपना लंड निकाला, माँ की चूत में डाला। "आह बेटा... नहीं..." सुमन बोली, लेकिन कमर हिलाने लगी। राहुल ने धक्के दिए, माँ की चूत टाइट। "माँ... तुम्हारी चूत कितनी गर्म..." राहुल बोला। सुमन झड़ गई, राहुल ने अंदर झाड़ा। ठाकुर हँसा, "अब तू भी मर्द बन गया।" राहुल रोया, लेकिन एक नई शुरुआत हो गई। अब माँ-बेटे का संबंध बदल चुका था – प्यार लेकिन कामुक।

राहुल ने फैसला किया – कॉलेज खत्म करके शहर जाएगा, लेकिन अब सेक्स उसकी जिंदगी का हिस्सा था।

कहानी जारी रहेगी।
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(2 hours ago)Fuckuguy Wrote: भाग 3: कॉलेज की शरारतें और माँ का राज खुलना (कॉलेज के छिपे पल और घर की सच्चाई)

रामपुर गाँव में दिन अब थोड़े अलग लगने लगे थे राहुल को। सुबह की धुंध में वो साइकिल चलाता, लेकिन मन में सरला काकी का स्पर्श और मीना-मोना की मुस्कानें घूमती रहतीं। वो रात की वो घटना – खुद को छूना – उसे guilt देती, लेकिन एक नई ऊर्जा भी। "ये सब नॉर्मल है क्या?" वो सोचता, लेकिन जवाब नहीं मिलता। कॉलेज पहुँचकर वो अपनी सीट पर बैठा, किताबें खोलीं। आज क्लास मैथ्स की थी, टीचर बोर्ड पर सवाल लिख रहे थे। राहुल का ध्यान लगा, लेकिन मीना ने फिर एक नोट पास किया: "ब्रेक में मिलना, कुछ बात करनी है।" राहुल ने देखा, मीना की आँखें चमक रही थीं। मीना आज थोड़ी nervous लग रही थी – उसके मन में राहुल के लिए भावनाएँ उमड़ रही थीं। घर पर उसकी माँ ने कहा था, "बेटी, पढ़ाई पर ध्यान दे, लड़कों से दूर रह।" लेकिन मीना का दिल नहीं मानता। वो रात को बिस्तर पर लेटती, राहुल की कल्पना करती – उसका चेहरा, उसकी मुस्कान। उसके शरीर में एक अजीब सी सिहरन होती, वो अपनी जांघों को रगड़ती, लेकिन आगे नहीं जाती। "क्या ये प्यार है?" वो सोचती, और शर्मा जाती।
मोना आज क्लास में ज्यादा शरारती थी। वो पीछे बैठी, चुपके से राहुल की तरफ कागज की गोली फेंकी। उस पर लिखा: "तू मीना को देखकर शर्मा क्यों जाता है? मुझे भी देख ना।" मोना के मन में जलन थी – मीना की मासूमियत उसे अच्छी नहीं लगती। मोना घर पर अकेली महसूस करती, पिता हमेशा दुकान पर, माँ बीमार। वो राहुल को अपना बनाने की सोचती, कल्पना करती कि वो उसे किस करे, छुए। मोना ने एक बार गुपचुप तरीके से एक कामुक किताब पढ़ी थी – गाँव के बाजार से चुराई हुई। उसमें औरतों के बारे में लिखा था, कैसे वो मजा लेती हैं। मोना ने ट्राई किया था – खुद को छुआ, उँगलियाँ अंदर डालीं, और पहली बार झड़ी थी। "वाह, कितना अच्छा लगा," वो सोचती, लेकिन अब वो राहुल के साथ करना चाहती।
ब्रेक की घंटी बजी। तीनों फिर उस पेड़ के नीचे मिले, लेकिन आज माहौल अलग था। चारों तरफ बच्चे खेल रहे थे, लेकिन वो कोने में छिप गए। मीना ने शुरू किया, "राहुल, तू कल से कुछ उदास लग रहा है। क्या हुआ?" उसकी आवाज में चिंता थी, आँखें नम। राहुल ने झिझकते हुए कहा, "कुछ नहीं, घर की टेंशन। माँ देर रात आती है।" मोना ने हँसकर कहा, "अरे, तेरी माँ ठाकुर के यहाँ काम करती है न? वो तो अमीर हैं, अच्छा होगा।" लेकिन राहुल का चेहरा बदल गया। मीना ने उसका हाथ पकड़ा – पहली बार। "चिंता मत कर, हम हैं न तेरे साथ।" राहुल ने महसूस किया – मीना का हाथ नरम, गर्म। वो करीब आ गई, उसकी साँसें राहुल के चेहरे पर लगीं। मोना ने देखा, और जलन में कहा, "चलो, थोड़ी मस्ती करें।" वो राहुल के कंधे पर हाथ रखकर हँसी। राहुल का मन भटका – तीनों इतने करीब। हवा में एक तनाव था, जैसे कुछ होने वाला हो।
मीना ने शर्मा कर कहा, "राहुल, तुझे पता है, मैं तुझे बचपन से पसंद करती हूँ।" राहुल स्तब्ध, लेकिन खुश। मोना ने चिढ़ाया, "अरे, मैं भी!" और अचानक मोना ने राहुल का गाल चूम लिया। राहुल का शरीर झनझना गया। मीना ने देखा, और वो भी करीब आई, राहुल के होंठों पर अपना होंठ रख दिया – पहला किस। मीना के होंठ नरम, मीठे। राहुल ने जवाब दिया, उसका हाथ मीना की कमर पर गया। मोना ने पीछे से राहुल को गले लगाया, उसके स्तन राहुल की पीठ से दबे। "राहुल, छू ना मुझे," मोना फुसफुसाई। राहुल ने मुड़कर मोना की शर्ट पर हाथ रखा, उसके स्तन दबाए। मोना कराही, "आह... अच्छा लग रहा..." मीना देख रही थी, उसकी साँसें तेज। वो अपनी स्कर्ट ऊपर की, "राहुल, देख..." उसकी पैंटी गीली दिख रही थी। राहुल ने छुआ – मीना की चूत गर्म, गीली। "उफ्फ... राहुल..." मीना बोली। मोना ने राहुल की पैंट खोली, उसका लंड निकाला – पहली बार किसी लड़की ने छुआ। "वाह, कितना बड़ा," मोना बोली, और चूसने लगी। राहुल के मुँह से सिसकारी निकली। मीना ने अपनी पैंटी उतारी, राहुल की उँगलियाँ अंदर डालीं। तीनों उत्तेजित, लेकिन घंटी बज गई। वो रुक गए, लेकिन वादा किया – "कल जारी रखेंगे।"
शाम को राहुल घर लौटा, मन में उथल-पुथल। सुमन घर पर थी, खाना बना रही। "बेटा, आज कैसा रहा कॉलेज?" सुमन ने पूछा, उसकी मुस्कान थकी हुई। राहुल ने देखा – माँ आज सुंदर लग रही थी, साड़ी में उसके कर्व्स दिख रहे। लेकिन रात की याद आई, और गुस्सा आया। "माँ, तुम ठाकुर के यहाँ क्यों इतनी देर रहती हो?" राहुल ने पूछा। सुमन का चेहरा पीला पड़ गया। "बेटा, काम है। पैसे की जरूरत है।" लेकिन राहुल ने जोर दिया, "मैंने देखा है माँ। रात को ठाकुर आता है।" सुमन रो पड़ी। वो बैठ गई, राहुल को सब बताया – पिता की मौत के बाद गरीबी, ठाकुर की मदद लेकिन बदले में उसका शरीर। "बेटा, तेरे लिए कर रही हूँ। कॉलेज की फीस, खाना..." सुमन सोबती। राहुल का दिल टूटा, लेकिन गुस्सा भी। वो माँ को गले लगाया, "माँ, मैं सब ठीक कर दूंगा। पढ़ाई करके शहर जाऊंगा।" लेकिन गले लगते वक्त राहुल ने महसूस किया – माँ का शरीर गर्म, उसके स्तन दबे। सुमन ने भी महसूस किया, लेकिन कुछ नहीं कहा।
रात हुई। ठाकुर फिर आया। सुमन ने दरवाजा खोला, लेकिन राहुल जाग रहा था। वो छिपकर देखा – ठाकुर ने सुमन को बाहों में लिया, किस किया। सुमन की साड़ी उतरी, उसके बड़े स्तन बाहर। ठाकुर ने चूसे, सुमन कराही, "साहब..." ठाकुर ने सुमन को घोड़ी बनाया, चूत में डाला। धक्के तेज, सुमन की गांड हिल रही। "चोदो मुझे साहब... आह..." सुमन बोली। राहुल देखता रहा, उसका लंड खड़ा। लेकिन इस बार वो अंदर गया। "रुक जाओ!" राहुल चिल्लाया। ठाकुर हँसा, "आजा बेटा, तेरी माँ की चूत सबकी है।" सुमन डर गई, "नहीं बेटा..." लेकिन राहुल का गुस्सा उत्तेजना में बदल गया। वो माँ के पास गया, उसके स्तन चूसे। सुमन ने मना किया, लेकिन उसकी चूत गीली हो गई। ठाकुर देख रहा था। राहुल ने अपना लंड निकाला, माँ की चूत में डाला। "आह बेटा... नहीं..." सुमन बोली, लेकिन कमर हिलाने लगी। राहुल ने धक्के दिए, माँ की चूत टाइट। "माँ... तुम्हारी चूत कितनी गर्म..." राहुल बोला। सुमन झड़ गई, राहुल ने अंदर झाड़ा। ठाकुर हँसा, "अब तू भी मर्द बन गया।" राहुल रोया, लेकिन एक नई शुरुआत हो गई। अब माँ-बेटे का संबंध बदल चुका था – प्यार लेकिन कामुक।

राहुल ने फैसला किया – कॉलेज खत्म करके शहर जाएगा, लेकिन अब सेक्स उसकी जिंदगी का हिस्सा था।

कहानी जारी रहेगी।




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